#कट्टरवादी मुस्लिम
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लुट्येन क्यूँ “टु ध पोईंट” बात नहीं करते? भाग – २ / ३
ये लुट्येन नेता और मुस्लिम नेतागण कह दे कि नहेरु तो स्टुपीड था, नहेरु तो गधा था, नहेरु तो अक्ल का ओथमीर था, नहेरु तो पागल था, नहेरु तो अनपढ था, नहेरु तो गंवार था, नहेरु तो कोमवादी था, नहेरु तो डरा हुआ था. फिर कहे कि हम उस गधेको मानते नहीं
लुट्येन क्यूँ “टु ध पोईंट” बात नहीं करते? भाग – २ / ३ प्रगतिशील मुस्लिम नेतागण नहेरुके विरुद्ध थे. लेकिन ऐसे नेता तो समूद्रकी एक बूंद के बराबर थे. इससे क्या हुआ? भारतके मुस्लिमोंकी मानसिकता कट्टरवादी ही रही. वे कभी प्रगतिशील बन ही नहीं पाये. नहेरुको उनकी चिंता कहाँ थी? उनको न तो पाकिस्तानके हिंदुओं पर क्या गुजर रहा है उसकी चिता थी, न तो भारतके हिंदुओंके जनतंत्रातिक अधिकारोंकी चिंता…
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#अनपढ#अहेमदिया#इस्लामिक देश#करार#खोजा#गधा#डरा हुआ#धर्म निरपेक्ष#नहेरु#नागरिकता#पडौशी#परिभाष#पागल#बेवकुफ#मुस्लिम#लियाकत#लुट्येन#वोरा#शिया#सुन्नी#स्वयं प्रमाणित गांधीवादी
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Bageshwar Dham: साक्षी हत्याकांड पर आ गया पंडित धीरेन्द्र शास्त्री जी का ब्यान कह दी यें बड़ी बाते
Bageshwar Dham: साक्षी हत्याकांड पर पर आ गया पंडित धीरेन्द्र शास्त्री जी का ब्यान कह दी यें बड़ी बाते इन दिनों दिल्ली मे हुए एक नाबालिग की हत्याकांड की खबरे काफ़ी तेजी से भारत के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हो रही है। दिल्ली मे हुए साक्षी मर्डर केस के ऊपर अब बाबा बागेश्वर पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी क ब्यान सामने आ गया है उन्होंने कहा की लोग हमसे बोलते है की विवादित ब्यान देते है कट्टरवादी है और दंगाई है कहा की इन सब घटनाओ के चलते है मेरा खून खोल जाता है और भारत का शायद ही ऐसा कोई भाई होगा जिसका यें घटना सुनने के बाद खून ना खोले और जिसका भी इन सब के बाद खून ना खोले तो वह जीते जी मरे हुए के समान ही है। इस दौरान उन्होंने बालाघाट कथा की घटना के बारे मे भी बताया जहाँ पर बांग्लादेश से एक मुस्लिम लड़की बागेश्वर सरकार के दिव्य दरबार मे पहुंच जाती है और सनातन धर्म मे आने की गुहार गुरूजी से करती है।
साक्षी मर्डर केस पर क्या बोले पंडित शास्त्री
साक्षी मर्डर केस पर पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने कहा की हमने अभी यह न्यूज़ सुनी और हमारा हृदय ब��ुत ही पीड़ामय हुआ। बाबा बागेश्वर ने कहा की लोग हमसे कहते है की हम कट्टरवादी है, लोग हमसे कहते है आप वाद विवाद वाली बाते बोलते हो और हम दंगाओ वाली बात बोलते है, लेकिन जब अपनी बहनो का हम यें हाल देखते है तो शायद दुनिया का ऐसा कोई भाई होगा जिसका खून ना ख़ौले और इसको देखकर किसी का खून ना ख़ौले तो वह जीते जी मर चुका है इसलिए हम बोलते है और सनातम पर भरोसा करते है, क्योंकि हमारा सनातन मरने की शिक्षा नही देता बल्कि बचाने की बात बोलता है।
bageshwar dham on sakshi Bageshwar Dham: बांग्लादेश की एक मुस्लिम महिला हुयी पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की दीवानी Bageshwar Dham: एक ही पर्चे मे लगाई दो लोगों की अर्जी फिर हुआ यें दिव्य चमत्कार Read the full article
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🚩 हिन्दू महिलाओं को मुस्लिम पुरुषों के साथ जोड़कर बदनाम किया जा रहा है जो अक्षम्य है 6 जनवरी 2022
🚩 सोशल मीडिया पर महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है, वो भी धर्म के आधार पर। कई ऐसे कंटेंट्स सामने आए हैं, जिनसे पता चलता है कि हिन्दू महिलाओं की प्राइवेसी भंग करके उन्हें बदनाम किया जा रहा है।मुस्लिम पुरुषों के साथ उनके नाम जोड़ कर उन्हें सरेआम ‘वेश्या’ कहा जा रहा है। धर्म के आधार पर महिलाओं की ऑनलाइन ‘बिक्री', उनके अश्लील कंटेंट्स बनाए जाने और मुस्लिम पुरुषों की ‘श्रेष्ठता’ साबित करने के लिए उनके इस्तेमाल के पीछे कौन लोग हैं, ये पता लगाना प्रशासन का काम है।लेकिन, इस मामले में लोगों की चुप्पी ध्यान देने लायक है। आखिर अब हिन्दू महिलाएँ ‘वोट बैंक’ तो हैं नहीं, इसीलिए उनकी भावनाओं की कोई कदर नहीं है नेताओं के लिए। सोशल मीडिया पर कई एक्टिविस्ट्स ने इस ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया है और कुछ मंत्रियों ने इसका संज्ञान भी लिया है। क्या इसके पीछे इस्लामी कट्टरवादी हैं, जो हिन्दू महिलाओं का अश्लील चित्रण करके और उनके चरित्र के हनन का प्रयास करके अपनी ‘आतंरिक संतुष्टि’ प्राप्त करते हैं?
🚩 सबसे पहले एक फेसबुक पेज की बात ��रते हैं, जिसका नाम है- ‘संस्कारी हिन्दू बीवी मुस्लिम मर्द की दीवानी’। साथ ही इसकी प्रोफ़ाइल तस्वीर में एक ऐसा चित्र लगाया गया है, जिसमें एक मुस्लिम महिला एक हिन्दू लड़की को पकड़े हुए है। इसकी कवर पिक में एक पेंटिंग है। पेंटिंग में एक बुजुर्ग मुस्लिम व्यक्ति को दिखाया गया है और उसके साथ उसकी टाई पकड़े हुए साड़ी में एक महिला है, जिसे स्पष्टत: हिन्दू दिखाया गया है। मुस्लिम बुजुर्ग की इस्लामी टोपी पर चाँद-तारा बना हुआ है।
एक और फेसबुक ग्रुप है, जिसका नाम है- ‘मुस्लिम मर्द औरत का प्यासा’, जिसमें 872 लोग जुड़े हुए हैं। इसकी मुख्य तस्वीर में एक महिला और एक पुरुष एक-दूसरे को किस कर रहे हैं। स्पष्टत: पुरुष को मुस्लिम और महिला को हिन्दू के रूप में प्रदर्शित किया गया है। इसमें ‘हन्नी जान’ नाम के एक यूजर पूछ भी रहा होता है कि क्या कोई हिन्दू महिला ऑनलाइन है? क्या इस तरह के ग्रुप्स बना कर और उसमें हजारों लोगों को जोड़ कर हिन्दू महिलाओं को लेकर फैलाई जा रही अश्लीलता पर कोई आवाज़ उठाएगा?
🚩 इसी तरह का एक और इंस्टाग्राम पेज है जिसका यूजरनेम है– ‘ज़ालिम मुस्लिम कसाई’ और इसका नाम ‘असलम खान’ लिखा हुआ है। इतना ही नहीं, 4239 लोग इसे फॉलो भी करते हैं। इसमें भी साड़ी में एक हिन्दू महिला के साथ एक मुस्लिम बुजुर्ग को चित्रित किया गया है। ऐसे पेजेज के जरिए ये बताने की कोशिश की जा रही है कि हिन्दू महिलाएँ ‘निचली श्रेणी’ में आती हैं और मुस्लिम पुरुष ‘श्रेष्ठ’ होते हैं, जो उनके साथ अंतरंग होते रहते हैं और ये आम बात है।
🚩 एक और इंस्टाग्राम पेज है, जिसे ‘बैड बॉय’ और ‘ज़ालिम बॉय’ के नाम से बनाया गया है। इसमें एक मुस्लिम व्यक्ति को बिना कपड़ों के एक हिन्दू महिला के साथ दिखाया गया है। कुल 23 तस्वीरें इससे अब तक जारी की जा चुकी हैं, जिनमें सारी की सारी अश्लील हैं। 1818 फॉलोवर्स भी हैं। कटे हुए फलों का अश्लील चित्रण करके और हिन्दू महिलाओं की कई तस्वीरें पोस्ट करके उन्हें बदनाम किया गया है। टीका या सिंदूर लगाई हुईं हिन्दू लड़कियाँ, साथ में इस्लामी टोपी लगाए मुस्लिम युवक– यही दिखाना इस पेज का मुख्य लक्ष्य है।
🚩 एक अन्य इंस्टाग्राम पेज पर हिन्दू देवी-देवताओं का भी अश्लील चित्रण है। इसका नाम ‘ज़ालिम मर्द’ है, जिसमें भगवान श्रीराम का चित्र भी बनाया गया है और उन्हें लेकर अश्लीलता फैलाई गई है। सोचिए, जब सैकड़ों वर्षों से एक खास मजहब के पैगम्बरों की आलोचना तो दूर, नाम भर ले लेने से ‘काफिरों’ का नरसंहार किया जाता है, हिन्दू देवी-देवता खुलेआम इस तरह दिखाए जाते हैं। ‘ॐ’ शब्द का अपमान भी इसमें किया गया है। क्या ये हिन्दू धर्म के प्रति घोर ‘बेअदबी’ नहीं?
