#यूपी सहायक प्रोफेसर परिणाम
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Uttar Pradesh असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा का रिजल्ट घोषित, इतने कैंडिडेट्स का हुआ सेलेक्शन
Uttar Pradesh असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा का रिजल्ट घोषित, इतने कैंडिडेट्स का हुआ सेलेक्शन
Uttar Pradesh UPHESC Assistant Professor Posts Result 2022 Declared: उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (UPHESC) ने असिस्टेंट प्रोफेसर पदों (UPHESC Recruitment 2022) के लिए हुई परीक्षा के नतीजे (UPHESC Assistant Professor Result 2022) जारी कर दिए हैं. इस भर्ती परीक्षा के माध्यम से कुल 103 सहायक प्रोफेसर पदों (Uttar Pradesh Government Job) पर कैंडिडेट्स का सेलेक्शन हुआ है. इन 103 पदों में से 100…
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UPHESC: असंगत प्रोफेसर समाजशास्त्र के 273 पदों का परिणाम घोषित उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग ने गुरुवार को असिस्टेंट प्रोफेसर समाजशास्त्र का परिणाम घोषित किया। प्रदेश की सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों में रिक्त इस विषय के 273 पदों के लिए चयन किया गया ...। Source link
#UPHESC#uphesc.org#असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती यूपी#उच्चतर आयोग की पुनर्स्थापना#उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग#उच्चायोग का परिणाम#प्रयागराज#यूपी शिक्षक भर्ती का रिजल्ट#यूपी शिक्षक भर्ती रिजल्ट#यूपीएईएससी सहायक प्रोफेसर भर्ती#यूपीएचईएससी#यूपीएयैसी असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती#समाजशास्त्र शिक्षक भर्ती#सहायक प्रोफेसर भर्ती#हिंदी समाचार#हिंदुस्तान#हिन्दी में समाचार#हिन्दुस्तान
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UP Lekhpal Result 2022 - लेखपाल Cut-off Marks, Merit List
UP Lekhpal Result 2022 – लेखपाल Cut-off Marks, Merit List
यूपी लेखपाल परिणाम 2022 – कट ऑफ मार्क्स यूपीएसएसएससी लेखपाल परीक्षा मेरिट सूची यहां है: उत्तर प्रदेश लेखपाल भर्ती कट-ऑफ अंक और मेरिट सूची की तारीख के साथ यूपी लेखपाल परिणाम 2022 जल्द ही उपलब्ध होगा। UPSSSC लेखपाल लिखित परीक्षा में बड़ी संख्या में उम्मीदवार उपस्थित हुए 31 जुलाई 2022. अब सभी उम्मीदवार यहां और वहां परिणाम खोज रहे हैं। यूपीएचईएससी सहायक प्रोफेसर भर्ती 2022 हम सभी उम्मीदवारों को सूचित…
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2 हजार से अधिक पदों के लिए यूपी में सरकारी नौकरियां, चयन परीक्षा और साक्षात्कार- results.amarujala.com पर आधारित है
2 हजार से अधिक पदों के लिए यूपी में सरकारी नौकरियां, चयन परीक्षा और साक्षात्कार- results.amarujala.com पर आधारित है
UPHESC सहायक प्रोफेसर भर्ती 2021 – पीसी: मेरा परिणाम प्लस यूपी उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (UPHESC) द्वारा 47 सब्जेक्ट्स में 2003 असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए हैं। स्नातकोत्तर, NET / SLET पास 26 मार्च 2021 से पहले आवेदन कर सकते हैं। चयन लिखित परीक्षा और साक्षात्कार पर आधारित होगा। UPHESC सहायक प्रोफेसर भर्ती 2021 विवरण पद: सहेयक प्रोफेसर रिक्ति की संख्या: 2002 वेतनमान:…
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#2021 अपसैट#2021 तक सरकार में नौकरी#2021 में अपशेक भर्ती#uphesc रिक्ति 2021#uphesc सहायक प्रोफेसर भर्ती 2021#पोस्ट ग्रेजुएट के लिए सरकारी नौकरी
