#सोने का बंधन
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सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी भजन लिरिक्स
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं, सामान सो बरस का है, पल की खबर नहीं। सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी, ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी। छोटो सा तू, कितने बड़े अरमान तेरे, मिट्टी का तु, सोने के सब सामन हैं तेरे। मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समाएगी, ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी॥ पर तोल ले, पंची तू पिंजरा तोड़ के उड़ जा, माया महल के सारे बंधन छोड़ के उड़…
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart27 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart28
"आदि सनातन यानि मानव धर्म की पूजा व साधना"
प्रश्न 20:- शास्त्रों में कौन-से भक्ति कर्म (कर्तव्य) करने योग्य तथा कौन-से कर्म (अकर्तव्य) न करने योग्य हैं?
उत्तर :- श्रीमद्भगवत गीता में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान देने वाले प्रभु ने अपनी भक्ति/पूजा का केवल एक अक्षर ॐ (ओम्) स्मरण करने का बताया ��ै। इसके अतिरिक्त अन्य नाम (अकर्तव्य) न जाप करने वाले हैं।
गीता ��ध्याय 3 श्लोक 10-15 में यज्ञ करना (कर्तव्य करने ), योग्य भक्ति कर्म कहा है। उनमें (परम अक्षर ब्रह्म) अविनाशी परमात्मा को ईष्ट रूप में प्रतिष्ठित करने को कहा है।
> यज्ञ पाँच प्रकार की हैं:- 1. धर्म यज्ञ 2. ध्यान यज्ञ 3. हवन यज्ञ 4. प्रणाम यज्ञ 5. ज्ञान यज्ञ ।
इनको करने की विधि तत्त्वदर्शी संत बताता है। यह प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 32-33-34 में भी है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 : सच्चिदानंद घन ब्रह्म अपने मुख कमल से बोली वाणी में तत्त्वज्ञान बताता है। उससे पूर्ण मोक्ष होता है। उसको जानकर तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा। (गीता अध्याय 4 श्लोक 32)
गीता अध्याय 4 श्लोक 33 : हे परंतप अर्जुन! द्रव्यमय (धन से खर्च करके की जाने वाली) यज्ञ से ज्ञान यज्ञ यानि तत्त्वदर्शी संत का सत्संग सुनना अधिक श्रेष्ठ है। क्योंकि तत्त्वदर्शी संत धर्म-कर्म व जाप आदि करने की शास्त्रोक्त विधि बताता है। जैसे बिना ज्ञान के कर्ण (छठा पांडव) ने केवल सोना (Gold) ही दान किया। उससे उसको स्वर्ग में सोने (Gold) के पर्वत पर छोड़ दिया। उसे भूख लगी तो भोजन माँगा। उसे बताया गया कि आपने अन्न दान (धर्म यज्ञ) नहीं किया। केवल सोना दान किया। इसलिए भोजन नहीं मिलेगा। यदि तत्त्वदर्शी संत मिला होता तो कर्ण पाँचों यज्ञ करके पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता। इसलिए गीता अध्याय 4 श्लोक 33 में कहा है कि द्रव्यमय यज्ञ से ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है यानि (ज्ञान यज्ञ) तत्त्वदर्शी संत का ज्ञान सुनने से पता चलता है कि शास्त्रविधि अनुसार कौन से भक्ति कर्म हैं?
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उस तत्त्वज्ञान को जो सच्चिदानंद घन परमात्मा अपने मुख से वाणी बोलकर बताता है, उस वाणी में लिखा है। उसको तत्त्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ। उनको भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
वह तत्त्वज्ञान मेरे (लेखक-रामपाल दास के) पास है जो सूक्ष्मवेद (स्वसमवेद) में स्वयं सच्चिदानंद घन ब्रह्म कबीर जी ने अपने मुख कमल से बोली वाणी यानि कबीर वाणी में बोलकर बताया है जो श्री धर्मदास जी (बांधवगढ़ वाले) ने लिखा है। फिर परमेश्वर कबीर जी ने वही ज्ञान अपनी प्रिय आत्मा संत गरीबदास जी को बताया था तथा अपना सत्यलोक दिखाया था। फिर संत गरीबदास जी ने आँखों देखी महिमा कबीर जी की बताई है। सूक्ष्मवेद में सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान है। चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का ज्ञान सूक्ष्मवेद से लिया गया है। परंतु अधिक ज्ञान छोड़ा गया है। उसकी पूर्ति करने के लिए परमेश्वर स्वयं ��ृथ्वी पर आए थे। सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान बताया था।
