#ओरल कैंसर के लक्षण
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10 आम परेशानियाँ जिनका इलाज़ दर्द निवारण क्लिनिक पर किया जाता है -
कैंसर का दर्द
कैंसर के रोगियों में दर्द सबसे आम लक्षणों में से एक है। यह कैंसर, कैंसर के इलाज या कारकों के संयोजन के कारण हो सकता है। कैंसर के दर्द का प्रबंधन WHO की सीढ़ी के अनुसार किया जाता है, जो मॉर्फिन या फेंटेनल जैसी ओपिओइड दवाओं तक बढ़ जाता है, और कभी-कभी पेट दर्द के लिए न्यूरोलाइटिक ब्लॉक जैसे सीलिएक प्लेक्सस ब्लॉक की आवश्यकता होती है, जो की पैन क्लिनिक पर किए जाते है l
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2. पीठ दर्द अथवा सायटिका
पीठ के निचले हिस्से का दर्द विश्व स्तर पर दर्द के प्रमुख कारणों में से एक है। लगभग 80% वयस्क अपने जीवनकाल के दौरान किसी न किसी समय पीठ के निचले हिस्से में दर्द का अनुभव करते हैं। यह मांसपेशियों में खिंचाव से लेकर इंटरवर्टेब्रल डिस्क के खिसकने तक विभिन्न कारणों से हो सकता है। पीठ के निचले हिस्से में दर्द को एक बहु-विषयक दृष्टिकोण ( मल्टीडाइमेंशनल एप्रोच) द्वारा ठीक किया जाता है जिसमें आसन संबंधी सावधानियां, दवाएं, व्यायाम, फिजियोथेरेपी और कुछ न्यूनतम इनवेसिव हस्तक्षेप जैसे मायोफेशियल ट्रिगर पॉइंट इंजेक्शन, ट्रांसफोरामिनल या कॉडल एपिड्यूरल स्टेरॉयड, लम्बर डोर्सल रूट गैंग्लियन पल्स्ड आरएफए, फेसेट जॉइंट इंजेक्शन और मेडियन ब्रांच ब्लॉक शामिल हैं। सैक्रोइलियक जॉइंट इंजेक्शन, एंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी भी अब ऐसी स्थितियों के लिए न्यूनतम इनवेसिव डे केयर प्रक्रिया के रूप में लोकप्रियता हासिल कर रही है।
3. घुटने के दर्द
ऑस्टियोआर्थराइटिस (OA) घुटने के दर्द का कारण बनने वाला सबसे आम आर्थराइटिस विकार है। OA के कारण घुटने के दर्द के प्रबंधन के लिए घुटने के व्यायाम और सावधानियों की आवश्यकता होती है। यदि सूजन या जोड़ का बहाव स्पष्ट है, तो इंट्रा-आर्टिकुलर इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है। ग्रेड 1 या 2 ओए रोगियों को प्लेटलेट रिच प्लाज़्मा इंजेक्शन से लाभ हो सकता है। अधिक उन्नत OA वाले रोगियों में, दर्द से राहत के लिए जेनिक्यूलर नर्व रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (RFA) किया जा सकता है। जेनिक्यूलर ना आरएफए एक नई तकनीक है जो ऐसे मामलों में घुटने के दर्द से निरंतर राहत प्रदान करती है।
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4) गर्दन और बांह में दर्द
गर्दन में दर्द एक आम समस्या है, दो-तिहाई आबादी को अपने जीवन में कभी न कभी गर्दन में दर्द होता है। गर्दन और ऊपरी पीठ दोनों में मांसपेशियों की जकड़न या ग्रीवा कशेरुकाओं के पास से निकलने वाली नसों के दबने के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है। गर्दन के पहलू जोड़ भी दर्द का कारण हो सकते हैं। गर्दन के दर्द को एक बहु-विषयक दृष्टिकोण द्वारा प्रबंधित किया जाता है जिसमें आसन संबंधी सावधानियां, दवाएं, व्यायाम, फिजियोथेरेपी और कुछ न्यूनतम इनवेसिव हस्तक्षेप जैसे नेक मायोफेशियल ट्रिगर पॉइंट इंजेक्शन, सर्वाइकल एपिड्यूरल स्टेरॉयड, सर्वाइकल मीडियन ब्रांच ब्लॉक और थर्ड ऑक्सीपिटल नर्व ब्लॉक शामिल हैं।
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5. पोस्ट हर्पेटिक न्यूराल्जिया
हर्पीस ज़ोस्टर के चकत्तों के क्षेत्र में दर्द बना रहना। यह आम तौर पर जलन, शूटिंग, धड़कन या बिजली के ��टके जैसा दर्द होता है, और आमतौर पर छाती की दीवार क्षेत्र या आंखों के आसपास चेहरे पर देखा जाता है। प्रबंधन में न्यूरोपैथिक दवाओं, सामयिक मलहम और नर्व इंटरवेंशन का विवेकपूर्ण उपयोग शामिल है।
6) चेहरे की नसो मे दर्द
ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया अचानक, गंभीर चेहरे का दर्द है। इसे अक्सर तेज शूटिंग दर्द या जबड़े, दांत या मसूड़ों में बिजली का झटका लगने जैसा बताया जाता है। लंबे समय तक ली जाने वाली ओरल मेडिसिन से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यदि दवा राहत प्रदान करने में विफल रहती है, तो गैसेरियन गैंग्लियन आरएफए या गैंग्लियन के बैलून कम्प्रेशन जैसी न्यूनतम इनवेसिव इंटरवेंशनल दर्द प्रक्रियाएं पेश की जा सकती हैं। इस दुर्बल करने वाली बीमारी से निपटने के लिए न्यूरोसर्जिकल प्रक्रियाएं भी उपलब्ध हैं।
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7. तंत्रिका संबंधी (न्यूरोपैथी) दर्द
तंत्रिकाओं की क्षति या अनुचित कार्यप्रणाली से उत्पन्न होने वाले दर्द को न्यूरोपैथिक दर्द कहा जाता है। यह जलन, गोली लगने या बिजली के झटके जैसे दर्द के रूप में प्रकट हो सकता है। इस दर्द को आमतौर पर एंटी-न्यूरोपैथिक दवाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है। कभी-कभी दर्द से राहत के लिए नर्व ब्लॉक की आवश्यकता हो सकती है।
8. फाइब्रोमायल्जिया
फाइब्रोमायल्जिया शरीर में व्यापक दर्द का एक सामान्य कारण है। इसके साथ थकान, बिना ताजगी वाली नींद, बिगड़ा हुआ एकाग्रता, स्मृति समस्याएं और मूड में गड़बड़ी सहित अन्य लक्षण भी हो सकते हैं। फाइब्रोमायल्गिया का प्रबंधन बहु-विषयक है, जिसमें दवाएं, फिजियोथेरेपी और आहार संबंधी परामर्श शामिल हैं।
9. सीआरपीएस — कॉम्पलैक्स रीजनल पेन सिंड्रोम
सीआरपीएस एक पुरानी दर्द की स्थिति है जो चोट लगने के बाद आमतौर पर एक अंग (हाथ, पैर, हाथ या पैर) को प्रभावित करती है। ऐसा माना जाता है कि यह परिधीय या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति या खराबी के कारण होता है। सीआरपीएस के प्रबंधन के लिए पुनर्वास, फिजियोथेरेपी और मनोचि��ित्सा महत्वपूर्ण हैं। सहानुभूति तंत्रिका ब्लॉक जैसे स्टेलेट गैंग्लियन ब्लॉक या लम्बर सिम्पैथेटिक प्लेक्सस ब्लॉक की आवश्यकता हो सकती है।
10. कोक्सीगोडायनिया (पूंछ की हड्डी में दर्द)
कोक्सीक्स दर्द, जिसे कोक्सीगोडायनिया भी कहा जाता है, टेलबोन के क्षेत्र में दर्द है, विशेष रूप से बैठने पर बढ़ जाता है। इसे डोनट (dough nut) तकिया और सिट्ज़ बाथ जैसे सरल उपायों द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है। आमतौर पर NSAIDS का एक कोर्स आवश्यक होता है। यदि दर्द बना रहता है, तो स्थानीय इंजेक्शन या गैंग्लियन इंपार ब्लॉक के रूप में मिनिमल इनवेसिव इंटरवेंशन किया जा सकता है।
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गर्दिश में सितारे: 40 साल पुरानी इस गलती पर आजतक अफसोस करते हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री, इसके कारण हो गया था Oral Cancer
गर्दिश में सितारे: 40 साल पुरानी इस गलती पर आजतक अफसोस करते हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री, इसके कारण हो गया था Oral Cancer
गर्दिश में सितारे/सुरेंद्र अग्रवाल: नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार महाराष्ट्र के कद्दावर नेता हैं. करीब 60 वर्ष लंबे अपने राजनीतिक करियर में शरद पवार ने कई पार्टियों का साथ दिया और इस दौरान उन्होंने मध्यम वर्गीय कृषि परिवार से देश के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तक का सफर तय किया. हालांकि, पूर्व केंद्रीय मंत्री को इस दौरान एक गलती का अफसोस आज तक सता रहा है. जिसके कारण उन्हें ओरल…
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jamshedpur : सदर अस्पताल में गैर संचारी रोगों की पहचान व उपचार विषयक कार्यशाला आयोजित
jamshedpur : सदर अस्पताल में गैर संचारी रोगों की पहचान व उपचार विषयक कार्यशाला आयोजित
जमशेदपुर : गुरुवार को जमशेदपुर सदर अस्पताल में गैर संचारी रोग (नन कम्युनिकेबल डिजीज) रोगों की पहचान और उपचार विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें सभी प्रखंड के सीएचओ को गैर संचारी रोग जैसे सर्वाइकल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और ओरल कैंसर के लक्षण और उपचार को लेकर परिचर्चा की गई. जानकारी देते हुए सिविल सर्जन एकके लाल ने बताया, कि जिले के सभी प्रखंडों के सीएचओ को ग्रुप वाइज बुलाकर प्रशिक्षण दिया…
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कैंसर के इलाज में केजीएमयू के डॉक्टर ले रहे आयुर्वेद का सहारा Divya Sandesh
#Divyasandesh
कैंसर के इलाज में केजीएमयू के डॉक्टर ले रहे आयुर्वेद का सहारा
जीशान राइनी, लखनऊ केजीएमयू के आधुनिक मेडिसिन संस्थान में एलौपैथ के डॉक्टर भी अब आयुर्वेदिक दवाओं से मरीजों का इलाज कर रहे हैं। प्री कैंसर से लेकर जबड़े की हड्डी को जोड़���े तक में आयुर्वेद का सहारा लिया जा रहा है।
