#भक्ति को करे स्वीकार
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jeetramsahu · 10 months ago
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sanjyasblog · 3 months ago
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#तारणहार_संतरामपालजी_महाराज
संत रामपाल जी महाराज पूर्ण सतगुरु हैं जो सद्ग्रंथों से प्रमाणित सत्संग करते हैं वे अपने सत्संगो में कही एक-एक बात का प्रमाण शास्त्रों में दिखाते हैं। संत रामपाल जी महाराज गीता अध्याय 9 श्लोक 25 से प्रमाणित करते हुए बताते हैं कि मनमाने कर्मकांड जैसे-श्राद्ध, पिण्ड दान, माता मसानी और प्रेतों की पूजा करना गीता में मना किया गया है क्योंकि इनके करने से मानव भूत व पितर योनि को प्राप्त होता है। जिससे साधक का मानव जीवन व्यर्थ हो जाता है और वह मानव जीवन के मूल उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति नहीं कर पाता। इसलिए उनके द्वारा भक्त समाज को शास्त्र अनुकूल भक्ति प्रदान की जा रही है जिससे मानव का आत्म कल्याण हो सके।
नास्त्रोदमस जी ने कहा है कि विश्व धार्मिक हिन्दू संत (शायरन) पचास वर्ष की आयु में अर्थात् 2001 ज्ञेय ज्ञाता होकर प्रचार करेगा। संत रामपाल जी महाराज का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में सन् (ई.सं.) 1951 में 8 सितम्बर को गांव धनाना जिला सोनीपत, प्रांत हरियाण��� (भारत) में एक किसान परिवार में हुआ। इस प्रकार सन् 2001 में संत रामपाल जी महाराज की आयु पचास वर्ष बनती है, सो नास्त्रोदमस के अनुसार खरी है। इसलिए वह विश्व धार्मिक नेता संत रामपाल जी महाराज ही हैं जिनकी अध्यक्षता में भारतवर्ष पूरे विश्व पर राज्य करेगा। पूरे विश्व में एक ही ज्ञान (भक्ति मार्ग) चलेगा। एक ही कानून होगा, कोई दुःखी नहीं रहेगा, विश्व में पूर्ण शांति होगी। जो विरोध करेंगे अंत में वे भी पश्चाताप करेंगे तथा तत्वज्ञान को स्वीकार करने पर विवश होंगे और सर्व मानव समाज मानव धर्म का पालन करेगा और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सतलोक जाएंगे।
अच्छे दिन पाछै गए, सतगुरु से किया ना हेत।
अब पछतावा क्या करे, जब चिडि़या चुग गई खेत।।
सर्व मानव समाज से प्रार्थना करते हैं कि पूर्ण संत रामपाल जी महाराज को पहचानों तथा अपना व अपने परिवार का कल्याण करवाओ। अपने रिश्तेदारों तथा दोस्तों को भी बताओ तथा पूर्ण मोक्ष पाओ। स्वर्ण युग प्रारम्भ हो चुका है। लाखों पुण्य आत्मांए संत रामपाल जी तत्वदर्शी संत को पहचान कर सत्य भक्ति कर रहे हैं, वे अति सुखी हो गए हैं। सर्व विकार छोड़ कर निर्मल जीवन जी रहे हैं।
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vikaskumarsposts · 3 months ago
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#तारणहार_संतरामपालजी_महाराज
संत रामपाल जी महाराज पूर्ण सतगुरु हैं जो सद्ग्रंथों से प्रमाणित सत्संग करते हैं वे अपने सत्संगो में कही एक-एक बात का प्रमाण शास्त्रों में दिखाते हैं। संत रामपाल जी महाराज गीता अध्याय 9 श्लोक 25 से प्रमाणित करते हुए बताते हैं कि मनमाने कर्मकांड जैसे-श्राद्ध, पिण्ड दान, माता मसानी और प्रेतों की पूजा करना गीता में मना किया गया है क्योंकि इनके करने से मानव भूत व पितर योनि को प्राप्त होता है। जिससे साधक क��� मानव जीवन व्यर्थ हो जाता है और वह मानव जीवन के मूल उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति नहीं कर पाता। इसलिए उनके द्वारा भक्त समाज को शास्त्र अनुकूल भक्ति प्रदान की जा रही है जिससे मानव का आत्म कल्याण हो सके।
नास्त्रोदमस जी ने कहा है कि विश्व धार्मिक हिन्दू संत (शायरन) पचास वर्ष की आयु में अर्थात् 2001 ज्ञेय ज्ञाता होकर प्रचार करेगा। संत रामपाल जी महाराज का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में सन् (ई.सं.) 1951 में 8 सितम्बर को गांव धनाना जिला सोनीपत, प्रांत हरियाणा (भारत) में एक किसान परिवार में हुआ। इस प्रकार सन् 2001 में संत रामपाल जी महाराज की आयु पचास वर्ष बनती है, सो नास्त्रोदमस के अनुसार खरी है। इसलिए वह विश्व धार्मिक नेता संत रामपाल जी महाराज ही हैं जिनकी अध्यक्षता में भारतवर्ष पूरे विश्व पर राज्य करेगा। पूरे विश्व में एक ही ज्ञान (भक्ति मार्ग) चलेगा। एक ही कानून होगा, कोई दुःखी नहीं रहेगा, विश्व में पूर्ण शांति होगी। जो विरोध करेंगे अंत में वे भी पश्चाताप करेंगे तथा तत्वज्ञान को स्वीकार करने पर विवश होंगे और सर्व मानव समाज मानव धर्म का पालन करेगा और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सतलोक जाएंगे।
अच्छे दिन पाछै गए, सतगुरु से किया ना हेत।
अब पछतावा क्या करे, जब चिडि़या चुग गई खेत।।
सर्व मानव समाज से प्रार्थना करते हैं कि पूर्ण संत रामपाल जी महाराज को पहचानों तथा अपना व अपने परिवार का कल्याण करवाओ। अपने रिश्तेदारों तथा दोस्तों को भी बताओ तथा पूर्ण मोक्ष पाओ। स्वर्ण युग प्रारम्भ हो चुका है। लाखों पुण्य आत्मांए संत रामपाल जी तत्वदर्शी संत को पहचान कर सत्य भक्ति कर रहे हैं, वे अति सुखी हो गए हैं। सर्व विकार छोड़ कर निर्मल जीवन जी रहे हैं।
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indrabalakhanna · 4 months ago
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Shraddha TV Satsang 25-07-2024 || Episode: 2633 || Sant Rampal Ji Mahara...
#GodMorningThursday
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🙏📚हमारे वेद शास्त्र पुराण बताते हैं कि *कावड़ यात्रा* करने वाले को घोर पाप लगते हैं!
🔱
शिवजी अभिर्भाव /जन्म और तिरोभाव /मरण में हैं! मृत्युंजय नहीं है ना ही अंतर्यामी हैं!
अपने पुजारी भस्मासुर के मन में पार्वती को लेकर कितने गंदे विचार उठ रहे थे,शिव जी इतना भी नहीं जान पाए!
श्रीदेवी पुराण में स्पष्ट है कि दुर्गा मां ,तमोंगुणी शिव जी की मां हैं। शिव जी का अभिर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) होता है! श्रीमदभगवत गीता में स्पष्ट है कि तीनों गुणों की भक्ति अनुतम/घटिया/अश्रेष्ठ/गलत/मनमानाआचरण है!
गीता ज्ञान दाता भगवान ने स्वीकार किया वह सतगुण विष्णु रजगुण ब्रह्मा तमगुण शिव जी इन तीनों गुणों से युक्त तीनों देवताओं का बीज स्थापित करने वाला पिता है और श्री दुर्गा देवी प्रकृति उनकी माता है?
हे अर्जुन !
हम सभी का तो जन्म और मरण होता है तेरे और मेरे भी अनेकों को जन्म हो चुके हैं आगे भी होते रहेंगे, अविनाशी तो उस परमात्मा को जान_जिसको जानने के बाद कुछ और जानने योग्य नहीं रहता! उसकी खबर किसी तत्वदर्शी संत से अति अधिनि भाव से युक्त होकर उसे दण्डवत प्रणाम करके उस परमात्म तत्व का भेद जान ले!
अर्जुन युद्ध करना नहीं चाहता था ना नहीं श्री कृष्ण जी युद्ध के हक में थे ,लेकिन श्री कृष्ण जी में ज्योति निरंजन काल भगवान जी ने ब्रह्म भूत की तरह प्रवेश करके श्री कृष्ण जी के मुख से अर्जुन को अपने स्वार्थ वश भांति भांति ज्ञान दिया तब भी अर्जुन युद्ध के लिए तैयार नहीं हुआ तो कॉल ने श्री कृष्ण जी में अपना प्रवेश करके विराट रूप दिखाकर अर्जुन को भयभीत कर दिया जिसे देखकर अर्जुन जैसे योद्धा काँप गये और युद्ध करने के लिए तैयार हो गया !
