CIN /अनुवाद-साहित्य के उन्नायकों में से एक थे पं हंस कुमार तिवारी, प्रणम्य थी पीर मुहम्मद मूनिस की हिन्दी सेवा
पटना, 16 अगस्त । हिन्दी, संस्कृत और बांगला भाषाओं के उद्भट विद्वान पं हंस कुमार तिवारी अनुवाद-साहित्य के महान उन्नायकों में परिगणित होते हैं। इन्होंने बंगला साहित्य का हिन्दी में अनुवाद के साथ ही कई अनेक मौलिक साहित्य का सृजन कर हिन्दी का भंडार भरा। राष्ट्रभाषा परिषद, बिहार के मिदेशक के रूप में उनके कार्यों को आज भी स्मरण किया जाता है। वही चंपारण-सत्याग्रह के प्रथम-ध्वजवाहकों में से एक पीर…
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जन सुराज पदयात्रा पर निकले प्रशांत किशोर, क्या बिहार की सियासत में कोई गुल खिलाएंगे पीके?
मोतिहारी/पटना : की जन सुराज पदयात्रा की आज से शुरुआत हो गई। महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर जन सुराज अभियान की शुरू होने जा रहा है। उन्होंने इस पदयात्रा की शुरुआत मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के साथ की। ये पदयात्रा पश्चिम चंपारण जिले के भितिहरवा गांधी आश्रम से शुरू हुई। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा है कि इस पदयात्रा के माध्यम से वे लगभग 3500 किलोमीटर पैदल चलेंगे और बिहार के हर पंचायत और प्रखंड में पहुंचने का प्रयास करेंगे।
डेढ़ साल तक चलेगी
प्रशांत किशोर ने जन सुराज यात्रा को लेकर कहा कि इस पदयात्रा को पूरा करने में लगभग एक से डेढ़ साल तक का समय लगेगा और इस बीच वो पटना या दिल्ली नहीं लौटेंगे। स्वतंत्रता के बाद 50 के दशक में भारत के अग्रणी राज्यों में शामिल बिहार, आज देश का सबसे पिछड़ा और गरीब राज्य है। आज गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से लोगों का यहां बुरा हाल है। उन्होंने कहा कि अब समय बदलने वाला है। इस संकल्प के साथ और आने वाले 10 सालों में बिहार को देश के शीर्ष 10 राज्यों की श्रेणी में शामिल कराने के लिए, जन सुराज का यह अभियान समाज के सही लोगों को जोड़कर, एक सही सोच के साथ, सामूहिक प्रयास के जरिए एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश है, जिससे सत्ता परिवर्तन सही मायनों में व्यवस्था परिवर्तन का जरिया बने।
'बिहार में व्यवस्था परिवर्तन का दृढ़ संकल्प'
जन सुराज यात्रा को लेकर प्रशांत किशोर ने ट्वीट किया कि 'देश के सबसे गरीब और पिछड़े राज्य बिहार में व्यवस्था परिवर्तन का दृढ़ संकल्प। पहला महत्वपूर्ण कदम- समाज की मदद से एक नयी और बेहतर राजनीतिक व्यवस्था बनाने के लिए अगले 12-15 महीनों में बिहार के शहरों, गांवों और कस्बों में 3500KM की पदयात्रा। बेहतर और विकसित बिहार के लिए जनसुराज।
'नया लोकतांत्रिक मंच बनाना उद्देश्य'
पदयात्रा के उद्देश्य की चर्चा करते हुए प्रशांत ने कहा कि समाज की मदद से जमीनी स्तर पर सही लोगों को चिन्हित करना और उनको एक लोकतांत्रिक मंच पर लाने का प्रयास करना तथा स्थानीय समस्याओं और संभावनाओं को बेहतर तरीके से समझना और उसके आधार पर नगरों और पंचायतों की प्राथमिकताओं को सूचीबद्ध कर, उनके विकास का ब्लूप्रिंट बनाना मुख्य उद्देश्य है। इस दौरान बिहार के समग्र विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आर्थिक विकास, कृषि, उद्योग और सामाजिक न्याय जैसे 10 महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विशेषज्ञों और लोगों के सुझावों के आधार पर अगले 15 साल का एक विजन डॉक्यूमेंट तैयार होगा। जन सुराज अभियान की आधिकारिक वेबसाइट भी शुरू की गई है।
'हर पंचायत और प्रखंड तक पहुंचने का प्रयास'
