#आरती नाम का मतलब
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knowlegeupdate · 2 years ago
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तो अब हम बात करते है व्यक्तित्व के बारे में आरती नाम की जो लड़कियां अध्ययन का व्यक्तित्व किस तरह का होता है। इन महिलाओं में नए नए काम को करने की उत्सुकता काफी होती है। ये तो इनमें एनर्जी होते ही रह चेटक होती है। ये हर काम को इतनी बखूबी करती है कि उसमें सफलता पा ही लेती है। यदि कोई इनको चैलेन्ज करता है किसी भी बात पर किसी भी केस को लेके तीन उसको एक्सेप्ट करती है। वो ना सिर्फ एक्सेप्ट करती है और कोई चीज़ नापसंद करती है और उसके लिए अपनी तरफ से ये पूरी कोशिश करती है। इनमे आप हिम्मत और आत्मविश्वास जो है वो देख पाएंगे। ये काफी ज्यादा महत्वकांशी होती है। ये किसी से डरती नहीं है। ये अपने काम को बखूबी निभाती है
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tourwithdunia · 4 months ago
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10 interesting facts about Nidhivan
वृंदावन का निधिवन वृंदावन मतलब तुलसी और वन मतलब जंगल और इसी तुलसी के वन को हम निधिवन के नाम से जानते हैं !  निधि वन जहां आज भी लोग यह मानते हैं कि श्रीकृष्ण और राधा रानी जी हर रात यहाँ रासलीला करने आते है ! जो भी यह रासलीला देख ले वे मनुष्य जिंदा नहीं बचता ! और इसी वजह से निधिवन की शाम की 7:00 की आरती के बाद  इस जंगल में कोई भी नहीं रहता ना ही इंसान और ना ही जानवर !आज हम आपको इस ब्लॉग में निधिवन के बारे कुछ ऐसे रहस्य बताएंगे जो की पूरी दुनियाँ में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है !
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jyotis-things · 9 months ago
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( #Muktibodh_part195 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part196
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 373-374
‘‘धर्मदास जी को प्रथम नाम दीक्षा देना’’
(ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 30)
◆धर्मदास वचन
हे साहब मैं तब पग सिर धरऊँ।
तुम्हते कछु दुविधा नहिं करऊँ।।
अब मोहि चिन्हि परी यमबाजी।
तुम्हते भयउ मोरमन राजी।।
मोरे हृदय प्रीति अस आई।
तुम्हते होइहै जिव मुक्ताई।।
तुमहीं सत्यकबीर हौ स्वामी।
कृपा करहु तुम अन्तर्यामी।।
हे प्रभु देहु प्रवाना मोही।
यम तृण तोरि भजौ मैं तोही।।
मोरे नहीं अवर सो कामा।
निसिदिन सुमिरों सद्गुरू नामा।।
पीतर प���त्थर देव बहायी।
सद्गुरू भक्ति करूँ चितलायी।।
अरपौं शीस सर्वस सब तोहीं।
हे प्रभु यम��े छोड़ावहु मोही।।
सन्तन्ह सेवाप्रीति सों करिहौं।
वचन शिखापन निश्चय धरिहौं।।
जो तुम्ह कहो करब हम सोई।
हे प्रभु दुतिया कबहुँ नहिं होई।।
◆जिन्दा वचन
सुनु धर्मनि अब तोहीं मुक्ताओ।
निश्चय यमसों तोहि बचाओं।।
देइ परवाना हंस उबारों।
जनम मरण दुख दारूण टारों।।
ले प्रवाना जो करै प्रतीती।
जिन्दा कहै चले यम जीती।।
अब मोहि आज्ञा देहु धर्मदासा।
हम गवनहि सद्गुरू के पासा।।
सद्गुरू संग आइब तव पाहीं।
तब परवाना तोहि मिलाहीं।।
◆ धर्मदास वचन
हे प्रभु अब तोहि जाने न दैहौं।
नहिं आवो तो मैं पछितैहौं।।
पछताइ पछताइ बहु दुख पैहौं।
नहिं आवहुतो प्राण गवैहौं।।
हाथ के रतन खोइ कोइ डारै।
सो मूरख निजकाज विगारै।।
विशेष :- कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 31 से 35 में भले ही
मिलावट है, परंतु अन्य पृष्ठों पर सच्चाई भी कमाल की है। जो आरती चौंका की सामग्री है, वह मिलावटी है। कुछ शब्दों का भी फेरबदल किया हुआ है। आप जी को सत्य ज्ञान इसी
विषय में इसी पुस्तक के पृष्ठ 384 पर पढ़ने को मिलेगा जिसका शीर्षक (Heading) है।
‘‘किस-किसको मिला परमात्मा‘‘। कबीर सागर के ये पृष्ठ नम्बर पाठकों को विश्वास दिलाने के लिए बताए हैं ताकि आप कबीर सागर में देखकर मुझ दास (लेखक) द्वारा बताए
ज्ञान को सत्य मानें।
विचार करें :- ज्ञान प्रकाश में धर्मदास जी का प्रकरण पृष्ठ 35 के पश्चात् पृष्ठ 50 से जुड़ता (स्पदा होता) है। पृष्ठ 36 से 49 तक सर्वानन्द का प्रकरण गलत लिखा है। उस समय तक तो सर्वानन्द से परमात्मा कबीर जी मिले भी नहीं थे।
विचार :- कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ पृष्ठ 31 से 35 तथा 50 से 51 पर परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहा कि मैं तेरे को गुरूपद प्रदान करूँगा। आप उसको दीक्षा देना जो आपको सवा लाख रूपये गुरू दक्षिणा के चढ़ाए।
परमेश्वर कबीर जी को पता था कि धर्मदास व्यापारी व्यक्ति है, कहीं नाम दीक्षा को व्यापार न बना ले। परंतु धर्मदास जी विवेकशील थे। भगवान प्राप्त करने के लिए समर्पित थे।
धर्मदास जी ने कहा कि प्रभु! जिसके पास सवा लाख रूपये (वर्तमान के सवा करोड़ रूपये) नहीं होंगे, वह तो काल का आहार ही रहेगा अर्थात् उसकी मुक्ति नहीं हो सकेगी। हे परमेश्वर! कुछ थोड़े करो। करते-कराते अंत ��ें मुफ्त दीक्षा देने का वचन ले लिया। फिर जिसकी जैसी श्रद्धा हो, वैसा दान अवश्य करे। इस प्रकरण में पृष्ठ 51-53 पर कबीर पंथियों ने कुछ अपने मतलब की वाणी बनाकर लिखी हैं जो कहा है कि सवा सेर मिठाई आदि-आदि। यह भावार्थ पृष्ठ 51-53 का है।
क्रमशः_______________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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pradeepdasblog · 10 months ago
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( #Muktibodh_part195 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part196
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 373-374
‘‘धर्मदास जी को प्रथम नाम दीक्षा देना’’
(ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 30)
◆धर्मदास वचन
हे साहब मैं तब पग सिर धरऊँ।
तुम्हते कछु दुविधा नहिं करऊँ।।
अब मोहि चिन्हि परी यमबाजी।
तुम्हते भयउ मोरमन राजी।।
मोरे हृदय प्रीति अस आई।
तुम्हते होइहै जिव मुक्ताई।।
तुमहीं सत्यकबीर हौ स्वामी।
कृपा करहु तुम अन्तर्यामी।।
हे प्रभु देहु प्रवाना मोही।
यम तृण तोरि भजौ मैं तोही।।
मोरे नहीं अवर सो कामा।
निसिदिन सुमिरों सद्गुरू नामा।।
पीतर पात्थर देव बहायी।
सद्गुरू भक्ति करूँ चितलायी।।
अरपौं शीस सर्वस सब तोहीं।
हे प्रभु यमते छोड़ावहु मोही।।
सन्तन्ह सेवाप्रीति सों करिहौं।
वचन शिखापन निश्चय धरिहौं।।
जो तुम्ह कहो करब हम सोई।
हे प्रभु दुतिया कबहुँ नहिं होई।।
◆जिन्दा वचन
सुनु धर्मनि अब तोहीं मुक्ताओ।
निश्चय यमसों तोहि बचाओं।।
देइ परवाना हंस उबारों।
जनम मरण दुख दारूण टारों।।
ले प्रवाना जो करै प्रतीती।
जिन्दा कहै चले यम जीती।।
अब मोहि आज्ञा देहु धर्मदासा।
हम गवनहि सद्गुरू के पासा।।
सद्गुरू संग आइब तव पाहीं।
तब परवाना तोहि मिलाहीं।।
◆ धर्मदास वचन
हे प्रभु अब तोहि जाने न दैहौं।
नहिं आवो तो मैं पछितैहौं।।
पछताइ पछताइ बहु दुख पैहौं।
नहिं आवहुतो प्राण गवैहौं।।
हाथ के रतन खोइ कोइ डारै।
सो मूरख निजकाज विगारै।।
विशेष :- कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 31 से 35 में भले ही
मिलावट है, परंतु अन्य पृष्ठों पर सच्चाई भी कमाल की है। जो आरती चौंका की सामग्री है, वह मिलावटी है। कुछ शब्दों का भी फेरबदल किया हुआ है। आप जी को सत्य ज्ञान इसी
विषय में इसी पुस्तक के पृष्ठ 384 पर पढ़ने को मिलेगा जिसका शीर्षक (Heading) है।
‘‘किस-किसको मिला परमात्मा‘‘। कबीर सागर के ये पृष्ठ नम्बर पाठकों को विश्वास दिलाने के लिए बताए हैं ताकि आप कबीर सागर में देखकर मुझ दास (लेखक) द्वारा बताए
ज्ञान को सत्य मानें।
विचार करें :- ज्ञान प्रकाश में धर्मदास जी का प्रकरण पृष्ठ 35 के पश्चात् पृष्ठ 50 से जुड़ता (स्पदा होता) है। पृष्ठ 36 से 49 तक सर्वानन्द का प्रकरण गलत लिखा है। उस समय तक तो सर्वानन्द से परमात्मा कबीर जी मिले भी नहीं थे।
विचार :- कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ पृष्ठ 31 से 35 तथा 50 से 51 पर परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहा कि मैं तेरे को गुरूपद प्रदान करूँगा। आप उसको दीक्षा देना जो आपको सवा लाख रूपये गुरू दक्षिणा के चढ़ाए।
परमेश्वर कबीर जी को पता था कि धर्मदास व्यापारी व्यक्ति है, कहीं नाम दीक्षा को व्यापार न बना ले। परंतु धर्मदास जी विवेकशील थे। भगवान प्राप्त करने के लिए समर्पित थे।
धर्मदास जी ने कहा कि प्रभु! जिसके पास सवा लाख रूपये (वर्तमान के सवा करोड़ रूपये) नहीं होंगे, वह तो काल का आहार ही रहेगा अर्थात् उसकी मुक्ति नहीं हो सकेगी। हे परमेश्वर! कुछ थोड़े करो। करते-कराते अंत में मुफ्त दीक्षा देने का वचन ले लिया। फिर जिसकी जैसी श्रद्धा हो, वैसा दान अवश्य करे। इस प्रकरण में पृष्ठ 51-53 पर कबीर पंथियों ने कुछ अपने मतलब की वाणी बनाकर लिखी हैं जो कहा है कि सवा सेर मिठाई आदि-आदि। यह भावार्थ पृष्ठ 51-53 का है।
क्रमशः_______________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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bhagyachakra · 2 years ago
