#पितृगण पितृपक्ष
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💥🌹महालय श्राद्ध🌹*💥
🚩पितृपक्ष : 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर 2023
👉30 सितम्बर 2023, शनिवार - द्वितीय का श्राद्ध*
👉श्राद्धयोग्य तिथियाँ (भाग -२)
👉द्वितिया को श्राद्ध करने वाला व्यक्ति राजा होता है ।*
👉उत्तम अर्थ की प्राप्ति के अभिलाषी को तृतिया विहित है। यही तृतिया शत्रुओं का नाश करने वाली और पाप नाशिनी है ।*
👉जो चतुर्थी को श्राद्ध करता है वह शत्रुओं का छिद्र देखता है अर्थात उसे शत्रुओं की समस्त कूटचालों का ज्ञान हो जाता है ।*
👉पंचमी तिथि को श्राद्ध करने वाला उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति करता है ।*
👉जो षष्ठी तिथि को श्राद्धकर्म संपन्न करता है उसकी पूजा देवता लोग करते हैं ।*
👉जो सप्तमी को श्राद्धादि करता है उसक�� महान यज्ञों के पुण्यफल प्राप्त होते हैं और वह गणों का स्वामी होता है ।*
👉जो अष्टमी को श्राद्ध करता है वह सम्पूर्ण समृद्धियाँ प्राप्त करता है ।*
👉नवमी तिथि को श्राद्ध करने वाला प्रचुर ऐश्वर्य एवं मन के अनुसार अनुकूल चलने वाली स्त्री को प्राप्त करता है ।*
👉दशमी तिथि को श्राद्ध करने वाला मनुष्य ब्रह्मत्व की लक्ष्मी प्राप्त करता है ।*
👉एकादशी का श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ दान है। वह समस्त वेदों का ज्ञान प्राप्त कराता है । उसके सम्पूर्ण पापकर्मों का विनाश हो जाता है तथा उसे निरंतर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।*
👉द्वादशी तिथि के श्राद्ध से राष्ट्र का कल्याण तथा प्रचुर अन्न की प्राप्ति कही गयी है ।*
👉त्रयोदशी के श्राद्ध से संतति, बुद्धि, धारणाशक्ति, स्वतंत्रता, उत्तम पुष्टि, दीर्घायु तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।*
👉चतुर्दशी का श्राद्ध जवान मृतकों के लिए किया जाता है तथा जो हथियारों द्वारा मारे गये हों उनके लिए भी चतुर्दशी को श्राद्ध करना चाहिए ।*
👉अमावस्या का श्राद्ध समस्त विषम उत्पन्न होने वालों के लिए अर्थात तीन कन्याओं के बाद पुत्र या तीन पुत्रों के बाद कन्याएँ हों उनके लिए होता ह । जुड़वे उत्पन्न होने वालों के लिए भी इसी दिन श्राद्ध करना चाहिए ।*
👉सधवा अथवा विधवा स्त्रियों का श्राद्ध आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि के दिन किया जाता है ।*
👉बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है ।*
👉दुर्घटना में अथवा युद्ध में घायल होकर मरने वालों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है ।*
👉जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं । मघा नक्षत्र पितरों को अभीष्ट सिद्धि देने वाला है । अतः उक्त नक्षत्र के दिनों में किया गया श्राद्ध अक्षय कहा गया है । पितृगण उसे सर्वदा अधिक पसंद करते हैं ।*
👉जो व्यक्ति अष्टकाओं में पितरों की पूजा आदि नहीं करते उनका यह जो इन अवसरों पर श्राद्धादि का दान करते हैं वे देवताओं के समीप अर्थात् स्वर्गलोक को जाते हैं और जो नहीं करते वे तिर्यक्(पक्षी आदि अधम) योनियों में जाते हैं ।*
👉रात्रि के समय श्राद्धकर्म निषिद्ध है । (वायु पुराणः 78.3)*
👉💥शनिवार के दिन विशेष प्रयोग 💥
👉शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है । (ब्रह्म पुराण)*
👉हर शनिवार क�� पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । (पद्म पुराण)*
👉आर्थिक कष्ट निवारण हेतु
👉एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है ।*👇
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Shradh 2019: know Which Pitra should be performed on which date
श्राद्ध 2019: जानें किस पितृ का कब करें श्राद्ध, इन बातों का रखें विशेष ध्यान
पितृ ऋण उतारने के लिए ही पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है। भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि हमारे पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 16 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद पितृलोक को लौट जाते हैं। चूंकि इन 16 दिनों के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और हमारे द्वारा श्रद्धा के साथ दी ग�� सामग्री को स्वीकार करते हैं। इसलिए इन दिनों जो कुछ भी उन्हें श्रद्धा के साथ अर्पण किया जाता है उसे ही श्राद्ध कहते हैं।
#पितृ ऋण#पितृ पक्ष#श्राद्ध कर्म#भारतीय शास्त्रों#पितृगण पितृपक्ष#पितृदेव रुष्ठ#Shradh#Pitru Paksha date#Pitra Paksha#Pitra moksha#Pinddan#Shukla Paksha#Shradh Karma#Pitru Paksha#dharm news#BhaskarHindiNews
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पितृपक्ष पर विशेष: श्रद्धा से किए गए श्राद्ध में पितृगण साक्षात प्रकट होते हैं
पितृपक्ष पर विशेष: श्रद्धा से किए गए श्राद्ध में पितृगण साक्षात प्रकट होते हैं
क्या हुआ जब सीता माता ने दिया श्राद्ध भोज…? भगवान श्रीकृष्ण से पक्षीराज गरुड़ ने पूछा:- हे प्रभो! पृथ्वी पर लोग अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध करते हैं। उनकी रुचि का भोजन ब्राह्मण आदि को कराते हैं। पर क्या पितृ लोक से पृथ्वी पर आकर श्राद्ध में भोजन करते पितरों को किसी ने देखा भी है? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा:- हे गरुड़! तुम्हारी शंका का निवारण करने के लिए मैं देवी सीता के साथ हुई घटना सुनाता हूं।…
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।। नमो नमः ।। ।।भाग्यचक्र ।। आज का पञ्चाङ्ग :- संवत :- २०७९ दिनांक :- 14 सितंबर 2022 सूर्योदय :- 06:13 सूर्यास्त :- 18:32 सूर्य राशि :- सिंह चंद्र राशि :- मेष मास :- अश्विन तिथि :- चतुर्थी ( चतुर्थी तिथि प्रातः 10:26 तक तत्पश्चात पंचमी तिथि ) वार :- बुधवार नक्षत्र :- अश्विनी योग :- ध्रुव करण :- बालव अयन:- दक्षिणायन पक्ष :- कृष्ण ऋतू :- वर्षा लाभ :- 16:59 - 18:31 अमृत:- 07:45 - 09:17 शुभ :- 10:50 - 12:22 राहु काल :- 12:23 - 13:55 जय महाकाल महाराज :- *पितृपक्ष ( श्राद्धपक्ष ) आरम्भ:-* *भिन्न भिन्न पुराणों के अनुसार श्राद्ध करने का महत्व* कुर्मपुराण :- कुर्मपुराण में कहा गया है कि, जो प्राणी जिस किसी भी विधि से एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुनः संसार चक्र में नहीं आता। गरुड़ पुराण :- इस पुराण के अनुसार, पितृ पूजन (श्राद्धकर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, सुख, धन और धान्य देते हैं। मार्कण्डेय पुराण :- इसके अनुसार, श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं। ब्रह्मपुराण :- इसके अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता। साथ ही ब्रह्मपुराण में वर्णन है कि, श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। आज का मंत्र :- ""|| ॐ गं गणपतये नमः।। ||"" *🙏नारायण नारायण🙏* जय महाकालेश्वर महाराज। माँ महालक्ष्मी की कृपा सदैव आपके परिवार पर बनी रहे। 🙏🌹जय महाकालेश्वर महाराज🌹🙏 महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का आज का भस्म आरती श्रृंँगार दर्शन। 14 सितंबर 2022 ( बुधवार ) जय महाकालेश्वर महाराज। सभी प्रकार के ज्योतिष समाधान हेतु। Whatsapp@9522222969 https://www.facebook.com/Bhagyachakraujjain शुभम भवतु ! 9522222969 https://www.instagram.com/p/CiePBC6LF7l/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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पितृ पक्ष विशेष 〰〰🌸〰〰 एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन दद्याज्जलाज्जलीन। यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणदेव नश्यति। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। उस पर प्रसन्न होकर पितृ उसे आशीर्वाद देकर जाते हैं। पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं, प्रथम मृत्यु या क्षय तिथि पर और द्वितीय पितृ पक्ष में जिस मास और तिथि को पितर की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उसका दाह संस्कार हुआ है। वर्ष में उस तिथि को एकोदिष्ट श्राद्ध में केवल एक पितर की संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है। इसमें एक पिंड का दान और एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है। पितृपक्ष में जिस तिथि को पितर की मृत्यु तिथि आती है, उस दिन पार्वण श्राद्ध किया जाता है। पार्वण श्राद्ध में 9 ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है, किंतु शास्त्र किसी एक सात्विक एवं संध्यावंदन करने वाले ब्राह्मण को भोजन कराने की भी आज्ञा देते हैं। इस सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है। जैसे - रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफ़ेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाये जा सकते हैं। सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक है। दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है। दृश्य जगत वो है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमें नहीं दिखता। ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं। पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है। धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु https://www.instagram.com/p/CiVHkdiPTGe/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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।। पितृगण कौन हैं ? घर के पितृ नाराज होने के
लक्षण और उपाय क्या हैं ।।
आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृदोष शांति के सरल उपाय। पितृ या पितृगण कौन हैं? आपकी जिज्ञासा को शांत करती विस्तृत प्रस्तुति।
पितृगण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है, क्योंकि उन्होंने कोई-न-कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है। मनुष्य लोक से ऊपर पितृलोक है, पितृलोक के ऊपर सूर्यलोक है एवं इससे भी ऊपर स्वर्गलोक है।
आत्मा जब अपने शरीर को त्यागकर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृलोक में जाती है, जहां हमारे पूर्वज मिलते हैं। अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं कि इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया। इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्यलोक की तरफ बढ़ती है।
वहां से आगे यदि और अधिक पुण्य हैं तो आत्मा सूर्यलोक को पार कर स्वर्गलोक की तरफ चली जाती है, लेकिन करोड़ों में एकआध आत्मा ही ऐसी होती है, जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। मनुष्य लोक एवं पितृलोक में बहुत सारी आत्माएं पुन: अपनी इच्छा व मोहवश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
पितृदोष क्या होता है?