* गूढ रहस्य श्रीमद्भगवत गीता का :- हे भद्रपुरूष! हिन्दू धर्म के धर्मगुरूओं को वेदों व श्रीमद्भगवत गीता का क-ख का भी ज्ञान नहीं है। न ऋषियों, महर्षियों को ज्ञान था। सर्व धर्मों के धर्म ग्रंथों का ज्ञान मेरे गुरूदेव स्वामी रामदेवानंद जी महाराज जी के आशीर्वाद से मुझे है। गुरूदेव जी की कृपा से गीता के गूढ़ रहस्यों को ठीक से समझा है। मेरे को मूल ज्ञान (तत्त्वज्ञान) प्राप्त हुआ है जिसे सूक्ष्मवेद भी कहा है। जिसके कारण सर्व धर्म शास्त्रों को यथारूप में जानना सरल हो गया है। हिन्दू धर्म गुरूओं को तत्त्वज्ञान नहीं था। इसलिए अर्थों के अनर्थ कर रखे हैं।
प्रमाण देता हूँ, ध्यान व धीरज के साथ सुन व देख :-
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है इस अनुवाद में कई शब्दों के अर्थ गलत किए हैं। ब्रह्मणः का अर्थ वेद की तथा मुखे का अर्थ वाणी में किया है जो गलत है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी "ब्रह्मणः" शब्द है। वहाँ इसी अनुवादक ने अर्थ ठीक किया है। ब्रह्मणः का अर्थ सच्चिदानंद घन ब्रह्म किया है। यदि गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में ब्रह्मणः का अर्थ सच्चिदानंद घन ब्रह्म किया जाए तो सही सरलार्थ हो जाता है जो इस प्रकार बनता है :-
परमेश्वर सबसे ऊपर के लोक में निवास करता है। वहाँ से चलकर पृथ्वी पर आता है। यथार्थ अध्यात्म ज्ञान (तत्त्वज्ञान) अपने मुख कमल से बोली वाणी में बताता है। (एवम्) इस प्रकार (बहुविधाः) बहुत प्रकार के (यज्ञाः) धार्मिक अनुष्ठानों यानि यज्ञों (पूजाओं) का ज्ञान (ब्रह्मणः) सच्चिदानंद घन ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म के (मुखे) मुख से उच्चारित वाणी में यानि तत्त्वज्ञान में विस्तार से कहा है। उन सबको कार्य करते-करते किया जा सकता है, ऐसा जान। उन सब क्रियाओं को जानकर तू सर्वथा बंधन से मुक्त हो जाएगा यानि उस तत्त्वज्ञान के आधार से साधना पूजा करके पूर्ण मोक्ष (कभी जन्म-मरण नहीं हो, ऐसा मोक्ष) प्राप्त करेगा।
विशेष :- इन्ही अनुवादकों ने गीता अध्याय 16 श्लोक 1 में "यज्ञ" का अर्थ प्रसंगवश धार्मिक पूजा व धार्मिक अनुष्ठान किया है। इस गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में भी "यज्ञाः" का अर्थ पूजाओं किया जाए तो सरलार्थ सही हो जाता है। अनुवादक ने "यज्ञाः" का अर्थ "यज्ञ" किया है। यहाँ धार्मिक पूजाओं व अनुष्ठानों करना चाहिए।
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 का इन्हीं अनुवादकों ने अनुवाद ठीक किया है जिसमें कहा है कि "उस तत्त्वज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ", उनको भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे। (गीता अध्याय 4 श्लोक 34)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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जंगल के दिल में एक दयालु हाथी, एक प्यारे हाथी की कहानी है। उसके विशाल आकार और ताकत के बावजूद, हाथी का दिल सोने जैसा है और जंगल के सभी जानवर उसे प्यार करते हैं। एक दिन, वह एक छोटी लेकिन होशियार चींटी से दोस्ती करता है, जो हाथी के संरक्षण और देखभाल से आकर्षित है। हमारे साथ जंगल की रोमांचक यात्रा पर चलें और हाथीराम और चींटी के बीच विशेष बंधन की खोज करें। क्या उनकी दोस्ती जंगल की चुनौतियों पर विजय पाएगी? देखें और जानें!
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Raksha Bandhan Puja Vidhi || रक्षा बंधन की पूजा कैसे की जाती है?
पढ़ने का समय- 4 मिनट
भारतीय संस्कृति विविधता और रंगमंच का अद्वितीय संगम है, और इन रंगों का एक प्रमुख हिस्सा है - "रक्षा बंधन"। यह पर्व न केवल भाई-बहन के प्यार का प्रतीक होता है, बल्कि यह एक पारंपरिक उत्सव है जिसमें प्रेम और संबंधों की महत्वपूर्णता का संदेश समाहित होता है। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि रक्षा बंधन की पूजा कैसे की जाती है:
पूजा की तैयारियाँ: (Puja Vidhi)
रक्षा बंधन के दिन, बहन अपने भाई की सुरक्षा और दीर्घायु की कामना करती हैं। पूजा के लिए वे एक सुंदर राखी, तिलक, अक्षत (चावल), रोली, दीपक और मिठाई आदि की तैयारियाँ करती हैं।
तिलक और राखी:
फिर बहन अपने भाई की भलाइ की कामना करते हुए उनके माथे पर तिलक लगाती हैं और फिर उन्हें राखी बांधती हैं। राखी का यह धागा न केवल एक सुंदर बनावट का होता है, बल्कि यह बहन की प्रेम और स्नेहभावना का प्रतीक भी होता है जिसके द्वारा वह अपने भाई से हमेशा उसकी रक्षा करने का वचन मांगती है।
आरती और प्रार्थना:
राखी बंधन के बाद, बहन अपने भाई की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। इसके बाद, वे एक दीपक जलाती हैं और आरती करती हैं।
