#जीवन का आधार
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#sant rampal ji maharaj#allah is kabir#kabirgod#धन आधार से जीवन जिने वाले मनुष्य कभी परमात्मा के तत्त्वज्ञान को समझने का प्रयास नहीं करते यही उ
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नजरिया जीने का: स्वामी विवेकानंद की इस कोट्स को बना लो जीवन का आधार-सफलत...
#youtube#नजरिया जीने का: स्वामी विवेकानंद की इस कोट्स को बना लो जीवन का आधार-सफलता कदम चूमेगी najariyajineka inspiringthought
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#ऐसे_मिलेगा_भगवान
परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) को कैसे प्राप्त करेंगे?
परमेश्वर प्राप्ति के लिए नाम का जाप करना होता है।
सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
कबीर, कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार । योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार ।।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
#santrampaljiquotes#santrampalji is trueguru#santrampaljimaharaj#across the spiderverse#succession#satlokashram#supreme god kabir
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DAY 5917
Jalsa, Mumbai Apr/May/ 30/1, 2024 Tue/Wed 3:34 AM
🪔 ,
May 01 .. birthday greetings to Ef Anat Magen .. Ef Zalina Tidjieva .. and Ef Hitee Arrora .. ❤️🙏🏻🚩
..
It comes on to the day next and still there is enough within to continue despite the dictat to get to bed early ..
But early be the writing for them that shall never understand the Ef post Blog connect .. and so here we are ..
Last day post was a bit literary and philosophical .. but it gives me pride that I am in the capacity to be able to bring remembrance and the genius of Babuji to all here ..
More shall follow I do hope and wish .. for the legacy of unmeasured capability of poet writer thinker shall ever be eternal ..
"मेरा attitude romantic abandon का है । बादलों को भी मैंने ये अधिकार दे दिया है, की मुझे जहां चाहें वहाँ ले जायें । 'प्रेरे' के प्रयोग पर मुझे बड़ा संतोष है - ख़ुशी भी - कविता का एक काम ये भी है, पुराने - अप्रयुक्त - विस्मृत शब्दों को नव अर्थ देकर नव जीवन देना । इससे भाषा अपनी जड़ों की गहराई के प्रति सचेत होती है । खड़ी बोली सब कुछ नया गढ़ने के आग्रह में सतही हो गई है । उसके शब्द, वाक्य, रूपक, लय, लहजे किसी समय - सम्मानित pedigree ( कुलीनता ?) ( वंशावली, वुप्त पत्ति, उत्पत्ति, शब्द साधन, वंश) का सबूत या संकेत नहीं देते । नवीनता अपने प्रयोगों में अधिक venturesome होती है जब उसके पीछे प्राचीनता का बल या आधार हो ।"
( वंशावली, वुप्त पत्ति, उत्पत्ति, शब्द साधन, वंश ) my additions, because Babuji put a ? after his word mean for pedigree
( a random mention in his Pravas ki Diary )
"My attitude is of romantic abandon . I have given the liberty and the right, even to the clouds, to take me wherever they desire. The use of the word 'प्रेरे' - prayre, (in one of the words in his poem under mention) gives me great satisfaction , and a happiness too - the job of a poem is also that it take the older - words not in use - forgotten, and give them a fresh new meaning, and give them a new life ... in doing so it gives a consciousness, a mindful alert, to the very roots of a language .. खड़ी बोली khadi boli - a form of language speak , pure in its content but ruralised and spoken in the interiors , in its firmed attempt to do something new has become far too superficial .. its words, sentences, its graph , at some point of time, do not give it the pedigree testimony it had .. a freshness, a modernity is greatly more venturesome in its use , when it has the backing of the strength of age and antiquity .."
"... a freshness, a modernity is greatly more venturesome in its use , when it has the backing of the strength of age and antiquity .."
such graceful observation .. not just in the realm of the use of language, but in our everyday existence ..
Is it not .. ?