हमारे ये ही पूर्वज ��ूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग न तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और न ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं, न ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दु:खी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं जिसे 'पितृदोष' कहा जाता है।
पितृदोष एक अदृश्य बाधा है। यह बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है। पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं, जैसे आपके आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गई गलती से, श्राद्ध आदि कर्म न करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
इसके अलावा मानसिक अवसाद, व्यापार में नुकसान, परिश्रम के अनुसार फल न मिलना, विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं, करियर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर, दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते और कितना भी पूजा-पाठ व देवी-देवताओं की अर्चना की जाए, उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।
पितृदोष दो प्रकार से प्रभावित करता है : -
1. अधोगति वाले पितरों के कारण
2. उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण
अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किए गए गलत आचरण की अतृप्त इच्छाएं, जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर, विवाहादि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय, परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं, परिवारजनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।
उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यत: पितृदोष उत्पन्न नहीं करते, परंतु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वे पितृदोष उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है। फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों न किए जाएं, कितने भी पूजा-पाठ क्यों न किए जाएं, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृदोष निवारण के लिए सबसे पहले यह जानना ज़रूरी होता है कि किस ग्रह के कारण और किस प्रकार का पितृदोष उत्पन्न हो रहा है?
जन्म पत्रिका और पितृदोष जन्म पत्रिका में लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृदोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चंद्रमा, गुरु, शनि और राहू केतु की स्थितियों से पितृदोष का विचार किया जाता है। इनमें से भी गुरु, शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृदोष में महत्वपूर्ण होती है। इनमें सूर्य से पिता या पितामह, चंद्रमा से माता या मातामह, मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।
अधिकांश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से चूंकि गुरु, शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृदोष उत्पन्न होता है इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ-साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी, सातमुखी और आठमुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले तो पितृदोष का निवारण शीघ्र हो जाता है। पितृदोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों क�� पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है।
पितरों के नाराज होने के लक्षण : -
खाने में से बाल निकलना
बदबू या दुर्गंध : कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है।
पूर्वजों का स्वप्न में बार-बार आना
शुभ कार्य में अड़चन : शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।
घर के किसी एक सदस्य का कुंआरा रह जाना
मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना
संतान न होना
पितृदोष की शांति के 10 उपाय : -
1. पिंडदान, सर्पपूजा, ब्राह्मण को गौदान, कन्यादान, कुआं, बावड़ी, तालाब आदि बनवाना, मंदिर प्रांगण में पीपल, बड़ (बरगद) आदि देववृक्ष लगवाना एवं विष्णु मंत्रों का जाप आदि करना...
2. वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र, स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों न हो, वह शांत हो जाती है। अगर नित्य पठन संभव न हो तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।
वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृदोष है, उस पितृदोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।
3. भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठकर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की 1 माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृदोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है। मंत्र जाप प्रात: या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं।
मंत्र : 'ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।'
4. अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रतापूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा, घी एवं 1 रोटी गाय को खिलाने से पितृदोष शांत होता है।
5. अपने माता-पिता व बुजुर्गों का सम्मान, स��ी स्त्री कुल का आदर-सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।
6. पितृदोषजनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए 'हरिवंश पुराण' का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।
7. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।
8. सूर्य साक्षात पिता है अत: ताम्बे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल फूल, लाल चंदन का चूरा, रोली आदि डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य देकर 11 बार 'ॐ घृणि सूर्याय नम:' मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।
9. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध, चीनी, सफेद कपड़ा, दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
10. पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें। अगर 108 परिक्रमा लगाई जाए तो पितृदोष अवश्य दूर होगा।
।। श्री स्नेहा माता जी ।।
SHIVSHAKTI VISHAV KA ADHAR
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श्रद्धा: कृतम् कर्म श्राद्ध:, श्रद्धा: श्रद्धयेति श्राद्धम्।।
***************
श्राद्ध कर्म:-
न सन्ति पितरश्चेति कृत्वा मनसि यो नरः।
श्राद्धं न कुरूते तत्र तस्य रक्तं पिबन्ति ते।।
अर्थः-
पितृ होते ही नहीं है ! और ऐसा विचार करके जो गृहस्थ मनुष्य वर्ष में एक बार भी "श्राद्धकर्म " नहीं करता है, उस मनुष्यका अतृप्त पितृगण रक्तपान करते है।
अतः यथाशक्ति विधि-विधान से श्राद्ध कर्म अवश्य करना ही चा���िये।
प्रत्येक सुपात्र सनातनी कम से कम....प्रतिवर्ष में पितृ पक्ष में 6-श्राध दिवस अथवा दो श्राध्द दिवस अवश्य करे। यथा:-
1-भाद्रपद पूर्णिमा: भीष्म पितामह ह��तु। (सर्वप्रथम दिन)
2-आश्विन अमावस्या: ज्ञात-अज्ञात सर्व पितर हेतु अन्तिम दिन।
उपरोक्त के मध्य दादा, दादी एवं माता और पिता की मृत्यु तिथी की तिथि को अवश्य ही अपने पितरों का स्मरण करें।
विधि-विधान से न कर सकें तो श्राद्ध कर्म की एक अति सरल विधि:-
1-दोपहर बारह बजे से एक बजे के मध्य ( मध्याह्न काल) में स्वयं की पंचाग (दो हाथ,दो पैर और गर्दन तक मुख ) शुध्दि करें।
2- फिर एक लोटा जल में काले तिल ( तिल 84 दानों से कम न हों) मिला कर मुख्यद्वार (Main gate) खोल कर दोनों दिशाऔं में अपने पितरों की उपस्थिति की कल्पना करके उन्हें प्रणाम करे।
3-फिर दक्षिणदिशा मुखी होकर वह जल अपने पितरों को अर्घ्य कर दें।
4- अर्घ्य करते समय लोटा की ऊंचाई अपने सीने तक ही सीमित रखें।
मध्याह्न काल मे ही सूर्य से अर्यमा नामक किरणें निकलती है। इन्ही अर्यमा नामक किरणों के माध्यम समस्त स्वधाएं (सामग्री) पितरो तक पहुचती है।
करके देखिए! तुरन्त असीम शान्ति का अनुभव होगा।
श्राद्ध क्या है?
