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Team India, Win Indians, Oshi Foundation,Team India Wins, India Wins, Bleed Blue, Indian Cricket Team, Cricket Wins, Proud Indian, Jai Hind, India On Top, Cricket Fever
ओशी फाउंडेशन परिवार की ओर से समस्त देशवासियों को और टीम इंडिया को दिल से बधाई l
"सभी भारतवासियों को बधाई l टीम इंडिया की जीत की खुशी में दिल खुश कर दिया! हमें अपने देश के साहसी खिलाड़ियों पर गर्व है l उनकी मेहनत और समर्पण ने हमें फिर से गर्व से भर दिया है l
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06.04.2025, लखनऊ | रामनवमी के पावन अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में "पुष्प अर्पण" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी डॉ. हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ. रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने भगवान श्री राम जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किये l
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी डॉ. हर्ष वर्धन अग्रवाल ने सभी को श्री राम नवमी की बधाई देते हुए कहा कि, "श्री राम केवल एक भगवान नहीं हैं, वह एक विचार हैं, एक दर्शन हैं । वह सत्य, मर्यादा, त्याग और धर्म के प्रतीक हैं । उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य, समर्पण और न्याय को नहीं छोड़ना चाहिए । भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ, लेकिन उनकी भक्ति केवल अयोध्या तक सीमित नहीं हैं । वे हर भारतवासी के हृदय में बसते हैं । श्री राम भारत की आत्मा एवं संस्कृति हैं । आज जब हम श्रीराम नवमी मना रहे हैं, तो यह केवल उत्सव नहीं, एक संकल्प का अवसर है । आइए हम सब संकल्प लें कि—हम भगवान राम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारे, सत्य की राह पर चलें, समाज में एकता, करुणा और सेवा की भावना को बढ़ावा दें । अंत में यही प्रार्थना है कि —"करुणानिधान प्रभु श्री राम की कृपा चराचर जगत पर बनी रहे । राम नाम का उजाला सबके जीवन में सुख-शांति और मर्यादा लाए । जय श्रीराम !"
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अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का अदम्य साहस और बलिदान अतुलनीय है । मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का उनका संकल्प और त्याग हर भारतवासी के हृदय में अमिट है ।
अमर शहीद भगत सिंह जी, राजगुरु जी, सुखदेव जी के बलिदान दिवस पर उन्हे विनम्र श्रद्धांजलि !
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अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का अदम्य साहस और बलिदान अतुलनीय है । मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का उनका संकल्प और त्याग हर भारतवासी के हृदय में अमिट है ।
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अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का अदम्य साहस और बलिदान अतुलनीय है । मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का उनका संकल्प और त्याग हर भारतवासी के हृदय में अमिट है ।
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अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का अदम्य साहस और बलिदान अतुलनीय है । मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का उनका संकल्प और त्याग हर भारतवासी के हृदय में अमिट है ।
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Cabinet Minister Col. Rajyavardhan Rathore is ensuring quality healthcare for all
कैबिनेट मंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था सुनिश्चित कर रहे हैं
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का जनता ने जताया आभार, जोबनेर में ₹4.66 करोड़ की लागत से नवनिर्मित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सा सेवाएं शुरू

राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री और झोटवाड़ा से लोकप्रिय भाजपा विधायक कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था सुनिश्चित कर रहे हैं। इसी दिशा में जोबनेर में ₹4.66 करोड़ की लागत से नवनिर्मित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में चिकित्सा सेवाएं शुरू हो गई हैं। जिससे आमजन को बहुत राहत मिल रही है। कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का जनता ने इसके लिए आभार जताया है। कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने कहा, हम जनता की सेवा और सुविधाओं के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। यह हमारा वादा है और हम अपने हर वादे पूरे कर रहे हैं।