My love ❤️
Amitabh Bachchan
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सत का सौदा जो करै, दम्भ छल छिद्र त्यागै। अपने भाग का धन लहै, परधन विष सम लागै।। भावार्थ:- अपने जीवन में परमात्मा से डरकर सत्य के आधार से सर्व कर्म करने चाहिए, जो अपने भाग्य में धन लिखा है, उसी में संतोष करना चाहिए। परधन को विष के समान समझें।
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लखनऊ, 14.09.2024 | विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 2024 के उपलक्ष्य पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज के सहयोग से जागरूकता कार्यक्रम “पर्यावरण बचाओ, जीवन बचाओ” का आयोजन भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, विनीत खंड, गोमती नगर, लखनऊ में किया |
��ार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने महाविद्यालय की छात्राओं को पेड़ लगाने के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि, “पेड़ हमारे जीवन के आधार हैं । वे न केवल हमें स्वच्छ हवा और छाया प्रदान करते हैं, बल्कि हमारे पर्यावरण को संतुलित रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । पेड़ लगाना केवल एक पौधा रोपण नहीं है, बल्कि यह एक स्वस्थ और स्वच्छ भविष्य की नींव रखने जैसा है । पेड़ हमारी धरती के फेफड़े हैं, जो वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर हमें शुद्ध ऑक्सीजन देते हैं । पेड़ केवल पर्यावरण को ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन को भी बेहतर बनाते हैं । एक पेड़ हजारों जीव-जंतुओं और पक्षियों का ��र होता है, जिससे हमारी पृथ्वी पर जीवन का संतुलन बना रहता है । इसलिए पर्यावरण की रक्षा के लिए हम सभी को पेड़ लगाने के इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए । हर छात्रा को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह न केवल आज बल्कि हर साल कम से कम एक पेड़ लगाएगा और उसकी देखभाल करेगा । यह छोटा सा कदम हमारे जीवन और धरती के भविष्य को सुरक्षित रखने की दिशा में एक बड़ा योगदान होगा ।“
जागरूकता कार्यक्रम “पर्यावरण बचाओ जीवन बचाओ” में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों सुश्री रितिका त्रिपाठी, सुश्री साक्षी राठौड़, सुश्री अंजलि सिंह (एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी) ने भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज की छात्राओं के सहयोग से महाविद्यालय के प्रांगण में मनोकामनी, मिनी चांदनी, गांधार चंपा और गुड़हल के पौधे लगाए तथा हमेशा पर्यावरण की सुरक्षा करने का संकल्प लिया । इस अवसर पर भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज की प्राचार्या डॉ. अलका निवेदन जी, उप प्राचार्य डॉ. संदीप बाजपेई जी और सहायक प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, डॉ. छवि निगम जी की गरिमामयी उपस्थिति रही ।
#World_Nature_Conservation_Day #पर्यावरण_बचाओ_जीवन_बचाओ #SaveEnvironmentSaveLife #Savewater #Waterconservation #Gogreen #Cleanearth #Zerowaste #Conservenature #Environmentalawareness
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#ऐसे_मिलेगा_भगवान
परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) को कैसे प्राप्त करेंगे?
परमेश्वर प्राप्ति के लिए नाम का जाप करना होता है। सूक्ष्मवेद में लिखा हैः-
कबीर, कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार ।
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार।।
अधिक जानकारी के लिएअवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
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#GodMorningSaturday
गीता के अध्याय 3 श्लोक 14 में कहा गया है कि कर्मों के आधार पर ही जीवन का चक्र चलता है। असली ज्ञान वही है जो आपको इस चक्र से मुक्त कर सके। पूर्ण ब्रह्म की भक्ति से ही मोक्ष प्राप्त होता है।
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#गीताजी_का_ज्ञान_किसने_बोला
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#मनुष्य_जीवन_का_उद्देश्य
संत रामपाल जी महाराज ने मनुष्य जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष बताया है। मनमाने तरीके से या लोकवेद (सुनी सुनाई कथा) के आधार पर की जाने वाली भक्ति व्यर्थ है। जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में बताया गया है कि शास्त्र विधि को त्याग कर जो मनमाना आचरण यानी मनमानी पूजा करते हैं, उनको कोई लाभ नहीं होता।
#GodMorningSaturday
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#GodMorningWednesday
🪴 🪴
परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) को कैसे प्राप्त करेंगे?