ब्रह्म पुराण के "श्राद्ध प्रकाश" में कहा गया है कि जो दान अथवा कर्म उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार, शास्त्रोचित विधि से पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह श्राद्ध है।
मनुस्मृति के अनुसार मनुष्य के तीन पूर्वज- पिता, पितामह एवं प्रतिपामह क्रम से अष्ट वसुओं, एकादस रुद्रों एवं द्वादस आदित्यों के समान हैं।
अत: श्राद्ध करते समय इन वसुओं, रुद्रों एवं आदित्यों को ही अपने पूर्वजों का प्रतिनिधि मानें।
ऋग्वेद में पितृगण 1- निम्न, 2-मध्यम और 3- उच्च, श्रेणियों के बताए गए हैं।
" तैतरीय ब्राह्मण ग्रंथ " में उल्लेख है कि पितर लोग जिस लोक में निवास करते हैं, वह भू-लोक और अंतरिक्ष के बाद है।
पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक हम जो कुछ भी अर्पण करते हैं, उसे सूर्यदेव जो वायु के देवता हैं अपनी अर्यमा नामक किरणों की प्रचण्ड किरणों (अग्नि) से वसुओं, रुद्रों एवं आदित्यों के निकट पहुंचा देते हैं। कहते हैं इनसे ही सृष्टि की रचना हुई है।
ऐसे तो भारत में लगभग सभी तीर्थों पर श्राद्ध, पिण्डदान किया जाता है, लेकिन उनमें गयाजी को सबसे उत्तम माना गया है।
वशिष्ठ धर्मसूत्र में उल्लेख है कि कृषक जैसे अच्छी वर्षा से प्रसन्न होते हैं, वैसे ही गया में पिण्डदान से पितर प्रसन्न होते हैं।
नारद पुराण के उत्तर भाग में वर्णन है- ‘हे! सुभाग्ये म��ापाप करने वाला भी, जो पितृ कर्म का अधिकार रखता हो, यदि वह गयापुण्य क्षेत्र के दर्शन व वहां श्राद्ध कर्म करता है तो वह फल के रुप में ब्रह्मलोक पा जाता है।'
गया को भगवानविष्णु के जाग्रत तीर्थ के रुप में कहा गया है। अत: यहां पूरे वर्ष पिण्डदान होता रहता है।
लेकिन प्रत्येक वर्ष में भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक का काल, जिसे पितृपक्ष कहा जाता है, में श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है। इस अवधि में पितृगण ‘गया श्राद्ध' के लिए आस लगाए रहते हैं। गया में किया गया श्राद्ध लोक व परलोक दोनों के लिए सुखकारी है।
बौधायन धर्मसूत्र में वर्णन है कि जो पितृ कर्म करता है, उसे दीर्घायु, स्वर्ग, यश और समृद्धि प्राप्त होती है।
कूर्म पुराण के श्राद्ध प्रकरण के अनुसार, विभिन्न दिनों को किए गए श्राद्ध का पुण्य फल:-
सोमवार - सौभाग्य वृद्घि।
मंगलवार - संतति प्राप्ति।
बुधवार - शत्रु नाश।
गुरुवार - धन प्राप्ति।
शुक्रवार - समृद्घि प्राप्ति।
शनिवार - आरोग्य सुख।
रविवार - यश प्राप्ति।
तिथि के अनुसार श्राद्ध का पुण्य फल:-
प्रतिपदा - धन लाभ।
द्वितीया - आरोग्य।
तृतीया - संतति प्राप्ति।
चतुर्थी - शत्रु नाश।
पंचमी - लक्ष्मी प्राप्ति।
षष्ठी - पूज्यता प्राप्ति।
सप्तमी - गणों का आधिपत्य प्राप्ति।
अष्टमी - उत्तम बुद्घि की प्राप्ति।
नवमी - उत्तम स्त्री की प्राप्ति।
दशमी - कामना पूर्ति।
एकादशी - वेद ज्ञान की प्राप्ति।
द्वादशी - सर्वत्र विजय।
त्रयोदशी - दीर्घायु व ऐश्वर्य प्राप्ति।
चतुर्दशी - अपघात से हुए मृतकों की तृप्ति।
अमावस्या - कामना पूर्ति व स्वर्ग की प्राप्ति।
महात्म:-
विष्णु पुराण में कहा है कि श्रद्धायुक्त होकर श्राद्धकर्म करने से केवल पितृगण ही तृप्त नहीं होते बल्कि ब्रह्मा, सप्त इंद्र, एकादस रुद्र, द्वादस आदित्य और दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्ट वसु, वायु, विश्वदेव, पितृगण, पक्षी, मनुष्य ऋषिगण आदि तथा अन्य समस्य भूत प्राणी तृप्त होते हैं।
एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाज्जलीन्।
यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति॥
अर्थः-
जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है।
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#श्राद्ध क्या है श्राद्ध दो प्रकार के होते है , 1)पिंड क्रिया 2) ब्राह्मणभोज 1)पिण्डक्रिया यह प्रश्न स्वाभाविक है कि श्राद्ध में दी गई अन्न सामग्री पितरों को कैसे मिलती है...? नाम गौत्रं च मन्त्रश्च दत्तमन्नम नयन्ति तम। अपि योनिशतम प्राप्तान्सतृप्तिस्ताननुगच्छन्ति ।। (वायुपुराण) श्राद्ध में दिये गये अन्न को नाम , गौत्र , ह्रदय की श्रद्धा , संकल्पपूर्वक दिये हुय पदार्थ भक्तिपूर्वक उच्चार���त मन्त्र उनके पास भोजन रूप में उपलब्ध होते है , 2)ब्राह्मणभोजन निमन्त्रितान हि पितर उपतिष्ठन्ति तान द्विजान । वायुवच्चानुगच्छन्ति तथासिनानुपासते ।। (मनुस्मृति 3,189) अर्थात श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण में पितर गुप्तरूप से प्राणवायु की भांति उनके साथ भोजन करते है , म्रत्यु के पश्चात पितर सूक्ष्म शरीरधारी होते है , इसिलिय वह दिखाई नही देते , तिर इव वै 1पितरो मनुष्येभ्य: ( शतपथ ब्राह्मण ) अर्थात सूक्ष्म शरीरधारी पितर मनुष्यों से छिपे होते है । #धनाभाव में श्राद्ध धनाभाव एवम समयाभाव में श्राद्ध तिथि पर पितर का स्मरण कर गाय को घांस खिलाने से भी पूर्ति होती है , यह व्यवस्था पद्मपुराण ने दी है , यह भी सम्भव न हो तो इसके अलावा भी , श्राद्ध कर्ता एकांत में जाकर पितरों का स्मरण कर दोनों हाथ जोड़कर पितरों से प्रार्थना करे न मेस्ति वित्तं न धनम च नान्यच्छ्श्राद्धोपयोग्यम स्वपितृन्नतोस्मि । तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयोतौ कृतौ भुजौ वर्तमनि मारुतस्य ।। (विष्णुपुराण) अर्थात ' है पितृगण मेरे पास श्राद्ध हेतु न उपयुक्त धन है न धान्य है मेरे पास आपके लिये ह्रदय में श्रद्धाभक्ति है मै इन्ही के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं आप तृप्त होइये श्राद्ध सामान्यतः 3 प्रकार के होते है #नित्य नैमितकम काम्यम त्रिविधम श्राद्धम उच्यते यम स्मृति में 5 प्रकार तथा , विश्वामित्र स्मृति में 12 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन है ,किंतु 5 श्राद्ध में ही सबका अंतर्भाव हो जाता है , 1)नित्य श्राद्ध प्रतिदिन किया जाने बाला श्राद्ध , जलप्रदान क्रिया से भी इसकी पूर्ति हो जाती है 2)नैमितकम श्राद्ध वार्षिक तिथि पर किया जाने बाला श्राद्ध , 3)काम्यश्राद्ध किसी कामना की पूर्ति हेतु किया जाने वाला श्राद्घ 4)वृद्धिश्राद्ध (नान्दीश्राद्ध मांगलिक कार्यों , विवाहादि में किया जाने बाला श्राद्ध 5)पावर्ण श्राद्ध पितृपक्ष ,अमावस्या आदि पर्व पर किया जाने बाला श्राद्ध (at New Delhi) https://www.instagram.com/p/B2aezeMDLYJ/?igshid=180e2fkwwtngh
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श्रद्धा किन गरिन्छ ? यस्तो छ घतलाग्दो पक्ष
शास्त्रहरूमा बताइए अनुसार अहिले चलिरहेको पितृपक्ष एक प्रकारले पितृहरूको सामूहिक मेला हो । यो पक्षमा सबै पितृहरू पृथ्वीलोकमा बस्ने आफ्ना सन्तानहरूकहाँ बिना आहृवान नै आउँछन् अनि उनीहरूले अर्पण गरेका गरेका तर्पण, पिण्ड आदि प्रसादबाट तृप्त भएर उनीहरूलाई अनेकानेक शुभाशीर्वाद प्रदान गर्दछन् । फलस्वरूप श्राद्धकर्ताले अनेक प्रकारका सुख प्राप्त गर्दछ ।
यसकारण श्राद्ध पक्षमा आफ्ना पितृका सन्तुष्टि तथा अनन्त एवं अक्षय तृप्तिका साथै उनीहरूको शुभाशीर्वाद प्राप्त गर्ने उद्देश्यले हरेक मानिसले आ आफ्ना पितृहरूको श्राद्ध अनिवार्य रूपमा गर्नुपर्छ । जो मानिस आफ्ना पूर्वजहरूको सम्पत्ति उपभोग गर्छ तर उनीहरूको श्राद्ध गर्दैन त्यस्ता मानिसले आफ्ना पितृहरूद्वारा अभिशप्त भई अनेकौं प्रकारका शारीरिक एवं मानसिक कष्टको सामना गर्नुपर्ने हुन्छ । उनीहरू जीवनभर शान्त भएर बस्न सक्दैनन् ।
कुनै आमाबाबुको एकभन्दा धेरै छोरा छन् र उनीहरूबीच धनसम्पत्ति वा अंशबण्डा भएको छैन भने सबैले संयुक्त रूपमा एकै ठाउँमा जम्मा भएर श्राद्ध गर्नुपर्छ । यस्तो स्थितिमा जेठो छोरोले नै श्राद्ध आदि पितृकर्म गर्नुपर्छ । सबै भाइले अलग-अलग गर्नु हुँदैन ।
अंशबण्डा भएर भिन्दाभिन्दै बसेका भए सबै छोराले अलग-अलग श्राद्ध गर्नुपर्छ । प्रत्येक सनातनधर्मीले आफूअघिका तीन पुस्ता बाबु, हजुरबुबा र बूढो हजुरबुबाको श्राद्ध गर्नैपर्छ । तर्पण दिँदा तथा पितृपक्षको महालय श्राद्धमा बाबुतर्फका तीन पुस्ता बाहेक आमातर्फका तीन पुस्ता अर्थात् मामाघरको हजरबुबा, बूढो हजुरबुबा तथा कुप्रा हजुरबुबाको श्राद्ध गर्नुपर्छ ।
यसका अतिरिक्त आवश्यक परेमा उपाध्याय, गुरु, ससुरा, ठूलोबा, काका, मामा, भाइ, ज्वाइँ, भतीजा, शिष्य, भानिज, फुपू, सानिमा, ठूल्यामा, पुत्र, मित्र, विमाताका पिता तथा उनका पत्नीको पनि श्राद्ध गर्नुपर्छ भन्ने शास्त्रीय निर्देश पाइन्छ ।
यी सबै दिवंगत व्यक्तिहरूको श्राद्ध उनीहरूको पुण्यतिथि अर्थात् मृत्यु भएको तिथि पारेर हरेक वर्ष श्राद्ध गर्नुपर्छ । पितृपक्षको महालय श्राद्ध भने सामान्यत बाबुको तिथि पारेर गर्ने चलन छ । बाबुको नभए हजुरबाबुको तिथि पारेर गर्न पनि सकिन्छ । महालय श्राद्ध मध्यन्ह अर्थात् साढें बार्हदेखि एक बजेसम्ममा सुरु गर्नुपर्छ । तिथि थाहा नभए सर्व पितृ अमावस्याका दिन श्राद्ध गर्न सकिन्छ ।
कुन तिथिमा कस्ता पितृको श्राद्ध ?
