#माता लक्ष्मी की मूर्ति
Explore tagged Tumblr posts
Text
19.10.2024, लखनऊ | लखनऊ का प्रतिष्ठित वन-स्टॉप शॉपिंग डेस्टिनेशन, फन रिपब्लिक मॉल, अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। दीपावली के शुभ अवसर पर मॉल में 24 कैरेट गोल्ड प्लेटेड, 20 फीट ऊंची और लगभग 500 किलो वजन की भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है, जिसे एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में मान्यता मिली है। इस ऐतिहासिक क्षण में एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की टीम भी मॉल में उपस्थित रही। यह लखनऊ के लिए एक बड़ा सम्मान है कि फन रिपब्लिक मॉल ने एक बार फिर शहर को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में ला दिया है ।
भगवान गणेश और माता लक्ष्मी का भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है, जो किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में मस्त विघ्नों को दूर कर मार्ग प्रशस्त करते हैं। माता लक्ष्मी को धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है, जिनकी कृपा से सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इस दिव्य मूर्ति की स्थापना से फन रिपब्लिक मॉल ने न केवल धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल तैयार किया है, बल्कि इस भव्य मूर्ति के माध्यम से सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को भी सहेजने का कार्य किया है ।
इस खास अवसर पर उत्तर प्रदेश के माननीय उप मुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक जी, ने मूर्ति का अनावरण किया। अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, "फन रिपब्लिक मॉल का यह अद्वितीय कार्य अत्यंत सराहनीय है ��र लखनऊ के लिए गौरव का विषयहै। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की यह भव्य मूर्ति न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करती है। मैं आशा करता हूँ कि फन रिपब्लिक मॉल भविष्य में भी इसी प्रकार के सराहनीय कार्य करता रहेगा।" इस विशेष अवसर पर श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, प्रबंध न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, भी उपस्थित रहे ।
फन रिपब्लिक मॉल की मार्केटिंग मैनेजर, श्रीमती प्रीति पांडे ने कहा, "यह हमारे लिए अत्यंत गौरवपूर्ण क्षण है। हमारी टीम की कड़ी मेहनत और समर्पण ने आज इस ऐतिहासिक मूर्ति के अनावरण को संभव बनाया है।" उन्होंने यह भी बताया कि मॉल में 'फन उत्सव' की शुरुआत 12 अक्टूबर से हो चुकी है, जो 31 अक्टूबर तक चलेगा। इस उत्सव में 12 से 26 अक्टूबर तक 'शॉप एंड विन' प्रतियोगिता के तहत, तीन हजार या उससे अधिक की खरीदारी करने वाले पांच टॉप शॉपर्स को प्रतिदिन निश्चित उपहार दिया जाएगा। 27 से 31 अक्टूबर के बीच, एक मेगा विजेता को प्रतिदिन एक ग्राम सोने का सिक्का दिया जाएगा। अब तक 30 से अधिक लोग इस उत्सव में उपहार जीत चुके हैं ।
इस दिव्य और ऐतिहासिक क्षण के साथ, फन रिपब्लिक मॉल ने न केवल लखनऊ को गौरवान्वित किया है, बल्कि भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की इस अनूठी मूर्ति के माध्यम से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आस्था और समृद्धि का संदेश भी दिया है। इस भव्य आयोजन में श्री प्रमिल द्विवेदी, श्रीमती प्रीति पांडे, श्री सुमित कुमार, श्री रोहित मिश्रा, श्री देवेंद्र प्रताप सिंह, और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित रहे ।
#LordGanesha #GoddessLakshmi #BrajeshPathak #FunRepublicMall #GoldPlatedStatue #DiwaliCelebration #AsiaBookOfRecords #IndiaBookOfRecords #LucknowPride #CulturalHeritage #SpiritualAwakening #DivineBlessings #FestiveVibes #GrandUnveiling #ShoppingDestinations #FunUtsav #LordsBlessings
#NarendraModi #PMOIndia
#YogiAdityanath #UPCM
#HelpUTrust #HelpUEducationalandCharitableTrust
#KiranAgarwal #DrRupalAgarwal #HarshVardhanAgarwal
#followers #highlight #topfans
www.helputrust.org
@narendramodi @pmoindia
@MYogiAdityanath @cmouttarpradesh
@brajeshpathakup
@HelpUEducationalAndCharitableTrust @HelpU.Trust
@KIRANHELPU
@HarshVardhanAgarwal.HVA @HVA.CLRS @HarshVardhanAgarwal.HelpUTrust
@HelpUTrustDrRupalAgarwal @RupalAgarwal.HELPU @drrupalagarwal
@HelpUTrustDrRupal
@followers @highlight @topfans
9 notes
·
View notes
Text
दिवाली की पूजा में कैसी हो लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति? इन खास बातों का रखें विशेष ध्यान, हमेशा बनी रहेगी बरकत
माता लक्ष्मी की मूर्ति
मूर्ति खरीदते समय ध्यान रहे कि माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्ति जुड़ी हुई नहीं होना चाहिए. दोनों अलग-अलग होना चाहिए. साथ ही लक्ष्मी-गणेश बैठी हुई अवस्था में हों क्योंकि खड़ी हुई अवस्था में मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है. मां लक्ष्मी का एक हाथ आशीर्वाद देने वाला हो और वहीं दूसरे हाथ में कमल होना चाहिए. साथ ही धन की देवी खुद भी कमल पर बैठी हुई होना चाहिए.
गणेश जी की मूर्ति
जब आप माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की मूर्ति खरीद रहे हों तो ध्यान रहे कि, बप्पा की सूंड बाईं ओर होना चाहिए. इसके अलावा उनके एक हाथ में मोदक या लड्डू होना चाहिए. यही नहीं भगवान गणेश का वाहन मूसक भी साथ में होना चाहिए.
मिट्टी की मूर्ति और रंग
लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति हमेशा मिट्टी से बनी हुई लेना चाहिए क्योंकि इसे सबसे शुभ माना गया है. लेकिन, इस बात का ध्यान रहे कि मूर्ति कहीं से भी खंडित नहीं होना चाहिए क्योंकि उसका नकारात्मक प्रभाव आप पर पड़ सकता है. साथ ही कभी भी मूर्ति काले और सफेद रंग की नहीं खरीदना चाहिए.
Consult with World Famous Astrologer
Pandit Gopal Shastri Ji
For More Detail Visit: - www.ptgopalshastri
Call : - +91 78888 78978/+1(778)7663945
#famousastrologer#astronews#astroworld#Astrology#lovemarriage#astrologers#astrologymemes#marriage#loveback#love#carrerproblemsolution#unemploymentproblems#grahdosh#businessproblemsolution#dealyinmarriage#kundalimatching#husbandwifedispute#childlessproblem#getlostlovebackspecialist
0 notes
Text
Lakshmi Ganesh Idol: दिवाली की पूजा के बाद गणेश जी और मां लक्ष्मी की पुरानी मूर्ति का क्या करें?
