#बुखार का प्राकृतिक इलाज
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Ayurvedic Herbs For Fever: इन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से पाएं आराम
Ayurvedic Herbs For Fever: बुखार एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या है, जो अक्सर शरीर में किसी संक्रमण या सूजन का संकेत देती है। जबकि आधुनिक चिकित्सा कई समाधान प्रदान करती है, बहुत से लोग बुखार को नियंत्र��त करने के लिए प्राकृतिक उपचार की ओर रुख करते हैं। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ लंबे समय से अपनी उपचारात्मक गुणों के लिए जानी जाती हैं, और कुछ खास जड़ी-बूटियों का मिश्रण साधारण बुखार से लेकर डेंगू बुखार…
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नीम: लाख दुखों की एक दवा
नीम, जिसे हम सभी ने अपने घरों में देखा है, एक ऐसा पेड़ है जो अपनी अद्भुत औषधीय गुणों के लिए मशहूर है। इसे भारतीय परंपरा में एक वरदान माना जाता है, और यह सदियों से हमारे जीवन का हिस्सा रहा है। आज हम बात करेंगे कि कैसे नीम लाखों बीमारियों के इलाज में सहायक हो सकता है।
नीम का परिचय
नीम एक सदाबहार पेड़ है जो मुख्य रूप से भारत और दक्षिण एशिया में पाया जाता है। इसके पत्ते, बीज, फल, और यहां तक कि छाल भी औषधीय गुणों से भरे हुए होते हैं। नीम को संस्कृत में "अर्जुन" और "अश्वत्थ" जैसे नामों से भी जाना जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह पेड़ 500 से अधिक बीमारियों के इलाज में मददगार है, इसलिए इसे 'लाख दुखों की एक दवा' कहा जाता है। पुराने समय में, नीम का उपयोग विभिन्न प्रकार के त्वचा रोग, जुखाम, बुखार, और पाचन संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता था। इसके साथ ही, नीम का उपयोग प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में भी होता है, जिससे खेती में कीड़ों से बचाव किया जा सकता है। नीम के औषधीय गुण
नीमत्वचा की समस्याओं में लाभकारी: नीम का उपयोग त्वचा की समस्याओं के लिए किया जाता है। इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर उसे चेहरे पर लगाने से पिंपल्स, एक्ने, और अन्य त्वचा संबंधित समस्याओं में राहत मिलती है। नीम का तेल भी त्वचा की बीमारियों जैसे एक्जिमा और सोरायसिस में फायदेमंद है।
मुँह और दांतों की देखभाल: नीम की दातून का इस्तेमाल हमारे पूर्वज सदियों से करते आ रहे हैं। यह दांतों की सड़न, मसूड़ों की सूजन, और अन्य मौखिक समस्याओं में मदद करता है। नीम के एंटी-बैक्टीरियल गुण मुँह की दुर्गंध को भी दूर करते हैं।
मधुमेह में सहायक: नीम की पत्तियों का सेवन रक्त में शर्करा स्तर को नियंत्रित करने में सहायक है। मधुमेह के मरीज इसके पत्तियों का रस नियमित रूप से पी सकते हैं, जिससे उनका शुगर लेवल कंट्रोल में रह सकता है।
बालों की देखभाल: नीम का तेल बालों के लिए एक प्राकृतिक कंडीशनर का काम करता है। यह डैंड्रफ और बालों के झड़ने की समस्या को दूर करता है। इसके अलावा, नीम के पत्तों का पेस्ट बालों में लगाने से बाल मजबूत और चमकदार बनते हैं।
इम्यून सिस्टम को मजबूत करना: नीम के सेवन से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। यह शरीर को विभिन्न संक्रमणों से बचाने में मदद करता है। नीम के कड़वे स्व���द के बावजूद, यह हमारे शरीर के लिए एक टॉनिक की तरह काम करता है।
मलेरिया और डेंगू से बचाव: नीम के पत्तों और छाल का इस्तेमाल मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों से बचाव में किया जाता है। इसके पत्तों का रस पीने से मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।
पाचन तंत्र को दुरुस्त रखना: नीम का सेवन पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने में मदद करता है। यह अपच, गैस, और एसिडिटी जैसी समस्याओं से राहत दिलाता है। इसके अलावा, नीम का उपयोग पेट के कीड़ों को मारने में भी किया जाता है।
नीम का उपयोग कैसे करें?
नीम की पत्तियों का रस:
नीम की ताजे पत्तियों का रस निकालकर हर रोज सुबह खाली पेट पीने से शरीर को कई बीमारियों से बचाया जा सकता है। हालांकि, इसका स्वाद कड़वा होता है, लेकिन इसके फायदे अमूल्य हैं।
नीम का तेल:
नीम का तेल त्वचा और बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसे बालों में लगाने से डैंड्रफ से छुटकारा मिलता है और बाल मजबूत होते हैं। त्वचा पर लगाने से खुजली और फंगल इन्फेक्शन से बचाव होता है।
नीम का पेस्ट:
नीम की पत्तियों का पेस्ट बनाकर उसे चेहरे पर लगाने से त्वचा की चमक बढ़ती है और पिंपल्स जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
नीम की दातून:
नीम की दातून का इस्तेमाल दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने में किया जा सकता है। इससे ��ुँह की दुर्गंध भी दूर होती है।
नीम का पेस्ट:
नीम की सूखी पत्तियों से बनी चाय पीने से शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है और इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। यह मधुमेह के मरीजों के लिए भी फायदेमंद होती है।
नीम का पाउडर:
नीम के सूखे पत्तों का पाउडर त्वचा और बालों के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसे फेस पैक या हेयर मास्क के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। नीम का पाउडर खाने में भी उपयोग किया जा सकता है, जिससे शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और रक्त शुद्ध होता है।
नीम का ध्यान रखने योग्य बातें
नीम के कई फायदे हैं, लेकिन इसका अत्यधिक सेवन भी हानिकारक हो सकता है। नीम का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट दर्द, उल्टी, और कमजोरी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए, इसका सेवन हमेशा डॉक्टर या आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह पर ही करें।
निष्कर्ष
नीम एक ऐसा पेड़ है जो अपने गुणों से हमें स्व��्थ रखने में मदद करता है। यह प्रकृति का एक उपहार है, जिसे सही तरीके से उपयोग करने पर हम कई बीमारियों से दूर रह सकते हैं। नीम के कड़वे स्वाद के बावजूद, इसके फायदे मीठे हैं, और इसे अपने जीवन में शामिल करके हम स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।
याद रखें, नीम का सही मात्रा में और सही तरीके से उपयोग करना जरूरी है। इसका नियमित सेवन हमें बीमारियों से बचाने के साथ-साथ हमारे इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है। तो आज से ही नीम को अपने दैनिक जीवन में शामिल करें और इसके अनगिनत फायदों का आनंद लें।Visit Us: https://prakritivedawellness.com/pain-management-treatment-centre-in-prayagraj/
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चौलमोोग्रा होम्योपैथी दवा संकेत, लाभ, खुराक, दुष्प्रभाव
चौलमोोग्रा होम्योपैथिक दवा के बारे में सामान्य नाम: चौलमोोग्रा (Hydnocarpus wightianus) कारण और लक्षण चौलमोोग्रा डाइल्यूशन एक होम्योपैथिक दवा है जिसमें कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। चौलमोोग्रा के प्राकृतिक अर्क से बनाई गई, यह सोरायसिस और एक्जिमा जैसे विभिन्न त्वचा संबंधी विकारों का प्रभावी ढंग से इलाज करती है। यह बुखार, बदन दर्द और भूख में कमी को कम करके शरीर को शांत करती है। इसके अलावा, यह त्वचा पर…
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किडनी को स्वस्थ रखने के लिए घरेलू उपाय
किडनी हमारे शरीर के सबसे ज्यादा हेल्दी अंगों में से एक है और इसका नियमित रूप से ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। जब भी हम बीमार पड़ते हैं, तो उसके लिए डॉक्टर हमें दवाएं देते हैं। हमारे द्वारा खाई जाने वाली ये दवाएं हमारे शरीर क�� बीमारी को ठीक करने में तो मदद करती हैं, लेकिन इन दवाओं को फिल्टर हमारी किडनी को करना पड़ता है। खासतौर पर जिन लोगों को पहले से किडनी से जुड़ी कोई पुरानी बीमारी है, तो उनके लिए किसी भी बीमारी से जुड़ी दवाएं लेना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। दवाओं का असर हमारी किडनी पर जरूर पड़ता है, चाहे वे दवाएं किडनी की किसी बीमारी का इलाज करने के लिए ही क्यों न तैयार की गई हों। ऐसे में कई आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि क्रोनिक किडनी रोग में कुछ विशेष प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग करना उपयुक्त हो सकता है, लेकिन सभी ऐसी दवाएं सुरक्षित नहीं होतीं। कुछ आयुर्वेदिक उत्पाद किडनी के लिए सुरक्षित माने जाते हैं।
जिन लोगों को पहले से किडनी संबंधी बीमारी है, उनके लिए दवाओं का चयन करना कठिन होता है। इस समस्या में कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ उपयोगी हो सकती हैं।
