#मुख्यन्यायाधीश
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chaitanyabharatnews · 3 years ago
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जजों को मिलने वाली धमकी पर CJI ने बयां किया दर्द, कहा- पुलिस और CBI भी नहीं करते मदद
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस एनवी रमन्ना ने जजों को मिलने वाली धमकियों के बाद जांच एजेंसियों के सुस्त रवैये को लेकर तल्ख टिप्पणी की है। जस्टिस रमन्ना ने कहा है कि देश में जजों को धमकाने का नया ट्रेंड शुरू हो गया है और जजों के पास शिकायत के लिए कोई स्वतंत्रता नहीं है। उन्होंने कहा धमकियों को लेकर अगर जज पुलिस और CBI से शिकायत भी करते हैं तो वे (CBI और पुलिस) उत्तर ही नहीं देते। CJI ने कहा कि CBI न्यायपालिका की सहायता नहीं कर रही है और वे यह टिप्पणी बहुत जिम्मेदारी के साथ कर रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश ने CBI को लेकर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि, "जजों को धमकियां भरे मैसेज और कॉल आते हैं, कई शिकायतें की गई लेकिन CBI ने कुछ नहीं किया, CBI के व्यव्हार में कोई बदलाव नहीं हुआ और यह दुख के साथ कहना पड़ रहा है।" चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने सीबीआई को भी नोटिस जारी किया जिसने धनबाद में एक जज को कथित रूप से वाहन से कुचले जाने की हालिया घटना की जांच अपने हाथ में ली है। झारखंड की ओर से पेश वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि 28 जुलाई की घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें गैंगस्टर और हाई-प्रोफाइल व्यक्ति शामिल हैं और न्यायाधीशों को धमकी या अपशब्दों वाले संदेश मिलने के उदाहरण हैं। पीठ ने कहा, ‘‘न्यायाधीशों को शिकायत दर्ज कराने की भी आजादी नहीं है।’’ पीठ ने कहा कि यदि ऐसी शिकायतें दर्ज की जाती हैं तो पुलिस या सीबीआई न्यायपालिका की मदद नहीं करती है। पीठ ने कहा, ‘‘हम झारखंड मामले की सुनवाई सोमवार (9 अगस्त) को करेंगे। हम सीबीआई को नोटिस जारी कर रहे हैं।’’ धनबाद की घटना के मद्देनजर, शीर्ष अदालत ने अदालतों और न्यायाधीशों की सुरक्षा के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया है। धनबाद अदालत के जिला एवं सत्र न्यायाधीश-8 उत्तम आनंद 28 जुलाई को सुबह की सैर पर निकले थे, तभी सदर थानाक्षेत्र में जिला अदालत के पास रणधीर वर्मा चौक पर एक ऑटो-रिक्शा ने उन्हें टक्कर मार दी थी जिससे उनकी मौत हो गई। Read the full article
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khabarsamay · 7 years ago
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सुप्रीम कोर्ट ने दार्जीलिंग से केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल हटाने की दी मंजूरी
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के हिंसा प्रभावित दार्जिलिंग क्षेत्र से आठ मार्च के बाद केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की शेष चार कंपनियां हटाने की केन्द्र को आज मंजूरी दे दी। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ ने एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल कि याचिका पर विचार करते हुए कहा कि केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती केंद्रीय सरकार के प्रशासनिक अधिकार में आती है| इसके बाद दार्जीलिंग क्षेत्र से शेष सीएपीएफ़ की कंपनियों को वापस लेने की अनुम��ि दी|  इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को भी ख़ारिज कर दिया, जिसमें यह कहते हुए केन्द्र को दार्जीलिंग क्षेत्र से सीएपीएफ की कंपनी को हटाने से रोक दिया था कि वहां हालात सामान्य नहीं हुए हैं|   Read the full article
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onlinekhabarapp · 5 years ago
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सिद्धबाबाको मुद्धाको पेशी स्थगित
२ माघ, विराटनगर । सिद्धबाबा भनिने कृष्णबहादुर गिरीविरुद्धको मुद्दाको सुनुवाई स्थगित भएको �� । उच्च अदालत विराटनगरमा सिद्धबाबाको मुद्दाको सुनुवाई स्थगित भएको हो ।
उच्च अदालत विराटनगरले बिहीबार जिल्ला अदालतको आदेशविरुद्ध परेको निवेदनका लागि पेशी तोकेको थियो । कायम मुकायम मुख्यन्यायाधीश प्रेमराज कार्की र न्यायाधीश हरिप्रसाद बगालेको इजलासमा परेको पेशीको सुनुवाई स्थगित भएको उच्च अदालत विराटनगरका रजिष्ट्रार जितेन्द्रबाबु थपलियाले बताए ।
मुलुकी फौजदारी कार्यविधि संहिताको दफा ७३ अनुसार जिल्लाको आदेशविरुद्ध परेको पुनरावेदन निवेदनको सुनुवाई उच्च अदालतले प्रत्येक बिहीबार गर्दै आएको छ ।
सिद्धबाबामाथि आफ्नै अनुयायीले कात्तिक पहिलो साता बलात्कार गरेको आरोप लगाउँदै  किटानी जाहेरी दिएपछि सिद्धबाबालाई मंसिर १६ गते प्रहरीले पक्राउ गरेको थियो ।
जिल्ला अदालत सुनसरीका न्यायाधीश राधाकृष्ण उप्रेतीको इजलासले उनलाई गत पुस १४ गते तीन लाख धरौटीमा छाड्न आदेश दिएको थियो ।
जिल्लाको आदेश विरुद्ध सरकारी वकिल थुनामा राख्न माग गर्दै उच्च अदालत पुगेको छ । भने सिद्धबाबा साधारण तारेख माग्दै उच्च अदालत पुगेका छन् ।
जिल्ला अदालतको आदेश बेरितको भन्दै जिल्ला न्यायाधीवक्ताको कार्यालयले पीडितको पक्षबाट दर्ता गराएको निवेदनमा १८ पुसमा उच्च अदालतका मुख्य न्यायाधीश तिलप्रसाद श्रेष्ठको इजलासले मुद्दाको कैफियत प्रविदेन झिकाउने आदेश दिएको थियो ।
सिद्धबाबाले पुस २३ गते उच्च अदालत विराटनगरमा मुलुकी फौजदारी कार्यविधि संहिताको दफा ७३ अनुसार नै साधारण तारखेमा राखेर मुद्दाको पूर्पक्ष गरिपाउँ भन्दै निवेदन दर्ता गराएका थिए ।
एउटै मुद्दाका पक्ष र विपक्षबाट अलग–अलग माग राखेर निवेदन दर्ता भएपछि मुख्य न्यायाधीश तिलप्रसाद श्रेष्ठको इजलासले एकै पटक सुनुवाईका लागि मुद्दा लगाउमा राख्न आदेश दिएको थियो ।
बिहीबार अदालतमा पेसी तोकिएपछि महिलाको पक्षमा उच्च अदालत अगाडि मौन प्रदर्शन भएको थियो ।
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bhaskarhindinews · 5 years ago
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Justice Ranjan Gogoi said that he will himself visit Srinagar if the situation in Kashmir is as dire
हाईकोर्ट नहीं जा सका याचिकाकर्ता, CJI बोले- मैं खुद जाऊंगा श्रीनगर
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हाईलाइट
जम्मू-कश्मीर जा सकते है मुख्यन्यायाधीश रंजन गोगोई
सामाजिक कार्यकर्ता की याचिका पर सुनवाई के दौरान की टिप्पणी
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट नहीं जा पा रहे हैं लोग !
