#दिल्ली दंगे
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दिल्ली दंगा: आरोपी शरजील इमाम को राहत नहीं, जमानत पर सुनवाई से SC का इनकार
दिल्ली दंगे के आरोपी शरजील इमाम को राहत नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने शरजील इमाम की जमानत पर सुनवाई से इनकार कर दिया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि रिट याचिका होने के कारण मामले पर विचार नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा है कि वह सुनवाई की अगली तारीख पर जमानत याचिका पर सुनवाई करे और जितनी जल्दी हो सके इस पर फैसला करे. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच इस मामले की सुनवाई…
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दिल्ली दंगे: हाईकोर्ट ने उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत याचिका 25 नवंबर तक स्थगित की
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक बड़ी साजिश का आरोप लगाने वाले यूएपीए मामले के संबंध में उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य आरोपी व्यक्तियों द्वारा दायर जमानत याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई स्थगित कर दी। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिन्दर कौर की खंडपीठ के आज नहीं बैठने के कारण मामले की सुनवाई स्थगित कर दी गई। जमानत याचिका पर अगली सुनवाई 25 नवंबर को…
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ज़रा याद कीजिये, सोनिया गांधी का बयान: घरों से बाहर निकलिये, सड़कों पर उतरिये।
और
उसके तुरन्त बाद दिल्ली में भीषण दंगे।
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गोधरा कांड पर नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू के कारण SP से निकाले गए थे शाहिद, अब जयंत से दूरियां, इनसाइड स्टोरी
अभय सिंह राठौड़, लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 में सभी की नजरें मुस्लिम वोटरों पर ग���़ी हुई हैं। यूपी ही नहीं, बल्कि पूरे देश में मुसलमानों की ठीकठाक आबादी है। अकेले यूपी में 20 फीसदी के करीब मुसलमान वोटर हैं। साथ ही 29 लोकसभा सीट ऐसी हैं, जिन पर मुस्लिम वोटर जीत-हार की निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। इसी क्रम में NDA का हिस्सा बनते ही एक बड़े मुस्लिम नेता ने राष्ट्रीय लोकदल का साथ छोड़ दिया है। RLD के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने पार्टी से इस्तीफा देते हुए कहा कि मैं खामोशी से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को समाप्त होते नहीं देख सकता हूं। मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी से भी आहत हूं। इसके साथ ही उन्होंने माफिया मुख्तार अंसारी की मौत मामले में जांच की मांग की थी। गुजरात के गोधराकांड के बाद तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने पर सपा ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। आज हमला देश के संवैधानिक ढांचों पर है- शाहिद सिद्दीकी शाहिद सिद्दीकी ने बताया कि उन्होंने RLD मुखिया जयंत चौधरी को अपना इस्तीफा भेज दिया है। उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की सदस्यता और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से अपना त्यागपत्र दे दिया है। उन्होंने कहा कि आज देश के संवैधानिक ढांचों और लोकतंत्र के ऊपर हमला है। ऐसे में किसी का चुप रहना पाप है। शाहिद ने कहा कि बीजेपी नेताओं से अपील करता हूं कि उन्हें अटल जी के रास्ते को अपनाना चाहिए और राजधर्म निभाने की बात करनी चाहिए। आज जिस तरीके से मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार किया जा रहा है। नेताओं के 15-15 साल पुराने मुकदमे निकाले जा रहे हैं। चुनाव के ठीक समय ऐसा होना ये राजधर्म नहीं है। बीजेपी नेताओं से ये की अपील इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बीजेपी