प्रशांत किशोर 2018 में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल हुए थे, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सार्वजनिक आलोचना करने पर 2020 में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। खासकर जब कुमार ने संशोधित नागरिकता कानून का समर्थन किया था, तब किशोर ने उनकी आलोचना की थी। एक बयान में कहा गया है कि किशोर यात्रा के दौरान हर पंचायत और प्रखंड तक पहुंचने का प्रयास करेंगे और बिना कोई अवकाश लिए इसके अंत तक इसका हिस्सा रहेंगे।
भितिहारवा में गांधी आश्रम से जन सुराज यात्रा
पीके अपनी यात्रा की शुरुआत पश्चिम चंपारण के भितिहारवा में गांधी आश्रम से करेंगे जहां राष्ट्रपिता ने 1917 में अपना पहला सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था। बयान में कहा गया है कि यात्रा के तीन मुख्य लक्ष्य हैं जिसमें जमीनी स्तर पर सही लोगों की पहचान करना और उन्हें एक लोकतांत्रिक मंच पर लाना शामिल है। यह यात्रा शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और उद्योग सहित विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के विचारों को शामिल करके राज्य के लिए एक विजन दस्तावेज बनाने का भी काम करेगी।
इनपुट- भाषा http://dlvr.it/SZMJYh
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राहुल गांधी का पीएम मोदी पर हमला, किसानों को बताया सत्याग्रही, कहा- अपना हक लेकर रहेंगे
राहुल गांधी का पीएम मोदी पर हमला, किसानों को बताया सत्याग्रही, कहा- अपना हक लेकर रहेंगे
हाइलाइट्स:
किसान आंदोलन को लेकर राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना
राहुल गांधी ने आंदोलनकारी किसानों की तुलना ‘सत्याग्रहियों’ से की
एक महीने से ज्यादा का वक्त, दिल्ली बॉर्डर पर डटे हैं किसान
नई दिल्लीनए कृषि कानूनों (New Farm Laws) के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने आज किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार पर फिर से निशाना साधा है। राहुल…
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राष्ट्रपति ने बिहार कृषि रोड मैप 2017-2022 का शुभारंभ किया
राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने बिहार कृषि रोड मैप 2017-2022 का आज (09 नवम्बर, 2017) पटना में शुभारंभ किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि देश के राष्ट्रपति के रूप में पहली बार बिहार आना उनके लिए भावुक क्षण था। उन्होंने कहा कि वे बिहार के राज्यपाल के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान राज्य के सभी वर्गों और क्षेत्रों के लोगों से मिले सम्मान तथा स्नेह को हमेशा याद रखेंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष अप्रैल, 2017 से मनाया जा रहा है। इसलिए यह किसानों के हित में नए ‘कृषि रोड मैप’ के शुभारंभ का सही समय है। महात्मा गांधी ने सत्याग्रह के माध्यम से इस बात पर बल दिया था कि किसान भारतीय जीवन और नीति निर्माण का केंद्र हैं और यह बात आज भी प्रासंगिक है।
राष्ट्रपति ने कहा कि बिहार सरकार ने किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और अन्य हितधारकों के साथ विचार-विमर्श कर 2008 में पहले ‘कृषि रोड मैप’ का शुभारंभ किया था। 2017 का यह ‘रोड मैप’ तीसरा है। इसमें कृषि क्षेत्र के विकास के लिए व्यापक और समन्वित योजनाएं हैं। सभी विभागों को निर्देश दिया गया है कि किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए वे अपनी नीतियां बनाए। यह आधारभूत परिवर्तन है। राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि आज जारी किए गए तीसरे कृषि रोड मैप से बिहार में कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन और बढ़ेगा तथा कृषक समुदाय सशक्त बनेगा।