आयुष विभाग उपलब्ध करवा रहा दवा दावा है कि एलोपैथ से ज्यादा अच्छे परिणाम आयुर्वेद की दवाओं से मिल रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि आयुर्वेदिक दवाएं मरीजों के लिए आयुष विभाग नि:शुल्क दवाएं उपलब्ध करवा रहा है। देश में आयुर्वेद के डॉक्टरों को ऑपरेशन का अधिकार देने के विरोध के बीच आयुर्वेद की सफलता चिकित्सा क्षेत्र में बेहतर खबर साबित हो रही है।
काफी बेहतर आ रहे परिणाम केजीएमयू के ओरल ऐंड मैक्सिलोफेशियल विभाग की डॉ. विभा सिंह के अनुसार, ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस यानी मुंह के कैंसर से पहले के लक्षण आने लगते हैं। इसमें मसालेदार चीजे मुंह में लगना, जलन, सफेदी और आवाज में बदलाव व मुंह कम खुलना शामिल हैं। उक्त सभी प्री कैंसर के लक्षण हैं। अब तक ऐसे मरीजों को दवाएं देते थे। वहीं, अब तुलसी, गोरखमुंडी और शहद से बनी एक दवा भी दे रहे हैं। एनबीआरआई के सहयोग से दी जाने वाली दवा के नतीजे काफी बेहतर आ रहे हैं।
डॉ. विभा सिंह के अनुसार जबड़े की हड्डी टूटने पर तार बांधकर 6 से 8 महीने का प्लास्टर भी लगाते हैं। वहीं अब आयुर्वेदिक दवा भी दे रहे हैं। इससे हड्डी 4 सप्ताह में जुड़ रही है।
आयुष विभाग ने दिया प्रॉजेक्ट विभाग के डॉ. यूएस पाल ने बताया कि प्री कैंसर में ही आयुष विभाग से मिले एक प्रॉजेक्ट पर भी काम हो रहा है। इसमें मरीजों को दवा के साथ घी, हल्दी, एसटी मधु समेत अन्य आयुर्वेदिक दवा दे रहे हैं। इसमें लगाने के लिए पेस्ट के साथ ही जड़ी-बूटियों को उबालकर पानी मुंह में भरना होता है।
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राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस : ये हो सकते हैं कैंसर होने के कारण, आईने के सामने खड़े होकर लगाएं पता
चैतन्य भारत न्यूज भारत में कैंसर और उसके लक्षणों एवं उपचार के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल भारत में 7 नवंबर को 'राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस' मनाया जाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने साल 2014 में इस दिन को मनाने की घोषणा की थी। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
किसी भी हिस्से में होने वाले बदलाव को नजरअंदाज न करें मेडिकल साइंस में करीब 200 तरह के ज्ञात कैंसर हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत ऐसे हैं, जिन्हें समय रहते पहचाना जा सकता है। गलत खान-पान, तंबाकू, अनुवांशिकता, मोटापा और सुस्ती को भी कैंसर होने की बड़ी वजह माना जा रहा है। इसके अलावा डाइट भी कैंसर होने का एक कारण माना जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, कैंसर चाहे किसी भी तरह का हो, लेकिन 70 फीसदी मामलों में मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं। ब्रेस्ट, गर्भाशय, मुंह और गले समेत कुछ ऐसे कैंसर हैं जिनके लक्षण नजर आने के बाद उसके बारे में समय रहते पता चल जाता है। लेकिन लिवर, पैंक्रियास, ब्लड, आंतों और शरीर के कुछ आंतरिक अंगों में होने वाले कैंसर के लक्षण नजर नहीं आते, जिन्हें पहचानने में भी देरी हो जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि आप शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाले बदलाव को नजरअंदाज बिलकुल भी न करें। हालांकि, मुंह या फिर यूरिन में ब्लड या कोई भी गठान हो तो उसकी जांच जरूर करवा लें।
पैक्ड खाना व नॉनस्टिक बर्तनों का इस्तेमाल जानल���वा कई अंतरराष्ट्रीय स्टडीज में भी यह सामने आया है कि प्लास्टिक की बोतल में गर्म पानी, पैक्ड खाना, प्रिसर्वेटिव खाने का इस्तेमाल और नॉनस्टिक बर्तनों का प्रयोग करना भी कैंसर का कारक बताया है। दरअसल नॉनस्टिक बर्तनों में खुरचन के कारण कार्बन खाने के साथ मिल जाता है जो शरीर के लिए नुकसानदेह होता है। पैक्ड फूड में इस्तेमाल किया जाने वाला सोडियम बेंजोइक या फिर बेंजोइक एकड़ से भी शरीर को नुकसान होता है। प्लास्टिक की बोतल में गर्म पानी रखने या उसे पीने से भी शरीर को नुकसान पहुंचता है।
आईने के सामने खड़े होकर भी पता लगा सकते हैं कैंसर आप घंटों तक आईने के सामने खड़े होकर अपनी खूबसूरती निहारते होंगे, लेकिन शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि आईने में देखकर आप इस गंभीर बीमारी का भी पता लगा सकते हैं। जी हां... डॉक्टर की जांच से पहले महज कुछ ही मिनटों में महिलाओं ब्रेस्ट कैंसर और पुरुष ओरल कैंसर के बारे में पता लगा सकते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ज्यादातर लोग कैंसर की तीसरी या चौथी स्टेज पर पहुंचने के बाद डॉक्टर के पास जाते हैं। ऐसे ही जागरूकता के आभाव में हर साल हजारों लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। बीमारी के बढ़ जाने के बाद 70 प्रतिशत कैंसर के मरीजों को बचा पाना मुश्किल हो जाता है। आइए जानते हैं किस तरह आप आईने के सामने खड़े होकर कैंसर होने का पता लगा सकते हैं- ऐसे लगाए कैंसर का पता विशषज्ञों के मुताबिक, आईने के सामने खड़े होकर आप अपने चेहरे के दोनों हिस्सों को बारीकी से देखें। दोनों हिस्सों की आपस में तुलना करें। यदि किसी एक तरफ सूजन या गठान दिखती है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। हालांकि, ��ह जरुरी नहीं है कि हर बार सूजन या गठान कैंसर का कारण हो। इसके अलावा आप अपने मुंह के अंदर टोर्च की रोशनी डालकर देखें, यदि अंदर सफेद और लाल रंग के धब्बे दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। चेहरे, गर्दन या मुंह के अंदर यदि कोई छाला दो सप्ताह में भी ठीक न हो। बार-बार मुंह से खून आना, चेहरे, मुंह, गर्दन के किसी हिस्से में दर्द या सुन्नपन होना।
यह जरुरी नहीं है कि हर गठान, सूजन, छाला या दाग कैंसर ही हो। ब्रेस्ट में होने वाली 80 प्रतिशत गठाने कैंसर नहीं होती है। इसलिए आपको घबराने की कोई जरुरत नहीं है। सभी प्रकार के कैंसर के प्रति जागरूकता की जरुरत होना जरुरी है। इसलिए आप समय-समय पर अपनी जांच करवाते रहे। (विशेष ध्यानार्थः यह आलेख केवल पाठकों की अति सामान्य जागरुकता के लिए है। चैतन्य भारत न्यूज का सुझाव है कि इस आलेख को केवल जानकारी के दृष्टिकोण से लें। इनके आधार पर किसी बीमारी के बारे में धारणा न बनाएं या उसके इलाज का प्रयास न करें। यह भी याद रखें कि स्वास्थ्य से संबंधित उचित सलाह, सुझाव और इलाज प्रशिक्षित डॉक्टर ही कर सकते हैं।) ये भी पढ़े... कैंसर को बढ़ावा देते हैं नॉन स्टिक कुकवेयर और प्लास्टिक के बर्तन देश में तेजी से बढ़ रहे स्तन कैंसर के मामले, जागरूकता ही है इसका सबसे बड़ा निदान Rose Day : इस दिन को मनाने के पीछे है दर्दभरी कहानी, जानिए कैंसर से क्या है इसका नाता सर्वाइकल कैंसरः इस घातक रोग से बचा सकती है जागरूकता Read the full article
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How to get rid from fungal infection at home | fungal infection solutions | घर पर फंगल इन्फेक्शन से कैसे पाएं छुटकारा | फंगल संक्रमण के समाधान
कवकनाशी से कैसे छुटकारा पाएं?
हालांकि कवक की लाखों प्रजातियां हैं, केवल 300Trusted स्रोत उनमें से वास्तव में मनुष्��ों में संक्रमण पैदा कर सकते हैं। कई प्रकार के फंगल संक्रमण हैं जो आपकी त्वचा को प्रभावित कर सकते हैं।
इस लेख में, हम कुछ सबसे आम फंगल त्वचा संक्रमण और उनके उपचार और बचाव के तरीकों पर बारीकी से विचार कर सकते हैं।
एक कवक त्वचा संक्रमण क्या है?
फंगी हर जगह रहती है। वे पौधों, मिट्टी और यहां तक कि आपकी त्वचा पर भी पाए जा सकते हैं। आपकी त्वचा पर ये सूक्ष्म जीव आमतौर पर किसी भी समस्या का कारण नहीं बनते हैं, जब तक कि वे सामान्य से अधिक तेजी से गुणा नहीं करते हैं या आपकी त्वचा को कट या घाव के माध्यम से घुसना नहीं करते हैं।
चूंकि कवक गर्म, नम वातावरण में पनपता है, इसलिए फंगल त्वचा संक्रमण अक्सर पसीने से तर या नम क्षेत्रों में विकसित हो सकता है, जो हवा के प्रवाह को प्राप्त नहीं करते हैं। कुछ उदाहरणों में पैरों, कमर, और त्वचा की सिलवटों को शामिल किया गया है।
अक्सर, ये संक्रमण त्वचा की एक कर्कश चकत्ते या मलिनकिरण के रूप में दिखाई देते हैं जो अक्सर खुजली होती है।
कुछ फंगल त्वचा संक्रमण बहुत आम हैं। यद्यपि संक्रमण कष्टप्रद और असुविधाजनक हो सकता है, यह आमतौर पर गंभीर नहीं है।
फंगल त्वचा के संक्रमण अक्सर सीधे संपर्क के माध्यम से फैलते हैं। इसमें कपड़ों या अन्य वस्तुओं पर, या किसी व्यक्ति या जानवर पर कवक के संपर्क में आना शामिल हो सकता है।
सबसे आम फंगल त्वचा संक्रमण क्या हैं?
