#संविधान की राज्य सूची
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vidyaratna · 1 year ago
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Samvidhan Quiz 12
भारतीय संविधान से महत्वपूर्ण प्रश्न संग्रह इन सभी प्रश्नों की तैयारी Question Paper के रूप में कीजिए UPTET Online Mock Test 1 UPTET Online Mock Test 2 UPTET Online Mock Test 3
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rightnewshindi · 9 days ago
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लड़कियों की उम्र 21 साल करने में फंसा पेंच, दफ्तरों के चक्कर काट रहा विधेयक; सरकार ले रही कानूनी सलाह
लड़कियों की उम्र 21 साल करने में फंसा पेंच, दफ्तरों के चक्कर काट रहा विधेयक; सरकार ले रही कानूनी सलाह #News #RightNewsIndia
Himachal News: हिमाचल प्रदेश बाल विवाह प्रतिषेध विधेयक-2024 का विभागीय पेच फंस गया है। लड़कियों के विवाह की उम्र 21 साल करने का विधेयक तीन महीने से दफ्तरों में ही चक्कर काट रहा है। मानसून सत्र में इस विधेयक को पारित किया गया था। यह मामला संविधान की समवर्ती सूची से संबंधित होने के चलते केंद्र और राज्य सरकार दोनों से ही संबंधित है, इसलिए इस पर गहन चिंतन किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि राज्यपाल…
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sharpbharat · 3 months ago
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Jharkhand INDIA alliance : कांग्रेस के झारखंड प्रभारी गुलाम अहमद मीर रांची पहुंचे, कहा- 19 अक्टूबर के बाद पहली सूची जारी करेगी कांग्रेस, तेजस्वी यादव 18 अक्टूबर को आ रहे रांची
रांची : झारखंड कांग्रेस के प्रभारी गुलाम अहमद मीर और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो कमलेश रांची पहुंचे हैं. बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर मीडियाकर्मियों से बात करते हुए मीर ने कहा कि झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी 19 अक्टूबर को रांची आएंगे, जहां वे डोरंडा के शौर्य सभागार में आयोजित संविधान सम्मान सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. गुलाम अहमद मीर ने बताया कि 19…
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dainiksamachar · 5 months ago
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एससी कोटा में कोटा : पंजाब सरकार ने की थी शुरुआत, पढ़िए दशकों चली कानूनी लड़ाई का A टु Z
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अनुसूचित जाति (SC) में कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी। संविधान पीठ ने 7-1 के बहुमत से फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने इस तरह ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 के अपने ही फैसले को पलट दिया। तब उसने अनुसूचित जातियों के भीतर कुछ उप-जातियों को विशेष लाभ देने से इनकार कर दिया था। लेकिन अब गुरुवार को सुनाए फैसले के बाद एससी कोटे के भीतर सब कैटिगरी बनाई जा सकती है। कोटे में कोटा की ये कानूनी लड़ाई कब शुरू हुई? कब-कब अहम पड़ाव आए? आ��ए समझते हैं। 1975 में पंजाब सरकार के लिए गए एक फैसले से पड़ा बीज कोटे के भीतर कोटे के मुद्दे की बुनियाद आज से 49 साल पहले पंजाब सरकार के एक फैसले से पड़ी। राज्य सरकार ने 25 प्रतिशत एससी कोटा को दो श्रेणियों में बांट दिया था। पहला- बाल्मिकी और मजहबी सिखों के लिए और दूसरा- अन्य अनुसूचित जातियों के लिए। ये बंटवारा ईवी चिन्नैया मामले में 2004 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक जारी रहा। तब पांच जजों की बेंच ने आंध्र प्रदेश शेड्यूल्ड कास्ट (रैशनलाइजेशन ऑफ रिजर्वेशंस) ऐक्ट, 2000 को रद्द कर दिया था। 60 के दशक से ही उठने लगी थी मांग सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जातियों के को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस बहस का केंद्र है, अनुसूचित जाति में भी उस समूह को आरक्षण का लाभ कैसे मिले जो बहुत ही ज्यादा पीछे रह गए हैं। दरअसल, 1960 के दशक से ही पिछड़े अनुसूचित जनजाति समूहों की शिकायत रही है कि आगे बढ़ चुके SC वर्ग आरक्षण का सारा लाभ हथिया लेते हैं।इस मुद्दे पर सबसे पहले आंध्र प्रदेश सरकार ने साल 2000 में एक कानून बनाया था। इस कानून के तहत, SC वर्ग को चार समूहों में बांटा गया था। साथ ही, आरक्षण में इन चारों समूहों की हिस्सेदारी भी तय की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ईवी चिन्नैया मामले में इस कानून को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि अनुसूचित जाति एक समरूप समूह है और इसे उप-श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता। अलग-अलग राज्यों ने अलग-अलग समय पर बनाए आयोग इसके बावजूद, कई राज्यों ने अपने यहां पिछड़े अनुसूचित जाति समूहों को आरक्षण का लाभ पहुंचाने के लिए समय-समय पर आयोगों का गठन किया और कानून भी बनाए।आरक्षण के भीतर आरक्षण की मांग कोई नई नहीं है। अलग-अलग राज्यों में गठित आयोगों की रिपोर्ट बताती हैं कि आरक्षण का लाभ SC वर्ग के सभी समुदायों तक समान रूप से नहीं पहुंच पाया है।आंध्र प्रदेश ने 1997 में जस्टिस पी. रामचंद्र राजू आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आरक्षण का लाभ मुख्य रूप से SC वर्ग के एक खास समुदाय को मिला है। आयोग ने SC वर्ग को चार श्रेणियों में विभाजित करने की सिफारिश की थी।इसी तरह, उत्तर प्रदेश में 2001 में हुकुम सिंह समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने पाया कि आरक्षण का लाभ सबसे पिछड़े वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि नौकरियों में सबसे ज्यादा फायदा यादवों को हुआ है। समिति ने SC/OBC सूची का उप-वर्गीकरण करने की सिफारिश की थी।महाराष्ट्र में 2003 में लाहुजी साल्वे आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को SC सूची में शामिल मांग जाति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने का काम सौंपा गया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जाति पदानु��्रम में सबसे निचले पायदान पर माने जाने वाले मांग समुदाय को आरक्षण का पर्याप्त लाभ नहीं मिला है।इसी तरह, कर्नाटक में 2005 में न्यायमूर्ति ए.जे. सदाशिव पैनल का गठन किया गया था। इस पैनल को उन SC जातियों की पहचान करने का काम सौंपा गया था जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला था। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में 101 जातियों को चार श्रेणियों में बांटने और प्रत्येक श्रेणी को SC आरक्षण का 15 प्रतिशत हिस्सा देने की सिफारिश की थी।बिहार में 2007 में महादलित पैनल ने SC सूची में शामिल 18 जातियों को अत्यंत कमजोर जातियों के रूप में शामिल करने की सिफारिश की थी।इसी वर्ष, राजस्थान में न्यायमूर्ति जसराज चोपड़ा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि गुर्जर समुदाय अत्यंत पिछड़ा हुआ है और इसे OBC को मिलने वाली सुविधाओं से बेहतर सुविधाएं दी जानी चाहिए।तमिलनाडु में 2007 में न्यायमूर्ति एम.एस. जनार्दनम पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अरुंधतियार समुदाय को आरक्षण में अलग से प्रावधान किए जाने चाहिए।कर्नाटक में 2017 में के. रत्ना प्रभा समिति की सिफारिशों के आधार पर 2018 में एक कानून बनाया गया था। इस कानून के तहत, आरक्षण के आधार पर तरक्की पाने वाले सरकारी कर्मचारियों को वरीयता देने का प्रावधान किया गया था। कई अहम पड़ावों से होकर अंजाम तक पहुंची कानूनी लड़ाई * 1994: 27 जुलाई को आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में मडिगा रिजर्वेशन पोराता समिति ने एससी के भीतर सब-कैटिगराइजेशन की… http://dlvr.it/TBP3pq
