#Daagh Dehlvi
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Love Shayari
There are a whole lot of renowned writers who wrote shayari for us. We in shayariforest.in share these shayaris for you.
List of all the renowned famous shayari writer :
1. Mirza Ghalib
2. Faiz Ahmad Faiz
3. Ahmad Faraz
4. Wasim Barelvi
5. Daagh Dehlvi
6. Firaq Gorakhpuri
7. Nida Fazli
8. Meeraji
9. Sahir Ludhianvi
10. Jigar Moradabadi
11. Dr Muhammad Iqbal
12. Bashir Badr
13. Jaun Elia
14. Mir Taqi Mir
15. Qateel Shifai
16. Akhlaq Mohammed Khan
17. Dushyant Kumar
18. Gulzar
19. Akbar Allahabadi
20. Munawwar Rana
21. Rahat Indori
22. Javed Akhtar
Shayari is for revealing the feeling of love. That is why they wrote love shayari, sad shayari for us.
Love Shayari
वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी,
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते..
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी.
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
बेशूमार मोहब्बत होगी उस बारिश की बूँद को इस ज़मीन से, यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे इतना गिर जाता है!
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन,
ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन!
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ । तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।
इश्क़ की तलाश में क्यों निकलते हो तुम, इश्क़ खुद तलाश लेता है जिसे बर्बाद करना होता है।
तुझ से बिछड़ कर कब ये हुआ कि मर गए, तेरे दिन भी गुजर गए और मेरे दिन भी गुजर गए.
आऊं तो सुबह, जाऊं तो मेरा नाम शबा लिखना, बर्फ पड़े तो बर्फ पे मेरा नाम दुआ लिखना
वो शख़्स जो कभी मेरा था ही नही, उसने मुझे किसी और का भी नही होने दिया.
सालों बाद मिले वो गले लगाकर रोने लगे, जाते वक्त जिसने कहा था तुम्हारे जैसे हज़ार मिलेंगे.
जब भी आंखों में अश्क भर आए लोग कुछ डूबते नजर आए चांद जितने भी गुम हुए शब के सब के इल्ज़ाम मेरे सर आए
जिन दिनों आप रहते थे, आंख में धूप रहती थी अब तो जाले ही जाले हैं, ये भी जाने ही वाले हैं.
जबसे तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ लगाई है मीठा सा गम है, और मीठी सी तन्हाई है.
वक्त कटता भी नही वक्त रुकता भी नही दिल है सजदे में मगर इश्क झुकता भी नही
एक बार जब तुमको बरसते पानियों के पार देखा था यूँ लगा था जैसे गुनगुनाता एक आबशार देखा था तब से मेरी नींद में बसती रहती हो बोलती बहुत हो और हँसती रहती हो.
होती नही ये मगर हो जाये ऐसा अगर तू ही नज़र आए तू जब भी उठे ये नज़र
मेरा ख्याल है अभी, झुकी हुई निगाह में खिली हुई हँसी भी है, दबी हुई सी चाह में मैं जानता हूं, मेरा नाम गुनगुना रही है वो यही ख्याल है मुझे, के साथ आ रही है वो
तुम्हें जिंदगी के उजाले मुबारक अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं तुम्हें पा के हम खुद से दूर हो गए थे तुम्हें छोड़कर अपने पास आ गए हैं
उतर रही हो या चढ़ रही हो ? क्या मेरी मुश्किलों को पढ़ रही हो ?
