#मैं नास्तिक क्यों हूँ - भगत सिंह
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9to9imall · 4 months ago
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prabhatbooks · 1 year ago
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भगत सिंह मैं नास्तिक क्यों हूँ?
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 क्रांतिकारी आंदोलन
यह दर्शन सभी क्रांतिकारी आंदोलन की रीढ�� है बंगाल का भी और पंजाब का भी. इस मामले में मैं उनसे अलग हूं
यह बात बहुत व्यापक रूप से है. ब्रह्मांड की उनकी व्याख्या टेलिओलॉजिकल और मेटाफिजिकल है, जिसका मैं भौतिकवादी हूं और घटना की मेरी व्याख्या कारणात्मक होगी। फिर भी, यह किसी भी तरह से अप्रासंगिक या पुराना नहीं है। हमारे देश में जो सामान्य आदर्श प्रचलित हैं, वे अधिक हैं उनके द्वारा व्यक्त किये गये विचारों के अनुसार। उससे लड़ने के लिए निराशाजनक मनोदशा के कारण उन्होंने प्रार्थनाओं का सहारा लिया जैसा कि स्पष्ट है पुस्तक की संपूर्ण शुरुआत भगवान को समर्पित है, उनकी स्तुति, उनकी परिभाषा.
एल. राम सरन दास जी  कौन थे और उनके विचार क्या थे 
लाला राम सरन दास को 1915 में पहले लाहौर षडयंत्र मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सेलम सेंट्रल जेल, मद्रास प्रेसीडेंसी में रहते हुए, उन्होंने ड्रीम नामक पद्य में एक पुस्तक लिखी। बीस के दशक के मध्य में अपनी रिहाई के बाद उन्होंने भगत सिंह और सुखदेव से संपर्क किया और एचएसआरए में सक्रिय हो गए। दूसरे एलसीसी के सिलसिले में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार वह डगमगा गया और उसने राजा की क्षमा स्वीकार कर ली। जल्द ही उन्हें गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया। उन पर झूठी गवाही देने का आरोप लगाया गया और दो साल की सजा सुनाई गई जिसे बाद में अपील में घटाकर छह महीने कर दिया गया। इसी दृढ़ विश्वास के दौरान उन्होंने अपनी पांडुलिपि भगत सिंह को परिचय के लिए दी। इस लेख में भगत सिंह ने राम शरण दास के काम के पीछे की भावना की सराहना करते हुए, क्रांति की समस्याओं के प्रति उनके यूटोपियन दृष्टिकोण की आलोचना की है। उन्होंने ईश्वर, धर्म, हिंसा-अहिंसा, अध्यात्मवाद, साहित्य, काव्य आदि विषयों पर भी अपनी अभिव्यक्ति दी है।
मुफ्त शिक्षा के बारे में एल. राम सरन दास का विचार वास्तव में है विचारणीय है और समाजवादी सरकार ने इसे अपनाया है रूस में भी कुछ हद तक यही पाठ्यक्रम है। ड्रीमलैंड का परिचय 107 अपराध के बारे में उनकी चर्चा वास्तव में सबसे उन्नत विचारधारा है। अपराध सबसे गंभीर सामाजिक समस्या है जिसका बहुत ही चतुराईपूर्ण उपचार आवश्यक है। वह अपने जीवन के अधिकांश समय जेल में रहे हैं। उन्हें व्यावहारिक अनुभव प्राप्त है. एक स्थान पर उन्होंने सामान्य जेल की शर्तों, 'हल्का श्रम, मध्यम श्रम और कठिन श्रम' आदि का प्रयोग किया है। अन्य सभी समाजवादियों की तरह उनका सुझाव है कि, प्रतिशोध के बजाय, यानी प्रतिशोध के बजाय सुधारात्मक सिद्धांत को सजा का आधार बनाना चाहिए। . दण्ड देना नहीं बल्कि पुनः प्राप्त करना न्याय प्रशासन का मार्गदर्शक सिद्��ांत होना चाहिए। जेलों को सुधारगृह होना चाहिए न कि वास्तव में नरक। इस संबंध में पाठकों को रूसी जेल व्यवस्था का अध्ययन करना चाहिए।