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thesabnews · 10 months ago
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चुनाव 2024 तिथि भारत निर्वाचन आयोग ने शनिवार को घोषणा की 
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लोकसभा: चुनाव 2024 तिथि भारत निर्वाचन आयोग ने शनिवार को घोषणा की किलोकसभा  चुनाव 7 चरणों में होंगे। उपचुनाव, विधानसभा चुनाव और आम चुनाव सहित सभी चुनावों की मतगणना 4 जून को होनी है। मौजूदा सरकार का कार्यकाल 16 जून को समाप्त हो रहा है। लोकसभा चुनाव का पूरा कार्यक्रम
सातवें और अंतिम चरण का मतदान 1 जून को होना है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधित्व वाले वाराणसी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर जैसे निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं। समाजवादी पार्टी ने आगामी सात चरण के संसदीय चुनावों के लिए अपनी पांचवीं सूची में उत्तर प्रदेश से छह अतिरिक्त लोकसभा उम्मीदवारों की घोषणा की। संसद के निचले सदन की 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सभी चरणों में मतदान होगा।
चुनाव: के दौरान सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं और झूठी खबरों से निपटने के लिए चुनाव आयोग दोहरा रवैया अपना रहा है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि आयोग सक्रिय रूप से गलत सूचनाओं का मुकाबला करेगा और मतदाताओं को सटीक जानकारी प्रदान करेगा।
उन्होंने कहा चुनाव के दौरान गलत सूचना हमारे लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। जबकि सोशल मीडिया हमारे आउटरीच प्रयासों में सहायता करता है और लोकतांत्रिक आलोचना की अनुमति देता है तथ्यात्मक आधार के बिना फर्जी खबरें फैलाना अस्वीकार्य है क्योंकि यह सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित कर सकता है।
जैसे ही चुनाव आयोग ने शनिवार को लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता बरकरार रखने का विश्वास व्यक्त करते हुए विपक्ष पर निशाना साधा और उन्हें निडर करार दिया। इस बीच कांग्रेस ने कहा कि लोकतंत्र और हमारे संविधान को तानाशाही से बचाने का यह शायद आखिरी मौका है।
भारतीय चुनाव आयोग को घोषणा की कि सिक्किम की 32 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा क्षेत्र के लिए मतदान 19 अप्रैल को एक साथ होंगे जो सात चरण के आम चुनाव का पहला चरण है।
सिक्किम: की सत्तारूढ़ पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा  जिसका वर्तमान में 19 विधानसभा क्षेत्रों और लोकसभा सीट पर प्रभाव है सत्ता बरकरार रखने के लिए जोरदार प्रयास कर रही है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास 12 विधायक हैं, जबकि सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) जिसने 2019 में अपनी हार तक 25 वर्षों तक शासन किया के पास केवल एक विधायक है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों को सिक्किम में एसकेएम एसडीएफ और नवगठित सिटीजन एक्शन पार्टी (सीएपी) के बीच त्रिकोणीय मुकाबले का अनुमान है।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने शनिवार को घोषणा की कि लोकसभा चुनाव में पहली बार 85 वर्ष से अधिक आयु के मतदाताओं और 40 प्रतिशत से अधिक विकलांगता वाले मतदाताओं के पास घर से वोट डालने का विकल्प होगा।
आदर्श आचार संहिता सभी हितधारकों के बीच एक सामूहिक समझौते के रूप में कार्य करती है और चुनावों के दौरान लागू की जाती है। इसका प्राथमिक उद्देश्य प्रचार मतदान और मतगणना प्रक्रिया के दौरान व्यवस्था स्वच्छता और शांति बनाए रखना है। यह सत्ता में मौजूद पार्टी द्वार��� राज्य मशीनरी और वित्त के दुरुपयोग को रोकने का भी काम करता है।
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lawspark · 1 year ago
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मानव अधिकार और भारत का संविधान
परिचय मानव अधिकार किसी भी मनुष्य को उसके मानव जाति में जन्म के आधार पर उपलब्ध मूल अधिकार हैं। यह सभी मनुष्यों में अपनी राष्ट्रीयता, धर्म, भाषा, लिंग, रंग या किसी अन्य विचार के बावजूद निहित है। मानव अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 1993 मानवाधिकारों को परिभाषित करता है: “मानवाधिकार” का अर्थ है, ��ंविधान द्वारा प्रदत्त व्यक्ति की जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकार या भारत में अदालतों में अंतर्राष्ट्रीय वाचाएं और प्रवर्तनीय।देश के लोगों के विकास के लिए मानव अधिकारों का संरक्षण आवश्यक है, जो अंततः राष्ट्रीय विकास को एक पूरे के रूप में ले जाता है। भारत का संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को बुनियादी मानवाधिकारों की गारंटी देता है। संविधान के मर्मज्ञों ने आवश्यक प्रावधानों को पूरा करने में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है। हालांकि, निरंतर विकास के साथ, मानव अधिकारों के क्षितिज का भी विस्तार हुआ है। सांसद अब लोगों के अधिकारों को पहचानने और प्रतिमाओं को पारित करने, प्रावधानों को संशोधित करने और आवश्यकता पड़ने पर आदि में एक महान भूमिका निभा रहे हैं। मानव अधिकारों का विकास भारत में मानव अधिकारों की उत्पत्ति बहुत पहले हुई थी। इसे बौद्ध धर्म, जैन धर्म के सिद्धांतों से आसानी से पहचाना जा सकता है। हिंदू धार्मिक पुस्तकों और धार्मिक ग्रंथों जैसे गीता, वेद, अर्थशत्र और धर्मशास्त्र में भी मानव अधिकारों के प्रावधान शामिल थे। अकबर और जहाँगीर जैसे मुस्लिम शासकों को उनके अधिकारों और न्याय के लिए बहुत सराहना मिली। शुरुआती ब्रिटिश युग के दौरान, लोगों को कई अधिकारों का बड़ा उल्लंघन करना पड़ा और इसके कारण भारत में आधुनिक मानवाधिकार न्यायशास्त्र का जन्म हुआ।24 जनवरी, 1947 को, संविधान सभा ने सरदार पटेल के साथ अध्यक्ष के रूप में मौलिक अधिकारों पर एक सलाहकार समिति बनाने के लिए मतदान किया। डॉ। बीआर अंबेडकर, बीएन राऊ, केटी शाह, हरमन सिंह, केएम मुंशी और कांग्रेस विशेषज्ञ समिति द्वारा अधिकारों की मसौदा सूची तैयार की गई थी। हालाँकि इसमें कुछ संशोधन प्रस्तावित थे, लेकिन इसमें शामिल सिद्धांतों पर लगभग कोई असहमति नहीं थी। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा में अधिकार लगभग पूरी तरह से भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों या राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में शामिल थे। उन्नीस मौलिक अधिकारों को मोतीलाल नेहरू समिति की रिपोर्ट, 1928 में शामिल किया  गया था, जिसमें से दस मौलिक अधिकारों में दिखाई देते हैं जबकि उनमें से तीन मौलिक कर्तव्य के रूप में दिखाई देते हैं ।अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार और मौलिक अधिकार (COI का भाग III) प्रावधान का संक्षिप्त विवरणयूडीएचआरसीओआईकानून के समक्ष समानता और समान सुरक्षाअनुच्छेद 7अनुच्छेद 14मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के उपायअनुच्छेद 8अनुच्छेद 32जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रताअनुच्छेद 9अनुच्छेद 21अपराधों की सजा के संबंध में ��ंरक्षणअनुच्छेद 11(2)अनुच्छेद 20(1)संपत्ति का अधिकारअनुच्छेद 17इससे पहले अनुच्छेद 31 के तहत एक मौलिक अधिकारअंतरात्मा की स्वतंत्रता का अधिकार और किसी भी धर्म का अभ्यास, प्रचार और प्रसार करनाअनुच्छेद 18अनुच्छेद 25(1)बोलने की स्वतंत्रताअनुच्छेद 19अनुच्छेद 19(1)(ए) सार्वजनिक सेवा के अवसर में समानताअनुच्छेद 21(2)अनुच्छेद 16(1)अल्पसंख्यकों की सुरक्षाअनुच्छेद 22अनुच्छेद 29(1)शिक्षा का अधिकारअनुच्छेद 26(1)अनुच्छेद 21(ए)भारत ने 01 जनवरी, 1942 को यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑन ह्यूमन राइट्स पर हस्ताक्षर किए थे। संविधान का भाग III ‘जिसे मैग्ना कार्टा भी कहा गया है’ में मौलिक अधिकार शामिल हैं। ये ऐसे अधिकार हैं जो किसी भी उल्लंघन के मामले में राज्य के खिलाफ सीधे लागू करने योग्य हैं। अनुच्छेद 13(2) राज्य को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में कोई भी कानून बनाने से रोकता है। यह हमेशा यह प्रदान करता है कि अगर कानून का एक हिस्सा मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, तो उस हिस्से को शून्य घोषित किया जाएगा। यदि शून्य भाग को मुख्य अधिनियम से अलग नहीं किया जा सकता है, तो पूरे अधिनियम को शून्य घोषित किया जा सकता है। कशवानंद भारती बनाम केरेला राज्य के मामले में , शीर्ष अदालत ने कहा: “मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन नहीं हो सकती है, लेकिन यह दिखाता है कि भारत ने उस समय मानवाधिकारों की प्रकृति को कैसे समझा, जब संविधान को अपनाया गया था। ”अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड और अन्य बनाम चंद्रिमा दास और अन्य, के मामले मेंयह देखा गया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा यूडीएचआर को आदर्श आचार संहिता के रूप में मान्यता दी गई है। घरेलू न्यायशास्त्र में जरूरत पड़ने पर सिद्धांतों को पढ़ा जा सकता है।भारत के संविधान में संबंधित प्रावधानों के साथ मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के प्रावधान निम्नानुसार हैं:प्रावधान का संक्षिप्त विवरणICCPRसीओआईजीवन और स्वतंत्रता का अधिकारअनुच्छेद 6(1) और 9(1)अनुच्छेद 21तस्करी और जबरन श्रम पर रोकअनुच्छेद 8(3)अनुच्छेद 23कुछ मामलों में नजरबंदी के खिलाफ संरक्षणअनुच्छेद 9(2), (3) और (4)अनुच्छेद 22आंदोलन की स्वतंत्रताअनुच्छेद 12(1)अनुच्छेद 19(1) (डी)समानता का अधिकारअनुच्छेद 14 (1)अनुच्छेद 14 खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर न होने का अधिकारअनुच्छेद 14(3)(जी)अनुच्छेद 20(3)दोहरे खतरे से सुरक्षाअनुच्छेद 14(7)अनुच्छेद 20(2) पूर्व पोस्ट वास्तविक कानून के खिलाफ संरक्षणअनुच्छेद 15(1)अनुच्छेद 20(1)अंतरात्मा की स्वतंत्रता का अधिकार और किसी भी धर्म का अभ्यास, प्रचार और प्रसार करनाअनुच्छेद 18(1)अनुच्छेद 25(1) और 25(2)(ए)भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताअनुच्छेद 19(1) और (2)अनुच्छेद 19(1)(ए)शांतिपूर्वक विधानसभा का अधिकारअनुच्छेद 21अनुच्छेद 19(1) (बी)संघ / संघ बनाने का अधिकारअनुच्छेद 22(1)अनुच्छेद 19(1) (सी)सार्वजनिक सेवा के अवसर में समानताअनुच्छेद 25(सी)अनुच्छेद 16(1)कानून के समक्ष समानता और समान सुरक्षा और किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं जैसे दौड़, रंग, लिंग, भाषा, धर्म आदि।अनुच्छेद 26अनुच्छेद 14 और 15(1) अल्पसंख्यकों के ह���तों का संरक्षणअनुच्छेद 27अनुच्छेद 29(1) और 30राजनीतिक और नागरिक अधिकारों, 1966 (ICCPR) पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा में निहित कई नागरिक और राजनीतिक अधिकार भी भारत के संविधान के भाग III में निहित हैं। भारत ने ICCPR पर हस्ताक्षर और पुष्टि की है। जॉली जॉर्ज वर्गीस और अनर के मामले में। v। बैंक ऑफ कोचीन , जे। कृष्णा अय्यर ने देखा कि हालांकि एक प्रावधान ICCPR में मौजूद है, लेकिन भारतीय संविधान में नहीं है, यह वाचा को भारत में ‘कॉर्पस ज्यूरिस’ का प्रवर्तनीय हिस्सा नहीं बनाता है। भारत के संविधान के संगत प्रावधान के साथ ICCPR के प्रावधान इस प्रकार हैं:कुछ अधिकार जो पहले मौलिक अधिकारों में शामिल नहीं थे, लेकिन ICCPR में उपलब्ध थे। विभिन्न न्यायिक घोषणाओं द्वारा उन्हें मौलिक अधिकार माना गया। उनमें से कुछ हैं राइट टू फेयर ट्रायल, राइट टू प्राइवेसी, राइट टू लीगल एड, राइट टू राइट टू विदेश यात्रा। मैं इस लेख के बाद के भाग में उनके साथ विस्तार से काम करूंगा।आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों (ICESCR) और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों (COI का भाग IV)  पर अंतर्राष्ट्रीय वाचाICESCR एक बहुपक्षीय संधि है जो मुख्य रूप से सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों जैसे कि भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आश्रय आदि पर केंद्रित है। भारत ने 10 अप्रैल, 1979 को इस वाचा का अनुमोदन किया। इस वाचा के अधिकांश प्रावधान भाग IV (DPSPs) में पाए जाते हैं। भारतीय संविधान।  भारत के संविधान के संगत प्रावधान के साथ ICESCR के प्रावधान इस प्रकार हैं: प्रावधान का संक्षिप्त विवरणICESCRसीओआईकाम का अधिकारअनुच्छेद 6(1)अनुच्छेद 41समान काम के लिए समान वेतनअनुच्छेद 7(ए)(i)अनुच्छेद 39(डी)जीवन यापन और जीवन के लिए वंश मानक का अधिकार।अनुच्छेद 7(ए)(ii) और (d)अनुच्छेद 43काम और मातृत्व अवकाश की मानवीय स्थिति।अनुच्छेद 7(बी) और 10)(2)अनुच्छेद 42बच्चों को शोषण के खिलाफ रोकथाम के लिए अवसर और अवसर।अनुच्छेद 10(3)अनुच्छेद 39(f)सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार और पोषण का स्तर और जीवन स्तर में वृद्धि। अनुच्छेद 11अनुच्छेद 47बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षाअनुच्छेद 13(2)(ए)अनुच्छेद 45 अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षणअनुच्छेद 27अनुच्छेद 29(1) और 30अनधिकृत मौलिक अधिकार संविधान के अधिनियमन के समय वाचा में जितने अधिकार उपलब्ध थे, उतने मौलिक अधिकार उपलब्ध नहीं थे। न्यायिक व्याख्याओं ने भारतीय संविधान में उपलब्ध मौलिक अधिकारों के दायरे को चौड़ा किया है। एडीएम जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला की अदालत में, शीर्ष अदालत ने देखा था कि भूमि का कानून भारतीय संविधान में विशेष रूप से प्रदान किए गए अन्य प्राकृतिक या सामान्य कानून अधिकारों को मान्यता नहीं देता है। बाद में, मेनका गांधी बनाम भारत संघ , जे। भगवती के मामले में ; “आर्टिकल 21 में अभिव्यक्ति the व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ व्यापक आयाम की है और इसमें कई तरह के अधिकार शामिल हैं, जो मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गठन करने के लिए जाते हैं और उनमें से कुछ को अलग मौलिक अधिकारों की स्��िति में खड़ा किया गया है और अतिरिक्त सुरक्षा दी गई है अनुच्छेद 19 के तहत। कोई भी व्यक्ति विदेश जाने के अपने अधिकार से तब तक वंचित नहीं रह सकता, जब तक कि राज्य द्वारा उसे वंचित करने की प्रक्रिया को निर्धारित करने वाला कोई कानून न हो, और इस तरह की प्रक्रिया के अनुसार वंचित होने पर सख्ती से प्रभाव डाला जाता है। ”वर्तमान मामले के बाद, मौलिक अधिकारों को सक्रिय और सार्थक बनाने के लिए शीर्ष अदालत ने “मुक्ति के सिद्धांत” के साथ पेश किया। साथ ही, ‘लोकस स्टैंडी’ के नियम में छूट कोर्ट द्वारा दी गई थी। मौलिक अधिकार की कुछ प्रमुख न्यायिक व्याख्याएं इस प्रकार हैं:अधिकारनिर्णय विधिमानव सम्मान के साथ जीने का अधिकारPUCL और अन्य बनाम महाराष्ट्र और अन्य।