सुरमे से लिखे तेरे वादे आँखों की जबानी आते हैं मेरे रुमालों पे लब तेरे बाँध के निशानी जाते हैं
तेरे इश्क़ में तू क्या जाने कितने ख्वाब पिरोता हूं एक सदी तक जागता हूं मैं एक सदी तक सोता हूं
गुल पोश कभी इतराये कहीं महके तो नज़र आ जाये कहीं तावीज़ बनाके पहनूं उसे आयत की तरह मिल जाये कहीं
पता चल गया है के मंज़िल कहां है चलो दिल के लंबे सफ़र पे चलेंगे सफ़र ख़त्म कर देंगे हम तो वहीं पर जहाँ तक तुम्हारे कदम ले चलेंगे
उम्मीद तो नही फिर भी उम्मीद हो कोई तो इस तरह आशिक़ शहीद हो
कोई आहट नही बदन की कहीं फिर भी लगता है तू यहीं है कहीं वक्त जाता सुनाई देता है तेरा साया दिखाई देता है
तू समझता क्यूं नही है दिल बड़ा गहरा कुआँ है आग जलती है हमेशा हर तरफ धुआँ धुआँ है
टकरा के सर को जान न दे दूं तो क्या करूं कब तक फ़िराक-ए-यार के सदमे सहा करूं मै तो हज़ार चाहूँ की बोलूँ न यार से काबू में अपने दिल को न पाऊं तो क्या करूं
एक बीते हुए रिश्ते की एक बीती घड़ी से लगते हो तुम भी अब अजनबी से लगते हो
प्यार में अज़ीब ये रिवाज़ है, रोग भी वही है जो इलाज है.
जाने कैसे बीतेंगी ये बरसातें माँगें हुए दिन हैं, माँगी हुई रातें.
ऐसा कोई ज़िंदगी से वादा तो नही था तेरे बिना जीने का इरादा तो नही था.
वो बेपनाह प्यार करता था मुझे गया तो मेरी जान साथ ले गया
झुकी हुई निगाह में, कहीं मेरा ख्याल था दबी दबी ��ँसी में इक, हसीन सा गुलाल था मै सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो न जाने क्यूं लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो
इस दिल में बस कर देखो तो ये शहर बड़ा पुराना है हर साँस में कहानी है हर साँस में अफ़साना है
कोई वादा नही किया लेकिन क्यों तेरा इंतज़ार रहता है बेवजह जब क़रार मिल जाए दिल बड़ा बेकरार रहता है
धीरे-धीरे ज़रा दम लेना प्यार से जो मिले गम लेना दिल पे ज़रा वो कम लेना
दबी-दबी साँसों में सुना था मैंने बोले बिना मेरा नाम आया पलकें झुकी और उठने लगीं तो हौले से उसका सलाम आया
खून निकले तो ज़ख्म लगती है वरना हर चोट नज़्म लगती है.
उड़ते पैरों के तले जब बहती है जमीं मुड़के हमने कोई मंज़िल देखी तो नही रात दिन हम राहों पर शामो सहर करते हैं राह पे रहते हैं यादों पे बसर करते हैं
इतना लंबा कश लो यारो, दम निकल जाए जिंदगी सुलगाओ यारों, गम निकल जाए
शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आपकी कमी सी है
ख़ामोश रहने में दम घुटता है और बोलने से ज़बान छिलती है डर लगता है नंगे पांव मुझे कोई कब्र पांव तले हिलती है
Sad Shayari
तन्हाई अच्छी लगती है
सवाल तो बहुत करती पर,. जवाब के लिए ज़िद नहीं करती..
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
"खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते, बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते !"
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता,
हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।
टूटी फूटी शायरी में लिख दिया है डायरी में आख़िरी ख्वाहिश हो तुम लास्ट फरमाइश हो तुम
मुस्कुराना, सहते जाना, चाहने की रस्म है ना लहू ना कोई आँसू इश्क़ ऐसा ज़ख्म है
हमने देखी है उन आँखों की खुशबू हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
ख्वाबी ख्वाबी सी लगती है दुनिया आँखों में ये क्या भर रहा है मरने की आदत लगी थी क्यूं जीने को जी कर रहा है
कहीं किसी रोज यूं भी होता हमारी हालत तुम्हारी होती जो रातें हमने गुजारी मरके वो रातें तुमने गुजारी होती
उम्मीद भी अजनबी लगती है और दर्द पराया लगता है आईने में जिसको देखा था बिछड़ा हुआ साया लगता है
कोई तो करता होगा हमसे भी खामोश मोहब्बत.. किसी का हम भी अधूरा इश्क रहे होंगे…
आखिरी नुकसान था तू जिंदगी में, तेरे बाद मैंने कुछ खोया ही नहीं..
सब खफा हैं मेरे लहजे से, पर मेरे हालात से वाकिफ कोई नहीं..
तन्हाइयां कहती हैं कोई महबूब बनाया जाए, जिम्मेदारियां कहती हैं वक़्त बर्बाद बहुत होगा..
