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Is Registration Required for Kedarnath Yatra 2025?
Yes you must register for the Kedarnath Yatra 2025 to make sure everyone stays safe and the journey is well-organized. Registering helps the authorities keep track of the number of pilgrims and offer necessary support during the trip.
How to Register Online Registration: You can sign up using the official Uttarakhand Tourism website or app. Offline Registration: It is available at designated counters in Haridwar, Rishikesh and other key locations. Documents Required: Valid ID proof and recent photographs are necessary for registration.
Kedarnath Opening Date 2025 The temple is expected to open its doors in April 2025 following the auspicious occasion of Akshaya Tritiya. The exact date will be announced closer to the event.
Early registration is advised as the Yatra attracts thousands of devotees. By completing your Kedarnath Yatra 2025 Registration you can ensure a hassle-free and spiritually fulfilling journey.
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शुभ मुहूर्त में खुले कपाट, 11 क्विंटल फूलों से सजाया गया बाबा का दरबार, भक्तों कि एंट्री बंद
चैतन्य भारत न्यूज विश्व प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम के कपाट विधि विधान और पूजा-अर्चना के बाद खुल गए हैं। सोमवार को 5 बजे विधि-विधान पूर्वक बाबा केदार के कपाट खुले। केदारनाथ यात्रा के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर मंदिर परिसर पूरी तरह खाली रहा। हर वर्ष कपाट खुलने के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं लेकिन पिछले दो साल से कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण कपाट खुलने के दौरान महज 15-16 लोग ही मौजूद रहे। इस बार मंदिर परिसर में भक्तों के बम-बम भोले के जयघोषों की गूंजों की कमी खली। सीएम तीरथ सिंह रावत का ट्वीट उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने ट्विटर पर जानकारी देते हुए लिखा, 'विश्व प्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ धाम के कपाट आज सोमवार को प्रातः 5 बजे विधि-विधान से पूजा-अर्चना और अनुष्ठान के बाद खोल दिए गए। मेष लग्न के शुभ संयोग पर मंदिर का कपाटोद्घाटन किया गया। मैं बाबा केदारनाथ से सभी को निरोगी रखने की प्रार्थना करता हूं।' उन्होंने आगे लिखा कि, 'केदारनाथ के रावल (मुख्य पुजारी) आदरणीय श्री भीमाशंकर लिंगम् जी की अगुवाई में तीर्थ पुरोहित सीमित संख्या में मंदिर में बाबा केदार की पूजा-अर्चना नियमित रूप से करेंगे। मेरा अनुरोध है कि महामारी के इस दौर में श्रद्धालु घर में रहकर ही पूजा-पाठ और धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करें।' 11 क्विंटल फूलों से सजा मंदिर इस अवसर पर मंदिर को 11 क्विंटल फूलों से सजाया गया था। सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष तौर से ध्यान रखा गया। बता दें कोरोना महामारी के चलते चारधाम यात्रा को अस्थायी रूप से स्थगित की जा चुकी है। हालांकि, नित्यनियम से पूजा-अर्चना चलती रहेगी। सभी धामों में पूज��� पाठ से जुड़े लोगों को अंदर जाने की अनुमति रहेगी। ये भी पढ़े... भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है केदारनाथ धाम, जानिए इस ज्योतिर्लिंग का इतिहास और महत्व बद्रीनाथ धाम: कभी ये हुआ करता था भगवान शिव का निवास स्थल लेकिन विष्णु ने धोखे से कर लिया था कब्जा मुहूर्त में ही खुलेंगे चार धाम के कपाट, लॉकडाउन के कारण आम जनता नहीं कर सकेगी दर्शन! Read the full article
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वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ खुले बद्रीनाथ धाम के कपाट, कभी ये हुआ करता था भोलेनाथ का निवास, लेकिन भगवान विष्णु ने धोखे से कर लिया था कब्जा
