#श्री यंत्र हमें
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श्री यंत्र पसुपथाय नमः निर्माण स्थल मिसिसिपी आयोवा,यूएसए के बैंक.
मानव/सुपर मानवीय गुणों के साथ देवी-देवताओं की पूजा,हालांकि वेदों द्वारा वकालत नहीं की जाती है,वे वास्तविकता की प्राप्ति पर जोर देते हैं,ब्राह्मण जो गुणों से परे है,वेदों और बाद के स्मृतियों,मानव मन की अक्षमता को महसूस करते हुए एक शून्य या विशेषता-रहित सिद्धांत पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पहले कदम के रूप में अनुशंसित.
इसे सगुण अराधना कहा जाता है,जबकि गुण-रहित ब्रह्म पर मन को स्थिर करते हुए निर्गुण अराधना कहा जाता है ।
अन्य हैं तरीके अनुशंसित।
ध्वनि,मंत्र के माध्यम से प्राप्ति ।
ज्यामितीय आकृतियों के माध्यम से, यंत्र।
गूढ़ प्रथाओं के माध्यम से,मन और शरीर, तंत्र को शामिल करना ।
सबसे शक्तिशाली यंत्रों में से एक श्री यंत्र है ।
हालांकि आम तौर पर ललिता देवी और कुछ ग्र��थों द्वारा लक्ष्मी को ललिता की विशेषता के रूप में जिम्मेदार ठहराया जाता है,श्री यंत्र निर्गुण उपासना है ।
कृपया ललिता,यंत्र, देवी अक्षरा पर मेरे लेख पढ़ें।
यंत्र में बीजा मंत्र 'श्रीराम,हरेम, क्लेम' शामिल हैं ।
इस ब्लॉग के पाठकों में से एक,श्री। लिन हनीकट ने मुझे इस प्रकार एक संदेश भेजा,कुछ दिन पहले ।
अभिवादन,
मैं एक आदमी से मिला जब मैं विस्कॉन्सिन में था और उसने मुझे एक तस्वीर दिखाई और कहा कि उसने इसे पाया । वह मिसिसिपी के तट पर एक निर्माण स्थल पर था । मैंने उसे एक संदेश भेजा और अधिक विवरण प्राप्त करने का प्रयास किया ।
क्या आप जानते हैं कि यंत्र पर कौन सी भाषा लिखी जाती है?’
इस यंत्र पर लिखी गई भाषा संस्कृत है ।
दिलचस्प बात यह है कि यंत्र में 'पसुपथाय नमः' वाक्यांश है।
पाशुपति भगवान शिव के लिए है और आमतौर पर श्री यंत्र में नहीं पाया जाता है ।
मैं विद्वानों और श्री विद्या उपासकों से इस पर अधिक प्रकाश डालने का अनुरोध करता हूं
* यंत्र मिसिसिपी,बर्लिंगटन,आयोवा,अमेरिका नदी के तट पर एक निर्माण स्थल में पाया गया था ।
'बस पुष्टि की कि यह बर्लिंगटन, आयोवा से आया है जहां मिसिसिपी नदी शहर के पूर्व में चलती है । ’
5000 साल पहले सिंधु घाटी में मोहनजा दारो में पाई गई पसुपति सील के बारे में एक बहस है ।
बहस का एक बिंदु यह है कि सील में पुरुष या महिला आकृति है या नहीं ।
इस पर लिखा जाएगा।.
सिहावा. अंग्रेजी में मेरा लेख.
यह लेख यांडेक्स अनुवाद उपकरण का उपयोग करके अंग्रेजी से उत्पन्न हुआ है ।
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Shraddha TV Satsang 25-07-2024 || Episode: 2633 || Sant Rampal Ji Mahara...
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🙏📚हमारे वेद शास्त्र पुराण बताते हैं कि *कावड़ यात्रा* करने वाले को घोर पाप लगते हैं!
🔱
शिवजी अभिर्भाव /जन्म और तिरोभाव /मरण में हैं! मृत्युंजय नहीं है ना ही अंतर्यामी हैं!
अपने पुजारी भस्मासुर के मन में पार्वती को लेकर कितने गंदे विचार उठ रहे थे,शिव जी इतना भी नहीं जान पाए!
श्रीदेवी पुराण में स्पष्ट है कि दुर्गा मां ,तमोंगुणी शिव जी की मां हैं। शिव जी का अभिर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) होता है! श्रीमदभगवत गीता में स्पष्ट है कि तीनों गुणों की भक्ति अनुतम/घटिया/अश्रेष्ठ/गलत/मनमानाआचरण है!
गीता ज्ञान दाता भगवान ने स्वीकार किया वह सतगुण विष्णु रजगुण ब्रह्मा तमगुण शिव जी इन तीनों गुणों से युक्त तीनों देवताओं का बीज स्थापित करने वाला पिता है और श्री दुर्गा देवी प्रकृति उनकी माता है?
हे अर्जुन !
हम सभी का तो जन्म और मरण होता है तेरे और मेरे भी अनेकों को जन्म हो चुके हैं आगे भी होते रहेंगे, अविनाशी तो उस परमात्मा को जान_जिसको जानने के बाद कुछ और जानने योग्य नहीं रहता! उसकी खबर किसी तत्वदर्शी संत से अति अधिनि भाव से युक्त होकर उसे दण्डवत प्रणाम करके उस परमात्म तत्व का भेद जान ले!
अर्जुन युद्ध करना नहीं चाहता था ना नहीं श्री कृष्ण जी युद्ध के हक में थे ,लेकिन श्री कृष्ण जी में ज्योति निरंजन काल भगवान जी ने ब्रह्म भूत की तरह प्रवेश करके श्री कृष्ण जी के मुख से अर्जुन को अपने स्वार्थ वश भांति भांति ज्ञान दिया तब भी अर्जुन युद्ध के लिए तैयार नहीं हुआ तो कॉल ने श्री कृष्ण जी में अपना प्रवेश करके विराट रूप दिखाकर अर्जुन को भयभीत कर दिया जिसे देखकर अर्जुन जैसे योद्धा काँप गये और युद्ध करने के लिए तैयार हो गया !
🔱शिव जी किसी भी आत्मा के लेख में लिखे हुए कर्म फलों को कम या ज्यादा नहीं कर सकते!
यह भी स्पष्ट होता है ना ही किसी की आयु बढ़ा सकते हैं! शिव ना तो अंतर्यामी है ना मृत्युंजय हैं!
स्वयं परम अक्षर पुरुष _पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ने विष्णु जी का मोहनी रूप बनाकर शिवजी की भस्मासुर से रक्षा की !
🪕कबीर_सूक्ष्म वेद /पांचवां वेद और संत गरीबदास जी का 📕अमर ग्रंथ यह स्पष्ट करता है कि इन पांचो का रचा हुआ प्रपंच है! ( तीनों देवता ब्रह्मा विष्णु शिव + श्री दुर्गा प्रकृति देवी और ज्योति निरंजन काल ( जिसका एक अक्षर मंत्र है ओम )
तीन गुणों की माया में उलझाए रखकर जीवात्मा को पाप कर्मों में धकेले रखते हैं और उसे जन्म मरण और 84 लाख योगिया में जाने के लिए बाध्य करे रखते हैं !
छ: विकारों के कारण ही जीव आत्मा को कर्म बंधन लगते हैं! ये विषय विकार काल ने अपने स्वार्थ वश जीवात्मा को लगा रखे हैं!
इसी कारण आत्मा अपने मूल धर्म और कर्तव्य से वंचित रहती है और पाप पुण्य कर्मों में फंसी रहती है और फिर इसी लोक में जन्मती और मरती रहती है 84 लाख योनियों में जाती है !
केवल एक पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ही हमें इस भवसागर से पार लगा सकते हैं !
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के रूप में अवतरित हैं!
नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करायें!
🙏सब्सक्राइब करें संत रामपाल जी महाराज YouTube Channel पर और प्रतिदिन अवश्य देखें पवित्र सत्संग साधना 📺 चैनल 7:30 p.m. से 8:30 p.m तक !
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🙏जरूर देखते रहें_ SA न्यूज़ चैनल!
🙏अवश्य विजिट करते रहें_ सतलोक आश्रम! यू ट्यूब Channel
🙏 दुर्लभ और अनमोल मानव जन्म मोक्ष के लिए मिला है! इसे हल्के में ना लें!
📚अपने वेद शास्त्रों पुराणों से अवश्य अपना परिचय करें !
आज पढ़ा लिखा युग है!
परमात्मा कबीर जी ने हमारे लिए इतने यंत्र बना दिए हैं,
इतनी सुविधा कर दी हैं कि
हम अपने मूल मालिक को आसानी से पहचान सकते हैं !
सुख पाने की या परमात्मा पाने की ��ाह में एक बार आत्मा से नजर उठाकर संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान को ध्यानपूर्वक लगातार सुनें!
काल के जाल में + कर्म बंधन में कैसे फंसी आत्मायें_जानेंगे _संत रामपाल जी महाराज के पवित्र सत्संगों से_जो हमारे शास्त्रों के अनुकूल हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार सत्य तत्व ज्ञान के आधार पर हमें प्रदान कर रहे हैं! महा उपकार का कार्य कर रहे हैं संत रामपाल जी महाराज !
इतिहास इस उपकार को सुनहरी अक्षरों में लिखेगा सृष्टि इस उपकार को कभी नहीं भूल पाएगी!
📚सत साहेब जी🙏 जय बंदीछोड़ की🙏
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नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना,जानिए पूजन विधि और स्तुति
*🚩🔱ॐगं गणपतये नमः🔱🚩*
🌹 *सुप्रभात जय श्री राधे कृष्णा*🌹
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
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नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गाजी की सातवीं शक्ति देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं अर्थात इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।
नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गाजी की सातवीं शक्ति देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं अर्थात इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं। दुर्गा पूजा के दिन साधक का मन 'सहस्त्रार चक्र' में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूरी तरह से माँ कालरात्रि के स्वरूप में स्थित रहता है। यह शुभंकरी देवी हैं इनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती।
मां का स्वरूप : पुराणों के अनुसार देवी दुर्गा ने राक्षस रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा भय मुक्त हो जाता है। इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है और सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है व इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के सामान चमकीली किरणें प्रवाहित होती रहती हैं।इनकी नासिका के श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं एवं इनका वाहन गर्दभ है।इनके ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं तथा दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है।बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खडग धारण किए हुए हैं। माँ कालरात्रि का स्वरुप देखने में अत्यंत भयानक है,लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं।इसी कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है अतः इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता न��ीं है।
पूजा फल : माता कालरात्रि अपने उपासकों को काल से भी बचाती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती।इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत,प्रेत,राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं एवं ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं।इनके उपासक को अग्नि-भय,जल-भय,जंतु-भय,शत्रु-भय,रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते अतः हमें निरंतर इनका स्मरण,ध्यान और पूजन करना चाहिए। सभी व्याधियों और शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए माँ कालरात्रि की आराधना विशेष फलदायी है।
पूजा विधि : कलश पूजन करने के उपरांत माता के समक्ष दीपक जलाकर रोली, अक्षत,फल,पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए। देवी को लाल पुष्प बहुत प्रिय है इसलिए पूजन में गुड़हल अथवा गुलाब का पुष्प अर्पित करने से माता अति प्रसन्न होती हैं। मां काली के ध्यान मंत्र का उच्चारण करें, माता को गुड़ का भोग लगाएं तथा ब्राह्मण को गुड़ दान करना चाहिए।
ध्यान मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा। वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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पूरा अवश्य पढ़ें ➡️ पुराने समय में सिंचाई के लिए एक कुंआ खोदा जाता था। उससे पानी निकालने के लिए एक पहिये जैसा बड़ा चक्र लोहे का बनाया जाता था जो लकड़ी के सहारे कुऐं के ऊपर मध्य में रखा जाता था। उसके ऊपर लंबी चैन की तरह बाल्टियाँ लगाई जाती थी। कुंए से कुछ दूरी पर कोल्हू जैसा यंत्र लगाकर बैलों के द्वारा चलाया जाता था। बाल्टियाँ जो चैन (पटे) पर लगी होती थी, वे बैल द्वारा घुमाने से खाली नीचे कुंए में चली जाती थी, पानी से भरकर ऊपर आती थी। ऊपर एक नाले में खाली होकर फिर नीचे कुंए में भरने के लिए जाती थी। यह क्रम सारा दिन और महीनों चलता रहता था। इसका उदाहरण देकर संत गरीबदास जी ने समझाया है कि जब तक तत्वदर्शी संत (सतगुरू=सच्चा गुरू) नहीं मिलता, तब तक जीव स्वर्ग-नरक, पृथ्वी पर ऐसे चक्र काटता रहता है जैसे रहट की बाल्टियाँ नीचे कुंए से जल भरकर लाती हैं। ऊपर नाले में खाली होकर पुनः कुंए में चली जाती हैं। उसी प्रकार जीव पृथ्वी पर पाप-पुण्य से भरकर ऊपर स्वर्ग-नरक में अपने कर्म सुख-दुःख भोगकर खाली होकर पृथ्वी पर जन्मता-मरता रहता है। इस जन्म-मरण के हरहट (रहट) वाले चक्र में चींटी (कीड़ी), कुंजर (हाथी) और अवतारगण यानि श्री राम, श्री कृष्ण, श्री विष्णु, श्री ब्रह्मा तथा श्री शिव जी आदि-आदि भी चक्कर काट रहे हैं। इसी के गल बंधे हैं यानि कर्मों के रस्से से बँधकर इस चक्र में गिरे हैं। • ⬇️ अवश्य पढ़ें अनमोल पुस्तक 'जी��े की राह' और 'ज्ञान गंगा'। मुफ्त पीडीएफ प्राप्त करने हेतु कृपया हमें मैसेज करें। ⬇️ DM to get PDF of invaluable books 'Way of Living' & 'Gyan Ganga' by Jagatguru Saint Rampal Ji for free. • ऐसे ही ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए कृपया 👉🏼 @bhaktibodh ⬅️ को फॉलो करें। Please follow 👉🏼 @bhaktibodh ⬅️ for similar informative posts. • • #saintrampalji #goodthoughts #suvichar #satsang #santrampalji #bhajan #bhakti #gyan #anmolbachan #anmolvachan #rssbquote #shabad #gyankibaat #santmat #radhasoamiderabeas #derabeas #radhaswamispritual #kabirisgod #satlok #satlokashram #supremegod #garibdassji #trueguru #sanews #kabirvani #sanewschannel #bhagwan #bhajan #bhaktibodh #allahisgreat #kabirisalmightygod • YouTube - 'Satlok Ashram' https://www.instagram.com/p/CDL_hVtpIdO/?igshid=x6mjahlm69mk