मेरे कंधे पर कुछ यूं गिरे उनके आंसू , कि सस्ती सी कमीज़ अनमोल हो गई..
जर्रा जर्रा समेट कर खुद को बनाया है मैंने, मुझसे ये ना कहना बहुत मिलेंगे तुम जैसे..
बहुत करीब से अनजान बनके गुजरा है वो शख्स, जो कभी बहुत दूर से पहचान लिया करता था..
उतार कर फेंक दी उसने तोहफे में मिली पायल, उसे डर था छनकेगी तो याद जरूर आऊंगा मै..
सब तारीफ कर रहे थे अपने अपने महबूब का, हम नीद का बहाना बना कर महफ़िल छोड़ आए..
वो हमे भूल ही गए होंगे भला इतने दिनों तक कौन खफा रहता है..
आज थोड़ी बिगड़ी है कल फिर सवांर लेंगे जिंदगी है जो भी होगा संभाल लेंगे…
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आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले
- daagh dehelvi
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I have procured the habit of filling my walls with all the quotes and little lines from books and other sources that touch my heart. This sher by Daagh Sahib is one such that I happened to come across today.
Shab-e-visaal hai gul kar do in chiraagon ko
Khushi ki bazm mein kya kaam jalne walon ka
- Daagh Dehlvi
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Daagh Dehlvi (داغ دہلوی)
آنکھ لگتی ہے تو کہتے ہیں کہ نیند آئی ہے
آنکھ اپنی جو لگی، چین نہیں، خواب نہیں
اس شعر میں آنکھ لگنا دو بار استعمال کیا گیا ہے۔ پہلے مصرع میں "آنکھ لگنا" سے مراد سونا ہے اور دوسرے مصرع میں "آنکھ لگنا" سے مراد عشق میں مبتلا ہونا ہے۔ یہاں دونوں جگہ آنکھ لگنا بطور فعل آیا ہے۔
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نہ ہمت نہ قسمت نہ دل ہے نہ آنکھیں
نہ ڈھونڈا نہ پایا نہ سمجھا نہ دیکھا
Na himat na qismat na dil hai na aankhein
Na dhoonda na paya na samjha na dekha
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اقبالؒ اور داغؔ سے اصلاح
1891ء میں علامہ اقبالؒ نے مڈل کا امتحان پاس کیا اور نویں جماعت میں داخل ہوئے۔ اس وقت ان کی عمر چودہ پندرہ سال تھی۔ سوال پیدا ہوتا ہے کہ انہوں نے شعر کہنے کب شروع کیے۔ یکتا حقانی امروہوی اپنی کتاب سیرت اقبال میں تحریر کرتے ہیں کہ ان کی طبیعت کا رجحان نوعمری ہی سے شعر و شاعری کی طرف تھا۔ بچپن میں وہ اکثر فقرے ایسے بول جاتے جو کسی نہ کسی بحر یا وزن میں ہوتے تھے۔ اس کے بعد سکول میں اکثر چھوٹی چھوٹی غزلیں کہا کرتے تھے اور ان کو کسی قابل نہ سمجھ کر پھاڑ کر پھینک دیا کرتے۔ لیکن اس کے بعد جوں جوں ان کی سید میر حسن سے وابستگی بڑھی تو شاعری کی تحریک سید میر حسن کے فیضان صحبت سے ہوئی اور انہوں نے ابتدائی زمانہ میں سید میر حسن ہی سے اصلاح لی۔
یہ بات سید میر حسن کے چھوٹے بیٹے اور اقبالؒ کے ہم جولی، سید ذکی شاہ بھی اپنے بیان میں کہتے ہیں کہ اقبالؒ نے اپنی ابتدائی مشق میں غزلوں کی اصلاح میں میرے والد سے فیض حاصل کیا، جس کا وہ اکثر ذکر کیا کرتے تھے۔ مگر ہمارے سامنے اقبالؒ کا ایسا بیان بھی ہے جس میں انہوں نے ارشاد کیا ہے کہ شاہ صاحب کے احترام کے پیشِ نظر وہ ان کے روبرو شعر کہنے کی جرأت نہ کرتے تھے۔ ممکن ہے سید میر حسن کے فیضان صحبت سے اقبالؒ کو شاعری کی تحریک ہوئی ہو۔ مگر یہ کہنا شاید درست نہیں کہ سید میر حسن فنِ شعر گوئی میں اقبالؒ کے استادِ اول تھے۔ اگر اقبالؒ ابتدائی مراحل میں ان سے اصلاح لیتے تھے تو پھر انہیں ان مراحل میں داغؔ کی شاگردی اختیار کرنے کی کیا ضرورت تھی۔ اس بات کا بھی کوئی ثبوت نہیں کہ اقبالؒ نے سید میر حسن کے مشورہ سے داغؔ کی شاگردی اختیار کی۔ اقبالؒ نے 1893ء میں میٹرک کے امتحان میں فرسٹ ڈویژن لے کر کامیابی حاصل کی اور تمغہ و وظیفہ بھی پائے۔ تب ان کی عمر سولہ برس تھی۔
