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भोपाल गैस कांड : 35 साल बाद भी नही भरे जख्म, नहीं हटा यूनियन कार्बाइड में रखा 340 टन जहरीला कचरा
चैतन्य भारत न्यूज भोपाल. भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल पूरे हो गए हैं। इतने सालों बाद भी यहां सैकड़ों परिवारों के जख्म आज भी हरे के हरे हैं। आज भी लोग उस काली रात के मंजर को याद कर कांप जाते हैं। 3 दिसंबर 1984 में आज ही के दिन मानव इतिहास की सबसे भयंकर त्रासदी भोपाल गैस कांड हुआ था। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); गैस त्रासदी की 35वीं बरसी के एक दिन पहले सोमवार को गैस पीड़ित संगठनों ने कैं���ल मार्च निकाला और त्रासदी में मारे गए लोगों को श्र��्धांजलि दी। गैस पीड़ितों ने कहा कि, '35 साल बीत गए, लेकिन अब तक गैस पीड़ितों के लिए बनाए गए गैस राहत अस्पतालों में इलाज के बेहतर इंतजाम नही हैं। बावजूद सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं है। पीड़ितों को जितना मुआवजा मिलना चाहिए वो भी अभी तक नहीं मिला। इतना ही नहीं यूनियन कार्बाइड में पड़ा जहरीला कचरा हटाने के लिए भी कोई प्लानिंग नहीं की गई है।' राज्य सरकार नहीं हटवा पाई जहरीला कचरा साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यूनियन कार्बाइड कारखाने में दफन जहरीला कचरा राज्य की सरकार हटवाने में आज तक नाकाम रहीं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि वैज्ञानिक तरीके से कचरे का निष्पादन किया जाए, लेकिन कारखाने में दफन 350 टन जहरीले कचरे में से 2015 तक केवल एक टन कचरे को हटाया जा सका है। इस कचरे के कारण यूनियन कार्बाइड से आसपास की 42 से ज्यादा बस्तियों का पानी जहरीला हो चुका है। पानी पीने लायक नहीं है, लेकिन किसी को फिक्र नहीं है। नहीं मिला मुआवजा इतना ही नहीं बल्कि मुआवजे के मामले में कंपनी और केंद्र सरकार के बीच हुए समझौते के बाद 705 करोड़ रुपए मिले थे। इसके बाद भोपाल गैस पीड़ित संगठनों की ओर से 2010 में एक पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी, जिसमें 7728 करोड़ मुआवजे की मांग की गई थी। इस मामले में भी अब तक फैसला नहीं हो पाया। कंपनी के मालिक की हो चुकी है मौत खबरों के मुताबिक, यूनियन कार्बाइड हादसे का मुख्य गुनहगार यूनियन कार्बाइड का मालिक वारेन एंडरसन की 92 साल की उम्र में मौत हो चुकी है। वारेन एंडरसन को भोपाल से भगाने में किसका हाथ था, यह आज तक तय न हो पाया। उस समय अर्जुन सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इस मामले के कई अभियुक्तों की मृत्य हो गई, सिर्फ दो लोगों को दो-दो साल की सजा हुई। ये भी पढ़े... भोपाल गैस त्रासदी : बेहद डरावनी रात और चीखती सुबह, जानें उस दर्दनाक हादसे से जुड़ी कहानी भोपाल गैस त्रासदी के लाखों पीड़ितों के हित के लिए लड़ने वाले अब्दुल जब्बार ने दुनिया को कहा अलविदा Read the full article
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भोपाल गैस त्रासदी : बेहद डरावनी रात और चीखती सुबह, जानें उस दर्दनाक हादसे से जुड़ी कहानी
चैतन्य भारत न्यूज भोपाल. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई गैस त्रासदी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी भयावह और दर्दनाक त्रासदी में से एक है। 35 बरस पहले 1984 में 3 दिंसबर की उस रात मौत ने हजारों लोगों को दबे पांव अपने आगोश में ले लिया। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जहरीली गैस रिसाव से समूचे शहर में मौत का तांडव मच गया। आज भी दिलों को दहलाने वाले इस हादसे से जुड़ी अहम बातें आप भी जानिए- (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