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टीईटी 2018 के तीन प्रश्नों के अंक सभी को देने का आदेश, कोर्ट का निर्देश शिक्षक भर्ती की लिखित परीक्षा में सभी को करें शामिल या परीक्षा की तारीख आगे बढ़ाई जाए
टीईटी 2018 के तीन प्रश्नों के अंक सभी को देने का आदेश, कोर्ट का निर्देश शिक्षक भर्ती की लिखित परीक्षा में सभी को करें शामिल या परीक्षा की तारीख आगे बढ़ाई जाए
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी यूपी टीईटी 2018 के तीन विवादित प्रश्नों के अंक सभी अभ्यर्थियों को समान रूप से देने का आदेश दिया है। इसके साथ ही अदालत ने परीक्षा नियामक प्राधिकारी सचिव को निर्देशित किया है कि सहायक अध्यापक भर्ती की लिखित परीक्षा के लिए आवेदन करने की अंतिम तारीख 20 दिसंबर के मद्देनजर या तो सभी अभ्यर्थियों को प्रोविजनल रूप से परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी जाए या फिर परीक्षा की तारीख आगे बढ़ा दी जाए तथा संशोधित परिणाम जारी करें।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने हिमांशु गंगवार व अन्य याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह ने बताया कि शिक्षक पात्रता परीक्षा 18 नवंबर को हुई थी। 12 दिसंबर को इसका रिजल्ट घोषित किया गया। प्राधिकारी सचिव की ओर से जारी संशोधित उत्तर कुंजी में 14 प्रश्नों पर विवाद था। जिस पर अनेक याचिका में दाखिल की गयी। प्रश्न संख्या 66 पर कोर्ट ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामसेवक दूबे से विशेषज्ञ राय मांगी थी। उन्होंने अदालत में उपस्थित होकर बताया कि जारी उत्तर कुंजी का जवाब सही है।
अदालत ने इसके अलावा उर्दू के एक प्रश्न को गलत मानते हुए सभी अभ्यर्थियों को एक अंक समान रूप से देने को कहा है। इसी प्रकार से प्रश्न पुस्तिका की सी-सीरीज का प्रश्न संख्या 38 व 59 को भी गलत माना तथा सभी को समान अंक देने को कहा है।
Read full post at: http://www.cnnworldnews.info/2018/12/2018_20.html
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संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर सरकार असम में क्या कर रही है और उसकी क्या योजना है, इसे समझने के लिए बिहार का रुख करना अच्छा होगा। बिहार में नीतीश कुमार ने दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए इसमें महादलित का एक वर्ग बनाया था, जिससे इसका सियासी फायदा उठाया जा सके। केंद्र की नरेंद्र मोदी और असम की सर्वानंद सोनोवाल सरकारें असम में कुछ ऐसा ही करने जा रही हैं।
एनआरसी के देशव्यापी विरोध में असम का उदाहरण दिया जाता है। वहां एनआरसी की प्रक्रिया में 19 लाख लोग इससे बाहर रह गए हैं। अब इन्हें साबित करना है कि वे वास्तव में भारत के नागरिक हैं। अनुमान है कि इसमें 5 लाख से ज्यादा हिंदू हैं। माना जाता है कि इन्हें सीएए के तहत नागरिकता दे दी जाएगी। मुसलमानों को चूंकि सीएए का फायदा मिलना नहीं है, इसलिए उन्हें अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।
इस बीच सरकार ने अपना नया पैंतरा अपनाया है। वह मुसलमानों के बीच दरार डालकर इस आरोप से मुक्त होना चाहती है कि उसका यह कदम मुस्लिम-विरोधी है। सरकार कुछ जातियों के मुसलमानों को एनआरसी प्रक्रिया से बाहर करके अपने बचाव का रास्ता खोज रही है। इसी आधार परअसम में कुछ मुसलमान जातियों का सर्वेक्षण कराने की तैयारी की जा रही है। लेकिन यह फॉर्मूला कितना कारगर रहेगा, इस पर निगाह रखने की जरूरत है।