#ऐसे_मिलेगा_भगवान 🙇🙇
परमेश्वर प्राप्ति के लिए नाम का जाप करना होता है।
सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
कबीर,
कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार।
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार।।
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वेदों पर किये गये आक्षेपों का उत्तर
भूमिका सभी वेदानुरागी महानुभावो! जैसा कि आपको विदित है कि मैंने विगत श्रावणी पर्व वि० सं० २०८० तदनुसार ३० ��ुलाई २०२३ को सभी वेदविरोधियों का आह्वान किया था कि वे वेदादि शास्त्रों पर जो भी आक्षेप करना चाहें, खुलकर ३१ दिसम्बर २०२३ तक कर सकते हैं। हमने इस घोषणा का पर्याप्त प्रचार किया और करवाया भी था। इस पर हमें कुल १३४ पृष्ठ के आक्षेप प्राप्त हुए हैं। इन आक्षेपों को हमने अपने एक पत्र के साथ देश के शंकराचार्यों के अतिरिक्त पौराणिक जगत् में महामण्डलेश्वर श्री स्वामी गोविन्द गिरि, श्री स्वामी रामभद्राचार्य, श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती आदि कई विद्वानों को भेजा था। आर्यसमाज में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, परोपकारिणी सभा, वानप्रस्थ साधक आश्रम (रोजड़), दर्शन योग महाविद्यालय (रोजड़), गुरुकुल काँगड़ी हरिद्वार तथा सभी प्रसिद्ध आर्य विद्वानों को भेजकर निवेदन किया था कि ऋषि दयानन्द के २०० वें जन्मोत्सव फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी वि० सं० २०८० तदनुसार ५ मार्च २०२४ तक जिन आक्षेपों का उत्तर दिया जा सकता है, लिखकर हमें भेजने का कष्ट करें। उस उत्तर को हम अपने स्तर से प्रकाशित और प्रचारित करेंगे।
यद्यपि मुझे ही सब प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए, परन्तु मैंने विचार किया कि इन आक्षेपों का उत्तर देने का श्रेय मुझे ही क्यों मिले और वेदविरोधियों को यह भी न लगे कि आर्यसमाज में एक ही विद्वान् है। इसके साथ मैंने यह भी विचार किया कि मेरे उत्तर देने के पश्चात् कोई विद्वान् यह न कहे कि हमें उत्तर देने का अवसर नहीं मिला, यदि हमें अवसर मिलता, तो हम और भी अच्छा उत्तर देते। दुर्भाग्य की बात यह है कि निर्धारित समय के पूर्ण होने के पश्चात् तक कहीं से कोई भी उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है। बड़े-बड़े शंकराचार्य, महामण्डलेश्वर, महापण्डित, गुरु परम्परा से पढ़े महावैयाकरण, दार्शनिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता, योगी एवं वेद विज्ञान अन्वेषक कोई भी एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे पाये। तब यह तो निश्चित हो ही गया कि ये आक्षेप वा प्रश्न सामान्य नहीं हैं। आक्षेपकर्त्ताओं ने पौराणिक तथा आर्यसमाजी दोनों के ही भाष्यों को आधार बनाकर गम्भीर व घृणित आक्षेप किये हैं। उन्होंने गायत्री परिवार को भी अपना निशाना बनाया है, परन्तु सभी मौन बैठे हैं, लेकिन मैं मौन नहीं रह सकता। इस कारण इन आक्षेपों का धीरे-धीरे क्रमश: उत्तर देना प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं जो उत्तर दूँगा उसक�� कोई भी वैदिक विद्वान्, जो आज मौन बैठे हैं, गलत कहने के अधिकारी नहीं रह पायेंगे, न मेरे उत्तर और वेदमन्त्रों के भाष्यों पर नुक्ताचीनी करने के अधिकारी रहेंगे। आज धर्म और अधर्म का युद्ध हो रहा है, उसका मूक दर्शक सच्चा वेदभक्त नहीं कहला सकता। मैंने चुनौती स्वीकारी तो है, उनकी भाँति मौन तो नहीं बैठा। वेद पर किये गये आक्षेपों पर मौन रहना भी उन आक्षेपों का मौन समर्थन करना ही है। यद्यपि मैं बहुत व्यस्त हूँ, पुनरपि धीरे-धीरे एक-एक प्रश्न का उत्तर देता रहूँगा। मैं सभी उत्तरदायी महानुभावों से दिनकर जी के शब्दों में यह अवश्य कहना चाहूँगा—