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने कहा, मोदी सरकार हर भारतवासी के स्वास्थ्य के लिए 4 सूत्रों पर काम कर रही है। पहला- सभी को बीमार होने से बचाना। दूसरा- बीमारी की स्थिति में सस्ता और अच्छा इलाज। तीसरा- बेहतर और आधुनिक अस्पताल, पर्याप्त संख्या में अच्छे डॉक्टर। चौथा- मिशन मोड पर काम करके चुनौतियों को सुलझाना। कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने कहा, चाहे आयुष्मान भारत योजना हो, PHC, CHC से लेकर वेलनेस सेंटर को मजबूत बनाना हो, योग से स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करना हो, या मेडिकल क्षेत्र में सीटों को बढ़ाना हो, आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत कर देश के लोगों के स्वास्थ्य की चिंता की है
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दिमाग़ को हिला देने वाला सच, पढ़ कर आप भी आश्चर्य चकित रह जायेंगे ? (Data might vary)
_जरा सोचिए डाकू कौन ???_____________________________________
भारत में कुल 4120 MLA और 462 MLC हैं अर्थात कुल 4,582 विधायक।
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प्रति विधायक वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 2 लाख का खर्च होता है। अर्थात
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91 करोड़ 64 लाख रुपया प्रति माह। इस हिसाब से प्रति वर्ष लगभ 1100 करोड़ रूपये।
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भारत में लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर कुल 776 सा��सद हैं।
इन सांसदों को वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 5 लाख दिया जाता है।
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अर्थात कुल सांसदों का वेतन प्रति माह 38 करोड़ 80 लाख है। और हर वर्ष इन सांसदों को 465 करोड़ 60 लाख रुपया वेतन भत्ता में दिया जाता है।
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अर्थात भारत के विधायकों और सांसदों के पीछे भारत का प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रूपये खर्च होता है।
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ये तो सिर्फ इनके मूल वेतन भत्ते की बात हुई। इनके आवास, रहने, खाने, यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा आदि का का खर्च भी लगभग इतना ही है।
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अर्थात लगभग 30 अरब रूपये खर्च होता है इन विधायकों और सांसदों पर।
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अब गौर कीजिए इनके सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर।
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एक विधायक को दो बॉडीगार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी कम से कम 5 पुलिसकर्मी और यानी कुल 7 पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती है।
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7 पुलिस का वेतन लगभग (25,000 रूपये प्रति माह की दर से) 1 लाख 75 हजार रूपये होता है।
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इस हिसाब से 4582 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख प्रति वर्ष है।
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इसी प्रकार सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते हैं।
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Z श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं।
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जिन पर सालाना कुल खर्च लगभग 776 करोड़ रुपया बैठता है।
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इस प्रकार सत्ताधीन नेताओं की सुरक्षा पर हर वर्ष लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं।
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*अर्थात हर वर्ष नेताओं पर कम से कम 50 अरब रूपये खर्च होते हैं।*
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इन खर्चों में राज्यपाल, भूतपूर्व नेताओं के पेंशन, पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष , उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है।
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यदि उसे भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च लगभग 100 अरब रुपया हो जायेगा।
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अब सोचिये हम प्रति वर्ष नेताओं पर 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं, बदले में गरीब लोगों को क्या मिलता है ?
*क्या यही है लोकतंत्र ?*
*(यह 100 अरब रुपया हम भारत वासियों से ही टैक्स के रूप में वसूला गया होता है।)*
_एक सर्जिकल स्ट्राइक यहाँ भी बनती है_
◆ भारत में दो कानून अवश्य बनना चाहिए
→पहला - चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध
नेता केवल टेलीविजन ( टी वी) के माध्यम से प्रचार करें
→दूसरा - नेताओं के वेतन भत्तो पर प्रतिबंध
| तब दिखाओ देशभक्ति |
प्रत्येक भारतवासी को जागरूक होना ही पड़ेगा और इस फिजूल खर्ची के खिलाफ बोलना पड़ेगा ?
