#भैरवी नदी
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झारखण्ड /मां छिन्नमस्तिका - दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ
जितेन्द्र कुमार सिन्हा ::असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है मां छिन्नमस्तिके मंदिर। यह मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर अवस्थित है। मां छिन्नमस्तिका मंदिर आस्था की धरोहर है। रजरप्पा का यह सिद्धपीठ, केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है, बल्कि छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा यहां…
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jharkhand miracle - रजरप्पा में मां छिन्नमस्तिके के भैरवी नदी में भगवान की लीला, मां कर रही थी जितिया का व्रत, दो बेटा नदी में डूब रहा था, लेकिन खुद नदी से सुरक्षित बाहर निकल गये, जानें कैसे हुआ यह चमत्कार, कैसे बची दोनों बेटों की जान
रामगढ़ : अपनी संतान की सलामती और लंबी उम्र के लिए महिलाएं जितिया व्रत करती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस कठिन व्रत के फलस्वरुप उनके संतान दीर्घायु होते हैं. जितिया व्रत के दिन ही अगर किसी की संतान मौत के मुंह से बाहर आ जाए, ऐसा बहुत कम ही देखने सुनने को मिलता हैं. ऐसा ही एक मामला रामगढ़ जिले में स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर से सामने आई है. मां की पूजा अर्चना करने आए बिहार के पटना निवासी दो युवक…
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माँ छिन्नमस्तिके मंदिर, रजरप्पा
माँ छिन्नमस्तिके मंदिर, रजरप्पा
मां छिन्नमस्तिके / रजरप्पा मंदिर भैरवी और दामोदर नदियों के संगम पर स्थित है। यह झारखंड की राजधानी रांची से 80 किमी और जिला रामगढ़ से 28 किमी ��ी दूरी पर है। यहां मंदिर, दो नदियों का संगम स्थल और जलप्रपात भी है। इसी कारण यह झारखंड के सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थल में से एक है। यह मंदिर छिन्नमस्तिके मंदिर के रूप में जाना जाता है, जिसका वर्णन हमारे वेदों और पुराणों में भी पाया जाता है और इसे शक्ति का एक…
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#bhairavi nadi#damodar river#ma chhinn masti ka#rajrappa mandir#झारखंड के मंदिर#दामोदर नदी#भैरवी नदी#मां छिन्नमस्तिका#मां छिन्नमस्तिका सिद्धपीठ#मां छिन्नमस्तिके#मां छिन्नमस्तिके का स्वरूप#रजरप्पा सिद्धपीठ
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रामगढ : 36 घंटे से हो रही लगातार बारिश, पतरातू डैम में खतरे के निशान से ऊपर हुआ पानी Divya Sandesh
#Divyasandesh
रामगढ : 36 घंटे से हो रही लगातार बारिश, पतरातू डैम में खतरे के निशान से ऊपर हुआ पानी
रामगढ़। जिले में पिछले 36 घंटों से लगातार भारी बारिश हो रही है। इस बारिश की वजह से नलकारी नदियों के साथ-साथ दामोदर और भैरवी नदी का जलस्तर भी काफी बढ़ गया है। नलकारी पतरातू डैम में पानी खतरे के निशान से ऊपर हो गया है। इसकी वजह से पीटीपीएस प्रबंधन ने शनिवार को डैम के फाटक नंबर 3 और 5 को खोल दिया है। दोनों फाटक मिलाकर 1000 क्यूसेक पानी का निकासी की जा रही है। पानी जितनी बड़ी मात्रा चार घंटे तक छोड़ी जाएगी। इसके बाद भी अगर डैम के जल स्तर में कमी नहीं देखा जाएगा तो एक और फाटक को खोला जाएगा।
यह खबर भी पढ़ें: इस रहस्यमय झील के पास आज तक कोई गया वह लौट कर वापस नहीं आया
तटवर्ती इलाकों में रह रहे लोगों को किया गया अलर्ट लगातार बारिश के चलते नलकारी जलाशय पतरातु (पतरातू डैम) का जलस्तर 1328.5 फीट तक पहुंच गया है। इसे देखते हुए पतरातू डैम का एक गेट शुक्रवार देर रात रात्रि 11:30 बजे खोला दिया गया। गेट को 6 इंच तक खोला गया। इसके माध्यम से 250 क्यूसेक प्रति सेकेंड की रफ्तार से जल की निकासी हो रही है।