स्वच्छ वायु का अधिकारएमसी मेहता (ताज ट्रेपेज़ियम मैटर) बनाम भारत संघस्वच्छ जल का अधिकारएमसी मेहता बनाम भारत संघ और अन्यशोर प्रदूषण से मुक्ति का अधिकारपुन: शोर प्रदूषणशीघ्र परीक्षण का अधिकारहुसैनारा खातून और अन्य बनाम गृह सचिव, बिहार राज्यनि: शुल्क कानूनी सहायता का अधिकारखत्री और अन्य लोग बनाम बिहार और राज्यआजीविका का अधिकारओल्गा टेलिस और अन्य बनाम बंबई नगर निगमभोजन का अधिकारकिशन पटनायक बनाम ओडिशा राज्यचिकित्सा देखभाल का अधिकारपं. परमानंद कटारा बनाम भारत और अन्य संघ।स्वच्छ पर्यावरण का अधिकारग्रामीण अभियोग और प्रवेश केंद्र उत्तर प्रदेश और राज्य के बनामएकान्तता का अधिकारके.एस. पुट्टस्वामी और अन्य बनाम भारत और ओआरएस संघनिष्कर्ष मानवाधिकार वे मूल अधिकार हैं जो मनुष्य के रूप में उसके विकास का अनिवार्य हिस्सा हैं। संविधान मौलिक अधिकारों और डीपीएसपी के रूप में उन मूल अधिकारों के रक्षक के रूप में कार्य करता है। मौलिक अधिकारों पर अधिक बल दिया गया है और वे कानून की अदालत में सीधे लागू हैं। भारतीय संविधान के भाग III और भाग IV के एक गहन अध्ययन से, यह आसानी से स्पष्ट है कि UDHR (मानव अधिकारों पर सार्वभौमिक घोषणा) में प्रदान किए गए लगभग सभी अधिकार इन दो भागों में शामिल हैं।न्यायपालिका ने ‘लोकस स्टैंडी’ के नियमों को शिथिल करने जैसे महान कदम भी उठाए हैं और अब प्रभावित लोगों के स्थान पर कोई अन्य व्यक्ति कोर्ट का रुख कर सकता है। शीर्ष अदालत ने एक नागरिक को उपलब्ध मौलिक अधिकारों की व्याख्या की है और अब निजता के अधिकार, स्पष्ट पर्यावरण के अधिकार, मुफ्त कानूनी सहायता के अधिकार, निष्पक्ष निशान के अधिकार आदि को भी मौलिक अधिकारों में जगह मिलती है।  Read the full article
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thebharatexpress · 2 years ago
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CM भूपेश ने PM मोदी को लिखा पत्र, लिखे ये बड़ी बात.... जानिए ....
CM भूपेश ने PM मोदी को लिखा पत्र : छत्तीसगढ़ सर��ार ने विधानसभा चुनाव 2023 से पहले फिर एक राजनीतिक दांव खेला है। प्रदेश के सीएम भूपेश बघेल ने पीएम नरेंद्र मोदी को खत लिखा है। खत में छत्तीसगढ़ विधानसभा में दिसम्बर 2022 में पारित विधेयक के अनुसार, आरक्षण संशोधित प्रावधान को संविधान की 9वीं सूची में शामिल करने का अनुरोध किया है। मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि छत्तीसगढ़ राज्य की विशेष परिस्थितियों…
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ashokgehlotofficial · 2 years ago
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प्रिय श्री Manohar Lal खट्टर जी,
मीडिया के माध्यम से पता चला कि आपने सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम पर बयान देते हुए कहा कि राजस्थान ने ओल्ड पेंशन स्कीम की घोषणा को वापस ले लिया है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपको किसी ने गलत जानकारी दी है जिसके कारण आपने ऐसा बयान दिया जो तथ्यात्मक नहीं है। राजस्थान में 1 अप्रैल 2022 से ओपीएस लागू कर दिया गया है एवं 2004 के बाद सेवा में आकर रिटायर हुए 621 कर्मचारियों को ओपीएस का लाभ दिया जा चुका है एवं आगे भी सभी कार्मिकों ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ दिया जाएगा।
मैं आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूंगा कि इसी प्रकार का असत्य हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर ने वहां विधानसभा चुनावों के दौरान बोला था इसलिए मैंने वहां विधानसभा चुनाव के दौरान शिमला जाकर प्रेस वार्ता की एवं हिमाचल प्रदेश की जनता को सच से अवगत करवाया।
मैं आपकी जानकारी में लाना चाहूंगा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची का बिन्दु संख्या 42 स्पष्ट कहता है कि स्टेट पेंशन जो राज्य की समेकित निधि (कंसोलिडेटेड फंड) से दी जाएंगी उन पर राज्य सरकार का कानून बनाने का अधिकार है। ऐसे में आपका यह कहना उचित नहीं है कि ओल्ड पेंशन स्कीम केन्द्र सरकार द्वारा ही दी जा सकती है।
मैं आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए हरियाणा में भी ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करें एवं केन्द्र सरकार को भी इसके लिए अपनी सिफारिश भेजें।
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vaibhavvaidya5233 · 2 years ago
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 बाल कामगार एक समस्या मुले नेहमी देव नंतर सर्वात पवित्र मानले जातात ज्यांना नेहमीच | आनंद , मजा , निरपराधीपणा आणि आशा निर्माण करण्याचा प्रयत्न | केला जातो आणि देशातील मुले आणि महिला वर्तन त्या प्रकारची | आधारावर देशातील निश्चित आहेत तुलई शेवटी कुशल मानव संसाधनांसाठी देखील हे महत्वाये आहे . ज्याची भारतातील शिक्षणाच्या तत्वांच्या अस्तित्वासाठी आवश्यक असलेल्या मुलभुत सुविधा | आहेत . आमच्या मुलांचे बालपण सुरक्षित आहे आणि दूषित न होने हे . उदाहरणादाखल प्रत्येक नागरिकाचे नैतिक कर्तव्य आहे . उदाहणार्य , बाल श्रम , जे गरी���ीमुळे आणि असहायतामुळे जन्मले आहे . बाल मजुरी सामान्यतः मु��ुटीचा भरणा न करता किंवा देयकासह मुलांवटीवर शारीरीक कार्य करते . बाल मजुरी भाषा मर्यादीत नाही . ही एक जागतिक घटना आहे . म्हणून आतपर्यंत भारताचा प्रश्न आहे . हा मुद्धा खूपय कल्पक आहे . कारण । भारतात सुरुवातीपासून आपल्या आईवडिलांसह मुले शेतातून आवश्यक जे शोषणांचे सर्वात सामान्य प्रकार सामान्य प्रकार आहे . बंधूतापूर्वक आणि इतर गोष्टीबरोबर मदत करत आहेत . या संदर्भात आणखी एक संकल्पना , ज्याला या वेळी स्पष्ट करणे आहे , बंधपत्रित मजुटी आहे , आहे . जे शोषणांचे सर्वात मजुरी म्हणजे पालकांचे जास्त व्याजदर देण्यामुळे मुलांना कर्ज देण्याकरिता मजूर मजुरीच्या संकल्पनेशी संबंधित बालमजुरीची संकल्पना , जेथे मजूर रस्त्यावर सरस्त्यावर मजुरी देणारे संपूर्ण बालपण म्हणून काम करणे भाग पडते बाँड संकल्पना म्हणजे शही असतात आणि खर्च करतात वाढत्या बालमजुरीचे कारण : - या समस्येचे मुख्य साधन कीगते अतिरिक्त लोकसंख्या निश्क्षिरता , गरिबी कर्जबाजारी जाले इ . हे सामान्य कारणे आहेत . जापालक कर्ज पिंजरा जे अवघड भागात किंवा घरगुती कामे सामान्य बालपण महत्व आहे . करते अस्त हो दबाय २ आपल्या समस्या कारण समजून घ्या आणि अशा प्रकारे एक मुलाच्या मनाची गरीब आयनिक आणि मानसिक संतुलन होऊ , उपयशी थासाचे तयार नाही .