🚩 इसी तरह का एक और इंस्टाग्राम पेज है, जिसमें बिना कपड़ों के एक दाढ़ी वाले मुस्लिम व्यक्ति को साड़ी पहनी हुई हिन्दू महिला के साथ चित्रण किया गया है। पेज का नाम ‘ज़ालिम मुस्लिम लं$’ ��खा गया है, जो बेहद ही अश्लील है। हालाँकि, ऐसा लगता है जैसे इस इंस्टाग्राम पेज के पोस्ट्स डिलीट भी किए गए हैं। इस पेज के 945 फॉलोवर्स हैं। खास बात ये है कि ऐसे पेज चलाने वाले आज से नहीं बल्कि कई दिनों से ऐसे ही सक्रिय हैं और इनके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई जाती है।
🚩 अब एक ‘ज़ालिम मर्द’ नाम का इंस्टाग्राम हैंडल है, जिसमें हिन्दू महिलाओं के लिए ‘रखैल’ और इससे भी घटिया शब्दावली का जिक्र किया गया है। प्राइवेसी के कारण हम इन तस्वीरों को हूबहू आपके सामने पेश भी नहीं कर सकते, क्योंकि ये सही नहीं होगा। लेकिन, इनके बारे में जानना आपके लिए ज़रूरी है, ताकि आप सावधान रहें। मुस्लिम पुरुषों के साथ एक से अधिक महिलाओं को आपत्तिजनक अवस्था में दिखाकर कट्टरवादी क्या प्राप्त करना चाहते हैं, ये सोचने लायक है।
🚩 एक इंस्टाग्राम हैंडल है- ‘ज़ालिम अनवर पठान’ नाम का, जिसके 1152 फॉलोवर्स हैं और इससे 17 तस्वीरें पोस्ट की गई हैं। इसकी ताज़ा 5 तस्वीरों में इस्लामी टोपी पहने एक मुस्लिम पुरुष को हिन्दू महिलाओं के साथ दिखाया गया है। एक तस्वीर में अरब के तीन शेखों के साथ एक हिन्दू महिला को दिखाया गया है। एक तरह से हिन्दू महिलाओं का इस्तेमाल करके ‘पोर्न कंटेंट्स’ बनाए जा रहे हैं। अन्य तस्वीरों में हिन्दू महिलाओं को अश्लील अवस्था में दिखाया गया है।
🚩 एक और इंस्टाग्राम हैंडल है, जिसमें हिन्दू महिलाओं के साथ-साथ देवी माँ का भी अपमान किया गया है। इस पेज का नाम है ‘दुर्गा पंडित’ और इसमें एक हिन्दू महिला की तस्वीर डीपी के रूप में लगाई गई है। परिचय पश्चिम बंगाल की एक ‘बम’ के रूप में दिया गया है, जिसकी उम्र 26 वर्ष बताई गई है। इसमें हिन्दू अभिनेत्रियों/महिलाओं की तस्वीरें आपत्तिजनक और अश्लील बातें लिखकर पोस्ट की गई हैं। याद है आपको, जब ‘सेक्सी दुर्गा’ नाम की एक फिल्म के जरिए ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का बहाना मारा जा रहा था? ये भी उसी क्रम का ही एक हिस्सा है।
इसके अलावा ‘http://www.interfaithxxx.com’ नाम की एक वेबसाइट के जरिए किस किस्म की बातें की जाती हैं, वो देखिए:
🚩 इसके एक लेख में लिखा है, “हिन्दू महिलाओं की इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए मुस्लिम मर्द बेहतर होते हैं, ऐसा एक हिन्दू महिला एक्टिविस्ट का कहना है। उनका कहना है कि मुस्लिम मर्द ज्यादा आनंद देते हैं। मुस्लिम मर्दों के फौलादी जिस्म को हिन्दू लड़कियाँ पागलों की तरह प्यार करती हैं।” एक लेख का नाम है- “मेरी हिन्दू माँ का नया शौहर”। एक वीडियो डालकर लिखा है, “मुस्लिम बॉयफ्रेंड के लिए लड़तीं हिन्दू लड़कियाँ”। एक अन्य लेख का शीर्षक है, “टिकटॉक बनाने वाले मुस्लिम हिन्दू लड़की की ‘Pu%&y’ का आनंद ले रहे हैं।”
🚩 इसके अलावा अंशुल सक्सेना ने एक टेलीग्राम चैनल के बारे में भी बताया, जिसका नाम ‘हिन्दू रं%$याँ’ है। इसमें 219 लोग जुड़े हुए थे। मीरा मोहंती नाम की ट्विटर यूजर ने जब केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूच��ा प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को टैग किया, तो उन्होंने इसका तुरंत संज्ञान लिया। केंद्रीय मंत्री ने जानकारी दी कि इस टेलीग्राम चैनल को ब्लॉक कर दिया गया है और आगे की कार्रवाई के लिए भारत राज्यों के पुलिस-प्रशासन के साथ समन्वय बनाकर काम कर रही है।
🚩 अंशुल सक्सेना ने सोशल मीडिया के जरिए केंद्र सरकार का ध्यान इस तरफ आकृष्ट कराया है। हाँ, इतना ज़रूर निश्चित है कि इस पर मेनस्ट्रीम मीडिया रिपोर्टिंग नहीं करेगा और अंतरराष्ट्रीय मीडिया हिन्दू महिलाओं की इस प्रताड़ना पर एक लाइन की भी खबर नहीं बनाएगा।
🚩 अंशुल सक्सेना ने फेसबुक पर कई अन्य पेजेज के लिंक्स और उनके नाम शेयर करके हिन्दू महिलाओं की प्रताड़ना को सामने रखा। इन पेजेज के नाम हैं- “संस्कारी हिन्दू बीवी मुस्लिम मर्द की दीवानी”, “मुस्लिम मर्द की दीवानी हिन्दू औरतें” और ‘मुस्लिम मर्द की दीवानी’। इस तरह के कई पेजेज हैं, जिनसे सैकड़ों से हजारों लोग तक जुड़े हुए हैं। केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बताया है कि MeiTY टीम को फेसबुक की पैरेंट कंपनी ‘मेटा’ से बात करके इन्हें हटाने का निर्देश दिया है।
https://hindi.opindia.com/national/obscene-pics-showing-hindu-woman-muslim-man-contents-on-social-media-objectionable-pics/?s=09
🚩 इसके अलावा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ‘Amazon’ पर भी ऐसी कई पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिनमें हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार को बढ़ावा दिया गया है। मुस्लिम प्रेमी के साथ हिन्दू लड़की की कहानी जैसी बातें करके ‘रेप फंतासी’ को आगे बढ़ाया जा रहा है।किंडल पर उपलब्ध इन पुस्तकों में से कुछ के कवर पेज पर इस्लामी टोपी में पुरुष और बिंदी लगाए महिला को दिखाया गया है। ‘पड़ोसी के साथ सेक्स करती भारतीय महिला’ जैसे शीर्षक के साथ कई पुस्तकें उपलब्ध हैं। समाज को बचाने और महिलाओं की सुरक्षा के लिए हमें खुद आगे आना होगा और सोशल मीडिया के जरिए ऐसे कंटेंट्स की पोल खोलते हुए पुलिस-प्रशासन और सरकारों का ध्यान इस तरफ आकृष्ट कराना होगा, क्योंकि मुख्यधारा की मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ-साथ तथाकथित एक्टिविस्ट्स इस मामले में कुछ नहीं बोलेंगे। धर्म के कारण महिलाओं को बदनाम करके अश्लीलता फैलाना कुछ इस्लामी कट्टरपंथियों का पेशा बन गया लगता है। ऐसे कंटेंट्स को तुरंत रिपोर्ट करें और ब्लॉक करवाएँ
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🤺 *अफगानिस्तान विशेष।* *विश्व के गैर मजहबी सभी देशों को एक काम एक नियम बना लेना चाहिए। किसी भी मुस्लिम देश से भगाए शरणार्थी को शरण तब ही दे जब वो अपना मजहब त्याग कर उस देश का रिलिजन या धर्म अपना ले। अगर वो जिहादी कट्टरवादी अत्याचारों के बाद भी मजहब नही बदल रहा तो निसन्देह यह शरणार्थी उस देश विशेष पर कब्जा करने की नीयत से आ रहे है।उसे अस्थिर करने और वहां की जनसंख्या को परिवर्तन करने जिहाद की नीयत से ही आ रहे हैं ना कि जान बचा कर शरण लेने आये है।* (at अखंड भारतवर्ष) https://www.instagram.com/p/CTW-qp8BJI_/?utm_medium=tumblr
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‘दोषी मुस्लिम भी हो तो फाँसी पर लटका दूँगा’: गुस्से से लाल थे राजेश पायलट, RSS दफ्तर में ब्लास्ट से मरे थे 11 स्वयंसेवक - https://www.annlive.co.in/?p=919 #KanhaiyaKumar #ANNlive #ANN #ANNmrgv आज से 28 साल पहले तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दफ्तर को आतंकियों ने निशाना बनाया गया। वो 8 अगस्त, 1993 का ही दिन था जब चेन्नई में RSS के दफ्तर हुए बम ब्लास्ट में 11 स्वयंसेवकों की जान चली गई थी। इनमें से 5 संघ के प्रचारक थे। उस समय केंद्र में कॉन्ग्रेस पार्टी की सरकार थी और पीवी नरसिंहा राव भारत के प्रधानमंत्री थे। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण तब देश के गृह मंत्री हुआ करते थे। वहीं तमिलनाडु की बात करें तो वहाँ AIADMK की सरकार थी और जयललिता पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं। तब बाबरी विध्वंस और लालकृष्ण आड��ाणी की रथयात्रा के कारण देश की राजनीति उबाल पर थी। साथ ही श्रीलंका में तमिल अलगावादियों ने वहाँ की सरकार के दाँत खट्टे कर रखे थे। इस घटना से सवा 2 साल पहले ही मई 1991 में तमिलनाडु के ही कांचीपुरम स्थित श्रीपेरुम्बुदुर में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की एक बम ब्लास्ट में हत्या कर दी गई थी। लालकृष्ण आडवाणी ने चेन्नई के RSS दफ्तर में मारे गए स्वयंसेवकों को श्रद्धांजलि भी दी थी। बॉम्बे और कलकत्ता (मुंबई और कोलकाता) में बम ब्लास्ट हो चुके थे, ऐसे में दिल्ली की सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी क्योंकि आशंका थी कि आतंकी राष्ट्रीय राजधानी को निशाना बना सकते हैं। ये बात तब की है, जब चेन्नई, मद्रास हुआ करता था। चेटपेट इलाके में स्थित RSS की इमारत में रात के समय जोरदार धमाका हुआ। 11 स्वयंसेवकों की मौत हो गई और 7 घायल हुए। मृतकों में दो महिलाएँ भी शामिल थीं। RSS मुख्यालय के सेक्रेटरी वी काशीनाथन की भी इस हमले में जान चली गई। देश में इस घटना के कारण काफी खलबली मची थी। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री राजेश पायलट तुरंत मद्रास पहुँचे थे। बताते चलें कि राजस्थान में कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे सचिन पायलट उन्हीं के बेटे हैं। राजेश पायलट की जून 2011 में एक कार दुर्घटना में मौत हो गई थी। RSS के स्थानीय नेताओं ने तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री राजेश पायलट को जानकारी दी थी कि ‘पलानी बाबा’ नाम के एक इस्लामी कट्टरवादी ने इस धमाके के पिछले महीने ताम्बरम में अपने अनुयायियों को भड़काते हुए RSS के मुख्यालय व कांची शंकराचार्य मठ में बम विस्फोट करने के लिए कहा था। ‘पलानी बाबा’ पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI और प्रतिबंधित ‘इस्लामिक सेवक संघ’ से जुड़ा हुआ था। राजेश पायलट ये सुनते ही गुस्से से लाल हो गए थे और उन्होंने कहा था, “मैं दोषियों को फाँसी पर लटका दूँगा, वो मुस्लिम ही क्यों न हो।” लालकृष्ण आडवाणी भी चेन्नई पहुँचे थे और इस बम ब्लास्ट को पिछले 2 बड़े ब्लास्ट्स से जोड़ते हुए सरकार को चेताया था। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकियों के तमिलनाडु में सक्रिय होने की ख़ुफ़िया सूचना मिलने के बावजूद केंद्र व राज्य की सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं। जब RSS में बम ब्लास्ट के कारण दिल्ली तक के नेता वहाँ पहुँच रहे थे, जब जयललिता पलानी में चुनाव प्रचार के लिए निकली हुई थीं। तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल एम चन्ना रेड्डी ने इसके लिए उनकी आलोचना भी की थी। जयललिता ने बाद में सफाई में कहा था कि उन्हें इस बम विस्फोट की तीव्रता व इससे हुए नुकसान का अंदा���ा नहीं था। राज्यपाल ने पुलिस और मुख्य सचिव की भी उनकी निष्क्रियता के लिए आलोचना की थी। ‘पलानी बाबा’ के बारे में बता दें कि इस बम ब्लास्ट के पौने 4 साल बाद फरवरी 1997 में उसकी भी हत्या हो गई थी, जिसके बाद तमिलनाडु के कई हिस्सों में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क गए थे। इसी साल जनवरी में भाजपा के स्टेट एग्जीक्यूटिव सदस्य एसडी माणिक्कम की हत्या हुई थी। तब तक तमिलनाडु में करुणानिधि के DMK की सरकार आ चुकी थी। गणेश पूजा के जुलूस को मुस्लिम इलाकों से नहीं गुजरने दिया गया। On this day 28 years ago, 11 of our innocent Swayamsevaks died in a dastardly bomb blast at the Chennai RSS Office. Among those included 5 Pracharaks. Our respectful homage to all of them. pic.twitter.com/eA5CAhg36b — Friends of RSS (@friendsofrss) August 8, 2021 ‘मुनेत्र कझगम’ नाम के एक इस्लामी चरमपंथी संगठन ने तो राजभवन पर ही कब्ज़ा करने की कोशिश की थी, जिसे पुलिस ने नाकाम कर दिया था। ये भी जानने लायक है कि RSS के चेन्नई दफ्तर में हुए बम ब्लास्ट का मुख्य आरोपित मुस्ताक अहमद इस घटना के 25 साल बाद जनवरी 2018 में धराया। CBI ने उसे चेन्नई से दबोचा था। वो तमिलनाडु के आतंकी संगठन ‘अल उम्माह’ का सरगना था। 59 वर्षीय मुस्ताक अहमद पर तब पुलिस ने 10 लाख रुपए का इनाम रखा था। बम ब्लास्ट में इस्तेमाल किए गए RDX का इंतजाम उसी ने किया था और अन्य आतंकियों को शरण दी थी। इस मामले की जाँच CB-CID को सौंपी गई थी। इसके बाद 1994 में 18 आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी। इस मामले में 431 गवाह थे। जून 2007 में स्पेशल कोर्ट ने 11 को दोषी ठहराया और 4 को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। एक अन्य आरोपित इमाम अली मुठभेड़ में मारा गया था।
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Pooja Kushwaha, 18, of Agra, is a Hindu girl but she teaches the Quran. He also read Quran and now he teaches the Quran to 35 children. Where people become fundamentalists on Hindu and Muslim affairs At the same place, Pooja teaches these children the verses of the Quran in the courtyard of the temple. #May Blind devotee look miracle of Islam. This is Love power of Islam rules & Way of Muhammad Sallahu Alaihi Wa Sallam walk effect . आगरा की 18 साल की पूजा कुशवाहा एक हिन्दू युवती हैं लेकिन वो क़ुरान पढ़ाती हैं. उन्होंने क़ुरान पढ़ी भी हैं और अब वो 35 बच्चों को क़ुरान पढ़ाती हैं. जहां लोग हिन्दू और मुस्लिम के मामलों पर कट्टरवादी हो जाते हैं. वहीं पूजा इन बच्चों को मंदिर के आंगन में क़ुरान की आयतें पढ़ाती हैं https://www.instagram.com/p/BtBaQWfguzn/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=18be8pewbp8s5
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मुस्लिम युवाओं को संविधान और लोकतंत्र को मज़बूत करना होगा: मुफ़्ती खालिद मिस्बाही
जयपुर, 21 अक्तूबर:भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ पे युवाओ की सबसे बड़ी भागेदारी है, और दिलचस्प बात ये है कि इस युवाओ में मुस्लिम युवाओ की प्रतिशत सबसे अधिक है, इसलिए ज़रूरी है कि मुस्लिम युवाओं का भारतीय लोकतंत्र में विश्वास रहे, लोकतंत्र और संविधान में उनकी आस्था बरक़रार रहे। यह बात आज भारतीय सूफी मुस्लिमो की छात्रो की संस्था मुस्लिम ��्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन ऑफ़ इंडिया (MSO) द्वारा आयोजित प्रोग्राम “भारतीय लोकतंत्र – चुनौतिया और अवसर” में जयपुर के उप-मुफ़्ती खालिद अय्यूब मिस्बाही ने कही.
