#वक्त का सबक
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आवाज़-ए-दोस्त
कर्बला से सबक – 5
एक मआशरे में किसी से जाने-अनजाने में गलती का हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। दिक्कत वह खड़ी हो जाती है जब गलती जान बूझकर की जाये और गलत को भी सही साबित करने की कोशिश की जाये। ये गलती किसी से इन्फरादी भी हो सकती है और इज्तिमाई भी और हाकिम और महकूम सब इसमें बराबर शामिल हो सकते है।
हमारे रब ने जो ज़िन्दगी गुज़ारने का तरीका हमे बताया है, उसमे हर ईमान वाले पर ये फर्ज़ है कि, वो अपने दायरे और इख़्तियार में, सही बात को फ़ैलाने के लिये “अम्र बिल मार्रूफ़” यानी भलाई का हुक्म करे और गलती को दुरूस्त करने के लिये, “नह्य अनिल मुन्कर” यानी बुराई से रोके। कुरआन में अल्लाह ने फरमाया,
“तुम सब से बेहतर उम्मत हो जो लोगो के लिये भेजी गयी हो कि नेक काम करने का कहते हो और बुरे कामो से मना करते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो.” (सूर: आले इमरान : आयत 110)
तारीख गवाह है कि, इस्लाम के सुनहरी दौर में अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली ने अपनी ही ज़िरह को हासिल करने के लिये तानाशाही का तर्ज़ नहीं बल्कि दारुल क़ज़ा में खुद को पेश क���या और मुस्तनद गवाह ना होने के सबब क़ाज़ी शुरअ के, अपने खिलाफ फैसले को कबूल किया।
मगर बनू उमय्या के दौर में लोगो के ज़मीर पर नकेल दाल दी गयी। भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकने के हक को छीन लिया गया। अब दौर वो था कि, ज़ुबान खोलो तो बादशाह की तारीफ़ में, वर्ना खामोश रहो।
आज भी तानाशाह हुकूमत अपनी गलती को ज़ाहिर ना होने देने के लिये, आज़ादी ए इज़हारे राय (freedom of speech) पर पाबन्दी लगा कर रखती है। मगर अपने नाना हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की आगोश के रोशन चिराग सय्यदना इमाम हुसैन ने गलत को गलत कहने से परहेज़ नहीं किया और यज़ीद को बेअत देने से इन्कार कर दिया।
जब भी कभी ज़मीर के सोदे की बात हो
डट जाओ तुम हुसैन के इंकार की तरह।
“अम्र बिल मार्रूफ़” और “नह्य अनिल मुन्कर” के फर्ज़ को अदा करने के लिये, आज़ादी ए इज़हारे राय एक ज़िन्दा ज़मीर की ज़रुरत है. ये अहम सबक हमें वाकिया ए कर्बला से मिलता है।
https://youtu.be/wZK7l13WQlk?si=fbxhCPC8EwdcyXFC
(वक्त 2 मिनट 23 सेकंड)
वस्सलाम
आवाज़-ए-दोस्त
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नवनिर्वाचित सांसद का कार्यकर्ताओं ने किया नागरिक अभिनंदनकार्यकर्ताओं के ...
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नवनिर्वाचित सांसद का कार्यकर्ताओं ने किया नागरिक अभिनंदन
कार्यकर्ताओं के मान सम्मान, स्वाभिमान की रक्षा के लिए सदैव रहूंगा तत्पर- डॉ सुरेन्द्र
कहा, रोजगार, महंगाई आदि मुद्दों को सदन में उठाकर आपकी आवाज बन कर खड़ा रहूंगा
जहानाबाद। स्थानीय अब्दुलबारी नगर भवन में शनिवार को महागठबंधन के तत्वाधान में जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र के नवनिर्वाचित सांसद डॉ सुरेन्द्र प्रसाद यादव का नागरिक अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया। नागरिक अभिनंदन में उपस्थित महागठबंधन के कार्यकर्ताओं ने सांसद को अंगवस्त्र, फूल, माला एवं बुके देकर सम्मानित किया। नवनिर्वाचित सांसद डॉ सुरेन्द्र यादव ने कहा कि यह मेरी नहीं बल्कि देव तुल्य जनता, किसानों व युवाओं, महिलाओं की जीत है। जीत का श्रेय जनता को व अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव व कार्यकर्ताओं को देना चाहता हूं। जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र की जनता एक परिवार है इनके मुद्दे को हम सदन में उठांयेगे। उन्होंने कहा कि सदन में रोजगार, महंगाई आदि मुद्दों को सदन में उठाकर आपकी आवाज बन कर खड़ा रहूंगा। जनता ने बता दिया कि सत्ता के नशे में चूर होकर जनता पर जुल्म ढाने वालों को वक्त आने पर बड़े से बड़े नेताओं को मुंह तोड़ सबक सीखा देती है। मेरे कार्यकर्ताओं ने जिस बहादुरी, वफ़ादारी व दिलेरी के साथ लोकसभा चुनाव में जी-तोड़ मेहनत करके यह सफलता दिलाई है, उसका मैं आजीवन ऋणी रहूंगा। कार्यकर्ताओं को विश्वास दिलाते हुए नव निर्वाचित सांसद ने कहा कि आप सभी का मान सम्मान, स्वाभिमान की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहूंगा। वहीं स्थानीय विधायक सुदय यादव ने कहा कि हमारे कार्यकर्ता एक बहादुर सिपाही है। इनके दम पर ही हम सभी इस बड़ी जंग को जीतने में सफल हुए हैं। मेहनत, दृढ़ इच्छा शक्ति के दम पर बड़ी सी बड़ी जंग को जीता जा सकता है। उन्होंने कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देते हुए आगे भी आने वाले चुनाव में इसी मजबूती के साथ खड़ा रहने की बात कही। अभिनंदन समारोह की अध्यक्षता राजद जिलाध्यक्ष महेश ठाकुर ने की जबकि संचालन प्रवक्ता डॉ शशिरंजन उर्फ पप्पु यादव ने की। वहीं स्वागत भाषण परमहंस राय ने दिया। इस मौके पर कुर्था विधायक बागी कुमार वर्मा, मखदुमपुर विधायक सतीश दास, पूर्व विधायक डॉ सच्चितानंद यादव, सूबेदार दास, जिप सदस्य आभा रानी, राजद महासचिव विनोद यादव, एससी /एसटी कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष डॉ अरविंद चौधरी, राजद नेता साहीन तारिक, प्रभावती मांझी, सुमन सिद्धार्थ, अनुज कुमार निराला, वार्ड पार्षद संजय यादव, कारू पंडित, डॉ अजय यादव, वीरेन्द्र राउत, वीरेन्द्र दास, ��र्मपाल यादव, सोनू राधे, मनोज यादव, बैकुण्ठ यादव, अरविंद चन्द्रवंशी, पवन चन्द्रवंशी, अम्बिका यादव, सुरेश यादव, सूर्यदेव यादव, रमेश यादव, छोटू यादव, अनिल पासवान, फतो खॉ, शकील अंसारी, माले नेता श्री निवास शर्मा, शत्रुधन पासवान, आप नेता बालेश्वर यादव, संजय यादव, महासचिव, अरमान मल्लिक, लड्डू यादव, बबलू कुमार,पवन कुमार, सुनील दास, नंदकिशोर यादव, विश्राम यादव सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने अभिनंदन समारोह को संबोधित किया।
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Today's Horoscope -
मेष (चु,चे,चो,ला,लि,लु,ले,लो,अ):-आज आप स्वार्थी लोगों से दूर रहें। शत्रु पराजित होंगे। अपने खर्चों पर नियंत्रण रखने की कोशिश करें। वाणी पर संयम रखें अन्यथा किसी को इससे ठेस पहुँच सकती है। व्यापारियों को लाभ प्राप्त होगा। जो लोग लंबे समय से किसी छोटी-मोटी बीमारियों से जूझ रहे हैं, उन्हें राहत मिलेगी। आज आप पारिवारिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। पिछले अनुभव से सबक लेकर आगे बढ़े, सफलता मिलेगी। प्रियजन से मुलाकात होगी।
वृषभ(इ,उ,ए,ओ,वा,वि,वु,वे,वो) :-पराक्रम और मान-सम्मान में वृद्धि होगी। लेकिन आपको अपनी वाणी पर संयम रखना होगा, अन्यथा बनते कार्य बिगड़ सकते हैं। व्यापारिक साझेदारों से मतभेद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। दिल से जुड़े किसी विशेष व्यक्ति से आप की बातचीत, मन में खुशी का संचार पैदा करेगी। धार्मिक स्थल की यात्रा के योग बनते हैं। आज के दिन व्यर्थ के खर्चों को टालने की कोशिश करें। आपको खानपान में भी सावधानी रखने की जरूरत होगी।
मिथुन (का,कि,कु,घ,ङ,छ, के,को,हा):-आज का दिन आपके लिए उत्तम फलदायक रहेगा। आज आपको अपने खर्चों पर नियंत्रण रखना होगा क्योंकि आज आपके परिवार के सदस्य आपसे कुछ फरमाइशें कर सकते हैं, जिनको आप सोच समझकर पूरा करें, नहीं तो भविष्य में आपको आर्थिक संकट परेशान कर सकता है। व्यापार व व्यवसाय से ��ुड़े जातकों के आज विभिन्न क्षेत्रों में साख बढ़ेगी, तो उसके लिए दिन उत्तम रहेगा। भाग्य का भरपूर साथ मिलेगा।
कर्क (हि,हु,हे,हो,डा,डि,डु,डे,डो) :- आप इस बात पर चिंतित रहेंगे कि आपके सभी के साथ संबंधों में गिरावट आ रही है। दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ रिश्ते में मजबूती आए इसका प्रयास करें। आप जॉब को लेकर भी असंतुष्टी महसूस करेंगे। कोई जटिल समस्या सुलझाने में भी आप सफल हो सकते हैं। पैसे की तंगी को लेकर चिंतित रह सकते हैं। फंसा हुआ धन आने की संभावना अभी नहीं है। फालतू के कार्यों में व्यस्त रहने से बचें। आज अगर आप लक्ष्य बनाकर चलते हैं तो काफी समय से लंबित कार्य शीघ्रता से पूरे हो सकते हैं। जिससे आप अत्यधिक शांति महसूस करेंगे।
सिंह (मा,मि,मु,मे,मो,टा,टि, टु,टे) :-आपके लिए आपका दिन बहुत अच्छा रहेगा। आज आप कोशिश करेंगे कि सभी कामों को छोड़कर घर वालों के साथ वक्त बिताया जाए। मतलबी और मौकापरस्त मित्रों का साथ आपके अंदर नकारात्मकता पैदा करेगा। मतलब परस्त लोगों को इग्नोर करने का प्रयास करें। दांपत्य जीवन कुछ उतार-चढ़ाव के बीच गुजरेगा और जो लोग किसी से प्रेम करते हैं, उन्हें अपने रिश्ते को संभालने का प्रयास करना चाहिए।
कन्या (टो,पा,पि,पु,ष,ण,ठ, पे,पो):-आज का दिन आपके लिए बहुत आत्मविश्वास से भरा हुआ रहेगा। किसी भी प्रकार का निवेश करते समय समझदारी से काम लेना होगा। धन प्राप्ति में अभी कुछ रुकावटें सामने आ सकती हैं। पुराने मित्रों से मेलजोल पुरानी यादों को ताजा करने वाला साबित होगा। आज के दिन खानपान में सावधानी रखें। मन में भावुकता रहेगी। आप जॉब को लेकर भी असंतुष्टी महसूस करेंगे। कोई जटिल समस्या सुलझाने में भी आप सफल हो सकते हैं। अगर किसी से अपने मन की बात करना चाहते है तो आज का दिन बहुत अच्छा है।
तुला (रा,रि,रु,रे,रो,ता,ति, तु,ते):- आज के दिन भाग्य आपका साथ देगा। आप अपने अंदर ऊर्जा महसूस करेंगे। शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को स्वस्थ महसूस करेंगे। आपके खास प्रियजन आपको अनदेखा कर सकते हैं। मन में भावुकता रहेगी। आप अपने स्पष्ट विचारों से अपने परिवार जनों को संतुष्ट करेंगे। आज आपको धन प्राप्ति के योग बनेंगे।
वृश्चिक (तो,ना,नि,नु,ने,नो, या,यि,यु):-आज आप अपने पसंद की वस्तु की खरीदारी करेंगे। जिससे आपके मन में खुशी और रोमांच रहेगा। छोटी-छोटी खुशियों को इकट्ठा करने की कोशिश करें। पुराने मित्रों से बातचीत करके मन को सुकून मिलेगा। किसी दूसरे की गलती का खामियाजा आप को भुगतना पड़ सकता है। महत्वपूर्ण निर्णय लेने में जल्दबाजी ना दिखाएं।