असम के अल्पसंख्यक कल्याण और विकास विभाग ने चार समुदायों की जनगणना करने की योजना की घोषणा की है, जिन्हें मोटे तौर पर 'असमिया मुसलमान' कहा जाता है। ये हैं गोरिया, मोरिया, देसी और जुलाह। इस सप्ताह इन समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक के बाद, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री रंजीत दत्त ने कहा कि इससे इन समुदायों के विकास में मदद मिलेगी और 'गोरिया, मोरिया, देसी और जुलाह विकास निगम' की स्थापना भी की जाएगी।
पिछले वर्ष असम के बजट में समुदाय के ‘समग्र विकास’ के साथ-साथ ‘सामाजिक-आर्थिक जनगणना’ के लिए ‘स्वदेशी मुसलमानों के लिए विकास निगम’ की स्थापना का जिक्र भी था। 6 फरवरी, 2020 को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने स्वदेशी मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक जनगणना के बारे में बैठक बुलाई। बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया कि खिलोनजीया (स्वदेशी) शब्द विवादास्पद था और इसे चार विशिष्ट समुदायों के नामों से बदल दिया जाएगा।
बहरहाल, कौन से समुदाय स्थानीय हैं और कौन नहीं, इसके दस्तावेजी साक्ष्य बहुत कम हैं और परिभाषाएं अस्पष्ट, लेकिन समाज ने पारंपरिक रूप से गोरिया, मोरिया और देसी को स्वदेशी असमिया की परिभाषा के तहत रखा है। वैसे असम में मुसलमानों का इतिहास काफी पुराना है। इतिहास की प्रोफेसर और एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में शांति अध्ययन पीठ की अध्यक्ष यास्मीन सैकिया कहती है�� कि मौखिक परंपराओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और भाषाओं को ध्यान में रखते हुए बात की जाए तो कहा जा सकता है कि मुस्लिम कम से कम 600-700 साल पहले असम में बस गए थे। इस संभावना से भी इनकार नहीं कि मुस्लिम अहोम साम्राज्य से भी पहले से असम में रह रहे हों।
बख्तियारुद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद असम में 13वीं शताब्दी के शुरू में मुस्लिम बस्तियों के प्रमाण मिले हैं। अखिल असम गोरिया-मोरिया देसी परिषद के महासचिव अजीजुल रहमान कहते हैं कि जिसे हम अबगोरिया कहते हैं, उसकी जानकारी 13 वीं शताब्दी के अहोम राजाओं के समय भी मिलती है। कई मुस्लिम आक्रमणकारी सेनाओं के साथ आए और युद्ध में पकड़े गए। जब उन्हें रिहा किया गया, तो वे मुख्यधारा के समाज के साथ घुलमिल गए। इसलिए आज भी, उनकी अधिकांश सांस्कृतिक परंपराएं असमिया रीति-रिवाजों से मेल खाती हैं। एडवर्ड गैटने की “हिस्ट्री ऑफ असम” पुस्तक में गोरिया समाज के बारे में कहा गया है कि यह बंगाल के ही गौड़ इलाके में रहता था।
रहमान का कहना है कि मोरिया 1500 ईस्वी के आसपास असम आए। वे असाधारण रूप से दक्ष कारीगर थे, विशेष रूप से बेल मेटल के निर्माण कार्य में वे पारंगत थे। प्रो. सैकिया का मानना है कि जुलाह मुस्लिम 'बिहारऔर यूपी' के लोग थे, जो ब्रिटिश शासन के दौरान रेलवे विस्तार के साथ असम आए थे। प्रो. सैकिया कहते हैं, "जब तिनसुकिया और लिडो क�� लिए गाड़ियां आईं, तो तम्बू बनाने वाले, रस्सी बनाने वाले, बुनकर, मशीन ड्रिलर के रूप में जुलाह मुस्लिम आए।' हालांकि, मंत्री दत्त ने साफ किया है कि जनगणना केवल उन जुलाह लोगों की होगी जो 'चाय जनजाति के हैं और मुख्य रूप से गोलाघाट और जोरहाट में रहते हैं।'