भाई का शगुन:
इसके बाद, भाई अपनी बहन को धन्यवाद देते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। वे उन्हें उपहार देते हैं, जैसे कि सोने या चांदी के आभूषण, पैसे या किसी अन्य उपहार की रूप में। पूजा के बाद परिवार का एक सांझा भोजन होता है, जिसमें सभी परिवारजन एक साथ बैठकर आनंदित महौल में भोजन का आनंद लेते हैं।
परंपरा की महत्वपूर्णता:
रक्षा बंधन पूजा एक ऐसी परंपरा है जो परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ लाती है और उनके संबंधों को मजबूती और स्नेहभावना से बांधती है। यह उत्सव भाई-बहन के प्यार और सहयोग की महत्वपूर्णता को प्रकट करता है और हमें याद दिलाता है कि परिवार का समर्थन और सदस्यों के बीच अटूट संबंध कितने महत्वपूर्ण होते हैं। इस पूजा के माध्यम से हमें भाई-बहन के प्यार और समर्थन की महत्वपूर्णता का आदर्श प्रस्तुत होता है। यह न केवल परिवार के सदस्यों के बीच एक मजबूत बंधन की नींव रखता है, बल्कि हमारी सामाजिक संरचना में भी एकता और सद्भावना की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हर साल, प्रभु श्रीराम- इन्सेंस विद अ स्टोरी आपके लिए एक अनोखा राखी संग्रह लातें हैं जो प्रत्येक धागे में शुद्ध प्रेम और स्नेह का सार समाहित करते हैं- “द सिल्क ऑफ़ लव कलेक्शन”। भारतीय वस्त्रों की टेपेस्ट्री में रेशम का एक विशेष स्थान है। इस विशिष्ट संग्रह में रेशम का स्पर्श साझा किए गए बंधन की ताकत का प्रतीक है, जो हमें याद दिलाता है कि दूरी चाहे कितनी भी हो, हम हमेशा जुड़े रहेंगे।
"द सिल्क ऑफ़ लव कलेक्शन" में असम, कांजीवरम और बनारसी रेशम से बनी अनूठी राखियाँ हैं । प्रत्येक राखी भारतीय रेशम के समृद्ध इतिहास और विरासत से बुनी गई है। इस रक्षाबंधन को अपने और अपने प्यारे भाई-बहनों के लिए यादगार बनाएं। अभी ऑर्डर करें और अपने भाई को सबसे अनोखी राखी उपहार में दें।
आपके परिवार में इस उत्सव की धूमधाम के साथ मनाने की शुभकामनाएँ ।
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चिंता करने से बात नहीं बनेगी गुरुदेव से प्रार्थना कर लो (अनमोल कथा)🔥🥹
🙏🏻 🙏🏻
🙏🏻सत साहेब 🙏🏻
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🙏 ऐसा सतगुरु हम मिल्या बेपरवाह अबंध | परमहंस पूर्ण पुरुष रोम रोम रवि चंद्र ||
जम ज़ोरा जासे डरे , धर्म राय के दूत | चौदह कोटि न चम्पहि, सुन सतगुरु की कूत ||
जम जौंरा जासे डरे, धर्म राय धरे धीर | ऐसा सतगुरु एक है अदली अद्ल कबीर ||
जम जौंरा जासे डरे मिटे कर्म के लेख | अदली अदल कबीर है कुल के सतगुरु एक ||
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सतगुरु के उपदेश का लाया एक वि���ार | जो सतगुरु मिलते नहीं जाते नरक द्वार ||
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज की जय हो 🙏
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो 🙏
विश्व की सभी आत्माओं से प्रार्थना है संत रामपाल जी महाराज इस पवित्र सत्संग में हिंदू धर्म के पवित्र धार्मिक ग्रंथ श्रीमद् भागवत गीता का विशेष खुलासा कर रहे हैं | आप सभी जान पाएंगे आज तक जो हम गीता पढ़ रहे थे,तो क्या पढ़ और पढ़ा रहे थे? क्या समझना चाहिए था और क्या समझ रहे थे? संत रामपाल जी महाराज भारत भूमि के वह अनमोल रतन हैं जो मानव समाज का कल्याण करने आए हुए हैं ! पूरे विश्व का कल्याण संत रामपाल जी महाराज के द्वारा ही संभव है! _यह परम सत्य धार्मिक ग्रंथो के सत्य तत्व ज्ञान के आधार पर प्रमाणित है + भविष्य वक्ताओं की भविष्यवाणी के आधार पर प्रमाणित है + संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आए हुए अन��यायियों द्वारा भी यह सत्य प्रमाणित है | संत रामपाल जी महाराज जी कबीर अवतार है हमारे वेद शास्त्र पुराण ग्रंथ बताते हैं कि पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी हम आत्माओं के स्वामी हैं कबीर परमेश्वर ही समर्थ सुख सागर हैं जो हम आत्माओं के 3 प्रकार के पाप और ताप नष्ट कर सकते हैं | कबीर परमेश्वर ही संत रामपाल जी महाराज के संदेश वाहक रूप में भक्ति और मुक्ति लेकर इस पृथ्वी पर उतरे हैं |
भक्ति मुक्ति ले उतरे , इस पृथ्वी के माहिं | जीव उधारन जगतगुरु , बार बार बलि जाहिं ||
