#मैं नास्तिक क्यों हूँ ?
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भगत सिंह मैं नास्तिक क्यों हूँ?
क्रांतिकारी आंदोलन
यह दर्शन सभी क्रांतिकारी आंदोलन की रीढ़ है बंगाल का भी और पंजाब का भी. इस मामले में मैं उनसे अलग हूं
यह बात बहुत व्यापक रूप से है. ब्रह्मांड की उनकी व्याख्या टेलिओलॉजिकल और मेटाफिजिकल है, जिसका मैं भौतिकवादी हूं और घटना की मेरी व्याख्या कारणात्मक होगी। फिर भी, यह किसी भी तरह से अप्रासंगिक या पुराना नहीं है। हमारे देश में जो सामान्य आदर्श प्रचलित हैं, वे अधिक हैं उनके द्वारा व्यक्त किये गये विचारों के अनुसार। उससे लड़ने के लिए निराशाजनक मनोदशा के कारण उन्होंने प्रार्थनाओं का सहारा लिया जैसा कि स्पष्ट है पुस्तक की संपूर्ण शुरुआत भगवान को समर्पित है, उनकी स्तुति, उनकी परिभाषा.
एल. राम सरन दास जी कौन थे और उनके विचार क्या थे
लाला राम सरन दास को 1915 में पहले लाहौर षडयंत्र मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सेलम सेंट्रल जेल, मद्रास प्रेसीडेंसी में रहते हुए, उन्होंने ड्रीम नामक पद्य में एक पुस्तक लिखी। बीस के दशक के मध्य में अपनी रिहाई के बाद उन्होंने भगत सिंह और सुखदेव से संपर्क किया और एचएसआरए में सक्रिय हो गए। दूसरे एलसीसी के सिलसिले में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार वह डगमगा गया और उसने राजा की क्षमा स्वीकार कर ली। जल्द ही उन्हें गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया। उन पर झूठी गवाही देने का आरोप लगाया गया और दो साल की सजा सुनाई गई जिसे बाद में अपील में घटाकर छह महीने कर दिया गया। इसी दृढ़ विश्वास के दौरान उन्होंने अपन�� पांडुलिपि भगत सिंह को परिचय के लिए दी। इस लेख में भगत सिंह ने राम ��रण दास के काम के पीछे की भावना की सराहना करते हुए, क्रांति की समस्याओं के प्रति उनके यूटोपियन दृष्टिकोण की आलोचना की है। उन्होंने ईश्वर, धर्म, हिंसा-अहिंसा, अध्यात्मवाद, साहित्य, काव्य आदि विषयों पर भी अपनी अभिव्यक्ति दी है।
मुफ्त शिक्षा के बारे में एल. राम सरन दास का विचार वास्तव में है विचारणीय है और समाजवादी सरकार ने इसे अपनाया है रूस में भी कुछ हद तक यही पाठ्यक्रम है। ड्रीमलैंड का परिचय 107 अपराध के बारे में उनकी चर्चा वास्तव में सबसे उन्नत विचारधारा है। अपराध सबसे गंभीर सामाजिक समस्या है जिसका बहुत ही चतुराईपूर्ण उपचार आवश्यक है। वह अपने जीवन के अधिकांश समय जेल में रहे हैं। उन्हें व्यावहारिक अनुभव प्राप्त है. एक स्थान पर उन्होंने सामान्य जेल की शर्तों, 'हल्का श्रम, मध्यम श्रम और कठिन श्रम' आदि का प्रयोग किया है। अन्य सभी समाजवादियों की तरह उनका सुझाव है कि, प्रतिशोध के बजाय, यानी प्रतिशोध के बजाय सुधारात्मक सिद्धांत को सजा का आधार बनाना चाहिए। . दण्ड देना नहीं बल्कि पुनः प्राप्त करना न्याय प्रशासन का मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। जेलों क�� सुधारगृह होना चाहिए न कि वास्तव में नरक। इस संबंध में पाठकों को रूसी जेल व्यवस्था का अध्ययन करना चाहिए।
खून के छींटे पड़े बब्बर अकालियों की होली का दिन क्रूसीफिक्स पर
1925-26 में भगत सिंह कानपुर में थे और हिंदी साप्ताहिक पार्टाप में गणेश शंकर विधार्थी के अधीन काम कर रहे थे। कानपुर में रहते हुए उन्होंने बब्बर अकाली आंदोलन के शहीदों के बारे में "एक पंजाबी युवक" पर हस्ताक्षर करते हुए यह लेख लिखा था। यह 15 मार्च, 1925 को प्रताप में प्रकाशित हुआ था। होली के दिन, 27 फरवरी, 1926 को, जब हम आनंद में डूबे हुए थे, एक भयानक घटना घट रही थी
इस महान प्रांत के एक कोने में. जब आप सुनेंगे तो सिहर उठेंगे! तुम कांप उठोगे! उस दिन छह बहादुर बब्बर अकालियों को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई। श्री किशन सिंहजी गडगज्जा, श्री संता सिंहजी, श्री दिलीप सिंहजी, श्री नंद सिंहजी, श्री करम सिंहजी और श्री धरम सिंहजी ��िछले दो वर्षों से मुकदमे के प्रति बड़ी उदासीनता दिखा रहे थे, जो बताता है…….
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भागय सिंह मैं नास्तिक क्यों हूँ?
भागय सिंह मैं नास्तिक क्यों हूँ?
लाहौर की गिरफ़्ता��ी
मई 1927 में मुझे लाहौर में गिरफ्तार कर लिया गया। यह गिरफ़्तारी आश्चर्यजनक थी। मैं इस बात से बिल्कुल अनजान था कि पुलिस मुझे चाहती है. अचानक एक बगीचे से गुजरते हुए मैंने खुद को पुलिस से घिरा हुआ पाया। मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं उस समय बहुत शांत था।
मुझे कोई अनुभूति महसूस नहीं हुई, न ही कोई उत्तेजना महसूस हुई. मुझे पुलिस हिरासत में ले लिया गया. अगले दिन मुझे रेलवे पुलिस हवालात में ले जाया गया जहां मुझे पूरा एक महीना गुजारना था। पुलिस अधिकारियों से कई दिनों की बातचीत के बाद मैंने अनुमान लगाया कि उन्हें काकोरी पार्टी से मेरे संबंध के बारे में कुछ जानकारी थी
क्रांतिकारी पत्रक की कहानी
क्रांतिकारी पत्रक'' - 28 जनवरी, 1925 को पूरे भारत में वितरित किया गया, अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार, उनके बौद्धिक श्रम का परिणाम था। अब, जैसा कि गुप्त कार्य में अपरिहार्य है, प्रमुख नेता अपने स्वयं के विचार व्यक्त करता है, जो उसके व्यक्ति को बहुत प्रिय होते हैं, और बाकी कार्यकर्ताओं को उनके साथ सहमत होना पड़ता है - मतभेदों के बावजूद।
उस पत्रक में एक पूरा अनुच्छेद सर्वशक्तिमान और उसके आनन्द और कार्यों की स्तुति करने के लिए समर्पित था। वह सब रहस्यवाद है. मैं जो कहना चाहता था वह यह था कि क्रांतिकारी दल में अविश्वास का विचार उत्पन्न ही नहीं हुआ था।
राम प्रसाद जी कौन थे
राम प्रसाद बिस्मिल एक रूढ़िवादी आर्य थे समाजवादी. समाजवाद के क्षेत्र में उनके व्यापक अध्ययन के बावजूद
और साम्यवाद को राजेंद्र लाहिड़ी दबा नहीं सके उपनिषद और गीता के श्लोकों का पाठ करने की इच्छा। मैंने देखा
उनमें से केवल एक ही व्यक्ति था जिसने कभी प्रार्थना नहीं की और न ही कभी प्रार्थना की कहने का मतलब है, "दर्शन मानवीय कमजोरी का परिणाम है।" ज्ञान की सीमा” वह सजा भी काट रहे हैं जीवन के लिए परिवहन का. लेकिन उन्होंने भी कभी इनकार करने की हिम्मत नहीं की ईश्वर का अस्तित्व.
मैज़िनी कौन थे
शायद गैरीबाल्डी इतनी आसानी से सेना जुटाने में सफल नहीं हो पाता अगर मैज़िनी ने अपने तीस साल सांस्कृतिक और साहित्यिक पु��र्जागरण के मिशन में नहीं लगाए होते। आयरलैंड में पुनर्जागरण के साथ-साथ आयरिश भाषा के पुनरुद्धार का प्रयास भी उसी उत्साह के साथ किया गया।
शासक आयरिश लोगों के अंतिम दमन के लिए उनकी भाषा को इतना दबाना चाहते थे कि गेलिक में कुछ छंद रखने के अपराध के लिए बच्चों को भी दंडित किया गया था। रूसो और वोल्टेयर के साहित्य के बिना फ्रांसीसी क्रांति असंभ��� होती। यदि टॉल्स्टॉय, कार्ल मार्क्स और मैक्सिम गोर्की ने अपने जीवन के वर्षों को नए साहित्य के निर्माण में नहीं लगाया होता, तो रूसी क्रांति नहीं हुई होती, साम्यवाद के प्रचार और अभ्यास की तो बात ही छोड़ दें।
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आत्मा के साकार या निराकार पर विवाद
प्रिय आर्यजनो!
पिछले दिनों मेरे पास कई युवकों के फोन आये कि जीवात्मा साकार है वा निराकार है? इस पर मैंने उन्हें यही कहा कि मैं इन विषयों पर विवाद करने वालों की भाँति खाली नहीं बैठा हूँ। आज हमारे विद्वानों को इस बात की कोई चिन्ता नहीं कि हम लगभग 150 वर्षों में वेद को संसार में तो दूर, बल्कि अपने परिवार में भी प्रतिष्ठित नहीं कर पाये और न उसे समझ नहीं पाये। ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त व उपनिषदों के रहस्य भी समझने का पूर्ण प्रयत्न नहीं हुआ। आर्य समाज के तृतीय नियम को अंशमात्र भी सिद्ध नहीं कर पाये, अपने बच्चों व स्वयं को भी पाश्चात्य शिक्षा, विशेषकर विज्ञान का दास बनने से नहीं रोक पाये, ईसाहयत व इस्लाम के आक्रमणों का उत्तर भी केवल आदरणीय पण्डित महेन्द्रपाल ज�� आर्य एवं 2-4 युवा ही (प्रिय राहुल आर्य, प्रिय अंकुर आर्य, प्रिय सन्दीप आर्य आदि) अपने स्वयं के बल पर ही दे रहे हैं।
नास्तिकता के प्रहार का उत्तर देने वाला कोई दिखाई नहीं दे रहा, तब आत्मा के साकार व निराकार होने पर विवाद करने में समय नष्ट क्यों कर रहे हैं। जो शरीर में आत्मा और सृष्टि में परमात्मा को नहीं मानते, उन्हीं से पहले शास्त्रार्थ करके देख लें। इनमें से प्रायः अधिकांश आत्म साक्षात्कार का प्रयास करना तो दूर, बल्कि संध्या भी मन लगाकर नहीं करते होंगे परन्तु अपनी-2 प्रतिष्ठा के प्रश्न को लेकर आपस में लड़ रहे हैं। जो आज शास्त्रार्थ की बात कर रहे हैं, वे पहले बतायें कि उन्होंने किस-2 से किस-2 विषय पर अब तक शास्त्रार्थ किया है? कौन-2 से शास्त्र समझ लिये हैं। सत्यार्थ प्रकाश का आठवां समुल्लास भी कितना समझ लिया है, जो कोई मुझे शास्त्रार्थ की चुनौती देता है, वह इस बात को जान ले कि मेरी लेखनी ने 10-15 वर्ष विधर्मियों की लेखनी का उत्तर दिया है, जिनका कोई उत्तर नहीं देता था, उनसे मैंने ही लोहा लिया था। जो अभी बच्चे वा युवा हैं, वे 1992 से 2003-04 तक के सार्वदेशिक, दयानन्द सन्देश, परोपकारी, तपोभूमि आदि पत्रिकाओं में अंकों को देख सकते हैं। फिर मेरे लेखों को पढ़कर अपने जीवन के अब तक के कार्यों की तुलना करके देखें। जो मेरे इस समय के कार्य को जानना चाहते हैं, उन्हें बता दूँ कि जिस कार्य अर्थात् आर्य समाज के प्रथम व तृतीय नियम को वैज्ञानिकों के सामने सिद्ध करने के कार्य के विषय में आर्य समाज लगभग डेढ़ शताब्दी तक गम्भीरता से सोच भी नहीं पाया, उसे मैेंने वैज्ञानिक जगत् में पहुंचाया है। जो वीडियो व आॅडियो बनाकर सत्यार्थ प्रकाश के वाक्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हुए अपनी वैज्ञानिकता भी दर्शाने की चेष्टा कर रहे हैं, वे सृष्टि विज्ञान के संसार के महान् ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मण के 285 खण्डों में से किसी एक खण्ड का भी भाष्य करके बता दें, तो मैं उनसे बडे़ प्रेम से वार्तालाप करने को उद्यत हो जाऊंगा। वे मेरे भाष्य ‘वेदविज्ञान-आलोकः’ के 10 पृष्ठ पढ़कर समझ भी लें, तब भी मान लूंगा, वे कुछ योग्य हैं, अन्यथा मेरे पास किसी से बातचीत करने का अवकाश नहीं है। मैं इस समय निरुक्त का वैज्ञानिक भाष्य कर रहा हूँ, जो संसार में उपलब्ध भाष्यों से सर्वथा विशिष्ट और विशालकाय होगा तथा वेद की प्रतिष्ठा को विश्व में फैलाने में मात्र यही भाष्य सक्षम होगा। मैंने ��ो वीडियो बना दिया, यही बहुत है, उस पर भी मुझे कई हितैषियों ने कहा, ‘‘आपका समय महत्वपूर्ण है, आप तो निरुक्त भाष्य में ही लगे रहें।’’ उनका परामर्श उचित है, इस कारण मैं इस विषय को यहीं समाप्त करता हूँ। जिन्हें जीवात्मा साकार मानना है, वे मानें। आदरणीय स्वामी विवेकानन्द जी परिव्राजक व प्रिय ब्रह्मचारी निशान्त आर्य के प्रश्नों का उत्तर दें। उनसे ही शास्त्रार्थ करें, क्योंकि वेद विरोधियों से शास्त्रार्थ करने की न तो आज इच्छा रही है और न योग्यता, तब अपनों से ही सही। अब मुझे कोई इस विषय में फोन न करे और न मुझसे कोई अपेक्षा करे। मेरे तो दोनों ही अपने हैं और दोनों मिलकर काम करें, यही इच्छा है। एक-दूसरे का सम्मान करें और शिष्ट भाषा का प्रयोग करें। यही सब का कर्तव्य है और रही बात शास्त्रार्थ की, तो पहले उनसे शास्त्रार्थ करने की योग्यता बनाएं और योग्यता है, तो उसका पूरा उपयोग करते हुए उनसे शास्त्रार्थ करें, जो न वेद को मानते, न किसी ऋषि मुनि को, न ईश्वर और जीव को और निरन्तर वैदिक धर्म और भारतीय संस्कृति को अपमानित करने में लगे हैं। इसके साथ ही अपने-2 परिवारों से वेद विरोधी पाश्चात्य नास्तिक शिक्षा और कुसभ्यता को दूर करने में अपनी शक्ति और योग्यता का उपयोग करें। यही हम सब के लिए सर्वोच्च कर्तव्य है, शेष विषयों पर चर्चा तो बाद में भी शान्ति से मिल बैठ कर की जाती हैै।
आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास (वैदिक एवं आधुनिक भौतिकी शोध संस्थान) भीनमाल, राजस्थान दूरभाष: 02969-222103, 9829148400