🔱शिव जी किसी भी आत्मा के लेख में लिखे हुए कर्म फलों को कम या ज्यादा नहीं कर सकते!
यह भी स्पष्ट होता है ना ही किसी की आयु बढ़ा सकते हैं! शिव ना तो अंतर्यामी है ना मृत्युंजय हैं!
स्वयं परम अक्षर पुरुष _पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ने विष्णु जी का मोहनी रूप बनाकर शिवजी की भस्मासुर से रक्षा की !
🪕कबीर_सूक्ष्म वेद /पांचवां वेद और संत गरीबदास जी का 📕अमर ग्रंथ यह स्पष्ट करता है कि इन पांचो का रचा हुआ प्रपंच है! ( तीनों देवता ब्रह्मा विष्णु शिव + श्री दुर्गा प्रकृति देवी और ज्योति निरंजन काल ( जिसका एक अक्षर मंत्र है ओम )
तीन गुणों की माया में उलझाए रखकर जीवात्मा को पाप कर्मों में धकेले रखते हैं और उसे जन्म मरण और 84 लाख ��ोगिया में जाने के लिए बाध्य कर�� रखते हैं !
छ: विकारों के कारण ही जीव आत्मा को कर्म बंधन लगते हैं! ये विषय विकार काल ने अपने स्वार्थ वश जीवात्मा को लगा रखे हैं!
इसी कारण आत्मा अपने मूल धर्म और कर्तव्य से वंचित रहती है और पाप पुण्य कर्मों में फंसी रहती है और फिर इसी लोक में जन्मती और मरती रहती है 84 लाख योनियों में जाती है !
केवल एक पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ही हमें इस भवसागर से पार लगा सकते हैं !
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के रूप में अवतरित हैं!
नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करायें!
🙏सब्सक्राइब करें संत रामपाल जी महाराज YouTube Channel पर और प्रतिदिन अवश्य देखें पवित्र सत्संग साधना 📺 चैनल 7:30 p.m. से 8:30 p.m तक !
🙏Must Visit *फैक्ट फुल डिबेट*यू ट्यूब Channel पर!
🙏अवश्य देखें *सृष्टि रचना* संत रामपाल जी महाराज यू ट्यूब चैनल पर! सृष्टि रचना अध्यात्म को पूर्ण रूप से जानने की मुख्य चाबी /Master Key है! श्रीमद् भागवत गीता चारों वेदों का सारांश है !
🙏जरूर देखते रहें_ SA न्यूज़ चैनल!
🙏अवश्य विजिट करते रहें_ सतलोक आश्रम! यू ट्यूब Channel
🙏 दुर्लभ और अनमोल मानव जन्म मोक्ष के लिए मिला है! इसे हल्के में ना लें!
📚अपने वेद शास्त्रों पुराणों से अवश्य अपना परिचय करें !
आज पढ़ा लिखा युग है!
परमात्मा कबीर जी ने हमारे लिए इतने यंत्र बना दिए हैं,
इतनी सुविधा कर दी हैं कि
हम अपने मूल मालिक को आसानी से पहचान सकते हैं !
सुख पाने की या परमात्मा पाने की चाह में एक बार आत्मा से नजर उठाकर संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान को ध्यानपूर्वक लगातार सुनें!
काल के जाल में + कर्म बंधन में कैसे फंसी आत्मायें_जानेंगे _संत रामपाल जी महाराज के पवित्र सत्संगों से_जो हमारे शास्त्रों के अनुकूल हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार सत्य तत्व ज्ञान के आधार पर हमें प्रदान कर रहे हैं! महा उपकार का कार्य कर रहे हैं संत रामपाल जी महाराज !
इतिहास इस उपकार को सुनहरी अक्षरों में लिखेगा सृष्टि इस उपकार को कभी नहीं भूल पाएगी!
📚सत साहेब जी🙏 जय बंदीछोड़ की🙏
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madanshriwash · 1 year ago
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*🪁काशी का अद्भुत, अकल्पनीय, दिव्य भंडारा🪁*
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी लगभग आज से 626 वर्ष पहले इस धरती पर आये और बहुत सी लीलाएं करके चले गए। कबीर साहेब की लीलाओं का जिक्र कबीर सागर में भी मिलता है। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के 64 लाख शिष्य थे, यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने यथार्थ भक्ति मार्ग बताया, जिसको अपनाकर भक्तों को अविश्वसनीय लाभ प्राप्त हुए । कबीर साहेब ने एक साधारण जुलाहे की भूमिका की और जो भी पैसा बचता तो उसको धर्म भंडारे में लगा दिया करते । भोजन भंडारा धर्म यज्ञ में आता है।
एक बार शेखतकी जो कि कबीर साहेब से ईर्ष्या करता था। वह परमात्मा को स्वीकार नहीं करना चाहता था साथ ही अलग अलग प्रकार से नीचा दिखाने की योजनाएं बनाता रहता था। इस बात का फायदा काशी के नकली पंडितों ने भी उठाना चाहा क्योंकि कबीर साहेब के सत्य ज्ञान से उनकी ढोंग की दुकान बंद हो रही थी। सबने ��िलकर झूठे पत्र लिखे और सिकन्दर लोदी समेत 18 लाख लोगों को भंडारे में आमंत्रित किया, चिट्ठी में यह भी लिखा कि प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक स्वर्ण मोहर भी मिलेगी। ऐसा उन्होंने यह सोचकर किया कि एक जुलाहा इतने लोगों को कैसे भंडार कराएगा। किन्तु जुलाहे की भूमिका करते हुए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने 18 लाख साधु संतों लोगों को भोजन कराया। सारा भोजन भंडारा सतलोक से लाये तथा प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक मोहर दी एवं सूखा सीधा भी दिया। वह अलौकिक भंडारा लगातार तीन दिनों तक चलता रहा।
उन्होंने अपनी जुलाहे की भूमिका करते हुए यह बताया कि अगर आप भी इस तरह से परमात्मा पर विश्वास करके भक्ति करोगे तो परमात्मा आपके लिए कुछ भी कर सकता है।
कबीर, कल्पे कारण कौन है, कर सेवा निष्काम।
मन इच्छा फल देऊंगा, जब पड़े मेरे से काम।।
आज हमारे बीच परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के अवतार जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज आये हुए हैं जो वही चमत्कार करके सुख दे रहे हैं जैसे परमेश्वर कबीर देते थे। पूर्ण तत्वदर्शी संत से नामदीक्षा शारीरिक, मानसिक और आर्थिक लाभ तो देती ही है साथ ही पूर्ण मोक्ष भी देती है।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
#SantRampalJiMaharaj
#trending
#viralpost
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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🎉 आध्यात्मिक जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक "ज्ञान गंगा" फ्री में ऑर्डर करे ⤵️
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seedharam · 1 year ago
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*🔰संत रामपाल जी महाराज के द्वारा दिया गया शास्त्रों के अनुसार सत्य आध्यात्मिक मार्ग🔰*
संत रामपाल जी महाराज जी ने श्रीमद्भगवदगीता, वेदों, क़ुरान, बाईबल, श्रीगुरुग्रंथ साहिब आदि सदग्रंथों के ज्ञान सार “एक भगवान और एक भक्ति” के अनुरूप सतभक्ति द्वारा पूर्ण मोक्ष प्रदान कर सतगुरु मानव कल्याण कर रहे हैं। कुरीतियों, बुराइयों और भ्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं। आप��ी वैमनस्य मिटाकर विश्व शांति स्थापित कर धरती को स्वर्ग बनाने की ओर अग्रसर हैं। सतगुरु की असीम कृपा से भारत शीघ्र सोने की चिड़िया बनेगा और विश्वगुरु के खोए सम्मान को अर्जित करेगा।
जीवन का लक्ष्य सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर सतभक्ति करके पूर्ण मोक्ष पाना है। परमेश्वर कबीर जी ने स्वयं चारों युगों में पृथ्वी पर प्रकट होकर जीवों को सतज्ञान का उपदेश दिया है। वर्तमान में उन्हीं के प्रतिनिधि संत रामपाल जी महाराज जीवों के कल्याण में जुटे हैं। आईए, जानते हैं सतज्ञान को बारीकी से।
गीता जी के 17:23 में कहा गया है:
“ॐ तत् सत् इति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।” संत रामपाल जी महाराज इस श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि तीन प्रकार के मंत्र होते हैं जो व्यक्ति को पूर्ण आध्यात्मिक लाभ पहुंचा सकते हैं। ये ही तीन मंत्र हैं जिन्हें वे अपने शिष्यों को दीक्षा के समय प्रदान करते हैं।
परमात्मा स्वयं तत्वदर्शी संत के रूप में पृथ्वी पर आते हैं और तत्वज्ञान का प्रचार करते हैं। परमेश्वर कबीर तत्वज्ञान को दोहों, चौपाइयों, शब्द इत्यादि के माध्यम से अपनी प्यारी ���त्माओं तक पहुंचाते हैं किंतु परमेश्वर से अनजान आत्माएं उन्हें नहीं समझ पाती। परमेश्वर कबीर साहेब ने अपनी समर्थता बताने के लिए हजारों लोगों की उपस्थिति में किए ढेरों चमत्कार जो कबीर सागर में वर्णित हैं।
