#११
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thakurbabanews · 7 months ago
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बाँकेको कोहलपुरमा सरकारी डेटा सेन्टर निर्माण गर्न ११ करोड बजेट
१३ असार, बाँके : बाँकेको कोहलपुरमा निर्माण हुने सरकारी डेटा सेन्टरका लागि ११ करोड ७० लाख रुपैयाँ बजेट विनियोजन गरिएको छ । आर्थिक वर्ष २०८१/८२ को बजेट तथा कार्यक्रममा समावेश भएको उक्त परियोजनाका लागि सो बजेट छुट्याइएको हो । यस बाहेक ललितपुरमा डेटा सेन्टर र इन्टरनेट एक्स्चेन्ज सेन्टर समेत निर्माण गर्ने सरकारी योजना छ । जसका लागि आगामी आर्थिक वर्षमा १६ करोड ९१ लाख रुपैयाँ बजेट खर्चिने कार्यक्रम छ…
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mnsgranth · 2 years ago
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वाल्मीकि रामायण- बालकाण्ड सर्ग- ११
बालकाण्ड सर्ग- ११ यह महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत का महाकाव्य और स्मृति का एक अंग है। और पापो का नाश कराने वाले श्रीरामचन्द्र जी के जीवन की गाथा है।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण- बालकाण्ड सर्ग- ११ भावार्थ सहित ॥ 卐 ॥॥ श्री गणेशाय नमः ॥॥ श्री कमलापति नम: ॥॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥॥ श्री वाल्मीकि रामायण ॥ दान करें Paytm-1 Paytm-2 PayPal  मुख पृष्ठ  अखंड रामायण  वाल्मीकि रामायण  बालकाण्ड सर्ग- ११  वाल्मीकि रामायण(भावार्थ सहित)सब एक ही स्थान पर बालकाण्ड सर्ग- ११ बालकाण्डम् एकादशः सर्गः (सर्ग 11) ( सुमन्त्र के कहने से राजा दशरथ का…
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gukkvia · 7 months ago
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Pack de nicknames soft, dark e coquette para recepção. Repostagem com os créditos
© 𝑙uludogoj✿zin .
soft
🍋‍🟩ິ᭪ ׄ ꯲ ׅ ׄ ‎𝕣ᧉᩮᧉ𝕡ᩮ⍺̃𑄝 ׄ ᗜ ׅ ͡✿
♡ ׄ ׅ ິ 𝚁֩͜͞𝙴͜͞𝙲͜͞𝙴፝֠֩͜͞𝙿͜͞𝙲̧͜͞𝙰֠͜͞���� ׄ ⬣ ׅ 🥛ᬉ
dark
𓆤 ׅ ׅ  𝓡𝖾𝖼𝗲𝗉𝖼̧𝖺̃⬟ ─̸ 🕷⃟⬤ 
𝟔𝟔̶𝟔̷⃞ ׄ ──━ 𝕽𝗰̶̷𝗉𝖼̧𝖺̃𝗼 🍷⃢ 﨧͟韛 
coquette
꯴ ꯴ 🥄 𝗋ᧉ𝖼ᧉ𝗉𝖼̧𝖺̃𖹭 짇 ♡ ︵᷼
❀ ─⋯⋯ ৎ 𝗋ᧉ𝖼ᧉׅ𝗉𝖼̧⍺̃𑄘 ׄ 🍰 ⃞ ११
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janaknandini-singh999 · 3 months ago
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अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
��गवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१॥
सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिष मोषिणि घोषरते।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते।
मधुमधुरे मधुकैटभ गञ्जिनि कैटभ भञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥
अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुंड गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥५॥
अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनाद महोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥६॥
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भव शोणित बीजलते।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥७॥
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हतावटुके।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥८॥
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥९॥
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुर शिञ्जितमोहित भूतपते।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१०॥
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥११॥
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१२॥
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राज��ुते।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३॥
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४॥
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।
निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५॥
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६॥
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८॥
कनकलसत्कल सिन्धुजलैरनु षिञ्चति ते गुण रङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भ तटीपरिरम्भ सुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९॥
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २०॥
अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।
यदुचितमत्र भवत्युररी कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१॥
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gotenny · 2 years ago
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Plaquinha feitas originalmente pelo designer guccion on top ou Yeonlaplece, peço que por gentileza não remova nem um símbolo ou retire os créditos ao usar a plaquinha.
