#पटना लॉकडाउन
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nationalnewsindia · 2 years ago
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dnnews99 · 2 years ago
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पटना से 24 वर्षीय अरुणेश मिश्रा को PM राष्ट्रीय युवा अवॉर्ड देने जा रहे हैं। अरुणेश ने सोशल मीडिया की मदद से लॉकडाउन और कोरोना की पहली लहर में हजारों जरूरतमंद लोगों तक ब्लड पहुंचाया था। उनके दोस्त उन्हें ब्लड मैन बुलाते हैं।
#Bihar #Patna #PMModi #covid #firstwave
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newshindiplus · 4 years ago
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Bihar Lockdown: सप्ताह में दो दिन बंद रहेगी पटना की सभी थोक दवा मंडी
Bihar Lockdown: सप्ताह में दो दिन बंद रहेगी पटना की सभी थोक दवा मंडी
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पटना की थोक दवा मंडी Bihar Lockdown: बिहार में 31 जुलाई, 2020 तक लॉकडाउन की घोषणा की गयी है और इस दौरान एसेंशियल सर्विसेस जारी रखने का निर्देश दिया गया है जिसमें दवा की दुकानें भी शामिल हैं
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vilaspatelvlogs · 4 years ago
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बिहार में आज से लागू हुआ 15 दिनों का संपूर्ण Lockdown, इन व्यापरियों को मिलेगी छूट
बिहार में आज से लागू हुआ 15 दिनों का संपूर्ण Lockdown, इन व्यापरियों को मिलेगी छूट
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पटना: कोरोना वायरस (Coronavirus) के बढ़ते मामलों की रोकथाम के लिए बिहार (Bihar) में एक बार फिर सम्पूर्ण लॉकडाउन लागू हो गया है. इस बार सरकार ने ये लॉकडाउन 15 दिनों के लिए लगाया है, जिसमें जरूरी सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. 
इस दौरान बिहार की राजधानी पटना के 114 इलाकों में भी यातायात पर प्रतिबंध लगा रहेगा. हालांकि इस दौरान जरूरी सेवाओं वाली गाड़ियों को…
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countryinsidenews · 4 years ago
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मुख्यमंत्री नीतीश का बड़ा निर्णय – बिहार में कोरोना ने पसारा पैर, 16 से 31 जुलाई तक फुल लॉकडाउन का आदेश बिहार में कोरोना के मामलें थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं... दिन-पर-दिन यह मामला बढ़ते ही जा रहा है और ऐसे में नीतीश सरकार ने फिर से लॉकडाउन बढ़ाने का फैसला कर लिया है।
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digimakacademy · 4 years ago
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lockdown in patna: जानिए पटना में क्या खुला रहेगा और क्या रहेगा बंद...
lockdown in patna: जानिए पटना में क्या खुला रहेगा और क्या रहेगा बंद…
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Edited By Hrishikesh Singh | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 10 Jul 2020, 10:12:00 AM IST
पटना में नया लॉकडाउन शुरू हाइलाइट्स
पटना में 10 जुलाई से लॉकडाउन शुरू
16 जुलाई तक पटना में रहेगा लॉकडाउन
पटना में कहां जाएं और कहां न जाएं
पटना में क्या रहेगा खुला और क्या रहेगा बंद
पटना में लॉकडाउन की सारी जानकारी मिलेगी यहां
पटना: पटना में 10 जुलाई से लॉकडाउन (lockdown in patna)शुरू हो चुका है।…