संत रामपाल जी महाराज का, देश विदेश के 10 बड़े सतलोक आश्रमों में अवतरण दिवस मनाया जा रहा है, जिसमें विश्व की सभी आत्मा सादर आमंत्रित हैं ! 8 सितंबर के पवित्र अवतरण दिवस के रूप में 6 ,7 ,8 सितंबर को सतलोक आश्रम धनाना धाम सोनीपत हरियाणा में भव्य आयोजन किया गया है देसी घी का विशाल भंडारा + नाम दीक्षा प्रदान करने का शिविर + रक्तदान शिविर + देह दान शिविर + अध्यात्म ज्ञान शिविर , इसके मुख्य भाग है सभी सुविधा आत्माओं के लिए नि:शुल्क उपलब्ध है | नहाने और धोने की + सोने बैठने की + खाने पीने की + दवाई और डॉक्टर की तथा बीमार के लिए सभी व्यवस्था विशेष रूप से नि:शुल्क प्राप्त होगी ! परमात्मा के इस समागम में पधार कर अपने सौभाग्य को उज्जवल कीजिए ! क्योंकि ऐसे समागम केवल परमात्मा रूपी अतिथि ही कर और करवा सकते हैं, जीव संज्ञा में आने वाले ऐसे भव्य समागम नहीं कर और करा सकते हैं जी🙏 परमात्मा कबीर जी ही संत रामपाल जी महाराज के रूप में एक सर्वोत्तम अतिथि के रूप में ,इस पृथ्वी पर अवतरित होकर विराजमान हुए हैं | अतिथि अपने साथ हमारे कष्टों के निवारण का समान भी लेकर आये हैं सुना है पहले अतिथि किसी के घर खाली हाथ नहीं जाते थे और जिसके घर ठहरते थे उसे कष्ट नहीं पहुंचाते थे उसके कष्ट को कम करते थे इसीलिए अतिथि कहलाते थे, अतिथि के आने पर इसीलिए लोग खुशी मनाते थे की धन्य भाग हमारे अतिथि रूप में सत्यनारायण पधारे! ( सत्यनारायण का अर्थ है सच्चे पुरुष / अविनाशी पुरुष, जल के ऊपर आकर विराजमान हुए यानि जल के ऊपर नहीं रहते, आकर विराजमान हुए | ) अतिथि के आने की तारीख निश्चित नहीं होती थी | संत रामपाल जी महाराज के रूप में आए हुए कबीर परमात्मा हम तुच्छ बुद्धि जीवों को अज्ञान की निद्रा से जगाने के लिए भक्ति करा कर हमें मोक्ष देने के लिए एक जीव संज्ञा की / एक दास की / एक भगत की / एक संत /पूर्ण सतगुरु की संज्ञा को लेकर हमारे बीच इस पृथ्वी पर विराजे हैं! हमें यह संदेश दे रहे हैं कि इस काल के लोक में से / इस कर्म बंधन के लोक में से / 84 लाख योनियों में से / जन्म मरण के इस खेल में से हम एक दास की भूमिका के बिना नहीं निकल सकते ! अहंकार जहां होता है, ��हाँ पर्मेश्वर् परमात्मा नहीं होते | परमेश्वर दास और अधिनि भाव के पास रहते हैं🙏 ऐसे भव्य समागम हमारे पाप कर्मों को हमारी बुराइयों को नष्ट करते हैं + हमारे सुख और सौभाग्य को उज्जवल करते हैं + हमारी बुद्धि को निर्मल और पवित्र करते हैं + हमारी आत्मा में एक विशेष रूप का बल स्थापित होता है | परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जहां भंडारे होते हैं + जहां प्रेम और एकता तथा अधिनि का संचार होता है + जहां सभी प्रकार का भेदभाव भूल कर मानवता उज्जवल होती है , मैं वहां जरूर आता हूं और अपने अनुग्रह को बरसाता हूं ! 🙏सत साहिब जी 🙏👉अधिक जानकारी के लिए , सब्सक्राइब कीजिए संत रामपाल जी महाराज यूट्यूब पर और देखते सुनते रहिए संत रामपाल जी के विशेष सत्संग + लाइव सत्संग, जो सतलोक आश्रम से सीधे प्रसारित किए जाते हैं ! हम सभी परमात्मा को चाहने वाली आत्माएं अपने कबीर परमात्मा + परमेश्वर रूपी अवतरित हुए सत् गुरु के विशेष सम्मान और प्रेम में उनकी सभी आत्माओं के लिए पलके बिछाए बैठे हैं ! जरूर पर जरूर आए जी 🙏 परमात्मा , परमात्मा रूपी अतिथि के इस भव्य समागम का मान + अपना मान बढ़ाएं इस भंडारे का अमृत रूपी भंडारा पाकर + अमृत ज्ञान और अमृतवाणी सुनकर, अपना सौभाग्य उज्जवल करें जी! हमारा भी सौभाग्य बढ़ाएं जी ! जरूर पर जरूर आएं जी! कबीर परमात्मा कहते हैं _अमर करूँ सतलोक पठाऊँ तांते बंदी छोड़ कहांऊँ🙏
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कबीरदास जी ने लिखा है- "चलो जहाँ बसत पुरुष निर्वाणा" वहाँ चलो जहाँ निर्वाण को प्राप्त महापुरुष बसता है। तुम इस लोक के नहीं हो, तुम्हारा घर यहाँ नहीं है, चलो अपने असली घर चलो। वहाँ जहाँ जन्म मरण का चक्कर नहीं है, मोक्ष है। वासना का बंधन नहीं है, मुक्ति है। सुख दुख मान अपमान नहीं है, कैवल्य है। किसी ऐसे का संग करो जो वहीं का हो। विद्वान के चक्कर में मत पड़ जाना, वह तो यहीं माथा रगड़ रहा है। उसके पास शब्द तो हैं, अनुभव नहीं है। वह ज्ञानशून्य, विवेकहीन तो उस शब्द रूपी टिमटिमाती लालटेन से अपना ही घर जला रहा है, वह उस शब्दातीत परमप्रकाशस्वरूप परमात्मा को नहीं जानता। संत उस लोक का है। यहाँ है, पर यहाँ का नहीं है। देखने में मनुष्य जैसा भले हो, अनुभव में परमात्मा जैसा है। वह संसार नहीं देता, संसार से मुक्ति दिलाता है। वह न केवल आवाज लगाकर यहाँ खोए जीवों को बुलाता है, उस लोक का मार्ग भी बताता