नेता जो अटल जी और बीजेपी की नीति में विश्वास करते हैं, उन्हें भी इसका विरोध करना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों के लीडरों से अपील है कि भारत का लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण है। सत्ता आती जाती रहती है। इमरजेंसी का हमने विरोध किया था। हमने जेल काटी थी। ये इसलिए नहीं किया कि हम इंदिरा गांधी या कांग्रेस के विरोधी थे। हम देश के हित में खड़े होना चाहते थे। आज भी हम देश के हित में खड़े होना चाहते हैं। सवाल इस समय बीजेपी, आरएलडी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का नहीं है। सवाल हिंदुस्तान और लोकतंत्र का है। पूरी दुनिया में हमारी पहचान हमारे लोकतंत्र की वजह से है। इस पहचान और इज्जत को आगे बढ़ाना है। मुख्तार अंसारी की मौत पर कही थी ये बात मऊ से 5 बार के विधायक माफिया मुख्तार अंसारी की मौत पर भी आरएलडी के ��पाध्यक्ष रहे शाहिद सिद्दीकी ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी। शाहिद ने इस मामले में जांच की मांग की थी। उन्होंने कहा कि मुख्तार अंसारी महान स्वतंत्रता सेनानी और महात्मा गांधी के सहयोगी डॉ. एम.ए. अंसारी के परिवार से आते हैं। स्थानीय माफिया द्वारा उनके परिवार पर किए गए हमलों के कारण वो (मुख्तार अंसारी) आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो गए थे। उनकी मौत की पूरी जांच होनी चाहिए, क्योंकि यह संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है। मायावती के खिलाफ बोलने पर बसपा ने किया था निष्कासित पूर्व राज्यसभा सांसद शहीद सिद्दीकी राष्ट्रीय लोकदल में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे। शाहिद पत्रकार होने के साथ ही नई दिल्ली से प्रकाशित उर्दू साप्ताहिक पत्रिका के मुख्य संपादक भी हैं। शाहिद सिद्दीकी का जन्म 1951 में पत्रकारों और लेखकों के परिवार में हुआ था। उनके पिता मौलाना अब्दुल वहीद सिद्दीकी एक पत्रकार और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के नेता थे। शाहिद सिद्दीकी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की थी। 1997-99 तक कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख रह चुके हैं। बाद में शाहिद सपा में शामिल हो गए थे। 2002 से 2008 तक सपा में उन्हें राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वो राज्यसभा सांसद रहे चुके हैं। जुलाई 2008 में बसपा में शामिल हो गए थे, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ बोलने के कारण उन्हें 2009 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। गोधरा कांड के बाद पीएम मोदी का इंटरव्यू करने पर सपा ने किया था निष्कासित पेशे से पत्रकार शाहिद सिद्दीकी को गोधरा कांड के बाद अल्पसंख्यक विरोधी दंगों पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार लेने के लिए उन्हें जुलाई 2012 में समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। उस इंटरव्यू में मोदी ने कहा था कि अगर मैं दोषी हूं तो मुझे फांसी दे दो। कवर-पेज साक्षात्कार छह पृष्ठों का था और इसमें गुजरात में मुसलमानों की स्थिति, गोधरा के बाद के दंगे और अन्य संवेदनशील मुद्दे शामिल थे। सिद्दीकी ने उन्हें अस्वीकार करने के समाजवादी पार्टी के रुख को महज एक मजाक करार देते हुए कहा था कि मैं मुलायम सिंह यादव सहित समाजवादी पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं की उपस्थिति में पार्टी में… http://dlvr.it/T4yBNz
