#आरती नाम का अर्थ
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तो अब हम बात करते है व्यक्तित्व के बारे में आरती नाम की जो लड़कियां अध्ययन का व्यक्तित्व किस तरह का होता है। इन महिलाओं में नए नए काम को करने की उत्सुकता काफी होती है। ये तो इनमें एनर्जी होते ही रह चेटक होती है। ये हर काम को इतनी बखूबी करती है कि उसमें सफलता पा ही लेती है। यदि कोई इनको चैलेन्ज करता है किसी भी बात पर किसी भी केस को लेके तीन उसको एक्सेप्ट करती है। वो ना सिर्फ एक्सेप्ट करती है और कोई चीज़ नापसंद करती है और उसके लिए अपनी तरफ से ये पूरी कोशिश करती है। इनमे आप हिम्मत और आत्मविश्वास जो है वो देख पाएंगे। ये काफी ज्यादा महत्वकांशी होती है। ये किसी से डरती नहीं है। ये अपने काम को बखूबी निभाती है
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*🚩🔱ॐगं गणपतये नमः 🔱🚩*
*🌹सुप्रभात जय श्री राधे राधे*🌹
📖 *आज का पंचांग, चौघड़िया व राशिफल (प्रतिपदा तिथि +गोवर्धन पूजा)*📖
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
जिस प्रकार बालरूपी श्री कृष्ण ने इंद्र का मानमर्दन किया उसी प्रकार ईश्वर आपके समस्त दुख, विपत्ति और कष्टों का भी मर्दन करे,
*🎁🎉आपको एवं आपके सम्पूर्ण परिवारजनों को पंचदिवसीय महापर्व दीपावली के चौथेे दिन गोवर्धन पूजा, सुहाग पड़वा और धोक पड़वा की कोटिशः शुभकामनाएँ |🎉🎁*
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
#वास्तु_ऐस्ट्रो_टेक_सर्विसेज_टिप्स
#हम_सबका_स्वाभिमान_है_मोदी
#योगी_जी_हैं_तो_मुमकिन_है
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※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
*🙏🙏*
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
दिनांक:-02-नवम्बर-2024
वार:-------शनिवार
तिथि :---01प्रतिपदा 20:22
पक्ष:-----शुक्लपक्ष
माह:-----कार्तिक
नक्षत्र:----विशाखा:-29:58
योग:-----आयु:-11:17
करण:----किस्तुध्ना:-07:22
चन्द्रमा:---तुला 23:24/वृश्चिक
सूर्योदय:------06:51
सूर्यास्त:-------17:51
दिशा शूल------पूर्व
निवारण उपाय:---उङद या वाह्वारंग का सेवन
ऋतु :------हेमंत ऋतु
गुलिक काल:---06:51से 08:15
राहू काल:---09:39से11:03
अभीजित---11:55से12:45
विक्रम सम्वंत .........2081
शक सम्वंत ............1946
युगाब्द ..................5126
सम्वंत सर नाम:---कालयुक्त
🌞चोघङिया दिन🌞
शुभ:-08:15से09:39तक
चंचल:-12:27से13:51तक
लाभ:-13:51से15:15तक
अमृत:-15:15से16:39तक
🌗चोघङिया रात🌓
लाभ:-17:51से19:27तक
शुभ:-21:03से22:39तक
अमृत:-22:39से00:15तक
चंचल:-00:15से01:51तक
लाभ:-05:15से06:51तक
🌸आज के विशेष योग🌸
वर्ष का 208वा दिन, गोवर्धन पूजा,अन्नकूट, गोक्रिडा,जैन संवत 2551 प्रारंभ, मार्गपाली, कार्तिक शुक्लादि, बलिपूजन, अभ्यंग स्नान, गुजराती नववर्ष प्रारंभ, बलिराज पूजा,
🌺👉टिप्स 👈🌺
कार्तिक मास में तुलसी जी के रोज 108 परिक्रमा करे।
🕉 *तिथी/पर्व/व्रत विशेष :-*
गोवर्धन पूजा के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा और ��ूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पर्वत को श्री गिरिराज जी भी कहा जाता है। इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाकर उसकी पूजा रोली, चावल, खीर, बताशे, चावल, जल, दूध, पान, केसर, पुष्प आदि से दीपक जलाने के पश्चात की जाती है। गायों को स्नानादि कराकर उन्हें सुसज्जित कर उनकी पूजा करें। गायों को मिष्ठान खिलाकर उनकी आरती कर प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
श्री गिरिराज की परिक्रमा 7 कोस (21 किलोमीटर) की होती है और इस दिन हजारों लाखों लोग इस परिक्रमा को करने आते हैं। गोवर्धन पूजा से भक्तों को कृष्ण भगवान की विशेष कृपा मिलती हैं। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, बड़��� दिवाली के बाद आज चौथा नंबर गोवर्धन पूजा का है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है। कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं ��र किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया " मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं" कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं।
इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? -
मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
अन्नकूट -
अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है अन्न का समूह। विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही इस उत्सव या पर्व को नाम अन्नकूट पड़ा है। इस दिन अनके प्रकार का पक्वान, मिठाई आदि का भगवान को भोग लागायें। सभी नैवेद्यों के बीच भारत का पहाड़ अवश्य बनायें। भोग सामग्री की इतनी विविधता और विपुलता होनी चाहिए, जितनी बनाई जा सकें। अन्नकूट के रूप में अन्न और शाक-पक्वानों को भगवान को अर्पित किये जाते है तथा भगवान को अर्पण करने के पश्चात वह सर्वसाधारण में वितरण किया जाता है। कृषिप्रधान देश का यह अन्नमय यज्ञ वास्तव में सर्वसुखद है। अन्नकूट और गोवर्धन की यह पूजा आज भी कृष्ण और बिष्णु मन्दिरों में अत्यन्त उत्साह से की जाती है।
*सुविचार*
लोगों के चहरे को तव्वजों ना देकर अगर दिल मे झाकोगे तो आपको और साफ दिखाई देगा।👍🏻 सदैव खुश मस्त स्वास्थ्य रहे।
��ाधे राधे वोलने में व्यस्त रहे।
*💊💉आरोग्य उपाय🌱🌿*
*घरेलू चीज़ों से हटाइये चेहरे के बाल :-*
1. बेसन को हल्दी के साथ मिलाइए , उसमें सरसों का तेल डाल कर गाढा पेस्ट बनाइए। इसे चेहरे पर लगा कर रगडिये और इसे हफ्ते में दो बार लगाइये। ऐसा करने से चेहरा चमचमाने लगेगा।
2. हल्दी पाउडर को नमक के साथ मिलाइए। इसमें कुछ बूंदे नींबू और दूध की मिला सकती हैं। 5 मिनट के लिए मसाज कीजिए। इससे आपके चेहरे के बाल गायब होंगे और चेहरा सफेद भी होगा।
3. नींबू और शहद के पेस्ट को मिला कर अपने चेहरे पर 15-20 मिनट के लिए लगा रहने दीजिए। इसके बाद इसे रगड कर छुडाइए और ठंडे पानी से धो लीजिए।
4. चीनी डेड स्किन को हटाती है और चेहरे के बालों को जड़ से निकाल देती है। अपने चेहरे को पानी से गीला कीजिए उस पर चीनी लगा कर रगडिए। ऐसा हफ्ते में 2 बार जरुर कीजिए।
5. बेसन को हल्दी और दही के साथ मिलाए और चेहरे पर 20 मिनट के लिए लगाइए। इसे बाद में दूध और फिर ठंडे पानी से धो लीजिए। एएसा हफ्ते में 2 बार करें।
*🐑🐂 राशिफल🐊🐬*
🐏 *राशि फलादेश मेष* :-
घर के किसी सदस्य के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। धन प्राप्ति सुगम होगी। शत्रु परास्त होंगे। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
🐂 *राशि फलादेश वृष* :-
शत्रु भय रहेगा। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। पुराना रोग उभर सकता है। उन्नति होगी। धनलाभ होगा।
👫 *राशि फलादेश मिथुन* :-
भागदौड़ रहेगी। यात्रा सफल व मनोरंजक रहेगी। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। व्यवसाय ठीक चलेगा। नवीन कार्य के अवसर प्राप्त होंगे।
🦀 *राशि फलादेश कर्क* :-
वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। कलह होगी। व्यर्थ भागदौड़ रहेगी। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। हानि होगी।
🦁 *राशि फलादेश सिंह* :-
रयास सफल रहेंगे। सुख के साधन जुटेंगे। मान-सम्मान मिलेगा। धनार्जन होगा। पीड़ा संभव है। अपने परिश्रम से लाभ प्राप्त करेंगे।
👩🏻🏫 *राशि फलादेश कन्या* :-
शुभ समाचार प्राप्त होंगे। भूले-बिसरे साथियों से मुलाकात होगी। प्रसन्नता रहेगी। धनहानि संभव है। कर्ज, आसान वित्त आदि प्राप्त होंगे।
⚖ *राशि फलादेश तुला* :-
कष्ट, भय व पीड़ा का माहौल बन सकता है। भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। भेंट व उपहार की प्राप्ति संभव है।
🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक* :-
बेचैनी रहेगी। पुराना रोग उभर सकता है। व्ययवृद्धि होगी। कुसंगति से बचें। लेन-देन में सावधानी रखें। नए व्यवसाय के लिए लोन लेंगे।
🏹 *राशि फलादेश धनु* :-
लेनदारी वसूल होगी। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। निवेश लाभप्रद रहेगा। पुराना रोग उभर सकता है। वाहनादि चलाते समय सावधानी रखें।
🐊 *राशि फलादेश मकर* :-
स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। नई योजना बनेगी। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धनलाभ होगा। आर्थिक स्थिति सुधरेगी।
🏺 *राशि फलादेश कुंभ* :-
विवेक से कार्य करें। पूजा-पाठ में मन लगेगा। राजकीय बाधा दूर होगी। धनार्जन होगा। जोखिम न लें। जमीन विवाद की आशंका रहेगी।
🐋 *राशि फलादेश मीन* :-
चोट, चोरी व विवाद से हानि संभव है। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। कुसंगति से बचें। भागदौड़ रहेगी। बनता कार्य बिगड़ जाने से चिंता रहेगी।
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Famous Temple in India Mahakal Ujjain
Paras Parivaar Organization: Praised Mahakal Temple (महाकाल मंदिर) in India
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण क��ई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बा�� करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
धार्मिक नगरी उज्जैन पूरी दुनिया में काफी मशहूर है। मध्य प्रदेश की तीर्थ नगरी उज्जैन में शिप्रा तट के निकट 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकालेश्वर हैं। उज्जैन में महाकालेश्वर ��ंदिर भारत में भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसके अलावा यहाँ हर 12 साल में कुंभ मेले का भी आयोजन किया जाता है जो सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर में किए जाने वाले अनोखे अनुष्ठानों में से एक भस्म आरती है, जो अद्भुत रहस्य से भरी है इसलिए यह भस्म आरती दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करती है। आज इस ब्लॉग में हम उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के बारे में और महाकाल भस्म आरती के महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे।
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकालेश्वर
मध्यप्रदेश ��ाज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का यह प्रमुख मंदिर है। उज्जैन में भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकाल मंदिर स्थित है। महाकाल की नगरी उज्जैन को सब तीर्थों में श्रेष्ठ माना जाता है। यहां 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकाल मंदिर स्थित है।
यह न केवल एक पूजा स्थल है बल्कि अत्यधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का स्थल भी है। मंदिर की उत्पत्ति चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की मानी जाती है, जिसका उल्लेख मत्स्य पुराण और अवंती खंड जैसे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में मिलता है।
इस मंदिर में किया जाने वाले सबसे मुख्य अनुष्ठान भस्म आरती है जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर बरबस ही खींचती है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। यह भगवान शिव का सबसे पवित्र निवास स्थान माना जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि बाबा महाकालेश्वर के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
वास्तुकला
यह मंदिर उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसमें पाँच-स्तरीय शिकारा (शिखर), जटिल नक्काशी और एक विशाल प्रवेश द्वार है। इसके साथ ही मंदिर का आध्यात्मिक माहौल, पास में शिप्रा नदी के शांत घाटों के साथ मिलकर, भक्तों और पर्यटकों के लिए एक शांत वातावरण बनाता है। हिंदू धर्म में उज्जैन शहर का अपना अलग महत्व है। यह प्राचीन धार्मिक नगरी देश के 51 शक्तिपीठों और चार कुंभ स्थलों में से एक है।
क्यों कहा जाता है महाकाल ?