पुनर्नवा (Punarnava for kidney) : पुनर्नवा एक प्राचीन और प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जो किडनी के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसका नियमित सेवन किडनी की सुरक्षा में मदद करता है और किडनी संबंधी बीमारियों को नियंत्रित करने में सहायक होता है। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी और डायुरेटिक गुणों से भरपूर है, जो संवेदनशीलता को कम करने और बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसे आयुर्वेद और एलोपैथी दोनों में उपयोगी माना गया है।
गोक्षुरा (Gokhru for kidney) : आयुर्वेद में, गुर्दे संबंधी समस्याओं के उपचार के लिए गोखरू का प्रयोग प्रचलित है। गोखरू चूर्ण के सेवन से किडनी के मरीजों को लाभ होता है। कुछ अध्ययनों में इसमें यूरिक एसिड, क्रिएटिनिन, और किडनी स्टोन को कम करने के गुण पाए गए हैं, जो क्रोनिक किडनी रोग के खतरे को कम कर सकते हैं। गोखरू का नियमित सेवन किडनी की सेहत को बनाए रखने में मदद कर सकता है, इसलिए यह किडनी संबंधी समस्याओं के लिए एक उपयुक्त आयुर्वेदिक औषधि मानी जाती है।
वरुणा (Varuna for kidney) : आयुर्वेद में, किडनी रोगी को उनकी सेहत को बनाए रखने के लिए वरुणा से बनी दवाएं प्रदान की जाती हैं। वरुणा का पाउडर क्रोनिक किडनी रोग के रोगियों को लाभ पहुंचा सकता है, जिससे उनके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। कुछ अध्ययनों में यह सिद्ध हुआ है कि वरुणा किडनी स्टोन को नष्ट करने में और उसके पुनर्जनन के खतरे को कम करने में सहायक हो सकता है। इसलिए, वरुणा को किडनी संबंधी समस्याओं के उपचार में एक महत्वपूर्ण और प्रभावी आयुर्वेदिक दवा माना जाता है।
गिलोय बेल (Giloy bel for kidney) : भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में, गिलोय एक प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जो व्यापक रूप से प्रयोग की जाती है। इसे बुखार, गठिया, डेंगू जैसी बीमारियों के उपचार में प्रभावी माना जाता है। इसके अलावा, गिलोय का उपयोग किडनी संबंधी समस्याओं और क्रोनिक रोगों के इलाज में भी किया जाता है। इसकी प्राकृतिक गुणधर्मों के कारण, गिलोय को आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण और प्रभावी औषधि माना जाता है जो विभिन्न रोगों के उपचार में सहायक होती है।
चंदन (Sandalwood for kidney) : आयुर्वेद में, चंदन का उपयोग स्किन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है, लेकिन यह आपको शायद ही पता हो कि चंदन का उपयोग किडनी संबंधी बीमारियों के लिए भी फायदेमंद होता है। चंदन डायुरेटिक गुणों के साथ काम करता है और किडनी से संबंधित रोगों को ठीक करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, चंदन के शांतिदायक गुण भी होते हैं जो किडनी के संक्रमण को दूर करने में सहायक होते हैं। इसलिए, चंदन को किडनी संबंधी बीमारियों के इलाज में एक प्रमुख आयुर्वेदिक उपाय माना जाता है।
इन सभी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से मिलकर “SCORTIS HEALTHCARE” के द्वारा बनाया गया, ये CRUSHSTONE SYRUP जो किडनी की किसी भी समस्या से निजात दिलाने में कारगर है।
डॉक्टर द्वारा बताए गए दवाओं का सेवन सही तरीके से करें और बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा न लें।
किडनी का ख्याल रखना बहुत जरूरी है, किडनी को स्वस्थ रखने के कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं:
पानी पीना: प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है। यह किडनी को साफ रखने और विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।
संतुलित आहार: आहार में ताजे फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, और कम वसा वाले डेयरी उत्पाद शामिल करें। नमक, चीनी का सेवन कम करें।
व्यायाम: नियमित व्यायाम से न केवल आपका वजन संतुलित रहता है बल्कि यह रक्तचाप और रक्त शर्करा को भी नियंत्रित करता है, जिससे किडनी की सेहत बनी रहती है।
धूम्रपान और शराब का सेवन न करें: धूम्रपान और अधिक मात्रा में शराब पीना किडनी के लिए हानिकारक होता है।
नियमित चेकअप: किडनी की सेहत की नियमित जांच करवाना जरूरी है, खासकर यदि आपके परिवार में किसी को गुर्दे की बीमारी रही हो।
स्ट्रेस को कम करें: तनाव से बचने के लिए योग, ध्यान और गहरी सांस लेने की तकनीकों का अभ्यास करें।
निष्कर्ष
इस लेख में हमने किडनी को स्वस्थ रखने से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों की चर्चा की है। हम आशा करते हैं कि यह लेख आपको गाइड करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। इस लेख से संबंधित सवालों और सुझावों को कॉमेंट बॉक्स में लिखकर हमसे शेयर कर सकते हैं।
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"ब्रह्म रसायन: सर्वरोगहर चिकित्सा का आयुर्वेदिक खजाना"
आयुर्वेद विज्ञान का एक अमूल्य खजाना है, जो मानव जीवन को स्वस्थ, समृद्ध और शांतिपूर्ण बनाने के लिए प्राचीन काल से ही अपनाया जा रहा है। इस आयुर्वेदिक विज्ञान में अनेक प्राकृतिक उपचार और औषधियों के बारे में जानकारी मिलती है, जो विभिन्न रोगों का इलाज करने में सहायक होती हैं। इसी आयुर्वेदिक खजाने में एक ऐसा अत्यंत महत्वपूर्ण औषधि है, जिसे ह��� ब्रह्म रसायन के नाम से जानते हैं। ब्रह्म रसायन एक ऐसी चिकित्सा है जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने के साथ ही सभी प्रकार के रोगों का इलाज करती है। यहाँ हम जानेंगे कि ब्रह्म रसायन क्या है, इसके लाभ क्या हैं और इसका उपयोग कैसे किया जाता है।
ब्रह्म रसायन क्या है?
ब्रह्म रसायन एक प्राचीन आयुर्वेदिक औषधि है जो शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करने में मदद करती है। इसका नाम ब्रह्म रसायन इसलिए है क्योंकि यह आयुर्वेदिक चिकित्सा की सबसे ऊँची श्रेणी में आती है और उसे पूर्णता की ओर ले जाती है।
ब्रह्म रसायन का निर्माण गोमूत्र, गोघृत, और धारावाहिक विशेष औषधियों का संयोजन होता है। इसमें गौमूत्र अथवा गौ का मूत्र प्रमुख घटक है, जिसे बहुतायत में विभिन्न आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर माना जाता है। गौघृत को गाय के दूध से बनाया जाता है, जिसमें भगवती धारावाहिक विशेष औषधियाँ होती हैं। यह संयोजन अत्यधिक प्राचीन समय से ही उपयोग में लाया जाता रहा है और आज भी बहुत से लोग इसे अपनाकर स्वस्थ जीवन बिताने की कोशिश कर रहे हैं।
ब्रह्म रसायन के लाभ
यह हर्बल नुस्खा भगवान ब्रह्मा द्वारा बताया गया है। यह शरीर को फिर से जीवंत करता है और थकान, थकावट, जल्दी सफ़ेद बाल, झुर्रियों (त्वचा कायाकल्प और बाल कायाकल्प) से लड़ता है। यह सबसे अच्छा एंटी एजिंग फॉर्मूला है। यह बुद्धि, स्मृति और प्रतिरक्षा शक्ति में भी सुधार करता है।
यह एक अच्छा प्राकृतिक कायाकल्प विरोधी बुढ़ापा फार्मूला है
यह थकान, थकावट, तनाव और उम्र बढ़ने से लड़ने में मदद करता है।
ब्रह्म रसायन का ��पयोग कैसे करें
नियमित सेवन: ब्रह्म रसायन का सेवन नियमित रूप से किया जाना चाहिए। यह आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
परहेज़ के साथ सेवन करें: किसी भी औषधि के सेवन से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
स्वस्थ जीवनशैली: ब्रह्म रसायन का सेवन करते समय स्वस्थ और सावधान जीवनशैली का पालन करें।
आध्यात्मिक प्रयास: इस आयुर्वेदिक औषधि का सेवन करते समय ध्यान, प्राणायाम और आध्यात्मिक अभ्यास करने से उत्तम लाभ होता है।
मात्रा बनाने की विधि
10 ग्राम सुबह नाश्ते से आधा घंटा पहले आधा गिलास गर्म दूध या गर्म पानी के साथ।
आदर्श समय नाश्ते से पहले का है. लेकिन अगर आप इसे लेना भूल गए हैं या फिर आपको सीने में जलन, पेट में जलन महसूस हो रही है तो आप इसे खाने के 20-30 मिनट बाद ले सकते हैं। यदि आप भोजन से पहले अन्य आयुर्वेदिक औषधियाँ ले रहे हैं, तो आप उन्हें ब्रह्मा रसायन के साथ ले सकते हैं, हालाँकि, अनुकूलता के लिए अपने डॉक्टर से जाँच करें।
मुख्य सामग्री:
शंखपुष्पी (क्लिटोरिया टर्नेटिया), वाचा (एकोरस कैलमस) - उत्कृष्ट स्मृति बढ़ाने वाली, बोलने की क्षमता में सुधार करती है
आंवला (भारतीय करौंदा) - उत्कृष्ट कायाकल्पक और एंटी ऑक्सीडेंट।
दशमूल, पिप्पली (पाइपर लोंगम), इला (एल्टारिया इलायचीम) ट्वैक (सिनामोमम ज़ेलेनिकम) - श्वसन प्रणाली की ताकत में सुधार करता है
गुडूची (भारतीय टिनोस्पोरा) - शक्तिशाली इम्युनोमोड्यूलेटर जड़ी बूटी
शतावरी (एस्पेरेगस रेसमोसस) - पुरुष और महिला प्रजनन प्रणाली के लिए अच्छा है
और गैस्ट्रिक शिकायतों के लिए.