गोरिया, मोरिया और जुलाह खास तौर पर ऊपरी और मध्य असम में बसे थे, जबकि देसी निचले असम से नाता रखते हैं, जो अविभाजित गोवालपारा जिला हुआ करता था। कहा जाता है कि उनके पूर्वजों को 13वीं शताब्दी की शुरुआत में कोच राजबंशी साम्राज्य के काल में धर्मांतरित किया गया था। पी बी कॉलेज, धुबरी में सहायक प्रोफेसर परवीन सुल्ताना का मानना है, “हम जानते हैं कि अली मेच नाम के एक आदिवासी सरदार ने इस्लाम अपनाया था। उनके अनुयायी भी धर्मांतरित हुए। ये लोग देसी भाषा बोलते हैं, जो कोच राजबंशी की भाषा से काफी मिलती-जुलती है, और इनकी आबादी लगभग 20 लाख है।” लेकिन समस्या यह है कि दस्तावेजी सबूतों की कमी के कारण कई असमिया मुस्लिमों के बारे में यह कहना मुश्किल होता है कि वे किस गुट से अपने नाते को प्रमाणित कर सकते हैं।
जनगणना के दायरे से मिया मुस्लिम समुदाय को अलग रखा गया है- जिसमें पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के प्रवासियों के वंशज शामिल हैं। 1826 में असम को ब्रिटिश भारत में शामिल किए जाने के बाद, अंग्रेजों ने 1850 के दशक से संयुक्त बंगाल प्रांत के प्रवासियों को असम में बसाया। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से लगातार सीमा पार से लोग आए और दिक्कत यह है कि जो मुसलमान यहां अंग्रेजों के समय से ही रह रहे हैं, उन्हें भी अक्सर अवैध प्रवासी मान लिया जाता है। यह स्पष्ट नहीं है कि दक्षिणी असम की बराक घाटी के मुसलमानों के बारे में सरकार की क्या योजना है। इस क्षेत्र में अविभाजित बंगाल के सिलहट जिला (बांग्लादेश) का एक बड़ा हिस्सा शामिल है। असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के अध्यक्ष सैयद मुमिनुल ऐवल ने कहा कि मुस्लिमों के इन वर्गों पर आगे चर्चा की जानी है।
2011 की जनगणना के अनुसार, असम की 3.12 करोड़ जनसंख्या में मुसलमानों की तादाद एक तिहाई (34.22%) है। आमतौर पर यह समझा जाता है कि मुसलमानों में सबसे बड़ा समूह मिया मुसलमान है। गुवाहाटी विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त सांख्यिकी प्रोफेसर अब्दुल मन्नान का कहना है, “प्रत्येक उप-समूह के संख्यात्मक आकार का अनुमान लगाने के लिए एक गहन अध्ययन की आवश्यकता है। ऐसा कोई सर्वेक्षण अभी तक नहीं किया गया है।”
इसे समझा भी जा सकता है, क्योंकि जनगणना के आंकड़ों से यह तो पता चल जाता है कि किस जिले में किस धर्म के कितने लोग हैं, लेकिन इनमें बांग्लाभाषी मुसलमान कितने हैं और असमिया भाषी कितने, इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती। वैसे, खास तौर पर निचले असम में बांग्लाभाषी मुसलमानों की संख्या असमिया भाषी मुसलमानों की तुलना में अधिक है, इसे देखा-महसूस किया जा सकता है। ऐवल कहते हैं कि सर्वेक्षण के काम को आगे बढ़ाने के लिए इसके तौर-तरीकों पर जल्द ही विचार-विमर्श किया जाएगा। जहां तक गोरिया और मोरिया की बात है, उनकी सामाजिक पहचान उस भाषा से निर्धारित की जा सकती है जो वे बोलते हैं और जिन इलाकों में रहते हैं।
बहुतों को नहीं लगता कि यह संभव है। चरचापोरी साहित्य परिषद के अध्यक्ष हाफिज अहमद कहते हैं, “आप झूला समुदाय को ही लें। वे भी बुनकर हैं। लेकिन इनमें कुछ स्वदेशी हैं और कुछ प्रवासी; कुछ असमिया बोलते हैं तो कुछ बांग्ला। ऐसी स्थिति में आप उनकी गणना कैसे और किस खाने में करेंगे? ” वह अपनी बात भी करते हैं कि, 'पिछले आर्थिक सर्वेक्षणों में मैं अपने परिवार को झूला के रूप में सूचीबद्ध करता रहा हूं क्योंकि मेरे पूर्वज बुनकर थे, लेकिन मैं भी बांग्लाभाषी मिया समुदाय से ताल्लुक रखता हूं - इसलिए मैं इस जनगणना में कहां खड़ा हूं?'