धनु (ये, यो, भा, भि, भु, धा, फा, ढा, भे):-आज आपको कोई भी फैसला लेने से पहले बहुत सोच विचार करना चाहिए, जल्दबाजी में लिया गया निर्णय भविष्य में परेशानी खड़ी करेगा। वाहन चलाते समय सचेत रहें। आपके द्वारा किसी को चोट भी लग सकती है। रिश्तों को निभाने के मामले में आप सबसे बेहतर माने जाएंगे। इस खूबी को समय के साथ और बेहतर बनाएं।
मकर (भो,जा,जि,जु,जे,जो,ख,खि,खु,खे,खो,गा,गि):-संतान को लेकर चिंतित रहेंगे, बहस और झगड़े से बचने की कोशिश करें। किसी भी प्रकार की वहम की स्थिति से बचें। आपका ध्यान पारिवारिक मामलों पर रहेगा। इससे कुछ रूटीन के काम भी प्रभावित हो जाएंगे। किसी की मदद करने का मौका मिलेगा और उससे आपको संतुष्टि मिलेगी। विवाह योग्य लोगों के संजोग बन सकते हैं। रिश्ते को पक्का करते समय जल्दबाजी ना दिखाएं।
कुम्भ(गु,गे,गो,सा,सि,सु,से,सो,दा):-आप नौकरी या व्यापार से संबंधित किसी यात्रा पर जा सकते हैं। आज आप अधिक संवेदनशील और भावनात्मक होंगे। किसी भी बात से आपका मन दुखी हो सकता है एवं आपकी भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। घर के किसी वरिष्ठ सदस्य के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। आपको धन लाभ हो सकता है लेकिन शेयर मार्केट में निवेश करने से परहेज रखें।
मीन(दि,दु,थ,झ,ञ,दे,दो,चा,चि):-जीवन के सभी क्षेत्रों के प्रति गंभीरता रहेगी। आज आपको अपने कार्य क्षेत्र में दिनभर का समय गुजरते देर नहीं लगेगी। वरिष्ठ अधिकारी एवं सहकर्मियों का सहयोग मिलता रहेगा। काफी समय से अटके हुए काम भी एकाएक ही पूरे हो जाएंगे। किसी कानूनी विवाद या मुकदमे की जीत भी आपके लिए खुशी का एक कारण होगी।
आपका दिन शुभ व मंगलमय हो। समस्या चाहे कैसी भी हो 100% समाधान प्राप्त करे:- स्पेशलिस्ट- मनचाही लव मैरिज करवाना, पति या प्रेमी को मनाना, कारोबार का न चलना, धन की प्राप्ति, पति पत्नी में अनबन और गुप्त प्रेम आदि समस्याओ का समाधान। एक फोन बदल सकता है आपकी जिन्दगी। Guru Ji T M Shastri Ji Call Now: - +91-9872539511 फीस संबंधी जानकारी के लिए #Facebook page के message box में #message करें। आप Whatsapp भी कर सकते हैं। #famousastrologer #astronews #astroworld #Astrology #Horoscope #Kundli #Jyotish #yearly #monthly #weekly #numerology #rashifal #RashiRatan #gemstone #real #onlinepuja #remedies #lovemarraigespecilist #prediction #motivation #dailyhoroscope #TopAstrologer
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✨✨✨ *संपर्क और संजोग* ✨✨✨
..........✍✍✍✍✍
एक साधु का न्यूयार्क का बड़ा पत्रकार इंटरव्यू ले रहा था
पत्रकार ने जैसा प्लान किया था वैसे ही इंटरव्यू लेना शुरू किया।
पत्रकार-सर, आपने अपने लास्ट लेक्चर में संपर्क (Contact) और संजोग (Connection) पर स्पीच दिया लेकिन यह बहुत कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इसे समझा सकते हैं??
साधु मुस्कुराये और उन्होंने उल्टा प्रश्न से कुछ अलग पत्रकार से ही पूछना शुरू कर दिया।
"आप न्यूयॉर्क से हैं?"
पत्रकार: *"Yeah..."*
सन्यासी: "आपके घर मे कौन कौन हैं?"
पत्रकार ��ो लगा कि साधु उनका सवाल टालने की कोशिश कर रहा है क्योंकि उनका सवाल बहुत व्यक्तिगत और उसके सवाल के जवाब से अलग था।
फिर भी पत्रकार बोला: मेरी "माँ अब नही हैं, पिता हैं तथा 3 भाई और एक बहिन हैं जो सब शादीशुदा हैं".
साधु ने चेहरे पे एक मुस्कान के साथ पूछा: "आप अपने पिता से बात करते हैं?"
पत्रकार चेहरे से गुस्से में लगने लगा...
साधु ने पूछा, "आपने अपने फादर से last कब बात की?"
पत्रकार ने अपना गुस्सा दबाते हुए जवाब दिया : "शायद एक महीने पहले".
साधु ने पूछा: "क्या आप भाई-बहिन अक़्सर मिलते हैं?
लास्ट आप सब कब मिले एक परिवार की तरह?"
इस सवाल पर पत्रकार के माथे पर पसीना आ गया कि इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या ये साधु?
ऐसा लगा साधु,पत्रकार का इंटरव्यू ले रहा है?
एक आह के साथ पत्रकार बोला: "क्रिस्मस पर 2 साल पहले".
साधु ने पूछा: "कितने दिन आप सब साथ में रहे?"
पत्रकार अपनी आँखों से निकले आँसुओं को पोंछते हुये बोला: "3 दिन..."
साधु: "कितना वक्त आप भाई बहनों ने अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठ कर गुजारा??
पत्रकार हैरान और शर्मिंदा दिखा और एक कागज़ पर कुछ लिखने लगा...
साधु ने पूछा: " क्या आपने पिता के साथ नाश्ता, लंच या डिनर लिया?
क्या आपने अपने पिता से पूछा के वो कैसे हैँ?
माता की मृत्यु के बाद उनका वक्त कैसे गुज़र रहा है??
पत्रकार की आँखों से आँसू छलकने लगे।
साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़ा और कहा:" शर्मिंदा, परेशान या दुखी मत होना।
मुझे खेद है अगर मैंने आपको अनजाने में चोट पहुंचाई है ... लेकिन ये ही आपके सवाल का जवाब है
*"संपर्क और संजोग"*
*(Contact and Connection)*
आप अपने पिता के सिर्फ संपर्क (Contact) में हैं पर आपका उनसे कोई 'Connection' (संजोग) नहीं है. *You are not connected to him..* आप अपने father से संपर्क में हैं जुड़े नहीं हैं।
*Connection हमेशा आत्मा से आत्मा का होता है। heart से heart होता है...*
एक साथ बैठना, भोजन साझा करना और एक दूसरे की देखभाल करना, स्पर्श करना, हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना, कुछ समय एक साथ बिताना ...
आप अपने पिता, भाई और बहनों के संपर्क ('Contact') में हैं लेकिन आपका आपस में कोई'संजोग'(Connection) नहीं है".
पत्रकार ने आँखें पोंछी और बोला: *"मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय सबक सिखाने के लिए धन्यवाद".*
वो तब का न्यूयार्क था पर आज ये भारत की भी सच्चाई हो चली है, at home और society में सबके हज़ारो संपर्क (contacts) हैं पर कोई connection नही. कोई विचार-विमर्श नहीं... हर आदमी अपनी ��कली दुनिया में खोया हुआ है।
👉 *हमें केवल "संपर्क" नहीं बनाए रखना चाहिए अपितु "कनेक्टेड" भी रहना चाहिये। हमें हमारे सभी प्रियजनों की देखभाल करना, उनके सुख-दुख को साझा करना और साथ में समय व्यतीत करना चाहिए।*
*वो साधु और कोई नहीं "पूज्य स्वामी विवेकानंद" थे।*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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देश पर सर्वाधिक समय शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी Rahul Gandhi ने एक बार फिर विदेशी की धरती पर होहल्ला मचाते हुए भारत की छवि को धूमिल करने का घृणित एवं गैरजिम्मेदाराना काम किया है। गांधी ने लंदन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पेगासस को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। वह देश में इस तरह की बातें करते ही रहे हैं कि मोदी सरकार के चलते भारतीय लोकतंत्र खतरे में है और सरकार से असहमत लोगों के साथ विपक्ष की आवाज दबाई जा रही है। वह वहां यह भी कह गए कि भारत की सभी संस्थाओं और यहां तक कि न्यायालयों पर भी सरकार का कब्जा है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनके सरकार चलाने के तौर-तरीकों की तीव्र आलोचना की, जो महज खिसियाहट भरी अभद्र राजनीति का ही परिचायक नहीं था, बल्कि इसका भी प्रमाण था कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के लिए कोई किस हद तक जा सकता है, देश के गौरव को दांव पर लगा सकता है। राहुल गांधी ने जिस तरह प्रधानमंत्री के खिलाफ अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया, क्या वह देश के सर्वोच्च राजनीतिक दल की गैर जिम्मेदाराना राजनीति का परिचायक नहीं है? राहुल गांधी ने यह बात ठीक उस वक्त कही, जब कुछ ही घंटे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने दो ऐसे फैसले दिए थे, जो सरकार के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करते हुए भी देखे गए। एक फैसले के तहत उसने निर्वाचन आयोग के आयुक्तों की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को भागीदार बनाया और दूसरे के तहत अदाणी मामले की जांच करने के लिए अपने हिसाब से एक समिति गठित की। सबसे हैरानी एवं दुर्भाग्य की बात यह रही कि राहुल गांधी ने पेगासस मामले को नए सिरे से उछाला और अपनी जासूसी का आरोप लगाते हुए यह हास्यास्पद दावा भी किया कि खुद खुफिया अधिकारियों ने उनसे कहा था कि उनका फोन रिकॉर्ड किया जा रहा है और उन्हें संभल कर बात करनी चाहिए। स्पष्ट है कि उन्होंने यह बताना आवश्यक नहीं समझा कि सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने इस मामले की जांच की थी और उसने यह पाया था कि उसके पास जांच के लिए आए फोन में से किसी में भी जासूसी उपकरण नहीं मिला। लगता है पेगासस राहुल के मोबाइल में नहीं, उनके दिमाग में है। राहुल गांधी अक्सर भाजपा सरकार एवं नरेन्द्र मोदी के विरोध में स्तरहीन एवं तथ्यहीन आलोचना, छिद्रान्वेशन करते रहे हैं। ऐसा लगता है उनकी चेतना में स्वस्थ समालोचना की बजाय विरोध की चेतना मुखर रहती है। राहुल गांधी न सही, कम से कम उनके सहयोगियों और सलाहकारों को यह पता होना चाहिए कि उनकी घिसी-पिटी बातें और यह राग लोगों को प्रभावित नहीं कर रहा बल्कि देश को बर्बाद कर रहा है। विदेश की धरती पर ऐसी सारहीन, तथ्यहीन एवं भ्रामक आलोचना से दुनिया में भारत की छवि को भारी नुकसान पहुंचता है। राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता एवं नासमझी के अनेक किस्से हैं, अक्सर वे खुद को सही साबित करने के लिए छल का सहारा लेने में लगे रहते हैं। अफसोस केवल यह नहीं कि बिना किसी सुबूत राहुल गांधी झूठ का पहाड़ खड़ा करने में लगे हुए हैं, बल्कि इस पर भी है कि अनेक जिम्मेदार राजनेताओं ने उनकी झूठ की राजनीति में सहभागी बनना बेहतर समझा। यही कारण है कि कांग्रेस एवं उसके अनर्गल प्रलाप में सहभागी बनने वाले राजनीतिक दल लगातार हार का मुंह देख रहे हैं, फिर भी कोई सबक लेने एवं सुधरने का प्रयास नहीं करते। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में कांग्रेस को जो पराजय मिली, वह उसके खोखले चिंतन, अपरिपक्व राजनीति, तथ्यहीन बयानों और दृष्टिहीनता का ही नतीजा है। राहुल गांधी अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए किस तरह विदेश में देश को नीचा दिखाने पर तुले हुए हैं, इसका पता इससे चलता है कि उन्होंने यह कह दिया कि मोदी सरकार सिखों, ईसाइयों और मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक समझती है। यह एक किस्म की शरारत ही नहीं, देश की एकता को खंडित करने की कोशिश भी है। यह देश को तोड़ने एवं आपसी सौहार्द को भंग करने की कुचेष्ठा है। अच्छा होता कि कोई उन्हें यह बताता कि भाजपा ने ईसाई बहुल नगालैंड में केवल 20 सीटों पर चुनाव लड़कर 12 सीटों पर जीत हासिल की है। किसी को राहुल गांधी को यह भी बताना चाहिए कि वह भारत विरोधी एवं भारत के दुश्मन चीन का बखान करके भारत के जख्मों पर नमक छिड़कने का ही काम कर रहे हैं। यह एक तरह की सस्ती, स्वार्थी और एक तरह से देशघाती राजनीति है। राहुल गांधी भले ही नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार रूपी साफ-सुधरे ‘आइने’ पर धूल जमी होने का ख्वाब देख रहे हों मगर असलियत में उनेके ‘चेहरे’ पर ही धूल लगी हुई है जिसे साफ करके ‘आइने’ में अपना चेहरा देखना होगा। क्योंकि दुनियाभर के राजनेता एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति भारत एवं नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा कर रहे हैं, जी-20 के सम्मेलन में भाग लेते हुए दिल्ली में एक दिन
पहले ही इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दुनियाभर में लोग प्यार करते हैं। इस�� तरह माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के संस्थापक बिल गेट्स ने भी पिछले दिनों एक लेख लिखकर बताया कि भारत विश्व को विकास एवं शांति की राह दिखा रहा है। ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, रूस, जापान और इजरायल सहित अनेक देशों के प्रमुख राजनेता भारत के प्रयासों की सराहना कर चुके हैं। ऐसे में जब राहुल गांधी विदेश में जाकर प्रधानमंत्री मोदी, उनकी सरकार और अन्य संस्थाओं के संबंध में नकारात्मक टिप्पणी करते हैं, तब उनके बारे में क्या ही छवि बनती होगी? यह भी ध्यान में आता है कि राहुल गांधी भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर भी भरोसा नहीं करते हैं अपितु उन्हें भी नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। एक विदेशी संस्थान में यह कहना कि भारत में मीडिया और न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं रह गए हैं, यह उचित नहीं ठहराया जा सकता। राहुल गांधी बताएं कि वे किस आधार पर यह कह रहे थे? क्या न्यायपालिका ने यह कहा है कि वह स्वतंत्र नहीं है? या फिर मीडिया संस्थान और न्यायपालिका से लेकर चुनाव आयोग एवं अन्य संवैधानिक संस्थाएं भी कांग्रेस के झूठे आरोपों और वितंडावाद से परेशान हो चुकी हैं। जब राहुल गांधी राफेल सौदे में गड़बड़ी को इंगित करते तब फिर वे क्या हासिल करने के लिए एक जरूरी रक्षा सौदे को संदिग्ध बता रहे थे? आखिर इससे उन्हें अपयश के अलावा और क्या मिला? उनकी नादानी की वजह से भारत की छवि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी धुंधलाती रही, यह बड़ा अपराध माना गया जो अक्षम्य भी था। भले सर्वोच्च अदालत इसके लिये राहुल को यह कहकर कि भविष्य में वह बहुत सोच-विचार कर बोलें और विषय की गंभीरता को समझ कर बोलें, माफ कर दिया। जाहिर है कि राफेल पर राहुल गांधी ने उग्रता से भी ऊपर आक्रामक शैली में गैर-जिम्मेदाराना अंदाज में सीधे प्रधानमन्त्री की ईमानदारी और विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर किये थे फिर भी हासिल कुछ नहीं हुआ था। इसलिये कांग्रेस को यह स्वीकार करना चाहिए कि देश की जनता भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली बातों को सहन करने के लिए तैयार नहीं है। यदि कोई नेता विदेशी धरती पर भारत का मान बढ़ाने की जगह उसकी छवि को बिगाड़ने का प्रयास करेगा, तो उसका खामियाजा उसकी समूची पार्टी को उठाना पड़ेगा। कांग्रेस के नेता यह भी समझने की कोशिश करें कि प्रधानमंत्री मोदी, भारत सरकार और संवैधानिक संस्थाओं पर प्रतिकूल टिप्पणी करने से जनता का विश्वास नहीं जीता जा सकता। विडम्बनापूर्ण है कि राहुल गांधी जैसे राजनेताओं की आंखों में किरणें आंज दी जाएं तो भी वे यथार्थ को नहीं देख सकते। क्योंकि उन्हें उजालों के नाम से ही एलर्जी है। तरस आता है राहुल जैसे राजनेताओं की बु��्धि पर, जो सूरज के उजाले पर कालिख पोतने का असफल प्रयास करते हैं, आकाश में पैबन्द लगाना चाहते हैं और सछिद्र नाव पर सवार होकर राजनीतिक सागर की यात्रा करना चाहते हैं।
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● किसी के पास खाने के लिए..... एक वक्त की रोटी नहीं है.....
●गरीबदूरतकचलताहै.....खानाखानेकेलिए......।
● अमीर मीलों चलता है..... खाना पचाने के लिए......।
● किसी के पास खाने के लिए..... वक्त ही नहीं है.....।
● कोई लाचार है.... इसलिए बीमार है....।
● कोई बीमार है.... इसलिए लाचार है....।
● कोई अपनों के लिए.... रोटी छोड़ ��ेता है...।
● कोई रोटी के लिए..... अपनों को छोड़ देते है....।
● ये दुनिया भी कितनी निराळी है। कभी वक्त मिले तो सोचना....
● कभी छोटी सी चोट लगने पर रोते थे.... आज दिल टूट जाने पर भी संभल जाते है।
● पहले हम दोस्तों के साथ रहते थे... आज दोस्तों की यादों में रहते है...।
● पहले लड़ना मनाना रोज का काम था.... आज एक बार लड़ते है, तो रिश्ते खो जाते है।
● सच में जिन्दगी ने बहुत कुछ सीखा दिया, जाने कब हमकों इतना बड़ा बना दिया।जिंदगी बहुत कम है, प्यार से जियो
● "जो भाग्य में है , वह भाग कर आएगा,
● जो नहीं है, वह आकर भी भाग जाएगा...!"
● यहाँ सब कुछ बिकता है, रहना जरा संभाल के दोस्तों, बेचने वाले हवा भी बेच देते है, गुब्बारों में भरके ।
● सच बिकता है, झूट बिकता है, बिकती है हर कहानी, तीनों लोक में फेला है, फिर भी बिकता है बोतल में पानी ।
● कभी फूलों की तरह मत जीना, जिस दिन खिलोगे, टूट कर बिखर्र जाओगे,
● जीना है तो पत्थर की तरह जियो; जिस दिन तराशे गए, "भगवान" बन जाओगे....!!
● "रिश्ता" दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं,
● "नाराजगी" शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं !
● सड़क कितनी भी साफ हो "धुल" तो हो ही जाती है,
● इंसान कितना भी अच्छा हो "भूल" तो हो ही जाती है !!!
● आइना और परछाई के जैसे मित्र रखो क्योंकि
● आइना कभी झूठ नहीं बोलता और परछाई कभी साथ नहीं छोङती......
● खाने में कोई 'ज़हर' घोल दे तो एक बार उसका 'इलाज' है..
● लेकिन 'कान' में कोई 'ज़हर' घोल दे तो, उसका कोई 'इलाज' नहीं है।
● "मैं अपनी 'ज़िंदगी' में हर किसी को'अहमियत' देता हूँ...क्योंकि
● जो 'अच्छे' होंगे वो 'साथ' देंगे...
● और जो 'बुरे' होंगे वो 'सबक' देंगे...!!
● अगर लोग केवल जरुरत पर ही आपको याद करते है तो
● बुरा मत मानिये बल्कि गर्व कीजिये क्योंकि "
● मोमबत्ती की याद तभी आती है, जब अंधकार होता है।"
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
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वक्त का सबक
आंखों में पानी होठों पर दुआ ईश्वर की मर्जी से सब है हुआ कोई ना दोषी है खुद का कसूर जिंदगी में सब कुछ ना मिलता हुजूर । हर लम्हें जिंदगी के सबक हैं भाई इनमें ही निहित है जीवन की सच्चाई वक्त हाथों से ना बचा है कोई हाथों की लकीरों का मिटना ना होई ।।
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Shruti Haasan ने फैंस को बताया अपना सबसे बड़ा सबक, EGO को लेकर कही ये बात
Shruti Haasan ने फैंस को बताया अपना सबसे बड़ा सबक, EGO को लेकर कही ये बात
तमिल-तेलुगू से लेकर बॉलीवुड फिल्मों में अपने अभिनय से करोड़ों लोगों का दिल जीतने वाली अभिनेत्री श्रुति हासन (Shruti Hassan) काफी लंबे वक्त बाद सुर्खियों में शुमार हुई हैं. अभिनेत्री को आखिरी बार विजय सेतुपति (Vijay Sethupathi) के साथ ‘लाबम’ (laabam) में देखा गया था और अब वे जल्द ही अभिनेत्री सुपरस्टार प्रभास (Prabhas) संग सालार (salaar) में नजर आएंगी. कन्नड़-तेलुगु एक्शन थ्रिलर फिल्म का निर्देशन…
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Best Powerful Motivational Speech : अजीब तरह से गुजर रही है जिंदगी, सोचा कुछ, किया कुछ, हुआ कुछ और मिला कुछ। वक्त के साथ-साथ बहुत कुछ बदल जाता है लोग भी, रास्ते भी, एहसास भी और कभी कभी हम खुद भी। इस छोटी सी जिंदगी में बहुत बड़ा सबक मिला जनाब, रिश्ते सभी से रखो पर उम्मीद कभी किसी से मत रखना, क्योंकि धोखे ऐसे ही नहीं मिलते लोगों का भला भी करना पड़ता है ।
और अधिक पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें - Click Here
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नए साल पर जलते-बंटते मुल्क में मीडिया-रुदन / अभिषेक श्रीवास्तव
पिछले ही हफ्ते ओलिंपिक खेलों में प्रवेश के लिए मुक्केबाज़ी का ट्रायल हुआ था. मशहूर मुक्केबाज़ मेरी कॉम ने निख़त ज़रीन नाम की युवा मुक्केबाज़ को हरा दिया. इस घटना से पहले और बाद में क्या-क्या हुआ, वह दूर की बात है. मुक्केबाज़ी के इस मैच और उसके नतीजे की ख़बर ही अपने आप में जिस रूप में सामने आयी, वह मुझे काम की लगी. किसी ने ट्विटर पर किसी प्रका��न में छपी ख़बर की हेडिंग का स्क्रीनशॉट लगाकर उस पर सवाल उठाया था. हेडिंग में लिखा थाः “इंडियाज़ मेरी कॉम बीट्स निखत...” ट्विटर यूज़र ने मेरी कॉम के नाम से पहले “इंडिया” लगाने पर आपत्ति जतायी थी और पूछा था कि इसके पीछे की मंशा क्या है.