हरिद्रा - अत्यधिक अनुशंसित एंटी एलर्जिक एजेंट। त्वचा, फेफड़ों और कैंसर से लड़ने के लिए अच्छा है।
पुनर्नवा (बोएरहाविया डिफ्यूसा), इक्षु (सैकेरम ऑफिसिनारम), गोक्षुरा (ट्राइबुलस टेरेस्ट्रिस), मुस्ता (साइपरस रोटंडस), उशीरा (वेटिवेरिया ज़िज़ानियोइड्स) - गुर्दे और मूत्राशय को साफ और पुनर्जीवित करता है।
बाला - शारीरिक और मानसिक शक्ति में सुधार करता है,
विदंग - एम्बेलिया रिब्स - बैक्टीरिया जैसे विषाक्त पदार्थों और सूक्ष्म जीवों से लड़ता है। इनके साथ, ब्रह्मा रसायन में बिम्ब�� (कोकिनिया इं��िका - बुखार से लड़ता है), जीवंती (होलोस्टेमा एन्युलारे - एक कायाकल्पकर्ता), यष्टिमधु (ग्लाइसीराइजा ग्लबरा) आदि भी शामिल हैं। उत्पाद का मूल्य.
ब्रह्म रसायन की सामग्री की कुल सूची
पथ्या - चेबुलिक मायरोबालन फल का छिलका - टर्मिनलिया चेबुला - 1000 फल
अमलाकी - आँवला फल - एम्ब्लिका ऑफिसिनैलिस गार्टन। - 3000 फल
प्रत्येक का 480 ग्राम मोटा चूर्ण
बिल्वा - बेल (जड़) - एगल मार्मेलोस
श्योनाका - ओरोक्सिलम इंडिका
गम्भारी - कूम्ब टीक (जड़) - वृक्ष प्रजाति
पटला - तुरही (जड़) - स्टीरियोस्पर्मम सुवेओलेंस
अग्निमंथा - प्रेमना कोरिम्बोसा (बर्म.एफ) मेर
शालपर्णी - गंगा डेस्मोडियम
पृश्निपर्णी - उरेरिया पिक्टा
बृहती इंडियन नाइटशेड (जड़) - भारतीय नाइटशेड
कंटकारी - पीला बेरी नाइटशेड (पूरा पौधा) - सोलनम ज़ैंथकार्पम
बाला - देशी मैलो (जड़) - साइड कॉर्डिफ़ोलिया
पुनर्नवा - हॉगवीड का प्रसार - बोएरहाविया डिफ्यूसा
एरंडा - बीवर - कैस्टर कॉमन
माशापर्णी - लेबियल रिज / विग्ना रेडिएटा
मुद्गापर्णी - हरा चना - फेज़ियोलस ट्राइलोबस
शतावरी - शतावरी रेसमोसस जड़
मेडा - लित्सिया मोनोपेटाला
जीवंती - लेप्टाडेनिया रेटिकुलाटा
जीवका - मैलाक्सिस एक्यूमिनटा
रिषभका - मणिलकारा हेक्सेंड्रा (रॉक्सब.) डबार्ड / मिमुसूप्स हेक्सेंड्रा रॉक्सब।
शाली - चावल - ओरिज़ा सैटिवा
काशा - सहज चीनी
शर - सेराटोफिलम सबमर्सोम
इक्षु - गन्ना - सैकरम ऑफिसिनारम
काढ़े के लिए पानी - 120 लीटर, उबालकर और छानकर 12 लीटर कर लें।
प्रत्येक का 192 ग्राम बारीक चूर्ण
ट्वैक - दालचीनी - सिनामोमम ज़ेलेनिकम
इला - इलायची - एलेटेरिया कार्डामम
मुस्ता - नट घास (जड़) - साइपरस रोटंडस
रजनी हल्दी (प्रकंद) - करकुमा लोंगा
अगरु - छोटा एक्विलारिया
चंदना - सैंडलवुड - सैंटालम एल्बम
मंडुकपर्णी - गोटू कोला - मध्य एशियाई
नागकेशरा - मेसुआ फेरिया
शंखपुष्पी - क्लिटोरिया टर्नेटिया
वाचा एकोरस पेन
प्लावा - निक्टेन्थेस वृक्ष-उदास
यष्टि - लिकोरिस - ग्लाइसीराइजा ग्लबरा
विदांगा - नकली का��ी मिर्च - एम्बेलिया रिब्स
सितोपाल - मिश्री - 48 किग्रा
सर्पी - गाय का घी - 9.219 किग्रा
तैला तिल का तेल - सेसमम इंडिकम - 6.144 किग्रा
क्षौद्र - शहद - 15.360 कि.ग्रा
दुष्प्रभाव
इस दवा का कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है।
मधुमेह के रोगियों को इससे बचना चाहिए। हालाँकि, अच्छी तरह से नियंत्रित रक्त शर्करा के स्तर वाले मधुमेह वाले लोगों के लिए प्रति दिन 5 ग्राम की कम खुराक अक्सर निर्धारित की जाती है।
गर्भावस्था के दौरान इसके प्रशासन के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
इसे स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों को प्रतिदिन 5 ग्राम की कम खुराक में दिया जा सकता है।
ठंडी सूखी जगह पर रखें, बच्चों की पहुंच और नज़र से दूर रखें।
निष्कर्ष:
ब्रह्म रसायन एक प्राचीन आयुर्वेदिक औषधि है जो सर्वरोगहर चिकित्सा का आयुर्वेदिक खजाना है। इसका नियमित सेवन करने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। ब्रह्म रसायन का सेवन करते समय समझदारी से काम लें और हमेशा डॉक्टर की सलाह लें। इसे अपनाकर आप एक स्वस्थ, सकारात्मक और संतुलित जीवन बिता सकते हैं।
#brahmarasayan#shatadhautaghrita#100timeswashedghee#gircowghee#gircowgheeprice#panchgavyaproducts#panchagavyaproducts#bilonaghee#kamdevghrita#Gomutra#Gomutraark
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किडनी का ख्याल कैसे रखें?
किडनी हमारे शरीर के सबसे ज्यादा हेल्दी अंगों में से एक है और इसका नियमित रूप से ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। जब भी हम बीमार पड़ते हैं, तो उसके लिए डॉक्टर हमें दवाएं देते हैं। हमारे द्वारा खाई जाने वाली ये दवाएं हमारे शरीर की बीमारी को ठीक करने में तो मदद करती हैं, लेकिन इन दवाओं को फिल्टर हमारी किडनी को करना पड़ता है। खासतौर पर जिन लोगों को पहले से किडनी से जुड़ी कोई पुरानी बीमारी है, तो उनके लिए किसी भी बी���ारी से जुड़ी दवाएं लेना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। दवाओं का असर हमारी किडनी पर जरूर पड़ता है, चाहे वे दवाएं किडनी की किसी बीमारी का इलाज करने के लिए ही क्यों न तैयार की गई हों। ऐसे में कई आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि क्रोनिक किडनी रोग में कुछ विशेष प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग करना उपयुक्त हो सकता है, लेकिन सभी ऐसी दवाएं सुरक्षित नहीं होतीं। कुछ आयुर्वेदिक उत्पाद किडनी के लिए सुरक्षित माने जाते हैं।
जिन लोगों को पहले से किडनी संबंधी बीमारी है, उनके लिए दवाओं का चयन करना कठिन होता है। इस समस्या में कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ उपयोगी हो सकती हैं।
1. पुनर्नवा (Punarnava for kidney)
पुनर्नवा एक प्राचीन और प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जो किडनी के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसका नियमित सेवन किडनी की सुरक्षा में मदद करता है और किडनी संबंधी बीमारियों को नियंत्रित करने में सहायक होता है। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी और डायुरेटिक गुणों से भरपूर है, जो संवेदनशीलता को कम करने और बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसे आयुर्वेद और एलोपैथी दोनों में उपयोगी माना गया है।
2. गोक्षुरा (Gokhru for kidney)
आयुर्वेद में, गुर्दे संबंधी समस्याओं के उपचार के लिए गोखरू का प्रयोग प्रचलित है। गोखरू चूर्ण के सेवन से किडनी के मरीजों को लाभ होता है। कुछ अध्ययनों में इसमें यूरिक एसिड, क्रिएटिनिन, और किडनी स्टोन को कम करने के गुण पाए गए हैं, जो क्रोनिक किडनी रोग के खतरे को कम कर सकते हैं। गोखरू का नियमित सेवन किडनी की सेहत को बनाए रखने में मदद कर सकता है, इसलिए यह किडनी संबंधी समस्याओं के लिए एक उपयुक्त आयुर्वेदिक औषधि मानी जाती है।
3. वरुणा (Varuna for kidney)
आयुर्वेद में, किडनी रोगी को उनकी सेहत को बनाए रखने के लिए वरुणा से बनी दवाएं प्रदान की जाती हैं। वरुणा का पाउडर क्रोनिक किडनी रोग के रोगियों को लाभ पहुंचा सकता है, जिससे उनके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। कुछ अध्ययनों में यह सिद्ध हुआ है कि वरुणा किडनी स्टोन को नष्ट करने में और उसके पुनर्जनन के खतरे को कम करने में सहायक हो सकता है। इसलिए, वरुणा को किडनी संबंधी समस्याओं के उपचार में एक महत्वपूर्ण और प्रभावी आयुर्वेदिक दवा माना जाता है।
4. गिलोय बेल (Giloy bel for kidney)
भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में, गिलोय एक प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जो व्यापक रूप से प्रयोग की जाती है। इसे बुखार, गठिया, डेंगू जैसी बीमारियों के उपचार में प्रभावी माना जाता है। इसके अलावा, गिलोय का उपयोग किडनी संबंधी समस्याओं और क्रोनिक रोगों के इलाज में भी किया जाता है। इसकी प्राकृतिक गुणधर्मों के कारण, गिलोय को आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण और प्रभावी औषधि माना जाता है जो विभिन्न रोगों के उपचार में सहायक होती है।
5. चंदन (Sandalwood for kidney)
आयुर्वेद में, चंदन का उपयोग स्किन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है, लेकिन यह आपको शायद ही पता हो कि चंदन का उपयोग किडनी संबंधी बीमारियों के लिए भी फायदेमंद होता है। चंदन डायुरेटिक गुणों के साथ काम करता है और किडनी से संबंधित रोगों को ठीक करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, चंदन के शांतिदायक गुण भी होते हैं जो किडनी के संक्रमण को दूर करने में सहायक होते हैं। इसलिए, चंदन को किडनी संबंधी बीमारियों के इलाज में एक प्रमुख आयुर्वेदिक उपाय माना जाता है।
निष्कर्ष
इस लेख में हमने किडनी को स्वस्थ रखने से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों की चर्चा की है। हम आशा करते हैं कि यह लेख आपको गाइड करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। इस लेख से संबंधित सवालों और सुझावों को कॉमेंट बॉक्स में लिखकर हमसे शेयर कर सकते हैं।
विशेष- इस लेख में दी गई सभी जानकारियाँ शोध के आधार पर हैं। किसी भी व्यक्ति को जो किडनी संबंधी समस्या हो या उसका इलाज चल रहा हो, उन्हें किसी भी विषय पर डॉक्टर से परामर्श करना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही, यदि किसी को एलर्जी हो, तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
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balam kheera ke fayde aur nuksan की सम्पूर्ण जानकारी (2023)
1. इम्यूनिटी को मजबूत बनाएं
Balam Kheera एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है और इसलिए यह शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत बनाने में मदद करता है। इसका सेवन सर्दी-जुकाम, बुखार, वायरल संक्रमण और एलर्जी जैसी समस्याओं से बचाता है।
2. सूजन से लड़ें
शरीर में सूजन कई गंभीर रोगों का कारण बन सकती है, लेकिन Balam Kheera एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होने के कारण सूजन से लड़ने में मदद करता है और हमें स्वस्थ रखता है।
3. मलेरिया के उपचार में प्रभावी
Balam Kheera का रस मलेरिया जैसे रोगों से बचाव और उनसे लड़ने में मदद करता है। यह एंटी-मलेरिया गुणों से भरपूर होता है। इसके अलावा, बालम खीरे की डिफेंस में क्लोरोक्वीन नामक यौगिक होते हैं, जो मलेरिया के उपचार में इस्तेमाल होता है।
4. एंटी-अमीबिक गुण
बालम खीरे में एंटी-अमीबिक गुण होते हैं, जो अमीबियासिस जैसे संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं। यह एक संक्रामक रोग होता है। Balam Kheera का जूस सेवन करने से हम अमीबियासिस जैसे परजीवी संक्रमण से बच सकते हैं।
5. कैंसर के विकास को रोकें
Balam Kheera अपने एंटी-कैंसर गुणों के कारण फ्री रेडिकल्स और हानिकारक कणों से लड़ने में मदद करता है, जो कैंसर को जन्म देते हैं। यह गर्भाशय और एलिमेंट्री ट्रैक्ट कैंसर के जोखिम को कम करने में सहायता प्रदान करता है। इसके साथ ही कुछ कैंसरों के उपचार में बालम खीरे के सेवन की सलाह दी जाती है।
आयुर्वेदिक महत्व
पिछले कुछ सालों में लोगों का रुझान हर्बल चीजों और दवाओं की ओर बढ़ गया है। लोग सभी बड़ी-छोटी बीमारियों का इलाज आयुर्वेद, यूनानी चिकित्सा और नेचुरोपैथी में ढूंढ़ते हैं, क्योंकि इनकी दवाएं और नुस्खे अधिक सुरक्षित होते हैं। इनसे कोई साइड इफेक्ट नहीं होता, चाहे वह खाने-पीने की चीज़ हो या दवाएं। एक ऐसा फल जिसे हम Balam Kheera के नाम से जानते हैं, पिछले कुछ सालों में तेजी से प्रसिद्ध हुआ है। यह अपने कई मेडिकल गुणों के लिए प्रसिद्ध है और इसे आम��ौर पर पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में पाया जाता है। आइए जानते हैं Balam Kheera के जूस पीने के फायदे।
एंटी-माइक्रोबियल
बालम खीरे में प्राकृतिक रूप से एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं। यह बैक्टीरियल इंफेक्शन को ठीक करने और घाव भरने जैसी समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करता है। इसका उपयोग भूमि में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ाई में भी किया जाता है। इसके अलावा, यह ई. कोली जैसे कई बैक्टीरिया को नष्ट करने में मदद करता है।
एंटी-मलेरिया गुण
बालम खीरे में बहुत सारे मेडिकल कॉंपाउंड होते हैं, जिसके कारण यह हमें कई बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है। इसकी डिफेंस में एंटी-मलेरियल गुण पाए जाते हैं, जिसके कारण यह मलेरिया बुखार में बहुत फायदेमंद माना जाता है। इसका उपयोग मलेरिया के इलाज में भी किया जाता है। Balam Kheera का जूस पीने से मलेरिया में राहत मिल स��ती है।
एंटी-अमीबिक गुण
बालम खीरे में एंटी-अमीबिक गुण भी पाए जाते हैं, जो इसके रस में मौजूद होते हैं। इसके कारण, Balam Kheera स्टेम अमीबियासिस के उपचार में मदद करता है। यह एक संक्रामक रोग है। बालम खीरे के जूस का सेवन करने से अमीबियासिस जैसे परजीवी संक्रमण से लड़ने में मदद मिल सकती है।
एंटीऑक्सीडेंट गुण
बालम खीरे में बहुत सारे एंटीऑक्सीडेंट्स भी पाए जाते हैं। इनका प्रयोग लिवर से जुड़ी बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है। यह देखा गया है कि बालम खीरे के स्टेम में पत्तियों से अधिक एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। Balam Kheera का जूस स्किन के लिए भी लाभदायक होता है। इसे पीने से स्किन पर चमक आती है और एजिंग के लक्षण कम होते हैं।
महिलाओ के ब्रेस्ट की सूजन कम करे
बहुत सारी महिलाएं Balam Kheera का प्रयोग ब्रेस्ट सूजन को कम करने के लिए भी करती हैं। लेकिन इससे पहले एक बार डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए ताकि सही मात्रा और इसका सही उपयोग करने का तरीका पता चल सके।
डाई बनाने के लिए प्रयोग
Balam Kheera को डाई बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। सबसे पहले इसे उबाला जाता है और इसके बाद इससे लाल रंग की डाई बनाई जाती है। इसके पौधे की जड़ों का प्रयोग पीले रंग की डाई बनाने के लिए भी किया जाता है।
स्किन के लिए
बालम खीरे में बायो एक्टिव कंपाउंड्स होते हैं, जो एक्ने को ठीक करने में मदद करते हैं। इससे स्किन को प्यूरिफाई करने में मदद मिलती है और साथ ही स्किन सेल्स को डैमेज होने से रोकने में भी मदद मिलती है। इसका अंतिमता में इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण भी होते हैं, जो स्किन की सूजन को कम करने में मदद करते हैं।
इस प्रकार, बालम खीरे का जूस सेहत के लिए कई फायदे प्रदान करता है। आप इसे अपनी आदतों में शामिल करके इसके स्वास्थ्य लाभों का आनंद ले सकते हैं।
Balam Kheera: त्वचा कैंसर से बचाव और किडनी पथरी के उपचार के लिए एक अद्भुत फल
बालम खीरा एक प्राकृतिक फल है जो पश्चिम अफ्रीका से मूल रूप से आया है और आजकल भारत में भी व्यापक रूप से पाया जाता है। इसका फल खीरे की तरह होता है और यह फल शाखाओं से लटकता रहता है, जो इसे और आकर्षक बनाता है। बालम खीरे के बीजों का अफ्रीका में त्वचा कैंसर के इलाज में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, यह फल शारीरिक कमजोरी, नपुंसकत�� और अन्य कई बीमारियों को ठीक करने में मददगार साबित हो सकता है।
बालम खीरा को किडनी पथरी के उपचार के लिए भी जाना जाता है। खराब खानपान और अनुयायी जीवनशैली के कारण कई लोग किडनी पथरी की समस्या से पीड़ित हो जाते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए कई मेडिकल ट्रीटमेंट्स होते हैं, लेकिन कुछ घरेलू उपचार भी इसे ठीक कर सकते हैं। बालम खीरे का उपयोग किडनी पथरी के मरीजों के लिए बहुत लाभदायक साबित होता है। बालम खीरे का रस बनाने के लिए आपको उसके पूरे फल को धोकर छोटे टुकड़ों में काटना होगा। इसके बाद, इसे पानी में उबालें जब तक कि पानी का एक लीटर बच जाए। इस पानी को रोज़ाना दो बार आधे कप की मात्रा में सेवन करना होगा। यह तरीका 15 दिनों में ही किडनी पथरी की समस्या को ठीक करने में मददगार हो सकता है।
Balam Kheera का सेवन स्किन एलर्जी में भी लाभदायक हो सकता है। कई लोगों को स्किन में एलर्जी की समस्या होती है जिससे खुजली और रैशेज की समस्या होती है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए, बालम खीरे के रस को बनाकर सेवन करने से सभी प्रकार की एलर्जी को दूर किया जा सकता है। आपको इसे दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
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लखनऊ 01 मई, 2022 - हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में Post COVID-19 Complication & Care के अंतर्गत "निःशुल्क होम्योपैथिक परामर्श, निदान एवं दवा वितरण शिविर" का आयोजन, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के इंदिरा नगर सेक्टर - 25 स्थित कार्यालय में हुआ l शिविर का शुभारम्भ अपर जिलाधिकारी, राजस्व श्री विपिन मिश्रा, ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल तथा शिविर के परामर्शदाता चिकित्सक डॉ० संजय कुमार राणा ने दीपप्रज्वलन करके किया l
अपर जिलाधिकारी, राजस्व, श्री विपिन मिश्रा ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित निःशुल्क होम्योपैथिक परामर्श, निदान एवं दवा वितरण शिविर की प्रशंसा की और कहा कि, इस प्रकार के शिविरों का जनहि�� में आयोजन होना वर्तमान समय में बहुत जरुरी है l जनहित में सामाजिक संगठनों के योगदान की महत्वपूर्ण भूमिका है l निराश्रित व समाज के पायदान पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए, सामाजिक संगठनों को सरकार के साथ बढ़चढ़कर अपना योगदान देना चाहिए l श्री मिश्रा ने कहा कि, होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति अन्य चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले काफी कारगर है और होम्योपैथिक इलाज कम खर्चीला भी है, यदि प्रारंभिक समय पर कराया जाए l होम्योपैथिक दवा रोग को जड़ से समाप्त करती है और इसका कोई बहुत साइड इफेक्ट भी नहीं होता है l