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उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली दंगे के आरोपियों की जमानत को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। राजधानी दिल्ली के पूर्वी-उत्तरी जिले में फरवरी 2020 में हुए दंगे 53 लोग मारे गए थे, जबकि 700 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस मामले के आरोपियों तीनों छात्र नेताओं को पुलिस ने मई 2020 में गिरफ्तार किया था, जिन्हें करीब एक साल तक जेल में रहना पड़ा। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अह��नुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पुलिस की अपील खारिज करते हुए कहा कि जमानत की सुनवाई लंबी नहीं होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने अपील खारिज करने के साथ ही इस तथ्य पर भी जोर दिया कि इस उच्च न्यायालय के आदेश को मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा। पीठ ने दिल्ली पुलिस की उन दलीलों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उन्हें ठुकरा दी, जिनमें इस मामले को बुधवार तक स्थगित करने की गुहार लगाई थी। पीठ ने कहा कि इस मामले को कई बार स्थगित किया गया है और इस मामले में अब कुछ भी नहीं बचा है, खासकर तब जब आरोपी करीब दो साल से जमानत पर हैं। शीर्ष अदालत के समक्ष दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय के फैसला पर सवाल उठाते हुए दलील दी थी कि आरोपियों को जमानत देने का कोई ठोस आधार नहीं है। उच्च न्यायालय ने चार्जशीट के निष्कर्षों की अनदेखी। अदालत ने सबूतों की वजाय गैर जरूरी तथ्यों को अपने फैसले का आधार बनाया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत 2020 के मई में गिरफ्तार तीनों आरोपियों को 15 जून 2021 को जमानत दी थी। दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय के फैसले खिलाफ अपील दायर की थी, जिस पर उच्चतम न्यायालय ने जून में ही नोटिस जारी किया था।
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Karnataka Assembly Elections: पीएम मोदी आज से कर्नाटक में, दो दिनों में 6 चुनावी सभा और दो रोड शो करेंगे
इंटरनेट डेस्क। कर्नाटक में 10 मई को विधानसभा चुनाव है और उसके पहले भाजपा अपनी और से चुनाव प्रचार में पूरा दमखम दिखाने वाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज से दो दिनों तक कनार्टक के दौर पर है और इन दो दिनों में 6 सभाओं को संबोधित कर पार्टी के वोट मांगेगे। मोदी इस धुंआधार दौरे में अपनी पार्टी और सरकार के कामों को गिनाएंगे। मोदी अपने दौरे के दौरान छह जनसभाओं को संबोधित करेंगे और दो जगहों पर रोड शो करेंगे। मोदी दिल्ली से विशेष विमान से बीदर हवाई अड्डे पर आएंगे और हेलीकॉप्टर से बीदर जिले के हुमनाबाद जाएंगे। सुबह 11 बजे एक जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद वह विजयपुरा में जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद कुड़ाची जाएंगे जहां वह दोपहर करीब पौने दो बजे लोगों को संबोधित करेंगे। उधर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी चुनाव प्रचार में लगे है। उन्होंने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा और कहा कि कांग्रेस सरकार के दौरान 80 सांप्रदायिक दंगे हुए। नड्डा ने आने वाले चुनावों में बेहतर नतीजों के लिए लोगों से भाजपा को वोट देने की अपील की है। PC- ndtv.in Read the full article
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Sambhajinagar Riots | महाराष्ट्र: ठाकरे गुट का बड़ा बयान, कहा- संभाजीनगर दंगे के मास्टरमाइंड हैं फडणवीस और CM शिंदे
File – Photo नई दिल्ली/मुंबई. जहां एक तरफ बीती बुधवार रात छत्रपति.संभाजीनगर (Chatrapati Sambhajinagar) के किराडपुरा इलाके में दो समुदायों के बीच भयंकर झड़प हुई थी। वहीं मारपीट, पत्थरबाजियों के साथ पुलिस के वाहन समेत कई निजी वाहन जला दिए गए। इस अचानक भड़की हिंसा में 4 लोग घायल हुए। अब तक पुलिस ने 45 लोगों को अब तक गिरफ्तार किया है। फिलहाल वहीं स्थिति नियंत्रण में बताई जा रही है। मामले पर राजनीति…
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Bharat Jodo Yatra:हनुमान दर्शन कर यात्रा शुरू करेंगे राहुल, दंगा प्रभावित इलाकों में जाकर देंगे बड़ा संदेश - Rahul Gandhi Will Start Bharat Jodo Yatra After Hanuman Temple Visit
