#जैसे थे
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sanjaydass9 · 23 days ago
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swimmingartisannut · 3 months ago
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leftkidllama · 3 months ago
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sakshiiiisingh · 2 years ago
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cybergardenturtle · 1 year ago
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी क��शी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय व��शाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
#SantRampalJiMaharaj
#trending
#viralpost
अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" App Play Store से डाउनलोड करें और "Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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electroniccyclecupcake · 3 months ago
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#RadhaSoamiExposed
#Radhasoami #Radhasoamiji #Radhasoamisatsangbeas #Radhasoamiderabeas #radhaswami #derabeas #derasachasauda
#SantRampalJiMaharaj
🧩राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे। राधास्वामी पंथ दुनिया भर में लाखों लोगों को गुमराह कर रहा है। यह एक तथ्य है।
अधिक जानकारी के लिए यूट्यूब पर सर्च करें "परमात्मा साकार है या निराकार? | RadhaSoami Vs Sant Rampal Ji
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taapsee · 3 months ago
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#राधास्वामी_निगुरा_पंथ
राधास्वामी
संस्थापक शिव दयाल जी महाराज कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया,
"राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे
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baiju-bawara · 9 months ago
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Altaf Raja is a type of guy who can summarise my dating life in just one section of his song... Like when he said...
जब तुम से इत्तफ़ाक़न मेरी नज़र मिली थी
अब याद आ रहा है, शायद वो January थी 😏
तुम यूँ मिली दुबारा फिर माह-ए-February में
जैसे कि हमसफ़र हो तुम राह-ए-जिंदगी में 🤫
कितना हसीं ज़माना आया था March लेकर
राह-ए-वफ़ा पे थी तुम वादों की torch लेकर 🤗
बाँधा जो अहद-ए-उल्फ़त, April चल रहा था
दुनिया बदल रही थी, मौसम बदल रहा था 🥰
लेकिन May जब आई, जलने लगा ज़माना
हर शख़्स की ज़बाँ पर था बस यही फ़साना 😤
दुनियां के डर से तुमने बदली थी जब निगाहें
था June का महीना, लब पे थी गर्म आहे 😕
July में जो तुमने की बातचीत कुछ कम
थे आसमाँ पे बादल और मेरी आँखें पुर-नम 🥺
माह-ए-August में जब बरसात हो रही थी
बस आँसुओं की बारिश दिन-रात हो रही थी 😭
कुछ याद आ रहा है, वो माह था September
भेजा था तुमने मुझको तर्क-ए-वफ़ा का letter 😮‍💨
तुम गैर हो रही थी, October आ गया था
दुनिया बदल चुकी थी, मौसम बदल चुका था 🙁
जब आ गया November, ऐसी भी रात आई
मुझसे तुम्हें छुड़ाने सजकर बारात आई 😔
बेकैफ था December, जज़्बात मर चुके थे
मौसम था सर्द उसमें, अरमाँ बिखर चुके थे 😖
लेकिन ये क्या बताऊँ, अब हाल दूसरा है 🤕
अरे, वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है। 😝🫡
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tum toh tehre pardesi saath kya nibhaoge...
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brijpal · 3 months ago
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#GodNightTuesday
जो सत्य भक्ति शास्त्र अनुकूल नहीं करते, वे साधु वेश
बनाकर ऐसे माँगते फिरते हैं जैसे कुत्ता टूक-रोटी
के लिए सत्तर घरों में जाता है।
जैसे अन्य जाति वाले नट-पेरणें, कांजर व सांशी लोग रोटी के लिए भटकते थे। यदि साधु भी ऐसे ही करता है तो उसकी साधना में त्रुटि है।
📲अधिक जानकारी के लिए Download our official App "Saint Rampal Ji Maharaj " In Googal Playstore से।
अवश्य देखें साधना चैनल शाम 07:30 बजे।
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lucifar7000 · 2 months ago
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कानपुर वाले घर में मेरी मां, पापा और छोटी बहन रहती थी. मेरी बहन का नाम सुषमा है. उम्र में वो मुझसे तीन साल छोटी है. वो घर में सबकी लाडली है. ये कहानी जो मैं आप लोगों को आज बताने जा रहा हूं, यह करीबन दो साल पुरानी है.
उस वक्त मेरी बहन ने अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की थी. पढ़ाई में हम दोनों भाई-बहन ही अच्छे थे. एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी बहन अब जॉब की तलाश में थी.
