#पितृ दोष और वास्तु
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पारस: हिंदू धर्म में शंख का क्यों है इतना महत्व ?
पारस: हिंदू धर्म में शंख का महत्व
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“��ारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी शंख के महत्व के बारे में बताते हैं कि जिस घर में शंख होता है, वहां हमेशा देवी लक्ष्मी का वास होता है। शंख की पवित्रता और शुद्धता को आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि इसे सभी देवताओं ने स्वयं अपने हाथों में धारण किया है।
सनातन धर्म या हिंदू धर्म में शंख का विशेष महत्व है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हिंदू धर्म में शंख को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना गया है। क्योंकि सनातन परंपरा में जब भी कोई शुभ कार्य, पूजा पाठ, हव��� आदि होता है तो शंख अवश्य बजाया जाता है। चलिये आज इस आर्टिकल में हम आपको शंख के महत्व और इसके लाभ के बारे में बताते हैं।
भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है
मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले 14 कीमती रत्नों से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शंख समुद्र मंथन में से निकले 14 रत्नों में से एक है। भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है इसलिए भगवान श्री नारायण की पूजा में शंखनाद जरूर होता है। उत्तर पूर्व दिशा में शंख रखने से घर में खुशहाली आती है। भगवान विष्णु हमेशा अपने दाहिने हाथ में शंख पकड़े हुए दिखाई देते हैं। शंख हिंदू धर्म और धार्मिक परंपरा का एक अभिन्न अंग है। जब शंख बजाया जाता है तो ऐसा कहा जाता है कि इससे वातावरण की सारी नकारात्मकता दूर होती है और शंख की ध्वनि से वातावरण बुरे प्रभावों से मुक्त हो जाता है।
शंख सुख-समृद्धि और शुभता का कारक
पूजा पाठ या किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में शंख का उपयोग किया जाता है। शंख की ध्वनि जीवन में आशा का संचार करके बाधाओं को दूर करती है। पूजा करते समय शंख में रखा जल छिड़क कर स्थान की शुद्धि की जाती है। सनातन धर्म में किसी भी पूजा-पाठ के पहले और आखिरी में शंखनाद जरूर किया जाता है। पूजा-पाठ के साथ हर मांगलिक कार्यों के दौरान भी शंख बजाया जाता है। शंख को सुख-समृद्धि और शुभता का कारक माना गया है। शंख बजाए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
शंख के लाभ
शंख बजा��े से हमारी सेहत भी अच्छी बनी रहती है।
हमारे फेफड़े मजबूत होते हैं और सांस लेने की समस्या दूर होती है।
नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और वातावरण शुद्ध होता है।
वास्तु शास्त्र में शंख का विशेष महत्व है।
शंख को घर में रखने से यश, उन्नति, कीर्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इससे आरोग्य वृद्धि, पुत्र प्राप्ति, पितृ दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है।
शंखनाद से अद्भुत शौर्य और शक्ति का अनुभव होता है इसलिए योद्धाओं द्रारा इसका प्रयोग किया जाता था।
शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
महत्व
पूजा-पाठ में शंख का विशेष महत्व माना जाता है। शंख का प्रयोग वास्तु दोषों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। इसके साथ ही शंख बजाने का संबंध स्वास्थ्य से भी है। शंख की पूजा के बारे में महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि तीर्थों में जाकर दर्शन करने से जो शुभ फल प्राप्त होता है, वह शंख को घर में रखने और दर्शन करने मात्र से ही पूरा हो जाता है। धार्मिक कार्यों में शंख बजाना बहुत ही अच्छा माना जाता है।
माना जाता है कि देवताओं को शंख की आवाज बहुत पसंद होती है इसलिए शंख की आवाज से प्रसन्न होकर भगवान भक्तों की हर इच्छा को पूरी करते हैं। वास्तु के अनुसार शंख बजाने से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में पूजा में न केवल शंख का इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि शंख की भी पूजा की जाती है।
महंत पारस भाई जी ने बताया कि अथर्ववेद में शंख को पापों का नाश करने वाला, लंबी आयु का दाता और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला बताया गया है।
महंत श्री पारस भाई जी बताते हैं कि शंख से घर में पॉजिटिव वाइब्स आती है। शंख से निकलने वाली ध्वनि से बीमारियों के कीटाणु खत्म होते हैं, जिससे आप स्वस्थ रहते हैं।
ध्वनि का प्रतीक माना जाता है शंख
शंख नाद ध्वनि का प्रतीक माना जाता है। शंख की ध्वनि आत्म नाद यानि आत्मा की आवाज की शिक्षा देती है। अध्यात्म में शंख ध्वनि, ओम ध्वनि के समान ही मानी गई है। शंख एकता, व्यवस्था और अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। शंख बजाने से घर की सभी बुराईयां नष्ट होती हैं और घर का वातावरण अच्छा रहता है। शंख जीव को आत्मा से जुड़ने का ज्ञान देता है।
पूजा में क्यों जरूरी माना जाता है शंख?
