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जासूसी दिमाग पहेलियाँ #3 - Mental Health | अंतर ढूंढो तो जाने | अंतर पहचानो पहेली | Find the Difference Hello doston, this is a video of many different kinds of puzzles. It's not as easy as it looks! It has 20 mind-Blowing FIND THE DIFFERENCE , FIND THE MATCHING PAIR , FIND THE SHADOW , ODD ONE OUT , and Similar Brain Teasers! I dare you to try and solve all these within the given time interval.
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जासूसी दिमाग पहेलियाँ #3 - Mental Health | अंतर ढूंढो तो जाने | अंतर पहचानो पहेली | Find the Difference Hello doston, this is a video of many different kinds of puzzles. It's not as easy as it looks! It has 20 mind-Blowing FIND THE DIFFERENCE , FIND THE MATCHING PAIR , FIND THE SHADOW , ODD ONE OUT , and Similar Brain Teasers! I dare you to try and solve all these within the given time interval.
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पराजय!
इच्छायों के भँवर में उलझा मन चंचल होता है
मगर यथार्थ का स्वप्नों से हरदम अंतर होता है।
ज़रूरी तो नहीं हम जो स्वप्न में पायें या गँवायें
यथार्थ के धरातल पर भी सत्य में ही घट जाए।
स्वप्न में जो गाड़ी छूटी न पकड़ पाया मैं कभी
सहन न कर पाया कभी स्वप्न में मिली हार भी।
जीत की लत ऐसी लगी मैं यथार्थ से जा कटा
जिस दिन वक्त ने पछाड़ा मैं दर्द से कराह उठा।
समझ ही नहीं पाया अपनी पराजय स्वीकारना
कितना मुश्किल लगा मुझे स्वयं को सम्भालना।
सुध बुध खोई शुरू किया स्वयं को धिक्कारना
भाग्य लेख को कोसना भगवान को ललकारना।
क्यों दे रहा था स्वयं को ही मानसिक प्रताड़ना
संयम खोना और अपनी आत्मा को फटकारना।
बेचैन मन क्रोधाग्नि की ज्वाला में भभकता रहा
अंतर्मन प्रतिशोध की कटु भावना से भरता रहा।
पाँव भी पटके बहुत छटपटाया मैं तिलमिलाया
अशांत ह्रदय शांति की पहेली सुलझा न पाया।
पराजय से होकर निकलता है जीत का रास्ता
जो समझ गया मूलमंत्र वो विवेक नहीं मारता।
अगर जानता मैं पहेली का रहस्य था सरल सा
सुगम होता समझना जो पराजय में सबक़ था।
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राष्ट्रीय अंतर-विद्यालय वर्ग पहेली प्रतियोगिता का आगाज
राष्ट्रीय अंतर-विद्यालय वर्ग पहेली प्रतियोगिता का आगाज
राष्ट्रीय अंतर-विद्यालय सीसीसीसी क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड प्रतियोगिता के 10वें संस्करण की शुरुआत 29 मई को हुई, जिसमें देश भर की 200 स्कूल टीमों ने अभ्यास दौर खेला, जिसमें नोट्रे डेम अकादमी, पटना के आद्या सिंह के नेतृत्व वाली टीम ने शीर्ष स्थान का दावा किया। लीडरबोर्ड। कुहू गोयल के नेतृत्व में डीपीएस पुणे की टीम और अन���श्री देव की अगुवाई वाली एसईएस गुरुकुल, पुणे की टीम ने क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान का…
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💡पहेली बुझाओ - चार अंतर बताओ 💡
लिखो लिखो comment बॉक्स में लिखो!
#Doodhvale #FarmFreshMilk
#riddle
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1.गणितीय कूट प्रश्न (Mathematical Puzzles),कूट प्रश्न (Puzzles):
गणितीय कूट प्रश्न (Mathematical Puzzles) भी मनोरंजक गणित में सम्मिलित किए जा सकते हैं।मनोरंजक गणित की पहचान आधारित गणित (Basic Mathematics) तथा प्रयुक्त गणित (Applied Mathematics) में अंतर करना कठिन है।फिर भी कूट प्रश्नों को प्रयुक्त गणित की श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि यह बौद्धिक खेलों (Intellectual Games) की मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक है।कूट प्रश्नों को हल करने के प्रयास व्यक्ति की बौद्धिक अभिव्यक्ति (Wit) और आविष्कार कौशल (Ingenuity) के विकास के लिए मार्ग बनाते हैं।
आधुनिक युग में हम सभी मनोरंजक गणित के महत्त्व से परिचित हैं।इसकी मान्यता विस्तृत तथा व्यापक है।सृजनशील गणितज्ञ (Creative Mathematicians) मनोरंजक दृष्टांतों,उदाहरणों तथा प्रश्नों के प्रति अपनी रुचि दर्शाने में लेशमात्र भी नहीं हिचकिचाते हैं।वर्तमान में हम इनकी लोकप्रियता का मूल्यांकन समाचार पत्रों (Newspapers) और पत्रिका��ं (Magazines) में बढ़ते हुए प्रकाशनों से कर सकते हैं।लाइबनिट्ज (Leibnitz) और अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) की जीवनियों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि मानसिक विश्राम के लिए मनोरंजक गणित को पर्याप्त समय देते थे।
कूट प्रश्नों (Puzzles) एवं पहेलियों (Riddles) में अंतर बहुत कम है।यह तो अनुभव करने की बात है।उदाहरणों से ही स्पष्ट हो सकता है।यह एक-दूसरे की सीमाओं में अतिक्रमण कर सकते हैं।किसी समस्या के कूट प्रश्न और पहेली में विवाद नहीं होना चाहिए।यह तो व्यक्तिगत अनुभव या विचार पर निर्भर करता है।कुछ लोग दोनों को समानार्थी मानते हैं।यह बात निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट हो जाएगी:
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आर्यन खान ड्रग केस: समझाया! हिरासत में पूछताछ, न्यायिक हिरासत और अंतरिम जमानत के बीच अंतर - टाइम्स ऑफ इंडिया
आर्यन खान ड्रग केस: समझाया! हिरासत में पूछताछ, न्यायिक हिरासत और अंतरिम जमानत के बीच अंतर – टाइम्स ऑफ इंडिया
यदि आप आर्यन खान के मामले का बारीकी से पालन कर रहे हैं, तो संभावना है कि आप अदालती कार्यवाही पर नजर रख रहे हैं और यह संभव है कि ‘हिरासत में पूछताछ’, ‘न्यायिक हिरासत’ और ‘अंतरिम जमानत’ शब्द आपके सिर खुजला रहे हों। . ये तीनों परिस्थितियाँ एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं। जिसके तहत आर्यन KHAN घर जाना है? खैर, यहां एक व्याख्याता लेख है जो आपकी पहेली को कम करेगा और आपके भ्रम को हल करेगा। 3 अक्टूबर…
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#KHAN#अरबाज मर्चेंट#आर्यन खान#आर्यन खान सा#एनसीबी#एम नेर्लिकार#करोड़ पीसी#मुनमुन धमेचा#मुंबई कोर्ट#शाहरुख खान
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'विज्ञान नहीं देखता नारी-पुरुष का भेद'- चांद से लेकर मंगल तक, भारत को अंतरिक्ष में ले गईं यें महिलाएं Divya Sandesh
#Divyasandesh
'विज्ञान नहीं देखता नारी-पुरुष का भेद'- चांद से लेकर मंगल तक, भारत को अंतरिक्ष में ले गईं यें महिलाएं
‘विज्ञान नारी-पुरुष में अंतर नहीं करता, सिर्फ काम मायने रखता है’- सदियों से जो समाज महिलाओं की काबिलियत को कम आंकता रहा, भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने देश के कदमों में ऐतिहासिक सफलताएं रखकर उस समाज को सटीक जवाब दिया है। जमीन पर भारत की शक्ति को धार देनी हो या अंतरिक्ष में तिरंगा झंडा पहुंचाना हो, इन महिलाओं ने साबित किया है कि अपने देश में अप्रतिम बुद्धिमता के आड़े संकीर्ण मानसिकता टिक नहीं सकती। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ अग्नि मिसाइल से जुड़ीं टेसी थॉमस, चंद्रयान और मंगलयान से जुड़ीं मुथैया वनीता और ऋतु करीधल इस बात की मिसाल हैं कि जब स्वाति मोहन जैसी भारतीय मूल की महिलाएं पश्चिमी देशों में अपना लोहा मनवा रही हैं, तब अंतरिक्ष से जुड़े सवालों के जवाब खोजने में ISRO के अंदर ये साइंटिस्ट किस तरह मोर्चा संभाल रही हैं।Indian Women Scientists: भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने दशकों से साबित किया है कि विज्ञान के क्षेत्र में ��िर्फ इंसान की काबिलियत काम आती है। अग्नि मिसाइल हो, चांद पर जाने का मिशन या मंगल पर जीवन की खोज, भारतीय महिला वैज्ञानिक हमेशा आगे रही हैं।’