स्थिति सामान्य नहीं हुई है: पूर्वी लद्दाख सीमा पंक्ति पर MEA
स्थिति सामान्य नहीं हुई है: पूर्वी लद्दाख सीमा पंक्ति पर MEA
द्वारा पीटीआई
NEW DELHI: भारत ने शुक्रवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में स्थिति पूर्ण सामान्य स्थिति में नहीं लौटी है क्योंकि इसके लिए कुछ कदम उठाए जाने बाकी हैं।
विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता अरिंदम बागची की टिप्पणी चीनी दूत सुन वेइदॉन्ग द्वारा दावा किए जाने के कुछ दिनों बाद आई है कि पूर्वी लद्दाख में स्थिति “समग्र रूप से स्थिर” है क्योंकि दोनों पक्ष “आपातकालीन प्रतिक्रिया” से चले गए हैं जो…
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लंका फतह करने में बाधा बन रहे समुद्र के आगे असहाय हुए दशरथ पुत्र राम से भिन्न वह आदिराम/आदिपुरुष परमात्मा कौन है, जो त्रेतायुग में मुनींद्र ऋषि के रूप में उपस्थित थे एवं जिनकी कृपा से नल नील के हाथों समुद्र पर रखे गए पत्थर तैर पाए थे।
इस आध्यात्मिक रहस्य को जानने के लिए अवश्य देखें साधना चैनल शाम 7:30 बजे।
🔹त्रेतायुग में कबीर साहेब मुनींद्र ऋषि नाम से आये। तब रावण की पत्नी मंदोदरी, विभीषण, हनुमान जी, नल - निल, चंद्र विजय और उसके पूरे परिवार को कबीर परमात्मा ने शरण में लिया जिससे उन पुण्यात्माओं का कल्याण हुआ।
🔹कबीर परमेश्वर जी ने काल ब्रह्म को दिये वचन अनुसार त्रेतायुग में राम सेतु अपनी कृपा से पत्थर हल्के करके बनवाया।
🔹त्रेतायुग में नल तथा नील दोनों ही कबीर परमेश्वर के शिष्य थे। कबीर परमेश्वर ने नल नील को आशीर्वाद दिया था कि उनके हाथों से कोई भी वस्तु चाहें वह किसी भी धातू से बनी हो,जल में डूबेगी नहीं। परंतु अभिमान होने के कारण नल नील के आशीर्वाद को कबीर परमेश्वर ने वापस ले लिया था। तब कबीर परमेश्वर ने एक पहाड़ी के चारों और रेखा खींचकर उसके पत्थरों को हल्का कर दिया था। वही पत्थर समुद्र पर तैरे थे।
🔹त्रेतायुग में कबीर साहेब ने मुनींद्र ऋषि रूप में एक पहाड़ी के आस-पास रेखा खींचकर सभी पत्थर हल्के कर दिये थे। फिर बाद में उन पत्थरों को तराशकर समुद्र पर रामसेतु पुल का निर्माण किया गया था।
इस पर धर्मदास जी ने कहा हैं :-
"रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।"
🔹कबीर साहेब जी ही त्रेतायुग में लंका के राजा रावण के छोटे भाई विभीषण जी को मुनीन्द्र रुप में मिले थे विभीषण जी ने उनसे तत्वज्ञान ग्रहण कर उपदेश प्राप्त किया और मुक्ति के अधिकारी हुए।
🔹त्रेतायुग में कबीर साहेब जी मुनीन्द्र ऋषि के रूप में प्रकट हुए, नल-नील को शरण में लिया और जब रामचन्द्र जी द्वारा सीता जी को रावण की कैद से छुड़वाने की बारी आई तो समुद्र में पुल भी ऋषि मुनीन्द्र रूप में परमात्मा कबीर जी ने बनवाया।
धन-धन सतगुरू सत कबीर भक्त की पीर मिटाने वाले।।
रहे नल-नील यत्न कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।।
🔹त्रेतायुग में कबीर परमात्मा ऋषि मुनीन्द्र के नाम से प्रकट हुये थे। त्रेता युग में कबीर परमात्मा लंका में रहने वाले चंद्रविजय और उनकी पत्नी कर्मवती को भी मिले थे। और उस समय के राजा रावण की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण को भी ज्ञान समझा कर अपनी शरण में लिया। यही कारण था कि रावण के राज्य में भी रहते हुए उन्होंने धर्म का पालन किया।
🔹कबीर परमात्मा जी द्वारा नल और नील के असाध्य रोग को ठीक करना
जब त्रेतायुग में परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मुनींद्र ऋषि रूप में नल और नील के असाध्य रोग को अपने आशीर्वाद से ठीक किया तथा नल और नील को दिए आशीर्वाद से ही रामसेतु पुल की स्थापना हुई थी।
🔹द्वापर युग में कबीर परमेश्वर ने ही द्रौपदी का चीर बढ़ाया जिसे जन समाज मानता है कि वह भगवान कृष्ण ने बढ़ाया। कृष्ण भगवान तो उस वक्त अपनी पत्नी रुकमणी के साथ चौसर खेल रहे थे।
🔹द्वापर युग में कबीर परमेश्वर की दया से ही पांडवों का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ था। पांडवों के अश्वमेघ यज्ञ में अनेक ऋषि महर्षि मंडलेश्वर उपस्थित थे। यहां तक की भगवान कृष्ण भी उपस्थित थे। फिर भी उनका शंख नहीं बजा। कबीर परमेश्वर ने सुपच सुदर्शन वाल्मीकि के रुप में शंख बजाया और पांडवों का यज्ञ संपन्न किया था।
🔹परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से जब द्वापरयुग में प्रकट थे तब काशी में रह रहे थे। सुदर्शन नाम का एक युवक उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। एक दिन सुदर्शन ने करुणामय जी से पूछा कि आप जो ज्ञान देते हैं उसका कोई ऋषि-मुनि समर्थन नहीं करता है, तो कैसे विश्वास करें? उन्होंने सुदर्शन की आत्मा को सत्यलोक का दर्शन करवाया। सुदर्शन का पंच भौतिक शरीर अचेत हो गया। उसके माता-पिता रोते हुए परमेश्वर करूणामय के घर आए और उन पर जादू-टोना करने का आरोप लगाया।
तीसरे दिन सुदर्शन होश में आया और कबीर जी को देखकर रोने लगा। उसने सबको बताया कि परमेश्वर करूणामय (कबीर साहेब जी) पूर्ण परमात्मा हैं और सृष्टि के रचनहार हैं।
🔹द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वा��र युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।
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4th October 2023
मैं कल के लिए तैयार हूं ।
पर यह खत लिखते वक्त रात के १२ बज रहे है, इसीलिए मैं कहूंगा के मैं आज के लिए तैयार हूं ।
फिर वही रात है। फिर वही रात है ख़ाब की
रात भर ख़ाब में देखा करेंगे तुम्हे
लेकिन किसीने बताया नही के, कुछ रातें ऐसी भी होगी के उन्हें खाबों में तो देखोगे मगर अगले दिन, वो तुम्हे देखेंगे या नहीं - इसका कोई जवाब नहीं। आज की रात कुछ ऐसी ही है।
मुझे वो रात याद है जब मैं हमारी amusement park वाली trip से वापस आया था, जिस तरह मुझे पता था कि शायद अब तुम मुझसे बात नही करोगी। शायद आज की भी रात कुछ ऐसी ही है ...
और इस बार तुमने मुझे दूर रहने के लिए भी कहा है, मैं तुम्हारी बात मानूंगा। लेकिन मेरा दिल ये कैसे माने की कुछ दिन पहले जो इतने करीब थे, वहीं कुछ चंद दिनों में इस तरह पराएं भी हो जाए? और तुम्हारी आखों में मुझे मेरी दुनिया समा लेने की आदत लग गई है, अब सामने देख कर चलू तो कुछ खोया खोया सा मेहेसुस करूंगा।
अब कैसे तुम्हे बताऊं के रोज़ मेरे कानों को तुम्हारे मुझे बुलाने का इंतज़ार रहता था (है?), अब कोई और मेरा नाम ले तो पलट कर देखने में कहां वो बात रहेगी।
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कल, जब हम जाने - अनजाने में मिलेंगे, तब बात करो या ना, एक बार मेरी आखों में तुम्हारे लिए दबा हुआ प्यार ज़रूर देख लेना ।
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सूफी फकीर हसन जब मरा। उससे किसी ने पूछा कि तेरे गुरु कितने थे? उसने कहाः गिनाना बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि इतने-इतने गुरु थे कि मैं तुम्हें कहां गिनाऊंगा! गांव-गांव मेेरे गुरु फैले हैं। जिससे मैंने सीखा, वही मेरा गुरु है। जहां मेरा सिर झुका, वहीं मेरा गुरु।’
फिर भी जिद्द की लोगों ने कि कुछ तो कहो, तो उसने कहा, ‘तुम मानते नहीं, इसलिए सुनो। पहला गुरु था मेरा--एक चोर।’ वे तो लोग बहुत चैंके, उन्होंने कहाः चोर? कहते क्या हो! होश में हो। मरते वक्त कहीं एैसा तो नहीं कि दिमाग गड़बड़ा गया है! चोर और गुरु?’
उसने कहाः हां, चोर और गुरु। मैं एक गांव में आधी रात पहंुचा। रास्ता भटक गया था। सब लोग सो गए थे, एक चोर ही जग रहा था। वह अपनी तैयारी कर रहा था जाने की। वह घर से निकल ही रहा था। मैंने उससे कहाः ‘भाई, अब मैं कहां जाऊं? रात आधी हो गई। दरवाजे सब बंद हैं। धर्मशालाएं भी बंद हो गईं। किसको जगाऊ नींद से? तू मुझे रात ठहरने देगा?’
उसने कहाः ‘स्वागत आपका।’ ‘लेकिन’, उसने कहाः ‘एक बात मैं जाहिर कर दंूः मैं चोर हूं। मैं आदमी अच्छे घर का नहीं हूं। तुम अजनबी मालूम पड़ते हो। इस गांव मंे कोई आदमी मेरे घर में नहीं आना चाहेगा। मैं दूसरों के घर में जाता हूं, तो लोग नहीं घुसने देते। मेेरे घर तो कौन आएगा? मुझे भी रात अंधेरे में जब लोग सो ज���त हैं, तब उनके घरों में जाना पड़ता हैं। और मेरे घर के पास से लोग बच कर निकलते हैं। मैं जाहिर चोर हूं। इस गांव का जो नवाब है, वह भी मुझसे डरता और कंपता है। पुलिसवाले थक आते हैं। तुम अपने हाथ आ रहे हो! मैं तुम्हंे वचन नहीं देता। रात-बेरात लूट लूं! तो तुम जानो। ’
हसन ने कहा कि मैंने इतना सच्चा और ईमानदार आदमी कभी देखा ही नहीं था, जो खुद कहे कि मैं चोर हूं! और सावधान कर दे। यह तो साधु का लक्षण है। तो रुक गया। हसन ने कहा कि मैं रुकूंगा। तू मुझे लूट ही लेे, तो मुझे खुशी होगी।
सुबह-सुबह चोर वापस लौटा। हसन ने दरवाजा खोला। पूछाः ‘कुछ मिला?’ उसने कहाः ‘आज तो नहीं मिला, लेकिन फिर रात कोशिश करूंगा।’ ऐसा, हसन ने कहा, एक महीने तक मैं उसके घर रुका, और एक महीने तक उसे कभी कुछ न मिला।
वह रोज शाम जाता, उसी उत्साह उसी उमंग से--औैर रोज सुबह जब मैं पूछता--कुछ मिला भाई? तो वह कहता, अभी तो नहीं मिला। लेकिन क्या है, मिलेगा। आज नहीं तो कल नहीं तो परसों। कोशिश जारी रहनी चाहिए।
तो हसन ने कहा कि जब मैं परमात्मा की तलाश में गांव-गांव, जंगल-जंगल भटकता था और रोज हार जाता था, और रोज-रोज सोचता था कि है भी ईश्वर या नहीं, तब मुझे उस चोर की याद आती थी,कि वह चोर साधारण संपत्ति चुराने चला था; मैं परमात्मा को चुराने चला हूं। मैं परम संपत्ति का अधिकारी बनने चला हूं। उस चोर के मन में कभी निराशा न आई; मेरे भी निराशा का कोई कारण नहीं है। ऐसे मैं लगा ही रहा। इस चोर ने मुझे बचाया; नहीं तो मैं कई दफा भाग गया होता, छोड़ कर यह सब खोज। तो जिस दिन मुझे परमात्मा मिला, मैंने पहला धन्यवाद अपने उस चोर-गुरु को दिया।
तब तो लोग उत्सुक हो गए। उन्होंने कहा, ‘कुछ और कहो; इसके पहले कि तुम विदा हो जाओ। यह तो बड़ी आश्चर्य की बात तुमने कही; बड़ी सार्थक भी।
उसने कहाः और एक दूसरे गांव में ऐसा हुआ; मैं गांव में प्रवेश किया। एक छोटा सा बच्चा, हाथ में दीया लिए जा रहा था किसी मजार पर चढ़ाने को। मैंने उससे पूछा कि ‘बेटे, दीया तूने ही जलाया? उसने कहा, ‘हां, मैंने ही जलाया।’ तो मैंने उससे कहा कि ‘मुझे यह बता, यह रोशनी कहां से आती है? तूने ही जलाया। तूने यह रोशनी आते देखी? यह कहां से आती हैं?’