पूजा घर में दक्षिणावर्ती शंख रखना और बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि, पूजा या यज्ञ में शंख का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। शंख बजाने के बाद ही कोई भी पूजा सफल मानी जाती है। शंख बजाने से ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
सुबह-शाम शंख बजाने से आपका परिवार बुरी नजर से बचा रहता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि सभी सम��्याओं और दोषों को दूर करती है। ऐसा माना जाता है ��ि जिस घर में शंख होता है, वहां पर माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
शंख का पूजन कैसे करें
घर में नया शंख लाने के बाद उसे सबसे पहले किसी साफ बर्तन में रखकर अच्छी तरह से जल से साफ कर लें। इसके बाद शंख का गाय के कच्चे दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। अब शंख को पोंछकर चंदन, पुष्प, धूप और दीप से पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का स्मरण करें और हाथ जोड़कर निवेदन करें कि वो हमारे घर में आयें और इस शंख में आकर वास करें।
महान ज्योतिष महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हर दिन इसी तरह शंख की सच्चे भाव से पूजा करने के बाद ही इसे बजायें। क्योंकि ऐसा करने पर आपको अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
दूर होती हैं कई बीमारियां
कहते हैं रोजाना शंख बजाने से हमारी मांसपेशियां मजबूत होती हैं। जिस कारण पेट, छाती और गर्दन से जुड़ी बीमारियां दूर होती हैं। साथ ही शंखनाद से श्वास लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। शंख बजाने से सांस की समस्याएं भी खत्म होती हैं। सांस की प्रक्रिया सही तरीके से चलती है और फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। इसके अलावा इससे थायराइड या बोलने संबंधित बीमारियों में राहत मिलती है।
जब हम शंख बजाते हैं तो तब हमारी मांसपेशियों में खिंचाव आता है जिसकी वजह से झुर्रियों की समस्या भी दूर होती है। शंख में कैल्शियम होता है। यदि आपको त्वचा से संबंधित कोई रोग है तो रात को शंख में पानी भरकर रख दें और फिर सुबह उस पानी से त्वचा पर मालिश करें। ऐसा करने पर त्वचा से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। शंख बजाने से हृदय रोग भी दूर होते हैं।
शंख बजाने से तनाव तो दूर होता ही है, साथ ही मन शांत रहता है। माना जाता है कि यदि आप प्रतिदिन शंख बजाते हैं तो दिल का दौरा पड़ने की संभावना काफी कम हो जाती है।
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🌞 आज का वैदिक हिन्दू पंचांग 🌞
👉दिनांक - 02 दिसम्बर 2023*
👉दिन - शनिवार*
👉विक्रम संवत् - 2080*
👉अयन - दक्षिणायन*
👉ऋतु - हेमंत*
👉मास - मार्गशीर्ष*
👉पक्ष - कृष्ण*
👉तिथि - पंचमी शाम 05:14 तक तत्पश्चात षष्ठी*
👉नक्षत्र - पुष्य शाम 06:54 तक तत्पश्चात ��श्लेषा*
👉योग - ब���रह्म रात्रि 08:19 तक तत्पश्चात इन्द्र*
👉राहु काल - सुबह 09:47 से 11:08 तक*
👉सूर्योदय - 07:04*
👉सूर्यास्त - 05:54*
👉दिशा शूल - पूर्व*
👉ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:19 से 06:12 तक*
👉निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:03 से 12:56 तक*
👉व्रत पर्व विवरण -*
👉विशेष - पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥आरती में कपूर का उपयोग क्यों ?💥
👉सनातन संस्कृति में पुरातन काल से आरती में कपूर जलाने की परम्परा है । आरती के बाद आरती के ऊपर हाथ घुमाकर अपनी आँखों पर लगाते हैं, जिससे दृष्टी -इन्द्रिय सक्रिय हो जाती है । “आरती करते हैं तो कपूर जलाते हैं । कपूर वातावरण को शुद्ध करता है, पवित्र वातावरण की आभा पैदा करता है । घर में देव-दोष है, पितृ -दोष हैं, वास्तु -दोष हैं, भूत -पिशाच का दोष है या किसीको बुरे सपने आते हैं तो कपूर की ऊर्जा उन दोषों को नष्ट कर देती है ।*
👉बोलते हैं कि संध्या होती है तो दैत्य-राक्षस हमला करते हैं इसलिए शंख , घंट बजाना चाहिए, कपूर जलाना चाहिए, आरती-पूजा करनी चाहिए अर्थात संध्या के समय और सुबह के समय वातावरण में विशिष्ट एवं विभिन्न प्रकार के जीवाणु होते हैं जो श्वासोच्छवास के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करके हमारी जीवनरक्षक जीवनरक्षक कोशिकाओं से लड़ते हैं । तो देव-असुर संग्राम होता है, देव माने सात्त्विक कण और असुर माने तामसी कण । कपूर की सुगंधि से हानिकारक जीवाणु एवं विषाण रूपी राक्षस भाग जाते हैं ।*
👉वातावरण में जो अशुद्ध आभा है इससे तामसी अथवा निगुरे लोग जरा-जरा बात में खिन्न होते हैं, पीड़ित होते हैं लेकिन कपूर और आरती का उपयोग करनेवालों के घरों में ऐसे कीटाणुओं का, ऐसो हलकी आभा का प्रभाव नहीं टिक सकता है ।*
👉अत: घर में कभी-कभी कपूर जलाना चाहिए, गूगल का धूप करना चाहिए । कभी-कभी कपूर की १ – २ छोटी-छोटी गोली मसल के घर में छिटक देनी चाहिए । उसकी हवा से ऋणायान बनते हैं, जो हितकारी हैं । वर्तमान के माहौल में घर में दीया जलाना अथवा कपूर की कभी-कभी आरती कर लेना अच्छा है ।*
💥पुण्यदायी तिथियाँ व योग (भाग-२)💥
👉 24 दिसम्बर - प्रदोष व्रत*
👉 25 दिसम्बर - तुलसी पूजन दिवस, विश्वगुरु भारत कार्यक्रम (२५ दिसम्बर से १ जनवरी तक), महामना पं. मदनमोहन मालवीय जयंती (दि.अ.)*
👉 26 दिसम्बर - मार्गशीर्ष पूर्णिमा, श्री दत्तात्रेय जयंती, जोरमेला (पंजाब)*