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*--इंसानियत ही असली भक्ति है--*
*इंसान भी क्या कमाल करता है*
*जब पसंद करता है तो*
*बुराई नहीं देखता, और*
*जब नफ़रत करता है तो*
*अच्छाई नहीं देखता।*
*एक शहर में अमीर सेठ रहता था। वह बहुत फैक्ट्रियों का मालिक था।*
*एक शाम अचानक उसे बहुत बैचेनी होने लगी। डॉक्टर को बुलाया गया सारी जाँचें करवा ली, परन्तु कुछ भी नहीं निकला। उसकी बैचेनी बढ़ती गयी।*
*उसके समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। रात हुई, नींद की गोलियां भी खा ली पर न नींद आने को तैयार और ना ही बैचेनी कम होने का नाम ले।*
*वो रात को उठकर तीन बजे घर के बगीचे में घूमने लगा। घूमते -घूमते उसे लगा कि बाहर थोड़ा सा सुकून है तो वह बाहर सड़क पर पैदल निकल पड़ा।*
*चलते-चलते हजारों विचार मन में चल रहे थे। अब वो घर से बहुत दूर निकल आया था। और थकान की वजह से एक चबूतरे पर बैठ गया।*
*उसे थोड़ी शान्ति मिली तो वह आराम से बैठ गया।*
*इतने में एक कुत्ता आया और उसकी चप्पल उठाकर ले गया। सेठ ने देखा तो वह दूसरी चप्पल उठाकर कुत्ते के पीछे भागा।*
*कुत्ता पास ही बनी झुग्��ी-झोपडि़यों में घुस गया। सेठ भी उसके पीछे था, सेठ को करीब आता देखकर कुत्ते ने चप्पल वहीं छोड़ दी और चला गया।*
*सेठ ने राहत की सांस ली और अपनी चप्पल पहनने लगा। इतने में उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी।*
*वह और करीब गया तो एक झोपड़ी में से आवाज आ रहीं थीं।*
*उसने झोपड़ी के फटे हुए बोरे में झाँक कर देखा तो वहाँ एक औरत फटेहाल मैली सी चादर पर दीवार से सटकर रो रही हैं और ये बोल रही है, हे भगवान मेरी मदद कर ओर रोती जा रहीं है।*
*सेठ के मन में आया कि यहाँ से चले जाओ, कहीं कोई गलत ना सोच लें।*
*वो थोड़ा आगे बढ़ा तो उसके दिल में ख़्याल आया कि आखिर वो औरत क्यों रो रहीं हैं, उसको तकलीफ क्या है ? उसने अपने दिल की सुनी और वहाँ जाकर दरवाजा खटखटाया।*
*उस औरत ने दरवाजा खोला और सेठ को देखकर घब��ा गयी। सेठ ने हाथ जोड़कर कहा तुम घबराओं मत, मुझे तो बस इतना जानना है कि तुम रो क्यों रही हो।*
*औरत की आखों से आँसू टपकने लगे और उसने पास ही गुदड़ी में लिपटी हुई 7-8 साल की बच्ची की ओर इशारा किया और रोते-रोते कहने लगी कि मेरी बच्ची बहुत बीमार है उसके इलाज में बहुत खर्चा आएगा।*
*मैं तो घरों में जाकर झाड़-ूपोछा करके जैसे-तैसे हमारा पेट पालती हूँ। मैं कैसे इलाज कराऊं इसका ?*
*सेठ ने कहा, तो किसी से माँग लो। इसपर औरत बोली मैने सबसे माँग कर देख लिया खर्चा बहुत है कोई भी देने को तैयार नहीं।*
*सेठ ने कहा तो ऐसे रात को रोने से मिल जायेगा क्या ?*
*औरत ने कहा कल एक संत यहाँ से गुजर रहे थे तो मैने उनको मेरी समस्या बताई तो उन्होंने कहा बेटा
तुम सुबह 4 बजे उठकर अपने ईश्वर से माँगो। बोरी बिछाकर बैठ जाओ और रो -गिड़गिड़ा के उससे मदद माँगो वो सबकी सुनता है तो तुम्हारी भी सुनेगा।*
*मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था। इसलिए मैं उससे माँग रही थीं और वो बहुत जोर से रोने लगी।*
*ये सब सुनकर सेठ का दिल पिघल गया और उसने तुरन्त फोन लगाकर एम्बुलेंस बुलवायी और उस लड़की को एडमिट करवा दिया।*
*डॉक्टर ने डेढ़ लाख का खर्चा बताया तो सेठ ने उसकी जवाबदारी अपने ऊपर ले ली, और उसका इलाज कराया।*
*उस औरत को अपने यहाँ नौकरी देकर अपने बंगले के सर्वेन्ट क्वाटर में जगह दी और उस लड़की की पढ़ाई का जिम्मा भी ले लिया।*
*सेठ कर्म प्रधान तो था पर नास्तिक था। अब उसके मन में सैकड़ो सवाल चल रहे थे।*
*क्योंकि उसकी बैचेनी तो उस वक्त ही खत���म हो गयी थी जब उसने एम्बुलेंस को बुलवाया था।*
*वह यह सोच रहा था कि आखिर कौन सी ताकत है जो मुझे वहाँ तक खींच ले गयीं ? क्या यही ईश्वर हैं ?
यदि ये ईश्वर है तो सारा संसार आपस में धर्म, जात -पात के लिये क्यों लड़ रहा है क्योंकि ना मैने उस औरत की जात पूछी और ना ही ईश्वर ने जात -पात देखी।*
*बस ईश्वर ने तो उसका दर्द देखा और मुझे इतना घुमाकर उस तक पहुंचा दिया।*
*अब सेठ समझ चुका था कि कर्म के साथ सेवा भी कितनी जरूरी है क्योंकि इतना सुकून उसे जीवन में कभी भी नहीं मिला था ।*
*मानव और प्राणी मात्र की सेवा का धर्म ही असली भक्ति हैं। यदि ईश्वर की कृपा पाना चाहते हो तो इंसानियत अपना लो और समय-समय पर उन सबकी मदद करो जो लाचार या बेबस है। क्योंकि ईश्वर इन्हीं के आस -पास रहता हैं ।*
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🚩 टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था भगत सिंह का वामपंथ -23 मार्च 2021
🚩 अमर क्रांतिकारी भगत सिंह को वामपंथी अक्सर अपने गुट का दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उन्हें ऐसे चित्रित किया जाता है, जैसे वो वामपंथ के अनुयायी रहे हों और वो वही वामपंथ है, जो आज जेएनयू में कुछ ‘छात्रों’ द्वारा और देश के कई हिस्सों में नक्सलियों द्वारा फॉलो किया जाता है। देश के लिए बलिदान देने वाले एक राष्ट्रवादी को इस तरह से एक संकीर्ण विचारधारा के भीतर बाँधना वामपंथियों की एक चाल है।
🚩 जैसा कि हम जानते हैं, भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए शूली पर चढ़ गए थे। इतने कम उम्र में क्रांतिकारी, विद्वान और चिंतक होने का अर्थ है कि उन्होंने काफी कम समय में देश-दुनिया की कई विचारधाराओं को पढ़ा और कई क्रांतिकारियों का अध्ययन किया।
🚩 भगत सिंह के नास्तिक होने की बात को ऐसे प्रचारित किया जाता है, जैसे वे हिन्दू धर्म से और देवी-देवताओं से घृणा करते हों। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। वामपंथी स्वतंत्रता सेनानियों में भी विचाधारा के हिसाब से बँटवारा करते हैं। वीर सावरकर उनके लिए मजाक का विषय हैं और उन्हें ‘माफ़ी माँगने वाला’ बताया जाता है। यहाँ हम इस प्रपंच पर बात करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछेक घटनाओं को देखते हैं।
शुरुआत उसी संगठन के मैनिफेस्टो से क्यों न करें, जिसके भगत सिंह अहम सदस्य थे? हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मैनिफेस्टो में ही लिखा हुआ था कि वे भारत के समृद्ध इतिहास के महान ऋषियों के नक्शेकदम पर चलेंगे। इसमें कहा गया था कि कमजोर, डरपोक और शक्तिहीन व्यक्ति न तो अपने लिए और न ही देश के लिए कुछ कर सकता है। क्या वामपंथी इस संगठन को भी गाली देंगे, जिसके तहत भगत सिंह काम करते थे?
🚩 वीर सावरकर से काफी प्रभावित थे भगत सिंह
अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ‘सिपाही विद्रोह’ साबित करने की भरसक कोशिश की, लेकिन वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक पुस्तक के जरिए इस धारणा को तोड़ दिया। क्या आपको पता है कि इस पुस्तक का एक संस्करण भगत सिंह के क्रांतिकारी दल ने भी प्रकाशित किया था?
उनके सहयोगी राजाराम शास्त्री ने कहा था कि वीर सावरकर की इस पुस्तक ने भगत सिंह को काफी प्रभावित किया था। उन्होंने राजाराम शास्त्री को भी ये पुस्तक पढ़ने के लिए दी और फिर प्रकाशन के लिए योजना बनाई। उन्होंने ही प्रेस का प्रबंध किया और रात को प्रूफ रीडिंग के लिए शास्त्री के पास वो पन्ने भेजते और सुबह ले जाते। सुखदेव ने भी इस काम में बखूबी साथ दिया था। राजर्षि टंडन ने इसकी पहली प्रति खरीदी।यहाँ तक कि 1929-30 में भगत सिंह और उनके साथियों की गिरफ़्तारी के समय भी अंग्रेजों को उनके पास से वीर सावरकर की पुस्तक की काफी प्रतियाँ मिलीं। लेकिन, आज के वामपंथी भगत सिंह को तो गले लगाते हैं, लेकिन वीर सावरकर के बारे में क्या सोचते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। जब भाजपा ने महाराष्ट्र चुनाव से पहले उन्हें भारत रत्न देने का वादा किया तो सीपीआई इसका विरोध करने वाली पहली पार्टी थी।
🚩 सीपीआई ने कहा था कि एक मिथक बना दिया गया है कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और राष्ट्रवादी थे। पार्टी ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत सावरकर जैसे ‘सांप्रदायिक व्यक्ति’ को आइकॉन बनाया जा रहा है। उन्हें ‘डरपोक’ लिखा गया। कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब सावरकर के योगदानों पर चर्चा की तो सीपीआई ने उन पर भी निशाना साधा। अब जब यही वामपंथी भगत सिंह को गले लगाने का नाटक करें तो इसे क्या कहा जाए? अर्थात, वामपंथी कहते हैं कि सावरकर ‘सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी’ हैं, लेकिन भगत सिंह ने वीर सावरकर की पुस्तकों को न सिर्फ छपवाया बल्कि वो इससे काफी प्रभावित भी थे- इस पर वो कन्नी काट जाते हैं। ड्रामेबाज वामपंथियों का ये दोहरा रवैया बताता है कि भगत सिंह को ‘टुकड़े-टुकड़े’ ��ैंग का हिस्सा बताने के लिए वो पागल हो रहे हैं। जिनकी श्रद्धा भारत से ज्यादा चीन के लिए है, वो देश के बलिदानियों पर भला क्यों गर्व करें?
🚩 लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं वामपंथी?
भगत सिंह ने ब्रिटिश एएसपी जॉन सॉन्डर्स का वध क्यों किया था? भारत की राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के लिए लंदन से साइमन कमीशन को भेजा गया। भारत में ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने इसका प्रचंड विरोध किया। लाहौर में इसके विरोध के दौरान उन्हें लाठी लगी। इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसने भगत सिंह सहित ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सभी क्रांतिकारियों को आक्रोशित कर दिया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही भगत सिंह और उनके साथियों ने अपनी जान को दाँव पर लगाया था। लाला लाजपत राय की मृत्यु के ठीक 1 महीने बाद भगत सिंह ने अपना बदला पूरा किया और आर्य समाज के नेता रहे लालाजी को अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दी। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक ‘शहीद भगत सिंह- क्रांति में एक प्रयोग’ में लिखा है कि भगत सिंह, लाला लाजपत राय के समर्पण और देशसेवा के सामने अपना सिर झुकाते थे।उन्होंने लिखा है कि कैसे जब भगत सिंह ने उस प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय को अंग्रेजों की लाठी खा कर जमीन पर गिरता हुआ देखा तो उनके अंदर जालियाँवाला बाग़ नरसंहार के बाद जो गुस्सा भर गया था वो और धधक उठा। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि गोरे एक भलेमानुष के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं। उनकी मृत्यु के बाद इन क्रांतिकारियों की जो बैठक हुई, उसमें ऐसा गम का माहौल था जैसे उनके घर के किसी बुजुर्ग की हत्या कर दी गई हो।
🚩 अब वापस उन वामपंथियों पर आते हैं, जो भगत सिंह को तो अपना मानने का नाटक करते हैं, लेकिन उन्होंने किसके लिए बलिदान दिया- इससे वो अनजान बन कर रहना चाहते हैं और लोगों को भी अनजान रखना चाहते हैं। लेकिन, वो लोग लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं, जरा वो देखिए। इतिहासकार विपिन चंद्रा ने अपनी पुस्तक ‘India’s Struggle for Independence, 1857-1947‘ में उन्हें लिबरल और मॉडरेट कम्युनिस्ट साबित करने का प्रयास किया है।
🚩 लाल��� लाजपत राय एक राष्ट्रवादी थे और हिंदुत्व को लेकर उनकी श्रद्धा अगाध थी। वो आर्य समाजी थे। भारत में हिंदुत्व भावना को पुनर्जीवित कर लोगों में अपने प्राचीन इतिहास के प्रति गौरव जगाने वालों में तिलक और लाला लाजपत राय का नाम आता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और छत्रपति शिवाजी का चरित्र लिखा। लाला लाजपत राय वेदों को हिन्दू धर्म की रीढ़ मानते थे। वो कहते थे कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है।जबकि आज के वामपंथी असहिष्णुता की ढपली बजाते हैं। भगत सिंह के गुरु लाला लाजपत राय ��िस हिन्दू धर्म को विश्व को सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते थे, वामपंथी उसे गाली देते हैं। जिन वेदों को भी हिंदू धर्म की रीढ़ मानते थे, उन्हें वामपंथी ब्राह्मणों का ‘प्रोपेगेंडा’ कहते हैं। जब गुरु के लिए वामपंथियों के मन में कोई सम्मान नहीं है तो उसके शिष्य के लिए कैसे हो सकता है? क्यों न इसे ड्रामा माना जाए?