है। चले तो लाखों करोड़ों थे, कितने विषयों में डूब गए, कितनों को स्त्री पुत्र ने खींच लिया, कितने धन के ढेर में दब गए, कितने पद प्रतिष्ठा की नाली में बह गए, कितनों के लिए आश्रमों की नींव कब्र बन गई। बहुत से तो ऐसे हैं जो बस पहुँचने ही वाले थे। एक कदम और बढ़ जाते कि रस्सी कट जाती, गाँठ खुल जाती, नाव किनारे लग जाती, मंजिल मिल जाती। पर वे किसी कामिनी के नयनों की धार का वार सहन न कर पाए, कि सोने के सिक्कों की खनक ने उनके कानों को साँप का बिल बना दिया। यों लाखों करोड़ों वापिस आ गए, पर कोई विरला जो कहीं नहीं रुका, चलता चला गया, और भगवान तक पहुँच गया, वह संत है। लोकेशानन्द का भी यही मत है कि बस उस विरले को पहचान भर लो, आवागमन तो फिर मिट ही गया समझो। https://www.instagram.com/p/CndQ4xdSSet/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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आपको वर्तमान गोल्ड, सिल्वर की कीमतों के बारे में जानना होगा
आपको वर्तमान गोल्ड, सिल्वर की कीमतों के बारे में जानना होगा
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सोने को आमतौर पर मुद्रास्फीति और वित्तीय अनिश्चितता के खिलाफ बचाव के रूप में देखा जाता है।
पिछले कुछ हफ्तों में वैश्विक शेयरों में तेजी ने सोने और अन्य कीमती धातुओं की सुरक्षित-शरण अपील को प्रभावित किया है। आमतौर पर मुद्रास्फीति और वित्तीय अनिश्चितता के खिलाफ बचाव के रूप में देखे जाने पर, सोने की कीमतों में इक्विटी के साथ उलटा संबंध होता है, निवेशकों की जोखिम-भूख में किसी भी…
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पायल रोहतगी अपनी शादी में पहनेंगी नानी के सोने के कड़े
पायल रोहतगी अपनी शादी में पहनेंगी नानी के सोने के कड़े
डिजिटल डेस्क, मुंबई अभिनेत्री पायल रोहतगी, जो 9 जुलाई को पहलवान संग्राम सिंह के साथ शादी के बंधन में बंधने के लिए तैयार हैं, ने अपने विशेष दिन पर मंदिर के आभूषण और अपनी दादी के सोने का कड़ा पहनने का फैसला किया है। कलाई के चारों ओर पहनें)। इस विशेष आभूषण के बारे में विवरण साझा करते हुए, पायल ने कहा, “मेरी दादी, मैं उससे बहुत प्यार करती हूं। उसने मुझे अपना सोने का कंगन दिया है जिसे मैं अपनी शादी के…
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Gold Price Update: रक्षा बंधन से पहले सोना और चांदी धड़ाम, जानें Latest Rate
Gold Price Update: रक्षा बंधन से पहले सोना और चांदी धड़ाम, जानें Latest Rate
Gold Price Update: रक्षा बंधन का त्यौहार आन�� वाला है वहीं सोना खरीदारों के लिए भी अच्छी खबर है। पिछले कई दिनों से सोने की कीमत (sona ka bhav) यानि भाव में (SONA CHANDI RATE) में गिरावट दर्ज की गई। अगर आप भी सोना या फिर सोने के गहने खरीदने का मन बना रहे हैं तो आपके लिए यह सही समय है। Haryana News: राज्यसभा के लिए राजपूत को टिकट की अपील जानिए सोने कीमत: GOLD के रेट में 20 रुपये प्रति 10 ग्राम की…
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🙏🙏🛐भाग 1️⃣6️⃣🛐🙏🙏 🌀💠 कर्म का सिद्धांत पुस्तक में से 💠🌀 🏹🎻🪔📝🦚🔥🦚📝🪔🎻🏹 🥰फल भोगने के लिए देह धारण करनी ही पड़ेगी🥰 शुभ कर्मों के फल स्वरुप मिले सुख भोगने के लिए भी शरीर धारण करन��� आवश्यक है । फल भोगने के लिए साधन देह है ,,, देह धारण करने पर ही फल भोग सकते हैं । इस शुभ या अशुभ कर्म के फल भोगने के लिए देह धारण करनी ही पड़ेगी ,,, और जब तक जन्म मरण का चक्कर चलता रहेगा ,तब तक मोक्ष की प्राप्ति हो सकती नहीं। देह धारण करना ही ना पड़े, ऐसी परिस्थिति का नाम ही मोक्ष है, और जब तक शुभ या अशुभ कर्मों के ढेर संचित कर्म में जमा है और संपूर्ण रूप से उनका भोग नहीं लेते तब तक यह संसार चक्र चलता ही रहेगा । देह धारण करना पड़े यही सच्चा बंधन है। शुभ कर्म के फल स्वरुप सुख भोगने के लिए शरीर धारण करना ही पड़ेगा ,, वह सोने की बेडी है ,,, और अशुभ कर्म के फल स्वरुप दुख भोगने के लिए शरीर धारण करना पड़ेगा वह लोहे की बेडी है,,, किंतु दोनों रीति से शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कर्म उसके फल भोगने के लिए जीव को धारण करना ही पडता है । और उसी तरह दोनों शुभ या अशुभ कर्म , याने की कर्म मात्र जीव को बंधन कारक है और वह बंधन जीव को जन्म मरण की बेड़ी पहना देता है, फिर वह बेड़ी सोने की हो या लोहे की हो ,,, किन्तु आखिर बंधन ��ो रहेगा ही। सुपात्र ��ो दान करेंगे उसके