कई आम फंगल संक्रमण त्वचा को प्रभावित कर सकते हैं। त्वचा के अलावा, फंगल संक्रमण के लिए एक और सामान्य क्षेत्र श्लेष्म झिल्ली है। इसके कुछ उदाहरण योनि खमीर संक्रमण और मौखिक थ्रश हैं।
नीचे, हम कुछ सामान्य प्रकार के फंगल संक्रमणों का पता लगा सकते हैं जो त्वचा को प्रभावित कर सकते हैं।
शरीर के दाद (टिनिया कॉर्पोरिस)
इसके नाम के विपरीत, दाद एक कवक के कारण होता है न कि किसी कीड़े के कारण। यह आमतौर पर धड़ और अंगों पर होता है। शरीर के अन्य क्षेत्रों पर दाद के विभिन्न नाम हो सकते हैं, जैसे कि एथलीट फुट और जॉक खुजली।
दाद का मुख्य लक्षण एक अंगूठी के आकार का दाने है जो थोड़े उभरे हुए किनारों के साथ होता है। इन गोलाकार चकत्ते के अंदर की त्वचा आमतौर पर स्वस्थ दिखती है। दाने फैल सकता है और अक्सर खुजली होती है।
दाद एक आम कवक त्वचा संक्रमण है और अत्यधिक संक्रामक है। यह गंभीर नहीं है, हालांकि, और आमतौर पर एक एंटिफंगल क्रीम के साथ इलाज किया जा सकता है।
एथलीट फुट (टीनिया पेडिस)
एथलीट फुट एक कवक संक्रमण है जो आपके पैर की उंगलियों के बीच अक्सर आपके पैरों की त्वचा को प्रभावित करता है। एथलीट फुट के विशिष्ट लक्षणों में शामिल हैं:
खुजली, या एक जल���, अपने पैर की उंगलियों के बीच या अपने पैरों के तलवों पर सनसनी
त्वचा जो लाल, पपड़ीदार, शुष्क या परतदार दिखाई देती है
फटी या फटी हुई त्वचा
कुछ मामलों में, संक्रमण आपके शरीर के अन्य क्षेत्रों में भी फैल सकता है। उदाहरणों में आपके नाखून, कमर, या हाथ शामिल हैं
जॉक खुजली एक कवक त्वचा संक्रमण है जो आपके कमर और जांघों के क्षेत्र में होता है। यह पुरुषों और किशोर लड़कों में सबसे आम है।
मुख्य लक्षण एक खुजलीदार लाल चकत्ते है जो आमतौर पर कमर क्षेत्र या ऊपरी आंतरिक जांघों के आसपास शुरू होता है। व्यायाम या अन्य शारीरिक गतिविधियों के बाद दाने खराब हो सकते हैं और नितंबों और पेट तक फैल सकते हैं।
प्रभावित त्वचा भी पपड़ीदार, परतदार या टूटी हुई दिखाई दे सकती है।
यह फंगल संक्रमण खोपड़ी की त्वचा और संबंधित बाल शाफ्ट को प्रभावित करता है। यह छोटे बच्चों में सबसे आम है और इसे प्रिस्क्रिप्शन ओरल दवा के साथ-साथ एंटिफंगल शैंपू के साथ इलाज करने की आवश्यकता है। लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
स्थानीयकृत गंजे पैच जो कि लाल या लाल दिखाई दे सकते हैं
जुड़े स्केलिंग और खुजली
पैच में संबंधित कोमलता या दर्द
टीनेया वेर्सिकलर
टिनिआ वर्सिकोलर, जिसे कभी-कभी पिएट्रिएसिस वर्सीकोलर भी कहा जाता है, एक कवक / खमीर त्वचा संक्रमण है जो त्वचा पर विकसित होने के लिए छोटे अंडाकार फीका पड़ा हुआ पैच का कारण बनता है। यह मालासेज़िया नामक एक विशेष प्रकार के कवक के अतिवृद्धि के कारण होता है, जो लगभग 90 प्रतिशत वयस्कों की त्वचा पर स्वाभाविक रूप से मौजूद होता है।
ये फीका पड़ा हुआ त्वचा पैच सबसे अधिक बार पीठ, छाती और ऊपरी बांहों पर होता है। वे आपकी त्वचा के बाकी हिस्सों की तुलना में हल्का या गहरा दिख सकते हैं, और लाल, गुलाबी, तन या भूरे रंग के हो सकते हैं। ये पैच खुजली, परतदार, या पपड़ीदार हो सकते हैं।
टिनिया वर्सीकोलर गर्मी के दौरान या गर्म, गीले जलवायु वाले क्षेत्रों में अधिक होने की संभावना है। स्थिति कभी-कभी उपचार के बाद वापस आ सकती है।
त्वचीय कैंडिडिआसिस
यह एक त्वचा संक्रमण है जो कैंडिडा कवक के कारण होता है। इस प्रकार की कवक स्वाभाविक रूप से हमारे शरीर पर और उसके अंदर मौजूद होती है। जब यह बढ़ जाता है, तो एक संक्रमण हो सकता है।
कैंडिडा त्वचा संक्रमण उन क्षेत्रों में होता है जो गर्म, नम और खराब हवादार होते हैं। प्रभावित होने वाले विशिष्ट क्षेत्रों के कुछ उदाहरणों में स्तनों के नीचे और नितंबों की सिलवटों में शामिल हैं, जैसे कि डायपर दाने में।
त्वचा के कैंडिडा संक्रमण के लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
Onychomycosis आपके नाखूनों का एक फंगल संक्रमण है। यह नाखूनों या toenails को प्रभावित कर सकता है, हालांकि toenails के संक्रमण अधिक आम हैं।
यदि आपके पास नाखून हैं, तो आपके पास ओनिकोमाइकोसिस हो सकता है:
फीका पड़ा हुआ, आमतौर पर पीला, भूरा या सफेद
भंगुर या आसानी से ��ूटना
गाढ़ा
इस प्रकार के संक्रमण के इलाज के लिए प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की आवश्यकता होती है। गंभीर मामलों में, आपका डॉक्टर प्रभावित नाखून के कुछ या सभी को निकाल सकता है
ऐसे कई कारक हैं जो आपको फंगल त्वचा संक्रमण होने का खतरा बढ़ा सकते हैं। इसमें शामिल है:
गर्म या गीले वातावरण में रहना
जोर से पसीना आना
आपकी त्वचा को साफ और सूखा न रखना
कपड़े, जूते, तौलिए, या बिस्तर जैसी वस्तुओं को साझा करना
तंग कपड़े या जूते पहनना जो अच्छी तरह से साँस नहीं लेते है��
उन गतिविधियों में भाग लेना जो लगातार त्वचा से त्वचा के संपर्क में आते हैं
उन जानवरों के संपर्क में आना जो संक्रमित हो सकते हैं
इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं, कैंसर के उपचार या एचआईवी जैसी स्थितियों के कारण कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली का होना
डॉक्टर को कब देखना है
कई प्रकार के फंगल त्वचा संक्रमण अंततः ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) कवक उपचारों की प्रतिक्रिया में सुधार करते हैं। हालाँकि, यदि आप अपने डॉक्टर को बुलाते हैं:
एक फंगल त्वचा संक्रमण है जिसमें सुधार नहीं होता है, खराब हो जाता है, या ओटीसी उपचार के बाद वापस आ जाता है
खुजली या पपड़ीदार त्वचा के साथ बालों के झड़ने के नोटिस पैच
एक कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली है और एक फंगल संक्रमण पर संदेह है
मधुमेह हो और आपको एथलीट फुट स्किन फंगस का इलाज हो
एंटीफंगल दवाएं फंगल संक्रमण के इलाज के लिए काम करती हैं। वे या तो सीधे कवक को मार सकते हैं या उन्हें बढ़ने और पनपने से रोक सकते हैं। एंटिफंगल दवाएं ओटीसी उपचार या प्रिस्क्रिप्शन दवाओं के रूप में उपलब्ध हैं, और विभिन्न रूपों में आती हैं, जिनमें शामिल हैं:
क्रीम या मलहम
pillsp, owders, स्प्रे, शैंपू।
यदि आपको संदेह है कि आपको एक फंगल त्वचा संक्रमण है, तो आप यह देखने के लिए एक ओटीसी उत्पाद की कोशिश कर सकते हैं कि क्या यह स्थिति को साफ करने में मदद करता है। अधिक लगातार या गंभीर मामलों में, आपका डॉक्टर आपके संक्रमण का इलाज करने में मदद करने के लिए एक मजबूत एंटिफंगल दवा लिख सकता है।
ओटीसी या प्रिस्क्रिप्शन एंटीफंगल लेने के अलावा, कुछ चीजें हैं जो आप घर पर कर सकते हैं फंगल संक्रमण से छुटकारा पाने में मदद करें। इसमें शामिल है:
प्रभावित क्षेत्र को ढीले-ढाले कपड़े या जूते पहनकर साफ और सूखा रखें, जिससे आपकी त्वचा सांस ले सके
रोकथाम: -
फंगल त्वचा संक्रमण को विकसित होने से रोकने में मदद करने के लिए निम्नलिखित सुझावों को ध्यान में रखें:
अच्छी स्वच्छता का अभ्यास अवश्य करें।
कपड़ों, तौलियों या अन्य व्यक्तिगत वस्तुओं को साझा न करें।
हर दिन साफ कपड़े पहनें, विशेष रूप से मोजे और अंडरवियर।
ऐसे कपड़े और जूते चुनें जो अच्छी तरह से सांस लेते हैं। ऐसे कपड़ों या जूतों से बचें, जो बहुत टाइट हों या जिनमें कोई प्रतिबंध हो।
स्नान, स्नान, ��ा तैराकी के बाद एक साफ, सूखे, तौलिया के साथ ठीक से सूखना सुनिश्चित करें।
नंगे पैर चलने के बजाय लॉकर कमरों में सैंडल या फ्लिप-फ्लॉप पहनें।
साझा किए गए सतहों, जैसे जिम उपकरण या मैट को मिटा दें।
उन जानवरों से दूर रहें जिनके फंगल संक्रमण के संकेत हैं, जैसे कि फरमाया गया जानकारी गुम होना
हालांकि कवक की लाखों प्रजातियां हैं, केवल 300Trusted स्रोत उनमें से वास्तव में मनुष्यों में संक्रमण का कारण बन सकते हैं। कई प्रकार के फंगल संक्रमण हैं जो आपकी त्वचा को प्रभावित कर सकते हैं।
इस लेख में, हम कुछ सबसे आम फंगल त्वचा संक्रमण और उनके उपचार और बचाव के तरीकों पर बारीकी से विचार कर सकते हैं। या लगातार खरोंच।
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सेक्सुअली ट्रांसमेटेड डिजीज क्या है, ,जानें इस बीमारी के लक्षण
सेक्सुअल एक्टिविटी से आप अच्छा महसूस करती है लेकिन अन्य बहुत सी चीजों की तरह अपने साथ जोखिम लेकर आता है। जी हां बहुत सी मजेदार चीजें जैसे साहसी खेल और जंक फूड मजेदार होने के बावजूद जोखिम से भरपूर होते हैं। ठीक वैसे ही प्रेग्नेंसी सेक्स का परिणाम है, जो आप पर निर्भर करता है कि आप उसका स्वागत करती है या नहीं। लेकिन क्या आप जानती हैं कि इसके साथ यौन संचारित बीमारियां भी (एसटीडी) एक तरह का प्रभाव है जिसके बारे में शायद ही आप कभी बात करती हो। एसटीडी एक आम बीमारी है जो यौन संबंधों के दौरान होने वाले संक्रमण से होती है।