Bharat Jodo Yatra:हनुमान दर्शन कर यात्रा शुरू करेंगे राहुल, दंगा प्रभावित इलाकों में जाकर देंगे बड़ा संदेश – Rahul Gandhi Will Start Bharat Jodo Yatra After Hanuman Temple Visit
bharat Jodo Yatra- Rahul Gandhi – फोटो : Amar Ujala ख़बर सुनें ख़बर सुनें राहुल गांधी दिल्ली के प्रसिद्ध मरघट वाले हनुमान जी के दर्शन कर तीन जनवरी से भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) के दूसरे चरण की शुरुआत करेंगे। इसके बाद पुराने लोहे के पुल से होते हुए यात्रा शास्त्री पार्क, सीलमपुर, मुस्तफाबाद और गोकलपुरी की उस एरिया से गुजरेगी, जहां फरवरी 2020 में दंगे भड़क उठे थे और इसमें 53 लोगों को…
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✒ सुप्रीम कोर्ट का गोधरा मामले में अहम फैसला
✒ सुप्रीम कोर्ट का गोधरा मामले में अहम फैसला
पंडित श्याम जोशी उम्रकैद की सजा काट रहे गोधरा ट्रेन अग्निकांड के दोषी को जमानत दी सुप्रीम कोर्ट ने नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उम्रकैद की सजा काट रहे गोधरा ट्रेन अग्निकांड के एक दोषी को जमानत दे दी । इसी घटना के बाद गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि दोषी 17 साल से जेल में है और उसकी भूमिका ट्रेन पर…
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सी.आर.पी.सी. की धारा 144
परिचय
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.), 1973 की धारा 144 के तहत, एक जिला मजिस्ट्रेट, एक उप-मंडल (सब डिविजनल) मजिस्ट्रेट, या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत (ऑथोराइज्ड) कोई अन्य प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) मजिस्ट्रेट, कथित खतरे या उपद्रव के तत्काल मामलों को रोकने और उनका इलाज करने के आदेश जारी कर सकता है, यह एक औपनिवेशिक (कोलोनियल) युग का क़ानून है, जिसे संहिता में संरक्षित किया गया है। धारा 144, उन मामलों मे लागू होती है जहां आसन्न (इमिनेंट) उपद्रव या किसी घटना के संदिग्ध खतरे की परिस्थितियों में मानव जीवन या उसकी संपत्ति को समस्या या कोई नुकसान पहुंचाया जा सकता है। आम तौर पर सी.आर.पी.सी. की धारा 144 के तहत सार्वजनिक समारोहों पर रोक लगा दी जाती है। इतिहास में, धारा 144 का इस्तेमाल उन रैलियों को रोकने के प्रयास में कुछ बाधाएं लगाने के लिए किया जाता है जो दंगे या अन्य प्रकार की हिंसा को भड़का सकती हैं। जब कोई आपात स्थिति होती है, तो कार्यकारी (एक्जीक्यूटिव) मजिस्ट्रेट को धारा 144 लागू करने का अधिकार दिया जाता है। इंटरनेट शटडाउन और दूरसंचार (टेलीकॉम) सेवाओं पर प्रतिबंध अक्सर धारा 144 के तहत लागू किए जाते हैं। हाल ही की कुछ घटनाओं ने पिछले कुछ वर्षों में इस प्रावधान की लोकप्रियता को और महत्व को और अधिक बढ़ा दिया है। पिछले दो वर्षों में फैली कोविड-19 की बीमारी में वृद्धि के कारण, सी.आर.पी.सी. की धारा 144 को भारत भर के कई स्थानों पर लागू किया गया था। कुछ हालिया उदाहरणों में निम्नलिखित शामिल हैं:- पश्चिमी तट पर संभावित आतंकवादी खतरे के बारे में खुफिया रिपोर्टों के परिणामस्वरूप, 12 फरवरी, 2020 कोउत्तरी गोवा क्षेत्र में धारा 144 लागू की गई थी। एक अधिसूचना (नोटिफिकेशन) में, उत्तरी गोवा के जिला मजिस्ट्रेट ने कहा था कि यह धारा, 11 फरवरी से 10 अप्रैल तक 60 दिनों तक के लिए प्रभाव में रहेगी। - मकबूल भट और अफजल गुरु और मकबूल भट की संबंधित वर्षगांठ (एनिवर्सरी) के सम्मान में, जम्मू और कश्मीरमें 8 से 10 फरवरी, 2022 तक इंटरनेट बंद रहा और धारा 144 लागू की गई थी। - कोरोना वायरस के प्रसार (स्प्रेड) को रोकने के लिए, जिसने पहले ही दुनिया भर में हजारों लोगों की जान ले ली थी, दिल्लीसरकार ने 23 मार्च, 2020 को धारा 144 लागू की थी। जैसे जैसे ही पूरे भारत में वायरस का विस्तार हुआ, वैसे ही कुछ राज्यों ने दिल्ली सरकार की तरह धारा 144 को लागू करना शुरू कर दिया, ताकि कोविड-19 महामारी के स्थानीय प्रसार को रोका जा सके। - मुंबई शहर में कोरोना वायरस के मामलों में लगातार वृद्धि होने के कारण 17 सितंबर, 2020 कोमुंबई में धारा 144 के तहत प्रतिबंध लागू किए गए थे। 