Tumgik
#whybreastfeedingweekcelebrated
chaitanyabharatnews · 3 years
Text
BreastFeeding Week : ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े ये 6 मिथ जिन पर कभी न करें विश्वास
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज दुनियाभर के करीब 120 देश हर साल 1 से 7 अगस्त तक 'वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक' मनाते हैं। इस सप्ताह को मनाने का खास उद्देश्य महिलाओं को स्तनपान के प्रति जागरूक करना है। लेकिन ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कई ऐसे मिथ हैं जो ज्यादातर महिलाओं के मन में आते हैं। इस बार वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के मौके पर हम आपको ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कुछ ऐसे मिथ के बारे में बता रहे हैं जिनपर विश्वास करना गलत है। ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े मिथ ब्रेस्ट साइज ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि ब्रेस्ट साइज छोटा होने से शिशु को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल पाता, लेकिन यह गलत है। यदि मां स्वस्थ है तो शिशु को पर्याप्त दूध मिलेगा। इसलिए मां अपनी डाइट का ख्याल जरूर रखें। सिर्फ बच्चे के लिए फायदेमंद अगर आपको भी ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाना केवल शिशु के लिए फायदेमंद होता है तो आप गलत हैं। बता दें ब्रेस्ट फीडिंग शिशु और मां दोनों के लिए ही फायदेमंद होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर मां शिशु को रेग्युलर ब्रेस्टफीड कराती है तो उसमें ब्रेस्ट और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका भी कम होती है। बिगड़ सकता है साइज कई महिलाओं को ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाने से उनके ब्रेस्ट साइज में फर्क पड़ जाता है, लेकिन यह गलत धारणा है। बता दें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां में प्रोलैक्टिन हार्मोन रिलीज होता है जो मां को रिलैक्स और एकाग्र करने में मदद करता है। कई स्टडीज में भी यह पाया गया कि ब्रेस्ट फीडिंग से मां को टाइप-2 डायबिटीज, रुमेटाइड आर्थराइटिस और हृदय रोगों से बचाव होता है। बीमार हाे ताे न पिलाएं दूध मां का दूध शिशु के लिए किसी अमृत से कम नहीं है। यदि आपकी भी यही धारणा है कि मां के बीमार होने पर उसे बच्चे काे दूध नहीं पिलाना चाहिए तो यह गलत है। मां के बीमार होने पर बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवाना बंद नहीं करना चाहिए। मां के बीमार होने से बच्चे की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ब्रेस्ट फीडिंग पर दवाओं का साइड इफेक्ट कुछ महिलाओं का मानना है कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद दी जाने वाली दवाओं से साइड इफेक्ट होने पर मां के शरीर में दूध बनना बंद हो जाता है, लेकिन यह धारणा बिलकुल गलत है। बता दें सिजेरियन डिलीवरी का लैक्टेशन से कोई संबंध नहीं होता है। आपको सिर्फ अपनी डाइट का ख्याल रखना चाहिए। डिलीवरी के तुरंत बाद दूध न पीलाना कहते है कि मां के पहले दूध में गंदगी होती है इसलिए ज्यादातर महिला जन्म के तुरंत बाद शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करवाती हैं। आपको बता दें डिलीवरी के तुरंत बाद का दूध शिशु के लिए सबसे फायदेमंद होता है। दरअसल उस दूध में कोलोस्ट्रम नामक ऐसा तत्व होता है, जो शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। पाउडर वाला दूध बेहतर कुछ महिलाओं का मानना है कि मां के दूध से बेहतर बाहरी पाउडर वाला दूध होता है लेकिन ये बिलकुल गलत है। सच तो ये है कि मां का दूध शिशु के लिए कंप्लीट फूड होता है। इसमें विटामिंस, प्रोटीन और फैट जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। साथ ही मां का दूध बच्चे में आसानी से पच भी जाता है। यह भी पढ़े... Breastfeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग वीक मनाने के पीछे है बेहद खास वजह, जानिए स्तनपान करवाने के फायदे Read the full article