Diwali 2024: धनतेरस के साथ दिवाली के पांच दिनों के त्योहार की शुरुआत हो चुकी है. इस बार पूरे देश में 31 अक्टूबर गुरुवार को ही दिवाली का पर्व मनाया जाएगा. दिवाली के शुभ मौके पर माता लक्ष्मी और गणेश जी पूजा करने का विधान हैं. लोग दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश जी की नई मूर्तियां खरीदकर लाते हैं और पुरानी मूर्तियों को अलग रख देते हैं. लेकिन पिछली दिवाली पर जिन मूर्तियों की अपनी पूजा की है, नई मूर्तियों…
0 notes
Text
भाद्रपद पूर्णिमा 2024: धार्मिक महत्व और पूजा विधि
भाद्रपद पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष महत्व रखती हैं।
2024 में भाद्रपद पूर्णिमा की तारीख:
तिथि: 17 सितंबर, 2024
शुभ मुहूर्त: (यहाँ आप विशिष्ट शुभ मुहूर्त का उल्लेख कर सकते हैं, जैसे कि पूजा का समय, स्नान का समय आदि)
भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व:
धार्मिक महत्व: इस दिन पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। इसलिए, पितरों का श्राद्ध करना और दान करना विशेष महत्व रखता है।
ज्योतिषीय महत्व: चंद्रमा की किरणें इस दिन विशेष प्रभाव डालती हैं। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
आध्यात्मिक महत्व: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा की पूजा विधि:
स्नान: सुबह जल्दी उठकर गंगा जल से स्नान करना शुभ माना जाता है।
पूजा: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र को स्नान कराकर शुद्ध करें। उन्हें फूल, चंदन, अक्षत, रोली और धूप-दीप अर्पित करें।
व्रत: इस दिन व्रत रखना शुभ माना जाता है।
दान: गरीबों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
कथा: भाद्रपद पूर्णिमा की कथा का पाठ करना चाहिए।
भाद्रपद पूर्णिमा पर क्या करें:
चंद्र दर्शन: पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को अर्घ्य दें।
मंत्र जाप: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें।
धार्मिक ग्रंथों का पाठ: भगवद गीता, श्रीमद् भागवत गीता आदि धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें।
भाद्रपद पूर्णिमा पर क्या न करें:
अशुभ कार्य: इस दिन कोई भी अशुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
झूठ बोलना: झूठ बोलने से बचना चाहिए।
क्रोध करना: क्रोध करने से बचना चाहिए।
��ाद्रपद पूर्णिमा के लाभ:
मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
रोगों से छुटकारा मिलता है।
नारायण सेवा संस्थान के स्वयंसेवक इस दिन जरूरतमंद लोगों की सेवा में जुट जाते हैं। वे भोजन, कपड़े, दवाइयाँ और अन्य आवश्यक चीज़ें वितरित करते हैं। इसके अलावा, वे गरीब बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिए भी कार्य करते हैं।
निष्कर्ष:
भाद्रपद पूर्णिमा एक पवित्र त्योहार है जो धार्मिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
#Bhadrapada Purnima 2024 Date#Bhadrapada Purnima 2024 Shubh Muhurta#Significance of Bhadrapada Purnima#Bhadrapad Purnima Donation#Bhadrapad Purnima Charity#भाद्रपद पूर्णिमा#भाद्रपद पूर्णिमा 2024 तिथि#Bhadrapad Purnima Vrat Katha#भाद्रपद पूर्णिमा व्रत 2024 मुहूर्त#भाद्रपद पूर्णिमा 2024 शुभ मुहूरत्#Bhadrapad Purnima meaning#Bhadrapad Purnima importance
0 notes
Text
वरलक्ष्मी व्रत पूजन की विधि और महत्व: सुख, समृद्धि, वैवाहिक सौभाग्य का वरदान
वरलक्ष्मी व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए होता है और माना जाता है कि इसे रखने से सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वरलक्ष्मी व्रत एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को रखने से सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यदि आप भी वरलक्ष्मी व्रत रखना चाहते हैं, तो उपरोक्त विधि का पालन कर सकते हैं।
वरलक्ष्मी व्रत का महत्व
इस व्रत को रखने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। लक्ष्मी जी धन की देवी हैं और उनकी कृपा से घर में सुख-समृद्धि आती है।
विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।
वरलक्ष्मी व्रत को रखने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत पूजन विधि
वरलक्ष्मी व्रत पूजन की विधि इस प्रकार है
सबसे पहले एक कलश स्थापित किया जाता है। कलश को आम के पत्तों और फूलों से सजाया जाता है।
कलश स्थापना के बाद गणेश जी की पूजा की जाती है।
फिर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र को फूलों और रोली से सजाया जाता है।
लक्ष्मी जी को रोली, चावल, फूल, मिठाई और फल अर्पित किए जाते हैं।
दीपक जलाकर लक्ष्मी जी को अर्पित किया जाता है।
लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप किया जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत कथा सुनी जाती है।
अंत में आरती की जाती है।
अन्य जानकारी
वरलक्ष्मी व्रत आमतौर पर श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
इस व्रत को रखने ��े लिए विशेष रूप से सोलह श्रृंगार किया जाता है।
इस दिन महिलाएं नए वस्त्र पहनती हैं और सोने के आभूषण धारण करती हैं।
0 notes
Text
Shaligram Puja Niyam: घर में शालीग्राम रखने से पहले इन बातों को जान लेना है बेहद जरूरी, वरना पड़ सकता है भारी
Vishnu Shaligram Puja Rules: शालीग्राम को भगवान विष्णु का रूप मानते हैं. विष्णु पुराण के अनुसार जो व्यक्ति शालीग्राम को अपने घर में रखता है और रोजाना उसकी पूजा करता है उसे भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. हालांकि इसे घर में रखने से पहले इससे जुड़े नियमों का पालन करना जरूरी है.
Shaligram Puja Niyam: हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार शालीग्राम को विष्णु का विग्रह रूप माना जाता है. विष्णु पुराण के अनुसार जो व्यक्ति शालीग्राम को अपने घर में रखता है और रोजाना उसकी पूजा-पाठ करता है उसे भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. ऐसा घर तीर्थ समान होता है जहां सुख-समृद्धि, खुशहाली की कभी कमी नहीं होती. अगर आप भी अपने घर में शालीग्राम रखना चाहते है तो सबसे पहले इसे जुड़े नियम जानना बेहद जरूरी है. तो आइए विस्तार से जानते हैं कि शालीग्राम को स्थापित करने से पहले किन नियमों का पालन करना जरूरी होता है. घर में शालीग्राम रखने से पहले जान लें नियम
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर में कभी भी शालीग्राम को स्थापित करने से पहले इस बात का ख्याल रखें कि इसे हमेशा खरीदकर ही अपने घर में स्थापित करें. किसी से उपहार में ऐसे कभी नहीं लेना चाहिए.
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर में शालीग्राम हमेशा एक ही होना चाहिए. यदि आपके घर एक से ज्यादा शालीग्राम है तो इसे क्षमा मांगते हुए नदी में बहा दें.
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शालीग्राम की पूजा करते वक्त अक्षत का इस्तेमाल न करें. यदि आप अक्षत चढ़ाना चाहते हैं तो हमेशा पीले रंग के अक्षत का इस्तेमाल करें.
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस घर में शालीग्राम स्थापित होता है उस घर में मांस, मदीरा, गुटखा आदि नशे से जुड़ी चीजों का सेवन वर्जित माना गया है. इससे इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शालीग्राम को तुलसी के पौधे के साथ रखना चाहिए. इससे माता लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शालीग्राम को रोजाना पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए. ये शुभ माना जाता है. इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है.
ऐसे करें पूजा
शालीग्राम की पूजा करने से पहले सबसे पहले स्नान आदि से निवृत हो जाएं. अब शालीग्राम को पंचामृत (दूध, दही, शहद, गंगाजल और घी) से स्नान कराएं. इसके बाग चंदल, फूल आदि चढ़ाएं. अब घी का दीपक जलाएं और भोग लगाएं. भोग में तुलसी का पत्ता जरूर रखें और अब विष्णु भगवान की आरती क���ें.