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।। नमो नमः ।। ।।भाग्यचक्र ।। आज का पञ्चाङ्ग :- संवत :- २०७९ दिनांक :- 09 जून 2022 सूर्योदय :- 05:41 सूर्यास्त :- 19:13 सूर्य राशि :- वृषभ चंद्र राशि :- कन्या मास :- ज्येष्ठ तिथि :- नवमी ( नवमी तिथि प्रातः 8:22 तक तत्पश्चात दशमी तिथि ) वार :- गुरुवार नक्षत्र :- हस्त योग :- व्यतिपात करण :- कौलव अयन:- उत्तरायण पक्ष :- शुक्ल ऋतू :- ग्रीष्म लाभ :- 12:26 - 14:07 अमृत:- 14:08 - 15:50 शुभ :- 05:40 - 07:21 राहु काल :- 14:08 - 15:50 जय श्री महाकाल :- *गंगा दशहरा:-* गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. सनातन धर्म में गंगा को ��िर्फ नदी नहीं बल्कि माँ का दर्जा प्राप्त है। गंगा मैया को अति पवित्र माना जाता है जिस कारण गंगा दशहरा के पर्व का विशेष महत्व होता है। गंगा दशहरा को गंगावतरण के नाम से भी जाना जाता है जिसका मतलब है गंगा का अवतरण। गंगा दशहरा के दिन स्नान और दान का अत्यधिक महत्व होता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। आज का मंत्र :- ""|| ॐ बृं बृहस्पतये नमः।।||"" *🙏नारायण नारायण🙏* जय श्री महाकाल। माँ महालक्ष्मी की कृपा सदैव आपके परिवार पर बनी रहे। 🙏🌹जय श्री महाकाल🌹🙏 श्री महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का आज का भस्म आरती श्रृंँगार दर्शन। 09 जून 2022 ( गुरुवार ) जय श्री महाकाल। सभी प्रकार के ज्योतिष समाधान हेतु। Whatsapp@9522222969 https://www.facebook.com/Bhagyachakraujjain शुभम भवतु ! 9522222969 https://www.instagram.com/p/CekPOpHodN7/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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onlybrijesh · 3 years ago
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*बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े 11 रहस्य*
1. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।.....
. देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।.... श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
4. विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है।
....तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।
5. बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं :-
1. शांति द्वार. 2. कला द्वार 3. प्रतिष्ठा द्वार 4. निवृत्ति द्वार...इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।
6. बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार।....तंत्र की 10 महा विद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है।
7. मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है।....यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं
8.भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदीऔर गौदोलिया क��षेत्र जहां गोदावरी नदी बहतीथी।इन दोनों के बीच मेंज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।
9. बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं।.... नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।
10. बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात....तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं।बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।
11.बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्मजन्मांतर के पाप धुल जाते हैं।शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथऔघड़ रूप में भी विचरण करते हैं।उनके बारात मेंभूत,प्रेत,जानवर,देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं। 🙏
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।
💞ॐ नमः शिवाय🌹🚩
🙏💐संध्या वंदन💐🙏
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abhay121996-blog · 4 years ago
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#Divyasandesh
जानें क्‍यों सिद्धार्थ रॉय कपूर की तीसरी बीवी बनने को तैयार हुईं विद्या बालन, मजेदार है Love स्टोरी
 43 साल की हो चुकीं विद्या बालन ने तब सबको चौंकाया था जब उन्‍होंने दो बार शादी कर चुके फिल्म प्रोड्यूसर सिद्धार्थ रॉय कपूर से शादी की थी । विद्या बालन अपने बिंदास एटीट्यूड की वजह से चर्चा में रहती हैं, उनकी फिल्‍में भी एकदम अलग मूड और अलग अंदाज की होती हैं । कमर्शियल  सिनेमा में रहकर भी विद्या मीनिंगफुल काम कर अभिनय के क्षेत्र में बड़ा नाम रखती है । विद्या और सिद्धार्थ रॉय कपूर के बी��� कैसे हुआ प्‍यार, आगे जानते हैं ।पहली मुलाकात और शादीविद्या बालन और सिद्धार्थ की पहली मुलाकात फिल्म फेयर अवॉर्ड्स के दौरान हुई थी, दोनों को करण जौहर ने पहली बार मिलवाया था । पहली मुलाकात के बाद दोनों दोस्त बने और बाद में ये दोस्ती प्यार में बदल गई । इसके बाद एक दिन सिद्धार्थ रॉय कपूर ने विद्या बालन को शादी के लिए प्रपोज कर दिया। इसके बाद परिवार की रजामंदी से दोनों ने तमिल और पंजाबी रीति रिवाज से शादी कर ली।विद्या बालन से तीसरी शादीसिद्धार्थ रॉय कपूर ने पहली शादी अपनी बचपन की दोस्त आरती बजाज से की थी, जो ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई। आरती से सिद्धार्थ को एक बेटा भी है । इसके बाद उन्होंने टीवी प्रोड्यूसर कविता के साथ शादी की, लेकिन ये भी कामयाब नहीं हुई । जिसके बाद उनकी जिंदगी में आईं विद्या बालन । विद्या के मुताबिक, जब वो सिद्धार्थ के प्यार में पड़ी तो उन्‍हें पता चला कि प्यार उससे बिल्कुल डिफरेंट होता है, जैसा कि उन्‍होंने इसके बारे में सोचा था । सिद्धार्थ से प्‍यार करना मेरी सोच से भी बेहतर रहा ।विद्या को हुआ सिद्धार्थ से सच्‍चा प्‍यारप्‍यार के बारे में विद्या बालन ने एक इंटरव्‍यू में काफी कुछ बताया, उन्‍होंने कहा कि जब आप किसी ऐसे इंसान के साथ प्यार में होते हैं, जो आपको बिना किसी कंडीशन के एक्सेप्ट करता है तो यह आपके लिए किसी सेलिब्रेशन से कम नहीं होता। वाकई आपके लिए इससे ज्यादा खुशी की बात कुछ और नहीं हो सकती कि कोई इंसान आपको उसी रूप में पसंद करता है, जैसे कि आप हैं। बजाय इसके कि वह आपको अपने मुताबिक बदलना चाहता है। विद्या के मुताबिक, मेरा मानना है कि सच्चे प्यार में कोई कंडीशन नहीं होती, जैसा कि मैंने अपने प्यार में पाया है। यह दो अलग-अलग लोगों के साथ में ग्रो करने का प्रोसेस है। आज मेरे लिए प्यार का मतलब शेयर करना, एक्सेप्ट करना, एक-दूसरे को समझना और केयर करना है।आपको ये पोस्ट कैसी लगी नीचे कमेंट करके अवश्य बताइए। इस पोस्ट को शेयर करें और ऐसी ही जानकारी पड़ते रहने के लिए आप बॉलीकॉर्न.कॉम (bollyycorn.com) के सोशल मीडिया फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पेज को फॉलो करें।
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bhaktigroupofficial · 4 years ago
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रवि प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि
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प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है।
ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।
यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।
प्रदोष व्रत की महत्ता
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शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा।
उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।
व्रत से मिलने वाले फल
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अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है।
जैसे👉 सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है। सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है। जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है एवं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है।
गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है। शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है। अंत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए। अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।
व्रत विधि
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सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं। फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। फिर शाम के समय भी स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें। फिर सभी चीजों को एक बार शिव को चढ़ाएं।और इसके बाद भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें। बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें। अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें। रात में जागरण करें।
प्रदोष व्रत समापन पर उद्धापन
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाह��ए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।
उद्धापन करने की विधि
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।
इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है।
हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है। और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है।
रवि त्रयोदशी प्रदोष व्रत
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॥ दोहा ॥
आयु, बुद्धि, आरोग्यता, या चाहो सन्तान ।
शिव पूजन विधवत् करो, दुःख हरे भगवान ॥
