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शनिवार को शनि दोष के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए अनाजों का दान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां 5 तरह के अनाजों के नाम और उनका दान करने से जुड़ा अर्थपूर्ण उपाय है:
a) गेंहू: गेंहू शनि देव के लिए प्रिय अनाज है। इसे दान करने से शनि दोष के प्रभाव को कम किया जा सकता है। यह उपाय आर्थिक संघर्षों को दूर करने और आर्थिक स्थिरता की प्राप्ति के लिए सुझावित है। 🌾
b) चावल: चावल भी शनि देव का प्रिय भोजन है। इसे दान करने से शनि दोष के प्रभाव में कमी होती है और व्यापारिक विपत्तियों को दूर करने में सहायता मिलती है। 🍚
c) मक्का: मक्का शनि देव को प्रिय है और उनके दोष को दूर करने के लिए दान करना उचित माना जाता है। यह उपाय बाधाओं को पार करने और व्यक्तिगत प्रगति को बढ़ाने में मदद करता है। 🌽
d) ज्वार: ज्वार शनि देव को प्रसन्न करने का एक और प्रमुख अनाज है। इसे दान करने से शनि दोष का प्रभाव कम होता है और स्वास्थ्य, समृद्धि और आर्थिक स्थिरता की प्राप्ति होती है। 🌾
e) काली उड़द: काली उड़द दान करने से शनि दोष के प्रभाव को न्यूनतम किया जा सकता है। यह उपाय नौकरी में सफलता, आर्थिक सुख, और सामाजिक सम्मान को प्राप्त करने के लिए सुझावित है। ⚫
इन अनाजों के दान से हम शनि देव की कृपा, शांति और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। ये उपाय हमें ग्रह दोषों के निवारण में सहायता करते हैं और जीवन में स्थिरता, समृद्धि और सुख की प्राप्ति में मदद करते हैं। 🌾⚫
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अशुभ👽 शनि के प्रभावशनि के अशुभ प्रभाव से नौकरी👩💻🧑💻 में भी संघर्ष करना पड़ता है। शनि से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव धीरे-धीरे बदलने लगता है और ऐसा व्यक्ति झूठ बोलने लग जाता है। शनि के दुष्प्रभाव के कारण धर्म-कर्म पर व्यक्ति का विश्वास नहीं रहता है और अकारण क्रोध😡 आ जाता है।
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Om Sham Shanicharaya Namah | शनि मंत्र 108 Times | शनिदेव मंत्र जाप | Shani Mantra
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|| Om Sham Shanicharaya Namah ||
|| ओम शं शनैश्चराय नमः ||
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शनि देव की असीम कृपा पाने के लिए आज इस विधि से करें पूजा
चैतन्य भारत न्यूज शनिवार का दिन देवता शनि को समर्पित है। इस दिन शनिदेव की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। मान्यता है कि, शनि की पूजा से क��ंडली के दोष दूर हो जाते हैं और उनकी कृपा बरसती है।
कहा जाता है कि, शनि देव अगर प्रसन्न हो जाए तो रंक को भी राजा बना देते हैं, वहीं अगर वह नाराज हो जाए तो राजा को भिखारी भी बना देते हैं। शनि देवता को न्याय का देवता भी कहा जाता है। वह व्यक्ति को उसके बुरे और अच्छे कर्मों का फल जरूर देते हैं। आइए जानते हैं शनिदेव की पूजा-विधि।
इस विधि से करें शनि देव की पूजा शनिवार को सबसे पहले पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद पीपल की परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद शनिदेव के तांत्रिक मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। शनिदेव को तेल के साथ ही तिल, काली उदड़ या कोई काली वस्तु भी भेंट करें। शनिदेव की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:'। शनिवार के दिन सरसों का तेल गरीब को दान करें। शनि पूजा के बाद हनुमान जी की पूजा करें। उनकी मूर्ति परसिंदूर लगाएं और केला अर्पित करें। तांत्रिक शनि मंत्र ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। ये भी पढ़े शनि अमावस्या पर करें इन मंत्रो का जाप, शनिदेव दूर कर देंगे सभी कष्ट और होगी सुख-सम��द्धि की प्राप्ती सृष्टि में विद्रोही देवता के रूप में जाने जाते हैं शनिदेव शनि जयंती 2019 : शनि के दोषों से बचने के लिए रोजाना अपनाएं ये उपाय, हमेशा बरसेगी कृपा Read the full article
#shanidev#shanidevkoprasannkarnekeupaay#shanidevmantra#shanidevpujavidhi#shanidevpujavidhiinhindi#shanidevtapujavidhi#shanidoshdurkarnekeupaay#shanimantra#shanivarkedinkesekareshanikipooja#शनिदेव#शनिदेवकीपूजाविधि#शनिदेवकेमंत्र#शनिदेवकोप्रसन्नकरनेकेउपाय#शनिमंत्र#शनिवारकेदिनकैसेकरेशनिकीपूजा