फल स्वरुप सुख भोगने के लिए शरीर धारण करना ही पड़ेगा और कुपात्र को दान करेंगे तो उसके फलस्वरूप दुख भोगने के लिए देह धारण करना ही पड़ेगा । दोनों प्रकार से उल्टी -सुल्टी संसार चक्की घूमती रहती है और उसमें जीव मात्र पीसा जा रहा है। मोक्ष मिलता नहीं क्योंकि नए-नए क्रियमाण कर्म वह सतत करता रहता है, और उसमें से जो तत्कालीन फल देते नहीं ,,, ऐसे कर्म संचित कर्मों में जमा हो जाते हैं। जिसके अनेक हिमालय जैसे जबरदस्त ढेर हो गए हैं । उसमें से जैसे-जैसे संचित कर्म पकते जा रहे हैं, और प्रारब्ध बनते जाते हैं , उतने ही फल प्रारब्ध भोगने के लिए इसके अनुरूप जीव शरीर धारण करता रहता है। उस जीवन दरमियान फिर दूसरे अनेक जन्म लेने पड़े उतने नये क्रियमाण कर्म खडे करते जाते हैं। इस तरह यह संसार चक्र का विष-चक्र अनादि काल से चलता आया है,,, वह अनंत काल तक चलता रहेगा । महर्षि पतंजलि कहते हैं ---- जहां तक कर्म रूपी मूल है, तब तक शरीर रूपी वृक्ष उत्पन्न होगा,,, और उसमें जाति ,आयु और भोग रूपी फल लगेंगे ही। क्रमश ,,, मृत्यु के माहात्म्य पुस्तक से ✍️✍️ हिन्दू राज़ 🦚🌈[ श्री भक्ति ग्रुप मंदिर ]🦚🌈 🙏🌹🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏🌹🙏 (at श्री भजन सरिता) https://www.instagram.com/p/CWSrh8VoWHu/?utm_medium=tumblr
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🙏🙏🛐भाग 1️⃣6️⃣🛐🙏🙏
🌀💠 कर्म का सिद्धांत पुस्तक में से 💠🌀
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🥰फल भोगने के लिए देह धारण करनी ही पड़ेगी🥰
शुभ कर्मों के फल स्वरुप मिले सुख भोगने के लिए भी शरीर धारण करना आवश्यक है । फल भोगने के लिए साधन देह है ,,, देह धारण करने पर ही फल भोग सकते हैं । इस शुभ या अशुभ कर्म के फल भोगने के लिए देह धारण करनी ही पड़ेगी ,,, और जब तक जन्म मरण का चक्कर चलता रहेगा ,तब तक मोक्ष की प्राप्ति हो सकती नहीं।
देह धारण करना ही ना पड़े, ऐसी परिस्थिति का नाम ही मोक्ष है, और जब तक शुभ या अशुभ कर्मों के ढेर संचित कर्म में जमा है और संपूर्ण रूप से उनका भोग नहीं लेते तब तक यह संसार चक्र चलता ही रहेगा । देह धारण करना पड़े यही सच्चा बंधन है।
शुभ कर्म के फल स्वरुप सुख भोगने के लिए शरीर धारण करना ही पड़ेगा ,, वह सोने की बेडी है ,,, और अशुभ कर्म के फल स्वरुप दुख भोगने के लिए शरीर धारण करना पड़ेगा वह लोहे की बेडी है,,, किंतु दोनों रीति से शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कर्म उसके फल भोगने के लिए जीव को धारण करना ही पडता है ।
और उसी तरह दोनों शुभ या अशुभ कर्म , याने की कर्म मात्र जीव को बंधन कारक है और वह बंधन जीव को जन्म मरण की बेड़ी पहना देता है, फिर वह बेड़ी सोने की हो या लोहे की हो ,,, किन्तु आखिर बंधन तो रहेगा ही।
सुपात्र को दान करेंगे उसके फल स्वरुप सुख भोगने के लिए शरीर धारण करना ही पड़ेगा और कुपात्र को दान करेंगे तो उसके फलस्वरूप दुख भोगने के लिए देह धारण करना ही पड़ेगा । दोनों प्रकार से उल्टी -सुल्टी संसार चक्की घूमती रहती है और उसमें जीव मात्र पीसा जा रहा है।
मोक्ष मिलता नहीं क्योंकि नए-नए क्रियमाण कर्म वह सतत करता रहता है, और उसमें से जो तत्कालीन फल देते नहीं ,,, ऐसे कर्म संचित कर्मों में जमा हो जाते हैं। जिसके अनेक हिमालय जैसे जबरदस्त ढेर हो गए हैं ।
उसमें से जैसे-जैसे संचित कर्म पकते जा रहे हैं, और प्रारब्ध बनते जाते हैं , उतने ही फल प्रारब्ध भोगने के लिए इसके अनुरूप जीव शरीर धारण करता रहता है।
उस जीवन दरमियान फिर दूसरे अनेक जन्म लेने पड़े उतने नये क्रियमाण कर्म खडे करते जाते हैं। इस तरह यह संसार चक्र का विष-चक्र अनादि काल से चलता आया है,,, वह अनंत काल तक चलता रहेगा ।
महर्षि पतंजलि कहते हैं ----
जहां तक कर्म रूपी मूल है, तब तक शरीर रूपी वृक्ष उत्पन्न होगा,,, और उसमें जाति ,आयु और भोग रूपी फल लगेंगे ही।
क्रमश ,,, मृत्यु के माहात्म्य पुस्तक से ✍️✍️ हिन्दू राज़
🦚🌈[ श्री भक्ति ग्रुप मंदिर ]🦚🌈
🙏🌹🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏🌹🙏