विज्ञान नारी-पुरुष में अंतर नहीं करता, सिर्फ काम मायने रखता है’- सदियों से जो समाज महिलाओं की काबिलियत को कम आंकता रहा, भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने देश के कदमों में ऐतिहासिक सफलताएं रखकर उस समाज को सटीक जवाब दिया है। जमीन पर भारत की शक्ति को धार देनी हो या अंतरिक्ष में तिरंगा झंडा पहुंचाना हो, इन महिलाओं ने साबित किया है कि अपने देश में अप्रतिम बुद्धिमता के आड़े संकीर्ण मानसिकता टिक नहीं सकती। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ अग्नि मिसाइल से जुड़ीं टेसी थॉमस, चंद्रयान और मंगलयान से जुड़ीं मुथैया वनीता और ऋतु करीधल इस बात की मिसाल हैं कि जब स्वाति मोहन जैसी भारतीय मूल की महिलाएं पश्चिमी देशों में अपना लोहा मनवा रही हैं, तब अंतरिक्ष से जुड़े सवालों के जवाब खोजने में ISRO के अंदर ये साइंटिस्ट किस तरह मोर्चा संभाल रही हैं।’अग्निपुत्री’ टेसी थॉमसभारत की मिसाइलों के बारे में बात होती है तो सबसे पहले शायद ख्याल आता है पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद का जिन्हें ‘मिसाइल मैन ऑफ इंडिया’ कहा जाता है। हालांकि, अग्नि मिसाइल सीरीज ने भारत को ‘अग्नि पुत्री’ भी दी है जो कलाम को अपना गुरु मानती हैं। टेसी थॉमस ने पुरुषों का क्षेत्र मान जाने वाले हथियारों और परमाणु क्षमता से लैस मिसाइलों के विकास में इतिहास रचा जब वह भारत के मिसाइल प्रॉजेक्ट को हेड करने वाली पहली महिला बनीं। मिसाइल गाइडेंस में डॉक्टरेट टेसी अग्नि प्रोग्राम से डिवेलपमेंटल फ्लाइट्स के वक्त से ही जुड़ी थीं। उन्होंने अग्नि मिसाइलों में लगी गाइडेंस स्कीम को डिजाइन किया है। वह कहती हैं कि साइंस का कोई जेंडर नहीं होता।वनीता मुथैया- चंद्रयान-2मुथैया वनीता और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) का साथ 40 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस दौरान वनीता ने कई उंचाइयों को छुआ और ISRO को भी आगे लेकर गईं। उन्होंने साल 2013 में मंगलयान के लॉन्च और सफलता में अहम भूमिका निभाई थी। भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन के साथ वह ISRO की पहले महिला प्रॉजेक्ट डायरेक्टर बनीं तो ‘तीसरी दुनिया’ का देश कहे जाने वाले भारत ने साबित कर दिया कि हमारे देश की महिलाएं दुनिया के किसी भी देश से पीछे नहीं हैं। इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजिनियर वनीता इससे पहले देश की रिमोट सेंसिंग सैटलाइट्स के डेटा ऑपरेशन्स को भी संभाल चुकी हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि कोई भी समस्या या पहेली हो, उनके सामने टिक नहीं सकती। वनीता को साल 2006 में ऐस्ट्रोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने बेस्ट वुमन साइंटिस्ट अवॉर्ड दिया था। ऋतु करिधल-मंगलयानभारत की रॉकेट वुमन ऋतु करिधल। मंगलयान के लिए 2013-2014 में डेप्युटी ऑपरेशन्स डायरेक्टर रहीं ऋतु ने चंद्रयान-2 मिशन के लिए डायरेक्टर का पद संभाला। चंद्रयान-2 के ऑनवर्ड ऑटोनॉमी सिस्टम को डिजाइन करना ऋतु के जिम्मे थे। IISC बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजिनियरिंग में मास्टर्स ऋतु ने मार्स ऑर्बिटर मिशन के लिए ISRO टीम अवॉर्ड और साल 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद से ISRO यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड का ईनाम भी अपने नाम किया है। ऋतु ने MOM के बारे में बताया था, ‘MOM एक बड़ा चैलेंज था। हमें 18 महीने में इसकी तैयारी करनी थी। यह ��हली इंडियन सैटलाइट थी जिसमें फुल-स्केल ऑन बोर्ड ऑटोनॉमी थी जो खुद अपनी परेशानी सुलझा सके। सबसे अहम महिला वैज्ञानिकों ने पुरुष वैज्ञानिकों के कंधे से कंधा मिलाकर इस मिशन को सफल बनाया था।’
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अम्बिकापुर नगर से 12 किमी. की दुरी पर दरिमा हवाई अड्डा हैं। दरिमा हवाई अड्डा के पास बडे – बडे पत्थरो का समुह है। इन पत्थरो को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजे आती है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये आवाजे विभिन्न धातुओ की आती है। इनमे से किसी – किसी पत्थर खुले बर्तन को ठोकने के समान आवाज आती है। इस पत्थरो मे बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज मे कोइ अंतर नही पडता है। एक ही पत्थर के दो टुकडे अलग-अलग आवाज पैदा करते है। इस विलक्षणता के कारण इस पत्थरो को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते है। सरगुजा में इस पत्थर के चर्चे तो काफी है, लेकिन राज्य व देश में भी यह अपनी पहचान बना चुका है। इस पत्थर का रहस्य जानने कई वैज्ञानिक भी यहां पहुंच चुके हैं, लेकिन अब तक यह अबूझ ही साबित हुआ है। शोधकर्ता भी इस पत्थर का तिलिस्म जानने में लगे हैं। छिंदकालो गांव में स्थित यह पत्थर करीब 5 फीट ऊंचा व 3 फीट की चौड़ाई लिए हुए है। यहां के ग्रामीणों ने इस पत्थर का एक छोटा टुकड़ा इसके ऊपर रख दिया है। लोग आते है और कौतुहलवश दोनों को आपस में टकराते हैं। पत्थर के टकराने से 'ठिन-ठिन' की मधुर ध्वनी निकलती है। गांव में पहुंचने वाली सड़क के किनारे ही यह पत्थर रखा हुआ है। ग्रामीणों ने बकायदा यहां पर 'ठिनठिनी पत्थर' भी लिख रखा है। पत्थर के कारण इस गांव का यह मोहल्ला ठिनठिनीपारा के नाम से प्रचलित हो गया है। बताया जा रहा है कि ठिन-ठिन की आवाज आने के कारण ही गांव के बु��ुर्गों ने इसका नाम ठिनठिनी रख दिया। तब से लेकर आज तक यह इसी नाम से प्रसिद्ध है। सरगुजा के अलावा यह छत्तीसगढ़ व देशभर में यह प्रचलित हो चला है। पूर्व में इस पत्थर का रहस्य जानने कई देश के कई वैज्ञानिक यहां पहुंच चुके हैं, लेकिन वे इसका तिलिस्म नहीं समझ पाए। अब तक यह पत्थर अबूझ पहेली बना हुआ है। वहीं शोधकताओं द्वारा पत्थर की जैविक संरचना जानने इसका सैंपल जयपुर के विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया है। यह पत्थर सरगुजा सहित राज्य का ऐतिहासिक धरोहर बन चुका है।दूरदराज से देखने पहुंचते हैं लोग ठिनठिनी पत्थर की लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी है कि इसे देखने जिले के अलावा राज्य व देश के कोने-कोने से भी लोग आते हैं। यहां पहुंचने के बाद ठिनठिनी के दो पत्थरों को आपस में टकराकर देखते हैं। इससे जो ध्वनी निकलती है इसे सुनकर वे काफी आनंदित भी होते हैं। Video Link https://youtu.be/CsXcDUShHQA #thinthinipatthar #thinthini #ambikapur #thinthinistone #chhattisgarhstone #ambikapurthinthinistone #cgrider #chhattisgarhrider #ambikapur #sarguja #thinthini (at Thinthini Patthar) https://www.instagram.com/p/CPnmy0js4jF/?utm_medium=tumblr
#thinthinipatthar#thinthini#ambikapur#thinthinistone#chhattisgarhstone#ambikapurthinthinistone#cgrider#chhattisgarhrider#sarguja
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अंतर पहचानिए पहेली #5| Spot the Difference Puzzle in Hindi | Photo game | Find hidden objects riddle
Hello friends, here is an interesting puzzle! Can you identify the difference? Here is an interesting new "Find the difference" puzzle challenge (Theme: Picnic) presented by Dabung Girl, the new Indian superhero. She wants you to find the difference between the two images. Can you find the difference? This activity will enhance the observational skills, knowledge and critical thinking of the player. This riddle can be solved at school or home. Everyone (children, parents, educators and teachers) will find this puzzle/brainteaser engaging. Keep your eyes open while solving these puzzles.
