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lawspark · 10 months ago
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IPC NOTES
IPC NOTES
धारा 1 - संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार *धारा 1: भारतीय दंड संहिता का नाम और विस्तार** भारतीय दंड संहिता क�� संक्षेप में आईपीसी भी कहा जाता है। * आईपीसी एक कानून है जो भारत में होने वाले अपराधों और उनके लिए सजा का प्रावधान करता है। * आईपीसी 1 जनवरी, 1862 से पूरे भारत में लागू है, सिवाय जम्मू और कश्मीर के। * जम्मू और कश्मीर में आईपीसी 31 अक्टूबर, 2019 से लागू हुई है, जब भारत सरकार ने वहां संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था। * आईपीसी में कुल 511 धाराएं हैं, जो 23 अध्यायों में विभाजित हैं। * आईपीसी की पहली धारा संहिता का नाम और विस्तार बताती है।*उदाहरण:** अगर कोई व्यक्ति किसी की हत्या करता है, तो उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास या मौत की सजा हो सकती है। * अगर कोई व्यक्ति किसी के साथ बलात्कार करता है, तो उसे आईपीसी की धारा 376 के तहत आजीवन कारावास या 10 साल तक की सजा हो सकती है। * अगर कोई व्यक्ति किसी की जेब से पर्स चुराता है, तो उसे आईपीसी की धारा 379 के तहत 3 साल तक की सजा हो सकती है।*संबंधित कानून:** आईपीसी के अलावा, भारत में कई अन्य कानून हैं जो अपराधों और उनकी सजा का प्रावधान करते हैं। * इन कानूनों में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), साक्ष्य अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और अन्य शामिल हैं। * ये सभी कानून मिलकर भारत में अपराधों को नियंत्रित करने और अपराधियों को सजा देने का काम करते हैं। धारा 2 - भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड धारा 2, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) इस सिद्धांत को निर्धारित करती है कि किसी भी अपराध के लिए दंडित किए जाने के लिए, अपराध को भारत के भीतर किया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति भारत के बाहर अपराध करता है, तो उसे उस अपराध के लिए भारत में दंडित नहीं किया जा सकता है।धारा 2 में निम्नलिखित प्रमुख तत्व हैं:* अपराध भारत के भीतर किया जाना चाहिए। * अपराधी को भारत के भीतर दोषी ठहराया जाना चाहिए। * अपराधी को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित किया जाना चाहिए।धारा 2 के कुछ उदाहरण यहां दिए गए हैं:* अगर कोई व्यक्ति भारत में हत्या करता है, तो उसे भारत में हत्या के लिए दंडित किया जा सकता है। * अगर कोई व्यक्ति भारत में चोरी करता है, तो उसे भारत में चोरी के लिए दंडित किया जा सकता है। * अगर कोई व्यक्ति भारत में बलात्कार करता है, तो उसे भारत में बलात्कार के लिए दंडित किया जा सकता है।धारा 2 के अपवाद भी हैं। कुछ अपराध ऐसे हैं जिन्हें भारत के बाहर भी किया जा सकता है, लेकिन फिर भी भारत में दंडनीय हैं। इन अपराधों में शामिल हैं:* भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना। * भारत की सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास। * भारत के राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री की हत्या। * भारत में राजनयिक मिशन या वाणिज्य दूतावास पर हमला।धारा 2 भारतीय दंड संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो सुनिश्चित करता है कि भारत में केवल भारत के भीतर किए गए अपराधों के लिए ही दंडित किया जा सकता है। धारा 3 - भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अफराधों का दण्ड *धारा 3, भारतीय दंड संहिता: भारत से परे किए गए अपराधों का दंड**सा��े शब्दों में:*धारा 3 IPC के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति भारत से बाहर कोई अपराध करता है, लेकिन उस अपराध पर भारतीय कानून के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, तो उस व्यक्ति पर उसी तरह से मुकदमा चलाया जाएगा जैसे कि उसने वह अपराध भारत में ही किया हो।*उदाहरण:** अगर कोई भारतीय नागरिक दूसरे देश में किसी भारतीय नागरिक की हत्या करता है, तो उस पर भारत में हत्या के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है। * अगर कोई विदेशी नागरिक भारत में किसी भारतीय नागरिक की चोरी करता है, तो उस पर भारत में चोरी के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है। * अगर कोई भारतीय नागरिक दूसरे देश में किसी विदेशी नागरिक की हत्या करता है, और वह भारतीय नागरिक भारत वापस आ जाता है, तो उस पर भारत में हत्या के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है।*संबंधित धाराएँ:** धारा 4 IPC: अपराध किस जगह किया गया, यह निर्धारित करने के लिए नियम। * धारा 5 IPC: अपराध किस समय किया गया, यह निर्धारित करने के लिए नियम। * धारा 6 IPC: अपराधी की मृत्यु हो जाने पर भी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। * धारा 7 IPC: अपराध की साजिश रचने या भड़काने के लिए भी मुकदमा चलाया जा सकता है।*निष्कर्ष:*धारा 3 IPC यह सुनिश्चित करती है कि भारत से बाहर किए गए अपराधों के लिए भी अपराधियों को सजा दी जा सके। यह धारा भारत के नागरिकों और विदेशी नागरिकों दोनों पर समान रूप से लागू होती है। धारा 4 - राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार *धारा 4 आईपीसी - राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार*भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 4 भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करती है। इस धारा के अनुसार, यदि भारत का कोई नागरिक भारत के बाहर कोई अपराध करता है, या यदि भारत में पंजीकृत किसी जहाज या विमान पर कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो उस व्यक्ति पर आईपीसी के प्रावधान लागू होंगे और उसे भारत की अदालत में विचारण के लिए लाया जा सकता है।*उदाहरण:** यदि कोई भारतीय नागरिक विदेश में हत्या करता है, तो उसे भारत में हत्या के लिए विचारित और दोषी ठहराया जा सकता है। * यदि कोई व्यक्ति भारत में पंजीकृत जहाज पर चोरी करता है, तो उसे भारत में चोरी के लिए विचारित और दोषी ठहराया जा सकता है।धारा 4 के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि "अपराध" शब्द के अंतर्गत भारत के बाहर किया गया ऐसा हर कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो आईपीसी के अधीन दंडनीय होत��। इसका मतलब यह है कि धारा 4 केवल उन अपराधों पर लागू होती है जो आईपीसी के तहत दंडनीय हैं।*संबंधित धाराएँ:** आईपीसी की धारा 5: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र नहीं होगा। * आईपीसी की धारा 6: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र होगा। * आईपीसी की धारा 7: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र नहीं होगा, भले ही धारा 6 के तहत भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र हो।धारा 4 भारतीय दंड संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय नागरिकों और भारत में पंजीकृत जहाजों या विमानों पर अपराध करने वाले व्यक्तियों को दंडित किया जा सके। धारा 5 - कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना धारा 5, भारतीय दंड संहिता: भारत सरकार की सेवा के ऑफिसरों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सैनिकों को दंडित करने वाले विशेष कानूनधारा 5 कहती है कि इस अधिनियम (IPC) की कोई भी बात निम्नलिखित पर लागू नहीं होगी:- भारत सरकार की सेवा के अधिकारियों द्वारा विद्रोह और अभिजन को दंडित करने वाले किसी अधिनियम के प्रावधान - किसी विशेष या स्थानीय कानून के प्रावधानइसका मतलब यह है कि अगर कोई भारत सरकार का अधिकारी है, सैनिक है, नौसेना का सदस्य है, या वायु सेना का सदस्य है, और वह विद्रोह या अभिजन में शामिल है, तो उसे इस अधिनियम के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे उस कानून के तहत दंडित ��िया जाएगा जो विशेष रूप से भारत सरकार के अधिकारियों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सेना के सदस्यों को दंडित करने के लिए बनाया गया है।उदाहरण के लिए, अगर कोई सैनिक विद्रोह में शामिल है, तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे सैन्य कानून के तहत दंडित किया जाएगा।इसी प्रकार, अगर कोई नौसेना का सदस्य अभिजन में शामिल है, तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे नौसेना कानून के तहत दंडित किया जाएगा।धारा 5 यह सुनिश्चित करती है कि भारत सरकार के अधिकारियों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सेना के सदस्यों को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा, जब तक कि वे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध नहीं करते हैं। धारा 6 - संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना *धारा 6: परिभाषाओं के अपवाद** यह धारा कहती है कि इस संहिता में हर अपराध की परिभाषा, हर दंड उपबंध और हर ऐसी परिभाषा या दंड उपबंध का हर दृष्टांत, "साधारण अपवाद" शीर्षक वाले अध्याय में शामिल अपवादों के अधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दंड उपबंध या दृष्टांत में दोहराया न गया हो।* *उदाहरण:* * इस संहिता की वे धाराएं, जिनमें अपराधों की परिभाषाएं शामिल हैं, यह स्पष्ट नहीं करती हैं कि सात वर्ष से कम आयु का बच्चा ऐसे अपराध नहीं कर सकता, लेकिन परिभाषाओं को उस साधारण अपवाद के अधीन समझा जाता है जिसमें यह प्रावधान है कि कोई भी काम, जो सात वर्ष से कम आयु के बच्चे द्वारा किया जाता है, अपराध नहीं है। * क, एक पुलिस अधिकारी, बिना वारंट के, य को पकड़ लेता है, जिसने हत्या की है। यहां क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि वह य को पकड़ने के लिए कानून द्वारा बाध्य था, और इसलिए यह मामला उस सामान्य अपवाद के अंतर्गत आता है, जिसमें यह प्रावधान है कि "कोई भी काम अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो उसे करने के लिए कानून द्वारा बाध्य है।"* यह धारा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि अपराध की परिभाषाओं और दंड उपबंधों की व्याख्या करते समय अदालतें "साधारण अपवाद" को ध्यान में रखें। यह यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि अपराधों की परिभाषाओं और दंड उपबंधों की व्याख्या उचित और न्यायसंगत तरीके से की जाए। धारा 7 - एक बार स्पष्टीकॄत पद का भाव *धारा 7 का सरल अर्थ:*धारा 7 के अनुसार, यदि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में किसी शब्द को परिभाषित किया गया है, तो उस शब्द को पूरे आईपीसी में उसी अर्थ में इस्तेमाल किया जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों का मतलब स्पष्ट और सुसंगत हो।*उदाहरण:** धारा 299 में "अपवित्रता" शब्द को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, अपवित्रता का मतलब है "कोई भी शब्द, इशारा या कृत्य जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।" इसलिए, आईपीसी में हर जगह "अपवित्रता" शब्द का इस्तेमाल इसी अर्थ में किया जाएगा। * धारा 300 में "हत्या" शब्द को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, हत्या का मतलब है "किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनना।" इसलिए, आईपीसी में हर जगह "हत्या" शब्द का इस्तेमाल इसी अर्थ में किया जाएगा।*संबंधित धाराएँ:** धारा 3: यह धारा "कारण" शब्द को परिभाषित करती है। * धारा 5: यह धारा "सद्भावना" शब्द को परिभाषित करती है। * धारा 6: यह धारा "बाध्यता" शब्द को परिभाषित करती है।*भारतीय दंड संहिता और भारतीय आपराधिक कानून में धारा 7 का महत्व:*धारा 7 आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करती है। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी को लागू करते समय कोई भ्रम या अनिश्चितता न हो। यह न्यायाधीशों और वकीलों को आईपीसी को सही ढंग से समझने और लागू करने में मदद करता है।धारा 7 आईपीसी की एक महत्वपूर्ण धारा है जो आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करती है। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी को लागू करते समय कोई भ्रम या अनिश्चितता न हो। यह न्यायाधीशों और वकीलों को आईपीसी को सही ढंग से समझने और लागू करने में मदद करता है। धारा 8 - लिंग धारा 8, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), लिंग-तटस्थ भाषा के उपयोग पर लागू होती है। यह निर्दिष्ट करता है कि जहां किसी व्यक्ति के लिंग को शामिल करने वाल��� शब्द या वाक्यांश का उपयोग किया जाता है, वहाँ यह दोनों लिंगों के व्यक्तियों पर लागू होगा।*उदाहरण के लिए:*- धारा 300, आईपीसी, "हत्या" को परिभाषित करता है। यदि यह धारा "पुरुष" शब्द का उपयोग करती, तो यह केवल पुरुषों के खिलाफ हत्या के लिए लागू होती। हालाँकि, धारा 8 के कारण, यह धारा महिलाओं के खिलाफ हत्या के लिए भी लागू होती है। - धारा 376, आईपीसी, "बलात्कार" को परिभाषित करता है। यदि यह धारा "पुरुष" शब्द का उपयोग करती, तो यह केवल पुरुषों द्वारा बलात्कार के लिए लागू होती। हालाँकि, धारा 8 के कारण, यह धारा महिलाओं द्वारा बलात्कार के लिए भी लागू होती है।धारा 8 का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए भी किया जाता है कि आईपीसी में निहित विभिन्न अपराधों के दंड दोनों लिंगों के व्यक्तियों के लिए समान हैं। उदाहरण के लिए, धारा 302, आईपीसी, "हत्या" के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान करती है। यह दंड पुरुषों और महिलाओं दोनों पर समान रूप से लागू होता है।धारा 8 यह सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि आईपीसी लिंग-निरपेक्ष हो और यह पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार करता हो। यह लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। धारा 9 - वचन धारा 9: एकवचन और बहुवचनभारतीय दंड संहिता की धारा 9 एक व्याख्यात्मक प्रावधान है जो इस बात का मार्गदर्शन करती ह�� कि जब तक संदर्भ से अन्यथा स्पष्ट न हो, एकवचन वाचक शब्दों में बहुवचन भी शामिल है और बहुवचन वाचक शब्दों में एकवचन भी शामिल है। दूसरे शब्दों में, जब कोई कानून एकवचन या बहुवचन शब्द का उपयोग करता है, तो उसका आशय है कि उस शब्द में दोनों संख्याएँ शामिल हैं, जब तक कि कानून के विशिष्ट शब्दांकन या संदर्भ से यह स्पष्ट न हो कि केवल एक संख्या का उल्लेख किया गया है।उदाहरण के लिए, यदि कोई कानून कहता है कि "कोई व्यक्ति जो चोरी करता है उसे कारावास से दंडित किया जाएगा," तो इसका मतलब है कि एक व्यक्ति जो एक वस्तु चुराता है या एक व्यक्ति जो कई वस्तुओं की चोरी करता है, दोनों को कारावास से दंडित किया जाएगा। इसी तरह, यदि कोई कानून कहता है कि "कोई व्यक्ति जो हत्या करता है उसे मौत की सजा दी जाएगी," तो इसका मतलब है कि एक व्यक्ति जो एक व्यक्ति की हत्या करता है या एक व्यक्ति जो कई व्यक्तियों की हत्या करता है, दोनों को मौत की सजा दी जाएगी।धारा 9 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कानून स्पष्ट और संक्षिप्त हों, और यह कि कानूनी प्रक्रिया में अनावश्यक देरी या भ्रम से बचा जाए। धारा 9 यह सुनिश्चित करने में भी मदद करती है कि कानून भेदभावपूर्ण न हो, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि कानून उन व्यक्तियों पर भी लागू होते हैं जो एकवचन या बहुवचन शब्दों का उपयोग करते हैं।धारा 9 भारतीय दंड संहिता की कई अन्य धाराओं से संबंधित है, जिसमें धारा 10 (शब्दों के अर्थ) और धारा 11 (अनुपातिक व्याख्या) शामिल हैं। धारा 10 शब्दों और वाक्यांशों के अर्थों को परिभाषित करती है, जबकि धारा 11 यह निर्दिष्ट करती है कि कानूनों की व्याख्या एक उचित और आनुपातिक तरीके से की जानी चाहिए। इन धाराओं को एक साथ पढ़ने से, यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय दंड संहिता का उद्देश्य स्पष्ट और निष्पक्ष कानून बनाना है जो सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं। धारा 10 - “पुरुष”। “स्त्री” *धारा 10: पुरुष और स्त्री की परिभाषा** *पुरुष:* यह शब्द किसी भी उम्र के मानव नर को संदर्भित करता है। यह शब्द व्यापक है और इसमें लड़के और वयस्क पुरुष दोनों शामिल हैं। * *स्त्री:* यह शब्द किसी भी उम्र की मानव नारी को संदर्भित करता है। यह शब्द भी व्यापक है और इसमें लड़कियाँ और वयस्क महिलाएँ दोनों शामिल हैं।धारा 10 भारतीय दंड संहिता की व्याख्यात्मक धाराओं में से एक ��ै। यह धारा भारतीय दंड संहिता में प्रयुक्त शब्दों "पुरुष" और "स्त्री" को परिभाषित करती है। ये परिभाषाएँ भारतीय दंड संहिता में अपराधों की परिभाषा और व्याख्या करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।उदाहरण के लिए, धारा 302 भारतीय दंड संहिता में हत्या के अपराध को परिभाषित करती है। यह धारा कहती है कि "जो कोई भी किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध, किसी ऐसे कृत्य से मृत्यु का कारण बनता है जो मृत्यु का कारण बनने की संभावना है, वह हत्या का दोषी होगा"। इस धारा में "व्यक्ति" शब्द का प्रयोग किया गया है। यह शब्द धारा 10 के अनुसार "किसी भी उम्र का मानव नर या मानव नारी" को संदर्भित करता है। इसलिए, धारा 302 भारतीय दंड संहिता के तहत हत्या का अपराध किसी भी व्यक्ति की हत्या के लिए किया जा सकता है, चाहे वह व्यक्ति पुरुष हो या महिला, बालक हो या वयस्क।धारा 10 भारतीय दंड संहिता की एक महत्वपूर्ण धारा है। यह धारा भारतीय दंड संहिता में प्रयुक्त शब्दों "पुरुष" और "स्त्री" को परिभाषित करती है। ये परिभाषाएँ भारतीय दंड संहिता में अपराधों की परिभाषा और व्याख्या करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। धारा 11 - व्यक्ति धारा 11 भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की व्याख्या:1. "व्यक्ति" की परिभाषा: - धारा 11 के अनुसार, "व्यक्ति" शब्द में कोई भी कंपनी, एसोसिएशन या व्यक्ति निकाय शामिल है, चाहे वह निगमित हो या नहीं। - इसका मतलब यह है कि कानून की नजर में, न सिर्फ इंसान, बल्कि कंपनियां, संगठन और अन्य संस्थाएं भी "व्यक्ति" के दायरे में आती हैं।2. उदाहरण: - एक कंपनी जो पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करती है, उसे आईपीसी के प्रावधानों के तहत दंडित किया जा सकता है। - एक एसोसिएशन जो लोगों के बीच झगड़े या हिंसा को बढ़ावा देती है, उसे आईपीसी के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। - एक व्यक्ति निकाय जो धोखाधड़ी या जालसाजी में शामिल है, उसे आईपीसी के तहत दंडित किया जा सकता है।3. प्रासंगिक तथ्य: - धारा 11 आईपीसी में एक महत्वपूर्ण परिभाषा खंड है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि "व्यक्ति" शब्द का उपयोग पूरे आईपीसी में किस अर्थ में किया जाएगा। - धारा 11 में "व्यक्ति" की परिभाषा "वैधानिक व्यक्ति" की अवधारणा से संबंधित है। वैधानिक व्यक्ति वे संस्थाएं या संगठन हैं जिन्हें कानून ने एक कानूनी इकाई के रूप में मान्यता दी है। - "व्यक्ति" की परिभाषा आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।4. अन्य संबंधित धाराएँ: - आईपीसी की धारा 12 "अपराध" की परिभाषा प्रदान करती है और धारा 13 "अवरोध" की परिभाषा प्रदान करती है। ये धाराएँ आईपीसी में अपराधों की अवधारणा को समझने के लिए आवश्यक हैं। - आईपीसी की धारा 34 "सामान्य इरादा" की अवधारणा को परिभाषित करती है, जबकि धारा 35 "अप्रत्यक्ष उत्तरदायित्व" की अवधारणा को परिभाषित करती है। ये धाराएँ आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को समझने के लिए आवश्यक हैं।निष्कर्ष: धारा 11 आईपीसी में एक महत्वपूर्ण परिभाषा खंड है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि "व्यक्ति" शब्द का उपयोग पूरे आईपीसी में किस अर्थ में किया जाएगा। "व्यक्ति" की परिभाषा आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। धारा 12 - लोक *धारा 12: लोक**सरल शब्दों में व्याख्या:** "लोक" शब्द का अर्थ है एक बड़ा समूह या लोगों का समुदाय। * यह एक अपराध को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह तय करता है कि क्या कोई कार्रवाई एक अपराध है या नहीं। * यह निर्धारित करने के लिए कि कोई कार्रवाई "सार्वजनिक" है या नहीं, अदालतें निम्नलिखित कारकों पर विचार करेंगी:* क्या कार्रवाई एक सार्वजनिक स्थान पर हुई थी। * क्या कार्रवाई कई लोगों द्वारा देखी गई थी। * क्या कार्रवाई सामाजिक शांति या व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है।*उदाहरण:** यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक पार्क में नग्न दौड़ता है, तो यह एक सार्वजनिक अपराध माना जाएगा क्योंकि यह ��क सार्वजनिक स्थान पर हुआ था और इसे कई लोगों ने देखा था। * यदि कोई व्यक्ति अपने घर में नग्न दौड़ता है, तो इसे सार्वजनिक अपराध नहीं माना जाएगा क्योंकि यह एक सार्वजनिक स्थान पर नहीं हुआ था और इसे किसी ने नहीं देखा था।*संबंधित धाराएँ:** धारा 11: "अपराध" की परिभाषा देता है। * धारा 23: "सहमति" की परिभाषा देता है। * धारा 29: "आवश्यकता" की परिभाषा देता है। * धारा 30: "उकसावे" की परिभाषा देता है।*निष्कर्ष:*धारा 12 यह परिभाषित करती है कि "लोक" शब्द का अर्थ क्या है और यह किसी अपराध को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण है। अदालतें यह निर्धारित करने के लिए कई कारकों पर विचार करेंगी कि कोई कार्रवाई "सार्वजनिक" है या नहीं, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या कार्रवाई सार्वजनिक स्थान पर हुई थी, क्या इसे कई लोगों ने देखा था, और क्या यह सामाजिक शांति या व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है। धारा 13 - “क्वीन” की परिभाषा *धारा 13 का सरलीकृत स्पष्टीकरण*धारा 13 को भारतीय दंड संहिता, 1860 के विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा निरस्त कर दिया गया है। इस धारा में "क्वीन" शब्द को परिभाष��त किया गया था, जो कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की संप्रभु थी। निरस्तीकरण के बाद, धारा 13 अब भारतीय दंड संहिता का हिस्सा नहीं है। इसलिए, इस धारा के बारे में विस्तार से चर्चा करना और उदाहरण देना प्रासंगिक नहीं है। धारा 14 - सरकार का सेवक *धारा 14: सरकार का सेवक (Government Read the full article
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lawspark · 10 months ago
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भारतीय न्याय संहिता, 2023 Best Notes
भारतीय न्याय संहिता, 2023 Best Notes
 भारतीय न्याय संहिता, 2023