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🌺सतगुरु देव जी की जय🌺 #AimOfSantRampalJi @supreme_god_kabir_saheb_ji @satlokashramrtk @satlokchannel #godmorningsunday #sundaymotivation #satbhakti_sandesh #sundayfeeling वास्तविक मोक्ष मंत्रों की प्रमाण सहित जानकारी श्रीमद्भागवत गीता है! परमेश्वर की असीम रजा से आज आप सबके लिए विशेष संदेश संत रामपाल जी महाराज के मुख्य उद्देश्य 1-भारत को सोने की चिड़िया बनाना, विश्व गुरु बनाना 2- ध��्म और जाति के नाम पर फैले भेदभाव को मिटाना, प्रेम व भाईचारे की फुलवारी खिलाना 3 --एक जैसा न्याय मिले, शोषण समाप्त हो 4- विश्व में से रिश्वतखोरी का कलंक समाप्त हो 5- समाज और आत्मा अपने जीवन और परिवार का पवित्रता से पोषण कर सके | बंदी छोड़ सद्गुरु संत रामपाल जी महाराज की जय हो 🙏सत साहिब जी🙏🙏🥀🥀🥀 संसार के अंदर, अंतिम स्वांसों के समय केवल पूर्ण परमात्मा कबीर जी ही हमारे साथी हैं ,वही हमें इस काल के बंधन से छुड़वा सकते हैं ,वही हमारा जन्म मरण में मिटा सकते हैं, परमात्मा के अनुसार तत्व ज्ञान बताने वाला सतगुरु उन्हीं का रूप जान मानकर मर्यादा में रहकर भक्ति करनी चाहिए ,आजीवन सत् भक्ति करनी चाहिए , अपने दैनिक कर्तव्य कर्म को करते हुए सत् भक्ति करनी चाहिए | परमात्मा हमारे थोड़ी सी मेहनत को बहुत बड़ी मेहनत के सामान फलदाई कर देता है| 🙏जय बंदी छोड़ की 🙏सत साहिब जी🙏 https://www.instagram.com/p/Cp8kWYxI9BH/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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बॉन्ड्स, ज्वैलरी से लेकर ज्वैलरी तक, गोल्ड में अपना पैसा कैसे निवेश करें
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इसके भौतिक रूप में सोने की कीमत में शुल्क लगाना शामिल है।
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प्रियंका चोपड़ा की बाहों में नजर आये निक जोनस ,देसी गर्ल ने शेयर की बेहद रोमांटिक तस्वीर Divya Sandesh
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प्रियंका चोपड़ा की बाहों में नजर आये निक जोनस ,देसी गर्ल ने शेयर की बेहद रोमांटिक तस्वीर
मुंबई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी बॉलीवुड की देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा ने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर शेयर की है, जिसमें वह अपने पति एवं हॉलीवुड स्टार निक जोनस को प्यार से को बड़े ही प्यार से गले लगाती नजर आ रही हैं। साथ ही दोनों सुकून के पल साथ में बिताते नजर आ रहे हैं। इस रोमांटिक तस्वीर को फैंस के साथ साझा करते हुए प्रियंका ने लिखा-ये मेरा घर है।’
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सोशल मीडिया पर प्रियंका और निक की इस तस्वीर पर फैंस जमकर प्यार लूटा रहे हैं। प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के सबसे क्यूट कपल में से एक हैं।
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प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस ने मई 2018 में एक दूसरे को डेट करना शुरू किया था और लगभग तीन डेट के बाद निक ने प्रियंका को उनके जन्मदिन पर प्रपोज किया।
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इसके बाद इनकी कहानी आगे बढ़ी। दोनों ने अगस्त में सगाई कर ली। इसके बाद प्रियंका और निक भारत आये और 1 दिसंबर, 2018 को शादी के बंधन में बंध गए। प्रियंका बॉलीवुड में अपना दबदबा कायम करने के बाद हॉलीवुड में भी नाम काम चुकी हैं। वहीं निक अमेरिकन मूल के सिंगर और अभिनेता हैं। दोनों अक्सर एक-दूसरे की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं। कई मौकों पर अक्सर इस क्यूट कपल एक साथ देखा जा सकता है। वर्कफ़्रंट की बात करें तो प्रियंका चोपड़ा जल्द ही हॉलीवुड की रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘टेक्स्ट फॉर यू’ में नजर आएंगी।
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कबीरदास जी ने लिखा है- "चलो जहाँ बसत पुरुष निर्वाणा" वहाँ चलो जहाँ निर्वाण को प्राप्त महापुरुष बसता है। तुम इस लोक के नहीं हो, तुम्हारा घर यहाँ नहीं है, चलो अपने असली घर चलो। वहाँ जहाँ जन्म मरण का चक्कर नहीं है, मोक्ष है। वासना का बंधन नहीं है, मुक्ति है। सुख दुख मान अपमान नहीं है, कैवल्य है। किसी ऐसे का संग करो जो वहीं का हो। विद्वान के चक्कर में मत पड़ जाना, वह तो यहीं माथा रगड़ रहा है। उसके पास शब्द तो हैं, अनुभव नहीं है। वह ज्ञानशून्य, विवेकहीन तो उस शब्द रूपी टिमटिमाती लालटेन से अपना ही घर जला रहा है, वह उस शब्दातीत परमप्रकाशस्वरूप परमात्मा को नहीं जानता। संत उस लोक का है। यहाँ है, पर यहाँ का नहीं है। देखने में मनुष्य जैसा भले हो, अनुभव में परमात्मा जैसा है। वह संसार नहीं