2020 की शुरुआत से पूरी दुनिया में कोविड -19 महामारी की चपेट में आने के साथ, मुंबई भारत के सबसे ज्यादा प्रभावी शहरों में से एक रहा है और यह कार्य प्रसार को कम करने के लिए किया गया था, जैसा कि कई अन्य शहरों में किया गया था। - धारा 144 का मूल लक्ष्य उन जगहों पर कानून और व्यवस्था को बनाए रखना है जहां अशांति भड़क सकती है और रोज के जीवन में परेशानियां ला सकती है। - यह निर्दिष्ट अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिकशन) के भीतर किसी भी प्रकार के हथियारों को रखने और ले जाने पर सीमाएं लगाता है। इस तरह के अपराध के लिए अधिकतम सजा तीन साल की जेल है। - इस प्रतिबंध के प्रभावी होने के दौरान सभी सार्वजनिक समारोहों और विरोध प्रदर्शनों पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहता है। - इसके प्रभावी होने तक सभी शैक्षणिक संस्थान बंद रहते है और इस खंड के तहत जारी आदेश के अनुसार कोई सार्वजनिक आंदोलन नहीं किया जाता है। - कानून अधिकारियों को एक अवैध सभा को तोड़ने से रोकने के कार्य को एक दंडनीय अपराध मा��ा जाता है। - क्षेत्र में इंटरनेट के उपयोग को प्रतिबंधित करने की क्षमता भी अधिकारियों को दी गई है। - अधिकारियों को जल्द से जल्द तैनात किया जाना चाहिए ताकि सार्वजनिक शांति और सद्भाव की रक्षा की जा सके। - ऐसी स्थितियों में जहां सार्वजनिक हित और निजी अधिकारों के बीच कुछ असंगति होती है, वहां निजी अधिकारों को अस्थायी रूप से निलंबित (सस्पेंडेड) किया जा सकता है। - धारा 144 के तहत एक कार्यवाही में, संपत्ति के मालिकाना हक, अधिकारों की पात्रता, या नागरिक मुद्दों के संबंध में कोई समाधान नहीं किया जा सकता है। - मजिस्ट्रेट को धारा 144 के तहत उन अधिकारों के समर्थन में और उन लोगों के खिलाफ अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए जो उनके कानूनी अभ्यास में बाधा डालते हैं, जहां उन प्रश्नों को पहले ही दीवानी अदालतों या न्यायिक घोषणाओं द्वारा हल किया जा चुका है। यह उसे आपात स्थितियों के दौरान उस कार्य को प्रभावी ढंग से करने की अनुमति देगा। - सार्वजनिक अशांति को तुरंत रोक सकते हैं, या - एक संभावित खतरे को जल्दी से संबोधित कर सकते हैं। - कानूनी रूप से नियोजित किसी व्यक्ति को बाधा, परेशानी या चोट; - मानव जीवन, स्वास्थ्य, या सुरक्षा के लिए खतरा; या - सार्वजनिक शांति में अशांति, जैसे दंगा, जो एक निर्देश को जारी करने की अनुमति देता है। - मजिस्ट्रेट के पास इस खंड के तहत एकतरफा आदेश जारी करने का अधिकार होता है, लेकिन आम तौर पर उस व्यक्ति को नोटिस दिया जाता है जिसके खिलाफ आदेश जारी किया जा रहा है। मजिस्ट्रेट को केवल विकट परिस्थितियों में एक पक्षीय आदेश जारी करना चाहिए। - जिन लोगों के साथ आदेश के द्वारा गलत किया गया था, उन्हें भी उपयुक्त आधार पर इसके लिए लड़ने का अधिकार है। यह इस विचार को बल देता है कि इस खंड द्वारा प्रदान किए गए अधिकार मनमाने नहीं है। - मजिस्ट्रेट के आदेश का विरोध करने वाले व्यक्ति को भी सुनवाई का मौका दिया जाता है और उपरोक्त का समर्थन करने के लिए कारण दिखाने का मौका दिया जाता है। नतीजतन, यह हिस्सा प्राकृतिक न्याय के मानदंडों (नॉर्म) का भी अनुपालन (कॉम्प्लाइ) करता है। - न्यायालय ने आगे कहा कि मजिस्ट्रेट की कार्रवाई अधिक उचित और ठोस कारण पर आधारित थी क्योंकि पीड़ित पक्ष को निर्णय की वैधता का विरोध करने का अधिकार दिया गया था। - अंत में, तथ्य यह है कि धारा 144 के तहत आदेश अपील के अधीन नहीं है, उच्च न्यायालय द्वारा संहिता कीधारा 435 के तहत संशोधित करने के अधिकार के लिए क्षतिपूर्ति की जाती है जब इसे संहिता की धारा 439 के साथ संयोजन (कंजंक्शन) में पढ़ा जाता