यानी की शारीरिक संबंध बनाने के दौरान यौन रोग, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं। हालांकि इसका मतलब यह भी नहीं है कि स्त्री और पुरुष के बीच बनने वाले यौन संबंधों से एसटीडी की ही बीमारियां फैलती हैं। लेकिन अगर एक व्यक्ति को एसडीटी की बीमारी है तो दूसरे को वो संक्रमित हो सकती है। एसटीडी को कभी-कभी यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) के रूप में संदर्भित किया जाता है क्योंकि वे यौन गतिविधि के दौरान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बीमारी पैदा करने वाले जीव के संचरण को शामिल करते हैं। लेकिन यहां ये जानना महत्वपूर्ण है कि यौन संपर्क में केवल ��ेक्स ही नहीं आता, बल्कि किस, ओरल-जेनिटल कॉन्टैक्ट, सेक्सुअल खिलौने जैसे वाइब्रेटर का इस्तेमाल आदि से भी होता है।
महिलाओं में होने वाले ज्यादातर यौन संचारित रोग कोई खास लक्षण पैदा नहीं करते हैं।इसके अलावा, असुरक्षित यौन संबंध और अशिक्षा का अभाव यौन रोगों की सबसे बड़ी वजह बनते हैं। स्त्रियों और पुरुषों में सेक्शुअल ट्रांसमिटेड डिजीज़ यानी यौन रोगों के लक्षण अलग-अलग होते हैं। यौन संचारित रोगों में सबसे आम और खतरनाक एचआईवी(HIV) है। जहां ज्यादातर यौन संचारित रोगों का इलाज संभव है वहीं एचआईवी का संभव होने के बावजूद पूरी तरह स्वस्थ्य और ठीक होने का रेशियो कम है।आइए जानते हैं यौन रोग किस तरह से हमारी जीवनशैली को प्रभावित करते हैं-
1.यह नीसेरिया गानोरिआ नाम के जीवाणु के कारण होता है। पुरुष और महिलाएं दोनों ही इससे संक्रमित हो सकते हैं। ये जीवाणु महिलाओं या पुरुषों के प्रजनन मार्ग या गीले क्षेत्र में आसानी से बढ़ता है। इसके जीवाणु मुंह, गला, आंख और गुदा में भी बढ़ते हैं। यह एक गर्भवती महिला से उसके बच्चे में भी ट्रांसफर हो सकता है।
2. क्लैमाइडिया एक एसटीडी है जो क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस नामक जीवाणु के कारण होता है। यह जीवाणु केवल मनुष्यों को संक्रमित करता है। क्लैमाइडिया विश्व स्तर पर जननांग और नेत्र रोगों का सबसे आम संक्रामक कारण है। क्लैमाइडिया पीडि़त होने पर महिलाओं में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते। वहीं, इसके लक्षणों में मूत्राशय के संक्रमण, योनि स्राव में परिवर्तन, पेट के निचले हिस्से में हल्का दर्द, दर्दनाक संभोग व पीरियड्स के बीच खून आना आदि शामिल हैं। यह बीमारी जन्म के समय मां से उनके बच्चे को भी लग सकता है। क्लैमाइडिया से ग्रस्त माताओं से उनके बच्चे को नेत्र संक्रमण और निमोनिया हो सकता है।
3. सिफलिस बहुत ही घातक यौन संचारित रोगों में से एक है। यह बीमारी ट्रीपोनीमा पैलिडम नामक जीवाणु के कारण फैलता है। इस यौन संचारित रोग का मुख्य कारण संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना है। एक सर्वे के अनुसार भारत में सलाना एक लाख लोग सिफलिस से ग्रसित होते हैं।
4. ह्यूमन पैपीलोमावारसइ यानी एचपीवी एक यौन संक्रमित बीमारी है। एचपीवी का सबसे आम लक्षण जननांगों, मुंह या गले पर मस्सा है। एचपीवी संक्रमण होने पर व्यक्ति को मौखिक कैंसर, ग्रीवा कैंसर, वल्वर कैंसर, शिश्न कैंसर व मलाशय का कैंसर हो सकता है। एचपीवी के लिए कोई उपचार नहीं है। हालांकि, एचपीवी संक्रमण अक्सर अपने आप ही साफ हो जाता है। एचपीवी 16 और एचपीवी 18 सहित कुछ सबसे खतरनाक उपभेदों से बचाने के लिए एक वैक्सीन भी उपलब्ध है।
5.जेनिटल हर्पीस बीमारी बैक्टीरियल इन्फेक्शन से होती हैं। इसमें जननांगो के आस-पास बड़े-बड़े फफोले(द्र���-भरे हुए छाले) बनने लगते है। इन फफोलों के बनने के बाद इनमें से जो तरल पदार्थ निकलता है उससे यह और अधिक फैलता है। यह एक संक्रामक बीमारी है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस (एचएसवी) के कारण जेनाईटल हर्पीस रोग फैलता है।
6. यह सबसे आम यौन संचारित संक्रमण(एसटीआई) है। यह ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के कारण होता है जो यौन संबंध बनाने से फैलता है। हर साल लगभग 3,60,000 लोग जेनाइटल वर्ट्स से पीड़ित होते हैं। एचपीवी गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का मुख्य कारण होता है।
7. गोनोरिया नामक जीवाणु के कारण गोनोरिया नीसेरिया होता है। गोनोरिया एक अन्य आम जीवाणु एसटीडी है। इसे “क्लैप” के रूप में भी जाना जाता है। गोनोरिया के लक्षणों में मुख्य रूप से लिंग या योनि से सफेद, पीला, बेज या हरे रंग का स्त्राव, सेक्स या पेशाब के दौरान दर्द या परेशानी, सामान्य से अधिक लगातार पेशाब, जननांगों के आसपास खुजली होना व गले में खराश आदि हो सकता है। बच्चे के जन्म के दौरान मां से नवजात शिशु में यह बीमारी हो सकती है। जब ऐसा होता है, तो गोनोरिया शिशु में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। गोनोरिया का आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज किया जा सकता है।
8. स्कैबीज घुन से होने वाली खुजली वाला त्वचा संक्रमण है. इसमें रोगी को दाने या मुंहासे होते हैं. यह बीमारी एक दूसरे के संपर्क में आने से होती है. स्कैबीज घुन के काटने से तो फैलती ही है साथ ही यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के साथ शारीरिक नजदीकी से भी हो सकती है.
9. यह भी एक यौन संचारित बीमारी है, जो आपके प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करती है। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, तो यह स्टेज 3 एचआईवी को जन्म दे सकता है, जिसे एड्स के रूप में जाना जाता है। इसके शुरूआती लक्षणों में बुखार, ठंड लगना, दर्द एवं पीड़ा, सूजी हुई लसीका ग्रंथियां, गले में खराश, सिरदर्द, जी मिचलाना व चकत्ते आदि हो सकते हैं।
पुरुषों में यौन रोगों के लक्षण:-
पुरुषों में यौन रोगों के लक्षण आम तौर पर पेशाब में संक्रमण। पेशाब के दौरान दर्द होने, लिंग में सूजन, दाने और खुजली के रूप में हो सकते हैं। इसके अलावा अंडकोष में घाव और चकते होना भी एसटीडी के लक्षणों में शामिल हैं। अंडकोष में सूजन भी यौन रोगों के ही लक्षण हैं। इसके अलावा भी यौन रोगों के कई लक्षण हो सकते हैं। असुरक्षित यौन संबंधों की वजह से ही एड्स जैसी जानलेवा बीमारी भी होती है। कई बार यौन सबंधी रोगों के लक्षण कई हफ्ते बाद भी सामने आते हैं। एसटीडी की बीमारी को हम आम तौर पर दो बैक्टीरिया गानरीअ और क्लैमाइडिया के रूप में ही जानते हैं लेकिन सेक्शुअल कॉन्टेक्ट में आने की वजह से कई और तरह की बीमारियां भी हो सकती हैं। इनमें हेपेटाइटिस और एड्स भी शामिल है।
महिलाओं में यौन बीमारियों के लक्षण:-
महिलाओं में यौन बीमारियों के लक्षण दर्द और शारीरिक संबंध बनाने के दौरान असहज��ा, पेशाब में दर्द, जलन और सूजन के तौर पर दिखाई देते हैं। योनी के आसपास घाव, चकते और दाने भी यौन संक्रमित बीमारियों के लक्षण होते हैं। इसमें योनी के आसपास खुजली भी प्रमुख लक्षण है।भारत में सबसे ज्यादा यौन संक्रमण बीमारी एचपीवी है। यह संक्रमण त्वचा से त्वचा के स्पर्श से फैलता है। यह संक्रमण भी सौ से ज्यादा तरह का हो सकता है। जिनमें से 40 तरह का वीएचवी यौन संबंधों के ���ौरान फैलता हैं|
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विश्व कैंसर दिवस: मुंह का कैंसर हो सकता है खतरनाक, जानें ओरल कैंसर के लक्षण, कारण और निवारण के उपाय
विश्व कैंसर दिवस: मुंह का कैंसर हो सकता है खतरनाक, जानें ओरल कैंसर के लक्षण, कारण और निवारण के उपाय
ओरल कैंसर: सबसे आम कैंसर में से एक है मुंह का कैंसर (ओरल कैंसर)। यह कैंसर मुंह के किसी भी हिस्से में हो सकता है जैसे गाल और मसूड़ों के अंदर। यह कैंसर अक्सर ओरल और ओरोफरीन्जियल कैंसर की श्रेणी में आता है। ओरोफेरीन्जियल कैंसर मुंह के पीछे वाले हिस्से और गले को प्रभावित करता है। यह कैंसर तंबाकू, धूम्रपान और शराब का ज्यादा सेवन करने वाले लोगों में होता है। ओरल कैंसर के लक्षण (ओरल कैंसर के लक्षण)…
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तम्बाकू खाने से मौत का कैंसर सबसे ज्यादा