जम्मू-कश्मीर से हटाई गए आर्टिकल 370 प्रावधानों से संबंधित एक याचिका की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा कि अगर (याचिकाकर्ता के अनुसार) जम्मू-कश्मीर राज्य में लोग हाई कोर्ट में अपील नहीं कर पा रहे हैं तो यह बेहद गंभीर मामला है। वास्तविक स्थिति जनाने के लिए मैं हाईकोर्ट के जज से बात करुंगा। अगर हाईकोर्ट के जवाब संदेहस्पद लगा तो मैं खुद जम्मू-कश्मीर का दौरा करुंगा।
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janatakoawaz · 4 years ago
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उच्च अदालत पोखरामा बन्दाबन्दीमा ३०० मुद्दा
उच्च अदालत पोखरामा बन्दाबन्दीमा ३०० मुद्दा
पोखरा : साउन ७ गते । बन्दाबन्दीमा उच्च अदालत पोखरामा २९९ मुद्दा परेका छन् । उच्च अदालतका कामु मुख्यन्यायाधीश किशोर सिलवालले न्यायपालिकाको चौथौ पञ्चवर्षीय योजना एवं उच्च अदालतको पोखराको आर्थिक वर्ष २०७६/७७ मा अदालतबाट सम्पादन भएका गतिविधिका बारेमा पत्रकारहरुलाई सो विषयमा जानकारी गराउनुभएको हो । उक्त मुद्दामध्ये १८८ फछ्यौट भएका छन् ।
उहाँका अनुसार सरकारवादी फौजदारी १३३, बैंकिङ कसुरका ३८, बन्दी…
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janabolicom-blog · 7 years ago
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सर्वोच्चद्वारा कार्कीको निर्णय खारेज
सर्वोच्चद्वारा कार्कीको निर्णय खारेज
काठमाडौं, जेठ २९ नागरिकता, शैक्षिक प्रमाणपत्र र सिटरोलमा भएको उमेरलाई तोकको भरमा परिवर्तन गर्दै वास्तविक जन्ममिति सच्याएर विवादमा परेको रिटमा सर्वोच्च अदालतले पूर्वप्रधानन्यायाधीश सुशीला कार्कीको निर्णय उल्टाइदिएको छ । सर्वोच्चको फैसलापछि कार्कीको निर्णयले अवकाशप्राप्त उच्च अदालत जनकपुरका मुख्यन्यायाधीश सुरेन्द्रवीर सिंह बस्न्यातको पुनर्वहाली भएको छ । विनाप्रमाण हचुवाका भरमा जन्ममिति सच्याएका…
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capitalkhabar · 7 years ago
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सर्वोच्च अदालतले शुशिला कार्कीले गरेको निर्णय खारेज गर्यो काठमाडौँ । नागरिकता, शैक्षिक प्रमाणपत्र र सिटरोलमा भएको उमेरलाई तोकको भरमा परिवर्तन गर्दै वास्तविक जन्ममिति सच्याएर विवादमा परेको रिटमा सर्वोच्च अदालतले पूर्वप्रधानन्यायाधीश सुशीला कार्कीको निर्णय उल्टाइदिएको छ। सर्वोच्चको फैसलापछि कार्कीको निर्णयले अवकाशप्राप्त उच्च अदालत जनकपुरका मुख्यन्यायाधीश सुरेन्द्रवीर सिंह बस्न्यातको पुनर्वहाली भएको छ। विनाप्रमाण हचुवाका भरमा जन्ममिति सच्याएका कारण मानवअधिकार, सामाजिक मर्यादा र सेवामा आघात पुगेको भन्दै बस्न्यातले तत्कालीन प्रधानन्यायाधीश कार्कीविरुद्ध माघमा सर्वोच्चमा रिट दिएका थिए। न्यायपरिषद् अध्यक्ष रहेकी कार्कीको एकल निर्णयमा बस्न्यातको जन्ममिति सच्याउने निर्णय भएको थियो। बस्न्यातले आफ्नो वास्तविक जन्ममिति २०११ साल असार १९ गते रहे पनि सच्याएर २०१० साल फागुन १८ गते बनाइएको दाबी सर्वोच्चमा गरेका थिए। सर्वोच्चका न्यायाधीश दीपक कार्की र शारदाप्रसाद घिमिरेको संयुक्त इजलासले बस्न्यातको जन्ममिति ०११ साल असार १९ गते कायम हुने गरी निर्णय दिएको हो। ‘बस्न्यात श्रीमान्को उमेरका विषयमा भएको निर्णय बदर भएको छ। अब उहाँ अवकाश हुने उमेर असार १९ गते कायम भएको छ’, फैसलापछि सर्वोच्चका प्रवक्ता महेन्द्रनाथ उपाध्यायले भने, ‘अब उहाँ साविक पदमा पुनर्बहाली हुनुहुनेछ।’ बस्न्यातले कार्कीको निर्णयलाई चुनौती दिँदै प्रमाणका रूपमा नागरिकता, नोकरी विवरण ९सिटरोल०, शैक्षिक योग्यताको प्रमाणपत्र, कर्मचारी सञ्चय कोषको प्रमाणपत्र, नागरिक लगानी कोषको प्रमाणपत्र, राहदानी, सवारी चालक, अनुमतिपत्र, शान्ति विद्��ागृह हाइस्कुल लैनचौरबाट प्रदान गरिएको प्रमाणपत्रलगायत प्रतिलिपि सर्वोच्चमा बुझाएका थिए। कार्कीबाट बस्न्यातको जन्ममिति ०१० साल फागुन १८ कायम गरी परिषद्को अभिलेखमा राख्ने गरी ०७३ साल पुस १ मा निर्णय भएको थियो। सर्वोच्चको निर्णयमा भनिएको छ, ‘न्यायाधीशको विवाद सिर्जना भए उमेर गणना गर्ने सन्बन्धमा न्यायपरिषद्ले निर्णय गर्नसक्ने व्यवस्था न्यायपरिषद् ऐन, २०७३ मा रहेको देखियो’, सर्वोच्चको आदेशमा उल्लेख छ, ‘ऐनको प्रावधानविपरीत न्यायपरिषद्का अध्यक्ष एवं प्रधानन्यायाधीशबाट जन्ममिति कायम गर्ने गरी भएको निर्णय एवं यो निर्णयका आधारमा राखेको अभिलेख प्रथम दृष्टिमै कानुनविपरीत देखियो।’ बस्न्यातलाई आइतबारदेखि नै कामकाज गर्ने व्यवस्था मिलाउनसमेत न्याय परिषद् सचिवालयका नाममा परमादेश जारी भएको छ। सर्वोच्चको यो निर्णयसँगै कायममुकायम प्रधानन्यायाधीश गोपाल पराजुलीलगायतको उमेरसम्बन्धमा कार्कीद्वारा भएका एकल निर्णय प्रभावित हुने स्थिति देखिएको छ। सर्वोच्चले उमेरमा अन्तरदेखिएमा न्यायपरिषद् ऐन, २०७३ को दफा ३१ को उपदफा ६ को व्यवस्थाअनुरूप स्पष्ट खुलेको प्रमाणपत्रलाई आधार मान्नुपर्ने निर्णय दिएको छ। अन्नपूर्ण पोष्ट
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chaitanyabharatnews · 5 years ago
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सुप्रीम कोर्ट के 47वें मुख्य न्यायाधीश होंगे जस्टिस बोबडे, राष्ट्रपति ने दी मंजूरी