संत रामपाल जी महाराज से तत्वज्ञान मिलने के बाद जीवन की असली खोज पूरी होती है। सतलोक, जहां परमात्मा निवास करता है, वही हमारा असली घर है और हमें वहां पहुंचाने का मार्ग सतभक्ति ही है। अब हमें चाहिए कि हम इस ज्ञान को स्वीकार करें और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को सफल बनाएं।
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#TrueSpiritualKnowledge
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pradeepdasblog · 1 year ago
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( #MuktiBodh_Part20 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part21
हम पढ़ रहे हैं मुक्तिबोध पेज नंबर (40-41-42)
‘‘सदन कसाई का उद्धार’’
एक सदन नाम का व्यक्ति एक कसाई के बुचड़खाने में नौकरी करता था।
गरीब, सो छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। हरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।
संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण
में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। जैसे प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप {मुख और हाथ शेर (Lion) के, शेष शरीर नर यानि मनुष्य का} धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था। फिर कहा है कि :-
गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।
गैल-गैल लागा रहूँ, जब तक धरणी आकाश।।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है जो जन (व्यक्ति) किसी जन्म में मेरी शरण में आ गया
है। उसके मोक्ष के लिए उसके पीछे-पीछे फिरता रहता हूँ। जब तक धरती-आकाश रहेगा
(महाप्रलय तक), तब तक उसको काल जाल से निकालने की कोशिश करता रहूँ। फिर कहा है कि :-
गरीब, ज्यूं बच्छा गऊ की नजर में, यूं सांई कूं संत। भक्तों के पीछे फिरै, भक्त वच्छल भगवन्त।।
जैसे गाय अपने बच्चे (बछड़े-बछड़ी) पर अपनी दृष्टि रखती है। बच्चा भागता है तो
उसके पीछे-पीछे भागती है। अन्य पशुओं से उसकी रक्षा करती है। इसी प्रकार परमेश्वर
कबीर जी अपने भक्त के साथ रहता है। यदि वर्तमान जन्म में उस पूर्व जन्म के भक्त ने
दीक्षा नहीं ले रखी तो भी परमेश्वर जी उसके पूर्व जन्म के भक्ति कर्मों के पुण्य से उनके
लिए चमत्कार करके रक्षा करते हैं। उदाहरण = भैंस का सींग परमात्मा बना, द्रोपदी का
चीर बढ़ाना, प्रहलाद भक्ती की रक्षार्थ नरसिंह रूप धारण करना और इस कथा में सदन
भक्त के लिए लीला करना।
शंका :- नए पाठकों को भ्रम होगा कि परमेश्वर समर्थ होता है। फिर भी लाचार
(विवश) कैसे है? एक ही जन्म में पार क्यों नहीं कर देता?
समाधान :- सब जीव अपनी गलती के कारण परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध अपनी
इच्छा से काल के साथ आए हैं। जिस समय परमेश्वर कबीर जी प्रथम बार हमारी सुध लेने
के लिए काल लोक में आए थे तो काल ने चरण पकड़कर कुछ शर्तें रखी थी जो परमेश्वर
कबीर जी ने मान ली थी :-
काल ब्रह्म ने कहा था कि हे प्रभु! आप कह रहे हो कि मैं जीवों को तेरे (काल ब्रह्म
के) जाल से निकालकर वापिस सतलोक लेकर जाऊँ। हे स्वामी! मेरे को आपने श्राप दे रखा है कि एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का तथा सवा लाख उत्पन्न करने का। यदि सब जीव वापिस चले गए तो मेरी क्षुधा (भूख) कैसे समाप्त होगी? इसलिए आप
जोर-जबरदस्ती करके जीव न ले जाना। आप अपना ज्ञान समझाना। जो जीव आपके ज्ञान
को स्वीकार करे, उसको ले जाना। जो न माने, वह मेरे लोक में रहे। परमेश्वर जी को ज्ञान
था कि जब तक इनको सत्यलोक के सुख का और काल लोक के दुःख का ज्ञान नहीं होगा तो ये मेरा साथ देंगे ही नहीं। यदि जबरदस्ती (By Force) ले जाऊँगा तो ये वहाँ रहेंगे ही
नहीं क्योंकि इनका मोह परिवार और सम्पत्ति में फँसा है। पहले इनको ज्ञान ही कराना होगा। इसलिए परमेश्वर कबीर जी ने काल की शर्तों को स्वीकार किया था। अब काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने पूरा जोर लगा रखा है कि सब मानव को काल जाल में फँसे रहने का ज्ञान कराने के लिए अनेकों प्रचारक लगा रखे हैं जो केवल राम-कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी तथा इनके अंतर्गत अन्य देवी-देवताओं-भैरो, भूत-पित्तरों, माई-मसानी, सेढ़-शीतला आदि-आदि की महिमा का ज्ञान बताते रहते हैं। सत��ुरूष (कबीर परमेश्वर जी) का नामो-निशान मिटा रखा है। अपने पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) तथा अपनी महिमा का ज्ञान सब स्थानों पर फैला रखा है। चारों वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबल (जो तीन पुस्तकों जबूर, तौरात, इंजिल का संग्रह है) का ज्ञान पूरी पृथ्वी पर प्रचलित कर रखा है। सब मानव इन्हीं तक सीमित हो चुका है। इन पुस्तकों में पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ज्ञान नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, बेद मेरा भेद है, ना बेदन के मांही। जोन बेद से मैं मिलूँ, बेद जानत नांही।।
प्रमाण :- यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 10 में कहा है कि परमात्मा का यथार्थ ज्ञान
(धीराणाम्) तत्वदर्शी संत बताते हैं, उनसे (श्रुणूं) सुनो।
गीता शास्त्र चारों वेदों का संक्षिप्त रूप है। इसमें भी कहा है कि परमात्मा तत्वज्ञान
यानि अपनी जानकारी तथा प्राप्ति का ज्ञान अपने मुख कमल से वाणी बोलकर बताता है।
उस ज्ञान से मोक्ष होगा। तथा सत्यलोक प्राप्ति होगी। उस ज्ञान को तत्वदर्शी संतों के पास
जाकर समझ।(गीता अध्याय 4 श्लोक 32, 34 में)
कुरान शरीफ सूरत फुर्कानि 25 आयत नं. 52 से 59 में कहा है कि :-
जिस परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रची। फिर तख्त पर जा विराजा।(जा बैठा) वह
अल्लाह कबीर है। उसकी जानकारी किसी बाखबर (तत्वदर्शी संत) से पूछो।
इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ज्ञान इन उपरोक्त पवित्र
शास्त्रों में नहीं है। वह ज्ञान स्वयं परमेश्वर कबीर जी प्रकट होकर बताते हैं। भक्ति विधि
बताते हैं। शिष्य बनाते हैं। भक्ति के लिए मर्यादा बनाते हैं। कुछ नियम निर्धारित किये जाते
हैं। नियम खण्डित होने से नाम (दीक्षा) खण्डित हो जाता है। जिस कारण से भक्त रूपी
पतंग की डोर कट जाती है। वह कुछ देर हवा में लहराता फिरता है। फिर किसी वृक्ष पर
टंगकर या पृथ्वी पर गिरकर पशुओं के पैरों तले कुचला जाता है।
इसी प्रकार काल, सर्वप्रथम कबीर जी के भक्त का नाम खण्डित करवाता है। जिस
कारण से उस साधक का सम्पर्क (connection) परमात्मा से कट जाता है। जैसे बिजली
का कनैक्शन कट जाने के पश्चात् सब लाभ बंद हो जाते हैं। न पंखा चलता है, न बल्ब-ट्यूब