भारतातील बालश्रम कायदे : ● भारतातील बालमपुरीची समस्या सर्वासाठी स्वातंत्र्य असव्याकरत | समितीला कोणत्याही देशाशिवाय देशाच्या शिफारशींवर आधारापर चिंताजनक बात बनली आहे . भारताच्या राज्यघटनेच्या संविधान | शोका अंतर्गत असताना तो लक्षात सरकार दरम्यान अर्थ आणि स्वतः ये कायदे को आवश्यक होते . एक वेळ भारत ब्रिटिश साम्राज्य भारत शोषता कूर केले शोषण वेतन तरखरद खात्री करण्यासाठ एकमेव मार्ग खून केले , बाल श्रम कायद । 1938 पाशित केला गेला जेव्हा कार्य एका मोठ्या अंतराह अयशस्वी झाले . त्याच्या अपयशसाठी भारतातील बालमपुरी टाळण्यासाठी पारंभिक कायदा केला गेला हे | सर्वात मोठा कारण गरिबी होते कारण कटीय गरीब गरीब | मुलांना मजुरी करण्यास भाग पाडले . भारतीय संसदेने वेळोवेळी बाल मजुरी किंवा मुजुरीच्या मुलांची सुख्या । सुनिश्चित करण्यासाग कारखाना किंवा माझी किंवा धोकादायक रोजगार मध्ये 14 वर्षाखालील मुले बाल कामगार ��ेख मनाई आमच्या घटनेत मुलभुत अधिकार रोजी स्थापना केली आहे . याशिवाय कलम अनुसार असे करण्यात आले आहे , की 61714 वयोगटातील मुलासाठी मोफत शिक्षणासाठी सर्व मूलभू संरचना आणि संसाधने राज्य पुरवेल . या तरतुदींचे अतिक्रमण हे मुलभूत मानवी हवक अ ) णि मुलांना निरर्थक नसणे असा नसून हे निदर्शनास आवश्यक आहे . हे कायदे अगदी रचष्ट नाहीत की रोजगार व नोकरी अंतर्गत मुले कुठे | अनि कुळे काम करू शकतात . कायदा केवळ 10 % कामकरी मुलांच संरक्षण करतो . आणि अशाप्रकारे गैर - संघटित क्षेत्रात लागू होत नाही हे सर्व कार्य बाल मजुरांच्या कुटुंबाला था आधा टावर पखानशी देते जर ते सर्व मुलांप्रमाणेच त्याच कर्मचा - यासोबत काम करत असतील . तथापि , या कायदे मुलांच्या कामाला विशिष्ट धोका उध्योग आणि कारखान्यामध्ये प्रतिबंधित करतात परंतु त्यांना तरीच धोकादायक कृत्यांचा अर्थ लावता कामा नये हे वेडवळ धोकादायक नीकर्याची सूची देते !. 17 बालमजुरीचे निर्मुलन कसे कराल १ . निर्मूलन , मुक्त आणि शक्तिीचे सक्तीचे शक्षिण आणि मुलांच्या बेकायदेशीर व्यापारांचा अंत . गरिबी | जागतिक बँक आणि आंतरराष्ट्रीय जाणेनिधीन गरिबी जीवनाचा सामन्य सार यामुळे समस्या कमी होऊ शकते . | निर्मूलन करण्याच्या विकसनशील देशांना कर्ज पुरवण्यात मदत केली आहे , | रोखण्यासाठी कामगार कायदयांचे कठोरपणे पालन करणे पक्ष अकिंवा बहुराष्ट्रीय कंपन्यांचे शोषण | आवश्यक आहे . सध्या अस्तित्वात असलेल्या बालमुजुरी प्रतिबंध कायद्यांची अंमलबजावणी करून पतीवर नियंत्रण ठेवण्यासाठी अनेक सुधारण आवश्यक आहेत 14 वर्षापासून कमीतकमी 18 वर्षे मंदी वाढण्याची गरज आहे . अधिक व्यवसायांमध्ये समाविष्ट करणे गरजेय आहे जो धोकादायक क्रियाकलापांच्या व्यापतीमधून वगळंलेले आहे . जी संध्या कायद्याच्या अंतर्गत असलेल्या जोखमीच्या यादीत आहे . 
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gyaanuday · 3 years ago
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केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद
केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद भारत के संविधान ने केन्द्र-राज्य सम्बन्ध के बीच शक्तियों के वितरण की निश्चित और सुस्पष्ट योजना अपनायी है । संविधान के आधार पर संघ तथा राज्यों के सम्बन्धों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है । Share with Fre
Relationship in Central and State and Inter-State council Hello दोस्तो ज्ञानउदय में आपका स्वागत है, आज हम बात करेंगे भारतीय संविधान में केंद्र राज्य संबंध और अंतरराज्य (Relationship in Central and State and Inter-State council) के बारे में । साथ ही साथ इस Post में हम जानेंगे केंद्र राज्य संबंध के महत्वपूर्ण अनुछेद के बारे में, संघ, राज्य और समवर्ती सूची के बारे में । इनके बीच शक्तियों के वितरण…
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jhorar · 5 years ago
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स्थानीय स्वशासन राज्य सूची का विषय है। प्रकार - दो 1. ग्रामीण स्वशासन 2. शहरी स्वशासन स्थानीय स्वशासन का जनक - लार्ड रिपन 1882 ई. में लार्ड रिपन ने स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के संदर्भ में एक प्रस्ताव पेश किया जिसे स्थानीय स्वशासन का मेग्नाकार्टा कहा जाता है। शासन काल     शासन की छोटी ईकाई   शासन का मुख्या बौद्ध कालीन ग्राम ग्रामयोजक गुप्तकाल         ग्राम  ग्रामीक/ग्रामणी मुगलकाल ग्राम   मुकदम आधुनिक काल ग्राम संरपच लार्ड मेयों ने 1870 ई. में राज्य प्रशासन को निम्न लिखित तीन विषयों - शिक्षा, स्वास्थ्य व पंचायत राज पर आर्थिक संसाधन उपलब्ध करावायें जाये। भारत में आर्थिक/वित्तीय विक्रेन्दीकरण का जनक लार्ड मेया को माना जाता है। जे.एल. नेहरू ने स्थानीय स्वशासन को प्रजातंत्र का आधार स्तम्भ तथा लोकतंत्र कि प्रथम पाठशाला माना है जहां से स्थानीय लोग राजनीति सीखना प्रारम्भ करते है।  लोकतंत्रात्मक विकेन्द्रीकरण स्थानीय स्वशासन में निहित है। ग्रामीण स्वशासन/पंचायती राज -  अनुच्छेद 40 - राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करेगा।  महात्मा गांधी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक - My picture of free India में ग्राम स्वराज्य कि कल्पना कि थी। पंचायती राज से सम्बंधित प्रमुख समितियां -  2 अक्टूबर 1952 को भारत सरकार के द्वारा गांवों में विकास के लिए सामुदायिक विकास कार्यक्रम चलाया गया जो असफल रहा। अध्यक्ष - नरेन्द्र कुमार सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता के बाद भारत सरकार ने बलवंत राय मेहता समिति का गठन (1957) किया। प्रधानमंत्री - जवाहरलाल नेहरू रिपोर्ट - त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था प्रारम्भ कि जायें। ग्राम स्तर - ग्राम पंचायत खण्ड स्तर - पंचायत समिति जिला स्तर - जिला परिषद् नोट - इस समिति कि सिफारिस पर भारत सरकार ने 2 अक्टूबर 1959 को भारत में सर्वप्रथम राजस्थान राज्य के नागौर जिले के बगदरी गांव में पंचायती राज व्यवसथा को प्रारम्भ किया। जिसका उद्घाटन - जे.एल. नेहरू ने किया। नोट - 2 अक्टूबर 2009 को पंचायती राज व्यवस्था के 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष पर बगदरी गांव में पंचायती राज स्मारक/मेमोरेण्डम कि स्थापना की जिसका उद्घाटन - सोनिया गांधी ने किया। 11 अक्टूबर 1959 को आंध्रप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था को प्रारम्भ करने वाला दुसरा राज्य था।  पंचायती राज का जनक - बलवंतराय मेहता। आधनिक पंचायती राज का जनक - राजीव गांधी। राजस्थान में पंचायती राज का जनक- मोहनलाल सुखाड़िया। अशोक मेहता समिति - 1977  पी.