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हर प्रकार के उपहार का समाधान ‘गिफ्ट क्या दे’
आज के समय में उपहार देने के मामले में लोगों में बहुत कंफ्यूज़न रहती है तथा उन्हें समझ नहीं आता की वे किस प्रकार के उपहार किसी को भेंट करे | मन में अनेको प्रकार के सवाल आते हैं जैसे क्या यह उपहार उनके काम आएगा? क्या यह उपहार उन्हें पसंद आएगा ? ऐसे अनेको सवालों के साथ उपहारों का चयन करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है | आपके उपहार खरीदी में आने वाली हर समस्या का समाधान आपको मिलेगा ‘गिफ्ट क्या दे’ पर |
GIFT KYA DE एक ऐसी ऑनलाइन गिफ्ट वेबसाइट है जी आपको उपहार चयन करने में सहायक साबित होगा | यह मेड इन इंडिया की सोच का समर्थन करता है तथा हस्तकला में माहिर कारीगरों के लिए रोज़गार का बेहतर माध्यम है | हस्तकला के कारीगर जो की इस आधुनिक दौर में विभिन्न प्रकार की मुश्किलों से गुज़र रहे हैं तथा उनकी कला विलुप्ति की कगार पर है | GIFT KYA DE ऐसे ही प्रतिभाशाली कारीगरों के जीवन में एक बदलाव लाया है | कोविड के दौरान इस स्टार्टअप की शुरुआत हुई जहां लोग नौकरी गवा रहे थे वहीँ GIFT KYA DE लोगों को रोज़गार प्रदान का रहा था | गिफ्ट क्या दे एक ऐसी ऑनलाइन वेबसाइट है जहां आपको अनेको विभिन्न केटेगरी के गिफ्ट्स मिलेंगे |
ऑफिस गिफ्ट्स
त्यो���ारों से संबंधित गिफ्ट्स
मोटिवेशनल
धार्मिक
वैलेंटाइन
गेट वेल सून
परसनलाइज़्ड ऐसे अनेकों प्रकार के गिफ्ट्स आपको ‘गिफ्ट क्या दे’ में मिलेंगे और सबसे अनोखी बात यह है की इतनी विविधता के साथ मेड इन इंडिया गिफ्ट आइटम्स शायद ही आपको कहीं मिलेंगे | यहाँ उपलब्ध सभी आइटम्स वुडन द्वारा निर्मित हैं जो की वेस्ट वुडन से बनाये जाते हैं| ‘गिफ्ट क्या दे’ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से संचालित किया जाता है तथा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में इसकी डिलीवरी सुविधा उपलब्ध है| गिफ्ट क्या दे आपको ऐसे गिफ्ट आइटम्स उपलब्ध करवाता है जो हर प्रकार के त्यौहारों ,रिश्तों के लिए बनाये गए हैं | दिन-प्रतिदिन इस वेबसाइट में लोग भारी मात्रा में जुड़ रहे हैं और सभी का अनुभव काफी अच्छा रहा है |
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गिफ्ट क्या दे में उपलब्ध है व्यापार वृद्धि श्री यंत्र
गिफ्ट क्या दे न केवल फैंसी आइटम्स रखता है बल्कि विभिन्न धर्मो से सम्बंधित ऐसी वस्तुए भी उपलब्ध कराता है जो की बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक होती है | श्री यंत्र की मांग गिफ्ट क्या दे की वेबसाइट में सार्वधिक मात्रा में है | यह यंत्र कॉर्पोरेट जगत में ख़ास तौर पर प्रख्यात है | हिन्दू वास्तु की मान्यताओं के अनुसार श्री यंत्र को अपने ऑफिस में लगाने से यह व्यापार में वृद्धि लाता है तथा वातावरण में एक नई ऊर्जा का संचार करता है | आप इसे अपने कलीग या बॉस को उपहार स्वरुप दे सकते हैं| वास्तु सम्बंधित यह एक ऐसी रचना है जिसका अनुभव लाखों वर्षों से लोग करते आ रहे हैं तथा सकारत्मक परिणाम देख चुके हैं | सौभाग्य और सुख को आकर्षित करने के लिए यह व्यापार वृद्धि यंत्र बहुत सहायक है। श्री यंत्र व्यक्ति के स्वास्थ्य और धन और समृद्धि को बनाए रखने में बहुत सहायक होता है। यह यंत्र छोटा, पोर्टेबल और संभालने में आसान है। काम करने और पूजा करने के लिए श्री यंत्र को अपने साथ ले जाएं।
सभी परेशानियों और नकारात्मकताओं का समाधान: श्री यंत्र का उपयोग मन की शांति, धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह हमें सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है जो हमें अपने आसपास किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है। यह हमारे आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है । यह आपके परिवेश में सौभाग्य लाता है।
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Dr. Narayan Dutt Shrimali Life Story in Hindi
डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली की जीवनी
ॐ गुं गुरूभ्यो नमः
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरूभ्यो नमः
गुरु भगवान की कृपा आप सभी पर सदा बनी रहे ।
जन्म : 21 अप्रैल 1935
नाम : डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली
सन्यासी नाम : श्री स्वामी निखिलेश्वरानंद जी महाराज
जन्म स्थान : खरन्टिया पिता : पंडित मुल्तान चन्द्र श्रीमाली शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) राजस्थान विश्वविद्यालय 1963. पी.एच.डी. (हिन्दी) ��ोधपुर विश्वविद्यालय 1965
योग्यता क्षेत्र : आपने प्राच्य विद्याओं दर्शन, मनोविज्ञान, परामनोविज्ञान, आयुर्वेद, योग, ध्यान, सम्मोहन विज्ञानं एवं अन्य रहस्यमयी विद्याओं के क्षेत्र में विशेष रूचि रखते हुए उनके पुनर्स्थापन में विशेष कार्य किया हैं. आपने लगभग सौ से ज्यादा ग्रन्थ – मन्त्र – तंत्र, सम्मोहन, योग, आयुर्वेद, ज्योतिष एवं अन्य विधाओं पर लिखे हैं.
चर्चित कृतियाँ : प्रैक्टिकल ह���प्नोटिज्म, मन्त्र रहस्य, तांत्रिक सिद्धियाँ, वृहद हस्तरेखा शास्त्र, श्मशान भैरवी (उपन्यास), हिमालय के योगियों की गुप्त सिद्धियाँ, गोपनीय दुर्लभ मंत्रों के रहस्य, तंत्र साधनायें.
अन्य : कुण्डलिनी नाद ब्रह्म, फिर दूर कहीं पायल खनकी, ध्यान, धरना और समाधी, क्रिया योग, हिमालय का सिद्धयोगी, गुरु रहस्य, सूर्य सिद्धांत, स्वर्ण तन्त्रं आदि.
सम्मान एवं पारितोषिक : भारतीय प्राच्य विद्याओं मन्त्र, तंत्र, यंत्र, योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में अनेक उपाधि एवं अलंकारों से आपका सम्मान हुआ हैं. पराविज्ञान परिषद् वाराणसी में सन् 1987 में आपको “तंत्र – शिरोमणि” उपाधि से विभूषित किया हैं. मन्त्र – संसथान उज्जैन में 1988 में आपको मन्त्र – शिरोमणि उपाधि से अलंकृत किया हैं. भूतपूर्व उपराष्ट्रपति डॉ. बी.डी. जत्ती ने सन् 1982 में आपको महा महोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया हैं.
उपराष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने 1989 में समाज शिरोमणि की उपाधि प्रदान कर उपराष्ट्रपति भवन में डॉ. श्रीमाली का सम्मान कर गौरवान्वित किया हैं. नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री भट्टराई ने 1991 में उनके सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में विशेष योगदान के लिए नेपाल में आपको सम्मानित किया हैं.
अध्यक्षता : भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित होने वाली विश्व ज्योतिष सम्मलेन 1971 में आपने कई देशों के प्रतिनिधियों के बीच अध्यक्ष पद सुशोभित किया. सन् 1981 से अब तक अधिकांश अखिल भारतीय ज्योतिष सम्मेलनों के अध्यक्ष रहे.
संस्थापक एवं संरक्षक : अखिल भारतीय सिद्धाश्रम साधक परिवार. संस्थापक एवं संरक्षक – डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली फौंडेशन चेरिटेबल ट्रस्ट सोसायटी.
विशेष योगदान : सम्मलेन, सेमिनार एवं अभिभाषणों के सन्दर्भ में आप विश्व के लगभग सभी देशों की यात्रा कर चुके हैं. आपने तीर्थ स्थानों एवं भारत के विशिष्ट पूजा स्थलों पर आध्यात्मिक एवं धार्मिक द्रष्टिकोण से विशेष कार्य संपन्न किये हैं. उनके एतिहासिक एवं धार्मिक महत्वपूर्ण द्रष्टिकोण को प्रामाणिकता के साथ पुनर्स्थापित किया हैं. सभी 108 उपनि��दों पर आपने कार्य किया हैं, उनके गहन दर्शन एवं ज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत कर जन सामान्य के लिए विशेष योगदान दिया हैं. अब 23 उपनिषदों का प्रकाशन हो रहा है���. मन्त्र के क्षेत्र में आप एक स्तम्भ के रूप में जाने जाते हैं, तंत्र जैसी लुप्त हुयी गोपनीय विद्याओं को डॉ. श्रीमाली जी ने सर्वग्राह्य बनाया हैं. आपने अपने जीवन में कई तांत्रिक, मान्त्रिक सम्मेलनों की अध्यक्षता की हैं. भारत की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में 40 से भी अधिक शोध लेख मंत्रों के प्रभाव एवं प्रामाणिकता पर प्रकाशित कर चुके हैं.
आप पुरे विश्व में अभी तक कई स्थानों पर यज्ञ करा चुके हैं, जो विश्व बंधुत्व एवं विश्व शांति की दिशा में अद्वितीय कार्य हैं. योग, मन्त्र, तंत्र, यंत्र, आयुर्वेद विद्याओं के नाम से अभी तक सैकडो साधना शिविर आपके दिशा निर्देश में संपन्न हो चुके हैं.
सिद्धाश्रम :
डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली फौंडेशन इंटरनॅशनल चेरिटेबल ट्रस्ट सोसायटी द्वारा निर्मित एक भव्य, जिवंत, जाग्रत, शिक्षा, संस्कृति व अध्यात्म का विशालतम केंद्र सिद्धाश्रम. न केवल भारतवर्ष अपितु विदेशों में उपरोक्त विद्याओं का विस्तार, साधना शिविरों की देशव्यापी श्र्रंखला. प्राकृतिक चिकित्सा व आयुर्वेद अनुसन्धान व उत्थान केंद्र. मानवतावादी अध्यात्मिक चेतना का विस्तार.
मेरे गुरुदेव क्यों छिपाएं रखते हैं अपने आपको?
मुझे यह फक्र हैं की मेरे गुरु पूज्य श्रीमालीजी (डॉ. नायारण दत्त श्रीमालीजी) हैं, मुझे उनके चरणों में बैठने का मौका मिला हैं, और यथा संभव उन्हें निकट से देखने का प्रयास किया हैं.
उस दिन वे अपने अंडर ग्राउंड में स्थित साधना स्थल पर बैठे हुए थे, अचानक निचे चला गया और मैंने देखा उनका विरत व्यक्तित्व, साधनामय तेजस्वी शरीर और शरीर से झरता हुआ प्रकाश…. ललाट से निकलता हुआ ज्योति पुंज और साधना की तेजस्विता से ओतप्रोत उस समय का वह साधना कक्ष…. जब की उस साधनात्मक विद्युत् प्रवाह से पूरा कक्ष चार्ज था, ऊष्णता से दाहक रहा था और मात्र एक मिनट खडा रहने पर मेरा शरीर फूंक सा रहा था, कैसे बैठे रहते हैं, गुरुदेव घंटों इस कक्ष में?
बाहर जन सामान्य में गुरुदेव कितने सरल और सामान्य दिखाई देते हैं, कब पहिचानेंगे हम सब लोग उन्हें? उस अथाह समुद्र में से हम क्या ले पाएं हैं अब तक…… क्यों छिपाएं रखते हैं, वे अपने आपको?
-सेवानंद ज्ञानी १९८४ जन. – फर.
परमारथ के कारणे साधू धरियो शरीर.
बात उस समय की हैं, जब पूज्यपाद सदगुरुदेव अपने संन्यास जीवन से संकल्पबद्ध होकर वापस अपने गृहस्थ संसार में लौटे थे. जब वे स��्यास जीवन के लिए ईश्वरीय प्रेरणा से घर से निकले थे, तो उनके पास तन ढकने के लिए एक धोती, एक कुरता और एक गमछा था. साथ में एक छोटे से झोले में एक धोती और कुरता अतिरिक्त रूप से था. इसके अलावा उनके पास और कुछ भी नहीं था. न ही कोई दिशा स्पष्ट थी और न ही कोई मंजिल स्पष्ट थी, केवल उनके हौसले बुलंद थे और ईश्वर में आस्था थी. यही उनकी कुल पूंजी थी, जिसके सहारे संघर्स्मय एवं इतने लम्बे जीवन की यात्रा पूरी करनी थी.
जब वे कुछ समय सन्यास जीवन में बिताकर वापस अपने गाँव लौटे, तो गाँव वाले, परिवार के लोग एवं क्षेत्र के सभी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित हुए. सभी ने उनका सहर्ष स्वागत सत्कार किया, लेकिन सभी के मनोमस्तिष्क में यही गूंज रहा था कि इन्हें क्या मिला? हमें भी कुछ दिखाएं.
जब यह प्रश्न सदगुरुदेव जी तक पहुंचा, तो वे बड़े ही प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि हमारी भी यही इच्छा हैं कि जो कुछ भी हमारे पास हैं वह मैं सभी को दिखाऊं.
गुरुदेव जी सभी के मध्य में खड़े हुए और अपना एक हाथ फैलाया और बताया कि जब मैं यहाँ से गया था तो मेरे पास यह था और हाथ की बंधी मुट्ठी को खोला तो उसमें कुछ कंकण निकले. उन्होंने बताया कि यही मेरे पास थे, जिन्हें मैं लेकर अपने साथ गया था और जो कुछ मैं लेकर लौटा हूँ, वह मेरी हाथ की दूसरी मुट्ठी में हैं. सभी लोग दूसरी मुट्ठी को देखने के लिए आतुर हो उठे. लेकिन गुरुदेव जी ने जब दूसरी मुट्ठी खोली तो सभी हैरत में पड गए. क्योंकि वह मुट्ठी बिलकुल ही खाली थी. सभी को आशा था कि इसमें कुछ अजूबा होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
गुरुदेव जी ने बताया कि जो कुछ मेरे पास था वह भी मैं गँवा कर आ रहा हूँ. मैं बिलकुल ही खाली होकर आ रहा हूँ. बिलकुल खाली हूँ, इसलिए अब जीवन में कुछ कर सकता हूँ. मैं अपने सन्यास जीवन में कोई जादू टोने टोटके सीखने नहीं गया था, हाथ सफाई की ये क्रियाएं यहाँ रहकर भी सीख सकता था, लेकिन मैं अपने जीवन में पूर्ण अष्टांग योग, सहित यम, नियम, आहार, प्रत्याहार, ……धारणा, ध्यान, समाधि, के पूर्णत्व स्तर पर पहुँचाने के लिए ही यह सन्यास मार्ग चुना. अब मुझे इन कंकनो पत्थरों के भार को ढोना नहीं पड़ेगा, अगर ढोना नहीं पड़ेगा तो मैं स्वतंत्र होकर बहुत कुछ कर सकता हूँ. क्योंकि ज्ञान को धोने की जरुरत नहीं पड़ेगी, वह स्वयं ही उत्पन्न होता रहता हैं. स्वतः ही उसमें सुगंध आने लगती हैं.