🚩 जनेऊधारी आजाद और भगत सिंह
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों में आपने उन्हें नंगे बदन मूँछों पर ताव देते हुए और जनेऊ व धोती पहने हुए देखा होगा। वो ब्राह्मण थे। वो वाराणसी में संस्कृत के छात्र थे और उन्होंने इस भाषा के ज्ञान के कारण हिन्दू ग्रंथों का भी अध्ययन किया। भगत सिंह का उनके साथ अच्छा सम्बन्ध था। देश के लिए दोनों ने साथ मिल कर काम भी किया। लेकिन कभी भगत सिंह को इससे दिक्कत नहीं हुई।
🚩 वहीं आज के वामपंथी जनेऊ के बारे में क्या सोचते हैं? आज यही वामपंथी यज्ञोपवीत को अत्याचार का प्रतीक मानते हैं। वो कहते हैं कि ये ब्राह्मणों के खुद को श्रेष्ठ दिखाने की निशानी है। क्या भगत सिंह ने कभी चंद्रशेखर आजाद से ऐसा कहा होगा? बिलकुल नहीं। फिर किस मुँह से ये वामपंथी खुद की विचारधारा के भीतर भगत सिंह को बाँधने की कोशिश करते हैं? वीर सावरकर, लाला लाजपत राय और चंद्रशेखर आजाद के विचारों का ये सम्मान क्यों नहीं करते?जबकि इन तीनों के प्रति ही भगत सिंह की अपार श्रद्धा थी। भगत सिंह के पार्थिव शरीर को जलाने की अंग्रेजों ने कोशिश की थी, गुपचुप तरीके थे। लेकिन, बाद में परिवार ने पूरे वैदिक तौर-तरीके से रावी नदी के किनारे उनके शरीर को मुखाग्नि दी। क्या ये वामपंथी भगत सिंह के परिवार को भी कोसेंगे? उनका परिवार को स्वामी दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज आंदोलन से काफी ज्यादा प्रभावित था।
आज वाले वामपंथी नहीं थे भगत सिंह, उनके कुछ सवाल थे
🚩 भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने दयानन्द सरस्वती को सुना था और वो उनसे खासे प्रभावित थे। वो माँस-शराब का सेवन नहीं करते थे, संध्या वंदन करते थे और यज्ञोपवीत धारण करते थे। उन्होंने एक पुस्तक लिख कर दिखाया कि कैसे सिख गुरु भी वेदों की शिक्षाओं को मानते थे। ‘ईश्वर की उपस्थिति’ और भारत के बड़े-बड़े संतों ने चर्चा की है और इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि वे सारे वामपंथी हैं।
🚩 भगत सिंह का वामपंथ टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था।1962 के युद्ध में चीन का समर्थन करने वाले और हालिया भारत-चीन तनाव के दौरान चीन की निंदा तो दूर, अपनी ही सरकार के स्टैंड का विरोध करने वाले वामपंथियों को समझना चाहिए कि भगत सिंह ने ईश्वर के अस्तित्व पर चिंतन किया था और अपने अध्ययन और विचारों के हिसाब से लेख लिखे, जिनके आधार पर उन्हें वामपंथी ठहराना सही नहीं है।भगत सिंह ने कभी ऐसा नहीं लिखा कि वो हिन्दू धर्म को नहीं मानते या फिर वो हिन्दू देवी-देवताओं से घृणा करते हैं। उनके पास बस कुछ सवाल थे, जो उनके लेख ‘मैं ना��्तिक क्यों हूँ’ में सामने आता है। उनके विचार था कि फाँसी के बाद उनकी ज़िंदगी जब समाप्त होगी, उसके बाद कुछ नहीं है। वो पूर्ण विराम होगा। वे पुनर्जन्म को नहीं मानते थे। वो प्राचीन काल में ईश्वर पर सवाल उठाने वाले चार्वाक की भी चर्चा करते थे।
🚩 उन्होंने लिखा है: “मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं। एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्य��्ति हैं। उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ।”
ऊपर की पंक्तियों को देख कर और भगत सिंह के इस लेख को पढ़ कर स्पष्ट होता है कि कुछ रूढ़िवादी चीजें थीं, जिनसे उन्हें दिक्कतें थीं। वो ये मानने को तैयार नहीं थे कि मनुष्य अपने पुनर्जन्म के पापों की सज़ा इस जन्म में भोग रहा है। उनके सवाल थे कि राजा के विरुद्ध जाना हर धर्म में पाप क्यों है? उनके सारे धर्मों के बारे में एक ही विचार थे। वे दो समुदाय के लोगों के बीच धर्म को लेकर होने वाले तनाव के खिलाफ थे।
आज का वामपंथ, आज के वामपंथी, और भगत सिंह
🚩 स्वतंत्रता सेनानियों में सिर्फ बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय ही नहीं थे, जो हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में विश्व रखते हुए धर्म और राष्ट्र को एक साथ देखते थे, बल्कि क्रांतिकारियों में भी कई ऐसे थे जो कर्मकांड करते थे, प्रखर हिंदूवादी थे। ‘बिस्मिल’ खुद आर्यसमाजी थे। बटुकेश्वर दत्त पूजन-वंदन किया करते थे।पंडित मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म की शिक्षा को महत्ता देते थे। इन सबके बारे में भगत सिंह के क्या ख्याल हैं? असल में आज का वामपंथ देश को खंडित करने वाला, चिकेन्स नेक को काट कर चीन को भारत पर हमला करने का मौके देने वाला और ‘नरेंद्र मोदी भ@वा है’ का नारा लगाने वाला है। जबकि भगत सिंह की विचारधारा क्रांति की थी। वो रूस के क्रांतिकारियों से इसीलिए प्रभावित थे, क्योंकि उन्हें उनलोगों से क्रान्ति के तौर-तरीकों की सीख मिलती थी। वो उन्हें अध्ययन ��र के भारत के परिप्रेक्ष्य में आजमाने के तरीके ढूँढ़ते थे।
🚩 आज वामपंथियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे अपने देश की सेना का सम्मान कर सकें, तो फिर वो देश के लिए बलिदान देने वाले को अपनी विचारधारा का व्यक्ति कैसे बता सकते हैं? अरुंधति रॉय जैसे लोग तो विदेश में जाकर भारतीय सेना को अपने ही लोगों पर ‘अत्याचार करने वाला’ बताते हैं, क्या भगत सिंह किसी भी कीमत पर इस चीज को बर्दाश्त करते? देश के खिलाफ बोलने वालों के लिए क्रांति सिर्फ अपने ही देश के लोगों को मारना है।
🚩 आज नक्सली झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक सरकारी कर्मचारियों को मारते हैं, अपने ही देश के लोगों का खून बहाते हैं और संविधान को नहीं मानते हैं। क्या भगत सिंह को अपना बनाने का नाटक करने वाले वामपंथी वामपंथ के इस हिस्से की निंदा करने का भी साहस जुटा पाते हैं? नहीं। आज का वामपंथ चीनपरस्ती का वामपंथ है, जो अपने ही देश के इतिहास और संस्कृति से घृणा करता है, भगत सिंह का नाम भी लेने का इन्हें कोई अधिकार नहीं।
🚩 और हाँ, यज्ञोपवीत को ब्राह्मणों का आडम्बर और अत्याचार का प्रतीक बताने वाले वामपंथियों को ये बात भी पसंद नहीं आएगी कि भगत ��िंह का भी यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। एक पत्र में उन्होंने अपने पिता को याद दिलाया है कि वे जब बहुत छोटे थे, तभी बापू जी (दादाजी) ने उनके जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि उन्हें वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है।
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1374190412810743809?s=19
🚩 आज के वामपंथी ये जान कर अच्छा महसूस नहीं करेंगे कि भगत सिंह ने देशसेवा का जो वचन निभाया, वो उनके यज्ञोपवीत संस्कार से उनके ही पूर्वजों ने दिया था। वामपंथ ने नहीं। किसी एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी का नाम अपने निहित स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना कर उसके प्रेरकों को गाली देना, ये भगत सिंह का अपमान नहीं तो और क्या है? अखंड भारत के लिए लड़ने वाला ‘टुकड़े-टुकड़े’ के नारे लगाने वालों का आइडल कैसे हो सकता है?
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Mai naastik kyun hoon? - Bhagat Singh
मैं नास्तिक क्यों हूँ? शहीद भगत सिंह (यह लेख 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ ।) एक नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ है। क्या मैं किसी अहंकार के कारण सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी तथा सर्वज्ञानी ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता हूँ? मेरे कुछ दोस्त – शायद ऐसा कहकर मैं उन पर बहुत अधिकार नहीं जमा रहा हूँ – मेरे साथ अपने थोड़े से सम्पर्क में इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये उत्सुक…
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Day☛168✍☛+91/CG10 ☛ 26 June 2020 (Fri)☛ 05:30
Good morning all
एक सुबह जो होती है वह कोरे कागज के समान होती है, good morning बोलकर हमे उसके पहला page को अच्छा तो बना लेते हैं मगर शाम तक good ही रहे यह possible नहीं रहता...
सफल इंसान वह करता है जिनमें उसे सबसे पहले उसका भलाई नज़र आता है, अपनी सफलता को पहले से ही देख लेना हर सफल इंसान की प्रथम लक्षण होती है..
कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि अपना सारा जीवन देश समाज के बारे में लिखते हुए गुजार दूँ और यह कुछ हद तक सही भी है, ऐसा करने से मुझे बहुत अच्छा लगता है। सुनो तो अपने दिल की....
Security guard business को लेकर मेरा जो plan चल रहा है क्या वह सही है, क्या मैं इसे सही दिशा प्रदान कर पाऊंगा, क्या यह business real में मेरे लिए profitable है... बहुत सारे सवाल दिमाग में चल रहा है.... लेकिन risk लेकर देखने से हो सकता है, सफलता अपनी हाथ लग जाए.... मेरे ख्याल से एक बार try करने में क्या दिक्कत है....
दो दिन पूर्व fb में एक लघु कथा पढ़ा, जिसमें लिखा था हमें जो भी मिलता है वह परमेश्वर की कृपा से उनके हिसाब से मिलता है, हालाकि हम सफलता का श्रेय अपने आपको देते हैं परंतु यह सत्य है, मैं खुद इस चीज को अनुभव किया हूँ, हम लाख कोशिश क्यों न कर ले पर जब तक उनकी कृपा नहीं होगी तब तक सफलता की प्राप्ति नहीं होती है... 💯%यह बात सत्य है....
मैंने अब निर्णय ले लिया है कि मुझे देश के बारे में लिखना है, real में मुझे ऐसा करने पर आनंद की प्राप्ति होती है,भारत देश बहुत ही विशाल देश हैं, यहां की गाथा विशाल है, मुझे लेखन के लिए शीर्षक का तलाश था जो मुझे मिल गया... मेरा प्रधान लक्ष्य यही रहेगा कि मैं अपनी ध्यान भारत माता की श्री चरणों में लगाऊ...
तुझे चाहूँ,
तुझे पुजू,
तेरा हो जाऊ... बस इतनी सी आरजू हैं मेरी ए मेरी जान India....
आज संस्कृत और हिंदी भाषा लगभग दम तोड़ रही है, खास कर संस्कृत... विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक.... मुझे बारीकी से इसका अध्ययन करना चाहिए ताकि अधिक से अधिक शब्दों का ��मझ सकू....
Corona महामारी से मुझे बहुत बड़ा स��ख मिला है, जो इससे पहले कभी नहीं मिला था, डॉक्टर, किसान और सुरक्षा विभाग ही सम्पूर्ण भारत वर्ष को संभालकर रखा है... इन तीनों को मेरा कोटि कोटि प्रणाम... 🙏 🙏
अब तक मैं नास्तिक था परंतु अब आस्तिक बन गया हूँ, मुझे समझ में आ गया है कि बिना स्तुति के life अधूरा है, दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो स्तुति नहीं किया हो, किसी न किसी रूप में स्तुति अवश्य करता है.... कुछ दिन पहले गिरजाघर जाया करता था, लेकिन उसमे मेरा ध्यान नहीं लगता था, bibble भी लिया था, इंग्लिश version लेकिन उसे भी ज्यादा दिनों तक नहीं पढ़ पाया... Bibble से मुझे जो ज्ञान मिला वो मेरे life का धारा ही बदल दिया... एक निराकार परमात्मा का उपासना करना ही ज़िन्दगी में श्रेष्ठ है, ऊपर आसमान की तरफ सिर उठाकर परमात्मा का ध्यान लगाना बहुत दुखद पल होती है...
अधूरी सी होती है हर पल मेरी,
बिना तेरे स्तुति की ए मेरे वतन..