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आरएसएस चाहता हैं गांधी विचारधारा को खत्म कर गोडसे की विचारधारा को थोपना: तेजस्वी यादव बिहार की राजधानी पटना में चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी के मौके पर आयोजित राष्ट्रीय विमर्श कार्यक्रम में बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने आरएसएस को निशाने पर लेते हुए कहा कि आरएसएस गोडसे की विचारधारा को थोपना चाहता है. तेजस्वी यादव ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि गोडसे के उपासक देश की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं. देश खतरनाक हालात से ग़ुज़र रहा है. हमें संघ के दुष्प्रचार को नकारना होगा. तेजस्वी ने गांधीवादी विचारधारा के बारें में कहा कि इसके ज़रिए ही देश की सभी ज्वलंत समस्याओं का समाधान हो सकता है. चंपारण का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह वही जगह है जिसने गांधी को महात्मा बना दिया. तेजस्वी ने कहा कि यही बापू की महानता है कि उनके हत्यारे गोडसे को पूजने वाले भी सत्याग्रह शताब्दी समारोह मना रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम महात्मा गाँधी के नश्वर शरीर को तो दक्षिणपंथी विचारधारधारा के हाथों खो चुके हैं, लेकिन उन्हें गाँधी की मानवतावादी विचारधारा को देश से समाप्त नहीं करने देंगे.
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स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी द्वारा 1918 से 1948 तक किए गए आंदोलन उनका प्रभाव और परिणाम।
शॉर्ट में बोले तो गांधीजी के कर्मकांडों का कच्चा चिट्ठा
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1) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश वाइसरॉय के आमंत्रण पर गांधीजी उनसे मिले और उन्हें भरोसा दिलाया कि ब्रिटिश ताज के रक्षा हेतु ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को ब्रिटिश सेना में शामिल करने के लिए अभियान चलाएंगे और युद्ध की समाप्ति तक राज की मदद के लिए कोई आंदोलन नही करेंगे।
2) चंपारण सत्याग्रह : यह किसान सत्याग्रह गांधीजी के सबसे सफल आंदोलनों में से एक माना जाता है और इसी आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने गांधी को राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं लेकिन कूटनीतिक मित्र बनाने के कदम उठाने शुरू किए। इस सत्याग्रह के बाद गांधीजी को कभी कठोर कारावास की सजा नहीं दी गई।
3. 1) खिलाफत आंदोलन : सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण के उद्देश्य से गांधीजी ने पूरे भारत देश को एक पराये देश (तुर्कीस्तान) के पचडे में फंसा दिया लेकिन फिर भी वे मुसलमान नेताओं को खुश नहीं रख पाए और आंदोलन के तुरंत बाद मुस्लिमों ने कांग्रेस से अलग अपनी राजनीति की शुरुआत कर दी।
3.2) खिलाफत आंदोलन के बाद ही सही मायने में सांप्रदायिक राजनीति की शुरुआत हुई और रविंद्रनाथ टैगोर जैसी हस्तियों ने खिलाफत के समर्थन के लिए गांधीजी की आलोचना की।
4.1) असहकार आंदोलन : सन 1919 में गांधीजी ने अपने जीवन के सबसे बड़े आंदोलन का आगाज किया और इस आंदोलन के चलते कईं युवाओं ने ब्रिटिश कॉलेज से पढाई छोडी, लोगों ने अपनी नौकरीयां छोडीं और समग्र देश अराजकता के दौर में धकेल दिया गया। जलियांवाला बाग हत्याकांड भी इसी दौरान घटित हुआ।
4.2) दो साल के विराट आंदोलन के बावजूद भी गांधी ब्रिटिश सत्ता का बाल भी बांका नहीं कर पाए और निराश गांधी ने चौरीचौरा जैसी छोटी सी घटना का बहाना बना कर आंदोलन समेट लिया और जो लाखों युवाओं ने स्वराज के लिए अपनी पढ़ाई और कमाई छोडी थी उनका भविष्य अंधकार में धकेल दिया।