काल के दो अर्थ होते हैं एक समय और दूसरा मृत्यु। भगवान भोलेनाथ की नगरी उज्जैन हमेशा से ही काल-गणना के लिए बेहद उपयोगी एवं महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। देश के नक्शे में यह शहर 23.9 डिग्री उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर स्थित है।
कर्क रेखा भी इस शहर के ��पर से गुजरती है। साथ ही उज्जैन ही वह शहर है, जहां कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को काटती है। इस शहर की इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रख काल-गणना, पंचांग निर्माण और साधना के लिए उज्जैन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
दरअसल महाकाल को महाकाल इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्राचीन समय से ज्योतिषाचार्य यहीं से भारत की काल गणना करते आए हैं और यहीं से प्राचीन काल में पूरे विश्व का मानक समय निर्धारित होता था। इसी काल की गणना के कारण ही यहां भगवान शिव को महाकाल के नाम से जाना जाता है और यही वजह है कि इस ज्योतिर्लिंग का नाम महाकालेश्वर पड़ा।
“महाकाल” शब्द यानि “महान समय” है, जो भगवान शिव की शाश्वत प्रकृति को दर्शाता है। कहते हैं काल भी महाकाल के रौद्र रूप महाकाल के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं।
शास्त्रों का एक मंत्र- आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्। मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।। यानि सृष्टि में तीन लोक हैं- आकाश, पाताल और मृत्यु लोक। आकाश लोक के स्वामी हैं तारकलिंग, पाताल के स्वामी हैं हाटकेश्वर और मृत्युलोक के स्वामी हैं महाकाल। मृत्युलोक यानी पूरे संसार के स्वामी महाकाल ही हैं।
भस्म आरती
कालों के काल महाकाल के यहाँ हर दिन सुबह भस्म आरती होती है। इस आरती की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। यानि महाकालेश्वर मंदिर में सबसे अनोखा अनुष्ठान है भस्म आरती। इस अनुष्ठान में शिव लिंगम पर पवित्र राख, या “भस्म” लगाना शामिल है।
मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन का नाम तो हर किसी ने सुना होगा। धार्मिक मान्यताओं के लिए मशहूर यह शहर पूरी दुनिया में दो चीजों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। इनमें से पहला है यहां स्थित बाबा महाकाल का मंदिर और दूसरा यहां होने वाला कुंभ।
कालों के काल बाबा महाकाल के इस मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से हर साल लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुँचते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि यह स्थल अत्यन्त पुण्यदायी है। भगवान शिव के इस स्वरूप का वर्णन शिव पुराण में भी विस्तार से मिलता है।
भस्म आरती का समय
भस्म आरती के दर्शन करने के नियम कुछ खास होते हैं, इनका आपको पालन करना होता है। आपको बता दें कि यहां आरती करने का अधिकार सिर्फ यहाँ के पुजारियों को ही दिया जाता है अन्य लोग इसे केवल देख सकते हैं।
इस आरती को देखने के लिए पुरुषों को केवल धोती पहननी पड़ती है और महिलाओं को आरती के समय सिर पर घूंघट रखना पड़ता है। भस्म आरती का समय ऋतु परिवर्तन और सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय के साथ थोड़ा बदल जाता है। विशेष रूप से सुबह की भस्म आरती सबसे लोकप्रिय है और इसमें बहुत भीड़ होती है।
इस पवित्र समारोह को देखने और इसमें भाग ल��ने के लिए भक्त भोर से पहले ही जाग जाते हैं। भस्म आरती में अनुष्ठानों की एक श्रृंखला शामिल होती है, जिसमें वैदिक मंत्रों का जाप, पवित्र जल (अभिषेकम) की पेशकश और शिव पर विभूति का अनुप्रयोग शामिल है। पुजारी इन अनुष्ठानों को विधि विधान और समर्पण के साथ करते हैं।
भस्म आरती का समय
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती एक दैनिक अनुष्ठान है जो सुबह जल्दी शुरू होती है। भस्म आरती का समय निम्न है-
प्रातः भस्म आरती
यह भस्म आरती प्रातः 4:00 बजे से प्रातः 6:00 बजे तक होती है। यह सबसे प्रसिद्ध भस्म आरती है, इस पवित्र भस्म आरती के दर्शन के लिए भक्त बड़ी संख्या में आते हैं।
मध्याह्न भस्म आरती
यह भस्म आरती सुबह 10:30 से 11:00 बजे तक होती है।
संध्या भस्म आरती
इसका समय शाम 7:00 बजे से शाम 7:30 बजे तक है। इसका समय सूर्यास्त के समय के साथ बदलता रहता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि भस्म आरती देखना और भगवान शिव का आशीर्वाद लेना बेहद शुभ होता है। आरती के बाद, भक्तों को प्रसाद के रूप में पवित्र राख दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस राख को अपने माथे या शरीर पर लगाने से आध्यात्मिक शुद्धि और सुरक्षा मिलती है।
मंदिर का वैज्ञानिक महत्व
हम सबने भगवान शिव के इस मंदिर की पौराणिक कथाओं के बारे में सुना है लेकिन इस मंदिर का वैज्ञानिक महत्व शायद आपको पता न हो। खगोल शास्त्री मानते हैं कि मध्य प्रदेश का शहर उज्जैन ही पृथ्वी का केंद्र बिंदु है।
खगोल शास्त्रियों के अनुसार मध्य प्रदेश का यह प्राचीन शहर धरती और आकाश के बीच में स्थित है। इसके अलावा शास्त्रों में भी उज्जैन को देश का नाभि स्थल बताया गया है। यहाँ तक कि वराह पुराण में भी उज्जैन नगरी को शरीर का नाभि स्थल और बाबा महाकालेश्वर को इसका देवता कहा बताया गया है
उज्जैन के कुंभ को क्यों कहा जाता है सिंहस्थ
यहां हर 12 साल में पूर्ण कुंभ तथा हर 6 साल में अर्द्धकुंभ मेला लगता है। उज्जैन में होने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ कहा जाता है। आपको बता दें कि सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो तब उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है इसलिए उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।
दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है महाकाल
उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का पौराणिक महत्व भी बहुत अधिक है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी, जिसके बाद भक्तों के आग्रह के बाद भोलेबाबा यहां विराजमान हुए थे। दूषण का वध करने के पश्चात् भगवान शिव को कालों के काल महाकाल या भगवान महाकालेश्वर नाम से पुकारा जाने लगा।
यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है। ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन के बाद तीसरे नंबर पर महाकालेश्वर मंदिर आता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है।
इसलिए तंत्र साधना के लिए इसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। दरअसल तंत्र साधना के लिए दक्षिणमुखी होना जरूरी है। इस मंदिर को लेकर ये भी मान्यता है कि यहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे।
ज्योतिर्लिंग यानी शिव जी ज्योति स्वरूप में विराजित हैं। देशभर में 12 ज्योतिर्लिंग हैं। इन 12 जगहों पर शिव जी प्रकट हुए थे और भक्तों की इच्छा पूरी करने के लिए इन जगहों पर ज्योति रूप में विराजमान हो गए।
यह मंदिर हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस मंदिर की तीर्थयात्रा करने से आपके सभी पाप धुल जाते हैं और आपको जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। महाकाल को उज्जैन का महाराज भी कहते हैं, माना जाता है कि किसी भी शुभ चीज को करने से पहले महाकाल का आशीर्वाद लेना बहुत ही शुभ फल देता है।
इन नामों से भी जाना जाता है उज्जैन को
शिप्रा, जिसे क्षिप्रा के नाम से भी जाना जाता है यह मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य की एक नदी है। क्षिप्रा नदी के तट पर बसे होने की वजह से इस शहर को शिप्रा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा यह शहर संस्कृत के महान कवि कालिदास की नगरी के नाम से भी काफी प्रचलित है।