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sandhyabakshi · 4 years ago
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बिहार में दारोगा भर्ती मुख्य परीक्षा 23 अगस्त को, 50 हजार कैंडिडेट्स शामिल होंगे बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग ने दारोगा मुख्य परीक्षा की तिथि जारी कर दी है। यह परीक्षा 23 अगस्त को होगी। दारोगा की मुख्य परीक्षा लॉकडाउन की वजह से पूर्व की तिथि 26 अप्रैल पर नहीं हो सकी थी। परीक्षा में ... Source link
#23 अगस्त को दरोगा भर्ती परीक्षा#446 पद#446 पद के लिए परीक्षा#एएसआई भर्ती के लिए मुख्य परीक्षा#कुल २#कुल 2 के लिए परीक्षा#कोरोना लॉकडाउन के कारण मुख्य परीक्षा रद्द कर दी गई#दरोगा भर्ती परीक्षा#दरोगा भर्ती परीक्षा 23 अगस्त को#दरोगा मुख्य परीक्षा की तारीख जारी#दारोगा मुख्य परीक्षा की तिथि जारी#पटना#पटना न्यूज़#परीक्षा दो पालियों में होगी#परीक्षा में 50 हजार 72 अभ्यर्थी शामिल होंगे#परीक्षा में 50 हजार 72 परीक्षार्थी शामिल होंगे#पैट्रोलियम पत्र#बिहार के समाचार#बिहार न्यूज#बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग#लाइव हिंदुस्तान एनसीसी#लाइव हिन्दुस्थान समाचार#लॉकडाउन की वजह से मुख्य परीक्षा कैंसिल हुई थी#हिंदी समाचार#हिंदुस्तान#हिंदुस्तान संवाददाता#हिन्दी में समाचार#हिन्दुस्तान#हिन्दुस्थान समाचार
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ckpcity · 4 years ago
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सरकार को भोला पासवान शास्त्री के परिवार को सरकारी नौकरी देनी चाहिए: चिराग पासवान लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और पूर्व सीएम भोला पासवान शास्त्री के परिवार को नौकरी देने के साथ-साथ वित्तीय मदद का अनुरोध किया।
#क#कोरोना लॉकडाउन के संबंध में भूख#कोरोना लॉकडाउन में भुखमरी#चरग#चहए#तीन बार के पूर्व सीएम का परिवार#दन#नकर#नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी मदद भेजी#पटना#पटना न्यूज़#परवर#पसवन#पूर्व सीएम के परिवार को नौकरी और आर्थिक मदद देने का आग्रह#पूर्व सीएम भोला पासवान शास्त्री को नौकरी और आर्थिक मदद की मांग नीतीश कुमार ने की#बिहार के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा#बिहार के समाचार#भल#मीडिया में पूर्व सीएम की खबर#मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और मांग की#राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान#लाइव हिन्दुस्थान समाचार#लोक जनशक्ति पार्टी#विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने भी मदद भेजी#शसतर#सरकर#हिंदी समाचार#हिंदुस्तान#हिन्दी में समाचार#हिन्दुस्थान समाचार
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hindinewshub · 5 years ago
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कोरोना वायरस के संक्रमण बढ़ने की आशंका को देखते हुए सभी तैयारियां पहले कर लें: नीतीश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि भविष्य में कोरोना संक्रमण बढ़ने की आशंका को देखते हुए सभी तैयारियां पहले ही कर रहे हैं। सभी तैयारियों से पहले रहेंगी तो हमलोग कोरोना ...। Image Source link