0 notes
chaitanyabharatnews · 3 years
Text
BreastFeeding Week : ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े ये 6 मिथ जिन पर कभी न करें विश्वास
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज दुनियाभर के करीब 120 देश हर साल 1 से 7 अगस्त तक 'वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक' मनाते हैं। इस सप्ताह को मनाने का खास उद्देश्य महिलाओं को स्तनपान के प्रति जागरूक करना है। लेकिन ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कई ऐसे मिथ हैं जो ज्यादातर महिलाओं के मन में आते हैं। इस बार वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के मौके पर हम आपको ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कुछ ऐसे मिथ के बारे में बता रहे हैं जिनपर विश्वास करना गलत है। ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े मिथ ब्रेस्ट साइज ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि ब्रेस्ट साइज छोटा होने से शिशु को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल पाता, लेकिन यह गलत है। यदि मां स्वस्थ है तो शिशु को पर्याप्त दूध मिलेगा। इसलिए मां अपनी डाइट का ख्याल जरूर रखें। सिर्फ बच्चे के लिए फायदेमंद अगर आपको भी ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाना केवल शिशु के लिए फायदेमंद होता है तो आप गलत हैं। बता दें ब्रेस्ट फीडिंग शिशु और मां दोनों के लिए ही फायदेमंद होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर मां शिशु को रेग्युलर ब्रेस्टफीड कराती है तो उसमें ब्रेस्ट और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका भी कम होती है। बिगड़ सकता है साइज कई महिलाओं को ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाने से उनके ब्रेस्ट साइज में फर्क पड़ जाता है, लेकिन यह गलत धारणा है। बता दें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां में प्रोलैक्टिन हार्मोन रिलीज होता है जो मां को रिलैक्स और एकाग्र करने में मदद करता है। कई स्टडीज में भी यह पाया गया कि ब्रेस्ट फीडिंग से मां को टाइप-2 डायबिटीज, रुमेटाइड आर्थराइटिस और हृदय रोगों से बचाव होता है। बीमार हाे ताे न पिलाएं दूध मां का दूध शिशु के लिए किसी अमृत से कम नहीं है। यदि आपकी भी यही धारणा है कि मां के बीमार होने पर उसे बच्चे काे दूध नहीं पिलाना चाहिए तो यह गलत है। मां के बीमार होने पर बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवाना बंद नहीं करना चाहिए। मां के बीमार होने से बच्चे की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ब्रेस्ट फीडिंग पर दवाओं का साइड इफेक्ट कुछ महिलाओं का मानना है कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद दी जाने वाली दवाओं से साइड इफेक्ट होने पर मां के शरीर में दूध बनना बंद हो जाता है, लेकिन यह धारणा बिलकुल गलत है। बता दें सिजेरियन डिलीवरी का लैक्टेशन से कोई संबंध नहीं होता है। आपको सिर्फ अपनी डाइट का ख्याल रखना चाहिए। डिलीवरी के तुरंत बाद दूध न पीलाना कहते है कि मां के पहले दूध में गंदगी होती है इसलिए ज्यादातर महिला जन्म के तुरंत बाद शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करवाती हैं। आपको बता दें डिलीवरी के तुरंत बाद का दूध शिशु के लिए सबसे फायदेमंद होता है। दरअसल उस दूध में कोलोस्ट्रम नामक ऐसा तत्व होता है, जो शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। पाउडर वाला दूध बेहतर कुछ महिलाओं का मानना है कि मां के दूध से बेहतर बाहरी पाउडर वाला दूध होता है लेकिन ये बिलकुल गलत है। सच तो ये है कि मां का दूध शिशु के लिए कंप्लीट फूड होता है। इसमें विटामिंस, प्रोटीन और फैट जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। साथ ही मां का दूध बच्चे में आसानी से पच भी जाता है। यह भी पढ़े... Breastfeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग वीक मनाने के पीछे है बेहद खास वजह, जानिए स्तनपान करवाने के फायदे Read the full article