https://youtu.be/0WkI4dRa1iA
#teaching#brain teaser#MustForTeachers#kids#teachers#children#child#schooling#spot the difference#puzzle in hindi#photo game#find hidden objects#hidden riddles#Dabung Girl#dababgg girl#dabang girl
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 12 Bajar Darshan
NCERT Class 12 Hindi Chapter 12 :: Bajar Darshan
(बाजार दर्शन)
(गद्य भाग)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1.बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है? (CBSE-2010-2012, 2015)उत्तर:बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –
बाजार में आकर्षक वस्तुएँ देखकर मनुष्य उनके जादू में बँध जाता है।
उसे उन वस्तुओं की कमी खलने लगती है।
वह उन वस्तुओं को जरूरत न होने पर भी खरीदने के लिए विवश होता है।
वस्तुएँ खरीदने पर उसका अह संतुष्ट हो जाता है।
खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि जो चीजें आराम के लिए खरीदी थीं वे खलल डालती हैं।
उसे खरीदी हुई वस्तुएँ अनावश्यक लगती हैं।
प्रश्न 2.
बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनको आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है? (CBSE-2008)उत्तर:भगत जी समर्पण भी भावना से ओतप्रोत हैं। धन संचय में उनकी बिलकुल रुचि नहीं है। वे संतोषी स्वभाव के आदमी हैं। ऐसे व्यक्ति ही समाज में प्रेम और सौहार्द का संदेश फैलाते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति समाज में शांति स्थापित करने में मददगार साबित होते हैं।
प्रश्न 3.‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें हैं? (CBSE-2016, 2017)उत्तर:‘बाजारूपन’ से तात्पर्य है-दिखावे के लिए बाजार का उपयोग। बाजार छल व कपट से निरर्थक वस्तुओं की खरीदफ़रोख्त, दिखावे व ताकत के आधार पर होने लगती है तो बाजार का बाजारूपन बढ़ जाता है। क्रय-शक्ति से संपन्न की पुलेि व्यिक्त बाल्पिनक बताते हैं। इसप्रतिसे बारक सवा लधनाह मिलता। शणक प्रति बढ़ जाती है। वे व्यक्ति जो अपनी आवश्यकता के बारे में निश्चित होते हैं, बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। बाजार का कार्य मनुष्य कल कपू करता है जहातक सामान मल्नेप बार सार्थकह जाता है। यह पॉड” पावरक प्रर्शना नहीं होता।
प्रश्न 4.बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इसे रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं? (CBSE-2008)उत्तर:यह बात बिलकुल सत्य है कि बाजारवाद ने कभी किसी को लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर नहीं देखा। उसने केवल व्यक्ति के खरीदने की शक्ति को देखा है। जो व्यक्ति सामान खरीद सकता है वह बाजार में सर्वश्रेष्ठ है। कहने का आशय यही है कि उपभोक्तावादी संस्कृति ने सामाजिक समता स्थापित की है। यही आज का बाजारवाद है। प्रश्न 5. आप अपने समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।उत्तर:(क) एक बार एक कार वाले ने एक बच्चे को जख्मी कर दिया। बात थाने पर पहुँची लेकिन थानेदार ने पूरा दोष बच्चे के माता-पिता पर लगा दिया। वह रौब से कहने लगा कि तुम अपने बच्चे का ध्यान नहीं रखते। वास्तव में पैसों की चमक में थानेदार ने सच को झूठ में बदल दिया था। तब पैसा शक्ति का परिचायक नजर आया।
(ख) एक व्यक्ति ने अपने नौकर का कत्ल कर दिया। उसको बेकसूर मार दिया। पुलिस उसे थाने में ले गई। उसने पैसे ले-देकर मामले को सुलझाने का प्रयास किया लेकिन सब बेकार। अंत में उस पर मुकदमा चला। आखिरकार उसे 14 वर्ष की उम्रकैद हो गई। इस प्रकार पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1.‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।
मन खाली हो
मन खाली न हो
मन बंद हो
मन में नकार हो
उत्तर:
मनखालौ हो–जब मनुष्य का मन खाली होता है तो बाजार में अनाप–शनाप खरीददारी की जाती है । बजर का जादू सिर चढकर बोलता है । एक बार में मेले में घूमने गया । वहाँ चमक–दमक, आकर्षक वस्तुएँ मुझे न्योता देती प्रतीत हो रहीं थीं । रंग–बिरंगी लाइटों से प्रभावित होकर मैं एक महँगी ड्रेस खरीद लाया । ��ाने के खाद पता चला��कि यह आधी कीमत में फुटपाथ पर मिलती है ।
मन खाली न हो–मन खाली न होने पर मनुष्य अपनी इच्छित चीज खरीदता है । उसका ध्यान अन्य वस्तुओं पर नहीं जाता । में घर में जरूरी सामान की लिस्ट बनाकर बाजार जाता है और सिफ्रे उन्हें ही खरीदकर लाता हूँ । मैं अन्य चीजों को देखता जरूर हूँ, पर खरीददारी वहीं करता हूँजिसकौ मुझे जरूरत होती है ।
मनबंदहो–मन ईद होने पर इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं । वैसे तो इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं, परंतु कभी–कभी पन:स्थिति ऐसी होती है कि किसी वस्तु में मन नहींलगता । एक दिन में उदास था और मुझे बाजार में किसी वस्तु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । अत: में विना कहीं रुके बाजार से निकल आया ।
मन में नकार हो–मन में नकारात्मक भाव होने से बाजार की हर वस्तु खराब दिखाई देने लगती है । इससे समाज इसका विकास रुक जाता है । ऐसा असर किसी के उपदेश या सिदूधति का पालन करने से होता है । एक दिन एक साम्यवादी ने इस तरह का पाठ पढाया कि बडी कंपनियों की वस्तुएँ मुझें शोषण का रूप दिखाई देने लगी।
प्रश्न 2.‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?उत्तर:इस पाठ में प्रमुख रूप से दो प्रकार के ग्राहकों का चित्रण निबंधकार ने किया है। एक तो वे ग्राहक, जो ज़रूरत के अनुसार चीजें खरीदते हैं। दूसरे वे ग्राहक जो केवल धन प्रदर्शन करने के लिए चीजें खरीदते हैं। ऐसे लोग बाज़ारवादी संस्कृति को ज्यादा बढ़ाते हैं। मैं स्वयं को पहले प्रकार का ग्राहक मानता/मानती हैं क्योंकि इसी में बाजार की सार्थकता है।