किसी समय सभी प्राणियों के हितार्थ परम् पुनीत गंगा के तट पर ऋषि समाज द्वारा एक विशाल सभा का आयोजन किया गया, जिसमें व्यास जी के परम् प्रिय शिष्य पुराणवेत्ता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे। शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि-मुनिगण ने सूत जी को दण्डवत् प्रणाम किया। सूत जी ने भक्ति भाव से ऋषिगण को आशीर्वाद दे अपना स्थान ग्रहण किया।ऋषिगण ने विनीत भाव से पूछा, “हे परम् दयालु! कलियुग में शंकर भगवान की भक्ति किस आराधना द्वारा उपलब्ध होगी? कलिकाल में जब मनुष्य पाप कर्म में लिप्त हो, वेद-शास्त्र से विमुख रहेंगे । दीनजन अनेक कष्टों से त्रस्त रहेंगे । हे मुनिश्रेष्ठ! कलिकाल में सत्कर्मं में किसी की रुचि न होगी, पुण्य क्षीण हो जाएंगे एवं मनुष्य स्वतः ही असत् कर्मों की ओर प्रेरित होगा । इस पृथ्वी पर तब ज्ञानी मनुष्य का यह कर्तव्य हो जाएगा कि वह पथ से विचलित मनुष्य का मार्गदर्शन करे, अतः हे महामुने! ऐसा कौन-सा उत्तम व्रत है जिसे करने से मनवांछित फल की प्राप्ति हो और कलिकाल के पाप शान्त हो जाएं?”सूत जी बोले- “हे शौनकादि ऋषिगण! आप धन्यवाद के पात्र हैं । आपके विचार प्रशंसनीय व जनकल्याणकारी हैं । आपके ह्रदय में सदा परहित की भावना रहती है, आप धन्य हैं । हे शौनकादि ऋषिगण! मैं उस व्रत का वर्णन करने जा रहा हूं जिसे करने से सब पाप और कष्ट नष्ट हो जाते हैं तथा जो धन वृद्धिकारक, सुख प्रदायक, सन्तान व मनवांछित फल प्रदान करने वाला है । इसे भगवान शंकर ने सती जी को सुनाया था।”सूत जी आगे बोले- “आयु वृद्धि व स्वास्थ्य लाभ हेतु रवि त्रयोदशी प्रदोष का व्रत करें । इसमें प्रातः स्नान कर निराहार रहकर शिव जी का मनन करें ।मन्दिर जाकर शिव आराधना करें । माथे पर त्रिपुण धारण कर बेल, धूप, दीप, अक्षत व ऋतु फल अर्पित करें । रुद्राक्ष की माला से सामर्थ्यानुसार, ॐ नमः शिवाय’ जपे । ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें, तत्पश्‍चात मौन व्रत धारण करें । संभव हो तो यज्ञ-हवन कराएं ।‘ॐ ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा’ मंत्र से यज्ञ-स्तुति दें । इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है । प्रदोष व्रत में व्रती एक बार भोजन करे और पृथ्वी पर शयन करे । इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं । श्रावण मास में इस व्रत का विशेष महत्व है । सभी मनोरथ इस व्रत को करने से पूर्ण होते है । हे ऋषिगण! यह प्रदोष व्रत जिसका वृत्तांत मैंने सुनाया, किसी समय शंकर भगवान ने सती जी को और वेदव्यास मुनि ने मुझे सुनाया था। ”शौनकादि ऋषि बोले – “हे पूज्यवर! यह व्रत परम् गोपनीय, मंगलदायक और कष्ट हरता कहा गया है । कृपया बताएं कि यह व्रत किसने किया और उसे इससे क्या फल प्राप्त हुआ?”
तब श्री सुत जी कथा सुनाने लगे-
व्रत कथा
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“एक ग्राम में एक दीन-हीन ब्राह्मण रहता था । उसकी धर्मनिष्ठ पत्‍नी प्रदोष व्रत करती थी । उनके एक पुत्र था । एक बार वह पुत्र गंगा स्नान को गया । दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और डराकर उससे पूछने लगे कि उसके पिता का गुप्त धन कहां रखा है । बालक ने दीनतापूर्वक बताया कि वे अत्यन्त निर्धन और दुःखी हैं । उनके पास गुप्त धन कहां से आया । चोरों ने उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया । बालक अपनी राह हो लिया । चलते-चलते वह थककर चूर हो गया और बरगद के एक वृक्ष के नीचे सो गया । तभी उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उसी ओर आ निकले । उन्होंने ब्राह्मण-बालक को चोर समझकर बन्दी बना लिया और राजा के सामने उपस्थित किया । राजा ने उसकी बात सुने बगैर उसे कारावार में डलवा दिया । उधर बालक की माता प्रदोष व्रत कर रही थी । उसी रात्रि राजा को स्वप्न आया कि वह बालक निर्दोष है । यदि उसे नहीं छोड़ा गया तो तुम्हारा राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा । सुबह जागते ही राजा ने बालक को बुलवाया । बालक ने राजा को सच्चाई बताई । राजा ने उसके माता-पिता को दरबार में बुलवाया । उन्हें भयभीत देख राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘तुम्हारा बालक निर्दोष और निडर है । तुम्हारी दरिद्रता के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं ।’ इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा । शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।”
प्रदोषस्तोत्रम्
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।। श्री गणेशाय नमः।।
जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत । जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥
जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद ।
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥
जय विश्वै���वन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण ।
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥
जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय । जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥
जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन । जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥
प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः । सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥
महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च । महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥
ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः । ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥
दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् । अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥
दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः ।
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥
शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः । नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥
दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले । सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥
एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् । ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥
सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी । शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥
॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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कथा एवं स्तोत्र पाठ के बाद महादेव जी की आरती करें
ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती
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तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है । दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ भी अर्पित किया जा सकता है।
आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।
भगवान शिव जी की आरती
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ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
अक्षमाला बनमाला मुण्��माला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव।।
कर्पूर आरती
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कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥
मंगलम भगवान शंभू
मंगलम रिषीबध्वजा ।
मंगलम पार्वती नाथो
मंगलाय तनो हर ।।
मंत्र पुष्पांजलि
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मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।
ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
ना��ा सुगंध पुष्पांनी यथापादो भ���ानीच
पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर
ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः। मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि।।
प्रदक्षिणा
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नमस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा। आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए। स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।
अर्थ: जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए।
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🎪🛕श्री भक्ति ग्रुप मंदिर🛕🎪
🙏🌹🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏🌹🙏
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gujarati9-blog · 4 years ago
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बेटे के जन्म से बढ़ता था प्रसाद का सूप, अब बेटियों के लिए भी हो रहा छठ
बेटे के जन्म से बढ़ता था प्रसाद का सूप, अब बेटियों के लिए भी हो रहा छठ
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पटना से आरती कुमारी “रुनकी-झुनकी बेटी मांगिला, पढ़ल पंडितवा दामाद…” वर्षों से यह गीत छठ पर हमसब गाती रही हैं। इक्का-दुक्का उदाहरण उस जमाने में भी था। मेरी मां के नाम से भी छठ का सूप था। अब भी है। मेरी मां ने मेरे नाम से सूप नहीं रखा। हां, ससुराल आई तो सास ने जरूर सूप कबूल लिया। वैसे, यह अपवाद जैसा ही है। हां, अब सब कुछ बदल रहा है। बेटियों के लिए भी सूप गछा (मन्नत कबूलती) जा रहा है। मतलब, अब…
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mastereeester · 4 years ago
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बेटे के जन्म से बढ़ता था प्रसाद का सूप, अब बेटियों के लिए भी हो रहा छठ [Source: Dainik Bhaskar]
बेटे के जन्म से बढ़ता था प्रसाद का सूप, अब बेटियों के लिए भी हो रहा छठ [Source: Dainik Bhaskar]
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(आरती कुमारी. पटना)।“रुनकी-झुनकी बेटी मांगिला, पढ़ल पंडितवा दामाद…” वर्षों से यह गीत छठ पर हमसब गाती रही हैं। इक्का-दुक्का उदाहरण उस जमाने में भी था। मेरी मां के नाम से भी छठ का सूप था। अब भी है। मेरी मां ने मेरे नाम से सूप नहीं रखा। हां, ससुराल आई तो सास ने जरूर सूप कबूल लिया। वैसे, यह अपवाद जैसा ही है। हां, अब सबकुछ बदल रहा है। बेटियों के लिए भी सूप गछा (मन्नत कबूलती) जा रहा है। मतलब, अब…
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kisansatta · 4 years ago
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नवरात्रि 2020: जानिए कुष्मांडा के अद्भुत रूप के बारे में
शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर से शुरू हो चुके हैं। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों का पूजन किया जाता हैं. माँ के भक्तों के लिए इन नौ दिनों का बहुत महत्व होता है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों की बहुत बड़ी मान्यता है कि सच्चे मन से मां की पूजा करने वालों की सभी कामनाएं पूरी होती हैं.