-जसको मृत्यु सामान्य एवं स्वाभाविक चतुर्दशी तिथिमा भएको छ, उनीहरूको श्राद्ध चतुर्दशी तिथिमा कदापि गर्नुहुँदैन, बरु पितृपक्षको त्रयोदशी अथवा अमावस्याका दिन गर्नुपर्छ ।
-जसको अपमृत्यु अर्थात् कुनै दुर्घटना, सर्पदंश, विष, शस्त्रप्रहार, हत्या, आत्महत्या वा अन्य कुनै तरिकाको अस्वाभाव���क मृत्यु भएको छ उनीहरूको श्राद्ध मृत्यु तिथिका दिन कदापि गर्नु हुँदैन । त्यसरी अपमृत्यु हुनेहरूको श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथिका दिन गर्नुपर्छ ।
-सौभाग्यवती महिला अर्थात् पति जीवित छँदै मरेका महिलाको श्राद्ध पनि केवल पितृपक्षको नवमी तिथिमा गर्नु भन्ने विधान छ ।
-संन्यासीहरूको श्राद्ध केवल पितृपक्षको द्वादशीमै गर्नुपर्छ ।
-मामाघरको हजुरबा तथा हजुरआमाको श्राद्ध केवल अश्विन शुक्ल प्रतिपदामै गर्नुपर्छ ।
-स्वाभाविक रूपले वा कालगतिले मरेकाहरूको श्राद्ध भाऽपद शुक्ल पूणिर्मा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्याका दिन गर्नुपर्छ ।
श्राद्ध गर्ने सही समय कुतप काल
पितृ पक्षका १६ दिन पितृ स्मरणको दिन हुन् । तसर्थ यी १६ दिन नै पितृगणको तृप्तिका लागि तर्पण, दान, ब्राहृमण भोजन इत्यादि गराइन्छ । हुन त श्राद्ध एवं तर्पण दैनिक रूपले पनि गर्न सकिन्छ तर यी १६ दिनमा गरेका श्राद्धको फल अनन्त गुना प्राप्त हुन्छ भने पितृगण सन्तुष्ट भिएर आशिष समेत प्रदान गर्छन् । यी दिनमा पनि कुतपकालमा गरिएको श्राद्ध कर्म विशेष फलदायी हुन्छ ।
श्राद्ध पक्षका १६ दिन नै कुतप बेला पर्खेर श्राद्ध संपन्न गर्नु राम्रो हुन्छ । दिनको आठौँ मुहूर्तलाई कुतप काल भनिन्छ । अपरान्ह ११ः३६ देखि १२ः२४ सम्मको समय श्राद्ध कर्म गर्नु विशेष शुभदायी हुन्छ । यो समयलाई कुतप काल भनिन्छ ।
गजच्छाया योग पनि अति उत्तम
शास्त्रहरूमा गजच्छाया योगमा श्राद्ध कर्म गर्दा अनन्त गुना फल प्राप्त हुने कुरा बताइएको छ । गजच्छाया योग धेरै वर्षमा एकपटक पर्छ, यो योगमा गरिएको श्राद्धको फल अक्षय हुने बताइएको छ । सूर्य हस्ता नक्षत्रमा छ र त्रयोदशीका दिन मघा नक्षत्र छ भने गजच्छाया योग निर्माण हुन्छ । यस्तो योग महालय -श्राद्धपक्ष) का दि नबनेमा अत्यन्त शुभ मानिन्छ ।
श्राद्ध विषयक केही कुरा
श्राद्ध कर्मको शास्त्रीय विधि जानकारी छैन वा त्यसरी गर्ने सामथ्र्य छैन भने केही सरल विधि छन् तिनको पालन गर्नुपर्छ ः-बिहान उठेर स्नान गरी देव स्थान वा पितृ स्थानमा गाईको गोबरले लिपेर , गंगाजल छर्केर पवित्र पार्ने ।
-महिलाहरूले शुद्ध भएर पितृका लागि भोजन बनाउने ।
-श्राद्ध गराउन योग्य वा श्रेष्ठ ब्राहृमण, ज्वाइँ, भान्जा आदिलाई निम्ता गर्ने ।
-पितृका निमित्त अग्निमा गाईको दूध, दही, घिउ एवं खीर अर्पित गर्ने ।
-गाई, कुकुर, काग एवं अतिथिका लागि चार गाँस भोजन छुट्याउने ।
-ब्राहृमणलाई आदरपूर्वक भोजन, वस्त्र, दक्षिणा आदिले सम्मान गर्ने।
-घरमा गरिएको श्राद्धको पुण्य तीर्थस्थलमा गरिएको श्राद्धभन्दा आठ गुना अधिक फलदायी हुन्छ ।
-आर्थिक कारण या अन्य कारणले ठूलो श्राद्ध गर्न सकिँदैन तर पितृको शान्तिका लागि केहीँ गर्ने इच्छा दृढ छ भने पूर्ण श्रद्धा भावले आफ्नो सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, सागपात, फलफूल तथा जति सकिन्छ त्यति दक्षिणा आदर भावले कुनै ब्राहृमणलाई दिने ।
-परिस्थितिवश यति पनि गर्न नसके ७, ८ मुरी तिल, जलसहित कुनै योग्य ब्राहृमणलाई दान दिने । यसबाट पनि श्राद्धको पुण्य प्राप्त हुन्छ ।
-यति पनि गर्न नसके गाईलाई भरपेट घाँस खुवाउने, पितृ प्रसन्न हुन्छन् ।
-माथि उल्लेखित कुनै पनि कार्य गर्न सम्भव नभए कुनै एकान्त स्थानमा गएर मध्याहृन समयमा सूर्यतर्फ फर्केर दुवै हात उठाएर आफ्ना पूर्वज तथा सूर्य देवको प्रार्थना गर्ने ।
-प्रार्थना गर्दा ‘हे प्रभु ! मैले तपाईंका सामु आफ्ना दुवै हात फैलाइदिएको छु, म आफ्ना पितृहरूको मुक्तिका लागि तपाईंसँग प्रार्थना गर्छु, मेरा पितृहरू मेरो श्रद्धा भक्तिबाट सन्तुष्ट होऊन्’ भन्ने । यति गरे पितृ ऋणबाट मुक्ति पाइन्छ ।
-जसले श्रद्धापूर्वक श्राद्ध गर्छ, उसको बुद्धि, पुष्टि, ��्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्रपौत्रादि एवं ऐश्वर्यको वृद्धि हुन्छ । आनन्दपूर्वक सांसारिक सुखभोग गर्न पाउँछ ।
जीवनसँग श्राद्घको सम्बन्ध
श्राद्धका विषयमा शास्त्रकारहरूले पाण्डित्य र मनोविज्ञानको सविस्तार वर्णन गरेका छन् । उनीहरूले यसको विषयमा चित्तबुझ्दो मान्यता अघि सारेका छन् । जब घरमा कुनै समृद्धि सूचक वस्तु आउँछ वा मांगलिक उत्सव हुन्छ त्यतिबेला आप\mना स्वर्गीय मानिसहरूलाई याद गरिन्छ । किनभने उनीहरू कुनै समय हाम्रा सुखदुःखमा सम्मिलत हुन्थे, उनीहरूको स्मृति कहिल्यै मेटिँदैन ।
तसर्थ अज्ञात लोकवासी पितृहरू पनि हाम्रा आनन्दोत्सवमा सम्मिलित होऊन्, शरीरले सम्भव नभए पनि आत्माले हामीसँग रहून् भनेर उनीहरूप्रति श्रद्धावनत हुनु स्वाभाविक हो । यसरी पितृहरूलाई शास्त्रीय मन्त्रहरूद्वारा मानसिक आवाहन एवं पूजन गर्नु नै श्राद्ध हो, उनीहरूप्रतिको श्रद्धा एवं समर्पण भाव हो । मनको भावना प्रबल हुन्छ भन्ने सत्यलाई इन्कार गर्न सकिँदैन । श्रद्धाभिभूत मनका अगाडि स्वर्गीय आत्मा सजीव एवं साकार भएर उपस्थित हुन्छन् ।
श्राद्धमा मातापिता एवं अन्य पितृका रूपको ध्यान गर्नु आवश्यक कर्तव्य बताइएको छ । यसरी आफ्ना पितृहरूसँग भावनात्मक निकटता गाँस्ने मनोविज्ञान श्राद्धसँग जोडिएको छ ।
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🌹महालय श्राद्ध🌹*
