#सीमांचल के पूर्णिया कटिहार अररिया और किशनगंज
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अमित शाह बार-बार यूं ही नहीं कर रहे बिहार का दौरा, बीजेपी का 'प्लान 16' जान हिल जाएंगे नीतीश कुमार
नील कमल, पटना: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ( Amit Shah ) 11 अक्टूबर को फिर बिहार पहुंच रहे हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती ( ) समारोह में शिरकत करेंगे। इस मौके पर अमित शाह उनकी जन्मस्थली सारण जिला के सिताबदियारा जाएंगे और वहां जेपी को श्रद्धांजलि देने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए नए भारत की तस्वीर पेश करेंगे। अमित शाह सारण जिले में आयोजित दो कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। वह केंद्रीय सहकारिता मंत्री के तौर पर सहकारिता से जुड़े सारण और आसपास के कई जिलों से पहुंचे किसानों को न सिर्फ संबोधित करेंगे बल्कि जेपी जयंती के मौके पर ही सहकारिता विभाग के नए देशव्यापी स्कीम को भी लॉन्च करेंगे। हर महीने बिहार आएंगे अमित शाह पिछले महीने यानी 23 और 24 सितंबर को दो दिवसीय बिहार दौरे पर पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्णिया और किशनगंज में जनसभा को संबोधित किया था। सीमांचल के इलाके में पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री ने सभा में पहुंचे लोगों से यह कहा था कि लोगों को डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बैठी है। बता दें कि कार्यकर्ताओं के साथ बैठक के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री को यह बताया गया था कि सीमांचल का डेमोग्राफी काफी तेजी से बदल रहा है, जिसकी वजह से हिंदुओं को ऊपर खतरा मंडराने लगा है। इसके बाद अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को कहा था कि वह हर महीने बिहार आएंगे और अगर जरूरत पड़ी तो महीने में दो बार भी वह बिहार दौरा कर सकते हैं। अब 24 सितंबर के बाद 11 अक्टूबर यानी 20 दिन के पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दूसरी बार बिहार दौरा तय किया गया है। 2024 में 2019 की त���ह परिणाम चाहते हैं अमित शाह NDA ने 2019 की लोकसभा चुनाव में 40 में से 39 सीट जीतकर नया इतिहास रचा था। 2019 में जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी ने 17-17 और उस वक्त एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जिसमें से बीजेपी ने 17 जेडीयू ने 16 और लोक जनशक्ति पार्टी में 100 फीसदी का स्ट्राइक चेक देते हुए छह की छह सीटों पर जीत हासिल की थी। बिहार में एनडीए ने जिस के एकमात्र सीट पर पराजय का मुंह देखा था वह सीट किशनगंज की थी। जहां कांग्रेस के उम्मीदवार ने जनता दल यूनाइटेड के कैंडिडेट को पराजित किया था। 2024 के लिए बदला हुआ है राजनीतिक समीकरण 2019 के लोकसभा चुनाव में 53% वोट हासिल करने के साथ बिहार के 40 में से 39 सीटों पर कब्जा करने वाली एनडीए का स्वरूप बदल चुका है। 2014 में अकेले चुनाव लड़कर 2 सीटों पर सिमट चुके नीतीश कुमार ने, 2019 में बीजेपी के साथ लोकसभा का चुनाव लड़कर अपने सांसदों की संख्या 2 से बढ़ाकर 16 तक पहुंचा दिया। 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड एक बार फिर से बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ेगी। वहीं एनडीए में बीजेपी के साथ शामिल रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति का भी दो फाड़ हो चुका है। एक गुट का नेतृत्व दिवंगत रामविलास पासवान के भाई पशुपतिनाथ पारस कर रहे हैं, जिनके साथ 5 सांसद हैं। दूसरे खेमे का नेतृत्व रामविलास पासवान के सांसद बेटे चिराग पासवान कर रहे हैं। जेडीयू के लोकसभा सीट पर है अमित शाह की नजर पिछले महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बिहार के सीमांचल का दौरा पूरी तरह से प्लानिंग के तहत तैयार किया गया था। सीमांचल इलाके में बिहार के कटिहार, अररिया, पूर्णिया और किशनगंज चार जिला शामिल हैं। इन सभी जिलों में मुस्लिम आबादी की संख्या काफी तेजी से बढ़ने की बात बीजेपी द्वारा लगातार कही जाती है। बीजेपी लगातार यह कह रही है कि सीमांचल के इलाके के साथ-साथ आसपास के कई जिलों में भी मुस्लिम आबादी के तेजी से बढ़ने की वजह से इलाके की डेमोग्राफी में भी तेजी से बदलाव देखा जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली जनता दल यूनाइटेड को कटिहार, पूर्णिया, सुपौल, मुंगेर, सीतामढ़ी, गोपालगंज, सीवान, बांका, भागलपुर, झंझारपुर, नालंदा, काराकाट, जहानाबाद, मधेपुरा, वाल्मीकिनगर और गया में जीत हासिल हुई थी। इनमें से कई जिले ऐसे हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत-हार में अहम भूमिका निभा सकते हैं। गौरतलब है कि 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने 2 महीने पहले ही एक बड़ी बैठक की थी। जिसमें बीजेपी के मंत्रियों और बड़े नेताओं को 144 ऐसे लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिस सीट पर बीजेपी को मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा था या फिर ��न सीटों पर बीजेपी कभी चुनाव जीत ही नहीं सकी है। 2019 में जेडीयू ने जिन सीटों पर जीत हासिल की है बीजेपी की योजना उन सीटों पर अपनी पकड़ को मजबूत करना है। http://dlvr.it/SZM4F3
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बिहार के सीमांचल में प्रतिबंधित संगठन की गतिविधि बढ़ने पर गृह मंत्रालय ने जारी किया अलर्ट
बिहार के सीमांचल में प्रतिबंधित संगठन की गतिविधि बढ़ने पर गृह मंत्रालय ने जारी किया अलर्ट
होली के मद्देनजर सीमांचल के पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज में प्रतिबंधित एक संगठन के लोगों की गतिविधि बढ़ने पर गृह मंत्रालय ने अलर्ट जारी किया है। सीमाई इलाकों पर एसएसबी और अन्य सुरक्षा… Source link
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नमस्कार!