माँ कुष्मांडा का स्वरुप– नवरात्रि के चौथे दिन हम माँ दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप का पूजन करते हैं.माँ दुर्गा के स्वरुप कुष्मांडा स्वरुप का अर्थ दो शब्दों यानि कुसुम मतलब फूलों के समान हंसी और आण्ड का अर्थ है ब्रह्मांड। अर्थात वो देवी जिन्होनें अपनी फूलों सी मंद मुस्कान ��े पूरे ब्रह्मांड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया है। माँ कूष्मांडा की अष्ट भुजाएँ हैं। अपनी भुजाओं में कमल, कमंडल, अमृत कलश, धनुष, बाण, चक्र और गदा धारण करती हैं। वहीं, एक भुजा में माला धारण करती हैं माता सिंह की सवारी करती हैं।
पूजन विधि– नवरात्रि के चौथे दिन सुबह स्नान आदि करके। इसके बाद मां कुष्मांडा का स्मरण करके उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान समर्पित करें। अब मां कूष्मांडा को हलवा, मालपुआ और दही का भोग लगाएं। पूजा के अंत में मां कुष्मांडा की आरती करें और अपनी मनोकामना उनसे व्यक्त कर दें। पूजा के उपरांत प्रसाद ग्रहण करें हैं।
माँ कुष्मांडा स्वरुप के पूजन मंत्र– सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।
  माँ कुष्मांडा आरती–
कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी।। पिङ्गला ज्वालामुखी निराली। शाकम्बरी मां भोली भाली।। लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे।। भीमा पर्वत है डेरा। स्वीकारो प्रणाम मेरा।। सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुंचाती हो मां अम्बे।। तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दे मेरी आशा। मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी।। तेरे दर पे किया है डेरी। दूर करो मां संकट मेरा।। मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो।। तेरा दास तुझी को ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए।।
माँ दुर्गा के इस कुष्मांडा स्वरुप के पूजन से भक्तों के सारे दुख मिट जाते हैं। सच्चे मन से माता का ध्यान करने वालों की हर मुरादें पूरी होती हैं। साथ ही स्वास्थ, धन और हल में वृद्धि होती है।
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jyotis-things · 10 months ago
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( #Muktibodh_part195 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part196
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 373-374
‘‘धर्मदास जी को प्रथम नाम दीक्षा देना’’
(ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 30)
◆धर्मदास वचन
हे साहब मैं तब पग सिर धरऊँ।
तुम्हते कछु दुविधा नहिं करऊँ।।
अब मोहि चिन्हि परी यमबाजी।
तुम्हते भयउ मोरमन राजी।।
मोरे हृदय प्रीति अस आई।
तुम्हते होइहै जिव मुक्ताई।।
तुमहीं सत्यकबीर हौ स्वामी।
कृपा करहु तुम अन्तर्यामी।।
हे प्रभु देहु प्रवाना मोही।
यम तृण तोरि भजौ मैं तोही।।
मोरे नहीं अवर सो कामा।
निसिदिन सुमिरों सद्गुरू नामा।।
पीतर पात्थर देव बहायी।
सद्गुरू भक्ति करूँ चितलायी।।
अरपौं शीस सर्वस सब तोहीं।
हे प्रभु यमते छोड़ावहु मोही।।
सन्तन्ह सेवाप्रीति सों करिहौं।
वचन शिखापन निश्चय धरिहौं।।
जो तुम्ह कहो करब हम सोई।
हे प्रभु दुतिया कबहुँ नहिं होई।।
◆जिन्दा वचन
सुनु धर्मनि अब तोहीं मुक्ताओ।
निश्चय यमसों तोहि बचाओं।।
देइ परवाना हंस उबारों।
जनम मरण दुख दारूण टारों।।
ले प्रवाना जो करै प्रतीती।
जिन्दा कहै चले यम जीती।।
अब मोहि आज्ञा देहु धर्मदासा।
हम गवनहि सद्गुरू के पासा।।
सद्गुरू संग आइब तव पाहीं।
तब परवाना तोहि मिलाहीं।।
◆ धर्मदास वचन
हे प्रभु अब तोहि जाने न दैहौं।
नहिं आवो तो मैं पछितैहौं।।
पछताइ पछताइ बहु दुख पैहौं।
नहिं आवहुतो प्राण गवैहौं।।
हाथ के रतन खोइ कोइ डारै।
सो मूरख निजकाज विगारै।।
विशेष :- कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 31 से 35 में भले ही
मिलावट है, परंतु अन्य पृष्ठों पर सच्चाई भी कमाल की है। जो आरती चौंका की सामग्री है, वह मिलावटी है। कुछ शब्दों का भी फेरबदल किया हुआ है। आप जी को सत्य ज्ञान इसी
विषय में इसी पुस्तक के पृष्ठ 384 पर पढ़ने को मिलेगा जिसका शीर्षक (Heading) है।
‘‘किस-किसको मिला परमात्मा‘‘। कबीर सागर के ये पृष्ठ नम्बर पाठकों को विश्वास दिलाने के लिए बताए हैं ताकि आप कबीर सागर में देखकर मुझ दास (लेखक) द्वारा बताए
ज्ञान को सत्य मानें।
विचार करें :- ज्ञान प्रकाश में धर्मदास जी का प्रकरण पृष्ठ 35 के पश्चात् पृष्ठ 50 से जुड़ता (स्पदा होता) है। पृष्ठ 36 से 49 तक सर्वानन्द का प्रकरण गलत लिखा है। उस समय तक तो सर्वानन्द से परमात्मा कबीर जी मिले भी नहीं थे।
विचार :- कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ पृष्ठ 31 से 35 तथा 50 से 51 पर परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहा कि मैं तेरे को गुरूपद प्रदान करूँगा। आप उसको दीक्षा देना जो आपको सवा लाख रूपये गुरू दक्षिणा के चढ़ाए।
परमेश्वर कबीर जी को पता था कि धर्मदास व्यापारी व्यक्ति है, कहीं नाम दीक्षा को व्यापार न बना ले। परंतु धर्मदास जी विवेकशील थे। भगवान प्राप्त करने के लिए समर्पित थे।
धर्मदास जी ने कहा कि प्रभु! जिसके पास सवा लाख रूपये (वर्तमान के सवा करोड़ रूपये) नहीं होंगे, वह तो काल का आहार ही रहेगा अर्थात् उसकी मुक्ति नहीं हो सकेगी। हे परमेश्वर! कुछ थोड़े करो। करते-कराते अंत में मुफ्त दीक्षा देने का वचन ले लिया। फिर जिसकी जैसी श्रद्धा हो, वैसा दान अवश्य करे। इस प्रकरण में पृष्ठ 51-53 पर कबीर पंथियों ने कुछ अपने मतलब की वाणी बनाकर लिखी हैं जो कहा है कि सवा सेर मिठाई आदि-आदि। यह भावार्थ पृष्ठ 51-53 का है।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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suhaniblogs · 5 years ago
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मेरा छत्तीसगढ़- विकास के पथ पर बढ़ता छत्तीसगढ़ (पार्ट 2)
हमारे तीज त्यौहार हमारे भारतवर्ष में हर राज्य में अलग-अलग परम्परा और उसे मनाने का तरीका अलग अलग होता है। पर हर परम्परा का अपना अलग ही मज़ा होता है। बड़े हमे हमारे त्यौहार से अवगत कराते है और हमसे छोटे हमे देखकर सीखते है। इस प्रकार हर घर मे संस्कार विद्यमान होता है। हमारे छत्तीसगढ़ का सबसे पहला त्यौहार होता है हरेली। यह किसानों के लिए उत्सव होता है इस दिन खेतों में प्रयोग होने वाले औजारों की पूजा होती है। इस उत्सव को खास बनाने के लिए गेड़ी में चढ़कर (लंबे बांस में चढ़कर)नृत्य किया जाता है। बच्चे बूढ़े अपनी खुशी का इजहार करते है। प्रसाद के रूप में मीठा चीला(गेहूं के आटे और गुड़ का प्रयोगकर) और नारियल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। हरेली श्रावण मास की अमावस्य के दिन मनाया जाता है। ये भी मान्यता है कि इस दिन बुरी शक्ति ताकतवर हो जाती है। जिससे रक्षा के लिए हर घर मे नीम पत्ती लगाई जाती है। श्रावण मास के अंतिम दिन अर्थात पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। जो कि पूरे भारत मे मानते है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई उसकी रक्षा का वचन देता है। भादो की षष्ठी के दिन यहां पर हलषष्ठी मनाई जाती है। यह त्यौहार कृष्ण जी के बड़े भ्राता बलराम के जनमोत्स्व के रूप में मनाते है। इस दिन माता अपने बच्चों की कुशलता के लिए व्रत करती है। सभी महिलाएं एकत्र होकर किसी आँगन में या खुली हुई जगह पर दो गड्ढे करती है जिसे सगरी कहते है। माँ गौरी और गणपति जी की स्थापना करती है। उन्हें फल, सुहागन का सामान, धूप, दिया, अगरबत्ती से पूजा करती है। षष्ठी का पाठ पढ़ती है उसके बाद सगरी ��ें 6 बार दूध, 6 बार दही डालकर आरती करती है। व्रत के पूरा हो जाने पर पसहर चावल (जिस पर हल नही चला होता), और 6 प्रकार की भाजी को मिलाकर बनाई जाती है। यह खाकर ही व्रत पूरा होता है। एक कपड़ा छुही से मिलकर या रचकर भगवान के पास रखा जाता है। घर पर आकर बच्चों के कमर में उसे छः बार छुआते है। यह बच्चे की रक्षा करता है। षष्ठी देवी के आशीर्वाद के रूप में। कमर में छूने की वजह से इसे कमरछठ के नाम से भी जाना जाता है। इसके 2 दिन बाद आती है जन्माष्टमी। श्री कृष्ण जी का जन्मोत्सव। यह तो आप सभी जानते है और मनाते भी है। भादो मास की अमावस्या के दिन पोला मनाया जाता है। इस दिन बैलो को सजाकर उनकी प्रतिस्पर्द्धा करवाई जाती है। और बच्चों के लिए मिट्टी के बैल लेते है और मिट्टी के खिलौने। इनकी पूजा की जाती है। और गुलगुला बनाया जाता है भोग के रूप में। यह भी गेहूं के आटे और गुड़ से बनता है। इसके बाद आता है तीज का पर्व। ऐसी मान्यता है कि शिवजी से शादी के लिए माता पार्वती ने यह व्रत किया था। यह व्रत कुँवारी और शादीशुदा दोनों महिलाएं करती है। 24 घंटे का निर्जला व्रत होता है। रात 12 बजे पूजा के बाद पानी पी सकते है। माता गौरी और शिव कोशिश श्रृंगार और सुहाग का सामान चढ़ा के पूजा की जाती है। विवाहित महिला अपने पति के लंबी उम्र की कामना करती है। और अविवाहित लड़कियाँ अच्छे वर के प्राप्ति के लिए यह व्रत करती है। छत्तीसगढ़ में विवाहित महिलाओं को मायके से बुलावा जाता है मतलब लेने जाते है। यह व्रत महिलाएं अपने मायके में करती है। उन्हें साड़ी और सुहाग की चीज़ मायके वाले देते है। और तरह - तरह के व्यंजन खाने को मिलते है। ठेठरी, खुर्मी, नमकीन, मिक्सचर, गुझियां अन्य। तीज के दूसरे दिन गणपति जी का आगमन होता है। वैसे तो यह महाराष्ट्र का पर्व है। किंतु आज पूरा हिंदुस्तान मनाता है। दस दिन के लिए घर और पंडाल में गणपति विराजते हैं। और सभी को सुख समृद्धि प्रदान करते है। गणपति के विसर्जन पश्चात यहां पितृ पक्ष प्रारम्भ होता है। जिसे यहां के लोग पीतर कहते है। 15 दिन यहां पूर्वजो के लिए पूजा तर्पण और खानपान बनाया जाता है। जिस तिथि को उनका निधन हुआ है उस तिथि को उनके नाम से हूम दिया जाता है। स्त्रियों को नवमी के दिन हूम देते है। यदि किसी व्यक्ति का निधन अक्टूबर के बाद हुआ है तो उन्हें अपने पितरों में सम्मिलित किया जाता है। और रिश्तेदारों को भोजन कराया जाता है। पूड़ी, बड़ा, खीर, नेनवा और बरबट्टी की सब्जी अनिवार्य रूप से बनती है। बाकी जरूरत के हिसाब से होता है। इस 15 दिन में कोई भी शुभ काम नही किया जाता है। इसके बाद शारदीय नवरात्रि आती है। जो पश्चिम बं��ाल और गुजरात मे अधिक व्यख्यात है। यहां नौ दिन देवी की उपासना पूजा की जाती है। मंदिरों में ज्योत जलता है। और अष्टमी को हवन और नवमी को कन्या भोज करवाते है। दशमी या दशहरा राम द्वारा रावण की मृत्य। असत्य पर सत्य के जीत के रूप में इस त्यौहार को मानते है। सोनपती देकर अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते है। इस दिन कई घरों में नया खाने की परम्परा है। दशमी के 20 दिन बाद दीपावली आती है। वनवास खत्म कर और रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद रामजी के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दीपोत्सव का त्यौहार मनाया जाता है। यह पूरे राष्ट्र का त्यौहार है। इसमें कुबेर महाराज, लक्ष्मी गणेश, श्रीकृष्ण जी की पूजा होती है। और भाई दूज भी मनाने की परंपरा है। यहां ग्रामीण अंचल में नाचा और फोक गीत गाने की भी परंपरा है। और कई घरों में दीपाली के दूसरे दिन मतलब गोवर्धन पूजा के दिन नया खाते है। कुल देवता का पूजा करते है। दीपावली के ग्यारह दिन बाद आता है देव उठनी एकादशी। इस दिन भगवान विष्णु अपने 4 माह के नींद को पूरा करके उठते है। और इस दिन शालिग्राम के रूप में स्थापित विष्णु जी का विवाह तुलसी जी से किया जाता है गन्ने का मंडप बनता है। और इस दिन से सारे शुभ कार्य प्रारंभ किये जाते है। जैसे घर का वास्तु, शादी, सगाई आदि रस्में। कार्तिक की पूर्णिमा के बाद अगहन मास की शुरुआत होती है। इस महीने में हर गुरुवार माता लक्ष्मी और नारायण की पूजा की जाती है। दोनों को एक पाटे में एक महीने के लिए बैठाया जाता है। नारियल से कलश स्थापना की जाती है। आंवला की पत्ती और आंवला चढ़ाया जाता है। बुधवार की शाम या रात को घर की सफाई करके उनके पदचिन्ह बनाये जाते है। आँगन में रंगोली बनती है। गुरुवार को सूर्योदय से पहले पूजा की जाती है। उनका पाठ किया जाता है। दोपहर 12 बजे उन्हें अलग अलग तरह से मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। और कहानी सुनाई जाती है। भोग के रूप में मीठा चीला, हलवा, चौसला खीर, खाजा इस प्रकार की चीजें बनती है विशेष बात यह है। इस दिन लक्ष्मी माता से संबंधित सामान जैसे झाड़ू, सूपा को हाथ नही लगाते है। उन्हें विश्राम करने देते है। पैसे का उपयोग नही करते। जरूरत पड़ने पर ही उपयोग करते है। और प्रसाद घर मे आये लोगो को वहीं खाने कहा जाता है। वहां से बाहर ले जाने की अनुमति नही होती है। ऐसा प्रत्येक गुरुवार को अगहन माह में करते है। इसके बाद तिल गुड़ का पर्व आता है। जिसे मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। यह तो पूरे भारत में भिन्न भिन्न तरह से मनाते है। इसके दो या तीन दिन बाद sakat आता है। यह चौथ की पूजा है। जैसे हर माह होती है। जिनके घर लड़का होता है व�� माताएं अपने लड़के के लंबी उम्र की कामना और तरक्की के लिए यह व्रत करती है। चाँद को अर्ध्य देकर यह व्रत पूरा होता है। इसमें काले तिल के लड्डू का भोग लगता है। अब सबसे अंतिम और मजेदार पर्व होली। यह भी पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। होनें को तो यह अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 2 रा या 3 रा महीने में आता है। लेकिन हिंदूवर्ष के हिसाब से यह सबसे अंतिम त्यौहार है। चैत्र नवरात्र हिन्दू नव वर्ष का प्रारंभ है किंतु छत्तीसगढ़ का प्रथम त्यौहार हरेली है। इस प्रकार मेरे छत्तीसगढ़ में तीज त्यौहारों का स्वागत होता है और उसे पारम्परिक तरीके से आज भी मनाया जाता है। हमारी परंपरा ही हमारी असली धरोहर है। हम इसे निभाएंगे तभी तो बच्चे भी आगे चलकर उसका पालन करेंगे। जय जवान जय किसान हमर छत्तीसगढ़ के ये ही है शान।
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vidrive · 7 years ago