इस तरह करें पूजा सुबह स्नान आदि से निवृत होकर सबसे पहले शालिग्राम को स्नान कराएं। इसके बाद चंदन, फूल, भोग आदि अर्पित करें और घी का दीपक जलाएं। भोग में तुलसी दल जरूर डालें। इससे वह प्रसन्न होते हैं, जिससे साधक के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। अंत में परिवार के साथ विष्णु जी की आरती करें।
इस तरह कराएं स्नान भगवान शालिग्राम को रोजाना पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। पंचामृत बनाने के लिए दूध, दही, जल, शहद और घी को मिलाएं। स्नान कराने के बाद इस चरणामृत को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और अन्य लोगों में भी बांटे।
इन बातों का रखें ध्यान शालिग्राम की पूजा में इस बात का ध्यान रखें कि शालिग्राम जी की पूजा का क्रम टूटना नहीं चाहिए। इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें कि घर में केवल एक ही शालिग्राम रखना चाहिए। एक से अधिक शालिग्राम रखने पर वास्तु दोष लग सकता है।
जिस घर में शालिग्राम जी की पूजा की जाती है, वहां मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही शालिग्राम की के पूजा स्थान पर साफ-सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें और उनके साथ विष्णु जी की तस्वीर या प्रतिमा भी जरूर रखनी चाहिए।
Shaligram Stone : अयोध्या में रामलाल की मूर्ति बनाने के लिए नेपाल से शालिग्राम की खास शिलाएं मंगवाई गई हैं. सनातन धर्म में शालिग्राम पत्थर को साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है और प्रभु राम विष्णु जी के ही सातवें अवतार माने जाते हैं. शालिग्राम को कुछ लोग अपने घर के मंदिर या पूजा के स्थान पर रखते हैं. इसे घर में रखने से न केवल भगवान विष्णु प्रसन्न रहते है, बल्कि धन की देवी माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि शालिग्राम को घर में स्थापित करने के बाद कुछ खास नियमों की अनदेखी इंसान को बर्बाद भी कर देती है.
अक्षत न चढ़ाएं - ज्योतिषियों का कहना है कि शालिग्राम महाराज पर कभी भी अक्षत यानी चावल नहीं चढ़ाना चाहिए. हर महीने आने वाली एकादशी भगवान विष्णु को ही समर्पित होती है और इसमें भी श्री हरि को अक्षत अर्पित नहीं किया जाता है.
मेहनत की कमाई लाएं शालिग्राम - अगर आप अपने घर में शालिग्राम को स्थापित करना चाहते हैं तो हमेशा अपनी मेहनत की कमाई से ही इसे खरीदकर घर लाएं. यह न तो किसी गृहस्थ इंसान को उपहार के रूप में देना चाहिए और न ही किसी से लेना चाहिए. आप या तो इसे अपनी कमाई से खरीद सकते हैं या फिर किसी साधु-संत से ले सकते हैं.
एक ही रखें शालिग्राम - शालिग्राम के उपयोग से घर के सभी वास्तु दोष दूर हो जाते हैं. शालिग्राम करीब 33 प्रकार के हैं, जिनमें से 24 को श्री हरि भगवान विष्णु के अवतार के रूप में देखा जाता है. शालिग्राम जिस घर में होता है, वहां कभी लोगों पर संकट नहीं आता है. हालांकि ज्योतिषविद कहते हैं कि हमें घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम रखना चाहिए. एक से ज्यादा शालिग्राम भूलकर भी न रखें.
घर में मांस-मदिरा का सेवन- यदि आपने घर के मंदिर में शालिग्राम रखा है तो आपको मांस या मदिरा-पान के सेवन से परहेज करना चाहिए. ��गर ऐसा करना आपके लिए संभव नहीं है तो कम से कम गुरुवार के दिन ऐसी चीजों से बिल्कुल दूर रहें. यह दिन भगवान विष्णु को ही समर्पित होता है. अगर आप इस नियम का पालन नहीं कर पा रहे हैं तो शालिग्राम को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर दें.
पूजा का क्रम न तोड़ें- ज्योतिषियों का कहना है कि घर में एक बार शालिग्राम की पूजा का क्रम शुरू हो जाए तो इसे बिल्कुल नहीं तोड़ना चाहिए. यानी नियमित तौर पर शालिग्राम की पूजा जरूरी है. शालिग्राम को नियमित चंदन, पुष्प, मिष्ठान आदि अर्पित करते रहें. पूजा के समय अगर आप तुलसी दल भी अर्पित कर पाएं तो ये बहुत ही उत्तम होगा.
0 notes
Text
लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु सिद्ध शाबर मंत्र
स्वयं सिद्ध लक्ष्मी शाबर मंत्र: धन और समृद्धि के लिए शक्तिशाली उपाय
हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वे धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी हैं। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भक्त विभिन्न मंत्रों और साधनाओं का सहारा लेते हैं। इनमें से एक है "स्वयं सिद्ध लक्ष्मी शाबर मंत्र"।
यह शाबर मंत्र अपने आप में सिद्ध माना जाता है, इसलिए इसका नाम "स्वयं सिद्ध" है। इस मंत्र की विशेषता है कि इसके जाप से लक्ष्मी देवी प्रसन्न होती हैं और भक्त पर अपनी कृपा बरसाती हैं। मान्यता है कि इस मंत्र के निरंतर जाप से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन की कमी दूर होती है।
स्वयं सिद्ध लक्ष्मी शाबर मंत्र:
"ऐं श्रीं क्लीं सौभाग्यदायिन्यै नमः नारायण्यै नमः मालिन्यै नमः महालक्ष्म्यै नमः परमेश्वर्यै नमः परमाणुरूपिण्यै नमः सर्वाधिकारिण्यै नमः महामायायै नमः महामेधायै नमः महायोगेश्वरीश्वरेभ्यो नमः"
इस मंत्र का जाप करने से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। मंत्र के जाप के दौरान एकाग्रचित रहना महत्वपूर्ण है। साथ ही, जाप के समय संकल्प लेना भी आवश्यक है। इसके बाद मंत्र का जाप किया जा सकता है।
अनुशंसित है कि इस मंत्र का जाप सुबह और शाम दोनों समय किया जाए। इससे इसके प्रभाव और बढ़ जाते हैं। साथ ही, लक्ष्मी देवी की मूर्ति या चित्र के सामने जाप करने से भी विशेष लाभ मिलता है।
भक्तों को विश्वास है कि इस शक्तिशाली मंत्र के जाप से न केवल आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं, बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी सकारा��्मक परिवर्तन आते हैं। धैर्य और आस्था के साथ जाप करने से लक्ष्मी देवी अवश्य प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। Read More
0 notes
Text
क्या आपको पता है दिवाली से जुड़े ये रोचक फैक्ट्स ? जानिए इस दिवाली स्पेशल ब्लॉग मैं।
दिवाली की शान बढ़ाओ, लोकल ख़रीदारी अपनाओ। AdBanao Special Blog
दीपावली क्यों मनाते हैं?