ㅤㅤㅤ ㅤㅤㅤㅤ ᷼᷼⏜᷼᷼⌣᷼⏜᷼᷼⌣᷼⏜᷼ ਏਓ ㅤׂ ㅤִ ㅤׂㅤ ◍ᰥ ㅤ ݃ㅤ 🌸̷ ㅤ ׂ ㅤ ִ ㅤ 予 ॺㅤ ۟ㅤ ִㅤ𓏸̷ㅤ𝗟αlꪱsα 𝗠αnobαlㅤ❊̷ㅤִ ㅤׂㅤ 𖦹̳ २२ㅤׂㅤ ִㅤ❀ㅤɥou αrᧉ onlɥ mꪱnᧉㅤ݃ㅤ ִㅤ দ ══════ 🌸̸̸̶̶̶̶̷ㅤ݃ ㅤ ִㅤ ݃ㅤ ⨾ dꪱssᧉrtαçα̃o. ─── fαlα. ਏਉㅤ ݃ㅤ ִ ㅤׂㅤ ११ 𝗿ᧉvꪱsαdo : 𝘀ꪱm / 𝗻α̃o. ਏਉㅤ ݃ㅤ ִ ㅤׂㅤ ११ 𝗰ouplᧉ : ᧉscrevα. ਏਉㅤ ݃ㅤ ִ ㅤׂㅤ ११ 𝗱ᧉsꪱgnᧉ𝗿 : ɥᧉonlαplᧉcᧉ.
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shiv412 · 7 months ago
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#सफल_हुआ_विशाल_भंडारा
संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में उनके सभी ११ सतलोक आश्रमों में ६२७ वें कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में किया गया भंडारा सुचारू रूप से संपन्न हो गया जिसमे देश विदेश के लाखों लोगों ने शिरकत की । इस भंडारे के दौरान दहेजमुक्त विवाह, रक्तदान शिविर आदि का आयोजन किया गया ।
#SantRampalJiMaharaj #bhandara #langar #feast
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taapsee · 4 months ago
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#भगवान_कौन_है #GodMorningFriday
पवित्र गुरुग्रन्थ साहेब में प्रमाण,
कबीर साहेब भगवान
गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि -
हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार। ११ नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक ।
#SantRampalJiMaharaj
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bluetreeturtleoaf · 1 year ago
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#श्रीमद्भगवद्गीता_का_यथार्थ_ज्ञान
#RealKnowledge_Of_Gita
#सनातन_ज्ञान_महान
📚 गीताको उपदेश कसले दिएको हो?
कृष्णजीले
वा
काल ब्रह्मले
विचार गरौँ
गीता अध्याय ११ श्लोक ३२ मा गीता ज्ञानदाता स्वयं भन्दछन् - अर्जुन, म काल हुँ, लोकलाई नाश गर्न भनी अहिले प्रवृत्त (प्रकट) भएको छु।
गीता अध्याय ११ श्लोक ३२: -
"कालः, अस्मि, लोकक्षयकृत्, प्रवृद्धः, लोकान्, समाहर्तुम्, इह, प्रवृत्तः,
ऋते, अपि, त्वाम्, न, भविष्यन्ति, सर्वे, ये, अवस्थिताः, प्रत्यनीकेषु, योधाः।।३२।।”
अनुवाद: -
लोकलाई नाश गर्ने आकार बढाएको म काल हुँ। यति वेला लोकहरूलाई नष्ट गर्नका लागि प्रकट भएको छु। प्रतिपक्षीको सेनामा स्थित जो योद्धाहरू छन् उनीहरू तिमी बिना पनि जीवित रहने छैनन्, म सबैलाई खाने छु।
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sanatanbhakti-blog · 11 months ago
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buzz-london · 11 months ago
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*कुछ ऐसी दवायें भी होती हैं , जिनके उपयोग से बीमारियाँ नहीं होती हैं ———* *1. कसरत भी एक दवाई है* *२ . सुबह शाम घूमना भी एक दवाई है* *३ . व्रत रखना भी एक दवाई है* *४ . परिवार के साथ भोजन करना भी एक दवाई है* *५ . हँसी मज़ाक़ करना भी एक दवाई है* *६ . गहरी नींद भी एक दवाई है* *७ . अपनों के संग वक़्त बिताना भी एक दवाई है* *८ . ख़ुश रहना भी एक दवाई है* *९ . कुछ मामलों में चुप रहना भी एक दवाई है* *१०. लोगों का सहयोग करना भी एक दवाई है* *११ . और एक अच्छा दोस्त तो पूरी की पूरी दवाई की दुकान है* *सदा खुश रहें मुस्कुराते रहें* *🙏🙏*