#अग्रिम में सभी तैयारी रखने के निर्देश#अधिकारियों को निर्देश#उच्च स्तरीय बैठक#कोरोना परिस्थिति#कोरोना संकट#कोरोना संक्रमण के बढ़ने की आशंका जताई#कोरोना संक्रमण बढ़ने का डर#दुनिया भर में महामारी कोरोना#पटना#पटना न्यूज़#पैट्रोलियम पत्र#बिहार#बिहार का कोरोना हैल्पस्पॉट#बिहार का कोरोना हॉटस्पॉट#बिहार के समाचार#बिहार कोरोना न्यूज अपडेट#बिहार न्यूज़#बिहार में कोरोना#बिहार में कोरोना न्यूज अपडेट#बिहार में कोरोना लॉकडाउन 4#बिहार में कोरोना संक्रमित मरीज#बिहार में कोरोनार्ट्स की शुरूआत#भागलपुर#भागलपुर न्यूज़#भागलपुर में कोरोना#मुख्यमंत्री नीतीश#मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को दिए कई निर्देश#मुख्यमंत्री ने पदाधिकारियों को कई निर्देश दिए#लाइव हिंदुस्तान न्यूज़#लाइव हिन्दुस्थान समाचार
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nationalnewsindia · 2 years ago
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newsaryavart · 5 years ago
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अब डाकिये आपके घर पहुंचाएंगे ‘शाही लीची’, यहां करें ऑर्डर
अब डाकिये आपके घर पहुंचाएंगे ‘शाही लीची’, यहां करें ऑर्डर
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‘शाही लीची’ की ऑनलाइन डिलिवरी के लिए बिहार सरकार, डाक विभाग ने मिलाया हाथ कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमण के कारण बिहार सरकार और डाक विभाग ने मिलकर इस बार लोगों के घरों तक शाही लीची पहुंचाने का जिम्मा…
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newshindiplus · 4 years ago
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लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने वाले 30 लोगों को कान पकड़कर कराया उठक-बैठक, जुर्माना भी लगाया
लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने वाले 30 लोगों को कान पकड़कर कराया उठक-बैठक, जुर्माना भी लगाया
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पटना जिला प्रशासन ने लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई की है. बिहार (Bihar) में कोरोना वायरस (Corona Virus) मरीजों की संख्या लगातार बढ़ने के बाद पटना (Patna) जिले के बाढ़ अनुमंडल प्रशासन ने कई इलाकों को शील करने का निर्णय लिया…
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rnewsworld · 5 years ago
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दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को लेकर राबड़ी का नीतीश सरकार पर हमला, बोलीं- 'ये नकारा, निकम्मे और निर्लज्ज'
दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को लेकर राबड़ी का नीतीश सरकार पर हमला, बोलीं- ‘ये नकारा, निकम्मे और निर्लज्ज’
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राबड़ी देवी ने तेजस्वी के ही सवाल को दोहराते हुए पूछा कि क्या इस देश में दो कानून हैं? जब गुजरात की बीजेपी सरकार लॉकडाउन के बीच उत्तराखंड में फंसे हजारों गुजरातियों को आरामदायक बसों में बैठाकर गुजरात ले जा सकती है। यूपी सरकार अपने नागरिकों के लिए दिल्ली से 200 बसों का प्रबंध कर सकती है, तो बिहार सरकार ने बिहार के बाहर फंसे गरीब बिहारियों को क्यों उनके हालात पर छोड़ दिया है।
Abhishek Kumar | नवभार…
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theindianewstoday-blog · 5 years ago
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Coronavirus: Amid Lockdown Nikah Happend Through Video Conferencing