दीपावली भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे हिंदू धर्म के लोग पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। इस त्योहार को प्रकाश का त्योहार भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग अपने घरों और दुकानों को दीयों से सजाते हैं।
दीपावली मनाने के कई कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
असत्य पर सत्य की विजय: दीपावली का सबसे महत्वपूर्ण कारण है असत्य पर सत्य क��� विजय। इस दिन भगवान राम ने चौदह वर्ष का वनवास काटकर लंकापति रावण को पराजित किया था और माता सीता को अपने साथ वापस अयोध्या लाए थे।
अंधकार पर प्रकाश की विजय: दीपावली का दूसरा महत्वपूर्ण कारण है अंधकार पर प्रकाश की विजय। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसने अंधकार फैलाकर लोगों को परेशान कर रखा था।
(फ्री फोटो डाउनलोड करे फोटो पर क्लिक करे )
दीपावली से जुड़ी कुछ प्रमुख कथाएँ:
1.भगवान राम की अयोध्या वापसी: दीपावली के दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काटकर लंकापति रावण को पराजित कर माता सीता को अपने साथ वापस अयोध्या लाए थे। अयोध्यावासियों ने भगवान राम के स्वागत के लिए पूरे नगर को दीयों से सजाया था।
2.भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध: नरकासुर नामक राक्षस ने अंधकार फैलाकर लोगों को परेशान कर रखा था। भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया और लोगों को अंधकार से मुक्ति दिलाई।
3.समुद्र मंथन के दौरान देव और दानवो ने मिलकर चौदा रत्न की प्राप्ति की थी. और, इसी मैं लक्ष्मी माता जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती है उनका भी जन्म हुआ था. इसलिए हम लक्ष्मी पूजन करते है.
(फ्री फोटो डाउनलोड करे फोटो पर क्लिक करे )
दक्षिण भारत मैं दिवाली मनाने का कारण प्रभु श्री राम नहीं है पर, भगवान श्री कृष्ण है।
दक्षिण भारत में इसे मनाने का तरीका कुछ अलग है। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में, जैसे तमिलनाडु और केरल में, दिवाली भगवान राम की तुलना में भगवान कृष्ण का अधिक उत्सव है।
इसके कुछ कारण हैं। पहला, भगवान कृष्ण दक्षिण भारत में भगवान राम की तुलना में अधिक लोकप्रिय देवता हैं। दूसरा, भगवान कृष्ण से जुड़े कई कथाये हैं जो दिवाली से जुड़ी हैं। एक कथा कहती है कि भगवान कृष्ण ने दिवाली के दिन राक्षस नरकासुर का वध किया था । एक ��न्य कथा है कि भगवान कृष्ण एक लंबी निर्वासन के बाद दिवाली के दिन अपनी पवित्र नगरी द्वारका लौट आए थे।
इन परिणाम स्वरूप, दक्षिण भारत के कई लोगों का मानना है कि दिवाली भगवान कृष्ण का एक विशेष दिन है।
दक्षिण भारत में भगवान कृष्ण के उत्सव के रूप में दिवाली मनाने के कुछ विशिष्ट उदाहरण हैं:
तमिलनाडु में, लोग अक्सर कृष्णनाट्टम, एक पारंपरिक नृत्य रूप जो भगवान कृष्ण की कहानियों को बताता है, गाते और नाचते हैं।
केरल में, लोग अक्सर दिवाली के दिन विशेष कृष्ण-संबंधी व्यंजन पकाते और खाते हैं, जैसे कृष्णपचडी (केले और नारियल से बना दही का व्यंजन) और कृष्णविलक्कु (चावल के आटे और गुड़ से बना एक मिठाई)।
आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में, लोग दिवाली के दिन अलाव बनाते हैं और तेल और घी से भरे मिट्टी के बर्तनों को आग में फेंकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह बुराई का दहन और अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
आपको जानकर हैरानी होगी की , भारत की विभन्नता मैं एकता कैसे झलकती है इसका उदाहरण है।
काली दिवाली
कर्नाटक मैं कई गाँव है जहां काली दिवाली मनाई जाती है।
काली दिवाली कर्नाटक में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है। यह दिवाली के बाद के दिन मनाया जाता है, और यह देवी काली की पूजा का दिन है। काली दिवाली का महत्व यह है कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
कर्नाटक में, काली दिवाली का उत्सव आमतौर पर घरों और मंदिरों में होता है। घरों में, लोग देवी काली की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। मंदिरों में, विशेष अनुष्ठान और पूजा आयोजित की जाती है।
काली दिवाली के दिन, लोग काली के रंगों, जैसे काले, लाल और हरे रंग के कपड़े पहनते हैं। वे काली की पूजा के लिए विशेष व्यंजन भी तैयार करते हैं, जैसे कि काले तिल का हलवा और काले चने की दाल।
आपकी दिवाली को भी बनाओ एकदम अलग बनाओ सिर्फ AdBanao के साथ।
AdBanao app से बिज़नेस और त्योहार की ब्रांडिंग करे।
आज ही डाउनलोड करे और अपने दोस्तों , रिश्तेदारों और क्लाइंट्स को दिवाली की शुभकामानएं दे।
#digitalmarketing#marketing#social media advertising#postermaker#adbanaoapp#adbanao#branding#social media branding#marathi#diwali#deepawali#festival
0 notes
Text
*सनातनपूजनसामग्रीभण्डार🚩*
*रोचक तथ्य एवं अध्यात्मिक ज्ञान*
ऐसे ही *रोचक तथ्य एवं अध्यात्मिक ज्ञान* हेतू हमारे पेज से जुड़े:- *tumblr* पर👇🏻 https://www.tumblr.com/sanatan-poojan-samagri-bhandar
*Instragram* पेज पर 👇🏻
https://www.instagram.com/sanatanpoojansamagribhandar?igshidMzNINGNkZWQ4Mg==
*ब्राह्मण* को क्यों शास्त्रों में कहा गया है *देवता*, जानना चाहते हैं ज़रूर पढ़ें l
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आप में से लगभग लोग जानते होंगे कि हिंदू धर्म में ब्राह्मण देवता तो किसी देवी-देवता के कम नहीं माना जाता। कहने का भाव हैं इन्हें भी देवी-देवताओं की ही तरह पूजनीय माना जाता है। मगर इन्हीं लोगों में से बहुत से लोगों के मन में ये सवाल भी आया होगा कि आख़िर क्यों ब्राह्मण को देवता का रूप माना जाता है? इसके पीछे का कारण क्या है? दरअसल इस बात का विवरण धार्मिक ग्रंथों में बाखूबी किया गया है। जी हां शास्त्रों से जानते हैं कि क्यों ब्राह्मण को देवता समान पूजनीय माना जाता हैं I
शास्त्रीय मत-🚩
पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे ।
सागरे सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।।
चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः ।
सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया ।।
अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि ।
नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।।🚩
अर्थात- उपरोक्त श्लोक के अनुसार पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी ब्राह्मण के दक्षिण पैर में है। चार वेद उसके मुख में हैं। अंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं। इसलिए ऐसी मान्यता है ब्राह्मण की पूजा करने से सब देवों की पूजा होती है। पृथ्वी में ब्राह्मण विष्णु स्वरूप माने गए हैं इसलिए जिसको कल्याण की इच्छा हो उसे कभी ब्राह्मणों का अपमान तथा द्वेष नहीं करना चाहिए।🚩
देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता:।
ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना:तस्माद् ब्राह्मण देवता।👏🏻
अर्थात- सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मंत्रों के अधीन हैं और मंत्र ब्राह्मण के अधीन हैं ब्राह्मण को देवता माने जाने का एक प्रमुख कारण ये भी है।
ॐ जन्मना ब्राह्मणो, ज्ञेय:संस्कारैर्द्विज उच्चते।
विद्यया याति विप्रत्वं, त्रि���ि:श्रोत्रिय लक्षणम्।।
अर्थात- ब्राह्मण के बालक को जन्म से ही ब्राह्मण समझना चाहिए। संस्कारों से "द्विज" संज्ञा होती है तथा विद्याध्ययन से "विप्र" नाम धारण करता है। जो वेद, मंत्र तथा पुराणों से शुद्ध होकर तीर्थ स्नानादि के कारण और भी पवित्र हो गया है, वह ब्राह्मण परम पूजनीय माना गया है।🚩
ॐ पुराणकथको नित्यं, धर्माख्यानस्य सन्तति:।
अस्यैव दर्शनान्नित्यं ,अश्वमेधादिजं फलम्।।👏🏻
अर्थात- जिसके हृदय में गुरु,देवता,माता-पिता और अतिथि के प्रति भक्ति है। जो दूसरों को भी भक्तिमार्ग पर अग्रसर करता है,जो सदा पुराणों की कथा करता और धर्म का प्रचार ��रता है। शास्त्रों में ऐसे ब्राह्मण के दर्शन से अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होने की बात कही गई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पितामह भीष्म जी ने पुलस्त्य जी से पूछा हे गुरुवर! मनुष्य को देवत्व, सुख, राज्य, धन, यश, विजय, भोग, आरोग्य, आयु, विद्या, लक्ष्मी, पुत्र, बन्धुवर्ग एवं सब प्रकार के मंगल की प्राप्ति कैसे हो सकती है। तब पुलस्त्य जी ने उनकी बात का उत्तर देते हुए कहा राजन!इस पृथ्वी पर ब्राह्मण सदा ही विद्या आदि गुणों से युक्त और श्रीसम्पन्न होता है। तीनों लोकों और प्रत्येक युग में विप्रदेव नित्य पवित्र माने गए हैं। ब्राह्मण देवताओं का भी देवता है। संसार में उसके समान कोई दूसरा नहीं है। वह साक्षात धर्म की मूर्ति है और सबको मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाला है। ब्राह्मण सब लोगों का गुरु, पूज्य और तीर्थस्वरुप मनुष्य है। पूर्वकाल में नारदजी ने ब्रम्हाजी से पूछा था। ब्रम्हन्! किसकी पूजा करने पर भगवान लक्ष्मीपति प्रसन्न होते हैं। तो ब्रह्मा जी बोले, जिस पर ब्राह्मण प्रसन्न होते हैं,उस पर भगवान विष्णु जी भी प्रसन्न हो जाते हैं। अत: ब्राह्मण की सेवा करने वाला मनुष्य निश्चित ही परब्रम्ह परमात्मा को प्राप्त होता है। ब्राह्मण के शरीर में सदा ही श्री विष्णु का निवास है। जो दान, मान और सेवा आदि के द्वारा प्रतिदिन ब्राह्मणों की पूजा करते हैं, उसके द्वारा मानों शास्त्रीय पद्धति से उत्तम दक्षिणा युक्त सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान हो जाता है। जिसके घर पर आया हुआ ब्राह्मण निराश नही लौटता, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है। पवित्र देश काल में सुपात्र ब्राह्मण को जो धन दान किया जाता है वह अक्षय होता है। वह जन्म जन्मान्तरों में फल देता है, उनकी पूजा करने वाला कभी दरिद्र, दुखी और रोगी नहीं होता है। जिस घर के आंगन में ब्राह्मण की चरणधूलि पड़ने से वह पवित्र होते हैं वह तीर्थों के समान हैं।🚩
ॐ न विप्रपादोदककर्दमानि,
न वेदशास्त्रप्रतिघोषितानि!
स्वाहास्नधास्वस्तिविवर्जितानि,
श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।
जहां ब्राह्मणों का चरणोदक नहीं गिरता,जहां वेद शास्त्र की गर्जना नहीं होती,जहां स्वाहा,स्वधा,स्वस्ति और मंगल शब्दों का उच्चारण नहीं होता है। वह चाहे स्वर्ग के समान भवन भी हो तब भी वह श्मशान के समान है।
भीष्मजी! पूर्वकाल में विष्णु भगवान के मुख से ब्राह्मण , बाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई। पितृयज्ञ(श्राद्ध-तर्पण), वि��ाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म और समस्त मांगलिक कार्यों में सदा उत्तम माने गए हैं। ब्राह्मण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य का उपभोग करते हैं। ब्राह्मण के बिना दान,होम तर्पण आदि सब निष्फल होते हैं।
जहां ब्राह्मणों को भोजन नहीं दिया जाता,वहा असुर,प्रेत,दैत्य और राक्षस भोजन करते हैं। इसलिए कहा जाता है ब्राह्मण को देखकर श्रद्धापूर्वक उसको प्रणाम करना चाहिए।👏🏻
उनके आशीर्वाद से मनुष्य की आयु बढती है,वह चिरंजीवी होता है। ब्राह्मण को देखकर भी प्रणाम न करने से,उनसे द्वेष रखने से तथा उनके प्रति अश्रद्धा रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है, धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है।
चौ- पूजिय विप्र सकल गुनहीना।
शूद्र न गुनगन ग्यान प्रवीणा।।
कवच अभेद्य विप्र गुरु पूजा।
एहिसम विजयउपाय न दूजा।।
रामचरित मानस में कहा गया है-🚩
ॐ नमो ब्रम्हण्यदेवाय,
गोब्राम्हणहिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय,
गोविन्दाय नमो नमः।।🚩
अर्थात- जगत के पालनहार गौ, ब्राम्हणों के रक्षक भगवान श्रीकृष्ण जी कोटिशः वन्दना करते हैं। जिनके चरणारविन्दों को परमेश्वर अपने वक्षस्थल पर धारण करते हैं, उन ब्राम्हणों के पावन चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम है। ब्राह्मण जप से पैदा हुई शक्ति का नाम है, ब्राह्मण त्याग से जन्मी भक्ति का धाम है।
ब्राह्मण ज्ञान के दीप जलाने का नाम है,
ब्राह्मण विद्या का प्रकाश फैलाने का काम है।
ब्राह्मण स्वाभिमान से जीने का ढंग है,
ब्राह्मण सृष्टि का अनुपम अमिट अंग है।
ब्राह्मण विकराल हलाहल पीने की कला है,
ब्राह्मण कठिन संघर्षों को जीकर ही पला है।
ब्राह्मण ज्ञान, भक्ति, त्याग, परमार्थ का प्रकाश है,
ब्राह्मण शक्ति, कौशल, पुरुषार्थ का आकाश है।
ब्राह्मण न धर्म, न जाति में बंधा इंसान है,
ब्राह्मण मनुष्य के रूप में साक्षात भगवान है।
ब्राह्मण कंठ में शारदा लिए ज्ञान का संवाहक है,
ब्राह्मण हाथ में शस्त्र लिए आतंक का संहारक है।
ब्राह्मण सिर्फ मंदिर में पूजा करता हुआ पुजारी नहीं है,
ब्राह्मण घर-घर भीख मांगता भिखारी नहीं है।
ब्राह्मण गरीबी में सुदामा-सा सरल है,
ब्राह्मण त्याग में दधीचि-सा विरल है।
ब्राह्मण विषधरों के शहर में शंकर के समान है,
ब्राह्मण के हस्त में शत्रुओं के लिए बेद कीर्तिवान है।
ब्राह्मण सूखते रिश्तों को संवेदनाओं से सजाता है,
ब्राह्मण निषिद्ध गलियों में सहमे सत्य को बचाता है।
ब्राह्मण संकुचित विचारधारों से परे एक नाम है,
ब्राह्मण सबके अंत:स्थल में बसा अविरल राम है।🚩
*अखिले�� मिश्र सनातनी जी।सनातनपूजनसामग्रीभण्डार,*
*सी-2/216, सेक्टर-एफ,* *जानकीपुरम,लखनऊ।*
1 note
·
View note
Text
Mahalakshmi Vrat 2018
Mahalakshmi Vrat 2018
महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी के दिन से किया जाता है. यह व्रत सोलह दिनों तक चलता है. इस व्रत में धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजन की जाती है. महालक्ष्मी व्रत शुभ माना जाता है. इस व्रत को विवाहित जो��़े रखते हैं. इस दिन समृद्धि की प्रतिक मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है.