खून के छींटे पड़े बब्बर अकालियों की होली का दिन क्रूसीफिक्स पर
1925-26 में भगत सिंह कानपुर में थे और हिंदी साप्ताहिक पार्टाप में गणेश शंकर विधार्थी के अधीन काम कर रहे थे। कानपुर में रहते हुए उन्होंने बब्बर अकाली आंदोलन के शहीदों के बारे में "एक पंजाबी युवक" पर हस्ताक्षर करते हुए यह लेख लिखा था। यह 15 मार्च, 1925 को प्रताप में प्रकाशित हुआ था। होली के दिन, 27 फरवरी, 1926 को, जब हम आनंद में डूबे हुए थे, एक भयानक घटना घट रही थी
इस महान प्रांत के एक कोने में. जब आप सुनेंगे तो सिहर उठेंगे! तुम कांप उठोगे! उस दिन छह बहादुर बब्बर अकालियों को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई। श्री किशन सिंहजी गडगज्जा, श्री संता सिंहजी, श्री दिलीप सिंहजी, श्री नंद सिंहजी, श्री करम सिंहजी और श्री धरम सिंहजी पिछले दो वर्षों से मुकदमे के प्रति बड़ी उदासीनता दिखा रहे थे, जो बताता है…….
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karanaram · 4 years ago
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🚩 टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था भगत सिंह का वामपंथ -23 मार्च 2021
🚩 अमर क्रांतिकारी भगत सिंह को वामपंथी अक्सर अपने गुट का दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उन्हें ऐसे चित्रित किया जाता है, जैसे वो वामपंथ के अनुयायी रहे हों और वो वही वामपंथ है, जो आज जेएनयू में कुछ ‘छात्रों’ द्वारा और देश के कई हिस्सों में नक्सलियों द्वारा फॉलो किया जाता है। देश के लिए बलिदान देने वाले एक राष्ट्रवादी को इस तरह से एक संकीर्ण विचारधारा के भीतर बाँधना वामपंथियों की एक चाल है।
🚩 जैसा कि हम जानते हैं, भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए शूली पर चढ़ गए थे। इतने कम उम्र में क्रांतिकारी, विद्वान और चिंतक होने का अर्थ है कि उन्होंने काफी कम समय में देश-दुनिया की कई विचारधाराओं को पढ़ा और कई क्रांतिकारियों का अध्ययन किया।
🚩 भगत सिंह के नास्तिक होने की बात को ऐसे प्रचारित किया जाता है, जैसे वे हिन्दू धर्म से और देवी-देवताओं से घृणा करते हों। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। वामपंथी स्वतंत्रता सेनानियों में भी विचाधारा के हिसाब से बँटवारा करते हैं। वीर सावरकर उनके लिए मजाक का विषय हैं और उन्हें ‘माफ़ी माँगने वाला’ बताया जाता है। यहाँ हम इस प्रपंच पर बात करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछेक घटनाओं को देखते हैं।
शुरुआत उसी संगठन के मैनिफेस्टो से क्यों न करें, जिसके भगत सिंह अहम सदस्य थे? हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मैनिफेस्टो में ही लिखा हुआ था कि वे भारत के समृद्ध इतिहास के महान ऋषियों के नक्शेकदम पर चलेंगे। इसमें कहा गया था कि कमजोर, डरपोक और शक्तिहीन व्यक्ति न तो अपने लिए और न ही देश के लिए कुछ कर सकता है। क्या वामपंथी इस संगठन को भी गाली देंगे, जिसके तहत भगत सिंह काम करते थे?
