#निराशा
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Everything okay?
If you or someone you know is struggling, you are not alone. There are many support services that are here to help. For 24/7 peer support and other resources, message KokoBot on Tumblr.
If you are in the United States, please try:
National Suicide and Crisis Lifeline or dial 988 or (en Español)
The Trevor Project (LGBT crisis intervention) or dial 1-866-488-7386
Trans Lifeline or dial 1-877-565-8860 (en Español)
The National Domestic Violence Hotline or 1-800-799-SAFE (7233)
Rape Abuse & Incest National Network or 1-800-656-HOPE (4673)
S.A.F.E. Alternatives for Stopping Self Abuse or 1–800-DONT-CUT (366–8288)
National Eating Disorders Association
If you are outside the United States, visit IASP to find resources for your country.
For more resources, please visit our Counseling & Prevention Resources page for a list of services that may be able to help.
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भावनात्मक शिक्षा: बच्चों में झगड़े, निराशा और डर से निपटने के तरीके
भावनात्मक शिक्षा के महत्व को समझें और बच्चों को उनकी भावनाओं को प्रबंधित करने में मदद करने के लिए व्यावासिक तकनीकों की खोज करें।
बाल्यकाल एक ऐसा समय है जब अनगिनत खोज और सीखने की प्रक्रियाएँ होती हैं। हालांकि, नई अनुभूतियों के साथ, भावनाएँ भी आती हैं, अक्सर तेज़ और प्रबंधित करना मुश्किल होता है। झगड़े, निराशा और डर सामान्य हैं, लेकिन माता-पिता और पालक कैसे इन भावनाओं के साथ निपट सकते हैं? भावनात्मक शिक्षा एक स्वस्थ और संतुलित विकास को बढ़ावा देने के लिए इन भावनाओं को समझने और प्रबंधित करने के लिए कुंजी है। भावनात्मक शिक्षा…
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विधानसभा निकाल: आम आदमी पक्षाला दोन्ही राज्यांत निराशा
विधानसभा निकाल: आम आदमी पक्षाला दोन्ही राज्यांत निराशा
विधानसभा निकाल: आम आदमी पक्षाला दोन्ही राज्यांत निराशा नवी दिल्ली/ अहमदाबाद/ शिमला – प्रचंड गाजावाजा करत झालेल्या दोन राज्यांच्या विधानसभा निवडणुकांचे निकाल आज जाहीर झाले. त्यात गुजरात या पंतप्रधान नरेंद्र मोदी आणि गृहमंत्री अमित शहा यांच्या स्वत:च्या राज्यात भारतीय जनता पार्टीने विक्रमी विजय मिळवला आहे. हिमाचल प्रदेशात मात्र भाजपला सत्ता गमावावी लागली. या दोन्ही राज्यांत भाजप आणि कॉंग्रेस या…
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“A king was like a gardener”, his grandfather had told him once. “He nourishes new life, all the while weeding out that which is unsuccessful or harmful. He has to have his hands in the dirt, his head in the blazing, burning sun. But the kingdom is his garden, and he has to make it the best damn garden he can,”
~ Drishtaketu, Drishtaketu.
"जितू, सर्वात जास्त कशाचा त्रास होतो माहित आहे? आता- आता आरश्यात बघितल्यावर समोर तिचा चेहरा दिसत नाही! जी निराशा आणि तळमळ आजन्म मला अपल्या ताकदीने मृत्यूच्या जबड्यात ओढून घेण्याचा सतत प्रयत्न करत असते, तिच्याशी लढायची शक्ती आईकडूनच यायची. आणि मग ती नव्हती तरी आरश्यात पाहिल्यावर तिचा चेहरा दिसायचा, आणि एक क्षण वाटायचं कि हो, आहे ती माझ्याबरोबर! पण आता- आता तेही नाही! आता वाटतं, समुद्रात वाहून गेलेल्या, भटकणाऱ्या नावेसारखा झालो रे मी!"