अच्छी खबर है कि देश में एक्टिव केस एक महीने से लगातार घट रहे हैं। अब सिर्फ 4.34% एक्टिव केस हैं। इस मामले में भारत दूसरे से तीसरे नंबर पर आ गया है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
सबसे पहले देखते हैं बाजार क्या कह रहा है
BSE का मार्केट कैप 159 लाख करोड़ रुपए रहा। करीब 46% कंपनियों के शेयरों में गिरावट रही।
2,795 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। 1,283 कंपनियों के शेयर बढ़े और 1,310 कंपनियों के शेयर गिरे।
आज इन इवेंट्स पर नजर रहेगी
दुबई में IPL का पहला क्वॉलिफायर शाम साढ़े सात बजे से। मुंबई-दिल्ली की टीमें आमने-सामने होंगी।
प्रधानमंत्री मोदी वर्चुअल ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में अपनी बात रखेंगे।
लोन मोरेटोरियम मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई।
देश-विदेश
अहमदाबाद में हादसा
अहमदाबाद में बुधवार को केमिकल फैक्ट्री में आग लगने और विस्फोट होने से पास के टेक्सटाइल गोदाम की छत गिर गई। आग ��ूरे गोदाम में फैल गई। उस वक्त वहां 24 कर्मचारी काम कर रहे थे। इनमें से 12 की मौत हो गई। हादसा बॉयलर फटने से हुआ। एक के बाद एक 5 धमाके हुए।
देश में अब सिर्फ 4.34% एक्टिव केस
देश में एक्टिव केसों में एक महीने से लगातार गिरावट आ रही है। इस मामले में भारत अब दूसरे से तीसरे नंबर पर आ गया है। यहां दुनिया के कुल एक्टिव केस में सिर्फ 4.34% मरीजों का इलाज चल रहा है। 26% के साथ अमेरिका पहले नंबर पर और 11% के साथ फ्रांस दूसरे नंबर पर है। इटली और बेल्जियम भी टॉप-5 देशों में शामिल हो गए हैं।
अर्नब गोस्वामी गिरफ्तार
मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को बुधवार सुबह गिरफ्तार कर लिया। अर्नब पर 2018 में एक महिला और उसके बेटे को खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप है। उधर, अर्नब का आरोप है कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट की। इस बीच अर्नब पर महिला पुलिस से मारपीट का केस भी दर्ज किया गया है।
ऐलान से पहले ट्रम्प का जीत का झूठा दावा
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प ने जीत का झूठा दावा कर दिया। झूठा इसलिए, क्योंकि भारतीय समय के मुताबिक बुधवार रात तक भी जब नतीजे साफ नहीं हो पाए थे, उससे पहले ही ट्रम्प ने कह दिया था कि हम चूंकि हम जीत गए हैं, तो अभी भी जहां-जहां वोटिंग चल रही है, वह सारी वोटिंग रुक जानी चाहिए। इसके लिए हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
फंस गए रे अमेरिकी इलेक्शन
इस बार चुनाव नतीजों में देरी हो रही है। ऐसा सिर्फ कोरोनावायरस की वजह से हो रहा है। 68% वोटर्स ने अर्ली-वोटिंग की है यानी इलेक्शन-डे से पहले। इसमें वोटर्स को पोस्टल बैलेट देने की परमिशन भी है। पोस्टल बैलेट की गिनती धीमी होती है, क्योंकि वोटर और गवाह के दस्तखत और पतों का मिलान करना होता है। अगर कानूनी लड़ाई शुरू हुई तो नतीजे आने में हफ्ता भी लग सकता है।
डीबी ओरिजिनल
पॉजिटिव खबर
राजस्थान के दुर्गाराम चौधरी महज 12 साल की उम्र में घर में किसी को बिना बताए ट्रेन में बैठ गए थे। बस मन में यही था कि कुछ करना है। 150 रुपए लेकर घर से निकले थे, आज दो कंपनियों के मालिक हैं। कंपनियों का टर्नओवर 40 करोड़ रुपए से ज्यादा है।
बिहार से रिपोर्ट
सीमांचल के चार जिलों पूर्णिया, कटिहार, अररिया व किशनगंज में 24 विधानसभा क्षेत्र हैं और करीब 60 लाख मतदाता। मुस्लिम वोटर्स के लिए ओवैसी भाजपा की टीम ‘B’ हैं। उनका क���ना है कि उन्हें वोट देन�� यानी वोट खाई में फेंकने जैसा है।
भास्कर डेटा स्टोरी
कोरोना की वजह से पढ़ाई मुश्किल हो गई है। लॉकडाउन के दौरान बच्चे घर पर रहे और इस दौरान देश के 11% पैरेंट्स ने नए मोबाइल लिए ताकि उनके बच्चे पढ़ सकें। चार में से एक बच्चे के पास न तो कॉपी-किताबें हैं और न ही घर में कोई पढ़ाई में मदद करने वाला। ASER या असर की रिपोर्ट में ये बातें सामने आई हैं।
सुर्खियों में और क्या है...