0 notes
chaitanyabharatnews · 4 years
Text
BreastFeeding Week : ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े ये 6 मिथ जिन पर कभी न करें विश्वास
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज दुनियाभर के करीब 120 देश हर साल 1 से 7 अगस्त तक 'वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक' मनाते हैं। इस सप्ताह को मनाने का खास उद्देश्य महिलाओं को स्तनपान के प्रति जागरूक करना है। लेकिन ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कई ऐसे मिथ हैं जो ज्यादातर महिलाओं के मन में आते हैं। इस बार वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के मौके पर हम आपको ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कुछ ऐसे मिथ के बारे में बता रहे हैं जिनपर विश्वास करना गलत है। ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े मिथ ब्रेस्ट साइज ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि ब्रेस्ट साइज छोटा होने से शिशु को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल पाता, लेकिन यह गलत है। यदि मां स्वस्थ है तो शिशु को पर्याप्त दूध मिलेगा। इसलिए मां अपनी डाइट का ख्याल जरूर रखें। सिर्फ बच्चे के लिए फायदेमंद अगर आपको भी ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाना केवल शिशु के लिए फायदेमंद होता है तो आप गलत हैं। बता दें ब्रेस्ट फीडिंग शिशु और मां दोनों के लिए ही फायदेमंद होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर मां शिशु को रेग्युलर ब्रेस्टफीड कराती है तो उसमें ब्रेस्ट और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका भी कम होती है। बिगड़ सकता है साइज कई महिलाओं को ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाने से उनके ब्रेस्ट साइज में फर्क पड़ जाता है, लेकिन यह गलत धारणा है। बता दें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां में प्रोलैक्टिन हार्मोन रिलीज होता है जो मां को रिलैक्स और एकाग्र करने में मदद करता है। कई स्टडीज में भी यह पाया गया कि ब्रेस्ट फीडिंग से मां को टाइप-2 डायबिटीज, रुमेटाइड आर्थराइटिस और हृदय रोगों से बचाव होता है। बीमार हाे ताे न पिलाएं दूध मां का दूध शिशु के लिए किसी अमृत से कम नहीं है। यदि आपकी भी यही धारणा है कि मां के बीमार होने पर उसे बच्चे काे दूध नहीं पिलाना चाहिए तो यह गलत है। मां के बीमार होने पर बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवाना बंद नहीं करना चाहिए। मां के बीमार होने से बच्चे की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ब्रेस्ट फीडिंग पर दवाओं का साइड इफेक्ट कुछ महिलाओं का मानना है कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद दी जाने वाली दवाओं से साइड इफेक्ट होने पर मां के शरीर में दूध बनना बंद हो जाता है, लेकिन यह धारणा बिलकुल गलत है। बता दें सिजेरियन डिलीवरी का लैक्टेशन से कोई संबंध नहीं होता है। आपको सिर्फ अपनी डाइट का ख्याल रखना चाहिए। डिलीवरी के तुरंत बाद दूध न पीलाना कहते है कि मां के पहले दूध में गंदगी होती है इसलिए ज्यादातर महिला जन्म के तुरंत बाद शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करवाती हैं। आपको बता दें डिलीवरी के तुरंत बाद का दूध शिशु के लिए सबसे फायदेमंद होता है। दरअसल उस दूध में कोलोस्ट्रम नामक ऐसा तत्व होता है, जो शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। पाउडर वाला दूध बेहतर कुछ महिलाओं का मानना है कि मां के दूध से बेहतर बाहरी पाउडर वाला दूध होता है लेकिन ये बिलकुल गलत है। सच तो ये है कि मां का दूध शिशु के लिए कंप्लीट फूड होता है। इसमें विटामिंस, प्रोटीन और फैट जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। साथ ही मां का दूध बच्चे में आसानी से पच भी जाता है। यह भी पढ़े... Breastfeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग वीक मनाने के पीछे है बेहद खास वजह, जानिए स्तनपान करवाने के फायदे Read the full article