यह मध्य प्रदेश के पांचवें सबसे बड़े शहरों में से है, जो अपनी धार्मिक मान्यातों के चलते दुनियाभर में पर्यटन का प्रमुख स्थल है। प्राचीन समय में उज्जैन को अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा के नाम से भी जाना जाता था।
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शिव सहस्रनाम का पाठ करने के नियम, पूजा महत्व और लाभ
शिव सहस्रनाम भगवान शिव के 1000 नामों का स्तोत्र है। यह महाकाव्य महाभारत के अनुशासन पर्व में वर्णित है। शिव सहस्रनाम का पाठ करना भगवान शिव की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
शिव सहस्रनाम भगवान शिव की भक्ति का एक सरल और प्रभावी तरीका है। इसका नियमित पाठ करने से जीवन में अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
शिव सहस्रनाम का पाठ करने के नियम:
शिव सहस्रनाम का पाठ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थान को स्वच्छ और रंगोली, फूलों, दीपक आदि से सजाएं।
भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग स्थापित करें।
गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, और पंचामृत से भगवान का अभिषेक करें।
धूप, दीप जलाएं और भोग लगाएं।
शांत मन से बैठकर शिव सहस्रनाम का पाठ करें।
प्रत्येक नाम का अर्थ समझने का प्रयास करें।
पाठ पूर्ण करने के बाद आरती करें और भगवान से प्रार्थना करें।
शिव सहस्रनाम पूजा का महत्व:
शिव सहस्रनाम का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
यह पापों का नाश करता है और पुण्य प्रदान करता है।
इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
रोग, शत्रु, भय और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
ज्ञान, बुद्धि, और विद्या प्राप्त होती है।
गृह क्लेश और संकट दूर होते हैं।
वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
शिव सहस्रनाम का पाठ करने के लाभ:
शिव सहस्रनाम का पाठ करने से मन शांत होता है और एकाग्रता बढ़ती है।
इससे आत्मविश्वास बढ़ता है और सकारात्मक सोच विकसित होती है।
यह व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक बनाता है।
इससे जीवन में खुशी और समृद्धि आती है।
शिव सहस्रनाम कुछ विशेष बातें:
शिव सहस्रनाम का पाठ प्रतिदिन या सोमवार, प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि, या महाशिवरात्रि को करना विशेष फलदायी माना जाता है।
पाठ करते समय रुद्राक्ष की माला पहनना शुभ होता है।
यदि आप संस्कृत का उच्चारण नहीं जानते हैं तो आप हिंदी में शिव सहस्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं।
आप किसी पुजारी या विद्वान से भी शिव सहस्रनाम का पाठ विधि सीख सकते हैं।
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*🪷 अक्षय तृतीया (आखातीज) 🪷*
*10 मई 2024, शुक्रवार का पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि *
हमारे यहां अक्षय तृतीया पर्व का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया का दिन अपने आप में अबूझ स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। इस दिन शुभ कार्यों को करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है। इस दिन को आमतौर पर आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस साल अक्षय तृतीया या आखा तीज कल 10 मई 2024, शुक्रवार को मनाई जाएगी।
*पूजा का शुभ मुहूर्त-:*
तृतीया तिथि 10 मई शुक्रवार को प्रातःकाल 04:17 बजे प्रारंभ होकर संपूर्ण दिन रहेगी।
अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु व लक्ष्मी माता की पूजा उपासना होती है, इस दिन सूर्योदय से लेकर सुबह 10:30 तक पूजा उपासना का श्रेष्ठ शुभ मुहूर्त रहेगा।
*खरीदारी के लिए चौघड़िये-:*
अक्षय तृतीया के दिन सोना, चांदी के आभूषण, बर्तन, वस्त्र, वाहन इत्यादि खरीदने की परंपराएं रही है अतः आप इन शुभ चौघड़ियों में संबंधित वास्तुए��� खरीद सकते हैं।
*शुभ चौघड़िये-:*
चर-: 05:33 से 07:14 तक|
लाभ-:07:14 से 08:55 तक|
अमृत-:08:55 से 10:36 तक|
शुभ-: 12:17 से 13:58 तक|
*अक्षय तृतीया का महत्व-:*
अक्षय का अर्थ है अविनाशी जो हमेशा बना रहता है और तृतीया का अर्थ है शुक्ल पक्ष का तीसरा दिन, ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन शुभ कार्य करते हैं, वह हमेशा के लिए बना रहता है और कभी खत्म नहीं होता। इस दिन लोग नए व्यापारिक उपक्रम, नौकरी, गृह प्रवेश शुरू करते हैं और धार्मिक कार्य करते हैं। इस दिन सोना, चांदी और आभूषण खरीदने के लिए शुभ माना जाता है और यह भी माना जाता है कि ये चीजें उनके जीवन में सफलता, सौभाग्य और समृद्धि लाती हैं।
*अक्षय तृतीया व परंपराएं-:*
यह दिन नई शुरुआत के लिए, विशेष रूप से विवाह, सगाई , गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ और अन्य निवेशों के लिए शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया को सनातन संस्कृति में एक शुभ दिन माना जाता है और यह समृद्धि की अनंत बहुतायत का प्रतिनिधित्व करता है। देवी-देवताओं को प्रार्थना अर्पित करना भी पूजा का हिस्सा है। इस दिन मंदिरों को सजाया जाता है, विशेष पूजा की जाती है, इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
*दान-:*
इस दिन दान-सेवा इत्यादि करने से भी अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है अतः इस दिन काफी लोग मंदिरों व गौशाला में दान पुण्य करते हैं।
*जप-:*
अक्षय तृतीया अक्षय फल प्रदान करने वाली मानी गई है अतः इस दिन मंत्र जप- नाम जप- रामचरितमानस भगवतगीता- श्रीविष्णु सहस्त्रनाम- गोपाल सहस्त्रनाम- सुंदरकांड- श्रीहनुमान चालीसा- श्रीराम रक्षा स्तोत्र इत्यादि के पाठ विधि विधान से किए जाते हैं।
*अक्षय तृतीया पूजा विधि-:*
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान के जल में थोड़ा गंगाजल मिला लें. पूजा स्थल और आसपास की जगह को साफ करें. फिर भगवान श्रीविष्णु, माता लक्ष्मीजी की तस्वीर- मूर्तियां स्थापित करें।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का दूध, शहद, दही, घी, शक्कर और जल के मिश्रण से अभिषेक करें।
भगवान विष्णुजी को तुलसी पत्र अर्पित करें, अक्षत और चंदन का टीका, और माता लक्ष्मी को कुमकुम का टीका लगाएं।
भगवान श्री विष्णु, माता लक्ष्मी को फल पुष्प अर्पित करें। फल में विशेष कर केला व गुलाब, कमल, गुड़हल, मोगरा, गेंदा इत्यादि पुष्प अर्पित करें।
जौ, गेहूं, तिल, चना दाल, दूध से बने मीठे पकवान, खीर और अन्य घर का बना शाकाहारी भोजन का भोग लगाएं. इसके बाद कपूर, घी का दीया और धूप जलाएं।
पूरे परिवार के साथ मिलकर धूप, दीप, कपूर इत्यादि से भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी जी की आरती करें।।
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( #Muktibodh_part238 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part239
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 457-458
‘‘स्मरण दीक्षा‘‘
भावार्थ है कि नेक नीति से रहो। अजर-अमर जो सार शब्द है, वह तथा दो अक्षर वाला सत्यनाम प्राप्त करो। यह मूल दीक्षा है। केवल पाँच तथा सात नाम से मोक्ष नहीं है।
टकसारी पंथ वाले ने इसी चूड़ामणि वाले पंथ से दीक्षा लेकर यानि नाद वाला बनकर मूर्ख बनाया था कि कबीर साहब ने कहा है कि तेरे बिन्द वाले मेरे नाद वाले से दीक्षा लेकर