मैं सिर्फ मजाक कर रहा था--हसन ने कहा। छोटा बच्चा, प्यारा बच्चा था; मैं उसे थोड़ी पहेली में डालना चाहता था। लेकिन उसने बड़ी झंझट कर दी। उसने फूंक मार कर दीया बुझा दिया, और कहा कि सुनो, तुमने देखा; ज्योति चली गई; कहां चली गई?
मुझे झुक कर उसके पैर छूने पड़े। मैं सोचता था, वह बच्चा है, वह मेरा अहंकार था। मैं सोचता था, मैं उसे उलझा दंूगा, वह मेरा अहंकार था। उसने मुझे उलझा दिया। उसने मेरे सामने एक प्रश्न-चिह्न खड़ा कर दिया।
ऐसे हसन ने अपने गुरुओं की कहानियां कहीं।
तीसरा गुरु हसन ने कहा, एक कुत्ता था। मैं बैठा था एक नदी के किनारे--हसन ने कहा--और एक कुत्ता आया, प्यास से तड़फड़ाता। धूप घनी है, मरुस्थल है। नदी के किनारे तो आया, लेकिन जैसे उसने झांक कर देखा, उसे दूसरा कुत्ता दिखाई पड़ा पानी में, तो वह डर गया। तो वह पीछे हट गया। प्यास खींचे पानी की तरफ; भय खींचे पानी के विपरीत। जब भी जाए, नदी के पास, तो अपनी झलक दिखाई पड़े; घबड़ा जाए। पीछे लौट आए। मगर रुक भी न सके पीछे, क्योंकि प्यास तड़फा रही है। पसीना-पसीना हो रहा है। उसका कंठ दिखाई पड़ रहा है कि सूखा जा रहा है। और मैं बैठा देखता रहा। देखता रहा।
फिर उसने हिम्मत की और एक छलांग लगा दी--आंख बंद करके कूद ही गया पानी में। फिर दिल खोल कर पानी पीया, और दिल खोल कर नहाया। कूदते ही वह जो पानी में तस्वीर बनती थी, मिट गई।
*हसन ने कहा, ऐसी ही हालत मेरी रही। परमात्मा में झांक-झांक कर देखता था, डर-डर जाता था। अपना ही अहंकार वहां दिखाई पड़ता था, वही मुझे डरा देता था। लौट-लौट आता। लेकिन प्यास भी गहरी थी। उस कुत्ते की याद करता; उस कुत्ते की याद करता; सोचता। एक दिन छलांग मार दी; कूद ही गया; सब मिट गया। मैं भी मिट गया; अहंकार की छाया बनती थी, वह भी मिट गई; खूब दिल भर के पीया। कहै कबीर मैं पूरा पाया...।*
~PPG~
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1368.
मानसिक प्रवाह की आँच
- कामिनी मोहन।
वो प्रतिध्वनि जिसे पीछे छोड़ आए हैं,
उसे याद करने के सिवाय
अनिश्चितता में उलझने के सिवाय
अब तक, कुछ और कर नहीं पाए हैं।
अनुकूल है
या वाक़ई प्रासंगिक प्रतिकूल
अपनी नियत को देखते हैं।
पदार्थों को हाथ में लिए खड़े हैं
स्मृति के तार से आ रही
आवाज़ को चुपचाप सुनते हैं।
जहाँ शब्दों को शांत किया है
वहाँ से कोई एक शोर लेकर आया करती हैं
एक धागा है जिसे कस के बांधा है
उसें तोड़ जाया करती हैं।
धागे के टूटने पर भी दो सिरे हैं
दोनों किनारों की अपनी रवानियाँ है।
उनकी कभी न बदलने वाली
एक दूसरे से जुड़ी हुई प्रेम कहानियाँ है।
जादू है वापस जुड़ जाने की सोच में
इसीलिए प्रतिबिंबित है
रचनात्मक स्पष्टता के ठोस पत्थर है।
जो प्रागैतिहासिक काल की दीवार को थामे
बीते हुए लम्हों को उत्कीर्ण करते खुरदुरे स्तर है।
घर पर कहे सुने गए शब्दों की
लिपियां उत्कीर्ण है
जो अपनी चंचलता छिपाते हैं।
सब एक जगह बैठकर
अलग-अलग पैटर्न बनाते हैं।
बोलने की चाह रखते हैं
उत्सुक होते हैं।
शायद आपस में ही
गुज़रे दिनों की बाते करते हैं।
मानसिक इको की कविता को
तरोताज़ा करते हैं।
स्वतःस्फूर्त होने की चाह में
मानसिक प्रवाह की आँच को
न्यौछावर करने की चेष्टा करते हैं।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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तु समझ ही नहीं पाया मुझे कभी
तुम्हारे पूरे दिन में से दो पल ही तो मांगे थे
तुम तो यही बात को लेकर महीनों छूप जाते थे ।।
कभी सोचा ही नहीं की हमने
वो महीने कैसे बिताये होंगे
फिर भी जब वापस आया तो
पूरे मन से तुझे अपनाया
ये आना जाना लगा ही रहा तेरा
मेरे हर सवाल का जवाब
में मौन ही पाया
हमनें खुद को तेरे मुताबिक ढाल लिया था।।
पर तु बेरहम
तु समझ ही नहीं पाया मुझे कभी
न जाने कितने झुठ बोले होंगे
याद नहीं होंगे तुझे
ये दिल के कितने टुकड़े हुए
मुझे याद नहीं समटते समटते
न जाने कितनी बार होश खो बेठै
हम तेरे हर झूठ पर प्रेम का परदा डालते रहे।।
तुझे लगा हर पल कहानियों में खोनेवाली के साथ
मेरी कहानी का सच नहीं खुलेगा।।
पर जनाब कहानी बनाने वाले को
हर एक पात्र और चीज़ का पता होता हैं।
भ्रम तो तुमहारा तुटा होगा हैं ना????
तु समझ ही नहीं पाया मुझे कभी
पर हम सब छोड़कर फिर से कहानी की ओर चल दिये है शायद अब एक बेहतरीन लेखिका खुद को ढूँढ पायेगी।।।
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🌷 बुजुर्गों का महत्व 🌷
आजकल बहुत लोग सोचते है की अगर कोई बूढ़ा इंसान है तो उसका कोई महत्त्व नहीं है। लेकिन आज आप लोगों को एक कहानी के माध्यम से बताना चाहता हूँ की बुजुर्गों का महत्त्व क्या है। तो चलिए दोस्तों शुरू करते है आज का कहानी "दूध की नदी"।
एक बार की बात है, एक लड़का था जिसका नाम "रवि" था और वो एक शहर में नौकरी करता था। उसके साथ एक लड़की भी काम करती थी जिसका नाम "कोमल" था। काम करते-करते ये दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और विवाह करने की सोची। फिर इन दोनों ने अपने- अपने घर में यह बात बताई, लड़के के घर वाले बहुत खुले विचार के थे तो वो बहुत जल्दी मान गए लेकिन लड़की के पिता को ये पसन्द नही था और जब लड़के के घरवाले लड़की के घर लड़की का हाथ मांगने पहुँचे तो कोमल के पिता ने एक शर्त रख दी कि बारात में कोई भी बुजुर्ग व्यक्ति नही आएगा तो सबने बिना विचारे उनकी वो शर्त मान ली और दोनों परिवार विवाह की तैयारी करने लगे।सब बहुत प्रसन्न थे क्योंकि आज वो दिन था जब रवि और कोमल का विवाह होना है। तो सब तैयार थे, अब बारात निकलने का समय आया, तभी रवि के दादा ने ज़िद पकड़ ली की वो तो बारात में जायेंगे। सब लोगों ने मना किया लेकिन वो अपने जिद्द पर अडिग ही रहे, उन्होंने कहा - "भले ही मुझे कार की डिग्गी में डाल के ले जाओ, लेकिन में जाऊंगा "। फिर सब लोगो को उनकी बात माननी पड़ी, उन्हें कार की डिग्गी में डाल दिया गया और बारात निकल पड़ी। सब नाचते गाते जा रहे थे, (कोमल के घर से थोड़े दूर में एक नदी थी जिससे पार करने के बाद एक पहाड़ आता था उसके बाद कोमल का घर), जब बारात पूल पार करने वाली थी उन्होंने देखा लड़की के मामा वहा खड़े है। बारात रुक गई, रवि के दोस्त ने कोमल के मामा से पूछा की "क्या हुआ? आप यहाँ क्या कर रहे है?", कोमल के मामा ने कहा की "मैं यहाँ बस तुम लोगों को यह बताने के लिए आया हूँ की अगर तुम लोग अपनी बारात हमारे गाँव मे लाना चाहते हो और ये विवाह करना चाहते हो तो हम लोगों की एक और शर्त है। और वो यह है की - ये जो नदी है इसमे तुम्हे पानी की जगह दूध बहाना होगा"। ये बोलने के बाद वो वहाँ से चले गए।
तब रवि के दोस्तों ने कहा की ये असंभव है इतना दूध कहाँ से लाएंगे, अब ये विवाह नहीं हो सकता और बारात वापस जाने लगी और दूर से कोमल के मामा और पिता ये देख के हँसने लगे।
बारात वापिस हो रही थी तभी एक दोस्त ने कहा विवाह तो होना नही तो दादा जी को भी डिग्गी से बाहर निकाल लो उनका भी क्यों दम घोटना। डिग्गी खोली तो दादा जी ने पूछा "क्या हुआ? हम लोग वापस क्यों जा रहे है?", रवि ने उत्तर दिया "क्योंकि दादाजी उन्होंने विवाह की एक और शर्त रखी है,,वो लोग चाहते है की इस नदी में पानी के जगह दूध बहाया जाए, जो की असंभव है "।
"बस इतनी सी बात है ?", दादा जी ने कहा। सब उनकी ये बाते सुन के सोचने लगे क्या ये इतनी सी बात है?