🚩 वीर सावरकर से काफी प्रभावित थे भगत सिंह
अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ‘सिपाही विद्रोह’ साबित करने की भरसक कोशिश की, लेकिन वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक पुस्तक के जरिए इस धारणा को तोड़ दिया। क्या आपको पता है कि इस पुस्तक का एक संस्करण भगत सिंह के क्रांतिकारी दल ने भी प्रकाशित किया था?
उनके सहयोगी राजाराम शास्त्री ने कहा था कि वीर सावरकर की इस पुस्तक ने भगत सिंह को काफी प्रभावित किया था। उन्होंने राजाराम शास्त्री को भी ये पुस्तक पढ़ने के लिए दी और फिर प्रकाशन के लिए ��ोजना बनाई। उन्होंने ही प्रेस का प्रबंध किया और रात को प्रूफ रीडिंग के लिए शास्त्री के पास वो पन्ने भेजते और सुबह ले जाते। सुखदेव ने भी इस काम में बखूबी साथ दिया था। राजर्षि टंडन ने इसकी पहली प्रति खरीदी।यहाँ तक कि 1929-30 में भगत सिंह और उनके साथियों की गिरफ़्तारी के समय भी अंग्रेजों को उनके पास से वीर सावरकर की पुस्तक की काफी प्रतियाँ मिलीं। लेकिन, आज के वामपंथी भगत सिंह को तो गले लगाते हैं, लेकिन वीर सावरकर के बारे में क्या सोचते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। जब भाजपा ने महाराष्ट्र चुनाव से पहले उन्हें भारत रत्न देने का वादा किया तो सीपीआई इसका विरोध करने वाली पहली पार्टी थी।
🚩 सीपीआई ने कहा था कि एक मिथक बना दिया गया है कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और राष्ट्रवादी थे। पार्टी ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत सावरकर जैसे ‘सांप्रदायिक व्यक्ति’ को आइकॉन बनाया जा रहा है। उन्हें ‘डरपोक’ लिखा गया। कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब सावरकर के योगदानों पर चर्चा की तो सीपीआई ने उन पर भी निशाना साधा। अब जब यही वामपंथी भगत सिंह को गले लगाने का नाटक करें तो इसे क्या कहा जाए? अर्थात, वामपंथी कहते हैं कि सावरकर ‘सांप्रदायिक ह��ंदुत्ववादी’ हैं, लेकिन भगत सिंह ने वीर सावरकर की पुस्तकों को न सिर्फ छपवाया बल्कि वो इससे काफी प्रभावित भी थे- इस पर वो कन्नी काट जाते हैं। ड्रामेबाज वामपंथियों का ये दोहरा रवैया बताता है कि भगत सिंह को ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का हिस्सा बताने के लिए वो पागल हो रहे हैं। जिनकी श्रद्धा भारत से ज्यादा चीन के लिए है, वो देश के बलिदानियों पर भला क्यों गर्व करें?
🚩 लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं वामपंथी?