میٹرک کا نتیجہ اسی برس چار مئی کو نکلا اور وہ پانچ مئی کو اسکاچ مشن کالج میں داخل ہو گئے۔ تب اسکاچ مشن سکول میں انٹرمیڈیٹ کی کلاسیں جاری ہو گئی تھیں اور اس کا نام اسکاچ مشن کالج رکھ دیا گیا تھا۔ اس لیے اقبالؒ نے میٹرک پاس کرنے کے بعد ایف اے کی تعلیم وہیں جاری رکھی۔ اقبالؒ کی چند پرانی غزلیں جو رسالہ زبان دہلی کے شمارہ نومبر 1893ء اور بعد کے شماروں میں شائع ہوئیں، سے ظاہر ہے کہ وہ نہ صرف سولہ سترہ سال کی عمر میں اچھی غزلیں کہنے لگے تھے بلکہ ان کی غزلیں دہلی کے رسالوں کی زینت بھی بنتی تھیں۔ ان کی جو غزل زبان دہلی کے شمارہ فروری 1894ء میں شائع ہوئی، اس کا مقطع ہے.
گرم ہم پر کبھی ہوتا ہے جو وہ بت اقبال
حضرتِ داغ کے اشعار سنا دیتے ہیں
اب سوال پیدا ہوتا ہے کہ اقبالؒ نے میرزا خان داغ (1831ء تا 1905ئ) کی شاگردی کب اختیار کی؟ زبان دہلی کے شمارہ نومبر 1893ء میں، بقول پروفیسر حمید احمد خان، اقبالؒ کو تلمذ بلبلِ ہند حضرت داغ دہلوی، لکھا گیا ہے۔ اور اس شمارے میں اقبالؒ کی غزل ان کی دریافت شدہ غزلوں میں سے قدیم ترین ہے۔ اس لیے کہا جا سکتا ہے کہ اقبالؒ ایف اے کے سال اول کے زمانے میں داغؔ کے شاگرد ہوئے۔ 1909ء میں فوق نے جو اقبالؒ کے مختصر حالات زندگی تحریر کیے ہیں، ان میں درج ہے کہ اقبالؒ نے ایف اے کے طالب علمی کے دنوں میں داغؔ سے اصلاح لینی شروع کی۔
سری رام نے اپنی تصنیف میں لکھا ہے کہ اقبالؒ نے ابتدا میں چند غزلیں میرزا ارشد گورگانی کو دکھائیں اور پھر داغؔ سے بذریعہ خط و کتابت تلمذ اختیار کیا۔ مگر یہ درست نہیں کیونکہ ارشد گورگانی سے اقبالؒ کی پہلی ملاقات بھاٹی دروازہ لاہور کے ایک مشاعرہ میں 1895ء کے بعد ہوئی۔ سر عبدالقادر بانگ درا کے دیباچے میں تحریر کرتے ہیں: ’’(اقبالؒ) ابھی سکول ہی میں پڑھتے تھے کہ کلامِ موزوں زبان سے نکلنے لگا۔ پنجاب میں اردو کا رواج اس قدر ہو گیا تھا کہ ہر شہر میں زبان دانی اور شعر و شاعری کا چرچا کم و بی�� موجود تھا۔ سیالکوٹ میں بھی شیخ محمد اقبال کی طالب علمی کے دنوں میں ایک چھوٹا سا مشاعرہ ہوتا تھا۔ اس کے لیے اقبال نے کبھی کبھی غزل لکھنی شروع کر دی۔
شعرائے اردو میں ان دنوں نواب میرزا خان صاحب داغ دہلوی کا بہت شہرہ تھا اور نظام دکن کے استاد ہونے سے ان کی شہرت اور بھی بڑھ گئی تھی۔ لوگ جو ان کے پاس جا نہیں سکتے تھے، خط و کتابت کے ذریعہ دور ہی سے ان سے شاگردی کی نسبت پیدا کرتے تھے۔ غزلیں ڈاک میں ان کے پاس جاتی تھیں اور وہ اصلاح کے بعد واپس بھیجتے تھے۔ پچھلے زمانے میں جب ڈاک کا یہ انتظام نہ تھا کسی شاعر کو اتنے شاگرد کیسے میسر آ سکتے تھے۔ اب اس سہولت کی وجہ سے یہ حال تھا کہ سینکڑوں آدمی ان سے غائبانہ تلمذ رکھتے تھے اور انہیں اس کام کے لیے ایک عملہ اور محکمہ رکھنا پڑتا تھا۔ شیخ محمد اقبال نے بھی انہیں خط لکھا اور چند غزلیں اصلاح کے لیے بھیجیں۔