फिर बुजुर्ग दादा ने कहा "जाओ और कोमल के मामा को बोलो हमने दूध की व्यवस्था कर ली है,,अब तुम लोग इस नदी को खाली करो, जिससे हम इसमे दूध बहा सके। जब ये बात कोमल के पिता को पता लगी, उन्होंने कहा अवश्य उनके साथ कोई न कोई बुजुर्ग व्यक्ति जरूर है जिसने ये समाधान निकाला है !उसके बाद कोमल के पिता बिना शर्तो के विवाह के लिए मान गए। क्योंकि जिनके ऊपर बुजुर्गों के अनुभव की छत्र छाया होती है वह हर समस्या को बड़ी आसानी से पार कर जाते है, इसके बाद रवि और कोमल की एक अच्छे भविष्य की शुरूवात होती है। 👉शिक्षा
आप कितना भी कुछ बन जाएं या कितना भी बड़े हो जाये जो बुजुर्गों के पास जिंदगी के अनुभव है वो आपके पास नहीं। उनका आदर करे।
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: गिलहरी की समझदारी
(The Squirrel's Wisdom)
साल 1995 का समय था। उत्तर प्रदेश के एक व्यस्त शहर कानपुर में गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं। बच्चों के खेल-खिलौनों से गलियाँ गूँज रही थीं। इसी मोहल्ले में एक गिलहरी, जिसका नाम गुड़िया था, हर रोज़ पेड़ों पर चढ़कर खाने की खोज करती थी। गुड़िया बेहद समझदार और नटखट थी, और बच्चों की मस्ती में भी हिस्सा लेती थी।
मोहल्ले के सबसे शरारती बच्चों का गुट था, जिसमें सनी, राजू, और मोहन शामिल थे। वे रोज़ किसी नई शरारत की योजना बनाते थे। एक दिन, उन्होंने गुड़िया को पकड़ने का फैसला किया। उन्होंने एक जाल तैयार किया और उसमें मूँगफली रख दी।
गुड़िया भी जाल के पास आई, लेकिन उसकी समझदारी ने उसे कुछ अलग महसूस कराया। उसने देखा कि मूँगफली इतनी आसानी से नहीं मिल सकती। उसने अपनी चालाकी से जाल को उलझा दिया और बिना फँसे मूँगफली निकाल ली। बच्चों ने देखा और अपनी योजना के फेल होने पर हंस पड़े।
इसके बाद से बच्चों ने गुड़िया के साथ शरारत करने के बजाय उससे दोस्त�� कर ली। वे रोज़ उसे खाना खिलाने लगे और गुड़िया भी उनकी दोस्त बन गई। इस तरह गुड़िया ने अपने चतुराई और समझदारी से बच्चों को सिखाया कि दोस्ती से बड़ी कोई जीत नहीं होती।
शिक्षा: समझदारी से हर कठिनाई को हल किया जा सकता है, और दोस्ती जीवन को सुखद बना देती है।
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Title: गिलहरी का बहादुर मिशन
(The Brave Mission of the Squirrel)
1995 की बात है। उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के एक शांत मोहल्ले में नीलम नाम की एक लड़की रहती थी। नीलम पढ़ाई में तेज और हर दिन पेड़ के नीचे अपनी किताबें लेकर बैठती थी। वह जहाँ बैठती थी, वहीं एक छोटी गिलहरी भी आकर पेड़ पर खेला करती थी। उसका नाम निम्मो था।
एक दिन नीलम के मोहल्ले में आग लग गई। लोग इधर-उधर भागने लगे, और भगदड़ मच गई। नीलम डर गई और पेड़ के पास ही खड़ी रही। तभी उसने देखा कि निम्मो तेजी से दौड़कर इधर-उधर जा रही है। निम्मो पेड़ से कूदकर नीलम के पास आई और अपने छोटे पंजे से उसे खींचने लगी।
नीलम समझ नहीं पाई, लेकिन फिर भी वह निम्मो के पीछे-पीछे भागी। निम्मो उसे सुरक्षित जगह पर ले आई, जहाँ उसके माता-पिता पहले से मौजूद थे। इस तरह निम्मो ने नीलम की जान बचाई।
उस दिन के बाद नीलम और निम्मो की दोस्ती और गहरी हो गई। नीलम ने महसूस किया कि जानवर भी इंसानों की तरह समझदार और बहादुर हो सकते हैं।
शिक्षा: कभी-कभी सबसे छोटे जीव भी हमें सबसे बड़ी मदद दे सकते हैं।
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3. Title: शहर की गिलहरी की यात्रा
(The Squirrel's City Adventure)
1995 की गर्मियों का समय था। वाराणसी के बीचो-बीच एक बड़ा बगीचा था, जहाँ एक गिलहरी रहती थी, जिसका नाम बिट्टू था। बिट्टू बगीचे के पेड़ों पर फुदकती रहती और वहाँ आने वाले बच्चों के साथ खेलती।
बिट्टू ने कभी शहर के बाहर की दुनिया नहीं देखी थी। एक दिन, उसे बहुत जिज्ञासा हुई और वह बगीचे के बाहर निकल पड़ी। वह गलियों से होते हुए बाजार पहुँच गई। वहाँ की भीड़, शोर, और रंग-बिरंगी दुकानें देखकर बिट्टू हैरान हो गई। उसे सब कुछ नया और दिलचस्प लग रहा था, लेकिन साथ ही डर भी लग रहा था क्योंकि वह रास्ता भूल गई थी।
तभी बिट्टू की मुलाकात सोमू नाम के एक छोटे लड़के से हुई, जो अपने पिता के साथ बाजार आया था। सोमू ने बिट्टू को देखा और समझ गया कि वह डर गई है। उसने बिट्टू को अपने कंधे पर बिठाया और उसे वापस बगीचे तक पहुँचाया।
उस दिन के बाद, बिट्टू ने सीखा कि कभी-कभी नई जगहों की यात्रा करना मजेदार हो सकता है, लेकिन घर लौटना भी उतना ही जरूरी है। सोमू और बिट्टू की दोस्ती भी हमेशा के लिए पक्की हो गई।
शिक्षा: नई जगहों की खोज हमें ज्ञान देती है, लेकिन ��पनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए।
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Title: पेड़ और गिलहरी की दोस्ती
(The Friendship Between a Tree and a Squirrel)
1995 में, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक पुराना नीम का पेड़ था। उस पेड़ पर एक गिलहरी किट्टी रहती थी। किट्टी को नीम के पेड़ से बहुत लगाव था क्योंकि उसी की छांव में उसका घर था। पेड़ ने उसे हर मौसम में सुरक्षा दी थी, और वह पेड़ की हर डाल, हर पत्ती को अपना साथी मानती थी।
एक दिन, कुछ लोग उस नीम के पेड़ को काटने आए। वे वहाँ एक बड़ा मॉल बनाने की योजना बना रहे थे। किट्टी उदास हो गई। वह दौड़कर पेड़ के चारों ओर घूमी और मदद के लिए आवाज़ें निकालीं।
पास के स्कूल के कुछ बच्चों ने किट्टी की यह हरकत देखी और समझ गए कि पेड़ को काटा जा रहा है। बच्चों ने मिलकर उस पेड़ को बचाने का फैसला किया। उन्होंने स्कूल के प्रिंसिपल से बात की और एक याचिका तैयार की। नगर निगम के अधिकारियों ने बच्चों की याचिका पर ध्यान दिया और पेड़ को काटने का फैसला रद्द कर दिया।
किट्टी और बच्चों की यह जीत उस मोहल्ले के लिए एक मिसाल बन गई। अब वह पेड़ और भी अधिक हरा-भरा हो गया था, और किट्टी उसकी डालियों पर हर रोज़ खुशी से खेलती थी।
शिक्षा: पेड़ और जीव-जंतु हमारी दुनिया का अनमोल हिस्सा हैं, और उन्हें बचाना हमारी जिम्मेदारी है।
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इन कहानियों से यह सिखने को मिलता है कि गिलहरी जैसे छोटे जीव भी मानव जीवन में महत्वपूर्ण संदेश दे सकते हैं।
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नगरोटा सुरियां के पास पौंग झील में मिला जवाहक का शव, 5 सितंबर से था लापता
नगरोटा सुरियां के पास पौंग झील में मिला जवाहक का शव, 5 सितंबर से था लापता
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Kangra News: नगरोटा सूरियां की पंचायत जरोट के पास पौंग झील में पुलिस को एक लाश मिली है जिसकी पहचान 37 वर्षीय संकल्प सेन पुत्र स्व. आजाद कुमार निवासी बासा के रूप में हुई है। मृतक पंचायत में जलवाहक की नौकरी करता था। परिजनों के मुताबिक संकल्प सेन 5 सितम्बर को किसी काम से जरोट जाने की बात कह कर घर से गया लेकिन देर रात तक जब घर वापस नहीं आया तो परिजनों ने फोन के माध्यम से अपने रिश्तेदारों के यहां तलाश…
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Best 100+ बेहतरीन रिश्ते शायरी | Riste Shayari Status in Hindi
Riste Shayari Status in Hindi - हम सभी जानते हैं कि भगवान रिश्ते बनाते हैं, लेकिन उन्हें बनाए रखना और बनाए रखना हम पर निर्भर करता है। जब हम इन बंधनों को बनाए रखने में समय और प्रयास लगाते हैं, तभी वे खूबसूरत रिश्तों में तब्दील होते हैं। आज की दुनिया में, रिश्ते हमारे जीवन में बहुत महत्व रखते हैं, फिर भी बहुत कम लोग इस महत्व को सही मायने में समझते हैं। जो लोग समझते हैं, वे अपने रिश्तों को बहुत सावधानी से संभालते हैं। दुख की बात है कि कई लोग बिना किसी वास्तविक इरादे के बस रिश्तों को बनाए रखने का दिखावा करते हैं। सच्चे रिश्ते दिल से बनते हैं, जबकि स्वार्थी रिश्ते- जो व्यक्तिगत लाभ से पैदा होते हैं- शायद ही कभी टिकते हैं और अक्सर जल्दी ही टूट जाते हैं।.
एक बुद्धिमान विद्वान ने एक बार कहा था, “रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए, टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े तो गांठ पड़ जाए।” इसका मतलब यह है कि एक धागे की तरह, एक बार टूट जाने के बाद, रिश्ते अपनी मूल स्थिति में वापस नहीं आ सकते। भले ही उन्हें जोड़ दिया जाए, लेकिन एक गाँठ रह जाती है- टूटने की याद दिलाने वाली जो चीजों को फिर से वैसा नहीं होने देती।.
इसी को ध्यान में रखते हुए, हमने आज के लेख में आपके लिए Riste Shayari Status का एक खास संग्रह तैयार किया है। इन खूबसूरत छंदों के साथ, हमने रिश्ता स्टेटस तस्वीरें भी प्रदान की हैं जिन्हें आप सार्थक रिश्तों के मूल्य को दर्शाने के लिए अपने Whatsapp Status पर साझा कर सकते हैं।.