प्रश्न 3.आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नजर आती है?उत्तर:मॉल को संस्कृति से बाजार को पर्चेजिग पावर को बढावा मिलता है । यह संस्कृति उच्च तथा उच्च मध्य वर्ग से संबंधित है । यहाँ एक ही छत के नीचे विभिन्न तरह के सामान मिलते हैं तथा चकाचौंध व लूट चरम सोया पर होती है । यहाँ बाजारूपन भी फूं उफान पर होता है । सामान्य बाजार में मनुष्य की जरूरत का सामान अधिक होता है । यहाँ शोषण कम होता है तथा आकर्षण भी कम होता है । यहाँ प्राहक व दूकानदार में सदभाव होता है । यहाँ का प्राहक मध्य वर्ग का होता है।
हाट – संस्कृति में निम्न वर्ग व ग्रमीण परिवेश का गाहक होता है । इसमें दिखाया नहीं होता तथा मोल-भाव भी नाम- हैं का होता है । ।पचेंजिग पावर’ मलि संस्कृति में नज़र आती है क्योंकि यहाँ अनावश्यक सामान अधिक खरीदे जाते है।
प्रश्न 4.लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सह��त उत्तर दीजिए। (CBSE-2008)उत्तर:आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति अपेक्षित वस्तु हर कीमत पर खरीदना चाहता है। वह कोई भी कीमत देकर उस वस्तु को प्राप्त कर लेना चाहता है। इसलिए वह कई बार शोषण का शिकार हो जाता है। बेचने वाला तुरंत उस वस्तु की कीमत मूल कीमत से ज्यादा बता देता है। इसीलिए लेखक ने ठीक कहा है कि आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।
प्रश्न 5.स्त्री माया न जोड़े यहाँ मया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ होंगी जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?उत्तर:यहाँ ‘माया‘ शब्द का अर्थ है–धन–मगाती, जरूरत की वस्तुएँ । आमतौर पर स्तियों को माया जोड़ते देखा जाता है । इसका कारण उनकी परिस्थितियों है जो निम्नलिखित हैं –
आत्मनिर्भरता की पूर्ति ।
घर की जरूरतों क्रो पूरा करना ।
अनिश्चित भविष्य ।
अहंभाव की तुष्टि ।
बच्चों की शिक्षा ।
संतान–विवाह हेतु ।
आपसदारी
प्रश्न 1.ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है-भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिएचाह गई चिंता गई मनुआ बेपरवाह जाके कुछ न चाहिए सोइ सहंसाह। – कबीरउत्तर:कबीर का यह दोहा भगत जी की संतुष्ट निस्मृहता पर पूर्णतया लागूहोता है । कबीर का कहना था कि इच्छा समाप्त होने यर लता खत्म हो जाती है । शहंशाह वहीं होता है जिसे कुछ नहीं चाहिए । भगत जी भी ऐसे ही व्यक्ति हैं । इनकी जरूरतें भी सीमित हैं । वे बाजार के आकर्षण से दूर हैं । अपनी ज़रूरत पा होने पर वे संतुष्ट को जाते हैं ।
प्रश्न 2.विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फ़िल्म बनी है) के अंश को पढ़कर आप देखेंगे कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?उत्तर:गड़रिया बगैर कहे ही उसके दिल की बात समझ गया, पर अँगूठी.कबूल नहीं की। काली दाढी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुएबोला-‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूं।मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अँगूठी मेरे किस कामकी ! न यह अंगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़े भी मेरी तरहगॅवार हैं। घास तो खाती है, पर सोना सँघती तक नहीं। बेकार कीवस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।उत्तर:विजयदान देथा की ‘दुविधा’ कहानी का अंश पढ़कर मुझमें भी संतोषी वृत्ति ��े भाव जगते हैं। गड़रिया चाहता तो वह अपने न्याय की कीमत वसूल सकता था। सामाजिक दृष्टि से यही ठीक भी था क्योंकि अमीर व्यक्ति जो कुछ गड़रिये को दे रहा था वह उसका हक था। लेकिन गड़रिये और भगत जी की संतोषी भावना को देखकर मेरे मन में भी इसी प्रकार के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। मन करता है कि जीवन में इस भावना को अपनाए रखें तो किसी प्रकार की चिंता नहीं रहेगी। जब कोई इच्छा या अपेक्षा नहीं होगी तो दुख नहीं होगा। तब हम भी कबीर की तरह शहंशाह होंगे।
प्रश्न 3.बाज़ार पर आधारित लेख ‘नकली सामान पर नकेल ज़रूरी’ का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए।(क) नकली सामान के खिलाफ़ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनजर रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व है।(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए?
नकली सामान पर नकेल जरूरी।
अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का जिक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों में खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्सल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है। उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरि माँ जी का कहना है, इसमें दो राय नहीं है कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली सामान बिक रहा है।
महानगरीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँववालों के अज्ञान और उनके बीच जागरुकता के अभाव का पूरा फायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून ज़रूर है लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालो�� से कितनी उम्मीद की जा सकती है। इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस. एन. कपूर का कहना है, ‘टी.वी. ने दूरदराज के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं। लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं।
नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।’ बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरुकता के लिहाज से शहरी समाज भी कोई ज्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरुकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रही है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्यों न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की ज़रूरत है वह तत्काल हो।– हिंदुस्तान 6 अगस्त 2006, साभारउत्तर:(क) नकली सामान के खिलाफ लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है। सबसे पहले विज्ञापनों, पोस्टरों और होर्डिंग के माध्यम से यह बताया जाए कि किस तरह असली वस्तु की पहचान की जाए। लोगों को बताया जाए कि होलोग्राम और ISI मार्क वाली वस्तु ही खरीदें। उन्हें यह भी जानकारी दी जाए कि नकली वस्तुएँ खरीदने से क्या हानियाँ हो सकती हैं ?
