नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ असम में प्रदर्शन तेज, 16 दिसंबर तक इंटरनेट और स्कूल-कॉलेज रहेंगे बंद
चैतन्य भारत न्यूज
दिसपुर. नागरिकता संशोधन बिल 2019 को लेकर भारत के कई हिस्सों में प्रदर्शन हो रहा है। पूर्वोत्तर के राज्यों में खासतौर से इस बिल के खिलाफ हिंसा जारी है। जानकारी के मुताबिक, असम में 16 दिसंबर तक इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया है। साथ ही वहां स्कूल और कॉलेज भी बंद रहेंगे।
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एक अधिकारी ने बताया कि जब तक परिस्थिति सामान्य नहीं हो जाती तब तक राज्य में इंटरनेट सेवाएं बहाल की गई है। हालांकि इंटरनेट बंद के बावजूद शनिवार को कुछ इलाकों में कुछ घंटो के लिए ब्रॉडबैंड सेवाएं चालू हो गई थीं। शनिवार सुबह से ही असम के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा है। सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक ही कर्फ्यू में ढील दी गई। गुवाहाटी में भी स्थानीय लोग इस दौरान अपने दैनिक जरूरतों के सामान खरीदते नजर आए।
बाहरी गैर-मुस्लिम लोगों को मिलेगी नागरिकता
बता दें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बिल को पहले लोकसभा, फिर राज्यसभा में पेश किया था। लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 311 और विरोध में 80 वोट पड़े। जबकि राज्यसभा में बिल के पक्ष में 125 वोट और विरोध में 99 वोट पड़े थे। नागरिकता संशोधन कानून के तहत भारत के तीन पड़ोसी इस्लामी देशों- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत की शरण में आए गैर-मुस्लिम लोगों को आसानी से नागरिकता मिल सकेगी।
क्यों हो रहा प्रदर्शन
असम के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश, मेघालय समेत अन्य राज्यों में भी इस बिल के खिलाफ विरोध हुआ। पुलिस फायरिंग के दौरान 2 लोगों की मौत हो गई। पूर्वोत्तर के राज्यों का कहना है कि अगर शरणार्थियों को यहां पर नागरिकता दी जाएगी तो उनकी अस्मिता, संस्कृति पर असर पड़ेगा। हालांकि, कानून लागू करते समय सरकार ने यह ऐलान किया था कि मेघालय, असम, अरुणाचल, मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में कानून लागू नहीं होगा।
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चैतन्य भारत न्यूज
नई दिल्ली. तमाम विरोध और प्रदर्शनों के बावजूद नागरिकता संशोधन बिल 2019 (Citizenship Amendment bill) को लोकसभा और राज्यसभा से पास होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी मंजूरी दे दी है। गुरुवार देर रात राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब नागरिकता संशोधन बिल कानून बन गया है। यानी पाकिस्तान-बांग्लादेश-अफगानिस्तान से आए हुए हिंदू-जैन-बौद्ध-सिख-ईसाई-पारसी शरणार्थी आसानी से भारत की नागरिकता हासिल कर पाएंगे।
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गैर-मुस्लिम लोगों को मिलेगी नागरिकता
बता दें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बिल को पहले लोकसभा, फिर राज्यसभा में पेश किया था। लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 311 और विरोध में 80 वोट पड़े। जबकि राज्यसभा में बिल के पक्ष में 125 वोट और विरोध में 99 वोट पड़े थे। लोकसभा में तो मोदी सरकार के पास बहुमत था लेकिन राज्यसभा में बहुमत ना होने के बावजूद सरकार को जीत मिली है। नागरिकता संशोधन कानून के तहत भारत के तीन पड़ोसी इस्लामी देशों- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत की शरण में आए गैर-मुस्लिम लोगों को आसानी से नागरिकता मिल सकेगी।
क्या है नागरिकता संशोधन कानून?
भारत का नागरिक कौन है? इसे स्पष्ट करने के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया था जिसका 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया। फिर इस कानून में मोदी सरकार ने संशोधन किया। इस बिल में भारत में 6 साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। जबकि 'नागरिकता अधिनियम 1955' में वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 11 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी।
President Ram Nath Kovind gives his assent to The Citizenship (Amendment) Act, 2019. pic.twitter.com/RvqZgBjhis
— ANI (@ANI) December 12, 2019
किन शरणार्थियों को मिलेगा फायदा?