उत्तर प्रदेश के अमेठी में चौंकाने वाला मामला सामने आया। यहां के त्रिलोकपुर गांव में एक बैग में 5 महीने का बच्चा मिला। बैग में सर्दियों के कपड़े, जूता, जैकेट, साबुन, विक्स, दवाएं और 5 हजार रुपए भी रखे हुए थे। इस बैग में एक खत भी था। लिखा था- मेरे बेटे को 5-6 महीने पाल लो, मैं हर महीने पैसे दूंगा।
सरकार ने फौजी अफसरों के बारे में दो प्रस्ताव तैयार किए हैं। पहला यह कि समय से पहले रिटायरमेंट लेने वाले अधिकारियों की पेंशन कम हो जाएगी। दूसरा यह कि रिटायरमेंट की उम्र भी बढ़ा दी जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है।
फ्रांस से 3 और राफेल भारत आ गए। इन एयरक्राफ्ट ने 7364 किलोमीटर का सफर बिना रुके 8 घंटे में पूरा किया और इस दौरान उनकी 3 बार मिड-एयर री-फ्यूलिंग भी हुई। अब भारत के पास 8 राफेल हो गए हैं।
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Decision on Lone Moratorium and IPL's first finalist today; Trump's false claim before victory in America
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चुनावी साल में लालू के दो दोस्तों में दंगल
कुमार अंशुमन और संजय सिंह, नई दिल्ली/पटना बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने नया नारा गढ़ा था- दो हजार बीस, हटाओ नीतीश। इसके जरिए लालू ने संकेत दिए थे कि आने वाले चुनाव में उनके निशाने पर जेडीयू की सहयोगी बीजेपी से ज्यादा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार होंगे। लेकिन लालू की ही पार्टी में वरिष्ठ नेताओं के बीच गंभीर मतभेद उनकी इस रणनीति को पटरी से उतार सकते हैं। रघुवंश ने पार्टी पर सुस्त रवैए का लगाया आरोप वरिष्ठ आरजेडी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघु��ंश प्रसाद सिंह ने 9 जनवरी को लालू यादव को एक खत लिखा है। लालू अभी रांची की बिरसा मुंडा जेल में चारा घोटाले के मामले में सजा काट रहे हैं। इस खत में रघुवंश ने चुनावों को लेकर पार्टी पर सुस्त रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कड़ी आलोचना की है। साथ ही उन्होंने लालू से कार्रवाई की मांग की है। 'चुनाव में 250 दिन बचे, कोई कमिटी नहीं बनी' रघुवंश ने खत में लिखा, 'विधानसभा चुनाव में 250-300 दिन बचे हैं और पार्टी ने अब तक बूथ लेवल से लेकर नैशनल लेवल तक कोई कमिटी ही गठित नहीं की है। पार्टी कई चुनौतियों का सामना कर रही है।' उन्होंने आरजेडी चीफ से जितनी जल्दी हो सके संगठनात्मक चुनाव करवाने की अपील की है। पढ़ें: जगदानंद कर रहे कार्यकर्ताओं की अनदेखी: रघुवंश वरिष्ठ आरजेडी नेता ने हमारे सहयोगी इकनॉमिक टाइम्स को बताया, '10 दिसंबर को हमें राज्य का अध्यक्ष मिल गया था। इसके बाद से जिला और बूथ स्तर पर पार्टी के संगठन के संबंध में कोई प्रगति नहीं हुई है। बिना सांगठनिक ढांचे के हम कैसे चुनाव लड़ने जा रहे हैं?' इसके सा�� ही रघुवंश ने आरोप लगाया कि नए प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रहे हैं। 'क्या इसी तरह नीतीश कुमार को मात देंगे?' रघुवंश ने ईटी को बताया, 'हमारे पास ऐसा प्रदेश अध्यक्ष है जो पार्टी दफ्तर के दरवाजे बंद कर लेता है और कार्यकर्ताओं से मुलाकात नहीं करता है। रोज बहुत सारे विधायक बिना उनसे मुलाकात किए लौट रहे हैं। हम राज्य की सबसे बड़ी पार्टी हैं। सभी सहयोगियों को भरोसे में लेने की बजाए जगदानंद सिंह कहते हैं कि गठबंधन छोड़ने के लिए हर कोई स्वतंत्र है। क्या इसी तरह हम नीतीश कुमार को मात देंगे?' पढ़ें: पिछले साल 3 दिसंबर को लालू प्रसाद के एक बार फिर आरजेडी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद पार्टी ने फैसला किया था कि सभी वर्गों के लोगों को पार्टी पदाधिकारियों और संगठन के चुनाव में हिस्सेदारी देने के लिए आरक्षण सुनिश्चित किया जाएगा। हालांकि अब तक इस फैसले पर आगे कोई कदम नहीं उठाया गया है। शिवानंद ने दोनों को दी लालू से मुलाकात की सलाह आरजेडी के एक और वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने जगदानंद सिंह और रघुवंश के बीच अनबन की बात मानते हुए दोनों को लालू से मुलाकात कर विवाद को सुलझाने की सलाह दी है। तिवारी ने ईटी को बताया, 'दोनों नेताओं की मंशा गलत नहीं है। रघुवंशजी देरी की वजह से चिंतित हैं और मुझे लगता है कि दोनों को लालूजी से मुलाकात करनी चाहिए और जल्द मसले को हल करना चाहिए।' पढ़ें: सीमांचल में बढ़ रहा ओवैसी का प्रभाव इस बीच आरजेडी का युवा चेहरा और नेता विपक्ष तेजस्वी यादव सीमांचल इलाके का दौरा करने वाले हैं। इस इलाके में कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज आते हैं। आरजेडी के लिए इस क्षेत्र में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी का बढ़ता प्रभाव मुश्किलें खड़ी कर रहा है। आरजेडी के एक सूत्र ने कहा, 'अब आरजेडी के लिए मुख्य चुनौती बिहार में अपने वर्तमान एमवाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) से ऊपर उठने की है।'
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ABP-Nielsen Bihar Survey: सीमांचल-पूर्वी बिहार रीजन की 7 सीटों में से 4 NDA और 3 UPA के खाते में
बिहार की 40 सीटों में से सीमांचल-पूर्वी बिहार रीजन की 7 सीटें में से एनडीए 4 सीटें और यूपीए 3 सीटें जीतता दिख रहा है. सर्वे के मुताबिक किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, जमुई की सीटों पर एनडीए और अररिया, भागलपुर और बांका की सीट यूपीए के खाते में जाती दिख रही है. जमुई सीट से रा��विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के जीतने की उम्मीद नजर आ रही है.