है। उच्च न्यायालय या तो निर्णय को उलट सकता है या मजिस्ट्रेट से प्रासंगिक तथ्यों का अनुरोध कर सकता है। - मुद्दा यह है कि यह बहुत व्यापक है और इस धारा की भाषा इतनी अस्पष्ट है कि यह एक मजिस्ट्रेट को पूर्ण अधिकार प्रदान कर सकती है और जिसका दुरुपयोग उसके द्वारा किया जा सकता है। - प्रभावित पक्षों ने अक्सर दावा किया है कि यह खंड बहुत अधिक व्यापक है और मजिस्ट्रेट को अनुचित बिना किसी सीमा की शक्ति देता है। आदेश के खिलाफ प्रारंभिक कानूनी बचाव एक संशोधन आवेदन है, जिसे मूल जारीकर्ता प्राधिकारी (इश्यूइंग अथॉरिटी) को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। - इसके अतिरिक्त, यह सुझाव दिया गया है कि एक बहुत बड़े क्षेत्र में निषेधाज्ञा लागू करना अनुचित है क्योंकि विभिन्न स्थानों में अलग-अलग सुरक्षा स्थितियां होती हैं और अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है। - यदि आदेश किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो वे उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर कर सकते हैं। हालांकि, जो लोग इसे गलत महसूस करते हैं, उनका तर्क है कि उच्च न्यायालय के शामिल होने से पहले ही राज्य ���े अक्सर उनके अधिकारों का उल्लंघन किया होगा। - स्वयं मजिस्ट्रेट के लिए एक पुनरीक्षण आवेदन इस तरह के आदेश का सबसे तत्काल प्रतिवाद (काउंटरमेजर) है।
सी.आर.पी.सी. की धारा 144 की प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) में सुधार के लिए सुझाव
आपात स्थिति से निपटने के लिए सी.आर.पी.सी. की धारा 144 का उपयोग बहुत सहायक साबित हो सकता है। कार्यकारी (एग्जीक्यूटिव) शाखा दुरुपयोग की चपेट में है क्योंकि कोई विशेष न्यायिक निगरानी नहीं है और विशिष्ट उद्देश्यों के साथ व्यापक कार्यकारी शक्तियों का कोई सटीक तत्व मौजूद नहीं है। उसी के आलोक में, मजिस्ट्रेट को इस धारा के अनुसार कार्य करने से पहले एक जांच करनी चाहिए और स्थिति की तात्कालिकता पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा, विधायिका को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान के मौलिक अधिकारों के तहत व्यक्तियों को दी गई अन्य स्वतंत्रताओं को बनाए रखने की आवश्यकता और तत्काल संवेदनशील स्थितियों से निपटने के लिए पूर्ण शक्ति प्रदान करने की आवश्यकता के बीच एक संतुलन बनाना चाहिए।
निष्कर्ष
यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि, संभावित रूप से मनमानी और विवेकाधीन होने के बावजूद, धारा 144 संकेतकों की सरणी (एरे ऑफ़ इंडिकेटर) का एक अनिवार्य घटक है जो किसी भी जिले के कार्यकारी निकाय द्वारा शुरू किया जाता है ताकि न्यायिक घोषणाओं और अकादमिक टिप्पणियों के आलोक में संबंधित धारा के सावधानीपूर्वक विश्लेषण के बाद तत्काल स्थितियों से बचने के साथ-साथ प्रबंधन भी किया जा सके। इस धारा की संवैधानिकता पर सवाल उठाने के खिलाफ कई कानूनी कार्रवाइयां भी की गई हैं, और इसे बनाए रखने वाले कई फैसले भी हुए हैं। हालांकि इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट को कई विवेकाधीन शक्तियां दी गई हैं, लेकिन किसी भी मनमानी या अन्यायपूर्ण आदेश को रोकने के लिए वे शक्तियां कई प्रतिबंधों के अधीन होती हैं। इस शक्ति का उपयोग अधिक तार्किक (लॉजिकल) है क्योंकि उच्च न्यायालय के पास इस खंड के तहत मजिस्ट्रेट के निर्णय की समीक्षा करने क�� अधिकार है।इसके अलावा, दंगों में वृद्धि और सार्वजनिक शांति के लिए खतरा पैदा करने वाली अन्य स्थितियों के कारण मजिस्ट्रेटों के पास इन शक्तियों का होना आवश्यक हो गया है। यह, ये सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि आम लोगों को वह सुरक्षा और शांति मिल सके, जो उनके जीवित रहने के लिए बहुत जरूरी है। हालांकि, इस बिंदु पर, यह तर्क दिया जा सकता है कि तत्काल स्थितियों को संबोधित करने के लिए विधायिका के पूर्ण शक्तियों के अनुदान (ग्रांट) और संविधान के मौलिक अधिकार, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, जब तक कि तत्काल या असामान्य परिस्थितियां मौजूद न हों, के तहत नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अन्य स्वतंत्रता की रक्षा करने की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।