(ख) सामान बनाने वाली कंपनियों का सबसे पहले यही नैतिक दायित्व है कि अच्छा और बढ़िया सामान बनाए। वे ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करें जो आम आदमी को फायदा पहुँचायें। केवल अपना फायदा सोचकर ही समान न बेचें। वे मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता पर ध्यान रखें तभी ग्राहक खुश होगा। जो कंपनी जितनी ज्यादा गुणवत्ता देगी ग्राहक उसी कंपनी का सामान ज्यादा खरीदेंगे।
(ग) भारतीय मध्य वर्ग पर आज का बाजार टिका हुआ है। वह दिन बीत गए जब लोकल कंपनी का माल खरीदा जाता। था। अब तो लोग ब्रांडेड कंपनी का ही सामान खरीदते हैं। चाहे वह कितना ही महँगा क्यों न हो। उन्हें तो केवल यही विश्वास होता है कि ब्रांडेड सामान अच्छा और बढ़िया होगा। उसमें किसी भी तरह से कोई खराबी न होगी लोग इन ब्रांडेड सामानों को खरीदने के लिए कोई भी कीमत चुकाते हैं। ब्रांडेड सामान चूँकि बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इस्तेमाल करती हैं। इसलिए अन्य लोग भी ऐसा ही करते हैं।
प्रश्न 4.प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।उत्तर:प्रेमचंद की कहानी में हामिद और उसके दोस्त यानी सम्मी मोहसिन नूरे सभी मेला देखने जाते हैं। वे मेले में लगी दुकानों को देखकर बहुत प्रभावित होते हैं। वे हाट बाजार में लगी हुई सारी वस्तुएँ देखकर प्रसन्न होते हैं। उनका मन करता है कि सभी-वस्तुएँ खरीद ली जाएँ। किंतु किसी के पास पाँच पैसे थे तो किसी के पास दो पैसे। हाट वास्तव में ��ाजार का ही एक रूप है। बच्चे इनमें लगी दुकानों को देखकर आकर्षित हो जाते हैं। वे तरह-तरह की इच्छाएँ करने लगते हैं। बच्चों का संबंध बाजार से प्रत्यक्ष होता है। वे सीधे तौर पर बाजार में जाकर वहाँ रखी वस्तुओं को खरीद लेना चाहते हैं।
विज्ञापन की दुनिया
प्रश्न 1.आपने समाचार-पत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभानेका प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु2. विज्ञापन में आए पात्र और उनका औचित्य3. विज्ञापन की भाषा।उत्तर:मैंने शाहरूख खान द्वारा अभिनीत सैंट्रो कार का विज्ञापन देखा। इस विज्ञापन में सैंट्रो कार का चित्र था और विषय वस्तु थी। वह कार, जिसे बेचने के लिए आज के सुपर स्टार शाहरूख खान को अनुबंधित किया गया। इसमें शाहरूख खान और उनकी पत्नी को विज्ञापन करते दिखाया गया है। साथ ही उनके एक पड़ोसी का भी जिक्र आया है। इन सभी पात्रों का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। शाहरूख की पत्नी जब पड़ोसी पर आकर्षित होती है तो शाहरूख पूछता है क्यों? तब उसकी पत्नी जवाब देती है सैंट्रो वाले हैं न ।’ मुझे कार खरीदने के लिए इसी कैप्शन ने प्रेरित किया। इस पंक्ति में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का पता चलता है।
प्रश्न 2.अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भीअच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो। उत्तर सेल लगाकर, अपने सामान के साथ कुछ उपहार देकर, स्क्रैच कार्ड के द्वारा, विज्ञापन देकर या सामान की खूबियाँ बताकर। उदाहरण1. सेल-सेल-सेल कपड़ों पर भारी सेल।।2. एक सूट के साथ कमीज फ्री। बिलकुल फ्री।3. ये कपड़े त्वचा को नुकसान नहीं पहुँचाते, ये नरम और मुलायम कपड़े हैं। पूरी तरह से सूती । यदि मुझे सामान बेचना पड़े तो मैं बेची जाने वाली वस्तु के गुणों का प्रचार करूंगा/करूंगी ताकि ग्राहक अपनी समझ सेवस्तु खरीदे।।
भाषा की बात
प्रश्न 1.विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।उत्तर:औपचारिक रूप1. मैंने कहा – यह क्या?बोले – यह जो साथ थी।2. बोले – बाज़ार देखते रहे।मैंने कहा – बाज़ार क्या देखते रहे।3. यह दोपहर के पहले के गए गए बाजार से कहीं शाम को वापिस आए।
अनौपचारिक
कुछ लेने का मतलब था शेष सबकुछ छोड़ देना।
ब��जार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो।
पैसे की व्यंग्य शक्ति भी सुनिए।
प्रश्न 2.पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे हैं जहाँ वह पाठक-वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं?उत्तर:1. बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है।2. जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा।3. यहाँ एक अंतर चिह्न लेना ज़रूरी है।4. कहीं आप भूल नहीं कर बैठिएगा।5. पैसे की व्यंग्य शक्ति सुनिए। वह दारूण है। अवश्य ऐसे संबोधनों के कारण पाठकों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वह अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता है। इसीलिए ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में सहायक सिद्ध होते हैं।
प्रश्न 3.नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।(क) पैसा पावर है।(ख) पैसे की उस पर्चेजिंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल ! अब तक। आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?उत्तर:1. पैसे की गरमी या एनर्जी।2. वह तत्व है मनी बैग3. अपनी पर्चेजिंग पावर के अनुपात में आया है।4. तो एकदम बहुत से बंडल थे।5. वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा का उन्हें दरकार नहीं है।यदि इस वाक्य में एनर्जी की जगह उत्साह शब्द का प्रयोग किया जाता है तो वाक्य की प्रेषणीयता अधिक प्रभावी होती है। इसी प्रकार ‘मनी बैग’ की जगह नोटों से भरा थैला, पर्चेजिंग पावर की जगह खरीदने की शक्ति, बंडल की जगह गट्ठर और पावर की जगह ऊर्जा या उत्साह प्रभावी होगा क्योंकि हिंदी, पर्यायों के प्रयोग से संप्रेषणीयता ज्यादा बढ़ जाती है।
प्रश्न 4.नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए।(क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है।(ख) लोग संयमी भी होते हैं।(ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसेमुझे भी किताब चाहिए (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।)आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्य��ं का निर्माण कीजिए जिसमेंये तीनों निपात एक साथ आते हों।उत्तर:ही –1. उसे ही यह टिकट दे दो।2. मैं वैसे ही उससे मिला।3. तुमने ही मुझे उसके बारे में बताया।
भी –1. कुछ लोग दुष्ट भी होते हैं।2. वह भी उनसे मिल गया।3. उसने भी मेरा साथ छोड़ दिया।
तो –1. रामलाल ने कुछ तो कहा होता।2. तुम लोग कुछ तो शर्म किया करो।3. तुम लोगों को तो फाँसी दे देनी चाहिए।
दो वाक्य
1. मैंने ही नारायण शंकर को वहाँ भेजा था लेकिर उसने भी वह किया, कृपा शंकर तो उसे पहले ही कर दिया था।2. आर्यन तो दिल्ली जाना चाहता था लेकिन मैं तो उसे भेजना नहीं चाहता था। तभी तो वह नाराज हो गया।
चर्चा करें