~ Shikhandi, Wars and Weddings (trans: Jitu, do you know what bothers me the most(about all this)? That I don’t see her face in the mirror, looking back at me! The hopelessness and anguish that have haunted me across time and space, the apathy that threatens to push me straight into the jaws of death- Mother gave me the strength to fight against it all. And then- and then when she wasn’t there, at least, I could look into the mirror, see her face, and as if for a moment, feel like she was there with me. And now I don’t even have that! Now? I feel like a boat, without an oar or anchor, drifting aimlessly in the sea.”)
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आशा मत रखो,
निराशा नही होगी।
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सांस हैरान है, मन परेशान है
हो रही सी क्यों रूआसा ये मेरी जान है?
क्यों निराशा से है, आस हारी हुई?
क्यों सवालों का उठा सा दिल में तूफान है?
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1456.
पहले-पहल
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
पहाड़ की तलहटी में
सूर्यास्त की छाया है
कुहासे के चादर की
परिचित-सी फैली माया है।
आकाश पर लाली है
कुछ अद्वितीय और शानदार आवाज़ें
अब ख़ाली-ख़ाली हैं
स्वर अधिक चमकीले हैं
बेजान है, पर चेहरे रंगीले हैं।
अराजकता, भय और अवसाद
का जुलूस है
हताशा, निराशा, हलचल और भ्रांति
सब मायूस है
वीरान निर्जन पहाड़ की
सिर्फ़ एक सरकती परछाईं है
दूर तक ऐंठकर जो टिक गई
वो आत्म के द्वीप पर एकाकीपन की
काँटे संग धँसी गहराई है
ऐंठन की टीस में
सिमटकर देखता चेहरा है
अनुमान लग ही जाता है
क्या कुछ हो सकता है
पर अंत ही प्रारम्भ को
पहले-पहल घेरता है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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बाइस्कोप!
आओ बच्चो…………आओ बाइस्कोप दिखाऊँ
तुम्हें बचपन की कहानियों में छुपे रहस्य बताऊँ
ये छोटी सी ताकी बड़ी बड़ी कहानियाँ दिखलाए
मनोरंजन ही नहीं जीवन से परिचय भी करवाए!
इन कहानियों का…………मैं तो बस सूत्रधार हूँ
देस-परदेस की कहानियाँ बताने को बेक़रार हूँ
आज की कहानी के
टिकट का दाम है ……बस ��ार आना …….चार आना….
चार आना……हो सके तो लाना…..न हो तब भी आना….
रोकूँगा नहीं….बाइस्कोप के मज़े उठाने...भाग के आना….
भाग के आना…..भाग के आना….
आओ बैठो ताकी का ढक्कन हटाओ
बस अपनी आँख……ताकी में गढ़ाओ
और अब…….मेरी ही बात सुनते जाओ
बाइस्कोप देखो…...और मज़ा उठाओ
इस कहानी में एक देश में राज-काल है
जिसकी जनता का बड़ा ही बुरा हाल है
पनपता हुआ पूँजीवाद है….अधर में लटकता समाजवाद है
जेबें ख़ाली लिए खोखली….लाल रंगी वामपन्थी आवाज़ है
भौतिकवाद…..यथार्थवाद…..भक्तिवाद..….. दार्शनिकवाद
सब के सब ही बेहाल हैं वहाँ..…निरर्थक बना आदर्शवाद है
