श्री विंध्यवासिनी माता चालीसा – हिंदी अर्थ सहित (Shree Vindhyeshwari Chalisa – With Meaning)
श्री विंध्यवासिनी माता चालीसा – हिंदी अर्थ सहित (Shree Vindhyeshwari Chalisa – With Meaning)
श्री विन्ध्येश्वरी माता चालीसा विडियो
श्री विन्ध्येश्वरी माता चालीसा (Vindhyeshwari Chalisa)
।। दोहा ।।
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब।
सन्तजनों के काज में, करती नहीं विलम्ब।।
।। चौपाई ।।
जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदिशक्ति जगविदित भवानी।।
सिंह वाहिनी जै जगमाता। जै जै जै त्रिभुवन सुखदाता।।
कष्ट निवारिनि जय जग देवी। जै जै सन्त असुर सुर सेवी।।
महिमा अमित अपार तुम्हारी। शेष सहस मुख वर्णत…
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण
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पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर् देव) जी की अमृतवाणी में सृष्टि रचना
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अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टि रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टि की कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्माण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही पूजा करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं। जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा? भक्तजन विचार करें कि श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की स्थिति अविनाशी बताई गई थी। सर्व हिन्दु समाज अभी तक तीनों परमात्माओं को अजर, अमर व जन्म-मृत्यु रहित मानते रहे जबकि ये तीनों नाश्वान हैं। इन के पिता काल रूपी ब्रह्म तथा माता दुर्गा (प्रकृति/अष्टांगी) हैं जैसा आप ने पूर्व प्रमाणों में पढ़ा यह ज्ञान अपने शास्त्रों में भी विद्यमान है परन्तु हिन्दु समाज के कलयुगी गुरूओं, ऋषियों, सन्तों को ज्ञान नहीं। जो अध्यापक पाठ्यक्रम (सलेबस) से ही अपरिचित है वह अध्यापक ठीक नहीं (विद्वान नहीं) है, विद्यार्थियों के भविष्य का शत्रु है। इसी प्रकार जिन गुरूओं को अभी तक यह नहीं पता कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी के माता-पिता कौन हैं? तो वे गुरू, ऋषि,सन्त ज्ञान हीन हैं। जिस कारण से सर्व भक्त समाज को शास्त्र विरूद्ध ज्ञान (लोक वेद अर्थात् दन्त कथा) सुना कर अज्ञान से परिपूर्ण कर दिया। शास्त्रविधि विरूद्ध भक्तिसाधना करा के परमात्मा के वास्तविक लाभ (पूर्ण मोक्ष) से वंचित रखा सबका मानव जन्म नष्ट करा दिया क्योंकि श्री मद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में यही प्रमाण है कि जो शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण पूजा करता है। उसे कोई लाभ नहीं होता पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने पाँच वर्ष की लीलामय आयु में सन् 1403 से ही सर्व शास्त्रों युक्त ज्ञान अपनी अमृतवाणी (कविरवाणी) में बताना प्रारम्भ किया था। परन्तु उन अज्ञानी गुरूओं ने यह ज्ञान भक्त समाज तक नहीं जाने दिया। जो वर्तमान में सर्व सद्ग्रन्थों से स्पष्ट हो रहा है इससे सिद्ध है कि कर्विदेव (कबीर प्रभु) तत्वदर्शी सन्त रूप में स्वयं पूर्ण परमात्मा ही आए थे।
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*🐂 गाय के किस अंग में है कोन से देवता का वास 🐂*
साधु संत कहते हैं कि जो मनुष्य प्रातः स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग- प्रत्यंग में दिव्य शक्तियां होने का वर्णन मिलता है।
गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज में प्रजापति और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित है मान्यता है।
गौ को के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है। यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक केवल प���ु न मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है।
*गाय के अंगों में देवी देवताओं का निवास*