एम. मोरार जी देसाई रिपोर्ट - द्विस्तरीय पंचायती राज शुरू कि किया जाये। जिला स्तर - जिला परिषद ग्राम स्तर - मण्डल पंचायत जी.वी.के. राॅव समिति - 1985 प्रधानमंत्री - राजीव गांधी रिपोर्ट - ग्रामीण विकास व गरीबी उन्मूलन कि सिफारिस। चार स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था प्रारम्भ कि जाये। राज्य स्तर - राज्य विकास परिषद जिला स्तर - जिला परिषद खण्ड स्तर - पंचायत समिति ग्राम स्तर - ग्राम पंचायत नोट: पं. बंगाल में वर्तमान में चार स्तरीय पचायती राज व्यवसथा है। एल.एम. सिंघवी समिति- 1986  पी.एम. राजीव गांधी रिपोर्ट - पंचायती राज व्यवथा को संवैधानिक मान्यता दि जाये। पंचायत राज व्यवस्था को वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाना। पी.के. थुगंन - 1988,  पी.एम. राजीव गांधी रिपोर्ट - पंचायती राज व्यवस्था के नियत कालीन चुनाव (5 वर्ष) होने चाहिए। -पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया जाये। नोट: 1989 ई. में राजीव गांधी सरकार के समय पंचायती राज और शहरी स्वशासन से जुडे हुये 64वां व 65वां  संविधान संसोधन लोकसभा में पारित किया गया परन्तु राज्य सभा में पारित नहीं हुये। पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के समय - 1992 में 73वां संविधान संसोधन, 74वां संविधान संसोधन किया गया। 73वां - 1992 - 11वीं अनुसूचि - पंचायती राज - भाग 9 - विषय 29 - अनुच्छेद 243 व 243 ए से ओ नोट - पंचायती राज अधिनियम 24 अप्रेल 1993 को भारत में लागु किया गया।  पंचायती राज अधिनियम 23 अप्रेल 1994 को राजस्थान में लागु किया गया। नोट: पंचायती राज दिवस 24 अप्रेल को मनाया जाता है। संवैधानिक मान्यता प्राप्ति के बाद पंचायती राज अधिनियम को लागु करने वाला भारत का पहला राज्य ‘मध्यप्रदेश’ अनुच्छेद 243 - परिभाषाऐं  अनुच्छेद 243A  ग्राम सभा अनुच्छेद 243C  पंचायतों का गठन अनुच्छेद 243D  आरक्षण अनुच्छेद 243E  कार्यकाल अनुच्छेद 243F  योग्यता अनुच्छेद 243I वित्त आयोग अनुच्छेद 243K  राज्य निर्वाचन आयोग वर्तमान मंे राजस्थान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त प्रेमसिंह मेहरा राजस्थान में पंचायत राज से सम्बंधित प्रमुख गठित समितियां  सादिक अली समिति - 1964  सी.एम. मोहनलाल सुखाड़िया रिपोर्ट - ग्राम सभा व वार्ड सभा को संवैधानिक दर्जा दिया जाये। गिरधारी लाल व्यास कमेटी - 1973  सी.एम. हरिदेव जोशी रिपोर्ट - ग्राम पंचायत में ग्राम सेवक का पद सृजित किया जायें। नाथुराम मिर्धा समिति - 1993 मुख्यमंत्री - भैरूसिंह शेखावत इस समिति कि सिफारिश पर राजस्थान में 73वें संविधान संसोधन को लागु किया। गुलाबचंद कटारिया समिति - 2009 मुख्यमंत्री - अशोक गहलोत रिपोर्ट - इस समिति ने यह कहा कि जिला प्रबन्ध समिति (आयोजना समिति) का अध्यक्ष कलेक्टर को हटाकर जिला प्रमुख को मनाया जाये। वी.एस. व्यास कमेटी - 2010 सी.एम. अशोक गहलोत, इस कमेटी कि सिफारिश पर राज. सरकार ��्वारा 2 अक्टूबर 2010 में पंचायत राज को 5 नये कार्य दिये गये। जो निम्न है - प्राथमिक शिक्षा कृषि सामाजिक न्याय व अधिकारिता महिला एवं बाल विकास चिकित्सा एवं स्वास्थ्य नोट: राजस्थान में वर्तमान में पंचायती राज के पास कुल 23 कार्य (विषय) है। राजस्थान में पंचायती राज  1928 बीकानेर राज. में पहली देशी रियासत थी जिन्होंने ग्राम पंचायत अधिनियम बनाया। 1949 राज. में पंचायती राज विभाग कि स्थापना कि गई। 1953 राज. ग्राम पंचायत अधिनियम बनाया गया।  राजस्थान में पंचायती राज के सर्वप्रथम चुनाव 1960 में हुये। राजस्थान में पंचायती राज कि विशेषताएं -  वर्तमान में त्रिस्तरीय पचायती राज व्यवस्था है - जिला परिषद - उच्च स्तर - 33 (वर्तमान) पंचायत समिति - मध्यम स्तर - 295  (वर्तमान) ग्राम पंचायत - निम्न स्तर - 9891  (वर्तमान) गठन     ग्राम पंचायत न्यु जनसंख्या  3000    न्यु सदस्य 9, अतिरिक्त सदस्य 1000 = +2 पंचायत समिति न्यु जनसंख्या 1 लाख,  न्यु सदस्य 15, अतिरिक्त सदस्य 15000 = +2 जिला परिषद न्यु जनसंख्या 4 लाख, न्यु सदस्य 17, अतिरिक्त सदस्य 1 लाख = +2 निवार्चन प्रणाली - जिला परिषद Election system शपथ - पीठासीन अधिकारी (Retarning Officer) ग्राम पंचायत - Teacher पचायत समिति - RAS जिला परिषद - IAS त्यागपत्र - वार्ड पंच व सरपंच - खण्ड विकास अधिकारी पंचायत समिति सदस्य - प्रधान प्रधान - जिला प्रमुख जिला परिषद सदस्य - जिला प्रमुख जिला प्रमुख - सम्भागीय आयुक्त  प्रशासनिक अधिकारी - ग्राम पचायत - ग्राम सेवक पंचायत समिति - बी.डी.ओ. (खण्ड विका अधिकारी) जिला परिषद - सी.ई.ओ. (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) बैठक  ग्राम पचायत - 15 दिन में 1 बार अध्यक्षता - सरपंच बैठक में भाग - वार्ड पंच पंचायत समिति प्रत्येक माह में 1 बार  अध्यक्षता - प्रधान भाग - सदस्य (ब्लाक मैबर) जिला परिषद - प्रत्येक 3 माह में 1 बार अध्यक्षता - जिला प्रमुख भाग - जिला परिषद सदस्य ग्राम सभा - बैठक वर्ष में चार बार 26 जनवरी 1 मई 15 अगस्त 2 अक्टूबर अध्यक्षता -  सरपंच सदस्य - ग्राम पंचायत के सभी मतदाता नोट - भारत में ग्राम सभा एक मात्र प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण हेै वार्ड सभा - वर्ष 2 बैठक (कभी भी) अध्यक्षता - वार्ड पंच सदस्य - वार्ड के सभी मतदाता पंचायती राज कि सबसे छोटी ईकाई वार्ड सभा पदेन सदस्य - पंचायत समिति - पंचायत समिति में सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच पंचायत समिति के क्षेत्र का विधान सभा सदस्य। जिला परिषद - जिले में सभी पंचायत समितियों के प्रधान व जिला परिषद क्षेत्र के लोकसभा व विधानसभा सदस्य।  पंचायत राज के प्रमुख प्रावधान योग्यता - न्यूनतम आयु - 21 वर्ष कार्यकाल - 5 वर्ष शैक्षणिक योग्यता -  वार्ड पंच - 5वीं पास,  सरपंच - 8वीं पास, पंचायत समिति व जिला परिषद सदस्य - 10वीं पास नोट: नवम्बर 1995 के बाद जिस व्यक्ति के तीसरी सन्तान पैदा होती ह��� वह इन चुनावों के लिए अयोग्य है। आरक्षण -  एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. को क्षेत्र कि जनसंख्या के आधार पर तथा महिलाओं को 50 प्रतिश��� आरक्षण  नोट: महिलाओं का आरक्षण चक्राकार है। पद से हटाने कि प्रक्रिया - दो वर्ष बाद ही अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। एक बार पारित न होने पर पुनः 1 वर्ष बाद लाया जाता है। प्रस्ताव पारित करने के लिए 3/4 बहुमत कि आवश्यता होती है। चुनाव -  राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा करवाये जाते है। जिसकी अधिसूचना राज्यपाल के द्वारा जारी कि जाती है। वर्तमान में मुख्य राज्य निर्वाचन आयुक्त - प्रेमसिंह मेहरा वेतन - राज्य वित्त आयोग लोक सभा व विधानसभा का सदस्य पंचायती राज का चुनाव नहीं लड़ सकता। व्यक्ति एक साथ किसी एक जगह से ही पंचायत राज का चुनाव लड़ सकता। जो व्यक्ति (ग्राम पंचायत) जिस जगह से चुनाव लड़ता है। उस मतदाता सूची में उसका नाम होना अनिवार्य है। 