चूंकि मैं हैदराबाद जैसे बड़े शहर में रह रहा था तो मैंने उससे कहा कि तुम मेरे ही शहर में जॉब ढूंढ लो. मेरी यह बात मेरे माता-पिता को भी ठीक लगी. मेरे शहर में रहने से उनको भी अपनी बेटी की सेफ्टी की चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी.
हैदराबाद में पी.जी. रूम लेकर मैं रह रहा था. मगर अब सुषमा भी साथ में रहने वाली थी तो मैंने एक बीएचके वाला फ्लैट ले लिया. कुछ दिन के बाद बहन भी मेरे साथ मेरे फ्लैट में शिफ्ट हो गई.
सुषमा के बारे में आपको बता दूं कि वो काफी खुलकर बात करने वालों में से है. उसकी हाइट 5.6 फीट है और मेरी हाइट 6 फीट के लगभग है. मेरी बहन के बदन की बात करूं तो उसकी गांड काफी उठी हुई है. जब वो अपनी कमर को लचकाते हुए चलती है तो किसी भी मर्द को घायल कर सकती है.
मेरी बहन का फीगर 36-30-38 का है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसकी चूचियां भी कितनी बड़ी होंगी. उसकी चूचियां हमेशा उसके कपड़ों से बाहर झांकती रहती थीं. मैंने सुना था कि जवान लड़की की चूत चुदाई होने के बाद उसकी चूचियों का साइज भी बढ़ जाता है.
अपनी बहन की चूचियों को देख कर कई बार मेरे मन में ख्याल आता था कि कहीं यह भी अपनी चूत चुदवा रही होगी. मगर मैं इस बारे म���ं विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता था. मेरी बहन खुले विचारों वाली थी तो दोनों तरह की बात हो सकती थी.
जब वो मेरे साथ फ्लैट में रहने लगी तो अभी उसके पास जॉब वगैरह तो थी नहीं. वो अपना ज्यादातर समय फ्लैट पर ही बिताती थी. मैं सुबह ही अपने काम पर निकल जाता था. पूरा दिन फ्लैट पर रह कर वो बोर हो जाती थी.
एक रोज वो कहने लगी कि वो सारा दिन फ्लैट पर रह कर बोर हो चुकी है. उसका मन कहीं बाहर घूमने के लिए कर रहा था. उसने मुझसे कहीं बाहर घूमने चलने के लिए कहा.मैंने कह दिया कि हम लोग मेरी छुट्टी वाले दिन चलेंगे.
फिर वीकेंड पर मैंने अपनी बहन के साथ बाहर घूमने का प्लान किया. अभी तक मेरे मन में मेरी बहन के लिए कोई गलत ख्याल नहीं था. हम लोग पास के ही एक मॉल में घूमने के लिए गये. मेरी बहन उस दिन पूरी तैयार होकर बाहर निकली थी.
उसके कुर्ते में उसकी चूचियां पूरे आकार में दिखाई दे रही थीं. हम लोगों ने साथ में घूमते हुए काफी मस्ती की और फिर घर वापस लौटने लगे. मगर रास्ते में बारिश होने लगी. इससे पहले कि हम लोग बारिश से बचने के लिए कहीं रुकते, हम दोनों ऊपर से लेकर नीचे तक पूरे भीग चुके थे.
बारिश काफी तेज थी इसलिए मैंने सोचा कि बारिश रुकने का इंतजार करना ही ठीक रहेगा. हम दोनों बाइक रोक कर एक मकान के छज्जे के नीचे खड़े हो गये. सुषमा के बदन पर मेरी नजर गई तो मैं चाह कर भी खुद को उसे ताड़ने से नहीं रोक पाया.
उसकी मोटी चूचियों की वक्षरेखा, जिस पर पानी की बूंदें बहती हुई अंदर जा रही थी, मेरी नजरों से कुछ ही इंच की दूरी पर थी. उसको देख कर मेरे लौड़े में अजीब सी सनसनी होने लगी. मैंने उसकी सलवार की तरफ देखा तो उसकी भीगी हुई गांड और जांघें देख कर मेरे लंड में और ज्यादा हलचल होने लगी.
मैं बहाने से उसको घूरने लग गया था. ऐसा मेरे साथ पहली बार हो रहा था. फिर कुछ देर के बाद बारिश रुक गयी और हम अपने फ्लैट के लिए निकल गये. उस दिन के बाद से मेरी बहन के लिए मेरा नजरिया बदल गया था.