पद्म पुराण के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास है। उसके सींगों में भगवान शिव और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं। गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सींग के अग्रभाग में इंद्र, दोनों कानों में अश्वनी कुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिव्हा (जीभ) में सरस्वती, अपान (गुदा) में समस्त तीर्थ, मूत्र स्थान में गंगा जी, रोमकुपो में ऋषिगण, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं।
भविष्य पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्मांड पुराण, महाभारत में भी गौ के अंग-प्रत्यंग में देवी देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।
गायों का समूह जहां बैठकर आराम से स्वांस लेता है उस स्थान की ने केवल शोभा बढ़ाती है, अपितु वँहा का सारा पाप भी नष्ट हो जाता है। तीर्थो में स्नान दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास, जप-तप और हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है। वही पुन्य गौसेवा गौमाता को भोजन चारा खिलाने से प्राप्त हो जाता है।
गौसेवा से दुख दुर्भाग्य दूर होता है और घर में सुख समृद्धि आती है। जो मनुष्य गौ की श्रद्धापूर्वक सेवा करते हैं, देवता उन पर सदैव प्रसन्न रहते हैं जिसके फलस्वरूप घर मे धन-धान्य सुख समृद्धि आती है।
अमावश्या पर गौसेवा गौमाताओं को भोजन चारा इत्यादि खिलाने से पितृगण प्रश्नन होते हैं जिसके फलस्वरूप वंश में वृद्धि संतान उतपत्ति पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
जिस घर में भोजन करने से पूर्व गौग्रास निकाला जाता है उस परिवार में अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती।
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शरणागति प्राप्ति हेतु करें भवान्यष्टकम् का पाठ
भवान्यष्टकम् स्तोत्र पाठ एक प्राचीन संस्कृत श्लोक संग्रह है जो माँ भवानी, देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति की प्रशंसा करता है। इस स्तोत्र में उनके गुणों, विशेषताओं और महाकाव्यताओं का वर्णन किया गया है, जो उन्हें दिव्य और अद्वितीय बनाते हैं।यह श्लोक श्रद्धालुओं के द्वारा पढ़ा जाता है ताकि वे भगवान शिव के आशीर्वाद को प्राप्त कर सकें और अपने जीवन में शांति और समृद्धि का अनुभव कर सकें।
Read more - https://vaikunth.co/blogs/bhavanyashtakam-stotra-path
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( #Muktibodh_Part277 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part278
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 530-531
“माता (दुर्गा) द्वारा ब्रह्मा को शाप देना”
तब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुझे तेरे पिता के दर्शन हुए? ब्रह्मा ने कहा हाँ मुझे पिता के दर्शन हुए हैं। दुर्गा ने कहा साक्षी बता। तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष साक्षात्कार हुआ है।
देवी ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है तब दोनों ने कहा कि हाँ, हमने अपनी आँखों से देखा है। फिर भवानी (प्रकृति) को संशय हुआ कि मुझे तो
ब्रह्म ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूँगा, परन्तु ये कहते हैं कि दर्शन हुए हैं। तब अष्टंगी ने ध्यान लगाया और काल/ज्योति निरंजन से पूछा कि यह क्या कहानी है? ज्योति निंरजन जी
ने कहा कि ये तीनां झूठ बोल रहे हैं। तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो। आकाशवाणी हुई है कि इन्हें कोई दर्शन नहीं हुए। यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि माता जी मैं सौगंध खाकर
पिता की तलाश करने गया था। परन्तु पिता (ब्रह्म) के दर्शन हुए नहीं। आप के पास आने में शर्म लग रही थी। इसलिए हमने झूठ बोल दिया। तब माता (दुर्गा) ने कहा कि अब मैं तुम्हें शॉप देती हूँ।
ब्रह्मा को शॉप :- तेरी पूजा जगत में नहीं होगी। आगे तेरे वंशज होंगे वे बहुत पाखण्ड करेंगे। झूठी बात बना कर जगत को ठगेंगे। ऊपर से तो कर्म काण्ड करते दिखाई देंगे अन्दर से विकार करेंगे। कथा पुराणों को पढ़कर सुनाया करेंगे, स्वयं को ज्ञान नहीं होगा कि सद्ग्रन्थों में वास्तविकता क्या है, फिर भी मान वश तथा धन प्राप्ति के लिए गुरु बन कर अनुयाइयों को
लोकवेद (शास्त्र विरुद्ध दंत कथा) सुनाया करेंगे। देवी-देवों की पूजा करके तथा करवाके, दूसरों की निन्दा करके कष्ट पर कष्ट उठायेंगे। जो उनके अनुयाई होंगे उनको परमार्थ नहीं