उसमें आनंद के अमृत की वर्ष होने लगती हैं और वह तब तक नहीं प्राप्त हो सकता, जब तक हम इन कंकनों एवं पत्थरों को ढोते रहेंगे. अपने इस हाड-मांस को ढोने से कुछ नहीं होने वा��ा हैं, जब तक इसमें चेतना नहीं होगी. चेतना को पाने के लिए एकदम से खाली होना पड़ता हैं, सब कुछ गंवाना पड़ता हैं, सब कुछ दांव पर लगाना पड़ता हैं. तब जाकर चेतना प्रस्फुटित होती हैं और तब उस प्रस्फुटित चेतना को दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं, बल्कि दुनिया उसे स्वयं देखती हैं, बार-बार देखती हैं, घुर-घूरकर देखती हैं. क्योंकि उसे इस हाड मांस में कुछ और ही दिखाई देता हैं, जिसे चैतन्यता कहते हैं. चेतना कहते हैं, ज्ञान कहते हैं. और उसे उस मुट्ठी में देखने की जरुरत नहीं हैं, क्योंकि वह मुट्ठी में समाने वाली चीज नहीं हैं, वह इस समस्त संसार में समाया हैं, जो सब कुछ सबको दिखाई दे रहा हैं.
Books by Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji:- 1. Practical Palmistry 2. Practical Hypnotism 3. The Power of Tantra 4. Mantra Rahasya 5. Meditation 6. Dhyan, Dharana aur Samadhi 7. Kundalini Tantra 8. Alchemy Tantra 9. Activation of Third Eye 10. Guru Gita 11. Fragrance of Devotion 12. Beauty – A Joy forever 13. Kundalini naad Brahma 14. Essence of Shaktipat 15. Wealth and Prosperity 16. The Celestial Nymphs 17. The Ten Mahavidyas 18. Gopniya Durlabh Mantron Ke Rahasya. 19. Rahasmaya Agyaat tatntron ki khoj men. 20. Shmashaan bhairavi. 21. Himalaya ke yogiyon ki gupt siddhiyaan. 22. Rahasyamaya gopniya siddhiyaan. 23. Phir Dur Kahi Payal Khanki 24. Yajna Sar 25. Shishyopanishad 26. Durlabhopanishad 27. Siddhashram 28. Hansa Udahoon Gagan Ki Oar 29. Mein Sugandh Ka Jhonka Hoon 30. Jhar Jhar Amrit Jharei 31. Nikhileshwaranand Chintan 32. Nikhileshwaranand Rahasya 33. Kundalini Yatra- Muladhar Sey Sahastrar Tak 34. Soundarya 35. Mein Baahen Feilaaye Khada Hoon 36. Hastrekha vigyan aur panchanguli sadhana.
ब्रह्मवैवर्त पुराण में व्यास मुनि ने स्पष्ट लिखा है, कि भगवान् के अवतारों स्वरुप में दस गुण अवश्य ही परिलक्षित होंगे और इन्हीं दस गुणों के आधार पर संसार उन्हें पहिचानेगा।
तपोनिष्ठः मुनिश्रेष्ठः मानवानां हितेक्षणः । ऋषिधर्मत्वमापन्नः योगी योगविदां वरः दार्शनिकः कविश्रेष्ठः उपदेष्टा नीतिकृत्तथा । युगकर्तानुमन्ता च निखिलः निखिलेश्वरः ॥ एभिर्दशगुणैः प्रीतः सत्यधर्मपरायणः । अवतारं गृहीत्चैव अभूच्च गुरुणां गुरुः ॥
सदगुरुदेव पूज्यपाद डॉ नारायणदत्त श्रीमाली जी, संन्यासी स्वरुप निखिलेश्वरानंद जी का विवेचन आज यदि महर्षि व्यास द्वारा उध्दृत दस गुणों के आधार पर किया जाए, तो ��िश्चय ही सदगुरुदेव अवतारी पुरूष हैं, जिन्होनें अपने सांसारिक जीवन का प्रारम्भ एक सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में किया – सुदूर पिछडा रेगिस्तानी गांव था। जब इनका जन्म हुआ तो माता-पिता को प्रेरणा हुई, कि इस बालक का नाम रखा जाए – ‘नारायण’।
यह नारायण नाम धारण करना और उस नारायण तत्व का निरंतर विस्तार केवल युगपुरुष नारायण दत्त श्रीमाली के लिए ही सम्भव था, जिन्होनें अपने अल्पकालीन भौतिक जेवण में शिक्षा का उच्चतम आयाम ग्रहण कर पी.एच.डी. अर्थात डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की��
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गणेश चतुर्थी पर आपसभी को हार्दिक शुभकामनायें,,,,, ॐ श्री गणेशाय नमः ॐ श्री गणेशाय नमः ॐश्री गणेशाय नमः ॐ श्री गणेशाय नमः ॐश्री गणेशाय नमः ॐ रिद्धि सिद्धि देवाये नमः ॐ सर्वसिद्धि देवाये नमः ॐ सर्वविध्न नाशाय नमः ॐ गणनायकाय नमः ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ 🌹🙏🏻🌹 वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ अर्थ सहित जानिए प्रभु गणेश जी के 5 महामंत्र वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, यानि घुमावदार सूंड वाले जिनका विशालकाय शरीर है और जो करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान दिखते हैं। ऐसे गणेश जी की पूजा करने के लिए कुछ महामंत्र बताए गए हैं। जो आसान है और हर संस्कृत नहीं जानने वाले लोग भी इन मंत्रों को पढ़ सकते हैं। इन मंत्रों को बोलने से पूजा पूर्ण होती है और गणेश जी भी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अर्थ सहित जानिए गणपति जी के ऐसे ही खास मंत्र - 1- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ अर्थ - घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली। मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥ 2- विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं। नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥ अर्थ - विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओंसे परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है । 3- अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते । मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥ अर्थ - हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है । 4- एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः । प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥ अर्थ - जिनके एक दाँत और सुन्दर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को बारम्बार नमस्कार है । 5- एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।। अर्थ - एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें। विघ्हनहरता रिद्धि सिद्धि के दाता प्रभु श्री गणेशजी को दण्डवत नमन और प्रभु हम सभी की मनो कामना पूर्ण करें, यही हमारी प्रभु से प्रार्थना है और एक बार फिर से आप सभी को गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई (at तंत्र मंत्र और यंत्र साधनाय) https://www.instagram.com/p/CTnzwTeopfv/?utm_medium=tumblr
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आजकल के इस समय में प्रत्यक व्यक्ति आमिर बनना चाहता है और सोचता है की उसके जीवन में पैसो की कमी न रहे उसका जीवन धन और खुशिओ से नहर रहे लेकिन अक्सर ऐसा नही होता कई बार कड़ी मेहनत करने के बाद भी आपको धन की हनी हो जाती है और आपके ऊपर आर्थिक संकट बना रहता है|चाहे वो कोई भी काम हो हमें असफलता ही मिलती है और हमारा सोचा हुआ कभी नही होता|
बगेर मेहनत के व्यक्ति को कुछ नहीं मिलता है, परन्तु यदि कोई व्यक्ति लाख कोशिश करने के बावजूद भी उतना नहीं कमा पाता जिनती की वह मेहनत करता है अधिकतर लोगों ऐसे हैं जो कड़ी मेहनत तो करते हैं, लेकिन सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं। दोस्तों ज्योतिष की मान्यता है कि जिन लोगों की कुंडली में ग्रहों के दोष होते हैं, वे किसी भी काम में आसानी से सफल नहीं हो पाते हैं और परेशानियां बनी रहती हैं। तो उसके पीछे कई कारन हो सकते है जिसमे से सबसे मुख्य करण है वास्तु दोष|
जो किसी के ऊपर आ सकता है लेकिन आपको परेशांन होने की जरूरत नही है कुछ उपाय के द्वारा व्यक्ति अपनी गरीबी को दूर कर सकता है, इसके साथ ही उसके घर में सुख सम्पति एवम देवी लक्ष्मी का वास सदैव बना रहता है| तो आइये जानते है कुंडली के दोष दूर करने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते है|
1.पहला उपाय
पहला उपाय जो हम आपके लिए लेकर आये है वो रविवार के दिन करना है सबसे पहले सुबह उठकर नहाधोकर साफ़ वस्त्र पहन लीजिये फिर हर रविवार के दिन घर के मुख्य द्वार पर कुमकुम छिड़कें, इसके बाद दरवाजे की दोनों तरफ घी के दो दोमुखी दीपक जलाएं। ऐसा करने से आपके घर में सकारात्मकता बढ़ती है और सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।
2.दूसरा उपाय
रविवार को या किसी भी शुभ दिन सुबह नहाने के बाद पूजा में उपयोग किया जाने वाला लाल धागा लें और उसे केसर से रंगकर अपने घर के मुख्य दरवाजे पर अच्छी तरह से बांध दें। ये रक्षासूत्र घर में नकारात्मकता को आने से रोकेगा ध्यान रखें ये धागा जब-जब पुराना हो जाए, तो इसे समय समय पर बदलते रहना चाहिए।
3.तीसरा उपाय
सुबह नहाने के बाद आपको रोज सुबह तांबे को लोटे में पानी लेकर उसमें फूल, कुमकुम और चावल डालकर ये जल बरगद के पेड़ की जड़ में अर्पित करना है ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि बनी रहेगी धन संबंधी कामों में आ रही परेशानिया दूर हो सकती हैं। और आपके किस्मत के टेल खुल सकते है|
4.चौथा उपाय
आखिरी उपाय जो आपको करना है वो है किसी शुभ दिन स्फटिक का श्रीयंत्र लेकर अपने घर आएं और इसे अपने घर या दुकान के पूजा स्थान पर रखना है इसके बाद रोज श्री यंत्र की पूजा करें। अगर रोज पूजा नहीं कर सकते हैं तो श्रीयंत्र को लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें। ऐसा करने से घर-दुकान में धन का आगमन होगा और आप अपने जीवन में तरक्की करेंगे साथ ही आपके सभी बिगड़े काम भी बनेंगे।
BY Ankita
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मनुष्य के जीवन में आवश्यकताओं की आग लगी हो और जीने की आदत में रंच मात्र भी होश ना हो तो जो साधन इकट्ठे कर लिए हैं उस पर ध्यान ही नहीं जाता। एक बार हमारे देश के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री कन्हैया लाल मिस्र "प्रभाकर" ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से पूछा कि "आपकी दिव्य दृष्टि में जीवन का सर्वोत्तम विशेष गुण क्या है? रविंद्र नाथ टैगोर का उत्तर था "अवकाश पूर्ण होना" साहित्यकार ने फिर जिज्ञासा वश पूछा कि गुरुदेव आजकल तो अति व्यस्त जीवन को ही सार्थक माना जाने लगा है। क्या यह मान्यता ठीक नहीं है? गुरुदेव ने उत्तर देते हुए कहा कि "तब जीवन स्वतंत्रता खो देता है और एक यंत्र बन जाता है और किसी बड़ी सर्जनशीलता के योग्य नहीं रहता"। बात बिल्कुल साफ है कि जिन्हें जीवन में आत्मा की स्वतंत्रता और सजगता प्रिय है उन्हें आवश्यकताओं को आकांक्षाओं को लिप्साओं को नियमित नियंत्रित करना ही होगा,और उसके बाद ही हम अनुभव करते हैं कि हम कितने कड़े बंधन में बंधे हुए थे। एक संत से एक विजेता शासक ने कहा बोल तू क्या चाहता है ? मेरे पास सब कुछ है मैं तुझे मुंह मांगी चीज दूंगा! संत ने कहा मेरे सामने से जरा हट जाओ सूरज की किरणें आ रही है थोड़ी धूप आने दे! यह है आत्मा की स्वतंत्रता, जीवन की उन्मुक्तता, व्यक्ति की बंधनहीनता जो आकांक्षाओं की आग बुझने पर ही प्राप्त होती है। इस संबंध में सुकरात भी बहुत सुंदर वचन कहते हैं की "वह आदमी अमीर है जो प्रकृति की चीजों का कम से कम उपयोग करता है"। क्योंकि हम आवश्यकताओं से अधिक संचय करने की प्रवृत्ति के कारण प्रकृति का चूसकर दोहन कर रहे हैं। पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं प्रकृति से उतना ही लेना सीखो जितनी की हमारी आवश्यकता है, जितनी जरूरत हो क्योंकि प्रकृति ने हमें दोनों हाथों से बहुत दान दिया है। आगे सुकरात अपने सूत्र में कहते है" अतिव्यस्त जीवन की दरिद्रता से सावधान रहो"। बहुत बड़ा सूत्र दिया है सुकरात ने और जगाने की कोशिश की है मनुष्य को अपनी विक्षिप्तता की दौड़ से! यह सूत्र बहुत ध्यान से समझना होगा क्योंकि भारत की श्रुति कहती है कि खूब कमाओ धन का कोई भी विरोध नहीं है। दोनों हाथों से कमाओ लेकिन फिर चार हाथों से बांटो भी,क्योंकि कमाते वक्त तुम नर हो और बांटते ही तुम नारायण हो जाते हो चार भुजा धारी हो जाते हो चतुर्भुज हो जाते हो।भगवान के रूप हो जाते हो। https://www.instagram.com/p/CEqmP2KlJZh/?igshid=14jo3kcfgc9a1
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आकर्षण के लिए मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना Mohini vashikaran mantra sadhna
आपने मोहिनी शाबर वशीकरण Mohini vashikaran mantra मंत्र के बारे में सुना ही होगा. इस साधना का नाम सुनते ही सबसे पहले विष्णु मोहिनी मंत्र हमारे मन में आता है क्यों की इसकी उत्पति हुई ही श्री विष्णु के मोहिनी अवतार से है. मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना जो की आकर्षण मंत्र की तरह काम करती है एक तरह की ऐसी शाबर वशीकरण साधना होती है जिसमे हम साध्य को चुम्बकीय प्रभाव में लाते है. कामदेव जिन्हें मोहन साधना के देव माना जाता है इनकी साधना के दौरान ध्यान हो तो साधना में सहायता मिलती है.
पुरुष मोहिनी मंत्र वशीकरण उन स्त्री के लिए है जिनके पति का आकर्षण अब नहीं रहा गया हो या फिर बाहरी चक्कर में चले गए हो. mohini mantra kamdev sadhna मुश्किल नहीं होती है और ये आकर्षण का काम करती है. आपने कुछ love or attraction spell के बारे में सुना होगा जिनके जरिये खोये हुए प्यार को वापस पाया जाता है. इस तरह की साधना भी वही काम करती है. ये साधक में एक आकर्षण या फिर चुम्बकीय प्रभाव पैदा करती है जिसकी वजह से कोई भी उनके आकर्षण से बच नहीं पाता है. महा मोहिनी वशीकरण टोटका उन उपाय में से एक है जिनमे हम कामदेव की साधना करते है. 21 या फिर 40 दिन चलने वाली इन साधनाओ में साधक को खाने पिने में बदलाव करने होते है जिनमे फल और दूध का सेवन करना आवश्यक है. साधक का जो तेज इस साधना के दौरान बनता है वह सब पर अलग प्रभाव छोड़ता है. आइये जानते है मोहिनी वशीकरण साधना के बारे में.
मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना क्या है ?
mohini vashikaran shabar mantra का प्रयोग किसी पुरुष या स्त्री को मोहन करने के लिए किया जाता है. इसके मंत्रो के जरिये एक चुम्बकीय प्रभाव पैदा किया जाता है. वशीकरण की ही अलग अलग विधि का प्रयोग अलग अलग मकसद से किया जाता है. आमतौर पर मोहन मंत्र साधना का प्रयोग अपने व्यक्तित्व को इतना आकर्षक और चुम्बकीय बना लिया जाता है की इच्छित माध्यम देखते ही मोहित हो जाए. मोहिनी शब्द को भगवान् विष्णु के मोहिनी अवतार से लिया गया है. इस रूप को देखते ही सब उनके मोहन में बंध गए थे. वशीकरण में आमतौर पर हम माध्यम पर प्रयोग करते है लेकिन इसमें हम खुद को इतना मोहक बना लेते है की माध्यम हमारे आकर्षण में आ जाता है. इसे आप एक व्यक्ति, एक ग्रुप या समुदाय विशेष तक सिमित कर सकते है. mohini attraction spell की विधि को सही तरीके से कर आप मनचाह�� प्यार पा सकते है, मनचाहे व्यक्ति को अपने आकर्षण में ला सकते है. प्यार के लिए मोहिनी वशीकरण मंत्र के जरिये आप सिर्फ 7 दिन में अपने मनचाहे व्यक्ति या खोये हुए प्यार को वापस पा सकते है. ये एक powerful get lost love back spell है क्यों की इसके जरिये शक्तिशाली चुम्बकीय प्रभाव पैदा किया जाता है. पढ़े : खिला पिला कर किये वाले वशीकरण के दावे की सच्चाई और सबूत – एक बार जरुर अजमाना चाहिए Mohini vashikaran mantra sadhna upay ये एक महा मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना है जो स्वयं ��गवान श्री विष्णु के मोहिनी अवतार से जुडी है. इस साधना के जरिये हम शक्तिशाली मोहिनी वशीकरण का प्रभाव पैदा कर सकते है. इस मंत्र का निरंतर 40 दिन तक 1 माला जप करने से आपको अद्भुत परिणाम देखने को मिलते है. वशीकरण का आकर्षण पैदा होता है और आप आसानी से दुसरो के बिच अपनी बाते मनवा सकते है. नमो भगवते कामदेवाय सर्वजन प्रियाय सर्वजन सम्मोहनाय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हन हन वद वद तप तप सम्मोहय सम्मोहाय सर्वजन मे वशं कुरू कुरू स्वाहा जो लोग easy vashikaran k upay देख रहे है उन्हें इस तरह के वशीकरण उपाय करना चाहिए. ये एक आसान सर्वजन वशीकरण मंत्र साधना है जिसके प्रयोग से आप सामने वाले को अपने आकर्षण में ला सकते है. इस साधना का कोई विधान नहीं है बल्कि इसे पूजा पाठ में शामिल किया जाता है. किसी लड़की को आकर्षित कैसे करे मोहन वशीकरण मंत्र का प्रभाव चुम्बकीय है इसलिए इसके जरिये हम मनचाही महिला या लड़की को मोहित कर सकते है. इसके लिए आपको ऊपर दिए गए मंत्र का प्रयोग निम्न तरह से करना है. mohan vashikaran mantra का प्रयोग आधी रात के बाद शुरू करे. मंत्र का जप 1200 बार या फिर 12 माला का प्रयोग करे. जिस लड़की या औरत पर आपको प्रयोग करना है उनके बारे में सोचे. माला हकिक की रखे और दिशा उत्तर इसका प्रयोग 7 दिन या फिर 21 दिन तक करे. मन में विश्वास बनाए रखे क्यों की संयम साधना में आवश्यक है. आप चाहे तो मोहिनी वशीकरण यंत्र का प्रयोग कर सकते है. पढ़े : क्या आप भी सबसे सस्ता वशीकरण उपाय देख रहे है ऐसा करने से पहले इसे जरुर पढ़ ले मोहिनी वशीकरण यंत्र कई बार ऐसा देखने में आता है की मोहिनी वशीकरण मंत्र सही तरह से काम नहीं करते है. ऐसे समय में किसी यंत्र का प्रयोग करना हमें extra benefit देता है. वशीकरण यंत्र उन लोगो के लिए है जो खुद को पूरी तरह एकाग्र नहीं कर पाते है. ऐसी स्थिति में इसका प्रयोग करना आपको अलग से उर्जा देता है. मंत्र की उर्जा और प्रभाव को बढाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है. यंत्र को बनाने का तरीका और इसमें इस्तेमाल होने वाली चीजे इसके महत्त्व को बढ़ा देती है. किसी भी साधना में अगर आप यंत्र का प्रयोग करते है तो इसका मतलब है आप उर्जा को एक जरिये में भेज रहे है. यही उर्जा सीधे सामने वाले पर असर करती है. मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना के दौरान अगर आप यंत्र का प्रयोग भी कर रहे हा तो साधना के फलित होने की सम्भावना 200% बढ़ जाती है. इससे साधक की सारी उर्जा सही तरह से काम भी करती है और जो उर्जा साधक को जरुरत होती है वो universe से प्राप्त भी की जा सकती है. ये एक माध्यम की तरह काम करते है. पढ़े : इन वजहों से fail हो जाता है वशीकरण मोहिनी वशीकरण तेल प्रयोग आपने केसर और चमेली के तेल के बारे में सुना ही होगा. इन 2 तेल का मोहन में काफी ज्यादा प्रयोग किया जाता है. अगर आपको असली कस्तूरी का तेल मिल जाए तो उसकी कोई काट ही नहीं है. मोहन शाबर मंत्र प्रयोग के दौरान जो तेल आप अभिमंत्रित करते है use या तो खुद पर इस्तेमाल करना होता है या फिर उसका भीगा हुआ कपडा लड़की या साध्य को देना होता है. जब तक वो कपडा उसके पास रहता है वो आपके आकर्षण में फंसा रहता है. हालाँकि ये मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना प्रयोग भी स्थायी नहीं है लेकिन कुछ काल के दौरान किसी को अपने आकर्षण में बाँधने के लिए ये काफी है. तेल-तेल महातेल! दूखूं री मोहिनी तेरा खेल!! लौंग, लौंगा, लौंगा! बैर एक लौंग मेरी आती-पाती दूसरी लौंग दिखाए छाती, रूठे को मना लाए, बैठे को उठा लाए सोए को जगा लाए, चलते-फिरते को लिवा लाए आकाश जोगनी, पताल का सिद्ध! (वश करने वाले का नाम) को लाग लाग री मोहिनी, तुझे भैरों की आन!! तेल मोहन मंत्र साधना करने के दौरान जब तक आपका कार्य पूरा न हो पवित्र बन रहे. इससे आपका कार्य फलित होगा ही मोहन का प्रभाव भी बना रहेगा. मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना में सावधानी अगर आप प्रेमी प्रेमिका है तो आपको कुछ सावधानी रखनी चाहिए. कभी भी अमावस, ग्रहण या किसी भी बुरे महूर्त के समय नहीं मिलना चाहिए. इस दौरान अगर आप मिलते है तो झगड़ा होने की सम्भावना बढ़ जाती है. मिलने के लिए कोशिश करे की शुक्रवार या फिर पूर्णिमा का दिन हो क्यों की इसे प्यार का देवता माना जाता है. इस दिन मुलाकात करने से प्यार में मधुरता आती है और गहरा हो जाता है. आपका प्रेमी आपको पन्ना रत्न देता है तो ये आपके लिए शुभ संकेत है. इससे आपके बीच रिश्ता मधुर बनता है. इस उपाय को पति पत्नी करे तो उनके बीच का रिश्ता मजबूत बन जाता है. ये उनके बिच आकर्षण को बढाता है. अगर आप मोहिनी वशीकरण का प्रयोग कर रहे है तो आपको ये बात अच्छे से ध्यान रखनी चाहिए की साधना के दौरान आपको गलत विचार मन में नहीं लाने है. अगर आप ऐसा करते है तो साधना खंडित होना तय है. साधना के दौरान उस व्यक्ति से कम ही मिले जिस पर आप प्रयोग कर रहे है. पढ़े : दुश्मन से छुटकारा पाने के लिए Muslmani putli sadhna की शक्तिशाली साधना का अभ्यास मोहिनी मंत्र साधना उपाय – 2 किसी भी कृष्ण पक्ष में जब रविवार हो तब उपवास करे. शाम के टाइम गुड़ का शरबत बनाकर पिए. रात्री के 10 बजे बाद किसी एकांत जगह पर जहाँ कोई पुराना पेड़ हो उसके निचे बैठ कर लाल सुर्ख आसन ले और निचे दिए गए मंत्र की 10 माला का जप या फिर 1000 बार करे. माला मूंगे की होनी चाहिए और धूप-दीप भी ��खे. इसके बाद जब प्रयोग करना हो तब नहा-धोकर उनी आसन ले. लकड़ी के पाटे के ऊपर धूप दीप रखे और पान का एक बीड़ा, एक पेड़ा, 7 लौंग, एक बड़ी साबुत सुपारी और 7 इलायची रखे. सामने बैठे और इस मंत्र की 10 माला का जप करे. जप पूरा हो जाने के बाद पेड़ा और पान प्रसाद के तौर पर खुद ग्रहण करे. इलायची, लौंग और सुपारी घर ले आये और इसका चूर्ण बना ले. चूर्ण बना लेने के बाद 21 बार मंत्र पढ़े और फूंक मार कर अभिमंत्रित कर ले. मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना में जप के दौरान जिस माध्यम पर प्रयोग करना है उसका नाम ले. इसके बाद इस चूर्ण को या तो सामने वाले को किसी भी तरह खिला दे या फिर उसके बालो पर छिड़क दे. ॐ मोहिनी मोहिनी कहाँ चली, हरखु राई कां मचली फलानी के पास चली औरो के देखे जल बले मुझे देखे पाँव पड़े मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र इश्वरो वाचा बे माता की आज्ञा इस मंत्र का प्रयोग सिर्फ एक बार में एक व्यक्ति पर ही सिद्ध होता है. बार बार इसका प्रयोग न करे और जिस व्यक्ति के लिए किया है उसके अलावा किसी और के लिए इसे काम में न ले. मोहिनी तिलक मंत्र साधना तिलक मोहन मंत्र का प्रयोग सर्वजन मोहन में होता है. आपने देखा होगा कुछ लोग बाहरी कार्य को सिद्ध करने के लिए इसका प्रयोग करते है. इस तिलक के प्रभाव से सामने वाला जब तक आपके सामने है तब तक वो आपके आकर्षण में रहता है. तिलक का काम आपके चुम्बकीय क्षेत्र को बढ़ाना है जिसे आमतौर पर और क्षेत्र यानि aura energy field भी कहते है. इस मंत्र का 1000 बार ग्रहण काल के समय शाबर मंत्र साधना रीति से करने से ये सिद्ध होता है. चन्दन, केसर, कस्तूरी, गोरोचन और कपूर का मिश्रण कर गुलाब जल या फिर गंगा जल में मिलाकर घोटे. चन्दन की तरह इस मिश्रण को घोटते समय निचे दिए गए मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना का 108 बार जप करे. इस तरह करने से ये मंत्र और मिश्रण अभिमन्त्रण हो जाता है. ॐ नमो तिलक इश्वर तिलक महेश्वर तिलक जय विजय कार तिलक काठी में निकलू घर से मोहे सकल संसार शब्द सांचा पिंड कांचा स्फुरो मंत्र इश्वरोवाचा जब घर से बाहर जाए या फिर किसी तरह के विवाद में जाना हो तो इस मिश्रण को तिलक की तरह लगा ले. जिसकी भी नजर तिलक पर जाएगी वो मोहन मंत्र के प्रभाव में आ जायेगा. उसके साथ सही आचरण और व्यवहार रखे जिससे की आपका यश लोगो में बढे. ध्यान दे : मोहन तिलक के प्रभाव का समय काल बहुत कम होता है जिसकी वजह से आप इसे ज्यादा समय तक नहीं कर सकते है. ऐसा नहीं है की आप तिलक लगाकर बाहर निकले और सामने वाला वशीकरण की तरह व्यवहार करे. इसके प्रभाव से सामने वाला आपकी बात नहीं काट पायेगा. सुपारी मोहन वशीकरण साधना सुपारी के जरिये मोहिनी वशीकरण करना आज का काम नहीं है. काफी लम्बे समय से लोग इसका प्रयोग करते आ रहे है और खास मौको पर दी जानी वाली सुपारी इसी का हिस्सा होती थी. खाने की कुछ चीजे चाहे वो पान हो, इलायची हो या फिर लौंग इनमे ��कर्षण का काम कर साध्य को दिया जाता था जिसके प्रभाव से धीरे धीरे सामने वाला दिमाग उसके कण्ट्रोल से बाहर होने लगता था. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय त्रिलोचनाय त्रिपुर वाहनाय अमुक मम वश्य कुरु कुरु स्वाहा सिद्ध योग में इस मंत्र को एक साबुत सुपारी ले और सामने रखकर इस मंत्र की 10 माला का जप करे. इसके बाद सुपारी का चूर्ण बना ले या छोटे हिस्से कर के जिस पर मोहन प्रयोग करना है use किसी भी चीज में मिलाकर खिला दे. किसी तरह के दरुपयोग के लिए इसका प्रयोग न करे वर्ना आपके फल नष्ट होंगे. मोहिनी वशीकरण मंत्र साधना क्या ये कारगर उपाय है ? हालाँकि मोहिनी मंत्र वशीकरण साधना कोई स्थायी साधना नहीं है क्यों की वशीकरण की तरह इसमें हम अपने आकर्षण को बढाते है जिसकी वजह से सामने वाला मोहित होता है. जिन लोगो में आकर्षण कम होता है और इसकी वजह से उन्हें मनचाही लड़की या लड़के की प्राप्ति नहीं हो रही है या शादी नहीं हो रही है उनके लिए ये अभ्यास बढ़िया है. आप इसे साधना के बाद भी कर सकते है. कृष्ण मोहन साधना का प्रयोग तो आप नियमित तौर पर सकते है. इनके निरंतर प्रयोग से आपके अन्दर का तेज और आकर्षण इतना बढ़ जाता है की आप खुद हैरान रह जायेंगे. अगर आप स्थायी सम्मोहन देख रहे है तो वशीकरण बढ़िया है लेकिन आसान और कम समय के उपाय में ये बेस्ट है. इन पोस्ट को पढना न भूले नारी वशीकरण के कुछ आसान मगर अद्भुत प्रयोग दूर बैठे व्यक्ति पर वशीकरण करने के लिए सबसे आसान दिगपाल साधना Complete Guide क्या वशीकरण भी एक तरह का काला जादू है ? क्या किसी शादीशुदा व्यक्ति का वशीकरण किया जा सकता है ? एक महिना दीपक त्राटक से वशीकरण की साधना का अभ्यास और पाइए मनचाहे परिणाम – परीक्षित विधि Read the full article
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Satsang Ishwar TV | 25-07-2024 | Episode: 2460 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
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🙏📚हमारे वेद शास्त्र पुराण बताते हैं कि *कावड़ यात्रा* करने वाले को घोर पाप लगते हैं!