लक्ष्मी जी, भगवान विष्णु की पत्नी है, जिन्हें सुख-समृद्धि और एश्वर्य की देवी के रूप में…
View On WordPress
#16 days mahalakshmi vrat katha#Mahalakshmi Vrat 2018#mahalaxmi vrat on friday#vaibhav laxmi vrat vidhi#माता लक्ष्मी की मूर्ति
0 notes
Text
दिवाली के दिन मिट्टी का छोटा सा घर क्यों माना जाता है शुभ? #news4
Diwali 2022: 24 अक्टूबर 2022 को दीपावली का पर्व मनाया जाएगा। अगले दिन सूर्य ग्रहण रहेगा। दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा होती है। दिवाली पर अक्सर माता लक्ष्मी की मूर्ति के अलावा मिट्टी का छोटा सा घर भी खरीदकर लाया जाता है। कई लोग घर पर ही मिट्टी का घरौंदा बनाते हैं। आखिर यह घर क्यों खरीदते हैं? दिवाली के दिन मिट्टी का घरौंदा बनाते हैं या बना बनाया घरौंदा बाजार से खरीदकर लाते हैं और उसकी पूजा…
View On WordPress
0 notes
Link
https://tedmnews.com/news/http://tedmnews.com/1313/11
0 notes
Text
माखन लाल चतुर्वेदी की रचना दीप से दीप जले कविता - अर्थ सहित
'देव पुरस्कार' से सम्मानित
माखन लाल चतुर्वेदी के रचना संसार और काव्य-संसार के तीन आयाम हैं ; पहला पत्रकारिता , दूसरा साहित्यिक रचनाएँ और तीसरा उनके अभिभाषण और व्याख्यान।
उन्हें 1943 में हिन्दी का सर्वोत्तम पुरस्कार 'देव पुरस्कार' हिमकिरीटिनी' पर मिला, 1955 में भारतीय साहित्य अकादमी की स्थापना हो जाने पर इन्हें ' 'हिमतरंगिणी' पर पुरस्कृत किया गया। सागर विश्वविद्यालय से देश भक्ति पूर्ण काव्य रचना के लिए इन्हें डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान की गई। कालान्तर में वर्ष 1963 में इनकी अमूल्य सेवाओं व राष्ट्र तथा समाज के प्रति नि:स्वार्थ समर्पण-भावना को दृष्टिगत रखते हुए 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया
वे सरस्वती के ऐसे अथक साधक रहे जिनकी रचनाएँ भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्र-गौरव से पूरी तरह से ओत प्रोत रही हैं।
इन कविताओं में जो स्तुति-स्तोत्र की शैली दिखाई पड़ती है वह कहीं तो छायावादी प्रभाव की देन हो सकती है या फिर परिवारगत वैष्णव परम्परा का प्रभाव। लेकिन इनमें छिपी नैतिक भावभूमि ऐस�� समूह-चेतना की अभिव्यक्ति करती है जो किसी सम्प्रदाय, ख़ेमे या धारा से न बँधकर अपनी अलग मौलिक भाव-भूमि को दर्शाती है और वह भावभूमि है राष्ट्र और राष्ट्रीयता के लिए समर्पण।
आज हम इनकी एक प्रसिद्द कविता "दीप से दीप जले" का अर्थ सहित पाठ करेंगे।
यह कविता1959 की है।तब आजादी के बाद पहली पंचवर्षीय योजना के तहत आधुनिक खेती, बोकारो भिलाई जैसे नवोद्योग एक नयी ऊर्जा के साथ चल पड़े थे।
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।
लक्ष्मी दूर स्वर्ग से नही बलकी वीरान पडी हुई धरती से आती है जिसे स्त्रीयो और पुरूषों ने कदम से कदम मिला कर उपजाऊ बनाया है। जैसे हम दीपावली पूजन में पारम्परिक तौर पर एक दिए से दुसरे कई जगमग दीप जलाते हैं और वैसे ही एक तकनीकी ज्ञान से कुशल व्यक्ति और कई लोगों को कुशल बनाता है और इस से समाज बेहतर बनता हैं । माताओं, बहनो की चूडिया अब बाहर काम करने से बजती हैं और माँ भारती अपने में छुपी लक्ष्मी को प्रकट कर सब को अपनी अपनी महनत का फल देने लगती हैं ।
लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में लक्ष्मी सर्जन हुआ कमल के फूलों में लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।
माँ लक्ष्मी किसान के मेहनत से उपजाए हुए अनाज के रूप में फलती हैं और धरती के उन घनघोर निर्जनो मे छिपी होती है जिनकी खोज हम करते है।घनी आबादी वाले शहर से लेकर निर्जन धरती वाले बीहड़ गाओं के जोड़ने वाले रास्तों की यह नवीन पूजा पद्धति से ही लक्ष्मी बढती है जैसे दो मूंजों के आपस मे बटने से रस्सी बनती और बढ़ती जाती है। दीवाली की आधी रात को माँ लक्ष्मी के आने और घर घर बँट कर विराजने और फिर विसर्जन हो जाने से लक्ष्मी बढती है एसी मान्यता हैं ।जैसे अंधेरी मध्य रात्रि मे माँ लक्ष्मी आती हैं वैसे ही हमेशा कठिन परिस्थितियो मे उद्यमी व्यक्तियों के मेहनत करने से लक्ष्मी आती है।
इस तरह के उत्पादक श्रम मे अवरोध (घात) भी होते हैं और अगर कुछ लोग प्रतिकार (प्रतिघात) भी करते हैं। परन्तु अंततः माँ लक्ष्मी प्रसन्न हो कर कृपा कर ही देती हैं। कवि आजादी के बाद (1959) ऐसी लक्ष्मी का सृजन और पूजन देख रहा है ।देश के सरोवर मे कमल यानि (इनोवेशं���) से लक्ष्मी का सृजन हो रहा है और नये निर्मित घाटों पर यानि ( नये नये उद्यमो से ) पूजा का थाल सजा है।हम मूर्ति बनाते है पूजा करते हैं वर प्राप्त करते हैं फिर विसर्जन कर देते हैं; ऐसा ही किसान फसलों के साथ भी करते हैं- उगाते है उपजाते हैं अन्न-फल प्राप्त कर शेष गला देते हैं।
गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल शकट चले जलयान चले गतिमान गगन के गान तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।
लक्ष्मी - तू पर्वत वन नदी सागर और धरती के नृत्य --हर ओर विराज रही हो।हुनरवाली स्त्री की उगलियाँ तेरा श्रृंगार कर रही है ।पुरुष की गति (यानि मसल पावर) धृति(धैर्य,ब्रेन पावर)व कृति( रचनात्मकता, क्रियेटिवटी) अपने भविष्य का रूपांतरण कर देते हैं। इस श्रम से ललाट पर पसीने की बूदें मोती सा चमकती हैं। वह देखता है कि जमीन पर गाडियां, जल मे जहाज और गगन मे विमान के शोर से लगातार माँ लक्ष्मी ही स्तुति गा रहे हैं।और माता इस श्रम-पूजा से धन की बरसात करती हैं और हर रोज श्रमिक के जीवन की नई सुबह गढती हैं।