अपनी बहन की चूचियों को मैं घूरने लगा था. बहन की गांड को ताड़ना अब मेरी आदत बन चुकी थी. मेरी हाइट उससे ज्यादा थी तो जब भी वो मेरे सामने आती थी उसकी चूचियां ऊपर से मुझे दिखाई दे जाती थीं. कई बार हंसी-मजाक में मैं उसको गुदगुदी कर दिया करता था.
इस बहाने से मैं उसकी चूचियों को छेड़ दिया करता था. कभी उसकी गांड को सहला देता था. यह सब हम दोनों के बीच में अब नॉर्मल सी बात हो गई थी. जब भी वो नहा कर बाहर आती थी तो वह तौलिया में होती थी. ऐसे मौके पर मैं जानबूझकर उसके आस-पास मंडराने लगता था.
जब मैं उसके साथ छेड़खानी करता था तो वो मेरी ��र हरकत को नोटिस किया करती थी. उसको मेरी हरकतें पसंद आती थीं. इस बात का पता मुझे भी था. जब भी मैं उसको छेड़ता था तो वो मेरी हरकतों को हंसी में टाल दिया करती थी.
वो भी कभी-कभी मुझे यहां-वहां से छूती रहती थी. कई बार तो उसका हाथ मेरे लंड पर भी लग जाता था या फिर यूं समझें कि वो मेरे लंड बहाने से छूने की कोशिश करने लगी थी. अब आग दोनों तरफ शायद बराबर की ही लगी हुई थी.
ऐसे ही मस्ती में दिन कट रहे थे. एक दिन की बात है कि मैं उस दिन ऑफिस से जल्दी आ गया. हम दोनों के पास ही फ्लैट की एक-एक चाबी रहती थी. मैंने बाहर से ही लॉक खोल लिया था.
जब मैं अंदर गया तो उस वक्त सुषमा बाथरूम के अंदर से नहा कर बाहर आ रही थी. मैंने उसे देख लिया था मगर उसकी नजर मुझ पर नहीं पड़ी थी. उसने अपने बदन पर केवल एक टॉवल लपेटा हुआ था.
Nangi Behan
वो सीधी कबॉर्ड की तरफ जा रही थी. मैं भी उसको जाते हुए देख रहा था. अंदर जाकर उसने अलमारी से एक ब्रा और पैंटी को निकाला. उसने अपना टॉवल उतार कर एक तरफ डाल दिया. बहन के नंगे चूतड़ मेरे सामने थे.
मेरे सामने ही वो ब्रा और पैंटी पहनने लगी. उसका मुंह दूसरी तरफ था इसलिए उसकी नंगी चूत और चूचियां मैं नहीं देख पाया. मगर जल्दी ही उसको किसी के होने का आभास हो गया और वो पीछे मुड़ गई.
जैसे ही उसने मुझे देखा वो जोर से चिल्लाई और मैं भी घबरा कर बाहर हॉल में आ गया. कुछ देर के बाद वो कपड़े पहन कर बाहर आई और मुझ पर गुस्सा होते हुए कहने लगी कि भैया आपको नॉक करके आना चाहिए था.
मैंने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा- अगर मैं नॉक करके आता तो क्या तुम मुझे वैसे ही अंदर आने देती?उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया. मैं समझ गया कि उसकी इस खामोशी में उसकी हां छुपी हुई है.
अब मैंने थोड़ी हिम्मत की और उसके करीब आकर उसको अपनी बांहों में भर लिया. वो मेरी तरफ हैरानी से देख रही थी. मैंने उसकी आंखों में देखा और देखते ही देखते हम दोनों के होंठ आपस में मिल गये. मैंने उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया.
पहले तो मेरी बहन दिखावटी विरोध करती रही. फिर कुछ पल के बाद ही उसने विरोध करना बंद कर दिया. शायद उसको भी इस बात का अंदाजा था कि आज नहीं तो कल ये सब होने ही वाला है. इसलिए अब वो मेरा पूरा साथ दे रही थी.
दस मिनट तक हम दोनों एक दूसरे के होंठों को पीते रहे. उसके बाद मैंने उसके कपड़ों उतारना शुरू कर दिया. उसका टॉप उतारा और उसको ब्रा में कर दिया. फिर मैंने उसकी जीन्स को खोला और उसकी जांघों को भी नंगी कर दिया.