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, होम्योपैथी का मूल सिद्धांत है “सम: समम् शमयति” जिसका अर्थ है समान की समान से चिकित्सा अर्थात एक तत्व जिस रोग को पैदा करता है, वही उस रोग को दूर करने की क्षमता भी रखता है तथा होम्योपैथी इसी सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सीय प्रणाली है l होम्योपैथी दवाइयां रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है l होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली भारत में लगभग दो सौ साल पहले आरंभ की गयी थी l आज होम्योपैथी भारत की बहुलवादी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है l भारत सरकार ने होम्योपैथी और आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा और सोवा रिग्पा, जिसे सामूहिक रूप से ‘आयुष’ के नाम से जाना जाता है, जैसे अन्य पारंपरिक प्रणालियों के विकास एवं प्रगति के लिए निरंतर प्रयास किए हैं l भारत सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण, आज केन्द्र और सभी राज्यों में होम्योपैथी का एक संस्थागत ढांचा स्थापित हुआ है l वर्तमान में होम्योपैथी को 80 से अधिक देशों में प्रयोग किया जाता है l इसे 42 देशों में अलग औषध-प्रणाली के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त है और 28 देशों में पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में मान्यता दी गयी l विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) होम्योपैथी को, पारंपरिक और पूरक औषधि के सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाली पद्धतियों में से एक पद्धति के रूप में मानता है । होम्योपैथी के साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं l कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी को बुखार की दवाई दी गई और उस व्यक्ति को लूज मोशन, उल्टी या स्किन पर ऐलर्जी हो जाए l दरअसल, ये परेशानी साइड इफेक्ट की वजह से नहीं है l ये होम्योपैथी के इलाज का हिस्सा है, लेकिन लोग इसे साइड इफेक्ट समझ लेते हैं l इस प्रक्रिया को 'हीलिंग काइसिस' कहते हैं जिसके द्वारा शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं l
परामर्शदाता चिकित्सक डॉ० संजय कुमार राणा ने ��हा कि, होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली हानि रहित होने के साथ-साथ रोगों को समूलता से खत्म करती है l होम्योपैथिक दवाओं से किसी भी प्रकार की ऐसेडिटी नहीं होती है l होम्योपैथी दवाईयां बच्चों को भी जबरदस्ती खिलानी नहीं पड़ती, वह स्वयं मांगकर खाते हैं l होम्योपैथिक दवाएं बार-बार होने वाली बीमारी जैसे फीशर, फिस्चुला, पाईल्स, पथरी, पीलिया, टाइफाईड, साईनुसाइटिस, टांसिलाइटिस इत्यादि से छुटकारा दिला सकती है l असाध्य बीमारियों जैसे प्रोस्टेट, गठिया, सोरियासिस, मोटापा, थायराईड, कैंसर, डायबिटीज आदि को भी होम्योपैथिक दवाएं साध्य बनाती है l होम्योपैथिक दवाईयां रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को बढ़ाती हैं l होम्योपैथिक दवाईयों के सेवन से बढ़ती उम्र की बीमारियों को काफी हद तक रोका जा सकता है l
होम्योपैथी शिविर में विभिन्न बीमारियों जैसे कि, सीने में दर्द होना, भूख न लगना, सांस फूलना, ह्रदय व गुर्दे की बीमारी, मधुमेह (Diabetes / Sugar), रक्तचाप (Blood Pressure), उलझन या घबराहट होना, पेट में दर्द होना, गले में दर्द होना, थकावट होना, पीलिया (Jaundice), थाइरोइड (Thyroid), बालों का झड़ना (Hair Fall) आदि से पीड़ित 66 रोगियों के वजन, रक्तचाप (Blood Pressure) तथा मधुमेह (Sugar-Random) की जांच की गयी l डॉ० संजय कुमार राणा ने परामर्श प्रदान किया तथा निःशुल्क होम्योपैथी दवा प्रदान की l महिलाएं, पुरुष, बुजुर्गों तथा बच्चों सभी उम्र के लोगों ने होम्योपैथी परामर्श लिया l ज्यादातर मरीज त्वचा रोग और जोड़ों के दर्द की बीमारी से ग्रसित पाए गए l
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के स्वयंसेवकों तथा डॉ० संजय कुमार राणा की टीम के सदस्य दिनकर दुबे, विष्णु, रोमनसन तथा राहुल राणा की उपस्थिति रही l
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सैमफायर यशटी मधू कफ सिरप
जोशांदा दर्जा खास
यशटी मधू के मुख्य लाभकारी प्रभाव श्वसन प्रणाली और पाचन तंत्र पर भी पडता हैं। यह सुखी खाँसी या वलगमी खाँसी, एलर्जी से होने वाली खाँसी, गले में खराश के वजह से खाँसी, टी.बी. या दमे के कारन होने वाली खाँसी, मौसम के परिवर्तन के हुई खाँसी, बच्चों और बजुर्गों में किसी भी प्रकार की खाँसी को दूर करने में मदद करता है। तत्व: 1. मुलेठीः मुलेठी से गले की खराश दूर करने का एक पुराना उपाय है। यह अपने ब्रोन्कोडायलेटर गुणों के कारण खांसी, गले में खराश जैसी स्थितियों को ठीक कर सकता है और क्रोनिक अस्थमा के प्रभाव को भी कम करता है।
2. ऊनाबः इस में ऊर्जा, विटामिन और खनिजों तत्व होता है यह आपको खांसी से बहुत राहत देता है जो आपके श्वसन तंत्र को शांत करने में मदद करता है व रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करता है।
3. भरिंगीः यह सूजन, अस्थमा, खांसी और हिचकी जैसी स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
4. बन्फाशः आमतौर पर खांसी, गले में खराश और स्वर बैठना (गला बैठना) के उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता है।
5. बांसाः वात, कफ और पित्त से उत्पन्न होने वाले रोगों के इलाज के रूप में प्रयोग किया जाता है।
6. फूल गुलाबः यह श्वसन तंत्र अस्थमा और खांसी को दूर करने में मदद करता है।
7. बड़ी इलायचीः बडी इलाइची का उपयोग खांसी में इसके उष्ना (गर्म) गुणों के कारण किया जाता है। यह श्वसन मार्ग से अतिरिक्त बलगम को हटाने में मदद करता है और राहत प्रदान करता है।
8. तालीस पत्रः खांसी, अस्थमा, सामान्य सर्दी, छींकने, एलर्जी और ऊपरी श्वसन संक्रमण जैसे रोगों में उपचार के लिए सहायक हैं।
9. पिपला मूलः इसका उपयोग आमतौर पर खांसी, अस्थमा, कब्ज, मदुमेह और जीभ के पक्षाघात के इलाज के लिए किया जाता है।
10. ककर सिंघीः खांसी के उपचार लिए पारंपरिक आयुर्वेदिक के तौरपर उपयोग किया जाता है।
11. सोंठः इसमें शक्तिशाली कफ दमनकारी गुण होते हैं। इसके अलावा इस में कई उड़नषाील द्र्रव्य भी होते हैं जो खांसी के साथ-साथ सर्दी-जुकाम के उपचार में भी लाभदायक है।
12. पुदीनाः पुदीने की पत्तियां आपको ठंड और अस्थमा से राहत देने में मदद करती है।
13. तुलसीः तुलसी के पत्तों का उपयोग खांसी, सर्दी -जुकाम और बुखार के उपचार में उपयोग किया जाता है।
14. जुफाः जूफा बदलते मौसम में गले के दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है।
15. लौंगः लंबे समय से खांसी और गले में खराश के लिए प्राकृतिक उपचार में उपयोग किया जाता है।
16. पीपलः पीपल के फल को खांसी, पित्त, रक्त संबंधी समस्याओं, जलन और उल्टी आदि उपचार के लिए भी उपयोग किया जाता है।
17. कायफलः यह खांसी और गले के दर्द में उपचार के लिए उपयोगी है।
18. कासनीः खांसी के लिए अत्यधिक प्रभावी, गले में खराश से राहत प्रदान करता है।
19. कूठः यह अस्थमा के उपचार में उपयोग किया जाता है। इसके ��िष्पादक गतिविधि के कारण यह हवा मार्ग से बलगम को हटाने में मदद करता है जिसे सांस लेने में आसानी होती है।
20. गिलोयः गिलोय का उपयोग श्वसन संबंधी समस्याओं जैसे अक्सर होने वाली खांसी, सर्दी- जुकाम को कम करने के लिए किया जाता है।
21. आंवलाः यह खांसी में सुधार करता है और सर्दी का इलाज करता है।
22. सौंफः यह सर्दी, खांसी और फ्लू के खतरे को कम करने में मदद करता है और तुरंत राहत प्रदान करता है। यह कई मौसमी संक्रमणों को दूर रखने में मदद करता है और आपके शरीर को भीतर से गर्म रखता है।
23. शहदः शहद को इसके विभिन्न रोगाणुरोधी गुणों के कारण खांसी से राहत देने में मददगार माना जाता है।
24. सत पुदीनाः सत पुदीना का उपयोग सामान्य सर्दी-जुकाम, सिरदर्द और अन्य स्थितियों के उपचार के लिए किया जाता है।
25. नौसादरः यह विभिन्न रोगों जैसेः-खांसी, जुकाम, अस्थम��� एवं अपच आदि की उपचार में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है।
सैमफायर यशटी मधू कफ सिरप की विशेषताएंः इस का कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इस को पीने से नींद नहीं आती है। यह बिल्कुल नशा मुक्त है। इसमें 25 हर्बल(आयुर्वेदिक) तत्व हैं। यह 100 प्रतिशत आयुर्वेदिक तत्व से बना हुआ हैं।
खुराक : गुनगुने पानी के साथ लें - बच्चों : 1-4 वर्ष : 1/2 चम्मच दिन में दो बार 4-12वर्ष : 2 चम्मच दिन में दो बार वयस्क व्यक्ति : चिकित्सक के निर्देश द्वारा 2 चम्मच दिन में तीन बार। इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह हिलायें। नमी रहित और ठंडी जगह पर स्टोर करें।
Samphire Food & Pharma (P) Ltd.