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सेक्सी नौकरानी जमकर चुदी प्रेषक : साहिल … हैल्लो दोस्तों मेरा अपना अनुभव कहता है कि किसी भी लड़की को गरम करके चोदने में बड़ा मज़ा आता है, लेकिन बस उस लड़की को गरम करने का तरीका एकदम ठीक होना चाहिए। दोस्तों मैंने अपने घर की नौकरानी को ऐसे ही गरम करके बहुत मज़े से चोदा जिसकी सच्ची कहानी आज में आप सभी को कामुकता डॉट कॉम पर आपके लिए बहुत मेहनत से लिखकर सुनाने के लिए आया हूँ और में उम्मीद करता हूँ कि यह घटना आप लोगो को जरुर पसंद आएगी, क्योंकि जब मुझे चुदाई करने में इतना मज़ा आया तो आपको पढ़ने में क्यों नहीं आएगा? दोस्तों मेरा नाम साहिल है और में लखनऊ उत्तरप्रदेश का रहने हूँ, उस समय तक मेरे घर में बहुत सारी नौकरानियां काम करने आई और वो सभी भी चली गई, लेकिन बहुत अरसे के बाद मेरी अच्छी किस्मत से एक बहुत ही सुंदर और सेक्सी नौकरानी मेरे घर पर काम पर आने लगी। दोस्तों उसकी उम्र करीब 22-23 साल होगी, उसका रंग सांवला था ठीक ठाक लम्बाई और सुडौल बदन और उसके बूब्स का आकार करीब 33-29-36 होगा, वो शादीशुदा थी। फिर में हमेशा मन ही मन उसको देखकर सोचा करता था कि उसका पति कितना किस्मत वाला है, जिसको इतनी मस्त पत्नी मिली है और वो साला उसको बहुत जमकर चोदता होगा। दोस्तों उसके बूब्स यानी गोलाईयां ऐसी थी कि उनको देखकर मेरा मन करता कि बस में उनको दबाता ही रहूँ और उसके बूब्स का आकार इतना बड़ा था कि वो उसके ब्लाउज में समाते ही नहीं थे। फिर वो अपनी उभरी हुई छाती को कितनी ही बार अपनी साड़ी के पल्लू से ढकती, लेकिन फिर भी उसके गोल गोल बूब्स इधर उधर से उसके ब्लाउज से उभरते हुए दिख ही जाते थे। फिर वो जब भी झाड़ू लगाते हुए झुकती तब उसके बड़े गले के उस ब्लाउज के ऊपर से उसके बूब्स के बीच की दरार उस सकड़ी सी गली को वो कैसे भी ना छुपा सकती थी। फिर वो मनमोहक द्रश्य मुझे कैसे भी नजर आ ही जाता था, जिसको देखकर मेरा लंड मस्ती में आकर झूमने लगता था। एक दिन जब मैंने उसकी इस दरार को अपनी तिरछी नजर से, लेकिन थोड़ा सा गौर करके देखा तब मुझे पता लगा कि उसने ब्रा तो पहनी ही नहीं थी। दोस्तों वो कहाँ से पहनती? क्योंकि ब्रा के ऊपर बेकार में पैसे क्यों खर्च किए जाए? जब वो ठुमकती हुई चलती तो उसके दोनों मदमस्त कूल्हे हिलते हुए बहुत आकर्षक नजर आते और वो जैसे मुझसे कह रहे हो कि तुम जल्दी से मुझे पकड़ लो और ज़ोर ज़ोर से दबाओ। फिर वो अपनी पतली सी सूती साड़ी को जब संभालती हुई सामने से अपनी चूत के ऊपर अपना एक हाथ रखती तब मेरा मन वो सब देखकर करता कि काश में उसकी चूत को छू सकता। दोस्तों उसकी वो एकदम करारी गरम फूली हुई और गीली कामुक चूत में कितना मस्त मज़ा भरा हुआ था? काश में उसको चूम भी सकता। उसके बूब्स को दबा भी सकता और उसकी निप्पल को अपने मुहं में लेकर ज़ोर ज़ोर से चूस भी सकता और उसकी चूत को चूसते हुए में जन्नत का मज़ा ले सकता और फिर में अपना तना हुए लंड उसकी चूत में डालकर उसकी चुदाई भी कर सकता। दोस्तों अब मेरा चूत का प्यासा लंड मानता ही नहीं था, वो उसकी चूत में जाने के लिए बहुत बेकरार था और उसकी चुदाई करने के लिए तरस रहा था, लेकिन वो सब कैसे होगा? क्योंकि वो तो मुझे कभी देखती ही नहीं थी, बस वो तो अपने काम से मतलब रखती और ठुमकती हुई चली जाती। दोस्तों वैसे मैंने भी उसको कभी भी इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि मेरी नज़र उसको चोदने के लिए बेताब है और में हमेशा उसकी चुदाई के सपने देखा करता हूँ, लेकिन अब कैसे भी करके उसको एक बार चोदना तो था ही इसलिए मैंने अब मन ही मन सोच लिया था, कि मुझे अब इसको अपनी तरफ आकर्षित करना ही होगा और धीरे धीरे अपनी बातों में उसको फंसना भी पड़ेगा वरना, वो कहीं मचल जाए या नाराज़ हो जाये तो मेरा भांडा फूट जाएगा, इसलिए अब मैंने उसके साथ थोड़ी थोड़ी बातें करना शुरू कर दिया था, उसका नाम आरती था। एक दिन सुबह मैंने उसको चाय बनाने के लिए कहा उसने तुरंत रसोईघर में जाकर कुछ देर बाद मेरा काम कर दिया, वो मेरे लिए चाय लेकर आ गई और अब उसके नरम नरम हाथों से जब मैंने चाय को लिया तो मेरा लंड उसको छूकर उछल पड़ा। अब में उसको अपनी प्यासी नजरों से देखने लगा और फिर मैंने चाय पीते हुए उसको कहा कि आरती वाह मज़ा आ गया, चाय तो तुम बहुत अच्छी बना लेती हो। फिर उसने जवाब दिया कि मेरी चाय की तारीफ करने के लिए बाबूजी आपको बहुत धन्यवाद। अब में करीब करीब हर दिन उसी से मेरे लिए चाय बनवाता और उसकी चाय की तारीफ करता और वो मुझसे अपनी बढाई सुनकर बहुत खुश होकर धन्यवाद कहकर चली जाती और इस तरह ��ें धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा था। फिर मैंने एक दिन अपने कॉलेज जाने से पहले अपनी एक शर्ट को आरती से प्रेस करवाई। मैंने उसको कहा कि आरती तुम प्रेस भी बहुत अच्छी कर लेती हो, प्लीज इसके ऊपर भी प्रेस कर दो। फिर उसने कहा कि हाँ ठीक है बाबूजी आप मुझे दे दीजिए उसने मुझसे अपनी बहुत प्यारी सी आवाज़ में कहा और जब आसपास कोई भी नहीं होता, तब में सही मौका देखकर उसके साथ इधर उधर की बातें करता, जैसे आरती तुम्हारा पति क्या करता है? फिर वो कहती साहब वो एक मिल में नौकरी करता है। अब मैंने उसको पूछा उसकी वहां पर कितने घंटे की नौकरी होती है? वो बोली साहब 10-12 घंटे तो लग ही जाते है और कभी कभी तो उनकी रात को भी ड्यूटी लग जाती है। फिर मैंने उसको पूछ लिया कि तुम्हारे कितने बच्चे है? तभी शरमाते हुए उसने जवाब दिया कि अभी तो दो साल की एक लड़की है। फिर मैंने पूछा क्या तुम उसको तुम्हारे घर में अकेला छोड़कर आती हो? वो बोली कि नहीं मेरी बूढ़ी सास भी मेरे घर में है ना, वो उसको संभाल लेती है। अब मैंने उसको पूछा कि तुम कितने घरों में काम करती हो? वो कहने लगी कि साहब बस आपके और एक नीचे वाले घर में। अब मैंने फिर से पूछा तो क्या तुम दोनों का इस कमाई से काम तो चल ही जाता होगा? वो कहने लगी कि हाँ साहब काम चलता तो है, लेकिन बड़ी मुश्किल से क्योंकि मेरा आदमी शराब में बहुत पैसे बर्बाद कर देता है। दोस्तों अब मैंने उसकी मजबूरी को जानकर उसको एक बात कहना उचित समझा मैंने संभालते हुए उसको कहा कि ठीक है कोई बात नहीं में तुम्हारी मदद करूँगा। अब उसने मेरे मुहं से यह बात सुनकर मुझे एक बहुत अजीब सी नज़र से देखा जैसे वो मुझसे बिना कुछ कहे अपनी नजर से पूछ रही हो क्या मतलब है आपका? तभी मैंने तुरंत उसको कहा कि मेरा मतलब है कि तुम अपने आदमी को मेरे पास लाओ में उसे समझाऊँगा। अब उसने हाँ ठीक है साहब कहते हुए ठंडी सांस भरी। इस तरह दोस्तों मैंने उसके साथ वो बातों का सिलसिला बहुत दिनों तक जारी रखा और मैंने हम दोनों के बीच की झिझक को मिटा दिया। एक दिन मैंने शरारत से कहा कि तुम्हारा आदमी पागल ही होगा अरे यार उसको भी समझना चाहिए कि इतनी सुंदर पत्नी के होते हुए भी उसको शराब की क्या ज़रूरत है? दोस्तों वैसे औरत बहुत तेज़ होती है उसने मेरी बातों को कुछ कुछ समझ तो लिया था, लेकिन अभी तक उस बात का उसने मुझे अपनी तरफ से ज़रा सा भी नाराज़गी का अहसास नहीं होने दिया और अब मुझे भी ज़रा सा अनुमान मिल गया कि यह बड़े आराम से तस्वीर में उतार जाएगी, सही मौका मिले और में इसको दबोच लूँ, यह मुझसे अपनी चुदाई जरुर करवा लेगी और आख़िर एक दिन मेरे हाथ एक ऐसा मौका लग ही गया। वो कहते है ना कि ऊपर वाले के यहाँ देर है, लेकिन अंधेर नहीं। दोस्तों वो रविवार का दिन था हमारा पूरा परिवार एक शादी में गया हुआ था, में अपनी पढ़ाई की खोटी होने की वजह बताकर उनके साथ नहीं गया। मेरी मम्मी मुझे क��कर गई थी कि आरती आएगी तुम उसको कहना घर का काम ठीक से कर दे। अब मैंने कहा कि हाँ ठीक है और अब मेरे दिल में खुशी के लड्डू फूटने लगे और मेरा लंड चुदाई की बात सोचकर खड़ा होने लगा। फिर वो अपन��� ठीक समय पर आ गई और उसने दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर अपने काम पर लग गयी। दोस्तों इतने दिन की बातचीत से अब हम दोनों बहुत ज्यादा खुल चुके थे और उसको मेरे ऊपर एक विश्वास सा हो गया था, इसलिए उसने दरवाज़ा बंद कर दिया। अब मैंने उसको हमेशा की तरह चाय बनवाने के लिए कहा और चाय को पीते हुए में उसकी चाय की बढाई करने लगा और तब मन ही मन मैंने निश्चय किया कि आज तो मुझे इसके साथ पहल करनी ही पड़ेगी वरना मेरी गाड़ी आज मेरे हाथ से छूट जाएगी और फिर में सोचने लगा कि कैसे पहल करूं? तब आख़िर में मुझे विचार आया