डीसी माधवी मिश्रा ने बताया कि इस दौरान आम जनों की सुरक्षा के मद्देनजर जिला प्रशासन द्वारा तीव्र गति से नलकारी नदी के आसपास स्थित गांव में रह रहे लोगों को नदी के आसपास ना जाने आदि के प्रति जागरुक करने का कार्य किया जा रहा है।
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भगवान शिव के ये 10 रुद्रावतार है बहुत खास, जानें कहां हैं इनके मंदिर
रुद्रावतार भगवान शिव (रूद्र ) के अवतारों को कहते है । हिन्दू धर्म मान्तया के अनुसार महादेव के 28 रूप धारण किये थे। जिसमे से 10 मुख्य हैं। वेदों में शिव का नाम रुद्र रूप में आया है। रुद्र का मतलब होता है भयानक। रुद्र संहार के देव हैं। विद्वानों के मत से शिव के सभी मुख्य रूप व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष देते है और मनुष्य की रक्षा करने करते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास से ही व्रत और पर्व शुरू हो जाते है। 6 जुलाई से वर्ष 2020 के सावन मास की प्रारम्भ होते है। हिन्दू धर्म में, श्रावण मास का बहुत महत्त्व होता है। उस समय और जब भगवान शिव की आराधना और उनकी भक्ति के लिए कई हिन्दू ग्रंथों में भी, इस माह को विशेष महत्व दिया गया है। मान्यता है कि सावन माह अकेला ऐसा महीना होता है, जब शिव भक्त महादेव को खुश कर, बे��द आसानी से उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। आइए ज��नते हैं भगवान शिव के 10 मुख्य रुद्रावतारों के बारे में-
महाकाल :- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल को माना जाता है। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं। उज्जैन में महाकाल नाम से ज्योतिर्लिंग विख्यात है। उज्जैन में ही गढ़कालिका क्षेत्र में मां कालिका का प्राचीन मंदिर है और महाकाली का मंदिर गुजरात के पावागढ़ में है।
तारा:- शिव के रुद्रावतार में दूसरा अवतार तारा नाम से फेमस है। इस रूप की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं। पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित द्वारका नदी के समीप महाश्मशान में स्थित है तारा पीठ।
बाल भुवनेश :- देवों के देव महादेव का तीसरा रुद्रावतार बाल भुवनेश है। इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना गया है। दस महाविद्या में से एक माता भुवनेश्वरी का शक्तिपीठ उत्तराखंड में है। यह मंदिर ग्राम विलखेत व दैसण के मध्य नारद गंगा के तट पर मणिद्वीप (सांगुड़ा) में स्थित है। इस पावन सरिता का संगम गंगाजी से व्यासचट्टी में होता है, जहां भगवान वेदव्यासजी ने श्रुति और स्मृतियों को वेद पुराणों के रूप में लिपिबद्ध किया था।
षोडश श्रीविद्येश:- भगवान शंकर का चौथा रुद्र अवतार षोडश श्रीविद्येश है। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता है। दस महा-विद्याओं में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं. त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गांव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहा जाता हैं।
भैरव :- शिव के पांचवें रुद्रावतार सबसे प्रसिद्ध माने गए हैं जिन्हें भैरव कहा जाता है। इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं। उज्जैन के शिप्रा नदी तट स्थित भैरव पर्वत पर मां भैरवी का शक्तिपीठ माना गया है, जहां उनके ओष्ठ गिरे थे। हालांकि कुछ विद्वान गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरव पर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। दोनों स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।