ही पार होंगे। इससे भ्रमित होकर धर्मदास के छठी पीढ़ी वाले ने वास्तविक पाँच मंत्र (कमलों को खोलने वाले) छोड़कर नकली नाम जो सुमिरन बोध के पृष्ठ 22 पर लिखे हैं जो ऊपर लिखे हैं (आदिनाम, अजरनाम, अमीनाम ...), प्रारम्भ कर दिए जो वर्तमान में दामाखेड़ा गद्दी वाले महंत जी दीक्षा में देते हैं। वह गलत हैं। उसने टकसारी पंथ बनाया तथा उसने चुड़ामणि वाले पंथ से भिन्न होकर अपनी चतुराई से अन्य साधना प्रारम्भ की थी जो ऊपर बताई है। उसने मूल गद्दी वाले धर्मदास की छठी पीढ़ी वाले को भ्रमित किया कि हमने तो एक सत्यपुरूष की भक्ति करनी है। ये मूल कमल से लेकर कण्ठ कमल तक वाले देवी-देवताओं के नाम जाप नहीं करने, नहीं तो काल के जाल में ही रह जाएंगे। फिर कबीर सागर स��� उपरोक्त पूरे शब्द (कविता) को दीक्षा मंत्रा बनाकर देने लगा। मनमानी आरती चौंका बना लिया। इस तर्क से प्रभावित होकर धर्मदास जी की छठी गद्दी वाले महंत जी ने टकसारी वाली दीक्षा स्वयं भी ले ली और शिष्यों को भी देने लगा जो वर्तमान में दामाखेड़ा
गद्दी से प्रदान की जा रही है जो व्यर्थ है।
‘‘अनुराग सागर‘‘ अध्याय के पृष्ठ 140 की वाणियों का भावार्थ चल रहा है।
हे धर्मदास! तेरी छठी पीढ़ी वाला टकसारी पंथ वाली दीक्षा तथा आरती चौंका नकली स्वयं भी लेगा और आगे वही चलेगा। इस प्रकार तेरा बिन्द (वंश पुत्र प्रणाली) अज्ञानी हो जाएगा। हमारी सर्व साधना झाड़ै यानि छोड़ देगा। अपने आपको अधिक महान मानेगा, अहंकारी होगा जो मेरा नाद (शिष्य परंपरा में तेरहवां अंश आएगा, उस) के साथ झगड़ा करेगा। तेरा पूरा वंश वाले दुर्मति को प्राप्त होकर वे बटपार (ठग=धोखेबाज) मेरे तेरहवें
वचन वंश (नाद शिष्य) वाले मार्ग में बाधा उत्पन्न करेंगे।
अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 140 से वाणी सँख्या 16 :-
धर्मदास तुम चेतहु भाई। बचन वंश कहं देहु बुझाई।।1
कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! तुम कुछ सावधानी बरतो। अपने वंश के व्यक्तियों को समझा दो कि सतर्क रहें।
हे धर्मदास! जब काल ऐसा झपटा यानि झटका मारेगा तो मैं (कबीर जी) सहायता करूँगा। अन्य विधि से अपना सत्य कबीर भक्ति विधि प्रारम्भ करूँगा। नाद हंस (शिष्य परंपरा का आत्मा) तबहि प्रकटावैं। भ्रमत जग भक्ति दृढ़ावैं।।2
नाद पुत्र सो अंश हमारा। तिनतै होय पंथ उजियारा।।3
बचन वंश नाद संग चेतै। मेटैं काल घात सब जेते।।4
{बचन वंश का अर्थ धर्मदास जी के वंशजों से है क्योंकि श्री चूड़ामणि जी को कबीर परमेश्वर जी ने दीक्षा दी थी। इसलिए बचन वंश कहे गए हैं। बाद में अपनी संतान को उत्��राधिकार बनाने लगे। वे बिन्द के कहे गए हैं। नाद से स्पष्ट है कि शिष्य परंपरा वाले।}
अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ पृष्ठ 141 से :-
शब्द की चास नाद कहँ होई। बिन्द तुम्हारा जाय बिगोई।।5।।
बिन्द से होय न नाम उजागर। परिख देख धर्मनि नागर।।6।।
चारहूँ युग देख हूँ समवादा। पंथ उजागर कीन्हो नादा।।7।।
धर्मनि नाद पुत्र तुम मोरा। ततें दीन्हा मुक्ति का डोरा।।8।।
भावार्थ :- वाणी नं. 8 में परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट भी कर दिया है कि नाद किसे कहा है? हे धर्मनि! तुम मेरे नाद पुत्र अर्थात् शिष्य हो और जो आपके शरीर से उत्पन्न हो, वे आपके बिन्द परंपरा है।
वाणी नं. 2 में वर्णन है कि जब-जब काल मेरे सत्यभक्ति मार्ग को भ्रष्�� करेगा। तब मैं अपना नाद अंश यानि शिष्य रूपी पुत्र प्रकट करूँगा जो यथार्थ भक्ति विधि तथा यथार्थ अध्यात्मिक ज्ञान से भ्रमित समाज को सत्य भक्ति समझाएगा, सत्य मार्ग को दृढ़ करेगा।
जो मेरा नाद (वचन वाला शिष्य) अंश आएगा, उससे मेरा यथार्थ कबीर पंथ प्रसिद्ध होगा, (उजागर यानि प्रकाश में आवैगा।) बिन्द वंश (जो धर्मदास तेरे वंशज) हैं, उनका कल्याण भी नाद (मेरे शिष्य परंपरा वाले) से होगा।
वाणी नं. 5 में कहा है कि शब्द यानि सत्य मंत्र नाम की चास यानि शक्ति नाद (शिष्य परंपरा वाले) के पास होगी। यदि मेरे नाद वाले से दीक्षा नहीं लेंगे तो तुम्हारा बिन्द यानि वंश परंपरा महंत गद्दी वाला बर्बाद हो जाएंगे।
वाणी नं. 6 में वर्णन है कि बिन्द से कभी भी नाद यानि शिष्य प्रसिद्ध नहीं हुआ।
भावार्थ है कि महंत गद्दी वाले तो अपनी गद्दी की सुरक्षा में ही उलझे रहते हैं। अपने स्वार्थवश मनमुखी मर्यादा बनाकर बाँधे रखते हैं।
वाणी नं. 7 में कहा है कि चारों युगों का इतिहास उठाकर देख ले। संवाद यानि चर्चा करके विचार कर। प्रत्येक युग में नाद से ही पंथ का प्रचार व प्रसिद्धि हुई है।
प्रमाण :- 1. सत्ययुग में कबीर जी सत सुकृत नाम से प्रकट हुए थे। उस समय सहते जी को शिष्य बनाया था। उससे प्रसिद्धि हुई है।
2. त्रेता में बंके जी को शिष्य बनाया था, उससे प्रसिद्धि हुई थी।
3. द्वापर में चतुर्भुज जी को शिष्य बनाया था, उससे सत्यज्ञान प्रचार हुआ था।
4. कलयुग में धर्मदास जी को शिष्य बनाया था जिनके कारण ही वर्तमान तक कबीर पंथ की प्रसिद्धि तथा विस्तार हुआ है।
क्रमशः_____
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( #Muktibodh_part187 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part188
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 359-360
कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ का सारांश (छठा अध्याय) जैसा कि इस ग्रन्थ (कबीर सागर का सरलार्थ) के प्रारम्भ में लिखा है कि कबीर सागर
के यथार्थ अर्थ को न समझकर कबीर पंथियों ने इस ग्रन्थ में अपने विवेक अनुसार फेर-बदल किया है। कुछ अंश काटे हैं। कुछ आगे-पीछे किए हैं। कुछ बनावटी वाणी लिखकर कबीर सागर का नाश किया है। परंतु सागर तो सागर ही होता है। उसको खाली नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार कबीर सागर में बहुत सा सत्य विवरण उनकी कुदृष्टि से बच गया है। शेष मिलावट को अब एक बहुत पुराने हस्तलिखित ‘‘कबीर सागर‘‘ से मेल करके तथा संत गरीबदास जी की अमृतवाणी के आधार से तथा परमेश्वर कबीर जी द्वारा मुझ दास (रामपाल दास) को दिया, दिव्य ज्ञान के आधार से सत्य ज्ञान लिखा गया है। एक प्रमाण बताता हूँ जो बुद्धिमान के लिए पर्याप्त है। ज्ञान प्रकाश में परमेश्वर कब���र जी द्वारा धनी धर्मदास जी को शरण में लेने का विवरण है। आपसी संवाद है, परंतु धर्मदास जी का निवास स्थान भी गलत लिखा है। पृष्ठ 21 पर पूर्व गुरू रूपदास जी से शंका का निवारण करके अपने घर चले गए। धर्मदास जी
का निवास स्थान ‘‘मथुरा नगर‘‘ लिखा है, वाणी इस प्रकार हैः-
तुम हो गुरू वो सतगुरू मोरा।
उन हमार यम फंदा तोरा (तोड़ा)।।
धर्मदास तब करी प्रणामा।
मथुरा नगर पहुँचे निज धामा।।
जबकि धर्मदास जी का निज निवास स्थान ‘‘बांधवगढ़‘‘ कस्बा था जो मध्यप्रदेश में है। संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में सर्व सत्य विवरण लिखा है कि धर्मदास बांधवगढ़ के रहने वाले सेठ थे। वे तीर्थ यात्रा के लिए मथुरा गए थे। उसके पश्चात् अन्य तीर्थों पर जाना था। कुछ तीर्थों पर भ्रमण कर आए थे। नकली कबीरपंथियों द्वारा किए फेर-बदल का
अन्य प्रमाण इसी ज्ञान प्रकाश में धर्मदास जी का प्रकरण चल रहा है। बीच में सर्वानन्द ब्राह्मण की कथा लिखी है जो वहाँ पर नहीं होनी चाहिए। केवल धर्मदास की ही बात होनी चाहिए। पृष्ठ 37 से 50 तक सर्वानन्द की कथा है। इससे पहले पृष्ठ 34 पर धर्मदास जी को नाम दीक्षा देने, आरती-चांका करने का प्रकरण है। पृष्ठ 35 पर गुरू की महिमा की वाणी
है जो पृष्ठ 36 तक है। फिर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई है जो मात्र तीन वाणी हैं। इसके बाद ‘‘सतगुरू वचन‘‘ वाला प्रकरण मेल नहीं करता। पृष्ठ 36 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई की तीन वाणी के पश्चात् पृष्ठ 50 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ से मेल (स्पदा) करता है जो सर्वानन्द
के प्रकरण के पश्चात् ‘‘धर्मदास वचन‘‘ की वाणी है।
ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 36 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई हो साहब तव पद सिर नाऊँ। तव पद परस परम पद पाऊँ।।
केहि विधि आपन भाग स��ाही । तव बरत गहैं भाव पुनः बनाई।।
कोधों मैं शुभ कर्म कमाया।
जो सदगुरू तव दर्शन पाया।।
ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 50 ‘‘धर्मदास वचन‘‘
धन्य धन्य साहिब अविगत नाथा।
प्रभु मोहे निशदिन राखो साथा।।
सुत परिजन मोहे कछु न सोहाही।
धन दारा अरू लोक बड़ाई।।
इसके पश्चात् सही प्रकरण है। बीच में अन्य प्रकरण लिखा है, वह मिलावटी तथा गलत है।
नाम दीक्षा देने के पश्चात् परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को प्रसन्न करने के लिए कहा कि जब आपको विश्वास हो जाएगा कि मैं जो ज्ञान तथा भक्ति मंत्रा बता रहा हूँ, वे सत्य हैं। फिर तेरे को गुरू पद दूँगा। आप दीक्षा लेने वाले से सवा लाख द्रव्य (रूपये या सोना) लेकर दीक्षा देन���। परमात्मा ने धर्मदास जी की परीक्षा ली थी कि वैश्य (बनिया) जाति से है यदि लालची होगा तो इस लालचवश मेरा ज्ञान सुनता रहेगा। ज्ञान के पश्चात् लालच रहेगा ही नहीं। परंतु धर्मदास जी पूर्ण अधिकारी हंस थे। सतलोक से विशेष आत्मा भेजे थे।
फिर उन्होंने इस राशि को कम करवाया और निःशुल्क दीक्षा देने का वचन करवाया यानि माफ करवाया।
अब ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 9 से आवश्यक वाणी लेते हैं क्योंकि जो अमृतवाणी परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से बोली गई है, उसके पढ़ने-सुनने से भी अनेकों पाप नाश होते हैं। ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 9 से वाणीः-
धर्मदास बोध = ज्ञान प्रकाश
निम्न वाणी पुराने कबीर सागर ग्रन्थ के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ से हैं :-
बांधवगढ़ नगर कहाय।
तामें धर्मदास साह रहाय।।
धन का नहीं वार रू पारा।
हरि भक्ति में श्रद्धा अपारा।।
रूप दास गुरू वैष्णव बनाया।
उन राम कृष्ण भगवान बताया।।
तीर्थ बरत मूर्ति पूजा।
एकादशी और सालिग सूजा।।
ताके मते दृढ़ धर्मनि नागर।
भूल रहा वह सुख का सागर।।
तीर्थ करन को मन चाहा।
गुरू आज्ञा ले चला उमाहा।।
भटकत भ्रमत मथुरा आया।
कृष्ण सरोवर में उठ नहाया।।
चौका लीपा पूजा कारण।
फिर लगा गीता सलोक उचारण।।
ताही समय एक साधु आया।
पाँच कदम पर आसन लाया।।
धर्मदास को कहा आदेशा।
जिन्दा रूप साधु का भेषा।।
धर्मदास देखा नजर उठाई।
पूजा में मगन कछु बोल्या नाहीं।।
जग्यासु वत देखै दाता।
धर्मदास जाना सुनत है बाता।।
ऊँचे सुर से पाठ बुलाया।
जिन्दा सुन-सुन शीश हिलाया।।
धर्मदास किया वैष्णव भेषा।
कण्ठी माला तिलक प्रवेशा।।
पूजा पाठ कर किया विश्रामा।
जिन्दा पुनः किया प्रणामा।।
जिन्दा कहै मैं सुना पाठ अनुपा।
तुम हो सब संतन के भूपा।।
मोकैं ज्ञान सुनाओ गोसाँई।
भक्ति सरस कहीं नहीं पाई।।
मुस्लिम हिन्दू गुरू बहु देखे।
आत्म संतोष कहीं नहीं एके।।
धर्मदास मन उठी उमंगा।
सुनी बड़ाई तो लागा चंगा।।
◆ धर्मदास वचन
जो चाहो सो पूछो प्रसंगा।
सर्व ज्ञान सम्पन्न हूँ भक्ति रंगा।।
पूछहूँ जिन्दा जो तुम चाहो।
अपने मन का भ्रम मिटाओ।।
◆ जिन्द वचन
तुम काको पाठ करत हो संता।
निर्मल ज्ञान नहीं कोई अन्ता।।
मोकूं पुनि सुनाओ बाणी।
जातें मिलै मोहे सारंग पाणी।।
तुम्हरे मुख से ज्ञान मोहे भावै।
जैसे जिह्ना मधु टपकावै।।
धर्मदास सुनि जब कोमल बाता।
पोथी निकाली मन हर्षाता।।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक भाई दूज की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
भाई दूज के साथ एक शाब्दिक अर्थ जुड़ा हुआ है। दो वाक्यांशों से बना है- भाई और दूज, भाई का अर्थ भाई है और दूज का अर्थ है अमावस्या के बाद का दूसरा दिन। जिस बहन का भाई-बहन उससे बहुत दूर रहता है, वह चंद्रमा भगवान के माध्यम से अपने भाई-बहन की लंबी उम्र के लिए सच्ची प्रार्थना करती है। वह चंद्रमा की आरती करती है। और उनके लिए खुशी, अच्छा स्वास्थ्य, सफलता और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। और उनकी मनोकामना पूरी भी होती हैं, । ❓ आखिर क्यों ?
क्योंकि चंद्रमा में भगवान कल्कि अवतार रा गौहर शाही जी की दिव्य छवि मौजुद है जो की अभी के समय में अपनी इन आंखों से देख सकते हैं। ये छवि केवल दिखाई ही नहीं देती बल्कि अनेक भाषाओं में लोगो से बात भी कर चुकी है, अनेकों लोगो ने सरकार गौहर शाही जी महाराज की इस चंद्रमा वाली छवि से इलाज भी कराया और पवित्र नामदान भी प्राप्त किया।
आप भी चंद्रमा वाली इस छवि से बात चीत करने की कोशिश करें और विपदा के समय मदद के लिए भी पुकारें, मदद अवश्य होगी चंद्रमा से पवित्र नामदान लेने का तरीका।
1.) पूर्णिमा की रात चंद्रमा पर कल्कि अवतार की छवि देखें।
2.) चंद्रमा में रा गौहर शाही जी महाराज को अपनी मदद के लिए पुकारे और ती�� बार (रा राम , रा राम , रा राम) पढ़े नाम दान प्राप्त हो जाएगा ।
3.) फिर यह नामदान मन की माला (दिल की हर दो धड़कनों) के साथ दिल की एक धड़कन के साथ रा और दिल की दूसरी धड़कन के साथ राम बार बार मिलाते रहें।
4.) “रा राम" धड़कनों में बार बार टकरायेगा तो दिव्य प्रकाश, दिव्य ज्योति बनेगी । " उत्तर आपके हृदय में गूंजेगा।"
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🙏🙏🛕🛕🪔🪔🔔🔔🌈🌈🌎🌍📡📡🎙️🎙️🇮🇳🇮🇳🌹🌹SEPTEMBER 12 : श्री राधाकृष्णमयी भक्ति सत्संगमयी शुभ सुंदर मंगलमय सोमवार 🌹 हरिबोल 🌹 प्रेम से बोलो सच्चिदानंद भक्त वत्सल भगवान की जय 🌹 जय जय श्री राधे 🌹 श्रीमद् भागवत महापुराण अमृत कथा (गंतव्य से आगे) : - श्रीशुकदेवजी ने कहा - परीक्षित! श्री मैत्रेयजी ने कहा - विदुरजी! देवर्षि नारदजी ने ध्रुव से कहा! - पुत्र! तुम निरंतर एकाग्रचित होकर प्रभु श्रीहरि के श्रीचरणों का ध्यान करो। जिस जीव के मन में धर्म अर्थ काम मोक्ष की अभिलाषा होती है उसके लिए ईश्वर को प्राप्त करने के लिए प्रभु के श्री चरणकमलों का ध्यान भजन ही सर्वोपरि है। तुम्हारी अतिशीघ्र अवश्य पूरी होगी। धैर्य मत खोना। प्रभु श्रीहरि तो सभी जीवों को बिना किसी भेदभाव के आश्रय प्रदान करने वाल�� हैं। वे अपार सुख देने वाले हैं। शरण वत्सल व भक्त वत्सल हैं और दया के सागर हैं। श्याम सुंदर पीताम्बर धारी मोर मुकुट गल वैजयंती माला तथा चारों भुजाओं में शंख चक्र गदा व पद्म धारण किए हुए भगवान पुरुषोत्तम सदैव 😊 प्रसन्न वंदन /मुद्रा में रहते हैं। परमानंद में ही उनका वास है और वे सदा हर्षित होकर अपने प्रिय भक्तों को वर देने के लिए तैयार रहते हैं। ईश्वर के दिव्य स्वरूप को अपने ह्रदय में धारण करो।प्रभु का यह स्वरूप निश्चय ही बड़ा दर्शनीय शांत तथा मन और ��ेत्रों को आनंदित करने वाला है...... To be continued...... श्रीमद् भागवत अमृत महापुराण की है ये आरती ।पापीयों को पाप से है तारती ।ये अमर ग्रन्थ ये मुक्ति पंथ ये पंचम वेद निराला ।नव ज्योति जगाने वाला ।हरि नाम यही हरि धाम यही ये जगमंगल की आरती ।पापीयों..... ये शांतिगीत पावन पुनीत पापों को मिटाने वाला ।हरि दरश दिखानेवाला ।यह सुखकरनी यह दुःख हरनी श्री मधुसूदन की आरती ।पापीयों..... ये मधुर बोल जगफंद खोल सन्मार्ग दिखानेवाला ।बिगड़ी को बनाने वाला ।श्री राम यही घनश्याम यही प्रभु की महिमा की आरती। पापीयों..... प्रणाम 🛕🛕🪔🪔🔔🔔🌎🌍🌈🌈📡📡🎙️🎙️🇮🇳🇮🇳🌹🌹🙏🙏 https://www.instagram.com/p/CiYJaxjBsIm/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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।। नमो नमः ।। ।।भाग्यचक्र ।। आज का पञ्चाङ्ग :- संवत :- २०७९ दिनांक :- 03 सितंबर 2022 सूर्योदय :- 06:10 सूर्यास्त :- 18:43 सूर्य राशि :- सिंह चंद्र राशि :- तुला मास :- भाद्रपद तिथि :- सप्तमी वार :- शनिवार नक्षत्र :- अनुराधा योग :- वैधृ करण :- वणिज अयन:- दक्षिणायन पक्ष :- शुक्ल ऋतू :- वर्षा लाभ :- 14:00 - 15:34 अमृत:- 15:35 - 17:08 शुभ :- 07:43 - 09:17 राहु काल :- 09:18 - 10:53 जय महाकाल महाराज :- *गणेशोत्सव प्रारम्भ:-* *श्री गणपति द्वादश नामावली:-* गणपति जी के द्वादश नाम का नित्य ११ या २१ बार पाठ करें। *विघ्नविनाशक-गणेश-द्वादशनामस्तोत्रम्* *सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।