लखनऊ, 27.06.2024 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट और एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन के संयुक्त तत्वावधान में बनेश्वर महादेव मंदिर, सेक्टर 21, इंदिरा नगर, लखनऊ में Unity in Diversity : Cultural Fest थीम के अंतर्गत सांस्कृतिक कार्यक्रम "संगम" का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिभागियों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक एवं जागरूकता कार्यक्रम, गायत्री मंत्र, डांस, सॉन्ग, नृत्य प्रतियोगिता, डुएट सोलो डांस, रोल प्ले, नुक्कड़ नाटक, गेम वर्ड असेंबल प्रस्तुत किए गए । "संगम" कार्यक्रम के सभी विजेता प्रतिभागियों तथा विश्व पर्यावरण दिवस पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित “चित्रकला प्रतियोगिता” के विजेता प्रतिभागियों को कार्यक्रम में उपस्थित श्री ए. के. जायसवाल, सदस्य, आंतरिक सलाहकार समिति, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रतीक चिन्ह से सम्मानित किया गया |
कार्यक्रम का शुभारंभ बनेश्वर महादेव मंदिर से पंडित श्री बल्लू मिश्रा, एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन की छात्राओं सुश्री दीक्षा, सुश्री शिवानी तथा प्रतिभागियों वानी, सृष्टि, मिताली, आयुषी, निशा और लवली द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया ।
इस अवसर पर श्री ए. के. जायसवाल ने कहा कि, "आज का यह कार्यक्रम हमारे समाज के विकास और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट और एमिटी यूनिवर्सिटी की दो छात्राएं, जिन्होंने अपने सामुदायिक कार्यक्रम के तहत यहां के बच्चों को नित्य नयी और ज्ञानवर्धक बातें सिखाईं, उनके प्रति हम अत्यंत आभारी हैं । इस प्रकार के कार्यक्रम बहुत उपयोगी हो सकते हैं और इन्हें बढ़ावा देने की अत्यंत आवश्यकता है । उन्होंने आगे कहा, "हम इन छात्राओं की सराहना करते हैं जिन्होंने बहुत मेहनत की है । हम उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे समय-समय पर यहां आएं और जिन बच्चों को उन्होंने सिखाया है, उनकी प्रगति पर नजर रखें । हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से हम सभी का आभार प्रकट करते हैं तथा यह आश्वासन देते हैं कि जब भी आप सभी को मार्गदर्शन या सहायता की आवश्यकता होगी, ट्रस्ट सदैव आपकी मदद करेगा । जितनी भी महिलाएं और बच्चे यहां आए हैं हम सभी का आभार व्यक्त करते हैं और उम्मीद करते हैं कि आप सभी ट्रस्ट के कार्यक्रमों में भाग लें और ऐसे कार्यों में बच्चों को शामिल करें । हमारे इन प्रयासों से ही हम अपने समाज को बेहतर बना सकते हैं और अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं ।"
कार्यक्रम में वानी, सृष्टि, राज, अजीत, माही, काजल, कुहू, महिमा (लाडो), आस्था, श्रद्धा, राशि, कृष्णा, और वैभवी ने भाग लिया और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया । कार्यक्रम में स्वच्छता एवं स्वास्थ्य पर आधारित एक नुक्कड़ नाटक का भी मंचन किया गया जिसमें प्रतिभागियों ने सभी से अपने चारों तरफ स्वच्छता बनाए रखने की अपील की जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर हो सके | कार्यक्रम में विजेता प्रतिभागियों का विवरण इस प्रकार है:
युगल नृत्य प्रदर्शन - गीत: राधा कैसे न जले
1st पुरस्कार - राशि, कुहु तथा 2nd पुरस्कार – माही, काजल
एकल नृत्य प्रदर्शन - गीत: मैंने पायल हैं छनकाई
1st पुरस्कार – वानी,
गीत: दिल से बंधी एक डोर
2nd पुरस्कार – वैभवी
गीत: राधा रानी क्या लोगे
3rd पुरस्कार - महिमा (लाडो)
गायन प्रतियोगिता - गीत: कोई ना मिले तू मुझे मेरा ना कोई होके लागे (अपना बना ले पिया)
1st पुरस्कार – वानी
गीत: बमा बम बम लहरी
2nd पुरस्कार - राज
खेल (Word Assemble)
1st पुरस्कार - श्रद्धा, 2nd पुरस्कार - अजीत
विश्व पर्यावरण दिवस की ट्रॉफी
1st पुरस्कार - श्रद्धा, 2nd पुरस्कार - वाणी, 3rd पुरस्कार - आस्था, 4th पुरस्कार - सृष्टि तथा 5th पुरस्कार – वैभवी
इस अवसर पर अभिभावकगण एवं हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवक उपस्थित थे ।
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Bhaktamar Stotra Hindi
श्री प. हेमराज जी
आदिपुरुष आदीश जिन, आदि सुविधि करतार।
धरम-धुरंधर परमगुरु, नमों आदि अवतार॥
सुर-नत-मुकुट रतन-छवि करैं,
अंतर पाप-तिमिर सब हरैं।
जिनपद बंदों मन वच काय,
भव-जल-पतित उधरन-सहाय॥1॥
श्रुत-पारग इंद्रादिक देव,
जाकी थुति कीनी कर सेव।
शब्द मनोहर अरथ विशाल,
तिस प्रभु की वरनों गुन-माल॥2॥
विबुध-वंद्य-पद मैं मति-हीन,
हो निलज्ज थुति-मनसा कीन।
जल-प्रतिबिंब बुद्ध को गहै,
शशि-मंडल बालक ही चहै॥3॥
गुन-समुद्र तुम गुन अविकार,
कहत न सुर-गुरु पावै पार।
प्रलय-पवन-उद्धत जल-जन्तु,
जलधि तिरै को भुज बलवन्तु॥4॥
सो मैं शक्ति-हीन थुति करूँ,
भक्ति-भाव-वश कछु नहिं डरूँ।
ज्यों मृगि निज-सुत पालन हेतु,
मृगपति सन्मुख जाय अचेत॥5॥
मैं शठ सुधी हँसन को धाम,
मुझ तव भक्ति बुलावै राम।
ज्यों पिक अंब-कली परभाव,
मधु-ऋतु मधुर करै आराव॥6॥
तुम जस जंपत जन छिनमाहिं,
जनम-जनम के पाप नशाहिं।
ज्यों रवि उगै फटै तत्काल,
अलिवत नील निशा-तम-जाल॥7॥
तव प्रभावतैं कहूँ विचार,
होसी यह थुति जन-मन-हार।
ज्यों जल-कमल पत्रपै परै,
मुक्ताफल की द्युति विस्तरै॥8॥
तुम गुन-महिमा हत-दुख-दोष,
सो तो दूर रहो सुख-पोष।
पाप-विनाशक है तुम नाम,
कमल-विकाशी ज्यों रवि-धाम॥9॥
नहिं अचंभ जो होहिं तुरंत,
तुमसे तुम गुण वरणत संत।
जो अधीन को आप समान,
करै न सो निंदित धनवान॥10॥
इकटक जन तुमको अविलोय,
अवर-विषैं रति करै न सोय।
को करि क्षीर-जलधि जल पान,
क्षार नीर पीवै मतिमान॥11॥
प्रभु तुम वीतराग गुण-लीन,
जिन परमाणु देह तुम कीन।
हैं तितने ही ते परमाणु,
यातैं तुम सम रूप न आनु॥12॥
कहँ तुम मुख अनुपम अविकार,
सुर-नर-नाग-नयन-मनहार।
कहाँ चंद्र-मंडल-सकलंक,
दिन में ढाक-पत्र सम रंक॥13॥
पूरन चंद्र-ज्योति छबि��ंत,
तुम गुन तीन जगत लंघंत।
एक नाथ त्रिभुवन आधार,
तिन विचरत को करै निवार॥14॥
जो सुर-तिय विभ्रम आरंभ,
मन न डिग्यो तुम तौ न अचंभ।