चैतन्य भारत न्यूज केदारनाथ के बाद आज यानी 15 मई को ब्रह्ममुहूर्त बद्रीनाथ के भी कपाट खुल चुके हैं। शुक्रवार सुबह 4 बजकर 30 मिनट के शुभमहूर्त पर बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले गए। कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम में छह महीने मानव और छह महीने देव पूजा करते हैं। अगले छह महीने तक यहां श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं और फिर मंदिर के कपाट बंद हो जाएंगे। शीतकाल के दौरान देवर्षि नारद यहां भगवान नारायण की पूजा करते हैं।
गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा शुरू हो गई थी। फिर 29 अप्रैल की सुबह पूजा-अर्चना के साथ केदारनाथ के कपाट खोले गए थे। इसके बाद आज बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले गए। इस मौके पर बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी, धर्माधिकारी, अपर धर्माधिकारी व अन्य पूजा स्थलों से जुड़े 11 लोग ही शामिल हुए। कोरोना लॉकडाउन की वजह से इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब कपाट खुलते वक्त धाम में श्रद्धालु मौजूद नहीं थे। मंदिर को 10 क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया था जो बिजली की रोशनी से जगमग होकर अनूठी आभा बिखेर रहा था। कपाट खुलने के बाद वेद मंत्रों की ध्वनियों से पूरी बद्रीशपुरी गुंजायमान हो गई। बद्रीनाथ में आज होने वाला विष्णु सहस्त्रनाम पाठ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की होगी। देश को कोरोना से मुक्ति की कामना की जाएगी।
बता दें बद्रीनाथ में पहले भगवान शिव निवास करते थे लेकिन फिर यहां भगवान विष्णु रहने लगे। शिव और विष्णु एक-दूसरे के आराध्य थे। आइये आपको बताते हैं आखिर क्यों भगवान शिव को उनका निवास स्थान छोड़ना पड़ा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बद्रीनाथ में भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ निवास करते थे। एक बार भगवान विष्णु ध्यान के लिए एकांत स्थान खोज रहे थे। ऐसे में उन्हें बद्रीनाथ काफी पसंद आया। लेकिन वहां पहले से ही शंकर जी रहते थे। फिर भगवान विष्णु ने एक तरकीब खोजी। उन्होंने एक छोटे बच्चे का भेष धारण कर लिया और जोर-जोर से रोने लगे। फिर माता पार्वती ने उन्हें घर से बाहर आकर चुप कराने की कोशिश की। जैसे ही माता पार्वती उस बच्चे को घर के अंदर लेकर जाने लगीं तो भोलेनाथ को भगवान विष्णु की लीला को समझने में देर न लगी। भोलेनाथ ने माता पार्वती को मना भी किया लेकिन उन्होंने किसी की एक न सुनी। घर के अंदर लाने के बाद माता पार्वती ने उस बच्चे को थपकी देकर सुला दिया। जब बच्चा सो गया तो माता पार्वती कमरे से बाहर आ गईं। फिर बच्चे का भेष धारण किए भगवान विष्णु ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। जब भगवान शिव वापस आए तो बोले कि- मुझे ध्यान के लिए ये जगह बहुत पसंद आ गई है। आप कृपा करने परिवार सहित केदारनाथ धाम प्रस्थान करिए। भगवान विष्णु ने कहा- मैं भविष्य में अपने भक्तों को यहीं दर्शन दूंगा। बस तब से ही बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का और केदारनाथ धाम भगवान शिव का निवास स्थल बन गया। ये भी पढ़े... चारधाम यात्रा 2020: लॉकडाउन के बीच शुभ मुहूर्त में विधि विधान के साथ खुले गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट, पीएम मोदी के नाम से हुई प्रथम पूजा मुहूर्त में ही खुलेंगे चार धाम के कपाट, लॉकडाउन के कारण आम जनता नहीं कर सकेगी दर्शन! 6 माह के लिए खुले बाबा केदारनाथ धाम के कपाट, नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर यहां प्रकट हुए थे भोलेनाथ Read the full article
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6 माह के लिए खुले बाबा केदारनाथ धाम के कपाट, नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर यहां प्रकट हुए थे भोलेनाथ