24-25, HSIIDC Karnal,
Haryana 132001 India
Cont no. 094660 64005
098124 31534
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Malaria Home Remedy: पपीते के पत्ते से लेकर फिटकरी तक ये 5 चीजें हैं मलेरिया के दुश्मन, बस ऐसे करें सेवन
बारिश के दिनों में पानी जनित बीमारियों की संख्या बढ़ जाती है। इनमें से कुछ बीमारियां ऐसी होती है जिसका समय पर सही उपचार न मिलने पर जानलेवा बन जाती है। इनमें ��लेरिया भी शामिल है। 2022 में जारी की गई विश्व मलेरिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर पर में लगभग 241 मिलियन मामले और 627000 मौतें दर्ज की गईं हैं। हालांकि, किसी समय मलेरिया के महामारी से जूझ रहे भारत में अब मलेरिया के मामलों में गिरावट दर्ज की गई है। 2001 से 2020 के दौरान मलेरिया के मामले लगातार 2.09 मिलियन से घटकर 0.19 मिलियन हो गए हैं। सुबह खाली पेट Garlic खाने से सेहत को मिलेंगे ये चमत्कारी लाभ, जानें एनसीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में सबसे अधिक मलेरिया के मामले मिलते हैं। इसमें विशेष रूप से उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और झारखंड के पूर्वी राज्यों, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के मध्य राज्यों, गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान के पश्चिमी राज्य शामिल हैं। कैसे होता है मलेरिया, माना जाता है कि मलेरिया विशेष प्रकार के मच्छर के काटने से होता है। इसमें मरीज को तेज बुखार होता है। यह बुखार 4 प्रकार के होते हैं। जिसमें भारत में दो प्रकार प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम प्लाज्मोडियम वैवाक्स मलेरिया पाया जाता है। दोनों खतरनाक होते हैं। यह मच्छर सूर्यास्त के बाद काटता है। मलेरिया का बुखार दो से तीन दिन तक रहता है। सही समय पर उपचार मिल जाने पर मलेरिया का मरीज 2 हफ्तें में पूरी तरह ठीक हो सकता है। यह जानलेवा बीमारी होती है, फिर भी आप इसके खतरे को घरेलू नुस्खों से कम कर सकते हैं।
मलेरिया की पहचान कैसे करें
- ठंड लगना - तेज बुखार - सिरदर्द - गले में खराश - पसीना आना - थकान - बैचेनी होना - उल्टी आना
अदर��� पाउडर+पानी
एक स्टडी के अनुसार, मलेरिया में अदरक का उपयोग फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद जिन्जेरॉल में एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते है, जो मलेरिया के दौरान होने वाले दर्द व मतली से राहत दिलाने का काम करते हैं। इसके अलावा, अदरक में एंटी-मलेरिया गुण भी होते हैं, जिस कारण मलेरिया से बचाव हो सकता है। कैसे करें इस्तेमाल आधा चम्मच सूखे अदरक का पाउडर लें और इसे आधे गिलास पानी में अच्छी तरह से मिला लें। इस तैयार मिश्रण को दिन में तीन बार पिएं।
पपीता का पत्ता+शहद
एक स्टडी के अनुसार, पपीता के पत्तों को मलेरिया के उपचार में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह एंटी-मलेरिया की तरह काम करता है। इसके अलावा मलेरिया में खून की कमी होने पर भी पपीते का सेवन फायदेमंद होता है। कैसे करें इस्तेमाल 4-6 ताजा पत्तियों को तोड़ लें। इसे पानी में 15-20 मिनट तक उबलने के लिए रख दें। फिर इसे छानकर स्वादानुसार शहद मिलाकर दिन में दो से तीन बार रोज पिएं।
मेथी बीज+पानी
मेथी के बीजों को लेकर हुए एक स्टडी के अनुसार, मलेरिया में होने वाली कमजोरी से निपटने के लिए मेथी के दाने एक अच्छा प्राकृतिक उपचार साबित हो सकते हैं। मेथी के बीजों में एंटी-प्लाज्मोडियल प्रभाव पाया जाता है। जो ये इम्यून सिस्टम को बढ़ाकर मलेरिया फैलाने वाले परजीवियों से ��ड़ने का काम कर सकते हैं। कैसे करें इस्तेमाल थोड़ी मात्रा में मेथी के बीजों को रातभर पानी में भिगोकर रख दें। फिर सुबह पानी को छानकर खाली पेट इसका सेवन करें। इसका सेवन तब तक करें जब तक मलेरिया ठीक न हो जाए।
फिटकरी+चीनी
एक स्टडी के अनुसार, फिटकरी में मॉस्किटो लार्विसाइडल गुण होता है, जो मलेरिया फैलाने वाले मच्छर एनोफीलज के काटने से होने वाले संक्रमण से लड़कर मलेरिया से छुटकारा दिला सकती है। कैसे करें इस्तेमाल एक ग्राम फिटकरी का पाउडर और दो ग्राम चीनी को मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। मलेरिया का बुखार होने पर हर दो घंटे में आधा चम्मच इस मिश्रण का सेवन करें। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें। Read the full article
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जोड़ो के दर्द का घरेलू उपाय - Home remedy for joint pain in Hindi
Home remedy for joint pain in Hindi : दोस्तों आज हम आपक�� बताने वाले है। जोड़ों के दर्द से छुटकारा पाने के कुछ घरेलू उपाय। साथ ही आप जानेंगे कि यह कैसे होता है? और क्यों होता है? हमारे जीवन की दिनचर्या में कहा गलती है? जिस कारण आपको इतनी परेशानी उठानी पड़ती है। यह बीमारी आज के समय में हर दो व्यक्ति को छोड़ तीसरे व्यक्ति में देखने को मिल जाता है। इसलिए जरूरी है कि हमें इसके बारे में पता हो और इसे बढ़ने से पहले ही रोक दिया जाए। तो आइए जानते हैं इसके बारे में…..
जोड़ो का दर्द क्या है ?
जोड़ो का दर्द वहां है। जो हमे घुटने, कोहिनी आदि में होती हैं। सरल भाषा में कहें तो जहा पर भी हमारे शरीर का जोड़ है। जैसे घुटने में जोड़ है ( जिससे हम अपने पैर को मोड़ पाते हैं।) यही जोड़ जोड़ो का दर्द कहलाता है। जब इसमें दर्द होता है। यह जोड़ो का दर्द अक्सर बुढ़ापे में बुजुर्ग लोगों को होता है, किन्तु आज के समय में यह बीमारी बुढ़ापे में नही अपितु किसी भी व्यक्ति को होने लगा है। जिसका कारण है। उचित खान पान का न होना या इसका ध्यान न रखना कि ज्यादा बार जोड़ो पर चोट लगने से यह जोड़ो का दर्द समय से पूर्व आपको हो सकता है। जोड़ों के दर्द का लक्षण : चलते समय जोड़ो का काम न करना। चलते समय जोड़ों में दर्द। थोड़ा सा हिलने - डुलने में भी जोड़ों में दर्द। आराम करते समय भी जोड़ो में दर्द। जोड़ो में मरोड़। शरीर में अकड़न। घुटने और बाकी के जोड़ो में दर्द। बाल और चेहरे में रूखापन। हाथ हिलने, पैर चलने में काफी तकलीफ़ का सामान करना । चौकड़ी मारकर बैठने में तकलीफ़ होना। शौचालय में बैठने में परेशानी का सामना करना। यह सभी जोड़ों के दर्द के लक्षण हैं और ऐसे ओर न जाने और भी लक्षण हैं। इसलिए सही समय पर इसका इलाज जरूरी है। यदि आपको ऐसा कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
जोड़ो के दर्द के कारण : जोड़ो का दर्द तब होता हैं। जब वात और कफ जैसे दोष अपने चरम स्थिति में होते हैं। तब जोड़ो या घुटने, कोहिनी आदि का दर्द होता है। इस तरह के दर्द और भी बीमारियों की ओर ध्यान आकर्षित कराते हैं जैसे - जोड़ो का दर्द। घुटने का अर्थराइटिस। रूमेटाइड अर्थराइटिस। ऑस्टियोआर्थराइटिस। घुटने की चोट। मोच आना। झटका लगाना। जोड़ो के दर्द / घुटने के दर्द से बचाव के उपाय : इन जोड़ो और घुटने के दर्द से बचने के लिए बहुत ही सामान्य से उपाय है। जिसे हम रोजाना प्रयोग करें। तो इन बीमारियों से बचा जा सकता है। जोड़ों को चोट लगने से बचना चाहिए : अक्सर हम अपनी असावधानी के कारण जोड़ो पर चोट लगने देते हैं और फिर दर्द होता है। तो साधरण सी पैन किलर खा लेते हैं। ��म इस बात का ध्यान भी नहीं देते कि अगर इस तरह चोट लगती रही तो हमारे जोड़ो कमजोर हो जाते हैं और कभी कभी जोड़ टूट भी जाते हैं। इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि कोई भी ऐसा खेल या कार्य न करें। जिससे जोड़ो पर असर हो। यदि करनी पड़ी तो सेफ्टी पैड्स का इस्तेमाल जरूर करें।