जगती है। सब मशीनें बंद हो जाती हैं। परमात्मा से कनैक्शन कटने का आभास देर से होता है। बिजली से कनैक्शन कटने का आभास शीघ्र हो जाता है। उसी प्रकार नाम खण्डित भक्त को परमात्मा से लगातार मिल रहा लाभ रूक जाता है। परंतु कुछ समय मर्यादा में रहकर किए मंत्र जाप तथा यज्ञ-हवन, धर्म का लाभ संग्रह हो जाता है। जब तक वह पूर्व का भक्ति धन (पुण्य) संग्रह किया हुआ समाप्त नहीं होता, तब तक ऐसा लगता है कि सब ठीक है। परंतु वह जमा धन समाप्त होने के पश्चात् सब ओर से कठिनाईयाँ (सं��ट) घेर लेती हैं, तब ज्ञान होता है। भक्त को चाहिए कि वह नाम शुद्ध कराए। जैसे वर्तमान में इन्वर्टर (Inverter) को बिजली से चार्जर द्वारा चार्ज किया जाता है। इन्वर्टर की बैटरी चार्ज हो जाती है। यदि चार्जर को हटा दिया जाए या अन्य किसी कारण से चार्जर का सम्पर्क बिजली से कट जाए तो बैटरी चार्ज होना बंद हो जाती है। परंतु पहले जितनी चार्ज हो चुकी है। उसके कारण पंखे भी चल रहे होते हैं। बल्ब-ट्यूब भी जल रही होती हैं। सब ठीक-ठाक लगता है। परंतु चार्जर के काम न करने के कारण अचानक सर्व ट्यूब-पंखे बंद हो जाते। अंधेरा-गर्मी आदि सब प्रकार की परेशानी खड़ी हो जाती है। इसी प्रकार किसी मानव जन्म में नाम-दीक्षा लेकर भक्ति करने वाले भक्त का नाम खण्डित हो तो उनको कुछ दिन सब लाभ मिलता है। परंतु वे काल के जाल में फँस चुके होते हैं। उनको कई जन्म लगातार मानव के भी मिल जाते हैं। उन मानव ( स्त्री- पुरुष के) जन्मों में फिर से चार्जर नहीं लगा यानि फिर से सच्चे संत से दीक्षा नहीं मिली तो सब मानव जन्म नष्ट होकर चौरासी लाख योनियों में जन्म-मरण वाले चक्र में गिरकर बर्बाद हो जाता है। इसलिए परमेश्वर स्वयं ऐसे पूर्व जन्म वाले भक्तों को मिलकर उनको फिर से जागृत करके सत्य साधना पर लगाते हैं। पाप वाले कर्म छुड़वाते हैं। उस मार्ग से भटके प्राणी को फिर से भक्ति करने की प्रेरणा करते हैं। जैसे सम्मन-सेऊ-नेकी वाली सत्य कथा में आपने पढ़ा। सम्मन वाली आत्मा नौशेरखान बना। फिर वही आत्मा बलख बुखारे का राजा अब्राहिम अधम सुल्तान बना। प्रत्येक जन्म में परमेश्वर मिले। भक्ति की प्रेरणा की, परंतु फिर भी काल जाल में रहे। अब्राहिम सुल्तान वाले जन्म में जाकर सम्मन वाला जीव मुक्त हुआ।
क्रमशः..........
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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sweetcomputermagazine · 2 years ago
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कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।
♦️04 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें अद्भुत बातें♦️
कबीर परमेश्वर जी का मानव समाज को विशेष संदेश
हम सभी जानते हैं कि कबीर साहेब आज से लगभग 600 वर्ष पहले इति��ास के भक्तियुग में जुलाहे की भूमिका निभाकर गये। जिनको हम सभी संत कबीर के नाम से जानते हैं परन्तु वास्तव में कौन हैं? इससे आज भी हम अपरिचित है इन सब से परिचित होने के लिए हमे हमारे धर्म ग्रन्थों को देखना होगा और इस सच को स्वीकार करना होगा कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है जिनका प्रमाण हमारे धर्मग्रंथों में है।
परमात्मा कबीर स्वयं ही पूर्ण परमात्मा का संदेशवाहक बनकर आते हैं और अपना तत्वज्ञान सुनाते हैं।
600 साल पहले कबीर साहेब जी ने भोली-भाली जनता को नकली पाखंडी, गुरुओं, पंडितों व संतों के बारे में बताया कि-
लाडू लावन लापसी, पूजा चढ़े अपार। पूजी पुजारी ले गया, मूरत के मुह छार।।
भावार्थ: कबीर साहेब ने सदियों पहले दुनिया के इस सबसे बड़े घोटाले के बारे में बताया था कि आपका यह सारा माल ब्राह्मण-पुजारी ले जाता है और भगवान को कुछ नहीं मिलता, इसलिए मंदिरों में ब्राह्मणों को दान करना बंद करो ।
हिन्दू कहूं तो हूँ नहीं, मुसलमान भी नाही
गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही ।।
भावार्थ: कबीर साहेब कहते हैं कि मैं न तो हिन्दू हूँ और न ही मुसलमान। मैं तो दोनों के बीच में छिपा हुआ हूँ। इसलिए हिन्दू-मुस्लिम दोनों को ही अपने धर्म में सुधार करने का संदेश दिया। कबीर साहेब ने मंदिर और मस्जिद दोनों ही बनाने का विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार मानव तन ही असली मंदिर-मस्जिद है, जिसमें परमात्मा का साक्षात निवास है।
जो लोग जीव हत्या करते है उनको कबीर साहेब जी ने अपनी वाणी के माध्यम से बताया कि-
जो गल काटै और का, अपना रहै कटाय।
साईं के दरबार में, बदला कहीं न जाय॥
भावार्थ: जो व्यक्ति किसी जीव का गला काटता है उसे आगे चलकर अपना गला कटवाना पड़ेगा। परमात्मा के दरबार में करनी का फल अवश्य मिलता है। आज यदि हम किसी को मारकर खाते हैं तो अगले जन्म में वह प्राणी हमें मारकर खाएगा।
कबीर साहेब जी ने जातिवाद का विरोध करते हुए बताया कि-
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।
भावार्थ: परमात्मा कबीर जी हिंदुओं में फैले जातिवाद पर कटाक्ष करते हुए कहते थे कि किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं।
कबीर परमेश्वर जी ने अपनी उपरोक्त शिक्षा के माध्यम से जो लोग कुरीतियों को बढ़ावा देते हैं उनका कटाक्ष करते हुए सत भक्ति का मार्ग दिखाया साथ ही शास्त्र अनुकूल साधना भक्ति करने को कहा। ताकि मनुष्य का जीव ��द्धार हो सके।
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ghanshyamdhruv · 2 years ago
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*🌈संत रामपाल जी महाराज जी की अद्भुत आध्यात्मिक यात्रा🌈*
सतगुरु रामपाल जी महाराज के भौतिक शरीर का अवतरण 8 सितम्बर 1951 को हरियाणा प्रांत के जिला सोनीपत के गांव धनाना में एक किसान परिवार में हुआ था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के उपरांत वे हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर के पद पर 18 वर्ष तक कार्यरत रहे थे।
परम संत रामपाल जी महाराज को 37 वर्ष की आयु में 17 फरवरी 1988 फाल्गुन महीने की अमावस्या की रात्रि को स्वामी रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त हुई।
सतगुरु रामपाल दास जी महाराज ने नाम उपदेश प्राप्त करने के बाद तन-मन से समर्पित होकर अपने सतगुरु स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग पर दृढ़ होकर साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया।
वर्ष 1994 से 1998 के बीच तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने घर-घर, गांव-गांव, नगर-नगर में जाकर सत्संग किया। थोड़े ही समय में बहुसंख्या में उनके अनुयाई हो गये। सन् 1999 में हरियाणा राज्य के रोहतक जिले में स्थित गांव करौंथा में संत रामपाल जी महाराज ने सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की ।
चंद दिनों में सतगुरु रामपाल जी महाराज के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जिन ज्ञानहीन संतों व ऋषियों के अनुयाई सतगुरु रामपाल जी के पास आने लगे तथा अनुयाई बनने लगे, वे उन ऋषियों से संत रामपाल जी महाराज के बताए तत्वज्ञान के आधार पर प्रश्न करने लगे, जिससे वे अज्ञानी धर्मगुरू संत रामपाल जी महाराज जी से ईर्ष्या करने लगे। लेकिन सतज्ञान के विरुद्ध लोकवेद कथा कहने वाले ज्ञानहीन संतों का सांसारिक विरोध संत रामपाल जी को सहना पड़ा।
सन् 2006 में झूठे मामले में 21 महीने तक निर्दोष होते हुए भी जेल में रहना पड़ा और उनके करौंथा आश्रम को भी जब्त कर लिया गया। लेकिन बाद में सच्चाई सामने आने पर उन्हें आश्रम फिर से दे दिया गया। झूठे मुकदमों में फँसाकर नवंबर 2014 से लेकर अभी तक संत जी फिर से जेल में हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज द्वारा दिया सतज्ञान अद्वितीय है। सतगुरु के नेतृत्व में सतज्ञान के आधार पर भारतवर्ष पूरे विश्व में छा जाएगा। पूरे विश्व में सतज्ञान से भक्ति मार्ग चलेगा। पूरी धरती पर एक ही कानून होगा, कोई दुःखी नहीं रहेगा, विश्व में पूर्ण शांति होगी। विरोध करने वाले भी पश्चाताप कर तत्वज्ञान को स्वीकार करेंगे और समाज मानव धर्म का पालन करेगा।
यही आत्म संतुष्टि का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
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#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
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indrabalakhanna · 4 months ago
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Satsang Ishwar TV | 25-07-2024 | Episode: 2460 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
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🙏📚हमारे वेद शास्त्र पुराण बताते हैं कि *कावड़ यात्रा* करने वाले को घोर पाप लगते हैं!