उन्होंने कहा कि ISIS के उभार ने और वहाबी सलाफी विचारधारा ने युवाओ को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, इन संगठनों और विचारो ने सबसे ज्यादा जिस चीज़ को निशाना बनाया है वो है “लोकतान्त्रिक प्रणाली”. ISIS के वहाबी खिलाफ़त के निकट डेमोक्रेसी इस्लामी नज़रिए से वर्जित और हराम है लिहाज़ा जितने भी देश लोकतान्त्रिक तरीके से चल रहे हैं वो सब देशो में उनके हिसाब से जिहाद जायज़ है. भारत उनका सॉफ्ट टारगेट है. इसलिए भारतीय मुसलमानों को इस दिशा में बहुत जागरूक रहने की ज़रूरत है.
MSO के जयपुर ज़िला अध्यक्ष वसीम खान ने कहा कि भारत में दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ एक प्लानिंग के तहत ऐसे कार्यो का करना जिससे समुदाय के अन्दर आत्मविश्वास की कमी हो रही है जो चिंता का विषय है, मोब लिंचिंग की बढती वारदात से भी मुस्लिमो को हताशा और निराशा हुयी है, इसलिए ज़रूरी है कि सरकार विश्वास बहाली और मुस्लिम छात्रो के लिए विशेष सुविधा का ध्यान देना होगा.
मौलाना गुलाम मोईनुद्दीन इमाम जामा मस्जिद अहंगरान ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की व्यापकता, सुगमता, सरलता और बहुलता की प्रशंशा पुरे दुनिया में होती है क्युकी भारतीय लोकतंत्र में “मज़हबी आज़ादी, इस्लामिक देशो जैसे सऊदी अरब, क़तर, बहरीन , UAE आदि देशो से अधिक है.
गांधीवादी चिन्तक पंचशील जैन ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र में आप अपनी पसंद की सरकार चुन सकते है, जबकि बहुत से देश ऐसे है जिनमे अक्सर इस्लामी देश है वहाँ पर तानाशाही है, लोकतान्त्रिक मूल्यों का वहाँ कोई मतलब नहीं है.
सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ धीरज बेनीवाल ने कहा कि देश को प्रगति और विकास के लिए ज़रूरी है कि समाज में शांति और भाईचारा का माहौल स्थापित रहे, लेकिन अफ़सोस है कि कु�� संगठन धर्म के नाम पर समाज को बाटने का काम कर रहे है जो गलत है, हम सभी को ऐसे संगठनों और लोगो से दूर रहना होगा जो देश की सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ना चाहते है.
प्रोग्राम का सञ्चालन करते हुए MSO के मीडिया सचिव डॉ इमरान कुरैशी ने कहा कि मुसलमान ख़ासकर युवा चरित्र निर��माण पर बल दें, कट्टरवाद के प्रति सतर्क रहें, अपना करियर बनाएँ और समाज व देश की प्रगति में हिस्सा लें।
उन्होंने कहा कि देश में मुसलमान छात्रों के प्रतिनिधित्व के नाम पर कई कट्टरवादी संगठन चलते हैं जबकि एमएसओ सूफ़ीवाद पर आधारित संगठन है जो छात्रों के करियर और भविष्य बनाने के लिए तो प्रतिबद्ध है ही, साथ ही सामाजिक एकता, सामुदायिक भ्रातृत्व और देशप्रेम पर का संदेश देती है। इस मौक़े पर उन्होंने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. के सपनों के देश की कामना करते हुए देश में अमन की प्रार्थना की।
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हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः - २
हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः – २
हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः – २ कोई भी मनुष्य आम कोटिका हो सकता है, युग पुरुषसे ले कर वर्तमान शिर्ष नेता की संतान या तो खुद नेता भी आम कोटिका हो सकता है. “आम कोटिका मनुष्य” की पहेचान क्या है?
(कार्टुनीस्टका धन्यवाद) जो व्यक्ति आम विचार प्रवाहमें बह जाता है, या, जो व्यक्ति पूर्वग्रह का त्याग नहीं कर सकता, जो व्यक्ति विवेकशीलतासे सोच नहीं सकता, जिस…
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#अनीतिमत्ता#अभिषेक सींघवी#अर्बन नक्षली#आझम#आम कोटि#उफ़#कट्टरवादी मुस्लिम#कसाब#कोम्युनीस्ट#क्रीस्टल क्लीयर#चिदंबरं#जू तक नहीं रेंगती#जैसे थे#टूकडे टूकडे गेंग#तुलना करनेकी क्षमता#दीग्विजय#परिवर्तन#पित्रोडा#प्रयंका#मणी अय्यर#मनुष्यकी कोटि#ममता#महात्मा गांधी-फोबिया#महेश करकरे#माया#मूर्धन्य#मोतीलाल वोरा#मोदी-फोबिया#राहुल#विभाजनवादी
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….और अब मुसलमानों को नमाज़ पड़ने पर पाबंदी
कोई भी लोकतांत्रिक देश उसी वक्त सफल होता हैं जब उसमें रहने वाले लोगों को उनके क��नूनी व संवैधानिक अधिकार दिए जाए. उनक�� धार्मिक स्वतंत्र��ा की रक्षा की जाए और उनकी धार्मिक सभ्यताओं में किसी प्रकार की बाधा से परहेज़ किया जाए.
क़ानूनी अधिकारों के साथ सरकारें आंख-मिचौली खेलती नज़र आ रही है
हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, लेकिन आज़ादी के बाद से ही यहां बसने वाले अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम समुदाय के संवैधानिक व क़ानूनी अधिकारों के साथ सरकारें आंख-मिचौली खेलती आई हैं, लेकिन पिछले चार वर्षों में कट्टरपंथी संगठनों ने खुलकर देश के संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप का बीड़ा उठा रखा है. कहीं दबे तो कहीं खुले इन बदमाशों को सरकार और प्रशासन दोनों ने शह दे रक्खी है, जिसके कारण आज मुसलमानों की नमाज़ पर भी पाबंदी लगाई जा रही है..!!
संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन-
भारत का संविधान तीन मुख्य तत्वों पर आधारित है जो इस प्रकार हैं:
1. सोशलिस्ट (Socialist) यानी भारत एक समाजवादी देश होगा, किसी के लिए कुछ तखसीस (विशेष) नहीं होगा संविधान के दृष्टिकोण में अमीर व गरीब सभी बराबर होंगे.
2. धर्मनिरपेक्ष (Secular) यानी देश का संविधान धर्मनिरपेक्ष (गैर-मज़हबी) होगा यानी किसी खास धर्म का उस पर प्रभुत्व नहीं होगा. सरकार (कानून या प्रशासन) का अपना कोई धर्म नहीं होगा.
3. डेमोक्रेटिक (Democratic) यानी देश एक लोकतांत्रिक राज्य होगा सभी निर्णय सार्वजनिक और लोकतांत्रिक होंगे लोकतंत्र ही हर निर्णय के लिए मूल आधार होगा.
भारत के संविधान की धारा 25 और 28 के तहत मुसलमानों को अपने धर्म पर चलने, इबादत करने, धार्मिक रस्मो रिवाज और अपने धर्म के प्रचार व प्रकाशन की पूरी तरह से अनुमति हैैै और सरकार व प्रशासन को इस संवैधानिक अधिकार की सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए व संविधान का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़़ी कार्रवाई करना अनिवार्य है.
लेकिन यह कितना दुखद है कि जिस देश को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहा जाता हैं, आज उसी के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को अपनी मज़हबी इबादत करने से खुलेआम रोका जा रहा है. इससे भी अधिक शर्मनाक यह है कि इस घिनौने काम में सरकार और प्रशासन भी शामिल है.
नमाजों पर पाबंदी-
कानूनी तौर पर मुसलमानों को इबादत करने और इबादत स्थल (मस्जिद, मदरसा आदि) बनाने का पूरा संवैधानिक स्वतंत्रता प्राप्त है लेकिन यह केवल कागजों में है। तथ्य यह है कि आज मुसलमानों को इबादत स्थल बनाने से रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं.
मस्जिद के निर्माण और नमाज़ों में रूकावट की ख़बरें पूरे देश से प्राप्त हो रही हैं लेकिन भाजपा शासित राज्यों में बदमाश अधिक निरंकुश (ब��-लगाम) हो गए हैं, नमाज़ों का सबसे अधिक विरोध इस समय दिल्ली से कनेक्ट मेट्रो सिटी गुड़गांव हरियाणा में हो रहा हैं यहाँ RSS समर्थित हिंसक संगठन टोलीयाँ बनाकर मुसलमानों को नमाज़ करने से रोक रहे है.