*इस मेसेज़ को जितना हो सके फेसबुक और व्हाट्सअप ग्रुप में फॉरवर्ड कर अपनी देश भक्ति का परिचय दें।*
सादर निवेदन
माननीय PM and CM जी,
कृपया सारी *योजना बंद कर दीजिये।*
सिर्फ
*सांसद भवन जैसी कैन्टीन हर दस किलोमीटर पर खुलवा दीजिये ।*
सारे झगड़े ख़त्म।
*29 रूपये में भरपेट खाना मिलेगा..*
80% लोगों को घर चलाने का झगड़ा ख़त्म।
*ना सिलेंडर लाना, ना राशन*
और
घर वाली भी खुश ।
*चारों तरफ खुशियाँ ही रहेगी।*
फिर हम कहेंगे सबका साथ सबका विकास ।
*सबसे बड़ा फायदा 1र् किलो गेहूँ नहीं देना पड़ेगा*
और
*PM जी को ये ना कहना पड़ेगा कि मिडिल क्लास के लोग अपने हिसाब से घर चलाएँ ।*
इस पे गौर करें
कृपया कड़ी मेहनत से प्राप्त हुई ये जानकारी देश के हर एक नागरिक तक पहुँचाने की कोशिश करे ।
शान है या छलावा...।
पूरे भारत में एक ही जगह ऐसी है जहाँ खाने की चीजें सबसे सस्ती है ।
चाय = 1.00
सुप = 5.50
दाल= 1.50
खाना =2.00
चपाती =1.00
चिकन= 24.50
डोसा = 4.00
बिरयानी=8.00
मच्छी= 13.00
ये *सब चीज़ें सिर्फ गरीबों के लिए है और ये सब Available है Indian Parliament Canteen में।*
और उन *गरीबों की पगार है 5,00,000 रूपये महीना वो भी बिना income tax के ।*
आपके Mobile में जितने भी नम्बर save है सबको forward करें ताकि सबको पता चले …
कि यही कारण है कि इन्हें लगता है कि जो *आदमी 30 या 32 रूपये रोज़ कमाता है वो ग़रीब नहीं है।*
*Jokes तो हर रोज़ Forward करते हैं, आज इसे भी Forward करें और भारतीय जनता को जागरूक करें।*

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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1383.
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से विचलित थे भारतेंदु हरिश्चंद्र
- कामिनी मोहन पाण्डेय।

मुंशी प्रेमचंद ने लिखा है कि जिन्होंने राष्ट्र का निर्माण किया है उनकी कृति अमर हो गई है। त्याग तपस्या और बलिदान 1857 की क्रांति के रणबांकुरों ने ही नहीं किया बल्कि उससे प्रभावित होकर कई लेखकों, साहित्यकारों, पत्रकारों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उसी त्याग की भावना व संघर्ष की प्रेरणा को जगाने में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने महती भूमिका निभाई।
भारतेंदु ने भारत की स्वाधीनता, राष्ट्र उन्नति और सर्वोदय भावना का विकास किया। आज के संदर्भ में बात करें तो भारतेंदु ने हीं देश के सभी पत्रकारों, संपादकों व लेखकों को देश की दुर्दशा यानी देश की दशा और दिशा को समझने का मंत्र दिया। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की हुंकार की गूंज के बाद इस संबंध पर बेतहाशा लेखन और पठन-पाठन हुआ। उस समय क्रांति के असफल होने के बाद जब निराशा का बीज व्याप्त हो गया था, तब समाज की दुर्दशा देखकर भारतेंदु का हृदय काफी व्यथित हुआ। देश की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक गिरावट देखकर वह तिलमिला उठे थे। देश की दशा पर उनकी अभिव्यक्ति थी- "हां हां भारत दुर्दशा न देखी जाई।" उनके इस प्रलाप पर भारत आरत, भारत सौभाग्य, वर्तमान-दशा, देश-दशा, भारत दुर्दिन जैसे नवजागरण की पोषक रचनाएँ प्रकाशित हुई।