भोली प्रजा को भरमाते………धर्माधिकारियों की भरमार है
आशाएँ खोजती प्रजा पर……….....निराशा का दुष्प्रभाव है
पूँजीवादी हर तरफ़ फिरता है ख़ुशहाली की ढींगे हाँकता
वामपंथी ग़रीबी लाचारी बर्बादी की बस चीखें ही मारता
अस्तित्व खो चुका समाजवादी है अपने अवसर तलाशता
प्रजा हुई गरीब ….और बेईमान सेठ हुआ अमीर
हर चीज़ हड़पकर कहे….ये बस है उसका नसीब
स्वाँग रचे है राजा……मगर लूट में है पूरा शरीक
एक वज़ीर है……..वो राजा के बड़ा ही करीब है
मगर बंदा दिखता बड़ा ही अजीब-ओ-गरीब है
राजपाठ चलाने को……..वज़ीर ही ज़िम्मेदार है
धनवानों से उसका रिश्ता बड़ा ही बाकमाल है
हिस्सा है उसका भी जितना सेठ लूटता माल है
राजकोष का तो उसने किया पूरा ही बंटाधार है
हाँ फ़ौज का मुखिया…घुड़सवार सिपहसलार है
जनता पे ज़ुल्म ढानेवालों का वो बना सरदार है
लूट का धन बटोरकर….वो भी बना मालामाल है
ज़ुल्मियों से डरे जनता…भविष्य बना अंधकार है
कुछ बोले बिना चुपचाप सहे….जनता लाचार है
सत्ता की सबके सिरों पे…जो लटकती तलवार है
देखो धर्माचार्य बनके कैसे धोखा करे पाखंड रचे
नाम भुनाए लूट मचाए…भगवान को बदनाम करे
डरे हुए लोगों पर…लेकर नाम प्रभु का प्रपंच रचे
यहाँ चापलूसों की चापलूसी ही राजा का प्राश् है
चरमराती व्यवस्था में���.. मूल्यों का हुआ ह्रास है
प्रशासन की बैंड बज गई न्याय प्रणाली हताश है
झूठी खबरें फैलाने वाले तंत्र से….प्रजा निराश है
जातिगत समीकरणों की चपेट में आया समाज है
धर्मों में आपसी लड़ाइयों का पनप रहा पिशाच है
चारों तरफ़ दिखाई देता बस विनाश ही विनाश है
मगर प्रजा की व्यथा का सत्ता को कहाँ आभास है
बच्चो ये तो बस कहानी है…तुम नन्हे फूलों को चेतानी है
सूत्रधार ने यही बात तुम्हें……..बस फिर याद दिलानी है
कभी भूला बिसरा ही न देना…..तुम आपसी सौहार्द कहीं
चापलूसों की चालों से……तुम सतर्क रहना हर पल सभी
याद होगी बूढ़े किसान और उसके झगड़ते बेटों की कहानी
सुनाई थी न तुम्हें… जो गट्ठर में बँधी लकड़ियों की ज़ुबानी
मौक़ापरस्त बहुत हैं यहाँ तुम उनकी बातों में कभी न बहना
गट्ठर में बँधी लकड़ियों की तरह ही मज़बूती से इकट्ठे रहना
प्रलोभनों से विचलित न होना दुख सुख सब मिलके सहना
याद रहे ये देश है तुम्हारा इसका नाता तुमसे सदा है रहना
गरीब जनता की आवाज़ बनके उनके हक़ की बातें कहना
चाहे संघर्ष जीवन में आयें कितने भी उन्हें बस हँसके सहना!
बस खेल ख़त्म हुआ अब…. आँख ताकी से हटाओ
अपनी अपनी ताकी का ढक्कन…..वापिस लगाओ
तुम जाओ खेलो कूदो भागो दौड़ो और मौज मनाओ
बाइस्कोप लेकर मैं सूत्रधार अब यहाँ से जाता हूँ
इंतज़ार करना मेरा……
जब तक खोजकर एक नयी कहानी सुनाने लाता हूँ!
©deepjams4- some_wandering_thoughts
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राशि अनुसार मकर राशि में किस ग्रह के खराब होने से वो भ्रमित हो सके है हर काम में मन की बाधा आना और असफलता मिलती है?
