swamiashokbharti
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swamiashokbharti · 4 years ago
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अज्ञानता सबसे बड़ा परिणाम यह है कि व्यक्ति को अपने जीवन के सही लक्ष्य का कोई होश नहीं रहता। जिंदगी बीती तो जा रही है लेकिन बेहोश अवस्था में! गति तो हो रही है पर किधर हो रही है इसका कुछ पता नहीं! और जिसका कोई पता नहीं है, ऐसी गति का कोई मूल्य नहीं है, वरन व्यर्थ का श्रम हो रहा है। कितनी भयंकर भूल है कि अज्ञानी घटती हुई उम्र को बढ़ती हुई मान रहा है। लोग बर्थडे मनाते हैं अपने जन्म दिवस के उत्सव में। मित्र दोस्तों को निमंत्रित करते हैं मन ही मन बड़े खुश होते हैं कि आज मैं 21 वर्ष का हो गया। वे यह नहीं सोचते कि बड़ा नहीं हुआ हूं बल्कि मेरे जीवन के 21 वर्ष कम हो गए और इस दृष्टि से छोटा हो गया हूँ, मूर्ख हारी हुई बाजी को जीती हुई मानता है। है ना आश्चर्य!आईये समझे जीवन के महोत्सव को इस गोआ में होनेवाले शिविर में। "अशोक भारती" मित्र जो अब तक भी सिर्फ हमारे हमसफर साथी बनने का विचार ही कर रहे है,उनसे निवेदन है कि हमसे जुड़े। हमारे हमसफ़र साथी बनने के लिए यहां नीचे दी हुई सभी लिंक से जुड़े (1)अशोक भारती फेसबुक पेज ( Ashok Bharti Facebook Page ) https://www.facebook.com/ashokbhartipage/ (2) गुरु दर्शन स्वामी अशोक भारती यूट्यूब चैनल ( Guru Darshan Swami Ashok Bharti YouTube Channel ) http://www.youtube.com/c/GuruDarshanSwamiAshokBharti (3) स्वामी अशोक भारती ट्विटर हैंडल (Swami Ashok Bharti Twitter Handle ) https://twitter.com/SwamiAshokBhar1?s=09 (4) ओशो समर्पण फेसबुक ग्रुप ( Osho Samarpan Facebook Group ) https://www.facebook.com/groups/391022461278159/ (5) ओशो मिस्ट्री स्कूल फेसबुक ग्रुप ( Osho Mystery Facebook Group ) https://www.facebook.com/groups/530418960469785/ (6) Website www.swamiashokbharti.com Posted by Team Guru Darshan 🌹🌻🙏🌻🌹 https://www.instagram.com/p/CGuvLjAFSuV/?igshid=7g3j4uo7ebv8
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swamiashokbharti · 4 years ago
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एक बार गाँव वालों ने यह निर्णय लिया कि वे बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना करेंगे, प्रार्थना के दिन सभी गाँव वाले एक जगह एकत्रित हुए परन्तु एक बालक अपने साथ छाता भी लेकर आया। इसे कहते हैं आस्था!! जब आप एक बच्चे को हवा में उछालते हैं तो वह हँसता है क्यों कि वह जानता है कि आप उसे पकड़ लेंगे। इसे कहते हैं विश्वास!! प्रत्येक रात्रि को जब हम सोने के लिए जाते हैं तब इस बात की कोई गारण्टी नहीं होती कि सुबह तक हम जीवित रहेंगे भी या नहीं फिर भी हम घड़ी में अलार्म लगाकर सोते हैं। इसे कहते हैं आशा!! हमें भविष्य के बारे में कोई जान��ारी नहीं है फिर भी हम आने वाले कल के लिए बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं। इसे कहते हैं आत्मविश्वास!! हम देख रहे हैं कि दुनिया कठिनाइयों से जूझ रही है फिर भी हम शादी करते हैं। *इसे कहते हैं आश्चर्य!! एक 60 साल की उम्र वाले व्यक्ति की शर्ट पर एक शानदार वाक्य लिखा था "मेरी उम्र 60 साल नहीं है, मैं तो केवल 16 साल का हूँ , 44 साल के अनुभव के साथ। इसे कहते हैं जीने का नज़रिया!! जीवन अत्यंत खूबसूरत है, इसे बहुत सुंदरता से सर्वोत्तम के लिए जियें। "बिखरने दो होंठों पे हंसी की फुहारें। और वाणी में प्यार की मिठास घोलो।। क्योकि प्यार से बोलने में किसी की जायदाद कम नहीं होती। "अशोक भारती" https://www.instagram.com/p/CFcKCb9lRQh/?igshid=1o0ba587cpvaq
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swamiashokbharti · 4 years ago
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मनुष्य के जीवन में आवश्यकताओं की आग लगी हो और जीने की आदत में रंच मात्र भी होश ना हो तो जो साधन इकट्ठे कर लिए हैं उस पर ध्यान ही नहीं जाता। एक बार हमारे देश के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री कन्हैया लाल मिस्र "प्रभाकर" ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से पूछा कि "आपकी दिव्य दृष्टि में जीवन का सर्वोत्तम विशेष गुण क्या है? रविंद्र नाथ टैगोर का उत्तर था "अवकाश पूर्ण होना" साहित्यकार ने फिर जिज्ञासा वश पूछा कि गुरुदेव आजकल तो अति व्यस्त जीवन को ही सार्थक माना जाने लगा है। क्या यह