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केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने भागलपुर में गंगा नदी पर विक्रमशिला सेतु के समानांतर फोरलेन पुल के निर्माण के लिए हरी झंडी दे दी है। लंबे समय से इसकी मांग की जा रही थी। इसके साथ ही नवगछिया से भागलपुर होते हुए झारखंड की सीमा तक नया राष्ट्रीय राजमार्ग भी होगा। इसके बनने से बड़ी संख्या में लोगों को राहत मिलेगी। यही नहीं उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच बेहतर कनेक्टिविटी भी होगी। पूर्वोत्तर के लिए एक नया वैकल्पिक मार्ग भी उपलब्ध होगा।
केंद्र सरकार ने नवगछिया-भागलपुर नया पथ एनएच-131(बी) के रूप में अधिसूचित कर दिया है। भागलपुर से हंसडीहा पथ को भी राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया गया है। इस तरह नए फोरलेन पुल के साथ ही नवगछिया से भागलपुर होते हुए झारखंड की सीमा तक नया राष्ट्रीय राजमार्ग बनेगा। यह मार्ग बिहार और झारखंड के बीच यातायात को और सुविधाजनक बनाएगा। इस पुल के बन जाने से कोसी-सीमांचल और पूर्व बिहार के जिलों को लाभ मिलेगा। यही नहीं पश्चिम के जिलों और पुलों का बोझ भी काफी कम होगा। राज्य के सीमांचल का झारखंड के साथ सड़क संपर्क तो सुगम होगा ही, पश्चिम बंगाल के साथ भी कनेक्टिविटी भी बढ़ेगी।
इस समानांतर पुल के निर्माण से विक्रमशिला पुल पर गाड़ियों का दबाव कम होगा। विक्रमशिला पुल से खगड़िया, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार, भागलपुर व बांका सहित झारखंड और बंगाल के रास्ते आने-जाने वाली गाड़ियों को जाम से राहत मिलेगी।
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समानांतर पुल बन जाने से विक्रमशिला पुल पर गाड़ियों को दबाव कम होगा और इसकी उम्र भी बढ़ेगी।
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flood getting frim in bihar
कोसी-सीमांचल समेत राज्य के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ मुश्किल बढ़ाने लगी है। अररिया में स्थिति सबसे अधिक खराब हुई है। सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया में भी धीरे-धीरे बाढ़ का पानी आबादी वाले इलाकों में प्रवेश कर रहा है।
अररिया में एनएच पर आवागमन ठप होने की आशंका बढ़ गई है। यहां गुरुवार को सिकटी-पड़रिया प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से निर्मित 25 लाख रुपये का पुल ध्वस्त हो गया। देश के बाकी हिस्सों को........[Read more]
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बिहार में बाढ़ का कहर लगातार जारी, अब तक 253 लोगों ने गंवाईं जान पटना: बिहार के सीमांचल जिले सहित राज्य के 18 जिलों में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्य सरकार राहत और बचाव कार्य युद्धस्तर पर चलाने का दावा कर रही है, परंतु अभी भी कई ऐसे इलाके हैं जहां के लोगों को राहत पहुंचने का इंतजार है। बिहार में बाढ़ से 1.21 करोड़ से ज्यादा की आबादी प्रभावित है, जब��ि बाढ़ की चपेट में आने से मरने वालों की संख्या बढक़र 253 तक पहुंच गई है। राज्य के अररिया जिले में 57 लोग, सीतामढ़ी में 31, पश्चिमी चंपारण में 29, कटिहार में 23, पूर्वी चंपारण में 19, मधुबनी, सुपौल एवं मधेपुरा में 1313, किशनगंज में 11, दरभंगा में 10, पूर्णिया में 9, गोपालगंज में 8, मुजफ्फरपुर, शिवहर एवं सहरसा में 44, खगडिय़ा में 3, सारण में 2 में एक व्यक्ति की मौत हुई है। अब तक 7,21,704 लोगों को बाढ़ प्रभावित इलाके से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है और 1358 राहत शिविरों में 4,21,824 व्यक्ति शरण लिए हुए हैं।
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बिहार में 70 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में has been published on PRAGATI TIMES
बिहार में 70 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में
पटना,(आईएएनएस)| बिहार के सीमांचल क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्य सरकार बचाव एवं राहत कार्य का दावा कर रही है, लेकिन कई क्षेत्रों में अब तक राहत कार्य नहीं पहुंचने की शिकायत मिल रही है।
इस बीच राज्य की प्रमुख नदियां बुधवार को भी कई जगहों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। राज्य के 13 जिलों के 98 प्रखंडों के करीब 70 लाख की आबादी बाढ़ की चपेट में है। आपदा नियंत्रण कक्ष के अनुसार, राज्य के पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार, मधेपुरा, सुपौल, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर और मुजफ्फरपुर जिले के 98 प्रखंड की 1,070 ग्राम पंचायतों की 70 लाख से ज्यादा की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। पटना स्थित बाढ़ नियंत्रण कक्ष के मुताबिक, बिहार की कई प्रमुख नदियां अब भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। हालांकि राहत वाली बात यह है कि कोसी और गंडक के जलस्तर में कमी देखी जा रही है। नियंत्रण कक्ष में प्रतिनियुक्त सहायक अभियंता शेषनाथ सिंह ने बुधवार को आईएएनएस को बताया कि सुबह आठ बजे वीरपुर बैराज में कोसी नदी का जलस्तर 1़66 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया था, जो 10 बजे घटकर 1़64 लाख क्यूसेक हो गया। वाल्मीकिनगर बैराज में गंडक का जलस्तर सुबह 10 बजे 1़66 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया। उन्होंने बताया कि दोनों नदियों के जलस्तर में कमी की संभावना है। इधर, बागमती नदी डूबाधार, चंदौली, सोनाखान, ढेंग और बेनीबाद में, जबकि कमला बलान नदी झंझारपुर और जानकीबियर क्षेत्र में खतरे के निशान को पार कर गई है। अधवारा समूह की नदियां भी कई स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। महानंदा ढेंगराघाट और झाबा में लाल निशान के ऊपर बह रही है। इस बीच, बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करेंगे। उनके साथ उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी होंगे। बाढ़ के कारण कई प्रखंडों का सड़क सपंर्क जिला मुख्यालयों से कट गया है। सड़कों पर बाढ़ का पानी बह रहा है। आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक राज्यभर के बाढ़ प्रभावित इलाकों में 343 राहत शिविर चलाए जा रहे हैं, जिनमें 93 हजार से ज्यादा बाढ़ पीड़ित शरण लिए हुए हैं और करीब ढाई लाख लोगों को बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है। बाढ़ की चपेट में आने से अब तक 56 लोगों की मौत हो चुकी है। विभाग के ��क अधिकारी ने दावा किया ��ि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्य युद्घस्तर पर चलाए जा रहे हैं। उन्होंने हालांकि कहा कि बाढ़ का पानी नए इलाकों में भी फैल रहा है। उन्होंने बताया कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों की मदद के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ ) और सेना के जवानों को लगाया गया है।