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. जस्टिस शरद अरविंद बोबडे भारत के 47वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनके नाम पर मुहर लगा दी है और जल्द ही एक औपचारिक अधिसूचना जारी की जा सकती है। बता दें 17 नवंबर को मौजूदा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं। इसके बाद 18 नवंबर को 63 वर्षीय जस्टिस बोबडे बतौर चीफ जस्टिस शपथ लेंगे। वह 17 महीने के लिए 23 अप्रैल 2021 तक इस पद पर बने रहेंगे। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); कौन हैं जस्टिस बोबडे बता दें जस्टिस शरद अरविंद बोबडे का जन्म 24 अप्रैल, 1956 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी स�� ही बी.ए. और एल.एल.बी की डिग्री ली है। जस्टिस बोबडे ने साल 1978 में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र को ज्वाइन किया था। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में लॉ की प्रैक्टिस भी की है और साल 1998 में वह वरिष्ठ वकील बने। जस्टिस बोबडे ने साल 2000 में बॉम्बे हाइकोर्ट में बतौर एडिशनल जज का पदभार संभाला। साल 2012 में वह मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। इसके एक साल बाद ही उन्होंने अप्रैल 2013 में सुप्रीम कोर्ट में जज की कमान संभाली। बोबड़े चीफ जस्टिस के बाद सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं। इन बड़े फैसलों में शामिल रहे हैं जस्टिस बोबडे सुप्रीम कोर्ट द्वारा आधार कार्ड को लेकर लिए गए फैसले में जस्टिस बोबडे भी शामिल थे। बता दें कोर्ट ने एक आदेश देते हुए कहा था कि, आधार कार्ड के बिना कोई भी भारतीय मूल सुविधाओं से वंचित नहीं रह सकता है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ जब यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था, तो उस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों को सौंपी थी। इन तीन जजों में जस्टिस बोबडे, एन वी रमन और इंदिरा बनर्जी शामिल थे। साल 2016 नवंबर में तीन बच्चों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में पटा��ों की बिक्री पर रोक लगाई थी। कोर्ट के इस फैसले में भी जस्टिस बोबडे शामिल थे। उनके अलावा इस पीठ में तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस एके सीकरी भी शामिल थे। पिछले कई दिनों से रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई पांच जजों की पीठ कर रही है। इन पांच जजों में चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस नजीर शामिल हैं। इस मामले का फैसला आना अभी बाकि है। यह भी पढ़े... सुप्रीम कोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं जस्टिस बोबडे, इन बड़े फैसले में हो चुके हैं शामिल यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे जस्टिस गोगोई को सुप्रीम कोर्ट ने दी क्लीन चिट 12 पक्षदार, 14 अपील यहां जानें अयोध्या विवाद से जुड़ी अहम जानकारी Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years ago
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सुप्रीम कोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं जस्टिस बोबडे, इन बड़े फैसले में हो चुके हैं शामिल
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. 17 नवंबर को मौजूदा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं, ऐसे में उन्होंने केंद्र सरकार को अगले चीफ जस्टिस का नाम सुझाया है। सुप्रीम कोर्ट की परंपरा के मुताबिक, गोगोई ने अपने रिटायरमेंट से एक महीने पहले कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर अगले चीफ जस्टिस के लिए जस्टिस शरद अरविंद बोबडे (63 साल) के नाम की सिफारिश की है। बता दें जस्टिस बोबडे सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं और वे 23 अप्रैल 2021 को रिटायर होंगे। जस्टिस बोबडे इन दिनों रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई कर रही पीठ में शामिल हैं। साथ ही वह देश के और भी कई बड़े फैसलों में शामिल रहे हैं। आइए जानते हैं जस्टिस बोबडे से जुड़ी कुछ बातें- (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); जस्टिस शरद अरविंद बोबडे का जन्म 24 अप्रैल, 1956 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी से ही बी.ए. और एल.एल.बी की डिग्री ली है। जस्टिस बोबडे ने साल 1978 में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र को ज्वाइन किया था। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में लॉ की प्रैक्टिस भी की है और साल 1998 में वह वरिष्ठ वकील बने। जस्टिस बोबडे ने साल 2000 में बॉम्बे हाइकोर्ट में बतौर एडिशनल जज का पदभार संभाला। साल 2012 में वह मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। इसके एक साल बाद ही उन्होंने अप्रैल 2013 में सुप्रीम कोर्ट में जज की कमान संभाली। अब वे 18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के 47 वें चीफ जस्टिस पद की शपथ ले सकते हैं। इन बड़े फैसलों में शामिल रहे हैं जस्टिस बोबडे सुप्रीम कोर्ट द्वारा आधार कार्ड को लेकर लिए गए फैसले में जस्टिस बोबडे भी शामिल थे। बता दें कोर्ट ने एक आदेश देते हुए कहा था कि, आधार कार्ड के बिना कोई भी भारतीय मूल सुविधाओं से वंचित नहीं रह सकता है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ जब यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था, तो उस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों को सौंपी थी। इन तीन जजों में जस्टिस बोबडे, एन वी रमन और इंदिरा बनर्जी शामिल थे। साल 2016 नवंबर में तीन बच्चों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई थी। कोर्ट के इस फैसले में भी जस्टिस बोबडे शामिल थे। उनके अलावा इस पीठ में तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस एके सीकरी भी शामिल थे। पिछले कई दिनों से रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई पांच जजों की पीठ कर रही है। इन पांच जजों में चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस नजीर शामिल हैं। इस मामले का फैसला आना अभी बाकि है। ये भी पढ़े... रामजन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में पूरी हुई सुनवाई, 17 नवंबर से पहले आ सकता है बड़ा फैसला गलती इंसानों से होती है, कोई जज यह दावा नहीं कर सकता कि उसने कभी गलत फैसला नहीं सुनाया : सुप्रीम कोर्ट शादी में अनिश्चितता के बावजूद शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं : सुप्रीम कोर्ट Read the full article
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onlinekhabarapp · 5 years ago
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सिद्धबाबा प्रकरण : उच्च अदालतले माग्यो कैफियत प्रतिवेदन
१८ पुस, विराटनगर । महिला अनुयायीमाथि बलात्कार गरेको आरोप लागेका सिद्धबाबा भनिने कृष्णबहादुर गिरीलाई जिल्ला अदालत सुनसरीले धरौटीमा छाड्ने आदेश दिएको चारदिनपछि उच्च अदालत विराटनगरले कैफियत प्रतिवेदन झिकाउने आदेश दिएको छ ।
शुक्रबार उच्च अदालत विराटनगरका मुख्य न्यायधिस तिलप्रसाद श्रेष्ठको इजलासले कैफियत प्रतिवेदन भिकाउने आदेश दिएको हो ।
गत मंसिर १६ गते पक्राउ परेका गिरीलाई जिल्ला अदालत सुनसरीले सोमबार तीन लाख धरौटीमा मुद्दाको पूर्पक्ष गर्ने गरी छाड्ने आदेश दिएको थियो । जिल्लाको आदेशको तीन दिनपछि सरकारी वकिलको कार्यालय सुनसरीले बिहीवार उच्च अदालत विराटनगरमा निवेदन दर्ता गराएको थियो ।
शुक्रबार मुख्यन्यायाधीश श्रेष्ठको इजलासले कैफियत प्रतिवेदन झिकाउने आदेश गरेको उच्च अदालत विराटनगरका रजिष्टार जितेन्द्रबाबु थपलियाले जानकारी दिए ।
गत कात्तिक ४ गते राति महिला अनुयायीलाई बलात्कार गरेको आरोपमा गिरी मंसिर १६ गते पक्राउ परेका थिए । प्रहरीको अनुसन्धान अवधी विराट नर्सिङहोमको शैय्याबाटै कटाएका गिरीलाई जिल्ला अदालत सुनसरीका न्यायधिस राधाकृष्ण उप्रेतीको इजलासले तीन लाख धरौटीमा छाड्ने आदेश दिएको थियो ।
बलात्कार प्रकरणमा पीडित बाहिर आउनुलाई पनि प्रमाणको रुपमा मानिन्छ । सरकारी वकिलको कार्यालयले सिद्धबाबाले टेलिफोन गरी मुद्दा फिर्ता लिन दिएको दबाब, ५ कात्तिकमा महिलालाई हप्पाएको र घटना अघि दीक्षा दिने भन्दै महिलालाई म्यासेज गरी बोलाएकाले प्रमाण हुँदाहुँदै धरौटीमा छाड्ने विवादास्पद आदेश भएपछि जिल्लाको आदेश बदर गरी थुनामै राखेर अनुसन्धानको माग गर्दै बिहीबार उच्च अदालतमा निवेदन दायर गरेको थियो ।
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onlinekhabarapp · 5 years ago
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आलम संलग्न अर्को अपराध : जिविस सदस्यलाई झुन्ड्याएर मार्ने उद्योग
५ कात्तिक, काठमाडौं । बम विस्फोटका घाइतेहरूलाई जीउँदै इँटाभट्टामा जलाएर मारेको आरोपमा पक्राउ परेका पूर्वमन्त्री तथा सांसद मोहम्मद अफताब आलम दुईदशक पहिले पनि अपहरण र ज्यान मार्ने उद्योगमा संलग्न भएका थिए ।
बहालवाला मन्त्री भएका बेलामा जिल्ला विकास समिति (जिविस) रौतहटका सदस्य जयप्रकाश कौसललाई अपहरण र हत्याको प्रयास गरेको पुष्टि भएपछि उनी पदबाट बरखास्त भएका थिए ।
रौतहट, इलाका नम्बर-८ का जिविस सदस्य कौसल ०५६ चैत २७ गते जिल्ला प्रशासन कार्यालय अगाडिबाट दिन दहाडै अपहरणमा परेका थिए । १५/२० जनाको समूहमा आएका हतियारधारीले अपहरण गरेर उनलाई आलमका काकाको राजपुरस्थित घरमा लगेर बन्धक बनाएका थिए ।
‘त्यो घरमा मलाई झुण्ड्याएर बेहोस् हुने गरी कुटे’ कौसलले अनलाइनखबरसँग भने, ‘प्रहरीले राति राजापुर गाउँ पुरै घेरा हालेर मलाई अपहरण मुक्त बनाए र मेरो ज्यान जोगियो ।’
आफ्नो पार्टीबाट जिविस सदस्य बनेका कौसल अपहरणमा परेपछि तत्कालीन नेकपा (एमाले)ले संसदमा हंगामा मच्चाएको थियो । यो विषयमा संसदमा कुर्सी हानाहान समेत भएको थियो । एमालेका तत्कालीन महासचिव माधवकुमार नेपालले संसदमा आलमलाई कारवाही नभए आफू रौतहट जानै नसक्ने बताएका थिए ।
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यो पनि पढ्नुहोस रोक्साना खातुनलाई आलमका मान्छेले भनेका थिए- तिम्रो छोरा मरिसक्यो
प्रतिपक्षी दलको चर्को विरोधपछि तत्कालीन प्रधानमन्त्री गिरिजाप्रसाद कोइरालाको निर्देशनमा प्रहरीले कौसलको उद्धार गरेको थियो ।
जिल्लामा आलमको आतंक यस���तो थियो कि कौसललाई मुक्त गर्नुअघि प्रधानमन्त्रीले सबै नाका बन्द गर्न निर्देशन दिएका थिए ।
अपहरण र ज्यान मार्ने उद्योग गरेको पुष्टि
घटनाको चौतर्फी विरोध भएपछि सरकारले तीन सदस्यीय न्यायिक समिति गठन गर्‍यो । पुनरावेदन अदालत जनकपुरका मुख्यन्यायाधीश गोविन्दप्रसाद पराजुलीको संयोजकत्वमा गठित समितिमा शेरबहादुर केसी र अग्निप्रसाद खरेल सदस्य थिए ।
घटनाको मिहीन अध्ययन गर्दा आलम अपहरण र ज्यान मार्ने उद्योगमा संलग्न रहेको समितिले निचोड निकाल्यो । समितिका सदस्य केसी आफूहरूले सिफारिससहितको प्रतिवेदन सरकारलाई बुझाएको सम्झन्छन् ।
आलम त्यतिबेला गिरिजाप्रसाद कोइराला नेतृत्वको सरकारमा वन तथा भूरसंरक्षण राज्यमन्त्री थिए । अपराधिक चरित्रको व्यक्ति सार्वजनिक पदमा रहिरहनु हँदैन भनेर कोइरालाले आलमलाई पदबाट बर्खास्त गरे ।
पदबाट हटेपछि सात खून माफ ?