1. (1) इस कानून का नाम होगा भारतीय न्याय संहिता, 2023। (2) यह केंद्रीय सरकार द्वारा आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से, और इस संहिता की विभिन्न प्रावधानों के लिए विभिन्न तिथियाँ निर्धारित कर सकती हैं। (3) हर व्यक्ति इस संहिता के तहत और केवल इसके तहत दंडनीय होगा, जिसके लिए वह भारत में दोषी होगा। (4) किसी भी व्यक्ति को, जो भारत में वर्तमान में प्रभावी किसी भी कानून द्वारा, भारत से परे किए गए किसी अपराध के लिए योग्य हो, उसे इस संहिता के प्रावधानों के अनुसार भारत से परे किए गए किसी भी कार्य के लिए व्यवहारित किया जाएगा, जैसे कि ऐसा कार्य भारत में किया गया हो। (5) इस संहिता के प्रावधान भी लागू होंग�� किसी भी अपराध पर जो किया गया हो— (a) भारत के किसी नागरिक द्वारा भारत से बाहर और उससे परे किसी भी स्थान पर; (b) भारत में पंजीकृत किसी भी जहाज या विमान पर किसी भी व्यक्ति द्वारा, जहां भी वह हो; © भारत से बाहर और उससे परे किसी भी स्थान पर किसी व्यक्ति द्वारा, जो भारत में स्थित किसी कंप्यूटर संसाधन को लक्षित करता है। @व्याख्या. —इस धारा में, “अपराध” शब्द हर ऐसे कार्य को शामिल करता है जो भारत से बाहर किया गया हो और जो, यदि भारत में किया गया होता, तो इस संहिता के तहत दंडनीय होता। उदाहरण. A, जो भारत का नागरिक है, भारत से बाहर और उससे परे किसी भी स्थान पर हत्या करता है। वह भारत में जिस किसी भी स्थान में पाया जाए, वहां हत्या के लिए योग्य और दोषी ठहराया जा सकता है।
 भारतीय न्याय संहिता, 2023
(6) इस संहिता में कुछ भी भारत सरकार की सेवा में अधिकारियों, सैनिकों, नाविकों या वायुसैनिकों की विद्रोह और देशभक्ति के लिए दंड देने वाले किसी भी अधिनियम के प्रावधानों को या किसी विशेष या स्थानीय कानून के प्रावधानों को प्रभावित नहीं करेगा। - इस संहिता में, जब तक प्रसंग अन्यथा न हो, –– (1) “कार्य” एक श्रृंखला के कार्यों के साथ-साथ एकल कार्य को भी सूचित करता है; (2) “पशु” का अर्थ होता है मनुष्य के अलावा किसी भी जीवित प्राणी; (3) “बालक” का अर्थ होता है अठारह वर्ष की आयु के नीचे का कोई भी व्यक्ति; (4) “नकली”.––वह व्यक्ति कहलाता है “नकली” जो एक चीज को दूसरी चीज के समान बनाता है, उस समानता के माध्यम से छल करने का इरादा रखता है, या जानता है कि इससे संभावित है कि छल होगा। @व्याख्या 1.—नकली करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अनुकरण सटीक हो। @व्याख्या 2.—जब कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के समान बनाता है, और समानता ऐसी होती है कि कोई व्यक्ति उससे छलित हो सकता है, तो यह माना जाए  (5) “न्यायालय” का अर्थ होता है एक न्यायाधीश जिसे कानून द्वारा न्यायिक रूप से अकेले कार्य करने की शक्ति प्रदान की गई है, या ऐसा न्यायाधीशों का समूह जिसे कानून द्वारा न्यायिक रूप से एक समूह के रूप में कार्य करने की शक्ति प्रदान की गई है, जब ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीशों का समूह न्यायिक रूप से कार्य कर रहा हो। (6) “मृत्यु” का अर्थ होता है मनुष्य की मृत्यु, जब तक प्रसंग अन्यथा न हो।  (7) “अनैतिकता” का अर्थ है किसी एक व्यक्ति को गलत फायदा पहुंचाने या दूसरे व्यक्ति को गलत नुकसान पहुंचाने के इरादे से कुछ भी करना। (8) “दस्तावेज़” का अर्थ है किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिह्नों के माध्यम से व्यक्त या वर्णित किसी भी विषय को, और इसमें इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड शामिल है, जिसका उपयोग किया जाना या जो उस विषय के साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकता है। @व्याख्या 1.—यह अमहत्वपूर्ण है कि अक्षर, अंक या चिह्न किस साधनों या किस पदार्थ पर बनाए गए हैं, या क्या साक्ष्य न्यायालय में प्रयोग के लिए इरादा रखता है, या उसे न्यायालय में प्रयोग किया जा सकता है या नहीं। उदाहरण। (a) एक लिखित अनुबंध के शर्तों को ��्यक्त करने वाली लेखनी, जिसका उपयोग अनुबंध के साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है, एक दस्तावेज़ है। (b) एक बैंकर पर चेक एक दस्तावेज़ है। © एक पावर-ऑफ-अटॉर्नी एक दस्तावेज़ है। (d) एक मानचित्र या योजना जिसका उपयोग किया जाना या जो साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकता है, एक दस्तावेज़ है। (e) निर्देश या निर्देशों को सम्मिलित करने वाली लेखनी एक दस्तावेज़ है। @व्याख्या 2.—जो कुछ भी वाणिज्यिक या अन्य उपयोग द्वारा स्पष्ट किया गया है, उसे इस धारा के अर्थ में ऐसे ही अक्षर, अंक या चिह्नों द्वारा व्यक्त किया जाना माना जाएगा, फिर चाहे वह वास्तव में व्यक्त हो या नहीं। उदाहरण। A अपने नाम को एक बिल ऑफ एक्सचेंज के पीछे लिखता है जो उसके आदेश पर भुगतान करने योग्य है। प्रतिस्थापन का अर्थ, वाणिज्यिक उपयोग द्वारा स्पष्ट किया गया, यह है कि बिल धारक को भुगतान किया जाना चाहिए। प्रतिस्थापन एक दस्तावेज़ है, और इसे उसी प्रकार समझा जाएगा जैसे कि हस्ताक्षर के ऊपर “धारक को भुगतान करें” या उस प्रभाव के शब्द लिखे गए होते। (9) “धोखाधड़ी” का अर्थ है धोखाधड़ी करने के इरादे से कुछ भी करना, लेकिन अन्यथा नहीं। (10) “लिंग” - सर्वनाम “वह” और उसके विविध रूप किसी व्यक्ति, चाहे वह पुरुष, महिला या ट्रांसजेंडर हो, का उपयोग करते हैं। @व्याख्या.–– “ट्रांसजेंडर” का अर्थ होगा जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 2 की उपधारा (k) में इसे दिया गया है।  (11) “सच्ची नियत” - ऐसा कुछ भी “सच्ची नियत” से कहा जाता है या विश्वास किया जाता है जो उचित ध्यान और सतर्कता के बिना किया गया हो या विश्वास किया गया हो। (12) “सरकार” - केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार का अर्थ है। (13) “शरण” - एक व्यक्ति को आश्रय, भोजन, पेय, धन, कपड़े, हथियार, गोली या यातायात का साधन प्रदान करना, या किसी व्यक्ति की सहायता करना, चाहे वह इस धारा में गिने गए प्रकार के हों या नहीं, गिरफ्तारी से बचने में, शामिल है।
 भारतीय न्याय संहिता, 2023
(14) “चोट” - किसी भी व्यक्ति को शरीर, मन, प्रतिष्ठा या संपत्ति में अवैध रूप से किसी भी प्रकार की हानि का अर्थ है। (15) “अवैध” और “कानूनी रूप से करने के लिए बंधन” - शब्द “अवैध” हर ऐसी चीज़ पर लागू होता है जो अपराध है या जिसे कानून द्वारा प्रतिबंधित किया गया है, या जो नागरिक कार्रवाई के लिए आधार प्रदान करता है; और एक व्यक्ति कहते हैं कि “कानूनी रूप से करने के लिए बंधन” है जो उसमें अवैध है उसे छोड़ना। - “न्यायाधीश” का अर्थ है एक व्यक्ति जिसे आधिकारिक रूप से न्यायाधीश के रूप में नामित किया गया है, और इसमें एक व्यक्ति शामिल है,–– (i) जिसे कानून द्वारा शक्ति प्रदान की गई है, किसी भी कानूनी कार्यवाही में, नागरिक या आपराधिक, एक निर्णायक निर्णय देने की, या एक निर्णय जो, यदि इसके खिलाफ अपील नहीं की गई हो, तो निर्णायक होगा, या एक निर्णय जो, यदि किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा पुष्टि की जाए, तो निर्णायक होगा; या (ii) जो एक शरीर या व्यक्तियों का एक है, जिस शरीर या व्यक्तियों को कानून द्वारा ऐसा निर्णय देने की शक्ति प्रदान की गई है। उदाहरण. एक मजिस्ट्रेट जो एक आरोप के प्रति अधिकार का अभ्यास कर रहा है जिस पर उसके पास जुर्माना या कारावास की सजा देने की शक्ति है, चाहे अपील के साथ या बिना अपील के, वह एक न्यायाधीश है; (17) “जीवन” का अर्थ है मानव का जीवन, जब तक संदर्भ से विपरीत नहीं प्रतीत होता; (18) “स्थानीय कानून” का अर्थ है केवल भारत के एक विशेष भाग पर लागू होने वाला कानून; (19) “मनुष्य” का अर्थ है किसी भी आयु का पुरुष मानव; (20) “महीना” और “वर्ष”.––जहां कभी भी “महीना” या “वर्ष” शब्द का उपयोग किया जाता है, इसे समझा जाना चाहिए कि महीना या वर्ष ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार गिना जाएगा; (21) “चलती संपत्ति” में पृथ्वी और धरती से जुड़ी चीजों या धरती से जुड़ी किसी भी चीज से स्थायी रूप से जोड़ी गई चीजों को छोड़कर हर प्रकार की संपत्ति शामिल है; (22) “संख्या”.—जब तक संदर्भ से विपरीत नहीं प्रतीत होता, एकवचन संख्या को आयात करने वाले शब्द बहुवचन संख्या को शामिल करते हैं, और बहुवचन संख्या को आयात करने वाले शब्द एकवचन संख्या को शामिल करते हैं; (23) “शपथ” में कानून द्वारा शपथ के लिए स्थानांतरित गंभीर स्वीकृति शामिल है, और किसी सार्वजनिक कर्मचारी के सामने या सबूत के उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने वाले किसी भी घोषणा को जो कानून द्वारा बनाने या अधिकृत किया गया हो, चाहे अदालत में हो या नहीं; (24) “अपराध” - उप-खंड (a) और (b) में उल्लिखित अध्यायों और धाराओं को छोड़कर, “अपराध” शब्द का अर्थ है ऐसी चीज़ जिसे इस संहिता द्वारा दंडनीय बनाया गया है, लेकिन - (a) अध्याय III में और निम्नलिखित धाराओं में, अर्थात धारा 8 की उप-धाराएं (2), (3), (4) और (5), धाराएं 9, 49, 50, 52, 54, 55, 56, 57, 58, 59, 60, 61, 119, 120, 123, धारा 127 की उप-धाराएं (7) और (8), 222, 230, 231, 240, 248, 250, 251, 259, 260, 261, 262, 263, धारा 308 की उप-धाराएं (6) और (7) और धारा 330 की उप-धारा (2), “अपराध” शब्द का अर्थ है ऐसी चीज़ जिसे इस संहिता, या किसी विशेष कानून या स्थानीय कानून के तहत दंडनीय बनाया गया है; और (b) धारा 189 की उप-धारा (1), धाराएं 211, 212, 238, 239, 249, 253 और धारा 329 की उप-धारा (1) में, “अपराध” शब्द का अर्थ तब होगा जब विशेष कानून या स्थानीय कानून के तहत दंडनीय कार्य ऐसे कानून के तहत छह महीने या उससे अधिक की कैद के साथ, चाहे जुर्माना हो या नहीं, दंडनीय हो; (25) “अपसरण” एक श्रृंखला के अपसरणों के साथ-साथ एकल अपसरण को भी सूचित करता है; (26) “व्यक्ति” में किसी भी कंपनी या संघ या व्यक्तियों का समूह, चाहे वह निगमित हो या नहीं, शामिल है; (27) “सार्वजनिक” में सार्वजनिक के किसी भी वर्ग या किसी भी समुदाय शामिल है। (28) “लोक सेवक” - निम्नलिखित विवरणों में से किसी भी विवरण के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति का अर्थ है: (a) सेना, नौसेना या वायु सेना में प्रत्येक आयुक्त अधिकारी; (b) प्रत्येक न्यायाधीश सहित कानून द्वारा सशक्त किए गए किसी भी व्यक्ति, चाहे वह स्वयं या किसी व्यक्ति के समूह के सदस्य के रूप में, किसी भी न्यायिक कार्यों का निर्वाह करने के लिए; © कोर्ट का प्रत्येक अधिकारी सहित एक तरलीकरण, प्राप्तकर्ता या आयुक्त जिसका कर्तव्य है, ऐसे अधिकारी के रूप में, किसी भी कानूनी या तथ्यात्मक मामले की जांच या रिपोर्ट करने, या किसी भी दस्तावेज़ को बनाने, प्रमाणित करने, या रखने, या किसी संपत्ति का प्र��ार लेने या निपटाने, या किसी न्यायिक प्रक्रिया का कार्यान्वयन करने, या किसी शपथ का प्रशासन करने, या व्याख्या करने, या कोर्ट में क्रम बनाए रखने, और हर व्यक्ति जिसे कोर्ट द्वारा ऐसे कार्यों में से किसी का कार्यान्वयन करने के लिए विशेष रूप से अधिकृत किया गया है; (d) कोर्ट या लोक सेवक की सहायता करने वाले प्रत्येक मूल्यांकनकर्ता या पंचायत के सदस्य; (e) प्रत्येक मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति जिसे किसी कारण या मामले का निर्णय या रिपोर्ट करने के लिए किसी कोर्ट, या किसी अन्य समर्थ पब्लिक प्राधिकरण द्वारा संदर्भित किया गया है; (f) प्रत्येक व्यक्ति जो किसी पद का पदधारी है जिसके विरुद्ध वह सशक्त होता है कि वह किसी व्यक्ति को बंदी रखे या रखे; (g) सरकार का प्रत्येक अधिकारी जिसका कर्तव्य है, ऐसे अधिकारी के रूप में, अपराधों को रोकने, अपराधों की जानकारी देने, अपराधियों को न्याय के सामने लाने, या सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा की सुरक्षा करने के लिए; (h) प्रत्येक अधिकारी जिसका कर्तव्य है, ऐसे अधिकारी के रूप में, सरकार की ओर से किसी संपत्ति को लेने, प्राप्त करने, रखने या खर्च करने, या सरकार की ओर से किसी सर्वेक्षण, मूल्यांकन या अनुबंध करने, या किसी राजस्व-प्रक्रिया का कार्यान्वयन करने, या किसी मामले की जांच करने, या रिपोर्ट करने, जो सरकार के धनीय हितों को प्रभावित करता है, या सरकार के धनीय हितों से संबंधित किसी दस्तावेज़ को बनाने, प्रमाणित करने या रखने, या सरकार के धनीय हितों की सुरक्षा के लिए किसी कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए;  (i) हर अधिकारी, जिसका कर्तव्य है, ऐसे अधिकारी के रूप में, किसी संपत्ति को लेना, प्राप्त करना, रखना या खर्च करना, किसी गांव, नगर या जिले के किसी धार्मिक सामान्य उद्देश्य के लिए किसी दर या कर का आकलन करना या उठाना, या किसी गांव, नगर या जिले के लोगों के अधिकारों की पहचान के लिए किसी दस्तावेज़ को बनाना, प्रमाणित करना या रखना; (j) हर व्यक्ति जो किसी पद का धारण करता है जिसके विरुद्ध वह संविधान सूची तैयार, प्रकाशित, बनाए रखने या संशोधित करने या चुनाव या चुनाव के एक हिस्से का आयोजन करने के लिए सशक्त है; (k) हर व्यक्ति— (i) सरकार की सेवा या वेतन में या सरकार द्वारा किसी सार्वजनिक कर्तव्य के प्रदर्शन के लिए शुल्क या आयोग द्वारा वेतनभोगी; (ii) सामान्य खंडों अधिनियम, 1897 की धारा 3 की धारा (31) में परिभाषित एक स्थानीय प्राधिकरण की सेवा या वेतन में, एक केंद्रीय या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित या उसके तहत एक निगम या कंपनीयों अधिनियम, 2013 की धारा 2 की धारा (45) में परिभाषित एक सरकारी कंपनी। व्याख्या.— (a) इस धारा में बनाए गए विवरणों के अधीन पड़ने वाले व्यक्ति सार्वजनिक सेवक हैं, चाहे सरकार द्वारा नियुक्ति की गई हो या नहीं; (b) हर व्यक्ति जो एक सार्वजनिक सेवक की स्थिति का वास्तविक अधिकारी है, उसके अधिकार में जो कानूनी दोष हो सकता है, वह सार्वजनिक सेवक है; © “चुनाव” का अर्थ है किसी विधायी, नगर निगम या अन्य सार्वजनिक प्राधिकरण के सदस्यों का चयन करने के लिए एक चुनाव, जो भी चरित्र हो, जिसका चयन विधि किसी विधि द्वा���ा होती है, या जो कानून वर्तमान में प्रभावी है। उदाहरण. एक नगर आयुक्त एक सार्वजनिक सेवक है; (29) “विश्वास करने का कारण” - एक व्यक्ति कहता है कि उसके पास “विश्वास करने का कारण” है, यदि उसके पास उस बात को मानने का पर्याप्त कारण हो, लेकिन अन्यथा नहीं। (30) “विशेष कानून” - एक विशेष ��िषय पर लागू होने वाला कानून। (31) “मूल्यवान सुरक्षा” - एक दस्तावेज़ जो किसी कानूनी अधिकार को सृजित, विस्तारित, स्थानांतरित, सीमित, नष्ट या छोड़ देता है, या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति मानता है कि वह कानूनी दायित्व के तहत है, या उसके पास एक निश्चित कानूनी अधिकार नहीं है। उदाहरण। A एक बिल ऑफ एक्सचेंज के पीछे अपना नाम लिखता है। इस प्रतिबद्धता का प्रभाव यह होता है कि बिल का अधिकार किसी भी व्यक्ति को स्थानांतरित कर देता है जो इसका कानूनी धारक हो सकता है, इसलिए प्रतिबद्धता एक “मूल्यवान सुरक्षा” है। (32) “नौका” - मनुष्यों या संपत्ति के जल द्वारा परिवहन के लिए बनी कोई भी वस्तु। (33) “स्वेच्छा से” - एक व्यक्ति कहता है कि वह एक प्रभाव “स्वेच्छा से” कारण बनाता है, जब वह उसे उसके द्वारा कारण बनाता है, जिसके द्वारा उसने उसे कारण बनाने का इरादा किया था, या उस समय के साधनों का उपयोग करने के समय, जब उसने उन साधनों का उपयोग किया, उसे पता था या उसके पास विश्वास करने का कारण था कि वह प्रभाव कारण बनाने के लिए संभावित है। उदाहरण। A एक बड़े शहर में एक बसे हुए घर में रात को आग लगाता है, ताकि एक डकैती को सुगम बनाने के लिए और इस प्रकार एक व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है। यहाँ, A ने मृत्यु का कारण बनाने का इरादा नहीं किया हो सकता; और हो सकता है कि उसे खेद हो कि उसके कार्य द्वारा मृत्यु का कारण बना; फिर भी, यदि उसे पता था कि वह मृत्यु का कारण बनाने के लिए संभावित है, तो उसने स्वेच्छा से मृत्यु का कारण बनाया है। (34) “वसीयत” - किसी भी वसीयतनामा दस्तावेज़ का अर्थ है। (35) “महिला” - किसी भी आयु की महिला मनुष्य का अर्थ है। (36) “अनुचित लाभ” - ऐसी संपत्ति के अवैध साधनों द्वारा लाभ का अर्थ है, जिसके प्राप्त करने वाले व्यक्ति को कानूनी अधिकार नहीं होता। (37) “अनुचित हानि” - ऐसी संपत्ति के अवैध साधनों द्वारा हानि का अर्थ है, जिसके प्राप्त करने वाले व्यक्ति को कानूनी अधिकार होता है। (38) “अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करना” और “अनुचित रूप से हानि” - एक व्यक्ति कहता है कि वह अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करता है, जब वह ऐसा व्यक्ति अनुचित रूप से रखता है, साथ ही जब वह ऐसा व्यक्ति अनुचित रूप से प्राप्त करता है। एक व्यक्ति कहता है कि वह अनुचित रूप से हानि होती है, जब वह ऐसे व्यक्ति को किसी भी संपत्ति से अनुचित रूप से बाहर रखता है, साथ ही जब वह ऐसे व्यक्ति को संपत्ति से अनुचित रूप से वंचित करता है। (39) शब्द और अभिव्यक्तियाँ जिनका उपयोग इस संहिता में किया गया है लेकिन परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में परिभाषित किया गया है, उन्हें उस अधिनियम और संहिता में क्रमशः आवंटित अर्थ होंगे।   Youtube Lawspark Academy ADJ BEST NOTES Read the full article
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lawspark · 10 months ago
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भारतीय न्याय संहिता, 2023 Best Notes
भारतीय न्याय संहिता, 2023 Best Notes
 भारतीय न्याय संहिता, 2023
1. (1) इस कानून का नाम होगा भारतीय न्याय संहिता, 2023। (2) यह केंद्रीय सरकार द्वारा आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से, और इस संहिता की विभिन्न प्रावधानों के लिए विभिन्न तिथियाँ निर्धारित कर सकती हैं। (3) हर व्यक्ति इस संहिता के तहत और केवल इसके तहत दंडनीय होगा, जिसके लिए वह भारत में दोषी होगा। (4) किसी भी व्यक्ति को, जो भारत में वर्तमान में प्रभावी किसी भी कानून द्वारा, भारत से परे किए गए किसी अपराध के लिए योग्य हो, उसे इस संहिता के प्रावधानों के अनुसार भारत से परे किए गए किसी भी कार्य के लिए व्यवहारित किया जाएगा, जैसे कि ऐसा कार्य भारत में किया गया हो। (5) इस संहिता के प्रावधान भी लागू होंगे किसी भी अपराध पर जो किया गया हो— (a) भारत के किसी नागरिक द्वारा भारत से बाहर और उससे परे किसी भी स्थान पर; (b) भारत में पंजीकृत किसी भी जहाज या विमान पर किसी भी व्यक्ति द्वारा, जहां भी वह हो; © भारत से बाहर और उससे परे किसी भी स्थान पर किसी व्यक्ति द्वारा, जो भारत में स्थित किसी कंप्यूटर संसाधन को लक्षित करता है। @व्याख्या. —इस धारा में, “अपराध” शब्द हर ऐसे कार्य को शामिल करता है जो भारत से बाहर किया गया हो और जो, यदि भारत में किया गया होता, तो इस संहिता के तहत दंडनीय होता। उदाहरण. A, जो भारत का नागरिक है, भारत से बाहर और उससे परे किसी भी स्थान पर हत्या करता है। वह भारत में जिस किसी भी स्थान में पाया जाए, वहां हत्या के लिए योग्य और दोषी ठहराया जा सकता है।
 भारतीय न्याय संहिता, 2023
(6) इस संहिता में कुछ भी भारत सरकार की सेवा में अधिकारियों, सैनिकों, नाविकों या वायुसैनिकों की विद्रोह और देशभक्ति के लिए दंड देने वाले किसी भी अधिनियम के प्रावधानों को या किसी विशेष या स्थानीय कानून के प्रावधानों को प्रभावित नहीं करेगा। - इस संहिता में, जब तक प्रसंग अन्यथा न हो, –– (1) “कार्य” एक श्रृंखला के कार्यों के साथ-साथ एकल कार्य को भी सूचित करता है; (2) “पशु” का अर्थ होता है मनुष्य के अलावा किसी भी जीवित प्राणी; (3) “बालक” का अर्थ होता है अठारह वर्ष की आयु के नीचे का कोई भी व्यक्ति; (4) “नकली”.––वह व्यक्ति कहलाता है “नकली” जो एक चीज को दूसरी चीज के समान बनाता है, उस समानता के माध्यम से छल करने का इरादा रखता है, या जानता है कि इससे संभावित है कि छल होगा। @व्याख्या 1.—नकली करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अनुकरण सटीक हो। @व्याख्या 2.—जब कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के समान बनाता है, और समानता ऐसी होती है कि कोई व्यक्ति उससे छलित हो सकता है, तो यह माना जाए  (5) “न्यायालय” का अर्थ होता है एक न्यायाधीश जिसे कानून द्वारा न्यायिक रूप से अकेले कार्य करने की शक्ति प्रदान की ���ई है, या ऐसा न्यायाधीशों का समूह जिसे कानून द्वारा न्यायिक रूप से एक समूह के रूप में कार्य करने की शक्ति प्रदान की गई है, जब ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीशों का समूह न्यायिक रूप से कार्य कर रहा हो। (6) “मृत्यु” का अर्थ होता है मनुष्य की मृत्यु, जब तक प्रसंग अन्यथा न हो।  (7) “अनैतिकता” का अर्थ है किसी एक व्यक्ति को गलत फायदा पहुंचाने या दूसरे व्यक्ति को गलत नुकसान पहुंचाने के इरादे से कुछ भी करना। (8) “दस्तावेज़” का अर्थ है किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिह्नों के माध्यम से व्यक्त या वर्णित किसी भी विषय को, और इसमें इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड शामिल है, जिसका उपयोग किया जाना या जो उस विषय के साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकता है। @व्याख्या 1.—यह अमहत्वपूर्ण है कि अक्षर, अंक या चिह्न किस साधनों या किस पदार्थ पर बनाए गए हैं, या क्या साक्ष्य न्यायालय में प्रयोग के लिए इरादा रखता है, या उसे न्यायालय में प्रयोग किया जा सकता है या नहीं। उदाहरण। (a) एक लिखित अनुबंध के शर्तों को व्यक्त करने वाली लेखनी, जिसका उपयोग अनुबंध के साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है, एक दस्तावेज़ है। (b) एक बैंकर पर चेक एक दस्तावेज़ है। © एक पावर-ऑफ-अटॉर्नी एक दस्तावेज़ है। (d) एक मानचित्र या योजना जिसका उपयोग किया जाना या जो साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकता है, एक दस्तावेज़ है। (e) निर्देश या निर्देशों को सम्मिलित करने वाली लेखनी एक दस्तावेज़ है। @व्याख्या 2.—जो कुछ भी वाणिज्यिक या अन्य उपयोग द्वारा स्पष्ट किया गया है, उसे इस धारा के अर्थ में ऐसे ही अक्षर, अंक या चिह्नों द्वारा व्यक्त किया जाना माना जाएगा, फिर चाहे वह वास्तव में व्यक्त हो या नहीं। उदाहरण। A अपने नाम को एक बिल ऑफ एक्सचेंज के पीछे लिखता है जो उसके आदेश पर भुगतान करने योग्य है। प्रतिस्थापन का अर्थ, वाणिज्यिक उपयोग द्वारा स्पष्ट किया गया, यह है कि बिल धारक को भुगतान किया जाना चाहिए। प्रतिस्थापन एक दस्तावेज़ है, और इसे उसी प्रकार समझा जाएगा जैसे कि हस्ताक्षर के ऊपर “धारक को भुगतान करें” या उस प्रभाव के शब्द लिखे गए होते। (9) “धोखाधड़ी” का अर्थ है धोखाधड़ी करने के इरादे से कुछ भी करना, लेकिन अन्यथा नहीं। (10) “लिंग” - सर्वनाम “वह” और उसके विविध रूप किसी व्यक्ति, चाहे वह पुरुष, महिला या ट्रांसजेंडर हो, का उपयोग करते हैं। @व्याख्या.–– “ट्रांसजेंडर” का अर्थ होगा जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 2 की उपधारा (k) में इसे दिया गया है।  (11) “सच्ची नियत” - ऐसा कुछ भी “सच्ची नियत” से कहा जाता है या विश्वास किया जाता है जो उचित ध्यान और सतर्कता के बिना किया गया हो या विश्वास किया गया हो। (12) “सरकार” - केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार का अर्थ है। (13) “शरण” - एक व्यक्ति को आश्रय, भोजन, पेय, धन, कपड़े, हथियार, गोली या यातायात का साधन प्रदान करना, या किसी व्यक्ति की सहायता करना, चाहे वह इस धारा में गिने गए प्रकार के हों या नहीं, गिरफ्तारी से बचने में, शामिल है।
 भारतीय न्याय संहिता, 2023