अब मैंने उसकी ब्रा को खोलते हुए उसकी चूचियों को नंगी कर दिया. उसकी मोटी चूचियां मेरे सामने नंगी हो चुकी थीं. उसकी चूचियों को मैंने अपने हाथों में भर लिया.
उसके नर्म-नर्म गोले अपने हाथ में भर कर मैंने उनको दबा दिया. अब एक हाथ से उसकी एक चूची को दबाते हुए मैं दूसरे हाथ को नीचे ले गया. उसकी पैंटी के अंदर एक उंगली डाल कर मैंने उसकी चूत को कुरेद दिया.
बहन की चूत पानी छोड़ कर गीली हो रही थी. मैंने उसकी चूत को कुरेदना जारी रखा. उसका हाथ अब मेरे लंड पर आ गया था. मेरा लंड भी पूरा तना हुआ था. वो अब मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही पकड़ कर सहला रही थी.
मैं भी उत्तेजित हो चुका था और मैंने अपनी पैंट को खोल दिया. पैंट नीचे गिर गयी. सुषमा ने मेरी पैन्ट को मेरी टांगों में से निकलवा दिया. वो अब खुद ही आगे बढ़ रही थी. उसने मेरे अंडरवियर को भी निकाल दिया.
मेरे लंड को पकड़ कर वो उसकी मुठ मारने लगी. मैं तो पागल ही हो उठा. मैं उसकी चूचियों को जोर से भींचने लगा. फिर मैंने झुक कर उसकी चूचियों को मुंह में भर लिया और उसके निप्पलों को काटने लगा.
इतने में ही मेरी बहन ने अपनी पैन्टी को खुद ही नीचे कर लिया. उसकी चूत अब नंगी हो गई थी. मैं उसकी चूचियों को चूस रहा था. उसके निप्पलों को काट रहा था. बीच-बीच में चूचियों के निप्पलों को दो उंगलियों के बीच में लेकर दबा रहा था.
सुषमा अब काफी उत्तेजित हो गई थी. अचानक ही वो मेरे घुटनों के बीच में बैठ गई और अपने घुटनों के बल होकर उसने मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया. मेरी बहन मस्ती से मेरे 8 इंची लंड को चूसने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे उसको मेरा लंड बहुत पसंद है.
वो जोर से मेरे लंड को चूसती रही और मेरे मुंह से अब उत्तेजना के मारे जोर की आवाजें सिसकारियों के रूप में बाहर आने लगीं. आह्ह … सुषमा, मेरी बहन, मेरे लंड को इतना क्यों तड़पा रही हो!मैंने उसके सिर को पकड़ कर अपने लंड पर अंदर दबाना और घुसाना शुरू कर दिया.
दो-तीन मिनट तक लंड को चुसवाने के बाद मैं स्खलन के करीब पहुंच गया. मैंने बहन के मुंह में लंड को पूरा घुसेड़ दिया और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारी बहन के मुंह में जाकर गिरने लगी.
मेरी बहन मेरा सारा माल पी गयी. मैंने उसको बेड पर लिटा लिया और उसकी चूत में उंगली करने लगा. वो तड़पने लगी. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी. मगर उसकी चूत की चुदाई शायद पहले भी हो चुकी थी. चूत भले ही टाइट थी लेकिन कुंवारी चूत की बात ही अलग होती है. मुझे इस बात का अन्दाजा हो गया था.
मैं उसकी चूत को चाटने लगा. उसकी चूत का सारा रस मैंने चाट लिया.जब उससे बर्दाश्त न हुआ तो वो कहने लगी- भैया, अब चोद दो मुझे… आह्ह … अब और नहीं रुका जा रहा मुझसे.मैंने उसकी चूत में अन्दर तक जीभ घुसेड़ दी और वो मेरे मुंह को अपनी चूत पर जोर से दबाने लगी.
फिर मैंने मुंह हटा लिया. अब उसकी टांगों को मैंने बेड पर एक दूसरे की विपरीत दिशा में फैला दिया. बहन की चूत पर अपने लंड को रख दिया और रगड़ने लगा. मेरा लंड फिर से तनाव में आ गया. देखते ही देखते मेरा पूरा लंड तन गया.
मैंने अपने तने हुए लंड के सुपाड़े को चूत पर रखा और एक झटका दिया. पहले ही झटके में लंड को आधे से ज्यादा उसकी चूत में घुसा दिया. वो दर्�� से चिल्ला उठी- उम्म्ह… अहह… हय… याह…मगर मैं अब रुकने वाला नहीं था. मैंने लगातार उसकी चूत में झटके देना शुरू कर दिया. बहन की चूत की चुदाई शुरू हो गई.