1996 का पैसा अधिनियम - सविधान के भाग 9 तथा 5वीं अनुसुचि में वर्णित क्षेत्रों पर लागु नहीं होता परन्तु संसद इन प्रावधानों को कुछ अपवादों तथा संशोधन करके उक्त क्षेत्रों पर लागु कर सकती है। यह अधिनियम वर्तमान में 9 राज्यों में लागु है - ओडिसा, मध्यप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखण्ड, छतीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, ट्रिक - ओम आम खाकर रांझा बनकर छगु के साथ हिमाचल चला गया। शहरी स्वशासन सन् 1687 ई. को भारत में सर्वप्रथम मद्रास में नगर निगम कि स्थापना कर शहरी स्वशासन को प्रारम्भ किया। सन् 1864 ई. को माउन्ट आबू में प्रथम नगर पालिका स्थापित करके राजस्थान में शहरी स्वशासन कि शुरूआत कि गई। राजस्थान की प्रथम निर्वाचित नगरपालिका ब्यावर। स्वतंत्रता के पश्चात राजस्थान में सर्वप्रथम 1951 में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम पारित करके लागु किया गया। 1959 में संशोधित नगरपालिका अधिनियम पारित करके लागु किया गया। नोट - 74वां संविधान संशोधन (1992) केे द्वारा सविधान में अनुसूची 12 को जोड़ा गया। उल्लेख - शहरी निकाय भाग - 9 क विषय - 18 अनुच्छेद 243 P (त) से 243 ZG (त छ) नोट: शहरी स्वशासन को 1 जुन 1993 को सम्पूर्ण भारत में एक साथ लागु किया गया। शहरी स्वशासन के निकाय - गठन - 1. नगर पालिका - न्युनतम जनसंख्या 20,000 - 1,00,000 2. नगर परिषद - न्युनतम जनसंख्या 1,00000 - 5,00000 3. नगर निगम - न्युनतम जनसंख्या 5,00000 से अधिक नोट: नगरपालिका व नगरपरिषद में न्युनतम सदस्य संख्या - 13 निर्वाचन प्रणाली - नगर निगम अध्यक्ष -  मेयर/महापौर - अप्रत्यक्ष सदस्य - वार्ड पार्षद - प्रत्यक्ष नगर परिषद अध्यक्ष - Chairperson/सभापति - अप्रत्यक्ष सदस्य - वार्ड पार्षद - प्रत्यक्ष नगर पालिका  अध्यक्ष - Chairmen/सभापति - अप्रत्यक्ष सदस्य - वार्ड पार्षद - प्रत्यक्ष नोट - 2014 को राजस्थान सरकार अध्यादेश के द्वारा शहरी निकायों के अध्यक्षों की निर्वाचन प्रणाली को अप्रत्यक्ष किया गया। योग्यता - न्युनत्तम आयु 21 वर्ष शैक्षणिक योग्यता - 10वीं पास कार्यकाल - 5 वर्ष आरक्षण - महिलाओं को 33 प्रतिशत राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 2009 के द्वारा महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया।  2010 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा महिलाओं के 50 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगा दी ��ई। अविश्वास प्रस्ताव दो वर्ष बाद कुल सदस्यों के 1/3 बहुमत से प्रस्ताव पेश किया जाता है। तथा प्रस्ताव पारित करने के लिये 3/4 बहुमत कि आवश्यकता होती है। प्रस्ताव पारीत करने के बाद Right to Recall  का प्रावधान है। राजस्थान में अब तक एक बार Right to Recall का प्रयोग किया गया है। इसका प्रयोग 2012 में मंगरोल (बारा) नगरपालिका के अध्यक्ष अशोक जैन के विरूद्ध किया गया लेकिन जनमत संग्रह अशोक जैन के पक्ष में रहा। वर्तमान में नगरपलिका - 149 वर्तमान में नगर परिषद - 34 वर्तमान में नगर निगम - 7 (सभी संभाग मुख्यालयों पर) प्रमुख अधिकारी -  नगरपालिका - ई.ओ. नगर परिषद - सी.ई.ओ. नगर निगम - कमिश्नर (आयुक्त) नगरीय स्वशासन की अन्य संस्थाऐं - नगर विकास न्यास कुल संख्या - 15 नगर विकास न्यास का अध्यक्ष - राज्य सरकार नियुक्त करती है। नगर विकास प्राधिकरण  कुल संख्या - 3 1. जयपुर 2. जोधपुर 3. अजमेर (14 अगस्त 2013) नोट: राज. में एक मात्र छावनी मण्डल - नसीराबाद (अजमेर) जिसका अध्यक्ष कमांडिग आॅफिसर होता है। जिला आयोजना समिति - अध्यक्ष - जिला प्रमुख कुल सदस्य - 25 (जिनमें 3 पदेन, 2 राज्य सरकार द्वारा मनोनित तथा 20 सदस्य जिले की ग्रामीण व नगरिय क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में जिला परिषद व नगर निकायों के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों में से निर्वाचित होते है। अनुच्छेद - 243T  आक्षरण  अनुच्छेद - 243U  कार्यकाल अनुच्छेद - 243V योग्यता नोट - स्थानिय स्वशासन की किसी भी संस्था के अध्यक्षता पद  मध्यावधि में रिक्त होने पर अधिकत 6 माह में पुनः निर्वाचन होना आवश्यक है तथा पुनः निर्वाचित अध्यक्ष का कार्यकाल शेष अवधि के लिए होता है।
http://advancestudytricks.blogspot.com/2020/04/local-self-government.html
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vidyaratna · 1 year ago
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Samvidhan Quiz 11
भारतीय संविधान से महत्वपूर्ण प्रश्न संग्रह इन सभी प्रश्नों की तैयारी Question Paper के रूप में कीजिए UPTET Online Mock Test 1 UPTET Online Mock Test 2 UPTET Online Mock Test 3
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indianopenminds · 5 years ago
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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कार्यकाल 3 में समाप्त हो रहा है। पुतिन का रिकॉर्ड रूस के लगातार तीन वर्षों तक रूस के सर्वोच्च शासक बने रहने के रिकॉर्ड में रहेगा। हालांकि, पुतिन को 5 वीं में सत्ता से हटना होगा। पुतिन ने अपने हाथों में शक्ति स्रोतों को रखने के लिए रूसी संविधान में कई बड़े संशोधनों को अपनाया है, भले ही उन्हें सत्ता से हटना पड़े।
3 जनवरी को संसद के संयुक्त सत्र में, पुतिन ने संविधान में संशोधन का सुझाव दिया। पुतिन द्वारा सुझाए गए संविधान के संशोधनों का पहला वाचन रूसी संसद - ड्यूमा - में तुरंत हुआ और इसे भी सर्वसम्मति से स्वीकृति मिली। इस पढ़ने की प्रक्रिया के दौरान, विपक्षी दलों ��े प्रस्तावों के साथ ही घटना के सुधार में सुझाव देने के लिए अध्यक्ष द्वारा गठित चार सदस्यों की कार्य योजना प्राप्त करने की उम्मीद है।
इस रूसी-शैली के सभी सामंजस्य में, मुझे ऐसा लगता है कि अगर कोई पुतिन के उत्तराधिकारी और सत्ता की राजनीति में उनकी भूमिका का जवाब ढूंढना चाहता है, तो बहुत कम है। हालांकि, एक बात निश्चित है कि संशोधन एक उत्तराधिकारी को खोजने के लिए पुतिन के अभियान का हिस्सा है, और ठीक यही बात पुतिन खुद चलाते हैं। अभियान का विवरण अभी तक स्पष्ट नहीं किया गया है।