(14) “चोट” - किसी भी व्यक्ति को शरीर, मन, प्रतिष्ठा या संपत्ति में अवैध रूप से किसी भी प्रकार की हानि का अर्थ है। (15) “अवैध” और “कानूनी रूप से करने के लिए बंधन” - शब्द “अवैध” हर ऐसी चीज़ पर लागू होता है जो अपराध है या जिसे कानून द्वारा प्रतिबंधित किया गया है, या जो नागरिक कार्रवाई के लिए आधार प्रदान करता है; और एक व्यक्ति कहते हैं कि “कानूनी रूप से करने के लिए बंधन” है जो उसमें अवैध है उसे छोड़ना। - “न्यायाधीश” का अर्थ है एक व्यक्ति जिसे आधिकारिक रूप से न्यायाधीश के रूप में नामित किया गया है, और इसमें एक व्यक्ति शामिल है,–– (i) जिसे कानून द्वारा शक्ति प्रदान की गई है, किसी भी कानूनी कार्यवाही में, नागरिक या आपराधिक, एक निर्णायक निर्णय देने की, या एक निर्णय जो, यदि इसके खिलाफ अपील नहीं की गई हो, तो निर्णायक होगा, या एक निर्णय जो, यदि किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा पुष्टि की जाए, तो निर्णायक होगा; या (ii) जो एक शरीर या व्यक्तियों का एक है, जिस शरीर या व्यक्तियों को कानून द्वारा ऐसा निर्णय देने की शक्ति प्रदान की गई है। उदाहरण. एक मजिस्ट्रेट जो एक आरोप के प्रति अधिकार का अभ्यास कर रहा है जिस पर उसके पास जुर्माना या कारावास की सजा देने की शक्ति है, चाहे अपील के साथ या बिना अपील के, वह एक न्यायाधीश है; (17) “जीवन” का अर्थ है मानव का जीवन, जब तक संदर्भ से विपरीत नहीं प्रतीत होता; (18) “स्थानीय कानून” का अर्थ है केवल भारत के एक विशेष भाग पर लागू होने वाला कानून; (19) “मनुष्य” का अर्थ है किसी भी आयु का पुरुष मानव; (20) “महीना” और “वर्ष”.––जहां कभी भी “महीना” या “वर्ष” शब्द का उपयोग किया जाता है, इसे समझा जाना चाहिए कि महीना या वर्ष ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार गिना जाएगा; (21) “चलती संपत्ति” में पृथ्वी और धरती से जुड़ी चीजों या धरती से जुड़ी किसी भी चीज से स्थायी रूप से जोड़ी गई चीजों को छोड़कर हर प्रकार की संपत्ति शामिल है; (22) “संख्या”.—जब तक संदर्भ से विपरीत नहीं प्रतीत होता, एकवचन संख्या को आयात करने वाले शब्द बहुवचन संख्या को शामिल करते हैं, और बहुवचन संख्या को आयात करने वाले शब्द एकवचन संख्या को शामिल करते हैं; (23) “शपथ” में कानून द्वारा शपथ के लिए स्थानांतरित गंभीर स्वीकृति शामिल है, और किसी सार्वजनिक कर्मचारी के सामने या सबूत के उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने वाले किसी भी घोषणा को जो कानून द्वारा बनाने या अधिकृत किया गया हो, चाहे अदालत में हो या नहीं; (24) “अपराध” - उप-खंड (a) और (b) में उल्लिखित अध्यायों और धाराओं को छोड़कर, “अपराध” शब्द का अर्थ है ऐसी चीज़ जिसे इस संहिता द्वारा दंडनीय बनाया गया है, लेकिन - (a) अध्याय III में और निम्नलिखित धाराओं में, अर्थात धारा 8 की उप-धाराएं (2), (3), (4) और (5), धाराएं 9, 49, 50, 52, 54, 55, 56, 57, 58, 59, 60, 61, 119, 120, 123, धारा 127 की उप-धाराएं (7) और (8), 222, 230, 231, 240, 248, 250, 251, 259, 260, 261, 262, 263, धारा 308 की उप-धाराएं (6) और (7) और धारा 330 की उप-धारा (2), “अपराध” शब्द का अर्थ है ऐसी चीज़ जिसे इस संहिता, या किसी विशेष कानून या स्थानीय कानून के तहत दंडनीय बनाया गया है; और (b) धारा 189 की उप-धारा (1), धाराएं 211, 212, 238, 239, 249, 253 और धारा 329 की उप-धारा (1) में, “अपराध” शब्द का अर्थ तब होगा जब विशेष कानून या स्थानीय कानून के तहत दंडनीय कार्य ऐसे कानून के तहत छह महीने या उससे अधिक की कैद के साथ, चाहे जुर्माना हो या नहीं, दंडनीय हो; (25) “अपसरण” एक श्रृंखला के अपसरणों के साथ-साथ एकल अपसरण को भी सूचित करता है; (26) “व्यक्ति” में किसी भी कंपनी या संघ या व्यक्तियों का समूह, चाहे वह निगमित हो या नहीं, शामिल है; (27) “सार्वजनिक” में सार्वजनिक के किसी भी वर्ग या किसी भी समुदाय शामिल है। (28) “लोक सेवक” - निम्नलिखित विवरणों में से किसी भी विवरण के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति का अर्थ है: (a) सेना, नौसेना या वायु सेना में प्रत्येक आयुक्त अधिकारी; (b) प्रत्येक न्यायाधीश सहित कानून द्वारा सशक्त किए गए किसी भी व्यक्ति, चाहे वह स्वयं या किसी व्यक्ति के समूह के सदस्य के रूप में, किसी भी न्यायिक कार्यों का निर्वाह करने के लिए; © कोर्ट का प्रत्येक अधिकारी सहित एक तरलीकरण, प्राप्तकर्ता या आयुक्त जिसका कर्तव्य है, ऐसे अधिकारी के रूप में, किसी भी कानूनी या तथ्यात्मक मामले की जांच या रिपोर्ट करने, या किसी भी दस्तावेज़ को बनाने, प्रमाणित करने, या रखने, या किसी संपत्ति का प्रभार लेने या निपटाने, या किसी न्यायिक प्रक्रिया का कार्यान्वयन करने, या किसी शपथ का प्रशासन करने, या व्याख्या कर��े, या कोर्ट में क्रम बनाए रखने, और हर व्यक्ति जिसे कोर्ट द्वारा ऐसे कार्यों में से किसी का कार्यान्वयन करने के लिए विशेष रूप से अधिकृत किया गया है; (d) कोर्ट या लोक सेवक की सहायता करने वाले प्रत्येक मूल्यांकनकर्ता या पंचायत के सदस्य; (e) प्रत्येक मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति जिसे किसी कारण या मामले का निर्णय या रिपोर्ट करने के लिए किसी कोर्ट, या किसी अन्य समर्थ पब्लिक प्राधिकरण द्वारा संदर्भित किया गया है; (f) प्रत्येक व्यक्ति जो किसी पद का पदधारी है जिसके विरुद्ध वह सशक्त होता है कि वह किसी व्यक्ति को बंदी रखे या रखे; (g) सरकार का प्रत्येक अधिकारी जिसका कर्तव्य है, ऐसे अधिकारी के रूप में, अपराधों को रोकने, अपराधों की जानकारी देने, अपराधियों को न्याय के सामने लाने, या सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा की सुरक्षा करने के लिए; (h) प्रत्येक अधिकारी जिसका कर्तव्य है, ऐसे अधिकारी के रूप में, सरकार की ओर से किसी संपत्ति को लेने, प्राप्त करने, रखने या खर्च करने, या सरकार की ओर से किसी सर्वेक्षण, मूल्यांकन या अनुबंध करने, या किसी राजस्व-प्रक्रिया का कार्यान्वयन करने, या किसी मामले की जांच करने, या रिपोर्ट करने, जो सरकार के धनीय हितों को प्रभावित करता है, या सरकार के धनीय हितों से संबंधित किसी दस्तावेज़ को बनाने, प्रमाणित करने या रखने, या सरकार के धनीय हितों की सुरक्षा के लिए किसी कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए;  (i) हर अधिकारी, जिसका कर्तव्य है, ऐसे अधिकारी के रूप में, किसी संपत्ति को लेना, प्राप्त करना, रखना या खर्च करना, किसी गांव, नगर या जिले के किसी धार्मिक सामान्य उद्देश्य के लिए किसी दर या कर का आकलन करना या उठाना, या किसी गांव, नगर या जिले के लोगों के अधिकारों की पहचान के लिए किसी दस्तावेज़ को बनाना, प्रमाणित करना या रखना; (j) हर व्यक्ति जो किसी पद का धारण करता है जिसके विरुद्ध वह संविधान सूची तैयार, प्रकाशित, बनाए रखने या संशोधित करने या चुनाव या चुनाव के एक हिस्से का आयोजन करने के लिए सशक्त है; (k) हर व्यक्ति— (i) सरकार की सेवा या वेतन में या सरकार द्वारा किसी सार्वजनिक कर्तव्य के प्रदर्शन के लिए शुल्क या आयोग द्वारा वेतनभोगी; (ii) सामान्य खंडों अधिनियम, 1897 की धारा 3 की धारा (31) में परिभाषित एक स्थानीय प्राधिकरण की सेवा या वेतन में, एक केंद्रीय या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित या उसके तहत एक निगम या कंपनीयों अधिनियम, 2013 की धारा 2 की धारा (45) में परिभाषित एक सरकारी कंपनी। व्याख्या.— (a) इस धारा में बनाए गए विवरणों के अधीन पड़ने वाले व्यक्ति सार्वजनिक सेवक हैं, चाहे सरकार द्वारा नियुक्ति की गई हो या नहीं; (b) हर व्यक्ति जो एक सार्वजनिक सेवक की स्थिति का वास्तविक अधिकारी है, उसके अधिकार में जो कानूनी दोष हो सकता है, वह सार्वजनिक सेवक है; © “चुनाव” का अर्थ है किसी विधायी, नगर निगम या अन्य सार्वजनिक प्राधिकरण के सदस्यों का चयन करने के लिए एक चुनाव, जो भी चरित्र हो, जिसका चयन विधि किसी विधि द्वारा होती है, या जो कानून वर्तमान में प्रभावी है। उदाहरण. एक नगर आयुक्त एक सार्वजनिक सेवक है; (29) “विश्वास करने का कारण” - एक व्यक्ति कहता है कि उसके पास “विश्वास करने का कारण” है, यदि उसके पास उस बात को मानने का पर्याप्त कारण हो, लेकिन अन्यथा नहीं। (30) “विशेष कानून” - एक विशेष विषय पर लागू होने वाला कानून। (31) “मूल्यवान सुरक्षा” - एक दस्तावेज़ जो किसी कानूनी अधिकार को सृजित, विस्तारित, स्थानांतरित, सीमित, नष्ट या छोड़ देता है, या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति मानता है कि वह कानूनी दायित्व के तहत है, या उसके पास एक निश्चित कानूनी अधिकार नहीं है। उदाहरण। A एक बिल ऑफ एक्सचेंज के पीछे अपना नाम लिखता है। इस प्रतिबद्धता का प्रभाव यह होता है कि बिल का अधिकार किसी भी व्यक्ति को स्थानांतरित कर देता है जो इसका कानूनी धारक हो सकता है, इसलिए प्रतिबद्धता एक “मूल्यवान सुरक्षा” है। (32) “नौका” - मनुष्यों या संपत्ति के जल द्वारा परिवहन के लिए बनी कोई भी वस्तु। (33) “स्वेच्छा से” - एक व्यक्ति कहता है कि वह एक प्रभाव “स्वेच्छा से” कारण बनाता है, जब वह उसे उसके द्वारा कारण बनाता है, जिसके द्वारा उसने उसे कारण बनाने का इरादा किया था, या उस समय के साधनों का उपयोग करने के समय, जब उसने उन साधनों का उपयोग किया, उसे पता था या उसके पास विश्वास करने का कारण था कि वह प्रभाव कारण बनाने के लिए संभावित है। उदाहरण। A एक बड़े शहर में एक बसे हुए घर में रात को आग लगाता है, ताकि एक डकैती को सुगम बनाने के लिए और इस प्रकार एक व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है। यहाँ, A ने मृत्यु का कारण बनाने का इरादा नहीं किया हो सकता; और हो सकता है कि उसे खेद हो कि उसके कार्य द्वारा मृत्यु का कारण बना; फिर भी, यदि उसे पता था कि वह मृत्यु का कारण बनाने के लिए संभावित है, तो उसने स्वेच्छा से मृत्यु का कारण बनाया है। (34) “वसीयत” - किसी भी वसीयतनामा दस्तावेज़ का अर्थ है। (35) “महिला” - किसी भी आयु की महिला मनुष्य का अर्थ है। (36) “अनुचित लाभ” - ऐसी संपत्ति के अवैध साधनों द्वारा लाभ का अर्थ है, जिसके प्राप्त करने वाले व्यक्ति को कानूनी अधिकार नहीं होता। (37) “अनुचित हानि” - ऐसी संपत्ति के अवैध साधनों द्वारा हानि का अर्थ है, जिसके प्राप्त करने वाले व्यक्ति को कानूनी अधिकार होता है। (38) “अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करना” और “अनुचित रूप से हानि” - एक व्यक्ति कहता है कि वह अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करता है, जब वह ऐसा व्यक्ति अनुचित रूप से रखता है, साथ ही जब वह ऐसा व्यक्ति अनुचित रूप से प्राप्त करता है। एक व्यक्ति कहता है कि वह अनुचित रूप से हानि होती है, जब वह ऐसे व्यक्ति को किसी भी संपत्ति से अनुचित रूप से बाहर रखता है, साथ ही जब वह ऐसे व्यक्ति को संपत्ति से अनुचित रूप से वंचित करता है। (39) शब्द और अभिव्यक्तियाँ जिनका उपयोग इस संहिता में किया गया है लेकिन परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में परिभाषित किया गया है, उन्हें उस अधिनियम और संहिता में क्रमशः आवंटित अर्थ होंगे।   Youtube Lawspark Academy ADJ BEST NOTES Read the full article
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lawspark · 11 months ago
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IPC NOTES
IPC NOTES
धारा 1 - संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार *धारा 1: भारतीय दंड संहिता का नाम और विस्तार** भारतीय दंड संहिता को संक्षेप में आईपीसी भी कहा जाता है। * आईपीसी एक कानून है जो भारत में होने वाले अपराधों और उनके लिए सजा का प्रावधान करता है। * आईपीसी 1 जनवरी, 1862 से पूरे भारत में लागू है, सिवाय जम्मू और कश्मीर के। * जम्मू और कश्मीर में आईपीसी 31 अक्टूबर, 2019 से लागू हुई है, जब भारत सरकार ने वहां संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था। * आईपीसी में कुल 511 धाराएं हैं, जो 23 अध्यायों में विभाजित हैं। * आईपीसी की पहली धारा संहिता का नाम और विस्तार बताती है।*उदाहरण:** अगर कोई व्यक्ति किसी की हत्या करता है, तो उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास या मौत की सजा हो सकती है। * अगर कोई व्यक्ति किसी के साथ बलात्कार करता है, तो उसे आईपीसी की धारा 376 के तहत आजीवन कारावास या 10 साल तक की सजा हो सकती है। * अगर कोई व्यक्ति किसी की जेब से पर्स चुराता है, तो उसे आईपीसी की धारा 379 के तहत 3 साल तक की सजा हो सकती है।*संबंधित कानून:** आईपीसी के अलावा, भारत में कई अन्य कानून हैं जो अपराधों और उनकी सजा का प्रावधान करते हैं। * इन कानूनों में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), साक्ष्य अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और अन्य शामिल हैं। * ये सभी कानून मिलकर भारत में अपराधों को नियंत्रित करने और अपराधियों को सजा देने का काम करते हैं। धारा 2 - भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड धारा 2, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) इस सिद्धांत को निर्धारित करती है कि किसी भी अपराध के लिए दंडित किए जाने के लिए, अपराध को भारत के भीतर किया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति भारत के बाहर अपराध करता है, तो उसे उस अपराध के लिए भारत में दंडित नहीं किया जा सकता है।धारा 2 में निम्नलिखित प्रमुख तत्व हैं:* अपराध भारत के भीतर किया जाना चाहिए। * अपराधी को भारत के भीतर दोषी ठहराया जाना चाहिए। * अपराधी को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित किया जाना चाहिए।धारा 2 के कुछ उदाहरण यहां दिए गए हैं:* अगर कोई व्यक्ति भारत में हत्या करता है, तो उसे भारत में हत्या के लिए दंडित किया जा सकता है। * अगर कोई व्यक्ति भारत में चोरी करता है, तो उसे भारत में चोरी के लिए दंडित किया जा सकता है। * अगर कोई व्यक्ति भारत में बलात्कार करता है, तो उसे भारत में बलात्कार के लिए दंडित किया जा सकता है।धारा 2 के अपवाद भी हैं। कुछ अपराध ऐसे हैं जिन्हें भारत के बाहर भी किया जा सकता है, लेकिन फिर भी भारत में दंडनीय हैं। इन अपराधों में शामिल हैं:* भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना। * भारत की सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास। * भारत के राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री की हत्या। * भारत में राजनयिक मिशन या वाणिज्य दूतावास पर हमला।धारा 2 भारतीय दंड संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो सुनिश्चित करता है कि भारत में केवल भारत के भीतर किए गए अपराधों के लिए ही दंडित किया जा सकता है। धारा 3 - भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अफराधों का दण्ड *धारा 3, भारतीय दंड संहिता: भारत से परे किए गए अपराधों का दंड**सादे शब्दों में:*धारा 3 IPC के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति भारत से बाहर कोई अपराध करता है, लेकिन उस अपराध पर भारतीय कानून के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, तो उस व्यक्ति पर उसी तरह से मुकदमा चलाया जाएगा जैसे कि उसने वह अपराध भारत में ही किया हो।*उदाहरण:** अगर कोई भारतीय नागरिक दूसरे देश में किसी भारतीय नागरिक की हत्या करता है, तो उस पर भारत में हत्या के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है। * अगर कोई विदेशी नागरिक भारत में किसी भारतीय नागरिक की चोरी करता है, तो उस पर भारत में चोरी के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है। * अगर कोई भारतीय नागरिक दूसरे देश में किसी विदेशी नागरिक की हत्या करता है, और वह भारतीय नागरिक भारत वापस आ जाता है, तो उस पर भारत में हत्या के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है।*संबंधित धाराएँ:** धारा 4 IPC: अपराध किस जगह किया गया, यह निर्धारित करने के लिए नियम। * धारा 5 IPC: अपराध किस समय किया गया, यह निर्धारित करने के लिए नियम। * धारा 6 IPC: अपराधी की मृत्यु हो जाने पर भी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। * धारा 7 IPC: अपराध की साजिश रचने या भड़काने के लिए भी मुकदमा चलाया जा सकता है।*निष्कर्ष:*धारा 3 IPC यह सुनिश्चित करती है कि भारत से बाहर किए गए अपराधों के लिए भी अपराधियों को सजा दी जा सके। यह धारा भारत के नागरिकों और विदेशी नागरिकों दोनों पर समान रूप से लागू होती है। धारा 4 - राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार *धारा 4 आईपीसी - राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार*भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 4 भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करती है। इस धारा के अनुसार, यदि भारत का कोई नागरिक भारत के बाहर कोई अपराध करता है, या यदि भारत में पंजीकृत किसी जहाज या विमान पर कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो उस व्यक्ति पर आईपीसी के प्रावधान लागू होंगे और उसे भारत की अदालत में विचारण के लिए लाया जा सकता है।*उदाहरण:** यदि कोई भारतीय नागरिक विदेश में हत्या करता है, तो उसे भारत में हत्या के लिए विचारित और दोषी ठहराया जा सकता है। * यदि कोई व्यक्ति भारत में पंजीकृत जहाज पर चोरी करता है, तो उसे भारत में चोरी के लिए विचारित और दोषी ठहराया जा सकता है।धारा 4 के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि "अपराध" शब्द के अंतर्गत भारत के बाहर किया गया ऐसा हर कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो आईपीसी के अधीन दंडनीय होता। इसका मतलब यह है कि धारा 4 केवल उन अपराधों पर लागू होती है जो आईपीसी के तहत दंडनीय हैं।*संबंधित धाराएँ:** आईपीसी की धारा 5: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र नहीं होगा। * आईपीसी की धारा 6: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र होगा। * आईपीसी की धारा 7: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र नहीं होगा, भले ही धारा 6 के तहत भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र हो।धारा 4 भारतीय दंड संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय नागरिकों और भारत में पंजीकृत जहाजों या विमानों पर अपराध करने वाले व्यक्तियों को दंडित किया जा सके। धारा 5 - कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना धारा 5, भारतीय दंड संहिता: भारत सरकार की सेवा के ऑफिसरों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सैनिकों को दंडित करने वाले विशेष कानूनधारा 5 कहती है कि इस अधिनियम (IPC) की कोई भी बात निम्नलिखित पर लागू नहीं होगी:- भारत सरकार की सेवा के अधिकारियों द्वारा विद्रोह और अभिजन को दंडित करने वाले किसी अधिनियम के प्रावधान - किसी विशेष या स्थानीय कानून के प्रावधानइसका मतलब यह है कि अगर कोई भारत सरकार का अधिकारी है, सैनिक है, नौसेना का सदस्य है, या वायु सेना का सदस्य है, और वह विद्रोह या अभिजन में शामिल है, तो उसे इस अधिनियम के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे उस कानून के तहत दंडित किया जाएगा जो विशेष रूप से भारत सरकार के अधिक��रियों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सेना के सदस्यों को दंडित करने के लिए बनाया गया है।उदाहरण के लिए, अगर कोई सैनिक विद्रोह में शामिल है, तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे सैन्य कानून के तहत दंडित किया जाएगा।इसी प्रकार, अगर कोई नौसेना का सदस्य अभिजन में शामिल है, तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे नौसेना कानून के तहत दंडित किया जाएगा।धारा 5 यह सुनिश्चित करती है कि भारत सरकार के अधिकारियों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सेना के सदस्यों को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा, जब तक कि वे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध नहीं करते हैं। धारा 6 - संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना *धारा 6: परिभाषाओं के अपवाद** यह धारा कहती है कि इस संहिता में हर अपराध की परिभाषा, हर दंड उपबंध और हर ऐसी परिभाषा या दंड उपबंध का हर दृष्टांत, "साधारण अपवाद" शीर्षक वाले अध्याय में शामिल अपवादों के अधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दंड उपबंध या दृष्टांत में दोहराया न गया हो।* *उदाहरण:* * इस संहिता की वे धाराएं, जिनमें अपराधों की परिभाषाएं शामिल हैं, यह स्पष्ट नहीं करती हैं कि सात वर्ष से कम आयु का बच्चा ऐसे अपराध नहीं कर सकता, लेकिन परिभाषाओं को उस साधारण अपवाद के अधीन समझा जाता है जिसमें यह प्रावधान है कि कोई भी काम, जो सात वर्ष से कम आयु के बच्चे द्वारा किया जाता है, अपराध नहीं है। * क, एक पुलिस अधिकारी, बिना वारंट के, य को पकड़ लेता है, जिसने हत्या की है। यहां क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि वह य को पकड़ने के लिए कानून द्वारा बाध्य था, और इसलिए यह मामला उस सामान्य अपवाद के अंतर्गत आता है, जिसमें यह प्रावधान है कि "कोई भी काम अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो उसे करने के लिए कानून द्वारा बाध्य है।"* यह धारा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि अपराध की परिभाषाओं और दंड उपबंधों की व्याख्या करते समय अदालतें "साधारण अपवाद" को ध्यान में रखें। यह यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि अपराधों की परिभाषाओं और दंड उपबंधों की व्याख्या उचित और न्यायसंगत तरीके से की जाए। धारा 7 - एक बार स्पष्टीकॄत पद का भाव *धारा 7 का सरल अर्थ:*धारा 7 के अनुसार, यदि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में किसी शब्द को परिभाषित किया गया है, तो उस शब्द को पूरे आईपीसी में उसी अर्थ में इस्तेमाल किया जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों का मतलब स्पष्ट और सुसंगत हो।*उदाहरण:** धारा 299 में "अपवित्रता" शब्द को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, अपवित्रता का मतलब है "कोई भी शब्द, इशारा या कृत्य जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।" इसलिए, आईपीसी में हर जगह "अपवित्रता" शब्द का इस्तेमाल इसी अर्थ में किया जाएगा। * धारा 300 में "हत्या" शब्द को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, हत्या का मतलब है "किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनना।" इसलिए, आईपीसी में हर जगह "हत्या" शब्द का इस्तेमाल इसी अर्थ में किया जाएगा।*संबंधित धाराएँ:** धारा 3: यह धारा "कारण" शब्द को परिभाषित करती है। * धारा 5: यह धारा "सद्भावना" शब्द को परिभाषित करती है। * धारा 6: यह धारा "बाध्यता" शब्द को परिभाषित करती है।*भारतीय दंड संहिता और भारतीय आपराधिक कानून में धारा 7 का महत्व:*धारा 7 आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करती है। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी को लागू करते समय कोई भ्रम या अनिश्चितता न हो। यह न्यायाधीशों और वकीलों को आईपीसी को सही ढंग से समझने और लागू करने में मदद करता है।धारा 7 आईपीसी की एक महत्वपूर्ण धारा है जो आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करती है। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी को लागू करते समय कोई भ्रम या अनिश्चितता न हो। यह न्यायाधीशों और वकीलों को आईपीसी को सही ढंग से समझने और लागू करने में मदद करता है। धारा 8 - लिंग धारा 8, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), लिंग-तटस्थ भाषा के उपयोग पर लागू होती है। यह निर्दिष्ट करता है कि जहां किसी व्यक्ति के लिंग को शामिल करने वाला शब्द या वाक्यांश का उपयोग किया जाता है, वहाँ यह दोनों लिंगों के व्यक्तियों पर लागू होगा।