गुड़गांव में खुलेआम गुंडागर्दी
गुड़गांव हरियाणा राज्य का एक व्यवसायिक शहर हैं और साइबर सिटी के नाम से जाना जाता हैं, यह शहर राजधानी दिल्ली से बहुत करीब हैं. इसी वजह से जहां कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां, बीपीओ (BPO) और प्राइवेट सेेेेक्टर की सैकड़ों कंपनियां चलती हैं. लेकिन पिछले कुछ महीनों से यह शहर कट्टरपंथी हिंदू संगठनों के हमलों के कारण सूर्खियों में रहा है.
शहर में जनसंख्या के अनुसार मस्जिदें न होने के कारण बहुत से लोग विभिन्न पार्क, खाली प्लाटों आदि में नमाज़ें अदा करते हैं. लेकिन अब यह हिंसक हिंदू संगठन इसके विरोध में उतर आए हैं की हम किसी भी कीमत पर नमाज़ें नहीं होने देंगे इसलिए अब इन लोगों ने नमाज़ियों पर हमले शुरु कर दिए हैं.
खुले में नमाज़ क्यों?
यहां एक सवाल यह है कि मुसलमान पार्कों, खाली प्लाटों में नमाज़ क्यों पढ़ते हैं? नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद क्यों नहीं जाते? कट्टरपंथी संगठनों के लोग भी एक आम हिंदू को यही कहकर बरगलाते हैं, लेकिन मूल स्थिति पर नज़र डालें ताकि सच्चाई खुलकर सामने आ सके:
-वर्तमान समय में, गुड़गांव की जनसंख्या लगभग 15 लाख है, जिसमें मुस्लिम आबादी लगभग तीन लाख है.
-शहर में काम के लिए बाहर से आने वाले मुस्लिम श्रमिक भी हैं, साथ ही साथ आस पास से आने वाले लोग भी हैं.
-इतने बड़े शहर में मुसलमानों की सिर्फ 13 मस्जिदें हैं, जिनमें मुश्किल से 1500 मुसलमान ही नमाज़ें पढ़ सकते हैं.
-औसतन 20 से 25 हज़ार की आबादी पर केवल एक मस्जिद हैं, जबकि सभी मस्जिदेंं मिलाकर भी 20 हज़ार लोग नमाज़ नहीं पढ़ पाते.
-इसी शहर के 19 मस्जिदों पर शहर के विभिन्न लोगों ने अवैध रूप से क़ब्ज़ा जमा रखा है और प्रशासन मौन धारण किए हुए है.
-नई मस्जिद बनाने पर प्रशासन ने प्रतिबंध लगा रखा है. (पत्रिका न्यूज़)
इस सभी विवरणों के प्रकाश में यह बताया जाए की मुसलमान क्या करें ??
उनकी मस्जिदों पर विभिन्न प्रकार के हीलो-बहानों से अवैध कब्ज़े कर लिए गए.
नई मस्जिद के निर्माण पर प्रशासन की तरफ से प्रतिबंध है.
तो अब मुसलमान अपनी इबादत कहां करें?
इसलिए मुसलमान मजबूर होकर पार्कों में नमाज़ पढ़ते हैं, हालांकि एक आम मुसलमान भी यह अच्छी तरह से जानता हैं कि नमाज़ का असली आनंद और अधिक सवाब (पुण्य) मस्जिद में ही है लेकिन ��तने बड़े शहर में मुसलमान अपनी मस्जिदों में इबादत करने से भी वंचित हैं.
नमाज़ीयों पर हो रहे हिंसक हमले:
पिछले कुछ महीनों से गुड़गांव और करीबी क्षेत्रों में निरंतर नमाज़ पढ़ने को लेकर हंगामा खड़ा किया जा रहा हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन की चुप्पी से उनके हौसले और मज़बूत हो रहे हैं, पिछले पांच महीनों में घटी कुछ प्रमुख घटनाओं पर नज़र ड़ालें:
-19 मई 2018 को भोरा कलाँ गांव में एक मज़ार पर रमज़ान का पहला जुमआ पढ़ने आए मुसलमानों को वहाँ मौजूद हिंदू संगठनों के 50 लोगों ने नमाज़ पढ़ने से रोका.
-2013 में इसी गांव में हिंदुओं ने एक साल तक मुसलमानों को नमाज़ नहीं पढ़ने दी.
-2014 में यहाँ नमाज़ शुरू हुई, लेकिन यह शर्त लगाई कि बाहरी इमाम नहीं होगा.
-नाथुपूर गांव में मुसलमानों ने नमाज़ के लिए एक जगह किराये पर प्राप्त की, लेकिन कट्टरवादी संगठनों ने घर के मालिक को धमकी दी और किरायेदारी को समाप्त करा दिया.
-अगस्त 2018 मेंं गुडगाँव सेक्टर 34 में मोलश्री मेट्रो स्टेशन के पास नमाज़ पढ़ रहे लोगों को पुलिस ने ज़बरदस्ती हटा दिया.
-28 अप्रैल 2018 को सेक्टर 53, सरस्वती कुंज में नमाज़ पढ़ी जा रही थी, तभी वहाँ हिंदू संगठन के लोग पहुँचे और जय श्रीराम के नारे लगाते हुए नमाज़ को रोका.
-शिवसेना गुड़गांव के अध्यक्ष गौतम सैनी का कहना हैं कि मुसलमानों के नमाज़ पढ़ने से लोग ड़रे हुए हैं! उनके इरादे ठीक नहीं हैं.
-20 अप्रैल को पारस अस्पताल के सामने नमाज़ पढ़ी जारही थी, लगभग 200 नमाज़ी वहाँ मौजूद थे. करीब दर्जनभर युवाओं का एक समूह भड़काऊ नारेबाज़ी करते हुए पहुंचा और जय श्रीराम के नारे लगाते हुए सभी नमाजियों को वहाँ से हटा दिया, हालांकि मुसलमानों ने धैर्य से काम लिया वरना 200 के सामने दर्जनभर लोग कुछ भी नहीं थे.
-गुड़गांव के शीतला कॉलोनी में मदीना मस्जिद को हिंदुओं की जानिब से माईक चलाने की शिकायत पर सील कर दिया गया.
शरारती तत्वों की इज्ज़त अफजाई
देश की आर्थिक हालात गंभीर हैं, बेरोज़गारी बढ़ रही हैं और युवा हर तरफ से निराश हैं, ऐसे माहोल में कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम नफ़रत का ज़हर घोलते व झूठा वातावरण तैयार करते हैं, मुस्लिम आबादी का ड़र दिखाकर झूठा प्रोपगंडा किया जाता है। मुस्लिम नफ़रत के चलते युवाओं को बरगलाकर मुसलमानों पर हमले कराए जाते हैं और हमलों के बाद उन्हें हिंदु रक्षक का खिताब देकर सम्मानित व पुरस्कृत किया जाता है.
स्थानीय प्रशासन में उनके छोटे-मोटे काम कराकर यह धारणा बनाई जाती है कि उनके इन्हीं कार्यों के कारण उनकी इज्जत व गरिमा और दबदबा है, जिसकी वजह से समाज में ऐसे बदमाशों को फलने फूलने ��ा मौका मिल रहा है। हाल ही के एक विवाद में एक पार्क में नमाजियों पर हमला करने के कारण छह कट्टरपंथियों को जेल जाना पड़ा, लेकिन जब वह ज़मानत पर रिहा हुए तो हिंदू संगठनों ने उनका शानदार स्वागत किया व जुलूस निकाला.
यही वो मीठा ज़हर है जिसकी चपेट में एक आम हिंदू युवा आ जाता है. बेरोज़गारी से चिंतित युवा को लगता हैं कि इस तरह के सांप्रदायिक कार्य से उसे समाज में इज्जत भी मिलेगी और प्रशासन में दबदबा मिलेगा यही कारण है कि युवा इस तरह के हिंसक कार्यों में ज़्यादा शामिल दिख रहे हैं.
ऐसे जोखिम भरे माहौल में गंभीर और शांति की सोच रखने वाले हिंदु माता-पिता और शांतिपूर्ण हिंदू संगठनों को चाहिए की वह अपने युवाओं को इस तरह के सांप्रदायिक कार्यों से दूर रखें, इस तरह के कार्यों से उनका कैरियर कहीं न कहीं बरबाद और भविष्य अंधकारमय हो रहा है.
गुड़गांव की आग दिल्ली तक:
वैसे तो गुड़गांव और दिल्ली के बीच सिर्फ 30 किलोमीटर का अंतर है, लेकिन दोनों शहरों की सीमाएँ अपने विस्तार के कारण एक दूसरे से मिल चुुुुकी हैं, इस लिए दिल्ली और गुड़गांव एक दूसरे का प्रभाव बहुत जल्दी स्वीकार कर लेते हैं, यही कारण है कि मस्जिदों पर प्रतिबंध की हवा अधिक तीव्रता के साथ गुड़गांव से दिल्ली तक पहुंची.
मुस्लिम बहुल इलाके सीलमपुर के ब्रह्मपूरी की गली नंबर 8 में मुसलमानों ने नमाज़ पढ़ने के लिए ख्वाजा मासूम वेलफेयर ट्रस्ट के तहत एक जगह ख़रीद कर नमाज़ों का सिलसिला शुरू किया, बस इसी बात पर इस गली के रहनेवाले हिंदू परिवारों ने कुछ शरारती तत्वों के बहकाने पर एक बड़ा षड्यंत्र रच डाला.
नमाज़ रोकने के लिए षड्यंत्र
नमाज़ और मस्जिद के निर्माण को रोकने के लिए इस गली के हिंदुओं ने शरारती तत्वों के बहकावे में आकर एक बड़ा षड्यंत्र रचा, जिसका सारांश इस प्रकार है:
इस गली में कुल 60 घर हैं जिनमें 13 घर हिंदुओं के और बाकी 47 घर मुसलमानों के हैं ।
साज़िश के तहत हिंदुओं ने अपने घरों के बाहर मकान बिकाऊ है के बोर्ड लगाऐ.
इसके बाद कट्टरवादी चैनल सुदर्शन टीवी का प्रतिनिधि वहां पहुुंचा और सभी मकान वालों से पूछा अचानक आप सब लोग एक साथ घर क्यों बेचना चाहते हैं?
जवाब में उन हिंदुओं ने कहा कि वह मुस्लिम पड़ोसियों से परेशान हैंं, वे यहाँ गली में आते जाते हैं, मोटर-साइकिल चलाते और शोर मचाते हैं.
सुदर्शन चैनल के बाद राष्ट्रीय स्तर के मीडिया चैनलों ने इस ख़बर को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया मुसलमानों के डर से घर छोड़ने पर मजबूर हुए हिंदू.
जैसे ही नेशनल मीडिया में यह ख़बर आई तो हलचल मच गई, न्यूज़ चैनलों पर मुसलमानों की गुंडागर्दी और ��िंदुओं पर उत्पीड़ना की ख़बरें गरदिश करने लगी. अंत में क्षेत्रीय विधायक और प्रशासन की उपस्थिति में दोनों पक्षों के बीच एक समझौता किया गया जो समझौते के नाम पर मुसलमानों का अपमान व रुसवाई का दस्तावेज़ है.
समझौता या जिल्लत नामा
हिंदु और मुस्लिम पक्षों के बीच जो समझौता हुआ वह एक तरफा और सरासर हिंदुओं की मर्ज़ी के मुताबिक किया गया मुस्लिम पक्ष की एक भी नहीं सुनी गई, बल्कि उन्हें ड़रा धमका कर उसी समझौते पर राज़ी होने के लिए मजबूर किया गया अब ज़रा इस समझौते की शर्तें पढ़ें और मुस्लिम समाज की बेचारगी देखें.
-समझौते के अनुसार मस्जिद के लिए खरीदी गई जगह को मस्जिद नहीं बनाया जा सकता.