Rishte Shayari in Hindi
अपना हिस्सा मांग कर देखो
सारे रिश्ते बेनकाब हो जायेंगे
और अपना हिस्सा छोड़ कर देखो
सारे कांटे भी गुलाब हो जायेंगे…
तूने रिश्ता तोड़ा है
मजबूरी होगी तेरी मैं मानता हूं
मुझे तो निभाने दे
मै भला तुझसे क्या मागता हूं।
रिश्ता दिलों का हो तो
दूरियां मायने नहीं रखत���ं। 💯🥀
मजबूरियां सब पर हावी हो
ये ज़रूरी तो नहीं
कुछ रिश्ते बेहतर की तलाश में भी
छोड़ दिए जाते हैं…
दिखावे के रिश्ते शायरी
छुपे छुपे से रहते है
सरेआम नही होते
कुछ रिश्ते सिर्फ एहसास है
उनके नाम नही होते।
रिश्ता उसी से रखो
जो इज्जत हो सम्मान दे
मतलब की भीड़ बढ़ाने का
कोई फायदा नहीं।
रिश्ते बड़ी बड़ी बातें करने से
नही छोटे छोटे बातो को
समझने से गहरे होते है❤️😊❤️
भले ही ज़िंदगी भर अकेले रह लो
पर किसी से
कभी ज़बरदस्ती रिश्ता निभाने की
ज़िद मत करना…
सच्चे रिश्ते शायरी
जब नियत ही न हो
रिश्ते निभाने की
फिर वजह बनाई जाती है
छोड़ जाने की जनाब।
तजुर्बा कहता है
रिश्तों में फासला रखिए
ज्यादा नजदीकियां
अक्सर दर्द दे जाती हैं…
बनावटी रिश्तों से
ज्यादा सुकून देती है।
एक कप कड़क चाय जनाब☕️
Block करने से रिश्ता खत्म नहीं होता….
हां मगर , जो इंसान आपके एक बार कहने पर आपको
block कर दे…. वो आपका नहीं होता।
कभी कभी किसी से
ऐसा रिश्ता बन जाता है,
हर चीज से पहले
उसी का ख्याल आता है.!❤️
तूने मुझसे रिश्ता तोड़ा है,
तेरी मज़बूरी होगी मैं मानता हूँ,
जब मैं रोता हूँ तू हस्ती है,
तू हस्ती रहे ये दुआ मांगता हूँ।
सच बोलनें से अक्सर बचना चाहिए
क्योंकि
बड़े से बड़े रिश्ते टूट जाते हैं
सच बोलने से
बिखरते रिश्ते शायरी
मुझे अपना अकेला पन ही ज्यादा भाता है
इन खोखले रिश्तो के बीच
मन बहुत घबराता है…
जो सुख में साथ दे वो रिश्तें होते हैं
और जो दुख में साथ दे
वो फरिश्तें होते हैं…
जिसे दूर जाना है जाने दिया करो
रिश्तों में प्यार अच्छा लगता है
मजबूरी नही…
चाय से जो रिश्ता है मेरा
वो समझ नहीं आता
शब्दों में कैसे बयां करे हम जनाब।
अजी सुनती हो…..
पुराने खयाल का लड़का हूं मैं
रिश्ते उम्र भर निभाना पसंद है मुझे
ये रिश्ते भी किताबों की
तरह होते है
लिखने में सालों लग जाते है
लेकिन…
राख होने में पल भर नही
लगता है…!!
खूबसूरत रिश्ते शायरी
आज के ज़माने में रिश्ते कहां
खून के सगे होते है
हर बर्बादी के पीछे
अपनो के ही हाथ लगे होते हैं।
चुप रहता हूं ,
यानी रिश्तों का मान रखता हूँ
वरना मैं भी हर लहजे की पहचान रखता हूँ।
जब रिश्ते पर ही धूल पड़ चुकी हो
तो फिर ब्लाॅक अनब्लाॅक मायने नहीं
रखता…
रिश्तों का नूर तो मासूमियत से है,
ज्यादा समझदारियों से
रिश्ते फीके पड़ने लगते हैं।
खुदा जाने की कैसा रिश्ता है तुमसे,,
हजार अपने है
पर याद सिर्फ तुम आते हो💓
ख्वाहिशों से भरा पड़ा है
मेरा घर इस कदर
रिश्ते जरा-सी जगह
को तरसते हैं🖤🖤
जिसकी गलतियों को भुलाकर
मैंने हर बार रिश्ता निभाया है
उसी ने मुझे
हर बार फालतू होने का एहसास दिलाया है🖤🥀🖤
और एक दिन रोक लिया मैने खुद को,
तो समझ आया
रिश्ता सिर्फ मेरे चलने से चल रहा है।
मतलबी रिश्ते शायरी
वक्त दीजिए इन मासूम रिश्तो को ए मुर्शिद
तल्ख़ीयाँ और दूरीयाँ अक्सर
इन्हे बर्बाद कर देती है।
जब भी खुद को देखता हु
आवारा ही पाता हूं।
रिश्ते निभाने में खुद को
बेचारा ही पाता हूं।।
बढ़ती उम्र बता रही है।
दुनिया बड़ी ही ख़राब है, जनाब
मतलब का रिश्ता है।
फरेबो का दौर है।
इश्क़ रोता रातों में नफ़रतों
का शोर है।
झूठे वादों से हज़ार बेहतर है
नापसंद रिश्तों से मुकर जाना…
इश्क़ इबादत और बारिश का एक ही रिश्ता है।
जो उमड़े तो बेशुमार बरसते है।
एक हम रिश्ता तोड़ नहीं पाए
एक वोह रिश्ता जोड़ नही पाए
रिश्ते ख़राब
कर देती है।
ये ख़ामोशी जनाब
बोलकर लड़ लिया करों मुझसे।
दिल के रिश्ते शायरी
गलतफेमियो में खो गया वो रिश्ता,,,
वरना कुछ वादे अगले जन्म के भी थे।
कुछ रिश्तों की कीमत नहीं होती
उनकी अहमियत होती हैं।
कैसे मुझे आप मिले
रिश्ते ये ऐसे जुड़ गए
दिल भी तोड़ा आपने मेरा
पर दिल में ही रह गए।
तुम रिश्ता तो तोड गए
पर रिश्ता तोड देने से
मौहब्बत खत्म नही होती
जुदा होकर भी कुछ रीश्ते
निभाने ही होते है।
कोई रिश्ता जो न होता,
तो वो खफा क्यों होता,
ये बेरुखी, उसकी मोहब्बत का पता देती है………❤️
आजकल के रिश्ते शायरी
अब तो हर एक ने रिश्ता
तोड़ दिया हमसे
क्योकी हम उनके
काबिल नहीं रहे 🖤🥀🖤
अगर कोशिश दोनो तरफ से हो तो
दुनिया का कोई भी रिश्ता नही टूटता…
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मेरठ में किशोरी का अपहरण, 24 घंटे तक बंधक बना कर दूसरे समुदाय के युवकों ने किया गैंगरेप
रामबाबू मित्तल, मेरठ: उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के फलावदा क्षेत्र में एक किशोरी का अपहरण कर किए जाने का मामला सामने आया है। आरोपी दूसरे पक्ष के हैं, जिसकी भनक लगते ही हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं ने थाने पहुंचकर हंगामा कर दिया। आनन-फानन में सीओ पहुंचे और मुकदमा दर्ज कराते हुए हंगामा शांत कराया। अब पुलिस आरोपियों की तलाश में दबिश दे रही है। थाना फलावदा क्षेत्र निवासी व्यक्ति की 15 वर्षीय बेटी 29 अगस्त की दोपहर जंगल गई थी, तभी वहां पहुंचे कुछ युवकों ने किशोरी को हथियार के बल पर डरा धमकाकर गाड़ी में डाल लिया और दौराला थाना क्षेत्र के जंगल में ले गए। यहां तीन युवकों ने 24 घंटे तक बंधक बनाकर किशोरी के साथ दुष्कर्म किया। बेटी के घर वापस ने आने पर परिजन देर शाम से सारी रात उसकी तलाश करते रहे। 30 अगस्त को गांव के ही एक व्यक्ति ने बताया कि उसकी बेटी को कुछ युवक अपहरण कर दौराला क्षेत्र क�� तरफ ले गए हैं। परिजनों ने गांव वालों की मदद से दौराला क्षेत्र के जंगलों में बेटी की तलाश की। वहीं, दौराला के जंगल में बेटी को बदहवास देखकर पिता के पैरों तले की जमीन खिसक गई। बेटी ने बताया कि उसे तीन युवक उठाकर लाए और गलत काम किया। एक आरोपी अभी भी ट्यूबवेल के पास है, जिसने उसे जान से मारने की धमकी दी है। आरोप है कि जब पिता ट्यूबवेल पर पहुंचा, तो आरोपी ने तमंचे से फायर कर दिया। पिता अपनी बेटी को लेकर वहां से चला आया।
रिपोर्ट दर्ज न करने पर थाने पर हुआ हंगामा
पिता शनिवार को बेटी को लेकर फलावदा थाने आया और तीन आरोपियों के खिलाफ नामजद तहरीर दी। पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी करने लगी। आरोपियों के दूसरे संप्रदाय के होने की सूचना हिंदू संगठनों को लगी, तो थाने पहुंच गए, जहां देर रात तक थाने पर हंगामा चला। थाने पहुंचे सीओ ने रिपोर्ट दर्ज करवा आरोपियों की तलाश शुरू की। वहीं, इस पूरे मामले पर जब एसपी देहात से बात करनी चाही गई, तो उनका सीयूजी नंबर बंद मिला। वहीं, थाना प्रभारी ने भी फोन रिसीव नहीं किया। http://dlvr.it/TCg1N1
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart79 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart80
(प्रमाण श्री गुरु ग्रन्थ साहेब सीरी रागु महला पहला, घर 4 पृष्ठ 25) -
तू दरीया दाना बीना, मैं मछली कैसे अन्त लहा।
जह-जह देखा तह-तह तू है, तुझसे निकस फूट मरा।
न जाना मेऊ न जाना जाली। जा दुःख लागै ता तुझै समाली।1।रहाऊ।।
नानक जी ने कहा कि मैं मछली बन गया था, आपने कैसे ढूंढ लिया? हे परमेश्वर! आप तो दरीया के अंदर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु को जानने वाले हो। मुझे तो जाल डालने वाले(जाली) ने भी नहीं जाना तथा गोताखोर(मेऊ) ने भी नहीं जाना अर्थात् नहीं जान सका। जब से आप के सतलोक से निकल कर अर्थात् आप से बिछुड़ कर आए हैं तब से कष्ट पर कष्ट उठा रहा हूँ। जब दुःख आता है तो आपको ही याद करता हूँ, मेरे कष्टों का निवारण आप ही करते हो? (उपरोक्त वार्ता बाद में काशी में प्रभु के दर्शन करके हुई थी)।
तब नानक जी ने कहा कि अब मैं आपकी सर्व वार्ता सुनने को तैयार हूँ। कबीर परमेश्वर ने वही सृष्टि रचना पुनर् सुनाई तथा कहा कि मैं पूर्ण परमात्मा हूँ मेरा स्थान सच्चखण्ड (सत्यलोक) है। आप मेरी आत्मा हो। काल (ब्रह्म) आप सर्व आत्माओं को भ्रमित ज्ञान से विचलित करता है तथा नाना प्रकार से प्राणियों के शरीर में बहुत परेशान कर रहा है। मैं आपको सच्चानाम (सत्यनाम/वास्तविक मंत्र जाप) दूँगा जो किसी शास्त्रा में नहीं है। जिसे काल (ब्रह्म) ने गुप्त कर रखा है।
श्री नानक जी ने कहा कि मैं अपनी आँखों अकाल पुरूष तथा सच्चखण्ड को देखूं तब आपकी बात को सत्य मानूं। तब कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए। सच्च खण्ड में श्री नानक जी ने देखा कि एक असीम तेजोमय मानव सदृश शरीर युक्त प्रभु तख्त पर बैठे थे। अपने ही दूसरे स्वरूप पर कबीर साहेब जिन्दा महात्मा के रूप में चंवर करने लगे। तब श्री नानक जी ने सोचा कि अकाल मूर्त तो यह रब है जो गद्दी पर बैठा है। कबीर तो यहाँ का सेवक होगा। उसी समय जिन्दा रूप में परमेश्वर कबीर साहेब उस गद्दी पर विराजमान हो गए तथा जो तेजोमय शरीर युक्त प्रभु का दूसरा रूप था वह खड़ा होकर तख्त पर बैठे जिन्दा वाले रूप पर चंवर करने लगा। फिर वह तेजोमय रूप नीचे से गये जिन्दा (कबीर) रूप में समा गया तथा गद्दी पर अकेले कबीर परमेश्वर जिन्दा रूप में बैठे थे और चंवर अपने आप ढुरने लगा।
तब नानक जी ने कहा कि वाहे गुरु, सत्यनाम से प्राप्ति तेरी। इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। नानक जी की आत्मा को साहेब कबीर जी ने वापस शरीर में प्रवेश कर दिया। तीसरे दिन श्री नानक जी होश में आऐ।
उधर श्री जयराम जी ने (जो श्री नानक जी का बहनोई था) श्री नानक जी को दरिया में डूबा जान कर दूर तक गोताखोरों से तथा जाल डलवा कर खोज करवाई। परन्तु कोशिश निष्फल रही और मान लिया कि श्री नानक जी दरिया के अथाह वेग में बह कर मिट्टी के नीचे दब गए। तीसरे दिन जब नानक जी उसी नदी के किनारे सुबह-सुबह दिखाई दिए तो बहुत व्यक्ति एकत्रित हो गए, बहन नानकी तथा बहनोई श्री जयराम भी दौड़े गए, खुशी का ठिकाना नहीं रहा तथा घर ले आए।
श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा जिसको जितना चाहिए, ले जाओ। पूरा खजाना लुटा कर शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठा है। तब नवाब ने श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये अधिक मिले। नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था।