कि भाई सबसे बड़ा रुपैया। अब मैंने उसको अपने पास बुलाया और कहा कि आरती तुम्हे पैसे की ज़रूरत हो तो तुम मुझे ज़रूर बता देना तुम बिल्कुल भी झिझकना मत। फिर वो बोली कि इतनी महरबानी करने के लिए धन्यवाद साहब, लेकिन आप मेरी पगार से काट लोगे और मेरा आदमी मुझे इसके लिए बहुत डांटेगा। अब मैंने उसको कहा कि अरे पगली में तुझसे पगार की बात नहीं कर रहा हूँ, तुझे बस कुछ और पैसे अलग से चाहिए तो में वो मदद के लिए दे दूँगा और किसी को नहीं बताऊँगा, लेकिन बशर्ते तुम भी किसी को ना बताओ तो और में अब उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा। अब वो बोली कि भला में क्यों किसी को बताने लगी, लेकिन क्या आप सच में मुझे कुछ पैसे देंगे? दोस्तों बस फिर क्या था? लड़की पट गयी बस अब मुझे आगे बढ़ना था और मलाई खानी थी, मैंने उसको कहा कि हाँ आरती में तुझे पैसे ज़रूर दूँगा। मैंने उसको पूछा क्यों इससे तुम्हे खुशी मिलेगी ना? अब वो बोली कि हाँ साहब बहुत आराम हो जाएगा उसने इठलाते हुए कहा। अब मैंने भी धीमी आवाज से कहा और मुझे भी खुशी मिलेगी अगर तुम भी कुछ ना कहो तो और अब जैसा में तुमसे कहूँ तुम ठीक वैसा ही करो तो? बोलो क्या तुम्हे मंज़ूर है? यह बात कहते हुए मैंने उसके हाथ में 500 रुपये थमा दिए, लेकिन उसने वो रुपये टेबल पर रख दिए और फिर वो मुस्कुराते हुए मुझसे पूछने लगी कि मुझे क्या करना होगा साहब? अब मैंने उसको कहा कि तुम पहले अपनी आँखें बंद करो। में यह बात कहते हुए उसकी तरफ थोड़ा सा आगे बढ़ा और मैंने उसको कहा कि तुम बस अब थोड़ी देर के लिए अपनी आँखें बंद करो और चुपचाप खड़ी रहो। फिर उसने उसी समय अपनी दोनों आखों को बंद कर लिया, मैंने एक बार फिर से कहा कि आरती में जब तक तुमसे ना कहूँ तुम अपनी आँखें बंद ही रखना वरना तुम अपनी शर्त हार जाओगी। अब वो बोली कि हाँ ठीक है साहब और वो शरमाते हुए अपनी दोनों आँखें बंद करके चुपचाप मेरे सामने खड़ी थी। अब मैंने देखा कि उसके गाल लाल हो चुके थे और होंठ काँप रहे थे, अपने दोनों हाथों को उसने सामने अपनी जवान चूत के पास समेट रखा था। फिर मैंने हल्के से पहले उसके माथे पर एक छोटा सा चुंबन किया, लेकिन अभी तक मैंने उसको छुआ नहीं था और अब भी उसकी आँखें बंद थी। फिर उसके ��ाद मैंने उसकी दोनों पलकों पर बारी बारी से एक एक चुंबन रखा और उसकी आँखें अभी भी बंद थी। उसके बाद मैंने उसके दोनों गालों पर धीरे से बारी बारी से चूमा। उसकी आँखें अब भी बंद थी, लेकिन इधर मेरा लंड तनकर लोहे की तरह खड़ा और सख़्त हो गया था। फिर मैंने उसके होंठो के नीचे चुंबन लिया, अब उसने आँखें खोली और सिर्फ पूछते हुए कहा साहब? मैंने उसको कहा कि आरती तुम शर्त हार जाओगी आँखें बंद, उसने झट से आँखें बंद कर ली। अब में तुरंत समझ गया था कि यह लड़की अब पूरी तरह से तैयार है, बस अब मुझे इसका मज़ा लेना है और इसकी जमकर चुदाई करनी है। दोस्तों मैंने अब की बार उसके थिरकते हुए होठों पर हल्का सा चुंबन किया और अभी तक मैंने उसको छुआ नहीं था। अब उसने एक बार फिर से आँखें खोली और मैंने हाथ के इशारे से उसकी पलकों को दोबारा से ढक दिया और अब में बिना देर किए आगे बढ़ा उसके दोनों हाथों को सामने से हटाकर मैंने अपनी कमर के आसपास रखा और उसको अपनी बाहों में समेट लिया। दोस्तों ये कहानी आप कामुकता डॉट कॉम पर पड़ रहे है। अब मैंने उसके गुलाबी काँपते हुए होठों पर अपने होंठ रख दिए और चूमता रहा इस बार मैंने उनको कसकर चूमा वाह क्या नरम होंठ थे? मानो शराब के प्याले मैंने होठों को चूसना शुरू किया और फिर कुछ देर बाद उसने भी अपनी तरफ से जवाब देना शुरू किया। अब उसके दोनों हाथ मेरी पीठ पर इधर उधर घूम रहे थे और में उसके गुलाबी होठों को बहुत मज़े लेकर चूस चूसकर उसको गरम कर रहा था। तभी मुझे महसूस हुआ कि उसके बूब्स जो कि अब तक तन चुके थे वो मेरी छाती से दब रहे थे और अपने एक हाथ से में उसकी पीठ को अपनी तरफ दबा रहा था और अपनी जीभ से उसकी जीभ और होठों को चूस रहा था। फिर अपने दूसरे हाथ से मैंने उसकी साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दिया, मेरा वो हाथ अब अपने आप उसके बूब्स पर चला गया और मैंने उसको दबाया वाह क्या मस्त बूब्स थे उसके? वो बहुत ही मुलायम थे। अब मेरा लंड फूँकारे मार रहा था, मैंने अपने दूसरे हाथ से उसके कूल्हों को अपनी तरफ दबाया और उसको अपने लंड की गरमी मोटाई को महसूस करवाया। दोस्तों एक शादीशुदा लड़की को चोदना बहुत आसान होता है, क्योंकि उन्हे सब कुछ आता है वो कभी किसी भी काम के लिए घबराती नहीं है और इन सभी कामो में बहुत अनुभवी होती है। दोस्तों ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं थी, उसके ब्लाउज के बटन पीछे थे। अब मैंने अपने एक हाथ से उसके बटन को खोल दिया और ब्लाउज को उतार फेंका उसके बूब्स जैसे उसमे क़ैद थे वो अब उछलकर मेरे हाथों में आ गए। फिर मैंने महसूस किया कि वो एकदम गरम थे, लेकिन रुई की तरह मुलायम प्यारे भी थे। मैंने अब उसकी साड़ी को खोलकर उतार दिया। दोस्तों वो अब खड़ी भी नहीं हो पा रही थी, में उसको हल्के हल्के से अपनी तरफ खींचते हुए अपने कमरे में ले आया और मैंने उसको लेटा दिया। अब मैंने उसको कहा कि आरती रानी अब तुम अपनी आँखें खोल सकती हो। फिर वो मुस्कुराते हुए कहने लगी कि साहब आप बहुत पाजी है और शरमाते हुए उसने आँखें खोली और दोबारा बंद भी कर लिया। अब मैंने झट से अपने कपड़े उतारे और में तुरंत नंगा हो गया, मेरा लंड जोश में आकर तनकर उछल रहा था, मैंने उसके पेटीकोट को जल्दी से खोला और खींचकर उतार दिया और द��खा कि उसने अंदर पेंटी नहीं पहनी थी। अब मैंने उसको पूछा यह क्या तुम्हारी चूत तो नंगी है? क्या तुम पेंटी नहीं पहनती? फिर वो कहने लगी कि नहीं साहब में सिर्फ महीने के उन दिनों में पहनती हूँ और वो शरमाते हुए कहने लगी साहब पर्दे खिचकर बंद करो ना, रौशनी से मुझे बहुत परेशानी होती है। फिर मैंने झट से पर्दों को बंद किया, जिसकी वजह से बेडरूम में थोड़ा अंधेरा हो और अब में उसके ऊपर लेट गया, होठों को कसकर चूमा अपने दोनों हाथों से बूब्स को दबाया और कुछ देर बाद एक हाथ को उसकी चूत पर घुमाने लगा। अब मुझे उसकी चूत पर उसके वो घुंघराले बाल बहुत अच्छे लग रहे थे, उसके बाद मैंने थोड़ा सा नीचे आते हुए उसके बूब्स को अपने मुँह में ले लिया वाह क्या रस था? बस मुझे तो मज़ा बहुत आ रहा था। अब में अपनी एक उंगली को उसकी चूत की दरार पर घुमाने लगा और फिर मैंने उसकी चूत में डाल दिया, मेरी उंगली उसकी चूत में ऐसे घुसी जैसे मख्खन में छुरी, उसकी चूत बहुत गरम और गीली भी थी। अब उसकी जोश से भरी सिसकियाँ मुझे और भी मस्त कर रही थी। मैंने उसको छेड़ते हुए कहा कि आरती रानी अब बोलो में इसके आगे क्या करूँ? वो बोली कि साहब अब आप मुझे और मत तड़पाए बस अब कर दीजिए, उसने मुझसे सिसकियाँ लेते हुए कहा। अब मैंने उसको कहा कि ऐसे नहीं तुम्हे बोलना होगा मेरी जान तभी मुझे अपने करीब खींचते हुए उसने कहा कि साहब डाल दीजिए ना। फिर मैंने शरारती अंदाज में उसको पूछा क्या डालूं और कहाँ डालूं? दोस्तों चुदाई का मज़ा वो सब शब्द सुनने में भी बहुत है, वो कहने लगी कि डाल दीजिए ना, अपना यह लंड मेरे अंदर उसने यह कहा और मेरे होठों से अपने होंठ चिपका लिए और इधर मेरे ��ाथ उसके बूब्स को मसलते ही जा रहे थे। फिर कभी बहुत ज़ोर से दबाते तो कभी मसलते कभी में बूब्स को चूसता, कभी उसके होठों को चूसता और अब मैंने उसको कह ही दिया हाँ मेरी रानी अब मेरा यह लंड तेरी चूत के अंदर जाएगा, तू इसके लिए तैयार