-उस घर में सिर्फ 16 लोग ही नमाज़ पढ़ सकेंगे और वह 16 लोग भी उसी गली के होंगे कोई दूसरा मुसलमान यहाँ नमाज़ नहीं पढ़ सकता.
-उस घर को मदरसे में भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता.
– उस घर में कोई नया निर्माण बिना हिंदू पक्ष के सहमति के नहीं किया जा सकता है.
– नमाज़ पढ़नेवाले सभी लोगों का नाम पता रिकार्ड पर रखा जाएगा.
“इन शर्तों को पढ़कर आकलन लगाये कि समझौते में मुस्लिमों की कौनसी बातों को मनज़ूर किया गया?”
गली में तीन-चौथाई जनसंंख्या मुुुसलमानों की.
मकान मुसलमानों का लेकिन सिर्फ 13 हिंदु परिवारों ने मस्जिद बनाने से रोक दिया.
क्या किसी हिंदु बहुल क्षेत्र में अल्पसंख्यक मुुुस्लिम क्या किसी मंदिर का निर्माण रोक सकते हैं?
क्या प्रशासन इस तरह मुसलमानों की आपत्ति पर किसी मंदिर को बंद कर सकता है?
क्या अब नमाजियों की संख्या का चुनाव भी हिंदू लोग करेंगे?
क्या अब मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने वाले लोगों का बायोडाटा भी जमा किया जाएगा.
क्या इस तरह किसी मंदिर में पूजा करने वालों का रिकॉर्ड लिया जाता है?
इससे भी बड़ी शर्मनाक बात यह है की यह समझौता कराने वाले क्षेत्रीय विधायक खुद मुसलमान हैं लेकिन बुरा हो ऐसी राजनीति का जिसके कारण कौम के सम्मान व दीनी ग़ैरत का सौदा करने वालों में अपने ही किसी भाई का नाम दिखाई देता है.
मस्जिदों के लाउडस्पीकर से दिक्कत है तो मंदिरों से क्यों नहीं
आजकल मस्जिदों के खिलाफ़ लाउडस्पीकर को आसान हथियार बना लिया गया है, जिसे देखो मस्जिद के लाउडस्पीकर पर आपत्ति जताता हैककि इसके कारण हमारी नींद खराब होती है, लेकिन जिन लोगों की नींद मस्जिद की अज़ान से खराब हो जाती हैं वह लोग मंदिरों से बजने वाले लाउडस्पीकर पर क्यों चुप हैं !
काँवड़ यात्रा के दिनों में कान फोडू डीजे. (DJ) के साथ निकलनेवाले काँवडियों के शोर पर कोई कुछ नहीं बोलता.
हर दूसरे सप्ताह गली गली होने वाले “माता की चौकी” से किसी की नींद में बाधा क्यों नहीं आती ?
जगह जगह होनेवाले “माता के जग्राते” से क्या शोर नहीं होता ?
मस्जिद की अज़ान दो-तीन मिनट में पूरी हो जाती है, लेकिन मंदिरों, जग्रातों, काँवड़ और चौकीयों के लाउडस्पीकर रात रात भर चलते हैं लेकिन क्या आज तक किसी भी मुस्लिम ने इस पर आपत्ति जताई?
नहीं, क्योंकि मुसलमान किसी के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप पसंद नहीं करते, लेकिन शरारती तत्व हमेशा मुसलमानों के मज़हबी मामले में हस्तक्षेप करते हैं और आजकल यह सिलसिला तेज़ी के साथ बढ़ता जा रहा हैं.
सरकार और प्रशासन से अपील
किसी भी देश की प्रगती व निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है कि वहाँ बसने वाले लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हो, अन्यथा विकसित बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा.
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इसलिए इस देश को “शांति व इंसाफ़” का गहवारा भी बनायें, ताकि हर नागरिक देश के निर्माण और प्रगति में बढ़ चढ़ कर भाग ले सके.
संविधान में दिए कानूनी अधिकारों की रक्षा करना सरकार और प्रशासन की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है, इसलिए देश को संवैधानिक नींव पर आगे बढ़ायें.
किसी ख़ास धर्म को बेजा बढ़ावा देना और उस की बेजा हिमायत करना न्याय के खिलाफ है.
मुसलमानों को भी चाहिए की वह अपने मामलों में सभी कानूनी कार्रवाई पूरी करने के बाद ही कोई ऐलान या घोषणा करें और अपने बीच की काली भेड़ों को कभी राज़ की बातें न दें क्योंकि यही वह लोग हैं जो अपनी दुनिया बनाने के लिए दीन व कौम दोनों का सौदा करते हैं.
अपना सियासी लीडर भी किसी ग़ैरतमंद को ही चुनें, ताकी वह वक्त पढ़ने पर आपकी मजहबी ग़ैरत का खयाल रख सके, अन्यथा हर जगह इसी तरह की निराशा हाथ आएगी .
मौलाना गुलाम मुस्तफ़ा नईमी
लेख में व्यक्त किये गए विचार लेखक के निजी विचार है. उपरोक्त विचारों से सहमती जाताना जरूरी नही है.
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🚩100 वर्ष पहले भी यही घटना घटी थी, जागो भारतवासी!
18 अप्रैल 2021
🚩यति स्वामी नरसिंहानंदजी के विरुद्ध मौलवी-मौलाना फतवे जारी कर रहे हैं। कोई उनका सर कलम करने की मांग करता है, कोई सर कलम करनेवाले को लाखों देने की इच्छा प्रकट करता है। आज से ठीक 100 वर्ष पहले भी ऐसे ही फतवे स्वामी श्रद्धानन्द के विरुद्ध दिल्ली से लेकर लाहौर की मस्जिदों से दिए गये थे।
कारण था- स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा चलाया गया हिन्दू संगठन और शुद्धि आंदोलन। आधुनिक भारत में "शुद्धि" के सर्वप्रथम प्रचारक स्वामी दयानंद थे तो उसे आंदोलन के रूप में स्थापित कर सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने वाले स्वामी श्रद्धानन्द थे। सबसे पहली शुद्धि स्वामी दयानंद ने अपने देहरादून प्रवास के समय एक मुसलमान युवक की की थी जिसका नाम अलखधारी रखा गया था। स्वामीजी के निधन के पश्चात पंजाब में विशेष रूप से मेघ, ओड और रहतिये जैसी निम्न और पिछड़ी समझी जानेवाली जातियों का शुद्धिकरण किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य उनकी पतित, तुच्छ और निकृष्ट अवस्था में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार करना था।
🚩आर्यसमाज द्वारा चलाये गए शुद्धि आंदोलन का व्यापक स्तर पर विरोध हुआ क्योंकि हिन्दू जाति सदियों से कूपमण्डूक मानसिकता के चलते सोते रहना अधिक पसंद करती थी। आगरा और मथुरा के समीप मलकाने राजपूतों का निवास था जिनके पूर्वजों ने एकाध शताब्दी पहले ही इस्लाम की दीक्षा ली थी। मलकानों के रीति-रिवाज़ अधिकतर हिन्दू थे और चौहान, राठौड़ आदि गोत्र के नाम से जाने जाते थे। 1922 में क्षत्रिय सभा मलकानों को राजपूत बनाने का आवाहन कर सो गई मगर मुसलमानों में इससे पर्याप्त चेतना हुई एवं उनके प्रचारक गांव-गांव घूमने लगे। यह निष्क्रियता स्वामी श्रद्धानन्द की आँखों से छिपी नहीं रही। 11 फरवरी 1923 को भारतीय शुद्धि सभा की स्थापना करते समय स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा शुद्धि आंदोलन आरम्भ किया गया। स्वामीजी द्वारा इस अवसर पर कहा गया कि जिस धार्मिक अधिकार से मुसलमानों को तब्लीग़ और तंज़ीम का हक है उसी अधिकार से उन्हें अपने बिछुड़े भाइयों को वापिस अपने घरों में लौटाने का हक है। आर्यसमाज ने 1923 के अंत तक 30 हजार मलकानों को शुद्ध कर दिया।
🚩मुसलमानों में इस आंदोलन के विरुद्ध प्रचंड प्रतिकिया हुई। जमायत-उल-उलेमा ने बम्बई में 18 मार्च, 1923 को मीटिंग कर स्वामी श्रद्धानन्द एवं शुद्धि आंदोलन की आलोचना कर निंदा प्रस्ताव पारित किया। स्वामीजी की जान को खतरा बताया ��या मगर उन्होंने "परमपिता ही मेरे रक्षक हैं, मुझे किसी अन्य रखवाले की जरुरत नहीं है" कहकर निर्भीक सन्यासी होने का प्रमाण दिया। कांग्रेस के श्री राजगोपालाचारी, मोतीलाल नेहरू एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने धर्मपरिवर्तन को व्यक्ति का मौलिक अधिकार मानते हुए तथा शुद्धि के औचित्य पर प्रश्न करते हुए तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलन के सन्दर्भ में उसे असामयिक बताया। शुद्धि सभा गठित करने एवं हिन्दुओं को संगठित करने पर स्वामीजी का ध्यान 1912 में उनके कलकत्ता प्रवास के समय आकर्षित हुआ था जब कर्नल यू. मुखर्जी ने 1911 की जनगणना के आधार पर यह सिद्ध किया कि अगले 420 वर्षों में हिन्दुओं की अगर इसी प्रकार से जनसँख्या कम होती गई तो उनका अस्तित्व मिट जायेगा। इस समस्या से निपटने के लिए हिन्दुओं का संगठित होना आवश्यक था और संगठित होने के लिए स्वामीजी का मानना था कि हिन्दू समाज को अपनी दुर्बलताओं को दूर करना चाहिए। सामाजिक विषमता, जातिवाद, दलितों से घृणा, नारी उत्पीड़न आदि से जब तक हिन्दू समाज मुक्ति नहीं पा लेगा तब तक हिन्दू समाज संगठित नहीं हो सकता।
🚩इस बीच हिन्दू और मुसलमानों के मध्य खाई बराबर बढ़ती गई। 1920 के दशक में भारत में भयंकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। केरल के मोपला, पंजाब के मुल्तान, कोहाट, अमृतसर, सहारनपुर आदि दंगों ने अंतर को और बढ़ा दिया। इस समस्या पर विचार करने के लिए 1923 में दिल्ली में कांग्रेस ने एक बैठक का आयोजन किया जिसकी अध्यक्षता स्वामीजी को करनी पड़ी। मुसलमान नेताओं ने इस वैमनस्य का कारण स्वामीजी द्वारा चलाये गए शुद्धि आंदोलन और हिन्दू संगठन को बताया। स्वामीजी ने सांप्रदायिक समस्या का गंभीर और तथ्यात्मक विश्लेषण करते हुए दंगों का कारण मुसलमानों की संकीर्ण सांप्रदायिक सोच को बताया। इसके पश्चात भी स्वामीजी ने कहा कि मैं आगरा से शुद्धि प्रचारकों को हटाने को तैयार हूँ अगर मुस्लिम उलेमा अपने तब्लीग के मौलवियों को हटा दें। परन्तु मुस्लिम उलेमा नहीं माने।
🚩इसी बीच स्वामीजी को ख्वाजा हसन निज़ामी द्वारा लिखी पुस्तक 'दाइए-इस्लाम' पढ़कर हैरानी हुई। इस पुस्तक को चोरी छिपे केवल मुसलमानों में उपलब्ध करवाया गया था। स्वामीजी के एक शिष्य ने अफ्रीका से इसकी प्रति स्वामीजी को भेजी थी। इस पुस्तक में मुसलमानों को हर अच्छे-बुरे तरीके से हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की अपील निकाली गई थी। हिन्दुओं के घर-मुहल्लों में जाकर औरतों को चूड़ी बेचने से, वैश्याओं को ग्राहकों में, नाई द्वारा बाल काटते हुए इस्लाम का प्रचार करने एवं मुसलमान बनाने के लिए कहा गया था। विशेष रूप से 6 करोड़ दलि��ों को मुसलमान बनाने के लिए कहा गया था जिससे मुसलमान जनसँख्या में हिन्दुओं के बराबर हो जाएं और उससे राजनैतिक अधिकारों की अधिक माँग की जा सके। स्वामीजी ने निज़ामी की पुस्तक का पहले "हिन्दुओं सावधान, तुम्हारे धर्म दुर्ग पर रात्रि में छिपकर धावा बोला गया है" के नाम से अनुवाद प्रकाशित किया एवं इसका उत्तर "अलार्म बेल अर्थात खतरे का घंटा" के नाम से प्रकाशित किया। इस पुस्तक में स्वामीजी ने हिन्दुओं को छुआछूत का दमन करने और समान अधिकार देने को कहा जिससे मुसलमान लोग दलितों को लालच भरी निगाहों से न देखें। इस बीच कांग्रेस के काकीनाड़ा के अध्यक्षीय भाषण में मुहम्मद अली ने 6 करोड़ अछूतों को आधा-आधा हिन्दू और मुसलमान के बीच बाँटने की बात कहकर आग में घी डालने का काम किया।