👉पितृपक्ष : 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर 2023*
👉जिनके कुल खानदान में श्राद्ध नहीं होते हैं उनके कुल खानदान में दीर्घजीवी, बुद्धिमान एवं माता-पिता की आदर करनेवाली संतानें नहीं होती । विष्णु पुराण में कहा कि पितृगणहीन जो पितृगण की पूजन या पितरों को नहीं मानता वो पितृगणहीन ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि और अ��्टवसु, वायु, ऋषि, मनुष्य पशु-पक्षी, सरीसृप समस्त प्राणी उसके सत्कृत्यों से संतुष्ट नहीं होते, स्वीकार नहीं करते हैं । लेकिन जो पितृ पूजन आदि करता हैं उनपर इन सभी की प्रसन्न दृष्टि रहती है ।*
💥कैसे हो पितृदोष का निवारण ?💥
👉मृतक का विधिवत् अंतिम संस्कार व श्राद्ध न करने से, पितरों का अपमान करने से, पीपल आदि देववृक्षों को काटने या कटवाने से, किसी निर्दोष जानवर को सताने आदि से पितृदोष होता है । इससे पारिवारिक कलह, अशांति और विघ्न- बाधाएँ आती हैं । इन उपायों को करने से आप पितृदोष का निवारण कर सकते हैं :*
👉देवी भागवत में आता है कि भगवान नारायण नारदजी से कहते हैं: 'जो स्वधा देवी की उपासना न करके श्राद्ध करता है उसके श्राद्ध और तर्पण सफल नहीं होते।' तो श्राद्ध के दिनों में शांति से बैठकर पितृदोष-निवृत्ति के लिए स्वधा देवी को प्रार्थना करें और इस मंत्र का जप करें:*
💥*ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा ।*💥
👉पितृपक्ष में एक लोटे में पानी, थोड़ा-सा गंगाजल व गाय का दूध ले के उसमें फूल, तुलसी के पत्ते तथा काले तिल डालकर दोपहर के समय मन-ही-मन भगवन्नाम-उच्चारण करके पितरों के कल्याण का चिंतन करते हुए पीपल के पेड़ में चढ़ायें ।*
👉 श्राद्धपक्ष के दिनों में शाम के समय दक्षिण दिशा की ओर तिल के तेल का अथवा गाय के घी का दीपक जलायें । थोड़ी देर शांत बैठकर गुरुमंत्र या इष्टमंत्र का जप करें और उसका पुण्यफल पितरों को अर्पण करें ।*
💥 त्रिकाल संध्या में गौ-चंदन धूपबत्ती जलाकर अथवा गौ-गोबर के कंडों पर गूगल का धूप (गूगल धूप ) करके ध्यान, जप करें । बीच- बीच में बूंद-बूंद घी डालते रहें । आरती के समय कपूर जलायें । इससे घर का वातावरण शुद्ध रहता है और पितृदोष का शमन होता है (अन्य दिनों में भी इस प्रकार त्रिकाल संध्या करने से घर का वातावरण सात्त्विक होगा, रोजी-रोटी की चिंता नहीं करनी पड़ेगी)।💥
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श्राद्ध: जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि नहीं पता, उसका इस दिन करें श्राद्ध
पितृपक्ष यानी पितरों की पूजा का पक्ष। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के समान ही पितरों को महत्व दिया गया है। गरुड़ पुराण और कठोपनिषद् के अनुसार पितृगण देवताओं के समान ही वरदान और शाप देने की क्षमता रखते हैं। इनकी प्रसन्नता से परिवार की उन्नति होती और नाराजगी से परिवार निरंतर परेशानियों में रहता है। शास्त्रों में मनुष्यों पर उत्पन्न होते ही तीन ऋण बताए गए हैं- देव ऋण, ऋषिऋण और पितृऋण। श्राद्ध के द्वारा पितृऋण से निवृत्ति प्राप्त होती है।
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धर्मशास्त्रों से जानें श्राद्धों में क्यों नहीं किए जाते शुभ काम हमारी संस्कृति में श्राद्ध का संबंध हमारे पूर्वजों की मृत्यु की तिथि से है। अतः श्राद्धपक्ष शुभ तथा नए कार्यों के प्रारंभ हेतु अशुभ काल माना गया है। जिस प्रकार हम अपने किसी परिजन की मृत्यु के बाद शोकाकुल अवधि में रहते हैं तथा शुभ, नियमित, मंगल, व्यावसायिक कार्यों को एक समय अवधि तक के लिए रोक देते हैं। उसी प्रकार पितृपक्ष में भी शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। श्राद्धपक्ष की 16 दिनों की समय अवधि में हम अपने पितृगण से तथा हमारे पितृगण हमसे जुड़े रहते हैं। अत: शुभ-मांगलिक कार्यों को वंचित रखकर हम पितृगण के प्रति पूरा सम्मान व एकाग्रता बनाए रखते हैं। धर्म शास्त्र में पितृऋण: शास्त्रों के अनुसार मनुष्य योनी में जन्म लेते ही व्यक्ति पर तीन प्रकार के ऋण समाहित हो जाते हैं। इन तीन प्रकार के ऋणों में से एक ऋण है पितृऋण। अत: धर्मशास्त्रों में पितृपक्ष में श्राद्धकर्म के अर्ध्य, तर्पण तथा पिण्डदान के माध्यम से पितृऋण से मुक्ति पाने का रास्ता बतलाया गया है। पितृऋण से मुक्ति पाए बिना व्यक्ति का कल्याण होना असंभव है। शास्त्रानुसार पृथ्वी से ऊपर सत्य, तप, महा, जन, स्वर्ग, भुव:, भूमि ये सात लोक माने गए हैं। इन सात लोकों में से भुव: लोक को पितृलोक माना गया है। श्राद्धपक्ष की सोलह दिन की अवधी में पितृगण पितृलोक से चलकर भूलोक को आ जाते हैं। इन सोलह दिन की समयावधि में पितृलोक पर जल का अभाव हो जाता है, अतः पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से भूलोक आकार अपने वंशजो से तर्पण करवाकर तृप्त होते है। अतः जब व्यक्ति पर ऋण अर्थात कर्जा हो तो वो खुशी मनाकर शुभकार्य कैसे सम्पादित कर सकता है। पितृऋण के कारण ही पितृपक्ष में शुभकार्य नहीं किए जाते।