मान्यता ठीक नहीं है? गुरुदेव ने उत्तर देते हुए कहा कि "तब जीवन स्वतंत्रता खो देता है और एक यंत्र बन जाता है और किसी बड़ी सर्जनशीलता के योग्य नहीं रहता"। बात बिल्कुल साफ है कि जिन्हें जीवन में आत्मा की स्वतंत्रता और सजगता प्रिय है उन्हें आवश्यकताओं को आकांक्षाओं को लिप्साओं को नियमित नियंत्रित करना ही होगा,और उसके बाद ही हम अनुभव करते हैं कि हम कितने कड़े बंधन में बंधे हुए थे। एक संत से एक विजेता शासक ने कहा बोल तू क्या चाहता है ? मेरे पास सब कुछ है मैं तुझे मुंह मांगी चीज दूंगा! संत ने कहा मेरे सामने से जरा हट जाओ सूरज की किरणें आ रही है थोड़ी धूप आने दे! यह है आत्मा की स्वतंत्रता, जीवन की उन्मुक्तता, व्यक्ति की बंधनहीनता जो आकांक्षाओं की आग बुझने पर ही प्राप्त होती है। इस संबंध में सुकरात भी बहुत सुंदर वचन कहते हैं की "वह आदमी अमीर है जो प्रकृति की चीजों का कम से कम उपयोग करता है"। क्योंकि हम आवश्यकताओं से अधिक संचय करने की प्रवृत्ति के कारण प्रकृति का चूसकर दोहन कर रहे हैं। पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं प्रकृति से उतना ही लेना सीखो जितनी की हमारी आवश्यकता है, जितनी जरूरत हो क्योंकि प्रकृति ने हमें दोनों हाथों से बहुत दान दिया है। आगे सुकरात अपने सूत्र में कहते है" अतिव्यस्त जीवन की दरिद्रता से सावधान रहो"। बहुत बड़ा सूत्र दिया है सुकरात ने और जगाने की कोशिश की है मनुष्य को अपनी विक्षिप्तता की दौड़ से! यह सूत्र बहुत ध्यान से समझना होगा क्योंकि भारत की श्रुति कहती है कि खूब कमाओ धन का कोई भी विरोध नहीं है। दोनों हाथों से कमाओ लेकिन फिर चार हाथों से बांटो भी,क्योंकि कमाते वक्त तुम नर हो और बांटते ही तुम नारायण हो जाते हो चार भुजा धारी हो जाते हो चतुर्भुज हो जाते हो।भगवान के रूप हो जाते हो। https://www.instagram.com/p/CEqmP2KlJZh/?igshid=14jo3kcfgc9a1
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swamiashokbharti · 4 years ago
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मित्रता के जादू से ओतप्रोत "मैत्री आश्रम" का हमारा सबका स्वप्न!! मैंने वर्षों तक यात्रा की और आज भी कर रहा हूं ऐसी स्थिति में कुछ शाश्वत कार्य आगे भी चलता रहे इस दृष्टि से आश्रम की रूपरेखा के संबंध में कुछ चिंतन हुआ है। आश्रम को मैं आधुनिक भाषा में "लेबोटरी के प्रयोग" कह सकता हूं और यह प्रयोगशाला बाजार में नहीं एकांत स्थान में खोली जाती है, और वहां जो प्रयोग होते हैं उनके लिए जो सामग्री इकट्ठा की जाती है वह सब सामाजिक होती है,उसपर किसी की व्यक्तिगत मालकियत नही होती। प्रयोग तो बहुत छोटे से स्तर पर किया जाता है पर उससे निकलने वाला परिणाम पूरे समाज के सामने परिलक्षित होता है। इसलिए आश्रम को पावर हाउस की तरह काम करना होगा वहां से पावर आसपास फैले ऐसी कोशिश होनी चाहिए। उद्देश्य होगा "आत्म मोक्षार्थ,जगत हितयाच:। आश्रम में हमारा मुख्य काम होगा पहले अपने पर कार्य करके सारे जन समाज को अहिंसक बनाना, उन्हें प्रेम से परिचित कराना, शक्तिशाली, आत्मनिर्भर,आत्म विश्वासी, निर्भय और निरवैर बनाना, किसी के प्रति कोई बैर नहीं। परंतु ऐसा पावर हाउस कहां बनेगा? यह वहां बनेगा जहां प्रेमियों की सामूहिक शक्ति से आश्रम स्वयम में गरिमापूर्ण महसूस करता हो। शंकराचार्य ने हिंदुस्तान के चार कोने में चार आश्रम ऐसे समय में स्थापित किए थे जबकि उनका एक दूसरे से संपर्क करीब करीब असंभव था क्योकि उस समय आवागमन के कोई भी साधन नही थे।ऐसे दूर-दूर आश्रमों की स्थापना करके उन्होंने वहां चार मनुष्यों को इस परम श्रद्धा के साथ बैठाया था कि ये दीपक का काम करेंगे और उन आश्रमों ने वैसा कार्य किया भी है। यदि आश्रमो का मुख्य आधार भगवान की भक्ति न हो और उनमें जन कल्याण की कोई भावनाए न हो तो ये आश्रम रूखे सूखे होकर कुछ भी काम न कर पाएंगे और मात्र मनोरंजन के केंद्र बनकर ही रह जाएंगे। इस महत्वपूर्ण कार्य मे स्त्री शक्ति की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी जहां तक भारत के इतिहास का मुझे ज्ञान है उसके अनुसार स्त्री शक्ति जगाने का सबसे बड़ा औऱ सबसे प्रथम कार्य भगवानश्री कृष्ण ने बहुत बड़े व्यापक पैमाने पर किया था। उसके बाद के युग में महावीर स्वामी ने प्रयत्न किया, बहुत बड़े पैमाने पर स्त्रियों को दीक्षा दी। इसलिए मुझे भी लगता है कि आश्रम की कुल व्यवस्था स्त्रियों के हाथ में होनी चाहिए क्योंकि अभी तक जो संसार हमने बनाया है वह पुरुष आधारित है। कम से कम हम आश्रम में तो यह प्रयोग कर सकते हैं कि अगर सारी व्यवस्था स्त्री को दे दी जाए तो इसके बहुत बेहतर परिणाम निकल सकते हैं। https://www.instagram.com/p/CEj4eI0lFmW/?igshid=1br05hm03ng8z