बताएंगे। दक्षिणा के लिए जगत को गुमराह करते रहेंगे। अपने आपको सबसे श्रेष्ठ मानेंगे, दूसरों को नीचा समझेंगे। जब माता के मुख से यह सुना तो ब्रह्मा मुर्छित होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय उपरान्त होश में आया।
गायत्री को शॉप : -- तेरे कई सांड पति होंगे। तू मृतलोक में गाय बनेगी।
पुहपवति को शॉप : -- तेरी जगह गंदगी में होगी। तेरे फूलों को कोई पूजा में नहीं लाएगा। इस झूठी गवाही के कारण तुझे यह नरक भोगना होगा। तेरा नाम केवड़ा केतकी होगा। (हरियाणा में कुसोंधी कहते हैं। यह गंदगी (कुरडियों) वाली जगह पर होती है।)
इस प्रकार तीनों को शाप देकर माता भवानी बहुत पछताई। {इस प्रकार पहले तो जीव बिना सोचे मन (काल निरंजन) के प्रभाव से गलत कार्य कर देता है परन्तु जब आत्मा (सतपुरूष अंश) के प्रभाव से उसे ज्ञान होता है तो पीछे पछताना पड़ता है। जिस प्रकार
माता-पिता अपने बच्चों को छोटी सी गलती के कारण ताड़ते हैं (क्रोधवश होकर) परन्तु बाद में बहुत पछताते हैं। यही प्रक्रिया मन (काल-निंरजन) के प्रभाव से सर्व जीवों में क्रियावान हो रही है।} हाँ, यहाँ एक बात विशेष है कि निरंजन (काल-ब्रह्म) ने भी अपना कानून बना रखा है कि यदि कोई जीव किसी दुर्बल जीव को सताएगा तो उसे उसका बदला देना पड़ेगा। जब आदि
भवानी (प्रकृति, अष्टंगी) ने ब्रह्मा, गायत्री व पुहपवति को शाप दिया तो अलख निंरजन (ब्रह्म-काल) ने कहा कि हे भवानी (प्रकृति/अष्टंगी) यह आपने अच्छा नहीं किया। अब मैं
(निरंजन) आपको शाप देता हूँ कि द्वापर युग में तेरे भी पाँच पति होंगे। (द्रोपदी ही आदिमाया का अवतार हुई है।) जब यह आकाश वाणी सुनी तो आदि माया ने कहा कि हे ज्योति निंरजन (काल) मैं तेरे वश पड़ी हूँ जो चाहे सो कर ले।
{सृष्टि रचना में दुर्गा जी के अन्य नामों का बार-बार लिखने का उद्देश्य है कि पुराणों, गीता तथा वेदों में प्रमाण देखते समय भ्रम उत्पन्न नहीं होगा। जैसे गीता अध्याय 14 श्लोक 3-4 में काल ब्रह्म ने कहा है कि प्रकृति तो गर्भ धारण करने वाली सब जीवों की माता है। मैं उसके
गर्भ में बीज स्थापित करने वाला पिता हूँ। श्लोक 4 में कहा है कि प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण जीवात्मा को कर्मों के बँधन में बाँधते हैं। - (लेख समाप्त)।
इस प्रकरण में प्रकृति तो दुर्गा है तथा तीनों गुण तीनों देवता यानि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव के सांकेतिक नाम हैं।}
क्रमशः_____
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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“माता (दुर्गा) द्वारा ब्रह्मा को शाप देना”
तब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुझे तेरे पिता के दर्शन हुए? ब्रह्मा ने कहा हाँ मुझे पिता के दर्शन हुए हैं। दुर्गा ने कहा साक्षी बता। तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष साक्षात्कार हुआ है।
देवी ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है तब दोनों ने कहा कि हाँ, हमने अपनी आँखों से देखा है। फिर भवानी (प्रकृति) को संशय हुआ कि मुझे तो
ब्रह्म ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूँगा, परन्तु ये कहते हैं कि दर्शन हुए हैं। तब अष्टंगी ने ध्यान लगाया और काल/ज्योति निरंजन से पूछा कि यह क्या कहानी है? ज्योति निंरजन जी
ने कहा कि ये तीनां झूठ बोल रहे हैं। तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो। आकाशवाणी हुई है कि इन्हें कोई दर्शन नहीं हुए। यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि माता जी मैं सौगंध खाकर
पिता की तलाश करने गया था। परन्तु पिता (ब्रह्म) के दर्शन हुए नहीं। आप के पास आने में शर्म लग रही थी। इसलिए हमने झूठ बोल दिया। तब माता (दुर्गा) ने कहा कि अब मैं तुम्हें शॉप देती हूँ।
ब्रह्मा को शॉप :- तेरी पूजा जगत में नहीं होगी। आगे तेरे वंशज होंगे वे बहुत पाखण्ड करेंगे। झूठी बात बना कर जगत को ठगेंगे। ऊ��र से तो कर्म काण्ड करते दिखाई देंगे अन्दर से विकार करेंगे। कथा पुराणों को पढ़कर सुनाया करेंगे, स्वयं को ज्ञान नहीं होगा कि सद्ग्रन्थों में वास्तविकता क्या है, फिर भी मान वश तथा धन प्राप्ति के लिए गुरु बन कर अनुयाइयों को
