BreastFeeding Week : 5 में से 3 नवजात को जन्म के 1 घंटे के भीतर नहीं मिल पाता मां का दूध : यूनिसेफ
चैतन्य भारत न्यूज
मां का दूध बच्चे के लिए अमृत समान है। जन्म से लेकर 6 महीने तक बच्चों को सिर्फ मां का दूध ही पिलाना चाहिए। मां का दूध कितना जरुरी होता है यह इन दिनों सरकारी विज्ञापनों के जरिए भी दिखाया जाने लगा है। दुनियाभर में 1 से 7 अगस्त तक 'ब्रेस्ट फीडिंग वीक' मनाया जाता है। बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) ने ब्रेस्टफीडिंग को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं...
यूनिसेफ की रिपोर्ट
यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की तरफ से पिछले साल जारी हुईं रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनियाभर में हर 5 में से 3 नवजात बच्चे ऐसे हैं जिन्हें जन्म के पहले 1 घंटे के भीतर मां का दूध नहीं मिलता है। 2018 तक ऐसे बच्चों की संख्या दुनियाभर में 7 करोड़ 80 लाख के करीब थी। वहीं 62 फीसदी शिशु ऐसे हैं जिन्हें मां का दूध नहीं मिल पाता है। मां का दूध न मिलने से बच्चों में गंभीर बीमारी होने के साथ ही मौत का खतरा भी बना रहता है। यदि जन्म के 1 घंटे के अंदर शिशु को मां का दूध नहीं मिलता है तो ऐसे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता है।
भारत की स्थिति में सुधार
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रेस्टफीडिंग के मामले में भारत ने साल 2005 से 2015 के बीच काफी सुधार किया है। हमारे देश में जन्म के 1 घंटे के अंदर शिशु को स्तनपान कराने के आंकड़े 10 सालों में दोगुने हो गए हैं। साल 2005 में जहां ये आंकड़ा 23.1 प्रतिशत था वहीं 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 41.5 प्रतिशत हो गया था। भारत की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट 2015-16 के मुताबिक, सिर्फ 55 प्रतिशत बच्चों को ही जन्म से 6 महीने तक पर्याप्त रूप से स्तनपान कराया जाता है। बढ़ती उम्र के साथ बच्चों को भोजन और पानी भी देना शुरू कर दिया जाता है जिससे स्तनपान की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
यूनिसेफ के मुताबिक, 2 से 23 घंटे तक मां का दूध न मिलने से बच्चे के जन्म से 28 दिनों के भीतर मृत्यु दर का यह आंकड़ा 40 फीसदी होता है। वहीं 24 घंटे के बाद भी दूध न मिलने से मृत्यु दर का यही आंकड़ा बढ़कर 80% तक हो जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यदि जन्म से 6 महीने तक शिशु को स्तनपान कराया जाए तो मृतक शिशुओं का आंकड़ा 8 लाख तक कम हो सकता है। यह रिसर्च पिछले 15 वर्षों के आधार पर तय की गई है।
मदर मिल्क बैंक का बढ़ता चलन
देश का पहला मदर मिल्क बैंक साल 2012 में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में खुला था। तब से अब तक करीब 12 हजार से ज्यादा बच्चों को इसका लाभ मिल चुका है। इसके बाद राजधानी दिल्ली में साल 2016 में मां के दूध का बैंक खोला गया। दिल्ली के ग्रेटर कैलाश के फोर्टिस ला फेम हॉस्पिटल ने स्वयं सेवी संस्था ब्रेस्ट मिल्क फाउंडेशन के साथ मिलकर एक नया प्रयास किया। इस मिल्क बैंक का नाम 'अमारा' रखा गया। इस बैंक में महज दो महीने के भीतर ही करीब 80 लीटर से ज्यादा ब्रेस्ट मिल्क इकट्ठा हो गया था। अब तक देश के विभिन्न राज्यों में मदर मिल्क बैंक खोले गए हैं, जो बच्चों के लिए मां के दूध को स्टोर करते हैं। इसके बाद जरूरतमंद बच्चों तक यह दूध पहुंचाया जाता है। साल 2018 में जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में सबसे ज्यादा 13 मदर मिल्क बैंक बनाए गए हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में 12 और तमिलनाडु में 10 मदर मिल्क बैंक हैं। जल्द ही उत्तरप्रदेश के बीएचयू अस्पताल में राज्य का पहला मदर मिल्क बैंक खुलने वाला है।
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