अचल चलावै प्रलय समीर,
मेरु-शिखर डगमगै न धीर॥15॥
धूमरहित बाती गत नेह,
परकाशै त्रिभुवन-घर एह।
बात-गम्य नाहीं परचण्ड,
अपर दीप तुम बलो अखंड॥16॥
छिपहु न लुपहु राहु की छांहि,
जग परकाशक हो छिनमांहि।
घन अनवर्त दाह विनिवार,
रवितैं अधिक धरो गुणसार॥17॥
सदा उदित विदलित मनमोह,
विघटित मेघ राहु अविरोह।
तुम मुख-कमल अपूरव चंद,
जगत-विकाशी जोति अमंद॥18॥
निश-दिन शशि रवि को नहिं काम,
तुम मुख-चंद हरै तम-धाम।
जो स्वभावतैं उपजै नाज,
सजल मेघ तैं कौनहु काज॥19॥
जो सुबोध सोहै तुम माहिं,
हरि हर आदिक में सो नाहिं।
जो द्युति महा-रतन में होय,
काच-खंड पावै नहिं सोय॥20॥
(हिन्दी में)
नाराच छन्द :
सराग देव देख मैं भला विशेष मानिया।
स्वरूप जाहि देख वीतराग तू पिछानिया॥
कछू न तोहि देखके जहाँ तुही विशेखिया।
मनोग चित-चोर और भूल हू न पेखिया॥21॥
अनेक पुत्रवंतिनी नितंबिनी सपूत हैं।
न तो समान पुत्र और माततैं प्रसूत हैं॥
दिशा धरंत तारिका अनेक कोटि को गिनै।
दिनेश तेजवंत एक पूर्व ही दिशा जनै॥22॥
पुरान हो पुमान हो पुनीत पुण्यवान हो।
कहें मुनीश अंधकार-नाश को सुभान हो॥
महंत तोहि जानके न होय वश्य कालके।
न और मोहि मोखपंथ देय तोहि टालके॥23॥
अनन्त नित्य चित्त की अगम्य रम्य आदि हो।
असंख्य सर्वव्यापि विष्णु ब्रह्म हो अनादि हो॥
महेश कामकेतु योग ईश योग ज्ञान हो।
अनेक एक ज्ञानरूप शुद्ध संतमान हो॥24॥
तुही जिनेश बुद्ध है सुबुद्धि के प्रमानतैं।
तुही जिनेश शंकरो जगत्त्रये विधानतैं॥
तुही विधात है सही सुमोखपंथ धारतैं।
नरोत्तमो तुही प्रसिद्ध अर्थ के विचारतैं॥25॥
नमो करूँ जिनेश तोहि आपदा निवार हो।
नमो करूँ सुभूरि-भूमि लोकके सिंगार हो॥
नमो करूँ भवाब्धि-नीर-राशि-शोष-हेतु हो।
नमो करूँ महेश तोहि मोखपंथ देतु हो॥26॥
चौपाई
तुम जिन पूरन गुन-गन भरे,
दोष गर्वकरि तुम परिहरे।
और देव-गण आश्रय पाय,
स्वप्न न देखे तुम फिर आय॥27॥
तरु अशोक-तर किरन उदार,
तुम तन शोभित है अविकार।
मेघ निकट ज्यों तेज फुरंत,
दिनकर दिपै तिमिर निहनंत॥28॥
सिंहासन मणि-किरण-विचित्र,
तापर कंचन-वरन पवित्र।
तुम तन शोभित किरन विथार,
ज्यों उदयाचल रवि तम-हार॥29॥
कुंद-पुहुप-सित-चमर ढुरंत,
कनक-वरन तुम तन शोभंत।
ज्यों सुमेरु-तट निर्मल कांति,
झरना झरै नीर उमगांति ॥30॥
ऊँचे रहैं सूर दुति लोप,
तीन छत्र तुम दिपैं अगोप।
तीन लोक की प्रभुता कहैं,
मोती-झालरसों छवि लहैं॥31॥
दुंदुभि-शब्द गहर गंभीर,
चहुँ दिशि होय तुम्हारे धीर।
त्रिभुवन-जन शिव-संगम करै,
मानूँ जय जय रव उच्चरै॥32॥
मंद पवन गंधोदक इष्ट,
विविध कल्पतरु पुहुप-सुवृष्ट।
देव करैं विकसित दल सार,
मानों द्विज-पंकति अवतार॥33॥
तुम तन-भामंडल जिनचन्द,
सब दुतिवंत करत है मन्द।
कोटि शंख रवि तेज छिपाय,
शशि निर्मल निशि करे अछाय॥34॥
स्वर्ग-मोख-मारग-संकेत,
परम-धरम उपदेशन हेत।
दिव्य वचन तुम खिरें अगाध,
सब भाषा-गर्भित हित साध॥35॥
दोहा :
विकसित-सुवरन-कमल-दुति,
नख-दुति मिलि चमकाहिं।
तुम पद पदवी जहं धरो,
तहं सुर कमल रचाहिं॥36॥
ऐसी महिमा तुम विषै,
और धरै नहिं कोय।
सूरज में जो जोत है,
नहिं तारा-गण होय॥37॥