🇮🇳🙏
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मैं नास्तिक क्यों हूँ - भाग1 #Repost @chitthinama (@get_repost) ・・・ Bhagat Singh's - WHY I AM AN ATHEIST (मैं नास्तिक क्यों हूँ) TOMORROW 9th June 2020 @12:15 ON YOUTUBE CHANNEL www.youtube.com/चिट्ठीनामा . . . . . #subscribe #watch #on #youtube #channel #bhagatsingh #indianrevolutionary #india #whyiamanatheist #bharat #atheist #नास्तिक #भगतसिंह #social (at India) https://www.instagram.com/p/CBJl4PHp8Jr/?igshid=a26sw93n00hy
#repost#subscribe#watch#on#youtube#channel#bhagatsingh#indianrevolutionary#india#whyiamanatheist#bharat#atheist#नास्तिक#भगतसिंह#social
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कट्टू वीर आँजनेय मंदिर, कृष्णागिरी
मैं इतने मंदिर जाती हूँ फिर सिर्फ यहाँ के बारे में ही क्यों लिख रही हूँ, शायद इसलिए कि इतनी शांति कहीं और लगी नहीं। या फिर यूँ कहें कि आस्तिक से नास्तिक और फिर से आस्तिक होने की जो यात्रा मैंने तय की है वो अद्भुत है। मैं ऐसे घर से हूँ जहाँ बिना नहाये अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। फिर कुछ ऐसा हुआ कि सब बा��ों पर से विश्वास उठ गया, जीवन घोर अशांति से भर गया।और शांति की खोज में फिर शिव जी की शरण ली । तब…
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"28 मई" की अफ़वाह से उत्पन्न खलबलियाँ (भाग 1)
ज़िन्गव्यू, फ्रांस
पहली बार जब मैंने यह अफ़वाह सुनी तो मेरे दिल पर एक अँधेरा छा गया था
मेरी माँ एक श्रद्धालु ईसाई है। जब से मैं चीज़ों को समझने के लायक बड़ी हुई, वह अक्सर मुझे प्रभु यीशु के बारे में कहानियाँ बताया करतीं, और मुझसे कहा करतीं कि प्रभु यीशु ही एक मात्र सच्चा परमेश्वर है। जब मैं 13 साल की हुई, तो मैं अपनी माँ के साथ कलीसिया गई। उस समय मुझे वास्तव में पादरी के उपदेशों को सुनकर अच्छा लगा, और मुझे बहुत विश्वास हुआ। मैं प्रत्येक सहभागिता में सक्रिय रूप से भाग लिया करती थी। लेकिन मैंने धीरे-धीरे पाया कि पादरी द्वारा दिए गए उपदेशों में कोई प्रबोधन नहीं था। वे हमेशा कुछ मतों और बाइबल की जानकारी को, या कुछ धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों को, दोहराया करते थे, और जैसे जैसे समय बीतता गया, मुझे उनके उपदेशों को सुनकर कोई आनंद नहीं मिलता था, और न ही मुझे ऐसा लगता कि मुझे जीवन प्रदान किया जा रहा था। इसलिए, मैं अब सहभागिताओं में कम से कम कम जाने लगी।
स्नातक होने के बाद मैं फ्रांस गई, और मैंने मन ही मन सोचा: “विदेशों में कलीसियाओं की स्थिति निश्चित रूप से हमारे मुल्क की कलीसियाओं की तुलना में बेहतर होनी चाहिए।” इसलिए, मैंने तुरंत कलीसिया की तलाश में शुरू कर दी। जब मैं एक चीनी कलीसिया में गई, तो मैंने पाया कि उनके दिए गए उपदेश वस्तुतः वही थे जो हमारी अपनी कलीसियाओं में दिए जाते थे, और उनके पास कहने के लिए कुछ नया नहीं था। कुछ समय बाद, उस कलीसिया ने कुछ अमरिकी पादरियों को उपदेश देने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने भी किसी प्रबोधन के साथ बात नहीं की। कलीसिया को फिर से जीवंत बनाने के लिए, पादरियों और पुराने लोगों ने हम विश्वासियों के लिए एक सैर का भी आयोजन किया, ताकि दर्शनीय स्थलों की एक यात्रा और मनोरंजन का उपयोग करके विश्वासियों के उत्साह को जगाया जा सके और उनके बाहरी सामर्थ्य और ��्रसिद्धि को मजबूत किया जा सके। जब मैंने देखा कि कलीसिया का हाल ऐसा था, तो मैंने बहुत निराश महसूस किया, और एक बेहतर विकल्प न होने के कारण मैंने इसे छोड़ दिया। इसके बाद, मेरी बड़ी बहन मुझे एक और कलीसिया में ले गई, और मुझे आश्चर्य हुआ कि इस कलीसियाकी स्थिति और भी बदतर थी। सारे विश्वासी प्रसिद्धि और धन के लिए संघर्ष कर रहे थे। कलीसिया के भीतर विवाद और झगड़े उठ खड़े हुए और आखिरकार उन्हें अलग करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा था। इन दृश्यों को देखने के बाद मैंने फिर कभी भी किसी कलीसिया में जाना नहीं चाहा।
एक दिन, जब मैं अपनी बहन के घर में प्रवेश कर ही रही थी, तो वह मेरे पास दौड़कर आई और बोली: “क्या तुमने सुना? एक पूर्वी बिजली कलीसिया उभर आई है, और वे बहुत ऊंचे उपदेशों का प्रचार कर रहे हैं, जो कलीसियाओं से अच्छी भेड़ों को ‘चुराने’ पर केंद्रित हैं। मैंने सुना है कि सभी मतों और संप्रदायों की कई अच्छी भेड़ें और उनके चरवाहों ने पूर्वी बिजली को स्वीकार कर लिया है, और वे सब इस बात को फैला रहे हैं और प्रभु यीशु की वापसी की गवाही दे रहे हैं। मैंने यह भी सुना है कि एक बार यदि तुम पूर्वी बिजली में विश्वास करना शुरू कर देते हो, तो तुम बाहर नहीं निकल सकते हो, कि अगर तुम छोड़ना चाहते हो तो वे तुम्हारी आँखें निकाल लेंगे, तुम्हारी नाक काट देंगे और तुम्हारी संपत्ति को लूट लेंगे।” मेरी बहन ने मुझे बार बार चेतावनी दी और कहा कि मुझे सावधान रहना होगा और पूर्वी बिजली के खिलाफ़ मुझे खुद को सुरक्षित रखना होगा। जब मैं घर वापस लौटी तो मेरे पति ने भी मुझे पूर्वी बिजली के बारे में कुछ नकारात्मक बातें बताईं जो उन्होंने इंटरनेट से जानी थीं। इनमें 28 मई को झाओयुआन, शेडोंग स्थित मैकडॉनल्ड्स में हुआ ह्त्या कांड विशेष था जिसकी सीसीटीवी पर एक रिपोर्ट आई थी। इसके बारे में सुनने के बाद मुझे और भी डर महसूस हुआ, और उस पल के बाद पूर्वी बिजली ने मेरे दिल पर एक निराशा की छाया डाल ली थी।
अफ़वाहों के धोखे में आकर, मैंने मेरी माँ को पूर्वी बिजली में विश्वास करने से रोक दिया
एक शाम, मुझे अचानक घर से अपने भाई का फ़ोन आया और उसने मुझे बताया कि हमारी माँ पूर्वी बिजली में विश्वास करती है। मैं इस खबर से चौंक गई: यह सच नहीं हो सकता, क्या यह हो सकता है? माँ पूर्वी बिजली में कैसे विश्वास कर सकती थी? मैंने उन अफ़वाहों के बारे में सोचा जो मैंने सुन रखी थी, और मुझे चिंता हुई कि माँ के साथ कुछ अनर्थ होगा। कई रातों तक मैं करवटें बदलती रही और सो नहीं पाई। मैंने म��� ही मन सोचा” “यह ठीक नहीं है! मुझे माँ को रोकना होगा, मैं उन्हें पूर्वी बिजली में विश्वास करने नहीं दे सकती”। लेकिन हर बार जब मैंने अपनी माँ को फ़ोन किया और पूर्वी बिजली के बारे में इन्टरनेट पर रहीं अफवाहों के बारे में बताया, उन्होंने तुरंत ही फोन रख दिया। मेरे पास उन्हें मनाने का कोई तरीक़ा नहीं था। उसके बाद मेरे भाई और मैंने आपस में सलाह की और यह तय किया कि वह हमारी माँ के पीछे लगेगा और उन्हें पूर्वी बिजली में विश्वास करने से रोकेगा। बहरहाल, चाहे वह किसी भी तरीक़े का उपयोग करे, इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ, हमारी माँ अपने विश्वास में बिलकुल नहीं डिगी। चूँकि कोई अन्य विकल्प नहीं था, मेरे भाई-बहनों और मैंने इस पर बात की और हमने फैसला किया कि हम अपनी माँ को एक अंतिम धमकी देंगे: अगर उन्होंने पूर्वी बिजली में विश्वास करना जारी रखा, तो हम उन्हें त्याग देंगे। हमें आश्चर्य हुआ कि वे अपने दृष्टिकोण में दृढ थीं और उन्होंने पूर्वी बिजली में विश्वास करते रहने पर ज़ोर दिया। मार्च 2017 में, मेरी बड़ी बहन ने और मैंने घर जाने और हमारी माँ को फ्रांस ले आने का फैसला किया, हमने सोचा था कि अगर हमने ऐसा किया तो हम उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने से रोक सकते थे। लेकिन अप्रत्याशित रूप से, वे आने के लिए तैयार नहीं थीं, हालाँकि हम उनके वीज़ा के लिए आवेद��� करने में सफल रहे थे, इसलिए मेरी बहन ने और मैंने, गर्म टिन की छत पर रही बिल्लियों की तरह घबराते हुए, यह पता लगाने की कोशिश की कि हम अपनी माँ को वहाँ से निकालने के लिए क्या कर सकते थे। आखिरकार, हमने एक अंतिम उपाय के बारे में सोचा: हम यह चाल चलेंगे कि अपनी माँ को पूर्वी बिजली में विश्वास का अभ्यास करने के लिए फ्रांस ले आयें। हमें आश्चर्य हुआ कि यह चाल काम कर गई और माँ इसके लिए यकीनन राज़ी हो गई। हालांकि, हमें उनकी एक शर्त से सहमत होना पड़ा। मैंने मन ही मन सोचा: “अगर माँ फ्रांस आ जाती हैं, तो एक तो क्या मैं दस शर्तों को भी मान लूँगा”। बाद में, मैंने पाया कि उनकी शर्त यह थी कि वे आशा करती थीं कि मेरी बहन और मैं परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य पर निगाह करेंगे। हमारी माँ को चालाकी से फ्रांस में ले आने के लिए मेरे पास इस बात से सहमत होने का नाटक करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, लेकिन मैंने मन ही मन सोचा: “आह! कोई गुंजाईश नहीं है कि मैं इसमें ध्यान दूँ! एक बार हम उन्हें फ्रांस ले आयें, तो हमारे पास उन्हें रोकने के तरीक़े होंगे”। इस तरह माँ हमारे साथ आने के लिए तैयार हो गईं क्योंकि उनकी यह धारणा थी कि हम वास्तव में उनके अनुरोध से सहमत थे।
हमारी माँ को फ्रांस में आए एक सप्ताह हो इसके पहले ही उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने कलीसिया की एक बहन से संपर्क किया था और उन्होंने रूबरू मिलने के लिए समय भी निर्��ारित कर लिया था। मैंने मन ही मन सोचा: ये तो वाकई तेज़ी से काम करते हैं। हम अभी तो आये ही हैं और इन लोगों ने संपर्क भी बना लिया है, अब हमें क्या करना चाहिए? क्या हमें सचमुच माँ को उनसे मिलने देना चाहिए या नहीं? अगर हम उनसे कहते हैं कि वे उनसे नहीं मिल सकती हैं, तो वे इसके लिए सहमत नहीं होंगी; अगर हम उन्हें मिलने देते हैं तो पूर्वी बिजली में विश्वास करने से उन्हें रोकने की हमारी आशा पर पानी फिर जाएगा। मैंने तय किया कि मैं माँ के साथ जाऊँगी, परन्तु मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे पति, मेरी बहन और उसके पति ने मेरा कड़ा विरोध किया। जब हमने तय किया कि माँ उनसे मिलने नहीं जाएँगी, तो उन्होंने गुस्से में कहा: “सीसीपी द्वारा गठित झूठी बातों पर भरोसा करने का तुम्हारा आग्रह क्यों है? सीसीपी क्या है? यह एक नास्तिक राजनीतिक दल है, और जब से यह सत्ता में आई है, यह लगातार धार्मिक विश्वासियों का दमन करते हुए उन्हें अवैध घोषित करती रही है, और इसने ईसाई धर्म को एक बुरे पंथ के रूप में घोषित किया है, पवित्र बाइबल को एक बुरे पंथ का काम कहा है, हर जगह ईसाइयों को अंधाधुंध गिरफ्तार किया और सताया है, जिसके परिणामस्वरूप कई ईसाइयों को जेल में डाला गया है और उन पर उस सीमा तक अत्याचार किया गया है जहाँ वे गंभीर रूप से घायल हुए हैं या मारे भी गए हैं। क्या तुम इन ऐतिहासिक तथ्यों को भूल गए हो? सीसीपी ने हमेशा परमेश्वर का विरोध किया है और यह परमेश्वर की दुश्मन रही है, यह परमेश्वर के वचन और सच्चाई से नफ़रत करती है, यह उन लोगों से नफ़रत करती है जो सच्चे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सही राह पर चलते हैं, और लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने के लिए अफवाहें शुरू करने, लोगों को बदनाम करने और झूठे आरोप लगाकर उन्हें फँसाने जैसी सभी प्रकार की बुराइयों को करती है। क्या यह हो सकता है कि तुम इसे पहचानने में भी समर्थ नहीं हो? क्या यह हो सकता है कि मैं तुम्हारी माँ होकर अपने पुत्रों और पुत्रियों को आग के कुएँ में धकेल सकती थी? मैं यहाँ फ्रांस में चली आई ताकि तुम सभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास कर सको, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अनुसरण कर सको, और परमेश्वर के पूर्ण उद्धार को प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करो। एक बार प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वह वापस आएगा, और अब प्रभु यीशु लौट आया है, उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में देहधारण किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचनों को व्यक्त किया है, और प्रभु यीशु द्वारा किए गए छुटकारे के कार्य के आधार पर, वह परमेश्वर के घर से शुरू करते हुए अंत के दिनों के न्याय के कार्य को कर रहा है, ताकि हम सभी को जो शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट हो चुके हैं, पूरी तरह शुद्ध कर हमें प्राप्त कर सके और परमेश्वर के राज्य में ला सके। यह एक बेहद दुर्लभ मौका है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और ��चन की तलाश किए बिना तुम केवल अफ़वाहों को क्यों सुनते हो? क्या इन सभी वर्षों में प्रभु में हमारा विश्वास प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए नहीं रहा है? यदि तुम लोग मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की इस बहन को मिलने की इजाज़त नहीं देते हो तो मेरे लिए अब एक विमान-टिकट खरीद लो, मैं वापस घर जा रही हूँ!” अपनी माँ को अपने दृष्टिकोण में इतनी दृढ़ देखकर और उनसे समझदारी तथा अंतर्दृष्टि की ये बातें सुनकर, हम सभी अवाक् रह गए थे। बहरहाल, हमने फिर भी समझौता नहीं किया। हम हमारी माँ को उस बहन से मिलने के लिए ले जाने को तैयार नहीं थे। अगले कई दिनों तक, चाहे हमने अपनी माँ को खुश करने की कैसे भी कोशिश की, हम चाहे उन्हें कहीं भी ले गए हों या उनके लिए कुछ भी खरीदा हो, उन्होंने ��रा-सा भी उत्साह नहीं दिखाया। पूरे दिन वे इतनी उदास रहीं कि वे खाना भी नहीं खाती थी। खाने-पीने के प्रति हमारी माँ की अनिच्छा ने मुझे बहुत असहज बना दिया था। मैंने सोचा कि हमारी माँ ने कैसे हमें प्यार से बड़ा किया था, उन्होंने शायद ही कभी हमारे सामने अपना आपा खोया था। यह पहली बार था जब मैंने अपनी माँ को इतना क्रोधित और आहत देखा था, और इस बात ने मुझे ढीला कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी बहनों के साथ बात की और उनसे कहा कि इस बार मैं “ख़तरे” का बहादुरी से सामना करुँगी और उन्हें पूर्वी बिजली के उन विश्वासियों से मिलने के लिए ले जाऊँगी।