🚩महात्मा गांधी भी स्वामीजी के गंभीर एवं तार्किक चिंतन को समझने में असमर्थ रहे एवं उन्होंने यंग इंडिया के 29 मई, 1925 के अंक में 'हिन्दू-मुस्लिम तनाव: कारण और निवारण' शीर्षक से एक लेख में स्वामीजी पर अनुचित टिप्पणी कर डाली। उन्होंने लिखा "स्वामी श्रद्धानन्दजी भी अब अविश्वास के पात्र बन गये हैं। मैं जानता हूँ कि उनके भाषण प्राय: भड़काने वाले होते हैं। दुर्भाग्यवश वे यह मानते हैं कि प्रत्येक मुसलमान को आर्य धर्म में दीक्षित किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार अधिकांश मुसलमान सोचते हैं कि किसी-न-किसी दिन हर गैरमुस्लिम इस्लाम को स्वीकार कर लेगा। श्रद्धानन्दजी निडर और बहादुर हैं। उन्होंने अकेले ही पवित्र गंगातट पर एक शानदार ब्रह्मचर्य आश्रम (गुरुकुल) खड़ा कर दिया है।"
🚩स्वामीजी सधे क़दमों से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। एक ओर मौलाना अब्दुल बारी द्वारा दिए गए बयान जिसमें इस्लाम को न मानने वालो को मारने की वकालत की गई थी के विरुद्ध महात्मा गांधीजी की प्रतिक्रिया पक्षपातपूर्ण थी। गांधीजी अब्दुल बारी को 'ईश्वर का सीधा-सादा बच्चा' और 'एक दोस्त' के रूप में सम्बोधित करते थे जबकि स्वामीजी द्वारा की गई इस्लामी कट्टरता की आलोचना उन्हें अखरती थी। गांधीजी ने कभी भी मुसलमानों की कट्टरता की आलोचना नहीं की और न ही उनके दोषों को उजागर किया। इसके चलते कट्टरवादी सोचवाले मुसलमानों का मनोबल बढ़ता गया एवं सत्य और असत्य के मध्य वे भेद करने में असफल हो गए। मुसलमानों में स्वामीजी के विरुद्ध तीव्र प्रचार का यह फल निकला कि एक मतान्ध व्यक्ति अब्दुल रशीद ने बीमार स्वामी श्रद्धानन्द को गोली मार दी और उनका तत्काल देहांत हो गया।
🚩स्वामीजी का उद्देश्य विशुद्ध धार्मिक था ना कि राजनीतिक। हिन्दू समाज में समानता उनका लक्ष्य था। अछूतोद्धार, शिक्षा एवं नारी जाति में जागरण कर वह एक महान समाज की स्थापना करना चाहते थे। आज समस्त हिन्दू समाज का यह कर्तव्य है कि उनके द्वारा छोड़े गए शुद्धि चक्र को पुन: चलाये। यह तभी संभव होगा जब हम मन से दृढ़ निश्चय करें कि आज हमें जातिवाद को मिटाना है और हिन्दू जाति को संगठित करना है।
इन 100 वर्षों में अपने महान पूर्वजों के बलिदान से हमने क्या सीखा? यह यक्ष प्रश्न है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर स्वामी नरसिंहानंदजी के बयान के बाद से हम क्यों मौन हैं? हमारा कर्तव्य हमें क्या स्मरण करवा रहा है? यह आपको सोचना होगा। माँ भारती की पुकार सुनो, हे वीर महारथियों के पुत्रों। - डॉ.विवेक आर्य
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आइये जान लीजिए कि भारत में, ‘डरे’ हुए मुस्लिम कैसे फैला रहे हैं ‘खौफ’
आइये जान लीजिए कि भारत में, ‘डरे’ हुए मुस्लिम कैसे फैला रहे हैं ‘खौफ’
08 August 2018 http://azaadbharat.org
भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों व मुगल लुटेरों ने, भारत में आकर, तलवार की नोक पर हिन्दुओं का, जबरन धर्मपरिवर्तन करवाकर उन्हें मुस्लिम बना दिया ।
सुब्रमण्यम स्वामी आज भी दावा करते है कि कोई भी मुसलमान यदि DNA करवाएगा तो वो हिन्दू ही निकलेगा, फिर भी धर्मपरिवर्तन के बाद, जो मुसलमान मजहब की परंपरा चल पड़ी है, वे मुगलों की तरह कट्टरवादी ही…
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वर्षपूर्ती एका आगळ्या निर्णयाची
अमेरिकेचे अध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प यांनी मुस्लिम देशांतील नागरिकांच्या आगमनावर बंदी घातली त्या आदेशाला जानेवारी महिन्यात एक वर्ष पूर्ण होत आहे. सूत्रे स्वीकारल्यानंतर केवळ तीन आठवड्यांच्या आत, 27 जानेवारी रोजी, ट्रम्प यांनी कार्यकारी आदेशावर स्वाक्षरी केली आणि सात देशांतून येणाऱ्या लोकांच्या संख्येवर मर्यादा घातली होती. कट्टरवादी इस्लामच्या विरोधात कारवाई म्हणून अमेरिकेचे सात देशांतील निर्वासितांवर…
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जन-गण-मन यात्रा पर निकले जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर तीन हफ्ते में आठ बार हमले हो चुके हैं। 27 फरवरी को पटना के गांधी मैदान में इस यात्रा का समापन होना है। लेकिन जैसे-जैसे यह दिन करीब आ रहा है, नीतीश सरकार, बीजेपी और जनता दल (यूनाइटेड) में बेचैनी बढ़ती जा रही है। वजह भी हैः कन्हैया की सभाओं में दिनोंदिन भीड़ बढ़ती ही जा रही है।
यह वही कन्हैया हैं, जिन्हें कट्टरवादी बयानों के लिए चर्चित बीजेपी के गिरिराज सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय सीट पर हराया था। सत्ता में बैठे लोगों को लग रहा था कि कन्हैया कुमार फिलहाल तो दोबारा शायद ही उठ पाएं। यात्रा के दौरान भीड़ को देख अब उन्हें चिंता है कि यही हाल रहा, तो कहीं विधानसभा चुनाव की बाजी न पलट जाए।
एक्टिविस्ट निवेदिता झा कहती भी हैं कि केंद्र सरकार की मंशा अल्पसंख्यकों को परेशान करने की है। इसलिए, कन्हैया की बुलंद आवाज लोगों को अंतिम आस के रूप में दिख रही है। बढ़ती भीड़ और संगठनों के समर्थन से केंद्र और बिहार सरकारों के समर्थकों की बौखलाहट ही हमले के रूप में सामने आ रहे हैं लेकिन इससे हौसला घट नहीं रहा ��ल्कि और बढ़ ही रहा है।
केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों से परेशान लोगों, खास तौर से सीएए के खिलाफ आंदोलित मुसलमानों, की भारी भीड़ इन सभाओं में जुट रही है। वामपंथी और मुस्लिम संगठन ही नहीं, अल्पसंख्यकों के लिए काम करने वाले दर्जनों एनजीओ और स्वयंसेवी संगठन कन्हैया कुमार के समर्थन में उतर चुके हैं। बड़बोले गिरिराज सिंह के बोलों ने भी कन्हैया और उनकी टीम के पक्ष में माहौल बना दिया है।
जब वामपंथी संगठनों ने इस यात्रा के समर्थन में अपील जारी की तो नीतीश सरकार ने उन सभी जिलों से रिपोर्ट मंगाई है, जहां-जहां कन्हैया पर हमले हुए। इसमें भी कहा गया है कि हर हमले के बाद कन्हैया के समर्थकों की तादाद बढ़ने की बात आ रही है। नीतीश इन हमलों के दौरान ढिलाई बरतने वाले अफसरों पर गाज गिराकर अपनी चमड़ी बचाने की कोशिश कर सकते हैं।
दरअसल नीतीश को भ्रम है कि बीजेपी के साथ रहने के बावजूद अल्पसंख्यकों के बीच उनकी व्यक्तिगत छवि अच्छी है। नीतीश ने पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के दल के रूप में अल्पसंख्यकों के नजदीक जाने में कसर नहीं छोड़ी थी। बाद में कुर्सी कायम रखते हुए दोबारा एनडीए में शामिल होने के बावजूद वह अल्पसंख्यकों को जताने की कोशिश करते रहे हैं कि वह बीजेपी को उनके खिलाफ कुछ भी करने से रोक रहे हैं।
कन्हैया संभलकर कर रहे प्रहार
14 फरवरी को बक्सर से आरा जाने के क्रम में हुए हमले के तत्काल बाद कन्हैया ने एक ट्वीट में कहाः “गोडसे के प्रेमियों ने आरा में सभा से एक रात पहले आग भले लगा दी लेकिन इंकलाब किसी मंच का मोहताज नहीं। मैं म���हब्बत का कारवां लेकर आगे बढ़ता जाऊंगा।” अगले दिन जहानाबाद में कन्हैया ने कहा कि हम सिर्फ सीएए नहीं, एनआरसी और एनपीआर की साजिश के खिलाफ उतरे हैं। आज देश इस हालात में है कि संविधान प्रदत्त अधिकार मांगिए तो देशद्रोह का मुकदमा कर दिया जा रहा है। हमारे जैसे लोग निकलें तो ईंट-पत्थर फेंक कर डराने की कोशिश हो रही है, लेकिन इससे हमारा हौसला बुलंद ही हो रहा है।
उन्होंने कहा कि देश में 12 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सरकार नौकरियों में पेंशन खत्म कर रही है और नेताओं को आजीवन पेंशन दे रही है। पांच साल में 3.16 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं। बिहार से लोग काम के अभाव में पलायन कर रहे हैं। सरकार के पास तो महज 30 फीसदी जमीनों का कागज है और हम से पूर्वजों के कागजात मांगे जा रहे हैं।
यात्रा के 18वें दिन 16 फरवरी को कन्हैया ने नालंदा-शेखपुरा में कहाः “हम सावरकर का नहीं बल्कि ��गत सिंह और आंबेडकर के सपनों का भारत बनाना चाहते हैं। अगर सीएए के सहारे आप हमें भारत का नागरिक मानने से इनकार करते हैं तो हम आपको सरकार नहीं मानते हैं। संसद में नरेंद्र मोदी के पास बहुमत है लेकिन सड़क पर बहुमत हमारे साथ है। संविधान की मूल भावना के खिलाफ सरकार जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव कर रही है और यह देश की आम अवाम को बर्दाश्त नहीं है।” इसी तरह नालंदा में कन्हैया ने सीधे अमित शाह पर हमला बोल दिया। उन्होंने कहाः “अगर धर्म के आधार पर नागरिकता ली जाएगी तो, अमित शाह, हम भी तुमको बता देते हैं कि हम बिहार की धरती के हैं। हम भी छठी का दूध याद दिला देंगे।”
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इस्लाम में योग पर उठते सवालों को सऊदी अरब का करारा जवाब
इस्लाम में योग पर उठते सवालों को सऊदी अरब का करारा जवाब
नई दिल्ली। भारत में योग सिखाने को लेकर पिछले दिनों रांची की एक लड़की राफिया नाज पर मुस्लिम कट्टरपंथियों ने जमकर निशाना साधा था। कहा जा रहा था कि जो काम वह कर रही है वह सब इस्लाम के खिलाफ है। लेकिन इन सभी के उलट इस्लाम की जन्मस्थली सऊदी अरब ने योग को खेलकूद का दर्जा देकर अपनी कट्टरवादी सोच को बदलने का सराहनीय कदम उठाया है। सऊदी अरब का यह कदम दुनिया के सभी इस्लामी देशों के साथ साथ भारत में…
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….और अब मुसलमानों को नमाज़ पड़ने पर पाबंदी
कोई भी लोकतांत्रिक देश उसी वक्त सफल होता हैं जब उसमें रहने वाले लोगों को उनके कानूनी व संवैधानिक अधिकार दिए जाए. उनकी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की जाए और उनकी धार्मिक सभ्यताओं में किसी प्रकार की बाधा से परहेज़ किया जाए.