नवाब ने पूछा वह पूर्ण परमात्मा कहाँ रहता है तथा यह आदेश आपको कब हुआ? श्री नानक जी ने कहा वह सच्चखण्ड में रहता हेै। बेई नदी के किनारे से मुझे स्वयं आकर वही पूर्ण परमात्मा सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गया था। वह इस पृथ्वी पर भी आकार में आया हुआ है। उसकी खोज करके अपना आत्म कल्याण करवाऊँगा। उस दिन के बाद श्री नानक जी घर त्याग कर पूर्ण परमात्मा की खोज पृथ्वी पर करने के लिए चल पड़े। श्री नानक जी सतनाम तथा वाहिगुरु की रटना लगाते हुए बनारस पहुँचे। इसीलिए अब पवित्र सिक्ख समाज के श्रद्धालु केवल सत्यनाम श्री वाहिगुरु कहते रहते हैं। सत्यनाम क्या है तथा वाहिगुरु कौन है यह मालूम नहीं है। जबकि सत्यनाम(सच्चानाम) गुरु ग्रन्थ साहेब में लिखा है, जो अन्य मंत्र है।
जैसा की कबीर साहेब ने बताया था कि मैं बनारस (काशी) में रहता हूँ। धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। मेरे गुरु जी काशी में सर्व प्रसिद्ध पंडित रामानन्द जी हैं। इस बात को आधार रखकर श्री नानक जी ने संसार से उदास होकर पहली उदासी यात्रा बनारस (काशी) के लिए प्र��रम्भ की (प्रमाण के लिए देखें ‘‘जीवन दस गुरु साहिब‘‘ (लेखक:- सोढ़ी तेजा सिंह जी, प्रकाशक=चतर सिंघ, जीवन सिंघ) पृष्ठ न. 50 पर।)।
परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में प्रतिदिन जाया करते थे। जिस दिन श्री नानक जी ने काशी पहुँचना था उससे पहले दिन कबीर साहेब ने अपने पूज्य गुरुदेव रामानन्द जी से कहा कि स्वामी जी कल मैं आश्रम में नहीं आ पाऊँगा। क्योंकि कपड़ा बुनने का कार्य अधिक है। कल सारा दिन लगा कर कार्य निपटा कर फिर आपके दर्शन करने आऊँगा।
काशी (बनारस) में जाकर श्री नानक जी ने पूछा कोई रामानन्द जी महाराज है। सब ने कहा वे आज के दिन सर्व ज्ञान सम्पन्न ऋषि हैं। उनका आश्रम पंचगंगा घाट के पास है। श्री नानक जी ने श्री रामानन्द जी से वार्ता की तथा सच्चखण्ड का वर्णन शुरू किया। तब श्री रामानन्द स्वामी ने कहा यह पहले मुझे किसी शास्त्रा में नहीं मिला परन्तु अब मैं आँखों देख चुका हूँ, क्योंकि वही परमेश्वर स्वयं कबीर नाम से आया हुआ है तथा मर्यादा बनाए रखने के लिए मुझे गुरु कहता है परन्तु मेरे लिए प्राण प्रिय प्रभु है। पूर्ण विवरण चाहिए तो मेरे व्यवहारिक शिष्य परन्तु वास्तविक गुरु कबीर से पूछो, वही आपकी शंका का निवारण कर सकता है।
श्री नानक जी ने पूछा कि कहाँ हैं (परमेश्वर स्वरूप) कबीर साहेब जी ? मुझे शीघ्र मिलवा दो। तब श्री रामानन्द जी ने एक सेवक को श्री नानक जी के साथ कबीर साहेब जी की झोपड़ी पर भेजा। उस सेवक से भी सच्चखण्ड के विषय में वार्ता करते हुए श्री नानक जी चले तो उस कबीर साहेब के सेवक ने भी सच्चखण्ड व सृष्टि रचना जो परमेश्वर कबीर साहेब जी से सुन रखी थी सुनाई। तब श्री नानक जी ने आश्चर्य हुआ कि मेरे से तो कबीर साहेब के चाकर (सेवक) भी अधिक ज्ञान रखते हैं।
इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि -
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक”
जिसका भावार्थ है कि हे कबीर परमेश्वर जी मैं नानक कह रहा हूँ कि मेरा उद्धार हो गया, मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूर तुल्य हूँ।
जब नानक जी ने देखा यह धाणक (जुलाहा) वही परमेश्वर है जिसके दर्शन सत्यलोक (सच्चखण्ड) में किए तथा बेई नदी पर हुए थे। वहाँ यह जिन्दा महात्मा के वेश में थे यहाँ धाणक (जुलाहे) के वेश में हैं। यह स्थान अनुसार अपना वेश बदल लेते हैं परन्तु स्वरूप (चेहरा) तो वही है। वही मोहिनी सूरत जो सच्चखण्ड में भी विराजमान था। वही करतार आज धाणक रूप में बैठा है। श्री नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आँखों में आँसू भर गए।
तब श्री नानक जी अपने सच्चे स्वामी अकाल मूर्ति को पाकर चरणों में गिरकर सत्यनाम (सच्चानाम) प्राप्त किया। तब शान्ति पाई तथा अपने प्रभु की महिमा देश विदेश में गाई।
पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मन्त्र का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक (सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि:
इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29
शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआलकुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।
इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञान बिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।
नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति (साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी (भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक (सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे (नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।
मुझे धाणक (जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति (स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में (जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक (जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान (पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक (जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने (नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं (नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ (ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।
भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फासने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।
दूसरा प्रमाण:- नीचे प्रमाण है जिसमें कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है। श्री गु.ग्रपृष् ठ नं. 721 राग तिलंग महला पहला में है। और अधिक प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार।हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी।मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।जन पिसर पदर ���िरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर।आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल।गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक।नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।
सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आप के द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्र हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आप की कृपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तूरा) बंदा पार हो गया।
केवल हिन्दी अनुवाद:-- हे शब्द स्वरूपी राम अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि रचनहार दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं। आप के समक्ष एक हृदय से विनती है कि यह पूरी तरह जान लिया है हे महबूब यह संसार रूपी ठिकाना नाशवान है। हे दाता! इस जीव के मरने पर अजराईल नामक यम दूत बेरहमी से पकड़ कर ले जाता है कोई साथी जन जैसे बेटा पिता भाईचारा साथ नहीं देता। अन्त में सभी उपाय और फर्ज कोई क्रिया काम नहीं आता। प्रतिदिन गश्त की तरह न रूकने वाली चलती हुई वायु की तरह बुरे विचार करते रहते हैं। शुभ कर्म करने का मुझे कोई जरीया या साधन नहीं मिला। ऐसे बुरे समय कलियुग में हमारे जैसे नादान लापरवाह, सत मार्ग का ज्ञान न होने से ज्ञान नेत्र हीन था तथा लोकवेद के आधार से अनाप-सनाप ज्ञान कहता रहता था। नानक जी कहते हैं कि मैं आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ बन्दा नानक पार हो गया।
भावार्थ - श्री गुरु नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत् कबीर)! आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो। आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्यज्ञान वाली नजर रहित तथा आपके सत्यज्ञान के सामने तो निर्उत्तर अर्थात् जुबान रहित हो गया हूँ। हे कुल मालिक! मैं तो आपके दासों के चरणों की धूल हूँ, मुझे शरण में रखना।
इसके पश्चात् जब श्री नानक जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि पूर्ण परमात्मा तो गीता ज्ञान दाता प्रभु से अन्य ही है। वही पूजा के योग्य है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तथा ज्ञान के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु भी अनभिज्ञ है। परमेश्वर स्वयं ही तत्वदर्शी संत रूप से प्रकट होकर तत्वज्ञान को जन-जन को सुनाता है। जिस ज्ञान को वेद भी नहीं जानते वह तत्वज्ञान केवल पूर्ण परमेश्वर (सतपुरुष) ही स्वयं आकर ज्ञान कराता है। श्री नानक जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में होने के कारण पवित्र गीता जी के ज्ञान पर पूर्ण रूपेण आश्रित थे। फिर स्वयं प्रत्येक हिन्दू श्रद्धालु तथा ब्राह्मण गुरुओं, आचार्यों से गीता जी के सात श्लोकों के विषय में पूछते थे। सर्व गुरुजन निरुतर हो जाते थे, परन्तु श्री नानक जी के विरोधी हो जाते थे। उस समय शिक्षा का अभाव था। उन झूठे गुरुओं की दाल गलती रही। गुरुजन जनता को यह कह कर श्री नानक जी के विरुद्ध भड़काते थे कि श्री नानक झूठ कह रहा है। गीता जी में ऐसा नहीं लिखा है कि श्री कृष्ण जी से ऊपर कोई शक्ति है। कबीर प्रभु से तत्वज्ञान से परिचित होकर श्री नानक जी पवित्र मुसलमान धर्म के श्रद्धालुओं तथा काजी व मुल्लाओं तथा पीरों (गुरुओं) से पूछा करते थे कि पवित्र र्कुआन शरीफ की सूरत फुर्कानि स. 25 आयत 19, 21, 52 से 58, 59 में र्कुआन शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, सर्व पाप (गुनाहों) का नाश (क्षमा) करने वाला जिसने छः दिन में सृष्टि रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा, जो सर्व के पूजा(इबादिह कबीरा) योग्य है, वह कबीर परमेश्वर है। काफिर लोग (अल्लाह कबीर) कबीर प्रभु को समर्थ नहीं मानते, आप उनकी बातों में मत आना। मेरे द्वारा दिए इस र्कुआन शरीफ के ज्ञान पर विश्वास रखकर उनके साथ ज्ञान चर्चा रूपी संघर्ष करना। उस अल्लाहु अकबिर् अर्थात् अल्लाहु अकबर (कबीर प्रभु) की भक्ति तथा प्राप्ति के विषय में मंा (र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता प्रभु) नहीं जानता। उसके विषय में किसी तत्वदर्शी संत (बाखबर) से पूछो। पवित्र मुसलमान धर्म के मार्ग दर्शकों से पूछा कि यह स्पष्ट है कि श्री र्कुआन शरीफ के ज्ञान दाता प्रभु (जिसे हजरत मुहम्मद जी अपना अल्लाह मानते थे) के अतिरिक्त कोई और समर्थ परमेश्वर है जिसने सारे संसार की रचना की है। वही पूजा के योग्य है। र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता प्रभु अपनी साधना के विषय में तो बता चुका है कि पाँच समय निमाज करो, रोजे रखो, बंग दो। फिर वही प्रभु किसी अन्य समर्थ प्रभु की पूजा के लिए कह रहा है। क्या वह बाखबर(तत्वदर्शी) संत आप किसी को मिला है ? यदि मिला होता तो यह साधना नहीं करते। इसलिए आपकी पूजा वास्तविक नहीं है। क्योंकि पूजा के योग्य पूर्ण मोक्ष दायक पाप विनाशक तो केवल कबीर नामक प्रभु है। आप प्रभु को निराकार कहते हो। र्कुआन शरीफ में सूरत फुर्कानि स. 25 आयत 58-59 में स्पष्ट किया है कि कबीर अल्लाह (कबीर प्रभु) ने छः दिन में सृष्टि रची तथा ऊपर तख्त पर जा बैठा। इससे तो स्पष्ट हुआ कि कबीर नामक अल्लाह साकार है। क्योंकि निराकार के विषय में एक स्थान पर बैठना नहीं कहा जाता। इसी की पुष्टि ‘पवित्र बाईबल‘ उत्पत्ति विषय में कहा है कि प्रभु ने छः दिन में सृष्टि की रचना की तथा सातवंल दिन विश्राम किया अर्थात् आकाश में जा बैठा तथा प्रभु ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। इससे भी स्वसिद्ध है कि परमेश्वर का शरीर भी मनुष्य जैसा है अर्थात् प्रभु साकार है।