न्यायिक समितिले दोषी ठहर गरेपछि तत्कालीन प्रधानमन्त्री गिरिजाले ०५७ भदौमा आलमलाई पदबाट हटाए । तर, अपहरण तथा ज्यान मार्ने उद्योगमा भने उनलाई कुनै कारवाही भएन ।
संगीन अपराधमा मुछिए पनि कारवाही नभएपछि आलम थप हौसिए । त्यसैको निरन्तरता थियो, २०६४ सालको ईंटाभट्टा सामूहिक हत्या प्रकरण ।
‘राजनीतिक संरक्षणमा मौलाइरहेको दण्डहीनताले धेरै नेतालाई अपराध कर्म गर्न हौस्याइरहेको छ’, न्यायिक समितिका एक सदस्य भन्छन्, ‘त्यतिबेलै आलमलाई कानूनी कारवाही गरिएको भए उनी सामूहिक हत्या प्रकरणमा नजोडिन सक्थे ।’
जयप्रकाश कौसल
‘मार्नकै लागि अपहरण गरिएको रहेछ’
अपहरणमा परेर मृत्युको मुखबाट जोगिएर फर्केका जयप्रकाश कौसलले कालो विगत यसरी स्मरण गरे-
२०५४ को स्थानीय निकाय निर्वाचनपछि म जिल्ला विकास समितिको सदस्यमा निर्वाचित भएँ । २०५६ असार १६ गते कृष्णप्रसाद भट्टराई नेतृत्वको सरकारमा मोहम्मद अफताब आलम स्थानीय विकास राज्य मन्त्री थिए ।
त्यतिबेला विकास बजेट अनियमितता भएको थुप्रै उजुरी आएको थियो । जिल्लाका लागि विनियोजित बजेट शक्ति र पहुँचका आधारमा आँखै अगाडि दुरुपयोग भइरहेको गुनासो आउन थालेपछि जिविसले मेरो संयोजकत्वमा छानबिन समिति बनायो ।
तीन सदस्यीय समितिमा स्थानीय विकास अधिकारी र एकजना इञ्जिनियर सदस्य थिए । छानविन गर्दा विकास बजेटमा भ्रष्टाचार भएको प्रमाणित भयो । त्यसपछि अनियमित बजेट निकासा रोक्का भयो ।
त्यसबेला भ्रष्टाचारी भनेर माओवादीले आलमको घरमा बम पनि पड्काएको थियो ।
२०५६ चैत ८ गते गिरिजाप्रसाद कोइरालाको नेतृत्वमा सरकार बन्यो । कोइरालाले आलमलाई वन तथा भूसंरक्षण राज्यमन्त्री बनाए । वनमन्त्री नभएकाले राज्यमन्त्री मात्रै भए पनि मन्त्रालयमा आलम नै सर्वेसर्वा थिए ।
२०५६ चैत २७ गते मध्यान्ह १२-१ बजेतिर म जिल्ला विकास समितिका सभापति राजेन्द्र रावत कुर्मीको कार्यकक्षमा थिएँ । यो स्थान जिल्ला प्रशासन कार्यालय (सीडीओ) नजिकै पर्छ ।
त्यहाँ १५/२० जनाको बन्दुकधारी समूह वन मन्त्रालयको गाडीमा आएर मलाई अपहरण गरे । सबैको हातमा बन्दुक देखेर होला, मलाई कसैले बचाउन सकेनन् । प्रमुख जिल्ला अधिकारीका बडी गार्ड त पर्खाल नाघेर भागे ।
उनीहरुले मलाई एसपी कार्यालय अगाडिबाटै लिएर गएका थिए । फटुवा पुलमा पुगेपछि मार्न भनेर गाडीबाट निकाले । आँखामा पट्टी बाँधेर उखु बारीमा पुर्‍याइयो ।
आलमकै समूहका एकजनाले यहाँ मार्‍यो भने हिन्दु-मुस्लिम दंगा हुन्छ, गोप्य स्थानमा लगेर मारौं भने । त्यसपछि त्यो पुलमा गोली चलाइएन
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यो पनि पढ्नुहोस आफतावले पोलिग्राफ टेस्ट गर्न मानेनन्
त्यहाँबाट राजापुरमा रहेको आलमकै काकाको घरमा लगियो । त्यहाँ अग्लो सिलिङमा दुबै हातमा बाँधेर झुण्ड्याइयो । हाम्रो बजेट रोक्ने तँ को होस् भन्दै मरणासन्न हुने गरी कुटे । कुटाइले म बेहोस भएँछु ।
राति आठ बजेतिर एसपी मदन खड्का नेतृत्वको प्रहरीले गाउँ छापा मारेर मेरो उद्धार गरे छ । बेहोस अवस्थामै तीन/चार वटा नक्कली तमसुकमा सही गराए छन् । अपहरण गरेर जवरजस्ती कागज बनाएको विरुद्धमा मैले उजुरी पनि दर्ता गरेको थिएँ ।
मलाई अपहरण गरेर मार्न लागेको विषयमा न्यायिक समिति पनि गठन भयो । समितिले आलमकै संलग्नतामा मलाई मार्न लागेको पनि पुष्टि गर्‍यो । त्यसैका आधारमा आलम राज्यमन्त्री पदबाट मुक्त पनि भए । तर, उनलाई अपराधिक कार्यमा कुनै कानुनी कारवाही भएन ।
आलम मात्र होइन, त्यतिबेला मलाई अपहरण गर्न आएका रामकिशोर यादव प्रदेशसभा सदस्य तथा शेख वकील परोहा र शेख सकिल राजपुरका मेयर छन् ।
(कुराकानीमा आधारित)
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यो पनि पढ्नुहोस हत्या आरोपी आलमलाई रिहा गर्न माग गर्दै कांग्रेसको प्रदर्शन
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onlinekhabarapp · 5 years ago
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जिविस सदस्यलाई झुन्ड्याएर मार्ने उद्योग
५ कात्तिक, काठमाडौं । बम विस्फोटका घाइतेहरूलाई जीउँदै इँटाभट्टामा जलाएर मारेको आरोपमा पक्राउ परेका पूर्वमन्त्री तथा सांसद मोहम्मद अफताब आलम दुईदशक पहिले पनि अपहरण र ज्यान मार्ने उद्योगमा संलग्न भएका थिए ।
बहालवाला मन्त्री भएका बेलामा जिल्ला विकास समिति (जिविस) रौतहटका सदस्य जयप्रकाश कौसललाई अपहरण र हत्याको प्रयास गरेको पुष्टि भएपछि उनी पदबाट बरखास्त भएका थिए ।
रौतहट, इलाका नम्बर-८ का जिविस सदस्य कौसल ०५६ चैत २७ गते जिल्ला प्रशासन कार्यालय अगाडिबाट दिन दहाडै अपहरणमा परेका थिए । १५/२० जनाको समूहमा आएका हतियारधारीले अपहरण गरेर उनलाई आलमका काकाको राजपुरस्थित घरमा लगेर बन्धक बनाएका थिए ।
‘त्यो घरमा मलाई झुण्ड्याएर बेहोस् हुने गरी कुटे’ कौसलले अनलाइनखबरसँग भने, ‘प्रहरीले राति राजापुर गाउँ पुरै घेरा हालेर मलाई अपहरण मुक्त बनाए र मेरो ज्यान जोगियो ।’
आफ्नो पार्टीबाट जिविस सदस्य बनेका कौसल अपहरणमा परेपछि तत्कालीन नेकपा (एमाले)ले संसदमा हंगामा मच्चाएको थियो । यो विषयमा संसदमा कुर्सी हानाहान समेत भएको थियो । एमालेका तत्कालीन महासचिव माधवकुमार नेपालले संसदमा आलमलाई कारवाही नभए आफू रौतहट जानै नसक्ने बताएका थिए ।
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यो पनि पढ्नुहोस रोक्साना खातुनलाई आलमका मान्छेले भनेका थिए- तिम्रो छोरा मरिसक्यो
प्रतिपक्षी दलको चर्को विरोधपछि तत्कालीन प्रधानमन्त्री गिरिजाप्रसाद कोइरालाको निर्देशनमा प्रहरीले कौसलको उद्धार गरेको थियो ।
जिल्लामा आलमको आतंक यस्तो थियो कि कौसललाई मुक्त गर्नुअघि प्रधानमन्त्रीले सबै नाका बन्द गर्न निर्देशन दिएका थिए ।
अपहरण र ज्यान मार्ने उद्योग गरेको पुष्टि
घटनाको चौतर्फी विरोध भएपछि सरकारले तीन सदस्यीय न्यायिक समिति गठन गर्‍यो । पुनरावेदन अदालत जनकपुरका मुख्यन्यायाधीश गोविन्दप्रसाद पराजुलीको संयोजकत्वमा गठित समितिमा शेरबहादुर केसी र अग्निप्रसाद खरेल सदस्य थिए ।
घटनाको मिहीन अध्ययन गर्दा आलम अपहरण र ज्यान मार्ने उद्योगमा संलग्न रहेको समितिले निचोड निकाल्यो । समितिका सदस्य केसी आफूहरूले सिफारिससहितको प्रतिवेदन सरकारलाई बुझाएको सम्झन्छन् ।
आलम त्यतिबेला गिरिजाप्रसाद कोइराला नेतृत्वको सरकारमा वन तथा भूरसंरक्षण राज्यमन्त्री थिए । अपराधिक चरित्रको व्यक्ति सार्वजनिक पदमा रहिरहनु हँदैन भनेर कोइरालाले आलमलाई पदबाट बर्खास्त गरे ।
पदबाट हटेपछि सात खून माफ ?