छिन्नमस्तक :- छठा रुद्र अवतार छिन्नमस्तक नाम से प्रसिद्ध है. इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं। छिनमस्तिका मंदिर प्रख्यात तांत्रिक पीठ है। दस महाविधाओं में से एक मां छिन्नमस्तिका का विख्यात सिद्धपीठ रामगढ़ में है। मां का प्राचीन मंदिर नष्ट हो गया था। उसके बाद नया मंदिर बनाया गया लेकिन प्राचीन प्रतिमा यहां मौजूद है. दामोदर-भैरवी नदी के संगम पर स्थित इस पीठ को शक्तिपीठ माना जाता है।
द्यूमवान:- शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में सातवां अवतार द्यूमवान नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता है, धूमावती मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ ‘पीताम्बरा पीठ’ के प्रांगण में स्थित हैं। पूरे भारत में यह मां धूमावती का एक मात्र मंदिर है जिसकी मान्यता बहुत अधिक है।
बगलामुख:- शिव का आठवां रुद्र अवतार बगलामुख नाम से जाना जाता है। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता है। दस महाविद्याओं में से एक बगलामुखी के तीन प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं पहला हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित बगलामुखी मंदिर, दूसरा मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित बगलामुखी मंदिर और तीसरा मध्यप्रदेश के शाजापुर में स्थित बगलामुखी मंदिर।
मातंग:- शिव के दस रुद्रावतारों में नौवां अवतार मातंग है। इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता है। मातंगी देवी अर्थात राजमाता दस महाविद्याओं की एक देवी है। मोहकपुर की मुख्य अधिष्ठाता है. देवी का स्थान झाबुआ के मोढेरा में है।
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पुल से एक फीट ऊपर बह रहा भैरवी नदी का पानी, जान जोखिम में डाल लोग कर रहे पारDainik Bhaskar
पुल से एक फीट ऊपर बह रहा भैरवी नदी का पानी, जान जोखिम में डाल लोग कर रहे पारDainik Bhaskar
पोटमदगा-कुल्ही मार्ग में स्थित पुल गुरुवार को भैरवी नदी में समा गया। पुल के एक फीट ऊपर से भैरवी नदी का पानी बह रहा है। इस पुल के माध्यम से पोटमदगा सहित दुलमी प्रखंड के दर्जनों गांव गोला-सिकिदिरी व चारु पथ से जुड़कर रांची व गोला तक पहुंचते थे। पर कुछ लोग जान हथेली पर लेकर इसे अब भी पार कर रहे हैं। वहीं, इसके बगल में बड़े पुल का निर्माण कार्य चल रहा है, जो इस साल भी पूरा होता नजर नहीं आ रहा है।
कई…
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Pancham mahavidya
|| पंचम महाविद्या "छिन्नमस्ता" ||
आज नवरात्री का पांचवा दिवस,
दस महाविद्या में "माता छिन्नमस्ता" भगवती का
पांचवा स्वरूप है।
जिन्हें चिंतपूर्णी , छिन्न-मुंडा,
छिन्न-मुंडधरा, वज्र वैरोचनी,
वज्रवराही, कुल योगिनी, रक्त-नयना,
जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता हैं।
एक बार देवी पार्वती अपनी दो सखियों के साथ
मंदाकिनी नदी में स्नान हेतु गई।
नदी में स्नान करते हुए,
देवी पार्वती काम उत्तेजित हो गई तथा उत्तेजना के फलस्वरूप उनका शारीरिक वर्ण काला पड़ गया।
उसी समय, देवी के संग स्नान हेतु आई दोनों सहचरी
डाकिनी और वारिणी, जो जया तथा विजया नाम से भी जानी जाती
हैं क्षुधा (भूख) ग्रस्त हुई और उन दोनों ने पार्वती देवी से
भोजन प्रदान करने हेतु आग्रह किया।
देवी पार्वती ने उन दोनों सहचरियों को धैर्य रखने के लिये कहा तथा पुनः कैलाश वापस जाकर भोजन देने का आश्वासन दिया।
परन्तु, उनके दोनों सहचरियों को धैर्य नहीं था,
वे दोनों तीव्र क्षुधा का अनुभव कर रहीं थीं तथा कहने लगी!