भगत सिंह ने ब्रिटिश एएसपी जॉन सॉन्डर्स का वध क्यों किया था? भारत की राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के लिए लंदन से साइमन कमीशन को भेजा गया। भारत में ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने इसका प्रचंड विरोध किया। लाहौर में इसके विरोध के दौरान उन्हें लाठी लगी। इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसने भगत सिंह सहित ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सभी क्रांतिकारियों को आक्रोशित कर दिया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही भगत सिंह और उनके साथियों ने अपनी जान को दाँव पर लगाया था। लाला लाजपत राय की मृत्यु के ठीक 1 महीने बाद भगत सिंह ने अपना बदला पूरा किया और आर्य समाज के नेता रहे लालाजी को अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दी। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक ‘शहीद भगत सिंह- क्रांति में एक प्रयोग’ में लिखा है कि भगत सिंह, लाला लाजपत राय के समर्पण और देशसेवा के सामने अपना सिर झुकाते थे।उन्होंने लिखा है कि कैसे जब भगत सिंह ने उस प��रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय को अंग्रेजों की ला��ी खा कर जमीन पर गिरता हुआ देखा तो उनके अंदर जालियाँवाला बाग़ नरसंहार के बाद जो गुस्सा भर गया था वो और धधक उठा। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि गोरे एक भलेमानुष के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं। उनकी मृत्यु के बाद इन क्रांतिकारियों की जो बैठक हुई, उसमें ऐसा गम का माहौल था जैसे उनके घर के किसी बुजुर्ग की हत्या कर दी गई हो।
🚩 अब वापस उन वामपंथियों पर आते हैं, जो भगत सिंह को तो अपना मानने का नाटक करते हैं, लेकिन उन्होंने किसके लिए बलिदान दिया- इससे वो अनजान बन कर रहना चाहते हैं और लोगों को भी अनजान रखना चाहते हैं। लेकिन, वो लोग लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं, जरा वो देखिए। इतिहासकार विपिन चंद्रा ने अपनी पुस्तक ‘India’s Struggle for Independence, 1857-1947‘ में उन्हें लिबरल और मॉडरेट कम्युनिस्ट साबित करने का प्रयास किया है।
🚩 लाला लाजपत राय एक राष्ट्रवादी थे और हिंदुत्व को लेकर उनकी श्रद्धा अगाध थी। वो आर्य समाजी थे। भारत में हिंदुत्व भावना को पुनर्जीवित कर लोगों में अपने प्राचीन इतिहास के प्रति गौरव जगाने वालों में तिलक और लाला लाजपत राय का नाम आता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और छत्रपति शिवाजी का चरित्र लिखा। लाला लाजपत राय वेदों को हिन्दू धर्म की रीढ़ मानते थे। वो कहते थे कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है।जबकि आज के वामपंथी असहिष्णुता की ढपली बजाते हैं। भगत सिंह के गुरु लाला लाजपत राय जिस हिन्दू धर्म को विश्व को सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते थे, वामपंथी उसे गाली देते हैं। जिन वेदों को भी हिंदू धर्म की रीढ़ मानते थे, उन्हें वामपंथी ब्राह्मणों का ‘प्रोपेगेंडा’ कहते हैं। जब गुरु के लिए वामपंथियों के मन में कोई सम्मान नहीं है तो उसके शिष्य के लिए कैसे हो सकता है? क्यों न इसे ड्रामा माना जाए?
🚩 जनेऊधारी आजाद और भगत सिंह
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों में आपने उन्हें नंगे बदन मूँछों पर ताव देते हुए और जनेऊ व धोती पहने हुए देखा होगा। वो ब्राह्मण थे। वो वाराणसी में संस्कृत के छात्र थे और उन्होंने इस भाषा के ज्ञान के कारण हिन्दू ग्रंथों का भी अध्ययन किया। भगत सिंह का उनके साथ अच्छा सम्बन्ध था। देश के लिए दोनों ने साथ मिल कर काम भी किया। लेकिन कभी भगत सिंह को इससे दिक्कत नहीं हुई।