चैतन्य भारत न्यूज विश्व प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम के कपाट विधि विधान और पूजा-अर्चना के बाद खुल गए हैं। बुधवार को मेंष लग्न, पुनर्वसु नक्षत्र में प्रातः 06 बजकर 10 मिनट पर विधि-विधान पूर्वक बाबा केदार के कपाट खुले। केदारनाथ यात्रा के इतिहास में यह पहला मौका है जब मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर मंदिर परिसर पूरी तरह खाली रहा। हर वर्ष कपाट खुलने के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं लेकिन इस बार कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण कपाट खुलने के दौरान महज 15-16 लोग ही मौजूद रहे। इस बार मंदिर परिसर में भक्तों के बम-बम भोले के जयघोषों की गूंजों की कमी खली।
10 क्विंटल फूलों से सजा मंदिर देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि सबसे पहले मुख्य पुजारी ने भगवान केदारनाथ की डोली की पूजा की और भोग लगाया। उसके बाद मंत्रोच्चारण के बीच मंदिर के कपाट खोले गए। फिर डोली ने मंदिर में प्रवेश किया। इसके बाद पुजारियों ने मंदिर की सफाई की, भगवान की पूजा की और भोग लगाया। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से पहली पूजा की गई। इस अवसर पर मंदिर को10 क्विंटल फूलों से सजाया गया था। सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष तौर से ध्यान रखा गया।
मंदिर और यात्रा से जुड़ी कई परंपराओं को इस बार बदलन�� पड़ा लॉकडाउन के चलते इस बार मंदिर और यात्रा से जुड़ी कई परंपराओं में बदलाव करना पड़ा। केदारनाथ मंदिर के रावल कपाट खुलने के दौरान मौजूद नहीं थे। दरअसल वह 19 अप्रैल को महाराष्ट्र से उत्तराखंड पहुंचे और अब वह ऊखीमठ में 14 दिन के क्वारंटाइन में हैं। रावल 3 मई को केदारनाथ पहुंचेंगे। केदारनाथ की डोली इस बार दो ऊखीमठ से दो दिन में ही पहुंच गई। लॉकडाउन के कारण उसे गाड़ी में लाया गया। बता दें यह दूसरा मौका है जब डोली गाड़ी में आई है। इससे पहले देश में इमरजेंसी के दौरान भी गाड़ी से डोली को लाया गया था। बता दें बद्रीनाथ धाम के कपाट पहले 30 अप्रैल को खुलने वाले थे लेकिन अब वह 15 मई को खुलेंगे।
केदारनाथ शिवलिंग माना जाता है स्वयंभू केदारनाथ देशभर में मौजूद बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ये मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखंड में मौजूद यह 1000 साल पुराना मंदिर हर साल सर्दियों के छह महीने बंद रहता है। हर साल गर्मी के दिनों में ये मंदिर भक्तों के लिए खोला जाता है। अन्य ऋतुओं में यहां का वातावरण प्रतिकूल रहता है, इस वजह से मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। करीब 6 महीने तक यहां दर्शन और यात्रा चलती है। इसके बाद कार्तिक माह यानी अक्टूबर-नवंबर में फिर कपाट बंद हो जाते हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों में यह सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बना मंदिर है, जिसे आदि शंकराचार्य ने बनवाया था। मान्यता है कि ये स्वयंभू शिवलिंग है। स्वयंभू शिवलिंग का अर्थ है कि यह स्वयं प्रकट हुआ है।
केदारनाथ धाम से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं... शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता में बताया गया है कि, प्राचीन समय में बदरीवन में विष्णुजी के अवतार नर-नारायण इस क्षेत्र में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करते थे। नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए। शिवजी ने नर-नारायण से वरदान मांगने को कहा, तब सृष्टि के कल्याण के लिए नर-नारायण ने वर मांगा कि शिवजी हमेशा इसी क्षेत्र में रहें। शिवजी ने कहा कि अब से वे यहीं रहेंगे और ये क्षेत्र केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाएगा। शिवजी ने नर-नारायण को वरदान देते हुए कहा था कि जो भी भक्त केदारनाथ के साथ ही नर-नारायण के भी दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होगा और उसे अक्षय पुण्य मिलेगा। शिवजी ज्योति स्वरूप में यहां स्थित शिवलिंग में समा गए। ये भी पढ़े... भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है केदारनाथ धाम, जानिए इस ज्योतिर्लिंग का इतिहास और महत्व बद्रीनाथ धाम: कभी ये हुआ करता था भगवान शिव का निवास स्थल लेकिन विष्णु ने धोखे से कर लिया था कब्जा मुहूर्त में ही खुलेंगे चार धाम के कपाट, लॉकडाउन के कारण आम जनता नहीं कर सकेगी दर्शन! Read the full article
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