….. तुम्हारे इसी स्वभाव के करण अब तुम्हारी रोज पूजा हो रही है।उषा (पहले सूरज कीलाली)तुम्हे महावर(पैर की मेहदी) लगाती है।साँझ शृंगार करती हैऔर रातें रानी होकर भीदीपको से(एक उपमा-तारो से)आरती करती है।यानी सुबह सांझ और रात सभी प्रतिस्पर्धा पूर्वक तुझे खुशकरने मे लगे हैं- सुबहदिनभर सिर ऊचाकरके-गर्वपूर्वक;संध्या /रात के आने से पहले सिर कटाकर-त्यागपूर्वक;और रात रानी, रातभर (सुबह मृत्यु होने तक)सिर हथेलियो पर लेकर (मुहावरा=जोखिम उठा कर)-समर्पण/प्रेम पूर्वक लगे दिखते हैं।(यहाँ सिरका अर्थ सूर्य लेने सेबहुत अर्थ खुल सकते हैं)यहीमानव द्वारा की जारही पूजा(समृद्धि -लक्ष्मी की) का नेचर/प्रकृत स्वरूप है।
"गतिमान गगन के गान" और गतिमान धरती(उषा संध्या रजनी)के बलिदान का यह स्वरूप मनुष्यो की लक्ष्मी -आराधना को ही सजा कर रखे हुए दीखती है। इसीलिए आज नये युग मे हर घर तुम्हारे मंदिर हो गये हैंऔर तुम्हारी आरती के स्वर श्रम करते ल���गो से उठनेवाली आवाजो मे बदल गए हैं।और दुर्गा की (कालरात्रि ) जैसे कठिन समय को भी तुमने कल्याणी बनकर दिवाली जैसे प्रकाश और उजाले से भर दिया है
उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे, सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर भवन-भवन तेरा मंदिर है स्वर है श्रम की वाणी राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।
….. चौथे छंद मे कविअपने वितर्क की दुनिया से लौट आया है।और आसपास देखता है
वह नवान्न आ गए खेत से सूख गया है पानी खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल। तू ही जगत की जय है, तू है बुद्धिमयी वरदात्री तू धात्री, त�� भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।
वह नवान्न आ गए खेत से सूख गया है पानी खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
दीवाली के समय कठिन वर्षाकाल बीत चुका है घर मे नवान्न (नई फसल)आ गया है।खेतो से बरसात का पानी सूख चुका है। खेतो से हुई अन्न की वर्षा(वर्षभर के लिए अन्न=वर्षान्न) ने आकाश से हुई वर्षा( से उत्पन्न मुसिबतों )का दुख भुला दिया है।
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
इस अन्न की वर्षा मे फुलझड़ियो का सा जादू पैदा कर दिया है।अवश्य कल्याणी लक्ष्मी मा दीवाली के उत्सव मे खेल करके शामिल हैं।आज उत्सव का ही दिन है कि अन्न के मोती (लक्ष्मी की कृपा) और पसीने के मोती(श्रम की कृपा )का मेल हुआ हैं ।
तू ही जगत की जय है, तू है बुद्धिमयी वरदात्री तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।
महनत करने वालो को तुम फल देने वाली हो माँ। तुम अपने दिव्य लोक से आकर हम संसारी लोगों को आशीष देती हो । तुम बुद्धि स्वरूपा हो अतः वॉर देने वाली हो और सब का संरक्षण करनेवाली हो; हमारी ऊपजाउ धरती को नया रूप कलेवर देनेवाली हो और हमारी क्रियाओं को नई सूझ-बूझ देनेवाली हो।
युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें। (अक्टूबर 1959) अतः ऐसी यह दीवाली हो कि नर नारी दियो की तरह बन जाएँ और एक साथ साथ मिल कर बन कर भारत के उत्थान के लिए कार्य करने । और उनकी महनत और सूझ बूझ की लो से नये दिये जलते रहे और हम सब का पथ प्रदर्शित करते रहे।
जय माँ भारती। जय माँ लक्ष्मी।
0 notes
Photo
अगर आप माता लक्ष्मी का आगमन अपने घर में करवाना चाहते हैं तो घर में वास्तु भगवान की मूर्ति अथवा तस्वीर लगाना सबसे शुभ होगा और घर में केवल धन ही धन
आएगा
#1 India's Best Astrologer. Get 100% Love Problem Solution By The Help Of Best Vashikaran Expert Astrologer Ramesh Josh Ji. 1. Love Problem Solution 2. Love Vashikaran Expert 3. Black Magic Expert 4. Love Marriage Problem Solution Contact Us. +91 8437059110 [email protected]
0 notes
Text
*🌳 नटराज और अपस्मार राक्षस 🌳*
नटराज के पैरों के नीचे कौन दबा रहता है?
हम सभी ने भगवान शिव के नटराज रूप को कई बार देखा है। किन्तु क्या आपने ध्यान दिया है कि नटराज की प्रतिमा के पैरों के नीचे एक दानव भी दबा रहता है..?
.
आम तौर पर देखने से हमारा ध्यान उस राक्षस की ओर नहीं जाता किन्तु नटराज की मूर्ति के दाहिने पैर के नीचे आपको वो दिख जाएगा।
.
क्या आपको पता है कि वास्तव में वो है कौन? आइये आज इस लेख में हम उस रहस्य्मयी दानव के विषय में जानते हैं।
.
सबसे पहले तो आपको बता दूँ कि भगवान नटराज के पैरों के नीचे जो दानव दबा रहता है उसका नाम है "अपस्मार"। उसका एक नाम "मूयालक" भी है।
.
अपस्मार एक बौना दानव है जिसे अज्ञानता एवं विस्मृति का जनक बताया गया है। इसे रोग का प्रतिनिधि भी माना जाता है। आज भी मिर्गी के रोग को संस्कृत में अपस्मार ही कहते हैं।
.
योग में "नटराजासन" नामक एक आसन है जिसे नियमित रूप से करने पर निश्चित रूप से मिर्गी के रोग से मुक्ति मिलती है।
.
एक कथा के अनुसार अपस्मार एक बौना राक्षस था जो स्वयं को सर्वशक्तिशाली एवं दूसरों को हीन समझता था। स्कन्द पुराण में उसे अमर बताया गया है।
.
उसे वरदान प्राप्त था कि वो अपनी शक्तियों से किसी की भी चेतना का हरण कर सकता था। उसे लापरवाही एवं मिर्गी के रोग का प्रतिनिधि भी माना गया है।
.
अपनी इसी शक्ति के बल पर अपस्मार सभी को दुःख पहुँचता रहता था। उसी के प्रभाव के कारण व्यक्ति मिर्गी के रोग से ग्रसित हो जाते थे और बहुत कष्ट भोगते थे।
.
अपनी इस शक्ति एवं अमरता के कारण उसे अभिमान हो गया कि उसे कोई परास्त नहीं कर सकता।
.
एक बार अनेक ऋषि अपनी-अपनी पत्नियों के साथ हवन एवं साधना कर रहे थे। प्रभु की माया से उन्हें अपने त्याग और सिद्धियों पर अभिमान हो गया और उन्हें लगा कि संसार केवल उन्ही की सिद्धियों पर टिका है।
.
तभी भगवान शंकर और माता पार्वती भिक्षुक के वेश में वहाँ पधारे जिससे सभी स्त्रियाँ उन्हें प्रणाम करने के लिए यज्ञ छोड़ कर उठ गयी।
.