https://theindianewstoday.com/coronavirus-amid-lockdown-nikah-happend-through-video-conferencing/ Coronavirus: Amid Lockdown Nikah Happend Through Video Conferencing
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bakaity-poetry · 5 years ago
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पढ़िये वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव को उनके साप्ताहिक कॉलम ‘कातते-बीनते’ में
उस रात कलकत्ता में ज़बरदस्त बरसात हुई थी। दिन भर से रह-रह कर बरस रहा था। प्रोफेसर शशांक राय अपनी बालकनी में कुर्सी पर बैठे बूंदों को ऐसे देख रहे थे जैसे कोई बच्चा पहली बार बारिश देख रहा हो। शाम सात बजे के आसपास बादल कुछ थमे। वे भीतर कमरे में आये। काग़ज़ पर कुछ लिखा। सदरी पहनी। फोन नंबरों वाली छोटी डायरी जेब के सुपुर्द की। पत्नी से कहा, “मैं आता हूं।” पत्नी ने क्षण भर को रोका। वे नहीं रुके। निकल गये। फिर कभी नहीं घर लौटे।
ये फ्लैशबैक में हमें बताया गया है। वरना पहले ही दृश्य से ही फिल्म में उसका नायक यानी रिटायर्ड प्रोफेसर फ्रेम से गायब है। बावजूद इसके, पूरी फिल्म इस प्रोफेसर के चरित्र का पंचनामा है। मृणाल सेन के सिनेमा की यही खूबी है। “एक दिन अचानक” 1989 में आयी थी। मृणाल सेन ने बाद में दिये एक साक्षात्कार में कहा था कि यह फिल्म उनकी “पर्सनल” है। प्रोफेसर राय का किरदार बुढ़ाते हुए मृणाल सेन की एक छाया हो सकता है, जिस उम्र में यह अहसास सघन होता है कि “जीवन क्या जिया, अब तक क्या किया”।
वही दौर था जब इस देश के चार महानगरों में सिमटे मध्यवर्गीय बौद्धिक ने बाकी हिस्सों में पैर पसारे। इलाहाबाद, पटना, बनारस, भोपाल का बौद्धिक दिल्ली और बॉम्बे की ओर बढ़ चला। छोटे शहरों में उच्च शिक्षा पहुंची, बाज़ार पहुंचा, पूंजी पहुंची, अवसर पहुंचे। मध्यवर्ग का विस्तार हुआ। मध्यवर्ग के एक छोटे से हिस्से यानी बुद्धिजीवी वर्ग का भी उसी अनुपात में विस्तार हुआ। यह अकारण नहीं है कि उदारवाद के आने से पहले गोविंद निहलानी 1984 में अघाये मध्यवर्गीय बौद्धिकों पर “पार्टी” बना चुके थे। पुरानी पार्टी खत्म हो रही थी। नयी शुरू।
उदारवाद की पैदाइश इस मध्यवर्ग की नयी पार्टी तीस साल से लगातार चल रही थी। पहली बार उस पर लगाम लगी मार्च में। जैसा मैंने पिछले हफ्ते के स्तम्भ में ज़िक्र किया था, मोटे तौर पर पूरे मध्यवर्ग को छह दिन काम और एक दिन आराम के हिसाब से कंडीशन कर दिया गया था। मृणाल सेन के यहां से उधार लेकर कहें, तो यह मध्यवर्ग “सफलता” नामक मंत्र को केंद्र में रखकर ज़िंदगी जी रहा था। इसका एक हिस्सा बेशक हमेशा की तरह भीतर किसी कोने में हर जगह मौजूद रहा, जिसने प्रोफेसर राय की तरह सफलता की जगह “डेडिकेशन” को अपनी ज़िंदगी का मंत्र बनाया।
 यह मध्यवर्गीय बौद्धिक था- लेखक, पत्रकार, अकादमिक, इतिहासकार, संस्कृतिकर्मी, कलाकार, आंदोलनकारी, सिद्धांतकार, आलोचक, कवि, रंगकर्मी, इत्यादि। दरअसल, इस छोटे से तबके की पैदाइश ही नौ से पांच की नौकरी बजाने के प्रति अवमानना से हुई थी। इसे गुलाम बनाना थोड़ा मुश्किल था।