"देवी आप तो संपूर्ण ब्रह्मांड की माँ हैं और
एक माता अपने संतानों को केवल भोजन ही नहीं
अपितु अपना सर्वस्व प्रदान कर देती हैं।
संतान को पूर्ण अधिकार हैं कि वह अपनी माता से कुछ भी मांग सके,
तभी हम बार-बार भोजन हेतु प्रार्थना कर रहे हैं।
आप दया के लिए संपूर्ण जगत में विख्यात हैं,
परिणामस्वरूप देवी को उन्हें भोजन प्रदान करना चाहिए।"
सहचरियों द्वारा इस प्रकार दारुण प्रार्थना करने पर देवी पार्वती ने उनकी क्षुधा निवारण हेतु, अपने खड़ग से अपने मस्तक को काट दिया,
तदनंतर, देवी के गले से रक्त की तीन धार निकली।
एक धार से उन्हों��े स्वयं रक्त पान किया तथा अन्य दो धाराएं अपनी सहचरियों को पान करने हेतु प्रदान किया।
इस प्रकार देवी ने स्वयं अपना बलिदान देकर
अपनी सहचरियों के क्षुधा का निवारण किया।
छिन्नमस्ता शब्दों दो शब्दों के योग से बना हैं:
प्रथम छिन्न और द्वितीय मस्ता,
इन दोनों शब्दों का अर्थ हैं,
'छिन्न : अलग या पृथक'
तथा 'मस्ता : मस्तक',
देवी छिन्नमस्ता के दाहिने हाथ में स्वयं का कटा हुआ मस्तक रखा हुआ हैं जो उन्होंने स्वयं अपने खड्ग से काटा हैं तथा बायें हाथ में वह खड़ग धारण करती हैं जिससे उन्होंने अपना मस्तक कटा हैं।
देवी के कटे हुए गर्दन से रक्त की तीन धार निकल रही हैं, एक धार से देवी स्वयं रक्त पान कर रही हैं तथा अन्य दो धाराओं से देवी की सहचरी योगिनियाँ रक्त पान कर रही हैं।
दोनों योगिनियों का नाम जया तथा विजया या डाकिनी तथा वारिणी हैं।
देवी, स्वयं तथा दोनों सहचरी योगिनियों के संग सहर्ष रक्त पान कर रही हैं। देवी की दोनों सहचरियां भी नग्नावस्था में खड़ी हैं तथा अपने हाथों में खड़ग तथा मानव खप्पर धारण की हुई हैं।
देवी की सहचरी डाकिनी तमो गुणी (विनाश की प्राकृतिक शक्त)
एवं गहरे वर्ण युक्त तथा वारिणी की उपस्थिति लाल रंग तथा राजसिक गुण (उत्पत्ति से सम्बंधित प्राकृतिक शक्ति) युक्त हैं।
देवी अपने दो सहचरियों के साथ अत्यंत भयानक,
उग्र स्वरूप वाली प्रतीत होती हैं,
क्रोध के कारण उपस्थित महा-विनाश की प्रतीक है!
देवी छिन्नमस्ता की आराधना जैन तथा बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं तथा बौद्ध धर्म में देवी छिन्नमुण्डा वज्रवराही के नाम से विख्यात हैं।
देवी, योग शक्ति, इच्छाओं के नियंत्रण और यौन वासना के दमन की विशेषकर प्रतिनिधित्व करती हैं।
एक परिपूर्ण योगी बनने हेतु,
संतुलित जीवन-यापन का सिद्धांत अत्यंत आवश्यक हैं,
जिसकी शक्ति देवी छिन्नमस्ता ही हैं,
परिवर्तन शील जगत (उत्पत्ति तथा विनाश, वृद्धि तथा ह्रास)
की शक्ति हैं देवी छिन्नमस्ता।
देवी, योग-साधना की उच्चतम स्थान पर अवस्थित हैं।
योग शास्त्रों के अनुसार तीन ग्रन्थियां ब्रह्मा ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि तथा रुद्र ग्रंथि को भेद कर योगी पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर पता हैं तथा उसे अद्वैतानंद की प्राप्ति होती हैं। योगियों का ऐसा मानना हैं कि मणिपुर चक्र के नीचे के नाड़ियों में ही काम और रति का निवास स्थान हैं तथा उसी पर देवी छिन्नमस्ता आरूढ़ हैं तथा इसका ऊपर की ओर प्रवाह होने पर रुद्रग्रंथी का भेदन होता हैं।
कामाख्या के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है।
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 79 किलोमीटर की दूरी रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर है।