*उदाहरण के लिए:*- धारा 300, आईपीसी, "हत्या" को परिभाषित करता है। यदि यह धारा "पुरुष" शब्द का उपयोग करती, तो यह केवल पुरुषों के खिलाफ हत्या के लिए लागू होती। हालाँकि, धारा 8 के कारण, यह धारा महिलाओं के खिलाफ हत्या के लिए भी लागू होती है। - धारा 376, आईपीसी, "बलात्कार" को परिभाषित करता है। यदि यह धारा "पुरुष" शब्द का उपयोग करती, तो यह केवल पुरुषों द्वारा बलात्कार के लिए लागू होती। हालाँकि, धारा 8 के कारण, यह धारा महिलाओं द्वारा बलात्कार के लिए भी लागू होती है।धारा 8 का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए भी किया जाता है कि आईपीसी में निहित विभिन्न अपराधों के दंड दोनों लिंगों के व्यक्तियों के लिए समान हैं। उदाहरण के लिए, धारा 302, आईपीसी, "हत्या" के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान करती है। यह दंड पुरुषों और महिलाओं दोनों पर समान रूप से लागू होता है।धारा 8 यह सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि आईपीसी लिंग-निरपेक्ष हो और यह पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार करता हो। यह लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। धारा 9 - वचन धारा 9: एकवचन और बहुवचनभारतीय दंड संहिता की धारा 9 एक व्याख्यात्मक प्रावधान है जो इस बात का मार्गदर्शन करती है कि जब तक संदर्भ से अन्यथा स्पष्ट न हो, एकवचन वाचक शब्दों में बहुवचन भी शामिल है और बहुवचन वाचक शब्दों में एकवचन भी शामिल है। दूसरे शब्दों में, जब कोई कानून एकवचन या बहुवचन शब्द का उपयोग करता है, तो उसका आशय है कि उस शब्द में दोनों संख्याएँ शामिल हैं, जब तक कि कानून के विशिष्ट शब्दांकन या संदर्भ से यह स्पष्ट न हो कि केवल एक संख्या का उल्लेख किया गया है।उदाहरण के लिए, यदि कोई कानून कहता है कि "कोई व्यक्ति जो चोरी करता है उसे कारावास से दंडित किया जाएगा," तो इसका मतलब है कि एक व्यक्ति जो एक वस्तु चुराता है या एक व्यक्ति जो कई वस्तुओं की चोरी करता है, दोनों को कारावास से दंडित किया जाएगा। इसी तरह, यदि कोई कानून कहता है कि "कोई व्यक्ति जो हत्या करता है उसे मौत की सजा दी जाएगी," तो इसका मतलब है कि एक व्यक्ति जो एक व्यक्ति की हत्या करता है या एक व्यक्ति जो कई व्यक्तियों की हत्या करता है, दोनों को मौत की सजा दी जाएगी।धारा 9 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कानून स्पष्ट और संक्षिप्त हों, और यह कि कानूनी प्रक्रिया में अनावश्यक देरी या भ्रम से बचा जाए। धारा 9 यह सुनिश्चित करने में भी मदद करती है कि कानून भेदभावपूर्ण न हो, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि कानून उन व्यक्तियों पर भी लागू होते हैं जो एकवचन या बहुवचन शब्दों का उपयोग करते हैं।धारा 9 भारतीय दंड संहिता की कई अन्य धाराओं से संबंधित है, जिसमें धारा 10 (शब्दों के अर्थ) और धारा 11 (अनुपातिक व्याख्या) शामिल हैं। धारा 10 शब्दों और वाक्यांशों के अर्थों को परिभाषित करती है, जबकि धारा 11 यह निर्दिष्ट करती है कि कानूनों की व्याख्या एक उचित और आनुपातिक तरीके से की जानी चाहिए। इन धाराओं को एक साथ पढ़ने से, यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय दंड संहिता का उद्देश्य स्पष्ट और निष्पक्ष कानून बनाना है जो सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं। धारा 10 - “पुरुष”। “स्त्री” *धारा 10: पुरुष और स्त्री की परिभाषा** *पुरुष:* यह शब्द किसी भी उम्र के मानव नर को संदर्भित करता है। यह शब्द व्यापक है और इसमें लड़के और वयस्क पुरुष दोनों शामिल हैं। * *स्त्री:* यह शब्द किसी भी उम्र की मानव नारी को संदर्भित करता है। यह शब्द भी व्यापक है और इसमें लड़कियाँ और वयस्क महिलाएँ दोनों शामिल हैं।धारा 10 भारतीय दंड संहिता की व्याख्यात्मक धाराओं में से एक है। यह धारा भारतीय दंड संहिता में प्रयुक्त शब्दों "पुरुष" और "स्त्री" को परिभाषित करती है। ये परिभाषाएँ भारतीय दंड संहिता में अपराधों की परिभाषा और व्याख्या करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।उदाहरण के लिए, धारा 302 भारतीय दंड संहिता में हत्या के अपराध को परिभाषित करती है। यह धारा कहती है कि "जो कोई भी किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध, किसी ऐसे कृत्य से मृत्यु का कारण बनता है जो मृत्यु का कारण बनने की संभावना है, वह हत्या का दोषी होगा"। इस धारा में "व्यक्ति" शब्द का प्रयोग किया गया है। यह शब्द धारा 10 के अनुसार "किसी भी उम्र का मानव नर या मानव नारी" को संदर्भित करता है। इसलिए, धारा 302 भारतीय दंड संहिता के तहत हत्या का अपराध किसी भी व्यक्ति की हत्या के लिए किया जा सकता है, चाहे वह व्यक्ति पुरुष हो या महिला, बालक हो या वयस्क।धारा 10 भारतीय दंड संहिता की एक महत्वपूर्ण धारा है। यह धारा भारतीय दंड संहिता में प्रयुक्त शब्दों "पुरुष" और "स्त्री" को परिभाषित करती है। ये परिभाषाएँ भारतीय दंड संहिता में अपराधों की परिभाषा और व्याख्या करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। धारा 11 - व्यक्ति धारा 11 भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की व्याख्या:1. "व्यक्ति" की परिभाषा: - धारा 11 के अनुसार, "व्यक्ति" शब्द में कोई भी कंपनी, एसोसिएशन या व्यक्ति निकाय शामिल है, चाहे वह निगमित हो या नहीं। - इसका मतलब यह है कि कानून की नजर में, न सिर्फ इंसान, बल्कि कंपनियां, संगठन और अन्य संस्थाएं भी "व्यक्ति" के दायरे में आती हैं।2. उदाहरण: - एक कंपनी जो पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करती है, उसे आईपीसी के प्रावधानों के तहत दंडित किया जा सकता है। - एक एसोसिएशन जो लोगों के बीच झगड़े या हिंसा को बढ़ावा देती है, उसे आईपीसी के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। - एक व्यक्ति निकाय जो धोखाधड़ी या जालसाजी में शामिल है, उसे आईपीसी के तहत दंडित किया जा सकता है।3. प्रासंगिक तथ्य: - धारा 11 आईपीसी में एक महत्वपूर्ण परिभाषा खंड है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि "व्यक्ति" शब्द का उपयोग पूरे आईपीसी में किस अर्थ में किया जाएगा। - धारा 11 में "व्यक्ति" की परिभाषा "वैधानिक व्यक्ति" की अवधारणा से संबंधित है। वैधानिक व्यक्ति वे संस्थाएं या संगठन हैं जिन्हें कानून ने एक कानूनी इकाई के रूप में मान्यता दी है। - "व्यक्ति" की परिभाषा आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।4. अन्य संबंधित धाराएँ: - आईपीसी की धारा 12 "अपराध" की परिभाषा प्रदान करती है और धारा 13 "अवरोध" की परिभाषा प्रदान करती है। ये धाराएँ आईपीसी में अपराधों की अवधारणा को समझने के लिए आवश्यक हैं। - आईपीसी की धारा 34 "सामान्य इरादा" की अवधारणा को परिभाषित करती है, जबकि धारा 35 "अप्रत्यक्ष उत्तरदायित्व" की अवधारणा को परिभाषित करती है। ये धाराएँ आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को समझने के लिए आवश्यक हैं।निष्कर्ष: धारा 11 आईपीसी में एक महत्वपूर्ण परिभाषा खंड है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि "व्यक्ति" शब्द का उपयोग पूरे आईपीसी में किस अर्थ में किया जाएगा। "व्यक्ति" की परिभाषा आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। धारा 12 - लोक *धारा 12: लोक**सरल शब्दों में व्याख्या:** "लोक" शब्द का अर्थ है एक बड़ा समूह या लोगों का समुदाय। * यह एक अपराध को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह तय करता है कि क्या कोई कार्रवाई एक अपराध है या नहीं। * यह निर्धारित करने के लिए कि कोई कार्रवाई "सार्वजनिक" है या नहीं, अदालतें निम्नलिखित कारकों पर विचार करेंगी:* क्या कार्रवाई एक सार्वजनिक स्थान पर हुई थी। * क्या कार्रवाई कई लोगों द्वारा देखी गई थी। * क्या कार्रवाई सामाजिक शांति या व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है।*उदाहरण:** यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक पार्क में नग्न दौड़ता है, तो यह एक सार्वजनिक अपराध माना जाएगा क्योंकि यह एक सार्वजनिक स्थान पर हुआ था और इसे कई लोगों ने देखा था। * यदि कोई व्यक्ति अपने घर में नग्न दौड़ता है, तो इसे सार्वजनिक अपराध नहीं माना जाएगा क्योंकि यह एक सार्वजनिक स्थान पर नहीं हुआ था और इसे किसी ने नहीं देखा था।*संबंधित धाराएँ:** धारा 11: "अपराध" की परिभाषा देता है। * धारा 23: "सहमति" की परिभाषा देता है। * धारा 29: "आवश्यकता" की परिभाषा देता है। * धारा 30: "उकसावे" की परिभाषा देता है।*निष्कर्ष:*धारा 12 यह परिभाषित करती है कि "लोक" शब्द का अर्थ क्या है और यह किसी अपराध को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण है। अदालतें यह निर्धारित करने के लिए कई कारकों पर विचार करेंगी कि कोई कार्रवाई "सार्वजनिक" है या नहीं, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या कार्रवाई सार्वजनिक स्थान पर हुई थी, क्या इसे कई लोगों ने देखा था, और क्या यह सामाजिक शांति या व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है। धारा 13 - “क्वीन” की परिभाषा *धारा 13 का सरलीकृत स्पष्टीकरण*धारा 13 को भारतीय दंड संहिता, 1860 के विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा निरस्त कर दिया गया है। इस धारा में "क्वीन" शब्द को परिभाषित किया गया था, जो कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की संप्रभु थी। निरस्तीकरण के बाद, धारा 13 अब भारतीय दंड संहिता का हिस्सा नहीं है। इसलिए, इस धारा के बारे में विस्तार से चर्चा करना और उदाहरण देना प्रासंगिक नहीं है। धारा 14 - सरकार का सेवक *धारा 14: सरकार का सेवक (Government Read the full article
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lawspark · 1 year ago
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Basic Features Of The Constitution
Basic Features Of The Constitution
It is necessary to identify the basic features of the Constitution which are non-amendable under Art. 368. The question has been considered by the Court from time to time, and several such features have been identified, but the matter still remains an open one; no exhaustive list of such features has yet emerged and the Court has to decide from case to case whether a constitutional feature can be characterised as basic or not.   In the seminal Kesavananda case, Sikri Chief Justice mentioned the following as  the "basic foundation and structure" of the Constitution:   - Supremacy of the Constitution; - Separation of Powers between the legislature, the executive and the judiciary; - Republican and democratic form of Government; - Secular character of the Constitution, - Federal Character of the Constitution, - The dignity of the individual secured by the various Fundamental Rights and the mandate to build a welfare state contained in the directive principles; - The unity and integrity of the nation - Parliamentary system. The above features have been mentioned  as only illustrative and the list is not by any means exhaustive. Whether a feature of the Constitution is 'basic' or not is to be determined from time to time by the court as and when question arises.   Since Kesavananda, the matter has been considered by the Supreme Court is several cases and the Court has had occasion to declare several features of the Constitution as fundamental features or part of basic structure of the constitution of India. In Kihoto Hollohon, the Supreme Court has declared Democracy is the basic feature of the constitution.   In the same judgment Verma J. in his minority judgment declared : Democracy is a part of the basic structure of our Constitution; and the rule of law, and free and fair elections are basic features of democracy.   In Bommai Case, it has been observed: Democracy and Federalism are essential features of our Constitution and are part of its basic structure.   In the same judgment Supreme Court has ruled that secularism is a basic or an essential feature of the Constitution.   In Indira Gandhi vs Rajnarain, the Supreme Court has unequivocally ruled that the Preamble to the Indian Constitution guarantees equality of status and of opportunity and that the Rule of law is the basic structure of the Constitution.   In plethora of cases, the Supreme Court has asserted that independence of Judiciary is a basic feature of the Constitution as it is the sine qua non of the democracy; it is the most essential characteristic of a free society. Blog Lawspark Academy
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भारतीय संविधान से संबंधित 100 महत्वपूर्ण प्रश्न उतर
भारतीय संविधान से संबंधित 100 महत्वपूर्ण प्रश्न उतर हिंदी में - संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई थी-9 दिसंबर1946 - आंध्र प्रदेश राज्य का गठन किस वर्ष किया गया-1953 - मतदाता दिवस कब मनाया जाता है-25 जनवरी - संविधान सभा की प्रथम बैठक के अध्यक्ष कौन थे- सच्चिदानंद सिन्हा( अस्थाई अध्यक्ष) - भारत सरकार का लेखांकन का कार्य कौन करता है- महालेखाकार - कारगिल दिवस का गठन किस वर्ष हुआ-26 जुलाई - भारत सरकार का प्रथम विधिक सलाहकार कौन होता है -महान्यायवादी - उद्देशिका प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया- पंडित जवाहरलाल नेहरू - प्रधानमंत्री के कर्तव्यों का उल्लेख किस अनुच्छेद में है- अनुच्छेद 78 - भारत में संविधान सभा के निर्माण का आधार क्या था- कैबिनेट मिशन योजना 1946 - प्रस्तावना में भारत शब्द कितनी बार उल्लेख हुआ है- दो बार - प्रारूप समिति का गठन कब किया गया-29 अगस्त1947 - संविधान में भारत को क्या कहा गया है- राज्यों का संघ - भारत के संविधान को लागू कब किया गया- 26 जनवरी 1950 - संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में किस संशोधन द्वारा समाप्त किया गया- 44 वें संविधान संशोधन द्वारा - मुस्लिम हेतु प्रथक निर्वाचन प्रणाली लागू की गई- मार्ले मिंटो सुधार द्वारा - 10वीं अनुसूची का संबंध किससे है- दल-बदल विधेय��� - उद्देश्य प्रस्ताव कब प्रस्तुत किया गया-13 दिसंबर1946 - नगर पालिकाओं को संवैधानिक मान्यता किस संशोधन द्वारा प्रदान की गई है- 74 संविधान संशोधन - झंडा समिति के अध्यक्ष कौन थे- जे बी कृपलानी - धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है- अनुच्छेद 25 - पंचायती राज दिवस कब मनाया जाता है-24 अप्रैल - भारत के संविधान को अंगीकृत करने की तिथि क्या है-26 नवंबर1949 - देश के एकमात्र निर्विरोध राष्ट्रपति कौन चुने गए-नीलम संजीव रेड्डी - प्रारूप समिति को कब पारित किया गया-23 फरवरी1948 -  पॉकेट वीटो( जेबी वीटो) का इस्तेमाल किस राष्ट्रपति ने किया- ज्ञान जैल सिंह - उद्देश्य प्रस्ताव कब पारित किया गया-22 जनवरी1947 - भारत में जनहित याचिका वाद(Public Interest Litigation) का जनक किसे कहा जाता है -P. N. भगवती - संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष कौन और कब बने-राजेंद्र प्रसाद, 11 दिसंबर1946 - संयुक्त उच्च न्यायालय की स्थापना किसके द्वारा की जाती है- संसद द्वारा - प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे- डॉ. भीमराव अंबेडकर - संविधान सभा के उपाध्यक्ष कौन थे -एच. सी. मुखर्जी - कैबिनेट मिशन में संविधान सभा के सदस्यों की संख्या कितनी निर्धारित की थी-389 - संविधान संशोधन प्रक्रिया कहां से ली गई है- दक्षिण अफ्रीका से - संविधान निर्माण के समय संविधान में कितनी अनुसूचियां थी-8 - मूल कर्तव्य किस की अनुशंसा पर जोड़े गए थे -सरदार पूर्ण सिंह - 42 वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में कितने शब्द जोड़े गए थे- समाजवादी धर्मनिरपेक्ष एवं एकता और अखंडता - संविधान में समवर्ती सूची का प्रावधान कहां से लिया गया है -ऑस्ट्रेलिया से - मूल कर्तव्य किस के संविधान से लिए गए हैं- भूतपूर्व सोवियत संघ - ग्यारहवीं अनुसूची किस संविधान संशोधन के द्वारा जुड़ी हुई- 73वें संविधान संशोधन द्वारा 1992 - मूल कर्तव्यों को किस भाग तथा अनुच्छेद में डाला गया है- अनुच्छेद 51A तथा भाग 4A - दसवीं अनुसूची किस संविधान संशोधन के द्वारा जोड़ी गई- 52 वे संविधान संशोधन द्वारा 1985 में - भारतीय संविधान में अनुसूचियां की संख्या कितनी है- 12 अनुसूची - किस सूची में पंचायती राज व्यवस्था ओं का वर्णन किया गया है- 11वीं अनुसूची - भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किस अनुसूची में मिलता है- आठवीं अनुसूची - 92 संविधान संशोधन द्वारा कौन-कौन सी भाषाएं जोड़ी गई है- बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली (BDMS) - केंद्र तथा राज्य के बीच शक्तियों का बंटवारा किस अनुसूची के अंतर्गत आता है- सातवीं अनुसूची - अवशिष्ट शक्तियों को केंद्र को सौंपने का लक्षण लिया गया है -कनाडा के संविधान से - सातवीं अनुसूची में किस प्रकार की अनुसूची ओं का वर्णन है- संघ सूची, राज्य सूची ,समवर्ती सूची - किस अधिनियम द्वारा भारत का गवर्नर जनरल पद सृजित किया गया -1833 का चार्टर एक्ट - किस अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के बारे में वर्णन किया गया है- पांचवी अनुसूची - भारत के प्रथम व��यसराय कौन थे -लॉर्ड कैनिंग - दलबदल विधेयक से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किस अनुसूची के अंतर्गत आता है- दसवीं अनुसूची - 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे कारखाने में काम नहीं कर सकते किस अनुच्छेद के द्वारा कहा गया है- अनुच्छेद 24 - वायसराय का पद कब सृजित किया गया- 1858 का भारत शासन अधिनियम - हम भारत के लोग… जैसी शब्दावली का उल्लेख संविधान में कहां किया गया है -प्रस्तावना में - न्यायिक समीक्षा की अवधारणा कहां से ली गई है- अमेरिका से - बंगाल के पहले गवर्नर कौन थे -वारेन हेस्टिंग्स - राष्ट्रपति किस अनुच्छेद के द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है -अनुच्छेद 108 - सर्वोच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश कौन थे- हीरालाल जी कानिया - भारतीय संविधान का सबसे बड़ा स्रोत क्या है -1935 का भारत शासन अधिनियम - पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता हेतु किस समिति ने सिफारिश की थी- लक्ष्मी मल्ल सिंघवी - 1935 के अधिनियम को किसने दासता का अधिकार पत्र कहा -पंडित जवाहरलाल नेहरू - संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार कौन थे- सर बी.एन राव - विधि दिवस कब मनाया जाता है -26 नवंबर - मंत्रिमंडल शब्द का उल्लेख किस अनुच्छेद में है -अनुच्छेद 352 - प्रथम बार राष्ट्रीय ध्वज कब फहराया गया था -26 जनवरी 1930 - शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा का प्रतिबंध किस अनुच्छेद के तहत लगाया गया- अनुच्छेद 28 - कांग्रेस के किस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की घोषणा हुई- लाहौर 1929 - मतदाता की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष किस संविधान संशोधन द्वारा की गई- 61 संविधान संशोधन1989 - डॉक्टर भीमराव अंबेडकर किस प्रदेश से संविधान सभा में सदस्य थे -मुंबई - राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइन किसने तैयार की थी – पिंगली वेंकैया - आधुनिक भारत का मनु किसे कहा जाता है- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर - दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को बुला सकता है -राष्ट्रपति - भारत में प्रथम आम चुनाव कब हुआ- 1951-52 - नवी अनुसूची किस संविधान संशोधन द्वारा जोड़ी गई -प्रथम संविधान संशोधन द्वारा 1951 - संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किस संशोधन के द्वारा किया गया -42 वें संविधान संशोधन द्वारा - शोषण के विरुद्ध अधिकार किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है -अनुच्छेद 23- 24 - मौलिक अधिकार किस देश के संविधान से लिए गए हैं -अमेरिका - किस संविधान संशोधन द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी का दर्जा दिया गया -69 वें संविधान संशोधन द्वारा - ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत किस अधिनियम द्वारा किया गया- 1858 का भारत शासन अधिनियम - लोक लेखा समिति में कितने और किस सदन के सदस्य होते हैं- 22 सदस्य( लोकसभा-15, राज्यसभा-7) - राष्ट्रीय आपात किस में कौन सा अनुच्छेद का निलंबन को जाता है- अनुच्छेद 19 - संसद की प्रथम बैठक कब हुई थी -13 मई 1952 - कौन अपने पद की शपथ नहीं लेता है – लोकसभा अध्यक्ष - 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन के समय देश के प्रधानमंत्री कौन थे – P.V.नरसिम्हा राव - भारत का राष्ट्रपति किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है -अनुच्छेद 52 - महाभियोग की प्रक्रिया का उल्लेख किस अनुच्छेद में है- अनुच्छेद 61 - भारत का उप राष्ट्रपति किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है- अनुच्छेद 63 - भारतीय संविधान का मैग्नाकार्टा किस भाग को कहा जाता है- भाग 3 (मौलिक अधिकार) - धन विधेयक को संसद के किस सदन में पेश किया जाता है- लोकसभा - डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने किस अधिकार को भारतीय संविधान की आत्मा कहा है-संवैधानिक उपचारों का अधिकार( अनुच्छेद 32) - किस संशोधन द्वारा संपत्ति के मूल अधिकार को एक कानूनी अधिकार बनाया गया -44 वें संविधान संशोधन 1979 - राज्यसभा का पदेन सभापति कौन होता है -उपराष्ट्रपति - केंद्र और राज्य के बीच संबंध ,समवर्ती सूची, प्रस्तावना की भाषा कहां से लिए गए- ऑस्ट्रेलिया - राष्ट्रपति संसद में कितने सदस्य मनोनीत करता है- 14( राज्यसभा-12, लोकसभा-2 ) - प्राक्कलन समिति में कितने और किस सदन के सदस्य होते हैं- लोकसभा के 30 सदस्य - धन विधेयक किस अनुच्छेद में उल्लेखित है -अनुच्छेद 110 - प्रांतीय संविधान समिति के अध्यक्ष कौन थे- सरदार बल्लभ भाई पटेल - संसद में धन विधेयक को प्रस्तुत करने के पूर्व किसकी अनुमति आवश्यक है -राष्ट्रपति Blog Lawspark Academy
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lawspark · 1 year ago
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LANDMARK CASES OF THE CONSTITUTION
LANDMARK CASES
So, college students often struggle with case laws, especially on the subject of the constitution. Here is the list of 10 landmark judgments of the Constitution of India. These cases are important not only for your college exams but will also help you in Judiciary exams. So, let’s get started!  