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swamiashokbharti · 4 years ago
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एक बार भगवान महावीर अपने शिष्यों को भाषा के विषय में बहुत बड़ी बात कह रहे थे की आत्मदर्शी को कैसी भाषा बोलनी चाहिए? क्योंकि भाषा ऐसी अनुपम अद्भुत शक्ति है, जिसके द्वारा हम अपने भावों को अभिव्यक्त कर सकते हैं ।मनुष्य इस आयाम में सभी प्राणियों में सबसे ज्यादा सौभाग्यशाली है कि उसे यह भाषा की अनुपम शक्ति प्राप्त है। पशुओं को यह शक्ति प्राप्त नहीं है उनकी भाषा बहुत ही सीमित होती है।जैसे की गायों का रंभाना, हाथी का ��िंघाड़ना, गधे का रेंगना, चि��़ियों का चहचहाना, घोड़े का हिनहिनाना आदि रूप में सीमित है। लेकिन हजारों लाखों शब्दों का भंडार मात्र मनुष्य के ही पास है। मनुष्य ने अनेक भाषाएं विकसित की है पर भाषा का उपयोग कैसे होना चाहिए यह विशेष रूप से विचारणीय है । तलवार हाथ में आने पर यह चिंतन आवश्यक होता है कि उसका उपयोग सुरक्षा के लिए किया जाए या हिंसा के लिए? पहला सूत्र महावीर कहते है" दीठम दृष्टाम".. वही बात कहो जो देखी है। बादशाह अकबर ने दीवाने आम में एक बार एक सवाल पूछा कि सच और झूठ में क्या अंतर है? दरबारियों ने कहा जहांपनाह सच और झूठ में तो जमीन आसमान का अंतर है।बीरबल चुप रहे बादशाह ने कहा बीरबल तुम क्या कहते हो? बीरबल ने कहा हुजूर झूठ और सच में सिर्फ चार अंगुल का अंतर है! बादशाह चकित थे बात समझ में नहीं आई।बीरबल तुम्हारे कहने का अभिप्राय क्या है? बीरबल ने कहा खुदा बंद कान से सुना झूठ, आंख से देखा सत्य! अब आप माप कर देख लीजिए की आंख और कान में कितना अंतर है। तात्पर्य है कि प्रत्यक्ष दर्शन के पश्चात संदेह की गुंजाइश नहीं रहती।इसलिए पहली बात दृष्टाम! जिसका अर्थ है देखी हुई बात। दूसरा सूत्र महावीर कहते है "मियं"अर्थात जितने कम बोलने से काम चल जाए उससे ज्यादा नहीं बोलना चाहिए। कुछ लोग छोटी सी बात को इतना लंबा करके कहते हैं कि सुनने वाले थक जाते हैं। शेख सादी ने कहा है अकलमंद सोचता है कि मुझे बोलना कब शुरू करना चाहिए, पर बेवकूफ नहीं सोचता कि कहा उसे बात पूरी करनी चाहिए। तीसरा सूत्र महावीर भाषा के संबंध में कह रहे हैं की भाषा "असंदिग्धाम" यानी वाणी संदेह रहित होनी चाहिए। कुछ लोग इस प्रकार की भाषा बोलते हैं जिसके द्वारा सुनने वाले बहुत संशय और भ्रांति से भर जाते हैं। इसलिए साधक ने ऐसी वाणी बोलने का प्रयास करना चाहिए जो सबके लिए हितकारी हो और जिससे किसी भी प्राणी का अहित न हो। भाषा और वाणी से ही साधक की साधना का सहज पता चल जाता है कि वो कैसी भाषा बोल रहा है और किस प्रकार के शब्दों का वाणी में प्रयोग कर रहा है। "अशोक भारती" https://www.instagram.com/p/CEhLBw_Fwi2/?igshid=91hjvsqeq49j
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swamiashokbharti · 4 years ago
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🌳🌳संसार में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं - प्रथम : अपना फल स्वयं दे देते हैं, जैसे - आम, अमरुद, केला इत्यादि । द्वितीय : अपना फल छिपाकर रखते हैं, जैसे - आलू, अदरक, प्याज इत्यादि । जो फल अपने आप दे देते हैं, उन वृक्षों को सभी खाद-पानी देकर सुरक्षित रखते हैं, और ऐसे वृक्ष फिर से फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं । किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं, उनका वजूद ही खत्म हो जाता हैं। ठीक इसी प्रकार... जो व्यक्ति अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वयं ही समाज सेवा में समाज के उत्थान में लगा देते हैं, उनका सभी ध्यान रखते हैं और वे मान-सम्मान पाते है। वही दूसरी ओर जो अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वार्थवश छिपाकर रखते हैं, किसी की सहायता से मुख मोड़े रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते है, अर्थात् समय रहते ही भुला दिये जाते है। प्रकृति कितना महत्वपूर्ण संदेश देती ह���, बस समझने, सोचने और कार्य में परिणित करने की बात है। इसलिए दोनों हाथों से खूब लुटाओ क्योकि यहाँ तुम्हारा कुछ भी नही है,सब उसी एक दातार का है,और जो हम देते है वो अनंतगुना होकर हमपर वापस लौटता है। इसलिए किसी शायर