🔱
शिवजी अभिर्भाव /जन्म और तिरोभाव /मरण में हैं! मृत्युंजय नहीं है ना ही अंतर्यामी हैं!
अपने पुजारी भस्मासुर के मन में पार्वती को लेकर कितने गंदे विचार उठ रहे थे,शिव जी इतना भी नहीं जान पाए!
श्रीदेवी पुराण में स्पष्ट है कि दुर्गा मां ,तमोंगुणी शिव जी की मां हैं। शिव जी का अभिर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) होता है! श्रीमदभगवत गीता में स्पष्ट है कि तीनों गुणों की भक्ति अनुतम/घटिया/अश्रेष्ठ/गलत/मनमानाआचरण है!
गीता ज्ञान दाता भगवान ने स्वीकार किया वह सतगुण विष्णु रजगुण ब्रह्मा तमगुण शिव जी इन तीनों गुणों से युक्त तीनों देवताओं का बीज स्थापित करने वाला पिता है और श्री दुर्गा देवी प्रकृति उनकी माता है?
हे अर्जुन !
हम सभी का तो जन्म और मरण होता है तेरे और मेरे भी अनेकों को जन्म हो चुके हैं आगे भी होते रहेंगे, अविनाशी तो उस परमात्मा को जान_जिसको जानने के बाद कुछ और जानने योग्य नहीं रहता! उसकी खबर किसी तत्वदर्शी संत से अति अधिनि भाव से युक्त होकर उसे दण्डवत प्रणाम करके उस परमात्म तत्व का भेद जान ले!
अर्जुन युद्ध करना नहीं चाहता था ना नहीं श्री कृष्ण जी युद्ध के हक में थे ,लेकिन श्री कृष्ण जी में ज्योति निरंजन काल भगवान जी ने ब्रह्म भूत की तरह प्रवेश करके श्री कृष्ण जी के मुख से अर्जुन को अपने स्वार्थ वश भांति भांति ज्ञान दिया तब भी अर्जुन युद्ध के लिए तैयार नहीं हुआ तो कॉल ने श्री कृष्ण जी में अपना प्रवेश करके विराट रूप दिखाकर अर्जुन को भयभीत कर दिया जिसे देखकर अर्जुन जैसे योद्धा काँप गये और युद्ध करने के लिए तैयार हो गया !
🔱शिव जी किसी भी आत्मा के लेख में लिखे हुए कर्म फलों को कम या ज्यादा नहीं कर सकते!
यह भी स्पष्ट होता है ना ही किसी की आयु बढ़ा सकते हैं! शिव ना तो अंतर्यामी है ना मृत्युंजय हैं!
स्वयं परम अक्षर पुरुष _पूर्ण ब्रह्म ���बीर परमेश्वर जी ने विष्णु जी का मोहनी रूप बनाकर शिवजी की भस्मासुर से रक्षा की !
🪕कबीर_सूक्ष्म वेद /पांचवां वेद और संत गरीबदास जी का 📕अमर ग्रंथ यह स्पष्ट करता है कि इन पांचो का रचा हुआ प्रपंच है! ( तीनों देवता ब्रह्मा विष्णु शिव + श्री दुर्गा प्रकृति देवी और ज्योति निरंजन काल ( जिसका एक अक्षर मंत्र है ओम )
तीन गुणों की माया में उलझाए रखकर जीवात्मा को पाप कर्मों में धकेले रखते हैं और उसे जन्म मरण और 84 लाख योगिया में जाने के लिए बाध्य करे रखते हैं !
छ: विकारों के कारण ही जीव आत्मा को कर्म बंधन लगते हैं! ये विषय विकार काल ने अपने स्वार्थ वश जीवात्मा को लगा रखे हैं!
इसी कारण आत्मा अपने मूल धर्म और कर्तव्य से वंचित रहती है और पाप पुण्य कर्मों में फंसी रहती है और फिर इसी लोक में जन्मती और मरती रहती है 84 लाख योनियों में जाती है !
केवल एक पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ही हमें इस भवसागर से पार लगा सकते हैं !
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के रूप में अवतरित हैं!
नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करायें!
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🙏अवश्य देखें *सृष्टि रचना* संत रामपाल जी महाराज यू ट्यूब चैनल पर! सृष्टि रचना अध्यात्म को पूर्ण रूप से जानने की मुख्य चाबी /Master Key है! श्रीमद् भागवत गीता चारों वेदों का सारांश है !
🙏जरूर देखते रहें_ SA न्यूज़ चैनल!
🙏अवश्य विजिट करते रहें_ सतलोक आश्रम! यू ट्यूब Channel
🙏 दुर्लभ और अनमोल मानव जन्म मोक्ष के लिए मिला है! इसे हल्के में ना लें!
📚अपने वेद शास्त्रों पुराणों से अवश्य अपना परिचय करें !
आज पढ़ा लिखा युग है!
परमात्मा कबीर जी ने हमारे लिए इतने यंत्र बना दिए हैं,
इतनी सुविधा कर दी हैं कि
हम अपने मूल मालिक को आसानी से पहचान सकते हैं !
सुख पाने की या परमात्मा पाने की चाह में एक बार आत्मा से नजर उठाकर संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान को ध्यानपूर्वक लगातार सुनें!
काल के जाल में + कर्म बंधन में कैसे फंसी आत्मायें_जानेंगे _संत रामपाल जी महाराज के पवित्र सत्संगों से_जो हमारे शास्त्रों के अनुकूल हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार सत्य तत्व ज्ञान के आधार पर हमें प्रदान कर रहे हैं! महा उपकार का कार्य कर रहे हैं संत रामपाल जी महाराज !
इतिहास इस उपकार को सुनहरी अक्षरों में लिखेगा सृष्टि इस उपकार को कभी नहीं भूल पाएगी!