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TOP 10 LANDMARK CASES OF THE CONSTITUTION
Romesh Thappar v. State of Madras (1950) The SC held that freedom of propagating ideas through circulars is included in freedom of speech and expression. State of Madras v. Amt. Champakam Dorairajan (1951) The judgment led to the addition of this subsection (4) by the First Constitutional Amendment Act, 1951. Specifically, the Madras Government has reserved places in State engineering and medical institutes for various communities based on classes, religion, and race. This was challenged before the court as it violates Article 15 (1) of the Constitution. The SC held that the statute invalidates seat reservations based on race, religion, and caste (caste reservation in India) since it categorises students based on their castes, religions, and other factors rather than their academic ability. Clause (4) was inserted into Article 15 to mitigate the impact of the aforementioned SC judgment. This Article gives the STATE the authority to make specific provisions for the scheduled castes and scheduled tribes and for socially and educationally marginalized classes of citizens. K.M. Nanavati v. State of Maharashtra (1959) At Sessions Court, the appellant was charged under S. 302 & S. 304 of the IPC and was tried by the Sessions Judge with the aid of a special jury. The jury passed a verdict of “not guilty” by 8: 1 majority under both the provisions of IPC, which was not agreed by the Sessions Judge, as in his view, the jury’s verdict was such that with regards to the evidence shown.
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So, the learned Sessions Judge submitted the case under 307 of CrPC to the Bombay High Court & the Division Bench comprising of Justices Shelat and Naik passed separate judgments but held that the accused was guilty of murder under s. 302 of IPC and sentenced him to undergo rigorous imprisonment for life. Both the Justices of the High Court stated that there was misdirection to the jury and that the accused was clearly guilty of murder. No reasonable body must arrive at such a conclusion as delivered by the jury. I.C. Golaknath and ors. v. State of Punjab and Anr. (1967) The main issue dealt with in this case was- Can an amendment be considered a law and whether or not fundamental rights can be amended? The SC stated that Fundamental Rights are not amendable under Article 13, and a new Constituent Assembly would be needed to modify such rights. Additionally, it was noted that while Article 368 outlines the process for amending the Constitution, it does not grant Parliament the authority to do so. Keshavananda Bharati v. State of Kerala (1973) The Supreme Court defined the basic structure in this case. the court held that although the Parliament had the authority to amend any portion of Constitution, including the Fundamental Rights, the basic structure of the constitution could not be abrogated even by constitutional amendment. This acts as the basis of Indian law for the judiciary's power to invalidate any amendment made by Parliament those conflicts with the Constitution's fundamental principles. Maneka Gandhi v. UOI (1978) Whether the freedom to go abroad falls under Article 21's definition of the Right to Personal Liberty was a key question in this case. According to the SC, it is a part of the right to personal liberty. The SC further held that restricting personal freedom did not require more than the existence of an enabling law. Additionally, such a law must be "just, fair, and reasonable." Minerva Mills Ltd. V. UOI (1980) This case once again strengthens the Basic Structure concept. The decision declared two amendments introduced to the Constitution by the 42nd Amendment Act of 1976 to be against the basic structure and invalidated them. It is quite evident from the ruling that the Constitution, not the Parliament, is superior. Mohd. Ahmed Khan v. Shah Bano Begum and ors. (1985) This is a crucial case in the struggle for Muslim women’s rights. The SC affirmed a Muslim woman's claim to alimony and declared that everyone, regardless of religion, is subject to the 1973 Code of Criminal Procedure. This sparked a political debate, and the ruling was overturned by the government of the day by passing the Muslim Women (Protection on Divorce Act), 1986, which stipulates that alimony must only be paid during the iddat period (in tune with the Muslim personal law). M.C. Mehta v. UOI (1986) Three issues were addressed in this case: the application of Article 32, the application of the Rylands v. Fletcher rule of absolute liability, and the compensation problem. The SC held that its authority under Article 32 extends to corrective and preventive actions where rights are violated. Additionally, it was decided that Absolute Liability should be used in industries that participate in risky or intrinsically harmful activity. Finally, it added that in order to act as a deterrence, the compensation must be proportionate to the size and potential of the industry. Vishaka and Ors v. State of Rajasthan (1997) This case involved workplace sexual harassment. In its judgment, the SC provided a set of guidelines for employers and other accountable parties or organisations to ensure the avoidance of sexual harassment right away. They are referred to as "Vishaka Guidelines." Until the relevant legislation was passed, these were regarded as being in effect.
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List of 100+ Landmark Cases of Supreme Court India: - His Holiness Kesavananda Bharati vs State of Kerala (Kesavananda Bharati Case ) - Landmark Judgement by Supreme Court 13 Judges Bench which propounded the Basic Structure Doctrine or Essential Feature Theory. In this case Golak Nath Case was overruled and Bench in majority said that Parliament can amend any part of Indian Constitution but it can not destroy the basic structure. SC said the parliament has limited amending power.  - Maneka Gandhi vs Union of India - Article 21 Case / Era of Right to life started expanding from this case. - Justice K S Puttaswamy vs Union of India - Right to Privacy Case - Shankari Prasad vs Union of India - Power of (Provisional) Parliament to Amend Constitution and specially Fundamental Rights - Sajjan Singh vs State of Rajasthan - Power of Parliament to Amend the Constitution - A K Gopalan vs State of Madras - Preventive Detention Act 1950 - Romesh Thappar vs State of Madras - Freedom of Speech - Post publication prevention of circulation of crossroad weekly magazine resulted in violation of freedom of speech - Brij Bhushan Sharma vs Delhi - Freedom of Speech - Pre Publication Censorship of Organizer weekly resulted into violation of Freedom of Speech as per Supreme Court - State of Madras vs Champakam Dorairajan - Caste based reservation in admission to the educational institution - M P Sharma vs Satish Chandra Case - Right to Privacy Issue - Kharak Singh vs State of Uttar Pradesh - Whether  privacy is a part of fundamental right in our constitution - In Re Beruberi Case - Cession of a part of the territory of India, Exchange of enclave with Pakistan - Commissioner Hindu Religious Endowments Madras vs Sri Lakhmindra Thirtha Swamiar of Shirur Mutt - Essential Religious Practice Test - K M Nanavati vs State of Maharashtra - Jury Trial and Pardoning Power of Governor - I C Golaknath vs State of Punjab Case - Power of Parliament to Amend the Constitution. In 11 Judges case Supreme Court held that Part 3 of Indian Constitution is fundamental in nature and parliament can not amend Fundamental rights given in Indian Constitution. Court also held that Article 368 provides procedure for the constitutional amendments and Amendment to the constitution is law as per article 13 of Indian Constitution. Court also applied the principle of Prospective overruling in Golaknath case. - His Highness Maharajadhiraja Madhav Rao Jiwaji Rao Scindia vs Union of India - In this case abolition of privy purse of erstwhile rulers were abolished  through presidential order so the rulers challenged that decision of government. A constitution bench restored the privy purse of rulers and held the Presidential order as unconstitutional. - Indira Nehru Gandhi vs Raj Narain Case - Election of Indira Gandhi was challenged due to election malpractice - ADM Jabalpur vs Shivkant Shukla Case - One of the most contentious decision of Supreme Court of India. This case is also known as habeus  corpus case. During emergency many opposition leaders were detained. They challenged the govt action through writ petitions in various High Courts. Decisions of High Courts were challenged in Supreme Court and SC held that Fundamental Rights Can be suspended during emergency. Right to move to High Courts under Article 226 during emergency was in issue in this case. - S.P. Gupta vs President of India Case - Those high Court judges, who have issued habeus corpus petition during emergency were transferred to different High Courts. This action of Government was challenged in SP Gupta Case. Major issue in this case was appointment of Judges of High Courts & Supreme Court. As the petition was filed by an Advocate and not by any aggrieved judges so issue of locus standi also settled in this case for public interest litigation. Supreme Court held that Bar / Advocates are integral part of judicial system and they can challenge the issues related to Judiciary. - Bachan Singh vs State of Punjab - It was death penalty case. The court expounded the principle of Rarest of Rare case in Bachan Singh Case. Court said life imprisonment is the rule and Death Penalty / Capital Punishment is exception. Only in rarest of rare cases capital punishment can be awarded to convict of murder. - Hussainara Khatoon vs Home Secretary, State of Bihar - Rights of Undertrial Prisoners, Right to Speedy Trial under Article 21 of Indian Constitution - Minerva Mills Ltd vs Union of India - Harmony and Balance between Fundamental Rights and Directive Principle of State Policy. Basic Structure Doctrine was applied in this case. - Bandhua Mukti Morcha vs Union of India - PIL for those who can not reach Supreme Court or High Courts for their breach of fundamental rights. Whether a person whom legal injury is caused by reason of violation of a fundamental right is unable to approach the court, any member of the public acting bona fide can move the court for relief under  Article 32 or Article 226 - Indian Express Newspaper vs Union of India Case - Freedom of PRess under freedom of speech and expression given in Article 19(1)a of Indian Constitution - Bijoe Emmanuel vs State of Kerala Case - Whether forcing the children to sing the national anthem violated their fundamental right to religion. Right to silence is part of fundamental right under Article 19 in Freedom of Speech and Expression - Mohamad Ahmad Khan vs Shah Bano Begum Case - Providing Maintenance to a divorced Muslim Woman - M C Mehta vs Union of India Case - Responsibility of industries in an accident, compensation, scope and ambit of the jurisdiction of the Supreme Court of India under Article 32 - Dr. D C Wadhwa vs State of Bihar Case - Re Promulgation of Ordinances in the Bihar to bypass the state legislature. - Kehar Singh vs Union of India Case - Pardoning power of the President of India under Indian Constitution - Mohini Jain vs State of Karnataka Case - Right to Education related judgment - Indira Sawhney vs Union of India Case - Also known as Mandal Commission Case. Landmark Case on Reservation of other backward classes.  - Kihoto Hollohan vs Zachillu Case - When anti defection provisions were added in the Indian Constitution these were challenged through this case. A Leading Case on Anti Defection Law. - Unni Krishnan vs State of Andhra Pradesh - This case is also related to Right to Education - Supreme Court Advocate on Record Association vs Union of India Case - This case was about appointment of judges to Supreme Court of India and in High Courts in India. Also famous as Second Judges Case.  - S R Bommai vs Union of India - Proclamation of Emergency under Article 356 of Indian Constitution, Secularism. - Union of India vs Association for Democratic Reforms - Right to know about public functionaries and candidates for office. Article 19 of Indian Constitution under fundamental right of freedom of speech and expression also include right to know about the candidates contesting for the public offices.  - T M A Pai Foundation vs State of Karnataka - Rights of Minority Educational Institutions - Samantha vs State of Andhra Pradesh - Granting of mining licenses in the scheduled area to non tribals  - Vineet Narain vs Union of India - Curbing political influence in the functioning of CBI / Central Bureau of Investigation - Bodhisattwa Gautam vs Subhra Chakraborty - Whether rape is violative of Right to Life under Article 21 of Indian Constitution - Sarla Mudgal vs Union of India - Principles against the practice of solemnizing second marriage by conversion to islam, with first marriage not being dissolved  - People's Union for Civil Liberties vs Union of India - Right to Food - R Rajagopal vs State of Tamil Nadu - Freedom of Speech and expression - Right to publish autobiography - In Re Special Reference Case of 1998 - Also known as Third Judges Case - Appointment of Judges of Supreme Court and High Courts in India - T N Godavarman Thirumulkpad vs Union of India - Forest Conservation. A leading case on Environmental law and about writ of continuous mandamus. - L Chandra Kumar vs Union of India - Power of High Courts and Supreme Court to review the legislative action - Vishaka vs State of Rajasthan - Sexual Harassment at the workplace, In this case Supreme Court of India laid down guidelines known as Vishaka Guidelines for protection of women against sexual harassment at workplaces for the time being there is no such law enacted by legislature. - Ashok Kumar Thakur vs Union of India - Reservations to OBC in central educational institutions - Kuldip Nayar vs Union of India - Requirement of domicile in the state concerned for getting elected to the council of states / Rajya Sabha ; Principle of Federalism is basic structure of the Indian Constitution - M Nagaraj vs Union of India - Reservation in Promotions for Scheduled Caste and Scheduled Tribe employees - People's Union of Civil Liberties vs Union of India - Right of the Voters to know  about the candidates contesting the election - I R Coelho vs State of Tamil Nadu - Interpretation of the doctrine of basic structure of the Constitution of India. 9th Schedule is not immune from the judicial review. - John Vallamattom vs Union of India - Section 118 of the Indian Succession Act, Advocated a common civil code / uniform civil code for the cause of national integration - Jaya Bachchan vs Union of India - Disqualification on the ground of Office of Profit - P A Inamdar vs State of Maharashtra - Reservation policy on minority and non minority unaided private colleges including professional colleges - Prakash Singh vs Union of India - This case is about the Police Reforms in India - Aruna Ramchandra Shaunbaug vs Union of India - Recognition of passive euthnasia by Supreme Court. Permitted withdrawl of life sustaining treatment from patients not in position to make an informed decision, only after the report of medical board constituted by High Courts in respective jurisdiction. - Pramati Educational and Cultural Trust vs Union of India - Constitutional Validity of Right to Education Act - Gian Sing vs State of Punjab - Settlements and Quashing of Criminal Proceedings under Section 482 of CRPC - Subramaniam Swamy vs Union of India - Constitutionality of the criminal offence of defamation under Indian Penal Code - Medha Kotwal Lele vs Union of India - Court repeated the Vishaka Guidelines and stressed additional measures for their enforcement - Shabnam Hasmi vs Union of India - Whether the right to adopt and to be adopted is a fundamental right under part 3 of Indian Constitution - Lily Thomas vs Union of India - Disqualifications for membership of parliament and state legislatures of convicted of any offense and sentenced to imprisonment for not less than two years. Decriminalization of Politics in India Case - Suresh Kumar Koushal vs Naz Foundation - Constitutional Validity of  Section 377 of Indian Penal Code which criminalized the homosexuality - Government of NCT of Delhi vs Union of India - Power tussle between Delhi Government and LT. Governor i.e. Central Government - TSR Subramanian vs Union of India - Professionalanizing the bureaucracy, promoting efficiency and good governance   - Shreya Singhal vs Union of India - Freedom of Speech and Expression Case in digital or internet age. Read the full article
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lawspark · 1 year ago
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Basic Features Of The Constitution
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Basic Features Of The Constitution
It is necessary to identify the basic features of the Constitution which are non-amendable under Art. 368. The question has been considered by the Court from time to time, and several such features have been identified, but the matter still remains an open one; no exhaustive list of such features has yet emerged and the Court has to decide from case to case whether a constitutional feature can be characterised as basic or not.   In the seminal Kesavananda case, Sikri Chief Justice mentioned the following as  the "basic foundation and structure" of the Constitution:   - Supremacy of the Constitution; - Separation of Powers between the legislature, the executive and the judiciary; - Republican and democratic form of Government; - Secular character of the Constitution, - Federal Character of the Constitution, - The dignity of the individual secured by the various Fundamental Rights and the mandate to build a welfare state contained in the directive principles; - The unity and integrity of the nation - Parliamentary system. The above features have been mentioned  as only illustrative and the list is not by any means exhaustive. Whether a feature of the Constitution is 'basic' or not is to be determined from time to time by the court as and when question arises.   Since Kesavananda, the matter has been considered by the Supreme Court is several cases and the Court has had occasion to declare several features of the Constitution as fundamental features or part of basic structure of the constitution of India. In Kihoto Hollohon, the Supreme Court has declared Democracy is the basic feature of the constitution.   In the same judgment Verma J. in his minority judgment declared : Democracy is a part of the basic structure of our Constitution; and the rule of law, and free and fair elections are basic features of democracy.   In Bommai Case, it has been observed: Democracy and Federalism are essential features of our Constitution and are part of its basic structure.   In the same judgment Supreme Court has ruled that secularism is a basic or an essential feature of the Constitution.   In Indira Gandhi vs Rajnarain, the Supreme Court has unequivocally ruled that the Preamble to the Indian Constitution guarantees equality of status and of opportunity and that the Rule of law is the basic structure of the Constitution.   In plethora of cases, the Supreme Court has asserted that independence of Judiciary is a basic feature of the Constitution as it is the sine qua non of the democracy; it is the most essential characteristic of a free society. Blog Lawspark Academy
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भारतीय संविधान से संबंधित 100 महत्वपूर्ण प्रश्न उतर