विचार में लिपटी घटना
इधर बीच लंबे समय से एसा हो रहा है कि पहली बार जब कोई घटना नज़र के सामने आ रही है, चाहे किसी भी प्लेटफॉर्म पर, तो वह विशुद्ध घटना की तरह नहीं आ रही, एक ओपिनियन यानी टिप्पणी/राय के रूप में आ रही है. वास्तव में, मूल घटना ओपिनियन के साथ नत्थी मिलती है और ओपिनियन असल में एक पक्ष होता है, घटना के समर्थन में या विरोध में. ऐसे में मूल घटना को जानने के लिए काफी पीछे जाना पड़ता है. अगर आप दैनंदिन की घटनाओं से रीयल टाइम में अपडेट नहीं हैं, तो बहुत मुमकिन है कि सबसे पहले सूचना के रूप में उक्त घटना आपके पास न पहुंचे बल्कि आपके पास पहुंचने तक उक्त घटना पर समाज में खिंच चुके पालों के हिसाब से एक धारणा, एक ओपिनियन पहुंचे. जो धारणा/राय/नज़रिया/ओपिनियन आप तक पहुंचेगी, वह ज़ाहिर है आपकी सामाजिक अवस्थिति पर निर्भर करेगा.
मुक्केबाज़ी वाली ख़बर लिखते वक्त जिसने मेरी कॉम के नाम के आगे “इंडियाज़” लगाया होगा, उसके दिमाग में एक विभाजन काम कर रहा होगा. जिसने इसे पढ़ा और टिप्पणी की, उसके दिमाग में भी एक विभाजन काम कर रहा था, कि वह बाल की खाल को पकड़ सका. गौर से देखें तो हम आपस में रोजमर्रा जो बातचीत करते हैं, संवाद करते हैं, वाक्य बोलते हैं, लिखते हैं, सोचते हैं, सब कुछ सतह पर या सतह के नीचे विभाजनों के खांचे में ही शक्ल लेता है. हम अपने विभाजनों को सहज पकड़ नहीं पाते. दूसरे के विभाजन हमें साफ़ दिखते हैं. यह इस पर निर्भर करता है कि हमारा संदर्भ क्या है, सामाजिक स्थिति क्या है.
मसलन, आप शहर में हैं या गांव/कस्बे में, इससे आप तक पहुंचने वाली राय तय होगी. आप किस माध्यम से सूचना का उपभोग करते हैं, वह आप तक पहुंचने वाली राय को उतना तय नहीं करेगा बल्कि किन्हीं भी माध्यमों में आप कैसे समूहों से जुड़े हैं, यह आपकी खुराक़ को तय करेगा. आपकी पढ़ाई-लिखाई के स्तर से इसका खास लेना−देना नहीं है, हां आपकी जागरूकता और संपन्नता बेशक यह तय करेगी कि आपके पास जो सूचना विचारों में लिपट कर आ रही है उसे आप कैसे ग्रहण करते हैं.
नए-पुराने सामाजिक पाले
मोटे तौर पर अगर हमें अपने समाज के भीतर रेडीमेड पाले देखने हों, जो सूचना की प्राप्ति को प्रभावित करते हैं त�� इन्हें गिनवाना बहुत मुश्किल नहीः
− सामाजिक तबका (उच्च तबका बनाम कामगार)
− जाति (उच्च बनाम निम्न)
− लैंगिकता (पुरुष वर्चस्व बनाम समान अधिकार)
− धर्म (हिंदू बनाम मुसलमान/अन्य)
− भाषा (हिंदी बनाम अन्य, अंग्रेज़ी के साथ)
− क्षेत्र (राज्य बनाम राज्य)
ये सब पुराने विभाजन हैं. हमारे समाज में बरसों से कायम हैं. अंग्रेज़ी जानने वाले शहरी लोगों के जेहन में कुछ नए विभाजन भी काम करते हैं, मसलन विचार के इलाके में वाम बनाम दक्षिण, धार्मिकता के क्षेत्र में सेकुलर बनाम साम्प्रदायिक, आधुनिक बनाम पिछड़ा, इत्यादि. ज्यादा पढ़ा लिखा आदमी ज्यादा महीन खाता है, तो वह कहीं ज्यादा बारीक विभाजक कोटियां खोजेगा. ठीक वैसे ही जैसे आंख का डॉक्टर अगर और आधुनिक शिक्षा लेना चाहे, तो वह एक ही आंख का विशेषज्ञ बन सकेगा, दाईं या बाईं. आजकल तो चलने वाले, दौड़ने वाले, जॉग करने वाले, खेलने वाले और ट्रेकिंग करने वाले जूते भी अलग-अलग आते हैं. तर्ज़ ये कि चीज़ें जितना बढ़ती हैं, उतना ही बंटती जाती हैं.
समस्या तब पैदा होती है जब हम चीज़ों को केवल दो खांचे में बांट कर देखना शुरू करते हैं. या तो ये या फिर वो. दिस ऑर दैट. हम या वे. इसे संक्षिप्त में बाइनरी कहते हैं, मने आपके पास दो ही विकल्प हैं− हां कहिए या नहीं. जैसे आप टीवी स्टूडियो में अर्णब गोस्वामी के सामने बैठे हों और आपसे कहा जा रहा हो कि देश आज रात जानना चाहता है कि आप फलाने के साथ हैं या खिलाफ़. आपके पास तीसरा रास्ता नहीं है. बीच की ज़मीन छिन चुकी है.
तटस्थता के आपराधीकरण के नाम पर इस बाइनरी को पुष्ट करने का काम बहुत पहले से चला आ रहा है. आज, अपने देश में संचार और संवाद के इलाके में जब समूचा विमर्श ही गोदी बनाम अगोदी, भक्त बनाम द्रोही की दुई में तौला जा रहा है तो जिंदगी का कोई भी पहलू इससे अछूता नहीं रह गया है. यह समझ पाना उतना मुश्किल नहीं है कि इस विभाजन को सबसे पहले पैदा किसने किया- राजनीति ने, मीडिया ने या समाज ने. हम जानते हैं कि हमारे समाज में विभाजनकारी कोटियां पहले से थीं, इन्हें बस पर्याप्त हवा दी गयी है. समझने वाली बात ये है कि यह विभाजन अब ध्रुवीकरण की जिस सीमा तक पहुंच चुका है, वहां से आगे की तस्वीर क्या होनी है.
��्रुवीकरण के अपराधी?
मनु जोसेफ ने बीते लोकसभा चुनावों के बीच द मिन्ट में एक पीस लिखकर समझाने की कोशिश की थी कि ध्रुवीकरण (पोलराइज़ेशन) उतनी बुरी चीज़ नहीं है. इस पीस को स्वराज मैगज़ीन के संपादक आर. जगन्नाथन ने बड़े उत्साह से ट्वीट करते हुए कहा था, “मनु का हर लेख शाश्वत मूल्य वाला है.” लेख को समझने के लिए बहुत नीचे जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती यदि इस ट्वीटर के थ्रेड को आप देखें. मधुमिता मजूमदार प्रतिक्रिया में लिखती हैं, “मनु यह मानकर लिखते हैं कि वे हर मुद्दे पर सही हैं. ध्रुवीकरण पर यह लेख अतिसरलीकृत है. और जग्गी को इसमें मूल्य दिख रहा है, यही अपने आप में मेरे बिंदु की पुष्टि करता है.”
ध्रुवीकरण बुरा नहीं है, मनु जोसेफ ने यह लिखकर अपने पाठकों में ध्रुवीकरण पैदा कर दिया. इनकी दलीलों पर बेशक बात हो सकती है, लेकिन समूचे लेख में हमारे तात्कालिक काम का एक वाक्य है जिसे मैं बेशक उद्धृत करना चाहूंगा. मनु लिखते है- “राजनीति हमें यह सबक सिखलाती है कि व्यवस्था में जब कोई ध्रुवीकरण नहीं होता, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि सत्य जीत गया है, इसका मतलब बस इतना होता है कि एक वर्ग की जीत हुई है.”
सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण के संदर्भ में भारतीय मीडिया की भावी भूमिका पर आने के लिए इसे थोड़ा समझना ज़रूरी है. 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए. बीस फीसद मुसलमानों की आबादी वाले इस राज्य में भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित जनादेश मिला, बावजूद इसके कि उसने एक भी मुसलमान उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. जब बहस मुख्यमंत्री के चेहरे पर आयी, तो योगी आदित्यनाथ के नाम पर दो खेमे बन गए. काफी खींचतान के बाद मुख्यमंत्री योगी ही बने, जिसके परिणाम आज हम साफ़ देख पा रहे हैं. इसी बीच बहस में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने इंडिया टुडे से बातचीत में योगी की (कम्यूनल) भाषा का बचाव करते हुए एक बात कही थी-
"अस्सी के दशक से जमीनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलनों से ऐसे लोगों का उभार हुआ जो अतीत के उन अंग्रेजी शिक्षित राजनेताओं की अभिजात्य व सूक्ष्म शैली से मेल नहीं खाते थे जिन्हें वास्तविकता से ज्यादा अपनी छवि की चिंता हुआ करती थी. नए दौर के नेता समुदाय से निकले विमर्श को आगे बढ़ाते हैं इसलिए उनकी भाषा को प्रत्यक्षतः नहीं लिया जाना चाहिए. इसे समझे बगैर आप न योगी को समझ पाएंगे, न लालू (प्रसाद यादव) को और न ही ममता (बनर्जी) को."
राकेश सिन्हा और मनु जोसेफ क्या एक ही बात कह रहे हैं? मनु ध्रुवीकरण की गैर−मौजूदगी वाली स्थिति में जिस वर्ग की जीत बता रहे हैं, क्या यह वही वर्ग है जो राकेश सिन्हा के यहां अंग्रेजी शिक्षित राजनेताओं के रूप में आता है, जिसे वास्तविकता से ज्यादा अपनी छवि की चिंता हुआ करती थी?
उसी लेख से मनु जोसेफ का एक शुरुआती वाक्य देखे-
“वास्तव में, यह तथ्य कि एक समाज ध्रुवीकृत है, इस बात का संकेत है कि एक वर्ग के लोगों का मुख्यधारा के विमर्शों पर एकाधिकार नहीं रह गया है. ध्रुवीकरण को बदनाम करने का काम वे लोग करते हैं जिनका विचारों के प्रसार से नियंत्रण खत्म हो चुका है.”
राकेश सिन्हा “समुदाय से निकले विमर्श को आगे” बढाने वाले जिन “नए दौर के नेताओं” का ज़िक्र कर रहे हैं, मनु जोसेफ के मुताबिक क्या इन्होंने ही “मुख्यधारा के विमर्शों पर एकाधिकार” को तोड़ने का काम किया है? इस तराजू में ममता बनर्जी, योगी और लालू प्रसाद यादव को यदि एक साथ सिन्हा की तरह हम तौल दें तो फिर साम्प्रदायिकता के मसले पर ठीक उलटे ध्रुव पर खड़े लालू प्रसाद यादव और योगी को कैसे अलगाएंगे? फिर तो हमें काफी पीछे जाकर नए सिरे से यह तय करना होगा कि ध्रुवीकरण की शुरुआत लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से हुई थी या लालू प्रसाद यादव द्वारा उसे रोके जाने के कृत्य से?