📚सत साहेब जी🙏 जय बंदीछोड़ की🙏
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dasinarmada · 2 years ago
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*🪁काशी का अद्भुत, अकल्पनीय, दिव्य भंडारा🪁*
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी लगभग आज से 600 वर्ष पहले इस धरती पर आये और बहुत सी लीलाएं करके चले गए। कबीर साहेब की लीलाओं का जिक्र कबीर सागर में भी मिलता है। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के 64 लाख शिष्य थे, यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने यथार्थ भक्ति मार्ग बताया, जिसको अपनाकर भक्तों को अविश्वसनीय लाभ प्राप्त हुए । कबीर साहेब ने एक साधारण जुलाहे की भूमिका की और जो भी पैसा बचता तो उसको धर्म भंडारे में लगा दिया करते । भोजन भंडारा धर्म यज्ञ में आता है।
एक बार शेखतकी जो कि कबीर साहेब से ईर्ष्या करता था। वह परमात्मा को स्वीकार नहीं करना चाहता था साथ ही अलग अलग प्रकार से नीचा दिखाने की योजनाएं बनाता रहता था। इस बात का फायदा काशी के नकली पंडितों ने भी उठाना चाहा क्योंकि कबीर साहेब के सत्य ज्ञान से उनकी ढोंग की दुकान बंद हो रही थी। सबने मिलकर झूठे पत्र लिखे और सिकन्दर लोदी समेत 18 लाख लोगों को भंडारे में आमंत्रित किया, चिट्ठी में यह भी लिखा कि प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक स्वर्ण मोहर भी मिलेगी। ऐसा उन्होंने यह सोचकर किया कि एक जुलाहा इतने लोगों को कैसे भंडार कराएगा। किन्तु जुलाहे की भूमिका करते हुए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने 18 लाख साधु संतों लोगों को भोजन कराया। सारा भोजन भंडारा सतलोक से लाये तथा प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक मोहर दी एवं सूखा सीधा भी दिया। वह अलौकिक भंडारा लगातार तीन दिनों तक चलता रहा।
उन्होंने अपनी जुलाहे की भूमिका करते हुए यह बताया कि अगर आप भी इस तरह से परमात्मा पर विश्वास करके भक्ति करोगे तो परमात्मा आपके लिए कुछ भी कर सकता है।
कबीर, कल्पे कारण कौन है, कर सेवा निष्काम।
मन इच्छा फल देऊंगा, जब पड़े मेरे से काम।।
आज हमारे बीच परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के अवतार जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज आये हुए हैं जो वही चमत्कार करके सुख दे रहे हैं जैसे परमेश्वर कबीर देते थे। पूर्ण तत्वदर्शी संत से नामदीक्षा शारीरिक, मानसिक और आर्थिक लाभ तो देती ही है साथ ही पूर्ण मोक्ष भी देती है।
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
7-8-9 November
दिव्य धर्म यज्ञ दिवस पर देखिये विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण
09 नवंबर 2022
सुबह 09:15 बजे से।
साधना Tv और पॉपकॉर्न Tv पर।
इस प्रोग्राम को आप Youtube Channel "Sant Rampal Ji Maharaj" पर भी देख सकते हैं।
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iskconchd · 3 years ago
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श्रीमद्‌ भगवद्‌गीता यथारूप 12.11 अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः । सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान् ॥ १२.११ ॥ TRANSLATION किन्तु यदि तुम मेरे इस भावनामृत में कर्म करने में असमर्थ हो तो तुम अपने कर्म के समस्त फलों को त्याग कर कर्म करने का तथा आत्म-स्थित होने का प्रयत्न करो । PURPORT हो सकता है कि कोई व्यक्ति सामाजिक, पारिवारिक या धार्मिक कारणों से या किसी अन्य अवरोधों के कारण कृष्णभावनामृत के कार्यकलापों के प्रति सहानुभूति तक दिखा पाने में अक्षम हो । यदि वह अपने को प्रत्यक्ष रूप से इन कार्यकलापों के प्रति जोड़ ले तो हो सकता है कि पारिवारिक सदस्य विरोध करें, या अन्य कठिनाइयाँ उठ खड़ी हों । जिस व्यक्ति के साथ ऐसी समस्याएँ लगी हों, उसे यह सलाह दी जाती है कि वह अपने कार्यकलापों के संचित फल को किसी शुभ कार्य में लगा दे । ऐसी विधियाँ वैदिक नियमों में वर्णित हैं । ऐसे अनेक यज्ञों तथा पुण्य कार्यों अथवा विशेष कार्यों के वर्णन हुए हैं, जिनमें अपने पिछले कार्यों के फलों को प्रयुक्त किया जा सकता है । इससे मनुष्य धीरे-धीरे ज्ञान के स्तर तक उठता है । ऐसा भी पाया गया है कि कृष्णभावनामृत के कार्यकलापों में रूचि न रहने पर भी जब मनुष्य किसी अस्पताल या किस सामाजिक संस्था को दान देता है, तो वह अपने कार्यकलापों की गाढ़ी कमाई का परित्याग करता है । यहाँ पर इसकी भी संस्तुति की गई है, क्योंकि अपने कार्यकलापों के फल के परित्याग के अभ्यास से मनुष्य क्रमशः अपने मन को स्वच्छ बनाता है, और उस विमल मनःस्थिति में वह कृष्णभावनामृत को समझने में समर्थ होता है । कृष्णभावनामृत किसी अन्य अनुभव पर आश्रित नहीं होता, क्योंकि कृष्णभावनामृत स्वयं मन को विमल बनाने वाला है, किन्तु यदि कृष्णभावनामृत को स्वीकार करने में किसी प्रकार का अवरोध हो, तो मनुष्य को चाहिए कि अपने कर्मफल का परित्याग करने का प्रयत्न करे । ऐसी दशा में समाज सेवा, समुदाय सेवा, राष्ट्रीय सेवा, देश के लिए उत्सर्ग आदि कार्य स्वीकार किये जा सकते हैं, जिससे एक दिन मनुष्य भगवान् की शुद्ध भक्ति को प्राप्त हो सके । भगवद्गीता में ही (१८.४६) कहा गया है - यतः प्रवृत्तिर्भूतानाम् - यदि कोई परम कारण के लिए उत्सर्ग करना चाहे, तो भले ही वह यह न जाने कि परम कारण कृष्ण ��ैं, फिर भी वह क्रमशः यज्ञ विधि से समझ जाएगा कि परम कारण कृष्ण ही है । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 12.11 athaitad apy aśakto ’si kartuṁ mad-yogam āśritaḥ sarva-karma-phala-tyāgaṁ tataḥ kuru yatātmavān TRANSLATION If, however, you are unable to work in this consciousness of Me, then try to act giving up all results of your work and try to be self-situated. PURPORT It may be that one is unable even to sympathize with the activities of Kṛṣṇa consciousness because of social, familial or religious considerations or because of some other impediments. If one attaches himself directly to the activities of Kṛṣṇa consciousness, there may be objections from family members, or so many other difficulties. For one who has such a problem, it is advised that he sacrifice the accumulated result of his activities to some good cause. Such procedures are described in the Vedic rules. There are many descriptions of sacrifices and special functions for the full-moon day, and there is special work in which the result of one’s previous action may be applied. Thus one may gradually become elevated to the state of knowledge. It is also found that when one who is not even interested in the activities of Kṛṣṇa consciousness gives charity to some hospital or some other social institution, he gives up the hard-earned results of his activities. That is also recommended here because by the practice of giving up the fruits of one’s activities one is sure to purify his mind gradually, and in that purified stage of mind one becomes able to understand Kṛṣṇa consciousness. Of course, Kṛṣṇa consciousness is not dependent on any other experience, because Kṛṣṇa consciousness itself can purify one’s mind, but if there are impediments to accepting Kṛṣṇa consciousness, one may try to give up the results of his actions. In that respect, social service, community service, national service, sacrifice for one’s country, etc., may be accepted so that some day one may come to the stage of pure devotional service to the Supreme Lord. In Bhagavad-gītā (18.46) we find it is stated, yataḥ pravṛttir bhūtānām: if one decides to sacrifice for the supreme cause, even if he does not know that the supreme cause is Kṛṣṇa, he will come gradually to understand that Kṛṣṇa is the supreme cause by the sacrificial method. -----