भारतीय संविधान से संबंधित 100 महत्वपूर्ण प्रश्न उतर हिंदी में - संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई थी-9 दिसंबर1946 - आंध्र प्रदेश राज्य का गठन किस वर्ष किया गया-1953 - मतदाता दिवस कब मनाया जाता है-25 जनवरी - संविधान सभा की प्रथम बैठक के अध्यक्ष कौन थे- सच्चिदानंद सिन्हा( अस्थाई अध्यक्ष) - भारत सरकार का लेखांकन का कार्य कौन करता है- महालेखाकार - कारगिल दिवस का गठन किस वर्ष हुआ-26 जुलाई - भारत सरकार का प्रथम विधिक सलाहकार कौन होता है -महान्यायवादी - उद्देशिका प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया- पंडित जवाहरलाल नेहरू - प्रधानमंत्री के कर्तव्यों का उल्लेख किस अनुच्छेद में है- अनुच्छेद 78 - भारत में संविधान सभा के निर्माण का आधार क्या था- कैबिनेट मिशन योजना 1946 - प्रस्तावना में भारत शब्द कितनी बार उल्लेख हुआ है- दो बार - प्रारूप समिति का गठन कब किया गया-29 अगस्त1947 - संविधान में भारत को क्या कहा गया है- राज्यों का संघ - भारत के संविधान को लागू कब किया गया- 26 जनवरी 1950 - संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में किस संशोधन द्वारा समाप्त किया गया- 44 वें संविधान संशोधन द्वारा - मुस्लिम हेतु प्रथक निर्वाचन प्रणाली लागू की गई- मार्ले मिंटो सुधार द्वारा - 10वीं अनुसूची का संबंध किससे है- दल-बदल विधेयक - उद्देश्य प्रस्ताव कब प्रस्तुत किया गया-13 दिसंबर1946 - नगर पालिकाओं को संवैधानिक मान्यता किस संशोधन द्वारा प्रदान की गई है- 74 संविधान संशोधन - झंडा समिति के अध्यक्ष कौन थे- जे बी कृपलानी - धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है- अनुच्छेद 25 - पंचायती राज दिवस कब मनाया जाता है-24 अप्रैल - भारत के संविधान को अंगीकृत करने की तिथि क्या है-26 नवंबर1949 - देश के एकमात्र निर्विरोध राष्ट्रपति कौन चुने गए-नीलम संजीव रेड्डी - प्रारूप समिति को कब पारित किया गया-23 फरवरी1948 -  पॉकेट वीटो( जेबी वीटो) का इस्तेमाल किस राष्ट्रपति ने किया- ज्ञान जैल सिंह - उद्देश्य प्रस्ताव कब पारित किया गया-22 जनवरी1947 - भारत में जनहित याचिका वाद(Public Interest Litigation) का जनक किसे कहा जाता है -P. N. भगवती - संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष कौन और कब बने-राजेंद्र प्रसाद, 11 दिसंबर1946 - संयुक्त उच्च न्यायालय की स्थापना किसके द्वारा की जाती है- संसद द्वारा - प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे- डॉ. भीमराव अंबेडकर - संविधान सभा के उपाध्यक्ष कौन थे -एच. सी. मुखर्जी - कैबिनेट मिशन में संविधान सभा के सदस्यों की संख्या कितनी निर्धारित की थी-389 - संविधान संशोधन प्रक्रिया कहां से ली गई है- दक्षिण अफ्रीका से - संविधान निर्माण के समय संविधान में कितनी अनुसूचियां थी-8 - मूल कर्तव्य किस की अनुशंसा पर जोड़े गए थे -सरदार पूर्ण सिंह - 42 वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में कितने शब्द जोड़े गए थे- समाजवादी धर्मनिरपेक्ष एवं एकता और अखंडता - संविधान में समवर्ती सूची का प्रावधान कहां से लिया गया है -ऑस्ट्रेलिया से - मूल कर्तव्य किस के संविधान से लिए गए हैं- भूतपूर्व सोवियत संघ - ग्यारहवीं अनुसूची किस संविधान संशोधन के द्वारा जुड़ी हुई- 73वें संविधान संशोधन द्वारा 1992 - मूल कर्तव्यों को किस भाग तथा अनुच्छेद में डाला गया है- अनुच्छेद 51A तथा भाग 4A - दसवीं अनुसूची किस संविधान संशोधन के द्वारा जोड़ी गई- 52 वे संविधान संशोधन द्वारा 1985 में - भारतीय संविधान में अनुसूचियां की संख्या कितनी है- 12 अनुसूची - किस सूची में पंचायती राज व्यवस्था ओं का वर्णन किया गया है- 11वीं अनुसूची - भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किस अनुसूची में मिलता है- आठवीं अनुसूची - 92 संविधान संशोधन द्वारा कौन-कौन सी भाषाएं जोड़ी गई है- बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली (BDMS) - केंद्र तथा राज्य के बीच शक्तियों का बंटवारा किस अनुसूची के अंतर्गत आता है- सातवीं अनुसूची - अवशिष्ट शक्तियों को केंद्र को सौंपने का लक्षण लिया गया है -कनाडा के संविधान से - सातवीं अनुसूची में किस प्रकार की अनुसूची ओं का वर्णन है- संघ सूची, राज्य सूची ,समवर्ती सूची - किस अधिनियम द्वारा भारत का गवर्नर जनरल पद सृजित किया गया -1833 का चार्टर एक्ट - किस अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के बारे में वर्णन किया गया है- पांचवी अनुसूची - भारत के प्रथम वायसराय कौन थे -लॉर्ड कैनिंग - दलबदल विधेयक से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किस अनुसूची के अंतर्गत आता है- दसवीं अनुसूची - 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे कारखाने में काम नहीं कर सकते किस अनुच्छेद के द्वारा कहा गया है- अनुच्छेद 24 - वायसराय का पद कब सृजित किया गया- 1858 का भारत शासन अधिनियम - हम भारत के लोग… ��ैसी शब्दावली का उल्लेख संविधान में कहां किया गया है -प्रस्तावना में - न्यायिक समीक्षा की अवधारणा कहां से ली गई है- अमेरिका से - बंगाल के पहले गवर्नर कौन थे -वारेन हेस्टिंग्स - राष्ट्रपति किस अनुच्छेद के द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है -अनुच्छेद 108 - सर्वोच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश कौन थे- हीरालाल जी कानिया - भारतीय संविधान का सबसे बड़ा स्रोत क्या है -1935 का भारत शासन अधिनियम - पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता हेतु किस समिति ने सिफारिश की थी- लक्ष्मी मल्ल सिंघवी - 1935 के अधिनियम को किसने दासता का अधिकार पत्र कहा -पंडित जवाहरलाल नेहरू - संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार कौन थे- सर बी.एन राव - विधि दिवस कब मनाया जाता है -26 नवंबर - मंत्रिमंडल शब्द का उल्लेख किस अनुच्छेद में है -अनुच्छेद 352 - प्रथम बार राष्ट्रीय ध्वज कब फहराया गया था -26 जनवरी 1930 - शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा का प्रतिबंध किस अनुच्छेद के तहत लगाया गया- अनुच्छेद 28 - कांग्रेस के किस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की घोषणा हुई- लाहौर 1929 - मतदाता की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष किस संविधान संशोधन द्वारा की गई- 61 संविधान संशोधन1989 - डॉक्टर भीमराव अंबेडकर किस प्रदेश से संविधान सभा में सदस्य थे -मुंबई - राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइन किसने तैयार की थी – पिंगली वेंकैया - आधुनिक भारत का मनु किसे कहा जाता है- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर - दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को बुला सकता है -राष्ट्रपति - भारत में प्रथम आम चुनाव कब हुआ- 1951-52 - नवी अनुसूची किस संविधान संशोधन द्वारा जोड़ी गई -प्रथम संविधान संशोधन द्वारा 1951 - संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किस संशोधन के द्वारा किया गया -42 वें संविधान संशोधन द्वारा - शोषण के विरुद्ध अधिकार किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है -अनुच्छेद 23- 24 - मौलिक अधिकार किस देश के संविधान से लिए गए हैं -अमेरिका - किस संविधान संशोधन द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी का दर्जा दिया गया -69 वें संविधान संशोधन द्वारा - ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत किस अधिनियम द्वारा किया गया- 1858 का भारत शासन अधिनियम - लोक लेखा समिति में कितने और किस सदन के सदस्य होते हैं- 22 सदस्य( लोकसभा-15, राज्यसभा-7) - राष्ट्रीय आपात किस में कौन सा अनुच्छेद का निलंबन को जाता है- अनुच्छेद 19 - संसद की प्रथम बैठक कब हुई थी -13 मई 1952 - कौन अपने पद की शपथ नहीं लेता है – लोकसभा अध्यक्ष - 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन के समय देश के प्रधानमंत्री कौन थे – P.V.नरसिम्हा राव - भारत का राष्ट्रपति किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है -अनुच्छेद 52 - महाभियोग की प्रक्रिया का उल्लेख किस अनुच्छेद में है- अनुच्छेद 61 - भारत का उप राष्ट्रपति किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है- अनुच्छेद 63 - भारतीय संविधान का मैग्नाकार्टा किस भाग को कहा जाता है- भाग 3 (मौलिक अधिकार) - धन विधेयक को संसद के किस सदन में पेश किया जाता है- लोकसभा - डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने किस अधिकार को भारतीय संविधान की आत्मा कहा है-संवैधानिक उपचारों का अधिकार( अनुच्छेद 32) - किस संशोधन द्वारा संपत्ति के मूल अधिकार को एक कानूनी अधिकार बनाया गया -44 वें संविधान संशोधन 1979 - राज्यसभा का पदेन सभापति कौन होता है -उपराष्ट्रपति - केंद्र और राज्य के बीच संबंध ,समवर्ती सूची, प्रस्तावना की भाषा कहां से लिए गए- ऑस्ट्रेलिया - राष्ट्रपति संसद में कितने सदस्य मनोनीत करता है- 14( राज्यसभा-12, लोकसभा-2 ) - प्राक्कलन समिति में कितने और किस सदन के सदस्य होते हैं- लोकसभा के 30 सदस्य - धन विधेयक किस अनुच्छेद में उल्लेखित है -अनुच्छेद 110 - प्रांतीय संविधान समिति के अध्यक्ष कौन थे- सरदार बल्लभ भाई पटेल - संसद में धन विधेयक को प्रस्तुत करने के पूर्व किसकी अनुमति आवश्यक है -राष्ट्रपति Blog Lawspark Academy
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lawspark · 1 year ago
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सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र
परिचय
भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपील का अंतिम न्यायालय है और सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय है। इसे अपने पवित्र कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम बनाने के लिए, इसे बहुत व्यापक अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया है। न्यायालय, अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) न्यायालयों के आदेशों की अपील सुनता है, संविधान की व्याख्या और समर्थन करता है, नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और अंतर्राज्यीय (इंटरस्टेट) विवादों का समाधान करता है।
ऐतिहासिक अवलोकन
सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास का पता भारत सरकार अधिनियम, 1935 से लगाया जा सकता है। अधिनियम ने संघीय (फेडरल) न्यायालय की स्थापना की, जो संघीय राज्यों और प्रांतों (प्रोविंस) के बीच विवादों पर निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार था। इसके अलावा, संघीय न्यायालय को उच्च न्यायालयों से अपील सुनने का भी अधिकार था। सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और शक्तियां संघीय न्यायालय के समान हैं। भारतीय संविधा��� के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान है। सर्वोच्च न्यायालय 28 जनवरी, 1950 को चालू हुआ, और भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अध्यक्षता करने वाले पहले न्यायाधीश माननीय श्री न्यायमूर्ति हरिलाल जेकिसुंदस कानिया थे।
सर्वोच्च न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र 
मूल अधिकार क्षेत्र अदालत की वह शक्ति है कि वह मामले को पहले दृष्टांत के न्यायालय के रूप में सुने और निर्णय दे। अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करता है। यह प्रदान करता है कि न्यायालय मूल अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए सक्षम होगा: - केंद्र सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच विवादों में, - ऐसे विवादों में, जहां केंद्र सरकार और एक या अधिक राज्य एक पक्ष का गठन करते हैं और एक या अधिक राज्य दूसरे पक्ष का गठन करते हैं, - दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवादों में। - बंदी प्रत्यक्षीकरण (हेबियस कॉर्पस) : रिट यह सुनिश्चित करने के लिए कि हिरासत कानूनी है या गैरकानूनी, बंदी को अदालत के समक्ष पेश करने का आदेश देती है।44वें संविधान संशोधन के प्रभाव के आधार पर, जो यह प्रावधान करता है कि अनुच्छेद 21 को आपातकाल की घोषणा के समय भी निलंबित नहीं किया जा सकता है, बंदी प्रत्यक्षीकरण का रिट आपातकाल के समय भी प्रभावी ढंग से जारी किया जा सकता है।  - क्यू वारंटो : यह रिट एक अदालत द्वारा एक सार्वजनिक अधिकारी को जारी की जाती है जिसमें उसे अपने कार्यों के पीछे के अधिकार की व्याख्या करने की आवश्यकता होती है। लोक अधिकारी को उस प्राधिकरण (अथॉरिटी) को साबित ��रना आवश्यक होता है जिसके द्वारा वह पद धारण कर रहा है और सार्वजनिक कार्यालय की शक्तियों का प्रयोग कर रहा है। यह रिट आम ​​तौर पर सार्वजनिक पदों पर बैठे कार्यकारी (एक्जीक्यूटिव) अधिकारियों के खिलाफ जारी की जाती है। - परमादेश (मैंडेमस) : अदालत ने एक सरकारी अधिकारी को अपने सार्वजनिक कर्तव्य के निर्वहन (डिस्चार्ज) को फिर से शुरू करने का निर्देश देने के लिए परमादेश का एक रिट जारी किया। यह ध्यान देने योग्य है कि यह रिट किसी निजी व्यक्ति, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, भारत के राष्ट्रपति या किसी भी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ जारी नहीं की जा सकती है। - निषेध (प्रोहिबिशन) : न्यायालय यह रिट किसी अधीनस्थ न्यायालय को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने या हड़पने या कानून के उल्लंघन में कार्य करने से रोकने के लिए जारी करता है। यह रिट उस समय जारी की जाती है जब एक अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से अधिक मामले की सुनवाई करने का निर्णय लेता है। - सर्चियोररी : जहां अधीनस्थ न्यायालय किसी ऐसे मामले का निर्णय करता है जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है या जहां मामला नैसर्गिक (नेचुरल) न्याय सिद्धांतों के उल्लंघन में तय किया गया है, न्यायालय को सर्चियोररी की रिट जारी करने का अधिकार है, जिससे गलत निर्णय को रद्द किया जा सकता है। - एम. इस्माइल फारूकी बनाम भारत संघके मामले में, राष्ट्रपति ने बाबरी मस्जिद की जगह में एक मंदिर था या नहीं, इस मुद्दे पर न्यायालय की सलाहकार राय मांगी। हालांकि, न्यायालय ने माना कि राष्ट्रपति को न्यायालय की राय लेने के लिए उचित कारण बताना चाहिए। न्यायालय ने आगे कहा कि जहां वह कारणों को अनुचित मानता है, वहां वह सलाहकार राय देने के लिए बाध्य नहीं है। न्यायालय ने इस आधार पर अपनी सलाहकार राय देने से इनकार कर दिया कि संदर्भ अनावश्यक था।  - रीकेरल शिक्षा विधेयक बनाम अज्ञात (1958), में केरल शिक्षा विधेयक, 1957 केरल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किया गया था और राष्ट्रपति ने इसके कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांगी थी। राज्यपाल ने विधेयक पर अपनी सहमति नहीं दी थी और राष्ट्रपति के विचार की मांग की थी। न्यायालय के सामने जो मुद्दा आया वह यह था कि क्या विधेयक के प्रावधानों के संबंध में सलाहकार राय मांगी जा सकती है, जिसे अभी तक एक क़ानून के रूप में शामिल नहीं किया गया है। न्यायालय ने अनुच्छेद 143 के दायरे और उद्देश्यों के संबंध में कई टिप्पणियां कीं:  - न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 143(1) में प्रावधान है कि न्यायालय संदर्भित मामले पर राष्ट्रपति को अपनी राय दे सकता है और इसलिए सलाहकार राय न्यायालय का विवेकाधीन अधिकार क्षेत्र है और न्यायालय राष्ट्रपति को राय देने के लिए बाध्य नहीं है। - हालाँकि, केवल इसलिए कि कोई विधेयक कानून के रूप में लागू नहीं हुआ है, न्यायालय के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इनकार करने का कोई आधार नहीं हो सकता है। - न्यायालय ने आगे कहा कि अनुच्छेद 143 का उद्देश्य राष्ट्रपति मामले को सर्वोच्च न्यायालय में भेजकर कानून के एक प्रश्न के संबंध में अपनी शंका��ं को दूर करने में सक्षम बनाना है। - न्यायालय ने माना कि वह केवल उस प्रश्न पर विचार करेगा जिसे राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित किया गया था और यह प्रश्न के दायरे से बाहर नहीं जा सकता है। - न्यायालय ने आगे अनुच्छेद 143(1) और अनुच्छेद 143(2) के तहत किए गए संदर्भ के बीच अंतर किया। अनुच्छेद 143(2) में यह प्रावधान है कि जहांअनुच्छेद 131 के परंतुक (प्रोविसो) में प्रदान किया गया ऐसा मामला राष्ट्रपति द्वारा न्यायालय को भेजा जाता है, वहां न्यायालय राष्ट्रपति को अपनी राय प्रदान करेगा। अनुच्छेद 131 के प्रावधान में समझौतों, संधियों, या अन्य ऐसे उपकरणों से उत्पन्न विवादों के संबंध में न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया है जो संविधान के प्रभाव में आने से पहले दर्ज किए गए थे। न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 143(1) न्यायालय को अपनी राय देने के लिए विवेकाधीन बनाता है, अनुच्छेद 143 (2) राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित मामलों में न्यायालय को अपनी राय देना अनिवार्य बनाता है।  - जहां किसी व्यक्ति को बरी करने के आदेश को उलटते हुए उच्च न्यायालय द्वारा मौत की सजा सुनाई जाती है। - जहां उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय से मामले को वापस लेता है और मुकदमा चलाता है और बाद में आरोपी को मौत की सजा देता है। - नए साक्ष्य की खोज : पीड़ित पक्ष नए महत्वपूर्ण साक्ष्य की खोज पर समीक्षा के लिए अपील कर सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना उचित है कि समीक्षा के लिए आवेदन करने वाले पक्ष को यह दिखाना होगा कि पक्षों द्वारा उचित परिश्रम के अभ्यास के बावजूद इस तरह के नए सबूत पहले नहीं खोजे जा सके। यदि यह दिखाया जाता है कि पक्ष की लापरवाही के कारण पहले चरण में सबूतों का पता नहीं चला था, तो आवेदन विफल हो जाएगा। - स्पष्ट त्रुटि: जहां “रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि” है, तो न्यायालय द्वारा समीक्षा की अनुमति दी जा सकती है। त्रुटि महत्वपूर्ण होनी चाहिए और अपील करने वाले पक्ष को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाली होनी चाहिए। त्रुटि किसी भी तर्क की आवश्यकता के बिना स्पष्ट होनी चाहिए। - कोई पर्याप्त कारण : जहां न्यायालय को लगता है कि समीक्षा की अनुमति देने के लिए पर्याप्त कारण है, वह पीड़ित पक्ष के समीक्षा आवेदन की अनुमति दे सकता है। - सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है और इसकी व्याख्या अंतिम होगी। - संविधान काअनुच्छेद 141 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानूनों को बाध्यकारी बल प्रदान करता है। कानून के एक ही प्रश्न पर विचार करते समय न्यायालय के निर्णयों का पूर्वगामी (प्रीसीडेंशियल) महत्व होता है। इसके अलावा, न्यायालय के फैसलों को समग्र रूप से पढ़ा जाना चाहिए। यहाँ तक कि न्यायालय के एकपक्षीय (एक्स पार्टे) निर्णय भी अधीनस्थ न्यायालयों ���े लिए बाध्यकारी होते हैं।  - सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कामकाज के लिए नियमों और प्रक्रियाओं की स्थापना की है। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भी न्यायालय के कॉलेजियम की सिफारिश पर की जाती है। - सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त है। यह विधायिका द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा कर सकता है और यदि वे मौलिक अधिकारों या संविधान के किसी अन्य प्रावधान का उल्लंघन करते पाए जाते हैं तो उन्हें शून्य घोषित कर सकते हैं। - इसके अलावा, अनुच्छेद 137न्यायालय को अपने निर्णयों और आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति प्रदान करता है।  - सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो और मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट भी जारी कर सकता है। - न्यायालय उन लोगों को दंडित कर सकता है जो उसके आदेशों का पालन करने से इनकार करते हैं या जो न्यायालय के खिलाफ निंदनीय और अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना ​​के लिए दंड देने की शक्ति की परिकल्पनाअनुच्छेद 129 के तहत की गई है । 
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय भारत में न्यायालयों के पदानुक्रम (हायरार्की) के शीर्ष पर है। यह एक व्यापक अधिकार क्षेत्र का आनंद लेता है और देश में कानून के शासन को सुनिश्चित करने और विधायिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने के लिए जिम्मेदार है। यह स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय को वह अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया था जो संघीय न्यायालय के साथ-साथ प्रिवी काउंसिल द्वारा प्राप्त किया गया था। संसद न्यायालय के व्यापक अधिकार क्षेत्र को और भी बढ़ा सकती है। हालाँकि, संसद का कोई भी अधिनियम न्यायालय के अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र को कम या सीमित नहीं कर सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
· कौन सा अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने वाले रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है?
अनुच्छेद 32.
·अन्य देशों के शीर्ष न्यायालयों की तुलना में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र कितना विस्तृत है? 
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अन्य देशों के संघीय न्यायालयों की तुलना में व्यापक अधिकार क्षेत्र वाला कहा जा सकता है। यूनाइटेड किंगडम में, सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार नहीं है। आयरलैंड के साथ-साथ जापान में, शीर्ष अदालतें मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए संघीय अधिकार क्षेत्र का आनंद नहीं लेती हैं। ऑस्ट्रेलियाई सर्वोच्च न्यायालय का कोई सलाहकार अधिकार क्षेत्र नहीं है। जहां तक ​​यूएस सर्वोच्च न्यायालय का संबंध है, न्यायालय के पास राज्य की अदालतों की कुछ अपीलों को सुनने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। भारत में, सर्वोच्च न्यायालय सभी निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों से अपील सुन सकता है। इसके अलावा, यूएस सर्वोच्च न्यायालय को सलाहकार अधिकार क्षेत्र का भी आनंद नहीं मिलता है। 
· उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) का सिद्धांत किस मामले में निर्धारित किया गया था?
रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (2002) के ऐतिहासिक मामले में, अदालत के सामने यह सवाल उठा कि क्या समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद पीड़ित व्यक्ति द्वारा दूसरी समीक्षा को प्राथमिकता दी जा सकती है। न्यायालय के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि उपचारात्मक याचिका के रूप में दूसरी समीक्षा को न्याय के किसी भी बड़े पैमाने पर विफलता को सुधारने की अनुमति दी जा सकती है। न्यायालय ने इस प्रकार माना कि न्याय की विफलता का शिकार न्यायालय के अंतिम आदेश से दूसरी अपील कर सकता है। न्यायालय ने माना था कि “दुर्लभतम से दुर्लभतम मामलों ” में, मनुष्यों की गलती के कारण, पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है और न्याय की सकल विफलता को सुधारने के लिए अंतिम आदेश की दूसरी समीक्षा की आवश्यकता हो सकती है। 
· जन��ित याचिका की अवधारणा किस मामले में निर्धारित की गई थी?
मुंबई कामगार सभा बनाम मेसर्स अब्दुलभाई फैजुल्लाभाई और अन्य (1976) के ऐतिहासिक मामले में, श्रमिक संघ द्वारा श्रमिकों और उनके नियोक्ताओं के बीच विवाद के संबंध में एक अपील दायर की गई थी। उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि चूंकि संघ विवाद का पक्ष नहीं था, इसलिए इस मामले में उसका कोई अधिकार नहीं था। हालाँकि, न्यायालय ने जनहित के आधार पर संघ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया। इस मामले को भारत में जनहित याचिका के विकास की शुरुआत माना जाता है।  Read the full article
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lawspark · 1 year ago
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lawspark · 1 year ago
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राज्य को परिभाषित करे| - Lawspark Institute
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lawspark · 1 year ago
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lawspark · 1 year ago
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Rajasthan Police - 2023
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राजस्थान पुलिस भर्ती 2023:राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिए ऑनलाइन आवेदन 7 अगस्त से 27 अगस्त 2023 तक कर सकते हैं।
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Latest Update  The official notification of Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 has been released. Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 notification has been issued for 3578 posts. You can apply online for Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 from 7th August to 27th August 2023. Contents   
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Notification
राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 का नोटिफिकेशन 3578 पदों पर जारी कर दिया है। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिए ऑनलाइन आवेदन 7 अगस्त 2023 से शुरू होंगे। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिए ऑनलाइन आवेदन ���ी अंतिम तिथि 27 अगस्त 2023 तक रखी गई है। अभ्यर्थी राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के आवेदन फॉर्म में संशोधन 28 अगस्त से 30 अगस्त 2023 तक कर सकते हैं। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 की विस्तृत जानकारी आधिकारिक नोटिफिकेशन से प्राप्त कर सकते हैं। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती में इस बार पहले फिजिकल परीक्षा और बाद में लिखित परीक्षा आयोजित की जाएगी। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिए सीईटी वाले अभ्यर्थियों से आवेदन मांगे जाएंगे। इसमें सीईटी के 15 गुना अभ्यर्थियों को यानी लगभग 53000 अभ्यर्थियों को फिजिकल के लिए बुलाया जाएगा।
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Overview