लोकवेद (शास्त्र विरुद्ध दंत कथा) सुनाया करेंगे। देवी-देवों की पूजा करके तथा करवाके, दूसरों की निन्दा करके कष्ट पर कष्ट उठायेंगे। जो उनके अनुयाई होंगे उनको परमार्थ नहीं
बताएंगे। दक्षिणा के लिए जगत को गुमराह करते रहेंगे। अपने आपको सबसे श्रेष्ठ मानेंगे, दूसरों को नीचा समझेंगे। जब माता के मुख से यह सुना तो ब्रह्मा मुर्छित होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय उपरान्त होश में आया।
गायत्री को शॉप : -- तेरे कई सांड पति होंगे। तू मृतलोक में गाय बनेगी।
पुहपवति को शॉप : -- तेरी जगह गंदगी में होगी। तेरे फूलों को कोई पूजा में नहीं लाएगा। इस झूठी गवाही के कारण तुझे यह नरक भोगना होगा। तेरा नाम केवड़ा केतकी होगा। (हरियाणा में कुसोंधी कहते हैं। यह गंदगी (कुरडियों) वाली जगह पर होती है।)
इस प्रकार तीनों को शाप देकर माता भवानी बहुत पछताई। {इस प्रकार पहले तो जीव बिना सोचे मन (काल निरंजन) के प्रभाव से गलत कार्य कर देता है परन्तु जब आत्मा (सतपुरूष अंश) के प्रभाव से उसे ज्ञान होता है तो पीछे पछताना पड़ता है। जिस प्रकार
माता-पिता अपने बच्चों को छोटी सी गलती के कारण ताड़ते हैं (क्रोधवश होकर) परन्तु बाद में बहुत पछताते हैं। यही प्रक्रिया मन (काल-निंरजन) के प्रभाव से सर्व जीवों में क्रियावान हो रही है।} हाँ, यहाँ एक बात विशेष है कि निरंजन (काल-ब्रह्म) ने भी अपना कानून बना रखा है कि यदि कोई जीव किसी दुर्बल जीव को सताएगा तो उसे उसका बदला देना पड़ेगा। जब आदि
भवानी (प्रकृति, अष्टंगी) ने ब्रह्मा, गायत्री व पुहपवति को शाप दिया तो अलख निंरजन (ब्रह्म-काल) ने कहा कि हे भवानी (प्रकृति/अष्टंगी) यह आपने अच्छा नहीं किया। अब मैं
(निरंजन) आपको शाप देता हूँ कि द्वापर युग में तेरे भी पाँच पति होंगे। (द्रोपदी ही आदिमाया का अवतार हुई है।) जब यह आकाश वाणी सुनी तो आदि माया ने कहा कि हे ज्योति निंरजन (काल) मैं तेरे वश पड़ी हूँ जो चाहे सो कर ले।
{सृष्टि रचना में दुर्गा जी के अन्य नामों का बार-बार लिखने का उद्देश्य है कि पुराणों, गीता तथा वेदों में प्रमाण देखते समय भ्रम उत्पन्न नहीं होगा। जैसे गीता अध्याय 14 श्लोक 3-4 में काल ब्रह्म ने कहा है कि प्रकृति तो गर्भ धारण करने वाली सब जीवों की माता है। मैं उसके
गर्भ में बीज स्थापित करने वाला पिता हूँ। श्लोक 4 में कहा है कि प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण जीवात्मा को कर्मों के बँधन में बाँधते हैं। - (लेख समाप्त)।
इस प्रकरण में प्रकृति तो दुर्गा है तथा तीनों गुण तीनों देवता यानि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव के सांकेतिक नाम हैं।}
क्रमशः_____
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Regional Marathi Text Bulletin, Chhatrapati Sambhajinagar
Date: 29 April 2024
Time: 01.00 to 01.05 PM
Language Marathi
आकाशवाणी छत्रपती संभाजीनगर
प्रादेशिक बातम्या
दिनांक: २९ एप्रिल २०२४ दुपारी १.०० वा.
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लोकसभा निवडणुकीच्या तिसऱ्या टप्प्यात सात मे रोजी होणाऱ्या मतदानासाठी प्रचार शिगेला पोहोचला आहे. यामध्ये राज्यातल्या उस्मानाबाद, लातूर, रायगड, बारामती, सोलापूर, माढा, सांगली, सातारा, कोल्हापूर, हातकणंगले, रत्नागिरी - सिंधुदुर्ग या मतदारसंघांचा समावेश आहे. याठिकणी विविध राजकीय पक्षांचे राष्ट्रीय तसंच राज्यस्तरावरील नेते संबंधित मतदारसंघांचे दौरे करून प्रचार फेऱ्या, प्रचारसभा घेत आहेत.
भाजपचे ज्येष्ठ नेते आणि पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांच्या आज आणि उद्या राज्यात सहा सभा होणार आहेत. आज ते सोलापूर, कराड आणि पुण्यामध्ये तर उद्या माळशिरस, धाराशिव आणि लातूर इथं प्रचारसभा घेणार आहेत.
मोदी यांच्या लातूर इथल्या बिर्ले फार्मवरच्या नियोजित सभेच्या पार्श्वभूमीवर लातूर इथल्या वाहतूक मार्गात बदल करण्यात आला आहे.
धाराशिव इथं तेरणा अभियांत्रिकी महाविद्यालयालगत असलेल्या २५ एकर क्षेत्रावर मोदींची सभा होणार आहे.
दरम्यान, महाविकास आघाडीची आज पुण्यात वारजे इथं सभा होणार आहे. शिवसेना उद्धव बाळासाहेब ठाकरे पक्षाचे अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, तर राष्ट्रवादी काँग्रेस शरदचंद्र पवार पक्षाचे अध्यक्ष शरद पवार यावेळी उपस्थित राहणार आहेत.