विश्व कैंसर दिवस परिचर्चा: प्रतिवर्ष 7 लाख नए कैंसर रोगी, 30 वर्ष से कैंसर की शुरूआत न्यूजवेव@ कोटा सुवि नेत्र चिकित्सालय एवं लेसिक लेज़र सेन्टर ने रेजोनेन्स कोचिंग इंस्टीट्यूट में विश्व केंसर दिवस पर परिचर्चा एवं नेत्र शिविर आयोजित किया। जांच शिविर में 600 से अधिक कोचिंग स्टूडेंट्स की आँखों की जांच हुई। कोटा डिवीजन नेत्र सोसायटी के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. सुरेश पाण्डेय ने कहा कि आज देश में करीब 25 लाख लोग कैंसर की चपेट में हैं। ��र साल 7 लाख नये कैंसर रोगी बढ़ रहे हैं। प्रतिवर्ष करीब 5.50 लाख मौते अकेले कैंसर से होती है जिसमें 71 प्रतिशत रोगी 30-69 उम्र के हैं। उन्होंने बताया कि देश में प्रत्येक 8 मिनट में 1 महिला कैंसर के कारण मौत को गले लगाती है। हर दो महिलाओं में एक नय�� महिला कैंसर रोगी का पता चलता है। रोजाना करीब 2500 लोगों की तंबाकू से जुडे़ मुंह के कैंसर से मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में पुरूषों में मुख (ओरल केविटी) एवं महिलाओं में स्तन कैंसर, सर्विक्स कैंसर के कारण 50 प्रतिशत से अधिक मौतें होती हैं। पुरूषों में कैंसर पांच प्रमुख अंगों मुंह, फेफडे, पेट, बडी आंत व गले को प्रभावित करता है, जबकि महिलाओं में यह जानलेवा रोग 5 प्रमुख अंगों स्तन, सर्विक्स, बडी आंत, ओवरी, मुंह को प्रभावित करता है। कैंसर से बचाव के लिए शरीर के किसी हिस्से में दर्दरहित गांठ, रक्तस्त्राव (ब्लीडिंग), डिस्चार्ज अथवा अन्य किसी लक्षण की तुरन्त जांच कराये एवं सही ट्रीटमंेट लें। छोटे बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा नेत्र कैन्सर
नेत्र विशेषज्ञ डॉ. विदुषी पाण्डेय ने कहा कि बच्चों में आँख के कैन्सर रेटिना की कोशिकाओं में शुरू होता है, जिसे रेटिनोब्लास्टोमा कहते हैं। डॉ. निपुण बागरेचा ने बताया कि आँखों का कैन्सर शिशुओं से लेकर वयस्कों में हो सकता है। इसके 90 प्रतिशत कैसेज 3 वर्ष तक के बच्चों में भी पाए जाते हैं। ये बच्चें के जन्म के 5-6 महीने में पकड़ में आ जाता है। इसके लक्षणो में आँखों में रोशनी पड़ने पर सफेद झलक सी दिखाई देती है। आँखों की पलकों में होने वाले कैन्सर सूरज की पराबैंगनी किरणों के लम्बे दुष्प्रभाव से हो सकते है। त्वचा में पाया जाने वाला मेलेनोमा प्रिगमेन्ट सूर्य से आने वाली पराबैंगनी के दुष्प्रभाव से उत्पन्न होता है। छोटे बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा नेत्र कैन्सर होता है। ऐसे व्यक्ति जिन्हें नेत्र कैन्सर की फेमिली हिस्ट्री है, वे भी आंखों के कैन्सर का शिकार हो सकते है। आंखों के कैंसर से कैसे बचें डॉ एस.के. गुप्ता ने बताया कि समय रहते पता चलने पर नेत्र कैन्सर का उपचार संभव है। इसका उपचार ऑपरेशन, किमोथैरेपी, रेडियोथैरेपी द्वारा किया जाता है। आंख की पलकों के कैन्सर से बचने के लिए धूप से बचें, धूप में जाते समय छाता, टोपी, काला चश्मा आदि का प्रयोग करें। यदि आंख में गहरे काले रंग का धब्बा दिखाई दें, तो नेत्र चिकित्सक से सम्पर्क करें। छोटे बच्चों की आंखों की पुतली के बीचों-बीच यदि सफेद निशान दिखाई दें, तो यह रेेटिनोब्लास्टोमा हो सकता है। ऐसे बच्चों को तुरन्त चिकित्सक को दिखायें। रेेटिनोब्लास्टोमा से पीड़ित बच्चों के भाई-बहनों की आंखों के पर्दो की जांच दवा डालकर करवायें। मेलानोमा, रेटिनोब्लास्टोमा नामक आँखों के कैन्सर का अगर समय पर इलाज नहीं हुआ तो यह मौत की वजह बन सकता है। परिचर्चा के दौरान विद्यार्थियों ने डॉक्टर्स से सवाल भी पूछे। छात्रों को धूम्र���ान एवं तंबाकू के दुष्परिणामों से अवगत कराया। इस मौके पर रेजोनेन्स के विकास कौशिक, निशांत पाराशर एवं अमित भिड़े मौजूद रहे। Read the full article
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जानलेवा है मुंह का कैंसर ये लक्षण दिखें, तो डॉक्टर को दिखाएं
जानलेवा है मुंह का कैंसर ये लक्षण दिखें, तो डॉक्टर को दिखाएं #Symptoms of oral cancer
कैंसर का नाम आते ही हर कोई डर अथवा चौक जाता है, चाहे शरीर के किसी भी हिस्से में कैंसर हुआ हो, इसी तरह मुंह का भी कैंसर होता है, इसे ओरल कैंसर के नाम से जाना जाता है, आपको बता दें कि भा��त मे मुंह के कैंसर के मामले ज्यादा पाए जाते हैं, इसके पीछे कारण यह है कि लोग तम्बाकू, गुटखा, पान आदि का सेवन बहुत ज्यादा मात्रा में करते हैं, लेकिन यदि आप सोचते हैं कि मुंह का कैंसर सिर्फ गुटखा, तम्बाकू खाने वाले…
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World Cancer Day 2020 | Oral Cancer Treatment, Symptoms, Preventive And Causes, Risk Factors | Can Oral Cancer Be Cured Completely | How Long Can You Live With Oral Cancer
World Cancer Day 2020 | Oral Cancer Treatment, Symptoms, Preventive And Causes, Risk Factors | Can Oral Cancer Be Cured Completely | How Long Can You Live With Oral Cancer
Oral Cancer: सबसे आम कैंसर में से एक है मुंह का कैंसर (Oral Cancer). यह कैंसर मुंह के किसी भी हिस्से में हो सकता है जैसे गाल और मसूड़ों के अंदर. यह कैंसर अक्सर ओरल और ओरोफरीन्जियल कैंसर की श्रेणी में आता है. ओरोफेरीन्जियल कैंसर मुंह के पीछे वाले हिस्से और गले को प्रभावित करता है. यह कैंसर तंबाकू, धूम्रपान और शराब का ज्यादा सेवन करने वाले लोगों होता है. ओरल कैंसर के लक्षण (Symptoms Of Oral…
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चीकू के 19 फायदे, उपयोग और नुकसान – Sapota (Chiku) Benefits, Uses and Side Effects in Hindi
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चीकू के 19 फायदे, उपयोग और नुकसान – Sapota (Chiku) Benefits, Uses and Side Effects in Hindi
चीकू के 19 फायदे, उपयोग और नुकसान – Sapota (Chiku) Benefits, Uses and Side Effects in Hindi vinita pangeni Hyderabd040-395603080 January 30, 2020
हर फल की अपनी अलग खासियत और स्वाद होता है, जिसकी वजह से उसे पसंद किया जाता है। ऐसे ही फलों में सपोटा यानी चीकू का नाम भी शुमार है। इस फल में एक अलग मिठास के साथ ही अनेक ऐसे गुण हैं, जो शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। यह फल ही नहीं बल्कि इसके पेड़ के विभिन्न हिस्सों का इस्तेमाल लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचने और उनके लक्षणों को दूर करने के लिए किया जाता रहा है। यही कारण है कि हम स्टाइलक्रेज के इस लेख में चीकू के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। यहां चीकू के फायदे और उपयोग के साथ ही इसके नुकसान के बारे में भी आप जानेंगे। ध्यान रहे कि चीकू लेख में बताई गई बीमारियों का इलाज नहीं बल्कि उससे बचाव और उनके प्रभाव को कम करने में वैकल्पिक रूप से मददगार हो सकता है। चलिए, सीधे चीकू के फायदे के बारे में जान लेते हैं।
विषय सूची
चीकू के फायदे – Benefits of Sapota (Chiku) in Hindi
चीकू विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है, इसलिए यह फल सेहत के साथ ही त्वचा और बालों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है। हम लेख में आगे चीकू के फायदे पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इस दौरान हम चीकू के गुण के बारे में बताएंगे, जो शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही त्वचा और बालों पर सकारात्मक असर डाल सकते हैं। ध्यान दें कि चीकू के खाने के फायदे तो हैं ही इसके साथ ही चीकू के पत्ते, जड़ और पेड़ की छाल भी काफी उपयोगी होती हैं, जिनका इस्तेमाल स्वास्थ्य लाभ के लिए किया जा सकता है (1)। इन्हीं के बारे में हम विस्तार से नीचे बता रहे हैं।
पहले हम स्वास्थ्य संबंधी चीकू के फायदे के बारे में बताएंगे, उसके बाद स्किन और बालों के स्वास्थ्य पर चर्चा करेंगे।
सेहत/स्वास्थ्य के लिए चीकू के फायदे – Health Benefits of Sapota (Chiku) in Hindi
1. वजन नियंत्रण:
शारीरिक गतिविधि में कमी के कारण वजन का अधिक होना आम होते जा रहा है। ऐसे में चीकू मदद कर सकता है। दर��सल, चीकू का सेवन करने से अप्रत्यक्ष रूप से वजन कम करने में सहायता मिल सकती है। एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल (International Journal of Food Science and Nutrition) द्वारा किए गये शोध के मुताबिक चीकू फल गैस्ट्रिक एंजाइम के स्राव को नियंत्रित कर सकता है, जिससे आगे मेटाबॉलिज्म नियंत्रित हो सकता है (1)। फिलहाल, वजन नियंत्रण प्रक्रिया पर चीकू के प्रभाव सही तरीके से जानने के लिए गहन शोध की आवश्यकता है।
2. कैंसर:
लंबे समय से चीकू में कैंसर गुण हैं या नहीं इसको लेकर शोध किया जा रहा था। हाल ही में किए गये शोध के मुताबिक चीकू में एंटी-कैंसर गुण पाए गये हैं। इससे संबंधित एक शोध के मुताबिक चीकू के मेथनॉलिक अर्क में कैंसर के ट्यूमर को बढ़ने से रोकने के गुण पाए गये हैं। रिसर्च के मुताबिक चीकू का सेवन न करने वाले चूहों के मुकाबले इसका सेवन करने वालों के जीवन में 3 गुना वृद्धि हुई और ट्यूमर की बढ़ने की गति भी धीमी पाई गयी (2)। वहीं, चीकू और इसके फूल के अर्क को ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने में मददगार पाया गया है (3)। फिलहाल, इंसानों पर इसके प्रभाव जानने के लिए और शोध की आवश्यकता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कैंसर एक गंभीर रोग है और इसके इलाज के लिए डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है। अगर कोई कैंसर से पीड़ित है, तो घरेलू उपचार की जगह डॉक्टरी उपचार को प्राथमिकता देना एक अच्छा फैसला है।