0 notes
chaitanyabharatnews · 4 years
Text
Breastfeeding Week : ब्रेस्टफीडिंग वीक मनाने के पीछे है बेहद खास वजह, जानिए स्तनपान करवाने के फायदे
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास होता है। वो सभी अनुभव भी खास होते हैं जो मां बनने की अनुभूति कराते हैं। इन्हीं अनुभवों में से एक होता है ब्रेस्ट फीडिंग। बता दें ब्रेस्ट फीडिंग का मतलब है मां का अपने बच्चे को स्तनपान करवाना। आज से दुनियाभर में 'ब्रेस्ट फीडिंग वीक' मनाने की शुरूआत हो चुकी है। हर साल 1 से 7 अगस्त तक 'ब्रेस्ट फीडिंग वीक' मनाया जाता है। इस खास सप्ताह चैतन्य भारत न्यूज.कॉम की विशेष प्रस्तुति। क्यों मनाया जाता है ब्रेस्ट फीडिंग वीक इस सप्ताह को मनाने का खास उद्देश्य महिलाओं को स्तनपान के प्रति जागरूक करना है, क्योंकि ये मां और शिशु दोनों के लिए ही फायदेमंद होता है। लेकिन आज के समय में अक्सर महिलाएं बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान नहीं करवाती हैं। बता दें जन्म के बाद शिशु को सिर्फ मां के दूध की जरूरत होती है। जन्म के समय वह इतना छोटा होता है कि उसके अंदर कुछ पचाने की क्षमता नहीं होती है। ऐसे समय में बच्चे के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है। शिशु को इस उम्र तक कराएं स्तनपान जन्म के 6 महीने बाद तक ही मां को शिशु को अपना दूध पिलाना चाहिए। इससे शिशु का शारीरिक विकास भी पूरी तरह होता है। लेकिन कुछ महिलाएं अपने बच्चे को लंबे समय तक स्तनपान करवाती रहती हैं। बता दें 6 महीने से ज्यादा दूध पिलाने से औरतों के शरीर पर बुरा असर भी पड़ सकता है। पोषक तत्वों से भरपूर मां का दूध मां के दूध में फैट, शुगर, पानी और प्रोटीन की सही मात्रा होती है, जो बच्चे की अच्छी सेहत के लिए बेहद जरूरी है। डॉक्टरों के मुताबिक, मां के दूध में मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, बायोएक्टिव घटकों, वृद्धि के कारकों और रोग प्रतिरोधक घटकों का मिश्रण होता है। इस मिश्रण से शारीरिक और मानसिक दोनों ही विकास में मदद मिलती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिन बच्चों को मां का दूध नहीं दिया जाता है, उन्हें संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। स्तनपान करवाने के फायदे- हड्डियां मजबूत होना मां का दूध पीने से बच्चे के शरीर को कई सारे विटामिन्स और प्रोटीन मिलते हैं। इससे बच्चे की हड्डियां मजबूत होती हैं। मां के दूध से मिलने वाले पोषक तत्व बच्चों की हड्डियों को मजबूत करने के साथ ही उनको बीमारियों से बचाने का काम करता है। दिमाग का विकास मां का दूध पीने से बच्चे का दिमागी विकास भी पूरा होता है। इससे बच्चे के सोचने समझने की क्षमता बढ़ती है। यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा इंटेलिजेंट हो तो उसको स्तनपान जरूर करवाएं। एलर्जी से बच्चों को सुरक्षा मां के दूध में कुछ ऐसे गुण पाए जाते हैं जिससे बच्चे को किसी भी तरह की एलर्जी नहीं होती। इसलिए बच्चे के इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए उन्हें 6 महीने तक स्तनपान करवाएं। मोटापे से बचाव कहा जाता है कि स्तनपान करवाने से बच्चों को मोटापे की समस्या नहीं होती। इसलिए बच्चों को जितना मां का दूध मिलेगा वह आगे चलकर उतना ही फिट रहेंगे। बीमारियों से सुरक्षा इसके अलावा स्तनपान करने से बच्चों को टाइप 1, टाइप 2 डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना और आंत संबंधी बीमारियां होने का खतरा कम रहता है।     Read the full article
0 notes
chaitanyabharatnews · 5 years
Text