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।। नमो नमः ।। ।।भाग्यचक्र ।। आज का पञ्चाङ्ग :- संवत :- २०७९ दिनांक :- 08 सितंबर 2022 सूर्योदय :- 06:12 सूर्यास्त :- 18:38 सूर्य राशि :- सिंह चंद्र राशि :- मकर मास :- भाद्रपद तिथि :- त्रियोदशी वार :- गुरुवार नक्षत्र :- श्रवण योग :- अतिगण करण :- कौलव अयन:- दक्षिणायन पक्ष :- शुक्ल ऋतू :- वर्षा लाभ :- 12:24 - 13:57 अमृत:- 13:58 - 15:32 शुभ :- 17:04 - 18:37 राहु काल :- 13:58 - 15:32 जय महाकाल महाराज :- *पितृपक्ष ( श्राद्धपक्ष ):-* इस वर्ष पितृपक्ष ( श्राद्ध पक्ष ) 10-सितंबर-2022 शनिवार से प्रारंभ हो रहा है, जो 25-सितंबर-2022 रविवार तक रहेगा। 25 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ इसका समापन होगा l विशेष :- वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है। आज का मंत्र :- ""|| ॐ बृं बृहस्पतये नमः ||"" *🙏नारायण नारायण🙏* जय महाकालेश्वर महाराज। माँ महालक्ष्मी की कृपा सदैव आपके परिवार पर बनी रहे। 🙏🌹जय महाकालेश्वर महाराज🌹🙏 महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का आज का भस्म आरती श्रृंँगार दर्शन। 08 सितंबर 2022 ( गुरुवार ) जय महाकालेश्वर महाराज। सभी प्रकार के ज्योतिष समाधान हेतु। Whatsapp@9522222969 https://www.facebook.com/Bhagyachakraujjain शुभम भवतु ! 9522222969 https://www.instagram.com/p/CiO55jrLgLK/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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Pitru Paksha mein nahi karna chahiye ye kam पितृपक्ष में पितृगण का श्राद्ध तर्पण करने से पितर प्रसन्न होकर शुभ फल देते हैं। shradh pitra puja in hindi
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सोह्र श्राद्ध, पितृहरूलाई प्रसन्न तुल्याउने १६ विशेष दिन
आजबाट १६ श्राद्ध सुरु भएको छ। १६ दिनसम्म पितृप्रतिको सम्मान प्रकट गरिने भएकाले यस अवधिलाई पितृ पक्ष भनिन्छ । श्राद्ध पक्षका १६ दिनमा भाद्रशुक्ल पूणिर्माको दिन पूणिर्मा तिथिको श्राद्ध गरिन्छ । यसपछि आश्विन कृष्ण पक्षका १५ दिन क्रमशः प्रतिपदादेखि अमावस्यासम्म तिथिअनुसार श्राद्ध गरिन्छ। अन्तिम दिन सर्वपितृमोक्ष अमावस्या पर्छ ।
पितृहरूलाई प्रसन्न पार्न तथा जानेर वा नजानेर हामीबाट पितृहरूको अनादर भएको छ भने उनीहरूप्रति कृतज्ञता व्यक्त गर्ने तथा उनीहरू सँग क्षमा माग्ने पर्व हो श्राद्ध पक्ष । श्राद्ध पक्षमा प्रत्येक तिथिका दिन मानिसहरू आफ्ना पूर्वजहरूको मृत्यु तिथिअनुसार श्राद्ध गर्छन् । जसलाई पूर्वजको मृत्यु तिथि थाहा हुँदैन उनीहरूले सर्वपितृ अमावस्याका दिन श्राद्ध गर्छन् ।
के हो श्राद्ध ?
श्राद्ध पक्ष हरेक वर्ष शारदीय नवरात्र प्रारम्भ हुनुअघि आउँछ। श्राद्धको सीधा अर्थ हो आफ्ना पूर्वजहरूप्रति श्रद्धा । शास्त्रले भनेको छ- ‘श्रद्धया इदम् श्राद्धम्’ अर्थात् पितृहरूका निमित्त श्रद्धापूर्वक गरिने कर्म नै श्राद्ध हो ।
श्राद्ध पक्षका क्रममा आफ्ना परिवारका ती मृत सदस्यहरूलाई याद गरिन्छ, उनीहरूप्रति सम्मान प्रकट गरिन्छ, श्रद्धान्जलि दिइन्छ, जसका कारण आज हामीले वर्तमान जीवन प्राप्त गर्न सकेका छौँ । श्राद्धका क्रममा पूर्वजहरूलाई जौ, तील, कुश, पानी तथा पन्चामृतको तर्पण दिइन्छ । तर्पण गर्नुको उद्देश्य आˆना पूर्वजहरूको आत्मालाई उनीहरू आज पनि हाम्रो परिवारको हिस्सा हुन्, आजसम्म पनि हाम्रो स्मृतिमा जीवित छन् र हामी आफूप्रति उनीहरूको आशीर्वादका साथै उनीहरूको प्रसन्नताको कामना गर्छौं भन्ने भाव दर्शाउनु हुन्छ ।
हिन्दू धर्मको मान्यता अनुसार श्राद्ध पक्षमा सम्पूर्ण पूर्वजहरूको आत्मा आफ्ना परिवारजनको प्रसन्नता जान्नका लागि जागृत हुन्छ । यसकारण यो समयमा गरिने तर्पणबाट उनीहरू सीधै हाम्रो श्रद्धारूपी भावना एवम् उपहार स्वीकार गर्छन् र खुशीपूर्वक आशीर्वाद प्रदान गर्छन्, जसबाट हाम्रो जीवन उन्नति मार्गमा अघि बढ्छ ।
कुन दिन कसको श्राद्ध ?
श्राद्ध पक्षका १६ दिन अलग-अलग व्यक्तिको श्राद्ध सुनिश्चित गरिएको छ । विशेष गरि ब��बु वा हजुरबुबाको मृत्यु तिथि पारेर श्राद्ध गर्ने चलन छ । यसमा सामान्यतस् आˆनो कुलका तीन पुस्ता अर्थात् बुबा, हजुरबुबा र बुढो हजुरबुबा तथा मावलीतर्फ तीन पुस्ता अर्थात् मावली हजुरबा, बुढो हजुरबा र कुप्रो हजुरबालाई पत्नीसहित पिण्ड प्रदान गरिन्छ। तर्पण भने आफू शास्त्रले निर्देश गरेबमोजिम सबैलाई दिइन्छ। श्राद्ध पक्षको अन्तिम दिन सर्वपितृ अमावस्याका दिन मृत्यु तिथि ज्ञात नभएका सबै पूर्वजको श्राद्ध गर्न सकिन्छ ।
श्राद्ध विधान
श्राद्ध पक्ष वा पितृपक्षका १६ दिनमा ‘पितृ-आराधना’ का क्रममा श्राद्ध र तर्पण इत्यादि कर्म गरिन्छ ।
श्राद्ध पक्षमा पितृगणका निमित्त तर्पण एवं ब्राहृमण भोजन गराउने विधान छ। शास्त्रले ‘पितरो वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवतास्’ अर्थात् देवता भावले प्रसन्न हुन्छन् भने पितृगण शुद्ध र उचित विधिबाट गरिएको श्राद्ध कर्मबाट प्रसन्न हुन्छन् भनेको छ। यो १६ दिने समयमा तर्पण एवं ब्राहृमण भोजन गर्ने गराउने कार्यले पितृ तृप्त हुन्छन् ।
मार्कण्डेय पुराणका अनुसार श्राद्ध पक्षका सबै दिन ‘पितृ स्तुति’ वा पितृ सूक्त पाठ गर्नाले पितृ प्रसन्न भएर आशीर्वाद प्रदान गर्छन् । श्राद्ध पक्षमा ‘कुतप’ कालमा नित्य तर्पण गर्नु पर्छ ।
पितृलाई तर्पण पितृ-तीर्थ अर्थात् चोरी र बूढी औंलोको बीचबाट गर्नु पर्छ । श्राद्ध कर्म अनिवार्य हो तर त्योभन्दा महत्वपूर्ण जीवित अवस्थाका माता-पिताको सेवा गर्नु हो । जसले जीवित अवस्थामै माता-पितालाई सेवाले सन्तुष्ट पारेको छ उसलाई सदैव पितृहरूको आशीर्वाद प्राप्त हुन्छ ।
शास्त्रले भनेको छ- ‘वित्तं शाठ्यं न समाचरेत’ अर्थात् श्राद्धमा कन्जुसी गर्नु हुँदैन, आफ्ना सामर्थ्यबाट केही बढेर नै श्राद्ध कर्म गर्नुपर्छ ।
किन यही १६ दिन ?