तथ्यों की रोशनी में अफ़वाहें ढह गईं, और परमेश्वर की आवाज़ सुनकर मैं उसके सामने लौट गई
दो दिन बाद, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की दो बहनें शाम को हमारी दुकान में आईं, और जैसे ही उन्होंने हमारी माँ को देखा, वे बहुत उत्साहित हो गईं और जाकर उन्हें गले लगा लिया। ऐसा लगा मानो वे करीबी रिश्तेदार थीं जो कई वर्षों तक एक दूसरे से अलग रहने के बाद अब फिर से मिली थीं। वे दोनों एक दूसरे के प्रति चिन्ताशील और सम्मानपूर्ण थीं। मैं यह देखकर हैरान रह गई, लेकिन दिल को छूने वाले इस दृश्य से द्रवित हुए बिना मैं न रह सकी, और मेरे चेहरे से आँसू बिना रुके टपकने लगे। ऐसा क्यों था? क्यों वे लोग, जिन्हें हम पहले कभी भी नहीं मिले थे, ऐसे लगते हैं मानो वे परस्पर स्नेह से मिलते आत्मीय-जन हों? मैंने यह भी देखा कि वे अपनी बोलचाल और अपने व्यवहार में बहुत शिष्ट थे और दूसरों के साथ पेश आने में वे बहुत मैत्रीपूर्ण और अच्छी प्रकृति के थे। वे ज़रा भी वै��े नहीं थे जैसे कि अफ़वाहों में बताये गए थे! लेकिन फिर मैंने मन ही मन सोचा: “ठीक है, यह हो सकता है कि वे इस पल में ऐसे दिखाई दें, लेकिन मैं खुद को उनसे धोखा खाने नहीं दूँगी, मुझे उनका अवलोकन करना जारी रखना चाहिए।” इसके बाद, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाइयों और बहनों से संपर्क बनाये रखना शुरू कर दिया।
कई बार उनसे मिलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहन हमारे साथ सिर्फ सच्चाई के बारे में सहभागिता करना चाहते थे और अपने अनुभव और ज्ञान को साझा करना चाहते थे, उन्होंने हमें किसी भी तरह से धोखा नहीं दिया, और न ही उन्होंने हमें नुकसान पहुँचाया। इसके विपरीत, उन्होंने बहुत धीरज और सहानुभूति के साथ हमें परमेश्वर पर विश्वास करने में होती कुछ परेशानियों और कठिनाइयों को समझने में मदद की। प्रारंभ में उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रभु यीशु के प्रकटन होने की गवाही दी। मैंने इसे अपने दिल में स्वीकार नहीं किया, इसलिए उन्होंने बाइबल का इस्तेमाल कर धैर्यपूर्वक मुझे उन कारणों को समझाया कि धार्मिक दुनिया इतनी उजाड़ क्यों हो गई है। उन्होंने मुझे एक उदाहरण देते हुए कहा: “यह क्यों था कि व्यवस्था के युग के अंत में मंदिर चोरों के अड्डे में बदल गया जहाँ धन का आदान-प्रदान होता था और पशुधन और मुर्गियों को बेचा जाता था? इसका एक कारण यह था कि धार्मिक अगुआ परमेश्वर के नियमों और आदेशों का पालन नहीं करते थे, वे केवल उन नियमों के अनुसार चल रहे थे जिनका मनुष्य परंपरागत पालन कर रहा था, और वे अवैध कर्म कर रहे थे, परमेश्वर का विरोध कर रहे थे और वे परमेश्वर द्वारा नकारे गए थे; इसका एक और कारण यह था कि पवित्र आत्मा का कार्य पहले ही विकसित हो चुका था, परमेश्वर पहले ही देहधारण कर मंदिर के बाहर अनुग्रह के युग का कार्य पूरा कर रहा था। पवित्र आत्मा मंदिर में अब और काम नहीं कर रहा था, मंदिर उजाड़ हो चुका था। इसी तरह, कलीसिया भी आज उजाड़ हो चुकी है क्योंकि पादर�� और एल्डर्स परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण नहीं कर रहे हैं, वे परमेश्वर के आदेशों के खिलाफ़ जा रहे हैं, वे प्रभु के नए कार्य का अंधाधुंध विरोध कर रहे हैं, परमेश्वर ने बहुत पहले उन्हें अस्वीकार कर दिया है, पवित्र आत्मा उनके बीच कार्य नहीं कर रहा है; साथ ही, यह इसलिए भी है कि परमेश्वर अंत के दिनों में नया कार्य कर रहा है, कि उसने पूरे ब्रह्मांड में आत्मा के सभी कार्यों को वापस ले लिया है और इसे अपने नए कार्य का अनुसरण करने वालों को सौंप दिया है। इन लोगों को पहले ही पवित्र आत्मा का कार्य दुबारा प्राप्त हुआ है और इन्होंने “बारिश” के नगर में प्रवेश किया है। लेकिन जिन लोगों को परमेश्वर का नया कार्य नहीं मिला है, उन्हें उस नगर में छोड़ा जाएगा जहाँ “बारिश” नहीं है और वहाँ वे सूख जाएँगे। इस “बारिश” का तात्पर्य पवित्र आत्मा के कार्य से है, यह परमेश्वर के नए वचन को संदर्भित कर रही है। इससे आमोस 4:7 की किताब में जो कहा गया है, वह पूरा हुआ है: ‘जब कटनी के तीन महीने रह गए, तब मैं ने तुम्हारे लिये वर्षा न की; मैं ने एक नगर में जल बरसाकर दूसरे में न बरसाया; एक खेत में जल बरसा, और दूसरा खेत जिस में न बरसा, वह सूख गया।’
उनकी सहभागिता वास्तव में बाइबल के अनुरूप थी, और यह प्रभु के वचन के अनुरूप थी। उन्होंने जो कहा वह बहुत अर्थपूर्ण था, लेकिन चूँकि मैं सीसीपी और धार्मिक दुनिया के पादरियों और एल्डर्स द्वारा प्रसारित अफ़वाहों से गहराई से प्रभावित हो गई थी, इसलिए मैं अब भी उनके खिलाफ़ सावधान रही और मैंने दिल में उनका विरोध किया। किसी कमी को खोज निकालने की मैंने पूरी कोशिश की ताकि मैं इसका उपयोग कर उन्हें अस्वीकार कर सकूँ। मैंने उनसे भले ही ऐसा व्यवहार किया, उन्होंने फिर भी मेरे साथ बहुत धैर्यपूर्वक सहभागिता की, जिससे मुझे परमेश्वर की इच्छा का एहसास हुआ और मैं परमेश्वर के कार्य को जान सकी। बाद में, उन बहनों ने परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों की सच्चाई के बारे में भी मेरे साथ सहभागिता की। यह सुनकर मैं हैरान रह गई, लगता है अंत के दिनों के मसीह—सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानव जाति को बचाने के लिए परमेश्वर की 6,000 साल की प्रबंधन योजना के सभी रहस्यों को उजागर कर दिया है। व्यवस्था के युग में परमेश्वर का कार्य यह था कि उसने इस्राएलियों के जीवन का नेतृत्व करने के लिए “यहोवा” नाम का इस्तेमाल किया, और मूसा के द्वारा नियम जारी करने के माध्यम से उसने मनुष्य को अपने पापों से अवगत कराया; अनुग्रह के युग में परमेश्वर का कार्य यह था कि छुटकारे के काम को करने के लिए उसने “यीशु” नाम का उपयोग किया, और अंत में वह क्रूस पर मनुष्य के लिए पापबलि के रूप में चढ़ाया गया, अर्थात उसने मानवजाति के पापों को अपने ऊपर लेकर मनुष्य को पापमुक्त कर दिया; राज्य के युग में परमेश्वर का कार्य यह है कि वह मनुष्यों का न्याय करने और अंत के दिनों में मनुष्य को शुद्ध करने के काम को पूरा करने के लिए “सर्वशक्तिमान परमेश्वर” नाम का उपयोग कर रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मनुष्यों का न्याय करने और मनुष्यों को दंडित करने के लिए वचनों को जारी किया है, और इस प्रकार मनुष्य को अपनी पापी प्रकृति का त्याग कर शुद्ध होने और परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करने की अनुमति दी है, ताकि उसे परमेश्वर के राज्य में लाया जा सके और एक नए स्वर्ग और एक नई पृथ्वी में प्रवेश किया जा सके। परमेश्वर के कार्य के तीन चरण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं, वे क्रमशः गहरे होते जाते हैं, एक दूसरे के पूरक हैं, उनमें से एक भी अनावश्यक नहीं है, वे एक ही परमेश्वर के कार्य हैं, और यह प्रकाशितवाक्य पुस्तक की भविष्यवाणियों को पूरा करता है जहाँ कहा गया है: “प्रप्रभु परमेश्वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्तिमान है, यह कहता है, मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ” (प्रकाशितवाक्य1:8)। उस पल में मुझे ऐसा लगा कि मेरा दिल जाग रहा था, और मुझे बहुत उत्साहित महसूस हुआ। अब तक मैंने बीस वर्षों से अधिक समय से प्रभु में विश्वास किया था, लेकिन चाहे वह मुख्यभूमि चीन में हो या विदेश में, मैंने पहले कभी किसी पादरी या एल्डर से उपदेश का ऐसा प्रचार नहीं सुना था। जहाँ तक परमेश्वर की योजना और बाइबल की भविष्यवाणियों का प्रश्न है, ये सभी रहस्य हैं, इन्हें कोई भी नहीं जानता है, फिर भी जो लोग पूर्वी बिजली में विश्वास करते हैं, वे इतनी सारी चीज़ों के बारे में बहुत स्पष्ट रूप से बोलते हैं, जैसे मानव जाति के प्रबंधन के लिए परमेश्वर की योजना, और परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक युग में हासिल किए जाने वाले कदम, सिद्धांत, विवरण और परिणाम, साथ ही परमेश्वर द्वारा व्यक्त किया गया स्वभाव, और परमेश्वर की मानवजाति से अपेक्षाएँ और उसकी इच्छा, मानो कि ये लोग अपने परिवार के क़ीमती सामानों की गणना कर रहे हों। मुझे अपने दिल में यह पुष्टि महसूस हुई कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन सत्य के आत्मा की अभिव्यक्ति है, यह वास्तव में परमेश्वर की आवाज़ है। प्रभु यीशु ने एक बार कहा था: “परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का ��ार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा” (यूहन्ना 16:13)। “ये बातें पूरी हो गई हैं। मैं अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त हूँ” (प्रकाशितवाक्य 21:6)। अब इन भविष्यवाणियों को अंत के दिनों में प्रकट हुए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के माध्यम से निष्पादित और पूर्ण किया गया है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु की वापसी है, और यह सब वास्तव में एक ही परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य है।
बाद में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को भी पढ़ा जहाँ यह कहा गया है: “अंतिम दिनों का मसीह जीवन लेकर आता, और सत्य का स्थायी एवं अनन्त मार्ग प्रदान करता है। इसी सत्य के मार्ग के द्वारा मनुष्य जीवन को प्राप्त करेगा, और एक मात्र इसी मार्ग से मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करेगा। यदि तुम अंतिम दिनों के मसीह के द्वारा प्रदान किए गए जीवन क�� मार्ग को नहीं खोजते हो, तो तुम कभी भी यीशु के अनुमोदन को प्राप्त नहीं कर पाओगे और कभी भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य नहीं बन पाओगे क्योंकि तुम इतिहास के कठपुतली और कैदी दोनों हो। …परमेश्वर के आये बिना, क्या तुम अपने आप को परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनन्द मनाने के लिए स्वर्ग में ले जा सकते हो क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? मैं तुम्हें सुझाव देता हूं, कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो, और उनकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहे हैं, इन अंतिम दिनों में कौन मनुष्यों को बचाने के लिए कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य को नहीं प्राप्त कर सकते, और कभी भी जीवन प्राप्त नहीं कर सकते हो” (“वचन देह में प्रकट होता है” से “केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है”)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन परमेश्वर के अधिकार और महिमा से भरा हुआ है, और यह परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को प्रकट करता है। मुझे पता है कि अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य सत्य को व्यक्त करना और मनुष्य को जीवन प्रदान करना है। जब तक हम अंत के दिनों के मसीह—सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन को भी स्वीकार करते हैं, तो हम अंततः हमारे पाप के मूल कारण को हल करने में सक्षम होंगे। केवल तभी हम अनंत जीवन के मार्ग को प्राप्त करने में समर्थ होंगे। और जो लोग परमेश्वर के कार्य की गति के साथ निभाने में सक्षम नहीं हैं, जो अंत के दिनों में परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कभी भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य नहीं होंगे, और अंत में वे केवल परमेश्वर द्वारा हटाये जा सकते हैं, जिससे वे तबाह और नष्ट हो जाएँगे। परमेश्वर के न्याय के वचनों के सामने, मैंने सोचा कि किस तरह मैं पिछले कुछ वर्षों में प्रभु की वापसी के तथ्य को समझने में इतनी लापरवाह रही थी, और मैं कुछ डरे बिना नहीं रह सकी, और अब मैं इस तथ्य के साथ इस तरह अनादर का व्यवहार करने की हिम्मत न कर सकी। मैंने उन परिस्थितियों के बारे में भी सोचा जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों से मिली थी और मैंने देखा था कि वे परमेश्वर के वचनों से जीवन पाते थे: चाहे मैंने कोई भी मुद्दे उठाये हों, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का उपयोग करते हुए मुझे उत्तर देने में हमेशा बहुत धीरज रखते थे, वे तब तक नहीं रुकते थे जब तक मैं समझ नहीं लेती थी; कभी-कभी बहनें मेरी दुकान में आती थीं, और चूँकि दुकान छोटी थी और उनको बिठाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी, वे कई घंटों तक खड़ी ही रहती थीं, और वे अपने लिए खुद ही खाना भी लेकर आती थीं; कभी-कभी, मेरे व्यापार पर असर न पड़े इसलिए, वे रात के समय की प्रतीक्षा करती थीं ताकि मैं अपना काम पूरा कर सकूँ और वे सच्चाई के बारे में मुझसे सहभागिता कर सकें, और हमारी सभा के ख़त्म होते और उनके घर लौट पाने तक आधी रात हो जाती थी। एक बार दो बहनें मेरे साथ रात में इतनी देर तक सहभागिता करती रही कि उनके घर लौटने के लिए अब कोई ट्रेन