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बिहार में बाढ़ ने मचाई जबरदस्त तबाही
बिहार के कई जिले में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है। कटिहार, पूर्णिया, अररिया, सीतामढी, बेतिया, दरभंगा से लेकर किशनगंज तक बाढ़ ने जबरदस्त तबाही मचा रखी है। इनमें से बिहार के सीमांचल कहे जाने वाले इलाके के चार जिलों किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार में हालात गंभीर हैं| बाढ़ के कारण मरने वालों की संख्या लगभग 50 से ज्यादा हो गई है, और अभी भी मरने वाले की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है| जबकि बाढ़ से करीब 70 लाख लोग प्रभावित हुए हैं।
बिहार में बाढ़ ने मचाई जबरदस्त तबाही बाढ़ से प्रभावित लोगों को देखने के लिए मंगलवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हवाई दौरा करते हुए उन्होंने बताया कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में NDRF की टीम के द्वारा राहत और बचाव कार्य चलाए जा रहे हैं। Click to Post
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सीमांचल में प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियां बढ़ने पर गृह मंत्रालय ने किया अलर्ट, सुरक्षा एजेसियां मुस्तैद
सीमांचल में प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियां बढ़ने पर गृह मंत्रालय ने किया अलर्ट, सुरक्षा एजेसियां मुस्तैद
होली के मद्देनजर सीमांचल के पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज में प्रतिबंधित एक संगठन के लोगों की गतिविधि बढ़ने पर गृह मंत्रालय ने अलर्ट जारी किया है। सीमाई इलाकों पर एसएसबी और अन्य सुरक्षा बलों ने… Source link
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सीमांचल के चार जिलों पूर्णिया, कटिहार, अररिया व किशनगंज में 24 विधानसभा क्षेत्र हैं और करीब 60 लाख मतदाता। इन सभी जिलों में चुनाव के आखिरी चरण यानी 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। यही वजह भी है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल म��स्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट के तहत किशनगंज में चार और कटिहार-अररिया-पूर्णिया में तीन-तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ये सभी सीटें ऐसी हैं, जहां अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या 50 से लेकर 65 फीसदी तक है।
इस चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने जिस फ्रंट का सहारा लिया है, उसमें उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLSP, मायावती की पार्टी बसपा और समाजवादी जनता दल लोकतांत्रिक सहित 6 पार्टियां शामिल हैं, लेकिन सीमांचल में सबसे ज्यादा चर्चा असदुद्दीन ओवैसी की मौजूदगी की है।
डुमरिया चौक, अररिया जिले के जोकिहाट विधानसभा में जरूर पड़ता है, लेकिन यहां से आसपास की पांच विधानसभा सीटों के चुनावी तापमान का पता चलता है। इस चौक पर पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई है। अंधेरा छा गया है, लेकिन जब बातचीत का सिलसिला शुरू होता है तो सब कुछ साफ-साफ दिखने लगता है। मोहम्मद सहादत बीस साल के हैं। वो कहते हैं, “इधर पतंग वही उड़ा रहा है, जिसकी उम्र वोट देने की नहीं है। सब कम उम्र नौजवान हैं। उन्हें बाइक घुमाने का मौका मिल रहा है, घुमा रहे हैं।”
मोदी के भाषणों में पांच साल पहले भी जंगलराज-पलायन-भ्रष्टाचार ही मुद्दा था, फिर आखिर बदला क्या?
जब हमने सहादत से पूछा कि अपना वोट खाई में फेंकने से क्या मतलब है तो उन्होंने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा, “समझ तो आप भी रहे हैं, फिर भी पूछ रहे हैं। हम ओवैसी साहब के बारे में बात कर रहे हैं। उनकी पार्टी सीमांचल में आई ही है ताकि महा-गठबंधन को मिलने वाले अल्पसंख्यक वोट में बंटवारा हो सके। उन्हें वोट देना मतलब अपने वोट को खाई में फेंकने जैसा ही है।”
26 साल के साकिब से हमारी मुलाकात अररिया जिले की ही बैरगाछी विधानसभा में हुई। साकिब भी मानते हैं कि इस विधानसभा चुनाव में ओवैसी का कोई प्रभाव नहीं है और वो केवल अल्पसंख्यक बहुल विधानसभा सीटों पर वोटों का बंटवारा करवा रहे हैं। साकिब कहते हैं, “ओवैसी साहब अच्छे नेता हैं। वो जब संसद में दहाड़ते हैं तो हमें भी अच्छा लगता है, लेकिन यहां के चुनाव में उनका कोई काम नहीं है। वो आए भी हैं तो मायावती से ��ठबंधन करके जो खुद भाजपा का समर्थन करने जा रही हैं। ओवैसी साहब की पार्टी सीमांचल में नई है। चुनाव लड़ने और वोट काटने से अच्छा है कि वो कुछ साल ग्राउंड पर काम करें। लोगों के बीच सक्रिय हों फिर उनके बारे में सोचा जाएगा। अभी नहीं।”
इस चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने जिस फ्रंट का सहारा लिया है उसमें RLSP, बसपा और समाजवादी जनता दल लोकतांत्रिक सहित 6 पार्टियां शामिल हैं।
सीमांचल के ज्यादातर अल्पसंख्यक मतदाता ही असदुद्दीन ओवैसी को वोट कटवा मान रहे हैं और यही वजह है कि सीमांचल की अपनी हर रैली में वो खुद की विश्वसनीयता साबित करते हैं। खुद की वोट कटवा छवि को अपने हर मंच से खारिज करते हैं, लेकिन फिलहाल वो इसमें कामयाब होते हुए नहीं दिख रहे हैं। जहां एक तरफ युवाओं को लगता है कि ओवैसी वोट बांटने आए हैं वहीं सीमांचल के अल्पसंख्यक बुजुर्ग मतदाताओं को लगता है कि उनके आने से सीमांचल का पूरा सामाजिक ताना-बाना ही बिगड़ जाएगा।