5. 1) दांडी सत्याग्रह : दांडी के लिए कुच करने से पहले गांधीजी ने ऐलान किया कि "कुत्ते कौवे की मौत मरना पसंद करूंगा लेकिन बिना पुर्ण स्वराज लिए वापस नहीं लौटुंगा" (NB: दांडी यात्रा के 17 साल बाद भारत स्वतंत्र हुआ।)
5.2) 1931-32 में चर्चास्पद गांधी-इरवीन समझौता और round table conference के दौरान भी देशवासियों को आशा थी कि गांधीजी पूर्ण स्वराज की बात करेंगे और भगतसिंह की फांसी पर रोक लगाने के लिए प्रयास करेंगे लेकिन फिर से एक बार गांधी ने देश को निराश ही किया।
6.1) भारत छोड़ो आंदोलन : इतनी विफलताओं के बावजूद गांधीजी की दुम में एक और आंदोलन का कीड़ा जाग उठा और बिना किसी पुर्व-आयोजन के उन्होंने Quit India Movement शुरू कर दी। लाखों लोगों ने लाठीयां खाईं और कईंयों ने जान गंवाई लेकिन आंदोलन सफल नहीं हुआ।
6.2) भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधीजी को पूणे के आगाखान महल में नजरबंद किया गया और अन्य कांग्रेसी नेताओं को भी जेलों में बंद कर दिया गया, बिना सक्षम न���तृत्व के आंदोलन ने दम तोड़ दिया। यह गांधीजी का अंतिम प्रयास था जिसमें वो असफल ही रहे।
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महापुरुष प्रतिमा सम्मान और सुरक्षा अधिनियम : प्रतिमाओं की स्थापना के संबंध में सनातन धर्म में एक विशेष प्रक्रिया विहित की गई है. जब हम किसी देवता या देवी की प्रतिमा स्थापित करते हैं तो उसमें शास्त्रीय विधि के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. गर्भगृह का निर्माण होता है.प्राण प्रतिष्ठा के बाद उसे जीवंत माना जाता है. देव प्रतिमा के सम्मान की दृष्टि से उन्हें स्नान कराने के लिए, उन्हें भोग लगाने के लिए, उनकी आरती के लिए एक पुजारी की विधिवत नियुक्ति की जाती रही है. भारत, यूनान, रोम और मिश्र तथा यूरोप के अन्य देशों की तरह नहीं है जहां किसी भी देवता या महापुरुष की प्रतिमा चौराहों पर या अन्य पार्को में स्थापित कर दी जाए. यूरोप और अन्य देशों के अनुकरण में भारत में भी महापुरुषों की प्रतिमाएं चौराहों पर और अन्य स्थलों पर स्थापित करने की एक परंपरा तो प्रारंभ हुई किंतु उन प्रतिमाओं की दैनिक देखभाल, स्वच्छता आदि कार्य के लिए अथवा उनकी सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया. अब आवश्यकता है कि इस तरह का कानून बनाया जाए कि यदि कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी सार्वजनिक स्थल पर किसी महापुरुष की प्रतिमा स्थापित करे तो उस प्रतिमा की देखभाल के लिए, उस प्रतिमा को निरंतर स्वच्छ बनाए रखने के लिए एक व्यक्ति की नियुक्ति भी करे और प्रतिमा की सुरक्षा का भी उपाय करे तभी ऐसी प्रतिमाएं स्थापित किए जाने की अनुमति सरकार द्वारा दी जानी चाहिए. यदि कोई इन शर्तों को पूरा नहीं करता है कोई तो उसे प्रतिमा स्थापित करने का अधिकार नहीं होना चाहिए बिहार के चंपारण जिले में जहां बैरिस्टर गांधी 1917 में आए थे और अपने अद्भुत, अप्रतिम, अभूतपूर्व सत्याग्रह के प्रयोग का प्रारंभ किया था और उसके सफल प्रयोग के बाद बैरिस्टर गांधी संपूर्ण विश्व में महात्मा गांधी कहे जाने लगे थे, उसी चंपारण के मोतिहारी जिले में दो जगहों पर स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा के साथ अपमानजनक व्यवहार कुछ अपराधियों द्वारा किया गया. यह एक प्रस्तर मूर्ति को अपमानित करने की घटना नहीं है बल्कि अत्यंत गंभीर आपराधिक घटना है. पुलिस तत्परता पूर्वक इन मामलों में अनुसंधान भी कर रही है किंतु अब महापुरुषों की प्रतिमाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए कानून बनाया जाना आवश्यक हो गया है क्योंकि महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, डॉ आंबेडकर आदि की प्रतिमाएं सार्वजनिक स्थलों पर लगाई जाती हैं और इन प्रतिमाओं के अपमान के बाद लोक व्यवस्था भंग होने की प्रबल संभावना होती है. 🇮🇳 अरविन्द पाण्डेय 🇮🇳 https://www.instagram.com/p/CaC0jlVP85o/?utm_medium=tumblr