रजरप्पा की छिन्नमस्ता को 52 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है।
इसके अलावा ह���माचल प्रदेश के उना जिले में चिंतपूर्णी नामक
माँ छिन्नमस्ता का अन्य शक्ति पीठ भी है,
चिन्तपूर्णी में माता पिण्डी रूप में विद्यमान है
मुख्य नाम : छिन्नमस्ता।
अन्य नाम : छिन्न-मुंडा, छिन्न-मुंडधरा,
आरक्ता, रक्त-नयना, रक्त-पान-परायणा, वज्रवराही।
भैरव : क्रोध-भैरव।
भगवान विष्णु के २४ अवतारों से सम्बद्ध : भगवान नृसिंह अवतार।
तिथि : वैशाख शुक्ल चतुर्दशी।
कुल : काली कुल।
दिशा : उत्तर।
स्वभाव : उग्र, तामसी गुण सम्पन्न।
कार्य : सभी प्रकार के कार्य हेतु दृढ़ निश्चितता,
फिर वह अपना मस्तक ही अपने हाथों से क्यों न काटना हो,
अहंकार तथा समस्त प्रकार के अवगुणों का छेदन करने हेतु शक्ति प्रदाता, कुण्डलिनी जाग्रति में सहायक।
शारीरिक वर्ण : करोड़ों उदित सूर्य के प्रकाश समान कान्तिमयी।
छिन्नमस्ता स्तुति -
नाभौ शुद्धसरोजवक्त्रविलसद्बांधुकपुष्पारुणं
भास्वद्भास्करमणडलं तदुदरे तद्योनिचक्रं महत् ।
तन्मध्ये विपरीतमैथुनरतप्रद्युम्नसत्कामिनी
पृष्ठस्थां तरुणार्ककोटिविलसत्तेज: स्वरुपां भजे ॥
जाप मंत्र -
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा:
शाबर मन्त्र -
सत नमो आदेश,
गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी,
सत का धर्म सत की काया,
ब्रह्म अग्नि में योग जमाया |
काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा,
नाभ कमल पर छिन्नमस्ता,
चन्द्र सूर में उपजी सुषुम्नी देवी,
त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी,
तन का मुन्डा हाथ में लीन्हा,
दाहिने हाथ में खप्पर धार्या |
पी पी पीवे रक्त,
बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली,
श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी |
देवी उमा की शक्ति छाया,
प्रलयी खाये सृष्टि सारी |
चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी
भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ठ
जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी,
श्री शम्भुजती गोरखनाथ जी ने भाखी |
छिन्नमस्ता जपो जाप,
पाप कन्ट्न्ते आपो आप जो जोगी करे सुमिरण
पाप पुण्य से न्यारा रहे, काल ना खाये |
इतना छिन्नमस्ता जाप सम्पूर्ण भया,
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ||
संकलन - योगी अवंतिकानाथ,
गुरु श्री श्री 108 महंत योगी
श्री तुलसीनाथ जी महाराज
(गिरनार)
जय मा�� छिन्नमस्ता
अलख आदेश
ॐ शिव गोरक्ष
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तेज बारिश के बाद भैरवी और दामोदर नदी का जलस्तर बढ़ा, संगम स्थल पर पानी के तेज बहाव में 30 से ज्यादा दुकानें बहीDainik Bhaskar
तेज बारिश के बाद भैरवी और दामोदर नदी का जलस्तर बढ़ा, संगम स्थल पर पानी के तेज बहाव में 30 से ज्यादा दुकानें बहीDainik Bhaskar
पिछले 24 घंटे से रुक रुककर हो रही मूसलाधार बारिश के कारण शुक्रवार को सिद्धपीठ रजरप्पा छिन्नमस्तिका मंदिर प्रक्षेत्र की भैरवी नदी और दामोदर नदी का जलस्तर बढ़ गया है। बारिश ने इलाके के नदी-नालों को भर दिया है। भैरवी के उफानसे नदी के किनारे की 30 से ज्यादा दुकानें जलमग्न हो गई हैं।लॉकडाउन के कारण रजरप्पा मंदिर आम श्रद्धालुओं के लिए बंद है जिसके कारण दुकानें भी बंद है।
नदी के किनारे के…
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