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शिवजी अभिर्भाव /जन्म और तिरोभाव /मरण में हैं! मृत्युंजय नहीं है ना ही अंतर्यामी हैं!
अपने पुजारी भस्मासुर के मन में पार्वती को लेकर कितने गंदे विचार उठ रहे थे,शिव जी इतना भी नहीं जान पाए!
श्रीदेवी पुराण में स्पष्ट है कि दुर्गा मां ,तमोंगुणी शिव जी की मां हैं। शिव जी का अभिर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) होता है! श्रीमदभगवत गीता में स्पष्ट है कि तीनों गुणों की भक्ति अनुतम/घटिया/अश्रेष्ठ/गलत/मनमानाआचरण है!
गीता ज्ञान दाता भगवान ने स्वीकार किया वह सतगुण विष्णु रजगुण ब्रह्मा तमगुण शिव जी इन तीनों गुणों से युक्त तीनों देवताओं का बीज स्थापित करने वाला पिता है और श्री दुर्गा देवी प्रकृति उनकी माता है?
हे अर्जुन !
हम सभी का तो जन्म और मरण होता है तेरे और मेरे भी अनेकों को जन्म हो चुके हैं आगे भी होते रहेंगे, अविनाशी तो उस परमात्मा को जान_जिसको जानने के बाद कुछ और जानने योग्य नहीं रहता! उसकी खबर किसी तत्वदर्शी संत से अति अधिनि भाव से युक्त होकर उसे दण्डवत प्रणाम करके उस परमात्म तत्व का भेद जान ले!
अर्जुन युद्ध करना नहीं चाहता था ना नहीं श्री कृष्ण जी युद्ध के हक में थे ,लेकिन श्री कृष्ण जी में ज्योति निरंजन काल भगवान जी ने ब्रह्म भूत की तरह प्रवेश करके श्री कृष्ण जी के मुख से अर्जुन को अपने स्वार्थ वश भांति भांति ज्ञान दिया तब भी अर्जुन युद्ध के लिए तैयार नहीं हुआ तो कॉल ने श्री कृष्ण जी में अपना प्रवेश करके विराट रूप दिखाकर अर्जुन को भयभीत कर दिया जिसे देखकर अर्जुन जैसे योद्धा काँप गये और युद्ध करने के लिए तैयार हो गया !
🔱शिव जी किसी भी आत्मा के लेख में लिखे हुए कर्म फलों को कम या ज्यादा नहीं कर सकते!
यह भी स्पष्ट होता है ना ही किसी की आयु बढ़ा सकते हैं! शिव ना तो अंतर्यामी है ना मृत्युंजय हैं!
स्वयं परम अक्षर पुरुष _पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ने विष्णु जी का मोहनी रूप बनाकर शिवजी की भस्मासुर से रक्षा की !
🪕कबीर_सूक्ष्म वेद /पांचवां वेद और संत गरीबदास जी का 📕अमर ग्रंथ यह स्पष्ट करता है कि इन पांचो का रचा हुआ प्रपंच है! ( तीनों देवता ब्रह्मा विष्णु शिव + श्री दुर्गा प्रकृति देवी और ज्योति निरंजन काल ( जिसका एक अक्षर मंत्र है ओम )
तीन गुणों की माया में उलझाए रखकर जीवात्मा को पाप कर्मों में धकेले रखते हैं और उसे जन्म मरण और 84 लाख योगिया में जाने के लिए बाध्य करे रखते हैं !
छ: विकारों के कारण ही जीव आत्मा को कर्म बंधन लगते हैं! ये विषय विकार काल ने अपने स्वार्थ वश जीवात्मा को लगा रखे हैं!
इसी कारण आत्मा अपने मूल धर्म और कर्तव्य से वंचित रहती है और पाप पुण्य कर्मों में फंसी रहती है और फिर इसी लोक में जन्मती और मरती रहती है 84 लाख योनियों में जाती है !
केवल एक पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ही हमें इस भवसागर से पार लगा सकते हैं !
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के रूप में अवतरित हैं!
नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करायें!
🙏सब्सक्राइब करें संत रामपाल जी महाराज YouTube Channel पर और प्रतिदिन अवश्य देखें पवित्र सत्संग साधना 📺 चैनल 7:30 p.m. से 8:30 p.m तक !
🙏Must Visit *फैक्ट फुल डिबेट*यू ट्यूब Channel पर!
🙏अवश्य देखें *सृष्टि रचना* संत रामपाल जी महाराज यू ट्यूब चैनल पर! सृष्टि रचना अध्यात्म को पूर्ण रूप से जानने की मुख्य चाबी /Master Key है! श्रीमद् भागवत गीता चारों वेदों का सारांश है !
🙏जरूर देखते रहें_ SA न्यूज़ चैनल!
🙏अवश्य विजिट करते रहें_ सतलोक आश्रम! यू ट्यूब Channel
🙏 दुर्लभ और अनमोल मानव जन्म मोक्ष के लिए मिला है! इसे हल्के में ना लें!
📚अपने वेद शास्त्रों पुराणों से अवश्य अपना परिचय करें !
आज पढ़ा लिखा युग है!
परमात्मा कबीर जी ने हमारे लिए इतने यंत्र बना दिए हैं,
इतनी सुविधा कर दी हैं कि
हम अपने मूल मालिक को आसानी से पहचान सकते हैं !
सुख पाने की या परमात्मा पाने की चाह में एक बार आत्मा से नजर उठाकर संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान को ध्यानपूर्वक लगातार सुनें!
काल के जाल में + कर्म बंधन में कैसे फंसी आत्मायें_जानेंगे _संत रामपाल जी महाराज के पवित्र सत्संगों से_जो हमारे शास्त्रों के अनुकूल हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार सत्य तत्व ज्ञान के आधार पर हमें प्रदान कर रहे हैं! महा उपकार का कार्य कर रहे हैं संत रामपाल जी महाराज !
इतिहास इस उपकार को सुनहरी अक्षरों में लिखेगा सृष्टि इस उपकार को कभी नहीं भूल पाएगी!
📚सत साहेब जी🙏 जय बंदीछोड़ की🙏
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उत्तर प्रदेश की राजधानी क्या है | UP ki Rajdhani
सवाल : उत्तर प्रदेश की राजधानी क्या है / UP ki Rajdhani kya hai / What is Capital of Uttar Pradesh? जवाब : दोस्तों GK के इस सवाल का जवाब आपको इस पोस्ट में दिया है. जवाब बहुत छोटा है, लेकिन हमने आपके लिए इस पोस्ट में थोड़ी और जानकारी संक्षिप्त में देने की कोशिश की है. Uttar Pradesh ki Rajdhani के बारे में आगे पढ़िए.
UP ki Rajdhani kya hai?
भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, ��शहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। Population of Lucknow: 2006 मे लखनऊ की जनसंख्या 2,541,101 तथा साक्षरता दर 68.63% थी। भारत सरकार की 2001 की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है।कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। Area of Lucknow : लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। भाषाएँ:- यह शहर हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। दोस्तों आपको Uttar Pradesh ki Rajdhani की जानकारी तो होगई है अब आपको इसके इतिहास और पर्यटन स्थान तथा यहाँ की ख़ास बाते आपको बताते है. ये भी जानिए : Assam ki Rajdhani Kya hai? Janiye NCR meaning in Hindi India meaning in Hindi & full form Kya hai
लखनऊ का इतिहास
लखनऊ प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था. अत: इसे लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना गया, जो बाद में बदल कर लखनऊ हो गया। यहां से अयोध्या भी मात्र 80 मील दूरी पर स्थित है। एक अन्य कथा के अनुसार इस शहर का नाम, 'लखन अहीर' जो कि 'लखन किले' के मुख्य कलाकार थे, के नाम पर रखा गया था। लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफ़ुद्दौला ने 1775 ई. में ��ी थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया। लेकिन बाद के नवाब विलासी और निकम्मे सिद्ध हुए। इन नवाबों के काहिल स्वभाव के परिणामस्वरूप आगे चलकर लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध का बिना युद्ध ही अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। 1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। लखनऊ के नवाबों का शासन इस प्रकार समाप्त हुआ। सन 1902 में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूनाइटेड प्रोविन्स या यूपी कहा गया। सन 1920 में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से बदल कर लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ स्थापित की गयी। स्वतन्त्रता के बाद 12 जनवरी सन 1950 में इस क्षेत्र का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना। इस तरह यह अपने पूर्व लघुनाम यूपी से जुड़ा रहा। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री बने। अक्टूबर 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर-प्रदेश एवं भारत की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री बनीं।
लखनऊ के बारे में रोचक बातें / Facts about Lucknow:-
1) लखनऊ को प्राचीन काल में 'लक्ष्मणपुर' और 'लखनपुर' के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि अयोध्या के श्री राम ने लक्ष्मण को लखनऊ भेंट किया था। 2) लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना 'नवाब आसफ-उद-दौला' द्वारा 1775 ई. में की गई थी, उन्हो ने इसे अवध के नवाबों की राजधानी के रूप में पेश किया था। 3) बढ़ती जनसंख्याे को ध्यायन में रखते हुए यहां की कोठियों को अपार्टमेंट में बदल दिया गया है लेकिन यहां के लोगों में मोहब्बखत और अपनापन अभी भी बाकी है। 4) लखनऊ वह शहर है जहां कई वाद्य यंत्र जैसे- सितार, टेबल और नृत्यट जैसे- कत्थंक आदि का जन्म हुआ है। 5 ) लखनऊ, उर्दू और हिन्दीज भाषा का जन्मा स्थाबन है और इस शहर का भारतीय कविता और साहित्या में काफी योगदान भी रहा है।
यूपी की राजधानी में पर्यटन स्थल / Tourist Attractions in Lucknow:-
https://www.youtube.com/watch?v=IKaN2RW53hk 1) लखनऊ के सबसे खास पर्यटन स्थल 'बड़ा इमामबाड़ा', 'शहीद स्मारक', 'रेजीडेंसी' और 'भूल-भुलैय्या' हैं। इसके अतिरक्त 'छोटा इमामबाड़ा', 'हुसैनाबाद क्लॉक टॉवर' और 'पिक्चर गैलरी' भी दर्शनीय स्मारक हैं। 2) लखनऊ का 'चिड़ियाघर', 'बॉटनिकल गार्डन', 'बुद्ध ��ार्क', 'कुकरैल फॉरेस्ट' और 'सिंकदर बाग' जैसे प्राकृतिक छटा वाले स्थल लखनऊ को खास और जरूरत से ज्यादा सुंदर बनाते है। 3) लखनऊ के 'कैसरबाग पैलेस', 'तालुकदार हॉल', 'शाह नज़फ इमामबाड़ा', 'बेगम हजरत महल पार्क' और 'रूमी दरवाजा' आदि भारत के सबसे प्रभावशाली वास्तु संरचनाओं में से एक हैं। 4) लखनऊ में देश के कई उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान भी हैं। इनमें से कुछ हैं: 'एस.जी.पी.जी.आई.', 'किंग जार्ज मेडिकल कालेज' और 'बीरबल साहनी अनुसंधान संस्थान'। यहां भारत के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की चार प्रमुख प्रयोगशालाएँ और 'उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी' हैं। 5) लखनऊ में छः विश्वविद्यालय हैं: 'लखनऊ विश्वविद्यालय', 'उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय' (यूपीटीयू), 'राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय' (लोहिया लॉ वि.वि.), 'बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय', 'एमिटी विश्वविद्यालय' एवं 'इंटीग्रल विश्वविद्यालय'। 6) लखनऊ के 'भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय' का नाम यहां के महान संगीतकार 'पंडित विष्णु नारायण भातखंडे' के नाम पर रखा हुआ है। यह संगीत का पवित्र मंदिर है। श्रीलंका, नेपाल आदि बहुत से एशियाई देशों एवं विश्व भर से साधक यहां नृत्य-संगीत की साधना करने आते हैं। 7) विश्व के सबसे पुराने आधुनिक स्कूलों में से एक 'ला मार्टीनियर कॉलेज' भी इस शहर में मौजूद है, जिसकी स्थापना ब्रिटिश शासक क्लाउड मार्टिन की याद में की गयी थी। लखनऊ उत्तरी भारत का एक प्रमुख बाजार एवं वाणिज्यिक नगर ही नहीं, बल्कि उत्पाद एवं सेवाओं का उभरता हुआ केन्द्र भी बनता जा रहा है। लखनऊ में यातायात के सभी साधन उपलब्ध है जैसे- हवाई, रेल और सड़क मार्ग। पर्यटक, देश-विदेश के किसी भी कोने से लखनऊ तक आसानी से पहुंच सकते है। मौसम की दृष्टि से, लखनऊ के भ्रमण का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के दौरान होता है। Friends आपको आपके सवाल Uttar Pradesh yani UP ki Rajdhani Kya Hai इसका जवाब तो मिलगया, हम आशा करते है की आपको यह जवाब और information about Lucknow & places to visit in Lucknow पसंद आई होगी. कृपया अपनी राय कमेंट द्वारा हमें बताये. और इस पोस्ट को सोशल मीडिया और व्हाट्सअप्प में जरूर शेयर करे. UP ki Rajdhani Lucknow की और ज्यादा जानकारी विकिपीडिया में पढ़िए. Read the full article
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पत्रिका के वाचन (फलित) करने से पहले जांच के आवश्यक मापदण्ड:-
पत्रिका के वाचन (फलित) करने से पहले जांच के आवश्यक मापदण्ड:- भाग-1
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फलित ज्योतिष में अनेंक राजयोगों का वर्णन है।यह तो अविवादित तथ्य है ही कि अपनी ही राशि में बैठे (स्वराशिस्थ) ग्रह सदा अपने भाव से संबंधित शुभफल ही देते हैं। और स्वराशिस्थ ग्रह की यह स्थिति यदि लग्न से केन्द्रीय भावों में हो तो "पंचमहापुरुष" नामक राजयोगों तक का निर्माण कर देती हैं।
इसी आधार पर कोई सामान्य ज्योतिषी एक ही ग्रह अथवा योग देख कर अन्य जातको के लिए भी वही स्वर्णिम कल्पनाएं कर लेता है जो अब तक उसका अनुभव बना है। किन्तु ज्योतिष के विभिन्न ग्रंथों में स्वर्णाक्षरों में वर्णित तथाकथित ये "राजयोग" किसी "जातक विशेष" को उस मात्रा में नही मिलते जितना हमने भविष्यवाणी कर दी थी।तब ज्योतिषी अथवा जातक के मन में शंका होती है कि ये "राजयोग" क्या मात्र एक कल्पना भर है?तो इसका एक सरल सा उत्तर है, नही! उचित प्रश्न तो यह बनता है कि क्या हमने इस पत्रिका के वाचन (फलित) करने से पहले जांच के आवश्यक मापदण्ड प्रयोग कर लिए थे?