मकर राशि (Capricorn) के लिए विशेष ग्रह शनि (Saturn) होता है। शनि के अशुभ होने से व्यक्ति को निम्नलिखित क्षेत्रों में मन की बाधा और असफलता का सामना हो सकता है:
करियर और पेशेवर जीवन: शनि के अशुभ होने से करियर और पेशेवर जीवन में मामूली संघर्ष हो सकता है। व्यक्ति को प्रोफेशनल जीवन में स्थिरता प्राप्त करने में मुश्किल हो सकती है और वे अपने लक्ष्यों को हासिल करने में विलम्ब का सामना कर सकते हैं।
संबंध और विवाह: शनि के अशुभ होने से व्यक्ति को संबंधों और विवाह में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। वे अपने साथी के चयन में संज्ञानात्मक संकोच और विलम्ब का महसूस कर सकते हैं।
आर्थिक स्थिति: शनि के अशुभ होने से व्यक्ति को आर्थिक संबंधों में संकटों का सामना करना पड़ सकता है। वे आर्थिक संबंधों में संज्ञानात्मक संकोच और निराशा का अनुभव कर सकते हैं।
सामाजिक स्थिति: शनि के अशुभ होने से व्यक्ति को सामाजिक स्थिति में आराम और संघर्ष ��ा सामना करना पड़ सकता है। वे समाज में स्थिरता प्राप्त करने में मुश्किलियों का सामना कर सकते हैं और अपनी स्थिति को सुधारने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ सकता है।
इसकी अधिक सूक्ष्म समझ हासिल करने के लिए कुंडली चक्र प्रोफेशनल २०२२ सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है। और सटीक जानकारी के लिए आप 8595675042 संपर्क कर सकते है.
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कुंडली में आंशिक काल सर्प दोष होने से जीवन में क्या दुष्प्रभाव होते है ?
काल सर्प दोष एक ज्योतिषीय दोष है जो कुंडली में राहु और केतु की विशेष स्थिति को संकेत करता है। इसे कुंडली में 'राहु-केतु सर्प दोष' भी कहा जाता है। काल सर्प दोष के होने से जीवन में कई प्रकार के दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जैसे:
धन संबंधी परेशानी: काल सर्प दोष के कारण धन संबंधी परेशानी हो सकती है। धन की निर्धारितता, धन का बिगड़ना, वित्तीय संकट आदि के लिए यह दोष जिम्मेदार हो सकता है।
परिवारिक समस्याएं: काल सर्प दोष के कारण परिवारिक संबंधों में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। परिवार के बीच विवाद, असंतुलन, और विवाह संबंधों में कठिनाई का सामना किया जा सकता है।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: काल सर्प दोष के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यह विभिन्न प्रकार की रोगों और तकलीफों का कारण बन सकता है।
करियर में असफलता: काल सर्प दोष के कारण करियर में असफलता और परेशानियां हो सकती हैं। कठिनाईयों, रोक-टोकों, या निराशा का अनुभव किया जा सकता है।
मानसिक तनाव: काल सर्प दोष से युक्त व्यक्ति में मानसिक तनाव और चिंता की समस्याएं हो सकती हैं। यह उन्हें चिंतित, अस्थिर, और असंतुष्ट बना सकता है।
आध्यात्मिक प्रगति में बाधाएं: काल सर्प दोष के कारण आध्यात्मिक प्रगति में भी बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। व्यक्ति की मानसिक शक्ति और आत्म-विश्वास पर असर पड़ सकता है।
काल सर्प दोष के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए ज्योतिषियों द्वारा कुछ उपायों की सिफारिश की जाती हैं, जैसे कि मंत्र जाप, दान-धर्म, पूजा-अर्चना, यंत्र-तंत्र, आदि। इन उपायों का उचित अनुसरण करने से व्यक्ति की स्थिति में सुधार हो सकता है।
कृपया ध्यान दें कि काल सर्प दोष का प्रभाव व्यक्ति की कुंडली के अनुसार भिन्न हो सकता है, और और अधिक जानकरी के लिए आप टोना टोटक सॉफ्टवेयर की मदद ले सकते है।
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सूफी फकीर हसन जब मरा। उससे किसी ने पूछा कि तेरे गुरु कितने थे? उसने कहाः गिनाना बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि इतने-इतने गुरु थे कि मैं तुम्हें कहां गिनाऊंगा! गांव-गांव मेेरे गुरु फैले हैं। जिससे मैंने सीखा, वही मेरा गुरु है। जहां मेरा सिर झुका, वहीं मेरा गुरु।’
फिर भी जिद्द की लोगों ने कि कुछ तो कहो, तो उसने कहा, ‘तुम मानते नहीं, इसलिए सुनो। पहला गुरु था मेरा--एक चोर।’ वे तो लोग बहुत चैंके, उन्होंने कहाः चोर? कहते क्या हो! होश में हो। मरते वक्त कहीं एैसा तो नहीं कि दिमाग गड़बड़ा गया है! चोर और गुरु?’