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निवडणुकीच्या चौथ्या टप्प्यासाठी उमेदवारी अर्ज मागे घेण्याचा आज अखेरचा दिवस आहे. या टप्प्यात मराठवाड्यात जालना, बीड आणि औरंगाबाद लोकसभा मतदार संघात, येत्या १३ मे रोजी मतदान होणार आहे. आज अर्ज मागे घेण्याची मुदत संपल्यानंतरच या सर्व मतदार संघातल्या लढतींचं चित्र स्पष्ट होईल.
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निवडणुकीच्या पाचव्या टप्प्यात अर्ज भरण्याच्या प्रक्रियेला वेग आला आहे. या टप्प्यात राज्यातल्या धुळे, दिंडोरी, नाशिक, पालघर, भिवंडी, कल्याण, ठाणे आणि मुंबईतल्या सहा मतदारसंघांचा समावेश असून, तीन मे पर्यंत उमेदवारी अर्ज भरता येणार आहेत.
महाविकास आघाडीचे दक्षिण मुंबई लोकसभा मतदारसंघाचे उमेदवार विद्यमान खासदार अरविंद सावंत आणि दक्षिण - मध्य मुंबई लोकसभा मतदारसंघाचे उमेदवार अनिल देसाई यांनी आज उमेदवारी अर्ज दाखल करत आहेत. तत्पूर्वी त्यांनी श्री सिद्धिविनायक मंदिर इथं जाऊन दर्शन घेऊन जोरदार शक्तिप्रदर्शन केलं.
दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा मतदारसंघाचे महायुतीचे उमेदवार राहुल शेवाळे हे देखील आज अर्ज भरत आहेत.
ठाणे लोकसभा मतदारसंघाचे महाविकास आघाडीचे उमेदवार राजन विचारे यांनी आज अर्ज दाखल केला. तत्पूर्वी त्यांनी काढलेल्या रॅलीत युवा सेना प्रमुख आमदार आदित्य ठाकरे सहभागी झाले होते.
महाविकास आघाडीचे नाशिक लोकसभा मतदारसंघाचे उमेदवार राजाभाऊ वाजे, आणि दिंडोरी लोकसभा मतदारसंघाचे उमेदवार भास्कर भगरे आज अर्ज दाखल करणार आहेत. तत्पूर्वी निघालेल्या रॅलीमध्ये खासदार संजय राऊत, काँग्रेस नेते बाळासाहेब थोरात यावेळी उपस्थित आहेत.
धुळे लोकसभा मतदारसंघाचे महायुतीचे उमेदवार भाजपचे सुभाष भामरे हे देखील अर्ज दाखल करत आहेत.
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लोकसभा निवडणुकीच्या सहाव्या टप्प्यासाठीची अधिसूचना आज जारी झाली. या टप्प्यात दिल्ली, हरयाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडीसा आणि झारखंड या राज्यातल्या एकूण ५७ लोकसभा मतदारसंघामधे निवडणूक होणार आहे. उमेदवारी अर्ज दाखल करण्याची मुदत ६ मे पर्यंत असून, मतदान २५ मे रोजी होणार आहे.
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लोकसभा निवडणुकीचा आढावा घेणारा ‘लोकनिर्णय महाराष्ट्राचा’ हा कार्यक्रम, आकाशवाणीनं सुरू केला आहे. कार्यक्रमाच्या आजच्या भागात आपण औरंगाबाद लोकसभा मतदार संघाचा आढावा घेणार आहोत. संध्याकाळी सव्वा सात वाजता आकाशवाणीच्या मुंबई केंद्रावरून हा कार्यक्रम प्रसारित होईल.
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गडचिरोली जिल्ह्यात अहेरी इथं आयपीएलच्या सामन्यांवर ऑनलाईन सट्टा लावण्याच्या अड्ड्यावर अपोलिसांनी छापा टाकून १० जणांना अटक केली. घटनास्थळावरुन चार मोबाईल आणि ९ हजार ४२० रुपये जप्त करण्यात आले.
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राज्यात उन्हाचा प्रकोप दिवसे���दिवस वाढत आहे. गेल्या दोन महिन्यात उष्माघाताच्या १८४ रुग्णांची नोंद झाली. राज्यात सर्वाधिक २० रुग्ण धुळे जिल्ह्यातले आहेत. त्या खालोखाल ठाणे १९, नाशिक १७, वर्धा १६, बुलडाणा १५, सातारा १४, सोलापूर १३ आणि सिंधुदुर्ग जिल्ह्यात १० उष्माघाताचे रुग्ण आहेत. राज्यात यंदा उष्माघाताने मृत्यू झाल्याची नोंद नाही.
दरम्यान, येत्या दोन दिवसात, कोकणात तुरळक ठिकाणी उष्णतेची लाट येण्याची शक्यता पुणे वेधशाळेनं व्यक्त केली आहे. याकाळात मराठवाडा आणि विदर्भात तुरळक ठिकाणी पाऊस पडण्याची शक्यता आहे.