इनमें देश के प्राचीन गौरव के स्मरण, समाज में व्याप्त आलस्य तथा देश की दीनता का वर्णन होता था। ��्रांति के समय एवं उसके बाद स्वदेशाभिमानी पत्रकारों ने अपनी विवेचना शक्ति के बल पर जनमानस को सशक्त अभिव्यक्ति दी। उस समय हिंदी अपने विकास के नए आयाम गढ़ रही थी। सारे प्रतिरोधों के बीच पत्रकारिता की पैनी नज़र खुल चुकी थी। ऐसे में स्वाभिमान के संचार व स्वदेश प्रेम के उदय तथा आंग्ल शासन के प्रबल प्रतिरोध पत्रों में प्रकाशित तत्वों में दिखता था। पत्र और पत्रकार ख़ुद स्वतंत्रता आंदोलन के सक्षम सेनानी बन गए थे। अन्याय, अज्ञान, प्रपीड़न व प्रव॔चना के संहारक समाचार पत्रों ने ही हिंदी पत्रकारिता की आधारशिला रखी थी।
राष्ट्र उत्थान की दृष्टि से इतिहास एवं पत्रकारिता दोनों संश्लिष्ट हैं। राष्ट्रीय अस्मिता को समर्पित भारतेंदु की रचनाओं का मूलाधार गौरव की वृद्धि रहा है। नौ सितंबर 1850 को काशी में जन्मे भारतेंदु को हिंदी पत्रकारिता का आधार स्तंभ कहा जाता है। भारतेंदु द्वारा पत्रकारिता में देश प्रेम के लिए जलाई गई अलख काशी में अब भी दिखती है। इसका कारण यह है कि यहाँ जो पैदा हुआ वह भी गुरु जो मर गया वह भी गुरु होता है। यहाँ किसी बात के लिए कोई हाय-हाय नहीं है।
काशी की हिंदी पत्रकारिता की नींव 1845 में बनारस अखबार के रूप में पड़ी। इसके बारह साल बाद देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम आम लोगों को गहरे तक प्रभावित कर गया था। क्रांति का बिगुल काशी में भी सुनाई दिया। क्रांति के दौर में देश की आज़ादी के लिए यहाँ कई अख़बार प्रकाशित होते रहे। स्वाभिमान के साथ उठ खड़े होने को आमजन और क्रांतिकारियों को जो उसे से भरते रहे।
प्रमुख प्रकाशनों में कवि वचन सुधा (1867) हरिश्चंद्र मैगजीन (1875), हरिश्चंद्र चंद्रिका (1879) में भारतेंदु का मूल मंत्र सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति जगाना तथा सभी जातियों के अंदर स्वाभिमान का भाव भरना था। वे मानते थे कि "जिस देश में और जिस समाज में उसी समाज और उसी देश की भाषा में समाचार पत्रों का जब तक प्रचार नहीं होता, तब तक उसे देश और समाज की उन्नति नहीं हो सकती। समाचार पत्र राजा और प्रजा के वकील है। समाचार पत्र दोनों की ख़बर दोनों को पहुँचा सकता है जहाँ सभ्यता है, वहीं स्वाधीन समाचार पत्र है"।
देश में लकड़ी बीनने वाले से लेकर लकड़ी का तमाशा दिखाने वाले तक सभी ने क्रांति के जयकारे में लकड़ी बजाते हुए आहुति दी थी। यह वह दौर था, जिस पर क्रांति ने अपना असर गहरे तक छोड़ा था। इसी का परिणाम रहा कि देश के हर नौजवान ने अपनी छाती अंग्रेजों की गोलियाँ खाने के लिए चौड़ी क�� ली थी। अल्पायु में ही भारतेंदु अपने युग का प्रतिनिधित्व करने लगे थे रचनात्मक लेखन, पत्रकारिता के माध्यम से भारतेंदु ने देश की राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों पर अपने आक्रामक तेवर के साथ संवेदन पूर्ण विचारों से सार्थक हस्तक्षेप किया था। साहित्य को उन्होंने जनसामान्य के बीच लाकर खड़ा कर दिया था।
घोर उथल-पुथल के बावजूद उनके काल में साहित्यिक विचारों के कारण आत्ममंथन शुरू हो गया था। वे ब्रिटिश राज की कार्यप्रणाली पर जमकर बरसते थे। हर समस्या के प्रति भारतेंदु का दृष्टिकोण दूरगामी होता था। वे वैचारिक क्रांति लाने के लिए हर घड़ी प्रतिबद्ध दिखते थे। भारतेंदु चाहते थे कि भारतवासी स्वयं आत्मोत्थान और देशोत्थान में सक्रिय हो। यह बात आज भी प्रासंगिक है कि आर्थिक उत्थान से ही देश का भला हो सकता है।