उसने कहाः हां, चोर और गुरु। मैं एक गांव में आधी रात पहंुचा। रास्ता भटक गया था। सब लोग सो गए थे, एक चोर ही जग रहा था। वह अपनी तैयारी कर रहा था जाने की। वह घर से निकल ही रहा था। मैंने उससे कहाः ‘भाई, अब मैं कहां जाऊं? रात आधी हो गई। दरवाजे सब बंद हैं। धर्मशालाएं भी बंद हो गईं। किसको जगाऊ नींद से? तू मुझे रात ठहरने देगा?’
उसने कहाः ‘स्वागत आपका।’ ‘लेकिन’, उसने कहाः ‘एक बात मैं जाहिर कर दंूः मैं चोर हूं। मैं आदमी अच्छे घर का नहीं हूं। तुम अजनबी मालूम पड़ते हो। इस गांव मंे कोई आदमी मेरे घर में नहीं आना चाहेगा। मैं दूसरों के घर में जाता हूं, तो लोग ��हीं घुसने देते। मेेरे घर तो कौन आएगा? मुझे भी रात अंधेरे में जब लोग सो जात हैं, तब उनके घरों में जाना पड़ता हैं। और मेरे घर के पास से लोग बच कर निकलते हैं। मैं जाहिर चोर हूं। इस गांव का जो नवाब है, वह भी मुझसे डरता और कंपता है। पुलिसवाले थक आते हैं। तुम अपने हाथ आ रहे हो! मैं तुम्हंे वचन नहीं देता। रात-बेरात लूट लूं! तो तुम जानो। ’
हसन ने कहा कि मैंने इतना सच्चा और ईमानदार आदमी कभी देखा ही नहीं था, जो खुद कहे कि मैं चोर हूं! और सावधान कर दे। यह तो साधु का लक्षण है। तो रुक गया। हसन ने कहा कि मैं रुकूंगा। तू मुझे लूट ही लेे, तो मुझे खुशी होगी।
सुबह-सुबह चोर वापस लौटा। हसन ने दरवाजा खोला। पूछाः ‘कुछ मिला?’ उसने कहाः ‘आज तो नहीं मिला, लेकिन फिर रात कोशिश करूंगा।’ ऐसा, हसन ने कहा, एक महीने तक मैं उसके घर रुका, और एक महीने तक उसे कभी कुछ न मिला।
वह रोज शाम जाता, उसी उत्साह उसी उमंग से--औैर रोज सुबह जब मैं पूछता--कुछ मिला भाई? तो वह कहता, अभी तो नहीं मिला। लेकिन क्या है, मिलेगा। आज नहीं तो कल नहीं तो परसों। कोशिश जारी रहनी चाहिए।
तो हसन ने कहा कि जब मैं परमात्मा की तलाश में गांव-गांव, जंगल-जंगल भटकता था और रोज हार जाता था, और रोज-रोज सोचता था कि है भी ईश्वर या नहीं, तब मुझे उस चोर की याद आती थी,कि वह चोर साधारण संपत्ति चुराने चला था; मैं परमात्मा को चुराने चला हूं। मैं परम संपत्ति का अधिकारी बनने चला हूं। उस चोर के मन में कभी निराशा न आई; मेरे भी निराशा का कोई कारण नहीं है। ऐसे मैं लगा ही रहा। इस चोर ने मुझे बचाया; नहीं तो मैं कई दफा भाग गया होता, छोड़ कर यह सब खोज। तो जिस दिन मुझे परमात्मा मिला, मैंने पहला धन्यवाद अपने उस चोर-गुरु को दिया।
तब तो लोग उत्सुक हो गए। उन्होंने कहा, ‘कुछ और कहो; इसके पहले कि तुम विदा हो जाओ। यह तो बड़ी आश्चर्य की बात तुमने कही; बड़ी सार्थक भी।
उसने कहाः और एक दूसरे गांव में ऐसा हुआ; मैं गांव में प्रवेश किया। एक छोटा सा बच्चा, हाथ में दीया लिए जा रहा था किसी मजार पर चढ़ाने को। मैंने उससे पूछा कि ‘बेटे, दीया तूने ही जलाया? उसने कहा, ‘हां, मैंने ही जलाया।’ तो मैंने उससे कहा कि ‘मुझे यह बता, यह रोशनी कहां से आती है? तूने ही जलाया। तूने यह रोशनी आते देखी? यह कहां से आती हैं?’