रिजवान अहमद जीवन के 60 बसंत देख चुके हैं। इनसे हमारी मुलाकात जोगीहाट विधानसभा सीट के तुर्रकल्ली चौक पर हुई। रिजवान कहते हैं, “सीमांचल में असल गंगा-जमुनी तहजीब है। हम आपस में खाना-पीना भी करते हैं। कोई भेदभाव नहीं है। ये पार्टी केवल मुसलमानों की बात करती है। इसके नाम में मुस्लिमीन शब्द है। जिसका अर्थ है मुस्लिमवाद। क्या ये देश या ये राज्य केवल मुसलमानों से चलेगा? क्या केवल हिंदुओं से चलेगा? नेता वही होता है जो सबको साथ लेकर चलने की बात करे। ओवैसी, मोदी से अलग नहीं हैं। मुझे तो इस पार्टी का नाम ही नहीं पसंद।”
पीएम की रैलियों का स्ट्राइक रेट:पिछले चुनाव में मोदी ने जहां सभा की, वहां NDA 27% सीटें ही जीत पाई, 6 जिलों में खाता नहीं खुला
अब सवाल उ��ता है कि अगर ओवैसी को सीमांचल के मतदाता पसंद नहीं करते हैं तो 2019 के उपचुनाव में उनकी पार्टी किशनगंज सदर सीट से चुनाव कैसे जीत गई? इसी जीत की वजह से राज्य में AIMIM का खाता खुला।
इस सवाल के जवाब में किशनगंज सदर सीट के एक युवा मतदाता और फिलहाल सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी कर रहे शाहबाज रूहानी कहते हैं, “वो उपचुनाव था। सीट तो कांग्रेस के पास ही ही थी। तत्कालीन विधायक डाक्टर जावेद सांसद बन गए तो सीट खाली हुई। यहां के मतदाता चाह रहे थे कि किसी युवा कार्यकर्ता को मौका मिले, लेकिन उन्होंने अपनी बुजुर्ग मां को टिकट दिलवा दिया। इसी से नाराज होकर मतदाताओं ने AIMIM के उम्मीदवार कमरूल होदा को जीता दिया। AIMIM को वो जीत कांग्रेस की वजह से मिली थी, हम मतदाताओं की वजह से नहीं। इस चुनाव में AIMIM अपने इस सीट को भी नहीं बचा पाएगी।"
2019 के उपचुनाव में ओवैसी की पार्टी किशनगंज सदर सीट से उपचुनाव में जीत हासिल की थी।
ऐसा भी नहीं है कि सीमांचल के शत-प्रतिशत मतदाता ओवैसी की मौजूदगी से नाखुश हैं। मुंबई में रहने वाले और लॉकडाउन की वजह से अपने घर आए 35 वर्षीय अब्दुल रहमान का मानना है कि सीमांचल, बिहार का सबसे पिछड़ा इलाका है। यहां के अधिकतर लोग अनपढ़ हैं इसलिए वो अपना भला सोच ही नहीं पा रहे। यही वजह है कि ये सारे लोग ओवैसी के आने की असल वजह नहीं समझ पा रहे। वो कहते हैं, “ओवैसी सीमांचल के विकास के लिए आए हैं। वो अपने लोगों के पास हैं।”
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के किशनगंज केन्द्र में बतौर डायरेक्टर काम कर रहे और सीमांचल के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने को बखूबी समझने वाले डॉक्टर हसन इमाम के मुताबिक, वोट देते समय मजहब को नहीं देखना चाहिए या केवल उस पार्टी को नहीं चुनना चाहिए, जो एक मजहब की बात करे। वो कहते हैं, “मैं कोई राजनीतिक बात नहीं करूंगा। इस इलाके के लोग पढ़े-लिखे कम जरूर हैं, लेकिन ��मझदार बहुत हैं। वो पूरी समझदारी से अपने मत का प्रयोग करेंगे। सीमांचल का मिजाज और यहां की फिजा में फिरकापरस्ती नहीं है।”
सीमांचल में एक तबका ऐसा भी है, जो चुनाव में ओवैसी के होने से सबसे ज्यादा खुश है और दिन-रात उनके मजबूत होने की दुआ मांग रहा है। 40 वर्षीय आजित साह (बदला हुआ नाम) होटल किशनगंज में होटल व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। वो भारतीय जनता पार्टी के समर्थक हैं और इसी पार्टी को हर चुनाव में वोट देते हैं। वो कहते हैं, “हमारे लिए तो ओवैसी ही एक उम्मीद है। वो जितना मजबूत होगा जदयू-भाजपा उम्मीदवार के लिए उतनी ही आसानी होगी। इस क्या अगले कई चुनावों में ओवैसी यहां से जीत नहीं पाएगा, लेकिन अगर वो 10 प्रतिशत भी मुस्लिम वोट काट लेता है तो हमारी पार्टी के लिए रास्ता आसान हो जाएगा। मैं तो रोज सुबह हनुमान जी से दुआ मांगता हूं कि यहां ओवैसी मजबूत हो।”
इस चुनाव में ओवैसी मजबूत होते हैं या कमजोर ये तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि आने वाले कुछ सालों में सीमांचल से कांग्रेस, RJD सहित दूसरी पार्टियों की जगह वो ले सकते हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव से ओवैसी की नजर बिहार के इस मुस्लिम बहुल इलाके पर है। अगर ओवैसी इसी तरह हर चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारते रहे तो जल्दी ही चर्चा में रहने से आगे बढ़ जाएंगे और सीमांचल में अपनी पार्टी को स्थापित कर लेंगे।
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बिहार की रैलियों में असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी वोट कटवा छवि को बदलने की कोशिश की। सीमांचल में उनकी चर्चा जरूर बनी हुई है।
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ठाकुरगंज उत्तर बिहार का आखिरी ब्लॉक है। इसकी एक तरफ नेपाल है और दूसरी तरफ सिलीगुड़ी कॉरिडोर। यानी पश्चिम बंगाल का वह संकरा-सा गलियारा, जिसे ‘चिकन्स नेक’ भी कहा जाता है और जो पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है। बिहार के अंतिम छोर पर बसे ठाकुरगंज ब्लॉक से बांग्लादेश की दूरी भी महज 10 किलोमीटर ही रह जाती है।
सीमांचल का यह क्षेत्र बिहार के सबसे पिछड़े और अविकसित इलाकों में शामिल है। अररिया से ठाकुरगंज की तरफ बढ़ने पर इसकी बदहाली के दर्जनों उदाहरण देखने को मिल जाते हैं। टूटे हुए पुल, धंसी हुई जमीन, कट कर बह चुके खेत और जल भराव के चलते हजारों एकड़ में बर्बाद होती फसलें यहां का आम नजारा है।
ठाकुरगंज की तरफ जाते हुए जिस हाइवे से सीमांचल की ये बदहाली नजर आती है, वह हाइवे अपने-आप में जरूर शानदार है। लेकिन, हाइवे पर लगे ट्रैवल एजेंट्स के विज्ञापन यह अहसास भी दिला देते हैं कि इस हाइवे का उद्देश्य सीमांचल की बेहतरी कम और देश की लेबर सप्लाई को सुगम बनाना ज्यादा है। महानगरों में मजदूरी करने के लिए यहां के हजारों लोग प्रतिदिन इसी शानदार हाइवे से रवाना होते हैं।
हाइवे के दोनों तरफ धान के खेत दूर-दूर तक फैले नजर आते हैं, लेकिन उनमें लगी ज्यादातर फसल बर्बाद हो चुकी है। सुपौल से लेकर किशनगंज तक सीमांचल के तमाम किसान हर साल अपनी फसल को ऐसे ही बर्बाद होते देखते हैं। यहां किसानों की स्थिति दयनीय और चेहरे उदास हो चुके हैं। ऐसे में भी जब कुछ किसान मुस्कान लिए मिलते हैं तो सुखद आश्चर्य होता है।