न्यायिक समितिले दोषी ठहर गरेपछि तत्कालीन प्रधानमन्त्री गिरिजाले ०५७ भदौमा आलमलाई पदबाट हटाए । तर, अपहरण तथा ज्यान मार्ने उद्योगमा भने उनलाई कुनै कारवाही भएन ।
संगीन अपराधमा मुछिए पनि कारवाही नभएपछि आलम थप हौसिए । त्यसैको निरन्तरता थियो, २०६४ सालको ईंटाभट्टा सामूहिक हत्या प्रकरण ।
‘राजनीतिक संरक्षणमा मौलाइरहेको दण्डहीनताले धेरै नेतालाई अपराध कर्म गर्न हौस्याइरहेको छ’, न्यायिक समितिका एक सदस्य भन्छन्, ‘त्यतिबेलै आलमलाई कानूनी कारवाही गरिएको भए उनी सामूहिक हत्या प्रकरणमा नजोडिन सक्थे ।’
जयप्रकाश कौसल
‘मार्नकै लागि अपहरण गरिएको रहेछ’
अपहरणमा परेर मृत्युको मुखबाट जोगिएर फर्केका जयप्रकाश कौसलले कालो विगत यसरी स्मरण गरे-
२०५४ को स्थानीय निकाय निर्वाचनपछि म जिल्ला विकास समितिको सदस्यमा निर्वाचित भएँ । २०५६ असार १६ गते कृष्णप्रसाद भट्टराई नेतृत्वको सरकारमा मोहम्मद अफताब आलम स्थानीय विकास राज्य मन्त्री थिए ।
त्यतिबेला विकास बजेट अनियमितता भएको थुप्रै उजुरी आएको थियो । जिल्लाका लागि विनियोजित बजेट शक्ति र पहुँचका आधारमा आँखै अगाडि दुरुपयोग भइरहेको गुनासो आउन थालेपछि जिविसले मेरो संयोजकत्वमा छानबिन समिति बनायो ।
तीन सदस्यीय समितिमा स्थानीय विकास अधिकारी र एकजना इञ्जिनियर सदस्य थिए । छानविन गर्दा विकास बजेटमा भ्रष्टाचार भएको प्रमाणित भयो । त्यसपछि अनियमित बजेट निकासा रोक्का भयो ।
त्यसबेला भ्रष्टाचारी भनेर माओवादीले आलमको घरमा बम पनि पड्काएको थियो ।
२०५६ चैत ८ गते गिरिजाप्रसाद कोइरालाको नेतृत्वमा सरकार बन्यो । कोइरालाले आलमलाई वन तथा भूसंरक्षण राज्यमन्त्री बनाए । वनमन्त्री मन्त्री नभएकाले राज्यमन्त्री मात्रै भए पनि मन्त्रालयमा आलम नै सर्वेसर्वा थिए ।
२०५६ चैत २७ गते मध्यान्ह १२-१ बजेतिर म जिल्ला विकास समितिका सभापति राजेन्द्र रावत कुर्मीको कार्यकक्षमा थिएँ । यो स्थान जिल्ला प्रशासन कार्यालय (सीडीओ) नजिकै पर्छ ।
त्यहाँ १५/२० जनाको बन्दुकधारी समूह वन मन्त्रालयको गाडीमा आएर मलाई अपहरण गरे । सबैको हातमा बन्दुक देखेर होला, मलाई कसैले बचाउन सकेनन् । प्रमुख जिल्ला अधिकारीका बडी गार्ड त पर्खाल नाघेर भागे ।
उनीहरुले मलाई एसपी कार्यालय अगाडिबाटै लिएर गएका थिए । फटुवा पुलमा पुगेपछि मार्न भनेर गाडीबाट निकाले । आँखामा पट्टी बाँधेर उखु बारीमा पुर्‍याइयो ।
आलमकै समूहका एकजनाले यहाँ मार्‍यो भने हिन्दु-मुस्लिम दंगा हुन्छ, गोप्य स्थानमा लगेर मारौं भने । त्यसपछि त्यो पुलमा गोली चलाइएन
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यो पनि पढ्नुहोस आफतावले पोलिग्राफ टेस्ट गर्न मानेनन्
त्यहाँबाट राजापुरमा रहेको आलमकै काकाको घरमा लगियो । त्यहाँ अग्लो सिलिङमा दुबै हातमा बाँधेर झुण्ड्याइयो । हाम्रो बजेट रोक्ने तँ को होस् भन्दै मरणासन्न हुने गरी कुटे । कुटाइले म बेहोस भएँछु ।
राति आठ बजेतिर एसपी मदन खड्का नेतृत्वको प्रहरीले गाउँ छापा मारेर मेरो उद्धार गरे छ । बेहोस अवस्थामै तीन/चार वटा नक्कली तमसुकमा सही गराए छन् । अपहरण गरेर जवरजस्ती कागज बनाएको विरुद्धमा मैले उजुरी पनि दर्ता गरेको थिएँ ।
मलाई अपहरण गरेर मार्न लागेको विषयमा न्यायिक समिति पनि गठन भयो । समितिले आलमकै संलग्नतामा मलाई मार्न लागेको पनि पुष्टि गर्‍यो । त्यसैका आधारमा आलम राज्यमन्त्री पदबाट मुक्त पनि भए । तर, उनलाई अपराधिक कार्यमा कुनै कानुनी कारवाही भएन ।
आलम मात्र होइन, त्यतिबेला मलाई अपहरण गर्न आएका रामकिशोर यादव प्रदेशसभा सदस्य तथा शेख वकील परोहा र शेख सकिल राजपुरका मेयर छन् ।
(कुराकानीमा आधारित)
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यो पनि पढ्नुहोस हत्या आरोपी आलमलाई रिहा गर्न माग गर्दै कांग्रेसको प्रदर्शन
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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भन्सार एजेण्ट र बैंक कर्मचारीलाई कैदको फैसला
२२ वैशाख, विराटनगर । भन्सारको १० करोड राजस्व अपलचन गरेको आरोपमा उच्च अदालतले भन्सार एजेन्ट र बैंक कर्मचारीलाई कैदको फैसला सुनाएको छ ।
विराटनगर भन्सार कार्यालयमा रहेको वाणिज्य बैकको काउण्टर मार्फत दश करोड भन्सार राजस्व अपचलनको आरोप लागेका भन्सार एजेन्ट सुरेश बोहोरा र बैैंकका कर्मचारीलाई उच्च अदालत विराटनगरले कैद र जरिवनाको फैसला सुनाएको हो ।
मिलेमतोमा बैंकमा राजस्व दाखिला नगरी अपचलन गरेको रहस्य सार्वजनिक भएपछि बैकिङ कसुर मुद्दामा एजेण्ट सुरेश बोहोरा, बैंकका कर्मचारी तोर्णराज राउत र विष्णुप्रसाद न्यौपानेलाई उच्च अदालत विराटनगरले वैशाख १७ गते कैद र जरीवाना गर्ने फैसला गरेको हो । भन्सार एजेण्ट सुरेशका भाइ ललितले भने सफाइ पाएका छन् ।