इससे उन ऋषियों को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी सिद्धि से कई विषधर सर्पों को उत्पन्न किया और उन्हें भिक्षुक रुपी महादेव पर आक्रमण करने को कहा किन्तु भगवान शंकर ने सभी सर्पों का दलन कर दिया।
.
तब उन ऋषियों ने वही उपस्थित अपस्मार को उनपर आक्रमण करने को कहा। स्कन्द पुराण में ऐसा भी वर्णित है कि उन्ही साधुओं ने अपनी सिद्धियों से ही अपस्मार का सृजन किया।
.
अपस्मार ने दोनों पर आक्रमण किया और अपनी शक्ति से माता पार्वती को भ्रमित कर दिया और उनकी चेतना लुप्त कर दी जिससे माता अचेत हो गयी।
.
ये देख कर भगवान शंकर अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने १४ बार अपने डमरू का नाद किया। उस भीषण नाद को अपस्मार सहन नहीं कर पाया और भूमि पर गिर पड़ा।
.
तत्पश्चात उन्होंने एक आलौकिक नटराज का रूप धारण किया और अपस्मार को अपने पैरों के नीचे दबा कर नृत्य करने लगे।
.
नटराज रूप में भगवान शंकर ने एक पैर से उसे दबा कर तथा एक पैर उठाकर अपस्मार की सभी शक्तियों का दलन कर दिया और स्वयं संतुलित हो स्थिर हो गए। उनकी यही मुद्रा "अंजलि मुद्रा" कहलाई।
.
उन्होंने उसका वध इसीलिए नहीं किया क्यूंकि एक तो वो अमर था और दूसरे उसके मरने पर संसार से उपेक्षा का लोप हो जाता जिससे किसी भी विद्या को प्राप्त करना अत्यंत सरल हो जाता। इससे विद्यार्थियों में विद्या को प्राप्त करने के प्रति सम्मान समाप्त हो जाता।
.
जब उन साधुओं भगवान शंकर का वो रूप देखा तो उनका अभिमान समाप्त हो गया और वे बारम्बार उनकी स्तुति करने लगे।
.
उन्होंने उसी प्रकार अपस्मार को निष्क्रिय रखने की प्रार्थना की ताकि भविष्य में संसार में कोई उसकी शक्तियों के प्रभाव में ना आये।
.
नटराज रूप में महादेव ने जो १४ बार अपने डमरू का नाद किया था उसे ही आधार मान कर महर्षि पाणिनि ने १४ सूत्रों वाले रूद्राष्टाध्यायी "माहेश्वर सूत्र" की रचना की।
.
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर के मन में एक आलौकिक नृत्य करने की इच्छा हुई। उसे देखने के लिए सभी देवता, यक्ष, ऋषि, गन्धर्व इत्यादि कैलाश पर एकत्र हुए।
.
स्वयं महाकाली ने उस ��भा की अध्यक्षता की। देवी सरस्वती तन्मयता से अपनी वीणा बजाने लगी, भगवान विष्णु मृदंग बजाने लगे, माता लक्ष्मी गायन करने लगी, परमपिता ब्रह्मा हाथ से ताल देने लगे, इंद्र मुरली बजाने लगे एवं अन्य सभी देवताओं ने अनेक वाद्ययंत्रों से लयबद्ध स्वर उत्पन किया।
.
तब महादेव ने नटराज का रूप धर कर ऐसा अद्भुत नृत्य किया जैसा आज तक किसी ने नहीं देखा था। उस मनोहारी नृत्य को देख कर सभी अपनी सुध-बुध खो बैठे।
.
जब नृत्य समाप्त हुआ तो सभी ने एक स्वर में महादेव को साधुवाद दिया। महाकाली तो इतनी प्रसन्न हुई कि उन्होंने कहा - "प्रभु! आपके इस नृत्य से मैं इतनी प्रसन्न हूँ कि मुझे आपको वर देने की इच्छा हुई है। अतः आप मुझसे कोई वर मांग लीजिये।"
.
तब महादेव ने कहा - "देवी! जिस प्रकार आप सभी देवगण मेरे इस नृत्य से प्रसन्न हो रहे हैं उसी प्रकार पृथ्वी के सभी प्राणी भी हों, यही मेरी इच्छा है। अब मैं तांडव से विरत होकर केवल "रास" करना चाहता हूं।"
.
ये सुनकर महाकाली ने सभी देवताओं को पृथ्वी पर अवतार लेने का आदेश दिया और स्वयं श्रीकृष्ण का अवतार लेकर वृन्दावन पधारी।
.
भगवान शंकर ने राधा का अवतार लिया और फिर दोनों ने मिलकर देवदुर्लभ "महारास" किया जिससे सभी पृथ्वी वासी धन्य गए। यही कारण है कि देवी भागवत में श्रीकृष्ण को माता काली का अवतार बताया गया है।
.
तो इस प्रकार अपस्मार को अपने पैरों के नीचे दबाये अभय मुद्रा में भगवान शंकर का नटराज स्वरुप ये शिक्षा देता है कि यदि हम चाहें तो अपने किसी भी दोष को स्वयं संतुलित कर उसका दलन कर सकते हैं।
.
महादेव का नटराज स्वरुप पाप के दलन का प्रतीक तो है ही किन्तु उसके साथ-साथ आत्मसंयम एवं इच्छाशक्ति का भी प्रतीक है। जय श्री नटराजन।
#akshayjamdagni #hindu #Hinduism #bharat #hindi #panchang #vedicastrology #astrology #rashifal #astrologypost #Vastutips *................... इस प्रकार की उपयोगी और रोचक जानकारियां स्वमं भी ले और अपने मित्रों को भी आगे ज्यादा से ज्यादा Share करें*
*Whatsapp Group Join करे*
https://chat.whatsapp.com/BsWPoSt9qSj7KwBvo9zWID *983737683*
0 notes
Text
मां भगवती बगलामुखी का यह मंदिर नलखेड़ा के बीच श्मशान घाट में बना है। देश के कई बड़े दिग्गज नेता यहां अपनी मनोकामनाएं पूरी करने आते हैं और संकट से बचाने के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. सभी देवियों में इसका महत्व विशेष है। उनके पास दुनिया में केवल तीन प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। यह मंदिर तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है।
तीन मुख, त्रिशक्ति का प्रतीक
मध्य प्रदेश में, तीन मुखी बगलामुखी त्रिशक्ति माता का प्रतीक है। यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के तट पर स्थित है। द्वापर युग का यह मंदिर बहुत ही चमत्कारी है। यहां देश भर से साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए आते रहते हैं।
मोदी के भाई ने किया मंत्रोच्चार
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी ने यहां नारा लगाया था. स्मृति ईरानी भी मां के दरबार में माथा टेकने पहुंचीं. यूपी से बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल यहां आए हैं. टीवी सीरियल तारक मेहता..के अय्यर भाई, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराजे सिंधिया, दिग्विजय सिंह, शिवराज सिंह चौहान, उत्तराखंड की महारानी भी यहां आ चुके हैं. पुजारी पं. कैलाशनारायण शर्मा ने बताया कि मंदिर का जीर्णोद्धार 1815 में किया गया था। यहां लोग अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन और पूजा करते हैं।
स्थापना कृष्ण के निर्देश पर हुई थी
इस मंदिर की स्थापना महाराज युधिष्ठिर ने महाभारत काल में विजय प्राप्त करने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर की थी। यह भी माना जाता है कि यहां बगलामुखी की मूर्ति स्वयंभू है। इस मंदिर में माता बगुलामुखी के अलावा माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव और सरस्वती भी विराजमान हैं।
संपर्क पंडित दीपू आचार्य माँ बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा मो.9174936832
1 note
·
View note