क़ानूनी अधिकारों के साथ सरकारें आंख-मिचौली खेलती नज़र आ रही है
हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, लेकिन आज़ादी के बाद से ही यहां बसने वाले अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम समुदाय के संवैधानिक व क़ानूनी अधिकारों के साथ सरकारें आंख-मिचौली खेलती आई हैं, लेकिन पिछले चार वर्षों में कट्टरपंथी संगठनों ने खुलकर देश के संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप का बीड़ा उठा रखा है. कहीं दबे तो कहीं खुले इन बदमाशों को सरकार और प्रशासन दोनों ने शह दे रक्खी है, जिसके कारण आज मुसलमानों की नमाज़ पर भी पाबंदी लगाई जा रही है..!!
संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन-
भारत का संविधान तीन मुख्य तत्वों पर आधारित है जो इस प्रकार हैं:
1. सोशलिस्ट (Socialist) यानी भारत एक समाजवादी देश होगा, किसी के लिए कुछ तखसीस (विशेष) नहीं होगा संविधान के दृष्टिकोण में अमीर व गरीब सभी बराबर होंगे.
2. धर्मनिरपेक्ष (Secular) यानी देश का संविधान धर्मनिरपेक्ष (गैर-मज़हबी) होगा यानी किसी खास धर्म का उस पर प्रभुत्व नहीं होगा. सरकार (कानून या प्रशासन) का अपना कोई धर्म नहीं होगा.
3. डेमोक्रेटिक (Democratic) यानी देश एक लोकतांत्रिक राज्य होगा सभी निर्णय सार्वजनिक और लोकतांत्रिक होंगे लोकतंत्र ही हर निर्णय के लिए मूल आधार होगा.
भारत के संविधान की धारा 25 और 28 के तहत मुसलमानों को अपने धर्म पर चलने, इबादत करने, धार्मिक रस्मो रिवाज और अपने धर्म के प्रचार व प्रकाशन की पूरी तरह से अनुमति हैैै और सरकार व प्रशासन को इस संवैधानिक अधिकार की सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए व संविधान का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़़ी कार्रवाई करना अनिवार्य है.
लेकिन यह कितना दुखद है कि जिस देश को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहा जाता हैं, आज उसी के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को अपनी मज़हबी इबादत करने से खुलेआम रोका जा रहा है. इससे भी अधिक शर्मनाक यह है कि इस घिनौने काम में सरकार और प्रशासन भी शामिल है.
नमाजों पर पाबंदी-
कानूनी तौर पर मुसलमानों को इबादत करने और इबादत स्थल (मस्जिद, मदरसा आदि) बनाने का पूरा संवैधानिक स्वतंत्रता प्राप्त है लेकिन यह केवल कागजों में है। तथ्य यह है कि आज मुसलमानों को इबादत स्थल बनाने से रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं.
मस्जिद के निर्माण और नमाज़ों में रूकावट की ख़बरें पूरे देश से प्राप्त हो रही हैं लेकिन भाजपा शासित राज्यों में बदमाश अधिक निरंकुश (बे-लगाम) हो गए हैं, नमाज़ों का सबसे अधिक विरोध इस समय दिल्ली से कनेक्ट मेट्रो सिटी गुड़गांव हरियाणा में हो रहा हैं यहाँ RSS समर्थित हिंसक संगठन टोलीयाँ बनाकर मुसलमानों को नमाज़ करने से रोक रहे है.
गुड़गांव में खुलेआम गुंडागर्दी
गुड़गांव हरियाणा राज्य का एक व्यवसायिक शहर हैं और साइबर सिटी के नाम से जाना जाता हैं, यह शहर राजधानी दिल्ली से बहुत करीब हैं. इसी वजह से जहां कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां, बीपीओ (BPO) और प्राइवेट सेेेेक्टर की सैकड़ों कंपनियां चलती हैं. लेकिन पिछले कुछ महीनों से यह शहर कट्टरपंथी हिंदू संगठनों के हमलों के कारण सूर्खियों में रहा है.
शहर में जनसंख्या के अनुसार मस्जिदें न होने के कारण बहुत से लोग विभिन्न पार्क, खाली प्लाटों आदि में नमाज़ें अदा करते हैं. लेकिन अब यह हिंसक हिंदू संगठन इसके विरोध में उतर आए हैं की हम किसी भी कीमत पर नमाज़ें नहीं होने देंगे इसलिए अब इन लोगों ने नमाज़ियों पर हमले शुरु कर दिए हैं.
खुले में नमाज़ क्यों?
यहां एक सवाल यह है कि मुसलमान पार्कों, खाली प्लाटों में नमाज़ क्यों पढ़ते हैं? नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद क्यों नहीं जाते? कट्टरपंथी संगठनों के लोग भी एक आम हिंदू को यही कहकर बरगलाते हैं, लेकिन मूल स्थिति पर नज़र डालें ताकि सच्चाई खुलकर सामने आ सके:
-वर्तमान समय में, गुड़गांव की जनसंख्या लगभग 15 लाख है, जिसमें मुस्लिम आबादी लगभग तीन लाख है.
-शहर में काम के लिए बाहर से आने वाले मुस्लिम श्रमिक भी हैं, साथ ही साथ आस पास से आने वाले लोग भी हैं.
-इतने बड़े शहर में मुसलमानों की सिर्फ 13 मस्जिदें हैं, जिनमें मुश्किल से 1500 मुसलमान ही नमाज़ें पढ़ सकते हैं.
-औसतन 20 से 25 हज़ार की आबादी पर केवल एक मस्जिद हैं, जबकि सभी मस्जिदेंं मिलाकर भी 20 हज़ार लोग नमाज़ नहीं पढ़ पाते.
-इसी शहर के 19 मस्जिदों पर शहर के विभिन्न लोगों ने अवैध रूप से क़ब्ज़ा जमा रखा है और प्रशासन मौन धारण किए हुए है.
-नई मस्जिद बनाने पर प्रशासन ने प्रतिबंध लगा रखा है. (पत्रिका न्यूज़)
इस सभी विवरणों के प्रकाश में यह बताया जाए की मुसलमान क्या करें ??
उनकी मस्जिदों पर विभिन्न प्रकार के हीलो-बहानों से अवैध कब्ज़े कर लिए गए.
नई मस्जिद के निर्माण पर प्रशासन की तरफ से प्रतिबंध है.
तो अब मुसलमान अपनी इबादत कहां करें?
इसलिए मुसलमान मजबूर होकर पार्कों में नमाज़ पढ़ते हैं, हालांकि एक आम मुसलमान भी यह अच्छी तरह से जानता हैं कि नमाज़ का असली आनंद और अधिक सवाब (पुण्य) मस्जिद में ही है लेकिन इतने बड़े शहर में मुसलमान अपनी मस्जिदों में इबादत करने से भी वंचित हैं.
नमाज़ीयों पर हो रहे हिंसक हमले:
पिछले कुछ महीनों से गुड़गांव और करीबी क्षेत्रों में निरंतर नमाज़ पढ़ने को लेकर हंगामा खड़ा किया जा रहा हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन की चुप्पी से उनके हौसले और मज़बूत हो रहे हैं, पिछले पांच महीनों में घटी कुछ प्रमुख घटनाओं पर नज़र ड़ालें:
-19 मई 2018 को भोरा कलाँ गांव में एक मज़ार पर रमज़ान का पहला जुमआ पढ़ने आए मुसलमानों को वहाँ मौजूद हिंदू संगठनों के 50 लोगों ने नमाज़ पढ़ने से रोका.
-2013 में इसी गांव में हिंदुओं ने एक साल तक मुसलमानों को नमाज़ नहीं पढ़ने दी.
-2014 में यहाँ नमाज़ शुरू हुई, लेकिन यह शर्त लगाई कि बाहरी इमाम नहीं होगा.
-नाथुपूर गांव में मुसलमानों ने नमाज़ के लिए एक जगह किराये पर प्राप्त की, लेकिन कट्टरवादी संगठनों ने घर के मालिक को धमकी दी और किरायेदारी को समाप्त करा दिया.
-अगस्त 2018 मेंं गुडगाँव सेक्टर 34 में मोलश्री मेट्रो स्टेशन के पास नमाज़ पढ़ रहे लोगों को पुलिस ने ज़बरदस्ती हटा दिया.
-28 अप्रैल 2018 को सेक्टर 53, सरस्वती कुंज में नमाज़ पढ़ी जा रही थी, तभी वहाँ हिंदू संगठन के लोग पहुँचे और जय श्रीराम के नारे लगाते हुए नमाज़ को रोका.
-शिवसेना गुड़गांव के अध्यक्ष गौतम सैनी का कहना हैं कि मुसलमानों के नमाज़ पढ़ने से लोग ड़रे हुए हैं! उनके इरादे ठीक नहीं हैं.
-20 अप्रैल को पारस अस्पताल के सामने नमाज़ पढ़ी जारही थी, लगभग 200 नमाज़ी वहाँ मौजूद थे. करीब दर्जनभर युवाओं का एक समूह भड़काऊ नारेबाज़ी करते हुए पहुंचा और जय श्रीराम के नारे लगाते हुए सभी नमाजियों को वहाँ से हटा दिया, हालांकि मुसलमानों ने धैर्य से काम लिया वरना 200 के सामने दर्जनभर लोग कुछ भी नहीं थे.
-गुड़गांव के शीतला कॉलोनी में मदीना मस्जिद को हिंदुओं की जानिब से माईक चलाने की शिकायत पर सील कर दिया गया.
शरारती तत्वों की इज्ज़त अफजाई
देश की आर्थिक हालात गंभीर हैं, बेरोज़गारी बढ़ रही हैं और युवा हर तरफ से निराश हैं, ऐसे माहोल में कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम नफ़रत का ज़हर घोलते व झूठा वातावरण तैयार करते हैं, मुस्लिम आबादी का ड़र दिखाकर झूठा प्रोपगंडा किया जाता है। मुस्लिम नफ़रत के चलते युवाओं को बरगलाकर मुसलमानों पर हमले कराए जाते हैं और हमलों के बाद उन्हें हिंदु रक्षक का खिताब देकर सम्मानित व पुरस्कृत किया जाता है.
स्थानीय प्रशासन में उनके छोटे-मोटे काम कराकर यह धारणा बनाई जाती है कि उनके इन्हीं कार्यों के कारण उनकी इज्जत व गरिमा और दबदबा है, जिसकी वजह से समाज में ऐसे बदमाशों को फलने फूलने का मौका मिल रहा है। हाल ही के एक विवाद में एक पार्क में नमाजियों पर हमला करने के कारण छह कट्टरपंथियों को जेल जाना पड़ा, लेकिन जब वह ज़मानत पर रिहा हुए तो हिंदू संगठनों ने उनका शानदार स्वागत किया व जुलूस निकाला.