आपकी र्कुआन शरीफ सही है परन्तु आप न समझ कर अपना तथा अपने अनुयाईयांे का जीवन व्यर्थ कर रहे हो। आओ आप को अल्लाह कबीर सशरीर दिखाता हूँ। बहुत से श्रद्धालु श्री नानक जी के साथ पूज्य कबीर परमेश्वर की झोपड़ी के पास गए। श्री नानक जी ने कहा कि यही है वह अल्लाहु अकबर, मान जाओ मेरी बात। परन्तु भ्रमित ज्ञान में रंगे श्रद्धालुओं को विश्वास नहीं हुआ। मुल्ला, काजी तथा पीरों ने कहा कि नानक जी झूठ बोल रहे हैं, र्कुआन शरीफ में उपरोक्त विवरण कहीं नहीं लिखा। क्योंकि सर्व समाज अशिक्षित था, वही अज्ञान अंधेरा अभी तक छाया रहा, अब तत्वज्ञान रूपी सूर्य उदय हो चुका है।
गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश -
साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350)जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352)गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353)बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414)मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439)
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब(प्रभु) एक ही है तथा मेरे गुरु जी ने मुझे उपदेश नाम मन्त्रा दिया, वही नाना रूप धारण कर लेता है अर्थात् वही सतपुरुष है वही जिंदा रूप बना लेता है। वही धाणक रूप में भी विराजमान होकर आम व्यक्ति अर्थात् भक्त की भूमिका करता है। शास्त्रा विरुद्ध पूजा करके सारे जगत् को जन्म-मृत्यु व कर्मफल की आग में जलते देखकर जीवन व्यर्थ होने के डर से भाग कर मैंने गुरु जी के चरणों में शरण ली।
बलिहारी गुरु आपणे दिउहाड़ी सदवार।जिन माणस ते देवते कीए करत न लागी वार।आपीनै आप साजिओ आपीनै रचिओ नाउ।दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ।दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ।तूं जाणोइ सभसै दे लैसहि जिंद कवाउ करि आसणु डिठो चाउ। (पृ. 463)
भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा जिंदा का रूप बनाकर बेई नदी पर आए अर्थात् जिंदा कहलाए तथा स्वयं ही दो दुनियाँ ऊपर(सतलोक आदि) तथा नीचे(ब्रह्म व परब्रह्म के लोक) को रचकर ऊपर सत्यलोक में आकार में आसन पर बैठ कर चाव के साथ अपने द्वारा रची दुनियाँ को देख रहे हो तथा आप ही स्वयम्भू अर्थात् माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते, स्वयं प्रकट होते हो। यही प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मं. 8 में है कि कविर् मनीषि स्वयम्भूः परिभू व्यवधाता, भावार्थ है कि कबीर परमात्मा सर्वज्ञ है (मनीषि का अर्थ सर्वज्ञ होता है) तथा अपने आप प्रकट होता है। वह सनातन (परिभू) अर्थात् सर्वप्रथम वाला प्रभु है। वह सर्व ब्रह्मण्डों का (व्यवधाता)अर्थात् भिन्न-भिन्न सर्व लोकों का रचनहार है।
एहू जीउ बहुते जनम भरमिआ, ता सतिगुरु शबद सुणाइया।। (पृ. 465)
भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मेरा यह जीव बहुत समय से जन्म तथा मृत्यु के चक्र में भ्रमता रहा अब पूर्ण सतगुरु ने वास्तविक नाम प्रदान किया। श्री नानक जी के पूर्व जन्म - सतयुग में राजा अम्ब्रीष, त्रोतायुग में राजा जनक हुए थे और फिर नानक जी हुए तथा अन्य योनियों के जन्मों की तो गिनती ही नहीं है। इस निम्न लेख में प्रमाणित है कि कबीर साहेब तथा नानक जी की वार्ता हुई है। यह भी प्रमाण है कि राजा जनक विदेही भी श्री नानक जी थे तथा श्री सुखदेव जी भी राजा जनक का शिष्य हुआ था।
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(प्रमाण श्री गुरु ग्रन्थ साहेब सीरी रागु महला पहला, घर 4 पृष्ठ 25) -
तू दरीया दाना बीना, मैं मछली कैसे अन्त लहा।
जह-जह देखा तह-तह तू है, तुझसे निकस फूट मरा।
न जाना मेऊ न जाना जाली। जा दुःख लागै ता तुझै समाली।1।रहाऊ।।
नानक जी ने कहा कि मैं मछली बन गया था, आपने कैसे ढूंढ लिया? हे परमेश्वर! आप तो दरीया के अंदर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु को जानने वाले हो। मुझे तो जाल डालने वाले(जाली) ने भी नहीं जाना तथा गोताखोर(मेऊ) ने भी नहीं जाना अर्थात् नहीं जान सका। जब से आप के सतलोक से निकल कर अर्थात् आप से बिछुड़ कर आए हैं तब से कष्ट पर कष्ट उठा रहा हूँ। जब दुःख आता है तो आपको ही याद करता हूँ, मेरे कष्टों का निवारण आप ही करते हो? (उपरोक्त वार्ता बाद में काशी में प्रभु के दर्शन करके हुई थी)।
तब नानक जी ने कहा कि अब मैं आपकी सर्व वार्ता सुनने को तैयार हूँ। कबीर परमेश्वर ने वही सृष्टि रचना पुनर् सुनाई तथा कहा कि मैं पूर्ण परमात्मा हूँ मेरा स्थान सच्चखण्ड (सत्यलोक) है। आप मेरी आत्मा हो। काल (ब्रह्म) आप सर्व आत्माओं को भ्रमित ज्ञान से विचलित करता है तथा नाना प्रकार से प्राणियों के शरीर में बहुत परेशान कर रहा है। मैं आपको सच्चानाम (सत्यनाम/वास्तविक मंत्र जाप) दूँगा जो किसी शास्त्रा में नहीं है। जिसे काल (ब्रह्म) ने गुप्त कर रखा है।
श्री नानक जी ने कहा कि मैं अपनी आँखों अकाल पुरूष तथा सच्चखण्ड को देखूं तब आपकी बात को सत्य मानूं। तब कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए। सच्च खण्ड में श्री नानक जी ने देखा कि एक असीम तेजोमय मानव सदृश शरीर युक्त प्रभु तख्त पर बैठे थे। अपने ही दूसरे स्वरूप पर कबीर साहेब जिन्दा महात्मा के रूप में चंवर करने लगे। तब श्री नानक जी ने सोचा कि अकाल मूर्त तो यह रब है जो गद्दी पर बैठा है। कबीर तो यहाँ का सेवक होगा। उसी समय जिन्दा रूप में परमेश्वर कबीर साहेब उस गद्दी पर विराजमान हो गए तथा जो तेजोमय शरीर युक्त प्रभु का दूसरा रूप था वह खड़ा होकर तख्त पर बैठे जिन्दा वाले रूप पर चंवर करने लगा। फिर वह तेजोमय रूप नीचे से गये जिन्दा (कबीर) रूप में समा गया तथा गद्दी पर अकेले कबीर परमेश्वर जिन्दा रूप में बैठे थे और चंवर अपने आप ढुरने लगा।
तब नानक जी ने कहा कि वाहे गुरु, सत्यनाम से प्राप्ति तेरी। इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। नानक जी की आत्मा को साहेब कबीर जी ने वापस शरीर में प्रवेश कर दिया। तीसरे दिन श्री नानक जी होश में आऐ।
उधर श्री जयराम जी ने (जो श्री नानक जी का बहनोई था) श्री नानक जी को दरिया में डूबा जान कर दूर तक गोताखोरों से तथा जाल डलवा कर खोज करवाई। परन्तु कोशिश निष्फल रही और मान लिया कि श्री नानक जी दरिया के अथाह वेग में बह कर मिट्टी के नीचे दब गए। तीसरे दिन जब नानक जी उसी नदी के किनारे सुबह-सुबह दिखाई दिए तो बहुत व्यक्ति एकत्रित हो गए, बहन नानकी तथा बहनोई श्री जयराम भी दौड़े गए, खुशी का ठिकाना नहीं रहा तथा घर ले आए।
श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा जिसको जितना चाहिए, ले जाओ। पूरा खजाना लुटा कर शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठा है। तब नवाब ने श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये अधिक मिले। नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब ��च्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था।
नवाब ने पूछा वह पूर्ण परमात्मा कहाँ रहता है तथा यह आदेश आपको कब हुआ? श्री नानक जी ने कहा वह सच्चखण्ड में रहता हेै। बेई नदी के किनारे से मुझे स्वयं आकर वही पूर्ण परमात्मा सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गया था। वह इस पृथ्वी पर भी आकार में आया हुआ है। उसकी खोज करके अपना आत्म कल्याण करवाऊँगा। उस दिन के बाद श्री नानक जी घर त्याग कर पूर्ण परमात्मा की खोज पृथ्वी पर करने के लिए चल पड़े। श्री नानक जी सतनाम तथा वाहिगुरु की रटना लगाते हुए बनारस पहुँचे। इसीलिए अब पवित्र सिक्ख समाज के श्रद्धालु केवल सत्यनाम श्री वाहिगुरु कहते रहते हैं। सत्यनाम क्या है तथा वाहिगुरु कौन है यह मालूम नहीं है। जबकि सत्यनाम(सच्चानाम) गुरु ग्रन्थ साहेब में लिखा है, जो अन्य मंत्र है।
जैसा की कबीर साहेब ने बताया था कि मैं बनारस (काशी) में रहता हूँ। धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। मेरे गुरु जी काशी में सर्व प्रसिद्ध पंडित रामानन्द जी हैं। इस बात को आधार रखकर श्री नानक जी ने संसार से उदास होकर पहली उदासी यात्रा बनारस (काशी) के लिए प्रारम्भ की (प्रमाण के लिए देखें ‘‘जीवन दस गुरु साहिब‘‘ (लेखक:- सोढ़ी तेजा सिंह जी, प्रकाशक=चतर सिंघ, जीवन सिंघ) पृष्ठ न. 50 पर।)।
परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में प्रतिदिन जाया करते थे। जिस दिन श्री नानक जी ने काशी पहुँचना था उससे पहले दिन कबीर साहेब ने अपने पूज्य गुरुदेव रामानन्द जी से कहा कि स्वामी जी कल मैं आश्रम में नहीं आ पाऊँगा। क्योंकि कपड़ा बुनने का कार्य अधिक है। कल सारा दिन लगा कर कार्य निपटा कर फिर आपके दर्शन करने आऊँगा।