सरकारी आकंड़ों के मुताबिक, बिहार में 11 हजार एकड़ जमीन पर चाय की खेती हो रही है।
60 साल के महेंद्र सिंह ऐसे ही एक किसान हैं। 2 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले महेंद्र मुख्य तौर पर केला, बैंगन, मकई, अनानास और चाय उगाते हैं। वे कहते हैं, ‘चाय का जो दाम हमें इस साल मिला है, वो आज से पहले कभी नहीं मिला था। ऐसा दाम अगर हर बार मिल जाए तो हमारे बच्चों को कभी मजदूरी के लिए बाहर न जाना पड़े।’
महेंद्र सिंह की तरह ही ठाकुरगंज ब्लॉक के वे सभी किसान इन दिनों खुश हैं, जिन्होंने बीते कुछ सालों में चाय की खेती शुरू कर दी है। बंगाल के सिलीगुड़ी से सटे इस इलाके में अब हजारों लोग चाय उगाने लगे हैं और सीमांचल के अन्य किसानों की तुलना में वे काफी बेहतर स्थिति में हैं।
बिहार में चाय की खेती का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। पिछले दो दशकों में ही यहां के किसानों ने चाय की खेती शुरू कर दी थी और आज भी बिहार में चाय का उत्पादन मुख्य रूप से किशनगंज जिले के दो प्रखंडों ठाकुरगंज और पोठिया तक ही सीमित है।
महेंद्र सिंह कहते हैं, ‘हम लोग बंगाल से बहुत नजदीक हैं तो वहीं के किसानों को देखकर हमने चाय उगाना शुरू किया था। इसमें अच्छी कमाई होने लगी तो देखा-देखी कई किसान चाय उगाने लगे।’ पोठिया ब्लॉक के बीरपुर गांव में रहने वाले सत्येंद्र सिंह बताते हैं, ‘चाय की खेती में मेहनत भले ही ज्यादा, लेकिन खतरा बहुत कम है। साल भर में 7-8 बार चाय की पत्ती टूटती है तो अगर एक-दो बार ये खराब भी हुई, तब भी उतना नुकसान नहीं, जितना धान में है। वजह ये कि धान तो छह महीने में एक बार होगा और वो खराब हो गया तो पूरा ही नुकसान है।’
ठाकुरगंज और पोठिया इलाके के जितने भी किसानों की जमीन चाय की खेती के लायक है, वो लोग भी बाकी फसलों को छोड़ चाय की खेती करने लगे हैं। इससे इनकी स्थिति में सुधार भी हुआ है, लेकिन इनकी शिकायत है कि सरकार की ओर से कोई भी कदम नहीं उठाया जा रहा।
फैक्टरी मालिकों के साथ ही चाय उगाने वाले किसान भी मानते हैं कि सरकारी उदासीनता अगर दूर हो तो बिहार के सीमांचल क्षेत्र की स्थिति में काफी सुधार हो सकता है।
बिहार-बंगाल बॉर्डर की बेसरबाटी पंचायत के रहने वाले यदुनाथ सिंह कहते हैं, ‘जितने भी किसान अभी चाय उगा रहे हैं, वो साथ में अनानास, केले, आलू, बैंगन जैसी अन्य चीजें भी उगाते हैं। ताकि कोई एक फसल खराब भी हो जाए तो दूसरी से उस नुकसान की भरपाई हो सके। चाय मुनाफे का सौदा तो है, लेकिन हर बार ऐसा दाम नहीं मिलता, जैसा इस बार मिल गया। इसमें अगर सरकार मदद करे तो इस इलाके की स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर आ सक��ा है।’
वे आगे कहते हैं, ‘हमारे ठीक बगल में बंगाल है। वहां चाय उगाने वाले किसानों के लिए सरकार सब कुछ करती है। पक्की मेढ़ बनाई जाती है, पानी के लिए पाइप, पम्प और बिजली सब मुफ्त मिलता है। इतना ही नहीं, घर तक बनाकर दिए जाते हैं। बिहार सरकार ऐसा कुछ नहीं करती। फलों के लिए यहां मंडी और चाय के लिए फैक्टरी भी अगर हो जाए तो किसानों का बहुत भला हो जाए।’
सरकारी आकंड़ों के मुताबिक, फिलहाल बिहार में करीब 11 हजार एकड़ जमीन पर चाय की खेती हो रही है और करीब चार हजार किसान चाय उगा रहे हैं। बिहार में कुल नौ करोड़ किलो हरी पत्ती का उत्पादन हर साल होता है और इससे करीब 75 लाख किलो चाय-पत्ती साल भर में तैयार की जाती है।
ठाकुरगंज में चाय की प्रोसेसिंग यूनिट चलाने वाले ‘अभय टी प्राइवेट लिमिटेड’ के मालिक कुमार राहुल सिंह कहते हैं, ‘बिहार में चाय से जुड़ा सरकारी आंकड़ा असल आंकड़े से काफी कम है, क्योंकि यहां ऐसे किसान ज्यादा हैं, जो एक-दो बीघा जमीन पर भी चाय उगाते हैं और इन्हें सरकारी आंकड़े में गिना ही नहीं जाता। बिहार में अभी 8 हजार से ज्यादा किसान चाय उगा रहे हैं और इसकी खेती 20 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर हो रही है।’
पिछले दो दशकों में ही यहां के किसानों ने चाय की खेती शुरू की है। आज भी बिहार में चाय का उत्पादन किशनगंज जिले के दो प्रखंडों तक ही सीमित है।
कुमार राहुल सिंह बताते हैं कि बिहार में सिर्फ दस प्रोसेसिंग यूनिट्स हैं, जो यहां उगाई जा रही चाय के लिए बहुत कम हैं। इसके चलते यहां से चाय बंगाल भेजी जाती है, जिसके दोहरे नुकसान हैं। एक तो बिहार राज्य को राजस्व का नुकसान हो रहा है और दूसरा यहां लोगों को रोजगार न मिलने का नुकसान हो रहा है।
वे कहते हैं, ‘अगर यहां फैक्टरी लगें तो सैकड़ों लोगों को उसमें रोजगार मिलेगा और हजारों लोगों को चाय बागानों में। अभी सिर्फ दो ब्लॉक में चाय हो रही है, जबकि किशनगंज जिले के साथ ही पूर्णिया, अररिया और कटिहार में भी चाय उत्पादन की संभावनाएं हैं।
सरकार अगर सिर्फ बिजली की व्यवस्था भी सुधार दे तो यहां फैक्टरी खुद ही आ जाएंगी और इस इलाके की पलायन जैसी बड़ी समस्या बहुत हद तक कम हो सकेगी। लेकिन, अभी तो ऐसी स्थिति है कि पूरे बिहार में जो गिनती की दस फैक्टरियां हैं, वो भी बिजली कटने से हो रहे नुकसान के कारण बिकने की स्थिति में हैं।’
राहुल सिंह जैसे फैक्टरी मालिकों के साथ ही चाय उगाने वाले किसान भी मानते हैं कि सरकारी उदासीनता अगर दूर हो तो बिहार के सीमांचल क्षेत्र की स्थिति में काफी सुधार हो सकता है। महेंद्र सिंह कहते हैं, ‘धान जैसी फसल दस एकड़ में उगाकर भी किसान उतना नहीं कमा सकता, जितना एक एकड़ में चाय से वो कमा सकता है।
दो एकड़ जमीन पर चाय उगाने वाले छोटे को फिर और कुछ करने की जरूरत नहीं है। लेकिन, ये तभी हो सकता है, जब सरकार फैक्टरी लगवाए और चाय खरीद की प्रक्रिया ठीक करे। इतना भी अगर हो जाए तो हमारे बच्चों को फिर मजदूरी के लिए कभी बाहर नहीं जाना पड़ेगा।'
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Bihar Assembly Election 2020 : ground report from seemanchal tea garden
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बिहार में 70 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में has been published on PRAGATI TIMES
बिहार में 70 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में