सुषमा की चूत में अब मेरा पूरा लंड जा रहा था. वो भी अब मजे से मेरे लंड को अंदर तक लेने लगी थी. मैं पूरे लंड को बाहर निकाल कर फिर से पूरा लंड अंदर तक डाल रहा था. दोनों को ही चुदाई का पूरा आनंद मिल रहा था.
अब मैंने उसको बेड पर घोड़ी बना दिया और पीछे से उसकी चूत में लंड को पेलने लगा. उसकी चूत में लंड घुसने की गच-गच आवाज होने लगी. मेरे लंड से भी कामरस निकल रहा था और उसकी चूत भी पानी छोड़ रही थी इसलिए चूत से पच-पच की आवाज हो रही थी.
फिर मैंने उसको सीधी किया और उसके मुंह में लंड दे दिया. मेरे लंड पर उसकी चूत का रस लगा हुआ था. वो फूल चुके लंड को चूसने-चाटने लगी. उसकी लार मेरे लंड पर ऊपर से नीचे तक लग गई.
अब दोबारा से मैंने उसकी टांगों को फैलाया और उसकी चूत में जोर से अपने लंड के धक्के लगाने लगा. पांच मिनट तक इसी पोजीशन में मैंने उसकी चूत को चोदा और वो झड़ गई. अब मेरा वीर्य भी दोबारा से निकलने के कगार पर पहुंच गया था.
मैंने उसकी चूत में तेजी के साथ धक्के लगाना शुरू कर दिया. उसकी चूत मेरे लंड को पूरा का पूरा अंदर ले रही थी. फिर मैंने दो-तीन धक्के पूरी ताकत के साथ लगाये और मैं अपनी बहन की चूत में ही झड़ने लगा. उसकी चूत को मैंने अपने वीर्य से भर दिया.
हम दोनों थक कर शांत हो गये. उस दिन हम दोनों नंगे ही पड़े रहे. शाम को उठे और फिर खाना खाया. उसके बाद रात में एक बार फिर से मैंने अपनी बहन की चूत को जम कर चोदा. उसने भी मेरे लंड को चूत में लेकर पूरा मजा लिया और फिर हम सो गये.
उस दिन के बाद से हम भाई-बहन में अक्सर ही चुदाई होने लगी. अब उसको मेरे साथ रहते हुए काफी समय हो गया है लेकिन हम दोनों अभी भी चुदाई करते हैं. मुझे तो आज भी ये सोच कर विश्वास नहीं होता है कि मैं इतने दिनों से अपनी बहन की चूत की चुदाई कर रहा हूं.
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radhadasi26363 · 23 days ago
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पूर्रे गुरु ग्रन्थ साहेब में कहीं प्रमाण नहींहै कि श्री नानक जी, परमेश्वर कबीर जी केगुरु जी थे। जैसे गुरु ग्रन्थ साहेब आदरणीयतथा प्रमाणित है, ऐसे ही पवित्र कबीर सागरभी आदरणीय तथा प्रमाणित सद्ग्रन्थ है तथाश्री गुरुग्रन्थ साहेब से पहले का है। इसीलिएतो सैंकड़ों वाणी 'कबीर सागर सद्ग्रन्थ सेगुरु ग्रन्थ साहिब में ली गई हैं।पवित्र कबीर सागर में विस्तृत विवरण हैनानक जी तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी कीवार्ता का तथा श्री नानक जी के पूज्य गुरुदेवकबीर परमेश्वर जी थे।
#हक्काकबीर_करीम_तू
WahWah Kabir Guru Pura
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helputrust · 3 months ago
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लखनऊ, 29.08.2024 | हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद जी की जन्म जयंती पर देशभर में आज राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जा रहा हैं | इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड ��ैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में “श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि” कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ0 रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने मेजर ध्यानचंद जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें सादर नमन किया ।
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, “ध्यानचंद जी ने अपने खेल जीवन में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते - 1928, 1932 और 1936 में | उनके खेल का स्तर इतना ऊँचा था कि उन्हें देखने वाले लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे । विरोधी टीमें उनकी हॉकी ��्टिक और गेंद के साथ उनकी अद्भुत संगति से स्तब्ध रह जाती थीं । उनकी खेल शैली ऐसी थी कि यह कहा जाता था कि गेंद उनके स्टिक से चिपक जाती थी और वे उसे अपनी मर्जी से किसी भी दिशा में भेज सकते थे । उनके खेल का जादू ऐसा था कि उनकी तुलना दुनिया के महानतम खिलाड़ियों से की जाती थी । ध्यानचंद जी को उनके महान योगदान के लिए 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया । उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं । उनके खेल ने न केवल हॉकी को लोकप्रिय बनाया, बल्कि भारतीय युवाओं को भी यह सिखाया कि खेल केवल जीत का साधन नहीं, बल्कि जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो अनुशासन, समर्पण और ईमानदारी सिखाता हैं । आज उनकी जयंती पर हम उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए यह संकल्प करें कि हम भी अपने जीवन में उसी तरह के समर्पण और लगन को अपनाएंगे जैसे ध्यानचंद जी ने अपनाया था । उनकी स्मृति हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेगी और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर हम सब चलने का प्रयास करेंगे ।“
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swimmingartisannut · 3 months ago
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mangesh1982 · 5 days ago
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🔥 *दिव्य धर्म यज्ञ दिवस सेवा* 🔥
🥥दिव्य धर्म यज्ञ दिवस क्या है?
दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी के पीर शेखतकी व अन्य धार्मिक मुल्ला काजियों ने ईर्ष्याव�� कबीर साहेब को काशी से भगाने के लिए उनके नाम का झूठा निमंत्रण पत्र पूरे भारतवर्ष में प्रचारित कर दिया। निमंत्रण पत्र में लिखा कि कबीर पुत्र नीरू काशी में तीन दिन तक भंडारा (लंगर) करेगा। भोजन करने वाले को प्रत्येक बार भं��ारा करने पर एक मोहर व एक दोहर दिया जायेगा। भोजन में सात प्रकार की मिठाई, खीर, पूरी, हलवा, दही बड़े, आदि मिष्ठान बनाए जायेंगे। भंडारे में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सुखा सीधा भी दिया जायेगा। यह निमंत्रण पाकर दूर दूर से साधु संत आने लगे और उन्होंने तीन दिन भंडारा किया।
🥥दिव्य धर्म यज्ञ दिवस क्या है?
विक्रमी संवत् 1570 (सन 1513) में परमेश्वर कबीर जी ने काशी में 18 लाख साधु संतों को भंडारा करवाया था जो 3 दिन तक कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष को प्रारंभ हुआ था मंगसर (माघशीर्ष) के कृष्ण पक्ष एकम (प्रथमा) को सम्पन्न हुआ था।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में दिव्य धर्म यज्ञ दिवस 14, 15, और 16 नवंबर 2024 को मनाया जायेगा।
🥥दिव्य धर्म यज्ञ दिवस क्या है?
केशव बंजारे का रुप बदलकर आए कबीर परमेश्वर जी
ने विक्रमी संवत् 1570 (सन 1513) में18 लाख महात्माओं को विश्वविख्यात काशी नगर में धार्मिक भंडारा करवाकर भोजन कराया था। आज वही दिव्य धर्म भंडारा संत रामपाल जी महाराज जी के संचालन में देश के दस सतलोक आश्रमों में किया जा रहा है।
🥥दिव्य धर्म यज्ञ दिवस क्या है?
काशी नगर में पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी ने तीन दिनों तक खुला भंडारा आयोजित किया था। इसी के उपलक्ष्य में 14 नवंबर से प्रारंभ होने वाले विशाल भंडारे व धार्मिक आयोजन की संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों द्वारा देश के दस सतलोक आश्रमों में तैयारियां जोरों शोरों से चल रही है। इस तीन दिवसीय विशाल धर्म भंडारे में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओ के जुटने का अनुमान लगाया जा रहा है l 
🥥दिव्य धर्म यज्ञ दिवस क्या है?