BreastFeeding Week : 5 में से 3 नवजात को जन्म के 1 घंटे के भीतर नहीं मिल पाता मां का दूध : यूनिसेफ
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज मां का दूध बच्चे के लिए अमृत समान है। जन्म से लेकर 6 महीने तक बच्चों को सिर्फ मां का दूध ही पिलाना चाहिए। मां का दूध कितना जरुरी होता है यह इन दिनों सरकारी विज्ञापनों के जरिए भी दिखाया जाने लगा है। दुनियाभर में 1 से 7 अगस्त तक 'ब्रेस्ट फीडिंग वीक' मनाया जाता है। बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) ने ब्रेस्टफीडिंग को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं... यूनिसेफ की रिपोर्ट यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की तरफ से पिछले साल जारी हुईं रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनियाभर में हर 5 में से 3 नवजात बच्चे ऐसे हैं जिन्हें जन्म के पहले 1 घंटे के भीतर मां का दूध नहीं मिलता है। 2018 तक ऐसे बच्चों की संख्या दुनियाभर में 7 करोड़ 80 लाख के करीब थी। वहीं 62 फीसदी शिशु ऐसे हैं जिन्हें मां का दूध नहीं मिल पाता है। मां का दूध न मिलने से बच्चों में गंभीर बीमारी होने के साथ ही मौत का खतरा भी बना रहता है। यदि जन्म के 1 घंटे के अंदर शिशु को मां का दूध नहीं मिलता है तो ऐसे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता है। भारत की स्थिति में सुधार डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रेस्टफीडिंग के मामले में भारत ने साल 2005 से 2015 के बीच काफी सुधार किया है। हमारे देश में जन्म के 1 घंटे के अंदर शिशु को स्तनपान कराने के आंकड़े 10 सालों में दोगुने हो गए हैं। साल 2005 में जहां ये आंकड़ा 23.1 प्रतिशत था वहीं 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 41.5 प्रतिशत हो गया था। भारत की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट 2015-16 के मुताबिक, सिर्फ 55 प्रतिशत बच्चों को ही जन्म से 6 महीने तक पर्याप्त रूप से स्तनपान कराया जाता है। बढ़ती उम्र के साथ बच्चों को भोजन और पानी भी देना शुरू कर दिया जाता है जिससे स्तनपान की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। यूनिसेफ के मुताबिक, 2 से 23 घंटे तक मां का दूध न मिलने से बच्चे के जन्म से 28 दिनों के भीतर मृत्यु दर का यह आंकड़ा 40 फीसदी होता है। वहीं 24 घंटे के बाद भी दूध न मिलने से मृत्यु दर का यही आंकड़ा बढ़कर 80% तक हो जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यदि जन्म से 6 महीने तक शिशु को स्तनपान कराया जाए तो मृतक शिशुओं का आंकड़ा 8 लाख तक कम हो सकता है। यह रिसर्च पिछले 15 वर्षों के आधार पर तय की गई है।
Tumblr media
मदर मिल्क बैंक का बढ़ता चलन देश का पहला मदर मिल्क बैंक साल 2012 में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में खुला था। तब से अब तक करीब 12 हजार से ज्यादा बच्चों को इसका लाभ मिल चुका है। इसके बाद राजधानी दिल्ली में साल 2016 में मां के दूध का बैंक खोला गया। दिल्ली के ग्रेटर कैलाश के फोर्टिस ला फेम हॉस्पिटल ने स्वयं सेवी संस्था ब्रेस्ट मिल्क फाउंडेशन के साथ मिलकर एक नया प्रयास किया। इस मिल्क बैंक का नाम 'अमारा' रखा गया। इस बैंक में महज दो महीने के भीतर ही करीब 80 लीटर से ज्यादा ब्रेस्ट मिल्क इकट्‌ठा हो गया था। अब तक देश के विभिन्न राज्यों में मदर मिल्क बैंक खोले गए हैं, जो बच्चों के लिए मां के दूध को स्टोर करते हैं। इसके बाद जरूरतमंद बच्चों तक यह दूध पहुंचाया जाता है। साल 2018 में जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में सबसे ज्यादा 13 मदर मिल्क बैंक बनाए गए हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में 12 और तमिलनाडु में 10 मदर मिल्क बैंक हैं। जल्द ही उत्तरप्रदेश के बीएचयू अस्पताल में राज्य का पहला मदर मिल्क बैंक खुलने वाला है। ये भी पढ़े... BreastFeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े ये 6 मिथ जिन पर कभी न करें विश्वास Breastfeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग वीक मनाने के पीछे है बेहद खास वजह, जानिए स्तनपान करवाने के फायदे Read the full article