नहीं थी, और उन्होंने बाकी रात मेट्रो स्टेशन पर ही बिताई थी। मैंने इन भाइयों और बहनों को बहुत कठिनाइयों का सामना करते और बहुत सहानुभूति और धीरज रखते हुए देखा, और मैं बाइबल में जो यह कहा गया है उसके बारे में सोचे बिना न रह सकी: “उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या लोग झाड़ियों से अंगूर, या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है”(मत्ती 7:16-18)। जब से मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाइयों और बहनों के संपर्क में रहने लगी थी, मैंने देखा कि वे जिस तरह से रहते थे वह काफी प्रशंसनीय था, कि वे उन दो महान आज्ञाओं का पालन करते थे जिनका अभ्यास करने के लिए प्रभु यीशु ने मनुष्यों से कहा था: “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख” (मत्ती 22:37-39)। मैं यह कहने की हिम्मत तो नहीं करुँगी कि वे पहले ही प्रभु की अपेक्षाओं तक पहुँच चुके थे, लेकिन मैंने देखा कि वे इन दो आज्ञाओं की वास्तविकता का एक भाग जी रहे थे। और जब इसकी तुलना विभिन्न पंथों और संप्रदायों के भाई-बहन किस तरह जीते थे, उससे की गई तो ये स्वर्ग और पृथ्वी के समान भिन्न थे, वो भाई-बहन ज़रा भी क्षमा और धैर्य से नहीं रहते थे, वे ईर्ष्या और कलह से भरे हुए थे, और वे एक दूसरे के साथ लड़ते तथा संघर्ष करते थे, यहाँ तक कि वे कलीसिया के भीतर ही एक दूसरे से प्रसिद्धि, लाभ और पदवी के लिए लड़ते थे, और जहाँ तक वे किस प्रकार के पेड़ के थे इसका प्रश्न है, यह उस फल को देखकर बताया जा सकता है जो उस पेड़ ने दिए थे। लेकिन जिस तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहन जीते थे, उससे मुझे अपने दिल में एक पुष्टि मिली कि, उनके रहने का ढंग नकली नहीं था, परमेश्वर के वचनों का पालन करने के बाद यह उनके जीवन की अभिव्यक्ति थी। चूँकि वे मेमने के चरणों का अनुसरण करते थे, चूँकि उनके पास पवित्र आत्मा का कार्य था, और उनके जीवन के रूप में परमेश्वर का वचन था, वे एक ऐसे सच्चे ईसाई की सदृशता को जीने में सक्षम थे जो परमेश्वर के लिए महिमा लाता है और परमेश्वर की गवाही देता है। इस समय, परमेश्वर के वचन के नेतृत्व में और इन तथ्यों के शक्तिशाली जवाबी हमलों के तहत, पूर्वी बिजली के बारे में ये अफ़वाहें धीरे-धीरे मेरे दिल में ढह पड़ीं।
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तारीख : 24-02-2020 समय : 2:00 AM
जीवन मूल्य
दुनिया का सच विज्ञान है , मुझे दिन प्रतिदिन ये यकीन होता चला जा रहा है! इसलिए नही की मैं नास्तिक हूँ बल्कि इसलिए कि मैंने इसे आध्यात्मिक तरीके से महसूस किया है ।
मुझे याद नही की कब मुझे पता चला कि दुनिया मे मानव जाति का अपना अलग-अलग अराध्य है पर इतना जरूर याद है कि गाँव मे जब भी मेले लगते थे तो ��समें आरती, पूजा , हवन ये सब देख कर मैं खुश हो जाया करता था या भी किसी के आंगन में कोई शुभ-कार्य होता था तो जी भर के बचपन मन नाचता था । क्यों नाचता था ? इसका कारण मुझे ढूढने पर भी नही मिलेगा पर मानसपटल पर स्मृत शेष है कि मैं खूब खिलखिलाकर नाचता था ।
खैर, समय के साथ मैं दुनिया के स्वभाव से परिचित होने लगा, धीरे धीरे समाज, गाँव, स्कूल, पेड़ , पौधे, मंदिर, मस्जिद , मजहब, उच्चकुल, निचकुल, देश विदेश , जीवन, मृत्यु आदि से परिचित होने लगा । माध्यम पुस्तकें और गाँव था ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अरस्तू ने कहा था इस बात को प्रारंभिक जीवन मे मैंने जरूर स्वीकार किया लेकिन अब इस बात को स्वीकारना असहनीय है । मन विचलित हो उठा है , क्योंकि मैंने स्वयं से ही पूछ पूछ कर ये जान लिया है कि ''मनुष्य एक भ्रमित प्राणी है जो विज्ञान के द्वारा अविष्कार किये गए वस्तु से सारा सुख आधुनिक युग मे भोग रहा है लेकिन 1400 या 5000 साल की अप्रमाणिक मजहबी किताब के चलते एक दूसरे को मार रहा है, काट रहा है ।
किसका अल्ला बड़ा है , किसी का ईश्वर तो किसी का येशु लेकिन जिस विज्ञान की प्रामाणिकता साक्षात है उसका कोई मोल नही , जानने की चेष्टा ही नही कर रहा कि विज्ञान से बड़ा कुछ नही जिसने जीवन जीने के तरीकों को सरल कर दिया है, सुगम कर दिया है ।
जिसका ना प्रमाण , ना जीवन से कोई लेना देना , उस किताब को बस ढ़ोते रहना ही मनुष्य का लक्ष्य है ।
कुछ लोग इस धरती को स्वर्ग बनाना चाहते हैं और कुछ लोग इस धरती को नर्क । इस स्वर्ग और नर्क की लड़ाई में विज्ञान प्रमाण के साथ भी हारा हुआ है और धार्मिक, मजहबी किताब अप्रमाणिक होकर भी जीता हुआ । और मुझे यकीन है यह जीत बनी रहेगी जिसमे विनाश के अलावा और कुछ नही है ।
मुझे बस इतना पता है कि मैं इस दुनिया मे रहकर भी इन भर्मित मनुष्यों से अलग हूँ और मुझे कोई फर्क नही पड़ेगा । मैंने उन सभी अप्रमाणिक किताबों को दफना दिया है और ऐसा कर के मुझे एक अलौकिक खुशी का एहसास हो रहा है ।
#दिशव
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"28 मई" की अफ़वाह से उत्पन्न खलबलियाँ (भाग 1)
पहली बार जब मैंने यह अफ़वाह सुनी तो मेरे दिल पर एक अँधेरा छा गया था
मेरी माँ एक श्रद्धालु ईसाई है। जब से मैं चीज़ों को समझने के लायक बड़ी हुई, वह अक्सर मुझे प्रभु यीशु के बारे में कहानियाँ बताया करतीं, और मुझसे कहा करतीं कि प्रभु यीशु ही एक मात्र सच्चा परमेश्वर है। जब मैं 13 साल की हुई, तो मैं अपनी माँ के साथ कलीसिया गई। उस समय मुझे वास्तव में पादरी के उपदेशों को सुनकर अच्छा लगा, और मुझे बहुत विश्वास हुआ। मैं प्रत्येक सहभागिता में सक्रिय रूप से भाग लिया करती थी। लेकिन मैंने धीरे-धीरे पाया कि पादरी द्वारा दिए गए उपदेशों में कोई प्रबोधन नहीं था। वे हमेशा कुछ मतों और बाइबल की जानकारी को, या कुछ धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों को, दोहराया करते थे, और जैसे जैसे समय बीतता गया, मुझे उनके उपदेशों को सुनकर कोई आनंद नहीं मिलता था, और न ही मुझे ऐसा लगता कि मुझे जीवन प्रदान किया जा रहा था। इसलिए, मैं अब सहभागिताओं में कम से कम कम जाने लगी।
स्नातक होने के बाद मैं फ्रांस गई, और मैंने मन ही मन सोचा: "विदेशों में कलीसियाओं की स्थिति निश्चित रूप से हमारे मुल्क की कलीसियाओं की तुलना में बेहतर होनी चाहिए।" इसलिए, मैंने तुरंत कलीसिया की तलाश में शुरू कर दी। जब मैं एक चीनी कलीसिया में गई, तो मैंने पाया कि उनके दिए गए उपदेश वस्तुतः वही थे जो हमारी अपनी कलीसियाओं में दिए जाते थे, और उनके पास कहने के लिए कुछ नया नहीं था। कुछ समय बाद, उस कलीसिया ने कुछ अमरिकी पादरियों को उपदेश देने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने भी किसी प्रबोधन के साथ बात नहीं की। कलीसिया को फिर से जीवंत बनाने के लिए, पादरियों और पुराने लोगों ने हम विश्वासियों के लिए एक सैर का भी आयोजन किया, ताकि दर्शनीय स्थलों की एक यात्रा और मनोरंजन का उपयोग करके विश्वासियों के उत्साह को जगाया जा सके और उनके बाहरी सामर्थ्य और प्रसिद्धि को मजबूत किया जा सके। जब मैंने देखा कि कलीसिया का हाल ऐसा था, तो मैंने बहुत निराश महसूस किया, और एक बेहतर विकल्प न होने के कारण मैंने इसे छोड़ दिया। इसके बाद, मेरी बड़ी बहन मुझे एक और कलीसिया में ले गई, और मुझे आश्चर्य हुआ कि इस कलीसियाकी स्थिति और भी बदतर थी। सारे विश्वासी प्रसिद्धि और धन के लिए संघर्ष कर रहे थे। कलीसिया के भीतर विवाद और झगड़े उठ खड़े हुए और आखिरकार उन्हें अलग करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा था। इन दृश्यों को देखने के बाद मैंने फिर ��भी भी किसी कलीसिया में जाना नहीं चाहा।
एक दिन, जब मैं अपनी बहन के घर में प्रवेश कर ही रही थी, तो वह मेरे पास दौड़कर आई और बोली: "क्या तुमने सुना? एक पूर्वी बिजली कलीसिया उभर आई है, और वे बहुत ऊंचे उपदेशों का प्रचार कर रहे हैं, जो कलीसियाओं से अच्छी भेड़ों को 'चुराने' पर केंद्रित हैं। मैंने सुना है कि सभी मतों और संप्रदायों की कई अच्छी भेड़ें और उनके चरवाहों ने पूर्वी बिजली को स्वीकार कर लिया है, और वे सब इस बात को फैला रहे हैं और प्रभु यीशु की वापसी की गवाही दे रहे हैं। मैंने यह भी सुना है कि एक बार यदि तुम पूर्वी बिजली में विश्वास करना शुरू कर देते हो, तो तुम बाहर नहीं निकल सकते हो, कि अगर तुम छोड़ना चाहते हो तो वे तुम्हारी आँखें निकाल लेंगे, तुम्हारी नाक काट देंगे और तुम्हारी संपत्ति को लूट लेंगे।" मेरी बहन ने मुझे बार बार चेतावनी दी और कहा कि मुझे सावधान रहना होगा और पूर्वी बिजली के खिलाफ़ मुझे खुद को सुरक्षित रखना होगा। जब मैं घर वापस लौटी तो मेरे पति ने भी मुझे पूर्वी बिजली के बारे में कुछ नकारात्मक बातें बताईं जो उन्होंने इंटरनेट से जानी थीं। इनमें 28 मई को झाओयुआन, शेडोंग स्थित मैकडॉनल्ड्स में हुआ ह्त्या कांड विशेष था जिसकी सीसीटीवी पर एक रिपोर्ट आई थी। इसके बारे में सुनने के बाद मुझे और भी डर महसूस हुआ, और उस पल के बाद पूर्वी बिजली ने मेरे दिल पर एक निराशा की छाया डाल ली थी।
अफ़वाहों के धोख��� में आकर, मैंने मेरी माँ को पूर्वी बिजली में विश्वास करने से रोक दिया
एक शाम, मुझे अचानक घर से अपने भाई का फ़ोन आया और उसने मुझे बताया कि हमारी माँ पूर्वी बिजली में विश्वास करती है। मैं इस खबर से चौंक गई: यह सच नहीं हो सकता, क्या यह हो सकता है? माँ पूर्वी बिजली में कैसे विश्वास कर सकती थी? मैंने उन अफ़वाहों के बारे में सोचा जो मैंने सुन रखी थी, और मुझे चिंता हुई कि माँ के साथ कुछ अनर्थ होगा। कई रातों तक मैं करवटें बदलती रही और सो नहीं पाई। मैंने मन ही मन सोचा" "यह ठीक नहीं है! मुझे माँ को रोकना होगा, मैं उन्हें पूर्वी बिजली में विश्वास करने नहीं दे सकती"। लेकिन हर बार जब मैंने अपनी माँ को फ़ोन किया और पूर्वी बिजली के बारे में इन्टरनेट पर रहीं अफवाहों के बारे में बताया, उन्होंने तुरंत ही फोन रख दिया। मेरे पास उन्हें मनाने का कोई तरीक़ा नहीं था। उसके बाद मेरे भाई और मैंने आपस में सलाह की और यह तय किया कि वह हमारी माँ के पीछे लगेगा और उन्हें पूर्वी बिजली में विश्वास करने से रोकेगा। बहरहाल, चाहे वह किसी भी तरीक़े का उपयोग करे, इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ, हमारी माँ अपने विश्वास में बिलकुल नहीं डिगी। चूँकि कोई अन्य विकल्प नहीं था, मेरे भाई-बहनों और मैंने इस पर बात की और हमने फैसला किया कि हम अपनी माँ को एक अंतिम धमकी देंगे: अगर उन्होंने पूर्वी बिजली में विश्वास करना जारी रखा, तो हम उन्हें त्याग देंगे। हमें आश्चर्य हुआ कि वे अपने दृष्टिकोण में दृढ थीं और उन्होंने पूर्वी बिजली में विश्वास करते रहने पर ज़ोर दिया। मार्च 2017 में, मेरी बड़ी बहन ने और मैंने घर जाने और हमारी माँ को फ्रांस ले आने का फैसला किया, हमने सोचा था कि अगर हमने ऐसा किया तो हम उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने से रोक सकते थे। लेकिन अप्रत्याशित रूप से, वे आने के लिए तैयार नहीं थीं, हालाँकि हम उनके वीज़ा के लिए आवेदन करने में सफल रहे थे, इसलिए मेरी बहन ने और मैंने, गर्म टिन की छत पर रही बिल्लियों की तरह घबराते हुए, यह पता लगाने की कोशिश की कि हम अपनी माँ को वहाँ से निकालने के लिए क्या कर सकते थे। आखिरकार, हमने एक अंतिम उपाय के बारे में सोचा: हम यह चाल चलेंगे कि अपनी माँ को पूर्वी बिजली में विश्वास का अभ्यास करने के लिए फ्रांस ले आयें। हमें आश्चर्य हुआ कि यह चाल काम कर गई और माँ इसके लिए यकीनन राज़ी हो गई। हालांकि, हमें उनकी एक शर्त से सहमत होना पड़ा। मैंने मन ही मन सोचा: "अगर माँ फ्रांस आ जाती हैं, तो एक तो क्या मैं दस शर्तों को भी मान लूँगा"। बाद में, मैंने पाया कि उनकी शर्त यह थी कि वे आशा करती थीं कि मेरी बहन और मैं परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य पर निगाह करेंगे। हमारी माँ को चालाकी से फ्रांस में ले आने के लिए मेरे पास इस बात से सहमत होने का नाटक करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, लेकिन मैंने मन ही मन सोचा: "आह! कोई गुंजाईश नहीं है कि मैं इसमें ध्यान दूँ! एक बार हम उन्हें फ्रांस ले आयें, तो हमारे पास उन्हें रोकने के तरीक़े होंगे"। इस तरह माँ हमारे साथ आने के लिए तैयार हो गईं क्योंकि उनकी यह धारणा थी कि हम वास्तव में उनके अनुरोध से सहमत थे।