भर्ती का नाम राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 विभाग का नाम राजस्थान पुलिस पदों की संख्या 3578 पद पद का नाम कांस्टेबल (पुरुष, महिला) आयु सीमा 18 वर्ष से 24 वर्ष तक आवेदन प्रक्रिया ऑनलाइन जॉब लोकेशन राजस्थान आवेदन शुरू होने की तिथि 7 August 2023 अंतिम तिथि 27 August 2023 आधिकारिक वेबसाइट police.rajasthan.gov.in
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Vacancy Details
राजस्थान पुलिस कांस्टेबल के 3578 पदों पर भर्ती की जाएगी। इसमें कॉन्स्टेबल नॉन टीएसपी क्षेत्र के लिए 3240 पद और कॉन्स्टेबल टीएसपी क्षेत्र के लिए 338 पद रखे गए हैं। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 में जिला वाइज पदों की संख्या आधिकारिक नोटिफिकेशन से प्राप्त कर सकते हैं। Rajasthan Police Non TSP Area District Wise Vacancy Details: District Name GD Driver Mounted Band Dog Squad PTC Ajmer 82 09 05 0 0 0 Alwar 108 0 0 0 0 0 Baran 61 07 0 0 0 0 Barmer 145 14 0 0 0 0 Bharatpur 116 0 0 0 0 0 Bhilwara 67 21 0 0 0 0 Bhiwadi 0 0 07 10 0 0 Bikaner 39 14 0 0 0 0 Bundi 138 17 0 0 0 0 Chittorgarh 113 12 0 0 0 0 CIB IB 46 0 0 0 08 0 Dausa 110 0 0 01 0 0 Dholpur 69 08 0 0 0 0 GRP Ajmer 0 12 0 0 0 0 Hanumangarh 0 13 03 03 0 0 Jaipur Commissionerate 0 48 05 0 0 0 Jaipur Rural 64 17 0 01 0 0 Jaisalmer 0 33 0 02 0 0 Jalore 0 10 0 02 0 0 Jhalawar 189 19 0 0 0 0 Jhunjhunu 95 0 0 0 0 0 Jodhpur Commissionerate 113 17 09 0 0 0 Karauli 0 0 03 0 0 0 Kota City 96 11 04 0 0 0 Kota Rural 136 0 0 0 0 0 Nagaur 104 11 0 0 0 0 Pali 82 0 0 11 0 0 Police Telecommunication 0 0 0 0 0 417 Rajsamanand 120 11 03 0 0 0 Shri Ganganagar 0 21 02 0 0 0 Sikar 128 0 0 0 0 0 Sirohi 71 0 0 0 0 0 Tonk 92 14 0 0 0 0 Udaipur 0 24 07 0 0 0 Rajasthan Police TSP Area District Wise Vacancy Details: District GD Driver Band Banswara 141 10 0 Chhittorgarh 07 0 0 CIB IB 25 0 0 Dungarpur 54 02 0 Pali 29 02 0 Rajsamand 05 0 0 Sirohi 55 05 03
Important Dates
Event Date Notification Release Date 3 August 2023 Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Apply Start 7 August 2023 Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Last Date 27 August 2023 Modify Application Form 28 to 30 August 2023 Exam Date Notify Later
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Application Fee
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 में सामान्य और अनारक्षित वर्ग के लिए आवेदन शुल्क 600 रुपए रखा गया है। जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग एवं समस्त दिव्यांगजन के लिए आवेदन शुल्क 400 रुपए रखा गया है। अभ्यर्थी आवेदन शुल्क का भुगतान ऑनलाइन माध्यम से कर सकते हैं। - सामान्य वर्ग और अनारक्षित वर्ग के लिए आवेदन शुल्क: 600 रुपए - आरक्षित वर्ग के सभी अभ्यर्थियों के लिए: 400 रुपए - समस्त दिव्यांगजन अभ्यर्थियों के लिए: 400 रुपए - अभ्यर्थी आवेदन शुल्क का भुगतान ऑनलाइन माध्यम से कर सकते हैं। Category Fees General Category Rs. 600/- SC/ ST/ PwD/ OBC/ EWS Rs. 400/- Mode of Payment Online
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Age Limit
राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिए सामान्य वर्ग में पुरुष अभ्यर्थी की आयु न्यूनतम 18 वर्ष और अधिकतम 27 वर्ष तक रखी गई है। इस भर्ती में आयु की गणना 1 जनवरी 2024 को आधार मानकर की जाएगी। इसके अलावा ओबीसी, ईडब्ल्यूएस, एससी, एसटी और आरक्षित वर्गों को सरकार के नियमानुसार अधिकतम आयु सीमा में छूट दी गई है। - सामान्य वर्ग में पुरुष अभ्यर्थी के लिए आयु सीमा 18 से 27 वर्ष तक रखी गई है। - सामान्य वर्ग की महिला अभ्यर्थियों के लिए अधिकतम आयु सीमा 32 वर्ष तक रखी गई है। - ईडब्ल्यूएस, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, एमबीसी और सहरिया वर्ग के पुरुष अभ्यर्थियों की अधिकतम आयु सीमा 32 वर्ष तक रखी गई है। - ईडब्ल्यूएस, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, एमबीसी और सहरिया वर्ग के महिला अभ्यर्थियों की अधिकतम आयु 37 वर्ष तक रखी गई है। - जबकि भूतपूर्व सैनिकों के लिए अधिकतम आयु सीमा 46 वर्ष तक रखी गई है। - अन्य आरक्षित वर्गों को भी नियमानुसार अधिकतम आयु सीमा में छूट दी गई है।
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Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Eligibility
राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिए ऑनलाइन आवेदन 7 अगस्त से 27 अगस्त 2023 तक भरे जा रहे हैं। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 का नोटिफिकेशन 3578 पदों के लिए जारी किया गया है। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिए आवेदन फॉर्म भरने के लिए अभ्यर्थी का सीईटी सीनियर सेकेंडरी एग्जाम पास होना अनिवार्य है। इसके लिए सामान्य, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस और एमबीसी अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम 40% अंक रखे गए हैं। जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए न्यूनतम 36% अंक होना अनिवार्य है। क्रम संख्या वर्ग समान पात्रता परीक्षा सीनियर सेकेंडरी लेवल 2022 में न्यूनतम प्राप्तांक (After Normalization) 1. सामान्य वर्ग, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग 120 अंक 40 प्रतिशत 2. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति 80 अंक 36 प्रतिशत 3. ट्राईबल सब प्लान एरिया (TSP) 90 अंक 30 प्रतिशत
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Educational Qualification
जिला/ यूनिट/ बटालियन न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता जिला पुलिस मान्यता प्राप्त स्कूल या परीक्षा बोर्ड से सीनियर सेकेंडरी या 12वीं कक्षा या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण। आर.ए.सी./ एमबीसी बटालियन बैंड सहित मान्यता प्राप्त स्कूल या बोर्ड से 10वीं कक्षा उत्तीर्ण। पुलिस दूरसंचार किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से भौतिक विज्ञान और गणित या कंप्यूटर के साथ विज्ञान में सीनियर सेकेंडरी या 12वीं कक्षा या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण। - अभ्यर्थी भारत का नागरिक या नेपाल या भूटान का प्रजाजन या नागरिक होना चाहिए। - अभ्यर्थी को देवनागरी लिपि में हिंदी लेखन का व्यावहारिक ज्ञान तथा राजस्थान की संस्कृति का ज्ञान होना चाहिए। - कांस्टेबल ड्राइवर पद की पात्रता हेतु आवेदक के पास विज्ञप्ति जारी होने की दिनांक से न्यूनतम 1 वर्ष पूर्व का बना हुआ स्थाई ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए।
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Selection Process
राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिए अभ्यर्थियों का चयन फिजिकल टेस्ट, लिखित परीक्षा, विशेष योग्यता प्रमाण पत्र के आधार पर आवंटित किए जाने वाले अंक, डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन और मेडिकल एग्जाम के आधार पर किया जाएगा। राजस्थान सीईटी सीनियर सेकेंडरी लेवल एग्जाम में सामान्य, ईडब्ल्यूएस, ओबीसी और एमबीसी अभ्यर्थियों के न्यूनतम 40% अंक होना अनिवार्य है। जबकि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए न्यूनतम 36% अंक होना अनिवार्य है। टीएसपी और सहरिया क्षेत्र के लिए न्यूनतम 30% अंक होना अनिवार्य है। इसके बाद सीटों की संख्या के 15 गुना अभ्यर्थियों को फिजिकल टेस्ट के लिए बुलाया जाएगा। राजस्थान पुलिस फिजिकल एफिशिएंसी टेस्ट और फिजिकल स्टैंडर्ड टेस्ट में क्वालीफाई करने वाले अभ्यर्थियों को कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट के लिए बुलाया जाएगा। - Physical Test (PET/ PST) - Written Test - Marks to be allotted on the basis of Special Qualification Certificate - Document Verification - Medical Examination. परीक्षा का चरण कॉन्स्टेबल सामान्य/ पुलिस दूरसंचार कॉन्स्टेबल चालक बैंड शारीरिक दक्षता परीक्षा 1योग्यात्मक (Qualifying) योग्यात्मक (Qualifying) योग्यात्मक (Qualifying) कंप्यूटर आधारित परीक्षा (CBT) 150 150 लागू नहीं दक्षता परीक्षा लागू नहीं 30 30 विशेष योग्यता (एनसीसी, होमगार्ड एवं पुलिस से संबंधित विषयों में डिप्लोमा या उपाधि प्राप्त) प्रमाण पत्र के आधार पर आवंटित किए जाने वाले अंक 20 लागू नहीं लागू नहीं अंको का योग 170 180 30
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Exam Pattern
विषय प्रश्न अंक विवेचना एवं तार्किक योग्यता तथा कंप्यूटर का सामान्य ज्ञान 60 60 सामान्य ज्ञान, सामान्य विज्ञान, सामाजिक विज्ञान एवं समसामयिक विषयों पर तथा महिलाओं एवं बच्चों के अधिकारों व उनके लिए राजस्थान सरकार द्वारा प्रचलित सरकारी योजनाओं व संस्थाओं के संबंध में जानकारी 45 45 राजस्थान के इतिहास, संस्��ृति, कला, भूगोल, राजनीति एवं आर्थिक स्थिति इत्यादि 10 10 कुल 150 150 - राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल लिखित परीक्षा में सभी प्रश्न वस्तुनिष्ठ और ओएमआर शीट आधारित होंगे। - परीक्षा में कुल प्रश्नों की संख्या 150 होगी। - प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का होगा। - लिखित परीक्षा 150 अंकों की होगी। - इसमें नेगेटिव मार्किंग एक चौथाई भाग रखी गई है। - परीक्षा के लिए 2 घंटे का समय दिया जाएगा।
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Minimum Passing Marks
राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 के लिखित परीक्षा में अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण होने के लिए न्यूनतम प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य है। इसके बाद ही अभ्यर्थी आगे के चरण के लिए पात्र होंगे। - सामान्य, आर्थिक पिछड़ा वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए: न्यूनतम 40% अंक - अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए: न्यूनतम 36% अंक - ट्राईबल सब प्लान क्षेत्र के स्थानीय अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम उत्तीर्ण अंक सीमा लागू नहीं होगी। - भूतपूर्व सैनिकों को नियमानुसार 5% की छूट दी जाएगी। - कानि. बैंड हेतु लिखित परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी।
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Physical Fitness
    Height (Min.) Minimum Chest measurement and expansion (only for men) Minimum weight (only for women) For General & TSP area Men 168 cms Without expansion-81cms With expansion-86 cms (Min. expansion of 5 cms is required) Not applicable Women 152 cms Not applicable 47.5 kgs For Saharia of Distt. Baran Men 160 cms Without expansion-74cms With expansion-79 cms (Min. expansion of 5 cms is required) Not applicable Women 145 cms Not applicable 43 kgs
Rajasthan Police Constable Recruitment 2023 Race
राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 में समस्त अभ्यर्थियों को शारीरिक दक्षता परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए 5 किलोमीटर दौड़ नियमानुसार समय सीमा में पूरी करना आवश्यक है। राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2023 में शारीरिक दक्षता एवं माप तोल परीक्षा केवल क्वालीफाई नेचर की होगी। नाम कॉन्स्टेबल सामान्य, पुलिस दूरसंचार कॉन्स्टेबल चालक, कॉन्स्टेबल बैंड पुरुष 25 मिनट 25 मिनट महिला 35 मिनट 35 मिनट भूतपूर्व सैनिक 30 मिनट 30 मिनट ट्राईबल सब प्लान क्षेत्र के SC, ST Read the full article
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lawspark · 1 year ago
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English Grammar –Active and Passive Voice| Rules | Examples
इस आर्टिकल मे हम Active and Passive Voice In Hindi के बारे मे विस्तार से जानेंगे। यह अंग्रेजी ग्रामर का एक अहम और महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसकी जानकारी आपको होनी चाहिए। और इसलिये इस आर्टिकल मे हम Active and Passive Voice के सभी Topic को अच्छे से समझेंगे जैसे की, Active And Passive Voice क्या होता है, एक्टिव और पैसिव वॉइस को हिंदी में क्या कहते हैं, एक्टिव वॉइस का मतलब क्या होता है, Active And Passive Voice Rules In Hindi, active से passive बनाने के rule आदि। इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको यहा पर बिल्कुल विस्तारपूर्वक से मिल जायेंगे।  आपको बता दे की इंग्लिश स��पीकिंग हेतु एक्टिव वौइस् से पैसिव वौइस् में बदलने के नियम सीखने की आवश्यकता  नहीं है, लेकिन Passive Structures की जानकारी होना आवश्यक है। इस लेख में आपको एक्टिव एवं पैसिव वौइस् में क्या अन्तर है, Passive Structures का प्रयोग Conversations में कब किया जाता है इन सभी की जानकारी बिल्कुल विस्तार से मिलेंगी और अगर आप Active and Passive Voice को अच्छे से समझना चाहते है तो, उसके लिये इस आर्टिकल को पुरा अन्त तक जरुर पढ़े। 
Active and Passive Voice Meaning In Hindi
Active and Passive Voice का हिन्दी meaning कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य होता है। कर्तृवाच्य मे कर्ता Active होता है अर्थात् कर्ता पर बल दिया जाता है जबकी कर्मवाच्य में कर्म अर्थात् object पर जोर दिया जाता है। बातचीत करने वाले को इन दोनों वाक्यों में से किसी एक को अपनाना पड़ता है। अब प्रश्न उठेगा कौन सा वाक्य तो ये बात तो बड़ी साधारण है जैसा भाव हो वैसी ही वाक्य लगाओ। यदि आप कर्ता पर जोर डाल रहे हैं तो Active Voice लीजिए और यदि कर्म पर जोर पड़े तो Passive Voice ही लीजिए।
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Active and Passive Voice
अभी तक आपने जो वाक्य पढ़े हैं, उनमें कर्त्ता द्वारा कार्य किया जाता है। कर्त्ता Active होता है जैसे:- (a) वह कार ठीक कर रहा है।He is repairing the car. (b) वे घर की सफाई कर रहे हैं।They are cleaning the house.ये वाक्य Active voice के हैं, इनमें कर्त्ता (Subject) 'वह ' , 'वे' , है जो कार्य करते हैं, Active हैं। लेकिन ध्यान दें:  यदि हमें निम्न प्रकार के वाक्य बनाने हैं:(a) कार ठीक की जा रही है। या कार उसके द्वारा ठीक की जा रही है।(b) घर की सफाई की जा रही है। या घर की सफाई मजदूरों द्वारा की जा रही है। ऐसे वाक्य जिनमें कर्त्ता दिखाई नहीं देता है, या कर्त्ता (Subject) की जगह कर्म (Object) प्रमुखता पाता है, ऐसे वाक्यों को समझने एवं ऐसे वाक्यों को अंग्रेजी में अनुवाद करने हेतु हमें Passive Voice के नियमों का अध्ययन होगा। 
Active and Passive Voice In Hindi
अब हम Active and Passive Voice के दो वाक्य लिख कर उसमे तुलना करते है जिससे की आपको इसे समझने मे और भी आसानी हो। 1. Parul helps her mother.2. Her mother is helped by Parul. अब आप देखेंगे की इन दोनों वाक्यों का अर्थ तो एक ही है पर वाक्य 1. में कर्ता कुछ करता है अर्थात् पा��ुल कुछ करती है। इसलिए इस वाक्य को कर्तृवाच्य ही कहेंगे पर वाक्य 2. मे क्रिया की अवस्था यह बताती है की कर्ता के लिए कुछ किया गया है। माता के लिए कुछ किया गया है। इसलिए क्रिया helped को Passive Voice अर्थात् कर्मवाच्य कहेंगे। संक्षेप मे जब कर्ता कार्य करता है तो कर्तृवाच्य होता है पर जब कर्ता के लिए कुछ किया जाता है तो उसे कर्मवाच्य कहते है। अब हम इन्ही वाक्यो को कालों यानी की Tense के क्रमानुसार देखेंगे। Note :-  English Grammar – Tense in Hindi – Types, Rules, Formula, Examples 
Present Indefinite Tense
इस वर्तमान काल के उपभाग में Passive Voice (कर्मवाच्य) बनाने के लिए कर्म (Object) को कर्ता (Subject) मे बदल दिया जाता है। दुसरी बात है कर्ता के अनुसार is, am, are लगा कर verb क्रिया की तीसरी अवस्था लगाई जाती है। इसके कुछ उदाहरण नीचे देखे ताकी आपको इसे समझने और भी मे आसानी हो।Sn.Active VoicePassive Voice1).I write a letter. (मैं एक पत्र लिखता हूं।)A letter is written by me. (मेरे द्वारा एक पत्र लिखा जाता है।)2).What do you want? (आप क्या चाहते हैं?)What is wanted by you? (आपके द्वारा क्या चाहा जाता है?)3).We expect good news. (हमे शुभ समाचार की आशा है।)Good news is expected by us. (हम से शुभ समाचार की आशा की जाती है।)4).She enjoys a sound sleep. (वह गहरी नींद सोती है।)A sound sleep is enjoyed by her. (उसके द्वारा गहरी नींद सोई जाती है।)5).Do you build a house? (क्या आप मकान बनाते है?)Is a house built by you? (क्या आपके द्वारा मकान बनाया जाता है?)              
Present Continuous Tense
वर्तमान काल के इस उपभाग में Passive Voice बनाने के लिए Verb क्रिया की तीसरी अवस्था अर्थात् Third Form of verb से पहले कर्ता अर्थात् Subject  के अनुसार is being, are being लगाया जाता है। जब कर्ता एकवचन हो तो is being और जब कर्ता बहुवचन हो तो are being लगाया जाता है।Sn.Active VoicePassive Voice1).I am driving a scooter. (मैं एक स्कूटर चला रहा हूं।)A scooter is being driven by me. (मेरे द्वारा एक स्कूटर चलाया जाता है।)2).What Suruchi is doing? (सुरुचि क्या कर रही है?)What is being done by Suruchi? (सुरुचि द्वारा क्या किया जा रहा है?)3).Why are you wasting your time? (आप अपना समय बर्बाद क्यों कर रहे हैं?)Why your time is being wasted by you? (आपके द्वारा आपका समय बर्बाद क्यों किया जा रहा है?)4).Boys are playing football. (लड़के फूटबॉल खेल रहे हैं।)Football is being played by boys. (लड़को द्वारा फुटबॉल खेली जा रही है।)5).The carpenter is making a table. (बढ़ई एक मेज बना रहा है।)A table is being made by a carpenter. (बढ़ई द्वारा एक मेज बनाई जा रही है।) 
Present Perfect Tense
वर्तमान काल के इस उपभाग में Passive Voice बनाने के लिए Verb क्रिया की तीसरी Form लगाने से पहले he, she, it, Singular number (एकवचन) के साथ has been तथा you, we, they, Plural number (बहुवचन) के साथ have been लगाया जाता है।Sn.Active VoicePassive Voice1).Neha has read a book. (नेहा ने एक पुस्तक पढ़ी।)A book has been read by Neha. (नेहा द्वारा एक पुस्तक पढ़ी गई।)2).Ankit has sung a song. (अंकित ने एक गीत गाया।)A song has been sung by Ankit. (अंकित द्वारा एक गीत गाया गया।)3).Have you seen a lion? (क्या ��पने एक शेर देखा है?)Has a lion been seen by you? (क्या आपके द्वारा एक शेर देखा गया है?)4).They have posted all the letters. (उन्होंने सभी पत्र डाल दिए हैं।)All the letters have been posted by them. (उनके द्वारा सभी पत्र डाल दिये गये हैं।)5).Why have you broken my pencil? (आपने मेरी पैंसिल क्यों तोड़ी है?)Why has my pencil been broken by you? (आपके द्वारा मेरी पैंसिल क्यों तोड़ी गई है?) 
Past Indefinite Tense
भूतकाल के इस उपभाग को Passive Voice में बदलने के लिए Verb क्रिया की तीसरी Form से पहले कर्ता अर्थात् Subject यदि एकवचन हो तो was और यदि बहुवचन हो तो Were का प्रयोग किया जाता है।Sn.Active VoicePassive Voice1).I wrote a letter. (मैंने एक पत्र लिखा।)A letter was written by me. (मेरे द्वारा एक पत्र लिखा गया।)2).Did Suruchi obey her parents? (क्या सुरुचि ने अपने माता-पिता की आज्ञा मानी?)Were her parents obeyed by Suruchi? (क्या सुरुचि द्वारा अपने माता-पिता की आज्ञा मानी गई?)3).Why did your brother punish you? (आपके भाई ने आपको सजा क्यों दी?)Why were you punished by your brother? (आपके भाई द्वारा आपको सजा क्यों दी गई?)4).Which picture did you see last night? आपने कल रात कौन सी पिक्चर देखी?Which picture was seen by you last night? (आपके द्वारा कौन सी पिक्चर कल रात देखी गई?)5).Who stole my pen? (किसने मेरा पेन चुराया?)By whom my pen was stolen? (किसके द्वारा मेरा पेन चुराया गया?) 
Past Continuous Tense
भूतकाल के इस उपभाग में Passive Voice बनाने के लिए Verb क्रिया की तीसरी अवस्था अर्थात् third form of verb को लगाने से पहले कर्ता अर्थात् Subject के अनुसार was being या were being लगाया जाता है यदि कर्ता एकवचन तो was being लगाना चाहिए पर यदि कर्ता बहुवचन है तो were being लगाया जाता है।Sn.Active VoicePassive Voice1).Suruchi was driving a car. (सुरुचि कार चला रही थी।)A car was being driven by Suruchi. (कार सुरुचि द्वारा चलाई जा रही थी।)2).Why were you wasting your time? (आप अपना समय क्यों नष्ट कर रहे थे)Why was your time being wasted by you? (आपके द्वारा आपका समय क्यो नष्ट किया जा रहा था?)3).Was she knocking at the door? (क्या वह किवाड़ खटखटा रही थी?)Was the door being knocked at by her? (क्या किवाड़ उसके द्वारा खटखटया जा रहा था?)4).Who was making a noise? (शोर कौन मचा रहा था?)By whom was a noise being made? (किसके द्वारा शोर मचाया जा रहा था?)5).Whom were they waiting for? (वे किस की प्रतीक्षा कर रहे थे?)By whome they were being waited for? (उनकी प्रतीक्षा किसके द्वारा की जा रही थी?) 
Past Perfect Tense
भूतकाल के इस उपभाग में Passive Voice बनाने के लिए Verb क्रिया की तीसरी अवस्था अर्थात् Third Form of verb से पहले कर्ता अर्थात् सभी के साथ had been लगाया जाता है। इस Tense में एकवचन या बहुवचन का अन्तर नहीं होता।Sn.Active VoicePassive Voice1).The teacher had called the roll. (अध्यापक ने हाजरी लगाई।)The roll had been called by the teacher. (हाजरी अध्यापक द्वारा लगाई गई थी।)2).Why had he sold his horse? (उसने अपना घोड़ा क्यों बेच दिया?)Why had his horse been sold by him? (उसके द्वारा घोड़ा क्यों बेचा गया?)3).Why you had insulted your uncle? (आपने अपने चाचा का अपमान क्यों किया?)Why had uncle been insulted by you? (तुम्हारे द्वारा अपने चाचा का अपमान क्यों किया गया?)4).They had missed the train. (वे रेलगाड़ी से रह गए।)The train had been missed by them. (उनके द्वारा रेलगाड़ी छूट गई।)5).Suruchi had written a story. (सुरुचि ने एक कहानी लिखी।)A story had been written by Suruchi. (सुरुचि द्वारा एक कहानी लिखी गई।) 
Future Indefinite Tense
भविष्य काल के इस उपभाग का Passive Voice बनाने के लिए Verb क्रिया की तीसरी अवस्था अर्थात् Third Form of verb के साथ I और We के साथ Shall be और बाकी के साथ will be लगाया जाता है।Sn.Active VoicePassive Voice1).She will helps us. (वह हमारी सहायता करेगी।)We shall be helped by her. (उसके द्वारा हमारी सहायता की जाएगी।)2).He will never deceive us. (वह हमे कभी धोखा नहीं देगा।)We shall never be deceive by him. (हमे उसके द्वारा कभी धोखा नहीं दिया जायेगा।)3).Will you give up drinking? (क्या तुम शराब पीना छोड़ दोगे?)Will drinking be given up by you? (क्या तुम्हारे द्वारा शराब पीना छोड़ दिया जायेगा?)4).I shall teach him a lesson. (मैं उसे सबक सिखाऊंगा।)A lesson will be taught to him by me. (मेरे द्वारा उसे एक सबक सिखाया जायेगा।)5).You will write a letter. (आप एक पत्र लिखेंगे।)A letter will be written by you. (आपके द्वारा एक पत्र लिखा जायेगा।) 
Future Perfect Tense
भविष्य काल के इस उपभाग में Passive Voice बनाने के लिए Verb क्रिया की तीसरी अवस्था अर्थात् third form of verb के साथ I और We के साथ shall have been तथा You, we, they और अन्य सभी के साथ will have been लगाई जाती है।Sn.Active VoicePassive Voice1).He will have bought the book. (वह पुस्तक खरीद चुका होगा।)The book will have been bought by him. (पुस्तक उसके द्वारा खरीदी जा चुकी होगी।)2).We shall have finished our work. (हमने अपना काम समाप्त कर लिया होगा।)Our work will have been finished by us. (हमार काम हमारे द्वारा समाप्त किया जा चुका होगा।)3).I shall have written a letter. (मैं पत्र लिख चुका हूंगा।)A letter will have been written by me. (मेरे द्वारा पत्र लिखा जा चुका होगा।)4).He will have posted the letter. (उसने पत्र डाल दिया होगा।)The letter will have been posted by him. (उसके द्वारा पत्र डाल दिया गया होगा।)5).She will have changed her clothes. (उसने अपने कपड़े बदल लिए होंगे।)Her clothes will have changed by her. (उसके द्वारा कपड़े बदले जा चुके होंगे।)
Rajasthan High Court
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lawspark · 1 year ago
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How to file divorce? / तलाक केस कैसे करे?
How to file divorce? / तलाक केस कैसे करे?