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#जब_तक_दुनिया_है_तब_तक_रहेंगे_गाँधी_के_पांव ● जिस चंपारण के लिये लड़े वहीं बापू की मूर्ति तोड़ दी गई। बिहार के चंपारण (जिला मोतिहारी) में रविवार की रात अज्ञात लोगों ने चरखा पार्क में लगी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की प्रतिमा तोड़ दी। असामाजिक तत्वों की तोड़फोड़ के बाद भी गाँधी के पांव पेडस्टल पर जमे रहे। ये गोडसेवादी नहीं जानते कि गाँधी के पांव अब इस धरती से कभी नहीं उखड़ पाएंगे। जब तक ये दुनिया है तब तक गाँधी के पदचिन्ह धरती के हर कोने पर अमिट रहेंगे। जहां जहां सत्य,अहिंसा,स्वतंत्रता के लिये कोई एक भी क़दम उठाएगा उसका पहला क़दम गाँधी के रास्ते पर ही होगा। #प्रसंगवश: ये वही चंपारण है जहां गाँधी जी क़रीब सौ बरस से भी पहले 1917 में नील की खेती करने वाले किसानों के लिये आंदोलन करने पहुंचे थे। चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को किसानों पर हो रहे अत्याचार के बारे में बताने पहले लखनऊ फिर कानपुर और अंत में अहमदाबाद तक पीछा किया। गाँधी ने लिखा है कि इससे पहले उन्होंने चंपारण का नाम भी नहीं सुना था। शुक्ल जिद पर अड़े थे कि उन्हें चंपारण आकर किसानों का दर्द सुनना चाहिये। अंततः 1917 के अप्रेल महीने में गाँधी जी तैयार हो गए। गाँधी ने लिखा- 'इस अगढ़, अनपढ़ लेकिन निश्चयी किसान ने मुझे जीत लिया।' गाँधी जी ने कहा कि मैं कलकत्ता आ रहा हूँ मुझे लेने आ जाना। राजकुमार शुक्ल गाँधी जी को लेने कलकत्ता पहुंच गए और दस अप्रेल 1917 को उन्हें लेकर पटना आये। गाँधी ने 15 अप्रेल को चंपारण में पहली बार क़दम रखा। किसानों को साथ लेकर गाँधी ने आंदोलन छेड़ा और अंततः पहली बार अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका से वापसी के बाद गाँधीजी का भारत में अहिंसा और सत्याग्रह का यह पहला प्रयोग था। #नमन_बापू_प्रणाम_बापू तुम हो तो हम हैं, तुम हो तो सब है। (Dr. Rakesh Pathak जी के वॉल से) https://www.instagram.com/p/CZ_t5hEpMkW/?utm_medium=tumblr
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CIN /साहित्य सम्मेलन में स्वतंत्रता-दिवस के साथ मनयी गयी जयंती, हुआ राष्ट्र-भक्ति कवि-सम्मेलन
पटना, 15अगस्त। हिन्दी, संस्कृत और बांगला भाषाओं के उद्भट विद्वान पं हंस कुमार तिवारी अनुवाद-साहित्य के महान उन्नायकों में परिगणित होते हैं। इन्होंने बंगला साहित्य का हिन्दी में अनुवाद के साथ ही कई अनेक मौलिक साहित्य का सृजन कर हिन्दी का भंडार भरा। राष्ट्रभाषा परिषद, बिहार के मिदेशक के रूप में उनके कार्यों को आज भी स्मरण किया जाता है। वही चंपारण-सत्याग्रह के प्रथम-ध्वजवाहकों में से एक पीर मुहम्मद…
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चंपारण किसान आंदोलन 1917-18 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य यूरोपीय बागान के खिलाफ किसानों के बीच जागृति पैदा करना था।
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'सत्याग्रह साहित्य सम्मान समारोह- 2021' में चंपारण के 14 साहित्यकारों को किया गया सम्मानित
‘सत्याग्रह साहित्य सम्मान समारोह- 2021’ में चंपारण के 14 साहित्यकारों को किया गया सम्मानित
‘सत्याग्रह साहित्य सम्मान समारोह- 2021’ में चंपारण के 14 साहित्यकारों को किया गया सम्मानित
रक्सौल से डॉ. स्वयंभू शलभ को ‘विष्णुकांत पांडेय साहित्य सम्मान’