ने कहा है... "जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का। फिर देखना फ़िजूल है,कद आसमान का।" "अशोक भारती" समय रहते कृपया नीचे दी गई इन लिंक्स पर क्लिक करे व हमसे जुड़े You tube channel link : https://www.youtube.com/channel/UCv0fNhI2AyBxPtcurwVHkRg Like Facebook Page : https://www.facebook.com/ashokbhartipage/ Follow on Instagram https://instagram.com/swamiashokbharti?igshid=63huge6lsabj Follow on Twitter Check out Swami Ashok Bharti (@_Ashok_Bharti): https://twitter.com/_Ashok_Bharti?s=09 Posted by Team Guru Darshan https://www.instagram.com/p/CEegIuolbKj/?igshid=7kojmlfny3lt
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swamiashokbharti · 4 years ago
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भारत जब स्वतंत्र हुआ तो राष्ट्र की नई नई जिम्मेदारियों के लिए प्रतिभावान लोगों की आवश्यकता हुई। उस समय भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल थे। उन्होंने एक राजकुमार को दिल्ली बुलाया, वह उन्हें एक राज्य का मुख्यमंत्री या केंद्र में राज्यमंत्री बनाना चाहते थे। जिस राजकुमार को बुलाया गया था वह कई विदेशी भाषाओं का ज्ञाता भी था और उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थी। राजकुमार आए तो अपने सूटकेस में अपनी लिखी पुस्तकें भी लेते आए और जिस कमरे में उन्हें सरदार बल्लभ भाई पटेल से मिलना था,उसी कमरे की मेज पर उन्होंने अपनी भी पुस्तकें इस तरह सजा दी कि वो इस किताब के द्वारा पटेल साहब को परिचय दे सके। सरदार पटेल आए तो उनकी पहली निगाह पुस्तकों पर पड़ी, तभी राजकुमार ने कहा यह सब मेरी लिखी हुई है और देश विदेश के विद्वानों ने इनकी बहुत प्रशंसा की है। सरदारपटेल ने अपनी लाल डोरे वाली आंखों को जरा खींच कर अपने शंख ध्वनि जैसे कंठ से कहा "आप एक अच्छे कार्य में लगे हुए हैं कृपा करें इसी में लगे रहे", और बिना उनकी तरफ देखे वो लौट गए। स्पष्ट है कि सरदार उनके काम से परिचित थे, तभी तो उन्होंने उन्हें बुलाया था। इस स्थिति में अपनी पुस्तकों को सरदार वल्लभभाई पटेल की मेज पर इस तरह सजाना एक बहुत हल्की बात थी। कभी-कभी म��ं सोचता हूं कि यदि उस समय राजकुमार के मुंह से उस वाक्य की जगह अगर यह निकलता की... "शास्त्र का वचन है कि गुरुजनों के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिए इसलिए तुलसी दल के रूप में अपनी ये पुस्तके साथ लेता आया है तो उसी क्षण उनके उज्जवल भविष्य का शिलान्यास हो जाता!" हल्की बात में दम नहीं होता वजन नही होता इसलिए हम हल्की बातों से बचें और बात को हल्की करने वाले भाव शब्दों और संकेतों से बचें,क्योकि कमान से निकला तीर,और जुबान से निकले शब्द वापस नही आते।इसी गलत शब्दो के कारण महाभारत का इतना बड़ा महायुद्ध हुआ। बोलने और शब्दों के चयन को इस घटना से समझे... पराजित पोरस विजेता सिकंदर के सामने उपस्थित किया गया, तो गर्व से सिकंदर ने कहा बता तेरे साथ कैसा व्यवहार करुं? पूरे आत्मविश्वास के साथ पोरस ने कहा जैसा कि "राजा राजाओं के साथ किया करते हैं " और सचमुच इस एक ही वाक्य ने पोरस को पराजय के हलके वातावरण से निकालकर इतिहास में सदा के लिए सम्मान से सिहासन पर बैठा दिया। बोलना एक बहुत बड़ी कला है,और बहुत परिस्थियों में मौन रह जाना उससे भी बड़ी कला है। "अशोक भारती" कृपया नीचे दी गई इन लिंक्स पर क्लिक करे व हमसे जुड़े You tube channel link : https://www.youtube.com/channel/UCv0fNhI2AyBxPtcurwVHk https://www.instagram.com/p/CEYsUPXlFLU/?igshid=13lo71w19awpy
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swamiashokbharti · 4 years ago
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{1} _*12000 करोड़ की रेमण्ड कम्पनी के मालिक आज बेटे की बेरुखी के कारण किराये के घर में रह रहे है।* {2} _*अरबपति महिला मुम्बई के पॉश इलाके के अपने करोड़ो के फ्लैट में पूरी तरह गल कर कंकाल बन गयी! विदेश में बहुत बड़ी नौकरी करने वाले करोड़पति बेटे को पता ही नहीं माँ कब मर गयी।* {3} _*सपने सच कर आई. ए. एस. का पद पाये बक्सर के क्लेक्टर ने तनाव के कारण आत्महत्या की।** *ये तीन और ऐसी बहुत घटनायें बताती हैं जीवन में पद पैसा प्रतिष्ठा ये सब कुछ ज्यादा महत्वपूर्ण और किसी काम का नहीं। यदि आपके जीवन में खुशी संतुष्टी और अपने लोग नहीं हैं तो कुछ भी मायने नहीं रखता।* *वरना एक क्लेक्टर को क्या जरुरत थी जो उसे आत्महत्या करना पड़ा।* *खुशियाँ पैसो से नहीं मिलती,अपने साथ जुड़कर मिलती है। * जीवन आनन्द के लिए है।लेकिन मनुष्य इसे प्राप्त करने की कला भूल गया है। "अशोक भारती" https://www.instagram.com/p/CEYYLh5l_O4/?igshid=135eto212f913