* *लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।* *धूम्रकेतुर्गण��ध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।* द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।। विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।। हिन्दी अर्थ- 1. सुमुख 2.एकदन्त 3.कपिल 4. गजकर्णक 5. लम्बोदर 6. विकट 7. विघ्ननाश 8. विनायक 9. धूम्रकेतु 10. गणाध्यक्ष 11. भालचन्द्र 12. गजानन - इन बारह नामों को विद्यारम्भकाल में, विवाहकाल में, प्रवेशकाल में, निर्गम काल में (यात्रा के समय), संग्राम के समय और संकट के समय जो पढे अथवा सुने भी, उन्हें कोई विध्न नहीं होता है। आज का मंत्र :- ""|| ॐ शं शनैश्चराय नमः।। ||"" *🙏नारायण नारायण🙏* जय महाकालेश्वर महाराज। माँ महालक्ष्मी की कृपा सदैव आपके परिवार पर बनी रहे। 🙏🌹जय महाकालेश्वर महाराज🌹🙏 महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का आज का भस्म आरती श्रृंँगार दर्शन। 03 सितंबर 2022 ( शनिवार ) जय महाकालेश्वर महाराज। सभी प्रकार के ज्योतिष समाधान हेतु। Whatsapp@9522222969 https://www.facebook.com/Bhagyachakraujjain शुभम भवतु ! 9522222969 https://www.instagram.com/p/CiB4gsRrd1U/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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शनिवार को करें कष्टभंजन हनुमानजी की आरती वंदना
शनिवार को करें कष्टभंजन हनुमानजी की आरती वंदना
सभी देवताओं में कष्टभंजन हनुमानजी का अवर्णनीय स्थान है.. हनुमानजी का नाम स्मरण करने मात्र से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो चलिए शुरू करते हैं हनुमानजी की आरती के दर्शन के साथ आज का सफर.. Source link
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🚩गंगा दशहरा प्रारम्भ 31 मई से 9 जून तक,इन 10 दिनों के पर्व में गंगा स्नान का विशेष महत्व - 31 मई 2022
🚩जैसे मंत्रो में ॐ कार, स्त्रियों में गोरी देवी, तत्वों में गुरुतत्व और विद्याओं में आत्म विद्या उत्तम हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण तीर्थो में गंगातीर्थ विशेष माना जाता हैं।
🚩गंगा दशहरा जिसे गंगावतरण के नाम से भी जाना जाता है, यह एक हिन्दू त्योहार है, जो गंगा के अवतार (अवतरण) के नाम से जाना जाता है ।
🚩गंगा दशहरा का पर्व हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है,गंगा दशहरा के 10 दिनों में स्नान और दान का विशेष महत्व है।
🚩 इस दिन मां गंगा सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी के कमंडल से निकल पर पृथ्वी पर अवतरित हुई थी, राजा भागीरथ के कठोर तपस्या के चलते मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था, पृथ्वी पर अवतार से पहले गंगा नदी स्वर्ग का हिस्सा थीं।
🚩गंगा दशहरा के दिन भक्त देवी गंगा की पूजा करते हैं और गंगा में डु��की लगाते हैं और दान-पुण्य, उपवास, भजन और गंगा आरती का आयोजन करते हैं। मान्यता है इस दिन मां गंगा की पूजा करने से भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है।
🚩हिन्दू धर्म में गंगा माँ को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। यह माना जाता है कि जब मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं तो वह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी, तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
🚩वर्तमान समय में भौतिक जीवन जी रहे मनुष्य से जाने अनजाने जो पाप कर्म हो जाते हैं उनकी मुक्ति के लिए मां गंगा की साधना करनी चाहिए। कहने का तात्पर्य है कि जिस किसी ने भी पापकर्म किये हैं और जिसे अपने किये का पश्चाताप है और पाप मुक्ति पाना चाहते है तो उसे सच्चे मन से मां गंगा की पूजा अर्चना अवश्य करनी चाहिये।
🚩इन दिनों में गंगा नदी में दीपदान किये जाते,गंगा माँ की मूर्ति की पूजा की जाती है,महाआरती की जाती है,गंगा दशहरा हिंदुओं द्वारा मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड , बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों में मनाया जाता है ,जहां गंगा नदी बहती है। हरिद्वार , वाराणसी , गढ़मुक्तेश्वर , ऋषिकेश , इलाहाबाद और पटना उत्सव के मुख्य स्थान हैं।
🚩जहां भक्त गंगा के तट पर इकट्ठा होते हैं और आरती करते हैं (एक धार्मिक अनुष्ठान जिसमें एक प्रकाश दीपक को दक्षिणावर्त घुमाया जाता है। एक देवता की प्रार्थना के एक भाग के रूप में) नदी के लिए। माना जाता है कि इन दिनों में गंगा नदी में डुबकी लगाने से भक्त की मनो कामना पूर्ण होती है, गंगा स्नान शुद्धिकरण के साथ उसके किसी भी प्रकार के शारीरिक रोग को भी ठीक करता है।
🚩संस्कृत में , दशा का अर्थ है दस और हारा का अर्थ है नष्ट करना; इस प्रकार इन दस दिनों के दौरान नदी में स्नान करने से व्यक्ति को दस पापों या वैकल्पिक रूप से दस जन्मों के पापों से छुटकारा मिलता है।
🚩इन दिनों में , जो गंगा नदी तक नही पहुँच पाए तो वे गंगा का स्मरण करते हुए नर्मदा,यमुना,सरस्वती ,कावेरी,गोदावरी, सिंधु,ब्रह्मपुत्र आदि नदियों में जाकर या अपने नजदीक किसी मे नदी के तट पर जाकर गंगा का स्मरण करते हुए स्नान कर सकते है।
🚩जो गंगा घाट जैसे हरिद्वार, प्रयागराज, काशी नही जा पाए तो घर मे ही स्वच्छ जल में थोड़ा गंगा जल मिलाकर मां गंगा का स्मरण कर उससे भी स्नान कर सकते हैं।
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माझी शाळा..
कुठल्याही शाळेचा अविभाज्य घटक हे शिक्षकच ! आपल्या आयुष्यात आई वडीलांखेरीज जे आपल्याला घडवतात ,चूक काय बरोबर काय हे दाखवून देतात, चुकल्यावर ओरडतात तसेच प्रसंगी मनभरून कौतुकही करतात....
प्रबोधिनीच्या अध्यापकांशी असलेले आमचे नाते हे फक्त वर्गात शिकवण्यापुरतें मर्यादीत नव्हते, कोणत्याही सामान्य अध्यापकांपेक्षा त्यांनी नक्कीच आमची घडवणूक वेगळ्या रोतीने केली. मग ते वर्गात शिकवणारे. शिक्षक असोत दलावरच्या ताया असोत SPG मधले शिक्षक असोत किंवा ग्रंथालयातील ताया असोत !
शाळेत सगळ्यात पहिल्यांदा ओळख झाली ती मृदुला ताईंशी. दुसऱ्या प्रवेश परीक्षेला आलेले असताना मी व नवीन ओळख झालेली माझी मैत्रिण प्रियांका अभ्यासिके बाहेर थांबून या नव्या शाळेला निहाळत होतो, तेवढयात मृदुला ताई आल्या, आमची चौकशी केली आणि त्या पाच मिनिटात संत्रिका याचा अर्थ संस्कृत संशोधन संस्था सं त्रि (3)का हे शिकवून गेल्या.
आमचा वर्ग अतिशय भाग्यवंत कारण मृदुलाताईं सारख्या शिक्षिका आम्हा ला सहाही वर्ष शिकवायला होत्या .पाचवीत असताना संस्कृत हा विषय सगळ्यांसाठी नवखा होता तो आतिशय रंजकपणे आमचा लाडका केला. कधी कधी असंख्य वेळा देव-वन-माला म्हणून.तर कधी विष्णुसहस्त्र नाम सूर्यसहस्त्रनाम लिहायला लावून.आमच्या वर्गातल्या कोणा लाही झुक झुक नंतर काय असे विचारले असता त्याचा तोंडातून अग्निरथोयमच उत्तर मिळेल पाचावित शिक वलेली षट्पदी अजुनही सगळ्यांचा मुखोद्गत आहे त्या जितक्या कडक तितक्याच प्रेमळ आहेत .
अश्विनी ताईंनी मराठी शिकवलेली आपली असलेली भाषा त्यांनी आणखी आपली करून दिली त्या कविता व धडे इतक्या सुंदर पद्धतीने सांगायचा की अजूनही पाचवीतली 'जोनार्थन सीगल' सहावीतली 'शौझिया' 'परवाना' व सातवीतली नारायण वामन ठिळकांची 'केवढे हे कौर्य' याचे चित्ररुपच डोळ्यासमोर येत.
मुकुलिका ताईंनी जीवशारत्राची गोडी निर्माण केली संपूर्ण शाळेला शिकवणाऱ्या ताईंनी आमच्या निम्म्या वर्गाला जीवशास्त्राबरोबर बटन शिवणे हुक लूप शिवणे, समाजातील विविध स्तरांचा लोकांचा भूमिकेत जाऊन त्यांचा अडी अडचणी समजून घ��णे व दर शानिवारी श्रमदान करणे हेही शिकवले या सगळ्या गोष्टींमधून मी तून बाहेर पडायला शिकलो व समाजाप्रतीचे आपल्या असलेल्या कर्तव्याची जाणीव झाली.
