#Ultimate Hindi शायरी & Best SMS Collection
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vipinjha · 7 days ago
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ना दिल्ली रहता, ना बंबई रहता
मैं लड़का ना रहता, तो अपने घर को रहता
बचपन समेट कर अपने पाँव से
जिम्मेदारियों का बोझ लिये गाँव से
सुनते ताना-बाना और जमाना को
निकल पड़ा मैं छोड़ ममता की छांव से
खेत खलिहान पोखरा गाछी और मकान
गली क्रिकेट, दोस्तों में बसती थी जान
समय के हम खुद सिकंदर थे
चाय की चुस्की, चौराहे का पान
पिकनिक के लिये करते बबंडर थे
फिर एक शाम सब खत्म हो गया
ग्रेजुएशन होते ही, शुरू एक सफर हो गया
बेरोजगारी के तले दबे, हम महानगरों को चले
गांव का सिकंदर अब गुलाम है
दस बाय दस के कमरे में करता विश्राम है
हर रोज जेहन में एक टीस ��ैदा होती है
मेरे बिना मेरी माँ कैसे होती हैं
अच्छा होता हम किसान होते
दिखावटी दुनिया से अंजान होते
पता नहीं अब कब गाँव को जाऊँगा
जाऊँगा तो लौट के फिर ना आऊँगा
इस बार बाबूजी से बोल ही दूंगा
उनको सीने से लगाकर 
शहर की जिंदगी खोल ही दूंगा
इंसानियत, प्रेम, रिश्तों का कोई मोल नहीं
हांजी हांजी का सब खेला है
शहर नहीं, ये इंसानों का बनाया मेला है
एक बिल्डिंग से दूसरे बिल्डिंग में
बस कॉरपोरेट नाम का झमेला है
EMI पर कटती जिंदगी है
आपके चुराये दस रुपये से
चकाचौंध वाली जिंदगी महंगी है
कुर्सी पर बैठे बाबू जी अब मौन है
सामने बहन,भाई, कच्चे मकान को देख
खुद को खुद से समेट लेता हूँ
जिम्मेदारियों की जंजीर लटका कर
रेलवे स्टेशन के तरफ चल देता हूँ
बाबूजी छूटे माँ छुटी
पीछे सब सपने रह जाते हैं
अपनों के लिये घर का बड़ा लड़का
शहरी बाबू कहलाते हैं
खुदा एक बार तुम भी आये थे
राम के बाद कृष्ण कहलाये थे
त्रेता में तड़पे तो द्वापर में सारा प्रेम पाये थे
अच्छा होता अमीरी-गरीबी का कद ना होता
ना दिल्ली रहता, ना बंबई रहता
मैं लड़का ना रहता, तो अपने घर को रहता
:- Vipin Jha
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