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lawspark · 1 year ago
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What is Cyber Security? The Different Types of Cybersecurity
Cyber security- आज इंटरनेट हमारे दैनिक जीवन के अभिन्न अंगों में से एक बन गया है। वह हमारे दैनिक जीवन के अधिकांश पहलुओं को प्रभावित कर रहा है। साइबरस्पेस हमें वर्चुअल रूप से दुनिया भर के करोड़ों ऑनलाइन उपयोगकर्त्ताओं से जोड़ता है। - जैसे-जैसे भारत का इंटरनेट आधार बढ़ता जा रहा है (वर्ष 2025 तक 900 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता होने के अनुमान के साथ), साइबर खतरों में भी चिंताजनक रूप से वृद्धि हो रही है। डिजिटल प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ साइबर अपराधों का परिष्करण भी बढ़ रहा है। - इस परिदृश्य में यह अनिवार्य है कि भारत अपने साइबरस्पेस में विद्यमान खामियों पर सूक्ष्मता से विचार करे और एक अधिक व्यापक साइबर-सुरक्षा नीति के माध्यम से उन्हें समग्र रूप से संबोधित करे। साइबर सुरक्षा (Cyber security) क्या है? - साइबर सुरक्षा (Cyber Security) या सूचना प्रौद्योगिकी सुरक्षा (Information Technology Security) कंप्यूटर, नेटवर्क, प्रोग्राम और डेटा को अनधिकृत पहुँच या हमलों से बचाने की तकनीकें हैं जो साइबर-भौतिक प्रणालियों (Cyber-Physical Systems) और महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना के दोहन पर लक्षित हैं। - महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना (Critical Information Infrastructure):सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 70(1) महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना को एक कंप्यूटर संसाधन के रूप में परिभाषित करती है, जिसकी अक्षमता या विनाश का राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा पर कारी प्रभाव पड़ेगा। भारत में साइबर हमलों के हाल के कुछ उदाहरण - वर्ष 2020 में लगभग 82% भारतीय कंपनियों को रैनसमवेयर हमलों का सामना करना पड़ा। - मई 2017 में भारत के पाँच प्रमुख शहर (कोलकाता, दिल्ली, भुवनेश्वर, पुणे और मुंबई) ‘WannaCry’ रैनसमवेयर हमले से प्रभावित हुए। - हाल में एम्स, दिल्ली पर रैनसमवेयर हमला हुआ है। देश के इस शीर्ष चिकित्सा संस्थान के सर्वर पर रैनसमवेयर हमले के बाद लाखों मरीजों का व्यक्तिगत डेटा खतरे में है। - वर्ष 2021 में एक हाई-प्रोफाइल भारत-आधारित भुगतान कंपनी ‘Juspay’ को डेटा उल्लंघन का सामना करना पड़ा जिसमें 35 मिलियन ग्राहक प्रभावित हुए। - यह उल्लंघन अत्यंत चिंताजनक है क्योंकि ‘Juspay’ अमेज़न और कई अन्य बड़ी कंपनियों के ऑनलाइन मार्केटप्लेस के लिये भुगतान से संलग्न है। - फरवरी 2022 में एयर इंडिया को एक बड़े साइबर हमले का सामना करना पड़ा जहाँ लगभग 4.5 मिलियन ग्राहक रिकॉर्ड के लिये खतरा उत्पन्न हुआ। यहाँ पासपोर्ट, टिकट और क्रेडिट कार्ड संबंधी सूचना की गुप्तता भंग हुई। साइबर खतरों के प्रमुख प्रकार - रैनसमवेयर (Ransomware): इस प्रकार का मैलवेयर कंप्यूटर डेटा को हाईजैक कर लेता है और फिर उसे पुनर्स्थापित करने के लिये भुगतान (आमतौर पर बिटकॉइन के रूप में) की मांग करता है। - ट्रोजन हॉर्सेज़ (Trojan Horses): ट्रोजन हॉर्स अटैक एक दुर्भावनापूर्ण प्रोग्राम का उपयोग करता है जो एक वैध प्रतीत होने वाले प्रोग्राम के अंदर छिपा होता है। - जब उपयोगकर्त्ता संभवतः निर्दोष और वैध प्रोग्राम को निष्पादित करता है तो ट्रोजन के अंदर गुप्त रूप से शामिल मैलवेयर का उपयोग सिस्टम में बैकडोर को खोलने के लिये किया जा सकता है जिसके माध्यम से हैकर्स कंप्यूटर या नेटवर्क में प्रवेश कर सकते हैं। - क्लिकजैकिंग (Clickjacking): यह इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं को दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर वाले लिंक पर क्लिक करने या अनजाने में सोशल मीडिया साइटों पर निजी ��ानकारी साझा करने के लिये लुभाने का कृत्य है। - डिनायल ऑफ सर्विस (DOS) हमला: यह किसी सेवा को बाधित करने के उद्देश्य से कई कंप्यूटरों और मार्गों से वेबसाइट जैसी किसी विशेष सेवा को ओवरलोड करने का जानबूझकर कर किया जाने वाला कृत्य है। - मैन इन मिड्ल अटैक’ (Man in Middle Attack): इस तरह के हमले में दो पक्षों के बीच संदेशों को पारगमन के दौरान ‘इंटरसेप्ट’ किया जाता है। - क्रिप्टोजैकिंग (Cryptojacking): क्रिप्टोजैकिंग शब्द क्रिप्टोकरेंसी से निकटता से संबद्ध है। क्रिप्टोजैकिंग वह स्थिति है जब हमलावर क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के लिये किसी और के कंप्यूटर का उपयोग करते हैं। - ‘ज़ीरो डे वल्नेरेबिलिटी’ (Zero Day Vulnerability): ज़ीरो डे वल्नेरेबिलिटी मशीन/नेटवर्क के ऑपरेटिंग सिस्टम या ऐप्लीकेशन सॉफ़्टवेयर में व्याप्त ऐसा दोष है जिसे डेवलपर द्वारा ठीक नहीं किया गया है और ऐसे हैकर द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है जो इसके बारे में जानता है। भारत के साइबरस्पेस से संबंधित चुनौतियाँ - क्षमता की वृद्धि, भेद्यता का विस्तार: नागरिकों के डिजिटल एकीकरण के साथ भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था फली-फूली है, लेकिन इसने डेटा चोरी की भेद्यता भी पैदा की है। - सरकार विभिन्न क्षेत्रों में ‘डेटा प्रवाह’ के लिये सभी बाधाओं को दूर करने की अपेक्षा करती थी। इस आख्यान के परिणामस्वरूप टेक-उद्योग ने डेटा संरक्षण के प्रति केवल खानापूरी ही की है। - विदेशों में डेटा का संग्रहण: लगभग प्रत्येक क्षेत्र में ही डिजिटलीकरण की ओर बढ़ने की होड़ ने भारत के बाहर एप्लीकेशन सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोग को बल दिया है, ताकि ग्राहक शीघ्रातिशीघ्र सर्वोत्तम ऐप्स और सेवाओं तक पहुँच सकें। - विदेशी स्रोतों से प्राप्त हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर या भारत के बाहर के सर्वरों पर भारी मात्रा में डेटा की पार्किंग हमारे राष्ट्रीय साइबरस्पेस के लिये खतरा पैदा करता है। - प्रॉक्सी साइबर अटैक: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) स्वचालित घातक हथियार प्रणाली के निर्माण में सक्षम है जो मानव संलग्नता के बिना ही जीवन और लक्ष्य को नष्ट कर सकती है। - नकली डिजिटल मुद्रा और नवीनतम साइबर प्रौद्योगिकियों की सहायता से बौद्धिक संपदा की चोरी जैसी अवैध गतिविधियों की भेद्यता से भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न हुआ है। - चीन की क्वांटम बढ़त: चीन की क्वांटम प्रगति भारत की डिजिटल अवसंरचना पर क्वांटम साइबर हमले की संभावना का विस्तार करती है, जो पहले से ही चीनी राज्य-प्रायोजित हैकरों के हमलों का सामना कर रही है। - विदेशी हार्डवेयर, विशेष रूप से चीनी हार्डवेयर पर भारत की निर्भरता एक अतिरिक्त भेद्यता का निर्माण करती है। साइबर सुरक्षा से संबंधित सरकार की वर्तमान पहलें - भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) - भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) - साइबर सुरक्षित भारत - साइबर स्वच्छता केंद्र - राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वय केंद्र (NCCC) आगे की राह - साइबर-जागरूकता: शिक्षा साइबर-अपराधों की रोकथाम के बारे में सूचना के प्रसार के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है और युवा आबादी साइबरस्पेस में अपनी भागीदारी के बारे में जागरूक होने तथा साइबर सुरक्षा के लिये और साइबर अपराध रोकने के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने के लिये बल गुणक के रूप में कार्य कर सकती है। - सुरक्षित वैश्विक साइबरस्पेस के लिये टेक-डिप्लोमेसी: उभरते सीमा-पार साइबर खतरों से निपटने के लिये और एक सुरक्षित वैश्विक साइबरस्पेस की ओर आगे बढ़ने के लिये भारत को उन्नत अर्थव्यवस्थाओं तथा प्रौद्योगिकी-उन्मुख लोकतंत्रों (Techno-) के साथ अपनी राजनयिक साझेदारी को सुदृढ़ करना चाहिये। - सहकारी संघवाद और साइबर सुरक्षा: पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं, इसलिये राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि साइबर अपराध से निपटने के लिये विधि प्रवर्तन पूर्ण सक्षम है। - आईटी अधिनियम और अन्य प्रमुख कानून केंद्रीय रूप से अधिनियमित किये जाते हैं, इसलिये केंद्र सरकार कानून प्रवर्तन के लिये सार्वभौमिक वैधानिक प्रक्रियाएँ विकसित कर सकती है। - इसके साथ ही, केंद्र और राज्यों को आवश्यक साइबर अवसंरचना विकसित करने के लिये पर्याप्त धन का निवेश करना चाहिये। - अनिवार्य डेटा संरक्षण मानदंड: व्यक्तिगत डेटा से संलग्न सभी सरकारी और निजी एजेंसियों के लिये अनिवार्य डेटा सुरक्षा मानदंडों का पालन करना आवश्यक होना चाहिये। - मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये संबंधित प्राधिकारों को नियमित रूप से डेटा सुरक्षा ऑडिट करना चाहिये। अभ्यास प्रश्न: जैसे-जैसे आधुनिक साइबर प्रौद्योगिकी विभिन्न क्षेत्रों में भारत की क्षमता को कई गुना बढ़ा रही है, वैसे-वैसे यह इसकी भेद्यताओं में भी वृद्धि कर रही है। टिप्पणी कीजिये। Read the full article
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lawspark · 1 year ago
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मौलिक अधिकार या मूल अधिकार
मौलिक अधिकार / मूल अधिकार क्या है? मौलिक अधिकार/ Fundamental Rights- हमारे सविधान में वह अधिकार होते है जो हर भारतीय नागरिक को उसके जन्म के साथ ही मिल जाते है या दिए जाते है, मौलिक अधिकार अधिकार जनता के हितों का संरक्षण करते हैं। भारतीय सविधान में इसका वर्णन भाग 3 तथा अनुछेद संख्या 12-35 में मिलता है, इन fundamental rights को अमेरिका के सविधान से प्रेरित होकर लिया गया है, और इस मौलिक अधिकार के भाग को “मैग्नाकार्टा” के नाम से भी संभोदित किया जाता है। ये मैग्नाकार्टा ब्रिटेन से आयी हुई एक अवधारणा है, वहाँ पर कुछ मज़दूरों को कुछ अधिकार दिए गए थे, और उसे मैग्नाकार्टा नाम दिया गया था, इसलिए भारतीय सविधान में मौलिक अधिकारो को मैग्नाकार्टा के रूप में संभोदित किया जाता है।  शुरूवात में सविधान में 7 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे परंतु 1978 में 44वें सविधान संशोधन द्वारा 7वाँ मौलिक अधिकार जो संपत्ति का अधिकार था उसे हटा दिया गया और वर्तमान में उसे अनुछेद संख्या 300 (a) के तहत क़ानूनी अधिकार की क्षेणी में डाल दिया गया और इसकी वजह से वर्तमान में अभी 6 Fundamental rights भारतीय सविधान में है। Fundamental rights – मौलिक अधिकारो को सविधान द्वारा संरक्षण प्राप्त होता है और इनके सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट रीट जारी कर सकते है, परंतु क़ानूनी अधिकारो के सम्बंध में रीट जारी नहीं होते हैं। समता/समानता का अधिकार ( अनुछेद संख्या 14-18 ) यह अधिकार जनता को हर क्षेत्र में समान बनाने का प्रयास करता है और समानता के विचारों को प्रेरित करता है। अनुछेद 14 भारतीय संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों के तहत अनुच्छेद 14 के अंतर्गत विधि के समक्ष समता एवं विधियों के समान संरक्षण का उपबंध किया गया है। संविधान का यह अनुच्छेद भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर भारतीय नागरिकों एवं विदेशी दोनों के लिये समान व्यवहार का उपबंध करता है। प्रथम अवधारणा अर्थात् ‘कानून के समक्ष समानता’ का मूल ब्रिटिश व्यवस्था में निहित है। यह अवधारणा किसी भी व्यक्ति के पक्ष में विशेषाधिकार के अभाव को दर्शाता है। इसका तात्पर्य देश के अंतर्गत सभी न्यायालयों द्वारा प्रशासित कानून के सामने सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा, चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब, सरकारी अधिकारी हो या कोई गैर-सरकारी व्यक्ति, क़ानून से कोई भी ऊपर नहीं है। दूसरी अवधारणा अर्थात् ‘कानून का समान संरक्षण’ अमेरिकी संविधान से प्रेरित है। इसका तात्पर्य कानून द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकारों और दायित्वों के स��दर्भ में समान परिस्थितियों में समान व्यवहार और सभी व्यक्तियों के लिये एक ही तरह के कानून का एक जैसे अनुप्रयोग से है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि प्रथम अवधारणा यानी ‘कानून के समक्ष समानता’ एक नकारात्मक अवधारणा है जबकि दूसरा ‘कानून के समान संरक्षण’ सकारात्मक है। हालाँकि दोनों ही अवधारणाओं का उदेश्य कानून और न्याय की समानता सुनिश्चित करना है। Case Law
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- मिट्ठू सिंह बनाम पंजाब राज्य ए॰ आई॰ आर॰ 1983 - मिठू बनाम पंजाब राज्य (इसके बाद, मिठू) के ऐतिहासिक मामले में , भारत के सर्वोच्च न्यायालय की 5-न्यायाधीशों की पीठ ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 303 को असंवैधानिक करार दिया। इस मामले में, याचिकाकर्ता ने धारा 303 को चुनौती दी, जो 'आजी��न कारावास के दौरान हत्या करने वाले व्यक्ति को अनिवार्य मृत्युदंड की सजा का प्रावधान करती है।' यह माना गया कि धारा 303 अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत समानता और अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन करती है। - रणधीर सिंह बनाम भारत राज्य ए॰ आई॰ आर॰ 1982 , एस॰ सी॰ 879 - सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा, 1984, 4 ए॰ सी॰ सी॰ 90 - डी एस नकारा बनाम भारत संघ 1983 - डी एस नकारा बनाम भारत संघ के मामले में सेंट्रल सर्विसेज जून 1972 को इस आधार पर अविधिमान्य ही मान्य घोषित किया गया है कि उसके द्वारा एक निश्चित तिथि के पूर्व सेवानिवृत्त होने वाले टेंशन होगी और उसके पश्चात सेवानिवृत्त होने वाले पेंशन भोगियों में किया गया वर्गीकरण आयुक्त एवं बनवाना है| न्यायाधिपथी श्री देसाई ने अनुच्छेद 14 में निहित समता के सिद्धांत और उसके निर्धारण की कसौटी को दोहराते हुए कहा है कि अनुच्छेद 14 वर्ग विधान का प्रतिषेध करता है, युक्ति वर्गीकरण को नहीं बसंती की वर्गीकरण उक्त कसौटीओं के आधार पर किया गया हो| मानव समाज का गठन और सम्मान व्यक्तियों से होता है और एक कल्याणकारी राज्य समाजिक आर्थिक रूप से कम भाग्यशाली लोगों की दशा सुधारने का प्रयास करता है जिसके लिए उसे विशेष विधि बनानी होती है जो उन पर लागू हो और उनकी दशा सुधारें| इसके लिए ही न्यायालय ने वर्गीकरण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है ताकि उन कानूनों को विधि मानने रखा जा सके| किंतु राज्य को ऐसा करते समय उक्त दोनों कसौटी ओं का पालन करना चाहिए जिन के अभाव में वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण करेगा और अवैध घोषित कर दिया जाएगा|
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अनुछेद 15 संविधान के आर्टिकल 14 से लेकर आर्टिकल 18 तक में देश के सभी नागरिकों को समता यानी समानता का मौलिक अधिकार देने की बात कही गई है।भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मौलिक अधिकार दिये गए हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य है कि हर नागरिक सम्मान के साथ अपना जीवन जी सके और किसी के साथ किसी आधार पर भेदभाव न हो। आर्टिकल 15 के चार प्रमुख बिंदु - आर्टिकल 15 के नियम 1 के तहत राज्य किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान और वंश के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। - नियम 2 के मुताबिक, किसी भी भारतीय नागरिक को जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान और वंश के आधार पर दुकानों, होटलों, सार्वजानिक भोजनालयों, सार्वजानिक मनोरंजन स्थलों, कुओं, स्नान घाटों, तालाबों, सड़कों और पब्लिक रिजॉर्ट्स में जाने से नहीं रोका जा सकता। - वैसे तो देश के सभी नागरिक समान हैं, उनसे भेदभाव नहीं किया जा सकता, लेकिन महिलाओं और बच्चों को इस नियम में अपवाद के रूप में देखा जा सकता है। आर्टिकल 15 के नियम 3 के मुताबिक, अगर महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष उपबंध किये जा रहे हैं तो आर्टिकल 15 ऐसा करने से नहीं रोक सकता। महिलाओं के लिये आरक्षण या बच्चों के लिये मुफ्त शिक्षा इसी उपबंध के तहत आते हैं। - इस आर्टिकल के नियम 4 के मुताबिक, राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े तथा SC/ST/OBC के लिये विशेष उपबंध बनाने की छूट है। Case Law - चंपकम दोराई राजन बनाम मद्रास राज्य I.R. 1952, S.C. - चम्पाकम दोराई राजन बनाम मद्रास राज्य वादसंविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार के अनु० -15 (4) जिसके द्वारा सामाजिक और शैक्षिणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए विशेष उपबंध किये जाने की व्यवस्था करता है, से सम्बन्धित है। - बालसमपाल बनाम कोचिन्न विश्वविद्यालय ए॰ आई॰ आर॰ 1996 एस॰ सी॰ - मीरा कांवरिया /सुनीता ए आई आर 2006 सुप्रीम कोर्ट
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अनुछेद 16 अनुच्छेद 16(1) राज्य के अधीन किसी भी पद पर ‘नियुक्ति’ या ‘रोजगार’ से संबंधित मामलों में अवसर की समानता की गारंटी देता है। यह केवल सरकार/राज्य से संबंधित या उनके द्वारा धारित कार्यालयों या रोजगार पर लागू होता है। अनुच्छेद 16(2) में कहा गया है कि राज्य के अधीन किसी भी रोजगार या कार्यालय में नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान, निवास या वंश के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 16 खंड (1) सामान्य नियम प्रदान करता है जो यह बताता है कि सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में नियुक्ति में समानता होगी और राज्य के तहत इस तरह के रोजगार के लिए केवल धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, जन्म स्थान, वंश या निवास स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। इसके अलावा, अनुच्छेद 16 (1) और (2) केवल राज्य की नियुक्तियों या रोजगार पर लागू होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 के खंड (3), (4), (4-A), (4-B) और (5) अवसर की समानता के सामान्य नियम के अपवाद प्रदान करते हैं। अनुच्छेद 16 के खंड (3) में कहा गया है कि संसद संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में या उस राज्य के भीतर स्थानीय अधिकारियों या अन्य अधिकारियों में विशेष रोजगार या नियुक्तियों के लिए पूर्व शर्त के रूप में राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में निवास की आवश्यकता वाले किसी भी कानून को अधिनियमित कर सकती है। Case Law - इन्दिरा साहनी/भारत संघ I.R. 1992, S.C. - इंद्रा साहनी मामला केवल पिछड़े वर्गों से संबंधित है, अनुसूचित जाति (शेड्यूल्ड कास्ट) और अनुसूचित जनजाति (शेड्यूल्ड ट्राइब्स) के पदोन्नति (प्रमोशन) में आरक्षण प्रभावित नहीं होना चाहिए और यह जारी रहना चाहिए। हालाँकि, संसद ने 77वां संशो���न अधिनियम, 1995 अधिनियमित किया और संविधान के अनुच्छेद 16 में खंड 4-A को जोड़ा, जिससे संसद पदोन्नति पदों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सके। इसका सीधा सा मतलब था कि मंडल मामले के फैसले के बाद भी सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण जारी रहेगा - जनहित अभियान बनाम भारत संघ, (2022)
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- जनहित अभियान बनाम भारत संघ,(2022) में 103वें संशोधन को भारतीय संविधान के मूल ढांचे के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी गई थी। हालाँकि, 3: 2 के बहुमत से, संशोधन को संवैधानिक रूप से मान्य माना गया था। न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने स्पष्ट किया कि आरक्षण केवल सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का मुकाबला करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई या उपाय नहीं है; इसके बजाय, वे विभिन्न प्रकार के नुकसानों से लड़ने में मदद करते हैं। बहुमत ने यह भी माना कि मौजूदा 50% आरक्षण सीमा से ऊपर 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण, जैसा कि इंद्रा साहनी मामले में स्थापित किया गया था, संवैधानिक है| अनुछेद 17 अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और किसी भी रूप में इसका अभ्यास वर्जित है। अस्पृश्यता से उत्पन्न होने वाली किसी भी अक्षमता को लागू करना कानून के अनुसार दंडनीय अपराध होगा। व्याख्या:अस्पृश्यता को न तो संविधान में परिभाषित किया गया है और न ही अधिनियम में। यह एक ऐसी सामाजिक प्रथा को संदर्भित करता है जो कुछ दबे-कुचले वर्गों को केवल उनके जन्म के आधार पर नीची दृष्टि से देखती है और इस आधार पर उनके साथ भेदभाव करत�� है। उनका शारीरिक स्पर्श दूसरों को प्रदूषित करने वाला माना जाता था। ऐसी जातियाँ जिन्हें अछूत कहा जाता था, उन्हें एक ही कुएँ से पानी नहीं खींचना था, या उस तालाब / तालाब का उपयोग नहीं करना था जिसका उपयोग उच्च जातियाँ करती हैं। उन्हें कुछ मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी और कई अन्य अक्षमताओं का सामना करना पड़ा। संसद ने अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 को अधिनियमित किया। 1976 में, इसे और अधिक कठोर बनाया गया और इसका नाम बदलकर 'नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955' कर दिया गया। कर्नाटक राज्य बनाम अप्पा बालू इंगले में, सर्वोच्च न्यायालय  अस्पृश्यता की प्रथा की निरंतरता पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह गुलामी का एक अप्रत्यक्ष रूप है और जाति व्यवस्था का ही विस्तार है। मैसूर उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में अस्पृश्यता के अर्थ को स्पष्ट किया है. न्यायालय ने कहा है कि “इस शब्द का शाब्दिक अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए. शाब्दिक अर्थ में व्यक्तियों को कई कारणों से अस्पृश्य माना जा सकता है; जैसे-जन्म, रोग, मृत्यु एवं अन्य कारणों से उत्पन्न अस्पृश्यता. इसका अर्थ उन सामाजिक कुरीतियों से समझना चाहिये जो भारतवर्ष में जाति-प्रथा के सन्दर्भ में परम्परा से विकसित हुई हैं. अनुच्छेद 17 इसी सामाजिक बुराई का निवारण करता है जो जाति-प्रथा की देन है न कि शाब्दिक अस्पृश्यता का.” न्यायालय द्वारा की गई टिप्‍पणियां और निर्देश से कुछ कार्यों को अस्पृश्यता का पालन माना जाएगा, जिसके लिए दंड का प्रावधान भी किया गया है. अस्पृश्यता माने जाने वाले कार्यों के उदाहरण (1) किसी व्यक्ति को किसी सामाजिक संस्था में जैसे अस्पताल, मेडिकल स्टोर, शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश न देना. (2) किसी व्यक्ति को सार्वजनिक उपासना के किसी स्थल (मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर आदि) में उपासना या प्रार्थना करने से रोकना. (3) किसी दुकान, रेस्टोरेंट, होटल या सार्वजनिक मनोरंजन के किसी स्थान पर जाने से रोक लगाना या किसी जलाशय, नल, जल के अन्य स्रोत, रास्‍ते, श्मशान या अन्य स्थान के संबंध में जहां सार्वजनिक रूप में सेवाएं प्रदान की जाती हैं, वहां की पाबंदी लगाना। (4) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के किसी सदस्य का अस्पृश्यता के आधार पर अपमान करना (5) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता का उपदेश देना (6) इतिहास, दर्शन या धर्म को आधार मानकर या किसी जाति प्रथा को मानकर अस्पृश्यता को सही बताना. (यानि धर्म ग्रंथ में जातिवाद लिखा है तो मैं उसका पालन कर रहा हूं, ऐसे नहीं चलेगा और उसे भी अपराध माना जाएगा) कर्नाटक राज्य बनाम अप्पा बालू इंगले, एआईआर 1993 एससी 1126 अनुछेद 18 - उपाधियों का अंत   विवरण (1) राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा। (2) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा। (3) कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा। (4) राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करे   - बालाजी राघवन बनाम भारत संघ ए आई आर 1996 सुप्रीम कोर्ट 770  
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lawspark · 1 year ago
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How to Get Rid of Check Bounce Cases and Find a Solution?
Introduction Check bounce cases : Dealing with Check bounce cases can be a challenging and stressful experience. It can have significant implications on your financial stability and reputation. However, with the right approach and understanding of the legal procedures, it is possible to navigate through these situations and find a resolution. In this article, we will discuss effective strategies to help you overcome check bounce cases and regain control over your finances. Understanding Check Bounce: Check bounce, also known as a dishonored or bounced check, occurs when a check issued by an individual or organization is returned unpaid by the bank. This can happen due to various reasons such as insufficient funds, a closed account, or mismatched signatures. When a check bounces, it not only affects the payee financially but also damages their credibility. Legal Implications Due to Check Bounce: In many jurisdictions, check bounce cases are considered a criminal offense. The severity of the consequences may vary depending on the laws of the specific country or state. It is crucial to familiarize yourself with the legal framework governing such cases in your jurisdiction. Seek legal advice to understand the potential penalties and your rights as the payee. Steps to Resolve Check Bounce Cases: 1. Communication: Initiate communication with the issuer of the bounced check as soon as possible. Clearly inform them about the situation, providing details such as the date, amount, and reason for the bounced check. Open and honest communication can often lead to a mutually beneficial resolution. 2. Legal Notice: If the issuer fails to respond or refuses to cooperate, consider sending a legal notice. Seek assistance from an attorney to draft a formal notice, clearly stating your intent to take legal action if the matter remains unresolved. This step demonstrates your commitment to resolving the issue and may motivate the issuer to address the matter seriously. 3. Mediation: Before pursuing a legal battle, explore the option of mediation. Mediation involves a neutral third party who helps facilitate a dialogue between both parties to reach a settlement. It can be a cost-effective and efficient way to resolve the matter out of court while avoiding lengthy legal procedures. 4. Filing a Lawsuit: If all attempts at resolution fail, you may have to resort to legal action. Consult with an attorney who specializes in check bounce cases to initiate a lawsuit against the issuer. Provide all necessary evidence, such as the bounced check, bank statements, and communication records, to strengthen your case. 5. Enforcement of Judgement: In case the court rules in your favor, you will be awarded a judgment. However, obtaining the payment can sometimes be challenging. Seek legal advice on the available enforcement methods, such as garnishment of wages, attachment of assets, or bank account seizure, to ensure you can recover the owed amount. Conclusion: Dealing with check bounce cases requires patience, determination, and a good understanding of the legal procedures involved. By taking proactive measures, seeking legal counsel when necessary, and exploring alternative dispute resolution methods, individuals can effectively resolve check bounce cases and regain control over their financial stability. Remember, prevention is the best approach, so always exercise caution when accepting checks and maintain clear communication to avoid such situations in the future.
Fundamental rights/ मौलिक अधिकार/मूल अधिकार क्या है?
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