आर्थिक लूट पर वे लिखते हैं-
भीतर-भीतर सब रस चूसै, बाहर से तन-मन-धन मूसै।
जाहिर बातन में अति तेज, क्यों सखि सज्जन नहिं अंग्रेज अंग्रेजों।।
अंग्रेजों को अपना भाग्य विधाता मानने वालों को भारतेंदु ने झकझोरा था। कविवचन सुधा में वे लिखते हैं- "देशवासियों तुम इस निद्रा से चौको, इन अंग्रेजों के न्याय के भरोसे मत फूले रहो।... अंग्रेजों ने हम लोगों को विद्यामृत पिलाया और उससे हमारे देश बांधवों को बहुत लाभ हुए, इसे हम लोग अमान्य नहीं करते, परंतु उन्हीं के कहने के अनुसार हिंदुस्तान की वृद्धि का समय आने वाला हो, सो तो, एक तरफ रहा, पर प्रतिदिन मूर्खता दुर्भिक्षता और दैन्य प्राप्त होता जाता है।... अख़बार इतना भूंकते हैं, कोई नहीं सुनता। अंधेर नगरी है। व्यर्थ न्याय और आज़ादी देने का दावा है।"
गांधीजी की कई नीतियों व योजनाओं के बीज भारतेंदु साहित्य में पहले ही आ चुके थे। भारतीय धर्मनिरपेक्षता, जाति निरपेक्षता, जो भारतीय संविधान के मूलाधार है, उन पर भारतेंदु के चिंतन में तात्कालिकता ही नहीं, भविष्योन्मुखता भी थी। वे हिंदू व मुसलमानों के प्रति भाईचारे का भाव रखने को प्रेरित करते थे। कहना ही पड़ता है कि देश के विकास उसकी उन्नति के लिए भारतेंदु स्वदेशी और राष्ट्रीयता के संदर्भ में दूरगामी अंतर्दृष्टि रखते थे।
समय बदल गया, हम आज़ाद हैं। भारत वही है। संविधान वही है। भारत में रहने वाल��� जीव-जंतु, पशु-पक्षी और मनुष्य भी वही है। विभिन्न धर्मों, मज़हबों,पंथों को मानने वाले मुसलमानों के सभी फ़िरक़ों, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाईयों तथा सनातन धर्म की गहराई में उतरने वाले हिन्दू क्रांति के बीज को आज भी वृक्ष बनते देखते हैं। उन विचारों की जो भारतेंदु के समय लोगों तक पत्रकारिता के माध्यम से पहुंचे थे, वे विचार आज भी प्रासंगिक हैं। देश के लोगों को इसकी परम आवश्यकता है।
- © Image art by Chandramalika
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तुलसीदास और राम की शक्तिपूजा

Tulsidas and Ram Ki Shakti Pooja
बीसवीं सदी का तीसरा दशक भारत के एतिहासिक विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रगति-चिह्न रहा है। देश में मुक्ति-संघर्ष ने इस काल में सार्वजनिक व्यापकता को किया जिसमें मो.क. गांधी के नेतृत्व में संचालित सविनय अवज्ञा आन्दोलन का बड़ा हाथ था। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता और सामाजिक बंधनमुक्ति की खातिर जूझनेवाली जनता और बाहरी तथा भीतरी प्रतिक्रिया के बीच, जो देश में औपनिवेशिक व्यवस्था को बनाए रखने का प्रयत्न कर रही थी, प्रतिद्वन्द्व लगातार उग्र होता गया। भारत का आज़ादी का संघर्ष विश्वव्यापी क्रान्ति प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया। घटनाओं के द्रुत विकास के फलस्वरूप इस संघर्ष के सिद्धान्त एवं व्यवहार सम्बन्धी तात्कालीक महत्व की समस्याएं निरंतर बढ़ती हुई तीव्रता के साथ सामने आती रही।
भारत के साहित्यविद डा. नगेन्द्र लिखते हैं, "हजारों मील दूर बैठे हुए दीन और दलित भारतवासी साम्यवाद के उस स्वर्ग को ललचाई आंखों से देखने लगे। दूर से उन्हें उसका हंसता हुआ वैभव ही दीख पड़ता था हिदी साहित्य इस बदलती हुई विचारधारा से अस्पष्ट कैसे रहता ?"
