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नागरिकता संशोधन बिल : देश की नागरिकता के क्या हैं नियम? सरकार ने क्या बदलाव किए, जानें इसके बारे में सबकुछ
चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. नागरिकता संशोधन बिल (Citizen Amendment Bill) को सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में पेश किया। इस बिल को लेकर विपक्षियों ने जमकर विरोध किया। इस बिल को केंद्रीय कैबिनेट से तो मंजूरी मिल गई है और अब सरकार की कोशिश इसे संसद से पास कराने की है। आइए जानते हैं क्या है इस बिल में प्रावधान और इसे लेकर क्यों हो रहा इतना हंगामा। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
क्या है नागरिकता संशोधन बिल? भारत का नागरिक कौन है? इसे स्पष्ट करने के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया था जिसका 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया। इस कानून में मोदी सरकार ने संशोधन किया है जिसका नाम 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' दिया गया। इस बिल में भारत में 6 साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। जबकि 'नागरिकता अधिनियम 1955' में वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 12 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी।
क्यों हो रहा है विरोध? कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत कई दूसरी पार्टियां और असम गण परिषद (एजीपी) इस बिल का विरोध कर रहे है। इनका दावा है कि धर्म के नाम पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इस बिल के प्रावधान के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी। बिल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात कही गई है। नए कानून के मुताबिक, अफगानिस्तान-बांग्लादेश-पाकिस्तान से आया हुआ कोई भी हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई नागरिक जो कि 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में ��या हो उसे अवैध नागरिक नहीं माना जाएगा।
पूर्वोत्तर में हो रहा ज्यादा विरोध इन्हीं प्रावधानों को लेकर कांग्रेस समेत कई पार्टियां इसी आधार पर बिल का विरोध कर रही हैं और इसे भारत के संविधान का उल्लंघन बता रही हैं। विपक्ष का कहना है कि केंद्र सरकार जो बिल ला रही है, वह देश में धर्म के आधार पर बंटवारा करेगा जो समानता के अधिकार के खिलाफ है। पूर्वोत्तर में इस बिल को लेकर सबसे ज्यादा विरोध किया जा रहा है। वहां के लोगों का मानना है कि बांग्लादेश से अधिकतर हिंदू आकर असम, अरुणाचल, मणिपुर जैसे राज्यों में बसते हैं ऐसे में ये पूर्वोत्तर राज्यों के लिए ठीक नहीं रहेगा। पूर्वोत्तर में कई छात्र संगठन, राजनीतिक दल इसके विरोध में हैं।
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