अदालतका कायममुकायम मुख्यन्यायाधीश शिवराम अधिकारी र न्यायाधीश महेश शर्मा पौडेलको संयुक्त्त इजलासले एजेन्ट बोहोरालाई बैकिङ कसुर ऐन २०६४ को दफा ३ (ग) र दफा १५ को (१) बमोजिम डेढ महिना कैद र ४ करोेड ८० लाख ७७ हजार ५ सय रुपैयाँ जरिवना फैसला गरेको छ ।
त्यस्तै बैंकका कर्मचारी तोर्णराज राउत र विष्णुप्रसाद न्यौपानेलाई सोही ऐन अनुसार २२ दिन कैद र जनही २ करोड ४० लाख ३८ हजार ७५० रुपैयाँ जरीवना गर्ने फैसला गरेको छ ।
२०७४ फागुन १ गते घटना सार्बजनिक भएपछि एजेण्टद्वय फरार थिए । ०७५ साउन ६ अदालतनमा सुटुक्क हाजिर भएका उनीहरुलाई न्यायाधीश थीरबहादुर कार्की र बालेन्द्र रुपाखेतीको संयुक्त्त इजलासले सुरेशलाई ८० लाख र ललितलाई २५ लाख धरौटीमा छाडेको थियो । धरौटीमा छाडेको ८ महिनापछि अदालतले फैसला सुनाएको हो ।
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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मुख्यन्यायाधीशको आदेश–सुन मुद्दा एउटै ‘लगाउ’मा राख्नू
१० माघ, विराटनगर । उच्च अदालत विराटनगरले मोरङ उर्लाबारीका सनम शाक्य हत्या र सुन तस्करी प्रकरणसँग जोडिएको मुद्दामा एउटै लगाउमा राख्ने आदेश दिएको छ ।
६ जना न्यायाधीशको सरुवापछि बिहीबार बसेको पहिलो इजलासले सुन मुद्दालाई एउटै लगाउमा राख्ने आदेश दिएको हो ।
उच्च अदालत विराटनगरका कायममुकायम मुख्यन्यायाधीश शिवराज अधिकारी र हरिप्रसाद बगालेको इजलासले सुन मुद्दालाई नफुटाउने गरी एउटै लगाउमा राख्ने आदेश दिएको हो ।
जिल्ला अदालत मोरङको आदेशपछि थुनामा रहेकाहरुले गरेको पुनरावेदन निवेदन दिएकाहरु मध्ये १२ वटा उजुरीको आदेश आउन बाँकी छ ।
चर्चित मुद्दामा विवादित आदेश गरेको गुनासो आएपछि उच्च अदालत विराटनगरमा मुख्यन्यायाधीश कुलरत्न भुर्तेलसहित न्यायाधीश नागेन्द्रलाभ कर्ण, सारङ्गा सुवेदी, थीरबहादुर कार्की, उमेशकुमार सिंह र उमेशराज पौडेलको सरुवा भएको थियो ।
सुन मुद्दामा उच्च पदस्थलाई छाड्ने विवादित आदेश दिने पाँचजना न्यायाधीश र बेञ्च तोक्ने मुख्यन्यायाधीशलाई न्यायपरिषदले छानबिनका लागि तानेको थियो ।
सुन तस्करी प्रकरणमा जिल्लाको आदेशपछि थुनामा रहेका भुजुङ गुरुङ, दोराम खत्री, वीरेन्द्रमान श्रेष्ठ, राजु महर्जन, कपिलराज पुरी, फाल्दुङ फुल्टुङ भनिने लक्षुबहादुर गुरुङ, अबु सलमान खान भन्ने सैयाद अकवर, डब्बु भनिने इस्तियाज उद्दिन, बेनु श्रेष्ठ, डाक्टर भेभिट भनिने छिरिङ वाग्ले घले, रेवतकुमार आचार्य, विनोद अधिकारी, मोतिराम श्रेष्ठ र कान्तिपुर होलिडेज र श्री एवल ��ेपाल ट्राभल्स एण्ड टुर प्रालिको मुद्दामा आदेश आउन बाकी छ ।
मोतीराम श्रेष्ठ, विनोद अधिकारी र रेवत कुमार आचार्यविरुद्ध नेपाल सरकारले जिल्ला अदालत मोरङको आदेशविरुद्ध उच्चमा निवेदन दायर गरेको हो । अधिकारी, श्रेष्ठ र आचार्यलाई जिल्ला अदालत मोरङले धरौटीमा छाड्ने आदेश दिएको थियो ।
गत वर्ष फागुन १८ गते मोरङ उर्लाबारीका सनम शाक्यको हत्या भएको थियो । शाक्य हत्या अनुसन्धानका क्रममा खुलेको सुन तस्करी प्रकरणको छानबिन गर्नगृह मन्त्रालयले गठन गरेको छानबिन समितिले मोरङ प्रहरी मार्फत गत बैसाख १९ गते जिल्ला अदालत मोरङमा ‘आपराधिक समूह स्थापना र संचालन गरी सुन चोरी पैठारी र चोरी निकासीको अवैध कारोवार, अपहरण तथा शरीर बन्धक र कर्तब्य ज्यान’ मुद्धा दायर गरेको थियो ।
उक्त मुद्दामा १७ अर्ब १ करोड ८० लाख ७१ हजार ४ सय ७३ रुपैया बरावरको ३७ लाख ९९ हजार ५ सय ६३ ग्राम (करिब ३८ क्वीन्टल) अबैध रुपमा सुन आयात गरिएको दाबि गरिएको छ ।
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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गोविन्द केसी कार्यरत अस्पतालको बिजोग, डाक्टर रिसाहा, कर्मचारी छुच्चा
८ माघ, काठमाडौं । राजधानी काठमाडौंबाट आज प्रकाशित दैनिक पत्रिकाहरुले घटनाप्रधान समाचारहरुसँगसँगै खोजमूलक सामग्रीलाई पनि उत्तिकै प्राथमिकता दिएका छन् । खासगरी कांग्रेसले सोमबार सदनमा पुर्याएको अवरोधलाई अधिकांश दैनिक पत्रिकाहरुले ‘कभरेज’ गरेका छन् । उच्च अदालत विराटनगरका मुख्यन्यायाधीश कुलरत्न भुर्तेल न्यायपरिषद् सचिवालयमा तानिएको विषय पनि आजका सबैजसो दैनिक पत्रिकाहरुमा छापिएको छ । साथमा टिचिङ हस्पिटलको सेवाप्रवाहको चिरफारदेखि पशुपतिको जग्गामाथि भइरहेका अतिक्रमणसम्मका खोजमूलक सामग्रीलाई पनि आजका पत्रपत्रिकाहरुले पस्केका छन् ।