👉 28 दिसम्बर - गुरुपुष्यामृत योग [रात्रि १-०५ (२९ दिसम्बर १-०५ AM) से २९ दिसम्बर सूर्योदय तक]*
👉 30 दिसम्बर - संकष्ट चतुर्थी (चन्द्रोदय : रात्रि ९-०६), श्री रमण महर्षि जयंती (दि.अ.)*
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स्वस्तिक का रहस्य... हिन्दू संस्कृति के प्राचीन ऋषियों ने अपने धर्म के आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष चिन्हों की रचना की। ये चिन्ह मंगल भावों को प्रकट करती हैं। ऐसा ही एक चिन्ह है “स्वास्तिक”। स्वस्तिक मंगल चिन्हों में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है और पूरे विश्व में इसे सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है। इसी कारण किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। स्वस्तिक दो प्रकार का होता है.. 1. दांंया स्वस्तिक 2. बांया स्वस्तिक दाहिना स्वस्तिक नर का प्रतीक है और बांया नारी का प्रतीक है। वेदों में ज्योतिर्लिंग को विश्व के उत्पत्ति का मूल स्त्रोत माना गया है। स्वस्तिक की खड़ी रेखा सृष्टि के उत्पत्ति का प्रतीक है और आड़ी रेखा सृष्टि के विस्तार का प्रतीक है तथा स्वस्तिक का मध्य बिंदु विष्णु जी का नाभि कमल माना जाता है जहाँ से विश्व की उत्पत्ति हुई है। स्वस्तिक में प्रयोग होने वाले 4 बिन्दुओ को 4 दिशाओं का प्रतीक माना जाता है। कुछ विद्वान् इसे गणेश जी का प्रतीक मानकर प्रथम पूज्य मानते हैं। कुछ लोग इनकी 4 वर्णों की एकता का प्रतीक मानते हैं, कुछ इसे ब्रह्माण्ड का प्रतीक मानते हैं और कुछ इसे ईश्वर का प्रतीक मानते हैं। अमरकोश में स्वस्तिक का अर्थ आशीर्वाद, पुण्य, मंगल कार्य करने वाला है। इसमें सभी के कल्याण व कुशल क्षेम की भावना निहित है।इसका आरंम्भिक आकार गणित के धन (+) के सामान है अतः इसे जोड़ का/मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। धन के चिन्ह पर 1-1 रेखा जोड़ने पर स्वस्तिक का निर्माण हो जाता है। हिन्दुओं के समान जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म में भी स्वस्तिक को मंगलकारी और समृद्धि प्रदान करने वाला चिन्ह मानते हैं। उदयगिरी और खंडगिरी के गुफाओं में भी स्वास्तिक चिन्ह मिले हैं। स्वस्तिक को 7 अंगुल, 9 अंगुल या 9 इंच के प्रमाण में बनाया जाने का विधान है। मंगल कार्यो के अवसर पर पूजा स्थान ��था दरवाजे की चौखट पर स्वस्तिक बनाने की परम्परा है। स्वस्तिक का आरंभिक आकार पूर्व से पश्चिम एक खड़ी रेखा और उसके ऊपर दूसरी दक्षिण से उत्तर आड़ी रेखा के रूप में तथा इसकी चारों भुजाओं के सिरों पर पूर्व से एक एक रेखा जोड़ी जाती है, तथा चारों रेखाओं के मध्य में एक-एक बिंदु लगाया जाता है, और स्वस्तिक के मध्य में भी एक बिंदु लगाया जाता है। इसके लिए विभिन्न प्रकार की स्याही का उपयोग होता है। स्वस्तिक की उपयोगिता:- 1. पारद या पञ्च धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करके चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। 2. चांदी में नवरत्न लगवाकर स्वस्तिक चिन्ह पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष व लक्ष्मी प्राप्त होती है। 3. वास्तु दोष दूर करने के लिये 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिन्दूर से बनाने से यह नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देता है। 4. धार्मिक कार्यो में रोली, हल्दी या सिन्दूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्टि देता है। 5. गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है। 6. त्योहारों में द्वार पर कुमकुम सिन्दूर अथवा रंगोली से स्वस्तिक बनाना मंगलकारी होता है। ऐसी मान्यता है कि देवी देवता घर में प्रवेश करते हैं इसीलिए उनके स्वागत के लिए द्वार पर इसे बनाया जाता है। 7. अगर कोई 7 गुरुवार को ईशान कोण में गंगाजल से धोकर सुखी हल्दी से स्वस्तिक बनाए और उसकी पंचोपचार पूजा करे साथ ही आधा तोला गुड़ का भोग भी लगाए तो दुकान में बिक्री बढ़ती है। 8. स्वस्तिक बनवाकर उसके ऊपर जिस भी देवता को बिठा के पूजा करें तो वो शीघ्र प्रसन्न होते हैं। 9. देव स्थान में स्वस्तिक बनाकर उस पर पञ्च धान्य का दीपक जलाकर रखने से कुछ समय में इच्छित कार्य पूर्ण होते हैं। 10. भजन करने से पहले आसन के नीचे पानी, कुमकुम, हल्दी अथवा चन्दन से स्वास्तिक बनाकर उस स्वस्तिक पर आसन बिछाकर बैठकर भजन करने से सिद्धि शीघ्र प्राप्त होती है। 11. सोने से पूर्व स्वस्तिक को अगर तर्जनी से बनाया जाए तो सुख पूर्वक नींद आती है, बुरे सपने नहीं आते हैं। 12. स्वस्तिक में अगर पंद्रह या बीसा का यन्त्र बनाकर लाकेट या अंगूठी में पहना जाए तो विघ्नों का नाश होकर सफलता मिलती है। 13. मनोकामना सिद्धि हेतु मंदिरों में गोबर और कुमकुम से उलटा स्वस्तिक बनाया जाता है। 14. होली के कोयले से भोजपत्र पर स्वास्तिक बनाकर धारण करने से बुरी नजर से बचाव होता है और शुभता आती है। 15. पितृ पक्ष में बालिकाएं संजा बनाते समय शुभता के लिए और पितरों का आशीर्वाद लेने के लिए गोबर से स्वस्तिक भी बनाती हैं। 16. वास्तु दोष दूर करने के लिए पिरामिड में भी स्वस्तिक बनाकर रखने की सलाह दी जाती है। अतः स्वस्तिक हर प्रकार से फायदेमंद है, मंगलकारी ��ै, शुभता लाने वाला है, ऊर्जा देने वाला है और सफलता देने वाला है इसे प्रयोग करना चाहिए!