फिर तो हमें आशुतोष वार्ष्णेय की इस थियरी पर भी ध्यान देना होगा कि अर्थव्यवस्था को निजीकरण और उदारीकरण के लिए खोले जाने पर नरसिंहराव के दौर में संसद में चली शुरुआती बहसों में भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टियों का पक्ष एक था और कांग्रेस अल्पमत में थी, इसके बावजूद कम्युनिस्ट पार्टियों ने साम्प्रदायिकता के मुद्दे को आर्थिक मुद्दे पर तरजीह देते हुए मनमोहन सिंह के प्रोजेक्ट को चुपचाप हामी दे दी. यह तो बहुत बाद में जाकर लोगों ने समझा कि उदारवाद और साम्प्रदायिकता एक ही झोले में साथ आए थे, वामपंथियों को ही साम्प्रदायिकता का मोतियाबिंद हुआ पड़ा था.
फिर क्या बुरा है कि सईद नकवी की पुस्तक (बींग दि अदर) को ही प्रस्थान बिंदु मानकर कांग्रेस को ध्रुवीकरण का शुरुआती अपराधी मान लिया जाए? (आखिर वे भी तो इतना मानते ही हैं कि भारत को दो ऐसी अतियों में तब्दील कर दिया गया है जो परस्पर द्वंद्व में हैं!) और इसके बरअक्स भारतीय जनता पार्टी सहित तमाम क्षेत्रीय दलों, उनसे जुड़े हित समूहों, जाति समूहों, समुदायों, पिछड़ी चेतनाओं और “समुदायों से निकले विमर्श को आगे बढ़ाने वाले नए दौर के नेताओं” (राकेश सिन्हा) को द्वंद्व का दूसरा सिरा मानते हुए इन्हें अपने अंतर्विरोधों के भरोसे छोड़ दिया जाए? ब्राह्मण पहले तय करे कि वह हिंदू है या ��्राह्मण. पिछड़ा, दलित और आदिवासी खुद तय करे कि उसे अपनी पहचान के साथ जीने में फायदा है या हिंदू पहचान के साथ. विभाजन के बाद भारत में रह गए मुसलमानों को चूंकि यह अहसास होने में बहुत वक्त नहीं लगा था कि यहां उनके साथ दोयम दरजे का बरताव हो रहा है (नक़वी, बींग दि अदर), लिहाजा उन्हें तब तक कुछ नहीं तय करने की ज़रूरत है जब तक कि उन्हें जबरन हिंदू न बनाया जाए.
अब्दुल्ला दीवाने की चिंता
मीडिया इस समूचे रायते में दीवाने अब्दुल्ला की तरह होश खोया नज़र आता है. पत्रकारिता की बॉटमलाइन यह है कि मीडिया मालिकों को कुल मिलाकर अपनी दुकान बचाए रखने और मीडियाकर्मियों को अपना वेतन और नौकरी बचाए रखने की चिंता है. इसीलिए ध्रुवीकरण के अपराध का जो हिस्सा मीडिया और इसके कर्मियों के सिर आता है, मेरे खयाल में यह न केवल ध्रुवीकरण को समझने में आने वाली जटिलताओं से बचने के लिए किया जाने वाला सरलीकरण है बल्कि गलत लीक भी है जो हमें कहीं नहीं पहुंचाती.
यह सच है कि मीडिया बांटता है, इसके स्थापित चेहरे विभाजनकारी हैं, लेकिन ध्रुवीकरण अपनी पूरी जटिलता में सबसे आसान तरीके से मीडिया में ही पकड़ में आता है यह भी एक तथ्य है. जो दिखता है, वह साफ़ पकड़ा जाता है. जो नहीं दिखता, या कम दिखता है, वह ज़रूरी नहीं कि ज्यादा ख़तरनाक न हो. इंगलहार्ट और नोरिस ने 2016 के अपने एक शोध में बताया है कि वंचित तबकों के बीच बढ़ती आर्थिक असुरक्षा उनके भीतर जिस असंतोष को बढ़ाती है, उसी के चलते वे विभाजनकारी नेताओं के लोकरंजक मुहावरों में फंसते जाते हैं. मीडिया इसमें केवल मध्यस्थ का काम करता है.
एक ध्रुवीकृत समाज में मीडिया से कहीं ज्यादा यह प्रक्रिया आपसी संवादों संपर्कों से कारगर होती है. विभाजित समाज में एक व्यक्ति अपने जैसा सोचने वाला पार्टनर तलाश करता है. इससे उसके पहले से बने मूल्य और धारणाएं और मजबूत होती जाती हैं. पी. साईनाथ इस परिघटना को “पीएलयू” (पीपुल लाइक असद) का नाम देते हैं. इसी संदर्भ में एक शोध बताता है कि दूसरे खयालों के व्यक्तियों के साथ संवाद करने पर अपनी धारणा और दूसरे की धारणा के बीच दूरी और ज्यादा बन जाती है. यही वजह है कि ज़ी न्यूज़ देखने वाला दर्शक एनडीटीवी देखकर ज़ी न्यूज़ के प्रति और समर्पित हो जाता है और एनडीटीवी के दर्शक के साथ भी बिल्कुल यही होता है जब वह ज़ी न्यूज़ देखता है.
यह समस्या केवल मीडिया के दायरे में नहीं समझी जा सकती है. मीडिया का संकट अकेले मीडिया का नहीं, समाज और संस्कृति का संकट है बल्कि उससे कहीं ज्यादा इंसानी मनोविज्ञान का संकट है. इसे बहुत बेहतर तरीके से हू��ो मर्सियर और डान स्पर्बर ने अपनी पुस्तक “दि एनिग्मा ऑफ रीज़न” में समझाया है. यह पुस्तक विमर्श के क्षेत्र में उतनी चर्चित नहीं हो सकी, लेकिन इंसानी नस्ल के सोचने समझने की क्षमता और सही या गलत के बीच फैसला करने की “रेशनलिटी” के संदर्भ में इस किताब ने बिलकुल नयी प्रस्थापना दी है जिस पर मुकम्मल बात होना बाकी है.
यदि हम लेखकद्वय को मानें, तो चार सौ पन्ने की किताब का कुल निचोड़ यह निकलता है कि मनुष्य की कुल तर्कक्षमता और विवेक का काम उसकी पूर्वधारणाओं को पुष्ट करना है. वे कहते हैं कि मनुष्य की रेशनलिटी सही या गलत का फैसला करने के लिए नहीं है बल्कि जिसे सही मानत��� है उसे सही ठहराने के लिए है. वे सवाल उठाते हैं कि यदि धरती पर मनुष्य ही सोचने समझने वाला तर्कशील प्राणी है तो फिर वह अतार्किक हरकतें और बातें क्यों करता है? इसके बाद की विवेचना को समझने के लिए यह किताब पढ़ी जानी चाहिए, लेकिन मूल बात वही है कि मीडिया का संकट दरअसल हमारी सांस्कृतिकता और मनुष्यता का संकट है जिसमें हमारा अतीत, हमारे सामुदायिक अहसास, पृष्ठभूमि, आर्थिक हालात, सब कुछ एक साथ काम करते हैं.
चूंकि मीडिया की गति खुद मीडिया नहीं तय करता, उसकी डोर अपने मालिकान से भी ज्यादा राजनीति और समाज के हाथों में है इसलिए आने वाले दिनों में यह मीडिया समाज की गति के हिसाब से ही अपनी भूमिका निभाएगा. जाहिर है यह भूमिका समुदायों से निकलने वाली आवाजें तय करेंगी. वे वास्तविक समुदाय हों या कल्पित. इसे ऐसे समझें कि अगर राजनीति समुदाय विशेष के किसी कल्पित भविष्य की बात करेगी तो मीडिया उससे अलग नहीं जाएगा. यदि हिंदू राष्ट्र एक कल्पना है तो मीडिया उस कल्पना को साकार करने तक की दूरी तय करेगा. यदि रामराज्य एक कल्पना है तो मीडिया रामराज्य लाने का काम करेगा भले ही खुद उस कल्पना में उसका विश्वास न हो. “कल्पित समुदायों” और “भूमियों” की अवधारणा ध्रुवीकृत समाज में बहुत तेज़ काम करती है. इसी तर्ज पर काल्पनिक दुश्मन गढ़े जाएंगे, काल्पनिक दोस्त बनाए जाएंगे, काल्पनिक अवतार गढ़े जाएंगे. यह सब कुछ मीडिया उतनी ही सहजता से करेगा जितनी सहजता से उसने आज से पंद्रह साल पहले भूत, प्रेत, चुड़ैलों की कहानियां दिखायी थी.
ऐसा करते हुए मीडिया और उसमें काम करने वाले लोग इस बात से बेखबर होंगे कि वे किनके हाथों में खेल रहे हैं. एक अदृश्य गुलामी होगी जो कर्इ अदृश्य गुलामियों को पैदा करेगी. ठीक वैसे ही जैसे गूगल का सर्च इंजन काम करता है. मीडिया की भूमिका क्या और कैसी होगी, इसे केवल गूगल के इकलौते उदाहरण से समझा जा सकता है. अमेरिका में 2012 के चुनाव में गूगल और उसके आला अधिकारियों ने 8 लाख डॉलर से ज्��यादा चंदा बराक ओबामा को दिया था जबकि केवल 37,000 डॉलर मिट रोमनी को. अपने शोध लेख में एप्सटीन और रॉबर्टसन ने गणना की है कि आज की तारीख में गूगल के पास इतनी ताकत है कि वह दुनिया में होने वाले 25 फीसदी चुनावों को प्रभावित कर सकता है. प्रयोक्ताओं की सूचनाएं इकट्ठा करने और उन्हें प्रभावित करने के मामले में फेसबुक आज भी गूगल के मुकाबले काफी पीछे है. जीमेल इस्तेमाल करने वाले लोगों को यह नहीं पता कि उनके लिखे हर मेल को गूगल सुरक्षित रखता है, संदेशों का विश्लेषण करता है, यहां तक कि न भेजे जाने वाले ड्राफ्ट को भी पढ़ता है और कहीं से भी आ रहे मेल को पढ़ता है. गूगल पर हमारी प्राइवेसी बिलकुल नहीं है लेकिन गूगल की अपनी प्राइवेसी सबसे पवित्र है.
जैसा कि एडवर्ड स्नोडेन के उद्घाटन बताते हैं, हम बहुत तेज़ी से एक ऐसी दुनिया बना रहे हैं जहां सरकारें और कॉरपोरेशन- जो अक्सर मिलकर काम करते हैं- हममें से हर एक के बारे में रोज़ाना ढेर सारा डेटा इकट्ठा कर रहे हैं और जहां इसके इस्तेमाल को लेकर कहीं कोई कानून नहीं है. जब आप डेटा संग्रहण के साथ नियंत्रित करने की इच्छा को मिला देते हैं तो सबसे खतरनाक सूरत पैदा होती है. वहां ऊपर से दिखने वाली लोकतांत्रिक सरकार के भीतर एक अदृश्य तानाशाही आपके ऊपर राज करती है.
आज एनपीआर, एनआरसी, सीएए पर जो बवाल मचा हुआ है उसके प्रति मुख्यधारा के मीडिया का भक्तिपूर्ण रवैया देखकर आप आसानी से स्नोडेन की बात को समझ सकते हैं.