सुल्ताना ने भी कहा: “उदाहरण के लिए देसी समुदाय एक धार्मिक-भाषाई समुदाय है। यह एक जातीय समुदाय नहीं है। धुबरी में अधिकांश मुस्लिम, जिनमें मिया समुदाय भी शामिल है, वे आपस में ज्यादातर देसी में ही बातचीत करते हैं। ऐसी स्थिति में आप उन्हें कैसे अलग करते हैं? इसके अलावा एक और स्थिति आती है जब दो समुदायों के बीच वैवाहिक संबंध बनते हैं। ऐसे विवाहों से जन्म लेने वाले बच्चों का क्या होगा? मान लीजिए कि एक वैसे मुस्लिम समुदाय जिसे देसी माना गया हो और किसी वैसे मुस्लिम समुदाय, जिसे विदेशी माना गया हो, के बीच वैवैहिक संबंध बनते हैं तो उस जोड़ी से होने वाले बच्चों को देसी माना जाएगा या विदेशी?
असम में लोगों की निगाहें 1985 के असम समझौते के अनुच्छेद 6 पर टिकी हैं, जो यह कहता हैः “असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत की रक्षा और संरक्षण के लिए जो भी संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक उपाय उपयुक्त हो सकते हैं, प्रदान किए जाएंगे।” केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त समिति रिपोर्ट को अंतिम रूप दे रही है जिसमें "असमिया लोगों" की परिभाषा को बदला जाएगा, लेकिन इससे कितनी स्पष्टता आएगी और कितनी दरार पैदा होगी, यह देखने की बात होगी। वैसे, ऐवल का मानना है कि "जनगणना से स्वदेशी असमिया मुसलमानों को न केवल अनुच्छेद 6 से लाभ होगा, बल्किअन्य योजनाओं में भी मदद मिलेगी।"
गोरिया-मोरिया देसी परिषद ने इसका स���वागत किया है। महासचिव रहमान का दावा है कि यह एक "पहचान संकट" को समाप्त करेगा। रहमान का मानना है कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि असम का आम मुसलमान जो यहां सैकड़ों साल से रह रहा है, उसकी पहचान का संकट खत्म होगा। आज ऐसे भी मुसलमान को बांग्लादेशी मान लिया जाता है, लेकिन तब यह बात साफ हो जाएगी कि कौन देसी और कौन विदेशी। लेकिन यहां भी बड़ा सवाल यही है कि पहचान का यह मसला कहीं सामाजिक ताने-बाने में दरार पैदा करने का कारण न बन जाए।
सुल्ताना ने कहा कि अगर जनगणना किसी समुदाय की संस्कृति को रिकॉर्ड करने और संरक्षित करने के इरादे से की जाती है, तो यह 'अच्छा हो सकता है।' उदाहरण के लिए, अनुसंधान, अनुदान आदि के माध्यम से समुदाय के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, क्योंकि लोग देश के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। लेकिन उन्हें इसका इस्तेमाल एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ नहीं करना चाहिए। जबकि मोदी सरकार के इस फैसले से इस बात की आशंका तो है ही कि इससे मुसलमानों में ही एक ऐसा समुदाय तैयार होगा जो दूसरे के खिलाफ होगा।
प्रो. सैकिया भी मोदी सरकार के इस कदम को लेकर संशकित हैं। वह कहते हैं कि तात्कालिक रूप से लोग सोच सकते हैं कि यह एक अच्छा विचार है और देसी मुसलमानों के लिए पहचान का संकट खत्म हो जाएगा, लेकिन लंबे समय में इसका परिणाम नकारात्मक ही होगा। उनका मानना है कि 'एक ऐसे समुदाय के लिए जिसने खुद को असम का मुसलमान माना है, उसे छोटे-छोटे समुदायों में बांट देने से लोगों के मन में असुरक्षा की भावना भी पैदा होगी।'
हाफिज अहमद कहते हैं कि सरकार का यह कदम मिया समुदाय की पीठ दीवार से लगा देने जैसा है। वह कहते हैं, 'बांग्लाभाषी असमिया 19वीं शताब्दी से असम में रह रहा है। अगर सरकार का इरादा उसके विकास में सहायता करना है तो यह योजना उन बांग्लाभाषी मुस्लिमों के लिए क्यों नहीं है जो चरक्षेत्रों में रहते हैं?' जाहिर है, मोदी सरकार की योजना असम के मुसलमानों में दरार पैदाकर एनआरसी पर अपने स्टैंड को वाजिब ठहराने का है। लेकिन इस क्रम में वह समाज में दरार पैदा कर रही है जिसके आने वाले समय में खतरनाक परिणाम सामने आ सकते हैं।