प्रधानमंत्री का प्रतिनिधिमंडल और ड्यूमा के लिए प्रधानमंत्री की नियुक्ति एक बड़ी घटना है। वर्तमान संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति को केवल प्रधानमंत्री की नियुक्ति के लिए ड्यूमा की सहमति प्राप्त करनी होती है और यदि प्रस्तावित उम्मीदवार को तीन बार शपथ दिलाई जाती है, तो राष्ट्रपति को संसद को खारिज करने का अधिकार है। इसलिए, यह उल्लेखनीय है कि प्रस्तावित संशोधन में, प्रधान मंत्री और उनके मंत्रिमंडल पर ड्यूमा के निर्णय को राष्ट्रपति के लिए मम कहा जाएगा।
हालाँकि, इन अधिकारों के बिना भी, राष्ट्रपति के कार्यालय में असीमित शक्तियाँ हैं (नीचे दी गई सूची देखें), यह भी यहाँ ध्यान दिया जाना चाहिए। रूस एक मजबूत राष्ट्रपति गणराज्य बना रहेगा, पुतिन ने अपने 5 जनवरी के भाषण में कहा।
1949 के संविधान के अनुसार रूस के राष्ट्रपति के अधिकार -
रूस का राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है। राष्ट्रपति घरेलू और विदेश नीति के मूल लक्ष्यों को निर्धारित करता है। ड्यूमा की सहमति से, राष्ट्रपति सरकार के प्रमुख की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति को सभी सरकारी बैठकों का नेतृत्व करने का अधिकार है। राष्ट्रपति के पास सरकार के इस्तीफे को मंजूरी देने का अधिकार है। केंद्रीय बैंक ड्यूमा के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की सिफारिश कर सकता है। सरकार के प्रमुख और उनके प्रस्ताव के अनुसार सरकार के उप प्रमुखों और केंद्रीय मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति को अपने कर्तव्यों के निर्वहन का अधिकार है। मंत्रिमंडल संवैधानिक न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट, सुप्रीम आर्बिट्रेशन कोर्ट, अभियोजक जनरल और अध्यक्ष के पदों के लिए उम्मीदवारों की सिफारिश कर सकता है अन्य केंद्रीय न्यायालयों के न्यायाधीशों को नियुक्त करने का अधिकार भी है। रूसी संघ की सुरक्षा परिषद की स्थापना और नेतृत्व करना। सैन्य सिद्धांतों का अनुमोदन। पूर्ण प्राधिकारी की नियुक्ति और प्रतिनिधि। सशस्त्र बलों और गरिमा के शीर्ष कमांडरों की नियुक्ति। संविधान के प्रावधानों के अनुसार प्रक्रिया को लागू करके राज्य ड्यूमा को समाप्त करना। जनमत संग्रह की घोषणा, डमा के समक्ष मसौदा कानून का मसौदा तैयार करना और केंद्रीय कानूनों पर हस्ताक्षर करना। रूसी संघ की विदेश नीति का निर्धारण। सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर है। कानूनों और नियमों के प्रावधानों की घोषणा करने के लिए। इस राष्ट्रपति शासन में, रूस जैसे महाद्वीप के अधिकार को प्रदान करने के लिए संसद की असाधारण शक्तियां छोटी नहीं हैं। बुद्धिजीवियों के अनुसार, इन घटनाओं के सुधार के रूसी शासन पर दूरगामी परिणाम होंगे। एक बार जब पुतिन सत्ता से बाहर हो जाते हैं, तो बुद्धिजीवी आशावादी होते हैं कि एक सकारात्मक परिणाम दिखाई देगा। यह तर्क दिया जाता है कि भविष्य में मजबूत राजनीतिक दलों, स्वतंत्र संस्थानों और संयुक्त राज्यसभा के परिणामस्वरूप संसद मजबूत होगी।
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hindimaster · 2 years ago
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Now People From Outside Will Also Be Able To Cast Votes In Jammu And Kashmir, Big Announcement Of Election Commission
Now People From Outside Will Also Be Able To Cast Votes In Jammu And Kashmir, Big Announcement Of Election Commission
Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार ने बुधवार को कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में करीब 25 लाख नए मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में दर्ज होने की उम्मीद है. जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद पहली बार मतदाता सूची का विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण किया जा रहा है. उन्होंने 25 नवंबर तक मतदाता सूची के विशेष सारांश संशोधन…
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trendingwatch · 2 years ago
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केंद्र को संघीय ढांचे के खिलाफ नहीं जाना चाहिए: केरल के मुख्यमंत्री
केंद्र को संघीय ढांचे के खिलाफ नहीं जाना चाहिए: केरल के मुख्यमंत्री
पिनाराई विजयन ने कहा कि केरल की क्रेडिट सीमा बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। (फ़ाइल) Thiruvananthapuram/New Delhi: केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने रविवार को कहा कि केंद्र को संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ नहीं जाना चाहिए और इसकी समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषयों पर कानून राज्यों के परामर्श से बनाया जाना चाहिए। श्री विजयन ने कहा कि केंद्र सरकार को संविधान की राज्य सूची के मामलों पर कानून…
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suryyaskiran · 2 years ago
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हिरासत में मौत के मामलों में यूपी, बंगाल शीर्ष राज्यों की सूची : केंद्र
नई दिल्ली, 26 जुलाई (SK)। हिरासत में हुई मौतों के मामले में राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शीर्ष पर हैं। संसद को मंगलवार को यह जानकारी दी गई। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि उत्तर प्रदेश में क्रमश: 2021-22 और 2020-21 में हिरासत में मौत के कुल 501 और 451 मामले दर्ज किए गए और पश्चिम बंगाल में 257 और 185 ऐसे मामले दर्ज किए गए।उन्होंने कहा कि ये राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार 2021-22 और 2020-21 के दौरान देश भर में हिरासत में हुई मौतों के कुल 2,544 और 1,940 मामलों में से थे।मंत्री ने यह भी कहा कि पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार राज्य के विषय हैं, और यह मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकार की जिम्म��दारी है कि वह नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।इसी तरह, 2021-22 में 45 मामलों के साथ पुलिस मुठभेड़ों में मौत के मामले में दर्ज मामलों के मामले में जम्मू और कश्मीर राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है। देश भर में क्रमश: 2021-22 और 2020-21 में पुलिस मुठभेड़ों में मौत के संबंध में कुल 151 और 82 मामले दर्ज किए गए।मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार समय-समय पर परामर्श जारी करती है और मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 भी लागू किया है, जो लोक सेवकों द्वारा कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन को देखने के लिए एनएचआरसी और राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना को निर्धारित करता है। Read the full article
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