सांस्कृतिक विकल्प का सवाल
मीडिया और तकनीक के रास्ते सत्ता में बैठी ताकतों की इंसानी दिमाग पर नियंत्रण कायम करने की इच्छा और उनकी निवेश क्षमता का क्या कोई काट है? भारत जैसे देश में, जो अब भी सांस्कृतिक रूप से एकाश्म नहीं है, किसी भी सत्ता के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट संस्कृति ही होती है. मीडिया, संस्कृति का एक अहम अंग है. इसीलिए हम पाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नारे राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक होते हैं, जो मीडिया को आकर्षित कर सकें. इन्हीं सांस्कृतिक नारों के हिसाब से प्रच्छन्न व संक्षिप्त संदेश तैयार करके फैलाये जाते हैं. क्या किसी और के पास भाजपा के बरअक्स कोई सांस्कृतिक योजना है?
पिछले कुछ वर्षों से भारत में भाजपा के राज के संदर्भ में विपक्षी विमर्श ने सबसे ज्यादा जिस शब्द का प्रयोग किया है वह है ''नैरेटिव''. नैरेटिव यानी वह केंद्रीय सूत्र जिस पर राजनीति की जानी है. हारा हुआ पक्ष हमेशा मानता है कि जीते हुए के पास एक मज़बूत नैरेटिव था. हां, यह शायद नहीं पूछा जाता कि विजेता के नैरेटिव के घटक क्या-क्या थे. आखिर उन घटकों को आपस में मिलाकर उसने एक ठोस नैरेटिव कैसे गढ़ा. सारे वाद्य मिलकर एक ऑर्केस्ट्रा में कैसे तब्दील हो गये.
ध्यान दीजिएगा कि भारत की किसी भी विपक्षी राजनीतिक पार्टी के पास सांस्कृतिक एजेंडा नहीं है. रणनीति तो दूर की बात रही. कुछ हद तक अस्मिताओं को ये दल समझते हैं, लेकिन सारा मामला सामाजिक न्याय के नाम पर आरक्षण तक जाकर सिमट जाता है. भाजपा के सांस्कृतिक नारे व संदेशों पर बाकी दलों ने अब तक केवल प्रतिक्रिया दी है. अपना सांस्कृतिक विमर्श नहीं गढ़ा. लिहाजा, वे जनता में जो संदेश पहुंचाते हैं उनका कोई सांस्कृतिक तर्क नहीं होता. कोई मुलम्मा नहीं होता. वे भाजपा की तरह प्रच्छन्न मैसेजिंग नहीं कर पाते. यह सहज बात कोई भी समझ सकता है कि आपके पास सारे हरबे हथियार हों तो क्या हुआ, युद्धकौशल का होना सबसे ज़रूरी है. जब संदेश ही नहीं है, तो माध्यम क्या कर लेगा? मीडिया क्या कर लेगा?
द इकनॉमिस्ट पत्रिका के मई 2019 अंक में यूरोप के बाहरी इलाकों की राजनीति पर एक कॉलम छपा था जिसमें एक बात कही गयी थी जो भारत पर भी लागू होती है- ''यूरोप की राजनीति पर सांस्कृतिक जंग ने कब्ज़ा कर लिया है और वाम बनाम दक्षिण के पुराने फ़र्क को पाट दिया है.'' भारत में भी सांस्कृतिक युद्ध ही चल रहा है लेकिन इसे कभी कहा नहीं गया. तमाम दलों ने 2019 के आम चुनाव में डेटा एजेंसियों, पोल प्रबंधकों, इमेज प्रबंधकों, पीआर कंपनियों, ईवेंट मैनेजरों का सहारा लिया लेकिन भाजपा के अलावा किसी को नहीं पता था कि सांस्कृतिक मोर्चे पर क्या लाइन लेनी है. राहुल गांधी ने राम के अलावा छोटे-छोटे भगवानों के मंदिरों में चक्कर लगाकर जनता से जुड़ने की कोशिश तो की, लेकिन किसी ठोस सांस्कृतिक रणनीति और नैरेटिव के अभाव में इसका लाभ भी पलट कर भाजपा को मिला.
जवाहरलाल नेहरू के जिंदा रहने तक कांग्रेस की राजनीति में एक सांस्कृतिक आयाम हुआ करता था. महात्मा गांधी के ''रघुपति राघव राजा राम'' में प्रचुर सांस्कृतिक नैरेटिव था और नेहरू के साइंटिफिक टेम्पर का भी एक सांस्कृतिक आयाम था. इंदिरा गांधी के दौर से मामला विशुद्ध सत्ता का बन गया और कांग्रेस की राजनीति से संस्कृति का आयाम विलुप्त हो गया. इसका नतीजा हम आज बड़ी आसानी से देख पाते हैं.
भूखा मीडिया, नदारद नैरेटिव
मीडिया को आज की तारीख में नैरेटिव चाहिए. नारे चाहिए. संदेश चाहिए. उसकी खुराक उसे नहीं मिल रही है. एक बार को मीडिया के सामाजिक दायित्व क�� अवधारणा को किनारे रख दें, अपनी मासूमियत छोड़ दें. इसके बाद मीडिया से कोई सवाल पूछने से पहले खुद से हम क्या यह सवाल पूछ सकते हैं कि हमारे पास ���ीडिया को देने के लिए क्या है?
कोई चारा? कोई चेहरा? कोई नारा? कोई गीत? कोई भाषण? याद करिए यह वही मीडिया है जिसने जेल से छूटने के बाद कन्हैया कुमार का भाषण दिखलाया था. उसके बाद क्या किसी ने उस दरजे का एक भी भाषण इस देश में दिया? यह मीडिया का बचाव नहीं है. यहां केवल इतना समझने वाली बात है कि मीडिया अपने आप नैरेटिव खोजने नहीं जाएगा. यह पीड़ितों की लड़ाई अपनी ओर से नहीं लड़ेगा.
इसे मजबूर करना होगा, एजेंडा देना होगा जिसे यह फॉलो कर सके. यह एजेंडा और नैरेटिव मुहैया कराना विपक्ष का काम है, लड़ रही जनता का काम है. यह काम मुश्किल है, नामुमकिन नहीं. अगर आज यह नहीं किया गया तो मीडिया के पास सत्ता का एजेंडा पहले से रखा हुआ है. उसे न तो हिंदू राष्ट्र से कोई परहेज है, न आपके संविधान से कोई प्रेम. वह सब कुछ जलाकर खाक कर देगा. खुद को भी.
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Today’s Horoscope-
मेष दैनिक राशिफल (Aries Daily Horoscope)
भाग्य का आपको अच्छा साथ मिलेगा। पुरानी गलतियों को दोहराने की बजाए आप उन गलतियों से सबक लेकर भविष्य में अच्छा कार्य कर सकते हैं। घर में किसी शुभ, मांगलिक अथवा धार्मिक कार्य के आयोजन की चर्चा हो सकती है। धन की व्यवस्था को लेकर मन में चिंता के भाव रहेंगे। अपने जीवन स्तर को सुधारने के लिए फिलहाल आपको स्थायी प्रयोग में आने वाली वस्तुओं की ही खरीद करनी चाहिए। जिन जरूरी कामों में आप अभी व्यस्त हैं उसे बीच में रोकने की कोशिश नहीं करें। उपहार मिलने से मन में खुशी रहेगी।
वृष दैनिक राशिफल (Taurus Daily Horoscope)
अपनी सोच सकारात्मक रखें। आपको भाग्य का पूर्ण सहयोग मिलेगा। पसंदीदा वस्तुओं की खरीद करेंगे। खुद पर भरोसा करें तो आपकी कोशिशों का आपको उम्दा लाभ मिलेगा। भाइयों और मित्रों के साथ संबंधों में मधुरता आएगी। आज आपके चारों तरफ सुखद माहौल रहेगा। घर-परिवार के सभी सदस्यों की खुशियां बढ़ेंगी। पिछले दिनों से चल रही लेन-देन की कोई बडी डील तय हो जाने की खुशी होगी।
मिथुन दैनिक राशिफल (Gemini Daily Horoscope)
आज के दिन शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को स्वस्थ महसूस करेंगे। कई दिनों से जिस बात को लेकर आप चिंतित थे वह चिंता आपकी दूर हो सकती है। आज आप अपने विचारों में स्थिरता लाने का प्रयास करें। आप एक लक्ष्य बनाकर चलते हैं तो आपको अद्भुत लाभ होगा। किसी से अकारण तर्क-वितर्क नहीं करें। जो जैसा सोचता है उसको वैसा ही सामने भी नजर आता है। आज के दिन भी किसी बड़े बहन-भाई या बुजुर्ग माता-पिता की चिन्ता आपको परेशान कर सकती है।
कर्क दैनिक राशिफल (Cancer Daily Horoscope)
आज भाग्य का आपको पूरा-पूरा साथ मिलेगा। आगे बढ़ने के लिए आप कुछ नया सीखेंगे। जो लोग राजनीति से जुड़े हुए हैं, उन्हें तरक्की के नये अवसर प्राप्त होंगे। इसके अलावा आज आप कोई नया काम शुरु करने की योजना भी बनायेंगे, जो की काफी फलदायी होगा। माता पिता का आशीर्वाद आपके साथ बना रहेगा। सेहत के लिहाज से भी आप खुद को तंदुरुस्त महसूस करेंगें। आज आपको जरुरतमंदों की सहायता करने का मौका मिलेगा।
सिंह दैनिक राशिफल (Leo Daily Horoscope)
आज आपके बिजनेस में वृद्धि होने के योग बन रहे हैं। आज आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। विद्यार्थी आज कुछ नया सिखने का प्रयास करेंगे। आज बिना वजह विवादों में फंसने से बचें। समाज मे मान-सम्मान बढ़ेगा। आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। आज आपका आत्मविश्वास आपके लिये सफलता की कुंजी साबित होगा। सरकार से संबंधित काम करवाने के लिए आपको थोड़े धैर्य से काम लेना होगा।
कन्या दैनिक राशिफल (Virgo Daily Horoscope)
मन में कुछ नया सीखने की उत्सुकता बनी रहेगी। परिवार का सहयोग मिलेगा। व्यर्थ के विवाद से दूर रहने की कोशिश करें। किसी से प्रेरित होकर आप भविष्य के लिए नई योजनाओं पर कार्य करेंगे। अपने भावी लक्ष्यों के प्रति एकाग्रचित्त और सुनियोजित ढंग से कार्य करने से काफी हद तक सफलता मिलेगी। दोपहर बाद परिस्थितियां बेहतरीन बन रही है। इसलिए आपके कार्य आसानी से संपन्न होते जाएंगे।
तुला दैनिक राशिफल (Libra Daily Horoscope)
आज आपका दिन बढ़िया रहेगा। दोपहर तक आपको कोई अच्छी खबर मिलेगी, जो आपकी प्रतिभा मान-सम्मान बढ़ाने में कारगर साबित होगी। आज के दिन शीघ्रता से सभी काम पूरे होंगे। आज आप कोशिश करेंगे कि सभी कामों को छोड़कर घर वालों के साथ वक्त बिताया जाए। अपने कौशल से दूसरों का मार्गदर्शन करें, दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की आप क्षमता रखते हैं। अनावश्यक यात्रा या घूमने फिरने से बचें। घर में गूगल लोबान की धूनी दें।
वृश्चिक दैनिक राशिफल (Scorpio Daily Horoscope)
आपके मन में प्रसन्नता देखने को मिलेगी। शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को स्वस्थ महसूस करेंगे। नई योजनाओं को लेकर सहयोगियों से विचार-विमर्श होगा। अपनी जीवनशैली को एक नए ढंग से व्यवस्थित करने की दिशा में कार्य करेंगे। अपने और परायों में पहचान कराने वाला दिन साबित हो सकता है। नकारात्मक वृत्ति वाले लोगों से दूरी ��नाकर रखें। योग और एक्सरसाइज अपनी दिनचर्या में शा���िल करें।
धनु दैनिक राशिफल (Sagittarius Daily Horoscope)
आज काम में मन नहीं लगेगा। अपना फोकस बनाए रखें। यदि अपने काम से संतुष्ट नहीं हैं तो वह काम करिए जिसमे आपको ख़ुशी मिलती हो। अपने खानपान की तरफ विशेष ध्यान दें। गैस्टिक संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। आपको अपने दायरे से बाहर निकलकर ऐसे लोगों से मिलने-जुलने की ज़रूरत है, जिनका आपके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। आपके मन में उत्साह रहेगा।
मकर दैनिक राशिफल (Capricorn Daily Horoscope)