जब पार्टी रुकी, तो सबकी रुकी। एक दिन अचानक सब कुछ ठहर गया। शायद वैसे ही, जैसे किसी एक दिन प्रोफेसर राय रिटायर हुए रहे होंगे और घर बैठ गये होंगे। ज़ाहिर है, जो बौद्धिक तबका नियमित नौ से पांच की नौकरी में बंधा नहीं था, वह अब तक आत्मानुशासन के तहत ही रच रहा था। एक किस्म के स्व-आरोपित लॉकडाउन में था, जैसे प्रोफेसर राय, जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद न तो एक्सटेंशन लिया न ही बाहर कोचिंग क्लास ली। अवकाश की अवधि में प्रोफेसर का सारा उद्यम इस पर केंद्रित रहा कि वे कैसे कुछ अलग कर के दिखाएं। कुछ बड़ा ��रें। कुछ हटकर करें। यह बौद्धिकों की विशिष्ट समस्या है, कि वे अवकाश को उत्कृष्ट रचना या उत्पादन के किसी दैवीय कर्तव्य की तरह देखने लगते हैं। फिर अपनी ही पूंछ का पीछा करते कुत्ते की तरह रह-रह कर भौंकते जाते हैं।
मसलन, बौद्धिक दायरे में आजकल लोग एक-दूसरे को फोन करते हैं तो इस बात का ज़िक्र करते हैं कि उन्होंने क्या रचा। क्या अलग किया। क्या लिखा। क्या पढ़ा। फेसबुक पर सबसे सामान्य तस्वीर शुरुआती दिनों में यह दिखी कि ये लोग अपनी पुरानी किताबें छांटने और साफ़ करने में लगे रहे। कुछ अचानक हाथ लग जाये ऐसा जिसका प्रचार मूल्य हो, तो उसे पोस्ट करने में तनिक भी देर किसी ने नहीं की। किसी ने बड़ी मेहनत से किसी क्लासिक का तर्जुमा कर डाला। किसी ने किताब लिख डाली। कोई चुप मार कर किसी गुप्त अध्ययन में लगा हुआ है। कुछ ज्यादा गंभीर बौद्धिक सोशल मीडिया से कट लिए हैं। वे एकान्त में जाने क्या पका रहे हैं। ये सब वास्तव में “डेडिकेटेड” लोग हैं (सफलता के मारे हैं या नहीं, इस पर पक्का कुछ कहना मुश्किल है) लेकिन ये सब किसी अनसुने-अदृश्य फ़रमान पर खुद से ही होड़ में लगे हुए हैं ताकि इसी बीच अपना सबसे बेहतर पैदा कर दें। प्रोफेसर राय भी इसी विशिष्टताबोध और उत्कृष्टताबोध के मारे थे।
फिल्म भले उनकी गैर-मौजूदगी में आगे बढ़ती है, लेकिन परिवार के दूसरे सदस्यों के माध्यम से प्रोफेसर के व्यक्तित्व की परतें लगातार खुलती जाती हैं। छोटी बेटी तो शुरू से ही मानती थी कि पिता अहंकारी हैं। बेटे से खटपट चलती ही रहती थी। पत्नी ने भी एक दिन खुल के कह दिया था, “तुमने आज तक हमारे लिए किया ही क्या?” केवल बड़ी बेटी नीता (शबाना आज़मी) है जिसने अपनी बुद्धिजीवी पिता पर अंत तक पूरी आस्था जतायी, लेकिन एक रात उसने अपने पिता के व्यक्तित्व का अचानक विखंडन कर डालाः “कहीं वे सामान्य आदमी तो नहीं थे और हम ही लोग उन्हें बड़ा बनाये हुए थे?” यह सवाल चौंकाता है। वह कहती है कि शायद पिता उतने ही काबिल थे जितना उन्होंने किया, वे उससे बड़े नहीं थे। ये सब कह कर वह ग्लानि में भी डूब जाती है, कि पिता के बारे में उसने ऐसा सोचा भी कैसे!
जो नहीं है, जैसे कि प्रोफेसर, उसका ग़म तो है। यह ग़म ही उसके बारे में सोचने की मोहलत देता है और साथ रहने वालों को सच के थोड़ा और करीब लाता है। प्रोफेसर के घर से जा��े के ठीक साल भर बाद वैसी ही बरसात की एक रात में सब अपने-अपने सच को लेकर साथ बैठते हैं। दोनों बेटियां और बेटा याद करते हैं कि उन्होंने पिता के बारे में अब तक क्या-क्या कहा। पिता की विखंडित होती तस्वीर को अचानक पत्नी आकर संभालती है अंतिम दृश्य में। पत्नी सुधा कहती है कि घर से जाने के एक रात पहले प्रोफेसर राय ने उससे एक बात कही थी। उन्हें सबसे बड़ा दुख इस बात का था एक आदमी को एक ही ज़िंदगी मिलती है।