जोशी सरांनी शिकवलेल्या गणिता बरोबरच त्यांनी सांगितलेली ७० दिवस ही गेाष्ट अविस्मरणीय आहे राहुल दादानी सांगि तले ल्या इतिहासातत्या गोष्टी, संस्कृती ताईने दाखव लेले चित्रपट व त्यातून घडलेली मैत्री मिलिंद सरांनी शाळेत physics तर शिकवलेच पण त्यांचाशी आमचे मैत्रीचे नाते होते कोणाचे ही प्राचार्य त्यांचाबरोबर समुद्रात खेळले नसतील ते मिलिंद सरांनी केले फक्त प्राचार्य न रहाता कधी शिक्षक, कधी मार्गदर्शक, तर कधी मित्र सुध्दा झाले
दलावर जुई ताई प्रज्ञा ताई मेधाविनी ताई यांचाशी वेगळेच नाते जुळले. शाळेत असताना वर्गोद्दिष्ट हा विषय होता, त्यमुळे वर्गाची एकी वाढली.दर वर्षी संकल्प करून तो पूर्ण करण्याचा प्रवासात अनेक गोष्टी शिकायला मिळाल्या.
प्रबोधिनीचा अभ्यासक्रमात सातवीत शिष्यवृत्तीचे तास असायचे .त्या तासांमध्ये लेखन कौशल्य, वाचन, कल्पकता, interior design ई शिकवले गेले. त्यामुळे नेहमीचा अभ्यासक्रमापेक्षा वेगळ्या गोष्टी शिकता आल्या. विद्याव्रत संस्कार आठवीत झाले.तेव्हा त्या वयाला नवे असलेले विषय ' शाररीक मानसिक, आत्मिक, बौध्दिक विकसन व राष्ट्रार्चना हे सहज सोप्या भाषेत समजवण्यात आले.
नववीत अग्रणी प्राग्रणी शिबिरानी नेत्रुत्व विकसन केले .लहान गटात शिस्त व मैत्री याचा समतोल कसा साधायचा हे समजले. शाळेचा अविभाज्य घटक म्हणजे दल ! रोज विविध खेळ व शुक्रवारी पथकशह: दल व्हायचे कधी कधी नाट्य करून, कधी पद्य बसवून, खेळ खेळुन, क्रीडा शिबिरात विविध बाबदाऱ्या पेलून, आम्ही आमच्या शाळेतल्या इतर वर्गांशी सुध्दा जवळीक साधली.
स्वतःला अभिव्यक्त करण्याचे माध्यम हे अभिव्यक्ती ठरले.दर आठवड्याचा तो एक तास हा सम्पूर्णपणे आम्ही आमचासाठी दिलेला होता. अभिव्यक्ती शिबिरात तर धमालच यायची. तीन आठवडे केलेली तयारी व त्यानंतर अभिव्यक्ती सादरीकरण !
शाळेत गणेशोत्सव हा पारंपरिक पद्धतीने साजरा केला जातो .रोज आरती, व्याख्यान, स्पर्धा, प्रसाद व शेवटचा दिवशी भव्य दिव्य मिरवणूक ज्याची तयारी 1.5 महिन्या आधी केली जायची. बर्ची ढोल ताशा यामुळे वातावरणात एक वेगळाच उत्साह निर्माण होतो.
या सगळ्या बरोबरच भोंडल्याला खिरापत करणे , दीपोत्सवाला शाळेत दीप प्रज्वलन करणे , गड चढणे , तंबू शिबिर , क्रीडा शिबिर , आषाढी एकादशी , अभिव्यक्ती शिबिर, भविष्यवेध प्रकल्प, सन्ग्रहात्मक प्रकल्प, SPG, research project केले व त्यामधून अनेक गोष्टी समजल्या. प्रबोधिनीने अनेक गुण विकसित केले. अनेक लोकांशी मैत्रीचे संबंध निर्माण केले.
शाळेने आमची जी घडवणूक केली त्याचे महत्व आज पटते ...
आज शाळा सोडून चार वर्षे झाली पण शाळा व आमचा नात्यात खंड निर्माण झाला नाही ...अजूनही शाळा तितकीच आपलीशी वाटते व यापुढेही वाटत राहील...
- अनुष्का
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शिव के अनसुने किस्से: जानिए भोलेनाथ से जुड़े वो रहस्य जो आज भी हैं अनदेखे
भगवान शिव, जिन्हें भोलेनाथ, महादेव और शिवशंकर के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं। वे विनाश और सृजन के देवता हैं, और उन्हें भगवान विष्णु और ब्रह्मा के साथ त्रिमूर्ति का हिस्सा माना जाता है। भगवान शिव के जीवन से जुड़ी कई कहानियां और किस्से हैं, जिनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं और कुछ अनसुनी।
भारतीय संस्कृति में भगवान शिव को उनकी अद्वितीयता और गौरव के लिए पूजा जाता है। वे सृष्टि के प्रारंभक, सर्वशक्तिमान, और संहारक हैं। उनके विभिन्न रूप, तप, और रहस्य भक्तों को आकर्षित करते हैं और उनके जीवन में अनगिनत किस्से और गहरे रहस्य हैं। ये रहस्य हमें उनके महत्वपूर्ण सिद्धांतों और जीवन की अद्वितीयता के प्रति जागरूक करते हैं।
शिव चालीसा और शिव जी की आरती
भगवान शिव, जो हिन्दू धर्म में प्रमुख देव हैं, उनकी भक्ति से जुड़े स्त्रोत हैं। शिव चालीसा, जिसका अर्थ है "चालीस पद," भगवान शिव के गुणों, दिव्य कार्यों और महत्त्व का वर्णन करने वाली हार्दिक स्तुति है। ऐसा माना जाता है कि चालीसा का पाठ करने से शांति मिलती है, बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिव आरती प्रकाश की भेंट चढ़ाने वाली प्रार्थना है, जिसमें भजन और मंत्र शामिल होते हैं। आरती करना कृतज्ञता व्यक्त करने और कल्याण एवं समृद्धि के लिए शिव ��ा आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है। ये दोनों स्त्रोत, पूजा के दौरान या व्यक्तिगत रूप से जपने पर, भगवान शिव की कृपा से जुड़ने के प्रभावी मार्ग हैं।
अनसुने किस्से:
नीलकंठ:
समुद्र मंथन के समय निकले विष को भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया था, जिसके कारण उनका कंठ नीला हो गया था।
गंगा अवतरण:
भगवान शिव ने देवी गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था, जिससे गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी।
त्रिशूल धारण:
भगवान शिव के त्रिशूल के तीन अंक ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करते हैं।
नटराज:
नटराज स्वरूप में भगवान शिव नृत्य करते हुए ब्रह्मांड के निर्माण, विनाश और पुनर्निर्माण का प्रतीक हैं।
सोमनाथ:
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भगवान चंद्रमा ने सोमनाथ में उनकी पूजा की थी।
अर्धनारीश्वर:
शिव के अर्धनारीश्वर रूप का महत्वपूर्ण संदेश है। यह रूप शिव और पार्वती माता के आपसी मेल-जोल को दर्शाता है, और सृष्टि के द्वंद्वों को समानता और संतुलन के माध्यम से प्रतिष्ठित करता है।
शिव और विष्णु:
शिव और विष्णु के बीच आध्यात्मिक युद्ध का कथन भी महत्वपूर्ण है। यह युद्ध ब्रह्मा की गलतियों को सुधारने के लिए हुआ था और इससे हमें धर्म और न्याय के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का संदेश मिलता है।
महाकाल:
शिव को "महाकाल" के रूप में भी पूजा जाता है, जो समय और मृत्यु का प्रतिनिधित्व करता है। इससे हमें समय के महत्व और जीवन के मूल्य की याद दिलाई जाती है।
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#कबीरसागर_का_सरलार्थPart258
अध्याय धर्म बोध का सारांश
धर्म बोध
कबीर सागर में 33वां अध्याय ‘‘धर्म बोध‘‘ पृष्ठ 177 (1521) पर है। इस अध्याय में परमेश्वर कबीर जी ने धर्म करने का विशेष ज्ञान बताया है। यह भी स्पष्ट किया है कि कबीर परमेश्वर के सच्चे पंथ में दिन में तीन बार संध्या की जाती है। संध्या का अर्थ है दो वक्त का मिलन। एक संध्या सुबह उससे दिन और रात्रि का मिलन होता है, रात्रि विदा हाती है, दिन का शुभारंभ होता है। दूसरी संध्या दिन के बारह बजे होती है। उस समय चढ़ते दिन का दोपहर पूरा होता है, ढ़लते दिन की शुरूआत होती है, यह मध्य दिन की संध्या है। तीसरी संध्या शाम के समय होती है। उस समय दिन और रात्रि का मिलन होता है। वैसे आम जन शाम को संध्या कहते हैं। संध्या का अर्थ परमात्मा की स्तुति करना भी होता है।
वेदों में प्रमाण है कि जो जगत का तारणहार होगा, वह तीन बार की संध्या करता तथा करवाता है। सुबह और शाम पूर्ण परमात्मा की स्तुति-आरती तथा मध्यदिन में विश्व के सब देवताओं की स्तुति करने को कहता है। प्रमाण:- ऋग्वेद मण्डल नं. 8 सूक्त 1 मंत्र 29 में तथा यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 26 में है।
कबीर सागर में धर्म बोध अध्याय में पृष्ठ 177 पर भी यही प्रमाण है।
सांझ सकार मध्याह सन्ध्या तीनों काल।
धर्म कर्म तत्पर सदा कीजै सुरति सम्भाल।।
भावार्थ:- भक्तजनों को चाहिए कि तीनों काल (समय) की संध्या करे। सांझ यानि शाम को सकार यानि सुबह तथा मध्याहन् यानि दोपहर (दिन के मध्य) में संध्या करते समय सुरति यानि ध्यान आरती में बोली गई वाणी में रहे और धर्म के कार्य में सदा तैयार रहे, आलस नहीं करे।
धर्म बोध पृष्ठ 178 (1522) पर:-
कबीर कोटिन कंटक घेरि ज्यों नित्य क्रिया निज कीन्ह।
सुमिरन भजन एकांत में मन चंचल गह लीन।।