विक्रमी संवत् 1570 (सन 1513) में कबीर परमेश्वर
केशव बंजारे का वेश धारण करके अमर लोक यानी सतलोक से नौ लाख बोरी में भंडारा सामग्री बैलों पर रखकर व एक लाख सेवादारों के साथ कांशी नगर आए। केशव बंजारे रूप में आए परमात्मा ने काशी नगर में अद्भुत भंडारे का आयोजन किया। चाहे कितना भी खाओ कोई रोक टोक नहीं, वहा मिठाई, लड्डू, जलेबी, चावल, खीर, हलवा, आदि कढ़ाहो के ढेर की ढेर लगे थे, मानो कुबेर का भंडार ही धरती पर आ गया हो। 
🥥दिव्य धर्म यज्ञ दिवस परमात्मा कबीर साहेब जी द्वारा किए गए उस दिव्य चमत्कार का स्मरण
विक्रमी संवत 1570 (सन् 1513) में कबीर जी ने काशी में 18 लाख साधु-संतों के लिए तीन दिवसीय भंडारे का आयोजन किया। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष में प्रारंभ हुआ यह भंडारा मंगसर (माघशीर्ष) की कृष्ण पक्ष एकम (प्रथमा) को सम्पन्न हुआ। यह आयोजन उन लोगों के झूठे निमंत्रण के कारण हुआ था, जो कबीर साहेब से ईर्ष्या रखते थे और इस असंभव भंडारे को उनके लिए चुनौती मानते थे। क��ीर साहेब ने केशव बंजारे का रूप धारण कर सतलोक से सारी सामग्री मंगवाई और साधु-संतों को तीन दिन तक भोजन करवाकर यह चमत्कार पूर्ण किया। आज संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में उनके अनुयायियों द्वारा इस दिवस को दिव्य धर्म यज्ञ दिवस के रूप में श्रद्धा से मनाया जाता है, जिसमें सभी सतलोक आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा और अमरवाणी का अखंड पाठ किया जाता है।
🥥 दिव्य धर्म यज्ञ का उद्देश्य
दिव्य धर्म यज्ञ का उद्देश्य परमात्मा कबीर साहेब द्वारा दिखाए गए मार्ग को जन-जन तक पहुँचाना है। संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में इसे इस बार 14, 15, 16 नवंबर को मनाया जाएगा, जिसमें भक्त दिव्य भंडारे का आनंद लेते हैं, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं और धर्म के वास्तविक स्वरूप से परिचित होते हैं।
🥥कैसे हुआ दिव्य धर्म यज्ञ का प्रारंभ?
विक्रमी संवत 1570 में कबीर साहेब ने काशी में तीन दिनों का भंडारा आयोजित किया था। इसमें 18 लाख साधु-संतों ने भाग लिया था और कबीर साहेब ने उन्हें भोजन और वस्त्र भेंट किए थे। इस ऐतिहासिक आयोजन की स्मृति में संत रामपाल जी महाराज द्वारा 14, 15, 16 नवंबर को दिव्य धर्म यज्ञ मनाया जा रहा है।
🥥दिव्य धर्म यज्ञ दिवस : समाज में सकारात्मक बदलाव
इस भव्य आयोजन में दहेज मुक्त विवाह जैसे कार्यक्रम समाज में सकारात्मक बदलाव की प्रेरणा देते हैं। परमेश्वर की संपूर्ण लीलाओं की जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
🥥क्या है दिव्य धर्म यज्ञ दिवस?
दिव्य धर्म यज्ञ दिवस, परमेश्वर कबीर साहेब द्वारा काशी में आयोजित धार्मिक भंडारे की पुनः स्मृति का एक भव्य आयोजन है। इस आयोजन में लाखों श्रद्धालुओं को भोजन कराया जाता है और सत्संग का आयोजन होता है, जो संत रामपाल जी महाराज के आदेशानुसार उनके अनुयायियों द्वारा किया जा रहा है। इस वर्ष यह आयोजन 14, 15, 16 नवंबर को होगा।
🥥511वें दिव्य धर्म यज्ञ दिवस का उद्देश्य
संत रामपाल जी महाराज के मार्गदर्शन में दिव्य धर्म यज्ञ का आयोजन परमात्मा कबीर साहेब की उस ऐतिहासिक घटना को स्मरण करने हेतु किया जाता है, जब उन्होंने (शेख तकी द्वारा डाली गई झूठी चिट्ठी के बाद आए) 18 लाख साधुओं को भोजन कराया था। परमेश्वर की संपूर्ण लीलाओं की जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
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indrabalakhanna · 8 days ago
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Ishwar TV Satsang | 07-11-2024 | Episode: 2566| Sant Rampal Ji Maharaj L...
*🪷बन्दीछोड़ सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जय🪷*
♦♦♦
07/11/24
📙📙📙📙📙📙📙
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1📙 पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी का ज्ञान किसने कहा?