पितृपक्ष पूणिर्मादेखि अमावस्यासम्म १६ दिनको हुन्छ। धर्मशास्त्रहरूका अनुसार प्रत्येकको मृत्यु यी १६ तिथि बाहेक अन्य कुनै दिन हुँदैन। यसकारण श्राद्ध पक्ष १६ दिनकै हुन्छ ।
यही समयमा श्राद्ध हुनुको एक मनौवैज्ञानिक पक्ष के छ भने यो अवधिमा हामी आफ्ना पितृहरू समक्ष श्रद्धा भाव पठाउँछौँ। यो पक्ष वर्षाकाल सकिए लगत्तै आउने हुँदा आकाश निर्मल हुन्छ, जसका कारण हाम्रो संवेदना एवं प्रार्थना आवागमन हुनका लागि मार्ग सुलभ हुन्छ।
ज्योतिष र धर्मशास्त्रको भनाइमा पितृहरूका लागि यो समय किन पनि श्रेष्ठ मानिएको हो भने यो समय सूर्य कन्या राशिमा रहन्छ जुन ज्योतिष गणनाले हेर्दा पितृहरूको अनुकूल हुन्छ ।
यो पक्षमा पनि केही विशेष दिन छन् । सौभाग्यवती स्त्रीको मृत्यु भएमा उनको श्राद्ध नवमी तिथिमा गर्नु पर्छ। यो तिथिलाई अविधवा नवमी मानिएको छ । पूर्वीय दर्शनमा नौको संख्या शुभ मानिन्छ ।
सन्यासीहरूको श्राद्ध तिथि द्वादशीलाई मानिन्छ । हातहतियारद्वारा मारिएका मानिसको तिथि चतुर्दशी मानिएको छ ।
हरेक तिथिको ��लग महत्व
जसले पूणिर्माका दिन श्राद्ध गर्छ उसको बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य वृद्धि हुन्छ । साथै उसले यो पर्वको पूर्ण फल भोग गर्न पाउँछ ।
प्रतिपदा धन-सम्पत्तिका लागि निर्दिष्ट छ, यो दिन श्राद्ध गर्नेवालाको प्राप्त वस्तु नष्ट हुँदैन ।
द्वितियाको दिन श्राद्ध गर्ने व्यक्ति राजा समान हुन्छ ।
उत्तम अर्थको प्राप्ति तथा शत्रु र पाप नाशको चाहना गर्नेले तृतीयाको दिन श्राद्ध गर्नुपर्छ ।
पन्चमी तिथिका दिन श्राद्ध गर्दा उत्तम लक्ष्मी प्राप्ति हुन्छ ।
षष्ठी तिथिका दिन श्राद्ध कर्म सम्पन्न गर्ने व्यक्ति देवताद्वारा पुजिन योग्य हुन्छ ।
सप्तमी तिथिका दिन श्राद्ध गर्नेलाई महान यज्ञको पुण्यफल प्राप्त हुन्छ भने ऊ गणको स्वामी बन्न सक्छ ।
अष्टमीका दिन श्राद्ध गर्ने व्यक्तिले सम्पूर्ण समृद्धि प्राप्त गर्छ ।
नवमी तिथिमा श्राद्ध गर्नेले प्रचुर ऐश्वर्य एवं मन अनुकूलकी श्रीमती प्राप्त गर्छ ।
दशमी तिथिमा श्राद्ध गर्ने मानिसले ब्रहृमत्व लक्ष्मी प्राप्त गर्छ ।
एकादशीका दिन गरिने श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ दान हो । यसबाट समस्त वेदको ज्ञान प्राप्त हुनुका साथै कर्ताको सम्पूर्ण पापकर्म विनाश हुन्छ र निरन्तर ऐश्वर्य प्राप्ति हुन्छ ।
द्वादशी तिथिमा श्राद्ध गर्दा राष्ट्र कल्याण तथा प्रचुर अन्न प्राप्ति हुने कुरा बताएको छ ।
त्रयोदशीका दिन गरिने श्राद्धबाट सन्तति, बुद्धि, धारणाशक्ति, स्वतन्त्रता, उत्तम पुष्टि, दीर्घायु तथा ऐश्वर्य प्राप्ति हुन्छ ।
श्राद्ध पक्षमा कसरी पुग्छ पितृहरूको भोजन ?
पुराणहरूका अनुसार यमलोक मृत्युलोकको माथि दक्षिणतर्फ ८६००० योजनको दूरीमा मानिएको छ । एक लाख योजनमा फैलिएको यमपुरी वा पितृलोकको उल्लेख गरूड पुराण र कठोपनिषदमा पाइन्छ ।
भनिन्छ, शरीर मरेपछि आत्माहरू पितृलोकमा १ देखि १०० वर्षसम्म मृत्यु एवं पुनर्जन्मको मध्य स्थितिमा रहन्छन् । पितृहरूको निवास चन्ऽमाको उर्ध्व (माथिल्लो) भाग मानिएको छ।
कसरी तल आउँछन् पितृ ?
सूर्यका सहस्र किरणहरूमध्ये जो सबभन्दा प्रमुख छ त्यसको नाम ‘अर्यमा’ हो । उक्त अर्यमा नामक प्रधान किरणको तेजबाट सूर्यले त्रैलोक्य प्रकाशमान तुल्याउँछ । सोही अमामा तिथि विशेषको वस्य अर्थात् चन्ऽमाको भ्रमण हुन्छ तब उक्त किरणको माध्यमबाट चन्ऽमाको उर्ध्वभागदेखि पितृहरू धरतीमा आउँछन् ।
यसै कारण श्राद्ध पक्षमा अमावस्या तिथिको ठूलो महत्व छ । अमावस्यासँगै मन्वादि तिथि, संक्रान्तिकाल व्यतिपात, गजच्दाया, चन्ऽग्रहण तथा सूर्यग्रहण यी समस्त तिथि-वारमा पनि पितृहरूको तृप्तिका लागि श्राद्ध गर्न सकिन्छ ।
पितृहरूसम्म भोजन कसरी पुग्छ ?
जसरी पशुहरूको भोजन तृण र मानिसको भोजन अन्नलाई मानिन्छ त्यसरी नै देवता र पितृहरूको भोजन अन्नको सार तत्वलाई मानिन्छ । सार तत्व अर्थात् गन्ध, रस र ऊष्मा ।
देवता र पितृ गन्ध तथा रस तत्वबाट तृप्त हुन्छन् । यद्यपि दुवैका लागि अलग-अलग प्रका��का गन्ध एवं रस तत्त्वको निर्माण गरिन्छ। विशेष वैदिक मन्त्रद्वारा विशेष प्रकारका गन्ध र रस तत्व नै पितृसम्म पुग्छ ।
धुपौरोमा घिउ तथा धूपीको धूप हालेर गन्ध निर्मित गरिन्छ। त्यसै गरी विशेष अन्न अर्पित गरिन्छ । तिल, अक्षता, कुश र जलका साथ तर्पण तथा पिण्डदान गरिन्छ । देव तीर्थ अर्थात् माझी औँलाबाट देवता वा विश्वेदेव, मनुष्य तीर्थ अर्थात् कान्छी औँलाबाट दिव्य मनुष्य तथा पितृ तीर्थ अर्थात् बूढी औँलाबाट पितृहरूलाई जल अर्पण गरिन्छ ।
पितृ तथा देव योनिकाहरू निकै टाढाका कुरा सुन्दछन्, कतै टाढा गरिएको पूजा-अन्न पनि ग्रहण गर्छन् भने स्तुतिबाट सन्तुष्ट पनि हुन्छन् । यस बाहेक यी भूत, भविष्य र वर्तमानका कुरा जान्दछन् भने सर्वत्र पुग्न सक्छन् ।
मृत्युलोकमा गरिएको श्राद्धले तिनै मानव पितृहरूलाई तृप्त पार्छ, जो पितृलोकको यात्रामा छन् । उनीहरू तृप्त भएर श्राद्धकर्ताका पूर्वजहरू जहाँ र जुन स्थितिमा भए पनि गएर तृप्त पार्छन् ।
यसकारण श्राद्धपक्षमा पितृहरूलाई पिण्डदान र तर्पण गरेर आफन्त एवं बन्धुवबन्धुवर्गादिलाई भोजन गराउनु पर्छ। श्राद्ध ग्रहण गर्ने नित्य पितृले श्राद्धकर्ताहरूलाई श्रेष्ठ वरदान दिन्छन् ।
१६ दिन शुभ कार्य किन हुँदैन ?
श्राद्धपक्षको सम्बन्ध मृत्युसँग छ यसकारण यो अवधिलाई अशुभ काल मानिन्छ । जसरी हामी परिजनको मृत्युपश्चात शोकाकुल अवधिमा रहन्छौँ र आफ्नाअन्य शुभ, नियमित, मंगल, व्यावसायिक कार्यलाई विराम दिन्छौँ, त्यही भाव पितृपक्षसंग जोडिएको छ ।
यो १६ दिनको अवधिमा हामी पितृसँग र पितृ हामीसँग जोडिएका हुन्छन् । अतस् अन्य शुभ-मांगलिक कार्य नगरेर हामी पितृहरूप्रति पूरा सम्मान र एकाग्रता बनाइराख्छौँ ।
श्राद्धमा गाई, कुकुर र कागको महत्व
श्राद्ध पक्षमा पितृ, ब्राहृमण र आफन्तका अतिरिक्त पितृका निमित्त गाई, कुकुर र कागका लागि खानेकुरा छुट्याउने परम्परा छ।
गाईको शरीरमा देवताहरूको वास हुने भएकाले गाईको महत्व छ।
कुकुर र काग पितृका वाहक हुन्। पितृपक्ष अशुभ हुने भएका कारण जुठो खानेहरूलाई ग्रास (गाँस) छुट्याउने विधान छ।
कुकुर र कागमा एक भूमिचर हो भने अर्को आकाशचर। दुवै गृहस्थहरूको नजिक र सबैतिर पाइन्छ ।
कुकुरले नजिक रहेर सुरक्षा प्रदान गर्छ र यो निष्ठावान पनि हुन्छ तसर्थ यसलाई पितृको प्रतीक मानिन्छ ।
काग गृहस्थ र पितृका बीच श्राद्धमा दिइएको पिण्ड र जलको वाहक मानिन्छ ।
श्राद्धको दिन गरिन्छ प्रार्थना
पितृहरूको ऋण चुकाउन एक जन्ममा त सम्भव नै छैन तसर्थ उनीहरूले संसार छोडेर गैसकेपछि पनि श्राद्ध गरेर उनीहरूको ऋण चुकाउने परम्परा छ। श्राद्ध गरेर हामीले जे कुरा दिने संकल्प लिन्छौँ त्यो हाम्रा पूर्वजहरूलाई अवश्य प्राप्त हुन्छ।
यसकारण ‘हे प्रभु ! मैले आफ्ना हात तपाईंका अघिल्तिर फैलाइदिएको छु, म आफ्ना पितृहरूको मुक्तिका लागि तपाईंसँग प्रार्थना गर्दछु, मेरा पितृहरू मेरो श्र��्धा भक्तिबाट सन्तुष्ट होऊन् ।’ भनेर प्रार्थना गर्दा पितृ ऋणबाट मुक्ति मिल्छ।
यी १६ कारणबाट लाग्छ पितृ दोष, कसरी हुन्छ त पितृ दोष ?