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... तो अब अखिलेश सरकार की दी हुई नौकरियां की जायेंगी रद
जी हा ताज़ा खबरों के मुताबिक़ बेसिक शिक्षा विभाग में 2.37 लाख शिक्षकों की नौकरियों पर खतरा मंडराने लगा है। इतना ही नहीं अखिलेश-मायावती शासनकाल की दरोगा-सिपाही भर्ती भी निरस्त हो सकती है।
सीएम बनते ही योगी आदित्यनाथ ने 23 तरह की भर्तियों पर रोक लगा दी है। इसमें से 22 भर्ती उच्च शिक्षा में सहायक प्रोफेसर से जुड़ी हुई हैं।
प्रक्रिया के तहत करीब चार हजार से अधिक पदों पर भर्ती होनी है। वहीं बेसिक शिक्षक विभाग में 48 हजार पदों पर शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को रोक दिया गया है। इस प्रक्रिया में अनुदेशकों के पद भी शामिल हैं।
बेशक सीएम बेसिक शिक्षा विभाग में 48 हजार पदों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा चुके हैं। लेकिन 2.37 लाख शिक्षक पदों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
जानकारों की मानें ��ो 1.65 शिक्षकों के वो पद हैं जिन पर शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाया गया है। शिक्षा का अधिकार एक्ट को किनारे कर बिना टीईटी पास शिक्षामित्रों को शिक्षक पद पर नियुक्ति दे दी गई है।
दूसरी ओर वर्ष 2011 में 72 हजार शिक्षक पदों पर हुई शिक्षकों की नियुक्ति पहले से ही विवादों में चल रही है। आरोप है कि शिक्षकों के टीईटी परीक्षा परिणाम में छेड़छाड़ की गई है।
इस संबंध में शिक्षा निदेशक को जेल भी हुई थी। कई बार परीक्षा परिणाम बदला भी गया था। लेकिन अभी तक मामले में निपटारा नहीं हो पाया है।
बसपा के शासनकाल 2011 में यूपी पुलिस सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती प्रक्रिया शुरु हुई थी। 4010 पदों पर भर्ती होनी थी। लेकिन 2012 में सपा की सरकार आने के बाद भर्ती प्रक्रिया में धांधली का आरोप लगाते हुए भर्ती पर रोक लगा दी गई।
जबकि प्रक्रिया के तहत चुने गए उम्मीदवार ट्रेनिंग कर रहे थे। इसी तरह 30 हजार पुलिस सिपाही भर्ती प्रक्रिया भी शक के दायरे में है।
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UPPSC, UPHESCC: दो शिक्षक भर्तियों में एक चौथाई से अधिक पदों पर चयन हुआ शिक्षकों की भर्ती चाहे उच्च शिक्षा में हो या माध्यमिक या बेसिक शिक्षा में, कोई न कोई विवाद जरूर होता है। बेसिक शिक्षा परिषद की 69 हजार शिक्षक भर्ती का हालिया विवाद सबके सामने हैं। पूर्व में उच्च और ... Source link
#site.uphesc.org#UPPAC#uppsc.up.nic.in#असंगत प्रो#उच्च शिक्षक आयोग#उच्चतर शिक्षक आयोग#उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग#उत्तर प्रदेश शिक्षक भर्ती#एलटी ग्रेड शिक्षक भर्ती#प्राथमिक शिक्षक#मध्यम / शिक्षक भर्ती#मध्यमाकी में शिक्षक भर्ती#यूपी टीचर न्यूज़#यूपी शिक्षक संवाददाता#यूपीपीएसी#शिक्षक परिणाम का इंतजार#शिक्षक भर्तियों का परिणाम लटका#शिक्षक भर्ती का परिणाम लटका#शिक्षक रिजल्ट का इंतजार कर रहा है#सहायक प्रोफेसर भर्ती#हिंदी समाचार#हिंदुस्तान#हिन्दी में समाचार#हिन्दुस्तान