3. एनर्जी:
चीकू फल को एनर्जी यानी ऊर्जा का अच्छा स्रोत माना जाता है। खासकर कि चीकू फ्रूट बार को। दरअसल, इसमें मौजूद कार्बोहाइड्रेट शरीर को एनर्जी देने का काम कर सकते हैं। इसके अलावा, चीकू में सुक्रोज और फ्रुक्टोज नामक प्राकृतिक शुगर भी होते हैं, जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में लाभदायक माने जात��� हैं। यही वजह है कि इसे नेचुरल एनर्जी बूस्टर माना जाता है, जिसका इस्तेमाल दिन भर ऊर्जावान रहने के लिए किया जा सक���ा है (4) (5)।
4. स्वस्थ हड्डियों के लिए चीकू के फायदे:
हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम, फास्फोरस और आयरन काफी अहम पोषक तत्व माने जाते हैं। ऐसे में इन तीनों पोषक तत्वों से भरपूर चीकू ह़ड्डी को मजबूत बनाकर उसे लाभ पहुंचा सकता है। चीकू में कॉपर की मात्रा भी पाई जाती है, जो हड्डियों, कनेक्टिव टिश्यू और मांसपेशियों के लिए जरूरी होता है। कॉपर ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों की कमजोरी से जुड़ा रोग), मांसपेशियों की कमजोरी, ताकत में कमी और कमजोर जोड़ों की आशंकाओं को कम करने का काम कर सकता है। कॉपर के साथ ही इसमें मौजूद मैंगनीज, जिंक और कैल्शियम बुढ़ापे की वजह से हड्डी को होने वाले नुकसान से बचाने में सहायक हो सकते हैं (1)।
5. इम्यूनिटी:
चीकू के लाभ में इम्यूनिटी को बढ़ाना भी शामिल है। गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी हरियाणा द्वारा सपोटा पर किए गए शोध के मुताबिक इसमें मौजूद विटामिन-सी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाकर, शरीर को बैक्टीरियल इंफेक्शन से बचाने और उनसे लड़ने में मदद कर सकता है (5)l साथ ही विटामिन-सी स्ट्रेस की वजह से कमजोर होने वाली इम्यूनिटी में भी सुधार करने में लाभदायक हो सकता है (1)।
6. प्रेगनेंसी:
कई फल होते हैं जिन्हें गर्भावस्था के दौरान सेवन करना लाभदायक हो सकता है, उन्हीं फलों में से एक है चीकू। कार्बोहाइड्रेट, प्राकृतिक शुगर, विटामिन-सी जैसे कई आवश्यक पोषक तत्वों की उच्च मात्रा से भरपूर होने के कारण इसे गर्भवतियों और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए चीकू को बेहद फायदेमंद माना जाता है। यह गर्भवतियों को होने वाली कमजोरी को दूर करने के साथ ही गर्भावस्था के अन्य लक्षण जैसे मतली और चक्कर आने की समस्या को कम करने में मदद कर सकता है। साथ ही चीकू में मौजूद आयरन और फोलेट जैसे पोषक तत्व गर्भावस्था के दौरान एनीमिया के खतरे से बचाने में लाभदायक हो सकते हैं। इसके अलावा, चीकू में मैग्नीशियम भी होता है, जिसे ब्लड प्रेशर के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक माना जाता है (1)।
7. पाचन और कब्ज:
पाचन क्रिया में सुधार के लिए फाइबर आवश्यक होता है। फाइबर शरीर में मौजूद खाद्य पदार्थों को पचाने के साथ ही अपशिष्ट पदार्थ को मल के माध्यम से बाहर निकालने में मदद कर सकता है। सपोडिला यानी चीकू में भी फाइबर होता है, इसलिए माना जाता है कि चीकू खाने के फायदे में पाचन भी शामिल है। इसमें मौजूद फाइबर लैक्सेटिव की तरह काम करता है, जिसकी मदद से मल आसानी से मलद्वार से बाहर निकल जाता है और कब्ज की समस्या से राहत मिल सकती है। चीकू के फल को पानी में उबालकर पीने से डायरिया भी ठीक हो सकता है। वहीं चीकू में मौजूद टैनिन (Tannins) एटी-इंफ्लामेटरी की तरह काम करते हैं। यह प्रभाव पाचन तंत्र संबंधी समस्याओं जैसे फूड पाइप में होने वाली सूजन (Esophagitis), ��ोटी आंत में होने वाली सूजन (Enteritis), इर्रिटेबल बोवेल सिंड्रोम (आंत संबंधी विकार), पेट दर्द और गैस की समस्या को कम करने में मदद कर सकता है (1)।
8. रक्तचाप:
सपोटा में मौजूद मैग्नीशियम रक्त वाहिकाओं को गतिशील बनाए रखता है। इसके अलावा, चीकू में मौजूद पोटेशियम रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। रोजाना चीकू को उबालकर इसका पानी पीने से ब्लड प्रेशर को कंट्रोल किया जा सकता है (1)।
9. टूथ कैविटी:
दांतों में कैविटी होना काफी आम हो गया है, जिसकी अहम वजह है बैक्टीरिया (6)। इस समस्या से निपटने में चीकू मदद कर सकता है। दरअसल, चीकू में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल गुण यहां लाभदायक हो सकते हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया से लड़ने और इनसे बचाव में मदद कर सकते हैं। साथ ही इस पर किए गए शोध में जिक्र मिलता है कि सपोडिला (चीकू) फल में पाए जाने वाले लैटेक्स (एक तरह का गम) का उपयोग दांतों की कैविटी को भरने के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा, चीकू में मौजूद विटामिन-ए ओरल कैविटी कैंसर से बचाव में मदद कर सकता है (1)।
10. किडनी स्टोन के लिए चीकू के फायदे:
गलत खान-पान और लाइफ स्टाइल की वजह से किडनी स्टोन की समस्या हो सकती है। इस समस्या से बचने के लिए सपोटा यानी चीकू मदद कर सकता है। किडनी स्टोन से बचाव करने और इसके लक्षण कम करने के लिए चीकू फल के बीज को पीसकर पानी के साथ सेवन करना लाभदायक माना जाता है। दरअसल, इसमें ड्यूरेटिक यानी मूत्रवर्धक गुण होते हैं। माना जाता है कि यह गुण किडनी में मौजूद स्टोन को पेशाब के माध्यम से बाहर निकालने में मदद कर सकता है (1)।
11. सर्दी और जुखाम:
चीकू के फायदे में खांसी-जुखाम से बचाव भी शामिल है। यह कफ और बलगम को नाक की नली (Nasal Passage) और श्वसन पथ (Respiratory Tract) से हटाकर सीने की जकड़न और क्रॉनिक कफ से आराम दिलाने में मदद कर सकता है (1)। एनसीबीआई (National Center For Biotechnology Information) पर छपे एक शोध के मुताबिक उपचार की पारंपरिक प्रणाली में सपोडिला यानी चीकू की पत्तियों का उपयोग भी सर्दी और खांसी के लिए किया जाता रहा है (7)। ऐसे में माना जाता है कि इसकी पत्तियों को उबालकर इसका पानी पीने से सर्दी और खांसी से राहत मिल सकती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि सपोटा और इसकी पत्तियों में मौजूद कौन सा केमिकल कंपाउंड सर्दी-जुखाम से राहत दिलाने में मदद करता है। वैसे यह एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण भी प्रदर्शित करता है (1)। ये गुण कुछ हद तक सर्दी-जुखाम से बचाव में मदद कर सकते हैं।
12. मस्तिष्क के लिए चीकू खाने के फायदे:
दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए चीकू मदद कर सकता है। माना जाता है कि यह दिमाग की नसों को शांत और तनाव को कम करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, अनिंद्रा, अवसाद और चिं��ा से गुजर रहे लोगों को भी सपोडिला का सेवन करने की सलाह दी जाती है। दरअसल, सपोटा में मौजूद आयरन दिमाग को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है। ऑक्सीजन दिमाग के लिए काफी आवश्यक होता है। यह मस्तिष्क के अच्छे कार्य को सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, आयरन की कमी भी दिमाग को प्रभावित करती है। इसकी कमी की वजह से बेचैनी, चिड़चिड़ाहट और एकाग्रता में कमी होती है। इसलिए, माना जा सकता है कि चीकू का सेवन मस्तिष्क स्वास्थ्य को बेहतर रखने में मदद कर सकता है (1)।
13. एंटी-इंफ्लामेटरी:
टैनिन की उच्च मात्रा की वजह से चीकू एंटी-इंफ्लामेटरी एजेंट की ��रह काम करता है। यह आंत संबंधी समस्या, सूजन और दर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकता है (1)। यह प्रभाव सूजन व एडिमा से बचाव यानी शरीर के किसी भी हिस्से में तरल पदार्थ व द्रव इकट्ठा होने की समस्या को कम करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, यह इंफ्लामेशन से संबंधित अन्य रोग से भी राहत दिलाने और बचाव करने में फायदेमंद साबित हो सकता है (7)। इंफ्लामेशन की वजह से होने वाले रोग में गठिया (Arthritis), ल्यूपस ( जब इम्यून सिस्टम खुद स्वस्थ कोशिकाओं को नष्ट करता है, जिससे जोड़ों, किडनी, हार्ट और कई हिस्सों पर असर पड़ता है), मल्टीपल स्क्लेरोसिस (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की अक्षमता) जैसी बीमारियां शामिल हैं (8)।
स्वास्थ्य से संबंधित चीकू के फायदे के बाद इसके त्वचा संबंधित लाभ के बारे में जान लेते हैं।
त्वचा के लिए चीकू के फायदे – Skin Benefits of Sapota in Hindi
चीकू खाने के फायदे, इसमें मौजूद विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंट की वजह से मिलते हैं। ऊपर हम चीकू के गुण के साथ ही इसे खाने से होने वाले अनेक स्वास्थ्य लाभ के बारे में बता चुके हैं। अब अगर हम चीकू के त्वचा संबंधित लाभ के बारे में बात न करें तो शायद यह लेख अधूरा होगा। यही कारण है कि हम नीचे विस्तार से त्वचा संबंधित चीकू के लाभ के बारे में बता रहे हैं।
1. त्वचा स्वास्थ्य:
चीकू त्वचा स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। माना जाता है कि इसमें मौजूद विटामिन-ई, ए और सी त्वचा को स्वस्थ बनाने में मदद कर सकते हैं। दरअसल, इसमें मौजूद मॉइस्चराइजिंग गुण त्वचा को रुखेपन से बचाकर सेहमंद रखने में सहायता कर सकता है (5)। त्वचा के लिए चीकू के अन्य फायदों को नीचे बताया गया है।
2. झुर्रिया और एंटी-एजिंग:
झुर्रिया को बढ़ती उम्र की निशानी माना जाता है। कई बार त्वचा का ख्याल न रखने की वजह से समय से पहले चेहरे पर झुर्रिया पड़ने लग जाती हैं। यही वजह है कि लोग कई तरह की एंटी-एजिंग क्रीम का इस्तेमाल करते हैं। अगर घरेलू उपचार की बात की जाए तो चीकू एक फायदेमंद विकल्प के रूप में काम कर सकता है। दरअसल, इसमें एंटी-ऑक्सिडेंट प्रभाव के साथ ही पॉलीफेनोल और फ्लेवोनॉयड कंपाउंड होते हैं, जो झुर्रियों को कम करने में मदद कर सकते हैं (5)।
3. मस्सा और फंगल इंफेक्शन:
चीकू में एंटी-फंगल गुण होते हैं। माना जाता है कि इस गुण की मदद से त्वचा में होने वाले फंगल इंफेक्शन को कम करने में मदद मिल सकती है। साथ ही चीकू के पेड़ से निकलने वाला दूधिया पदार्थ (दूध) फंगल इंफेक्शन से बचाव व कम करने में सहायक हो सकता है। इसके अलावा, यह त्वचा पर निकलने वाले मस्सों को कम करने के उपाय के रूप में भी काम कर सकता है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इसमें मौजूद कौन-सा गुण मस्से के लिए लाभदायक होता है (5)। स्वास्थ्य और त्वचा के लिए चीकू के फायदे के बारे में जानने के बाद चलिए इसके संभावित बालों के फायदों पर एक नजर डाल लेते हैं।
बालों के लिए चीकू के फायदे – Hair Benefits of Sapota in Hindi
पोषक तत्वों से भरा सपोटा यानी चीकू को बालों को घना करने और इसकी क्वालिटी ठीक करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह बालों की दशा को सुधारने में कैसे योगदान देता है, यह हम नीचे विस्तार से बताएंगे।
1. हेयर ग्रोथ :
चीकू को बालों की ग्रोथ के लिए भी लाभकारी माना जाता है। दरअसल, यह फल विटामिन-ए, ई और सी से भरपूर होता है (5)। विटामिन-ए, स्किन ग्लैंड के सीबम नामक तैलीय पदार्थ को बनाने में मदद करता है। यह सीबम स्कैल्प को मॉइस्चराइज करके बालों को स्वस्थ रखने और ग्रोथ में मदद कर सकता है (9)। शरीर में विटामिन ए की कमी होने पर एलोपिसिया यानी बालों के झड़ने की समस्या भी हो सकती है (10)। साथ ही यह समस्या विटामिन-ए की अधिकता की वजह से भी होती है। इसके अलावा, विटामिन-ई और विटामिन-सी फ्री-रेडिकल डैमेज से शरीर को बचाते हैं, जिसकी वजह से बाल भी झड़ते हैं (11)। वहीं, चीकू के बीज का तेल सेबोरहाइक डर्मेटाइटिस (स्कैल्प संबंधी रोग) की वजह से झड़ने वाले बालों को रोकने में मदद कर सकता है (5)।
2. बालों को मुलायम बनाए:
माना जाता है कि सपोटा के बीजों से निकाला गया तेल स्कैल्प को मॉइस्चराइज करके बालों को मुलायम बनाने में मदद करता है। बालों के मुलायम होने पर इन्हें संभालना आसान हो जाता है (5)। चीकू के बीज का सीधे बालों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बीजों का पेस्ट कैस्टर ऑयल के साथ मिश्रित करके हेयर मास्क की तरह उपयोग किया जा सकता है। इस मिश्रण को स्कैल्प पर लगाकर कुछ घंटों बाद बाल को माइल्ड शैम्पू करना चाहिए।
3. डैंड्रफ :
डैंड्रफ को कम करने में चीकू फायदेमंद हो सकता है। दरअसल, चीकू फल में मौजूद पॉलीफेनोलिक कंपाउंड एंटी-फंगल गुण प्रदर्शित करता है (12)। एंटी-फंगल गुण डैंड्रफ को कम करने में मदद कर सकते हैं (13)। वहीं, एंटी-इंफ्लामेटरी गुण डैंड्रफ की वजह से होने वाली खुजली को कम करने में लाभदायक साबित हो सकता है (1)।
चीकू के पौष्टिक तत्व – Sapota Nutritional Value in Hindi
शरीर को चीकू के लाभ इसमें मौजूद पोषक तत्वों की वजह से ही मिलते हैं। यही वजह है कि हम आगे चीकू में मौजूद सभी पोषक तत्व के बारे में बता रहे हैं (14)।
पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 ग्राम जल 78 g ऊर्जा 83 kcal प्रोटीन 0.44 g कुल फैट 1.1 g कार्बोहाइड्रेट 19.96 g फाइबर 5.3 g मिनरल कैल्शियम 21 mg आयरन 0.8 mg मैग्नीशियम 12 mg फास्फोरस 12 mg पोटेशियम 193 mg सोडियम 12 mg जिंक 0.1 mg कॉपर 0.086mg विटामिन विटामिन सी 14.7 mg नियासिन 0.2 mg फोलेट, टोटल 14 µg कोलीन 34.4 mg विटामिन ए, RAE 3 µg विटामिन ए, IU 60 IU
अब हम चीकू का उपयोग किस-किस तरह से किया जा सकता है, यह बता रहे हैं। इसके बाद चीकू खाने के नुकसान के बारे में विस्तार से जानेंगे।
चीकू का उपयोग – How to Use Sapota(Chiku) in Hindi
चीकू के फायदे जानने के बाद इसके उपयोग के विभिन्न तरीकों को जानना भी जरूरी है। चीकू के स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए चीकू का उपयोग कुछ इस तरह से किया जा सकता है (5) (15)।
चीकू को सामान्य फल की तरह खाया जा सकता है।
इसे फ्रूट सलाद में भी शामिल कर सकते हैं।
चीकू का शेक बनाकर भी सेवन कि��ा जा सकता है।
चीकू का उपयोग आइसक्रीम बनाने के लिए भी कर सकते हैं।
फ्रूट बार बनाकर भी इसे खाया जा सकता है।
इसका हलवा भी बनाया जाता है।
इसे मुरब्बा व जैम के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
चीकू से स्वीट सॉस भी बनाया जा सकता है।
चीकू का उपयोग जानने के बाद इसके नुकसान से भी वाकिफ होना जरूरी है। चलिए, अब चीकू खाने के नुकसान पर एक नजर डाल लेते हैं।
चीकू के नुकसान – Side Effects of Sapota in Hindi
पूरी तरह से पके हुए चीकू खाने के ऐसे तो कुछ दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलते। हां, अगर कच्चा चीकू या ठीक से न पका हुआ चीकू का सेवन किसी ने किया तो चीकू के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। यह नुकसान कुछ इस प्रकार हैं (5) (16)।
कच्चा चीकू फल खाने से मुंह का स्वाद कड़वा हो सकता है। इसके पीछे इसमें मौजूद लेटेक्स और टैनिन की अधिक मात्रा का होना है।
मुंह में अल्सर की वजह बन सकता है।
इससे गले में खुजली हो सकती है।
अपच की समस्या हो सकती है।
चीकू के पिसे हुए बीज का सेवन करने से पेट में दर्द हो सकता है। क्योंकि, इसमें सैपोटिन और सैपोटिनिन केमिकल मौजूद होता है।
चीकू के पत्तों का सेवन करने से डायरिया और त्वचा पर हल्की खुजली हो सकती है। दरअसल, इसमें सैपोनिन होता है, जो दस्त और त्वचा की जलन का कारण बनता है।
उम्मीद करते हैं कि इस लेख के जरिए चीकू खाने के फायदे और इसके विभिन्न हिस्सों के लाभ के बारे में आपको जानकारी मिल ही गई होगी। बस संयमित मात्रा में इसका सेवन स्वास्थ्य लाभ के लिए करते रहें। बस कच्चे फल का सेवन करने से बचें। इसके ��लावा, अगर किसी को कोई गंभीर रोग या समस्या हों तो डॉक्टर के परामर्श पर चीकू का उपयोग करें। सपोटा यानी चीकू से संबंधित यह लेख आपके लिए फायदेमंद रहा या नहीं हमें कमेंट बॉक्स के जरिए जरूर बताएं। साथ ही चीकू के फायदे, उपयोग से जुड़े कोई सवाल या सुझाव आपके जहन में हों, तो उन्हें भी आप हम तक पहुंचा सकते हैं।
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vinita pangeni
विनिता पंगेनी ने एनएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन में बीए ऑनर्स और एमए किया है। टेलीविजन और डिजिटल मीडिया में काम करते हुए इन्हें करीब चार साल हो गए हैं। इन्हें उत्तराखंड के कई पॉलिटिकल लीडर और लोकल कलाकारों के इंटरव्यू लेना और लेखन का अनुभव है। विशेष कर इन्हें आम लोगों से जुड़ी रिपोर्ट्स करना और उस पर लेख लिखना पसंद है। इसके अलावा, इन्हें बाइक चलाना, नई जगह घूमना और नए लोगों से मिलकर उनके जीवन के अनुभव जानना अच्छा लगता है।
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Paras Hospital Patna | पारस हॉस्पिटल पटना | पारस अस्पताल | Paras HMRI मौखिक कैंसर के लक्षणों के बारे में जानें - डॉ मितिली दांडेकर लाल, सलाहकार - सिर और गर्दन सर्जिकल ओन्कोलॉजी, पारस अस्पताल, पटना। डॉ मितिली का कहना है कि भारत में ओरल क��ंसर का महामारी एक प्रमुख मुद्दा है। वह कहती है कि अगर हम जल्दी निदान करते हैं तो रोगी सामान्य रूप से सामान्य हो सकता है। डॉ मितिली कहते हैं कि लगभग 90% - 95% मौखिक कैंसर के मामलों तम्बाकू और सुपारी के उपयोग के कारण हैं। डॉ मितिली ने सुझाव दिया कि यदि आपके दांत किसी कारण से गिर रहे हैं, तो आपको एक विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए क्योंकि यह मौखिक कैंसर का लक्षण हो सकता है। #SpitOutCancer #TambakuSeyAzadi अधिक पारस अस्पताल वीडियो के लिए: https://bit.ly/2Ab0ah हमारे विशेषज्ञ के बारे में जानें: https://is.gd/Scg6Vn यहां पारस अस्पताल की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं: https://www.parashospitals.com