आपकी भावनाएं आपके कार्यों और निर्णयों पर प्रभाव डालेंगी लेकिन संतुलित दृष्टि के लिए दिमाग और बुद्धिमत्ता से भी काम लें। आपके प्रियजन का संदेश दिन को महत्वपूर्ण और खुशनुमा बनाएगा। आपका रूका हुआ धन भी प्राप्त होगा, जिससे आप संतुष्टि महसूस करेंगे। परिवार और दोस्तों को प्रति आपका व्यवहार अच्छा रहेगा, जिससे आपको कार्यक्षेत्र में लाभ भी होगा। अध्यात्मिक सलाह आपके अंदर आश्चर्यजनक परिवर्तन ला सकती है।
कुंभ दैनिक राशिफल (Aquarius Daily Horoscope)
आपको अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा। व्यर्थ की बातों को इग्नोर करने का प्रयास करें। जो साथी आपसे दूर हो गए हैं उनसे बातचीत करके संबंधों को ठीक करें। बने बनाए कामों में अचानक रुकावटें उत्पन्न होंगी लेकिन कुछ संघर्ष के बाद काम बन जाएगा। अधिक सोच-विचार स्वास्थ्य को हानि पहुंचाएगा। अपने खानपान की तरफ विशेष ध्यान दें। गैस्टिक संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। बेजुबान जानवरों को खाने पीने की वस्तुएं दें।
मीन दैनिक राशिफल (Pisces Daily Horoscope)
आपके पास मौका है कि आप प्रेम, आनंद और खुशी को दूसरों के साथ साझा करके अधिक संतुष्टि महसूस करें। आप अतीत में अटके रहने के बजाय इन मौजूदा पलों का आनंद उठाने की भरपूर कोशिश कीजिए। जीवनसाथी का अनुशासित स्वभाव घर को व्यवस्थित बनाकर रखेगा। जिससे बच्चे तथा परिवार में पॉजिटिव माहौल रहेगा। आपके स्वभाव में भावुकता होने की वजह से छोटी सी नकारात्मक बात भी आपको दुखी कर सकती हैं।
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श्रीमद् भगवद्गीता की मदद से पाएं जीवन में सफलता
आज हर कोई अपने जीवन में सफल होना चाहता है, लेकिन सफल होने का सही मार्ग का पता ना होने के कारण आज अधिकतर लोग हताश और परेशान है। किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए मोटिवेशन और सही गाइडेंस की बहुत जरूरत होती है। बिना सही दिशा-निर्देश के कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। चाहे कोई खिलाड़ी हो,या कोई राजनेता हर किसी को समय-समय पर मोटिवेशन और गाइडेंस की जरूरत पड़ती ही है। लेकिन वो सही गाइडेंस सोर्स क्या है इसके बारे में अधिकांश लोग अंजान रहते हैं। ऐसे लोग किसी सीनियर या मेंटर की सहायता लेते हैं। लेकिन इन सब के अलावा एक और तरीका है जिसकी मदद से आप खुद ही मोटिवेशन पा सकते हैं।उस सोर्स का नाम है भगवद् गीता। आपने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना होगा कि भगवद् गीता में जीवन का सार छुपा हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान कुछ उपदेश दिए थे, जिससे अर्जुन के लिए युद्ध जीतना आसान हो गया था। भगवद गीता में जीवन का सही अर्थ लिखा हुआ है। वैसे तो भगवद गीता के 18 अध्यायों में कई श्लोक हैं। सभी का अपना-अपना महत्व हैं। लेकिन आज के इस लेख में हम आपको भगवद गीता के 5 श्लोकों का हिंदी सार बताएंगे जिनकी मदद से आप अपने जीवन में बड़ी सफलता को प्राप्त कर सकते हैं और अपने लक्ष्य को पाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं
1. जो होता है केवल अच्छे के लिए ही होता है
भगवद गीता में कहा गया है “जो होता है वो अच्छे के लिए होता है, जो भी हुआ, अच्छे के लिए हुआ, जो भी हो रहा है, अच्छे के लिए ही हो रहा है। जो भी होगा, अच्छे के लिए ही होगा।” इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं कि जीवन में व्यक्ति को कभी निराश होकर यह नहीं कहना चाहिए कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ। अक्सर व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में ईश्वर को और किस्मत को दोष देने लग जाता है कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ। जिस तरह हर रात के बाद एक सवेरा होता है, उसी तरह कठिन समय के बाद अच्छा समय भी जरूर आता है। हर काम को करने के पीछे कोई न कोई अच्छा कारण जरूर होता है। जो हमें पहले समझ नहीं आता लेकिन समय के साथ पता चलता है कि जो हुआ वो अच्छा ही हुआ। इसलिए भगवद् गीता की इस बात का आपको जरूर अनुसरण करना चाहिए कि जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है।
2. यह शरीर हमारी आत्मा का केवल एक वस्त्र है
भगवान श्री कृष्णा कहते है “जैसे कि एक आदमी अपने पहने हुए कपड़ों को उतारता है और दूसरे नए कपड़े पहनता है, वैसे ही आत्मा अपने घिसे-पिटे शरीर से बाहर निकलत��� है और दूसरे नए शरीर में प्रवेश करती है इसे दूसरा जन्म भी कहते हैं। इसलिए ईश्वर कहते है किसी भी चीज़ का मोह ना करते हुये केवल अच्छे कर्म करो क्योंकि यहाँ सब नश्वर है। किसी की मृत्यु होने पर या अपने शरीर का त्याग करने पर ज्यादा दुखी नहीं होना चाहिए क्योंकि आत्मा फिर किसी और शरीर को अपना वस्त्र बनाकर उसे धारण कर लेगी। इसलिए आपको आगे बढ़ने के लिए इन सब बातों से ऊपर उठकर आगे बढ़ना चाहिए।
3. परिवर्तन तो होना ही है
संसार में जो आया है वो नष्ट जरूर होगा। दिन-रात सभी बदलते रहते हैं, महीने-ऋतुएँ बदल जाती है। इसी तरह दुःख- सुख सभी संसार का नियम है। परिवर्तन तो होकर ही रहेगा। इसलिए व्यक्ति को परिवर्तन से घबराना नहीं चाहिए। बल्कि इसका स्वागत करना चाहिए। हर परिवर्तन व्यक्ति को नई सीख देकर जाता है। इस ब्रह्मांड में सब कुछ स्वयं बदलता है जो परिवर्तन के सार्वभौमिक कानून के अधीन है। इसी तरह हमारे जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, गीता आपको परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए कहती है। कई बार लोग रिश्तों के बदलने से,लाभ-हानि होने से टूट जाते हैं लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि कोई भी परिवर्तन स्थायी नहीं होता। हर चीज़ बदलती रहती है, पतझड़ में जब सूखे पत्ते झड़ते हैं तभी बसंत में नई फुहारें आती हैं। इसलिए परिवर्तन को स्वीकार करें और आगे बढ़ें। अपने जीवन में सफलता पाने के लिए भगवत गीता का महत्व समझने के लिए आप मोटिवेशन�� कोच (Motivational Coach) डॉ विवेक बिंद्रा जी की ये वीडियो देख सकते है- https://www.youtube.com/watch?v=p0Z1KH3A-6w
4. बुरा वक़्त हमे सर्वश्रेष्ठ बनाता है
जीवन में अच्छा और बुरा दोनों ही समय चलते रहते हैं। आज अंधकार है तो कल उजाला होगा। जिस तरह सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है। उसी तरह व्यक्ति भी बुरे वक्त से लड़कर खुद को सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुत करता है। विपरीत परिस्थितियां व्यक्ति को और भी मजबूत बनाती हैं और चीज़ों को बेहतर ढंग से देखना सीखाता है। बुरा समय हमें पैसों की कद्र करना सीखता है। इसलिए अपने बुरे समय से कभी भी घबराकर हार नहीं माननी चाहिए बल्कि उससे लड़ना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि यह वह समय होगा जो आपको आपके जीवन का सबसे मूल्यवान सबक सिखाएगा इसलिए जीवन में हर समय खुशहाल ही रहने की उम्मीद न करें क्योंकि यह स्थिर नहीं है। दुख-सुख दोनों ही हमारे जीवन का हिस्सा है।
5. कर्म सबसे ऊपर आता है
आपका कर्म ही आपको सर्वश्रेष्ठ बनाता है। व्यक्ति जैसा कर्म करता है उस�� वैसा ही फल मिलता है। व्यक्ति कर्म करने के लिए ही पैदा हुआ है और बिना कर्म किये कोई नहीं रह सकता। फल की चिंता करना व्यर्थ है क्योंकि इससे मनुष्य का मन काम से भटकने लगता है। अगर किसी काम को करने से सफलता नहीं मिली तो हताश नहीं होना चाहिए क्योंकि असफलता भी ज्ञान के द्वार खोलती है।अगर आप बिना फल की चिंता किये काम करते रहोगे तो सफलता और मन की शांति जीवन भर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगी। जो व्यक्ति केवल कर्म करते हैं उन्हें सफलता प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। आप जो करेंगे आपको वैसा ही मिलेगा इसलिए हमेशा अपने कर्मों को अच्छा रखें ताकि आपको सफलता प्राप्त हो सके।
भगवद् गीता की यह सीख व्यक्ति को आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने में बहुत मदद कर सकती हैं। भगवद् गीता जीवन का यथार्थ है, इसमें जीवन के हर पहलू के बारे में बताया गया है। यदि आप जीवन में प्रेरित रहना चाहते हैं और आगे बढ़ना चाहते हैं तो आपको भगवद् गीता का अनुसरण जरूर करना चाहिए।
लेख के बारे में आप अपनी टिप्पणी को कमेंट सेक्शन में कमेंट करके दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा आप अगर एक व्यापारी हैं और अपने व्यापार में कठिन और मुश्किल परेशानियों का सामना कर रहे हैं और चाहते हैं कि स्टार्टअप बिज़नेस को आगे बढ़ाने में आपको एक पर्सनल बिज़नेस कोच का अच्छा मार्गदर्शन मिले तो आपको Business Coaching Program का चुनाव जरूर करना चाहिए जिससे आप अपने बिज़नेस में एक अच्छी हैंडहोल्डिंग पा सकते हैं और अपने बिज़नेस को चार गुना बढ़ा सकते हैं ।
Source: https://hindi.badabusiness.com/motivational/5-hidden-secrets-of-success-in-shrimad-bhagavad-gita-11047.html
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Father's Day 2022: मिलिए बॉलीवुड के कुछ हॉट डैडी से जो बच्चों संग ऐसे बिताते हैं वक्त, देखिए LIST!
Father’s Day 2022: मिलिए बॉलीवुड के कुछ हॉट डैडी से जो बच्चों संग ऐसे बिताते हैं वक्त, देखिए LIST!
Image Source : INSTAGRAM Father’s Day 2022 Father’s Day 2022: दुनियाभर में आज (19 जून) फादर्स डे (Father’s Day) मनाया जा रहा है। यह दिन पिता के प्रति सम्मान व्यक्त करने का होता है। वे कहते हैं कि बच्चे के जीवन में पिता ही पहला प्यार और आखिरी हीरो होता है। पिता हमें मजबूत जीवन के सबक सिखाते हैं, रिश्ते को महत्व देते हैं और बदले में कुछ भी उम्मीद नहीं करते हैं। बॉलीवुड में कई पिता ऐसे हैं, जो अपने…
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कश्मीर फाईल्स का असली सच..