प्रोफेसर का यह दुख दरअसल मृणाल सेन का “पर्सनल” दुख है। मृणाल सेन का दुख दरअसल एक बौद्धिक, एक कलाकार का दुख है। हर रचनाकार अपने बेहतरीन कामों में पड़ी दरारों को जानता है, समझता है। उसे एक अवकाश चाहिए होता है जिसमें वह खुद को उत्कृष्ट तरीके से पेश कर सके। अपनी गलतियों को दुरुस्त कर सके। रचना में ही सही, प्रायश्चित कर सके। इसे अज्ञेय ने “शेखरः एक जीवनी” में बड़ी खूबसूरती से कहा है कि हर व्यक्ति अपने जीवन में की गयी रुखाई की कीमत कभी न कभी अवश्य चुकाता है। खुद को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ने की यह उत्कण्ठा जानलेवा हो सकती है।
प्रोफेसर शशांक राय को लगा कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी में जो बेरुख़ी की है- अपने “डेडिकेशन” के चक्कर में “सफलता” की कुंजी से चूक गये जिसका ख़मियाज़ा परिवार को भुगतना पड़ा- उसका हर्ज़ाना इस ज़िंदगी में भर पाना मुमकिन नहीं तो वे अपना दुख लिए कहीं निकल लिए। निकलने के फैसले से पहले तक वे खुद से ही होड़ में लगे रहे। मुक्तिबोध और गोरख पांडे की दिमागी बीमारी से मौत, स्वदेश दीपक का घर छोड़ना, शैलेश मटियानी… लंबी फेहरिस्त है जहां हम प्रोफेसर शशांक राय के किरदार को पा सकते हैं। लॉकडाउन में बौद्धिकों के साथ तकरीबन यही हो रहा है, अलग-अलग रूपों में।
यह अवकाश जो हमें मिला है, उत्पादन में प्रतिस्पर्धा ठानने के लिए ��हीं है। ढेर सारा या उत्कृष्टतम पैदा करने के लिए नहीं है। अगर आपको लगता है कि आपने इतना सारा वक्त “खराब” कर दिया, तो आप गलत लीक पर हैं। अगर आपको लगता है कि आप वह नहीं कर सके जो कर सकते थे, तो आप गलत लीक पर हैं। आप जो कर सकते थे, आपने वही और उतना ही किया है। इसे मान लें। हर कोई अपने सामर्थ्य के बराबर ही उत्पादन करता है, न उससे ज्यादा, न कम। और बेचैनी में घर से भागने, ख़ुदकुशी करने या मानसिक विक्षिप्तता पालने से कहीं बेहतर यह नहीं है कि यह समय बरबाद ही चला जाय?
हर मनुष्य को ज़िंदगी एक ही मिली है। दूसरी ज़िंदगी की सदिच्छा या इस ज़िंदगी से शिकवा का कोई मतलब नहीं है। एक आदमी के पास एक ज़िंदगी होना दुख की बात नहीं है। कतई नहीं। इसका मतलब यह भी नहीं ��िकाला जाना चाहिए कि “ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा” की तर्ज़ पर सब करम यहीं कर डालो। यह बात सबसे ज्यादा उनके समझने की है जो कुछ रचते हैं।
बाकी के समझने के लिए केवल एक बात है कि आपके आसपास जो रच रहा है, कलाकार है, बौद्धिक है, उसे बेमतलब झाड़ पर न चढ़ाएं। सामान्य मनुष्य होने का अहसास उसे भी होने दें। दूसरों की अपेक्षा को तोड़ना तो फिर भी सुख दे सकता है, अपनी अपेक्षाओं के प्रति अपर्याप्तता का बोध आत्मघाती है। इस दौर में संवेदनशील और रचनात्मक लोगों के आसानी से निकल लेने को ऐसे भी देखा जाना चाहिए।
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digimakacademy · 4 years ago
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Covid-19 Effect: पटना में 10 से 16 जुलाई तक संपूर्ण लॉकडाउन, आदेश जारी
Covid-19 Effect: पटना में 10 से 16 जुलाई तक संपूर्ण लॉकडाउन, आदेश जारी
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बिहार (Bihar) की राजधानी पटना (Lockdown in Patna) में एक बार फिर से लॉकडाउन (Lockdown) लगने जा रहा है। लॉकडाउन (Lockdown again in Patna) को लेकर आदेश जारी हो गया है। ये लॉकडाउन 10 से 16 जुलाई (Lockdown from july 10 to 16 in Patna) तक चलेगा। इस दौरान इमरजेंसी सेवाएं पहले ही तरह की जारी रहेंगी।
Edited By Sudhendra Singh | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 08 Jul 2020, 05:26:00 PM IST
सांकेत…
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