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pinky-nayak-134 · 1 year ago
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#भगवद्गीताको_यथार्थ_ज्ञान
गीता अध्याय ११ श्लोक ३२ मा गीता ज्ञानदाता स्वयं भन्दछन् - अर्जुन, म काल हुँ, लोकलाई नाश गर्न भनी अहिले प्रवृत्त (प्रकट) भएको छु।
Sant Rampal Ji Maharaj
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Batao cup Kahan rakha hai... Chalo le aate Hain un
११+११ logon ko आपस में खेल खेलने दो ।
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jayshrisitaram108 · 1 year ago
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🙏🌹 *🐍ॐजय श्री महाकाल🐍* 🌹🙏
*꧁_ ॐ नमः पार्वती पतये*
*हर हर महादेव।_꧂*
🔱🕉🔱
🙏🏻🚩 🚩🙏🏻
*स्वयंभू दक्षिणमुखी राजाधिराज मृत्युलोकाधिपति भूतभावन अवंतिकानाथ बाबा श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग जी का संध्या श्रृंगार आरती दर्शन*
🌹🌹🚩🚩
*०६/११/ २०२३ सोमवार !*
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authorkoushik · 1 year ago
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Bhadrakali Kavacha from Brahmavaivarta Purana
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।। नारद उवाच।। कवचं श्रोतुमिच्छामि तां च विद्यां दशाक्षरीम् ।। नाथ त्वत्तो हि सर्वज्ञ भद्रकाल्याश्च साम्प्रतम् ।। १ ।।
नारायण उवाच ।। शृणु नारद वक���ष्यामि महाविद्यां दशाक्षरीम् ।। गोपनीयं च कवचं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ।। २ ।। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहेति च दशाक्षरीम् ।। दुर्वासा हि ददौ राज्ञे पुष्करे सूर्य्यपर्वणि ।।३।। दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिः कृता पुरा ।। पञ्चलक्षजपेनैव पठन्कवचमुत्तमम् ।।४।। बभूव सिद्धकवचोऽप्ययोध्यामाजगाम सः ।। कृत्स्नां हि पृथिवीं जिग्ये कवचस्य प्रभावतः ।। ५ ।।
नारद उवाच ।। श्रुता दशाक्षरी विद्या त्रिषु लोकेषु दुर्लभा ।। अधुना श्रोतुमिच्छामि कवचं ब्रूहि मे प्रभो ।। ६ ।।
नारायण उवाच ।। शृणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्र कवचं परमाद्भुतम् ।। नारायणेन यद्दत्तं कृपया शूलिने पुरा ।। ७ ।। त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च ।। तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने ।।८।। दुर्वाससा च यद्दत्तं सुचन्द्राय महात्मने ।। अतिगुह्यतरं तत्त्वं सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ।। ।।९।। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम् ।। क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने ।। 3.37.१० ।। ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदाऽवतु ।। क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तान्सदाऽवतु ।। ११ ।। क्लीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मेऽधरयुग्मकम् ।। ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदाऽवतु ।। १२ ।। ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मं सदाऽवतु ।। ॐ क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम ।। १३ ।। ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्षः सदाऽवतु ।। ॐ क्लीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदाऽवतु ।। १४ ।। ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्ठं सदाऽवतु ।। रक्तबीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तो सदाऽवतु ।। १५ ।। ॐ ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु।। ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदाऽवतु।।१६।। प्राच्यां पातु महाकाली चाग्नेय्यां रक्तदन्तिका ।। दक्षिणे पातु चामुण्डा नैर्ऋत्यां पातु कालिका ।। १७ ।। श्यामा च वारुणे पातु वायव्यां पातु चण्डिका ।। उत्तरे विकटास्या चाप्यैशान्यां साट्टहासिनी ।। १८ ।। पातूर्ध्वं लोलजिह्वा सा मायाऽऽद्या पात्वधः सदा ।। जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसूः सदा ।। १९ ।। इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ।।
सर्वेषां कवचानां च सारभूतं परात्परम् ।।3.37.२०।। सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोऽस्य प्रभावतः ।। कवचस्य प्रभावेन मान्धाता पृथिवीपतिः ।। २१ ।। प्रचेता लोमशश्चैव यतः सिद्धो बभूव ह ।। यतो हि योगिनां श्रेष्ठः सौभरिः पिप्पलायनः ।। २२ ।। यदि स्यात्सिद्धकवचः सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ।। महादानानि सर्वाणि तपांस्येवं व्रतानि व ।। ��िश्चितं कवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।। २३ ।। इदं कवचमज्ञात्वा भजेत्कालीं जगत्प्रसूम् ।। शतलक्षं प्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ।। २४ ।। इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे तृतीये गणपतिखण्डे नारदनारायणसंवादे भद्रकालीकवचनिरूपणं नाम सप्तत्रिंशत्तमोऽध्यायः ।।
nārada uvāca.. kavacaṃ śrotumicchāmi tāṃ ca vidyāṃ daśākṣarīm .. nātha tvatto hi sarvajña bhadrakālyāśca sāmpratam .. 1 ..
nārāyaṇa uvāca .. śṛṇu nārada vakṣyāmi mahāvidyāṃ daśākṣarīm .. gopanīyaṃ ca kavacaṃ triṣu lokeṣu durlabham .. 2 .. oṃ hrīṃ śrīṃ klīṃ kālikāyai svāheti ca daśākṣarīm .. durvāsā hi dadau rājñe puṣkare sūryyaparvaṇi ..3.. daśalakṣajapenaiva mantrasiddhiḥ kṛtā purā .. pañcalakṣajapenaiva paṭhankavacamuttamam ..4.. babhūva siddhakavaco'pyayodhyāmājagāma saḥ .. kṛtsnāṃ hi pṛthivīṃ jigye kavacasya prabhāvataḥ .. 5 ..
nārada uvāca .. śrutā daśākṣarī vidyā triṣu lokeṣu durlabhā .. adhunā śrotumicchāmi kavacaṃ brūhi me prabho .. 6 ..
nārāyaṇa uvāca .. śṛṇu vakṣyāmi viprendra kavacaṃ paramādbhutam .. nārāyaṇena yaddattaṃ kṛpayā śūline purā .. 7 .. tripurasya vadhe ghore śivasya vijayāya ca .. tadeva śūlinā dattaṃ purā durvāsase mune ..8.. durvāsasā ca yaddattaṃ sucandrāya mahātmane .. atiguhyataraṃ tattvaṃ sarvamantraughavigraham .. ..9..