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। मनुष्य इस संसार का सबसे विचारशील प्राणी है। इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड में जहाँ भी कोई विचारशील प्राणी रहते हैं, वे भी सभी मनुष्य ही कहे जायेंगे। यूँ तो ज्ञान प्रत्येक जीवधारी का एक प्रमुख लक्षण है। ज्ञान से ही किसी की चेतना का प्रकाशन होता है, सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर हम मनुष्यों तक सभी प्राणी जीवनयापन के क्रियाकलापों में भी अपने ज्ञान और विचार का प्रयोग करते ही हैं। जीवन-मरण, भूख-प्यास, गमनागमन, सन्तति-जनन, भय, निद्रा और जागरण आदि सबके पीछे भी ज्ञान और विचार का सहयोग रहता ही है, तब महर्षि यास्क ने ‘मत्वा कर्माणि सीव्यतीति मनुष्य:’ कहकर मनुष्य को परिभाषित क्यों किया? इसके लिए ऋषि दयानन्द द्वारा प्रस्तुत आर्यसमाज के पाँचवें नियम ‘सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए’ पर विचार करना आवश्यक है। विचार करना और सत्य-असत्य पर विचार करना इन दोनों में बहुत भेद है, जो हमें पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों से पृथक् करता है। विचार वे भी करते हैं, परन्तु उनका विचार केवल जीवनयापन की क्रियाओं तक सीमित रहता है।
इधर सत्य और असत्य पर विचार जीवनयापन करने की सीमा से बाहर भी ले जाकर परोपकार में प्रवृत्त करके मोक्ष तक की यात्रा करा सकता है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि जीवनयापन के विचार तक सीमित रहने वाले प्राणी जन्म से ही आवश्यक स्वाभाविक ज्ञान प्राप्त किये हुए होते हैं, परन्तु मनुष्य जैसा सर्वाधिक बुद्धिमान् प्राणी पशु-पक्षियोंं की अपेक्षा न्यूनतर ज्ञान लेकर जन्म लेता है। वह अपने परिवेश और समाज से सीखता है। इस कारण केवल मनुष्य के लिए ही समाज तथा शिक्षण-संस्थानों की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में मनुष्य पशु-पक्षियों को देखकर उन जैसा ही बन जाता है। हाँ, उनकी भाँति उड़ने जैसी क्रियाएँ नहींं क��� सकता। समाज और शिक्षा के अभाव में वह मानवीय भाषा और ज्ञान दोनों ही दृष्टि से पूर्णत: वंचित रह जाता है। यदि उसे पशु-पक्षियों को भी न देखने दिया जाये, तब उसके आहार-विहार में भी कठिनाई आ सकती है। इसके विपरीत करोड़ों वर्षों से हमारे साथ रह रहे गाय-भैंस, घोड़ा आदि प्राणी हमारा एक भी व्यवहार नहीं सीख पाते। हाँ, वे अपने स्वामी की भाषा और संकेतों को कुछ समझकर तदनुकूल खान-पान आदि व्यवहार अवश्य कर लेते हैं। इस कारण कुछ पशु यत्किंचित् प्रशिक्षित भी किये जा सकते हैं, परन्तु मनुष्य की भाँति उन्हें शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य एवं विद्वान् नहीं बनाया जा सकता। यही हममें और उनमें अन्तर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य जन्म लेते समय पशु-पक्षियों की अपेक्षा मूर्ख होता है, जीवनयापन में भी सक्षम नहीं होता, वह सबसे अधिक विद्वान्, सभ्य व सुशिक्षित कैसे हो जाता है?
जब मनुष्य की प्रथम पीढ़ी इस पृथिवी पर जन्मी होगी, तब उसने अपने चारों ओर पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों को ही देखा होगा, तब यदि वह पीढ़ी उनसे कुछ सीखती, तो उन्हीं के जैसा व्यवहार करती और उनकी सन्तान भी उनसे वैसे ही व्यवहार सीखती। आज तक भी हम पशुओं जैसे ही रहते, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। हमने विज्ञान की ऊँचाइयों को भी छूआ। वैदिक काल में हमारे पूर्वज नाना लोक-लोकान्तरोंं की यात्रा भी करते थे। कला, संगीत, साहित्य आदि के क्षेत्र में भी मनुष्य का चरमोत्कर्ष हुुआ, परन्तु पशु-पक्षी अपनी उछल-कूद से आगे बढ़कर कुछ भी नहीं सीख पाए। मनुष्य को ऐसा अवसर कैसे प्राप्त हो गया? उसने किसकी संगति से यह सब सीखा? इसके विषय में कोई भी नास्तिक कुछ भी विचार नहीं करता। वह इसके लिए विकासवाद की कल्पनाओं का आश्रय लेता देखा जाता है। यदि विकास से ही सब कुछ सम्भव हो जाता, तब तो पशु-पक्षी भी अब तक वैज्ञानिक बन गये होते, क्योंकि उनका जन्म तो हमसे भी पूर्व में हुआ था। इस कारण उनको विकसित होने के लिए हमारी अपेक्षा अधिक समय ही मिला है। इसके साथ ही यदि विकास से ही सब कुछ स्वत: सिद्ध हो जाता, तो मनुष्य के लिए भी किसी प्रकार के विद्यालय और समाज की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु ऐसा नहीं है। नास्तिकों को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि मनुष्य में भाषा और ज्ञान का विकास कहाँ से हुआ?