0 notes
chaitanyabharatnews · 5 years
Text
BreastFeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े ये 6 मिथ जिन पर कभी न करें विश्वास
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज दुनियाभर के करीब 120 देश हर साल 1 से 7 अगस्त तक 'वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक' मनाते हैं। इस सप्ताह को मनाने का खास उद्देश्य महिलाओं को स्तनपान के प्रति जागरूक करना है। लेकिन ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कई ऐसे मिथ हैं जो ज्यादातर महिलाओं के मन में आते हैं। इस बार वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के मौके पर हम आपको ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कुछ ऐसे मिथ के बारे में बता रहे हैं जिनपर विश्वास करना गलत है। ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े मिथ ब्रेस्ट साइज ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि ब्रेस्ट साइज छोटा होने से शिशु को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल पाता, लेकिन यह गलत है। यदि मां स्वस्थ है तो शिशु को पर्याप्त दूध मिलेगा। इसलिए मां अपनी डाइट का ख्याल जरूर रखें। सिर्फ बच्चे के लिए फायदेमंद अगर आपको भी ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाना केवल शिशु के लिए फायदेमंद होता है तो आप गलत हैं। बता दें ब्रेस्ट फीडिंग शिशु और मां दोनों के लिए ही फायदेमंद होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर मां शिशु को रेग्युलर ब्रेस्टफीड कराती है तो उसमें ब्रेस्ट और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका भी कम होती है। बिगड़ सकता है साइज कई महिलाओं को ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाने से उनके ब्रेस्ट साइज में फर्क पड़ जाता है, लेकिन यह गलत धारणा है। बता दें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां में प्रोलैक्टिन हार्मोन रिलीज होता है जो मां को रिलैक्स और एकाग्र करने में मदद करता है। कई स्टडीज में भी यह पाया गया कि ब्रेस्ट फीडिंग से मां को टाइप-2 डायबिटीज, रुमेटाइड आर्थराइटिस और हृदय रोगों से बचाव होता है। बीमार हाे ताे न पिलाएं दूध मां का दूध शिशु के लिए किसी अमृत से कम नहीं है। यदि आपकी भी यही धारणा है कि मां के बीमार होने पर उसे बच्चे काे दूध नहीं पिलाना चाहिए तो यह गलत है। मां के बीमार होने पर बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवाना बंद नहीं करना चाहिए। मां के बीमार होने से बच्चे की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ब्रेस्ट फीडिंग पर दवाओं का साइड इफेक्ट कुछ महिलाओं का मानना है कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद दी जाने वाली दवाओं से साइड इफेक्ट होने पर मां के शरीर में दूध बनना बंद हो जाता है, लेकिन यह धारणा बिलकुल गलत है। बता दें सिजेरियन डिलीवरी का लैक्टेशन से कोई संबंध नहीं होता है। आपको सिर्फ अपनी डाइट का ख्याल रखना चाहिए। डिलीवरी के तुरंत बाद दूध न पीलाना कहते है कि मां के पहले दूध में गंदगी होती है इसलिए ज्यादातर महिला जन्म के तुरंत बाद शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करवाती हैं। आपको बता दें डिलीवरी के तुरंत बाद का दूध शिशु के लिए सबसे फायदेमंद होता है। दरअसल उस दूध में कोलोस्ट्रम नामक ऐसा तत्व होता है, जो शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। पाउडर वाला दूध बेहतर कुछ महिलाओं का मानना है कि मां के दूध से बेहतर बाहरी पाउडर वाला दूध होता है लेकिन ये बिलकुल गलत है। सच तो ये है कि मां का दूध शिशु के लिए कंप्लीट फूड होता है। इसमें विटामिंस, प्रोटीन और फैट जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। साथ ही मां का दूध बच्चे में आसानी से पच भी जाता है। यह भी पढ़े... Breastfeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग वीक मनाने के पीछे है बेहद खास वजह, जानिए स्तनपान करवाने के फायदे Read the full article