🚩 वहीं आज के वामपंथी जनेऊ के बारे में क्या सोचते हैं? आज यही वामपंथी यज्ञोपवीत को अत्याचार का प्रतीक मानते हैं। वो कहते हैं कि ये ब्राह्मणों के खुद को श्रेष्ठ दिखाने की निशानी है। क्या भगत सिंह ने कभी चंद्रशेखर आजाद से ऐसा कहा होगा? बिलकुल नहीं। फिर किस मुँह से ये वामपंथी ��ुद की विचारधारा के भीतर भगत सिंह को बाँधने की कोशिश करते हैं? वीर सावरकर, लाला लाजपत राय और चंद्रशेखर आजाद के विचारों का ये सम्मान क्यों नहीं करते?जबकि इन तीनों के प्रति ही भगत सिंह की अपार श्रद्धा थी। भगत सिंह के पार्थिव शरीर को जलाने की अंग्रेजों ने कोशिश की थी, गुपचुप तरीके थे। लेकिन, बाद में परिवार ने पूरे वैदिक तौर-तरीके से रावी नदी के किनारे उनके शरीर को मुखाग्नि दी। क्या ये वामपंथी भगत सिंह के परिवार को भी कोसेंगे? उनका परिवार को स्वामी दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज आंदोलन से काफी ज्यादा प्रभावित था।
आज वाले वामपंथी नहीं थे भगत सिंह, उनके कुछ सवाल थे
🚩 भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने दयानन्द सरस्वती को सुना था और वो उनसे खासे प्रभावित थे। वो माँस-शराब का सेवन नहीं करते थे, संध्या वंदन करते थे और यज्ञोपवीत धारण करते थे। उन्होंने एक पुस्तक लिख कर दिखाया कि कैसे सिख गुरु भी वेदों की शिक्षाओं को मानते थे। ‘ईश्वर की उपस्थिति’ और भारत के बड़े-बड़े संतों ने चर्चा की है और इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि वे सारे वामपंथी हैं।
🚩 भगत सिंह का वामपंथ टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था।1962 के युद्ध में चीन का समर्थन करने वाले और हालिया भारत-चीन तनाव के दौरान चीन की निंदा तो दूर, अपनी ही सरकार के स्टैंड का विरोध करने वाले वामपंथियों को समझना चाहिए कि भगत सिंह ने ईश्वर के अस्तित्व पर चिंतन किया था और अपने अध्ययन और विचारों के हिसाब से लेख लिखे, जिनके आधार पर उन्हें वामपंथी ठहराना सही नहीं है।भगत सिंह ने कभी ऐसा नहीं लिखा कि वो हिन्दू धर्म को नहीं मानते या फिर वो हिन्दू देवी-देवताओं से घृणा करते हैं। उनके पास बस कुछ सवाल थे, जो उनके लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ में सामने आता है। उनके विचार था कि फाँसी के बाद उनकी ज़िंदगी जब समाप्त होगी, उसके बाद कुछ नहीं है। वो पूर्ण विराम होगा। वे पुनर्जन्म को नहीं मानते थे। वो प्राचीन काल में ईश्वर पर सवाल उठाने वाले चार्वाक की भी चर्चा करते थे।
🚩 उन्होंने लिखा है: “मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं। एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं। उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्वर में ��ृढ़ विश्वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ।”
ऊपर की पंक्तियों को देख कर और भगत सिंह के इस लेख को पढ़ कर स्पष्ट होता है कि कुछ रूढ़िवादी चीजें थीं, जिनसे उन्हें दिक्कतें थीं। वो ये मानने को तैयार नहीं थे कि मनुष���य अपने पुनर्जन्म के पापों की सज़ा इस जन्म में भोग रहा है। उनके सवाल थे कि राजा के विरुद्ध जाना हर धर्म में पाप क्यों है? उनके सारे धर्मों के बारे में एक ही विचार थे। वे दो समुदाय के लोगों के बीच धर्म को लेकर होने वाले तनाव के खिलाफ थे।
आज का वामपंथ, आज के वामपंथी, और भगत सिंह