प्रश्न 1.पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है?बाजार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद के लिए संकेत दिया जा रहा है(क) सामाजिक विकास के कार्यों में(ख) ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में ……।उत्तर:पर्चेजिंग पावर से अभिप्राय है कि खरीदने की क्षमता। कहने का भाव है कि खरीददारी करने का सामर्थ्य लेकिन पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक प्रयोग किया जा सकता है। वह भी बाजार की चकाचौंध से कोसों दूर। इसका सकारात्मक प्रयोग सामाजिक कार्य करके और ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करके। सामाजिक विकास के कार्य जैसे स्कूल, अस्पताल, धर्मशालाएँ। खुलवाकर उस पैसे का उपयोग किया जा सकता है जो कि लोग फिजूल के सामान पर खर्च करते हैं। आज शॉपिंग माल्स में लगभग 30 प्रतिशत फिजूल पैसा लोग खर्चते हैं क्योंकि वे अपनी शानो शौकत रखने के लिए खरीददारी करते हैं। यदि इसी पैसे को सामाजिक विकास के कार्यों में लगा दिया जाए तो समाज न केवल उन्नति करेगा बल्कि वह अमीरी गरीबी के अंतर से भी बाहर निकलेगा। दूसरे इस पैसे का ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। गाँवों को मूलभूत सुविधाएँ इसी पैसे से प्रदान की जा सकती हैं। यह पैसा गाँवों की तस्वीर बदल सकता है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.‘बाज़ारे दर्शन’ निबंध की भाषा के बारे में बताइए।उत्तर:बाजार दर्शन जैनेंद्र द्वारा लिखा गया एक सार्थक निबंध है। इसमें निबंधकार ने सहज, सरल और प्रभावी भाषा का प्रयोग किया है। शब्दावली में कुछेक अन्य भाषाओं के शब्द भी आए हैं। लेकिन ये शब्द कठिन नहीं हैं। पाठक सहजता से इन्हें ग्रहण कर लेता है। भाषा की दृष्टि से यह एक सफल और प्रभावशाली निबंध है। वाक्य छोटे-छोटे हैं जो निबंध को अधिक संप्रेषणीय बनाते हैं।
प्रश्न 2.‘बाज़ार दर्शन’ निबंध किस प्रकार का है?उत्तर:निबंध प्रकार की दृष्टि से बाजार दर्शन को वर्णनात्मक निबंध कहा जा सकता है। निबंधकार ने हर स्थिति, घटाने का वर्णन किया है। प्रत्येक बात को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया है। वर्णनात्मकता के कारण निबंध में रोचकता और स्पष्टता दोनों आ गए हैं। वर्णनात्मक निबंध प्रायः उलझन पैदा करते हैं लेकिन इस निबंध में यह कमी नहीं है।
प्रश्न 3.इस निबंध में अन्य भाषाओं के शब्द भी आए हैं, उनका उल्लेख कीजिए।उत्तर:निबंधकार ने हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, उर्दू, फारस भाषा के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन शब्दों के प्रयोग से निबंध की रोचकता और सार्थकता बढ़ी है। अंग्रेज़ी के शब्द-एनर्जी, बैंक, पर्चेजिंग पावर, मनी बैग, रेल टिकट, फैंसी स्टोर, शॉपिंग मॉल, ऑर्डर आदि। उर्दू फारसी के शब्द-नाहक, पेशगी, कमज़ोर, बेहया, हरज, बाज़ार, खलल, कायल, दरकार, माल-असबाब।
प्रश्न 4.निबंध में किस प्रकार की शैली का प्रयोग किया गया है।उत्तर:प्रस्तुत निबंध में जैनेंद्र जी ने मुख्य रूप से वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक, उदाहरण आदि शैलियों का प्रयोग किया है। इन शैलियों के प्रयोग से निबंध की भाव संप्रेषणीयता बढ़ी है। साथ ही स्पष्टता और सरलता के गुण भी आ गए हैं। निबंधकार ने इन शैलियों का प्रयोग स्वाभाविक ढंग से किया है। इस कारण निबंध की रोचकता में वृद्धि हुई है। इनके कारण पाठक एक बैठक में निबंध को पढ़ लेना चाहता है।
प्रश्न 5.बाजार दर्शन से क्या अभिप्राय है?उत्तर:बाजार दर्शन से लेखक का अभिप्राय है बाज़ार के दर्शन करवाना अर्थात् बाज़ार के बारे में बताना कि कौन-कौन सी चीजें मिलती हैं कि वस्तुओं की बिक्री ज्यादा होती है। यह बाज़ार किस तरह आकर्षित करता है। लोग क्यों बाज़ार से ही आकर्षित होते हैं।
प्रश्न 6.उपभोक्तावादी संस्कृति क्या है?उत्तर:उपभोक्तावादी संस्कृति वास्तव में उपभोक्ताओं का समूह है। उपभोक्ता बाज़ार से सामान खरीदते हैं। यह वर्ग ही बाजार पैदा करता है। लोग अपने उपभोग की सारी वस्तुएँ बाज़ार से खरीदकर उनका उपभोग करते हैं। बाज़ार का सारा कारोबार इन्हीं पर निर्भर होता है।
प्रश्न 7.कौन-से लोग फिजूल खर्ची नहीं करते?उत्तर:लेखक कहता है कि संयमी लोग फिजूल खर्ची नहीं करते। वे उसी वस्तु को खरीदते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है। बाजार के आकर्षण में ये कभी नहीं हँसते। उन्हें अपनी ज़रूरत से मतलब है न कि बाजारूपन से। जो चाहिए वही खरीदा नहीं तो छोड़ दिया।
प्रश्न 8.भगत जी के बारे में बताइए।उत्तर:लेखक ने भगत जी पात्र का वर्णन इस निबंध में किया है। उसके माध्यम से लेखक ने संतोष का पाठ पढ़ाया है। भगत जी केवल उतना ही सामान बेचते हैं जितना की बेचकर खर्चा चलाया जा सके। जब खर्चे लायक पैसे आ गए तो सामान बेचना बंद कर दिया। कभी किसी गरीब बच्चे को मुफ्त चूरन दे दिया। लेकिन ज्यादा सामान बेचने का लालच नहीं था।
प्रश्न 9.किस तरह का बाज़ार आदमी को ज्यादा आकर्षित करता है?उत्तर:लेखक के अनुसार ‘शॉपिंग मॉल’ व्यक्ति को ज्यादा आकर्षित करता है। उनकी सजावट देखकर व्यक्ति उनसे बहुत प्रभावित हो जाता है। वह उनके आकर्षण के जाल में फँस जाता है। इसी कारण वह उन चीजों को भी खरीद लेता है जिसकी उसे कोई जरूरत नहीं होती। वास्तव में, शॉपिंग मॉल ऊँचे रेटों पर सामान बेचते हैं।
प्रश्न 10.बाज़ार का जादू क्या है? उसके चढ़ने-उतरने का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए। (CBSE-2009)उत्तर:बाजार की चमक-द��क व उसके आकर्षण में फँसकर व्यक्ति खरीददारी करता है तो यही बाजार का जादू है। बाजार का जादू मनुष्य पर तभी चलता है जब उसके पास धन होता है तथा वस्तुएँ खरीदने की निर्णय क्षमता नहीं होती। वह आराम वे अपनी शक्ति दिखाने के लिए निरर्थक चीजें खरीदता है। जब पैसे खत्म हो जाते हैं तब उसे पता चलता है कि आराम के नाम पर जो गैर जरूरी वस्तुएँ उसने खरीदी हैं, वे अशांति उत्पन्न करने वाली है। वह झल्लाता है, परंतु उसका अभिमान उसे तुष्ट करता है।
प्रश्न 11.भगत जी बाज़ार को सार्थक व समाज को शांत कैसे कर रहे हैं?अथवा‘बाज़ार दर्शन’ के लेखक ने भगत जी का उदाहरण क्यों दिया है? स्पष्ट कीजिए।उत्तर:लेखक ने इस निबंध में भगत जी का उदाहरण दिया है जो बाज़ार से काला नमक व जीरा लाकर वापस लौटते हैं। इन पर बाज़ार का आकर्षण काम नहीं करता क्योंकि इन्हें अपनी ज़रूरत का ज्ञान है। इससे पता चलता है कि मन पर नियंत्रण वाले व्यक्ति पर बाजार का कोई प्रभाव नहीं होता। ऐसे व्यक्ति बाजार को सही सार्थकता प्रदान करते हैं। दूसरे, उनका यह रुख समाज में शांति पैदा करता है क्योंकि यह पैसे की पावर नहीं दिखाता। यह प्रतिस्पर्धा नहीं उत्पन्न करता।
प्रश्न 12.खाली मन तथा भरी जेब से लेखक का क्या आशय है? ये बातें बाजार को कैसे प्रभावित करती हैं? (CBSE-2014)उत्तर:खाली मन तथा जेब भरी होने से लेखक का आशय है कि मन में किसी निश्चित वस्तु को खरीदने की निर्णय शक्ति का न होना तथा मनुष्य के पास धन होना। ऐसे व्यक्तियों पर बाज़ार अपने चमकदमक से कब्जा कर लेता है। वे गैर ज़रूरी चीजें खरीदते हैं।