0 notes
chaitanyabharatnews · 5 years
Text
BreastFeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े ये 6 मिथ जिन पर कभी न करें विश्वास
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज दुनियाभर के करीब 120 देश हर साल 1 से 7 अगस्त तक 'वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक' मनाते हैं। इस सप्ताह को मनाने का खास उद्देश्य महिलाओं को स्तनपान के प्रति जागरूक करना है। लेकिन ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कई ऐसे मिथ हैं जो ज्यादातर महिलाओं के मन में आते हैं। इस बार वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के मौके पर हम आपको ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े कुछ ऐसे मिथ के बारे में बता रहे हैं जिनपर विश्वास करना गलत है। ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़े मिथ ब्रेस्ट साइज ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि ब्रेस्ट साइज छोटा होने से शिशु को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल पाता, लेकिन यह गलत है। यदि मां स्वस्थ है तो शिशु को पर्याप्त दूध मिलेगा। इसलिए मां अपनी डाइट का ख्याल जरूर रखें। सिर्फ बच्चे के लिए फायदेमंद अगर आपको भी ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाना केवल शिशु के लिए फायदेमंद होता है तो आप गलत हैं। बता दें ब्रेस्ट फीडिंग शिशु और मां दोनों के लिए ही फायदेमंद होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर मां शिशु को रेग्युलर ब्रेस्टफीड कराती है तो उसमें ब्रेस्ट और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका भी कम होती है। बिगड़ सकता है साइज कई महिलाओं को ऐसा लगता है कि ब्रेस्ट फीडिंग करवाने से उनके ब्रेस्ट साइज में फर्क पड़ जाता है, लेकिन यह गलत धारणा है। बता दें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां में प्रोलैक्टिन हार्मोन रिलीज होता है जो मां को रिलैक्स और एकाग्र करने में मदद करता है। कई स्टडीज में भी यह पाया गया कि ब्रेस्ट फीडिंग से मां को टाइप-2 डायबिटीज, रुमेटाइड आर्थराइटिस और हृदय रोगों से बचाव होता है। बीमार हाे ताे न पिलाएं दूध मां का दूध शिशु के लिए किसी अमृत से कम नहीं है। यदि आपकी भी यही धारणा है कि मां के बीमार होने पर उसे बच्चे काे दूध नहीं पिलाना चाहिए तो यह गलत है। मां के बीमार होने पर बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवाना बंद नहीं करना चाहिए। मां के बीमार होने से बच्चे की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ब्रेस्ट फीडिंग पर दवाओं का साइड इफेक्ट कुछ महिलाओं का मानना है कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद दी जाने वाली दवाओं से साइड इफेक्ट होने पर मां के शरीर में दूध बनना बंद हो जाता है, लेकिन यह धारणा बिलकुल गलत है। बता दें सिजेरियन डिलीवरी का लैक्टेशन से कोई संबंध नहीं होता है। आपको सिर्फ अपनी डाइट का ख्याल रखना चाहिए। डिलीवरी के तुरंत बाद दूध न पीलाना कहते है कि मां के पहले दूध में गंदगी होती है इसलिए ज्यादातर महिला जन्म के तुरंत बाद शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करवाती हैं। आपको बता दें डिलीवरी के तुरंत बाद का दूध शिशु के लिए सबसे फायदेमंद होता है। दरअसल उस दूध में कोलोस्ट्रम नामक ऐसा तत्व होता है, जो शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। पाउडर वाला दूध बेहतर कुछ महिलाओं का मानना है कि मां के दूध से बेहतर बाहरी पाउडर वाला दूध होता है लेकिन ये बिलकुल गलत है। सच तो ये है कि मां का दूध शिशु के लिए कंप्लीट फूड होता है। इसमें विटामिंस, प्रोटीन और फैट जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। साथ ही मां का दूध बच्चे में आसानी से पच भी जाता है। यह भी पढ़े... Breastfeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग वीक मनाने के पीछे है बेहद खास वजह, जानिए स्तनपान करवाने के फायदे Read the full article