पटन���,(आईएएनएस)| बिहार के सीमांचल क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्य सरकार बचाव एवं राहत कार्य का दावा कर रही है, लेकिन कई क्षेत्रों में अब तक राहत कार्य नहीं पहुंचने की शिकायत मिल रही है।
इस बीच राज्य की प्रमुख नदियां बुधवार को भी कई जगहों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। राज्य के 13 जिलों के 98 प्रखंडों के करीब 70 लाख की आबादी बाढ़ की चपेट में है। आपदा नियंत्रण कक्ष के अनुसार, राज्य के पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार, मधेपुरा, सुपौल, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर और मुजफ्फरपुर जिले के 98 प्रखंड की 1,070 ग्राम पंचायतों की 70 लाख से ज्यादा की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। पटना स्थित बाढ़ नियंत्रण कक्ष के मुताबिक, बिहार की कई प्रमुख नदियां अब भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। हालांकि राहत वाली बात यह है कि कोसी और गंडक के जलस्तर में कमी देखी जा रही है। नियंत्रण कक्ष में प्रतिनियुक्त सहायक अभियंता शेषनाथ सिंह ने बुधवार को आईएएनएस को बताया कि सुबह आठ बजे वीरपुर बैराज में कोसी नदी का जलस्तर 1़66 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया था, जो 10 बजे घटकर 1़64 लाख क्यूसेक हो गया। वाल्मीकिनगर बैराज में गंडक का जलस्तर सुबह 10 बजे 1़66 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया। उन्होंने बताया कि दोनों नदियों के जलस्तर में कमी की संभावना है। इधर, बागमती नदी डूबाधार, चंदौली, सोनाखान, ढेंग और बेनीबाद में, जबकि कमला बलान नदी झंझारपुर और जानकीबियर क्षेत्र में खतरे के निशान को पार कर गई है। अधवारा समूह की नदियां भी कई स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। महानंदा ढेंगराघाट और झाबा में लाल निशान के ऊपर बह रही है। इस बीच, बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करेंगे। उनके साथ उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी होंगे। बाढ़ के कारण कई प्रखंडों का सड़क सपंर्क जिला मुख्यालयों से कट गया है। सड़कों पर बाढ़ का पानी बह रहा है। आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक राज्यभर के बाढ़ प्रभावित इलाकों में 343 राहत शिविर चलाए जा रहे हैं, जिनमें 93 हजार से ज्यादा बाढ़ पीड़ित शरण लिए हुए हैं और करीब ढाई लाख लोगों को बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है। बाढ़ की चपेट में आने से अब तक 56 लोगों की मौत हो चुकी है। विभाग के एक अधिकारी ने दावा किया कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्य युद्घस्तर पर चलाए जा रहे हैं। उन्होंने हालांकि कहा कि बाढ़ का पानी नए इलाकों में भी फैल रहा है। उन्होंने बताया कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों की मदद के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ ) और सेना के जवानों को लगाया गया है।
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बिहार में 70 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में
पटना,(आईएएनएस)| बिहार के सीमांचल क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्य सरकार बचाव एवं राहत कार्य का दावा कर रही है, लेकिन कई क्षेत्रों में अब तक राहत कार्य नहीं पहुंचने की शिकायत मिल रही है।
इस बीच राज्य की प्रमुख नदियां बुधवार को भी कई जगहों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। राज्य के 13 जिलों के 98 प्रखंडों के करीब 70 लाख की आबादी बाढ़ की चपेट में है। आपदा नियंत्रण कक्ष के अनुसार, राज्य के पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार, मधेपुरा, सुपौल, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर और मुजफ्फरपुर जिले के 98 प्रखंड की 1,070 ग्राम पंचायतों की 70 लाख से ज्यादा की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। पटना स्थित बाढ़ नियंत्रण कक्ष के मुताबिक, बिहार की कई प्रमुख नदियां अब भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। हालांकि राहत वाली बात यह है कि कोसी और गंडक के जलस्तर में कमी देखी जा रही है। नियंत्रण कक्ष में प्रतिनियुक्त सहायक अभियंता शेषनाथ सिंह ने बुधवार को आईएएनएस को बताया कि सुबह आठ बजे वीरपुर बैराज में कोसी नदी का जलस्तर 1़66 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया था, जो 10 बजे घटकर 1़64 लाख क्यूसेक हो गया। वाल्मीकिनगर बैराज में गंडक का जलस्तर सुबह 10 बजे 1़66 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया। उन्होंने बताया कि दोनों नदियों के जलस्तर में कमी की संभावना है। इधर, बागमती नदी डूबाधार, चंदौली, सोनाखान, ढेंग और बेनीबाद में, जबकि कमला बलान नदी झंझारपुर और जानकीबियर क्षेत्र में खतरे के निशान को पार कर गई है। अधवारा समूह की नदियां भी कई स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। महानंदा ढेंगराघाट और झाबा में लाल निशान के ऊपर बह रही है। इस बीच, बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करेंगे। उनके साथ उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी होंगे। बाढ़ के कारण कई प्रखंडों का सड़क सपंर्क जिला मुख्यालयों से कट गया है। सड़कों पर बाढ़ का पानी बह रहा है। आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक राज्यभर के बाढ़ प्रभावित इलाकों में 343 राहत शिविर चलाए जा रहे हैं, जिनमें 93 हजार से ज्यादा बाढ़ पीड़ित शरण लिए हुए हैं और करीब ढाई लाख लोगों को बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है। बाढ़ की चपेट में आने से अब तक 56 लोगों की मौत हो चुकी है। विभाग के एक अधिकारी ने दावा किया कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्य युद्घस्तर पर चलाए जा रहे हैं। उन्होंने हालांकि कहा कि बाढ़ का पानी नए इलाकों में भी फैल रहा है। उन्होंने बताया कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों की मदद के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ ) और सेना के जवानों को लगाया गया है।
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