प्रश्न 13.‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर ‘पैसे की व्यंग्य शक्ति’ कथन को स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2015, 2016)उत्तर:लेखक बताता है कि पैसे में व्यंग्य शक्ति होती है। यदि कोई समर्थ व्यक्ति दूसरे के सामने किसी महंगी वस्तु को खरीदे तो दूसरा व्यक्ति स्वयं को हीन महसूस करता है। पैदल या दोपहिया वाहन चालक के पास से धूल उड़ाती कार चली जाए तो वह परेशान हो उठता है। वह स्वयं को कोसता रहता है। वह भी कार खरीदने के पीछे लग जाता है। इसी कारण बाज़ार में माँग बढ़ती है।
प्रश्न 14.‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त किया जाता है?उत्तर:पैसे की पावर का रस फिजूल की वस्तुएँ खरीदने, माल असबाब, मकान-कोठी आदि के द्वारा लिया जाता है। यदि पैसा खर्च न भी किया जाए तो अधिक धन पास रहने से भी गर्व का अनुभव किया जा सकता है।
प्रश्न 15.‘बाज़ार दर्शन’ निबंध उपभोक्तावाद एवं बाज़ारवाद की अंतर्वस्तु को समझाने में बेजोड़ है।’-उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (CBSE-2013)उत्तर:यह निबंध उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद की अंतर्वस्तु को समझाने में बेजोड़ है। लेखक बताता है कि बाजार का आकर्षण मानव मन को भटका देता है। वह उसे ऐशोआराम की वस्तुएँ खरीदने की तरह आकर्षित करता है। लेखक ने भगत जी के माध्यम से नियंत्रित खरीददारी का महत्त्व भी प्रतिपादित किया है। बाजार मनुष्य की ज़रूरतें पूरी करें। इसी में उसकी सार्थकता है, अन्यथा यह समाज में ईर्ष्या, तृष्णा, असंतोष, लूटखसोट को बढ़ावा देता है।
प्रश्न 16.बाज़ार जाते समय आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए। (CBSE-2014)उत्तर:बाज़ार जाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
हमें ज़रूरत के सामान की सूची बनानी चाहिए।
हमें बाजार के आकर्षण से बचना चाहिए।
हमारा मन निश्चित खरीददारी के लिए होना चाहिए।
बाज़ार में क्रयक्षमता का प्रदर्शन ने करके जरूरत का सामान लेना चाहिए।
बाजार में असंतोष व हीन भावना से दूर रहना चाहिए।
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राष्ट्रीय अंतर-विद्यालय वर्ग पहेली प्रतियोगिता का आगाज
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चित्र को देख कर आपने अनुमान लगा ही लिया होगा कि इस पहेली का सही उत्तर क्या होगा. लेकिन फिर भी हम आपको सही उत्तर बताते है. सबसे पहले इस प्रकार की पहेलियों को सुलझाने के लिए आपको दोनों चित्रों को ध्यान से और बारीकी से देखना होगा.
पहला अंतर:सबसे पहले हम सेंटर से शुरू करते है यदि आपने इस तस्वीर में गौर…
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'विज्ञान नहीं देखता नारी-पुरुष का भेद'- चांद से लेकर मंगल तक, भारत को अंतरिक्ष में ले गईं यें महिलाएं Divya Sandesh
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'विज्ञान नहीं देखता नारी-पुरुष का भेद'- चांद से लेकर मंगल तक, भारत को अंतरिक्ष में ले गईं यें महिलाएं
‘विज्ञान नारी-पुरुष में अंतर नहीं करता, सिर्फ काम मायने रखता है’- सदियों से जो समाज महिलाओं की काबिलियत को कम आंकता रहा, भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने देश के कदमों में ऐतिहासिक सफलताएं रखकर उस समाज को सटीक जवाब दिया है। जमीन पर भारत की शक्ति को धार देनी हो या अंतरिक्ष में तिरंगा झंडा पहुंचाना हो, इन महिलाओं ने साबित किया है कि अपने देश में अप्रतिम बुद्धिमता के आड़े संकीर्ण मानसिकता टिक नहीं सकती। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ अग्नि मिसाइल से जुड़ीं टेसी थॉमस, चंद्रयान और मंगलयान से जुड़ीं मुथैया वनीता और ऋतु करीधल इस बात की मिसाल हैं कि जब स्वाति मोहन जैसी भारतीय मूल की महिलाएं पश्चिमी देशों में अपना लोहा मनवा रही हैं, तब अंतरिक्ष से जुड़े सवालों के जवाब खोजने में ISRO के अंदर ये साइंटिस्ट किस तरह मोर्चा संभाल रही हैं।Indian Women Scientists: भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने दशकों से साबित किया है कि विज्ञान के क्षेत्र में सिर्फ इंसान की काबिलियत काम आती है। अग्नि मिसाइल हो, चांद पर जाने का मिशन या मंगल पर जीवन की खोज, भारतीय महिला वैज्ञानिक हमेशा आगे रही हैं।’विज्ञान नारी-पुरुष में अंतर नहीं करता, सिर्फ काम मायने रखता है’- सदियों से जो समाज महिलाओं की काबिलियत को कम आंकता रहा, भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने देश के कदमों में ऐतिहासिक सफलताएं रखकर उस समाज को सटीक जवाब दिया है। जमीन पर भारत की शक्ति को धार देनी हो या अंतरिक्ष में तिरंगा झंडा पहुंचाना हो, इन महिलाओं ने साबित किया है कि अपने देश में अप्रतिम बुद्धिमता के आड़े संकीर्ण मानसिकता टिक नहीं सकती। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ अग्नि मिसाइल से जुड़ीं टेसी थॉमस, चंद्रयान और मंगलयान से जुड़ीं मुथैया वनीता और ऋतु करीधल इस बात की मिसाल हैं कि जब स्वाति मोहन जैसी भारतीय मूल की महिलाएं पश्चिमी देशों में अपना लोहा मनवा रही हैं, तब अंतरिक्ष से जुड़े सवालों के जवाब खोजने में ISRO के अंदर ये साइंटिस्ट किस तरह मोर्चा संभाल रही हैं।’अग्निपुत्री’ टेसी थॉमसभारत की मिसाइलों के बारे में बात होती है तो सबसे पहले शायद ख्याल आता है पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद का जिन्हें ‘मिसाइल मैन ऑफ इंडिया’ कहा जाता है। हालांकि, अग्नि मिसाइल सीरीज ने भारत को ‘अग्नि पुत्री’ भी दी है जो कलाम को अपना गुरु मानती हैं। टेसी थॉमस ने पुरुषों का क्षेत्र मान जाने वाले हथियारों और परमाणु क्षमता से लैस मिसाइलों के विकास में इतिहास रचा जब वह भारत के मिसाइल प्रॉजेक्ट को हेड करने वाली पहली महिला बनीं। मिसाइल गाइडेंस में डॉक्टरेट टेसी अग्नि प्रोग्राम से डिवेलपमेंटल फ्लाइट्स के वक्त से ही जुड़ी थीं। उन्होंने अग्नि मिसाइलों में लगी गाइडेंस स्कीम को डिजाइन किया है। वह कहती हैं कि साइंस का कोई जेंडर नहीं होता।