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शनि देव की असीम कृपा पाने के लिए आज इस विधि से करें पूजा
चैतन्य भारत न्यूज शनिवार का दिन देवता शनि को समर्पित है। इस दिन शनिदेव की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। मान्यता है कि, शनि की पूजा से कुंडली के दोष दूर हो जाते हैं और उनकी कृपा बरसती है।
कहा जाता है कि, शनि देव अगर प्रसन्न हो जाए तो रंक को भी राजा बना देते हैं, वहीं अगर वह नाराज हो जाए तो राजा को भिखारी भी बना देते हैं। शनि देवता को न्याय का देवता भी कहा जाता है। वह व्यक्ति को उसके बुरे और अच्छे कर्मों का फल जरूर देते हैं। आइए जानते हैं शनिदेव की पूजा-विधि।
इस विधि से करें शनि देव की पूजा शनिवार को सबसे पहले पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद पीपल की परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद शनिदेव के तांत्रिक मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। शनिदेव को तेल के साथ ही तिल, काली उदड़ या कोई काली वस्तु भी भेंट करें। शनिदेव की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:'। शनिवार के दिन सरसों का तेल गरीब को दान करें। शनि पूजा के बाद हनुमान जी की पूजा करें। उनकी मूर्ति परसिंदूर लगाएं और केला अर्पित करें। तांत्रिक शनि मंत्र ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। ये भी पढ़े शनि अमावस्या पर करें इन मंत्रो का जाप, शनिदेव दूर कर देंगे सभी कष्ट और होगी सुख-समृद्धि की प्राप्ती सृष्टि में विद्रोही देवता के रूप में जाने जाते हैं शनिदेव शनि जयंती 2019 : शनि के दोषों से बचने के लिए रोजाना अपनाएं ये उपाय, हमेशा बरसेगी कृपा Read the full article
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सृष्टि में विद्रोही देवता के रूप में जाने जाते हैं शनिदेव
चैतन्य भारत न्यूज शनि जयंती आमतौर पर पूरे भारत में पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है। वहीं दक्षिण भारत के अमावस्यांत पंचांग के अनुसार शनि जयंती वैशाख अमावस्या को मनाई जाती है। उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के साथ- साथ वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है। मध्य भारत में वट- सावित्री व्रत पूर्णिमा को मनाया जाता है। सूर्यदेव के पुत्र हैं शनिदेव शनिदेव भगवान सूर्य तथा संवर्णा (छाया) के पुत्र हैं। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। वाहन गिद्ध हैं और वर्ण कृष्ण है। कृष्ण वर्ण होने की भी एक कथा है। शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड की कथा के अनुसार राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था। इसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी। वह सोचा करती थीं कि किसी तरह तप आदि से सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानों ने जन्म लिया। संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थीं। फिर एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्यदेव के तेज को कम करेंगी लेकिन बच्चों के पालन- पोषण और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे, इसके लिए उन्होंने एक तरकीब निकाली। संज्ञा ने अपने तप से अपनी हमशक्ल को पैदा किया। जिसका नाम उन्होंने संवर्णा (छाया) रखा। संज्ञा ने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी अपनी छाया संवर्णा को दी और कहा कि अब से मेरी जगह तुम सूर्यदेव की सेवा और बच्चों का पालन करते हुए स्त्री धर्म का पालन करोगी लेकिन यह ��ाज केवल मेरे और सिर्फ तुम्हारे बीच ही रहना चाहिए। संज्ञा वहां से चलकर पिता के घर पहुंची और अपनी परेशानी बताई। पिता ने उसे डांट-फटकार लगाते हुए वापस भेज दिया लेकिन संज्ञा वापस न जाकर वन में चली गईं और तपस्या में लीन हो गईं। उधर सूर्यदेव को तनिक भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं संवर्णा है। संवर्णा अपने धर्म का पालन करती रही। छाया रूप होने के कारण उसे सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से भी तीन संतानों मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) ने जन्म लिया। शनिदेव के जन्म की दूसरी कथाः इस कथा में शनिदेव के कृष्ण वर्ण के होने के कारण का भी उल्लेख है। इस कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुआ था। छाया शिव की भक्त थीं। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की इतनी कठोर तपस्या की कि उन्हें खाने-पीने की सुध तक न रही। भूख- प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान अर्थात शनि पर भी पड़ा और उनका रंग कृष्ण (काला) हो गया। जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग देखकर सूर्यदेव ने छाया पर भी संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी। उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिलकुल काले हो गए, उनके घोड़ों की चाल रूक गई। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेना पड़ी। इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव अपने किए पर पछतावा करने लगे और उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमायाचना की। इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन पिता-पुत्र का संबंध एक बार खराब हुआ तो फिर सुधर नहीं पाया। आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है। क्रूर ग्रह है शनिः फलित ज्योतिष में शनि को एक क्रूर ग्रह माना जाता है। इससे संबंधित एक कथा भी है। ब्रह्म पुराण की एक कथा के मुताबिक बचपन से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहा करते थे। वयस्क शनिदेव के पिता ने चित्ररथ की कन्या से उनका विवाह करा दिया था। शनिदेव की पत्नी सती- साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु स्नान करके पुत्र पाने की इच्छा से शनिदेव के पास पहुंची लेकिन शनिदेव श्रीकृष्ण के ध्यान में इस कदर खोए हुए थे कि उनकी दृष्टि पत्नी पर भी नहीं पड़ी। पत्नी का ऋतुकाल भी निष्फल हो गया। इससे वे क्रोधित हो गईं। क्रोध में शनिदेव क�� पत्नी ने उन्हें श्राप दे दिया कि पत्नी होने पर भी आपने मुझे कभी प्या�� से नहीं देखा। अब आप जिसे भी देखेंगे उसका कुछ-न- कुछ अनिष्ट होगा। यही वजह है कि शनि की दृष्टि को अनिष्टकारी माना जाता है। न्याय के देवता शनिदेव नीतिगत न्याय करते हैं। कहा जाता है कि शनि के वक्री होने से लोगों को पीड़ा होती है। इसलिए शनि की दशा से पीड़ित लोगों को शनि जयंती के दिन उनकी पूजा- आराधना करनी चाहिए। वे न्याय के देवता हैं, योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं। शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा जाता है। शनि देव जीवों को सभी कर्मों का फल प्रदान करते हैं। शनिदेव का नाम या स्वरूप ध्यान में आते ही मनुष्य भयभीत अवश्य होता है लेकिन कष्टतम समय में जब शनिदेव से प्रार्थना कर उनका स्मरण करते हैं तो शनिदेव ही कष्टों से मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। Read the full article
#bhagwanshani#shanidev#shanidevkahani#shanidevkatha#shanidevmantra#shanidevpoojavidhi#shanijayanti#शनिजयंती#शनिदेव#शनिदेवकीकथा
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सृष्टि में विद्रोही देवता के रूप में जाने जाते हैं शनिदेव
चैतन्य भारत न्यूज शनि जयंती आमतौर पर पूरे भारत में पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है। वहीं दक्षिण भारत के अमावस्यांत पंचांग के अनुसार शनि जयंती वैशाख अमावस्या को मनाई जाती है। उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के साथ- साथ वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है। मध्य भारत में वट- सावित्री व्रत पूर्णिमा को मनाया जाता है। सूर्यदेव के पुत्र हैं शनिदेव शनिदेव भगवान सूर्य तथा संवर्णा (छाया) के पुत्र हैं। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। वाहन गिद्ध हैं और वर्ण कृष्ण है। कृष्ण वर्ण होने की भी एक कथा है। शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड की कथा के अनुसार राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था। इसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी। वह सोचा करती थीं कि किसी तरह तप आदि से सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानों ने जन्म लिया। संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थीं। फिर एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्यदेव के तेज को कम करेंगी लेकिन बच्चों के पालन- पोषण और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे, इसके लिए उन्होंने एक तरकीब निकाली। संज्ञा ने अपने तप से अपनी हमशक्ल को पैदा किया। जिसका नाम उन्होंने संवर्णा (छाया) रखा। संज्ञा ने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी अपनी छाया संवर्णा को दी और कहा कि अब से मेरी जगह तुम सूर्यदेव की सेवा और बच्चों का पालन करते हुए स्त्री धर्म का पालन करोगी लेकिन यह राज केवल मेरे और सिर्फ तुम्हारे बीच ही रहना चाहिए। संज्ञा वहां से चलकर पिता के घर पहुंची और अपनी परेशानी बताई। पिता ने उसे डांट-फटकार लगाते हुए वापस भेज दिया लेकिन संज्ञा वापस न जाकर वन में चली गईं और तपस्या में लीन हो गईं। उधर सूर्यदेव को तनिक भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं संवर्णा है। संवर्णा अपने धर्म का पालन करती रही। छाया रूप होने के कारण उसे सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से भी तीन संतानों मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) ने जन्म लिया। शनिदेव के जन्म की दूसरी कथाः इस कथा में शनिदेव के कृष्ण वर्ण के होने के कारण का भी उल्लेख है। इस कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुआ था। छाया शिव की भक्त थीं। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की इतनी कठोर तपस्या की कि उन्हें खाने-पीने की सुध तक न रही। भूख- प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान अर्थात शनि पर भी पड़ा और उनका रंग कृष्ण (काला) हो गया। जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग देखकर सूर्यदेव ने छाया पर भी संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी। उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिलकुल काले हो गए, उनके घोड़ों की चाल रूक गई। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेना पड़ी। इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव अपने किए पर पछतावा करने लगे और उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमायाचना की। इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन पिता-पुत्र का संबंध एक बार खराब हुआ तो फिर सुधर नहीं पाया। आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है। क्रूर ग्रह है शनिः फलित ज्योतिष में शनि को एक क्रूर ग्रह माना जाता है। इससे संबंधित एक कथा भी है। ब्रह्म पुराण की एक कथा के मुताबिक बचपन से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहा करते थे। वयस्क शनिदेव के पिता ने चित्ररथ की कन्या से उनका विवाह करा दिया था। शनिदेव की पत्नी सती- साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु स्नान करके पुत्र पाने की इच्छा से शनिदेव के पास पहुंची लेकिन शनिदेव श्रीकृष्ण के ध्यान में इस कदर खोए हुए थे कि उनकी दृष्टि पत्नी पर भी नहीं पड़ी। पत्नी का ऋतुकाल भी निष्फल हो गया। इससे वे क्रोधित हो गईं। क्रोध में शनिदेव की पत्नी ने उन्हें श्राप दे दिया कि पत्नी होने पर भी आपने मुझे कभी प्यार से नहीं देखा। अब आप जिसे भी देखेंगे उसका कुछ-न- कुछ अनिष्ट होगा। यही वजह है कि शनि की दृष्टि को अनिष्टकारी माना जाता है। न्याय के देवता शनिदेव नीतिगत न्याय करते हैं। कहा जाता है कि शनि के वक्री होने से लोगों को पीड़ा होती है। इसलिए शनि की दशा से पीड़ित लोगों को शनि जयंती के दिन उनकी पूजा- आराधना करनी चाहिए। वे न्याय के देवता हैं, योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं। शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा जाता है। शनि देव जीवों को सभी कर्मों का फल प्रदान करते हैं। शनिदेव का नाम या स्वरूप ध्यान में आते ही मनुष्य भयभीत अवश्य होता है लेकिन कष्टतम समय में जब शनिदेव से प्रार्थना कर उनका स्मरण करते हैं तो शनिदेव ही कष्टों से मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। Read the full article
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शनि अमावस्या पर करें इन मंत्रो का जाप, शनिदेव दूर कर देंगे सभी कष्ट और होगी सुख-समृद्धि की प्राप्ती