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Vastu: रविवार और मंगलवार को भूलकर न जलाएं अगरबत्ती, होता है ये बड़ा नुकसान
Vastu: रविवार और मंगलवार को भूलकर न जलाएं अगरबत्ती, होता है ये बड़ा नुकसान
छवि स्रोत: इंडिया टीवी वास्तु टिप्स पूजा-पाठबादी और धूपबत्ती के. । इस से बाद में अगरबत्ती जलना है अगरबत्ती में बैग का उपयोग किया गया है, तो वास्तु शास्त्र में इसका महत्व है। घर और दफ्तर लोग इस पौधे को लगाते हैं जिससे घर में पॉजिटिविटी हो, और इतवार और मंगलवार दो ऐसे दिन हैं जिस दिन बांस जलाने की मनाही होती है। अगरबत्ती में बाँस की लकड़ी का बना हुआ है तो यह फिर से शुरू होगा और अगरबत्ती से मेने…
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#अगरबत्तियां#अगरबत्ती#इतवार मंगल#गोकी की पूजा#धर्म हिंदी समाचार#धूपबत्ती#पितृ दोष#पितृदोष:#पूजा पाठ के लिए वास्तु टिप्स#पूजा विधि#प्रकाश न करें#भगवान की पूजा#रविवार मंगलवार#वास्तु टिप्स#वास्तु शास्त्र#वास्तु शुभ#विफलता से भी पहले और हाल ही में जला अगरबत्ती#हल्की अगरबत्ती
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क्या आपको हेल्थ प्रॉब्लम है ?
क्या आपके हर काम में रूकावट आती है?
अथक परिश्रम के बाद भी सफलता नहीं मिलती ?
कही आपकी #AURA कम तो नहीं ? तो आप AURA SCANNER द्रारा अपनी AURA दिखाव सकते है एवंम अपने 7 चको की स्थिति जान सकते है ?
👉आपको कौन सी भूमि, भवन, शहर, नगर, दिशा, कार्य, नंबर, नाम आदि सूट करेगा और कोई भी अनुकूलता को चैक करना. 👉रोगों से मुक्ति के लिए शरीर के चक्रा को चैक करना और उसे हील कर्मा करना. 👉फोटो द्वारा ही व्यक्ति के जीवन में आने वाली समस्याओं के बारे में जाने. 👉किसी व्यक्ति या भवन में नज़र दोष, किया कराया, पिशाच योग या बंधन योग चैक करना और उसे कैसे ठीक करना. 👉भवन के नक़्शे या रूम की फोटो से ही घर की सभी दोषों को चैक करना और ठीक करना. 👉दूरी विश्लेषण द्वारा किसी देश-विदेश का वास्तु चैक करना और उसे ठीक करना. 👉किसी भी व्यक्ति की शुभ और अशुभ ऊर्जा को चैक करना 👉पॉजिटिव अथवा नेगेटिविटी औरा की जानकारी 👉बुरी नजर👉बंधन दोष 👉पितृ दोष👉कालसर्प दोष👉मांगलिक दोष👉व्यापार में सफलता👉नोकरी में सफलता👉बैंक लोन👉विवाह योग👉अरेंज मैरिज 👉लव मैरिज 👉संतान योग 👉डिवोर्स योग 👉विदेशी में पढ़ाई 👉 विदेश में जाने का योग👉वीजा 👉अपना घर 👉 सूर्य 👉चंद्र 👉मंगल 👉बुध 👉 गुरु 👉 शुक्र 👉शनि 👉राहु और केतु 👉कौन सा ग्रह कितना प्रतिशत स्पोर्ट कर रहा है। 👉 हमारे शरीर में सातों चक्र👉मूलाधार चक्र👉सेक्रल चक्र 👉मणिपुर चक्र 👉हार्ट चक्र 👉थ्रोट चक्र 👉थर्ड ऑय चक्र 👉क्राउन चक्र 👉इन ऊर्जा चक्रों में कौन सा चक्र कितना खराब है और उसके कारण शरीर में कौन सी बीमारी हो रही हैं। 👉रतन चेक कैसे करने हैं? आदि बहुत सी बातों का पता हम #औरास्कैनर द्वारा कर सकते है अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें।
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वास्तु के इन उपायों से आपके पूर्वज होंगे आपसे खुश
वास्तु के इन उपायों से आपके पूर्वज होंगे आपसे खुश
हिन्दू धर्म में देवताओं की तरह ही पितरों को भी पूजनीय बताया गया है। जब ये खुश होते हैं तो देवताओं की तरह सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं और जब ये नाराज होते हैं तो जीवन में कई तरह की परेशानियों और पितृ दोष का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर वास्तु शास्त्र पर ध्यान दे तो , कई ऐसे उपाय भी बताये गए है जिन्हे करके आप अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते है। जिस से कि आपको अपने पितरों का…
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शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित है। किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं। भारतीय सनातन परंपराओं में बांस का जलाना निषिद्ध है। कहा जाता है की यदि बांस की लकड़ी को जलाया जाता है तो इससे वंश नष्ट हो जाता है और पितृ दोष लगता है। इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण हमेशा अपने पास बांस की बांसुरी रखते थे। भारतीय वास्तु विज्ञान में भी बांस को शुभ माना गया है। शादी , जनेऊ, मुण्डन आदि में बांस की पूजा एवं बांस से मण्डप बनाने के पीछे भी यही कारण है। अत: बांस को जलाना शुभ नहीं होता। ऐसा भी माना जाता है कि बांस का पौधा जहां होता है वहां नकारात्मक ऊर्जा नहीं होती है। इसके पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य भी हैं।