काशी (बनारस) में जाकर श्री नानक जी ने पूछा कोई रामानन्द जी महाराज है। सब ने कहा वे आज के दिन सर्व ज्ञान सम्पन्न ऋषि हैं। उनका आश्रम पंचगंगा घाट के पास है। श्री नानक जी ने श्री रामानन्द जी से वार्ता की तथा सच्चखण्ड का वर्णन शुरू किया। तब श्री रामानन्द स्वामी ने कहा यह पहले मुझे किसी शास्त्रा में नहीं मिला परन्तु अब मैं आँखों देख चुका हूँ, क्योंकि वही परमेश्वर स्वयं कबीर नाम से आया हुआ है तथा मर्यादा बनाए रखने के लिए मुझे गुरु कहता है परन्तु मेरे लिए प्राण प्रिय प्रभु है। पूर्ण विवरण चाहिए तो मेरे व्यवहारिक शिष्य परन्तु वास्तविक गुरु कबीर से पूछो, वही आपकी शंका का निवारण कर सकता है।
श्री नानक जी ने पूछा कि कहाँ हैं (परमेश्वर स्वरूप) कबीर साहेब जी ? मुझे शीघ्र मिलवा दो। तब श्री रामानन्द जी ने एक सेवक को श्री नानक जी के साथ कबीर साहेब जी की झोपड़ी पर भेजा। उस सेवक से भी सच्चखण्ड के विषय में वार्ता करते हुए श्री नानक जी चले तो उस कबीर साहेब के सेवक ने भी सच्चखण्ड व सृष्टि रचना जो परमेश्वर कबीर साहेब जी से सुन रखी थी सुनाई। तब श्री नानक जी ने आश्चर्य हुआ कि मेरे से तो कबीर साहेब के चाकर (सेवक) भी अधिक ज्ञान रखते हैं।
इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि -
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक”
जिसका भावार्थ है कि हे कबीर परमेश्वर जी मैं नानक कह रहा हूँ कि मेरा उद्धार हो गया, मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूर तुल्य हूँ।
जब नानक जी ने देखा यह धाणक (जुलाहा) वही परमेश्वर है जिसके दर्शन सत्यलोक (सच्चखण्ड) में किए तथा बेई नदी पर हुए थे। वहाँ यह जिन्दा महात्मा के वेश में थे यहाँ धाणक (जुलाहे) के वेश में हैं। यह स्थान अनुसार अपना वेश बदल लेते हैं परन्तु स्वरूप (चेहरा) तो वही है। वही मोहिनी सूरत जो सच्चखण्ड में भी विराजमान था। वही करतार आज धाणक रूप में बैठा है। श्री नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आँखों में आँसू भर गए।
तब श्री नानक जी अपने सच्चे स्वामी अकाल मूर्ति को पाकर चरणों में गिरकर सत्यनाम (सच्चानाम) प्राप्त किया। तब शान्ति पाई तथा अपने प्रभु की महिमा देश विदेश में गाई।
पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मन्त्र का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक (सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि:
इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29
शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआलकुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।
इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञान बिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।
नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति (साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी (भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक (सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे (नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है �� यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।
मुझे धाणक (जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति (स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में (जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक (जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान (पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक (जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने (नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अ���ने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं (नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ (ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।
भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फासने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।
दूसरा प्रमाण:- नीचे प्रमाण है जिसमें कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है। श्री गु.ग्रपृष् ठ नं. 721 राग तिलंग महला पहला में है। और अधिक प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार।हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी।मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर।आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल।गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक।नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।
सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आप के द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्र हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आप की कृपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तूरा) बंदा पार हो गया।
केवल हिन्दी अनुवाद:-- हे शब्द स्वरूपी राम अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि रचनहार दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं। आप के समक्ष एक हृदय से विनती है कि यह पूरी तरह जान लिया है हे महबूब यह संसार रूपी ठिकाना नाशवान है। हे दाता! इस जीव के मरने पर अजराईल नामक यम दूत बेरहमी से पकड़ कर ले जाता है कोई साथी जन जैसे बेटा पिता भाईचारा साथ नहीं देता। अन्त में सभी उपाय और फर्ज कोई क्रिया काम नहीं आता। प्रतिदिन गश्त की तरह न रूकने वाली चलती हुई वायु की तरह बुरे विचार करते रहते हैं। शुभ कर्म करने का मुझे कोई जरीया या साधन नहीं मिला। ऐसे बुरे समय कलियुग में हमारे जैसे नादान लापरवाह, सत मार्ग का ज्ञान न होने से ज्ञान नेत्र हीन था तथा लोकवेद के आधार से अनाप-सनाप ज्ञान कहता रहता था। नानक जी कहते हैं कि मैं आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ बन्दा नानक पार हो गया।
भावार्थ - श्री गुरु नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत् कबीर)! आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो। आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्यज्ञान वाली नजर रहित तथा आपके सत्यज्ञान के सामने तो निर्उत्तर अर्थात् जुबान रहित हो गया हूँ। हे कुल मालिक! मैं तो आपके दासों के चरणों की धूल हूँ, मुझे शरण में रखना।
इसके पश्चात् जब श्री नानक जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि पूर्ण परमात्मा तो गीता ज्ञान दाता प्रभु से अन्य ही है। वही पूजा के योग्य है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तथा ज्ञान के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु भी अनभिज्ञ है। परमेश्वर स्वयं ही तत्वदर्शी संत रूप से प्रकट होकर तत्वज्ञान को जन-जन को सुनाता है। जिस ज्ञान को वेद भी नहीं जानते वह तत्वज्ञान केवल पूर्ण परमेश्वर (सतपुरुष) ही स्वयं आकर ज्ञान कराता है। श्री नानक जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में होने के कारण पवित्र गीता जी के ज्ञान पर पूर्ण रूपेण आश्रित थे। फिर स्वयं प्रत्येक हिन्दू श्रद्धालु तथा ब्राह्मण गुरुओं, आचार्यों से गीता जी के सात श्लोकों के विषय में पूछते थे। सर्व गुरुजन निरुतर हो जाते थे, परन्तु श्री नानक जी के विरोधी हो जाते थे। उस समय शिक्षा का अभाव था। उन झूठे गुरुओं की दाल गलती रही। गुरुजन जनता को यह कह कर श्री नानक जी के विरुद्ध भड़काते थे कि श्री नानक झूठ कह रहा है। गीता जी में ऐसा नहीं लिखा है कि श्री कृष्ण जी से ऊपर कोई शक्ति है। कबीर प्रभु से तत्वज्ञान से परिचित होकर श्री नानक जी पवित्र मुसलमान धर्म के श्रद्धालुओं तथा काजी व मुल्लाओं तथा पीरों (गुरुओं) से पूछा करते थे कि पवित्र र्कुआन शरीफ की सूरत फुर्कानि स. 25 आयत 19, 21, 52 से 58, 59 में र्कुआन शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, सर्व पाप (गुनाहों) का नाश (क्षमा) करने वाला जिसने छः दिन में सृष्टि रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा, जो सर्व के पूजा(इबादिह कबीरा) योग्य है, वह कबीर परमेश्वर है। काफिर लोग (अल्लाह कबीर) कबीर प्रभु को समर्थ नहीं मानते, आप उनकी बातों में मत आना। मेरे द्वारा दिए इस र्कुआन शरीफ के ज्ञान पर विश्वास रखकर उनके साथ ज्ञान चर्चा रूपी संघर्ष करना। उस अल्लाहु अकबिर् अर्थात् अल्लाहु अकबर (कबीर प्रभु) की भक्ति तथा प्राप्ति के विषय में मंा (र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता प्रभु) नहीं जानता। उसके विषय में किसी तत्वदर्शी संत (बाखबर) से पूछो। पवित्र मुसलमान धर्म के मार्ग दर्शकों से पूछा कि यह स्पष्ट है कि श्री र्कुआन शरीफ के ज्ञान दाता प्रभु (जिसे हजरत मुहम्मद जी अपना अल्लाह मानते थे) के अतिरिक्त कोई और समर्थ परमेश्वर है जिसने सारे संसार की रचना की है। वही पूजा के योग्य है। र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता प्रभु अपनी साधना के विषय में तो बता चुका है कि पाँच समय निमाज करो, रोजे रखो, बंग दो। फिर वही प्रभु किसी अन्य समर्थ प्रभु की पूजा के लिए कह रहा है। क्या वह बाखबर(तत्वदर्शी) संत आप किसी को मिला है ? यदि मिला होता तो यह साधना नहीं करते। इसलिए आपकी पूजा वास्तविक नहीं है। क्योंकि पूजा के योग्य पूर्ण मोक्ष दायक पाप विनाशक तो केवल कबीर नामक प्र��ु है। आप प्रभु को निराकार कहते हो। र्कुआन शरीफ में सूरत फुर्कानि स. 25 आयत 58-59 में स्पष्ट किया है कि कबीर अल्लाह (कबीर प्रभु) ने छः दिन में सृष्टि रची तथा ऊपर तख्त पर जा बैठा। इससे तो स्पष्ट हुआ कि कबीर नामक अल्लाह साकार है। क्योंकि निराकार के विषय में एक स्थान पर बैठना नहीं कहा जाता। इसी की पुष्टि ‘पवित्र बाईबल‘ उत्पत्ति विषय में कहा है कि प्रभु ने छः दिन में सृष्टि की रचना की तथा सातवंल दिन विश्राम किया अर्थात् आकाश में जा बैठा तथा प्रभु ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। इससे भी स्वसिद्ध है कि परमेश्वर का शरीर भी मनुष्य जैसा है अर्थात् प्रभु साकार है।