वजन को नियंत्रित रखें : अक्सर लोग अपने वजन पर ध्यान नही देते और सामान्य वजन से ज्यादा वजन हो जाता है और फिर इस वजह से शरीर का नियंत्रण भी अधिक मात्रा में हो जाता है। जिससे हमारे जोड़ो घुटने और कमर पर काफ़ी दवाब डालता है। जिससे हमारे शरीर का कार्टिलेज के टूटने का डर बना रहता है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने शरीर के वजन को नियंत्रित रखें। हमेशा गतिशील रहे : जिन्हें भी जोड़ो की समस्या है या फिर इससे ग्रसित है। उन लोगों को ज्यादा समय तक एक ही स्थिति में नही रहना चाहिए और हमेशा गातिशील रहना चाहिए। कोई न कोई कार्य करते रहे नही तो आप एक ही मुद्रीरा में रहेंगे। जिससे आपके जोड़ो के दर्द में रहता नही मिलेगा। इसलिए कोई न कोई गति करते हैं और इससे फिर आपको लंबे समय तक जोड़ो के दर्द से राहत मिलेगा। सही आसन बनाए रखना चाहिए : अक्सर देखा जाता है कि लोग अपने बैठने उठाने आदि का ध्यान नही देते हैं और फिर जोड़ो के दर्द से ग्रसित हो जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि आप अपने सही आसन में उठे, बैठे और चले। जिससे आपके शरीर का सही आसन गर्दन से लेकर पूरे शरीर के जोड़ों की रक्षा करेगा।
व्यायाम करना चाहिए : व्यायाम यह हर किसी को करना चाहिए फिर चाहे वो किसी बीमारी से ग्रसित हो या न हो क्योंकि व्यायाम करने से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। जिन्हें जोड़ो के दर्द से निजात चाहिए। वह इसे जरूर अपनाएं ये आपके दिनचर्या में शामिल रहेगा। तो आपको कभी भी जोड़ो के दर्द से ग्रसित नही होना पड़ेगा। व्यायम में तैराकी सबसे अधिक फायदेमंद साबित होता है। ज्यादा स्ट्रेच न लें : यदि आप व्ययाम करते हैं। ��ो व्यायम करते समय आपको स्ट्रेचिंग की भी सलाह दी जाती हैं। इसलिए स्ट्रेचिंग करते समय यह बात ध्यान में रखें कि एकदम से यह न करें। सप्ताह में दो तीन बार ही करें। यह एकदम से शुरू न करें और ऐसा करने से पहले थोड़ा वार्मअप जरूर करें। रोजाना दूध पिए : दूध जो हर कोई रोजाना पीने की सलाह डॉक्टर भी जरूर देते हैं। जिन्हें जोड़ो या हड्डियों की समस्या होती है। उन्हें तो दूध अवश्य पीना चाहिए क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम औऱ विटामिन डी पाया जाता है। इसलिए दूध आपको रोजाना पीना चाहिए। इससे आपकी हड्डियां मजबूत बानी रहती है। यदि आप ��ो दूध पसन्द न हो तो आप दूध के बने पर्दाथों का भी सेवन कर सकते हैं जैसे - दही, पनीर, खीर आदि। जोड़ो के दर्द से छुटकारा पाने के लिए घरेलू उपाय : आम तौर पर लोग जोड़ों के दर्द से छुटकारा पाने के लिए घरेलू उपाय को सबसे पहले अपनाते हैं। जिससे उन्हें काफी हद तक राहत भी मिलता है जैसे -
जोड़ो और घुटने के दर्द से छुटकारा दिलाता है हल्दी चुने का लेप : यह हमेशा ही जोड़ो के दर्द में राहत पाने का राम बाण उपाय साबित हुआ है। बस थोड़ा हल्दी और चुना ले और उसमें पानी डालें। फिर गैस पर थोड़ा गाड़ा होने तक पकाए। जब गाड़ा हो जाये तो उसे गर्म गर्म ही जहा दर्द है। वह पर लागए और कम से कम एक घंटे तक लगा रहने दे फिर उसे किसी सूती कपड़े के माध्यम से हटा लें। दिन में दो बार प्रयोग करें। इसे देखिएगा दो तीन दिन में राहत मिलेगा। जोड़ो और घुटने के दर्द से छुटकारा दिलाता है हल्दी वाला दूध : रोजाना दूध का सेवन करने से हमारे शरीर के हड्डियों को मजबूत बनाता है लेकिन यदि उसी में हम थोड़ा गांठ वाली हल्दी को पानी मे फुलाकर पीस ले और उसी दूध में मिलाकर दिन में दो बार उसका सेवन करें। तो वो हमारे हड्डियों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। जोड़ो और घुटने के दर्द से छुटकारा दिलाता है विटामिन डी : यह एक ऐसा उपाय है जो प्रकृतिक है। जिससे हमें विटामिन डी मिलता है। रोजाना सुबह सुबह यदि हम धूप के सामने खड़े रहे थोड़ी देर तो वह एक प्राकृतिक विटामिन डी हमें प्रदान करता है। जो हमारे शरीर के हड्डियों के लिए फायदेमंद होता है। जोड़ो और घुटने के दर्द से छुटकारा दिलाता है मसाज और सिकाई : मसाज और सिकाई यह जोड़ो के लिए काफी फायदेमंद होता है। जहां दर्द होता है। वह पर बस रोजाना मसाज करें और थोड़ा पानी उबालकर उसमे नमक डालें। फिर उससे सूती वस्त्र के द्वारा सिकाई करें। ऐसा करना आपके शरीर के लिए काफी बेहतर होगा और एक हफ्ते में असर दिखाई देगा।
जोड़ो और घुटने के दर्द से छुटकारा दिलाता है एक्सरसाइज : एक्सरसाइज यह हमारे सेहत और स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी हद तक फायदेमंद होता है। बस फिजियोथेरेपिस्ट की राय से एक्सरसाइज करें या फिर योगा शिक्षक से योगा सीखें और नियमित रूप से योगा करें। जोड़ों और घुटने के दर्द से छुटकारा दिलाता है पपीते का सेवन : पपीते का रोजाना सेवन करने से हमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी मिलता है। जो इम्यून सिस्टम के साथ साथ हमारे जोड़ो और हड्डियों के लिए भी काफ़ी फायदेमंद होता है। जानिए डॉक्टर से सलाह कब लेनी चाहिए। हमें डॉक्टर से सलाह तब लेनी चाहिए जब बुखार के साथ शरीर का दर्द भी हो या फैक्चर हो या थोड़ा सूजन हो या फिर गर्माहट हो या फिर लालिमा हो या फिर जोड़ो में दर्द हो आदि होने पर तुरंत ऑर्थोपीड़िक डॉक्टर से मिलाना चाहिए। उनकी सलाह से फिर बताई गई सलाह को अपना चाहिए। मैं ज्योति कुमारी, Lifestylechacha.com पर हिंदी ब्लॉग/ लेख लिखती हूँ। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हूँ और मुझे लिखना बहुत पसंद है।
(ज्योति कुमारी ) Read the full article
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सर्दी, खांसी, बुखार होम्योपैथी दवाएं
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सामान्य सर्दी एक वायरल संक्रमण के कारण होती है, और इसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि, लक्षणों को कम करने और आपके शरीर की उपचार प्रक्रिया का बढ़ोतरी करने के लिए आप राहत ले सकते हैं जो होम्योपैथिक उपचार में संभव है। जब सर्दी, खांसी और बुखार के उपचार की बात आती है, तो होम्योपैथी के समर्थकों का मानना है कि होम्योपैथिक उपचार शरीर की प्राकृतिक उपचार प्रक्रियाओं (healing…
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अगर आप भी हैं पेशाब के समय दर्द और जलन की समस्या से परेशान तो अपनाएं घरेलू उपाय, मिलेगा आराम Divya Sandesh
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अगर आप भी हैं पेशाब के समय दर्द और जलन की समस्या से परेशान तो अपनाएं घरेलू उपाय, मिलेगा आराम
डेस्क। यूरिन में दर्द और जलन होना एक आम समस्या है। यूरिन में जलन की समस्या 50 प्रतिशत महिलाओं को होती है। फीमेल हो या मेल सभी को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। कभी-कभी ये समस्या अधिक बढ़ जाती है। जिसके कारण आपको एक मिनट बैठना भी असंभव हो जाता है। इसे मेडिकल भाषा में डिस्यूरिया कहते हैं। पेशाब के समय दर्द और जलन मूत्राशय या मूत्रमार्ग में हो सकती है। महिलाओं और पुरुषों में इसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
पेशाब में जलन और दर्द के कारण
पेशाब में जलन क्यों होती है-पेशाब में जलन और दर्द के कई कारण हैं और महिलाओं व पुरुषों में इसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं। मुख्यतः इसके कारणों में यूटीआई (पेशाब से जुड़ी समस्या), एसटीआई (यौन संबंधित रोग), प्रोस्टेटाइटिस (प्रोस्टेट ग्रंथि में सूजन), सिस्टाइटिस, किडनी की पथरी, पेल्विक डिजीज, कुछ दवाएं और हाजीन का ख्याल नहीं रखना आदि शामिल हैं।
पेशाब में जलन और दर्द के लक्षण
पेशाब के समय दर्द होना। लगातार पेशाब आना। मूत्राशय पर नियंत्रण नहीं होना। पेशाब में बदबू आना या खून आना। पेशाब करने की तीव्र इच्छा। मूत्राशय या जननांग में दर्द। पेशाब में कठिनाई। उलटी अथवा मितली और ठंड लगने के साथ बुखार, इसके लक्षण हैं।
पेशाब में जलन का इलाज
खूब पानी पियें: शरीर में पानी की कमी के कारण यह समस्या हो जाती है। जब शरीर में पानी की कमी होती है, तो यूरिन का रंग पीला हो जाता है। जब आप अधिक पानी पीते हैं, तो आपका शरीर विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सक्षम होता है। इससे पेशाब का दर्द कम होता है। हर दिन कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पिएं। डिहाइड्रेशन से विषाक्त पदार्थ जमा हो सकते हैं, जिसके कारण आपको पेशाब करते समय दर्द होगा।