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राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस : ये हो सकते हैं कैंसर होने के कारण, आईने के सामने खड़े होकर लगाएं पता
चैतन्य भारत न्यूज भारत में कैंसर और उसके लक्षणों एवं उपचार के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल भारत में 7 नवंबर को 'राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस' मनाया जाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने साल 2014 में इस दिन को मनाने की घोषणा की थी। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
किसी भी हिस्से में होने वाले बदलाव को नजरअंदाज न करें मेडिकल साइंस में करीब 200 तरह के ज्ञात कैंसर हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत ऐसे हैं, जिन्हें समय रहते पहचाना जा सकता है। गलत खान-पान, तंबाकू, अनुवांशिकता, मोटापा और सुस्ती को भी कैंसर होने की बड़ी वजह माना जा रहा है। इसके अलावा डाइट भी कैंसर होने का एक कारण माना जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, कैंसर चाहे किसी भी तरह का हो, लेकिन 70 फीसदी मामलों में मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं। ब्रेस्ट, गर्भाशय, मुंह और गले समेत कुछ ऐसे कैंसर हैं जिनके लक्षण नजर आने के बाद उसके बारे में समय रहते पता चल जाता है। लेकिन लिवर, पैंक्रियास, ब्लड, आंतों और शरीर के कुछ आंतरिक अंगों में होने वाले कैंसर के लक्षण नजर नहीं आते, जिन्हें पहचानने में भी देरी हो जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि आप शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाले बदलाव को नजरअंदाज बिलकुल भी न करें। हालांकि, मुंह या फिर यूरिन में ब्लड या कोई भी गठान हो तो उसकी जांच जरूर करवा लें।
पैक्ड खाना व नॉनस्टिक बर्तनों का इस्तेमाल जानलेवा कई अंतरराष्ट्रीय स्टडीज में भी यह सामने आया है कि प्लास्टिक की बोतल में गर्म पानी, पैक्ड खाना, प्रिसर्वेटिव खाने का इस्तेमाल और नॉनस्टिक बर्तनों का प्रयोग करना भी कैंसर का कारक बताया है। दरअसल नॉनस्टिक बर्तनों में खुरचन के कारण कार्बन खाने के साथ मिल जाता है जो शरीर के लिए नुकसानदेह होता है। पैक्ड फूड में इस्तेमाल किया जाने वाला सोडियम बेंजोइक या फिर बेंजोइक एकड़ से भी शरीर को नुकसान होता है। प्लास्टिक की बोतल में गर्म पानी रखने या उसे पीने से भी शरीर को नुकसान पहुंचता है।
आईने के सामने खड़े होकर भी पता लगा सकते हैं कैंसर आप घंटों तक आईने के सामने खड़े होकर अपनी खूबसूरती निहारते होंगे, लेकिन शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि आईने में देखकर आप इस गंभीर बीमारी का भी पता लगा सकते हैं। जी हां... डॉक्टर की जांच से पहले महज कुछ ही मिनटों में महिलाओं ब्रेस्ट कैंसर और पुरुष ओरल कैंसर के बारे में पता लगा सकते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ज्यादातर लोग कैंसर की तीसरी या चौथी स्टेज पर पहुंचने के बाद डॉक्टर के पास जाते हैं। ऐसे ही जागरूकता के आभाव में हर साल हजारों लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। बीमारी के बढ़ जाने के बाद 70 प्रतिशत कैंसर के मरीजों को बचा पाना मुश्किल हो जाता है। आइए जानते हैं किस तरह आप आईने के सामने खड़े होकर कैंसर होने का पता लगा सकते हैं- ऐसे लगाए कैंसर का पता विशषज्ञों के मुताबिक, आईने के सामने खड़े होकर आप अपने चेहरे के दोनों हिस्सों को बारीकी से देखें। दोनों हिस्सों की आपस में तुलना करें। यदि किसी एक तरफ सूजन या गठान दिखती है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। हालांकि, यह जरुरी नहीं है कि हर बार सूजन या गठान कैंसर का कारण हो। इसके अलावा आप अपने मुंह के अंदर टोर्च की रोशनी डालकर देखें, यदि अंदर सफेद और लाल रंग के धब्बे दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। चेहरे, गर्दन या मुंह के अंदर यदि कोई छाला दो सप्ताह में भी ठीक न हो। बार-बार मुंह से खून आना, चेहरे, मुंह, गर्दन के किसी हिस्से में दर्द या सुन्नपन होना।
यह जरुरी नहीं है कि हर गठान, सूजन, छाला या दाग कैंसर ही हो। ब्रेस्ट में होने वाली 80 प्रतिशत गठाने कैंसर नहीं होती है। इसलिए आपको घबराने की कोई जरुरत नहीं है। सभी प्रकार के कैंसर के प्रति जागरूकता की जरुरत होना जरुरी है। इसलिए आप समय-समय पर अपनी जांच करवाते रहे। (विशेष ध्यानार्थः यह आलेख केवल पाठकों की अति सामान्य जागरुकता के लिए है। चैतन्य भारत न्यूज का सुझाव है कि इस आलेख को केवल जानकारी के दृष्टिकोण से लें। इनके आधार पर किसी बीमारी के बारे में धारणा न बनाएं या उसके इलाज का प्रयास न करें। यह भी याद रखें कि स्वास्थ्य से संबंधित उचित सलाह, सुझाव और इलाज प्रशिक्षित डॉक्टर ही कर सकते हैं।) ये भी पढ़े... कैंसर को बढ़ावा देते हैं नॉन स्टिक कुकवेयर और प्लास्टिक के बर्तन देश में तेजी से बढ़ रहे स्तन कैंसर के मामले, जागरूकता ही है इसका सबसे बड़ा निदान Rose Day : इस दिन को मनाने के पीछे है दर्दभरी कहानी, जानिए कैंसर से क्या है इसका नाता सर्वाइकल कैंसरः इस घातक रोग से बचा सकती है जागरूकता Read the full article
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मेनोपॉज के बाद पीरियड्स, हल्के में न लें
भारतीय महिलाओं में मेनोपॉज की औसत आयु 47.5 वर्ष है। इस दौरान महिलाओं में पीरियड्स का अंतराल बढ़ जाता है और रक्तस्राव भी कम होने लगता है । कुछ समय बाद पीरियड्स बंद हो जाते हैं। 54 वर्ष की उम्र के बाद पीरि यड्स का आना एक असा मान्य लक्षण है ।
ऐसे में महि लाओं को जांच करानी चाहिए । आमतौर पर 40 वर्ष की उम्र के बाद महिलाओं को एक वर्ष तक पीरियड्स नहीं होते हैं, इस स्थिति को सामान्य मेनोपॉज कहते हैं । हालांकि इस एक वर्ष में महिलाओं के प्रेग्नेंट होने की संभावना रहती है ।
मेनोपॉज एक सामान्य प्रक्रिया है इस लिए घब राएं नहीं और संतुलित आहार के साथ-साथ नियमित व्यायाम करें ।
हो सकते हैं कई कारण
मेनोपॉज के बाद पीरि यड्स (चाहे बहुत कम मात्रा में हो) खतरे का संकेत हैं। इसके कई कारण होते हैं । ऐसा यूट्रस या सर्विक्स (यू्ट्रस का मुंह) के कैंसर के कारण भी हो सकता है । लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं में यही मुख्य कारण होता है ।
इसके अलावा जननांग में सुखाव, हार्मोन्स (एचआरटी) की ओरल डोज, यूट्रस या सर्विक्स (यूट्रस का मुंह) की रसौलियां (पॉलिप्स), यूट्रस की परत मोटी होना (हाइपरप्लेजिया), अंडाशय की गांठ, खून के थक्के जमने में रुकावट, चोट लगना आदि कार ण हो सकते हैं ।
टेस्ट कराएं
मेनोपॉज के बाद पीरियड्स होने पर महि लाएं डॉक्टरी सलाह से जांच कराएं । इसके लिए पैप स्मीयर, सोनोग्राफी, एंडोमीट्रियल बायोप्सी, हिस्ट्रोस्कोपी, डी एंड सी जैसे टेस्ट किए जाते हैं ।
इलाज
यदि जांच में पता चलता है कि रक्तस्राव कैंसर के कारण हो रहा है तो स्त्री कैंसर रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें। कैंसर की अव स्था व फैलाव के आधार पर स र्जरी, कीमो थैरेपी, रेडियो थैरेपी द्वारा पूर्ण इलाज संभव है । इसके बाद रोगी को नियमित अंतराल पर जांच जरूर करानी चाहिए ।
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from Hindi News http://hindi-news.krantibhaskar.com/latest-news/hindi-news/health-news/8162/ Health News, Disease and Conditions
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(विटमिन डी की कमी से हो सकता है डायबीटीज)
लॉस एंजिलिस अगर आप विटमिन डी की कमी से पीड़ित हैं तो सावधान हो जाएं! एक नए अध्ययन से पता चला है कि विटमिन डी की कमी से डायबीटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटि ऑफ कैलिफॉर्निया सैनडियागो और दक्षिण कोरिया की सोल नैशनल यूनिवर्सिटी ने 903 स्वस्थ लोगों पर किए अपने अध्ययन में इस बात का खुलासा किया। शरीर में विटमिन डी की कमी से हो सकता है कैंसर स्टडी में शामिल सभी लोगों की औसतन उम्र 74 साल थी और ये लोग 1997-1998 के बीच डायबीटीज के शिकार नहीं थे और न ही इनमें डायबीटीज होने का कोई लक्षण था। इसके बाद इन लोगों के स्वास्थ्य की जानकारी 2009 तक रखी गई। इस दौरान इन लोगों के खून में विटमिन डी के स्तर, प्लाज्मा ग्लूकोज और ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस की जांच की गई। विटमिन डी सप्लिमेंट से ज्यादा फायदेमंद है धूप कुछ समय बीतने के बाद इनमें डायबीटीज के 47 मामले और मधुमेह के पहले वाले चरण के 337 मामले मिले, जिनमें ब्लड में शुगर की मात्रा सामान्य से ज्यादा थी लेकिन इतनी भी ज्यादा नहीं थी कि उसे टाइप 2 डायबीटीज की कैटिगरी में रखा जाए। यह अध्ययन प्लसवन नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
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