हमारी माँ को फ्रांस में आए एक सप्ताह हो इसके पहले ही उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने कलीसिया की एक बहन से संपर्क किया था और उन्होंने रूबरू मिलने के लिए समय भी निर्धारित कर लिया था। मैंने मन ही मन सोचा: ये तो वाकई तेज़ी से काम करते हैं। हम अभी तो आये ही हैं और इन लोगों ने संपर्क भी बना लिया है, अब हमें क्या करना चाहिए? क्या हमें सचमुच माँ को उनसे मिलने देना चाहिए या नहीं? अगर हम उनसे कहते हैं कि वे उनसे नहीं मिल सकती हैं, तो वे इसके लिए सहमत नहीं होंगी; अगर हम उन्हें मिलने देते हैं तो पूर्वी बिजली में विश्वास करने से उन्हें रोकने की हमारी आशा पर पानी फिर जाएगा। मैंने तय किया कि मैं माँ के साथ जाऊँगी, परन्तु मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे पति, मेरी बहन और उसके पति ने मेरा कड़ा विरोध किया। जब हमने तय किया कि माँ उनसे मिलने नहीं जाएँगी, तो उन्होंने गुस्से में कहा: "सीसीपी द्वारा गठित झूठी बातों पर भरोसा करने का तुम्हारा आग्रह क्यों है? सीसीपी क्या है? यह एक नास्तिक राजनीतिक दल है, और जब से यह सत्ता में आई है, यह लगातार धार्मिक विश्वासियों का दमन करते हुए उन्हें अवैध घोषित करती रही है, और इसने ईसाई धर्म को एक बुरे पंथ के रूप में घोषित किया है, पवित्र बाइबल को एक बुरे पंथ का काम कहा है, हर जगह ईसाइयों को अंधाधुंध गिरफ्तार किया और सताया है, जिसके परिणामस्वरूप कई ईसाइयों को जेल में डाला गया है और उन पर उस सीमा तक अत्याचार किया गया है जहाँ वे गंभीर रूप से घायल हुए हैं या मारे भी गए हैं। क्या तुम इन ऐतिहासिक तथ्यों को भूल गए हो? सीसीपी ने हमेशा परमेश्वर का विरोध किया है और यह परमेश्वर की दुश्मन रही है, यह परमेश्वर के वचन और सच्चाई से नफ़रत करती है, यह उन लोगों से नफ़रत करती है जो सच्चे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सही राह पर चलते हैं, और लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने के लिए अफवाहें शुरू करने, लोगों को बदनाम करने और झूठे आरोप लगाकर उन्हें फँसाने जैसी सभी प्रकार की बुराइयों को करती है। क्या यह हो सकता है कि तुम इसे पहचानने में भी समर्थ नहीं हो? क्या यह हो सकता है कि मैं तुम्हारी माँ होकर अपने पुत्रों और पुत्रियों को आग के कुएँ में धकेल सकती थी? मैं यहाँ फ्रांस में चली आई ताकि तुम सभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास कर सको, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अनुसरण कर सको, और परमेश्वर के पूर्ण उद्धार को प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करो। एक बार प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वह वापस आएगा, और अब प्रभु यीशु लौट आया है, उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में देहधारण किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचनों को व्यक्त किया है, और प्रभु यीशु द्वारा किए गए छुटकारे के कार्य के आधार पर, वह परमेश्वर के घर से शुरू करते हुए अंत के दि��ों के न्याय के कार्य को कर रहा है, ताकि हम सभी को जो शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट हो चुके हैं, पूरी तरह शुद्ध कर हमें प्राप्त कर सके और परमेश्वर के राज्य में ला सके। यह एक बेहद दुर्लभ मौका है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचन की तलाश किए बिना तुम केवल अफ़वाहों को क्यों सुनते हो? क्या इन सभी वर्षों में प्रभु में हमारा विश्वास प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए नहीं रहा है? यदि तुम लोग मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की इस बहन को मिलने की इजाज़त नहीं देते हो तो मेरे लिए अब एक विमान-टिकट खरीद लो, मैं वापस घर जा रही हूँ!" अपनी माँ को अपने दृष्टिकोण में इतनी दृढ़ देखकर और उनसे समझदारी तथा अंतर्दृष्टि की ये बातें सुनकर, हम सभी अवाक् रह गए थे। बहरहाल, हमने फिर भी समझौता नहीं किया। हम हमारी माँ को उस बहन से मिलने के लिए ले जाने को तैयार नहीं थे। अगले कई दिनों तक, चाहे हमने अपनी माँ को खुश करने की कैसे भी कोशिश की, हम चाहे उन्हें कहीं भी ले गए हों या उनके लिए कुछ भी खरीदा हो, उन्होंने ज़रा-सा भी उत्साह नहीं दिखाया। पूरे दिन वे इतनी उदास रहीं कि वे खाना भी नहीं खाती थी। खाने-पीने के प्रति हमारी माँ की अनिच्छा ने मुझे बहुत असहज बना दिया था। मैंने सोचा कि हमारी माँ ने कैसे हमें प्यार से बड़ा किया था, उन्होंने शायद ही कभी हमारे सामने अपना आपा खोया था। यह पहली बार था जब मैंने अपनी माँ को इतना क्रोधित और आहत देखा था, और इस बात ने मुझे ढीला कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी बहनों के साथ बात की और उनसे कहा कि इस बार मैं "ख़तरे" का बहादुरी से सामना करुँगी और उन्हें पूर्वी बिजली के उन विश्वासियों से मिलने के लिए ले जाऊँगी।
तथ्यों की रोशनी में अफ़वाहें ढह गईं, और परमेश्वर की आवाज़ सुनकर मैं उसके सामने लौट गई
दो दिन बाद, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की दो बहनें शाम को हमारी दुकान में आईं, और जैसे ही उन्होंने हमारी माँ को देखा, वे बहुत उत्साहित हो गईं और जाकर उन्हें गले लगा लिया। ऐसा लगा मानो वे करीबी रिश्तेदार थीं जो कई वर्षों तक एक दूसरे से अलग रहने के बाद अब फिर से मिली थीं। वे दोनों एक दूसरे के प्रति चिन्ताशील और सम्मानपूर्ण थीं। मैं यह देखकर हैरान रह गई, लेकिन दिल को छूने वाले इस दृश्य से द्रवित हुए बिना मैं न रह सकी, और मेरे चेहरे से आँसू बिना रुके टपकने लगे। ऐसा क्यों था? क्यों वे लोग, जिन्हें हम पहले कभी भी नहीं मिले थे, ऐसे लगते हैं मानो वे परस्पर स्नेह से मिलते आत्मीय-जन हों? मैंने यह भी देखा कि वे अपनी बोलचाल और अपने व्यवहार में बहुत शिष्ट थे और दूसरों के साथ पेश आने में वे बहुत मैत्रीपूर्ण और अच्छी प्रकृति के थे। वे ज़रा भी वैसे नहीं थे जैसे कि अफ़वाहों में बताये गए थे! लेकिन फिर मैंने मन ही मन सोचा: "ठीक है, यह हो सकता है कि वे इस पल में ऐसे दिखाई दें, लेकिन मैं खुद को उनसे धोखा खाने नहीं दूँगी, मुझे उनका अवलोकन करना जारी रखना चाहिए।" इसके बाद, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाइयों और बहनों से संपर्क बनाये रखना शुरू कर दिया।
कई बार उनसे मिलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहन हमारे साथ सिर्फ सच्चाई के बारे में सहभागिता करना चाहते थे और अपने अनुभव और ज्ञान को साझा करना चाहते थे, उन्होंने हमें किसी भी तरह से धोखा नहीं दिया, और न ही उन्होंने हमें नुकसान पहुँचाया। इसके विपरीत, उन्होंने बहुत धीरज और सहानुभूति के साथ हमें परमेश्वर पर विश्वास करने में होती कुछ परेशानियों और कठिनाइयों को समझने में मदद की। प्रारंभ में उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रभु यीशु के प्रकटन होने की गवाही दी। मैंने इसे अपने दिल में स्वीकार नहीं किया, इसलिए उन्होंने बाइबल का इस्तेमाल कर धैर्यपूर्वक मुझे उन कारणों को समझाया कि धार्मिक दुनिया इतनी उजाड़ क्यों हो गई है। उन्होंने मुझे एक उदाहरण देते हुए कहा: "यह क्यों था कि व्यवस्था के युग के अंत में मंदिर चोरों के अड्डे में बदल गया जहाँ धन का आदान-प्रदान होता था और पशुधन और मुर्गियों को बेचा जाता था? इसका एक कारण यह था कि धार्मिक अगुआ परमेश्वर के नियमों और आदेशों का पालन नहीं करते थे, वे केवल उन नियमों के अनुसार चल रहे थे जिनका मनुष्य परंपरागत पालन कर रहा था, और वे अवैध कर्म कर रहे थे, परमेश्वर का विरोध कर रहे थे और वे परमेश्वर द्वारा नकारे गए थे; इसका एक और कारण यह था कि पवित्र आत्मा का कार्य पहले ही विकसित हो चुका था, परमेश्वर पहले ही देहधारण कर मंदिर के बाहर अनुग्रह के युग का कार्य पूरा कर रहा था। पवित्र आत्मा मंदिर में अब और काम नहीं कर रहा था, मंदिर उजाड़ हो चुका था। इसी तरह, कलीसिया भी आज उजाड़ हो चुकी है क्योंकि पादरी और एल्डर्स परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण नहीं कर रहे हैं, वे परमेश्वर के आदेशों के खिलाफ़ जा रहे हैं, वे प्रभु के नए कार्य का अंधाधुंध विरोध कर रहे हैं, परमेश्वर ने बहुत पहले उन्हें अस्वीकार कर दिया है, पवित्र आत्मा उनके बीच कार्य नहीं कर रहा है; साथ ही, यह इसलिए भी है कि परमेश्वर अंत के दिनों में नया कार्य कर रहा है, कि उसने पूरे ब्रह्मांड में आत्मा के सभी कार्यों को वापस ले लिया है और इसे अपने नए कार्य का अनुसरण करने वालों को सौंप दिया है। इन लोगों को पहले ही पवित्र आत्मा का कार्य दुबारा प्राप्त हुआ है और इन्होंने "बारिश" के नगर में प्रवेश किया है। लेकिन जिन लोगों को परमेश्वर का नया कार्य नहीं मिला है, उन्हें उस नगर में छोड़ा जाएगा जहाँ "बारिश" नहीं है और वहाँ वे सूख जाएँगे। इस "बारिश" का तात्पर्य पवित्र आत्मा के कार्य से है, यह परमेश्वर के नए वचन को संदर्भित कर रही है। इससे आमोस 4:7 की किताब में जो कहा गया है, वह पूरा हुआ है: 'जब कटनी के तीन महीने रह गए, तब मैं ने तुम्हारे लिये वर्षा न की; मैं ने एक नगर में जल बरसाकर दूसरे में न बरसाया; एक खेत में जल बरसा, और दूसरा खेत जिस में न बरसा, वह सूख गया।'"
उनकी सहभागिता वास्तव में बाइबल के अनुरूप थी, और यह प्रभु के वचन के अनुरूप थी। उन्होंने जो कहा वह बहुत अर्थपूर्ण था, लेकिन चूँकि मैं सीसीपी और धार्मिक दुनिया के पादरियों और एल्डर्स द्वारा प्रसारित अफ़वाहों से गहराई से प्रभावित हो गई थी, इसलिए मैं अब भी उनके खिलाफ़ सावधान रही और मैंने दिल में उनका विरोध किया। किसी कमी को खोज निकालने की मैंने पूरी कोशिश की ताकि मैं इसका उपयोग कर उन्हें अस्वीकार कर सकूँ। मैंने उनसे भले ही ऐसा व्यवहार किया, उन्होंने फिर भी मेरे साथ बहुत धैर्यपूर्वक सहभागिता की, जिससे मुझे परमेश्वर की इच्छा का एहसास हुआ और मैं परमेश्वर के कार्य को जान सकी। बाद में, उन बहनों ने परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों की सच्चाई के बारे में भी मेरे साथ सहभागिता की। यह सुनकर मैं हैरान रह गई, लगता है अंत के दिनों के मसीह—सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानव जाति को बचाने के लिए परमेश्वर की 6,000 साल की प्रबंधन योजना के सभी रहस्यों को उजागर कर दिया है। व्यवस्था के युग में परमेश्वर का कार्य यह था कि उसने इस्राएलियों के जीवन का नेतृत्व करने के लिए "यहोवा" नाम का इस्तेमाल किया, और मूसा के द्वारा नियम जारी करने के माध्यम से उसने मनुष्य को अपने पापों से अवगत कराया; अनुग्रह के युग में परमेश्वर का कार्य यह था कि छुटकारे के काम को करने के लिए उसने "यीशु" नाम का उपयोग किया, और अंत म���ं वह क्रूस पर मनुष्य के लिए पापबलि के रूप में चढ़ाया गया, अर्थात उसने मानवजाति के पापों को अपने ऊपर लेकर मनुष्य को पापमुक्त कर दिया; राज्य के युग में परमेश्वर का कार्य यह है कि वह मनुष्यों का न्याय करने और अंत के दिनों में मनुष्य को शुद्ध करने के काम को पूरा करने के लिए "सर्वशक्तिमान परमेश्वर" नाम का उपयोग कर रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मनुष्यों का न्याय करने और मनुष्यों को दंडित करने के लिए वचनों को जारी किया है, और इस प्रकार मनुष्य को अपनी पापी प्रकृति का त्याग कर शुद्ध होने और परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करने की अनुमति दी है, ताकि उसे परमेश्वर के राज्य में लाया जा सके और एक नए स्वर्ग और एक नई पृथ्वी में प्रवेश किया जा सके। परमेश्वर के कार्य के तीन चरण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं, वे क्रमशः गहरे होते जाते हैं, एक दूसरे के पूरक हैं, उनमें से एक भी अनावश्यक नहीं है, वे एक ही परमेश्वर के कार्य हैं, और यह प्रकाशितवाक्य पुस्तक की भविष्यवाणियों को पूरा करता है जहाँ कहा गया है: "प्रप्रभु परमेश्वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्तिमान है, यह कहता है, मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ" (प्रकाशितवाक्य1:8)। उस पल में मुझे ऐसा लगा कि मेरा दिल जाग रहा था, और मुझे बहुत उत्साहित महसूस हुआ। अब तक मैंने बीस वर्षों से अधिक समय से प्रभु में विश्वास किया था, लेकिन चाहे वह मुख्यभूमि चीन में हो या विदेश में, मैंने पहले कभी किसी पादरी या एल्डर से उपदेश का ऐसा प्रचार नहीं सुना था। जहाँ तक परमेश्वर की योजना और बाइबल की भविष्यवाणियों का प्रश्न है, ये सभी रहस्य हैं, इन्हें कोई भी नहीं जानता है, फिर भी जो लोग पूर्वी बिजली में विश्वास करते हैं, वे इतनी सारी चीज़ों के बारे में बहुत स्पष्ट रूप से बोलते हैं, जैसे मानव जाति के प्रबंधन के लिए परमेश्वर की योजना, और परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक युग में हासिल किए जाने वाले कदम, सिद्धांत, विवरण और परिणाम, साथ ही परमेश्वर द्वारा व्यक्त किया गया स्वभाव, और परमेश्वर की मानवजाति से अपेक्षाएँ और उसकी इच्छा, मानो कि ये लोग अपने परिवार के क़ीमती सामानों की गणना कर रहे हों। मुझे अपने दिल में यह पुष्टि महसूस हुई कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन सत्य के आत्मा की अभिव्यक्ति है, यह वास्तव में परमेश्वर की आवाज़ है। प्रभु यीशु ने एक बार कहा था: "परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:13)। "ये बातें पूरी हो गई हैं। मैं अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त हूँ" (प्रकाशितवाक्य 21:6)। अब इन भविष्यवाणियों को अंत के दिनों में प्रकट हुए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के माध्यम से निष्पादित और पूर्ण किया गया है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु की वापसी है, और यह सब वास्तव में एक ही परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य है।
