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शनि जयंती: चौथी शताब्दी से रोम में हो रही शनि भगवान की पूजा, वहां कृषि के देवता माने गए हैं शनिदेव
चैतन्य भारत न्यूज सूर्य पुत्र शनि भगवान की आज जयंती है। शनि नौ ग्रहों में से एक हैं। भारत में कई शनि मंदिर है जहां भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक रोम में भी शनि भगवान को वैसे ही पूजा जाता है। आज भी रोम में चौथी शताब्दी का एक शनि मंदिर है। यहां शनि भगवान को कृषि का देवता माना जाता है। शनि को माना जाता था रोमन देवता रोम के शनि मंदिर के मुख्य हिस्से में उस काल के 8 विशाल स्तंभ मौजूद हैं। एनशिएंट हिस्ट्री इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार, पुराने समय में शनि भगवान को रोमन देवता माना जाता था। शनि यानी सेटर्न के नाम पर रखा जाने वाला सैटर्नालिया त्योहार रोमन कैलेंडर में सबसे महत्वपूर्ण था। चौथी शताब्दी से ही यहां पर भगवान शनि से जुड़े उत्सव और नई फसलों के आने पर उनका आभार जताने की परंपरा रही है। कई ऐतिहासिक पुस्तकों में इसका जिक्र मिलता है। आज भी स्थित हैं मंदिर के विशाल स्तंभ रोम का शनि मंदिर रोमन फोरम के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। ये चौथी शताब्दी का मंदिर है। यह मंदिर इतना पुराना होने के बाद भी यहां आज भी विशाल स्तंभ खड़े हैं। उस समय यह मंदिर प्राचीन पंथ का प्रतीक था। इस मंदिर में कई शाही आयोजन किए जाते थे। इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक ये मंदिर रोम के उत्तर-पश्चिमी फोरम में स्थित है। मंदिर सदियों पुराना है इसलिए अब यहां सिर्फ इसके अवशेष ही बचे हैं। यहां प्राचीन शैली की नक्काशी देखी जा सकती है। मंदिर का कई बार जिर्णोद्धार हुआ है। उस काल में अलग-अलग शासकों ने समय-समय पर यहां निर्माण करवाया था। ग्रीक देवता क्रोनास और सेटर्न को माना जाता था एक ही पुराने समय में ग्रीक देवता क्रोनास और रोम के देवता सेटर्न को एक ही माना जाता था। उस समय दिसंबर में क्रोनास और सेटर्न के सम्मान में यहां विशेष उत्सव मनाए जाते थे। लोग एक-दूसरे को उपहार देते थे। ये पर्व कई दिनों तक चलते थे। आज भी रोम में 17 दिसंबर से शनि का विशेष उत्सव मनाया जाता है। ग्रीक और रोमन कथाएं एक-दूसरे से जुड़ी हैं प्राचीन समय में ग्रीक और रोमन कथाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई थीं। दोनों की ही मान्यताओं में देवी-देवताओं के अलग-अलग नाम होते थे, लेकिन उनकी कई समानताएं थी। रोमन में शनि या सेटर्नस और ग्रीक देवता क्रोनास दोनों एक ही माना जाता था। Read the full article
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शनि जयंती : कैसे करें शनि देव को प्रसन्न, इस स्त्रोत के जाप से हर काम में मिलेगी सफलता
चैतन्य भारत न्यूज ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। ज्योतिष में शनि को पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर शनि अशुभ फल देते हैं। किसी एक राशि पर शनि की साढ़ेसाती साढ़े-सात वर्षों तक और शनि की ढैय्या ढाई वर्षों तक रहती है। ग्रहों में शनि सबसे हल्की गति से चलते हैं। शनि एक राशि में ढाई वर्षों तक विराजमान रहते हैं। इस समय धनु, मकर, कुंभ पर शनि की साढ़ेसाती ��र मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। इन जातकों को इस समय शनि को प्रसन्न करने के लिए उपाय करने चाहिए। शनि देव को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय है दशरत कृत शनि स्तोत्र का पाठ। धार्मिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इस स्त्रोत की रचना की थी। ऐसा माना जाता है इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। दशरथ कृत शनि स्त्रोत नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।। नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।। नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।। नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।। नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।। अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते। नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।। तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च। नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।। ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे। तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।। देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:। त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।। प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत। एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।। कैसे करें शनि जयंती पर शनि देव को प्रसन्न इस दिन हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए जिससे शनि दोष कम होता है। हनुमान जी की आरती-चालीसा आदि का पाठ भी कर सकते हैं। साथ ही साथ शनि जयंती के दिन पीपल के वृक्ष पर सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं व उन्हें तिल जरूर अर्पित करें। काले वस्त्र पहने शनि चालीसा पढ़ें गरीबों को दान करें Read the full article
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