اس طرح کی گنجائش بہت کم ہے اور یہ سلسلہ تلمذ کا بہت دیر قائم نہیں رہا۔ البتہ اس کی یاد دونوں طرف رہ گئی۔ داغؔ کا نام اردو شاعری میں ایسا پایہ رکھتا ہے کہ اقبال کے دل میں داغؔ سے اس مختصر اور غائبانہ تعلق کی بھی قدر ہے اور اقبال نے داغؔ کی زندگی ہی میں قبول عام کا وہ درجہ حاصل کر لیا تھا کہ داغؔ مرحوم اس بات پر فخر کرتے تھے کہ اقبال بھی ان لوگوں میں شامل ہیں، جن کے کلام کی انہوں نے اصلاح کی۔ مجھے خود دکن میں ان سے ملنے کا اتفاق ہوا اور میں نے خود ایسے فخریہ کلمات ان کی زبان سے سنے۔‘‘
جاوید اقبال
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زیست سے تنگ ہو اے داغؔ تو جیتے کیوں ہو جان پیاری بھی نہیں جان سے جاتے بھی نہیں - Zeest se taang ho ay Dagh tou jeet kyu ho jaan pyarri bhi nahi jaan se jaate bhi nahi - if you are distressed by life, Oh Dagh! Why do you live You don't even love life, don't even get over it
داغؔ دہلوی - Dagh Dehlvi
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Dil ko kyaa ho gaya khuda jaane, Kyun hai aisa udaas kya jaane. Keh diya maine haal-e-dil apna, Iss ko tum jaano ya khuda jaane. Jaante jaante hi jaanega, Mujh main kya hai abhi woh kya jaane Tum na paaoge saada dil mujh sa, Jo taghaful ko bhi haya jaane.
Daagh Dehlvi
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ਟੋਕਰੀ
What do I gain by ignoring you? My pride is so lofty it ceases to bow before You. (How can these envious people know about kind attitude? Their pride of beauty does not allow them to be humble.) O bob you have never served your Beloved, what do you know of nishkaam? (O shaikh (saint) you have never bowed your head on your beloved’s doorstep, what you may know about how to perform your prayers?) Although your eyes are wide and bright with wonder, you cannot understand the delight of true sight. (Although your face is glowing bright like a candle but even then you cannot understand the delight of being burned in love.) Those who have accepted You do not recognise the Agan Sagar, but you ritualistically bathe not only your toe but your entirety. (Those who have started their love journey, they don’t care about the ups and downs (dilemma) of the path of love.) Ask from a mother if you want to know the sorrow of separation. Self-righteous beings cannot touch upon the fragility of Bairaag. (Ask from a drinker if you want to know the taste of wine. Sanctimonious people don’t have any idea about the delight of the taste of wine.) O bobfan what good is your breathe without it's devotion to Your Name? (O Prophet Khyzer what good is this endless life of yours as your are not martyred (Who have achieved eternity)) The one who's own home is up in flames, what could she know about saving another? (The one who is not aware of herself, what possibly she may know about my heart’s secret (Love).) What brunt have you bared that someone like me could gain realisation of? (What great tragedies Dagh has suffered in his life, how a privileged person like you may know about that?) • JusKeeRut • 11:00am • 05•06•17•
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جب تم ہوتے تب بھی ہم بیتاب رہتے، لیکن تمہاری آنکھیں میرے چہرے پہ مسکراہٹ لے آتی ... شاید!!!