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bhagatadas · 2 years ago
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🌿जगत के तारणहार, धरती पर अवतार संत रामपाल जी महाराज का जीवन परिचय🌿
संत रामपाल जी का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजिनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे।
17 फरवरी 1988 फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम् संत रामदेवानंदजी महाराज से दीक्षा प्राप्त की तथा तन-मन-धन से सक्रिय होकर स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया।
जयगुरुदेव पंथ के संस्थापक तुलसीदास जी ने अपनी पुस्तक जयगुरुदेव की अमरवाणी भाग- पृष्ठ 50 पर 7 सितंबर, 1971 का लेख है- "जिसकी लोग प्रतीक्षा कर रहे है वह अवतार 20 वर्ष का हो चुका है।" (7 सितंबर 1971 को संत रामपाल जी महाराज पूरे 20 वर्ष के हो चुके थे।)
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज को सत्संग करने की आज्ञा दी तथा सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण जूनियर इंजीनियर की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा पत्र क्रमा��क 3492-3500, तिथि 16.5.2000 के तहत स्वीकृत है। सन् 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने घर-घर जाकर सत्संग किया। साथ-साथ ज्ञानहीन संतों का विरोध भी बढ़ता गया। चंद दिनों में संत रामपाल महाराज जी के अनुयाइयों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जिन ज्ञानहीन संतों व ऋषियों के अनुयाई संत रामपाल जी के पास आने लगे तथा अनुयाई बनने लगे फिर उन अज्ञानी आचार्यों तथा सन्तों से प्रश्न करने लगे कि आप सर्व ज्ञान अपने सद्ग्रंथों के विपरीत बता रहे हो।
ज्ञान में निरूत्तर होकर अपने अज्ञान का पर्दा फास होने के भय से उन अंज्ञानी संतों, महंतों व आचार्यो ने सतलोक आश्रम करौंथा के आसपास के गांवों में संत रामपाल जी महाराज को बदनाम करने के लिए दुष्प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया तथा 12.7.2006 को संत रामपाल को जान से मारने तथा आश्रम को नष्ट करने के लिए स्वयं तथा अपने अनुयाइयों से सतलोक आश्रम पर आक्रमण करवाया। जब रामपाल जी को मारने में असफल रहे तो एक व्यक्ति की हत्या कर दी जिसका आरोप संत रामपाल जी महाराज पर लगा दिया। संत रामपाल जी महाराज 2006 से 2008 तक जेल में रहे। संत रामपाल जी महाराज ने सीबीआई जांच की मांग की लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गयी।
सन 2008 से पुनः समाज सुधार के कार्य किये और तत्वज्ञान की अलख जगाई, नकली धर्मगुरुओं की दुकानें बंद होने लगी तो षड्यंत्र करके 2013 में करौंथा कांड व 2014 में बरवाला कांड करा दिया। और संत जी को पुनः जेल में भेज दिया। क्योकि ज्ञान में तो कोई बोल न सका।
लेकिन जेल में जाने बावजूद भी उनका ज्ञान नहीं रुका, ना ही समाज सुधार का मिशन डगमगाया।
बल्कि अब तो यह ज्ञान पूरे संसार में छा गया है।
विश्व के एकमात्र संत एवं सबसे बड़े समाज सुधारक है संत रामपाल जी महाराज जिनका उद्देश्य है- जातिवाद, साम्प्रदायिकता समाप्त कर आपसी भेदभाव मिटाना, अंधविश्वास, पाखण्डवाद से मुक्ति दिलाना, सभी प्रकार के नशे पर प्रतिबंध लगाना, दहेज जैसी कुप्रथाएं समाप्त कर बेटियों को न्याय दिलाना तथा भ्रष्टाचार मुक्त स्वच्छ समाज का निर्माण कर भारत को विश्वगुरु बनाना।
वे पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के अवतार है।
जिस तत्वज्ञान के विषय में नास्त्रोदमस जी ने अपनी भविष्यवाणी में उल्लेख किया है कि उस विश्व विजेता संत के द्वारा बताए शास्त्र प्रमाणित तत्व ज्ञान के सामने पूर्व के सर्व संत निष्प्रभ (असफल) हो जाएंगे तथा सर्व को नम्र होकर झुकना पड़ेगा। उसी के विषय में परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी ने अपनी अमृत वाणी में पवित्र ‘कबीर सागर‘ ग्रंथ में कहा है कि एक समय आएगा जब पूरे विश्व में मेरा ही ज्ञान ��लेगा। पूरा विश्व शांति पूर्वक भक्ति करेगा। आपस में विशेष प्रेम होगा, सतयुग जैसा समय (स्वर्ण युग) होगा। परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ द्वारा बताए ज्ञान को संत रामपाल जी महाराज ने समझा है। इसी ज्ञान के विषय में कबीर साहेब जी ने अपनी वाणी में कहा है कि --
कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान।।
नास्त्रेदमस के अनुसार वह विश्व धार्मिक नेता संत रामपाल जी महाराज ही हैं जिनकी अध्यक्षता में भारतवर्ष पूरे विश्व पर राज्य करेगा। पूरे विश्व में एक ही ज्ञान (भक्ति मार्ग) चलेगा। एक ही कानून होगा, कोई दुःखी नहीं रहेगा, विश्व में पूर्ण शांति होगी। जो विरोध करेंगे अंत में वे भी पश्चाताप करेंगे तथा तत्वज्ञान को स्वीकार करने पर विवश होंगे और सर्व मानव समाज मानव धर्म का पालन करेगा और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सतलोक जाएंगे।
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पवित्र पुस्तक “धरती पर अवतार”
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akhaidas · 2 years ago
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part1
भूमिका
’’कबीर बड़ा या कृष्ण‘‘ नामक पुस्तक में अध्यात्म ज्ञान का विशेष विश्लेषण है जो आप जी ने कभी सुना तक नहीं होगा, न किसी पुस्तक में पढ़ा होगा। प्रमाण पर प्रमाण देकर सत्य को स्पष्ट किया है। अपने ग्रन्थों के गूढ़ रहस्यों को सरल किया है जो आज तक किसी धर्मगुरू,‌ ऋषि, महर्षि तथा श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा शिव जी को ज्ञान नहीं है। यह कथन एकदम सत्य है, परंतु पूर्ण असत्य लगता है। जब आप जी इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो दाँतों तले ऊंगली दबाओगे। सत्य को प्रमाण सहित देखकर भी स्वीकार नहीं करना चाहोगे क्योंकि आप असत्य ज्ञान जन्म से ही सत्य मानकर सुनते आए हैं। हिन्दू समाज निःसंदेह ग्रन्थों को सत्य मानता है।
जैसे गीता, चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद), श्रीमद्भागवत (सुधासागर), महाभारत ग्रन्थ तथा अठारह पुराण आदि हिन्दू धर्म के प्रमाणित ��वित्र ग्रन्थ माने गए हैं। जो प्रकरण इन पवित्रा शास्त्रों में लिखा है, उसे स्वीकार करने में हिन्दू धर्म के व्यक्ति को देर नहीं लगती।
कबीर बड़ा यानि समर्थ है या कृष्ण, इसका आप जी को इस पुस्तक में नपे-तुले शब्दों में शास्त्रों के प्रमाणों समेत पढ़ने को मिलेगा। यदि कोई अपने ग्रन्थों को नहीं मानता तो वह भक्त नहीं है। आँखों देखकर भी सत्य को स्वीकार न करके मनमाना आचरण करता है तो वह पाप आत्मा है जिसे आत्म कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है। उसके विषय में परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि:-
कबीर, जान बूझ साची तजै, करै झूठ से नेह।
ताकि संगत हे प्रभु! स्वपन में भी ना देह।।
शब्दार्थ:- जो आँखों देखकर भी सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह शुभकर्म हीन प्राणी है।
ऐसे व्यक्ति से मिलना भी उचित नहीं है। जाग्रत की तो बात छोड़ो, ऐसे कर्महीन व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) से तो स्वपन में भी सामना ना हो। फिर कबीर जी ने कहा है कि:-
ऐसा पापी प्रभात ना भैंटो, मुख देखें पाप लगै जाका।
नौ-दश मास गर्भ त्रास दई, धिक्कार जन्म तिस की माँ का।।
शब्दार्थ:- ऐसा निर्भाग व्यक्ति सुबह-सुबह ना मिले। ऐसे का मुख देखने से भी पाप लगता है। उसने तो अपनी माता जी को भी व्यर्थ में नौ-दस महीने गर्भ का कष्ट दिया। उसने अपनी माता का जन्म भी व्यर्थ कर दिया। कबीर जी ने फिर कहा है कि:-
कबीर, या तो माता भक्त जनै, या दाता या शूर।
या फिर रहै बांझड़ी, क्यों व्यर्थ गंवावै नूर।।
शब्दार्थ:- कबीर जी ने कहा है कि या तो जननी भक्त को जन्म दे जो शास्त्र में प्रमाण देखकर सत्य को स्वीकार करके असत्य साधना त्यागकर अपना जीवन धन्य करे। या किसी दानवीर पुत्र को जन्म दे जो दान-धर्म करके अपने शुभ कर्म बनाए। या फिर शूरवीर बालक को जन्म दे जो परमार्थ के लिए कुर्बान होने से कभी न डरता हो। सत्य का साथ देता है, असत्य तथा अत्याचार का डटकर विरोध करता है। उसके चलते या तो स्वयं मर जाता है या अत्याचारी की सेना को मार डालता है। अपने उद्देश्य से डगमग नहीं होता। यदि ऐसी अच्छी संतान उत्पन्न न हो तो निःसंतान रहना ही माता के लिए शुभ है। पशुओं जैसी संतान को गर्भ में पालकर अपनी जवानी को क्यों नष्ट करे यानि निकम्मी संतान गलती करके माता-पिता पर 304.ठ का मुकदमा बनवाकर जेल में डलवा देती है। इससे तो बांझ रहना ही उत्तम है।