रहना, बोल चोद दूँ? अब वो तुरंत बोली हाँ हाँ जल्दी से चोद दीजिए साहब और अब वो एकदम गरम थी। फिर क्या था? मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर रखा और धक्का देकर अंदर घुसा दिया। दोस्तों वो एकदम ऐसे घुसा जैसे उसकी चूत मेरे लंड के लिए ही बनी थी। फिर मैंने हाथों से उसके बूब्स को दबाते हुए होठों से उसके गाल और होठों को चूसते हुए धक्के देकर उसको चोदना शुरू किया और में बस चोदता ही रहा। मेरा ऐसा मन कर रहा था कि में उसको लगातार पूरे जीवन चोदता ही रहूं और मैंने बहुत कस कसकर चोदा उसको चोदते चोदते मेरा मन ही नहीं भर रहा था। दोस्तों वो क्या मस्त चीज़ थी? बड़ी ही गरम कामुक और वो उछल उछलकर मुझसे अपनी चुदाई करवा रही थी और फिर वो कहने लगी आह्ह्हह्ह साहब आप बहुत अच्छा चोद रहे है उफ्फ्फ़ हाँ बस ऐसे ही चोदो बहुत जमकर चोदो धक्के देना बंद मत कीजिए और अब उसके हाथ मेरी पीठ पर कस रहे थे, अपने दोनों पैर उसने मेरे कूल्हों पर घुमा रखे थे और वो अपनी गांड से उछाल रही थी और बहुत मस्ती से अपनी चुदाई करवा रही थी। अब में भी जोश में आकर उसको चोद रहा था। में भी उसको यह बात अब कहने से रुक ना सका और मैंने उसको कहा आरती रानी तेरी यह चूत तो चोदने के लिए ही बनी है रानी वाह क्या मस्त चूत है? मुझे इसमे धक्के देन��� से बहुत मज़ा आ रहा है, तू बोल ना तुझे मेरी यह चुदाई कैसी लग रही है? साहब अब आप रुकिये मत बस मुझे चोदते रहे बस चोदो। फिर इस तरह हम ना जाने कितनी देर तक चुदाई के मज़े लेते हुए बहुत कस कसकर धक्के देकर चोदते हुए झड़ गये, लेकिन वो क्या मस्त गरम चीज़ थी? वो शायद लगातार चोदने के लिए ही बनी थी। दोस्तों मेरा अब भी मन नहीं भरा था और करीब बीस मिनट के बाद मैंने एक बार फिर से अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया और उसको बहुत देर तक अपना लंड चुसवाया। फिर कुछ देर बाद हम दोनों 69 आसन में आ गए और जब वो मेरा लंड चूस रही थी, मैंने उसकी सेक्सी रसभरी चूत को अपनी जीभ से चोदना शुरू किया। मुझे खासकर दूसरी बार तो इतना मज़ा आया कि में किसी भी शब्दों में आप लोगो को बता नहीं सकता। दोस्तों इस बार जब मैंने उसकी चूत में अपना लंड डालकर उसकी चुदाई करनी शुरू कि में उसको बहुत देर तक लगातार चोदता रहा। मेरे लंड को अब झड़ने में बहुत समय लगा, जिसकी वजह से मुझे और में उसको चुदाई का भरपूर मज़ा वो आनंद देता रहा। फिर चुदाई खत्म होने के बाद मैंने अपना वीर्य धक्कों के साथ ही उसकी चूत में डाल दिया। फिर कुछ देर लेटे रहने के बाद उठकर कपड़े पहनने के बाद मैंने उसको कहा कि आरती रानी बस अब तुम मुझसे ऐसे ही हर दिन अपनी चुदाई करवाती रहना वरना यह लंड तुम्हे तुम्हारे घर पर आकर जरुर चोद देगा। अब वो कहने लगी कि साहब आज आपने मेरी इतनी अच्छी तरह से जमकर चुदाई की है, जिसके लिए में बहुत समय से तरस रही थी। अब तो में खुद भी हर एक अच्छे मौके में आपसे अपनी चुदाई जरुर करवाना चाहती हूँ, चाहे आप मुझे उसके लिए पैसे ना भी दो, लेकिन में आपकी चुदाई से वो सुख संतुष्टि पाना चाहती हूँ जो मुझे आप पहली बार आपसे मिला है। अब कपड़े पहनने के बाद भी मेरे हाथ उसके बूब्स को हल्के हल्के मसलते रहे थे। में उसकी निप्पल को दबा रहा था और उसके साथ साथ में उसके गालों और होठों को भी चूमता रहा। फिर उसी समय मेरा एक हाथ उसकी चूत पर चला जाता था और में हल्के से उसकी चूत को भी दबाने सहलाने लगा था। अब कुछ देर बाद वो यह शब्द कहकर उठी कि साहब अब मुझे जाना होगा, मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया और कहा कि रानी मेरा एक बार और तुम्हे चोदने का मन कर रहा है, में अब तुम्हारे कपड़े नहीं उतारूँगा। दोस्तों सच में मेरा लंड अब उसकी चुदाई के लिए तनकर खड़ा हो गया था और दोबारा जमकर चुदाई के लिए तैयार था। फिर मैंने उसको झट से लेटा दिया, उसकी साड़ी ऊपर उठाई और फिर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। दोस्तों इस बार मैंने उसको खचाखच बड़े तेज धक्के देकर चोदा और बहुत देर तक धक्के दिए और बहुत जमकर चोदा और में बस चोदता ही रहा। फिर मुझे पता नहीं कब चोदते चोदते मेरा लंड झड़ गया और मैंने कसकर उसको अपनी बाहों में जकड़ लिया उसको चूमते हुए बूब्स को दबाते हुए मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उसको विदा किया, लेकिन उस पहली चुदाई के बाद भी मैंने उसको बहुत बार अपने लंड के मज़े दिए। वो मेरी चुदाई से हमेशा खुश हुई और उसने हमेशा मेरा पूरा पूरा साथ दिया और मेरे साथ मज़े किए ।। धन्यवाद … The post सेक्सी नौकरानी ��मकर चुदी appeared first on Kamukta.com.
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lokkesari · 7 years ago
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नवरात्र महिमा: पूर्ण वर्णन
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नवरात्र महिमा: पूर्ण वर्णन
नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौ��, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
नौ देवियाँ है :-
शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाल��।
कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
कात्यायनी – इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्याअनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
नवरात्रि भारत के विभिन्न भागों में अलग ढंग से मनायी जाती है। गुजरात में इस त्य���हार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडियाऔर गरबा के रूप में जान पड़ता है। यह पूरी रात भर चलता है। डांडिया का अनुभव बड़ा ही असाधारण है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, ‘आरती’ से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में, सबसे अलंकृत रूप में उभरा है। इस अदभुत उत्सव का जश्न नीचे दक्षिण, मैसूर के राजसी क्वार्टर को पूरे महीने प्रकाशित करके मनाया जाता है।
महत्व:
नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं।
नवरात्रि के पहले तीन दिन
नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है उसकि पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के विनाशकारी पहलु सब बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के प्रतिबद्धता के प्रतीक है।
नवरात्रि के चौथा से छठे दिन
व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है। ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रीयो को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीय��� देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है।
नवरात्रि का सातवां और आठवां दिन[
सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक ‘यज्ञ’ किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।
नवरात्रि का नौवां दिन
नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। ईस दिन पर, कन्या पूजन होता है। उन नौ जवान लड़कियों की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। लड़कियों का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में लड़कियों को उपहार के रूप में नए कपड़े पेश किए जाते हैं।
प्रमुख कथा:
लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे ��हने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।
इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है। तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं
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