सेहत के लिए नुकसानदायक है बांस जलाना बांस की लकड़ी में लेड के साथ अन्य कई प्रकार की धातु होती है। ऐसे में अगर आप इसे जलाकर नष्ट करते हैं तो ये धातुएं अपनी ऑक्साइड बना लेती हैं, जिसके कारण न सिर्फ वातावरण दूषित होता है बल्कि यह आपकी जान भी ले सकता है, क्योंकि इसके अंश हवा में घुले होते हैं और जब आप सांस लेते हैं तो यह आपके शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसके कारण न्यूरो और लीवर संबंधी परेशानियों का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर अगरबत्ती बांस की बनती है। अत: इसे जलाना शुभ नहीं होता।
शास्त्रों में पूजन विधान में कहीं भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता सब जगह धूपबत्ती ही लिखा हुआ मिलता है। अ��रबत्ती बांस और केमिकल से बनाई जाती है जिसका सेहत पर बुरा असर होता है। फेंगशुई में लंबी आयु के लिए बांस के पौधे बहुत शक्ति शाली प्रतीक माने जाते हैं। यह अच्छे भाग्य का भी संकेत देता है, इसलिए उसे जलाना फेंगशुई की दृष्टि से अशुभ है।
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Skanda Purana says that burning of bamboo causes Pitra dosha, it is harmful for health.
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बुरे और डरावने सपने आने पर करें ये उपाय
रात में सोते समय सपना आना तो लाजमी सी बात है। लेकिन उन सपनों में भी कुछ सपने अच्छे होते है तो कुछ बुरे। अच्छे सपनों के कारण हम दिनभर खुश रहते हैं तो वहीं बुरे सपनों का असर आपके दिमाग और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। कई बार आपकी नींद अचानक रात में किसी बुरे सपने को देखने के बाद खराब हो जाती है। सपनों का संबंध हमारे वर्तमान और भविष्य की घटनाओं से हो सकता है। अगर लगाता�� डरावने स्वपन आते हैं तो वास्तु में कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रव���ह बढ़ाया जा सकता है और डरावने स्वपन से मुक्ति भी मिल सकती है।
सपने यूं ही बरबस आंखो में चले आते हैं और कभी हंसाते तो कभी रुला जाते हैं। सपनों के रहस्य पर ऋषि-मुनियों ने काफी शोध किया और बताया कि सपने कई बार तो यूं ही आते-जाते हैं लेकिन कई सपने खास तौर पर जिन्हें सूर्योदय से कुछ घंटे पहले आपने देखा है उनका कुछ ना कुछ मतलब होता है यानी वह संकेत होता है कि आपके जीवन में कुछ अच्छा या कुछ बुरा होने वाला है। रामायण और महाभारत तक में सपनों के रहस्य का जिक्र किया गया है। और बताया गया है कि सपनों के अशुभ परिणाम को कैसे रोका जा सकता है। आइए जानें जब बुरे सपने आएं तो क्या करें।
अगर रात में भयानक स्वप्न देख लिया है और आंख खुल जाए तो तुरंत भगवान शिव का नाम स्मरण करें। सुबह शिवमंदिर में जल अर्पित करें। लगातार बुरे स्वपन आते हैं तो प्रातः उठकर बिना किसी से कुछ बोले तुलसी के पौधे से पूरा स्वप्न कह डालें। ऐसा करने से स्वपन का कोई दुष्परिणाम नहीं होगा।
हनुमान जी सब प्रकार का अनिष्ट दूर करने वाले हैं। घर में सुंदरकांड का पाठ करें। रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें।
बच्चों को अगर डरावने स्वपन परेशान करते हैं तो सिरहाने पर रात में सोने से पहले एक चाकू रख लें। अगर चाकू न हो तो कोई भी नुकीली चीज रखकर सो सकते हैं।
तांबे के बर्तन में पानी भरकर पलंग के नीचे रखें। सुबह उठने के बाद इस पानी को गमले में डाल दें।
अगर बेड के सिरहाने पर जूते या चप्पल रखे हों तो भी डरावने स्वपन आ सकते हैं। हमेशा बिस्तर को साफ रखें।
सोने से पहले आप अपने पैरों को धोना ना भूलें। गहरे रंग की चादर न ओढ़ें।
रात में झूठा मुंह रखकर सोने से भी डरावने सपने आते हैं। सपने में बार-बार नदी, झरना या पानी दिखाई दे तो यह पितृ दोष की वजह से हो सकता है।
घर में नियमित गंगाजल का छिड़काव करें। बच्चों के बिस्तर पर सोने से पहले गंगाजल छिड़क दें।
यदि आपको भूत-प्रेत के सपने दिखते हैं तो रात को कमरे में तिल के तेल का दीपक जलाकर सोएं।
महिलाएं रात को बाल बांधकर सोए और कमरे में बिल्कुल अंधेरा न करें, हल्की रोशनी करके सोएं।