जानने के लिए अवश्य पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा।
2📙 ‘‘गीता ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा’’:-
जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पवित्र गीता जी का ज्ञान सुनाते समय अध्याय 11 श्लोक 32 में पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि ‘अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।‘ जरा सोचें कि श्री कृष्ण जी तो पहले से ही श्री अर्जुन जी के साथ थे। यदि पवित्र गीता जी के ज्ञान को श्री कृष्ण जी बोल रहे होते तो यह नहीं कहते कि अब प्रवृत्त हुआ हूँ।
- जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
3📙गीता ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा’
अध्याय 11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुन कह रहा है कि भगवन्! आप तो ऋषियों, देवताओं तथा सिद्धों को भी खा रहे हो, जो आप का ही गुणगान पवित्र वेदों के मंत्रों द्वारा उच्चारण कर रहे हैं तथा अपने जीवन की रक्षा के लिए मंगल कामना कर रहे हैं। कुछ आपके दाढ़ों में लटक रहे हैं, कुछ आपके मुख में समा रहे हैं। हे सहस्रबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले भगवान! आप अपने उसी चतुर्भुज रूप में आईये। मैं आपके विकराल रूप को देखकर धीरज नहीं रख पा रहा हूँ।
श्री कृष्ण जी तो अर्जुन के साले थे। श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था। क्या व्यक्ति अपने साले को भी नहीं जानता? इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा, काल ब्रह्म ने बोला था।
- जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
4📙अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाले प्रभु काल ने कहा है कि ‘हे अर्जुन! यह मेरा वास्तविक काल रूप है, जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था।‘
सिद्ध हुआ कि कौरवों की सभा में विराट रूप श्री कृष्ण जी ने दिखाया था तथा कुरूक्षेत्र में युद्ध के मैदान में विराट रूप काल ने दिखाया था। नहीं तो यह नहीं कहता कि यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है। क्योंकि श्री कृष्ण जी अपना विराट रूप कौरवों की सभा में पहले ही दिखा चुके थे जो अनेकों ने देखा था।
- जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
5📙पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी काल नहीं हो सकते। उनके दर्शन मात्र को तो दूर-दूर क्षेत्र के स्त्री तथा पुरुष तड़फा करते थे। पशु-पक्षी भी उनको प्यार करते थे।
6📙गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि बुद्धिहीन जन समुदाय मेरे उस घटिया (अनुत्तम) अटल विधान को नहीं जानते कि मैं कभी भी मनुष्य की तरह किसी के सामने प्रकट नहीं होता। मैं अपनी योगमाया से छिपा रहता हूँ।
गीता ज्ञान दाता श्री कृष्ण जी नहीं है क्योंकि श्री कृष्ण जी तो सर्व समक्ष साक्षात् थे। श्री कृष्ण नहीं कहते कि मैं अपनी योगमाया से छिपा रहता हूँ। इसलिए गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी के अन्दर प्रेतवत् प्रवेश करके काल ने बोला था।
7📙गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में कहा है कि हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। भावार्थ है कि काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है। जैसे श्री कृष्ण जी ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि मैं महाभारत के युद्ध में किसी को मारने के लिए शस्त्र भी नहीं उठाऊँगा। श्री कृष्ण में काल ब्रह्म ने प्रवेश होकर रथ का पहिया उठाकर अनेकों सैनिकों को मार डाला। पाप श्री कृष्ण जी के जिम्मे कर दिए। प्रतिज्ञा भी समाप्त करके कलंकित किया।
- जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
8📙जिस समय काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी के शरीर से बाहर निकलकर अपना विराट रूप दिखाया, वह बहुत प्रकाशमान था। अर्जुन भयभीत हो गया तथा श्री कृष्ण उस विराट रूप के प्रकाश में ओझल हो गया था। इसलिए पूछ रहा था कि आप कौन हो? क्या अपने साले से भी यह पूछा जाता है कि आप कौन हो? इसलिए गीता का ज्ञान काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोला था।
9📙गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ‘‘युद्ध से न भागना’’ आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता। न उसकी राय श्रोता को ठीक जचेगी। वह उपहास का पात्र बनेगा। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल) ने प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे।
10📙काल भगवान जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं स्थूल शरीर में व्यक्त(मानव सदृश अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान तो सही(वेदों का सार) कहा, परन्तु युद्ध करवाने के लिए भी अटकल बाजी में कसर नहीं छोड़ी।
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tarsemsinghsblog · 3 months ago
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#राधास्वामी_निगुरा_पंथ
राधास्वामी
संस्थापक शिव दयाल जी महाराज कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया,
"राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के
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