क्या हैं वे आवश्यक मापदण्ड?
1-क्या हमारा वह स्वराशिस्थ अथवा राजयोगकरक ग्रह किसी अन्य नैसर्गिक क्रूर, पापक, शत्रु या त्रिकभाव के स्वामिग्रह से कोई संबंध बना रहा है? (संबंधयोग चार प्रकार से बनता है)
2-क्या हमारे उस स्वराशिस्थ अथवा राजयोगकरक ग्रह से दूसरे, बारहवे, छठे या आठवे भाव में कोई नैसर्गिक क्रूर, शत्रु या पापक ग्रह है?(स्मरण करें कि चंद्र और सूर्य का पूर्ण फल जांचने में हम उपरोक्त सूत्र का उपयोग करते है किन्तु अन्य ग्रहों के बारे में न के बराबर)।
3- यदि हमारा स्वराशिस्थ अथवा राजयोगकरक ग्रह लग्न भाव मे है तो उससे पंचम और नवमभाव में कोई नैसर्गिक क्रूर, शत्रु या पापक ग्रह है?
4-यदि हमारा स्वराशिस्थ अथवा राजयोगकरक ग्रह चतुर्थ भाव मे है तो उससे पंचम और नवमभाव (यहां अष्टम और द्वादसभाव) में कोई नैसर्गिक क्रूर, शत्रु या पापक ग्रह है?
5-यदि हमारा स्वराशिस्थ अथवा राजयोगकरक ग्रह सप्तम भाव मे है तो पंचम और नवमभाव ( यहां एकादश और तृतीयभाव) में कोई नैसर्गिक क्रूर, शत्रु या पापक ग्रह है?
6-यदि हमारा स्वराशिस्थ अथवा राजयोगकरक ग्रह दसमभाव मे है तो पंचम और नवमभाव ( यहां द्वितीय और षष्टमभाव) में कोई नैसर्गिक क्रूर, शत्रु या पापक ग्रह है?
क्रमांक 3,4,5 और 6 के संबंध में व्याख्या इस प्रकार है कि, -जन्मकुंडली में लग्न, पंचम और नवमभाव मिल कर एक त्रिकोण कि निर्माण करते हैं। यह सर्वख्यात है। इस त्रिकोण को हम "धर्म त्रिकोण" कहते हैं। परन्तु मानव जीवन के तीन अन्य पुरूषार्थ अभी आने शेष हैं जिन्हें हम अर्थ, काम और मोक्ष " कहते हैं।
भाव संख्या दशम, द्वितीय और षष्ठम से मिलकर " दूसरा त्रिकोण" भी बनता है जिसे हम "अर्थ त्रिकोंण" कहते हैं।
इसी प्रकार भावसंख्या सप्तम, एकादश और तृतीय से मिलकर "तीसरे त्रिकोण" का सृजन होता है, जिसे "काम त्रिकोण" औरभावसंख्या चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव से मिलकर "चतुर्थ त्रिकोण" का सृजन होता है, जिसे "मोक्ष त्रिकोण" कहते हैं।
यह आवश्यक नही कि हमारा योगकारक ग्रह लग्न के प्रथम,चतुर्थ,सप्तम या दसम भाव में ही हो। यहां पर प्रत्येक त्रिकोण के प्रत्येक भाव का समान महत्व है। जैसे 4,8,12 हो या 8,12 और 4 ।इस प्रकार किसी भी स्वराशिस्थ राजयोगी ग्रह को सन्तुलित रखने के लिए उसके वर्ग के ही किसी एक कोणपति को अपने ही वर्ग के किसी कोण में अनिवार्यत: आना होगा। जैसे 4,8,12 भाव के न्यनतम दो भावों के ��्वामि ग्रहों को 8, 12 और 4 भावों में ही आना शुभ होता है।**स्मरण रखलें कि जब उपरोक्त त्रिकोणेश का फलित होगा तब त्रिकादि भावों के गुणा-व-गुण विशेष अर्थ नही रखते। ( हमने अनेंक कुंडलियों में देखा है कि त्रिक में बैठे ग्रह बिना विपरीतराजयोग बनाए भी शुभफल देते हैं।)
आदरण���य अमिताभ बच्चन जी की कुंडली में 4, 8 और 12 भावों "मोक्ष त्रिकोण" के स्वामि शुक्र,बुध और शनि अपने ही कोण में है जो उन्हे आयु के इस दौर में भी प्रतापी बनाए हुए हैं। पनामा पेपर्स हो या me-too के सच्चे-झूठे आरोपों के बावजूद भी *जनता के हृदय सम्राट (4,8,12) बनें हुए हैं।
7-अब योगकारक ग्रह का:-1-पूर्णबल षडबल सारणी से, 2-उसकी विशेष कारकता का फल तत्तसंबंधित वर्गकुंडलियों से, और 3-उस भाव का फल भावबल सारणी से देखने के पश्चात एक धारणा बनालें।
8-अन्त में उस "राजयोगकरक" ग्रह के प्राप्त हो सकने वाले शुभफल की अन्तिम मात्रा (विस्तार या सीमा) जानने के लिए उसी भाव को लग्न मानते हुए "भावात्-भावम्" के सिद्धांत का पालन कर ले।9-उपरोक्त मापदण्ड़ स्वयं में कोई योग नही अपितु केवल यंत्र समान हैं। उस पुष्प की खिलती स्वस्थ्य पत्तियां हैं जिनसे भविष्य में फल बनेगा।10-इस सब के पश्चात अब नि:सन्देह हमारी वाणि में भी भगवान "वराह-पाराशर" का अंश अवश्य ही होगा। .........क्रमस:(अगले अंक में त्रिकोणों और भावात्-भावम् पर लघु चर्चा।) पत्रिका के वाचन (फलित) करने से पहले जांच के आवकश्यक मापदण्ड:- भाग-2
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फलितज्योतिष के ग्रंथों में उपलब्ध विभिन्न अध्याय जैसे: -"ग्रहशीलाध्याय:" -हमें क्रमस: ग्रहों के "गुण-धर्म और स्वभाव" से पूर्ण अवगत करा कर देते हैं।
इसी क्रम में -"भावफलाध्याय:" -हमें ग्रहों के गुण-धर्म और स्वभाव से आगे ग्रहों की विभिन्न भावों की स्थिति से जन्में सामान्य फलों से अवगत करा देते हैं और -"राजयोगाध्याय:" -हमें ग्रहों की विभिन्न शुभभावों में स्थिति, उनके बलाबल और उनके परस्पर संबंध से जन्म लेने वाले "अति विशेष " फलों से अवगत कराते हुए एक "अद्भुत संसार " में ले जाते हैं।......और तब हम स्वयं को किसी जन्मपत्रिका का फलित करने में सक्षम मान लेते हैं।
किन्तु अनुभव में आता है कि कुछ जन्मपत्रिकाएँ तो ऐसी होती हैं जो किसी ज्योतिषी के हाथ में आते ही " तोते सी वाचाल" हो जाती हैं। ....परन्तु कुछ ऐसी भी होती हैं जिनकी पर्ते खोलने में एक विद्वान ज्योतिषी को भी बहुत सोचना पड़ जाता हैं।उदाहरण के लिए दिशाहीन होकर स्वराशिस्थ ग्रह से बना या शत्रुग्रह के लग्नों में अपनी उच्चराशि से बनने वाले राजयोग। या कुंडली के दृश्यभाग (भावसंख्या 1,12,11,10,9,8) अथवा अदृश्यभाग (भावसंख्या 7,6,5,4,3,2) में बनने वाले शत्रुग्रहों के युति योग।
अब एक विद्वान ज्योतिषी फलित के सैध्दान्तिक मार्ग (theoretical approaches) के साथ-साथ साथ कुछ व्यवहारिक मार्ग को अपनाता है।
इन व्यवहारिक मार्ग (practical approaches) में सर्वप्रथम विधि है "भावात्-भावम् " ।
"भावात्-भावम् " विधि से किसी जन्मपत्रिका के वाचन की कला है। यह एक विद्वान और अनुभवी ज्योतिषी की असीमित और अनन्त उड़ान है, जहां शेष भी अशेष है।...और फिर भी यदि कुछ शेष है तो अन्तिम विधि के रुप में प्रयोग की जाती है -जन्मपत्रिका की " त्रिकोण विस्तार विधि "।त्रिकोण विस्तार विधि :--यह सरल है, छोटी है। किन्तु इतना सटीक है कि किसी जातक के अन्तिम परिणाम की भविष्यवाणी भी सटीक रुप में कर ही देती है।
आज जन्मपत्रिका की " त्रिकोण विस्तार विधि " पर ही चर्चा करते हैं ।
त्रिकोण विस्तार विधि :- न तो जन्म समय पर किसी का नियंत्रण है न मृत्यु की घड़ी पर। फिर किस भाव में कौन राशि शुभ है और कौन नही , यह विचारने से क्या लाभ।
इस विधि में किसी भी लग्न की जन्मकुंडली के बारह भावों को चार त्रिकोणों में ( विन्यास) या विभाजित कर दिया जाता है।
1-प्रथम त्रिकोण:- लग्न, पंचम और नवम।
2-दूसरा त्रिकोण:- द्वितीय, षष्ठम और दशम।
3-तीसरा त्रिकोण:- तृतीय, सप्तम और एकादश।
4-चतुर्थ त्रिकोण:- चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव।
इन चतुष्कोंणों में प्रत्येक त्रिकोण का पहला कोणभाव साक्षात श्री विष्णु का रुप है। दूसरा कोण साक्षात भगवती लक्ष्मी का और तृतीय कोण साक्षात भगवती श्री का स्वरूप जाने।
कुंडली में चतुष्कोंण:-1. -किसी भी लग्न की जन्मकुंडली के लग्नभाव, पंचमभाव और नवमभाव से बना ये प्रथम त्रिकोण है। इसे "धर्म त्रिकोण" माना जाता है।
-इन भावों में मित्र, स्वराशि या अपनी उच्चराशि में स्थित ग्रहों के कारण अथवा इन भावों के स्वामि ग्रहों का परस्पर कोई संबंध के शुभप्रभाव से जातक के व्यक्तित्व, उसके शील-संस्कार, बुध्दि कौशल और उसकी निर्णय क्षमता पर "सात्विक प्रभाव " पड़ता है। -यह जातक साक्षात प्रज्जवलित अग्नि के समान है जो स्वयं को भी तप्त करता है।
-यह जातक की बालावस्था है, ब्रह्मचर्य आश्रम है, शिक्षा और ज्ञान के विस्तार का भाग है। -जातक अपने जीवन में एक "क्षत्रिय" के समान अपने नैतिकबल के आधार पर अपने जीवन के परम परुषार्थ करता है।
-अपने वंश के पूर्वज और अगामी सन्तति को सम्मान और सुसंस्कृति दे पाने की क्षमता पाता है।
2. -किसी भी लग्न की जन्मकुंडली के द्वितीयभाव, षष्ठभाव और दसमभाव से बना यह दूसरा त्रिकोण है। इसे "अर्थ त्रिकोण " माना जाता है।
-इन भावों में मित्र, स्वराशि या अपनी उच्चराशि में स्थित ग्रहों के कारण अथवा इन भावों के स्वामि ग्रहों का परस्पर कोई संबंध के शुभप्रभाव से जातक के व्यक्तित्व में एक विशेष प्रकार के आकृषण की भावना की जागृति होती है।
-जातक अपने व्यक्तिगत परिवार से बहुत प्रेम करता हैं साथ ही उसके भरण-पोषण और "योग-क्षेयम् " को वहन करने में सक्षम होता है।
-अपने बुध्दि कौशल और साम-दाम-दण्ड़ और भेद आदि सभी नीतियों को अपनाता हुए अपनी निर्णय क्षमता के आधार पर अपने आत्मीय परिजनों की विपत्ति के समय उनकी रक्षा करता है।
-यह जातक की बाह्यमुखी (Extroverted) अवस्था है। यह गृहस्थ आश्रम है।-यह साक्षात वैश्य प्रवृत्ति है। वह धन का सद्उपयोग करना जानता है।
-यह जातक अपने सामाजिक मान, पद, प्रतिष्ठा का महत्व जानता है और उसे बढ़ाते रहने का सतत प्रयास करता है।
3. -किसी भी लग्न की जन्मकुंडली के तृतीयभाव, सप्तमभाव और एकादभाव से बना यह तीसरा त्रिकोण है। इसे "कामना अथवा काम त्रिकोण " माना जाता है।
-इन भावों में मित्र, स्वराशि या अपनी उच्चराशि में स्थित ग्रहों के कारण अथवा इन भावों के स्वामि ग्रहों का परस्पर कोई संबंध के शुभप्रभाव से जातक के व्यक्तित्व में एक विशेष प्रकार के समर्पण के भाव की जागृति होती है।
-यह जातक की अन्तर्मुखी (introverted) अवस्था है। यह वानप्रस्थ आश्रम है।
-यह साक्षात शूद्र प्रवृत्ति है। यह समझौते और समन्वय का त्रिकोण है। यहाँ बात स्वाभिमान पर आ कर नहीं रुकती। यह कामनाओं का त्रिकोण हैं। अनन्त इच्छाओं का त्रिकोण है।
-इसकी पूर्ति केे लिए जातक धन उपार्जन के अतिरिक्त साधन के रुप में अपनी पत्नि अथवा अपने इष्टमित्रों का भी उपयोग लेता है।
4. -किसी भी लग्न की जन्मकुंडली के चतुर्थभाव, अष्टममभाव और द्वादसभाव से बना यह चौथा त्रिकोण है। इसे "मोक्ष त्रिकोण " माना जाता है।
-इन भावों में मित्र, स्वराशि या अपनी उच्चराशि में स्थित ग्रहों के कारण अथवा इन भावों के स्वामि ग्रहों का परस्पर कोई संबंध के शुभप्रभाव से जातक के व्यक्तित्व में एक " विशेष मार्ग " पर चलने की विकृषण रुचि की जागृति होती है।
-यह साक्षात ब्राह्मण प्रवृत्ति है। रावण और विभीषण इस अन्तिम त्रिकोण से ही प्रकट होते है।-यह जातक की निर्णय कर चुकने वाले " राही " का मार्ग है। यहां जो है वह अनायास नही है।
-यह त्रिकोंण संगति के विन्यास (फैलाव) या सन्यास का आश्रम है।-यहाँ जीव का उत्थान हो या पतन ! सब अपनी चरम अवस्था में है।
-इन भावों की जागृति से जातक का अपने परिवार से मोह के बंधन की सीमाएं या वर्जनाएँ टूटने लगती हैं और बाह्य जगत से अनुराग बढ़ जाता है।
-दिशाओं की सब सीमाए समाप्त।-समाज के हृदय में बसा और परमार्थ के पथ पर चलता-बढता कोई तत्वदृष्टा गाइड; कोई महात्मा।
-जातक का मन! भागीरथ के जल सा निर्मल ! या फिर मन्थन से निकला हलाहल है। -जिससे जहां जा मिला उस जैसा रुप-रंग-आकार पा लिया। दवा बने तो जीवनदान ओर नशा बने तो....।।.....क्रमस:अन्तिम भाग में " भावात्-भावम् " ।। पत्रिका के वाचन (फलित) करने से पहले जांच के आवकश्यक मापदण्ड:- भाग-3
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फलित के सैध्दान्तिक ज्ञान में पारंगत हो जाने पर अब " साधक " एक " वादक " में रुपान्तरित हो जाता है।
"अनागत "(अकल्पनीय भविष्य) के प्रति यह " अनाहत " (ज्ञान का शंखनाद) की घोषणाए अब किसी वीणा के स्वर के समान उसकी वाणि से झंकृत होने लगती हैं।
क्योंकि अब उस ज्योतिषी के हाथों में आई कोई भी जन्मपत्रिका मात्र एक व्यक्ति की ही पत्रिका नही रह गई है। अब वह ज्योतिषी उस व्यष्टि ( एक/ईकाई) से उसकी संपूर्ण सृष्टि का निर्माण कर लेता है।
जन्मपत्रिका वाचन की इसी कला का नाम है "भावात्-भावम् "।
भावात्-भावम् ! संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है--" भावसे भाव का " परीक्षण करना।