यही वो मीठा ज़हर है जिसकी चपेट में एक आम हिंदू युवा आ जाता है. बेरोज़गारी से चिंतित युवा को लगता हैं कि इस तरह के सांप्रदायिक कार्य से उसे समाज में इज्जत भी मिलेगी और प्रशासन में दबदबा मिलेगा यही कारण है कि युवा इस तरह के हिंसक कार्यों में ज़्यादा शामिल दिख रहे हैं.
ऐसे जोखिम भरे माहौल में गंभीर और शांति की सोच रखने वाले हिंदु माता-पिता और शांतिपूर्ण हिंदू संगठनों को चाहिए की वह अपने युवाओं को इस तरह के सांप्रदायिक कार्यों से दूर रखें, इस तरह के कार्यों से उनका कैरियर कहीं न कहीं बरबाद और भविष्य अंधकारमय हो रहा है.
गुड़गांव की आग दिल्ली तक:
वैसे तो गुड़गांव और दिल्ली के बीच सिर्फ 30 किलोमीटर का अंतर है, लेकिन दोनों शहरों की स���माएँ अपने विस्तार के कारण एक दूसरे से मिल चुुुुकी हैं, इस लिए दिल्ली और गुड़गांव एक दूसरे का प्रभाव बहुत जल्दी स्वीकार कर लेते हैं, यही कारण है कि मस्जिदों पर प्रतिबंध की हवा अधिक तीव्रता के साथ गुड़गांव से दिल्ली तक पहुंची.
मुस्लिम बहुल इलाके सीलमपुर के ब्रह्मपूरी की गली नंबर 8 में मुसलमानों ने नमाज़ पढ़ने के लिए ख्वाजा मासूम वेलफेयर ट्रस्ट के तहत एक जगह ख़रीद कर नमाज़ों का सिलसिला शुरू किया, बस इसी बात पर इस गली के रहनेवाले हिंदू परिवारों ने कुछ शरारती तत्वों के बहकाने पर एक बड़ा षड्यंत्र रच डाला.
नमाज़ रोकने के लिए षड्यंत्र
नमाज़ और मस्जिद के निर्माण को रोकने के लिए इस गली के हिंदुओं ने शरारती तत्वों के बहकावे में आकर एक बड़ा षड्यंत्र रचा, जिसका सारांश इस प्रकार है:
इस गली में कुल 60 घर हैं जिनमें 13 घर हिंदुओं के और बाकी 47 घर मुसलमानों के हैं ।
साज़िश के तहत हिंदुओं ने अपने घरों के बाहर मकान बिकाऊ है के बोर्ड लगाऐ.
इसके बाद कट्टरवादी चैनल सुदर्शन टीवी का प्रतिनिधि वहां पहुुंचा और सभी मकान वालों से पूछा अचानक आप सब लोग एक साथ घर क्यों बेचना चाहते हैं?
जवाब में उन हिंदुओं ने कहा कि वह मुस्लिम पड़ोसियों से परेशान हैंं, वे यहाँ गली में आते जाते हैं, मोटर-साइकिल चलाते और शोर मचाते हैं.
सुदर्शन चैनल के बाद राष्ट्रीय स्तर के मीडिया चैनलों ने इस ख़बर को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया मुसलमानों के डर से घर छोड़ने पर मजबूर हुए हिंदू.
जैसे ही नेशनल मीडिया में यह ख़बर आई तो हलचल मच गई, न्यूज़ चैनलों पर मुसलमानों की गुंडागर्दी और हिंदुओं पर उत्पीड़ना की ख़बरें गरदिश करने लगी. अंत में क्षेत्रीय विधायक और प्रशासन की उपस्थिति में दोनों पक्षों के बीच एक समझौता किया गया जो समझौते के नाम पर मुसलमानों का अपमान व रुसवाई का दस्तावेज़ है.
समझौता या जिल्लत नामा
हिंदु और मुस्लिम पक्षों के बीच जो समझौता हुआ वह एक तरफा और सरासर हिंदुओं की मर्ज़ी के मुताबिक किया गया मुस्लिम पक्ष की एक भी नहीं सुनी गई, बल्कि उन्हें ड़रा धमका कर उसी समझौते पर राज़ी होने के लिए मजबूर किया गया अब ज़रा इस समझौते की शर्तें पढ़ें और मुस्लिम समाज की बेचारगी देखें.
-समझौते के अनुसार मस्जिद के लिए खरीदी गई जगह को मस्जिद नहीं बनाया जा सकता.
-उस घर में सिर्फ 16 लोग ही नमाज़ पढ़ सकेंगे और वह 16 लोग भी उसी गली के होंगे कोई दूसरा मुसलमान यहाँ नमाज़ नहीं पढ़ सकता.
-उस घर को मदरसे में भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता.
– उस घर में कोई नया निर्माण बिना हिंदू पक्ष के सहमति के नहीं किया जा सकता है.
– नमाज़ पढ़नेवाले सभी लोगों का नाम पता रिकार्ड पर रखा जाएगा.
“इन शर्तों को पढ़कर आकलन लगाये कि समझौते में मुस्लिमों की कौनसी बातों को मनज़ूर किया गया?”
गली में तीन-चौथाई जनसंंख्या मुुुसलमानों की.
मकान मुसलमानों का लेकिन सिर्फ 13 हिंदु परिवारों ने मस्जिद बनाने से रोक दिया.
क्या किसी हिंदु बहुल क्षेत्र में अल्पसंख्यक मुुुस्लिम क्या किसी मंदिर का निर्माण रोक सकते हैं?
क्या प्रशासन इस तरह मुसलमानों की आपत्ति पर किसी मंदिर को बंद कर सकता है?
क्या अब नमाजियों की संख्या का चुनाव भी हिंदू लोग करेंगे?
क्या अब मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने वाले लोगों का बायोडाटा भी जमा किया जाएगा.
क्या इस तरह किसी मंदिर में पूजा करने वालों का रिकॉर्ड लिया जाता है?
इससे भी बड़ी शर्मनाक बात यह है की यह समझौता कराने वाले क्षेत्रीय विधायक खुद मुसलमान हैं लेकिन बुरा हो ऐसी राजनीति का जिसके कारण कौम के सम्मान व दीनी ग़ैरत का सौदा करने वालों में अपने ही किसी भाई का नाम दिखाई देता है.
मस्जिदों के लाउडस्पीकर से दिक्कत है तो मंदिरों से क्यों नहीं
आजकल मस्जिदों के खिलाफ़ लाउडस्पीकर को आसान हथियार बना लिया गया है, जिसे देखो मस्जिद के लाउडस्पीकर पर आपत्ति जताता हैककि इसके कारण हमारी नींद खराब होती है, लेकिन जिन लोगों की नींद मस्जिद की अज़ान से खराब हो जाती हैं वह लोग मंदिरों से बजने वाले लाउडस्पीकर पर क्यों चुप हैं !
काँवड़ यात्रा के दिनों में कान फोडू डीजे. (DJ) के साथ निकलनेवाले काँवडियों के शोर पर कोई कुछ नहीं बोलता.
हर दूसरे सप्ताह गली गली होने वाले “माता की चौकी” से किसी की नींद में बाधा क्यों नहीं आती ?
जगह जगह होनेवाले “माता के जग्राते” से क्या शोर नहीं होता ?
मस्जिद की अज़ान दो-तीन मिनट में पूरी हो जाती है, लेकिन मंदिरों, जग्रातों, काँवड़ और चौकीयों के लाउडस्पीकर रात रात भर चलते हैं लेकिन क्या आज तक किसी भी मुस्लिम ने इस पर आपत्ति जताई?
नहीं, क्योंकि मुसलमान किसी के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप पसंद नहीं करते, लेकिन शरारती तत्व हमेशा मुसलमानों के मज़हबी मामले में हस्तक्षेप करते हैं और आजकल यह सिलसिला तेज़ी के साथ बढ़ता जा रहा हैं.
सरकार और प्रशासन से अपील
किसी भी देश की प्रगती व निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है कि वहाँ बसने वाले लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हो, अन्यथा विकसित बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा.
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इसलिए इस देश को “शांति व इंसाफ़” का गहवारा भी बनायें, ताकि हर नागरिक देश के निर्माण और प्रगति में बढ़ चढ़ कर भाग ले सके.
संविधान में दिए कानूनी अधिकारों की रक्षा करना सरकार और प्रशासन की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है, इसलिए देश को संवैधानिक नींव पर आगे बढ़ायें.
किसी ख़ास धर्म को बेजा बढ़ावा देना और उस की बेजा हिमायत करना न्याय के खिलाफ है.
मुसलमानों को भी चाहिए की वह अपने मामलों में सभी कानूनी कार्रवाई पूरी करने के बाद ही कोई ऐलान या घोषणा करें और अपने बीच की काली भेड़ों को कभी राज़ की बातें न दें क्योंकि यही वह लोग हैं जो अपनी दुनिया बनाने के लिए दीन व कौम दोनों का सौदा करते हैं.
अपना सियासी लीडर भी किसी ग़ैरतमंद को ही चुनें, ताकी वह वक्त पढ़ने पर आपकी मजहबी ग़ैरत का खयाल रख सके, अन्यथा हर जगह इसी तरह की निराशा हाथ आएगी .
मौलाना गुलाम मुस्तफ़ा नईमी
लेख में व्यक्त किये गए विचार लेखक के निजी विचार है. उपरोक्त विचारों से सहमती जाताना जरूरी नही है.
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source http://hindi-news.krantibhaskar.com/latest-news/hindi-news/ajab-gajab-news/viral-news/27164/
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अधिकतर मुस्लिम खेती नहीं करते पर कृषि उत्पादों की दलाली करते। * गाय नहीं पालते पर गाय खाने को लार टपकाते हैं। * गंदगी के अम्बार लगाते पर सफाई कर्मचारी नहीं बनते। * चैरिटेबल चिकित्सालय नहीं खोलते पर सरकारी अस्पतालों में सबसे अधिक इन्हीं की भीड़ लगी रहती हैं। * फौज में भर्ती नहीं होते पर फौजियों पर गोलीयां और पत्थर बरसाते हैं। * बातें इमान की करतें हैं पर अपराधियों में 98% यही होते हैं। * राष्ट्र से सुविधाएं और सुरक्षा चाहते हैं पर राष्ट्र को मानते नहीं हैं या काफी बाद में रखते हैं। * बात बेबात पर फतवे जारी करते हैं पर कानून तोड़ने वाले सबसे ज्यादा यही लोग होते हैं। * भाई चारे की बात करते हैं लेकिन सभी आतंकवादी इसी समुदाय के होते हैं। * इस्लाम की तारीफ़ में बाते बड़े-बड़े कसीदे पढतें हैं और कहते है इस्लाम अमन (शांत्ति) का मजहब है जबकि सच यह है कि शुरू से ही सारी दुनिया में इस्लाम दहशत, अशांति, खून-खराबा और आतंकवाद फैलता आया है और फैला रहा है। * कुर्बानी हलाला, तीन तल्लाक,चार चार शादी, 10-12 बच्चे जैसी जाहिली का शौक फरमाते हैं लेकिन बात कुराने पाक की करते हैं। इस्लाम की अमन (पीस) शांत्ति तो मानो ऐसी है कि कहीं से भी कभी भी किसी भी समय बम के या गोली के रूप में बरस जाती है और वह शांत्ति आकरण ही निर्दोष लोगो की ह्त्या कर देती है और यह सब इस्लाम के जिहादी, कट्टरवादी और आतंकवादी केवल किसी इस्लामिक दलाल के बहकाये में आकर जन्नत (जहन्नुम) और वहां पर मिलने वाली 72 हूरे पाने के लिए या दिलाने के लिए करते हैं.... वाह कितना महान है इस्लाम....??
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