मैं सिर्फ मजाक कर रहा था--हसन ने कहा। छोटा बच्चा, प्यारा बच्चा था; मैं उसे थोड़ी पहेली में डालना चाहता था। लेकिन उसने बड़ी झंझट कर दी। उसने ��ूंक मार कर दीया बुझा दिया, और कहा कि सुनो, तुमने देखा; ज्योति चली गई; कहां चली गई?
मुझे झुक कर उसके पैर छूने पड़े। मैं सोचता था, वह बच्चा है, वह मेरा अहंकार था। मैं सोचता था, मैं उसे उलझा दंूगा, वह मेरा अहंकार था। उसने मुझे उलझा दिया। उसने मेरे सामने एक प्रश्न-चिह्न खड़ा कर दिया।
ऐसे हसन ने अपने गुरुओं की कहानियां कहीं।
तीसरा गुरु हसन ने कहा, एक कुत्ता था। मैं बैठा था एक नदी के किनारे--हसन ने कहा--और एक कुत्ता आया, प्यास से तड़फड़ाता। धूप घनी है, मरुस्थल है। नदी के किनारे तो आया, लेकिन जैसे उसने झांक कर देखा, उसे दूसरा कुत्ता दिखाई पड़ा पानी में, तो वह डर गया। तो वह पीछे हट गया। प्यास खींचे पानी की तरफ; भय खींचे पानी के विपरीत। जब भी जाए, नदी के पास, तो अपनी झलक दिखाई पड़े; घबड़ा जाए। पीछे लौट आए। मगर रुक भी न सके पीछे, क्योंकि प्यास तड़फा रही है। पसीना-पसीना हो रहा है। उसका कंठ दिखाई पड़ रहा है कि सूखा जा रहा है। और मैं बैठा देखता रहा। देखता रहा।
फिर उसने हिम्मत की और एक छलांग लगा दी--आंख बंद करके कूद ही गया पानी में। फिर दिल खोल कर पानी पीया, और दिल खोल कर नहाया। कूदते ही वह जो पानी में तस्वीर बनती थी, मिट गई।
*हसन ने कहा, ऐसी ही हालत मेरी रही। परमात्मा में झांक-झांक कर देखता था, डर-डर जाता था। अपना ही अहंकार वहां दिखाई पड़ता था, वही मुझे डरा देता था। लौट-लौट आता। लेकिन प्यास भी गहरी थी। उस कुत्ते की याद करता; उस कुत्ते की याद करता; सोचता। एक दिन छलांग मार दी; कूद ही गया; सब मिट गया। मैं भी मिट गया; अहंकार की छाया बनती थी, वह भी मिट गई; खूब दिल भर के पीया। कहै कबीर मैं पूरा पाया...।*
~PPG~
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लोग कहते है मेरे चेहरे पे मुस्कान बहुत हैं
धुआँ धुआँ सी ज़िन्दगी में भी पहचान बहुत है ..