वनीता मुथैया- चंद्रयान-2मुथैया वनीता और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) का साथ 40 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस दौरान वनीता ने कई उंचाइयों को छुआ और ISRO को भी आगे लेकर गईं। उन्होंने साल 2013 में मंगलयान के लॉन्च और सफलता में अहम भूमिका निभाई थी। भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन के साथ वह ISRO की पहले महिला प्रॉजेक्ट डायरेक्टर बनीं तो ‘तीसरी दुनिया’ का देश कहे जाने वाले भारत ने साबित कर दिया कि हमारे देश की महिलाएं दुनिया के किसी भी देश से पीछे नहीं हैं। इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजिनियर वनीता इससे पहले देश की रिमोट सेंसिंग सैटलाइट्स के डेटा ऑपरेशन्स को भी संभाल चुकी हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि कोई भी समस्या या पहेली हो, उनके सामने टिक नहीं सकती। वनीता को साल 2006 में ऐस्ट्रोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने बेस्ट वुमन साइंटिस्ट अवॉर्ड दिया था। ऋतु करिधल-मंगलयानभारत की रॉकेट वुमन ऋतु करिधल। मंगलयान के लिए 2013-2014 में डेप्युटी ऑपरेशन्स डायरेक्टर रहीं ऋतु ने चंद्रयान-2 मिशन के लिए डायरेक्टर का पद संभाला। चंद्रयान-2 के ऑनवर्ड ऑटोनॉमी सिस्टम को डिजाइन करना ऋतु के जिम्मे थे। IISC बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजिनियरिंग में मास्टर्स ऋतु ने मार्स ऑर्बिटर मिशन के लिए ISRO टीम अवॉर्ड और साल 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद से ISRO यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड का ईनाम भी अपने नाम किया है। ऋतु ने MOM के बारे में बताया था, ‘MOM एक बड़ा चैलेंज था। हमें 18 महीने में इसकी तैयारी करनी थी। यह पहली इंडियन सैटलाइट थी जिसमें फुल-स्केल ऑन बोर्ड ऑटोनॉमी थी जो खुद अपनी परेशानी सुलझा सके। सबसे अहम महिला वैज्ञानिकों ने पुरुष वैज्ञानिकों के कंधे से कंधा मिलाकर इस मिशन को सफल बनाया था।’
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महिला दिवस: 'विज्ञान नहीं देखता नारी-पुरुष का भेद', भारत को चांद से लेकर मंगल तक ले गईं यें महिलाएं Divya Sandesh
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महिला दिवस: 'विज्ञान नहीं देखता नारी-पुरुष का भेद', भारत को चांद से लेकर मंगल तक ले गईं यें महिलाएं
‘विज्ञान नारी-पुरुष में अंतर नहीं करता, सिर्फ काम मायने रखता है’- सदियों से जो समाज महिलाओं की काबिलियत को कम आंकता रहा, भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने देश के कदमों में ऐतिहासिक सफलताएं रखकर उस समाज को सटीक जवाब दिया है। जमीन पर भारत की शक्ति को धार देनी हो या अंतरिक्ष में तिरंगा झंडा पहुंचाना हो, इन महिलाओं ने साबित किया है कि अपने देश में अप्रतिम बुद्धिमता के आड़े संकीर्ण मानसिकता टिक नहीं सकती। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ अग्नि मिसाइल से जुड़ीं टेसी थॉमस, चंद्रयान और मंगलयान से जुड़ीं मुथैया वनीता और ऋतु करीधल इस बात की मिसाल हैं कि जब स्वाति मोहन जैसी भारतीय मूल की महिलाएं पश्चिमी देशों में अपना लोहा मनवा रही हैं, तब अंतरिक्ष से जुड़े सवालों के जवाब खोजने में ISRO के अंदर ये साइंटिस्ट किस तरह मोर्चा संभाल रही हैं।Indian Women Scientists: भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने दशकों से साबित किया है कि विज्ञान के क्षेत्र में सिर्फ इंसान की काबिलियत काम आती है। अग्नि मिसाइल हो, चांद पर जाने का मिशन या मंगल पर जीवन की खोज, भारतीय महिला वैज्ञानिक हमेशा आगे रही हैं।’विज्ञान नारी-पुरुष में अंतर नहीं करता, सिर्फ काम मायने रखता है’- सदियों से जो समाज महिलाओं की काबिलियत को कम आंकता रहा, भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने देश के कदमों में ऐतिहासिक सफलताएं रखकर उस समाज को सटीक जवाब दिया है। जमीन पर भारत की शक्ति को धार देनी हो या अंतरिक्ष में तिरंगा झंडा पहुंचाना हो, इन महिलाओं ने साबित किया है कि अपने देश में अप्रतिम बुद्धिमता के आड़े संकीर्ण मानसिकता टिक नहीं सकती। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ अग्नि मिसाइल से जुड़ीं टेसी थॉमस, चंद्रयान और मंगलयान से जुड़ीं मुथैया वनीता और ऋतु करीधल इस बात की मिसाल हैं कि जब स्वाति मोहन जैसी भारतीय मूल की महिलाएं पश्चिमी देशों में अपना लोहा मनवा रही हैं, तब अंतरिक्ष से जुड़े सवालों के जवाब खोजने में ISRO के अंदर ये साइंटिस्ट किस तरह मोर्चा संभाल रही हैं।’अग्निपुत्री’ टेसी थॉमसभारत की मिसाइलों के बारे में बात होती है तो सबसे पहले शायद ख्याल आता है पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद का जिन्हें ‘मिसाइल मैन ऑफ इंडिया’ कहा जाता है। हालांकि, अग्नि मिसाइल सीरीज ने भारत को ‘अग्नि पुत्री’ भी दी है जो कलाम को अपना गुरु मानती हैं। टेसी थॉमस ने पुरुषों का क्षेत्र मान जाने वाले हथियारों और परमाणु क्षमता से लैस मिसाइलों के विकास में इतिहास रचा जब वह भारत के मिसाइल प्रॉजेक्ट को हेड करने वाली पहली महिला बनीं। मिसाइल गाइडेंस में डॉक्टरेट टेसी अग्नि प्रोग्राम से डिवेलपमेंटल फ्लाइट्स के वक्त से ही जुड़ी थीं। उन्होंने अग्नि मिसाइलों में लगी गाइडेंस स्कीम को डिजाइन किया है। वह कहती हैं कि साइंस का कोई जेंडर नहीं होता।वनीता मुथैया- चंद्रयान-2मुथैया वनीता और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) का साथ 40 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस दौरान वनीता ने कई उंचाइयों को छुआ और ISRO को भी आगे लेकर गईं। उन्होंने साल 2013 में मंगलयान के लॉन्च और सफलता में अहम भूमिका निभाई थी। भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन के साथ वह ISRO की पहले महिला प्रॉजेक्ट डायरेक्टर बनीं तो ‘तीसरी दुनिया’ का देश कहे जाने वाले भारत ने साबित कर दिया कि हमारे देश की महिलाएं दुनिया के किसी भी देश से पीछे नहीं हैं। इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजिनियर वनीता इससे पहले देश की रिमोट सेंसिंग सैटलाइट्स के डेटा ऑपरेशन्स को भी संभाल चुकी हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि कोई भी समस्या या पहेली हो, उनके सामने टिक नहीं सकती। वनीता को साल 2006 में ऐस्ट्रोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने बेस्ट वुमन साइंटिस्ट अवॉर्ड दिया था। ऋतु करिधल-मंगलयानभारत की रॉकेट वुमन ऋतु करिधल। मंगलयान के लिए 2013-2014 में डेप्युटी ऑपरेशन्स डायरेक्टर रहीं ऋतु ने चंद्रयान-2 मिशन के लिए डायरेक्टर का पद संभाला। चंद्रयान-2 के ऑनवर्ड ऑटोनॉमी सिस्टम को डिजाइन करना ऋतु के जिम्मे थे। IISC बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजिनियरिंग में मास्टर्स ऋतु ने मार्स ऑर्बिटर मिशन के लिए ISRO टीम अवॉर्ड और साल 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद से ISRO यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड का ईनाम भी अपने नाम किया है। ऋतु ने MOM के बारे में बताया था, ‘MOM एक बड़ा चैलेंज था। हमें 18 महीने में इसकी तैयारी करनी थी। यह पहली इंडियन सैटलाइट थी जिसमें फुल-स्केल ऑन बोर्ड ऑटोनॉमी थी जो खुद अपनी परेशानी सुलझा सके। सबसे अहम महिला वैज्ञानिकों ने पुरुष वैज्ञानिकों के कंधे से कंधा मिलाकर इस मिशन को सफल बनाया था।’
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