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यूपीएचईएससी सहायक प्रोफेसर परिणाम 2022 यूपी सहायक प्रोफेसर स्कोर कार्ड परिणाम कट ऑफ मार्क्स यूपीएचईएससी सहायक प्रोफेसर परीक्षा परिणाम 2022 यूपीएचईएससी सहायक प्रोफेसर मेरिट सूची @ uphesc2022.co.in उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग (UPHESC) ने हाल ही में 30 अक्टूबर 2022 को सहायक प्रोफेसर लिखित परीक्षा आयोजित की है। 2003 पदों के लिए सहायक प्रोफेसर एसआई लिखित परीक्षा के लिए अधिसूचना जारी की जाएगी।…
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UPHESC Assistant Professor Admit Card 2022
UPHESC Assistant Professor Admit Card 2022
यूपीएचईएससी सहायक प्रोफेसर एडमिट कार्ड 2022 यूपीएचईएससी परीक्षा तिथि सरकारी परिणाम समाचार: उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग (UPHESC) सहायक प्रोफेसर पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित करेगा। 2022 में इन रिक्तियों के लिए बड़ी संख्या में उम्मीदवार आवेदन करेंगे। अब सभी उम्मीदवार यूपी सहायक प्रोफेसर परीक्षा के एडमिट कार्ड 2022 की तलाश कर रहे हैं। हम सभी उम्मीदवारों को सूचित करते हैं कि आप उत्तर…
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69000 सहायक अध्यापक भर्ती के पेपर लीक के मुद्दे पर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल,18 जनवरी को होगी सुनवाई, याचिका स्वीकार होने से अभ्यर्थियों में खुशी की लहर Shikshak Bharti,
69000 सहायक अध्यापक भर्ती के पेपर लीक के मुद्दे पर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल,18 जनवरी को होगी सुनवाई, याचिका स्वीकार होने से अभ्यर्थियों में खुशी की लहर Shikshak Bharti,
इलाहाबाद, 16 जनवरी 2019, 69000 शिक्षक भर्ती परीक्षा के पेपर लीक मामले पर माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल होने एवं 18 जनवरी को सुनवाई होने की सूचना पर पूरे प्रदेश के अभ्यर्थियों में खुशी की लहर दौड़ गई। युवाओं को न्यायालय से पूरी उम्मीद है कि उनके साथ न्याय होगा। 69000 शिक्षक भर्ती के पेपर लीक मामले में युवा मंच से जुड़े अभ्यर्थियों ने आज माननीय हाई कोर्ट में युवा मंच की प्रवक्ता संगीता पाल, प्रदीप कुमार तिवारी, प्रदीप कुमार सिंह, अंकुश कुमार व अखिलेश कुमार ने याचिका दाखिल कर दी। जिसकी सुनवाई 18 जनवरी को होगी। याचिका में 6 जनवरी को आयोजित हुई परिषदीय विद्यालयों के 69000 सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में वाट्सअप, यूट्यूब व इंटनेट पर परीक्षा शुरू होने के पूर्व प्रश्न पत्र व उत्तर कुंजी के लीक व उसके वायरल होने के पर्याप्त साक्ष्यों, प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से आयी खबरों एवं इसके खिलाफ प्रदेशव्यापी युवाओं के आंदोलन को देखते हुए तत्काल सुनवाई करने के अनुरोध को स्वीकार कर 18 जनवरी को सुनवाई का आदेश दिया है। इसमें सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी, सचिव बेसिक शिक्षा एवं राज्य सरकार को पार्टी बनाया गया है। याचिका में माननीय न्यायलय से प्रार्थना की गई है कि पेपर लीक के पर्याप्त साक्ष्यों को देखते हुए इस प्रकरण की निष्पक्ष संस्था से जांच कराई जाये और परीक्षा परिणाम तभी निकाला जाये जब कि पेपर लीक के अभ्यर्थियों द्वारा लगाये गये आरोप गलत साबित हो जायें। इसकी जानकारी युवा मंच के संयोजक राजेश सचान व अध्यक्ष अनिल सिंह ने दी। उन्होंने न्यायालय के माध्यम से लड़ी जा रही कानूनी लड़ाई एवं पूरे प्रदेश में भर्तियों में धांधली के खिलाफ चल रहे आंदोलन में ब�� चढ़ कर भागीदारी करने और तनम न