यदि मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को कोई खतरा होता है, या किसी दंगे या विवाद की संभावना होती है, तो राज्य सरकार आधिकारिक राजपत्र (ऑफिशियल गैजेट) में प्रकाशन द्वारा अन्य निर्देश जारी कर सकती है। मजिस्ट्रेट के आदेश को कानूनी बल के बिना एक आदेश के रूप में माना जाना चाहिए और उसमें निहित राय की अभिव्यक्ति को किसी भी कानूनी बल या प्रभाव के बिना माना जाना चाहिए, यदि अधिकार क्षेत्र को मानने के लिए यह महत्वपूर्ण शर्त मौजूद नहीं है। इस खंड का उपयोग केवल आपातकालीन स्थितियों में ही किया जाना चाहिए और इसके तहत किसी भी अन्य कानूनी प्रावधानों को बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जो अधिक उपयुक्त हो सकते हैं और मजिस्ट्रेट को एक जांच करनी चाहिए और इस खंड के तहत आगे बढ़ने से पहले स्थिति की तात्कालिकता को भी नोट करना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफ.ए.क्यू.)
1. सी.आर.पी.सी. की धारा 144 क्या है?
1973 की आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 144 किसी भी राज्य या क्षेत्र के कार्यकारी मजिस्ट्रेट को किसी विशेष स्थान पर चार या अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाने का आदेश देने की शक्ति दे सकती है।
2. सी.आर.पी.सी. की धारा 144 के तहत अपराध की प्रकृति क्या है?
सी.आर.पी.सी. की धारा 144 के तहत अपराध प्रकृति में आपराधिक, संज्ञेय और जमानती होता है।
3. सी.आर.पी.सी. की धारा 144 लागू करने का क्या कारण है?
सी.आर.पी.सी. की धारा 144 को लागू करना वैध है जब इसका उपयोग परेशानी, मानव जीवन को चोट पहुंचाने और सार्वजनिक शांति में अशांति को प्रतिबंधित करने के लिए किया जा रहा है। इस धारा के तहत आदेश एक पक्ष को दूसरे पक्ष को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं लगाया जाना चाहिए।
4. सी.आर.पी.सी. की धारा 144 की आलोचना क्यों की गई है?
इस धारा के साथ कुछ मुद्दे यह भी हैं कि यह अत्यधिक व्यापक, अस्पष्ट है, और इसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है। इसके अलावा, राहत मिलने की प्रक्रिया बेहद धीमी है। इसके अतिरिक्त, एक बहुत बड़े क्षेत्र में निषेधाज्ञा लागू करना अनुचित है। Read the full article
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दिल्ली दंगों के दौरान पुलिसकर्मी की हत्या में आरोपी महिला नोएडा से गिरफ्तार
दिल्ली दंगों के दौरान पुलिसकर्मी की हत्या में आरोपी महिला नोएडा से गिरफ्तार
पुलिस ने कहा कि नोएडा के सेक्टर-63 में कॉगेंट बिल्डिंग के इलाके के पास एक जाल बिछाया गया था। (प्रतिनिधि) नई दिल्ली: एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या की आरोपी 27 वर्षीय एक महिला को उत्तर प्रदे�� के नोएडा से गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने कहा कि लाल के अलावा, शाहदरा के तत्कालीन डीसीपी अमित शर्मा और तत्कालीन…
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2020 दिल्ली दंगे: पथराव, घायल करने के लिए 6 के खिलाफ आरोप
2020 दिल्ली दंगे: पथराव, घायल करने के लिए 6 के खिलाफ आरोप
इससे पहले न्यू उस्मानपुर पुलिस ने छह आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में कथित तौर पर पथराव करने और एक व्यक्ति को घायल करने के लिए छह लोगों के खिलाफ दंगा करने और ‘गैर इरादतन हत्या’ करने के प्रयास के आरोप तय किए हैं। अदालत 25 फरवरी, 2020 को उस्मानपुर इलाके में हुए पथराव के एक मामले की सुनवाई कर रही थी,…
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पुराने नोकरशाहों की चिट्ठी के मायने क्या है?