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भारताच्या तलवारबाज भवानी देवी आणि तनिक्षा खत्री यांना पॅरिस ऑलिम्पिक २०२४ स्पर्धेत पात्रता मिळू शकली नाही. संयुक्त अरब अमिराती इथं सुरू असलेल्या आशिया ओशनिया झोन ऑलिम्पिक तलवारबाजी पात्रता स्पर्धेत उपान्त्य फेरीत भवानी देवीला हाँगकाँगच्या चु विन कियू हिच्या कडून १२-१५ असा, तर तनिक्षाला सिंगापूरच्या किरिया तिकानाह हिच्याकडून १३-१५ असा पराभव पत्करावा लागला.
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jamshedpur Jeen Mata- ओढ़ों-ओढ़ो म्हरी माता रानी आज भक्त लाया थारी चुदड़ी… जैसे भजनों पर झूम उठे श्रद्धालु, साकची बंगाल क्लब में धूमधाम से मना श्री जीण माता का 18वां वार्षिक महोत्सव
जमशेदपुर: मईया थारी चुदड़ी में कुछ तो बात हैं…,मइया थारे हाथ रचावण घनी राचणी मेहंदी लाया…, तेरे भरोसे मेरा परिवार हैं…, ऊंचों राख निशान मैया को लांबी डोरी खींच…,मेरो हाथ पकड़ ले मइया मेरो मन घबरावे…,जा के सर पर हाथ अपनी कुल देवी का होवे…., भक्तों का चलता जोर तो मंदिर चांद पे हम बनवाते…, माता थारो प्यार बरसो लो बेमुसार…, काजल शिखर पर जीण भवानी को सच्चा दरबार हैं….., सबको देती हैं मइया अपने खजाने…
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माता कैला देवी चालीसा हिंदी अर्थ सहित (Kaila Devi Chalisa with Hindi translation)
माँ कैला देवी चालीसा विडियो
माँ कैला देवी चालीसा
॥ दोहा ॥
जय जय कैला मात हे तुम्हे नमाउ माथ।
शरण पडूं में चरण में जोडूं दोनों हाथ॥
आप जानी जान हो मैं माता अंजान।
क्षमा भूल मेरी करो करूँ तेरा गुणगान॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय कैला महारानी, नमो नमो जगदम्ब भवानी।
सब जग की हो भाग्य विधाता, आदि शक्ति तू सबकी माता।
दोनों बहिना सबसे न्यारी, महिमा अपरम्पार तुम्हारी।
शोभा सदन सकल गुणखानी, वैद पुराणन माँही…
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या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। चैत्र 5, शक संवत् 1946, सोमवार, 25 मार्च 2024 शक्ति स्वरूपा माँ भगवती के दिव्य और अलौकिक श्रृंगार दर्शन।
जय भवानी 🚩
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JAGAT GURU RAMPAL JI
श्रीमद्देवी भागवत (दुर्गा) पुराण के बारे में पूरी जानकारी
श्री देवी महापुराण (दुर्गा पुराण) का सार
श्री देवी महापुराण (दुर्गा पुराण) का सार
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श्री देवी महापुराण से आंशिक लेख तथा सार विचार‘
(संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत, सचित्र, मोटा टाइप, केवल हिन्दी, सम्पादक-हनुमान प्रसाद पोद्दार, चिम्मनलाल गोस्वामी, प्रकाशक-गोबिन्दभवन-कार्यालय, गीताप्रेस, गोरखपुर)
।।श्रीजगदम्बिकायै नमः।।
श्री देवी मद्भागवत
तीसरा स्कन्ध
राजा परीक्षित ने श्री व्यास जी से ब्रह्मण्ड की रचना के विषय में पूछा। श्री व्यास जी ने कहा कि राजन मैंने यही प्रश्न ऋषिवर नारद जी से पूछा था, वह वर्णन आपसे बताता हूँ। मैंने (श्री व्यास जी ने) श्री नारद जी से पूछा एक ब्रह्मण्ड के रचियता कौन हैं? कोई तो श्री शंकर भगवान को इसका रचियता मानते हैं। कुछ श्री विष्णु जी को तथा कुछ श्री ब्रह्मा जी को तथा बहुत से आचार्य भवानी को सर्व मनोरथ पूर्ण करने वाली बतलाते हैं। वे आदि माया महाशक्ति हैं तथा परमपुरुष के साथ रहकर कार्य सम्पादन करने वाली प्रकृति हैं। ब्रह्म के साथ उनका अभेद सम्बन्ध है।(पृष्ठ 114)
नारद जी ने कहा - व्यास जी ! प्राचीन समय की बात है - यही संदेह मेरे हृदय में भी उत्पन्न हो गया था। तब मैं अपने पिता अमित तेजस्वी ब्रह्मा जी के स्थानपर गया और उनसे इस समय जिस विषय में तुम मुझसे पूछ रहे हो, उसी विषय में मैंने पूछा। मैंने कहा - पिताजी ! यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कहां से उत्पन्न हुआ ? इसकी रचना आपने की है या श्री विष्णु जी ने या श्री शंकर जी ने - कृपया सत-सत बताना।