आपकी र्कुआन शरीफ सही है परन्तु आप न समझ कर अपना तथा अपने अनुयाईयांे का जीवन व्यर्थ कर रहे हो। आओ आप को अल्लाह कबीर सशरीर दिखाता हूँ। बहुत से श्रद्धालु श्री नानक जी के साथ पूज्य कबीर परमेश्वर की झोपड़ी के पास गए। श्री नानक जी ने कहा कि यही है वह अल्लाहु अकबर, मान जाओ मेरी बात। परन्तु भ्रमित ज्ञान में रंगे श्रद्धालुओं को विश्वास नहीं हुआ। मुल्ला, काजी तथा पीरों ने कहा कि नानक जी झूठ बोल रहे हैं, र्कुआन शरीफ में उपरोक्त विवरण कहीं नहीं लिखा। क्योंकि सर्व समाज अशिक्षित था, वही अज्ञान अंधेरा अभी तक छाया रहा, अब तत्वज्ञान रूपी सूर्य उदय हो चुका है।
गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश -
साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350)जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352)गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353)बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414)मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439)
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब(प्रभु) एक ही है तथा मेरे गुरु जी ने मुझे उपदेश नाम मन्त्रा दिया, वही नाना रूप धारण कर लेता है अर्थात् वही सतपुरुष है वही जिंदा रूप बना लेता है। वही धाणक रूप में भी विराजमान होकर आम व्यक्ति अर्थात् भक्त की भूमिका करता है। शास्त्रा विरुद्ध पूजा करके सारे जगत् को जन्म-मृत्यु व कर्मफल की आग में जलते देखकर जीवन व्यर्थ होने के डर से भाग कर मैंने गुरु जी के चरणों में शरण ली।
बलिहारी गुरु आपणे दिउहाड़ी सदवार।जिन माणस ते देवते कीए करत न लागी वार।आपीनै आप साजिओ आपीनै रचिओ नाउ।दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ।दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ।तूं जाणोइ सभसै दे लैसहि जिंद कवाउ करि आसणु डिठो चाउ। (पृ. 463)
भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा जिंदा का रूप बनाकर बेई नदी पर आए अर्थात् जिंदा कहलाए तथा स्वयं ही दो दुनियाँ ऊपर(सतलोक आदि) तथा नीचे(ब्रह्म व परब्रह्म के लोक) को रचकर ऊपर सत्यलोक में आकार में आसन पर बैठ कर चाव के साथ अपने द्वारा रची दुनियाँ को देख रहे हो तथा आप ही स्वयम्भू अर्थात् माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते, स्वयं प्रकट होते हो। यही प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मं. 8 में है कि कविर् मनीषि स्वयम्भूः परिभू व्यवधाता, भावार्थ है कि कबीर परमात्मा सर्वज्ञ है (मनीषि का अर्थ सर्वज्ञ होता है) तथा अपने आप प्रकट होता है। वह सनातन (परिभू) अर्थात् सर्वप्रथम वाला प्रभु है। वह सर्व ब्रह्मण्डों का (व्यवधाता)अर्थात् भिन्न-भिन्न सर्व लोकों का रचनहार है।
एहू जीउ बहुते जनम भरमिआ, ता सतिगुरु शबद सुणाइया।। (पृ. 465)
भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मेरा यह जीव बहुत समय से जन्म तथा मृत्यु के चक्र में भ्रमता रहा अब पूर्ण सतगुरु ने वास्तविक नाम प्रदान किया। श्री नानक जी के पूर्व जन्म - सतयुग में राजा अम्ब्रीष, त्रोतायुग में राजा जनक हुए थे और फिर नानक जी हुए तथा अन्य योनियों के जन्मों की तो गिनती ही नहीं है। इस निम्न लेख में प्रमाणित है कि कबीर साहेब तथा नानक जी की वार्ता हुई है। यह भी प्रमाण है कि राजा जनक विदेही भी श्री नानक जी थे तथा श्री सुखदेव जी भी राजा जनक का शिष्य हुआ था।
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49. स्थितप्रज्ञ आंतरिक घटना है
अर्जुन के प्रश्न के जवाब में श्रीकृष्ण कहते हैं कि, स्थितप्रज्ञ स्वयं से संतुष्ट होता है (2.55)। दिलचस्प बात यह है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन के प्रश्न के दूसरे भाग का जवाब नहीं दिया कि स्थितप्रज्ञ कैसे बोलता है, बैठता है और चलता है।
‘स्वयं के साथ संतुष्ट’ विशुद्ध रूप से एक आंतरिक घटना है और बाहरी व्यवहार के आधार पर इसे मापने का कोई तरीका नहीं है। हो सकता है, दी गई परिस्थितियों में एक अज्ञानी और एक स्थितप्रज्ञ दोनों एक ही शब्द बोल सकते हैं, एक ही तरीके से बैठ और चल सकते हैं। इस वजह से स्थितप्रज्ञ की हमारी समझ और भी जटिल हो जाती है।
श्रीकृष्ण का जीवन स्थितप्रज्ञ के जीवन का सर्वोत्तम उदाहरण है। जन्म के समय वह अपने माता-पिता से अलग हो गए थे। उन्हें माखन चोर के नाम से जाना जाता था। उनकी रासलीला, नृत्य और बांसुरी पौराणिक है, लेकिन जब उन्होंने वृंदावन छोड़ा तो वे रासलीला की तलाश में कभी वापस नहीं आए। वह जरूरत पडऩे पर लड़े, लेकिन कई बार युद्ध से बचते रहे और इसलिए उन्हें रण-छोड़-दास के रूप में जाना जाता था। उन्होंने कई चमत्कार दिखाए और वह दोस्तों के दोस्त रहे। जब विवाह करने का समय आया तो उन्होंने विवाह किया और परिवारों का भरण-पोषण किया। चोरी के झूठे आरोपों को दूर करने के लिए समंतकमणि का पता लगाया और जब गीता ज्ञान देने का समय आया तो उन्होंने दिया। वह किसी साधारण व्यक्ति की तरह मृत्यु को प्राप्त हुए।
सबसे पहले, उनके जीवन का ढांचा वर्तमान में जीना है। दूसरे, यह कठिन परिस्थितियों के बावजूद आनंद और उत्सव का जीवन है, क्योंकि वह कठिनाइओं को अनित्य मानते थे। तीसरा, जैसा कि श्लोक 2.47 में उल्लेख किया गया है, उनके लिए स्वयं के साथ संतुष्ट का अर्थ निष्क्रियता नहीं है, बल्कि यह कर्तापन की भावना और कर्मफल की उम्मीद को त्यागकर कर्म करना है।
मूल रूप से, यह अतीत के किसी बोझ या भविष्य से किसी अपेक्षा के बिना वर्तमान क्षण में जीना है। शक्ति वर्तमान क्षण में है और योजना और क्रियान्वयन सहित सब कुछ वर्तमान में होता है।
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Satsang Ishwar TV | 24-07-2024 | Episode: 2459 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
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🙏आओ जानें! आज इस Episode में हम कबीर साहेब जी और श्री गुरु नानक जी के बीच का वास्तविक संबंध तथा अन्य देवी देवताओं की स्थिति सत्य प्रमाणों के साथ!
*🙏📯बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय📯🙏*
23/7/2024
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🙏↪️ज्यादातर धर्म गुरु हमको बताते हैं कि भगवान शिव के कोई माता-पिता नहीं हैं, वे स्वयंभू हैं। जबकि हमारे सदग्रंथों में लिखा है कि शिव जी की माता श्री दुर्गा जी हैं और पिता श्री काल निरंजन ब्रह्म (ओम) भगवान हैं!, ये स्वयं भू नहीं हैं! श्रीमद् भगवत गीता जी में लिखा है कि तम गुण शिवजी जन्म और मरण में हैं! तीनों गुणों युक्त भगवान का अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी का जन्म और मरण है+ स्वयं काल भगवान ज्योति निरंजन और श्री दुर्गा देवी का भी जन्म और मरण है!
जो स्वयं जन्म मरण में हैं, उन्हें हम तारणहार समर्थ सुख दायक और मोक्ष दायक पाप भंजन भगवान नहीं कह सकते है! इससे सिद्ध हो गया कि यह भगवान हमें पार नहीं लगा सकते हैं, *कावड_यात्रा* साधना व्यर्थ है! और शास्त्र के विरुद्ध मन माना आचरण होने से पाप कर्मों को बढ़ाती है! सावन में सबसे ज्यादा जीव जंतु बाहर आते हैं जो कावड़ ले जाने वाले यात्रियों के पैरों तले आकर मर जाते हैं! कावड़ यात्रा घोर पापों को बढ़ाती है! अपने शास्त्रों के सत्य प्रमाणों से जानें!
↪️कबीर सागर सूक्ष्म वेद और संत गरीबदास जी के अमर ग्रंथ में यह स्पष्ट होता है कि इन देवताओं की पूजा साधना व्यर्थ है!
हम इन देवी और देवताओं के ऋणी हो चुके हैं और सत्य भक्ति साधना से ही हम इनका ऋण उतार सकते हैं! ऋण उतारने का वास्तविक पवित्र सत्य गायत्री मंत्र वर्तमान में केवल एकमात्र संत रामपाल जी महाराज जी दे रहे हैं! क्योंकि वे ही कबीर अवतार पूर्ण सतगुरु तत्वदर्शी संत हैं ! सभी प्रमाणों से ये सिद्ध हो चुका है!
हम आत्माओं के मूल मालिक हमारे कबीर परमेश्वर हैं, जो नानक जी को बेई नदी पर मिले थे और तीन दिन अपने सतलोक में रखा और फिर वापस शरीर में छोड़ दिया!
अपने परमपिता परमेश्वर का कभी कोई बच्चा ऋणी नहीं होता!,क्योंकि वह हमारा परमपिता है और सतलोक हमारा घर है! हमें वहां कर्म बंधन नहीं लगता!
लेकिन इस धरती पर हमें कर्म बंधन लगते हैं क्योंकि हम काल के भयंकर जाल में फंसे हैं!,
इसीलिए हम आत्माओं का जन्म और मरण हो रहा है!
84 लाख योनियों को प्राप्त हो रहे हैं!
🙏सभी आत्माओं से विनम्र प्रार्थना है! निवेदन है! आग्रह है दासी का!
कि संत रामपाल जी महाराज के सत्संगों को अवश्य श्रद्धा और ध्यानपूर्वक सुनें!
इसी में हमारे मानव जीवन की सफलता और सार्थकता है!
सत्य को अवश्य पहचानें!
सत्य की नौका में बैठकर हम पर हो सकते हैं!
और धोखे से अगर हम छेद वाली नौका को सही नौका समझ रहे हैं तो हमारा मानव जन्म व्यर्थ जा रहा है!
अपने मानव जन्म को हल्के में ना लें!
और ना ही संत रामपाल जी महाराज के सत्य ज्ञान को हल्के में लें!
संत रामपाल जी महाराज जी (कबीर जी) ने जेल धाम जाने की जो लीला की, काल को उन्होंने अपने सारे कार्य करने दिए क्योंकि परमात्मा को अपनी आत्माओं तक अपना मैसेज पहुंचाना था!
अपनी आत्माओं को उन्होंने जगाया और बताया कि संत रामपाल जी महाराज के रूप में मैं आया हुआ हूं!
अन्य शास्त्र विरुद्ध भक्ति कराने वाले पीर फ़क़ीर पंडितों और झूठे काल दूत गुरुओं से संत रामपाल जी महाराज की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि
संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र ऐसे संत हैं, जो निरंतर एक पवित्र सत्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं!
वह सत्य जो हमारे शास्त्रों में प्रमाणित रूप में लिखा है!
सभी धर्मों के धर्म ग्रंथो में लिखा है!
संत रामपाल जी महाराज जी ही ऐसे पवित्र सामाजिक सुधार कार्य कर रहे हैं जिन्हें आज तक किसी ने पूर्ण रूप से नहीं किया और ना ही सरकार कर सकी!
🙏सत्य ज्ञान दान, दहेज प्रथा पर रोक, रक्तदान, अंगदान, अन्नपूर्णा दान, सभी व्यभिचार पर रोक, नशा मुक्त समाज बनाना_ सभी पवित्र कार्य संत रामपाल जी महाराज सत्य ज्ञान के माध्यम से और सतभक्ति के माध्यम से पूर्ण कर रहे हैं! क्योंकि
स्वयं पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर संत रामपाल जी महाराज के रूप में अवतरित हैं और हम आत्माओं को जगा रहे हैं!
जागो! हे संसार वालो!
कब जागोगे!?
जब तारणहार चला जाएगा! सतलोक वापस !
ऐसा असंख्य जन्मों के बाद हम पर यह कृपा हुई है! इसे हाथ से न जाने दें!
चलो सतभक्ति करके अपने घर सतलोक वापिस चलें!
सत साहेब जी🙏 जय बंदीछोड़ जी की!
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