तीसरे दशक में भारतीय साहित्य में बड़े परिवर्तन आए। सभी अग्रणी लेखकों को एकजुट करने के आन्दोलन के फलस्वरूप भारत के प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना सन् 1936 में हुई। लेखकों में यह विचार फैलता और सहानुभूति पाता गया कि साहित्य को सामाजिक प्रगति में ह���थ बांटना चाहिए। राष्ट्रीय चेतना के जागरणकाल में, अर्थात् 19वीं सदी के अन्त में और 20वीं सदी के आरम्भ में, श्रमिक जनता की व्यथा और दुर्दशा की ओर ध्यान दिलाने और विशेष सुविधा-प्राप्त हलकों में उसके प्रति सहानुभूति और प्रेम उत्पन्न करने की चेष्टा करके ही भारतीय साहित्य में जन-तन मुख्य रूप से प्रकट किया जाता था।
हिन्दी और उर्दू के अमर साहित्यकार प्रेमचन्द ने तब कहा था कि मनुष्य में उदार प्रवृत्तियाँ जगाना, मानवता की भावना उत्पन्न करना साहित्य का कर्तव्य है। सन् 1936 में उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता के जीवन की बुनियादी समस्याओं से सम्बन्ध रखना भारत के नये साहित्य के लिए अनिवार्य है। ये हैं श्रमिक जनता की अनर्थकारी कंगाली, सामाजिक अवनति और राजनैतिक पराधीनता ।
कुछ कवि जिनमें छायावादी भी थे, अपनी रचनाओं से पराजय वादी मनोवृत्ति प्रकट करने लगे या वर्तमान काल की महत्वपूर्ण समस्याओं से मुह फेर लेने का पलायनवादी रूख अपनाने लगे। उदाहरणतः हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन (जन्म 1908) में उस समय हासोन्मुख मनोवृत्ति प्रबल थी। "एकान्त संगीत" शीर्षक प्रगीत-मुक्तक में उन्होंने लिखा था-
"कितना अकेला आज मैं !
संघर्ष में टूटा हुआ दुर्भाग्य से लूटा हुआ ।....
कवि की ईश्वर से केवल यही प्रार्थना है कि वह अब उसे इस संसार से मुक्ति दे, क्योंकि उसके सारे विश्वास टूट रहे हैं।
"अब खंडहर भी टूट रहा है,
महामरण में ही जीवन है।
था विश्वास कभी मेरा भी,
किन्तु आज तो टूट रहा है।....."
इन वर्षों में हिन्दी कविता में रहस्यवाद का विशेष प्रसार हुआ। महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा (जन्म 1905) आदि कवियों की रचनाओं में यह बहुत स्पष्ट रूप से लक्षित होता था । 'यामा शीर्षक संग्रह' में संकलित प्रगीतों में महादेवी वर्मा यह विचार व्यक्त करती है कि मनुष्य का जन्म परमात्मा से उसकी आत्मा के विरह का आरम्भ था-
"जन्म ही उसे विरह की रात,
सुनाने क्या वह मिलन-प्रभात।"
सृजन-स्वतन्त्र की घोषणा करनेवाले कई कवि केवल समाज के प्रभाव से स्वतंत्रता के अर्थ में उसकी व्याख्या करते थे। उनकी कविताओं में जैन तत्व का अभाव था।
परन्तु निराला ने दूसरा ही मार्ग अपनाया। छायावाद के प्रवर्तक के नाते पंत के साथ उन्होंने सबसे पहले यह देखा कि प्रतीकात्मक प्रगीत मुक्तक समय की आवश्यकताएं पूरी नहीं करता; जैसे पंत ने कहा था, "युगवाणी को मुखरित करने चे" वह असमर्थ है, निराला ने बताया कि साहित्यिक धारा के रूप में छायावाद निःसत्व हो गया है। शाश्वतता सम्बन्धी आहां और अज्ञात प्रेमी से विरह-सम्बन्धी कराहों से, अथवा वास्तविक जगत् से बवकर मायालोक से शरण लेने से अन्याय एवं उत्पीड़न से छूटना असम्भव है।
भारत के साहित्यविद् समझते हैं कि निराला के कृतित्य का प्रथम चरण तीसरे दशक के मध्य तक समाप्त हो गया था। गहरे सामाजिक तात्पर्य से भरे ये प्रगीत-मुक्तक निराला के विचारों में हुई महत्वपूर्ण प्रगति, श्रमिक जनता की दुर्दशा पर उनके बढ़ते हुए ध्यान तथा उसका कष्ट दूर करने की उनकी तीव्र इच्छा पर प्रकाश डालते हैं।
निराला ने दो प्रबन्ध-काव्य, 'राम की शक्तिपूजा' (1936) और 'तुलसीदास' (1938), लिखे। तीसरे दशक के उनके कृतित्व में इनको केन्द्रीय महत्व की रचनाएँ मानी जा सकती है।
तुलसीदास-कृत 'रामचरितमानस' की कथावस्तु पर आधारित 'राम की शक्तिपूजा' काव्य में अदम्य साहस और विजय की संकल्प-दृढ़ता की प्रतिमूर्ति राम के पात्र का निराला चित्रण करते हैं। रावण और उसकी राक्षस-सेना से राम और उनकी वानर-सेना के संग्राम का वर्णन काव्य का केन्द्र बिन्दु है।
इस काव्य में राम मानव-भावनाओं और हर्ष-विषाद की अनुभूतियों से अस्पष्ट देवता नहीं प्रतीत होते। पत्नी सीता की दशा पर वह उद्विग्न हो उठते हैं, उसके विरह से पीड़ित होते हैं, संग्राम से पहले चिन्तित होते हैं, इत्यादि । समस्त काव्य का मूल मन्त्र का यह आह्वान है कि "पृथ्वी पर अन्याय को जो सहारा देते हैं, उनसे जूझो !"