आफू र आˆनो परिवार सुखी एवं सम्पन्न होऊन् भन्ने इच्छा प्रत्येक मानिसमा हुन्छ । यस्तो इच्छा पूरा गर्नका लागि देवताका साथसाथै आˆना पितृहरूको पनि पूजन गर्नु अनिवार्य मानिन्छ । मानिसले आफ्ना जीवनमा थुप्रै उतार-चढावको अनुभव गर्छ । यद्यपि केही कष्ट एवं अभाव त्यस्ता हुन्छन् जसलाई सहन गर्नु लगभग असम्भव हुन्छ । ज्योतिषी, वास्तुशास्त्री, तान्त्रिक, मान्त्रिक आदिले जे जे कारण बताउँछन्, तिनलाई निर्मूल गर्नका लागि जे जे प्रयास गरिन्छ त्यसबाट फाइदा कहिले अलिकति पनि हुँदैन, कहिले आंशिक तथा कहिले पूर्ण रूपले प्राप्त हुन्छ। तीमध्ये एक हो पितृ शान्ति ।
– पितृहरूको विधिवत् संस्कार, श्राद्ध नहुनु ।
-पितृहरूको विस्मृति या अपमान ।
-धर्म विरुद्ध आचरण ।
-वृक्ष, फल लागेको बोट, पीपल, वर इत्यादि काट्नु- कटाउनु ।
-नागको हत्या गर्नु, गराउनु वा उसको मृत्युको कारण बन्नु ।
-गौहत्या वा गाईको अपमान गर्नु ।
-नदी, कुवा, तलाउ वा पवित्र स्थानमा मल-मूत्र विसर्जन ।
-कुल देवता, देवी इत्यादिको विस्मृति वा अपमान ।
-पवित्र स्थलमा गलत कार्य गर्नु ।
-पूणिर्मा, अमावस्या वा पवित्र तिथिमा सम्भोग गर्नु ।
-पूज्य महिलासँग सहवास गर्नु ।
-तल्लो कुलमा विवाह सम्बन्ध गाँस्नु ।
-पराई महिलासँग यौन सम्बन्ध राख्नु ।
-गर्भपात गर्नु वा कुनै जीवको हत्या गर्नु ।
-कुलका महिला अमर्यादित हुनु ।
-पूज्य व्यक्तिलाई अपमान गर्नु आदि ।
श्राद्धका प्रमुख प्रकार
नित्य- यो श्राद्धका दिन मृतकको निधन तिथिमा गरिन्छ ।
नैमित्तिक- कुनै विशेष पारिवारिक उत्सव पुत्रजन्म, विवाह आदिमा मृतकलाई याद गर्न गरिन्छ। यसलाई नान्दिमुख श्राद्ध भनिन्छ।
काम्य- यो श्राद्ध कुनै विशेष कामना पूरा गर्न कृत्तिका या रोहिणी नक्षत्रमा गरिन्छ ।
कसले गर्ने श्राद्ध, श्राद्धका अधिकारी को हुन्छन् ?
आˆनो परिवारको कल्याणका लागि पितृहरूलाई श्रद्धापूर्वक तर्पण गर्नुपर्छ । उनीहरूलाई सम्मानपूर्वक तर्पण प्राप्त भयो भने गृहस्थ वंशजलाई सुख-समृद्धिको आशीर्वाद दिन्छन् तर उनीहरूलाई केही प्राप्त भएँ भने उनीहरू निराश भई श्राप दिएर र्फकन्छन् ।
शास्त्रका अनुसार श्राद्धका अधिकारी छोरा हुन्छन्। छोरा नभए श्रीमतीले श्राद्ध गर्न सक्छन् । श्रीमती पनि नभए सहोदर दाजुभाइले गर्न सक्छन् । एकभन्दा बढी छोरा भए जेठो छोरो श्राद्धको अधिकारी हुन्छ । छोरीको श्रीमान् वा छोरो पनि श्राद्धको अधिकारी हुन्छ। छोरा नभए नाति वा पनातिले पनि श्राद्ध गर्न सक्छन्।
छोरा, नाति वा पनाति नभए एकल महिलाले श्राद्ध गर्न सक्छिन् । श्रीमतीको श्राद्ध श्रीमानले छोरा छैन भने मात्र गर्न मिल्छ । छोरा, नाति, पनाति वा छोरीको छोरो नभए भतीजाले पनि श्राद्ध गर्न सक्छ । धर्मपुत्रलाई पनि श्राद्धको अधिकारी मानिएको छ ।
को हुन् हाम्रा दिव्य पितर ?
धर्मशास्त्रका अनुसार पितृहरूको निवास चन्ऽमाको उर्ध्व भागमा छ । उक्त पितृलोकमा श्रेष्ठ पितरहरूको न्यायदात्री समिति छ ।
यमराजको गणना पितृमा हुन्छ। पितृहरूका गणको चार प्रमुख हुन्- कव्यवाडनल, सोम, अर्यमा र यम । अर्यमालाई पितृहरूको प्रधान मानिएको छ भने यमराजलाई न्यायाधीश ।
यी चार बाहेक प्रत्येक वर्गका तर्फबाट सुनुवाइ गर्ने अग्निष्व, देवताका सोमसद वा सोमपा तथा गन्धर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षहरूका प्रतिनिधि बर्हिष्पद छन् । यी सबै मिलेर गठित जुन जमात छ त्यही पितर हुन्। जो मृत्युपछि न्याय गर्छन् ।
पितृलोकमा श्रेष्ठ पितरहरूलाई न्यायदात्री समिति सदस्य मानिन्छ । पुराण अनुसार मुख्यतस् पितरहरूलाई दुई श्रेणिमा राख्न सकिन्छ – दिव्य पितर र मनुष्य पितर । दिव्य पितर त्यस जमातको नाम हो जसले जीवधारिहरूलाई उनीहरूको कर्म हेरेर मृत्युपछि कस्तो गति दिने हो त्यसको निर्णय गर्छन् । यो जमातका प्रधान यमराज हुन् ।
दिव्य पितरको जमातका सदस्यगण नौ दिव्य पितर छन् । ती हुन्- अगि्रष्वात्त, बर्हिष्पद, आज्यप, सोमपा, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक र नान्दीमुख । आदित्य, वसु, रुद्र तथा दुई अश्विनी कुमार पनि केवल नान्दीमुख पितरलाई छोडेर बाँकी सबैलाई तृप्त गर्छन् ।
पितृहरूका प्रधान अर्यमाको परिचय
आश्विन कृष्ण प्रतिपदादेखि अमावस्यासम्म माथिको किरण (अर्यमा) र किरणसँगै पितृ प्राण पृथ्वीमा हुन्छन्। पितृहरूमा श्रेष्ठ हुन् अर्यमा । अर्यमा पितरहरूका देव हुन्। यिनी महर्षि कश्यपकी पत्नी देवमाता अदितिका पुत्र हुन् भने इन्द्रादि देवताका भाइ। पुराणअनुसार उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र यिनको निवास लोक हो।
अर्यमाको गणना नित्य पितरमा गरिन्छ। जडचेतनमयी सृष्टिमा शरीरको निर्माण नित्य पितृले नै गर्छन् । यिनी प्रसन्न भए भने पितरहरूलाई पनि तृप्ति मिल्छ। श्राद्ध गर्दा यिनलाई पनि तर्पण दिइन्छ । यिनी एक मात्र त्यस्ता देव हुन् जो यज्ञमा मित्र (सूर्य) तथा वरुण (जल) देवताका साथ स्वाहा को ‘हव्य’ तथा श्राद्धमा स्वधा को ‘कव्य’ दुवै स्वीकार गर्छन् ।
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