सर्व मानव समाज से करबद्ध नम्र निवेदन है कि आप सब शास्त्रों के विरूद्ध साधना कर रहे हो। इस पवित्र पुस्तक को पढ़कर सत्य से परिचित होकर असत्य को त्यागकर सत्य साधना जो शास्त्र प्रमाणित है, करके अपना अनमोल मानव (स्त्राी-पुरूष का) जीवन धन्य बनाओ। अपना कल्याण करवाओ। सब ��ंतों व धर्म प्रचारकों तथा गुरूजनों को दास ने (रामपाल दास) बहुत बार प्रार्थना क��� है कि आप मेरे से मिलो या मुझे बुलाओ ताकि मिलकर निर्णय करें कि यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान कौन-सा है? शास्त्रों में वर्णित भक्ति कौन-सी है? भक्त समाज इधर-उधर भटक रहा है। इनको शास्त्रविधि अनुसार भक्ति का मार्ग बताया जाए जिससे इनका आत्म कल्याण हो सके। सन् 2012 में टी.वी. चैनलों पर एड चलवाकर भी सबसे आग्रह किया था। टी.वी. चैनल भी बुक करवाया था कि भक्त समाज के सामने डिबेट हो ताकि समाज को पता चले कि सत्य क्या है? असत्य क्या है? परंतु कोई संत या गुरू नहीं आया। या तो उनको पता है कि हम शास्त्रविरूद्ध ज्ञान व साधना बता रहे हैं। हमारी पोल खुल जाएगी। या इनका अहंकार आड़े अड़ा है जो पतन का कारण है। इस पुस्तक में सत्य तथा निर्णायक ज्ञान बताया है। आशा करता हूँ शिक्षित मानव समझकर अपना जीवन सत्य साधना करके धन्य बनाएगा।
।। सत साहेब।।
दिनांक:- 17.02.2014
सर्व का शुभचिंतक
लेखक
दासन दास रामपाल दास
पुत्रा/शिष्य स्वामी रामदेवानंद जी
सतलोक आश्रम बरवाला
जिला-हिसार, हरियाणा (भारत)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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pawankumardas · 3 years ago
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"""#ब्राह्मण_सोई_जो_ब्रह्म_पहचाने""" जो व्यक्ति सत्य को स्वीकार करे और परमात्मा को पहचान ले..सच्चा ब्राह्मण वो ही है।।
""""ये महात्मा जी भी कई वर्षों से परमात्मा की खोज मे भटक रहे थे, यहां तक कि पिछले 12 वर्षों से केवल फल आहार किया करते थे, अंत मे परमात्मा ने क���सी भगत को निमित बनाकर इन तक सर्व गर्न्थो से प्रमाणित (संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित) पुस्तक "" ज्ञान गंगा "" पहुचाई। महात्मा जी ने पुस्तक में लिखे हर एक तथ्य को गहराई से समझा और अपने सतगर्न्थो से मिलान किया,तो पाया कि जिस परमात्मा के लिए ये 12 वर्षो से दर-दर भटक रहे थे वो तो कोई अन्य ही है। तुरन्त महात्मा जी ने शास्त्रों के विरुद्ध भक्ति त्यागी और सत्य को स्वीकार करते हुए तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति शुरू की।।।
🙏🙏जय हो बन्दी छोड़ की🙏🙏
"""पर्वत-पर्वत में फिरा लेकर अपने राम..।
राम जैसे सन्त मिले जिन सारे सब काम...
#भक्ति_से_भगवान_तक #SaintRampalJi #photographychallenge
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sporadiccyclebeliever · 3 years ago
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*किस किस को मिले कबीर परमेश्वर?*
*‘‘सदन कसाई का उद्धार’’*
*एक सदन नाम का व्यक्ति एक कसाई के बुचड़खाने में नौकरी करता था।*
गरीब, सो छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। हरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।
📜संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। जैसे प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप {मुख और हाथ शेर (स्पवद) के, शेष शरीर नर यानि मनुष्य का} धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था।
फिर कहा है कि :-
गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास। गैल-गैल लागा रहूँ, जब तक धरणी आकाश।।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है जो जन (व्यक्ति) किसी जन्म में मेरी शरण में आ गया है। उसके मोक्ष के लिए उसके पीछे-पीछे फिरता रहता हूँ। जब तक धरती-आकाश रहेगा (महाप्रलय तक), तब तक उसको काल जाल से निकालने की कोशिश करता रहूँ। फिर कहा
है कि :-
गरीब, ज्यूं बच्छा गऊ की नजर में, यूं सांई कूं संत। भक्तों के पीछे फिरै, भक्त वच्छल भगवन्त।। जैसे गाय अपने बच्चे (बछड़े-बछड़ी) पर अपनी दृष्टि रखती है। बच्चा भागता है तो उसके पीछे-पीछे भागती है। अन्य पशुओं से उसकी रक्षा करती है। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर जी अपने भक्त के साथ रहता है। यदि वर्तमान जन्म में उस पूर्व जन्म के भक्त ने दीक्षा नहीं ले रखी तो भी परमेश्वर जी उसके पूर्व जन्म के भक्ति कर्मों के पुण्य से उनके लिए चमत्कार करके रक्षा करते हैं। उदाहरण = भैंस का सींग परमात्मा बना, द्रोपदी का चीर बढ़ाना, प्रहलाद भक्ती की रक्षार्थ नरसिंह रूप धारण करना और इस कथा में सदन भक्त के लिए लीला करना।
शंका :- नए पाठकों को भ्रम होगा कि परमेश्वर समर्थ होता है। फिर भी लाचार (विवश) कैसे है? एक ही जन्म में पार क्यों नहीं कर देता?
समाधान :- सब जीव अपनी गलती के कारण परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध अपनी इच्छा से काल के साथ आए हैं। जिस समय परमेश्वर कबीर जी प्रथम बार हमारी सुध लेने के लिए काल लोक में आए थे तो काल ने चरण पकड़कर कुछ शर्तें रखी थी जो परमेश्वर
कबीर जी ने मान ली थी :-
काल ब्रह्म ने कहा था कि हे प्रभु! आप कह रहे हो कि मैं जीवों को तेरे (काल ब्रह्म के) जाल से निकालकर वापिस सतलोक लेकर जाऊँ। हे स्वामी! मेरे को आपने श्राप दे रखा है कि एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का तथा सवा लाख उत्पन्न करने का। यदि सब जीव वापिस चले गए तो मेरी क्षुधा (भूख) कैसे समाप्त होगी? इसलिए आप जोर-जबरदस्ती करके जीव न ले जाना। आप अपना ज्ञान समझाना। जो जीव आपके ज्ञान को स्वीकार करे, उसको ले जाना। जो न माने, वह मेरे लोक में रहे। परमेश्वर जी को ज्ञान था कि जब तक इनको सत्यलोक के सुख का और काल लोक के दुःख का ज्ञान नहीं होगा तो ये मेरा साथ देंगे ही नहीं। यदि जबरदस्ती ले जाऊँगा तो ये वहाँ रहेंगे ही नहीं क्योंकि इनका मोह परिवार और सम्पत्ति में फँसा है। पहले इनको ज्ञान ही कराना होगा। इसलिए परमेश्वर कबीर जी ने काल की शर्तों को स्वीकार किया था। अब काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने पूरा जोर लगा रखा है कि सब मानव को काल जाल में फँसे रहने का ज्ञान कराने के लिए अनेकों प्रचारक लगा रखे हैं जो केवल राम-कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी तथा इनके अंतर्गत अन्य देवी-देवताओं-भैरो, भूत-पित्तरों, माई-मसानी, सेढ़-शीतला आदि-आदि की महिमा का ज्ञान बताते रहते हैं। सतपुरूष (कबीर परमेश्वर जी) का नामो-निशान मिटा रखा है। अपने पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) तथा अपनी महिमा का ज्ञान सब स्थानों पर फैला रखा है। चारों वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबल (जो तीन पुस्तकों जबूर, तौरात, इंजिल का संग्रह है) का ज्ञान पूरी पृथ्वी पर प्रचलित कर रखा है। सब मानव इन्हीं तक सीमित हो चुका है। इन पुस्तकों में पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ज्ञान नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, बेद मेरा भेद है, ना बेदन के मांही। जोन बेद से मैं मिलूँ, बेद जानत नांही।।
प्रमाण :- यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 10 में कहा है कि परमात्मा का यथार्थ ज्ञान (धीराणाम्) तत्वदर्शी संत बताते हैं, उनसे (श्रुणूं) सुनो।
गीता शास्त्र चारों वेदों का संक्षिप्त रूप है। इसमें भी कहा है कि परमात्मा तत्वज्ञान यानि अपनी जानकारी तथा प्राप्ति का ज्ञान अपने मुख कमल से वाणी बोलकर बताता है।
उस ज्ञान से मोक्ष होगा। तथा सत्यलोक प्राप्ति होगी। उस ज्ञान को तत्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ।(गीता अध्याय 4 श्लोक 32ए 34 में)
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