इस विषय में विस्तार से जानने के लिए मेरा ग्रन्थ ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ अवश्य पठनीय है, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रथम पीढ़ी के चार सर्वाधिक समर्थ ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा ने ब्रह्माण्ड से उन ध्वनियों को अपने आत्मा और अन्त:करण से सुना, जो ब्रह्माण्ड में परा और पश्यन्ती रूप में विद्यमान थीं। उन ध्वनियों को ही वेदमन्त्र कहा गया। उन वेदमन्त्रों का अर्थ बताने वाला ईश्वर के अतिरिक्त और कोई भी नहीं था। दूसरे मनुष्य तो इन ध्वनियों को ब्रह्माण्ड से ग्रहण करने में भी समर्थ नहींं थे, भले ही उनका प्रातिभ ज्ञान एवं ऋतम्भरा ऋषि स्तर की थी। सृष्टि के आदि में सभी मनुष्य ऋषि कोटि के ब्राह्मण वर्ण के ही थे, अन्य कोई वर्ण भूमण्डल में नहीं था। उन चार ऋषियों को समाधि अवस्था में ईश्वर ने ही उन मन्त्रों के अर्थ का ज्ञान दिया। उन चारों ने मिलकर महर्षि ब्रह्मा को चारों वेदों का ज्ञान दिया और महर्षि ब्रह्मा से फिर ज्ञान की परम्परा सभी मनुष्यों तक पहुँचती चली गई। इस प्रकार ब्रह्माण्ड की इन ध्वनियों से ही मनुष्य ने भाषा और ज्ञान दोनों ही सीखे। इस कारण मनुष्य नामक प्राणी सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बन गया।
ध्यातव्य है कि प्रथम पीढ़ी में जन्मे सभी मनुष्य मोक्ष से पुनरावृत्त होकर आते हैं। इसी कारण ये सभी ऋषि कोटि के ही होते हैं। ज्ञान की परम्परा किस प्रकार आगे बढ़ती गयी और मनुष्य की ऋतम्भरा कैसे धीरे-धीरे क्षीण होती गयी और मनुष्यों को वेदार्थ समझाने के लिए कैसे-कैसे ग्रन्थों की रचना आवश्यक होती चली गई और कैसा-कैसा साहित्य रचा गया, इसकी जानकारी के लिए मेरा ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पठनीय है। वेद को वेद से समझने की प्रज्ञा मनुष्य में जब समाप्त वा न्यून हो जाती है, तभी उसके लिए किसी अन्य ग्रन्थ की आवश्यकता होती है। धीरे-धीरे वेदार्थ में सहायक आर्ष ग्रन्थ भी मनुष्य के लिए दुरूह हो गये और आज तो स्थिति यह है कि वेद एवं आर्ष ग्रन्थों के प्रवक्ता भी इनके यथार्थ से अति दूर चले गये हैं। इस कारण वेद तो क्या, आर्ष ग्रन्थ भी कथित बुद्धिमान् मानव के लिए अबूझ पहेली बन गये हैं। इस स्थिति से उबारने के लिए ऋषि दयानन्द सरस्वती और उनके महान् गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु समयाभाव आदि परिस्थितियों के कारण ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य एवं अन्य ग्रन्थ वेद के रहस्यों को खोलने के लिए संकेतमात्र ही रह गये। वे वेद के यथार्थ को जानने के लिए सुमार्ग पर चलने वाले पथिक के रेत में बने हुुए पदचिह्न के समान थे। गन्तव्य की ओर गये हुए पदचिह्न किसी भी भ्रान्त पथिक के लिए महत्त्वपूर्ण सहायक होते हैं।
दुर्भाग्य से ऋषि दयानन्द के अनुयायियों ने ऋषि के बनाये हुए कुछ पदचिह्नों को ही गन्तव्य समझ लिया और वेदार्थ को समझने के लिए उन्होंने कोई ठोस प्रयत्न नहीं किया। उनका यह कर्म महापुरुषों की प्रतिमाओं को ही परमात्मा मानने की भूल करने जैसा ही था। इसका परिणाम यह हुआ कि ऋषि दयानन्द के अनुयायी विद्वान् भी वेदादि शास्त्रों के भाष्य करने में आचार्य सायण आदि के सरल प्रतीत होने वाले परन्तु वास्तव में भ्रान्त पथ के पथिक बन गये। इसी कारण पौराणिक (कथित सनात���ी) भाष्यकारों की भाँति आर्य विद्वानों के भाष्यों में भी अश्लीलता, पशुबलि, मांसाहार, नरबलि, छुआछूत आदि पाप विद्यमान हैं। यद्यपि उन्होंने शास्त्रों को इन पापों से मुक्त करने का पूर्ण प्रयास किया, परन्तु वे इसमें पूर्णत: सफल नहीं हो सके। इसी कारण इनके भाष्यों में सायण आदि आचार्यों के भाष्यों की अपेक्षा ये दोष कम मात्रा में विद्यमान हैं, परन्तु वेद और ऋषियों के ग्रन्थों में एक भी दोष का विद्यमान होना वेद के अपौरुषेयत्व और ऋषियों के ऋषित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने के लिए पर्याप्त होता है। इसलिए ऋषि दयानन्द के भाष्य के अतिरिक्त सभी भाष्य दोषपूर्ण और मिथ्या हैं। हाँ, ऋषि दयानन्द के भाष्य भी सांकेतिक पदचिह्न मात्र होने के कारण सात्त्विक व तर्कसंगत व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं।