बाद में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को भी पढ़ा जहाँ यह कहा गया है: "अंतिम दिनों का मसीह जीवन लेकर आता, और सत्य का स्थायी एवं अनन्त मार्ग प्रदान करता है। इसी सत्य के मार्ग के द्वारा मनुष्य जीवन को प्राप्त करेगा, और एक मात्र इसी मार्ग से मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करेगा। यदि तुम अंतिम दिनों के मसीह के द्वारा प्रदान किए गए जीवन के मार्ग को नहीं खोजते हो, तो तुम कभी भी यीशु के अनुमोदन को प्राप्त नहीं कर पाओगे और कभी भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य नहीं बन पाओगे क्योंकि तुम इतिहास के कठपुतली और कैदी दोनों हो। ...परमेश्वर के आये बिना, क्या तुम अपने आप को परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनन्द मनाने के लिए स्वर्ग में ले जा सकते हो क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? मैं तुम्हें सुझाव देता हूं, कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो, और उनकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहे हैं, इन अंतिम दिनों में कौन मनुष्यों को बचाने के लिए कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य को नहीं प्राप्त कर सकते, और कभी भी जीवन प्राप्त नहीं कर सकते हो" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है")। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन परमेश्वर के अधिकार और महिमा से भरा हुआ है, और यह परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को प्रकट करता है। मुझे पता है कि अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य सत्य को व्यक्त करना और मनुष्य को जीवन प्रदान करना है। जब तक हम अंत के दिनों के मसीह—सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन को भी स्वीकार करते हैं, तो हम अंततः हमारे पाप के मूल कारण को हल करने में सक्षम होंगे। केवल तभी हम अनंत जीवन के मार्ग को प्राप्त करने में समर्थ होंगे। और जो लोग परमेश्वर के कार्य की गति के साथ निभाने में सक्षम नहीं हैं, जो अंत के दिनों में परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कभी भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य नहीं होंगे, और अंत में वे केवल परमेश्वर द्वारा हटाये जा सकते हैं, जिससे वे तबाह और नष्ट हो जाएँगे। परमेश्वर के न्याय के वचनों के सामने, मैंने सोचा कि किस तरह मैं पिछले कुछ वर्षों में प्रभु की वापसी के तथ्य को समझने में इतनी लापरवाह रही थी, और मैं कुछ डरे बिना नहीं रह सकी, और अब मैं इस तथ्य के साथ इस तरह अनादर का व्यवहार करने की हिम्मत न कर सकी। मैंने उन परिस्थितियों के बारे में भी सोचा जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों से मिली थी और मैंने देखा था कि वे परमेश्वर के वचनों से जीवन पाते थे: चाहे मैंने कोई भी मुद्दे उठाये हों, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का उपयोग करते हुए मुझे उत्तर देने में हमेशा बहुत धीरज रखते थे, वे तब तक नहीं रुकते थे जब तक मैं समझ नहीं लेती थी; कभी-कभी बहनें मेरी दुकान में आती थीं, और चूँकि दुकान छोटी थी और उनको बिठाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी, वे कई घंटों तक खड़ी ही रहती थीं, और वे अपने लिए खुद ही खाना भी लेकर आती थीं; कभी-कभी, मेरे व्यापार पर असर न पड़े इसलिए, वे रात के समय की प्रतीक्षा करती थीं ताकि मैं अपना काम पूरा कर सकूँ और वे सच्चाई के बारे में मुझसे सहभागिता कर सकें, और हमारी सभा के ख़त्म होते और उनके घर लौट पाने तक आधी रात हो जाती थी। एक बार दो बहनें मेरे साथ रात में इतनी देर तक सहभागिता करती रही कि उनके घर लौटने के लिए अब कोई ट्रेन नहीं थी, और उन्होंने बाकी रात मेट्रो स्टेशन पर ही बिताई थी। मैंने इन भाइयों और बहनों को बहुत कठिनाइयों का सामना करते और बहुत सहानुभूति और धीरज रखते हुए देखा, और मैं बाइबल में जो यह कहा गया है उसके बारे में सोचे बिना न रह सकी: "उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या लोग झाड़ियों से अंगूर, या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है"(मत्ती 7:16-18)। जब से मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाइयों और बहनों के संपर्क में रहने लगी थी, मैंने देखा कि वे जिस तरह से रहते थे वह काफी प्रशंसनीय था, कि वे उन दो महान आज्ञाओं का पालन करते थे जिनका अभ्यास करने के लिए प्रभु यीशु ने मनुष्यों से कहा था: "तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड���ोसी से अपने समान प्रेम रख" (मत्ती 22:37-39)। मैं यह कहने की हिम्मत तो नहीं करुँगी कि वे पहले ही प्रभु की अपेक्षाओं तक पहुँच चुके थे, लेकिन मैंने देखा कि वे इन दो आज्ञाओं की वास्तविकता का एक भाग जी रहे थे। और जब इसकी तुलना विभिन्न पंथों और संप्रदायों के भाई-बहन किस तरह जीते थे, उससे की गई तो ये स्वर्ग और पृथ्वी के समान भिन्न थे, वो भाई-बहन ज़रा भी क्षमा और धैर्य से नहीं रहते थे, वे ईर्ष्या और कलह से भरे हुए थे, और वे एक दूसरे के साथ लड़ते तथा संघर्ष करते थे, यहाँ तक कि वे कलीसिया के भीतर ही एक दूसरे से प्रसिद्धि, लाभ और पदवी के लिए लड़ते थे, और जहाँ तक वे किस प्रकार के पेड़ के थे इसका प्रश्न है, यह उस फल को देखकर बताया जा सकता है जो उस पेड़ ने दिए थे। लेकिन जिस तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहन जीते थे, उससे मुझे अपने दिल में एक पुष्टि मिली कि, उनके रहने का ढंग नकली नहीं था, परमेश्वर के वचनों का पालन करने के बाद यह उनके जीवन की अभिव्यक्ति थी। चूँकि वे मेमने के चरणों का अनुसरण करते थे, चूँकि उनके पास पवित्र आत्मा का कार्य था, और उनके जीवन के रूप में परमेश्वर का वचन था, वे एक ऐसे सच्चे ईसाई की सदृशता को जीने में सक्षम थे जो परमेश्वर के लिए महिमा लाता है और परमेश्वर की गवाही देता है। इस समय, परमेश्वर के वचन के नेतृत्व में और इन तथ्यों के शक्तिशाली जवाबी हमलों के तहत, पूर्वी बिजली के बारे में ये अफ़वाहें धीरे-धीरे मेरे दिल में ढह पड़ीं।
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जन्मदिन विशेष : भगत सिंह सिर्फ नाम नहीं ‘विचार’ है, जिसे टी-शर्ट में नहीं दिल में रखने की ज़रूरत है !
हर साल 28 सितंबर को हम शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस के रूप में मनाते है। कई राजनेता भी सोशल मीडिया पर भगत सिंह की तस्वीर डाल कर कहते है कि भगत सिंह उनकी प्रेरणा हैं, ये बात और है कि हर महापुरुषों के जन्मदिवस पर उनकी प्रेरणा बदलती रहती है।
आम लोग भी भगत सिंह को सिर्फ टी-शर्ट या सोशल मीडिया तक ही सीमित रखते है। ये सब देखकर अच्छा लगता है कि लोग भगत सिंह को शहीद के रूप याद कर रहे है। लेकिन क्या इतना ही काफी है?
असल में भगत सिंह कौन थे? उनके विचार क्या थे? हम इन सब बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। भगत सिंह ने कहा था कि व्यक्ति को मारना आसान काम है लेकिन विचारो को मारना मुश्किल है लेकिन आज की परिस्तिथि में ये बात बिलकुल विपरीत हो गई। आज हमने भगत सिंह को एक क्रांतिकारी व्यक्ति के रूप में याद किया हैं लेकिन, आज भी हम उनके विचारो से पूरी तरह परिचित नहीं है
2019 का साल ‘लोकतंत्र की हत्या’ का साल होगा, मोदी और मीडिया ‘झूठ’ बोलकर देश को गुमराह करेंगे : रवीश कुमार
भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे। जिन्होंने 23 साल 5 महीने और 26 दिन की उम्र में देश को आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राणो का बलिदान कर दिया। भगत सिंह वामपंथी विचारधारा के क्रांतिकारी थे। आज हम उनके अनुच्छेद ” मैं नास्तिक क्यों हूँ ” का ज़िक्र करेंगे। जिसमे उन्होंने बताया है कि वह ईश्वर की सर्वशक्तिमान छवि को क्यों नहीं मानते थे। इस कारण उनके मित्रगण उन्हें अहंकारी बताते थे। लेकिन भगत सिंह के अनुच्छेद ” मैं नास्तिक क्यों हूँ ” में कही उनके बातें आज भी प्रासंगिक है।
उनके अनुच्छेद में उन्होंने कहा कि ” अगर ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं तो वह तो वह दुःख, तकलीफ ,और अत्याचार को मिटा क्यों नहीं देता। अगर वह ऐसा नहीं कर सकता हैं तो फिर उसने ऐसी दुनिया की क्यों बनाई, जहाँ भूख से तड़पे लाखो इंसान अत्याचार सहकर कितनी बेबसी देख रहे है। भगत सिंह सवाल करते है कि भगवान् ने ऐसी दुनिया क्यों बनाई, जिसमे कोई संतुष्ट नहीं है।
अगर आप ये कहते है कि ये भगवान का ही नियम हैं तो भगत सिंह सवाल करते हैं कि ” अगर भगवान भी नियमो से बंधा हैं, अगर भगवान नियमो का दास है तो भगवान सर्वशक्तिमान कैसे है ?
भगत सिंह अपने अनुच्छेद में बताते है कि अंग्रेजो ने हम पर इसलिए शासन नहीं किया कि भगवान उनके साथ था। अंग्रेजो ने हम पर इसलिए शासन किया कि उनके पास ताकत थी।
युवा ‘पकौड़े’ बेचकर रोज़ 200 रुपये कमाएं और चौकीदार साहेब के ‘परम मित्र’ रोज़ 300 करोड़ रुपये अपनी तिजोरी में डालें : कन्हैया
भगत सिंह ने धार्मिक अंधविश्वास की कड़ी आलोचना में कहा कि दुनिया के लोग क्या क्या नहीं करते लेकिन हमारे में लोग पवित्र जीव के नाम पर अपने ही लोगो का सिर फोड़ रहे है। भगत सिंह ने ये सब बातें 1928 में कही थी लेंकिन आज तक ये बातें प्रासंगिक है। आज भी भारत के लोग गाय माता के नाम पर अपने ही लोगो की बेरहमी से हत्या कर देते है।
क्या भगत सिंह ने ऐसी ही आज़ादी के लिए अपने प्राणो का बलिदान दिया था। जिसमे नेता हिन्दू-मुसलमान के नाम पर देश में नफरत का माहौल बनाएंगे। जहाँ महिलाओ को छेड़छाड़ और बलात्कार जैसा घिनौना अत्याचार झेलना पड़े।
जहाँ सरकार द्वारा अपने अधिकारों की मांग करने और अन्याय के खिलाफ लड़ने पर महिलाओ को लाठियों से पीटा जाए। जहाँ पत्रकार का काम सत्ता की चाटुकारिता करना और देश में सत्ता के हित में नफरत का माहौल तैयार करना हो। जहाँ सत्ता की आलोचना करने पर पत्रकारों को मार दिया जाएं।
नहीं ये भगत सिंह ये सपनो का भारत नहीं है। ये वो आज़ादी नहीं है जिसका सपना भगत सिंह और क्रांतिकारी साथियों ने देखा था। ये तो वही बात हुई कि “ गोरे चले और भूरे आ गए ” यानी सिर्फ शासन ही बदला है पहले अंग्रेजो का था अब भारतीयों का शासन है लेकिन शासन का तरीका अभी भी शोषणकारी ही है। अभी भी किसान आत्महत्या कर रहे है, अभी भी आदिवासियों की ज़मीने छीनी जा रही है, अभी भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, अभी भी दलितों और मुसलमानो पर अत्याचार हो रहे है।
मीडिया पर नजरः मोदी की गोदी में बैठकर ‘विपक्ष’ से सवाल कर रहा है मीडिया, पात्रा से बड़े BJP प्रवक्ता बने अमीश देवगन!
भगत सिंह को टी-शर्ट पर नहीं अपने दिल में जगह देने की जरुरत है। हमें भगत सिंह के विचारो को समझकर उसे अमल में लाना चाहिए । उनके विचारो पर अमल करके ही हम उनके सपनो के भारत की रचना कर सकते है। उनके विचारो पर चलकर ही हम उन्हें के बेहतर श्रद्धांजलि दे सकते है।
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एक शांत नास्तिक संत: प्रेमचंद
एक शांत नास्तिक संत: प्रेमचंद
मुझे एक अफसोस है, वह अफसोस यह है कि मैं उन्हें पूरे अर्थों में शहीद क्यों नहीं कह पाता हूँ, मरते सभी हैं, यहां बचना किसको है! आगे-पीछे सबको जाना है, पर मौत शहीद की ही सार्थक है, क्योंकि वह जीवन की विजय को घोषित करती है। आज यही ग्लानि मन में घुट-घुटकर रह जाती है कि प्रेमचन्द शहादत से क्यों वंचित रह गये? मैं मानता हूँ कि प्रेमचंद शहीद होने योग्य थे, उन्हें शहीद ही बनना था।
और यदि नहीं बन पाए हैं वह…
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*आज का प्रसंग* *मेरा रँग दे बसन्ती चोला* जेल में भगत सिंह ने करीब २ साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। *उनके उस दौरान लिखे गये लेख व सगे सम्बन्धियों को लिखे गये पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूँजीपतियों को अपना शत्रु बताया है।* उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था मैं नास्तिक क्यों हूँ? *जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने ६४ दिनों तक भूख हडताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे।* जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - *"ठीक है अब चलो।"* फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे - *मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे*; *मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला*।। फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। *गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आये। इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गये। जब गाँव वाले पास आये तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया।* और भगत सिंह हमेशा के लिये अमर हो गये। इसके बाद लोग अंग्रेजों के साथ-साथ गान्धी को भी इनकी मौत का जिम्मेवार समझने लगे। इस कारण जब गान्धी कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झण्डों के साथ गान्धीजी का स्���ागत किया। *एकाध जग़ह पर गान्धी पर हमला भी हुआ, किन्तु सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस ने बचा लिया।* 📚संकलन :- *राजेन्द्र लालवानी* *आज का प्रश्न* प्रश्न (३व/३५१):- *भगत सिंह को हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती थी जो उन्होंने किस से सीखी थी?* प्रश्न(३व/३५०):- मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन मैं वापस अवश्य आऊंगा. *किसके शब्द हैं?* उतर:- *कैप्टन विक्रम बत्रा,परम वीर चक्र* Like page 🌎http (at Ajmer)
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