25000 से ज्यादा लोग मारे गए 3 दिसंबर 1984 को भोपाल में हुई इस भयानक औद्योगिक दुर्घटना को 'भोपाल गैस कांड' या 'भोपाल गैस त्रासदी' के नाम से जाना गया। भोपाल स्थित 'यूनियन कार्बाइड' नामक कंपनी के कारखाने के प्लांट नंबर 'C' से 'मिथाइल आइसो साइनाइट' (मिक) नामक एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे कीटनाशक बनाया जाता है। यह जहरीली गैस हवा के झोंके के साथ बहने लगी और लोगों को मौत की नींद सुलाने लगी। गैस के कारण लोगों की आंखों और सांस लेने में परेशानी हो रही थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस गैस के रिसाव से लगभग 25000 से अधिक लोगों की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के शिकार हुए। जिन लोगों के फैंफड़ों में बहुत गैस पहुंच गई थी वे सुबह देखने के लिए जीवित नहीं रहे।
क्यों हुआ था रिसाव? जानकार सूत्रों के मुताबिक, कार्बाइड फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था और इसका कारण यह था कि फैक्टरी के टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस से पानी मिल गया था। इस घटना के बाद रासायनिक प्रक्रिया हुई और इसके परिणामस्वरूप टैंक में दबाव बना। अंतत: टैंक खुल गया और गैस वायुमंडल में फैल गई। गैस के सबसे ज्यादा शिकार कारखाने के पास बनी झुग्गी बस्ती के लोग ही हुए थे। ये सभी वे लोग थे जो कि रोजीरोटी की तलाश में दूर-दूर के गांवों से आकर यहां पर रह रहे थे। त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए।
भारत छोड़कर भाग गया कंपनी का मुख्य अधिकारी इस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड के मुख्य प्रबंध अधिकारी वॉरेन एंडरसन रातोंरात भारत छोड़कर अपने देश अमेरिका रवाना हो गए थे। 7 जून, 2010 को आए स्थानीय अदालत के फैसले में आरोपियों को दो-दो साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सभी आरोपी जमानत पर रिहा भी कर दिए गए। वॉरेन एंडरसन की मौत 29 सिंतबर 2014 को हुई थी। इस हादसे पर 2014 में फिल्म 'भोपाल ए प्रेयर ऑफ रेन' का निर्माण किया गया।
ये भी पढ़े... भोपाल गैस त्रासदी के लाखों पीड़ितों के हित के लिए लड़ने वाले अब्दुल जब्बार ने दुनिया को कहा अलविदा बीसवीं सदी के सबसे बड़े औद्योगिक हादसों में एक भोपाल गैस त्रासदीः संयुक्त राष्ट्र Read the full article
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भोपाल गैस त्रासदी के लाखों पीड़ितों के हित के लिए लड़ने वाले अब्दुल जब्बार ने दुनिया को कहा अलविदा
चैतन्य भारत न्यूज भोपाल. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई गैस त्रासदी में लाखों पीड़ितों के लिए मसीहा बनकर उभरे एक्टिविस्ट अब्दुल जब्बार का गुरुवार देर रात निधन हो गया। बता दें अब्दुल जब्बार ने गैस त्रासदी में लाखों पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। 1984 Bhopal Gas tragedy activist Abdul Jabbar passed away in Bhopal last night. (file pic) pic.twitter.com/IMx3wx6Zsc — ANI (@ANI) November 15, 2019 सरकार ने इलाज का खर्च उठाने का जिम्मा लिया था वह जब्बार भाई के नाम से मशहूर थे। पिछले लंबे समय से जब्बार भाई बीमार थे और कुछ महीनों से उनका इलाज चल रहा था। निधन से एक दिन पहले ही मध्य प्रदेश सरकार ने उनके इलाज का खर्च उठाने का ऐलान किया था। राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट कर उनके इलाज का खर्च उठाने की बता कही थी। भोपाल गैस त्रासदी के बाद हज़ारों पीड़ितों के हितो के लिये सतत संघर्ष करने वाले अब्दुल जब्बार भाई का हाल ही में बीमार होने पर चल रहे इलाज का सारा ख़र्च सरकार ने वहन किया,और आगे भी सरकार उनके इलाज का पूरा ख़र्च वहन करेगी,उनके साथी चिंतित ना हो। वे शीघ्र स्वस्थ हो,ऐसी ईश्वर से कामना — Office Of Kamal Nath (@OfficeOfKNath) November 14, 2019 आखिर समय तक पीड़ितों के लिए लड़ते रहे जब्बार भाई बता दें जब्बार भाई ने गैस