ब्रह्मा जी ने कहा - (पृष्ठ 115 से 120 तथा 123, 125, 128, 129) बेटा ! मैं इस प्रश्न का क्या उत्तर दूँ ? यह प्रश्न बड़ा ही जटिल है। पूर्वकाल में सर्वत्र जल-ही-जल था। तब कमल से मेरी उत्पत्ति हुई। मैं कमल की कर्णिकापर बैठकर विचार करने लगा - ‘इस अगाध जल में मैं कैसे उत्पन्न हो गया ? कौन मेरा रक्षक है? कमलका डंठल पकड़कर जल में उतरा। वहाँ मुझे शेषशायी भगवान् विष्णु का मुझे दर्शन हुआ। वे योगनिद्रा के वशीभूत होकर गाढ़ी नींद में सोये हुए थे। इतने में भगवती योगनिद्रा याद आ गयीं। मैंने उनका स्तवन किया। तब वे कल्याणमयी भगवती श्रीविष्णु के विग्रहसे निकलकर अचिन्त्य रूप धारण करके आकाश में विराजमान हो गयीं। दिव्य आभूषण उनकी छवि बढ़ा रहे थे। जब योगनिद्रा भगवान् विष्णुके शरीर से अलग होकर आकाश में विराजने लगी, तब तुरंत ही श्रीहरि उठ बैठे। अब वहाँ मैं और भगवान् विष्णु - दो थे। वहीं रूद्र भी प्रकट हो गये। हम तीनों को देवी ने कहा - ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ! तुम भलीभांति सावधान होकर अपने-अपने कार्यमें संलग्न हो जाओ। सृष्टी, स्थिति और संहार - ये तुम्हारे कार्य हैं। इतनेमें एक सुन्दर विमान आकाश से उतर आया। तब उन देवी नें हमें आज्ञा दी - ‘देवताओं ! निर्भीक होकर इच्छापूर्वक इस विमान में प्रवेश कर जाओ। ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र ! आज मैं तुम्हें एक अद्भुत दृश्य दिखलाती हूँ।‘
हम तीनों देवताओं को उस पर बैठे देखकर देवी ने अपने सामर्थ्य से विमान को आकाश में उड़ा दिया।
इतने में हमारा विमान तेजी से चल पड़ा और वह दिव्यधाम- ब्रह्मलोक में जा पहुंचा। वहाँ एक दूसरे ब्रह्मा विराजमान थे। उन्हें देखकर भगवान् शंकर और विष्णु को बड़ा आश्चर्य हुआ। भगवान् शंकर और विष्णुने मुझसे पूछा-‘चतुरानन ! ये अविनाशी ब्रह्मा कौन हैं ?‘ मैंने उत्तर दिया-‘मुझे कुछ पता नहीं, सृष्टीके अधिष्ठाता ये कौन हैं। भगवन् ! मैं कौन हूँ और हमारा उद्देश्य क्या है - इस उलझन में मेरा मन चक्कर काट रहा है।‘
इतने में मनके समान तीव्रगामी वह विमान तुरंत वहाँ से चल पड़ा और कैलास के सुरम्य शिखरपर जा पहुंचा। वहाँ विमान के पहुंचते ही एक भव्य भवन से त्रिनेत्राधारी भगवान् शंकर निकले। वे नन्दी वृषभपर बैठे थे। क्षणभर के बाद ही वह विमान उस शिखर से भी पवन के समान तेज चाल से उड़ा और वैकुण्ठ लोकमें पहुंच गया, जहां भगवती लक्ष्मीका विलास-भवन था। बेटा नारद ! वहाँ मैंने जो सम्पति देखी, उसका वर्णन करना मेरे लिए असम्भव है। उस उत्तम पुरी को देखकर विष्णु का मन आश्चर्य के समुद्र में गोता खाने लगा। वहाँ कमललोचन श्रीहरि विराजमान थे। चार भुजाएं थीं।
इतने में ही पवनसे बातें करता हुआ वह विमान तुरंत उड़ गया। आगे अमृत के समान मीठे जल वाला समुद्र मिला। वहीं एक मनोहर द्वीप था। उसी द्वीपमें एक मंगलमय मनोहर पलंग बिछा था। उस उत्तम पलंगपर एक दिव्य रमणी बैठी थीं। हम आपसमें कहने लगे - ‘यह सुन्दरी कौन है और इसका क्या नाम है, हम इसके विषय में बिलकुल अनभिज्ञ हैं।
नारद ! यों संदेहग्रस्त होकर हमलोग वहाँ रूके रहे। तब भगवान् विष्णु ने उन चारुसाहिनी भगवती को देखकर विवेकपूर्वक निश्चय कर लिया कि वे भगवती जगदम्बिका हैं। तब उन्होंने कहा कि ये भगवती हम सभीकी आदि कारण हैं। महाविद्या और महामाया इनके नाम हैं। ये पूर्ण प्रकृति हैं। ये ‘विश्वेश्वरी‘, ‘वेदगर्भा‘ एवं ‘शिवा‘ कहलाती हैं।
ये वे ही दिव्यांगना हैं, जिनके प्रलयार्णवमें मुझे दर्शन हुए थे। उस समय मैं बालकरूपमें था। मुझे पालनेपर ये झुला रही थीं। वटवृक्षके पत्रापर एक सुदृढ़ शैय्या बिछी थी। उसपर लेटकर मैं पैरके अंगूठेको अपने कमल-जैसे मुख में लेकर चूस रहा था तथा खेल रहा था। ये देवी गा-गाकर मुझे झुलाती थीं। वे ही ये देवी हैं। इसमें कोई संदेहकी बात नहीं रही। इन्हें देखकर मुझे पहले की बात याद आ गयी। ये हम सबकी जननी हैं।
श्रीविष्णु ने समयानुसार उन भगवती भुवनेश्वरी की स्तुति आरम्भ कर दी। भगवान विष्णु बोले - प्रकृति देवीको नमस्कार है। भगवती विधात्राीको निरन्तर नमस्कार है। तुम शुद्धस्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हींसे उद्भासित हो रहा है। मैं, ब्रह्मा और शंकर - हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव और तिरोभाव हुआ करता है। केवल तुम्हीं नित्य हो, जगतजननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो।