कुछ लोग नेता तो बन जाते हैं लेकिन इतिहास उन्हें मालूम नहीं होता। क्या आपको मालूम है कि जिस दिन जम्मू कश्मीर से 4 लाख से. अधिक ब्राह्मण हिन्दुओं को भगाया गया वह तारीख थी 19 जनवरी 1990, उस दिन केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे, जनता दल गठबंधन की सरकार थी। असली राष्ट्रवादी बीजेपी के समर्थन से सरकार बनी थी और चल रही थी।
उस समय अलगाववादी नेता मुफ़्ती मुहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे जिनकी बेटी महबूबा मुफ़्ती हैं। उस समय जम्मू कश्मीर के राज्यपाल बीजेपी नेता जगमोहन थे। उस समय वहां राज्यपाल शासन था जो कि केंद्र सरकार के अधीन होता है।
अब जरा आप गौर कीजिए कि जम्मू कश्मीर से हिन्दुओं को भगाए जाने का आरोप किस पर लगनी चाहिये ?
सरकार किसकी थी.....?
राज्यपाल किसका था...........?
एक्शन किसको लेना था.......?
किसकी जिम्मेदारी थी..........?
ब्राह्मण हिन्दुओं को सुरक्षा देना किस सरकार की जिम्मेदारी थी....?
फिर भी अगर कोई इसका आरोप कांग्रेस पर ही लगाए तो समझ लें कि वह जानबूझ कर अंजान है या पब्लिक को बेवकूफ बना रहा हे ।
याद है न..
*गृहमंत्री की बेटी किडनैप हो गयी थी !!!*
राजा नही फकीर है, देश की तकदीर है के नारे के साथ वीपी के जनता दल ने 140 सीटें जीत ली। कांग्रेस अब भी 195 सीट के साथ पहले नम्बर पर रही। लेकिन कहाँ 415 और कहाँ 195.. देश ने कांग्रेस को बैकसीट लेने का आदेश दिया था।
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तो 85 सीटो वाली भारतीय जनता पार्टी ने वीपी को समर्थन दिया। वामपन्थी दल भी उसके साथ आये। वीपी पीएम बन गए, और भाजपा ने सरकार की चाभी घुमानी शुरू की।
पंजाब इस वक्त जल रहा था। कश्मीर में छिटपुट आतंकवादी घटनायें शुरू हो गयी थी। कुछ पुलिस अफसर, कुछ आईबी अफसर, एक जज मारे जा चुके थे। ये ज्यादातर मक़बूल भट मामले से जुड़े लोग थे। इस वक्त कश्मीर में असंतोष था, पर आतंकवाद शुरू न हुआ था।
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वीपी ने शपथ ली, और मुफ़्ती मोहम्मद सईद जो कि कांग्रेस से जनता दल में गए थे, गृह राज्यमंत्री बने। शपथ की खुमारी उतरी न थी, कि एक फोन आया- "जनाब आपकी बेटी किडनैप हो गयी है"
सईद की बेटी डॉक्टरी पढ़ रही थी। कालेज गयी थी, वापस आ रही थी। रास्ते में मिनी बस रुकवाई गयी, लड़की को एक मारुति में बिठाया गया.. और फुर्र।
मांग क्या है किडनैपरों की?? कुछ नही, बस 5 लड़के छोड़ दीजिए। ये लड़के जो कुछ तोड़फोड़ और आतंकी मामलों में पकड़े गए हैं।
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सरकार की शपथ 1989 के दिसम्बर में हुई थी। आते ही हफ्ते में ही किडनैप से स्वागत हुआ। हाथ पैर फूल गए, करना क्या है, किसी को न सूझे। अफरातफरी मच गई।
दुनिया जानती है कि भारत सरकार लौंडों की धमकी में नही आती। पर ये कोई सरकार नही थी। चुनाव जीते सांसदों का झुंड था। गृहमंत्री की बीवी का रो रोकर बुरा हाल था। बेचारा चाहता था कि बेटी फटाफट घर आये। बाकी जिसे छोड़ना है, छोड़ दो।
*सरकार को समर्थन देती भाजपा मूकदर्शक बनी थी। वीपी राजी हो गए।*
लेकिन कश्मीर में मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने किसी को छोड़ने से इनकार कर दिया। तो केंद्र से दो मंत्री श्रीनगर गए- आरिफ मोहम्मद खान और इंदर कुमार गुजराल। फारुख को मनाया गया।
मांगे गए अपराधी छोड़ दिये गए।
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सरजमीने हिंदुस्तान की सर्वशक्तिमान सरकार ऐसे आसानी से घुटनों पर आ जायेगी किसने सोचा था। कश्मीर के छोकरो ने न सोचा था, उनके पाकिस्तानी हैंडलर्स ने भी न सोचा था।
तो छुड़ाए गए लड़को का हीरो वेलकम हुआ। किडनैपर्स भी हीरो बन गए। कल के चवन्नी छाप शोहदे, अब मशहूर "फ्रीडम फाइटर" थे, मुजाहिद थे। छोड़े गए लड़कों में एक मुश्ताक अहमद जरगर था।
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रुबाइया कांड के बाद कश्मीर में प्रदर्शनों में तेजी आ गयी, और आतंकवाद में भी। कई प्रो इंडिया नेता, धार्मिक लीडर्स मार दिए गए। ये नेता हिन्दू थे, मुस्लिम भी। सरकार का क्रेकडाउन हुआ। अर्धसैनिक बलों ने प्रदर्शन करती भीड़ पर गोली चलाई। गांवकदल ब्रिज पर 40 लोग मारे जाने की खबर ने गुस्सा भड़का दिया।
अब संघ ने मामला हाथ मे लिया। जगमोहन राज्यपाल बनाकर भेजे गए। पंडितों से कश्मीर खाली कराया गया। ताकि इसके बाद कश्मीरियों को "सबक सिखाया" जा सके।
सबक सिखाया या नही, वो मुझे नही पता। पता यह है कि वीपी सरकार मन्दिर- मंडल के चक्कर मे गिर गयी। कश्मीरी पंडित कभी घर न लौट सके।
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मुश्ताक अहमद जरगर अर्धशिक्षित कश्मीरी लड़का था। कश्मीर में शुरुआती छुटपुट शान्ति भंग की घटनाओं में लिप्त था, पकड़ा गया था।रुबाइया कांड में छूट गया। सो अब हीरो बन गया।
बहुत लड़को को प्रेरित किया, अपने गैंग में जोड़ा। नरसिंहराव सरकार आ चुकी थी। _*1992 में उसे फिर पकड़ लिया गया। जेल डाला गया। जहां उसे अगली भाजपा सरकार के इंतजार में आठ साल गुजारने पड़े।*_
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तो नई शताब्दी की शुभ वेला में IC814 का अपहरण किया गया। घुटना टेक सरकार सत्ता में थी। 150 भारतीय के बदले 3 आतंकी छोड़े गए। देसी जेम्स बॉन्ड, और विदेशी मंत्री जसवंत तीन आतंकी प्लेन में बिठाकर कंधार ले गए।
उन तीन में एक मुश्ताक अहमद जरगर भी था। दुनिया की सर्वशक्तिमान, देशप्रेमी, मजबूत सरकार को एक नही, दो दो बार ठेंगा दिखाने का रिकार्ड सिर्फ मुश्ताक अहमद जरगर के नाम है।
कंधार की धुंध में गायब होने के बाद वो मुजफ्फराबाद बस गया।
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पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।
तो उन तीन आतंकियों में मसूद अजहर जरा ज्यादा फेमस हुआ। क्योकि उसने जल्द ही हमारी सन्सद को अपना थैंक्यू भेजा। लेकिन मुश्ताक अहमद जरगर भी कम नही था।
उसके लड़के मुम्बई हमले में शामिल थे। वही हमला जिसमे करकरे मारे गए। लेकिन आतंकी गोलियों से नही, श्राप से। श्राप वाली बाई वही, जो भोपाली मूर्खों ने संसद में भेजा है।
जरगर, अवश्य ही उनका और उनकी सरकार का तीसरी बार कृतज्ञ हुआ होगा।
हरामियों इस कश्मीर फाईल्स को नहीं दिखाओगे....
Dr bn singh
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विधानसभा अध्यक्ष की मनमानी ठीक नहीं
सर्वोच्च न्यायालय को विधानसभा के एक अध्यक्ष के आदेश को निरस्त करना पड़ा है। यह घटना दुखद है लेकिन यदि ऐसा नहीं होता तो भारत की विधानपालिकाओं पर यह आरोप चस्पा हो जाता कि वे निरंकुश होती जा रही हैं। ब्रिटेन में माना जाता है कि संसद संप्रभु होती है। उसके ऊपर कोई नहीं होता लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा ने एक नया सवाल उछाला।
वह यह कि क्या विधानसभा या लोकसभा का अध्यक्ष भी संप्रभु होता है? वह जो कह दे, क्या वही कानून बन जाता है? 5 जुलाई 2021 को महाराष्ट्र की विधानसभा के अध्यक्ष भास्कर जाधव के साथ कुछ विधायकों ने काफी कहा-सुनी कर दी। उन्हें भला-बुरा भी कह डाला। उनका क्रोधित होना स्वाभाविक था। उन्होंने इन विधायकों को पूरे एक साल के लिए मुअत्तिल कर दिया। ये 12 विधायक भाजपा के थे। भाजपा महाराष्ट्र में विपक्षी दल है।
शिव-सेना गठबंधन वहां सत्तारुढ़ है। अध्यक्ष के गुस्से पर सदन ने भी ठप्पा लगा दिया। अब विधायक क्या करते? किसके पास जाएं? राज्यपाल भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री तो अध्यक्ष के साथ हैं ही। आखिरकार उन्होंने देश की सबसे बड़ी अदालत के दरवाजे खटखटाए। अच्छा हुआ कि अदालत ने अपना फैसला जल्दी ही दे दिया वरना देश में न्याय-व्यवस्था का हाल तो ऐसा है कि मरीज को मरने के बाद दवा मिला करती है। इन मुअत्तिल विधायकों को साल भर इंतजार नहीं करना पड़ा।
अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा के सदन में उनकी उपस्थिति को बरकरार कर दिया। अपना फैसला देते वक्त अदालत ने जो तर्क दिए हैं, वे भारतीय लोकतंत्र को बल प्रदान करनेवाले हैं। वे जनता के प्रति विधानपालिका की जवाबदेही को वजनदार बनाते हैं। जजों ने कहा कि विधायकों की एक साल की मुअत्तिली उनके निष्कासन से भी ज्यादा बुरी है, क्योंकि उन्हें निकाले जाने पर नए चुनाव होते और उनकी जगह दूसरे जन-प्रतिनिधि विधानसभा में जनता की आवाज बुलंद करते लेकिन यह मुअत्तिली तो जनता के प्रतिनिधित्व का अपमान है।
इसके अलावा यदि विधायकों ने कोई अनुचित व्यवहार किया है तो उन्हें उस दिन या उस सत्र से मुअत्तिल करने का नियम जरुर है लेकिन उन्हें साल भर के लिए बाहर करने की पीछे सत्तारुढ़ दल की मन्शा यह भी हो सकती है कि विरोधी पक्ष को अत्यंत अल्पसंख्यक बनाकर मनमाने कानून पास करवा लें। जहां महाराष्ट्र की तरह गठबंधन सरकार हो, वहां तो ऐसी तिकड़म की संभावना ज्यादा होती है। इस घटना से अध्यक्ष, सत्तारुढ़ और विरोधी दलों— सबके लिए समुचित सबक निकल रहा है।
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