धन से हर संभव सहयोग करने की अपील की है। उन्होंने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि हमारी जीत होगी और पेपर लीक व धांधली कराने वाले गिरोह पर शिकंजा कसेगा जिसे कि योगी राज में खुली छूट मिली हुई है। याचिका स्वीकार होने की सूचना मिलते ही संगीता पाल व अन्य याचियों से कहा कि उन्हें पूरा यकीन हैं कि अभ्यर्थियों के साथ न्याय होगा। उन्होंने यूुवाओं से हर स्तर पर सहयोग करने की अपील की। इसी मुद्दे पर पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत आज युवा मंच ने जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन एसीएम प्रथम को सौंपा गया। प्रदर्शन के दौरान आयोजित सभा को संबोधित करते हुए युवा मंच के संयोजक राजेश सचान ने कहा कि कि यूट्यूब के आईपी https://youtu.be/0w3wiy_Tv-w पर जिसे 5 जनवरी को चंद्र मोहन पटले द्वारा लोड किया गया है में उत्तर कुंजी की चारों सेरीज उपलब्ध हैं, यह उत्तर कुंजी की वही सेरीज हैं जो कि परीक्षा पूर्व वाट्सअप पर वायरल हुई थी। इसी वाट्सअप में वायरल उत्तरकुंजी की जिये टैग फोटोग्राफ जिसे परीक्षा पूर्व लिया गया था, जैसे महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं। इस साक्ष्यों की अगर निष्पक्ष जांच करा ली जाये तो पेपर लीक आसानी से साबित हो जायेगा। लेकिन पेपर लीक से जुड़े नकल माफियाओं पर कोई कार्यवाही योगी सरकार द्वारा न किये जाने से युवाओं में भारी नाराजगी है। उन्होंने कहा कि विस्फोटक हो रही बेरोजगारी संकट की पृष्ठभूमि में भर्तियों में धांधली भी बढ़ रही है और नकल माफिया तंत्र फल फूल रहा है।
भाजपा शासित राज्यों द्वारा इन नकल माफियाओं को खुली छूट देने से इनके राज्यों में व्यापम जैसे घोटाले हो रहे हैं। युवा मंच के अध्यक्ष अनिल सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री से उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग को दोहराते हुए कहा कि पेपर लीक के इतने स्पष्ट साक्ष्यों के बाद भी अगर जांच करा कर दोषियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही नहीं हुई और परीक्षा निरस्त कर पुनर्परीक्षा नहीं कराई गई तो युवाओं का विश्वास ही चयन संस्थाओं से उठ जायेगा। युवा मंच की संगीता पाल ने कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं और सरकार द्वारा कोई कार्यवाही भी नहीं की जा रही है जिससे युवा कुंठित हो रहे हैं। यूपी टेट मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप तिवारी ने कहा कि अगर बिना जांच कराये ही22 जनवरी को 69000 शिक्षक भर्ती का परिणाम घोषित कर दिया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। असिटेंट प्रोफेसर भर्ती के अभ्यर्थियों ने मनीष वर्मा व सुरेंद्र पाण्डेय के नेतृत्व में प्रदर्शन में शामिल हुए और 12 जनवरी को आयोजित हुई असिस्टेंट भर्ती परीक्षा को निरस्त करने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन प्रशासन को सौंपा। युवा मंच के संयोजक राजेश सचान, अध्यक्ष अनिल सिंह, संगीता पाल, प्रदीप तिवारी, ए�� अखिलेश कुमार, नित्यानंद तिवारी, अजय कुमार यटि, अनुवेश कुमार, सुरेंद्र पाण्डेय, मनीष वर्मा, प्रदीप कुमार सिंह, लक्ष्मण प्रजापति, प्रेम चंद गौतम,, एड विनोद कुमार सहित काफी संख्या में युवा मौजूद रहे।primary ka master, primary ka master current news, primarykamaster, basic siksha news, basic shiksha news, upbasiceduparishad, uptet
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