निराशा तो बहुत हैं मेरी कश्ती में,
मगर तूफ़ानों से लड़ने का समान बहुत है ..
ना उम्मीद तो हुआ हज़ारों मर्तबा मैं,
लेकिन इस दिल की उम्मीदों में अभी जान बहुत है ..
टूटें पत्तों से भी ख़्वाब सजा लेता हूँ मैं,
क्योंकि सूखें सूखें से पत्तों पर भी मुझे मान बहुत हैं ।
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कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
जीवा दत्ता नाम के दो भाई पूर्ण गुरु की तलाश में भटक रहे थे। उन्होंने अनुमान लगाया था कि जिसके चरणामृत से सूखी डार हरी-भरी हो जाएगी वह पूर्ण गुरु होगा। इसकी तलाश के लिए कई संतों से ज्ञान सुना तथा उनके चरणामृत को सूखी डार में डाला किंतु निराशा ही हाथ लगी। तत्पश्चात कबीर परमेश्वर एक साधारण संत के भेष में उनको मिले। उनके चरणामृत से वह डार हरी-भरी हो गयी। जीवा दत्ता को विश्वास हुआ कि यह पूर्ण संत है। गुजरात में वर्तमान में वह वट वृक्ष दो-तीन एकड़ में फैला है। उसकी देख-रेख के लिए वहाँ एक कबीर आश्रम भी बना है।
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जीवा दत्ता नाम के दो भाई पूर्ण गुरु की तलाश में भटक रहे थे। उन्होंने अनुमान लगाया था कि जिसके चरणामृत से सूखी डार हरी-भरी हो जाएगी वह पूर्ण गुरु होगा। इसकी तलाश के लिए कई संतों से ज्ञान सुना तथा उनके चरणामृत को सूखी डार में डाला किंतु निराशा ही हाथ लगी।
#कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
Kabir Prakat Diwas 4 June
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#कबीरपरमात्मा_के_जीवित_प्रमाण
🍃जीवा दत्ता नाम के दो भाई पूर्ण गुरु की तलाश में भटक रहे थे। उन्होंने अनुमान लगाया था कि जिसके चरणामृत से सूखी डार हरी-भरी हो जाएगी वह पूर्ण गुरु होगा। इसकी तलाश के लिए कई संतों से ज्ञान सुना तथा उनके चरणामृत को सूखी डार में डाला किंतु निराशा ही हाथ लगी। तत्पश्चात कबीर परमेश्वर एक साधारण संत के भेष में उनको मिले। उनके चरणामृत से वह डार हरी-भरी हो गयी। जीवा दत्ता को विश्वास हुआ कि यह पूर्ण संत है। गुजरात में वर्तमान में वह वट वृक्ष दो-तीन एकड़ में फैला है। उसकी देख-रेख के लिए वहाँ एक कबीर आश्रम भी बना है।
Kabir Prakat Diwas 4 June
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छिपे अलफ़ाज़
बचपन में सितारों को यूंही गिना करती थी,
इस बात से अनजान के वही जिंदगी थी।
फ़िर कुछ पल बीते,
उन्ही तारों में जिंदगी का मतलब खोजने लगी,
निराशा तो जायज़ थी।
आज अचानक ऐसा लगा कि मतलब खोजने की असीम भाग दौड़ ही ��ी, जो मुझे जिंदगी जीने से रोके हुए थी।
तो क्यों ढूंढूं मैं उसे जिसे कोई नहीं जानता,
क्यों अपना वक्त ज़ाया करूं उसपर जिस से न कोई है फ़ायदा,
जीती चलूंगी इन सितारों के संग, क्योंकि इन्हें देख देख ही हो जाते हैं मेरे जिंदगी से मतभेद खत्म।
कितनी हैरत-अंगेज़ है जिंदगी भी,
जिन अंधेरों से कभी डराया करती थी,
आज उन्ही अंधेरों मैं चैन दिलाती है।
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