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शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित है। किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं। भारतीय सनातन परंपराओं में बांस का जलाना निषिद्ध है। कहा जाता है की यदि बांस की लकड़ी को जलाया जाता है तो इससे वंश नष्ट हो जाता है और पितृ दोष लगता है। इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण हमेशा अपने पास बांस की बांसुरी रखते थे। भारतीय वास्तु विज्ञान में भी बांस को शुभ माना गया है। शादी , जनेऊ, मुण्डन आदि में बांस की पूजा एवं बांस से मण्डप बनाने के पीछे भी यही कारण है। अत: बांस को जलाना शुभ नहीं होता। ऐसा भी माना जाता है कि बांस का पौधा जहां होता है वहां नकारात्मक ऊर्जा नहीं होती है। इसके पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य भी हैं।
सेहत के लिए नुकसानदायक है बांस जलाना
बांस की लकड़ी में लेड के साथ अन्य कई प्रकार की धातु होती है। ऐसे में अगर आप इसे जलाकर नष्ट करते हैं तो ये धातुएं अपनी ऑक्साइड बना लेती हैं, जिसके कारण न सिर्फ वातावरण दूषित होता है बल्कि यह आपकी जान भी ले सकता है, क्योंकि इसके अंश हवा में घुले होते हैं और जब आप सांस लेते हैं तो यह आपके शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसके कारण न्यूरो और लीवर संबंधी परेशानियों का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर अगरबत्ती बांस की बनती है। अत: इसे जलाना शुभ नहीं होता।
शास्त्रों में पूजन विधान में कहीं भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता सब जगह धूपबत्ती ही लिखा हुआ मिलता है। अगरबत्ती बांस और केमिकल से बनाई जाती है जिसका सेहत पर बुरा असर होता है। फेंगशुई में लंबी आयु के लिए बांस के पौधे बहुत शक्ति शाली प्रतीक माने जाते हैं। यह अच्छे भाग्य का भी संकेत देता है, इसलिए उसे जलाना फेंगशुई की दृष्टि से अशुभ है।
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Skanda Purana says that burning of bamboo causes Pitra dosha, it is harmful for health.
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इसलिए नहीं मिलता जप-तप, यज्ञ, पूजा पाठ का उचित फल – यहां पढ़े पूरी खबर
धर्म में विश्वास और आस्था रख पूजा पाठ करने वाले बहुत सारे लोगों की शिकायत रहती है कि वे लंबे समय से पूरी श्रद्धा और गं��ीरता से पूजा उपासना करने के बाद, दान इत्यादि धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद भी उनकी साधना को शायद ईश्वर स्वीकार ही नहीं कर रहे, जिससे सफलता के उचित परिणाम नहीं मिल रहे । इतनी पूजा पाठ के बाद भी बहुत सारी समस्याएं हे कि पीछा ही नहीं छोड़ती । इस प्रकार की शिकायत करने वाले कोई एक या दो नहीं बहुत सारे लोग मिल जाएंगे ।
ऐसा इसलिए होता है
पूजा के शुद्ध नियम
1- घर में पूजा स्थल घर की दक्षिण पश्चिम या पश्चिम दिशा में होने पर भी पूजा पाठ का लाभ प्राप्त नहीं होता । पूजा करते समय साधक का मुख प्रातःकाल पूर्व दिशा की ओर एवं शाम के समय पश्चिम की तरफ होना चाहिए ।
2- पूजा में हमेशा पीले या सफेद धुले हुए कपडों का ही प्रयोग करें । पूजा पाठ के अधिकतम फल के लिए तीन से चार बजे के मध्य का समय सर्वोत्तम रहता है इस समय की गई पूजा उपासना निष्फल नहीं होती ।
3- हमारे शास्त्रों में पूजा पाठ इत्यादि के लिए आसन का प्रावधान बताया गया है और आसन के बारें में विस्तार से चर्चा की गयी है । इसलिए साधक यह सुनिश्चित कर लें कि पूजा पाठ के समय उचित और साफ धुले आसन का प्रयोग कर रहे हैं या नहीं । पूजा के समय यदि मंत्र पढ़ते है, लंबे पाठ आरती इत्यादि करते है परंतु आसन का प्रयोग नहीं करते तो साधक की पूजा का पृथ्वीकरण हो जाएगा । पूजा के फलस्वरूप पैदा हुई ऊर्जा आसन के अभाव में पृथ्वी में समा जाएगी, साधना के फल से वंचित हो जाएंगे ।
4- शास्त्रों में पूजा अर्चना को एकांत स्थान में करने का विधान बताया गया है क्योंकि यदि पूजा के समय यदि कोई छू देता है तो भी पूजा के फलस्वरूप पैदा हुई ऊर्जा का पृथ्वीकरण हो जायेगा, जिसे सामान्य भाषा में हम कहते कि अर्थिन्ग हो रहीं है ।
5- पूजा के बाद यदि कोई क्रोध करता है, सो जाता है, निंदा करता है तो भी पूजा का फल पूजा करने वाले को प्राप्त नहीं होता । इसलिए इन बातों से बचने का प्रयास करें ।
6- भूलकर भी पूजा उपासना चारपाई पर बैठ कर न करें, नंगे फर्श पर न बैठें, यदि आसन मिलना सम्भव न हो तो उनी कम्बल प्रयोग कर सकते हैं, कहने का अभिप्राय है कि पूजा के समय पृथ्वी के संपर्क में सीधे आने से बचें ।
7- यदि किसी व्यक्ति ने अनुपयुक्त रत्न पहना होगा तो भी पूजा पाठ का लाभ नहीं मिलता । जैसे कि छिद्र युक्त घड़े में पानी डाला जाए ।