चैतन्य भारत न्यूज आज शनि अमावस्या है। शनिवार को आने वाली अमावस्या को शनि या शनैश्चरी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन सूर्य पुत्र शनिदेव की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए शनिदेव से प्रार्थना करते हैं। शनिदेव की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ती तो होती ही है और साथ ही कर्मक्षेत्र में भी सफलता मिलती है। शनैश्चरी अमावस्या पर इस तरह करें भगवान शनि की पूजा- पूजा विधि सुबह स्नान करने के पश्चात् आप शनि देव के मंदिर जाएं। वहां आप शनिदेव की पूजा करें। ध्यान रहे शनि देव को हमेशा सरसों के तेल का दीया ही लगाना चाहिए। भगवान शनि को नीले रंग के फूल अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं। पूजा के बाद करें इन चीजों का दान- शनि अमावस्या के दिन काली उड़द, काले जूते, काले वस्त्र या फिर काली सरसों दान करें। 800 ग्राम तिल तथा 800 ग्राम सरसों का तेल दान करें। काले कपड़े, नीलम का दान करें। आप चाहे तो बजरंगबली को चोला भी चढ़ा सकते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा पाठ का अधिक से अधिक दान करें। काले कपड़े में सवा किलोग्राम काला तिल भर कर दान करें। पीपल के वृक्ष पर सात प्रकार के अनाज चढ़ाकर बांट दें। शनिदेव की पूजा करते समय करें इन मंत्रों का जाप- सूर्य पुत्रो दीर्घ देहो विशालाक्ष: शिव प्रिय:। मंदाचाराह प्रसन्नात्मा पीड़ां दहतु में शनि:।। ॐ शं शनैश्चराय नमः ॐ प्रां प्रीं प्रौ सं शनैश्चराय नमः ॐ नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नमः ये भी पढ़े... धन लाभ के लिए लाभदायक है मई महीना, यहां है इस महीने के तीज-त्योहारों की पूरी जानकारी Read the full article
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शनि जयंती : कैसे करें शनि देव को प्रसन्न, इस स्त्रोत के जाप से हर काम में मिलेगी सफलता
चैतन्य भारत न्यूज ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। ज्योतिष में शनि को पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर शनि अशुभ फल देते हैं। किसी एक राशि पर शनि की साढ़ेसाती साढ़े-सात वर्षों तक और शनि की ढैय्या ढाई वर्षों तक रहती है। ग्रहों में शनि सबसे हल्की गति से चलते हैं। शनि एक राशि में ढाई वर्षों तक विराजमान रहते हैं। इस समय धनु, मकर, कुंभ पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। इन जातकों को इस समय शनि को प्रसन्न करने के लिए उपाय करने चाहिए। शनि देव को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय है दशरत कृत शनि स्तोत्र का पाठ। धा��्मिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इस स्त्रोत की रचना की थी। ऐसा माना जाता है इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। दशरथ कृत शनि स्त्रोत नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।। नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।। नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।। नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।। नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।। अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते। नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।। तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च। नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।। ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे। तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।। देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:। त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।। प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत। एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।। कैसे करें शनि जयंती पर शनि देव को प्रसन्न इस दिन हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए जिससे शनि दोष कम होता है। हनुमान जी की आरती-चालीसा आदि का पाठ भी कर सकते हैं। साथ ही साथ शनि जयंती के दिन पीपल के वृक्ष पर सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं व उन्हें तिल जरूर अर्पित करें। काले वस्त्र पहने शनि चालीसा पढ़ें गरीबों को दान करें Read the full article
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