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swamiashokbharti · 4 years ago
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विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने एक छोटी सी बंगला कविता में बहुत तीखा व्यंग किया है। एक शहर में भगवान की रथ यात्रा निकल रही है। चांदी के सुंदर सुसज्जित रथ पर भगवान की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया है। हजारों की भीड़ रथ के पीछे पीछे चल रही है,और सैकड़ों लोग उस रथ के आगे झुकते हैं। भूमि पर मस्तक रखकर प्रणाम करते हैं और ��्रद्धा भाव के साथ चल पड़ते हैं ।कीर्तन मंडली उत्साह से कीर्तन करती हुई साथ चल रही है। कहते हैं रथ के मन में कुछ अहंकार हो गया। गाया गया "रथो भावे आमी देव" रथ सोचता है वास्तव में मैं ही देव हूं सैकड़ों हजारों लोग मेरे सामने माथा टेक रहे हैं। यह सारी पूजा मेरी ही हो रही है। और इधर "पथ भावे आमी देव" जिस पथ पर वह रथ यात्रा चल रही है वो रास्ता सोचता है कि देव तो मैं हीं हूं मेरे ही ऊपर लोग माथा टेक रहे हैं मेरी ही धूल मस्तक पर लोग चढ़ा रहे हैं। रथ में जो प्रतिष्ठित मूर्ति है उसमें भी भाव उमड़ता है "मूर्ति भावे आमी देव" मूर्ति सोचती है यह रथ तो मेरा वाहन है, रास्ता केवल रास्ता ही है ।देव तो वास्तव में मैं ही हूं और यह सारे लोग मेरी ही पूजा कर रहे हैं। मेरे ही दर्शनों के लिए हजारों की भीड़ एकत्रित हुई है । अंत में विश्व कवि रवींद्रनाथ कहते हैं "हांसे अंतर्यामी" अंतर्यामी रथ, पथ और प्रतिमा के चिंतन पर मुस्कुरा रहे हैं उनके अज्ञान पर हंस रहे हैं। पूजा इन सबकी कहां है पूजा तो बस परम प्रभु अंतर्यामी की है। रवींद्रनाथ का पूरा पद है "रथो भावे आमी देव, पथों भावे आमी देव मूर्ति भावे आमी देव, हांसे अंतर्यामी" हम गहराई से देखें तो वास्तव में पूजा तो उस अंतर्यामी की ही होती है और वह बाहर नहीं हमारे मन मंदिर में ही विराजमान है। "अशोक भारती" कृपया नीचे दी गई इन लिंक्स पर क्लिक करे व हमसे जुड़े You tube channel link : https://www.youtube.com/channel/UCv0fNhI2AyBxPtcurwVHkRg Like Facebook Page : https://www.facebook.com/ashokbhartipage/ Follow on Instagram https://instagram.com/swamiashokbharti?igshid=63huge6lsabj Follow on Twitter Check out Swami Ashok Bharti (@_Ashok_Bharti): https://twitter.com/_Ashok_Bharti?s=09 Posted by Team Guru Darshan https://www.instagram.com/p/CESv_C7li5r/?igshid=1il9760eeqzzf
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swamiashokbharti · 4 years ago
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हमारी आत्मा अनंत शक्ति का स्रोत है पर वह शक्ति सक्रिय कैसे हो और सक्रिय होकर अभिव्यक्त कैसे हो? उसके लिए ध्यान चाबी के समान है, जो ताला सैकड़ों प्रयत्नों से भी नहीं खुल पाता वह सही चाबी लगने से फौरन खुल जाता है। इसी प्रकार ध्यान में तन्मयता आ जाए तो प्रभु की प्रभुता बहुत ही सहजता से प्रकट हो सकती है। कोई व्यक्ति किसी बच्चे को गोद(दत्तक) लेता है तो वह आने वाला बालक अनायास ही उसकी सारी संपत्ति का अधिकारी हो जाता है। गोद लेने वाला पिता सोचता है यह मेरा पुत्र है तथा गोद में आने वाला सोचता है यह मेरा पिता है। जब दोनों एक रूप बन जाते हैं तब संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त होता है। दूध में मिला पानी दूध के भाव बिकता है। दोनों की मूल्यवत्ता में भारी अंतर होने के बावजूद भी दोनों के एक रूप होने के कारण दूध में मिला पानी भी दूध की दृष्टि से देखा जाता है और दूध को उबालते समय जब भी दूध पर आंच आती है तो पानी अपने आप को स्वाहा करने के लिए तैयार रहता है। उसका यह बलिदान देखकर दूध भी उसके दहन को सहन नहीं कर सकता इसलिए वह उफान खा कर स्वयं आग में कूदने को तैयार हो जाता है। तब दूध का मालिक उस पर पानी के छींटे डालता है। अपने अद्वितीय साथी को पाकर दूध फौरन शांत होकर बैठ जाता है। इसका नाम है तन्मयता! इसलिए तन्मयता आई तो फिर प्रभु को पाना बहुत सहज हो जाता है। तन्मयता आते ही ध्याता,ध्येय और ध्यान तीन न रहकर एक हो जाते हैं। मैं ध्यान कर रहा हूं यह भाव समाप्त हो जाता है किसका ध्यान