🚩 स्वतंत्रता सेनानियों में सिर्फ बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय ही नहीं थे, जो हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में विश्व रखते हुए धर्म और राष्ट्र को एक साथ देखते थे, बल्कि क्रांतिकारियों में भी कई ऐसे थे जो कर्मकांड करते थे, प्रखर हिंदूवादी थे। ‘बिस्मिल’ खुद आर्यसमाजी थे। बटुकेश्वर दत्त पूजन-वंदन किया करते थे।पंडित मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म की शिक्षा को महत्ता देते थे। इन सबके बारे में भगत सिंह के क्या ख्याल हैं? असल में आज का वामपंथ देश को खंडित करने वाला, चिकेन्स नेक को काट कर चीन को भारत पर हमला करने का मौके देने वाला और ‘नरेंद्र मोदी भ@वा है’ का नारा लगाने वाला है। जबकि भगत सिंह की विचारधारा क्रांति की थी। वो रूस के क्रांतिकारियों से इसीलिए प्रभावित थे, क्योंकि उन्हें उनलोगों से क्रान्ति के तौर-तरीकों की सीख मिलती थी। वो उन्हें अध्ययन कर के भारत के परिप्रेक्ष्य में आजमाने के तरीके ढूँढ़ते थे।
🚩 आज वामपंथियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे अपने देश की सेना का सम्मान कर सकें, तो फिर वो देश के लिए बलिदान देने वाले को अपनी विचारधारा का व्यक्ति कैसे बता सकते हैं? अरुंधति रॉय जैसे लोग तो विदेश में जाकर भारतीय सेना को अपने ही लोगों पर ‘अत्याचार करने वाला’ बताते हैं, क्या भगत सिंह किसी भी कीमत पर इस चीज को बर्दाश्त करते? देश के खिलाफ बोलने वालों के लिए क्रांति सिर्फ अपने ही देश के लोगों को मारना है।
🚩 आज नक्सली झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक सरकारी कर्मचारियों को मारते हैं, अपने ही देश के लोगों का खून बहाते हैं और संविधान को नहीं मानते हैं। क्या भगत सिंह को अपना बनाने का नाटक करने वाले वामपंथी वामपंथ के इस हिस्से की निंदा करने का भी साहस जुटा पाते हैं? नहीं। आज का वामपंथ चीनपरस्ती का वामपंथ है, जो अपने ही देश के इतिहास और संस्कृति से घृणा करता है, भगत सिंह का नाम भी लेने का इन्हें कोई अधिकार नहीं।
🚩 और हाँ, यज्ञोपवीत को ब्राह्मणों का आडम्बर और अत्याचार का प्रतीक बताने वाले वामपंथियों को ये बात भी पसंद नहीं आएगी कि भगत सिंह का भी यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। एक पत्र में उन्होंने अपने पिता को याद दिलाया है कि वे जब बहुत छोटे थे, तभी बापू जी (दादाजी) ने उनके जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि उन्हें वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है।
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1374190412810743809?s=19
🚩 आज के वामपंथी ये जान कर अच्छा महसूस नहीं करेंगे कि भगत सिंह ने देशसेवा का जो वचन निभाया, वो उनके यज्ञोपवीत संस्कार से उनके ही पूर्वजों ने दिया था। वामपंथ ने नहीं। किसी एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी का नाम अपने निहित स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना कर उसके प्रेरकों को गाली देना, ये भगत सिंह का अपमान नहीं तो और क्या है? अखंड भारत के लिए लड़ने वाला ‘टुकड़े-टुकड़े’ के नारे लगाने वालों का आइडल कैसे हो सकता है?
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rhymecloud · 4 years ago
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Mai naastik kyun hoon? - Bhagat Singh
मैं नास्तिक क्यों हूँ? शहीद भगत सिंह (यह लेख 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ ।) एक नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ है। क्या मैं किसी अहंकार के कारण सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी तथा सर्वज्ञानी ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता हूँ? मेरे कुछ दोस्त – शायद ऐसा कहकर मैं उन पर बहुत अधिकार नहीं जमा रहा हूँ – मेरे साथ अपने थोड़े से सम्पर्क में इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये उत्सुक…
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latesthindinewsindia · 6 years ago
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जन्मदिन विशेष : भगत सिंह सिर्फ नाम नहीं ‘विचार’ है, जिसे टी-शर्ट में नहीं दिल में रखने की ज़रूरत है !