इसके लिए सब मनुष्यों को यह अति उचित है कि वे वेद के रहस्य को समझने के लिए ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ ग्रन्थ का गहन अध्ययन करें। जो विद्वान् वेद और ऋषियों की प्रज्ञा की गहराइयों में और अधिक उतरना चाहते हैं, उन्हें ‘वेदविज्ञान-आलोक’ और ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। जो आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहे शिक्षक वा विद्यार्थी वेद का सामान्य परिचय चाहते हैं, उन्हें ऋषि दयानन्द कृत ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ एवं ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ और प्रिय विशाल आर्य कृत ‘परिचय वैदिक भौतिकी’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। अब हम क्रमश: वेदादि शास्त्रों पर किये गये आक्षेपों का समाधान प्रस्तुत करेंगे—
क्रमशः... ✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल मोक्ष प्राप्त करना है। उन्होंने कबीर साहेब और गरीबदास जी महाराज की वाणियों के आधार पर बताया है कि यह संसार काल का भयानक जाल है, जिससे केवल सतभक्ति के माध्यम से ही छुटकारा पाया जा सकता है।
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#मनुष्य_जीवन_का_उद्देश्य
संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल मोक्ष प्राप्त करना है। उन्होंने कबीर साहेब और गरीबदास जी महाराज की वाणियों के आधार पर बताया है कि यह संसार काल का भयानक जाल है, जिससे केवल सतभक्ति के माध्यम से ही छुटकारा पाया जा सकता है।
#santrampaljiquotes#santrampalji is trueguru#santrampaljimaharaj#across the spiderverse#succession#satlokashram#supreme god kabir#allah is kabir
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#मनुष्य_जीवन_का_उद्देश्य
#SantRampalJiMaharaj
#aim #moksha #salvation #bhakti #purposedriven #devotion #devotional #guru #truestory #trueguru
#SatBhakti #worship #god #humanity
#krishna #shivshankar
⚡संत रामपाल जी महाराज ने मनुष्य जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष बताया है। मनमाने तरीके से या लोकवेद (सुनी सुनाई कथा) के आधार पर की जाने वाली भक्ति व्यर्थ है। जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में बताया गया है कि शास्त्र विधि को त्याग कर जो मनमाना आचरण यानी मनमानी पूजा करते हैं, उनको कोई लाभ नहीं होता। कौन सी साधना करनी चाहिए और कौन सी नहीं करनी चाहिए इसके लिए शास्त्र ही प्रमाण है। यानी शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने से ही प्राणी को सर्व लाभ तथा मोक्ष की प्राप��ति हो सकती है।
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संत रामपाल जी महाराज दिव्य धर्म यज्ञ के हिसाब से सभी मानव के लिए भक्ति मार्ग का मार्गदर्शन कर रहे हैं। यह मनुष्य जीवन बहुत अनमोल है अपने सदग्रंथों के आधार पर सद्भक्ति करें और मनुष्य जीवन को सफल बनाएं। 14,15,16 नवंबर 2024 को यज्ञ में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
Divya Dharma Yagya Diwas
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