(हिन्दी में)
षट्पद :
मद-अवलिप्त-कपोल-मूल अलि-कुल झंकारें।
तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध उद्धत अति धारैं॥
काल-वरन विकराल, कालवत सनमुख आवै।
ऐरावत सो प्रबल सकल जन भय उपजावै॥
देखि गयंद न भय करै तुम पद-महिमा लीन।
विपति-रहित संपति-सहित वरतैं भक्त अदीन॥38॥
अति मद-मत्त-गयंद कुंभ-थल नखन विदारै।
मोती रक्त समेत डारि भूतल सिंगारै॥
बांकी दाढ़ विशाल वदन में रसना लोलै।
भीम भयानक रूप देख जन थरहर डोलै॥
ऐसे मृग-पति पग-तलैं जो नर आयो होय।
शरण गये तुम चरण की बाधा करै न सोय॥39॥
प्रलय-पवनकर उठी आग जो तास पटंतर।
बमैं फुलिंग शिखा उतंग परजलैं निरंतर॥
जगत समस्त निगल्ल भस्म करहैगी मानों।
तडतडाट दव-अनल जोर चहुँ-दिशा उठानों॥
सो इक छिन में उपशमैं नाम-नीर तुम लेत।
होय सरोवर परिन मैं विकसित कमल समेत॥40॥
कोकिल-कंठ-समान श्याम-तन क्रोध जलन्ता।
रक्त-नयन फुंकार मार विष-कण उगलंता॥
फण को ऊँचा करे वेग ही सन्मुख धाया।
तब जन होय निशंक देख फणपतिको आया॥
जो चांपै निज पगतलैं व्यापै विष न लगार।
नाग-दमनि तुम नामकी है जिनके आधार॥41॥
जिस रन-माहिं भयानक रव कर रहे तुरंगम।
घन से गज गरजाहिं मत्त मानों गिरि जंगम॥
अति कोलाहल माहिं बात जहँ नाहिं सुनीजै।
राजन को परचंड, देख बल धीरज छीजै॥
नाथ तिहारे नामतैं सो छिनमांहि पलाय।
ज्यों दिनकर परकाशतैं अन्धकार विनशाय॥42॥
मारै जहाँ गयंद कुंभ हथियार विदारै।
उमगै रुधिर प्रवाह वेग जलसम विस्तारै॥
होयतिरन असमर्थ महाजोधा बलपूरे।
तिस रनमें जिन तोर भक्त जे हैं नर सूरे॥
दुर्जय अरिकुल जीतके जय पावैं निकलंक।
तुम पद पंकज मन बसैं ते नर सदा निशंक॥43॥
नक्र चक्र मगरादि मच्छकरि भय उपजावै।
जामैं बड़वा अग्नि दाहतैं नीर जलावै॥
पार न पावैं जास थाह नहिं लहिये जाकी।
गरजै अतिगंभीर, लहर की गिनति न ताकी॥
सुखसों तिरैं समुद्र को, जे तुम गुन सुमराहिं।
लोल कलोलन के शिखर, पार यान ले जाहिं॥44॥
महा जलोदर रोग, भार पीड़ित नर जे हैं।
वात पित्त कफ कुष्ट, आदि जो रोग गह��� हैं॥
सोचत रहें उदास, नाहिं जीवन की आशा।
अति घिनावनी देह, धरैं दुर्गंध निवासा॥
तुम पद-पंकज-धूल को, जो लावैं निज अंग।
ते नीरोग शरीर लहि, छिनमें होय अनंग॥45॥
पांव कंठतें जकर बांध, सांकल अति भारी।
गाढी बेडी पैर मांहि, जिन जांघ बिदारी॥
भूख प्यास चिंता शरीर दुख जे विललाने।
सरन नाहिं जिन कोय भूपके बंदीखाने॥
तुम सुमरत स्वयमेव ही बंधन सब खुल जाहिं।
छिनमें ते संपति लहैं, चिंता भय विनसाहिं॥46॥
महामत गजराज और मृगराज दवानल।
फणपति रण परचंड नीरनिधि रोग महाबल॥
बंधन ये भय आठ डरपकर मानों नाशै।
तुम सुमरत छिनमाहिं अभय थानक परकाशै॥
इस अपार संसार में शरन नाहिं प्रभु कोय।
यातैं तुम पदभक्त को भक्ति सहाई होय॥47॥
यह गुनमाल विशाल नाथ तुम गुनन सँवारी।
विविधवर्णमय पुहुपगूंथ मैं भक्ति विथारी॥
जे नर पहिरें कंठ भावना मन में भावैं।
मानतुंग ते निजाधीन शिवलक्ष्मी पावैं॥
भाषा भक्तामर कियो, हेमराज हित हेत।
जे नर पढ़ैं, सुभावसों, ते पावैं शिवखेत॥48॥
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