भगवान शंकर बोले - ‘देवी ! यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे बालक हुए। फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ - अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्हीं हो। इस संसार की सृष्टी, स्थिति और संहार में तुम्हारे गुण सदा समर्थ हैं। उन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर नियमानुसार कार्य में तत्पर रहते हैं। मैं, ब्रह्मा और शिव विमान पर चढ़कर जा रहे थे। हमें रास्तेमें नये-नये जगत् दिखायी पड़े। भवानी ! भला, कहिये तो उन्हें किसने बनाया है ?
इसलिए यही प्रमाण देखें श्री मद्देवीभागवत महापुराण सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाश मुम्बई, इसमें संस्कृत सहित हिन्दी अनुवाद किया है। तीसरा स्कंद अध्याय 4 पृष्ठ 10, श्लोक 42:-
ब्रह्मा - अहम् इश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः, के अन्यसुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकृतिः पुराणा। (42)
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छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी मां तुलजा भवानी हैं। जिनका मंदिर महाराष्ट्र के धाराशिव में स्थित हैं। मान्यता है कि शिवाजी महाराज को खुद देवी मां ने तलवार प्रदान की थी। आज यह तलवार ब्रिटिश के म्यूजियम में रखी है।
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#पवित्रहिन्दूशास्त्रVSहिन्दू
श्रीमद देवी दुर्गा पुराण में दिव्य स्त्री देवी दुर्गा को सर्वोच्च शक्ति माना गया है। वह हिंदुओं में धार्मिक आराधना की एक आकृति है और इन्हें ब्रह्मांड का मूल निर्माता माना जाता है। विद्वानों ने हिंदू पुराण, शिव महापुराण, विष्णु पुराण, मार्कंडेय पुराण आदि जैसे विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त करके देवी भागवत महापुराण की संरचना के संबंध में विभिन्न समय अवधि का उल्लेख किया है। आइए हम उन्हें विस्तार से विश्लेषण करें।
हिंदुओं का मानना है कि देवी दुर्गा इस ब्रह्मांड की निर्माता है और उन्हें 'जगतजन-नी' कहते हैं।
देवी दुर्गा को शक्ति/प्रकृति देवी/ अष्टंगी/भवानी/भगवती/ माया भी कहा जाता है।
तीसरा स्कंध, अध्याय 5, पृष्ठ संख्या 123
श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - 'तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है। मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर, हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा जन्म (आविर्भाव) और मृत्यु (तिरोभाव) हुआ करता है; अर्थात, हम तीनो देवता नाशवान हैं। केवल तुम ही नित्य हो। तुम सनातनी देवी/जगतजन-नी/ प्रकृति देवी हो (प्राचीन काल से विद्यमान हो)।
भगवान शंकर बोले - 'देवी, यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट (उतपन्न) हुए हैं, तो उनके बाद उतपन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए, और फिर मैं, तमोगुणी लीला करने वाला शंकर, क्या तुम्हारी सन्तान नही हुआ अर्थात मुझे भी उत्तपन्न करने वाली तुम ही हो। इस संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार में तुम्हारे गुण सदा समर्थ हैं। उन्ही तीनों गुणों से उतपन्न हम, ब्रह्मा, विष्णु और शंकर, नियमानुसार कार्य मे तत्पर रहते हैं।
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पुजापाठमा प्रधानमन्त्री प्रचण्ड (फोटो फिचर)
श्री नवदुर्गा भवानी देवी १२ वर्ष जात्रा समापन समारोहलाई सम्बोधन गनु हुदै प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड
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उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टी रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टी की कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नही��� मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्मण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं। जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष
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