देता, संसार से मुक्ति दिलाता है। वह न केवल आवाज लगाकर यहाँ खोए जीवों को बुलाता है, उस लोक का मार्ग भी बताता है। चले तो लाखों करोड़ों थे, कितने विषयों में डूब गए, कितनों को स्त्री पुत्र ने खींच लिया, कितने धन के ढेर में दब गए, कितने पद प्रतिष्ठा की नाली में बह गए, कितनों के लिए आश्रमों की नींव कब्र बन गई। बहुत से तो ऐसे हैं जो बस पहुँचने ही वाले थे। एक कदम और बढ़ जाते कि रस्सी कट जाती, गाँठ खुल जाती, नाव किनारे लग जाती, मंजिल मिल जाती। पर वे किसी कामिनी के नयनों की धार का वार सहन न कर पाए, कि सोने के सिक्कों की खनक ने उनके कानों को साँप का बिल बना दिया। यों लाखों करोड़ों वापिस आ गए, पर कोई विरला जो कहीं नहीं रुका, चलता चला गया, और भगवान तक पहुँच गया, वह संत है। लोकेशानन्द का भी यही मत है कि बस उस विरले को पहचान भर लो, आवागमन तो फिर मिट ही गया समझो। http://shashwatatripti.wordpress.com #ramrajyamission https://www.instagram.com/p/CRavMN5Hzim/?utm_medium=tumblr
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मुझसे अगर कुछ सीखना चाहते हो, तो यही सीखो कि जीवन में बड़े विवेक से और बड़ी निष्कामना से सही लक्ष्य बनाना है, और फिर उसमें आकंठ डूब जाना है।
मेहनत अपने-आप हो जाती है, गिननी नहीं पड़ती।
ठीक वैसे ही जैसे बैडमिंटन खेलो तो स्कोर गिनते हो, कैलोरी तो नहीं न? कैलोरी अपने-आप घट जाती है। इधर स्कोर बढ़ रहा है, उधर कैलोरी घट रही है। मुझे ये बड़ा पसंद है। पर जिम में बड़ी गड़बड़ होती है, वो सीधे कैलोरी दिखाते हैं। वो चीज़ मुझे रूचती ही नहीं। कैलोरी गिनना, इसमें क्या मज़ा है? बैडमिंटन बेहतर है; उसमें कुछ और गिन रहे हो, और पीछे-पीछे जो होना है वो चुपचाप हो रहा है। वैसा ही जीवन होना चाहिए ।
तुम वो करो जो आवश्यक है, उससे तुम्हारा जो लाभ होना है वो पीछे-पीछे चुपचाप हो जाएगा; तुम्हें ��ो लाभ गिनना नहीं पड़ेगा।
मेहनत अपने-आप हो जाएगी।
जिम में तुम जाते हो ये लक्ष्य बनाकर कि मेहनत करनी है। बैडमिंटन कोर्ट पर ये लक्ष्य बनाकर नहीं जाते न कि मेहनत करनी है, अपने-आप हो जाती है मेहनत । सावधानी से सुनना, सिर्फ उदाहरण है। इस उदाहरण को बहुत दूर तक खींचोगे तो फिर कह दोगे कि, "नहीं, ये... वो..." इधर-उधर की बातें। जिधर को इशारा कर रहा हूँ, बस उतना समझो।
जब तुम्हारे सामने 'वो' मौजूद होता है जिसको तुमने अपने विवेक का पूरा इस्तेमाल करके जान लिया कि आवश्यक है, अब तुम्हें मेहनत करनी नहीं पड़ेगी, अब तुम्हारी अपनी व्यवस्था मजबूर हो जाएगी मेहनत करने के लिए।
तुम अगर चाहोगे भी कि नहीं करूँ मेहनत, तो भी तुम्हें बाध्य होकर करनी ही पड़ेगी। अब इसमें तुम्हारे पास चुनाव नहीं रहा, निर्विकल्प हो गए तुम । सच दिख गया, नकारोगे कैसे उसको?
तो देखो कि तुम्हारे जीवन का यथार्थ क्या है। देखो कि क्या हो सकते हो और क्या हुए पड़े हो । देखो कहाँ बंधे हुए हो। पूछो अपने-आप से कि अगर तमाम तरह के स्वनिर्धारित, स्वप्रमाणित बंधन न हों, तो क्या वैसे ही जीना चाहोगे जैसे आज जी रहे हो? चौंक जाओगे, हतप्रभ हो जाओगे बिल्कुल जब तुम्हें पता चलेगा कि अगर तुमने अपने ऊपर जो तमाम बंधन लगा रखे हैं वो न हों, तो तुम एक-प्रतिशत भी वैसा न जियो जैसा अभी जी रहे हो । फिर तुम्हें दया आएगी अपने ऊपर, तुम कहोगे कि, "कितने कष्ट में जी रहा हूँ मैं। जीवन का एक-एक पल मेरा बिल्कुल वैसा नहीं है जैसा होता, यदि मैं मुक्त होता। एक-एक पल में पीड़ा है, एक-एक पल में दासता है। गुलामी की साँस लेकर जीना मौत से बदतर है।" उसके बाद मेहनत अपने- आप कर लोगे, जब कहोगे कि, "बुरे-से-बुरा क्या है, सब छिन जाएगा, शरीर भी, मौत आ जाएगी? मौत से बदतर हो जो हो सकता है, वो तो फिलहाल ही हो रहा है, तो फिर तो मैं दूसरा ही विकल्प चुनूँगा, भले ही उस विकल्प में मौत मिलती हो। मेरी जो अभी हालत है उससे तो मौत भली!"
और याद रखो, अध्यात्म की ओर बढ़ नहीं सकते जब तक तुममें अपनी वर्तमान हालत के ख़िलाफ़ इतना ज़बरदस्त आक्रोश न आ जाए। जो लोग अपने हालात से संतुष्ट हैं और खुश हैं, अध्यात्म नहीं है उनके लिए, एकदम नहीं है।
भीतर एक गहरी विकलता होनी चाहिए-बड़ी ज़बरदस्त बेचैनी, छटपटाहट होनी चाहिए जो सोने न दे, जीने न दे, जो तुमको उतावला करके रखे, जो तुम्हें एक गहरे आंतरिक तनाव म���ं रखे-तब आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआ�� भी होती है।
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