भावार्थ:- भक्त के ऊपर चाहे करोड़ों कष्ट पड़े, परंतु अपनी नित्य की क्रिया (तीनों समय की संध्या) अवश्य करनी चाहिए तथा चंचल मन को रोककर एकान्त में परमात्मा की दीक्षा वाले नाम का जाप करें।
कबीर भक्तों अरू गुरू की सेवा कर श्रद्धा प्रेम सहित।
परम प्रभु (सत्य पुरूष) ध्यावही करि अतिश्य मन प्रीत।।
भावार्थ:- अपने गुरूदेव तथा सत्संग में या घर पर आए भक्तों की सदा आदर के साथ सेवा करें। श्रद्धा तथा प्रेम से सेवा करनी चाहिए। परम प्रभु यानि परम अक्षर पुरूष की भक्ति अत्यधिक प्रेम से करें।
भक्त जती तथा सती होना चाहिए
जति के लक्षण
पुरूष यति (जति) सो जानिये, निज त्रिया तक विचार। माता बहन पुत्री सकल और जग की नार।।
भावार्थ:- यति पुरूष उसको कहते हैं जो अपनी स्त्री के अतिरिक्त अन्य स्त्री में पति-पत्नी वाला भाव न रखें। परस्त्री को आयु अनुसार माता, बहन या बेटी के भाव से जानें।
सति स्त्री के लक्षण
स्त्री सो जो पतिव्रत धर्म धरै, निज पति सेवत जोय।।
अन्य पुरूष सब जगत में पिता भ्रात सुत होय।।
अपने पति की आज्ञा में रहै, निज तन मन से लाग।।
पिया विपरीत न कछु करै, ता त्रिया को बड़ भाग।।
भावार्थ:- सती स्त्री उसको कहते हैं जो अपने पति से लगाव रखे। अपने पति के अतिरिक्त संसार के अन्य पुरूषों को आयु अनुसार पिता, भाई तथा पुत्र के भाव से देखे यानि बरते। अपने पति की आज्ञा में रहे। मन-तन से सेवा करे, कोई कार्य पति के विपरीत न करे।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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( #Muktibodh_part187 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part188
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 359-360
कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ का सारांश (छठा अध्याय) जैसा कि इस ग्रन्थ (कबीर सागर का सरलार्थ) के प्रारम्भ में लिखा है कि कबीर सागर
के यथार्थ अर्थ को न समझकर कबीर पंथियों ने इस ग्रन्थ में अपने विवेक अनुसार फेर-बदल किया है। कुछ अंश काटे हैं। कुछ आगे-पीछे किए हैं। कुछ बनावटी वाणी लिखकर कबीर सागर का नाश किया है। परंतु सागर तो सागर ही होता है। उसको खाली नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार कबीर सागर में बहुत सा सत्य विवरण उनकी कुदृष्टि से बच गया है। शेष मिलावट को अब एक बहुत पुराने हस्तलिखित ‘‘कबीर सागर‘‘ से मेल करके तथा संत गरीबदास जी की अमृतवाणी के आधार से तथा परमेश्वर कबीर जी द्वारा मुझ दास (रामपाल दास) को दिया, दिव्य ज्ञान के आधार से सत्य ज्ञान लिखा गया है। एक प्रमाण बताता हूँ जो बुद्धिमान के लिए पर्याप्त है। ज्ञान प्रकाश में परमेश्वर कबीर जी द्वारा धनी धर्मदास जी को शरण में लेने का विवरण है। आपसी संवाद है, परंतु धर्मदास जी का निवास स्थान भी गलत लिखा है। पृष्ठ 21 पर पूर्व गुरू रूपदास जी से शंका का निवारण करके अपने घर चले गए। धर्मदास जी
का निवास स्थान ‘‘मथुरा नगर‘‘ लिखा है, वाणी इस प्रकार हैः-
तुम हो गुरू वो सतगुरू मोरा।
उन हमार यम फंदा तोरा (तोड़ा)।।
धर्मदास तब करी प्रणामा।
मथुरा नगर पहुँचे निज धामा।।
जबकि धर्मदास जी का निज निवास स्थान ‘‘बांधवगढ़‘‘ कस्बा था जो मध्यप्रदेश में है। संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में सर्व सत्य विवरण लिखा है कि धर्मदास बांधवगढ़ के रहने वाले सेठ थे। वे तीर्थ यात्रा के लिए मथुरा गए थे। उसके पश्चात् अन्य तीर्थों पर जाना था। कुछ तीर्थों पर भ्रमण कर आए थे। नकली कबीरपंथियों द्वारा किए फेर-बदल का
अन्य प्रमाण इसी ज्ञान प्रकाश में धर्मदास जी का प्रकरण चल रहा है। बीच में सर्वानन्द ब्राह्मण की कथा लिखी है जो वहाँ पर नहीं होनी चाहिए। केवल धर्मदास की ही बात होनी चाहिए। पृष्ठ 37 से 50 तक सर्वानन्द की कथा है। इससे पहले पृष्ठ 34 पर धर्मदास जी को नाम दीक्षा देने, आरती-चांका करने का प्रकरण है। पृष्ठ 35 पर गुरू की महिमा की वाणी
है जो पृष्ठ 36 तक है। फिर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई है जो मात्र तीन वाणी हैं। इसके बाद ‘‘सतगुरू वचन‘‘ वाला प्रकरण मेल नहीं करता। पृष्ठ 36 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई की तीन वाणी के पश्चात् पृष्ठ 50 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ से मेल (स्पदा) करता है जो सर्वानन्द
के प्रकरण के पश्चात् ‘‘धर्मदास वचन‘‘ की वाणी है।
ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 36 पर ‘‘धर्मदास वचन‘‘ चौपाई हो साहब तव पद सिर नाऊँ। तव पद परस परम पद पाऊँ।।
केहि विधि आपन भाग सराही । तव बरत गहैं भाव पुनः बनाई।।
कोधों मैं शुभ कर्म कमाया।
जो सदगुरू तव दर्शन पाया।।
ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 50 ‘‘धर्मदास वचन‘‘
धन्य धन्य साहिब अविगत नाथा।
प्रभु मोहे निशदिन राखो साथा।।
सुत परिजन मोहे कछु न सोहाही।
धन दारा अरू लोक बड़ाई।।
इसके पश्चात् सही प्रकरण है। बीच में अन्य प्रकरण लिखा है, वह मिलावटी तथा गलत है।
नाम दीक्षा देने के पश्चात् परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को प्रसन्न करने के लिए कहा कि जब आपको विश्वास हो जाएगा कि मैं जो ज्ञान तथा भक्ति मंत्रा बता रहा हूँ, वे सत्य हैं। फिर तेरे को गुरू पद दूँगा। आप दीक्षा लेने वाले से सवा लाख द्रव्य (रूपये या सोना) लेकर दीक्षा देना। परमात्मा ने धर्मदास जी की परीक्षा ली थी कि वैश्य (बनिया) जाति से है यदि लालची होगा तो इस लालचवश मेरा ज्ञान सुनता रहेगा। ज्ञान के पश्चात् लालच रहेगा ही नहीं। परंतु धर्मदास जी पूर्ण अधिकारी हंस थे। सतलोक से विशेष आत्मा भेजे थे।
फिर उन्होंने इस राशि को कम करवाया और निःशुल्क दीक्षा देने का वचन करवाया यानि माफ करवाया।
अब ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 9 से आवश्यक वाणी लेते हैं क्योंकि जो अमृतवाणी परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से बोली गई है, उसके पढ़ने-सुनने से भी अनेकों पाप नाश होते हैं। ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 9 से वाणीः-
धर्मदास बोध = ज्ञान प्रकाश
निम्न वाणी पुराने कबीर सागर ग्रन्थ के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ से हैं :-
बांधवगढ़ नगर कहाय।
तामें धर्मदास साह रहाय।।
धन का नहीं वार रू पारा।
हरि भक्ति में श्रद्धा अपारा।।
रूप दास गुरू वैष्णव बनाया।
उन राम कृष्ण भगवान बताया।।
तीर्थ बरत मूर्ति पूजा।
एकादशी और सालिग सूजा।।
ताके मते दृढ़ धर्मनि नागर।
भूल रहा वह सुख का सागर।।
तीर्थ करन को मन चाहा।
गुरू आज्ञा ले चला उमाहा।।
भटकत भ्रमत मथुरा आया।
कृष्ण सरोवर में उठ नहाया।।
चौका लीपा पूजा कारण।
फिर लगा गीता सलोक उचारण।।
ताही समय एक साधु आया।
पाँच कदम पर आसन लाया।।
धर्मदास को कहा आदेशा।
जिन्दा रूप साधु का भेषा।।
धर्मदास देखा नजर उठाई।
पूजा में मगन कछु बोल्या नाहीं।।
जग्यासु वत देखै दाता।
धर्मदास जाना सुनत है बाता।।
ऊँचे सुर से पाठ बुलाया।
जिन्दा सुन-सुन शीश हिलाया।।
धर्मदास किया वैष्णव भेषा।
कण्ठी माला तिलक प्रवेशा।।
पूजा पाठ कर किया विश्रामा।
जिन्दा पुनः किया प्रणामा।।
जिन्दा कहै मैं सुना पाठ अनुपा।
तुम हो सब संतन के भूपा।।
मोकैं ज्ञान सुनाओ गोसाँई।
भक्ति सरस कहीं नहीं पाई।।
मुस्लिम हिन्दू गुरू बहु देखे।
आत्म संतोष कहीं नहीं एके।।
धर्मदास मन उठी उमंगा।
सुनी बड़ाई तो लागा चंगा।।
◆ धर्मदास वचन
जो चाहो सो पूछो प्रसंगा।
सर्व ज्ञान सम्पन्न हूँ भक्ति रंगा।।
पूछहूँ जिन्दा जो तुम चाहो।
अपने मन का भ्रम मिटाओ।।
◆ जिन्द वचन
तुम काको पाठ करत हो संता।
निर्मल ज्ञान नहीं कोई अन्ता।।
मोकूं पुनि सुनाओ बाणी।
जातें मिलै मोहे सारंग पाणी।।
तुम्हरे मुख से ज्ञान मोहे भावै।
जैसे जिह्ना मधु टपकावै।।
धर्मदास सुनि जब कोमल बाता।
पोथी निकाली मन हर्षाता।।
क्रमशः_______________
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