सत्याग्रह की भूमि मोतिहारी आज एक अद्भुत कार्यक्रम की साक्षी बनी। मुंशी सिंह महाविद्यालय के सभागार में ख्वाब फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘सत्याग्रह साहित्य सम्मान समारोह 2021’ में चंपारण के सुप्रसिद्ध साहित्यकारों और कवियों को सम्मानित किया गया।…
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Farmers Protest: राहुल गांधी ने किसान आंदोलन को बताया दूसरा Champaran, कहा हक लेकर रहेंगे किसान
Farmers Protest: राहुल गांधी ने किसान आंदोलन को बताया दूसरा Champaran, कहा हक लेकर रहेंगे किसान
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन (Farmers Protest) को भुनाने के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगाए हुए है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने इस आंदोलन की तुलना चंपारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha) से करते हुए कहा है कि हरेक मजदूर-किसान अपना हक लेकर रहेगा.
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3. सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। सरदार पटेल का सपना वकील बनने का था और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना था, लेकिन उनके पास इतने भी आर्थिक साधन नहीं थे कि वे एक भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश ले सकें। उन दिनों एक उम्मीदवार व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई कर वकालत की परीक्षा में बैठ सकते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार लीं और घर पर पढ़ाई शुरू कर दी। 4. बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने 'सरदार' की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को 'भारत का बिस्मार्क' और 'लौहपुरुष' भी कहा जाता है। सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे। 5. इंग्लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की तरफ नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की। जल्द ही वे लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई। 6. सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया। गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया, पर वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे इसलिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके। इस समय सरदार पटेल स्वेच्छा से आगे आए और संघर्ष का नेतृत्व किया। 7. गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया। केवल हैदराबाद के 'ऑपरेशन पोलो' के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का 'लौहपुरुष' के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। 8. सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते। वे महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस (at Jhansi) https://www.instagram.com/p/CIzZqOAMLG-/?igshid=64tq9ftm86ni
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पटना /ऐतिहासिक चंपारण-सत्याग्रह के महान अग्रदूत थे पं राज कुमार शुक्ल जयंती पर साहित्य सम्मेलन में दी गई श्रद्धांजलि
पटना /ऐतिहासिक चंपारण-सत्याग्रह के महान अग्रदूत थे पं राज कुमार शुक्ल जयंती पर साहित्य सम्मेलन में दी गई श्रद्धांजलि
संजय राय की रिपोर्ट पटना से , २३ अगस्त। महान स्वतंत्रता सेनानी और किसान नेता पं राज कुमार शुक्ल, महात्मागांधी के ऐतिहासिक चंपारण-सत्���ाग्रह के वह महान अग्रदूत थे जिनके अथक प्रयास और बारंबार अनुनय-विनय पर गांधी जी चंपारण आए थे। जब गांधीजी ने अग्रेज नीलहे जमीनदारों से सताए जा रहे यहां के किसानों की दुर्दशा देखी तो प्रतिकार के लिए खड़े हुए। फिर गांधी जी ने पं शुक्ल समेत स्थानीय किसानों, किसान-नेताओं…
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