स्मरण करें कि फलितज्योतिष के सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ "बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् " अथव�� " फलदीपिका " से हमने समझा है कि;
1) -छठेभाव से छठाभाव अर्थात्त ग्यारहवा भाव भी रोग-ऋण-शत्रु,मामा आदि बड़े संबंधियों का भाव माना जाता है। इसी प्रकार
2) -मारकेश का बल और मृत्यु का तरीका देखने के लिए हम आठवे से आठवा अर्थात्त तीसरे भाव को भी देखते हैं।
यही प्रक्रिया यदि हम अन्य भावों के लिए भी प्रयोग करें तो हमारे फलित का आश्चर्यजनक रुप से विस्तार हो जाता है।
इस विषय को दक्षिणी भारत के विद्वान श्री रामानुज ने अपने एक लघु ग्रंथ " भावार्थ रत्नाकर " में विस्तार से लिख कर पुनः मान्यता दी है।
इस विधि की कुछ विशेषताएँ:-
1-जन्मकुंडली का लग्नभाव स्वयं में दीप समान है। अत: भावात् भावम् विधि में लग्नभाव की पुनर्परीक्षा नही की जाती। क्योकि लग्न का विस्तार तो पहले ही शेष ग्यारह भावों में किया जा चुका है।
2-अब भावात् भावम् में दो विधि आती हैं:
I) -लग्न के अतिरिक्त हम जिस किसी भी भाव का फलित विस्तार करना चाहते हैं उस भाव को ही लग्न मान कर उससे अगामी भावों को धन, पराक्रम,सुख आदि मान कर चलें।
II) -लग्नभाव के अतिरिक्त हम लग्न से क्रमवत जिस भाव का भी पुनर्परीक्षा करना चाहते हैं तो हमें उस भाव की स्वाभाविक क्रमसंख्या से उसी क्रमसंख्या वाले भाव का चयन करना होगा।
अब यह भाव हमारे अभिष्ठभाव (जिस भावका हम परीक्षण कर रहें हैं ) का "सह भाव" (अर्धभाव) है सहयोगीभाव नही।
जैसे धन (02) का धन (03) का धन (04) भाव।। इस उदाहरण में तीसरा और चौथाभाव दोनों धनभाव के सहभाव हैं।
हमें ज्ञात है कि फलितज्योतिष में जन्मकुंडली के पहले भाव से घड़ी की विपरीत गति की ओर चलते हुए भाव संख्या-2, फिर-3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और अन्त में भावसंख्या-12 निर्धारित है।
भावात् भावम् नामक इस विधि में हम जिस भावसंख्या का फलित करना चाहतेे हैं, उस भाव से उतनी ही अगामी क्रमसंख्या के भाव को अपने अभिष्ठ भाव का "सहायक भाव " मानते हुए उसका भी परीक्षण करते चले जाते हैं। यह क्रम दोहराया और तिहराया भी जा सकता हैं।
उदाहरण हेतु: -जन्मकुंडली के भाव संख्या 02 से एक ज्योताषी किसी भी जातक की "चल-अचल धन-संपदा" के संग्रह को देखते हैं।
सामान्य परीक्षण विधि से फलित : 1-भाव संख्या 02 में भावेश स्वयं बैठा हो अथवा लग्नेश स्वयं बैठा हो या उनके नैसर्गिक मित्र का वास हो तो यह शुभयोग है।
2-भावेश या लग्नेश का मित्र ग्रह न हो किन्तु नैसर्गिक शुभग्रह आ बैठे तो भी यह शुभयोग है।
3-अब इस भाव में बैठे: I)-भावेश या लग्नेश पर या II)-इनके मित्र पर या III)-किसी नैसर्गिक शुभग्रह पर अन्य किसी नैसर्गिक मित्रग्रह का कोई भी संबंध, किसी भी भाव ��े बन जाय तो हम जातक को "चल-अचल धन-संपदावान" घोषित कर देते है।
4-यदि उपरोक्त से विपरीत परिस्थिति बनी है तो जातक की आय चाहे कितनी भी हो वह "चल-अचल-संपदा का संग्रह" कर पाएगा ? इसमें सन्देह बन जाता है।
भावात् भावम् से परीक्षा से प्राप्त फलित:-
1-हमारे अभीष्ठ भाव (जिस भावका हम परीक्षण कर रहें हैं ) का स्वामिग्रह यदि उसके "सहभाव" में ही बैठा हो तो यह सामान्य और सन्तोषजनक स्थिति है।
2-हमारे अभीष्ठ भाव (जिस भावका हम परीक्षण कर रहें हैं ) के स्वामिग्रह के दल का ही कोई ग्रह यदि उसके "सहभाव" में ही बैठा हो तो यह सामान्य और सन्तोषजनक स्थिति है। (दल -1 बृ, मं, चं सू और योगवश केतु । दल-2 शुक्र, बुध, शनि, और राहु )
3-हमारे अभीष्ठ भाव के स्वामिग्रह के दल से विपरीत दल का सौम्य ग्रह यदि उसके "सहभाव" में ही बैठा हो तो यह राजयोग समान शुभ होगा। (वेशी और अनफा योग का स्मरण करें ) और यदि सहभाव में विपरीत दल का क्रूर ग्रह है तो यह अशुभ स्थिति है।
भावात् भावम् की दोनों विधियों में उपरोक्त तीन नियम लागु होंगे।
फलित करते समय भी प्रश्न बन जाता है कि जब आय अच्छी हो रही है ( एकादस से और पुन: एकादस से एकादस अर्थात्त नवम भाव से ) तो फिर उस आय की क्या गति होगी? वह आमदनी "चल-अचल-संपदा" में क्यों संग्रह नही होगी?
तब हमें धनभाव के धनभाव अर्थात्त दूसरे भाव से दूसरे अर्थात्त तृतीय भाव से उत्तर मिलेगा।
1-हम जानते है कि भाव संख्या 3 और 6 में नैसर्गिक क्रूरग्रह अपना श्रेष्ठ फल देते हैं।
2-अत: यदि धनभाव का स्वामि नैसर्गिक क्रूरग्रह है और वह तृतीयभाव में आ बैठते हैं तो यह शुभयोग बन जाता है।
3-इसके विपरीत यदि धनभाव का स्वामि नैसर्गिक सौम्यग्रह है और वहकर तृतीयभाव में आ बैठते हैं तो यह हमारे फलित "चल-अचल-संपदा से हीनता" को ही बल देता है।
"चल-अचल-संपदा से हीनता" के संबंध में यदि यहां पर भी ज्योताषी अथवा यजमान सन्तुष्ठ न हों तो फिर हमारी यात्रा होगी --***धन के धन का धन तक। अर्थात धन के धन (भावसंख्या 03) फिर ...धन का धन अर्थात्त भावसंख्या 04 पर।
-स्मरण रहे कि भावसंख्या 03 तक हम "चल-अचल-संपदा की प्राप्ति" के योग अथवा फलित को अन्तिम रुप दे चुके है। भावसंख्या 04 पर हम "चल-अचल-संपदा से हीनता" के कारण या कारक का योग खोज रहें हैं।
हम जानते हैं कि चौथा भाव सौम्यभाव है। अत: यहां सौम्य ग्रह का होना हमारी "चल-अचल-संपदा से हीनता" का सौम्य कारण बनेगा। अर्थात हमारी प्राथमिकता कुछ और होगी जैसे सन्तान की उच्चशिक्षा आदि। और यदि यहां क्रूरग्रह का वास है तो "चल-अचल-संपदा से हीनता" का कारण हमारी दुखदायक परिस्थिति है। वह सुख और दुखदाई का जिम्मेवार हमारा वह संबंधी होगा जिसका कारक ग्रह इस भाव (04) को प्रभावित कर रहा है।
**स्वाभाविक भी है कि धनभाव के पराक्रम या उसके रुप का ज्ञान हमें सुखभाव से ही होगा।
इस क्रिया से हम अपने फलित को बहुत सटीक और अधिक विस्तार दे सकते हैं। यह विधि किसी विद्वान ज्योतिषी की कल्पना की असीमित और अनन्त उड़ान है । जहां शेष भी अशेष बन जाता है।
अपने इस लेख में हमने " भावार्थ रत्नाकर " ग्रंथ से मात्र उसका "मूल विचार" ( concept) लिया है। क्योंकि यह स्वयं में मूलग्रंथ नही है अत: इसमें विद्वानों के स्वानुभूत विचारों का समावेश स्वीकार्य रहा है। यह गुरुआज्ञा के प्रति दुराग्रह की श्रेणी में नही आता।
निवेदन है कि इस लेख पर अपनी असहमति या सहमति विस्तार से दें क्योंकि "ज्ञान" पर किसी एक की बपौती नही होनी चाहिए। इतिशुभम्।
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श्री यंत्र पूजा, क्रिस्टल श्री यंत्र, स्फटिक श्री यंत्र स्थापना, श्री यंत्र मंत्र, श्री यंत्र दैनिक पूजन विधि. Call- 9643992242
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धनवर्षा के लिए करें स्फटिक श्री यंत्र की पूजा,
स्फटिक श्रीयंत्र आर्थिक तंगी का नाश करता है |
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श्रीयंत्र
सबसे
उपयुक्त यंत्र
में से एक है,
महत्वपूर्ण और शक्तिशाली
, न केवल लाभ को अधिकतम करने के लिए, बल्कि लगभग सभी के लिए भी
फायदेमंद
है।
स्फटिक श्री यंत्र
के नाम से जाने जाने वाले
क्रिस्टल को मन
,
शरीर
और
आत्मा
के लिए
असाधारण चिकित्साऊर्जा
कहा जाता है। यह
सर्वोच्च ऊर्जा
का स्रोत माना जाता है और
ऊर्जा तरंगों
और
किरणों के रूप में
तत्व का एक और रूप है। क्रिस्टल में सकारात्मक
सकारात्मक कंपन
हैं, जो ऊर्जा देता है, आपके
भावनात्मक जीवन
को फिर से जीवंत करता है और स्पष्टता देता है और आपको अधिक सहज
ज्ञान युक्त
बनाता है।
क्रिस्टल श्री यंत्र
की सकारात्मक कंपनें
मानसिक संतुलन
और
शांति
प्रदान करती हैं। यह एक
बहुत शक्तिशाली यंत्र
है
स्फटिक
श्री यंत्र
निश्चित रूप से हमारे जीवन में सभी समस्याओं और
नकारात्मकता
का उत्तर है। जो कोई भी
क्रिस्टल श्री
श्री यंत्र
का उपयोग करता है वह बहुत अधिक
समृद्धि
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शांति
और
सामंजस्य
प्राप्त करता है
क्रिस्टल श्री यंत्र
हमारे जीवन में सभी
बाधाओं को तोड़ने
में मदद करता है इससे हमें
अनिश्चित काल
तक और आसानी से
विकास की सीमाओं
को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है - दोनों
आध्यात्मिक
और
भौतिक
रूप से। हमारे चारों ओर नकारात्मक ऊर्जा अधिक या कम है यह
नकारात्मक ऊर्जा
अधिक सफलता
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और
सामंजस्य
को प्राप्त करने के हमारे रास्ते में है|
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राजभवन में बिखरे प्रकृति के खूबसूरत रंग में फूलों की फ़िज़ा राज्यपाल ने किया ‘पुष्प प्रदर्शनी’ का उद्घाटन देहरादून । राज्यपाल डाॅ0 कृष्ण कांत पाल ने आज राजभवन के हरित प्रांगण में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘पुष्प प्रदर्शनी ’/‘पुष्प प्रतियोगिता’/“बसंतोतसव“ का उद्घाटन किया। प्रकृति के अद्भुत श्रृृंगार, पुष्पों के मनमोहक रगांे तथा लोक संस्कृति के सुरीले स्वरों के बीच भव्य उद्घाटन के बाद राज्यपाल ने डाक विभाग द्वारा तैयार प्रथम दिवस आवरण का भी विरूपण किया जिसमें औषधीय गुणों से सम्पन्न तथा धार्मिक रूप से पवित्र ‘वन तुलसी’/बद्री तुलसी’ को चित्रित किया गया है। यह उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में 750-3000मी. की उंचाई पर समशीतोष्ण जलवायु में मुख्य रूप से पाया जाता है। प्रदर्शनी का औपचारिक उद्घाटन करने के पश्चात् राज्यपाल ने सम्पूर्ण प्रदर्शनी का अवलोकन करके प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन किया। राजभवन के इस वार्षिक आयोजन में 2015 से भागीदार बन रहे डाक विभाग द्वारा लगाई गई ‘डाक टिकट प्रदर्शनी’ का भी राज्यपाल ने उद्घाटन किया। प्रदर्शनी में टिकट संग्रह के शौकीन राज्यपाल के विशाल टिकट संग्रह में से लगभग 1800 डाक टिकटों का प्रदर्शन इस टिकट प्रदर्शनी में लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना है। इस वर्ष राज्यपाल ने टिकट संग्रहण के शौकीन विद्यार्थियों को भी इस प्रदर्शनी में शामिल कर उनके बीच प्रतियोगिता भी रखी है। इस अवसर पर मीडिया प्रतिनिधियों से राज्यपाल ने कहा कि बसन्तोत्सव केवल पुष्प उत्पादों की प्रदर्शनी नहीं बल्कि लोकोत्सव का एक ऐसा वार्षिक आयोजन है जहाँ व्यक्ति अपने पूरे परिवार के साथ प्रकृति, संगीत, कला, सौंदर्य, मनोरंजन, खान-पान तथा प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग की आधुनिक तकनीक सहित अन्य कई जानकारियों का लाभ आसानी से एक ही स्थान पर पा सकता है। राज्यपाल ने यह भी कहा कि परम्परागत कृषि का एक सबसे लाभकारी विकल्प होने के कारण उत्तराखण्ड में फूलों की खेती छोटे काश्तकारों के लिए आमदनी का एक बेहतरीन जरिया बनने के साथ ही रोजगार का माध्यम भी बन सकती है। उन्होंने कहा कि विगत वर्षों की तुलना में इस वर्ष बड़ी तादात में हुए पुष्पोत्पादन ने इस क्षेत्र में विकास की असीम सम्भावनाएं जागृत कर दी हैं। प्रदेश में फूलों की खेती का बढ़ता क्षेत्रफल बहुत अच्छे संकेत हैं। ट्यूलिप जैसे कीमती फूलों की खेती को प्रोत्साहित किया जा सकता है। राजभवन में प्रायोगिक तौर पर विगत वर्ष से लगाये गये ट्यूलिप के बल्ब्स सेे निकले फूलों ने इसकी सफल खेती के अच्छे संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा उत्तराखण्ड न केवल देवभूमि है बल्कि यह पुष्प भूमि भी है, इस प्रदर्शनी ने इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने राज्य में पुष्पोत्पादन को प्रोत्साहित करने की योजनाओं को पहाड़ के उन दूरस्थ स्थानों तक ले जाना आवश्यक बताया जहाँ जीविकोपार्जन के अन्य संसाधन न होने से पलायन बढ़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखण्ड की ‘पुष्प प्रदेश’ के रूप में पहचान स्थापित करने के लिए हमें अनुकूल पर्यावरण/मौसम का हरसंभव लाभ उठाने का प्रयास करना होगा। राज्यपाल ने पेंटिंग प्रतियोगिता में आए बच्चों की अभूतपूर्व प्रतिभागिता देखकर कहा कि इस आयोजन के प्रति बच्चों में भी