अमित शाह द्वारा लोकसभा में दिए भाषण में यह दावा किया था कि, ऐसे लाखों-करोड़ों लोग हैं जिन्हें इस कानून से फायदा मिलेगा। नए कानून के तहत, ये सभी शरणार्थियों पर लागू होगा चाहे वो किसी भी तारीख से आए हों। जिस तारीख से वह भारत आए उन्हें तब से ही भारत का नागरिक मान लिया जाएगा। फिलहाल सरकार ने एक कटऑफ तारीख भी जारी की है। 31 दिसंबर 2014 से पहले आए सभी हिंदू-जैन-बौद्ध-सिख-ईसाई-पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी।
कहां पर लागू नहीं होगा ये कानून?
इस कानून को लेकर पूर्वोत्तर में खूब विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। असम, मेघालय समेत कई राज्यों में लोग सड़कों पर उतरे और बिल वापस लेने की मांग करते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों का कहना है कि अगर शरणार्थियों को यहां पर नागरिकता दी जाएगी तो उनकी अस्मिता, संस्कृति पर असर पड़ेगा। हालांकि, कानून लागू करते समय सरकार ने यह ऐलान किया था कि मेघालय, असम, अरुणाचल, मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में कानून लागू नहीं होगा।
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नई दिल्ली. तमाम विरोध और प्रदर्शनों के बावजूद नागरिकता संशोधन बिल 2019 (Citizenship Amendment bill) को लोकसभा और राज्यसभा से पास होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी मंजूरी दे दी है। गुरुवार देर रात राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब नागरिकता संशोधन बिल कानून बन गया है। यानी पाकिस्तान-बांग्लादेश-अफगानिस्तान से आए हुए हिंदू-जैन-बौद्ध-सिख-ईसाई-पारसी शरणार्थी आसानी से भारत की नागरिकता हासिल कर पाएंगे।
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गैर-मुस्लिम लोगों को मिलेगी नागरिकता
बता दें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बिल को पहले लोकसभा, फिर राज्यसभा में पेश किया था। लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 311 और विरोध में 80 वोट पड़े। जबकि राज्यसभा में बिल के पक्ष में 125 वोट और विरोध में 99 वोट पड़े थे। लोकसभा में तो मोदी सरकार के पास बहुमत था लेकिन राज्यसभा में बहुमत ना होने के बावजूद सरकार को जीत मिली है। नागरिकता संशोधन कानून के तहत भारत के तीन पड़ोसी इस्लामी देशों- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत की शरण में आए गैर-मुस्लिम लोगों को आसानी से नागरिकता मिल सकेगी।
क्या है नागरिकता संशोधन कानून?
भारत का नागरिक कौन है? इसे स्पष्ट करने के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया था जिसका 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया। फिर इस कानून में मोदी सरकार ने संशोधन किया। इस बिल में भारत में 6 साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। जबकि 'नागरिकता अधिनियम 1955' में वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 11 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी।
President Ram Nath Kovind gives his assent to The Citizenship (Amendment) Act, 2019. pic.twitter.com/RvqZgBjhis
— ANI (@ANI) December 12, 2019
किन शरणार्थियों को मिलेगा फायदा?
अमित शाह द्वारा लोकसभा में दिए भाषण में यह दावा किया था कि, ऐसे लाखों-करोड़ों लोग हैं जिन्हें इस कानून से फायदा मिलेगा। नए कानून के तहत, ये सभी शरणार्थियों पर लागू होगा चाहे वो किसी भी तारीख से आए हों। जिस तारीख से वह भारत आए उन्हें तब से ही भारत का नागरिक मान लिया जाएगा। फिलहाल सरकार ने एक कटऑफ तारीख भी जारी की है। 31 दिसंबर 2014 से पहले आए सभी हिंदू-जैन-बौद्ध-सिख-ईसाई-पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी।
कहां पर लागू नहीं होगा ये कानून?
इस कानून को लेकर पूर्वोत्तर में खूब विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। असम, मेघालय समेत कई राज्यों में लोग सड़कों पर उतरे और बिल वापस लेने की मांग करते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों का कहना है कि अगर शरणार्थियों को यहां पर नागरिकता दी जाएगी तो उनकी अस्मिता, संस्कृति पर असर पड़ेगा। हालांकि, कानून लागू करते समय सरकार ने यह ऐलान किया था कि मेघालय, असम, अरुणाचल, मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में कानून लागू नहीं होगा।
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