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हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
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Samajh kar rehm dil tum ko diya tha hum ne dil apna
Magar tum toh bala nikle ghazab nikle sitam nikle
— Daagh Dehlvi
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Daagh Dehlvi (داغ دہلوی)
جو ہو سکتا ہے اس سے وہ کسی سے ہو نہیں سکتا
مگر دیکھو تو پھر کچھ آدمی سے ہو نہیں سکتا
محبت میں کرے کیا کچھ کسی سے ہو نہیں سکتا
مرا مرنا بھی تو میری خوشی سے ہو نہیں سکتا
الگ کرنا رقیبوں کا الٰہی تجھ کو آساں ہے
مجھے مشکل کہ میری بیکسی سے ہو نہیں سکتا
کیا ہے وعدۂ فردا انہوں نے دیکھیے کیا ہو
یہاں صبر و تحمل آج ہی سے ہو نہیں سکتا
یہ مشتاقِ شہادت کس جگہ جائیں کسے ڈھونڈیں
کہ تیرا کام قاتل جب تجھی سے ہو نہیں سکتا
لگا کر تیغ قصہ پاک کیجئے دادخواہوں کا
کسی کا فیصلہ کر منصفی سے ہو نہیں سکتا
مرا دشمن بظاہر چار دن کو دوست ہے تیرا
کسی کا ہو رہے یہ ہر کسی سے ہو نہیں سکتا
دمِ پرسش کہو گے کیا وہاں جب یاں یہ صورت ہے
ادا اک حرفِ وعدہ نازکی سے ہو نہیں سکتا
نہ کہئے گو کہ حال دل مگر رنگ آشنا ہیں ہم
یہ ظاہر آپ کی کیا خامشی سے ہو نہیں سکتا
کیا جو ہم نے ظالم کیا کرے گا غیر منہ کیا ہے
کرے تو صبر ایسا آدمی سے ہو نہیں سکتا
چمن میں ناز بلبل نے کیا جو اپنی نالے پر
چٹک کر غنچہ بولا کیا کسی سے ہو نہیں سکتا
نہیں گر تجھ پہ قابو دل ہے پر کچھ زور ہو اپنا
کروں کیا یہ بھی تو نا طاقتی سے ہو نہیں سکتا
نہ رونا ہے طریقے کا نہ ہنسنا ہے سلیقے کا
پریشانی میں کوئی کام جی سے ہو نہیں سکتا
ہوا ہوں اس قدر محجوب عرضِ مدعا کر کے
کہ اب تو عذر بھی شرمندگی سے ہو نہیں سکتا
غضب میں جان ہے کیا کیجے بدلہ رنجِ فرقت کا
بدی سے کر نہیں سکتے خوشی سے ہو نہیں سکتا
مزا جو اضطرابِ شوق سے عاشق کو ہے حاصل
وہ تسلیم و رضا و بندگی سے ہو نہیں سکتا
خدا جب دوست ہے اے داغؔ کیا دشمن سے اندیشہ
ہمارا کچھ کسی کی دشمنی سے ہو نہیں سکتا
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yeah no, i'm definitely not thinking about and swooning at the idea of N reciting shers* from Mirza Ghalib and Daagh Dehlvi's ghazals**. absolutely not.
*a Sher is a rhyming couplet; a Ghazal contains anywhere between five to fifteen shers
**a Ghazal is a love poetry or an ode that originated from Arabic poetry, and is usually written in Arabic, Persian, Urdu (and sometimes in Hindi)
#the wayhaven chronicles#twc#n sewell#nate sewell#nat sewell#n sewell x detective#nate x detective#nat x detective#idk the image of N casually reciting a couple shers to my polyglot detective in a whisper-like tone is doing things to me#bye#not-sewell stop stuffing perfection in ur already perfect fav character challenge#seraphinitegames
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