8- यदि किसी परिवार में किसी अविवाहित सदस्य की अकाल मृत्यु हो जाती है तो उसे अतृप्त आत्मा माना जाता है और अतृप्त आत्मा अपनी मुक्ति के लिए बाधाएं पैदा करती है । पूजा पाठ का लाभ न प्राप्त होने पर इस बिन्दु पर भी ध्यान दें कि आपके परिवार में कहीं इस प्रकार की कोई घटना घटित तो नहीं हुई है यदि ऐसा हु�� है तो उस अतृप्त आत्मा की मुक्ति के लिए शास्त्रों में बताए गए नियमों में निहित विधियों का पालन करें ।
9- किसी नए मकान में रहने के लिए आएं है तो सुनिश्चित कर ले कि आपने अपना घर किसी नि:संतान व्यक्ति से तो नहीं खरीदा है । बहुत बार देखा गया है कि पितृ दोष के फलस्वरूप व्यक्ति नि:संतान रहता है और उससे प्राप्त हुई वस्तु भी दोष ग्रस्त हो सकती है ।
10- पूजा पाठ हमेशा घर के किसी एंकात स्थान में करना चाहिए जहां पर आसानी से दूसरों की दृष्टि नहीं पड़े । यदि घर में प्रवेश होते ही पूजा स्थल पर सबकी दृष्टि पड़ती है, अर्थात पूजा स्थल छिपा नहीं है तो भी पूजा पाठ का लाभ नहीं मिलता । सीढी के नीचे भी पूजा गृह अच्छा नहीं माना जाता ।
11- मंत्र हमारे ऋषि मुनियों द्वारा अविष्कृत बहुत ही वैज्ञानिक ध्वनियाँ है । मंत्र जप से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है । यदि आप नियमित पूजा में मंत्र जप करते है तो ध्यान रखें कि मंत्र उच्चारण शुद्ध हो अन्यथा पूजा निरर्थक ही होगी । एक अक्षर की गलती आपको मन्त्र से होने वाले लाभ से वंचित रख सकती है । कभी कभी मन्त्र का उच्चारण गलत होने से नुक्सान होता भी देखा गया है । एक एक अक्षर से मन्त्र बनता है यदि कहीं त्रुटी हो तो मन्त्र के किसी जानकार से सही उच्चारण करना सिखता हैं ।
12- अगर कोई शास्त्र अनुसार नियमित पूजा पाठ करता हैं तो उसे खानपान में भी शुद्धता रहनी चाहिए । अगर साधक के परिवार को कोई सदस्य मांस-मदिरा का सेवन करता है तो भी पूजा का पूरा फल साधक को नहीं मिल पाता ।
13- यदि साधक चाहता हैं कि पूजा का फल पूरा मिले तो, सप्ताह में एक बार मौन व्रत जरूर रखें । मौन व्रत रखने से अध्यात्म बल बढ़ता है, सहन शक्ति का विकास होता है । 14- आगर कोई किसी मंत्र का निरंतर और लम्बे समय तक जपता है तो उस साधक के शरीर के आस पास एक दिव्य आभामंडल बन जाता है, जिसे केवल कोई ��िद्ध पुरुष ही देख पाते हैं, वह आभामंडल साधक की अनेक प्रकार से रक्षा करता है ।
15- यदि साधक के घर में किसी प्रकार का वास्तु दोष है तो ऐसे में घर में पूजा न करके किसी मंदिर में पूजा कर सकते हैं । 16- अपनी पूजा का आसन, जप करने की माला और पूजा के कपड़े किसी दूसरे को हाथ नहीं लगाने दे ।
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पितृ दोष निवारण मंत्र 'ॐ श्री सर्व पितृ देवताभ्यो नमो नमः', ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ये सभी मंत्र आपको पितृ दोष से मुक्ति दिलाने में मदद करते हैं और यदि आप इन मंत्रों का जाप विधि-विधान से करते हैं तो पितरों को मुक्ति मिलती है और उनका आशीर्वाद मिलता है.
इसके लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि वे संतुष्ट हों और आपको आशीर्वाद दें। जब आप देवताओं के लिए तर्पण करें तो उस समय आप पूर्व दिशा में मुख करके कुश लेकर अक्षत् से तर्पण करें। इसके बाद जौ और कुश लेकर ऋषियों के लिए तर्पण करें। #akshayjamdagni #pitrapaksha
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🔵 हनुमान जी का चित्र घर में कहाँ लगायें 🔴 श्रीराम भक्त हनुमान साक्षात एवं जाग्रत देव हैं। हनुमानजी की भक्ति जितनी सरल है उतनी ही कठिन भी। कठिन इसलिए की इसमें व्यक्ति को उत्तम चरित्र और मंदिर में पवित्रता रखना जरूरी है अन्यथा इसके दुष्परिणाम भुगतने होते हैं हनुमानजी की भक्ति से चमत्कारिक रूप से संकट खत्म होकर भक्त को शांति और सुख प्राप्त होता है। विद्वान लोग कहते हैं कि जिसने एक बार हनुमानजी की भक्ति का रस चख लिया वह फिर जिंदगी में अपनी बाजी कभी हारता नहीं। जो उसे हार नजर आती है वह अंत में जीत में बदल जाती है। ऐसे भक्त का कोई शत्रु नहीं होता। आपने हनुमानजी के बहुत से चित्र देखे होंगे। जैसे- पहाड़ उठाए हनुमानजी, उड़ते हुए हनुमानजी, पंचमुखी हनुमानजी, रामभक्ति में रत हनुमानजी, छाती चिरते हुए, रावण की सभा में अपनी पूंछ के आसन पर बैठे हनुमानजी, लंका दहन करते हनुमान, सीता वाटिका में अंगुठी देते हनुमानजी, गदा से राक्षसों को मारते हनुमानजी, विशालरूप दिखाते हुए हनुमानजी, आशीर्वाद देते हनुमानजी, राम और लक्षमण को कंधे पर उठाते हुए हनुमानजी, रामायण पढ़ते हनुमानजी, सूर्य को निगलते