हर साल 28 सितंबर को हम शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस के रूप में मनाते है। कई राजनेता भी सोशल मीडिया पर भगत सिंह की तस्वीर डाल कर कहते है कि भगत सिंह उनकी प्रेरणा हैं, ये बात और है कि हर महापुरुषों के जन्मदिवस पर उनकी प्रेरणा बदलती रहती है।
आम लोग भी भगत सिंह को सिर्फ टी-शर्ट या सोशल मीडिया तक ही सीमित रखते है। ये सब देखकर अच्छा लगता है कि लोग भगत सिंह को शहीद के रूप याद कर रहे है। लेकिन क्या इतना ही काफी है?
असल में भगत सिंह कौन थे? उनके विचार क्या थे? हम इन सब बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। भगत सिंह ने कहा था कि व्यक्ति को मारना आसान काम है लेकिन विचारो को मारना मुश्किल है लेकिन आज की परिस्तिथि में ये बात बिलकुल विपरीत हो गई। आज हमने भगत सिंह को एक क्रांतिकारी व्यक्ति के रूप में याद किया हैं लेकिन, आज भी हम उनके विचारो से पूरी तरह परिचित नहीं है
2019 का साल ‘लोकतंत्र की हत्या’ का साल होगा, मोदी और मीडिया ‘झूठ’ बोलकर देश को गुमराह करेंगे : रवीश कुमार
भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे। जिन्होंने 23 साल 5 महीने और 26 दिन की उम्र में देश को आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राणो का बलिदान कर दिया। भगत सिंह वामपंथी विचारधारा के क्रांतिकारी थे। आज हम उनके अनुच्छेद ” मैं नास्तिक क्यों हूँ ” का ज़िक्र करेंगे। जिसमे उन्होंने बताया है कि वह ईश्वर की सर्वशक्तिमान छवि को क्यों नहीं मानते थे। इस कारण उनके मित्रगण उन्हें अहंकारी बताते थे। लेकिन भगत सिंह के अनुच्छेद ” मैं नास्तिक क्यों हूँ ” में कही उनके बातें आज भी प्रासंगिक है।
उनके अनुच्छेद में उन्होंने कहा कि ” अगर ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं तो वह तो वह दुःख, तकलीफ ,और अत्याचार को मिटा क्यों नहीं देता। अगर वह ऐसा नहीं कर सकता हैं तो फिर उसने ऐसी दुनिया की क्यों बनाई, जहाँ भूख से तड़पे लाखो इंसान अत्याचार सहकर कितनी बेबसी देख रहे है। भगत सिंह सवाल करते है कि भगवान् ने ऐसी दुनिया क्यों बनाई, जिसमे कोई संतुष्ट नहीं है।
अगर आप ये कहते है कि ये भगवान का ही नियम हैं तो भगत सिंह सवाल करते हैं कि ” अगर भगवान भी नियमो से बंधा हैं, अगर भगवान नियमो का दास है तो भगवान सर्वशक्तिमान कैसे है ?