अन्नपूर्णले अनशनरत डा. गोविन्द केसी कार्यरत टिचिङ अस्पतालको सेवाप्रवाहबारे एक सामग्री छापेको छ । चिकित्सा सेवा र स्वास्थ्य शिक्षासँग सम्बन्धित माग राखेर केसी अनशन बसिरहेका बेला अन्नपूर्णले भने टिचिङकै सेवा प्रवाह निकै कमजोर रहेको तथ्य–तथ्यांक प्रस्तुत गरेको छ । समाचार अनुसार, टिचिङका डाक्टर निकै रिसाहा छन् भने कर्मचारी छुच्चा । सेवा प्रवाहमा कर्मचारीले ढिलाइ गर्दा बिरामी निजीमा जान बाध्य हुने गरेको समस्या पनि अन्नपूर्णले औंल्याएको छ । फार्मेसीमा औषधि पनि पाइँदैन । कुरुवाको बारेमा अस्पताल जति बेपरबाह छ, सुरक्षामा पनि ध्यान पुग्न सकेको छैन । अन्नपूर्णका अनुसार, बिरामी तथा तिनका कुरुवाहरुको सामग्री दैनिकजसो हराउने गरे पनि अस्पतालले सुरक्षातर्फ ध्यान दिन सकेको छैन ।
पशुपतिनाथको जग्गाबारे चासो राख्दै आइरहेको अन्नपूर्णले आज पनि यसैलाई मुख्य समाचार बनाएको छ ।
अन्नपूर्ण लेख्छ– पशुपति क्षेत्र विकास कोषअन्तर्गत सञ्चालित मन्दिरको जग्गाजमिन अथाह भए पनि यसको सदुपयोग हुन सकेको छैन । काठमाडौं उपत्यकाभित्रका तीन जिल्ला, आसपासका काभ्रे, नुावकोट , लमजुङका साथै तराईमा सयौं बिघा जमिन भए पनि कोषले वार्षिक करिब ६० लाख रुपैयाँ मात्र कुतबापत बुझ्दै आएको छ ।
अन्नपूर्णका अनुसार व्यवसायीले जग्गाबाट अकुत कमाइरहे पनि पशुपतिनाथलाई भने जात्रापर्व चलाउनसमेत हम्मेहम्मे छ ।
मुख पृष्ठमा सोमबार कांग्रेसले गरेको संसद् अ��रोधको तस्वीर छापेको कान्तिपुरले स्वाइन फ्लु संक्रमण बढेको दाबी गरेको छ । समाचार अनुसार दुई महिनामा डेढ सयभन्दा बढी व्यक्तिमा प्रयोगशाला प्रमाणित स्वाइन फ्लु देखिएको छ ।
फ्रिक्विेन्सी लिलाम ���ढाबढ अघि बढाइने भएको, मुख्य न्यायाधीश तानिएकोलगायत खबरलाई पनि कान्तिपुरले पहिलो पृष्ठमा समेटेको छ ।
‘कांग्रेसद्वारा संसद् अवरुद्ध’ शीर्षक दिएर नागरिकले मुख्य समाचार बनाएको छ । त्यसैगरी, विदेशी बैंकमा पैसा राख्नेमाथि सरकारले निगरानी बढाएको अर्को खबर पनि नागरिकमा छ । व्यवसायी घरानाले स्विस बैंकमा पैसा राखेको समाचार प्रकाशित भएपछि प्रधानमन्त्री कार्यालयले सम्पत्ति शुद्धीकरण विभागलाई अनुसन्धान गर्न निर्देशन दिएको छ । प्रधानमन्त्री कार्यालयमातहत रहेको सम्पत्ति शुद्धीकरण तथा राजश्व अनुसन्धान महाशाखाले केही दिनअघि पत्राचार गरी विभागलाई अनुसन्धान गर्न निर्देशन दिएको समाचारमा उल्लेख छ ।
राजधानीको आँखा अस्वस्थकर मासुमाथि परेको छ । मुलुकभर अस्वस्थकर मासुको बिक्री बढे पनि अनुगमनको जिम्मेवारी पाएको खाद्य प्रविधि तथा गुण नियन्त्रण विभाग भने कानमा तेल हालेर बसेको राजधानीको समाचारको सार छ ।
गोरखापत्रको पहिलो पृष्ठमा स्विजरल्यान्डमा प्रधानमन्त्रीको भव्य स्वागत भएको समाचार छ । त्यस्तै हुम्ला लिमीगाउँका युवा कमाउन निस्केपछिको अवस्थालाई गोरखापत्रले एंकर बनाएको छ ।
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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एकीकृत सम्पति कर नउठाउन पोखरा महानगरलाई अदालतकाे आदेश
१७ असोज, पाेखरा । उच्च अदालत पोखराले पोखरा महानगरपालिकालाई तत्काल एकीकृत सम्पति कर नउठाउन अन्तरिक आदेश जारी गरेको छ । मुद्दाको अन्तिम किनारा नलागेसम्म तत्काललाई एकीकृत सम्पति कर उठाउन मंगलबार उच्त अदालतले आदेश जारी गरेको हो ।
एकीकृत सम्पति कर खारेजीको माग गर्दै ज्ञानबहादुर कोइरालाले रिट हालेका थिए । पोखरा महानगरपालिकाले एकीकृत सम्पति करको नाममा बढी कर लिएको भन्दै कोइरालासँगै शंकर बराल र खडानन्द आचार्यले रिट दायर गरेका थिए ।
केन्द्रको निर्णयविरुद्ध पोखरा महानगरपालिकाले एकीकृत सम्पत्ति कर उठाइरहेको भन्दै तत्काल खारेजीको माग गर्दै असोज ७ गते रिट दायर भएको हो ।
 उच्च अदालतका मुख्यन्यायाधीश कुमार चुडाल र न्यायाधीश वीरबहादुर डाँगीको संयुक्त इजलासले मंगलबार मुद्दाको किनार नलागेसम्म कर नउठाउन आदेश दियो ।
रिट दायर गर्नेका पक्षबाट सुरेन्द्र थापामगर र तिलक पराजुली  र गोविन्द पौडेलले बहस गरेका थिए । महानगरकातर्फबाट वरिष्ठ कानुन अधिकृत नारायणप्रसाद शर्माले बहस गरेका थिए । रिट दायर भएकै भोलिपल्ट कारण देखाउ आदेश जारी गरिएको थियो ।
बढी एकीकृत सम्पति कर लिएको पोखरा महानगरपालिका र मेयर मानबहादुर जीसीको समेत आलोचना भइरहेको थियो । महानगरपालिकाले गएको कार्यपालिका बैठकबाट सम्पति करमा वैशाखसम्म २० प्रतिशतसम्म छुट निर्णयसमेत गरेको थियो । यसअघि १० प्रतिशतमात्र छुट दिँदै आएको महानगरपालिकाले कर बढाएको व्यापक आलोचनापछि छुट बढाएर २० प्रतिशत पुर्याएको थियो ।
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