oṃ hrīṃ śrīṃ klīṃ kālikāyai svāhā me pātu mastakam .. (head) klīṃ kapālaṃ sadā pātu (skull) hrīṃ hrīṃ hrīmiti locane .. 3.37.10 .. (eyes) oṃ hrīṃ trilocane svāhā nāsikāṃ me sadā'vatu .. (nose) klīṃ kālike rakṣa rakṣa svāhā dantānsadā'vatu .. 11 .. (teeth) klīṃ bhadrakālike svāhā pātu me'dharayugmakam .. (lips) oṃ hrīṃ hrīṃ klīṃ kālikāyai svāhā kaṇṭhaṃ sadā'vatu .. 12 .. (throat/neck) oṃ hrīṃ kālikāyai svāhā karṇayugmaṃ sadā'vatu .. (ears) oṃ krīṃ krīṃ klīṃ kālyai svāhā skandhaṃ pātu sadā mama .. 13 .. (shoulders) oṃ krīṃ bhadrakālyai svāhā mama vakṣaḥ sadā'vatu .. (chest) oṃ klīṃ kālikāyai svāhā mama nābhiṃ sadā'vatu .. 14 .. (naval) oṃ hrīṃ kālikāyai svāhā mama pṛṣṭhaṃ sadā'vatu .. (back) raktabījavināśinyai svāhā hastau sadā'vatu .. 15 .. (hands) oṃ hrīṃ klīṃ muṇḍamālinyai svāhā pādau sadāvatu.. (feet) oṃ hrīṃ cāmuṇḍāyai svāhā sarvāṅgaṃ me sadā'vatu..16.. ( all the body parts) prācyāṃ pātu mahākālī (east) cāgneyyāṃ raktadantikā .. (south east) dakṣiṇe pātu cāmuṇḍā (south) nairṛtyāṃ pātu kālikā .. 17 .. (south west) śyāmā ca vāruṇe (west) pātu vāyavyāṃ pātu caṇḍikā .. (north west) uttare vikaṭāsyā (north) cāpyaiśānyāṃ sāṭṭahāsinī .. 18 .. (north east) pātūrdhvaṃ lolajihvā sā (up) māyā''dyā pātvadhaḥ sadā .. (down) jale sthale cāntarikṣe pātu viśvaprasūḥ sadā .. 19 .. ( water, land and space) iti te kathitaṃ vatsa sarvamantraughavigraham .. sarveṣāṃ kavacānāṃ ca sārabhūtaṃ parātparam ..3.37.20.. saptadvīpeśvaro rājā sucandro'sya prabhāvataḥ .. kavacasya prabhāvena māndhātā pṛthivīpatiḥ .. 21 .. pracetā lomaśaścaiva yataḥ siddho babhūva ha .. yato hi yogināṃ śreṣṭhaḥ saubhariḥ pippalāyanaḥ .. 22 .. yadi syātsiddhakavacaḥ sarvasiddhīśvaro bhavet .. mahādānāni sarvāṇi tapāṃsyevaṃ vratāni va .. niścitaṃ kavacasyāsya kalāṃ nārhanti ṣoḍaśīm .. 23 .. idaṃ kavacamajñātvā bhajetkālīṃ jagatprasūm .. śatalakṣaṃ prajapto'pi na mantraḥ siddhidāyakaḥ .. 24 .. iti śrībrahmavaivarte mahāpurāṇe tṛtīye gaṇapatikhaṇḍe nāradanārāyaṇasaṃvāde bhadrakālīkavacanirūpaṇaṃ nāma saptatriṃśattamo'dhyāyaḥ .. I have given you the body parts and directions within brackets. you can visualize that the particular mantra or the particular goddess is protecting that body part and guarding you and pray to her and request her to protect that. example oṃ hrīṃ śrīṃ klīṃ kālikāyai svāhā me pātu mastakam - while chanting this verse visualise that goddess kaalika is protecting your head and pray to her for protection and thank her for protecting and so on.
and for directions also
prācyāṃ pātu mahākālī - goddess mahākālī protecting the devotee (you) residing in the eastern direction. and so on. This becomes a simple yet powerful sadhana. (spiritual practice)
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bhagvadgita · 1 year ago
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Verse 11.13 - Vishwarup Darshan Yoga
तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा ।
अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥ ११-१३॥
There, in the body of the God of gods, Arjuna then saw the whole universe, divided into many parts, established in one place. (11.13)
Arjuna, who had requested to see the cosmic form of Lord Krishna, was granted the divine vision to behold the entire creation within the body of the Supreme Lord. He saw all the worlds, beings, and phenomena as manifestations of the one Supreme Reality, who pervades and transcends everything. He realized that the Lord is not limited by any form or name, but is the source and support of all forms and names. He witnessed the glory and majesty of the Lord.
This verse reveals the concept of vishvarupa or the Cosmic Form of God, which is one of the most important themes in the Bhagvad Gita. The vishvarupa is a symbolic representation of the omnipresence and omnipotence of God, who can assume any form or no form at all. The vishvarupa also shows the unity and diversity of creation, which are both expressions of the same divine principle. The vishvarupa is meant to inspire awe and devotion in the devotees, who can appreciate the infinite beauty and power of God, as well as convey that the Ultimate Lord exists as a subtle divine energy that exists across all creation and supports all creation. Modern science is just beginning to talk about this Ultimate Energy. 