0 notes
chaitanyabharatnews · 5 years
Text
Breastfeeding Week : ब्रेस्ट फीडिंग वीक मनाने के पीछे है बेहद खास वजह, जानिए स्तनपान करवाने के फायदे
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास होता है। वो सभी अनुभव भी खास होते हैं जो मां बनने की अनुभूति कराते हैं। इन्हीं अनुभवों में से एक होता है ब्रेस्ट फीडिंग। बता दें ब्रेस्ट फीडिंग का मतलब है मां का अपने बच्चे को स्तनपान करवाना। आज से दुनियाभर में 'ब्रेस्ट फीडिंग वीक' मनाने की शुरूआत हो चुकी है। हर साल 1 से 7 अगस्त तक 'ब्रेस्ट फीडिंग वीक' मनाया जाता है। इस खास सप्ताह चैतन्य भारत न्यूज.कॉम की विशेष प्रस्तुति। क्यों मनाया जाता है ब्रेस्ट फीडिंग वीक इस सप्ताह को मनाने का खास उद्देश्य महिलाओं को स्तनपान के प्रति जागरूक करना है, क्योंकि ये मां और शिशु दोनों के लिए ही फायदेमंद होता है। लेकिन आज के समय में अक्सर महिलाएं बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान नहीं करवाती हैं। बता दें जन्म के बाद शिशु को सिर्फ मां के दूध की जरूरत होती है। जन्म के समय वह इतना छोटा होता है कि उसके अंदर कुछ पचाने की क्षमता नहीं होती है। ऐसे समय में बच्चे के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है। शिशु को इस उम्र तक कराएं स्तनपान जन्म के 6 महीने बाद तक ही मां को शिशु को अपना दूध पिलाना चाहिए। इससे शिशु का शारीरिक विकास भी पूरी तरह होता है। लेकिन कुछ महिलाएं अपने बच्चे को लंबे समय तक स्तनपान करवाती रहती हैं। बता दें 6 महीने से ज्यादा दूध पिलाने से औरतों के शरीर पर बुरा असर भी पड़ सकता है। पोषक तत्वों से भरपूर मां का दूध मां के दूध में फैट, शुगर, पानी और प्रोटीन की सही मात्रा होती है, जो बच्चे की अच्छी सेहत के लिए बेहद जरूरी है। डॉक्टरों के मुताबिक, मां के दूध में मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, बायोएक्टिव घटकों, वृद्धि के कारकों और रोग प्रतिरोधक घटकों का मिश्रण होता है। इस मिश्रण से शारीरिक और मानसिक दोनों ही विकास में मदद मिलती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिन बच्चों को मां का दूध नहीं दिया जाता है, उन्हें संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। स्तनपान करवाने के फायदे- हड्डियां मजबूत होना मां का दूध पीने से बच्चे के शरीर को कई सारे विटामिन्स और प्रोटीन मिलते हैं। इससे बच्चे की हड्डियां मजबूत होती हैं। मां के दूध से मिलने वाले पोषक तत्व बच्चों की हड्डियों को मजबूत करने के साथ ही उनको बीमारियों से बचाने का काम करता है। दिमाग का विकास मां का दूध पीने से बच्चे का दिमागी विकास भी पूरा होता है। इससे बच्चे के सोचने समझने की क्षमता बढ़ती है। यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा इंटेलिजेंट हो तो उसको स्तनपान जरूर करवाएं। एलर्जी से बच्चों को सुरक्षा मां के दूध में कुछ ऐसे गुण पाए जाते हैं जिससे बच्चे को किसी भी तरह की एलर्जी नहीं होती। इसलिए बच्चे के इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए उन्हें 6 महीने तक स्तनपान करवाएं। मोटापे से बचाव कहा जाता है कि स्तनपान करवाने से बच्चों को मोटापे की समस्या नहीं होती। इसलिए बच्चों को जितना मां का दूध मिलेगा वह आगे चलकर उतना ही फिट रहेंगे। बीमारियों से सुरक्षा इसके अलावा स्तनपान करने से बच्चों को टाइप 1, टाइप 2 डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना और आंत संबंधी बीमारियां होने का खतरा कम रहता है।     Read the full article
0 notes