किया जा रहा है यह चिंतन भी नहीं ठहर पाता। ध्यान की सूक्ष्म क्रिया का भी भान नहीं रहता। इस स्थिति को तन्मयता कहते है। ये कैसे आएगी स्थिति हममे? आपको पता होगा कि जब सैनिक सीमा पर जाते हैं तो अपना शस्त्र साथ लेकर जाते हैं और वहां तो उन्हें एक शत्रु से लड़ना है लेकिन हमारे भीतर तो 5- 5 शत्रु बैठे हैं फिर हम बिना शस्त्र के उनसे कैसे लड़ सकते हैं उसके लिए भी तो शस्त्र चाहिए ना? तो ध्यान हमारा शस्त्र है और इसे हम भूल जाते है। इसलिए किसी फ़कीर ने गाया है कि.. ध्यान मुझसे लड़ पड़ा तू क्यों बिसरा मोय। बिना शस्त्र के सूरमा, लड़ता ना देखा कोय ध्यान का जीवन मे स्थान और रोज उसे ठीक समय पर पूरा करने का नियम भी होना चाहिए। https://www.instagram.com/p/CEPMaGjFQxm/?igshid=1fhctpqdv7i3q
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swamiashokbharti · 4 years ago
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मैं अलग ही दुनिया का आदमी हूं! मेरी दुनिया बहुत निराली है और उस दुनिया में बस प्रेम ही प्रेम है और उस प्रेम का अनुभव मैं सतत ले रहा हूं,और उसी कारण प्रतिक्षण मैं बदल भी रहा हूँ। जो लोग प्रेम में नहीं होते वे जड़ हो जाते है और उनका चिंतन बस अतीत की स्मृतियों में कैद होकर समाप्त हो जाता है। मेरी बातें लोगों को अच्छी लगती है क्योंकि मेरे कार्य की जड़ में करुणा है,प्रेम और सत्य है। मैं इतना बेभरोसे का व्यक्ति हूँ कि आज मैं एक मत, या कोई विचार व्यक्त करूँगा और यदि कल मुझे दूसरा मत या विचार उचित लगा तो उसे व्यक्त करने में मैं जरा भी नही हिचकिचाऊंगा,क्योकि कल मैं दूसरा था आज बिल्कुल दूसरा हूँ। मैं हरपल भिन्न चिंतन करता हूं इसलिए मैं सतत बदलता आया हूँ। मैं सतत ये भी अनुभव करता हूं कि मेरे ऊपर अतीत और वर्तमान के सब महापुरूषो के आशीर्वाद निरंतर बरसते है। जैसे भगवान भास्कर के किरणों के प्रकाश को मैं बहुत स्पष्ट देखता हूँ ठीक ऐसे ही सभी आयामों में मैं ये आशीर्वादों को देखता और अनुभव करता हूँ। मैं तो सबके प्रेम का भूखा हूं मैं चाहता हूं कि सब में जो भगवान है, नारायण है उसके मैं दर्शन करुं। देवर्षि नारद जिस प्रेम से किसी के पास पहुंचते थे बस उसी वृति से मैं भी पहुंच जाता हूं। मेरे लिए तो सब अंतरात्मा और परमेश्वर के ही रूप है,और हरेक प्राणी में कुछ न कुछ गुण है और उन गुणों के जरिए मैं सबके अंतःकरण में प्रवेश पाने की कोशिश करता हूं। यदि मेरी आवाज सच है तो वह हर घर में जाएगी हर हृदय तक पहुंचेगी। मुझे कभी भी ये अनुभव नहीं होता कि मैं जो उद्देश्य लेकर निकला हूं उसकी पूर्ति करने का पूरा उत्तरदायित्व सिर्फ मेरे ही ऊपर है। इसका संपूर्ण उत्तरदायित्व हम सभी लोगों पर हैं क्योंकि यह भगवान का काम है। मेरे पास न कोई संस्था,न कोई आश्रम और न कोई अधिकार है,बस परमेश्वर ने मुझे संकेत दिया और मैं चल पड़ा,और चल रहा हूँ,साथ साथ नृत्य भी करता जा रहा हूँ,नहीं तो मुझमे इतनी ताकत कहाँ? लोगों को मुझे देखने की और मिलने की बहुत इच्छा होती है,वैसे ही मुझे भी तीव्र उत्कंठा उनसे मिलने की होती है क्योंकि वे मेरे भगवान है। भगवान सिर्फ मन्दिरों में ही नही रहते वे मेरे देखने और मिलनेवाले सभी भाई बहनों में रहते है औऱ मैं जहां भी जाता हूं मुझे उनके दर्शन होते है।अगर ऐसा न होता तो व्यर्थ घूमते रहने की मूर्खता कौन करता? मुझे लगता है कि इस पिछले मात्र 5 वर्षो में ही जितना दर्शन और प्रेम मुझे मिला वो एक बहुत बड़ा आश्चर्य है। https://www.instagram.com/p/CEODROZlHFU/?igshid=s4hmqlsz36nf
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swamiashokbharti · 4 years ago
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जो पथरीले लोग जिन्दो को प्रेम नहीं कर पाते वो मुर्दा मजारों और कब्रस्तान में जाकर झुकने का नाटक करते है क्योकि जीवित के सामने झुकने में अहंकार को बड़ी तकलीफ है उनके लिए मेरा सन्देश.."बुद्ध आये गए कई बार मगर,झझकोरे हम तो जगते नहीं,हम तो ऐसे ईंधन बन गए है,कोई लाख जलाये सुलगते नहीं।जब तक वे रहे कोई फ़िक्र न की,जाने पर मजारों पर रोते है" https://www.instagram.com/p/CDxsKzFluJS/?igshid=7dq9lyny8kn3
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swamiashokbharti · 4 years ago