देश के प्रधानमंत्री को पुराने नौकरशाहों ने चिट्ठी लिख कर बढ़ते हुए नफरत के वातावरण पर उनकी चुप्पी पर निशाना साधा है । देश की सत्ता के सर्वोच्च पदों का सुख भोग चुके इन नौकरशाहों को अब देश मे अराजकता, नफरत व साम्प्रदायिकता का माहौल नजर आ रहा है । ये वही शिखर पुरुष हैं, जिनके काल मे कश्मीरी पंडितों का सामूहिक नरसंहार हुआ, दिल्ली में सिखों का सामूहिक नरसंहार हुआ, हरियाणा के मेवात क्षेत्र से हिंदुओं…
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माननीय @AmitShah @AmitShahOffice @HMOIndia ,
Exit Poll के बाद देश में:
गृहयुद्ध जैसी स्थिति निर्मित करने की,
हिंसा-दंगे-बवाल-उत्पात-अराजकता की साज़िश रची/की जा सकती है।
बिहार,
दिल्ली,
कर्नाटक,
केरल,
पश्चिम बंगाल,
तेलंगाना पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता।
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मौलाना तौकीर रजा कोर्ट में नहीं हुए हाजिर, जानिए क्या है मामला
बरेली: (आईएमसी) प्रमुख मौलाना तौकीर रज़ा मामले में सोमवार को बरेली कोर्ट में सुनवाई हुई। तौकीर रज़ा अदालत में हाजिर नहीं हुए। इस पर कोर्ट ने नाराज़गी जताई और गैर जमानती वारंट जारी किया। अदालत में पेश नहीं होने पर संपत्ती कुर्क के भी आदेश दिए। अगली सुनवाई 8 अप्रैल तय हुई है।जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी सुनिति पाठक ने बताया कि जिला जज विनोद कुमार दुबे अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 08 अप्रैल तय कर दी है। अगर मौलाना तौकीर अदालत में हाज़िर नहीं हुए तो उनकी संपत्ति कुर्क करने की कार्रवाई होगी। दो बार जारी हो चुका है गैरजमानती वारंट कोर्ट मौलाना तौकीर रज़ा को 2010 हुए बरेली दंगे का मास्टरमाइंड करार दे चुका है। उनके विरुद्ध समन जारी किया गया था। समन पर पेश नहीं होने पर दो बार तौकीर रज़ा के खिलाफ गैरजमानती वारंट भी जारी किया जा चुका है। वहीं गैर जमानती वॉरंट को मौलाना ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। संपत्ति कुर्क करने का आदेश बताया गया कि मौलाना तौकीर ��ार्ट संबंधी दिक्कतों के चलते दिल्ली के अस्पताल में एडमिट हैं। वहीं सोमवार को जिला कोर्ट में मौलाना पेश नहीं होने पर नाराज़गी व्यक्त कर अगली सुनवाई के दिन मौलाना के एपियर नहीं होने की सूरत में पुलिस को उनकी संपत्ति कुर्क करने का आदेश दिया है। साथ ही तीसरी बार कोर्ट ने गैर जमानती वारंट जारी किया है। http://dlvr.it/T4wV7J
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दिल्ली दंगा मामले में पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां जमानत पर बाहर
दिल्ली दंगा मामले में पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां जमानत पर बाहर
इशरत जहां पर आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियों के तहत मामला दर्ज किया गया है। (क्रेडिट: ट्विट���) फरवरी 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को जहान को जमानत दे दी थी। पीटीआई आखरी अपडेट:16 मार्च 2022, 23:50 IST हमारा अनुसरण इस पर कीजिये: कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में जमानत मिलने…
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