हुए हनुमानजी, बाल हनुमानजी, समुद्र लांगते हुए हनुमानजी, श्रीराम-हनुमानजी मिलन, सुरसा के मुंह से सूक्ष्म रूप में निकलते हुए हनुमानजी, पत्थर पर श्रीराम नाम लिखते हनुमानजी, लेटे हुए हनुमानजी, खड़े हनुमानजी, शिव पर जल अर्पित करते हनुमानजी, रामायण पढ़ते हुए हनुमानजी, अखाड़े में हनुमानजी शनि को पटकनी देते हुए, ध्यान करते हनुमानजी, श्रीकृष्ण रथ के उपर बैठे हनुमानजी, गदा को कंधे पर रख एक घुटने पर बैठे हनुमानजी, पाताल में मकरध्वज और अहिरावण से लड़ते हनुमानजी, हिमालय पर हनुमानजी, दुर्गा माता के आगे हनुमानजी, तुलसीदासजी को आशीर्वाद देते हनुमानजी, अशोक वाटिका उजाड़ते हुए हनुमानजी, श्रीराम दरबार में नमस्कार मुद्रा में बैठे हनुमानजी आदि। जिस घर में हनुमानजी का चित्र होता है वहां मंगल, शनि, पितृ और भूतादि का दोष नहीं रहता। हनुमानजी के भक्त हैं तो घर में हनुमानजी के चित्र कहां और किस प्रकार के लगाएं यह जानना जरूरी है। आओ आज हम आपको बताते हैं श्रीहनुमानजी के चित्र लगाने के कुछ नियम. किस दिशा में लगाएं हनुमानजी का चित्र : वास्तु के अनुसार हनुमानजी का चित्र हमेशा दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए लगाना चाहिए। यह चित्र बैठी मुद्रा में लाल रंग का होना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके हनुमानजी का चित्र इसलिए अधिक शुभ है क्योंकि हनुमानजी ने अपना प्रभाव सर्वाधिक इसी दिशा में दिखाया है। हनुमानजी का चित्र लगाने पर दक्षि
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पशु पक्षियों को पालने से दूर कर देते हैं वास्तु दोष
वास्तु शास्त्र के हिसाब से कोई भी जीव-जंतु या पशु-पक्षियों का मानव जीवन में विशेष महत्व बताया गया है|अगर हम पशु-पक्षियों को पर दया नहीं करते उसे मारते है तो हम पर वस्तु दोष होता है| वही अगर पशुओं की सेवा करे तो वस्तु दोष से मुक्ति मिल जाती है|असा वास्तु शास्त्र में मन गया है| वस्तु शास्त्र में माना गया है की पशु-पक्षियों में अनिष्ट तत्वों को काबू में रखने की अद्भुत शक्ति होती है।
पालतू पशुओं के बारे में माना जाता है कि इनके अंदर नकारात्मक शक्तियों को निष्क्रिय बनाने की ताकत होती है।और ये भी माना जाता है की किसी भी अनिष्ट से बचने के लिए गोदान को सबसे उत्तम दान मानते है| अगर हैं गाय का दान करते है तो किसी भी प्रकार से अचानक आई विपत्ति ताल जाती है| यह भी मान्यता है कि जिस भूभाग पर मकान बनाना हो वहां पंद्रह दिन गाय-बछड़ा बांध दें। इससे यह जगह पवित्र हो जाती है| और घर बनने के बाद कोई वास्तु दोष नहीं होता है|
हमारे हिन्दू धर्म में मान्यता है की गाय को पलना सबसे अच्छा माना गया है|और हममे अगर देव विष्णु और देवी मां लक्ष्मी को खुश करना है तो इसके लिए गाय पालना उत्तम माना गया है| हर दिन गाय को रोटी खिलानी चाहिए। गाय की सेवा करने से पितरों को तृप्ति मिलती है।और पितृ दोष से छुटकारा मिलता है|अक्सर लोगो के घर में घर में क्लेश का माहौल रहता है हमेशा ही किसी न किसी से झगड़ा होता रहता है|इसे दूर करने के लिए चिड़िया को दाना खिलाने से जीवन में खुशियां लौट आती हैं|
अगर आप किसी भी चीज के व्यापारी है तो आपके व्यापार में बढ़ोतरी हो इसके लिए व्यापार करने वालों को प्रतिदिन पक्षियों को दाना अवश्य डालना चाहिए इससे आर्थिक मामलों में लाभ होता है| गिलहरी को तो भगवन राम से आशार्वाद मिला है| रामायण में ये कहा गया है|और जब गिलहरी से हमरे जीवन में लाभ हो तो उसके लिए गिलहरियों को रोटी खिलाने से हर कठिनाई से आसानी मुक्ति मिल जाती है।
घर में तोता पालना भी शुभ माना जाता है।तोते का हरा रंग बुध ग्र�� के साथ जोड़कर देखा जाता है। अतः घर में तोता पालने से बुध की कुदृष्टि का प्र��ाव दूर होता है। मछलियों को पालने और इन्हें आटे की गोलियां खिलाने से अनेक दोष दूर होते हैं। माना जाता है कि मानव का सबसे वफादार मित्र कुत्ता भी नकारात्मक शक्तियों को खत्म कर सकता है। उसमें भी काला कुत्ता सबसे ज्यादा उपयोगी सिद्ध होता है। पालतू कुत्ता, घर के रोगी सदस्य की बीमारी अपने ऊपर ले लेता है।
यह भी मान्यता है कि गुरुवार को हाथी को केले खिलाने से नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं। अगर सफलता पाने की चाह है तो अपने घर में गरुड़ की मूर्ति या फोटो रखें| सभी लोग घोड़ा पाल नहीं सकते फिर काले घोड़े की नाल को घर में रखने से शनि के कोप से बचा जा सकता है।
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