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प्रकृति! प्रकृति के चमत्कारों के प्रति अंधे मत बनो! किसी भी अन्य पेयजल की दर्जनों खुराकों की अपेक्षा प्रकृति की संजीवनी का एक घूंट ही बेहतर है! वह आनंद अतुल्य है जो प्रकृति के संसर्ग में रहने वाला मनुष्य इस संसार की हजारों अद्भुत चीजों में देखता है! प्रकृति के बाद अगला संभावित कदम है प्रकृति का ईश्वर! परमात्मा अपनी सृष्टि सूर्य चंद्रमा तारे पृथ्वी वृक्ष वायु जल पक्षी तथा पशुओं आदि में प्रतिबिंबित है और उन्हीं के माध्यम से अभिव्यक्त होता है इसलिए सूर्य चंद्रमा और तारों के प्रकाश से स्वयं को दूर मत करो! पृथ्वी वायु तथा जल को दूषित मत करो वृक्षों को काटो मत हरियाली को नष्ट मत करो बल्कि निरर्थक पड़ी जमीनों तथा रेगीस्तानों को उद्यानों में रूपांतरित करो। घास एवं वृक्ष, वायु व लहरें तथा पशु एवं पक्षी सभी हंसते गाते एवं मुस्कुराते हैं। इस समूह गान में सम्मिलित हो जाओ तथा संपूर्ण प्रकृति जैसा करती है वैसा करो! "ऐसा झरथुस्त्र ने कहा" झरथुस्त्र का एक एक शब्द देखतो हो जैसे प्यार की चाशनी में डूबकर आ रहा हो! इस विराट महामानव का अगला गरिमापूर्ण सत्संग होने जा रहा है। ज्ञान के इस ��हासागर में डूबने का आपको निमंत्रण भेजा जा रहा है। *अशोक भारती* Online programme हंसता गाता मसीहा झरथुस्त्र प्रवचन व ध्यान प्रयोग On Zoom 16 अगस्त 2020 sunday 7 to 9 pm Contact for confirm seat स्वामी प्रेम मस्तो +918770059987 Like My Page & subscribe my youtube channel Open page Link & like https://www.facebook.com/ashokbhartipage/ Youtube Channel link Guru Darshan-Swami Ashok Bharti Open this link & subscribe https://www.youtube.com/c/GuruDarshanSwamiAshokBharti Posted by Team Guru Darshan https://www.instagram.com/p/CDwCGAplxMJ/?igshid=y2onpck7idfz
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swamiashokbharti · 4 years ago
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जिस प्रकार एक अंतरिक्ष यान अपनी उर्ध्वगामी गति को बनाए रखने के लिए उपयुक्त समय के अंतराल पर राकेट दागता रहता है उसी प्रकार हर महानतम गुरु के समर्पित शिष्य हर युग में अपने माधुर्य से अपने गुरु के कार्य के विकास को बहुत ऊंचे शिखरों तक ले जाते है। ध्यान रखना की जब आप ऊंचा उठना बन्द कर देते हो तो उसी क्षण आप नीचे गिरना शुरू हो जाते हो,और नीचे गिरने के लिए किसी प्रयास की आवश्यकता नही होती है। इसलिए अध्यात्म के आकाश में सदा गुरु का चमकता हुआ ध्रुवतारा बने और ये ही शिष्यत्व की पराकाष्ठा है। आईये हम सभी मिलकर और आपस मे सामंजस्य बनाकर भगवानश्री के इस ज्ञान यज्ञ में अपने अहंकार की आहूति देकर उनके सपनों का नया मनुष्य बने। "अशोक भारती" Online programme हंसता गाता मसीहा झरथुस्त्र प्रवचन व ध्यान प्रयोग On Zoom 16 अगस्त 2020 sunday 7 to 9 pm Contact for confirm seat स्वामी प्रेम मस्तो +918770059987 Like My Page & subscribe my youtube channel Open page Link & like https://www.facebook.com/ashokbhartipage/ Youtube Channel link Guru Darshan-Swami Ashok Bharti Open this link & subscribe https://www.youtube.com/c/GuruDarshanSwamiAshokBharti Posted by Team Guru Darshan https://www.instagram.com/p/CDv-3QklK4T/?igshid=jrke7eju7sj5
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swamiashokbharti · 4 years ago
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Happiness in our mind is a feeling that has several dimensions. From peace to celebration, and from pleasure to spirituality! It cannot be measured under any condition nor does it have any limits, because it is infinite. People are happy with different things at different times. If we look at our lives, now and again we have also tried to get all kinds of happiness, but we see that most of these happiness is not stable. They always keep changing. Some of these happiness is for a few hours, some for a few days. Materialistic, luxurious and ego-based happiness do not satisfy us completely because they are all unstable and the source of these happiness is external things. True happiness can only be experienced in the "state of flow", and this state of flow is that state of concentration in which we are fully focused in our work, in which we forget ourselves and unify ourselves with that work. We even forget about the things and situations around us, we also stop