भगत सिंह अपने अनुच्छेद में बताते है कि अंग्रेजो ने हम पर इसलिए शासन नहीं किया कि भगवान उनके साथ था। अंग्रेजो ने हम पर इसलिए शासन किया कि उनके पास ताकत थी।
युवा ‘पकौड़े’ बेचकर रोज़ 200 रुपये कमाएं और चौकीदार साहेब के ‘परम मित्र’ रोज़ 300 करोड़ रुपये अपनी तिजोरी में डालें : कन्हैया
भगत सिंह ने धार्मिक अंधविश्वास की कड़ी आलोचना में कहा कि दुनिया के लोग क्या क्या नहीं करते लेकिन हमारे में लोग पवित्र जीव के नाम पर अपने ही लोगो का सिर फोड़ रहे है। भगत सिंह ने ये सब बातें 1928 में कही थी लेंकिन आज तक ये बातें प्रासंगिक है। आज भी भारत के लोग गाय माता के नाम पर अपने ही लोगो क��� बेरहमी से हत्या कर देते है।
क्या भगत सिंह ने ऐसी ही आज़ादी के लिए अपने प्राणो का बलिदान दिया था। जिसमे नेता हिन्दू-मुसलमान के नाम पर देश में नफरत का माहौल बनाएंगे। जहाँ महिलाओ को छेड़छाड़ और बलात्कार जैसा घिनौना अत्याचार झेलना पड़े।
जहाँ सरकार द्वारा अपने अधिकारों की मांग करने और अन्याय के खिलाफ लड़ने पर महिलाओ को लाठियों से पीटा जाए। जहाँ पत्रकार का काम सत्ता की चाटुकारिता करना और देश में सत्ता के हित में नफरत का माहौल तैयार करना हो। जहाँ सत्ता की आलोचना करने पर पत्रकारों को मार दिया जाएं।
नहीं ये भगत सिंह ये सपनो का भारत नहीं है। ये वो आज़ादी नहीं है जिसका सपना भगत सिंह और क्रांतिकारी साथियों ने देखा था। ये तो वही बात हुई कि “ गोरे चले और भूरे आ गए ” यानी सिर्फ शासन ही बदला है पहले अंग्रेजो का था अब भारतीयों का शासन है लेकिन शासन का तरीका अभी भी शोषणकारी ही है। अभी भी किसान आत्महत्या कर रहे है, अभी भी आदिवासियों की ज़मीने छीनी जा रही है, अभी भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, अभी भी दलितों और मुसलमानो पर अत्याचार हो रहे है।
मीडिया पर नजरः मोदी की गोदी में बैठकर ‘विपक्ष’ से सवाल कर रहा है मीडिया, पात्रा से बड़े BJP प्रवक्ता बने अमीश देवगन!
भगत सिंह को टी-शर्ट पर नहीं अपने दिल में जगह देने की जरुरत है। हमें भगत सिंह के विचारो को समझकर उसे अमल में लाना चाहिए । उनके विचारो पर अमल करके ही हम उनके सपनो के भारत की रचना कर सकते है। उनके विचारो पर चलकर ही हम उन्हें के बेहतर श्रद्धांजलि दे सकते है।
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source http://hindi-news.krantibhaskar.com/latest-news/hindi-news/27699/
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varsha0055 · 7 years ago
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*आज का प्रसंग* *मेरा रँग दे बसन्ती चोला* जेल में भगत सिंह ने करीब २ साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। *उनके उस दौरान लिखे गये लेख व सगे सम्बन्धियों को लिखे गये पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। अपने लेखों में ��न्होंने कई तरह से पूँजीपतियों को अपना शत्रु बताया है।* उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था मैं नास्तिक क्यों हूँ? *जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने ६४ दिनों तक भूख हडताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे।* जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - *"ठीक है अब चलो।"* फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे - *मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे*; *मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला*।। फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। *गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आये। इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गये। जब गाँव वाले पास आये तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया।* और भगत सिंह हमेशा के लिये अमर हो गये। इसके बाद लोग अंग्रेजों के साथ-साथ गान्धी को भी इनकी मौत का जिम्मेवार समझने लगे। इस कारण जब गान्धी कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झण्डों के साथ गान्धीजी का स्वागत किया। *एकाध जग़ह पर गान्धी पर हमला भी हुआ, किन्तु सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस ने बचा लिया।* 📚संकलन :- *राजेन्द्र लालवानी* *आज का प्रश्न* प्रश्न (३व/३५१):- *भगत सिंह को हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती थी जो उन्होंने किस से सीखी थी?* प्रश्न(३व/३५०):- मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन मैं वापस अवश्य आऊंगा. *किसके शब्द हैं?* उतर:- *कैप्टन विक्रम बत्रा,परम वीर चक्र* Like page 🌎http (at Ajmer)
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