कवि यह कहना चाहते हैं कि संघर्ष में मनुष्य की शक्ति घट सकती है, अस्थायी हारें हो सकती हैं, पर उसे हताश नहीं होना चाहिए। यदि वह न्याय के लिए लड़ता है, तो उसे विजय से कुछ भी नहीं रोक सकता।
निराला के दूसरे प्रबन्ध-काव्य 'तुलसीदास' का प्रधान विचार यह है कि मनुष्य की सेवा अन्य सभी भावनाओं और इच्छाओं से श्रेयस्कर है।
पारिवारिक सुख को भूलकर तुलसीदास अपना जीवन, अपनी सारी शक्तियां और विचार जन सेवा में लगा देते हैं। कष्टग्रस्त और हताश लोगों को राम के बारे में तथा शोक और दुर्भाग्य से जग के अवश्यंभावी विमोचन के बारे में गीतों से वह प्रोत्साहन देते हैं। 'तुलसीदास' काव्य की कई पंक्तियां ऐसी लगती हैं; मानो आज के लोगों को सम्बन्धित कर कही गई हों-
"जागो, जागों, आया प्रभात,
बीती वह बीती अंध रात,
झरता भर ज्योतिर्मय प्रपात पूर्वाचल;
बांधों, बांधों किरणें चेतन,
आती भारत की ज्योतिर्धन महिमाबल ।"
निराला के मत में तुलसीदास ने रामचरित का काव्य इस उद्देश्य से रचा था कि लोगों में आत्मविश्वास तथा अन्याय पर विजय पाने की अपनी क्षमता में विश्वास कर सकें -
"होगा फिर से दृर्घर्ष समर
जड़ से चेतन का निशिवासर;
कवि का प्रति छवि से जीवनहर, जीवन भर;
भारती इधर, है उधर सकल
जड़ जीवन के संचित कौशल;"
- एम. सरस्वती
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दिवाली पर भारतवासी माता सीता को घर से निकालने का शोक क्यों नहीं मनाते । ...
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माननीय प्रधानमंत्री जी,
आपके धन्यवाद पत्र हेतु हमारा हार्दिक आभार । आपका पत्र प्राप्त होना हमारे लिए अत्यंत सम्मान और गर्व की बात है । आपका दूरदर्शी एवं प्रेरणादायी व्यक्तित्व प्रत्येक भारतवासी के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहा है । हम भगवान श्री राम से प्रार्थना करते हैं कि आपका जीवन सदा सुख, समृद्धि एवं वैभव से परिपूर्ण रहे।
हम यह आश्वासन देते हैं कि हम, हमारा परिवार, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के सभी पदाधिकारी, आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य, स्वयंसेवक और हमसे जुड़े हुए सभी लोग देशहित और जनहित में आपके मूल मंत्र "सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास" को साकार करने हेतु समर्पित हैं।साथ ही, हम विकसित भारत और India Vision 2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ कार्यरत रहेंगे।
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विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा ।
समस्त देश वासियों को राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज प्रत्येक भारतवासी को शांति, समृद्धि और सदैव गतिशील रहने की प्रेरणा देता है और हम सभी में राष्ट्र प्रेम व गौरव का संचार करता है ।
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