negative interactions with ourselves and this moment makes us feel the real happiness. It is also written in the Upanishads that whatever is infinite, is the real happiness, your pleasure is in your development and whatever is limited, there cannot be happiness. Infinity is the ultimate blissfulness and every person should seek to understand this blissfulness. One happiness that can lead us to true happiness is inner happiness i.e. spiritual happiness. Its source is within us, it does not depend on external conditions, so it is permanent and eternal. Actually, true happiness is very natural for human beings, it is possible to be happy even without any reason because happiness is within us in the same way that the sky is outside us. Man wanders from forest to forest in search of this happiness, while the source of happiness lies within him. Happiness has been called by the great litterateur Nathaniel, a butterfly that flies away when we try to catch it, and when we sit calmly, it comes quietly and sits on our shoulder. "To simply watch this flow of life and enjoy this mystery" this is the only thing to understand the science of meditation… "Sw. Ashok Bharti" https://www.instagram.com/p/CDqUGpOlaX6/?igshid=1bqnvquf77po
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swamiashokbharti · 4 years ago
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जब मुझे ध्यान शिविरों में जाने की प्रेरणा सदगुरुदेव ने दी, उस समय 2015 का ये शिविर है। उस समय तक कुछ बिरले लोग ही मुझे जानते थे,लेकिंन जब इतने भारी संख्या में प्रेमी आये ।मैं बहुत आश्चर्यचकित हो गया और भरोसा हो गया कि इसमे मेरा कुछ नही है,ये तो उनकी ही करुणा है।और उसके बाद तो आप सभी जानते है कि आज तक वे हम पर सावन भादो की तरह बरस रहे है। मैं मेरे गुरुजी के आगे सदा ही नतमस्तक हूं कि उन्होंने मुझे अपने कार्य को द्रुतगति से फैलाने के लिए मेरा चुनाव किया और उनका चुनाव तो गलत कैसे हो सकता है? सद्गुरु भगवान श्री रजनीश को कोटि कोटि नमन https://www.instagram.com/p/CDlxiYAlrVU/?igshid=i8pt32yxk7yz
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swamiashokbharti · 4 years ago
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मनुष्य के चिंतन की दरिद्रता पहले के जमाने में लोग जब आपस में मिलते थे तो एक दूसरे को पूछते थे क्या हाल-चाल है? आपका चित्त अपने मूल स्वभाव में तो है ना?यानी आपका मन स्वरूप के चिंतन में तो है ना? आपकी तपस्या ठीक तो चल रही है ना? आप स्वस्थ तो हो? स्व याने आत्मा और उसमें तो आप स्थित हो ना ? फिर जमाने ने करवट ली आदमी कुछ नीचे गिरा तब पूछने लगा कैसे हाल-चाल है? धंधा पानी कैसा है? कामकाज कैसे चल रहा है? और अब आदमी पूछता है कैसी है तबीयत? अर्थात हाड़, मास, वात,पित्त, कफ, थूक बराबर है कि कम ज्यादा हो गया? आपका यह स्थूल शरीर जो हर रोज शमशान की तरफ जा रहा है। कल उसकी जितनी आयु थी उतनी आज नहीं है, और अभी जितनी है उतनी कल नहीं रहेगी ऐसे नश्वर शरीर का हाल-चाल पूछा जाने लगा है! यह मनुष्य के चिंतन की गिरावट है। मनुष्य को यह हमेशा याद रहना चाहिए इस स्थूल शरीर का आखरी ठिकाना तो शमशान ही है। पड़ा रहेगा माल खजाना, छोड़ त्रिया सुत जाना है कर सत्संग अभी से प्यारे नहीं तो फिर पछताना है खिला पिला कर देह बढाई वह भी अग्नि में जलाना है कर सत्संग अभी से प्यारे नहीं तो फिर पछताना है। "अशोक भारती" इसके पहले की पछताने का अवसर ही न मिले,इस वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ऑनलाइन सत्संग से जुड़े.. रविवार 9 अगस्त संध्या 7 से 9 को स्वामी अशोक भारतीजी के ��ंग Zoomपर होनेवाले *कृष्ण जन्मोत्सव* ऑनलाइन सत्संग ध्यान प्रवचन से जुड़े। बुकिंगके लिए फौरन संपर्क करे स्वामी प्रेम मस्तो +918770059987 Like My Page & subscribe my youtube channel Open page Link & like https://www.facebook.com/ashokbhartipage/ Youtube Channel link Guru Darshan-Swami Ashok Bharti Open this link & subscribe https://www.youtube.com/c/GuruDarshanSwamiAshokBharti Posted by Team Guru Darshan https://www.instagram.com/p/CDjGHKoF3uN/?igshid=d4ghfhezg2cf
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