उत्साह बढ़ रहा है इससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। उल्लेखनीय है कि विगत वर्ष 700 के सापेक्ष इस वर्ष 1069 ने चित्रकला प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया है। इनमें शारीरिक, मानसिक रूप से अशक्त तथा अपवंचित वर्ग के बच्चों सहित विभिन्न स्कूलों से आए बच्चों को चित्रकला प्रतियोगिता के अन्तर्गत रंग और तूलिका के माध्यम से अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कर प्रतिभा प्रदर्शन का मौका दिया गया। इस वर्ष की पुष्प प्रदर्शनी में 1581 प्रविष्टियां विभिन्न श्रेणियों की प्रतियोगिता के लिए अंकित की गयी है, जिनमें व्यावसायिक पुष्प उत्पादकों, पुष्प प्रेमियों तथा विभिन्न शासकीय संस्थानों द्वारा प्रदर्शित जरबेरा, कारनेशन, ग्लैडोलियस, लिली जैसी कुछ प्रमुख प्रजाति के फूल “कट फ्लावर्स“, लोगों के आकर्षण का विशेष केन्द्र बने हुए हैं। प्रदर्शनी में पौटेड प्लान्ट्स, फ्र्रैश/ड्राई फ्लावर अरेंजमेन्ट, माला, कैक्टस वैरायटी, वोन्साई व फल-सब्जियों के पौधों सहित अन्य कई तरह के उत्पादों का आकर्षक प्रदर्शन किया गया है। पुष्पों की विभिन्न प्रजातियों के अतिरिक्त इस वर्ष के बसन्तोत्सव में प्रमुख आकर्षण रहा आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा ‘‘जूडो-कराटे’’का उच्चस्तरीय प्रदर्शन रहा। जिसमें यौगिक शक्तियों के माध्यम से आत्मरक्षा के इस जोशीले एवं सशक्त कला-कौशल की तकनीक का हैरतंगेज प्रदर्शन किया गया। देव संस्कृति विश्वविद्यालय शान्तिकंुज की छात्राओं द्वारा योगासनों का उत्कृष्ट प्रदर्शन तथा गोरखा रेजिमेंन्ट के जवानों का खुखरी नृत्य भी सबके आकर्षण का केन्द्र बना। प्रदर्शनी में उद्यान तथा कृषि से जुड़े व्यवसायों से सम्बन्धित उन्नत किस्म की तकनीक से निर्मित यंत्र, सामग्री, बीज/उपकरण आदि के 127 स्टाॅल लगाये गये हैं। विभिन्न जैविक उत्पादों सहित जूट व बैम्बू से निर्मित उत्पाद के स्टाॅल्स आगुन्तकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो रहे हैं। प्रदर्शनी के माध्यम से राज्य की कला-संस्कृति को बढ़ावा देकर उसे सम्मानित पटल प्रदान करने के उद्देश्य से फोटो तथा आर्ट गैलरी बनाई गयी है। उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक लोक कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करने के साथ ही फूलों की रंगोली प्रतियोगित�� से महिलाओं को अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने का अवसर मिला है। आज के उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत, राज्यपाल के विधिपरामर्शी विवेक भारती शर्मा, वित्त नियंत्रक के.सी.पाण्डे, चीफ पोस्टमास्टर जनरल उदयकृष्ण, निदेशक उद्यान डा0 वी.एस.नेगी सहित शासन-प्रशासन के अनेक वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। 5 मार्च को प्रातः 10ः00 बजे से आम जनता के लिए पुष्प प्रदर्शनी खुली रहेगी। सांय 4ः00 बजे ‘पुष्प प्रदर्शनी’ में विभिन्न श्रेणियों की ‘प्रतियोगिता’ के विजेताओं को राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत किया जायेगा।
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इस तरह श्री यन्त्र त्राटक साधना करने पर तीनो जगत वशीकरण की शक्ति मिलती है
shree yantra tratak in hindi यानि tratak kriya जब एक यन्त्र पर की जाए तो क्या shree yantra tratak se jyada benefit milta h अगर हमें sammohan shakti chakra का लाभ लेना है तो shree yantra के किस चक्र पर tratak meditation करना चाहिए। ऐसे कई सवाल है जो tratak on sree yantra से जुड़े है। shree chakra वास्तव में श्री यन्त्र के वो लेयर है जो अलग अलग बेनिफिट लिए है। किस चक्र पर tratak meditation कोनसा बेनिफिट दिलाता है आज जानते है। tratak sadhna in hindi में कई तरीको का वर्णन है जो अलग अलग महत्व लिए है। उनमे shakti chakra tratak in hindi और shree yantra tratak लगभग सबसे ज्यादा powerful माने गए है। shree yantra image par tratak करने से कैसे हमें सही लाभ मिलेगा और tratak benefit को ज्यादा से ज्यादा कैसे हासिल करे ऐसे कई सवालों का जवाब आज हम जानेंगे।
shree yantra tratak meditation in hindi :
श्री यन्त्र पर त्राटक ध्यान करने से हमें कई अनुभव ऐसे होते है जो आध्यात्मिक रूप से हमें मजबूत बनाते है। श्री यन्त्र की 9 लेयर में हमें सबसे ऊपरी और मध्य की लेयर पर त्राटक करना चाहिए। इससे ना सिर्फ हमें wealth मिलती है बल्कि triloki vashikaran यानि तीनो जगत का वशीकरण भी मिलता है। लेकिन sree yantra image par tratak करने से पहले आपको सबसे खास बात जान लेनी चाहिए की श्री यन्त्र कब हमें सही लाभ देगा। shree yantra benefit in hindi की बात करे तो श्री यन्त्र की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा के बाद अगर हम shree yantra tratak करे तो हमें vashikaran और wealth यानी धन प्राप्ति होती है। लेकिन ये तभी होगा जब आप इससे जुड़े सभी नियमो का कड़ाई से पालन करेंगे। tratak on shree yantra : sree yantra tratak kriya vidhi हमारे पूजा पाठ के तरीको से जुडी है। जिस तरह हम देवी देवता की स्थापना करते है उसी तरह से श्री यन्त्र की स्थापना करनी चाहिए। इसके बाद श्री यन्त्र के सामने दीपक प्रज्ज्वलित कर मानसिक tratak meditation करना चाहिए तथा भगवान् शिव और माता पार्वती का ध्यान लगाना चाहिए जिससे की shree yantra me energy flow करने लगे। shree yantra par tratak करने के लिए इसके सबसे ऊपर वाली लेयर और मध्य वाली लेयर का चुनाव करे। इसका मंत्र श्रीम है जिसमे श्री लम्बा खिंचाव लिए हुए है। बाकि सभी विधि एक normal bindu tratak जैसी है। आइये जानते है श्री yantra से जुडी कुछ खास बातो को जिन्हे जान कर ही हमें घर में श्री यन्त्र की स्थापना करनी चाहिए। श्री यन्त्र और इसका उपयोग और मह्त्व shree yantra एक divine yantra है जो हिन्दू धर्म में symbol of wealth माना जाता है। घर में sree yantra ki sthapna हालाँकि लोग सिर्फ wealth यानि धन प्राप्ति के उदेश्य से करते है फिर भी समय के साथ tratak me shree yantra ka upyog किया जाने लगा क्यों की इसके experience spiritual थे। हिन्दू धर्म के सबसे खास यन्त्र यानि श्री यन्त्र की बनावट और इसके डिज़ाइन को समझ कर आप अंदाजा लगा सकते है की ये किस तरह से हमारे लिए खास है। sammohan shakti chakra पर त्राटक करना हमें shree yantra benefit दिलाता है। sri yantra image design and fact : shree yantra को symbol of wealth यानि धन का प्रतिक माना गया है। ज्यादातर लोग अपने घर और पर्स में श्री यन्त्र की स्थापना करते है ताकि धन का प्रवाह बना रहे। shree yantra image design की बात करे तो इसमें 9 खास चक्र होते है जिसके मध्य में त्रिपुरा-सुंदरी निवास करती है। ये चक्र अलग अलग benefit लिए होते है। shree chakra tratak in hindi में हमें किस चक्र पर त्राटक करना चाहिए आइये जानते है अलग अलग लेयर यानि चक्र के महत्व को। 9 chakra in shree yantra : sree yantra के ये 9 layer अलग अलग personality benefit से जुड़े है।
पहली लेयर लाल रंग की है जिसका मंत्र श्रीम है और अगर हम इस लेयर पर त्राटक करते है तो धन की प्राप्ति होती है ऐसा जानकारों का मानना है। दूसरी लेयर या चक्र हमारे समृद्धि से जुड़ी है जिसके अनुसार इस पर नियमित मैडिटेशन करने से wealth और health में इजाफा होता है साथ ही हम जो चाहे वो पा सकते है। तीसरा चक्र : श्री यन्त्र की तीसरी लेयर में बीमारियों को रोकने की क्षमता होती है। चौथा चक्र सभी प्रकार के दोष का निवारण करता है। पांचवा चक्र आपके सभी रुके हुए काम सिद्ध करता है। sixth layer of shree yantra आपके भविष्य को ज्यादा बेहतर बनाती है। seventh layer of shree yantra आपके चारो और से negativity को दूर करती है। eightth layer आपकी सभी इच्छाओ की पूर्ति करती है। नौवे नंबर की लेयर यानि center of shree yantra पर त्राटक करना आपको triloki vashikaran ki sidhhi देता है। tratak se pahle shree yantra ki sthapna ka sahi trika : shree yantra ki sthapna करने से पहले आपको कुछ खास बातो का ध्यान रखना होता है क्यों की श्री यन्त्र पर त्राटक से पहले इसको ऊर्जावान बनाना बेहद जरुरी है। shree yantra image की स्थापना किस तरीके से करे : श्री यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा में ध्यान रखने योग्य कई ऐसी बाते होती है जिन्हे ध्यान ना दे पाने पर हम shree yantra को सही तरह से प्राण प्रतिष्ठित नहीं कर पाते है। इसके लिए निम्न 4 बातो का ध्यान रखे। shree yantra को energetic बनाने के लिए shree yantra meditation यानि पूर्व ध्यान करे जिससे आपकी ऊर्जा श्री यन्त्र से जुड़ जाए। श्री यन्त्र की sthapna घर में ऐसी जगह करे जो मंदिर लायक हो, अगर आप shree yantra par tratak in hindi करने की सोच रहे है तो घर में ऐसी जगह इसकी स्थापना करे जहा पर एकांत हो और स्थापित किया जा सके। shree yantra image की स्थापना के बाद अगर आपके घर में किसी तरह की लड़ाई झगड़ा या मीट और शराब का सेवन होता है तो श्री यन्त्र निस्तेज हो जाता है जिससे की इसका प्रभाव नहीं रहता। श्री यन्त्र की स्थापना ही नहीं प्राण प्रतिष्ठा भी बेहद आवश्यक है और ये हम भी कर सकते है लेकिन बेहतर होगा किसी शुभ मुहूर्त में ऐसे व्यक्ति जैसे पंडित से shree yantra pran pratishtha करवाई जाए जो ये विधि जानता हो। sree yantra के ऊपर हमेशा पीला कपड़ा रखे अगर मंदिर में स्थापित है तो इसके ऊपर पीला पर्दा हो। कही आने जाने में अगर श्री यन्त्र लाना ले जाना पड़े तो साफ पिले कपड़े से ढक कर लकड़ी के बॉक्स में इसे रखे। श्री यन्त्र से जुड़े फैक्ट - fact about shree yantra : श्री यन्त्र की स्थापना के बाद शुक्ल पक्ष के बुधवार, पूर्णिमा और होली दीवाली जैसे त्यौहार और खास दिन इसकी स्पेशल पूजा या ध्यान होना बेहद जरूरी है क्यों की इन दिनों में इसका प्रभाव और लाभ दोनों बढ़ जाते है। सबसे पहले श्री yantra को साफ करना बेहद जरुरी है इसके लिए सबसे पहले गुरु ध्यान करते हुए यन्त्र के सामने दीपक प्रज्ज्वलित करे और फिर शिव तथा माता पार्वती का मानसिक ध्यान करे। shree yantra tratak करने के लिए यन्त्र के मध्य पर tratak meditation करे और इसके बाद सूक्त पाठ भी। अगर ये नहीं कर सकते और यंत्र पूजा नियमित न हो तो बुधवार पूर्णिमा को जरूर करे। shree यन्त्र के 9 layer और 45 त्रिभुज अलग अलग 45 देवी देवताओ का प्रतिनिधित्व करते है। इस लिए अगर आप इसकी स्थापना घर में करते है तो पहले घर के माहौल को कण्ट्रोल कर ले। sree yantra की समय समय पर पूजा पाठ ना कर पाने से negative effect भी होने लगते है इसलिए अगर आपके घर में कोई इसकी टाइम पर पूजा न कर पाए तो इसकी स्थापना न करे। श्री यन्त्र सिद्धि : shree yantra ki sidhhi के लिए सिल्वर श्री यन्त्र को अपने पास रखे और इस पर त्राटक करते हुए om shrim hring shrim mahalakshmaye shrim hring shrim namah मंत्र का 108 बार जाप करे। 125, 000 बार जाप सिद्ध माना गया है, जो शुभ है। shree yantra और shakti chakra tratak अलग नहीं है दोनों ही most powerful tratak है। बदलाव सिर्फ माध्यम का है की हम किस माध्यम को ज्यादा मानते है यहाँ भावनाए हमें प्रेरित करती है की हम किस पर ज्यादा देर फोकस रह पाते है। जैसी हमारी भावनाए त्राटक के दौरान रहती है वैसे ही हमें अनुभव होते है। इसलिए जो माध्यम आपको बेहतर लगता है त्राटक उसी पर करना चाहिए। shree yantra tratak की आज की ये पोस्ट आपको कैसी लगी हमें जरूर बताए साथ ही लेटेस्ट अपडेट के लिए हमें सब्सक्राइब करे। Read the full article
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