त्रासदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी थी। इस त्रासदी में उन्होंने अपने माता-पिता को भी खो दिया था। साथ ही गैस त्रासदी से उनकी आंखों और फेफड़ों पर भी गंभीर असर हुआ था। इस वजह से उन्हें एक आंख से कम दिखाई देता था। पीड़ितों की लड़ाई में उनके कई साथियों ने वक्त के साथ रास���ते बदल लिए, लेकिन जब्बार भाई ने कभी हार नहीं मानी। अपने जीवन के अंतिम दम तक वह पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लड़ते रहे। उनके प्रयासों के कारण ही भोपाल गैस त्रासदी के लाखों पीड़ितों को इलाज मिल सका था। जब्बार भाई के निधन से भोपाल गैस पीड़ित परिवारों के लाखों सदस्य दुखी हैं। सभी उनकी आत्मा की शांति के लिए दुआ कर रहे हैं। क्या थी भोपाल गैस त्रासदी? भोपाल गैस त्रासदी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी भयावह और दर्दनाक त्रासदी में से एक है। 3 दिसंबर 1984 की रात में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री के प्लांट नंबर 'C' से जहरीली गैस (मिक या मिथाइल आइसो साइनाइट) रिसने लगी थी। यह जहरीली गैस हवा के झोंके के साथ बहने लगी और लोगों को मौत की नींद सुलाने लगी। गैस के कारण लोगों की आंखों और सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। Read the full article
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बीसवीं सदी के सबसे बड़े औद्योगिक हादसों में एक भोपाल गैस त्रासदीः संयुक्त राष्ट्र
चैतन्य भारत न्यूज। साल 1984 की 2 व 3 दिसंबर की दरमियानी रात हुई भोपाल गैस त्रासदी में हजारों लोग काल के गाल में समा गए थे और लाखों लोग प्रभावित हुए थे। यह बीसवीं सदी में हुई विश्व की सबसे 'बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं" में से एक है। इस जानकारी के साथ ही संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए बताया गया है कि हर वर्ष 27.8 लाख श्रमिक व्यावसायिक दुर्घटनाओं और काम से संबंधित बीमारियों से मारे जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) ने यह रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि साल 1984 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसाइनेट (मिक) गैस का रिसाव हुआ था। इस दुर्घटना में छह लाख से अधिक श्रमिक और आसपास रहने वाले लोग भी प्रभावित हुए थे। सरकारी आंकड़ों में अनुमान लगाया गया है कि उस आपदा की वजह से लोगों को कई तरह की बीमारियां हुईं। आने वाले सालों में करीब 15 हजार लोगों की मौत हो गई। यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा अभी भी वहीं है। वह रिसकर जमीन में जा रहा है, पानी में मिल रहा है। यही नहीं, दुर्घटना की वजह से हजारों जीवित बचे लोग और उनकी आने वाली पीढ़ियों के बच्चे श्वसन रोगों, आंतरिक अंगों व प्रतिरक्षा प्रणाली को हुए नुकसान से पीड़ित हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट को 'द सेफ्टा एंड हेल्थ एट द हार्ट ऑफ द फ्यूचर ऑफ वर्क-बिल्डिंग ऑन 100 इयर्स ऑफ एक्सपीरियंस" के नाम से प्रकाशित किया गया है। 27.8 लाख मजदूर कार्य संबंधी हादसों और बीमारियों से मरते हैं- रिपोर्ट के अनुसार, हर साल 27.8 लाख श्रमिक व्यावसायिक दुर्घटनाओं और कार्य-संबंधी बीमारियों से मर जाते हैं। अतिरिक्त 37.4 करोड़ मजदूर गैर-घातक व्यावसायिक हादसों से पीड़ित हैं। रिपोर्ट में बताया है कि बिना भुगतान के काम कराने से किसी कर्मचारी के स्वास्थ्य, सुरक्षा या जीवन को खतरा हो सकता है। एजेंसी ने कई नए या मौजूदा व्यावसायिक जोखिमों की पहचान की जो पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 36 प्रतिशत कर्मचारी लंबे समय से अत्यधिक काम कर रहे हैं। इसका मतलब है कि वे प्रति सप्ताह 48 घंटे से अधिक काम कर रहे हैं। Read the full article
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