The verse also illustrates the difference between the ordinary vision and the Divine vision. The ordinary vision sees only the superficial aspects of Reality, such as names, forms, qualities, and actions. The Divine vision sees beyond these appearances and perceives the essence of Reality, which is God himself. The Divine vision is not attained by physical eyes, but by spiritual eyes, which are opened by Grace and faith. The Divine vision enables one to see God everywhere and in everything, and to realize one's own identity with God.
There are many similar verses from other Vedic texts that express the idea of vishvarupa or the Cosmic Form of God.
- In Rigveda (10.90) there is a famous hymn called Purusha Sukta which describes the Cosmic Person (Purusha) as the source of all creation. It says:
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥
The person has a thousand heads, a thousand eyes, a thousand feet. He pervades the earth on all sides and extends beyond it by ten fingers. (10.90.1)
- In Yajurveda (31.18) there is a verse that declares that God is one and manifold at the same time. It says:
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति ।
The wise call him by many names, though he is one alone. (31.18)
- In Atharvaveda (10.7) there is a verse that describes God as having various forms and attributes. It says:
स नो बुध्यानुवाचेति स नो बुध्यानुवाचेति ।
स नो बुध्यानुवाचेति स नो बुध्यानुवाचेति ॥
तं ब्रह्मा तं क्षत्रं तं विशं तमिन्द्रं तमरुतं
तं सोमं तं पूषनं तमिला सरस्वतीम् ॥
He instructs us, he instructs us, he instructs us, he instructs us. He is Brahma, he is Kshatra, he is Vish, he is Indra, he is Marut, he is Soma, he is Pushan, he is Ila, he is Sarasvati. (10.7.2)
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prabhupadanugas · 2 years ago
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सञ्जय उवाच एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्र्वरो हरिः | दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्र्वरम् || १ || अनेकवक्त्रनयनमनेकाअद्भुतदर्शनम् | अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् || १० || दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् | सर्वाश्र्चर्यमयं देवमनन्तं विश्र्वतोमुखम् || ११ || sañjaya uvāca evam uktvā tato rājan mahā-yogeśvaro hariḥ darśayām āsa pārthāya paramaṁ rūpam aiśvaram aneka-vaktra-nayanam anekādbhuta-darśanam aneka-divyābharaṇaṁ divyānekodyatāyudham divya-mālyāmbara-dharaṁ divya-gandhānulepanam sarvāścarya-mayaṁ devam anantaṁ viśvato-mukham Sañjaya said: O King, speaking thus, the Supreme, the Lord of all mystic power, the Personality of Godhead, displayed His universal form to Arjuna. Arjuna saw in that universal form unlimited mouths and unlimited eyes. It was all wondrous. The form was decorated with divine, dazzling ornaments and arrayed in many garbs. He was garlanded gloriously, and there were many scents smeared over His body. All was magnificent, all-expanding, unlimited. This was seen by Arjuna. PURPORT(10-11) These two verses indicate that there is no limit to the hands, mouths, legs, etc., of the Lord. These manifestations are distributed throughout the universe and are unlimited. By the grace of the Lord, Arjuna could see them while sitting in one place. That is due to the inconceivable potency of Kṛṣṇa. https://gloriousgita.com/verse/en/11/9-11 https://bhagavad-gita.org/Gita/verse-11-09.html https://bhagavad-gita.org/Gita/verse-11-10.html https://bookchanges.com/wp-content/uploads/2009/09/Bg-Chapter-11-diff.htm https://youtube.com/c/HearSrilaPrabhupada https://www.bhagavad-gita.us/famous-reflections-on-the-bhagavad-gita/ #bhagavatam #srimadbhagavatam #vishnu #vishnupuran #harekrishna #harekrsna #harekrishna #harekrisna #prabhupada #bhagavadgita #bhagavadgitaasitis #bhagavadgītā #srilaprabhupada #srilaprabhupad #srilaprabhupadaquotes #asitis #india #indian #wayoflife #religion #goals #goaloflife #spiritual #bhakti #bhaktiyoga #chant #prasadam #picoftheday #photo #beautiful #usa https://sites.google.com/view/sanatan-dharma https://m.facebook.com/HDG.A.C.Bhaktivedanta.Svami.Srila.Prabhupada.Uvaca/ https://www.instagram.com/p/CquKI4cIQNF/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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