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पेशाब में जलन होने पर क्या खाना चाहिए
प्रोबायोटिक्स: यह समस्या कभी-कभी बैक्टीरिया और फंगल संक्रमण का परिणाम होता है। प्रोबायोटिक्स में स्वस्थ बैक्टीरिया होते हैं जो आपके शरीर को ऐसे संक्रमणों से लड़ने में मदद करते हैं। इसके अलावा, यह आपको एंटीबायोटिक दवाओं जैसी दवाओं के दुष्प्रभावों से बचने में भी मदद कर सकता है। इसके लिए अपनी डाइट में दही, केफिर, सौकरकूट और किमची शामिल करें।
पेशाब में जलन उपाय
लौंग का तेल: यह आंतों के परजीवी और कैंडिडा के लिए एक बेहतर घरेलू उपाय है। यह आपके इम्यून सिस्टम को भी बूस्ट करता है। इस तेल में यौगिक यूजेनॉल होता है, जिसमें एंटीमाइक्रोबियल और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह प्रभावी रूप से आपको फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से छुटकारा पाने में मदद कर सकता है। हालांकि, इसे लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
पेशाब में जलन का घरेलू उपाय
��लायची: यह पाचन में सहायता करता है और परिसंचरण में सुधार करता है। यह एक प्राकृतिक मूत्रवर्धक है, जो विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है और पानी को बनाए रखता है। इलायची कई बैक्टीरिया जैसे स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंट, स्टैफिलोकोकस ऑरियस, कैंडिडा अल्बिकन्स और सैच्रोमाइसेस सेरेविसिया को भी मार सकती है। बस एक कप गर्म दूध में एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाएं और रात को सोने से पहले इसे पी लें।
अनार: अनार विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरा होता है, जो मूत्र पथ के संक्रमण के उपचार और रोकथाम में मदद करता है। इम्युनिटी सिस्टम बढ़ाने वाले विटामिन सी से भरपूर ये फल बैक्टीरिया के संक्रमण से लड़ने में मदद करता है और यूटीआई मरीज की जल्दी ठीक होने में मदद करता है।
विटामिन सी: अधिक से अधिक विटामिन सी का सेवन करना चाहिए। इसके लिए ऐसे फल का सेव करना चाहिए। जिसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी हो। यह आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देगा और आपके शरीर को सभी संक्रमणों से लड़ने में मदद करेगा। खट्टे फलों के अलावा, आप अन्य विटामिन सी से भरपूर फलों और सब्जियों को भी अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। स्ट्रॉबेरी, कीवी, पपीता, अमरूद, अनानास, आम, ब्रोकोली, केल और ब्रसेल्स स्प्राउट्स विटमैन सी के अच्छे स्रोत हैं।
नारियल पानी: नारियल के पानी में थोडा सा गुड और धनिया पाउडर को मिक्स करके पीये इससे जलन और दर्द की समस्या में लाभ मिलेगा।
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फ्लू होने पर आराम देते हैं नमक के पानी के गरारे
इन्फ़्लुएन्जा या फ्लू(flu) एक खास वाइरस समूह से होने वाला संक्रमण है। यह एक व्यक्ति से दूसरे को हो सकता है। इसका उपचार सिर्फ इसके प्रभाव को कम करके किया जा सकता है। कुछ प्राकृतिक व घरेलू उपचार से भी हम इसके प्रभाव को कम कर सकते हैं।
फ्लू के लक्षण
फ्लू के लक्षण हैं ब��खार, ज़ुकाम, सिरदर्द, बदन दर्द, गले में खराश, ठंड लगना, सूखी खांसी और थकान। फ्लू कई प्रकार का होता है। ज्यादातर मामलों में यह 3 से 7 दिनों के भीतर ठीक हो जाता है। लेकिन कई बार इसका प्रभाव ज्यादा पड़ने से यह विकराल रूप ले लेता है जिस कारण निमोनिया, एंसिफालिटिस(दिमागी बुखार), ब्रोंकाइटिस, साइनसाइटिस (साइनस), या पेट व कानों का संक्रमण हो जाता है।
फ्लू संक्रमण छोटी उम्र के बच्चों, अधिक उम्र के वयस्क (60 साल या उससे अधिक) या फिर उन लोगो में ज़्यादा होता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य बीमारियों के कारण कम हो जाती है। फ्लू के प्रभाव को कम करने के कई घरेलू उपचार भी मुमकिन हैं, इसलिए आपको हर बार डॉक्टर के पास जाने की भी आवश्यकता नहीं होती।
यहां जानें फ्लू के कुछ घरेलू उपचार
पानी व अन्य तरल पदार्थ : सबसे आसान और सस्ता इलाज है ज़्यादा से ज़्यादा पानी पीना। पानी के अलावा आप अन्य तरल पदार्थों का भी सेवन कर सकते हैं। उदहारण के लिए नारियल पानी, फल व सब्ज़ियों का जूस, काढ़ा, ग्रीन टी, सूप व स्पोर्ट्स ड्रिंक्स। आपके शरीर में तरावट की कमी के कारण फ्लू होने पर नाक, गले और मुंह में खुजली, खराश या शुष्की होने लगती है। पेय पदार्थों से शरीर में नमी बनी रहती है जिससे खुजली और शुष्की कम होती है या नहीं होती।
आराम करें : फ्लू होने पर हमें सबसे पहले खुद को बाकी लोगों से दूर कर लेना चाहिए यह एक फैलने वाला संक्रमण है और ज़्यादा ज़्यादा आराम करना चाहिए। अच्छी नींद लेने से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली अच्छे से कार्य करती है। जिससे फ्लू के वायरस से निजात पाने में आसानी होती है। जब फ्लू हो तब अपने हर काम को टालकर आराम पर ध्यान दें।
नमक के गरारे : फ्लू के कारण गले की खराश को ठीक करने के लिए सबसे बेहतरीन उपाय है गरम पानी में नमक के गरारे। यह गले की सूजन को भी कम करता है और ज़ुखाम की वजह से बलगम को भी कम करता है। दिन में 4-5 बार गरम पानी में नमक डाल कर गरारे करना अच्छा रहेगा।
भाप लें : गरारों की तरह भाप लगातार लेने से वायरस का प्रभाव खत्म हो जाता है। वायरस सूखे वातावरण में ज़्यादा पनपता है और नमी से बचता है। यदि फ्लू की वजह से सांस लेने में तकलीफ होने लगे या ज़ुकाम की वजह से नाक बन्द हो जाए तो दिन में 2 बार भांप अवश्य लें।
अदरक से करें दोस्ती : अदरक के गुणकारी होने की बात हमारे शास्त्रों में भी कही है ! फ्लू में भी अदरक का सेवन आप किसी भी रूप में करें आपको लाभ मिलेगा। आप चाहें तो कद्दूकस करके कच्चा अदरक शहद के साथ ले सकते हैं या गरम पानी में अदरक उबाल कर उस पानी ��ो छान कर पी सकते हैं।
शहद करें शामिल : शहद की मिठास किसे नहीं भाती और अगर दवा के रूप में शहद का सेवन करना पड़े तो दवा भी अच्छी लगेगी। शहद भी एंटीबायोटिक की तरह काम करता है। इसके सेवन से हम अपने इम्यून सिस्टम को मजबूती देते हैं।
विटामिन सी का करें भरपूर सेवन : यूं तो बीमारियों में मुंह का जायका बिगड़ जाता है और चटपटी चीजों से दूरी भी बनानी होती है। लेकिन फ्लू में आप विटामिन सी युक्त फलों का सेवन करके अपने संक्रमण को भी कम कर सकते हैं और इनकी खटास से मुंह का जा���का भी बनाए रख सकते हैं। नींबू, संतरा, मौसमी, किन्नू, अंगूर, आदि में विटामिन सी पाया जाता है।
क्या न खाएं फ्लू में
फ्लू में क्या खाना है यह तो जान लिया क्या नहीं खाना है इसपर भी ध्यान देना होगा। यदि फ्लू के कारण संक्रमण पेट में हो गया है तो कुछ खाद्य पदार्थों से दूरी बनाई रखनी है। यह खाद्य पदार्थ हैं दूध, चीज़, कैफ़ीन युक्त पेय पदार्थ, मीट, तला खाना, फास्ट फूड, जंक फूड, मसालेदार खाना और शराब।
https://kisansatta.com/salt-water-gargles-give-relief-in-case-of-flu/ #SaltWaterGarglesGiveReliefInCaseOfFlu Salt water gargles give relief in case of flu Life #Life KISAN SATTA - सच का संकल्प
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ओवुलेशन के लक्षण
शादी के कुछ सालों बाद हर महिला मां बनना चाहती है। मां बनना प्रकृति की अनुपम सौगात है, जो स्त्री को पूर्णता की ओर ले जाती हैं। किसी कारणवश महिला मां नहीं बन पाती तो कई प्रकार की उलझनें घर करने लगती हैं। ऐसी स्थिति में अपने ओवुलेशन पीरियड पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी तभी सफलता भी मिल पाएगी।
ओवुलेशन क्या है | Ovulation Kya Hai
किसी भी महिला के जीवन में महत्वपूर्ण प्रक्रिया मासिक चक्र की होती है। मासिक चक्र की प्रक्रिया के तहत ही एक महिला मां बनने में सक्षम होती है। मां बनने के लिए ओवुलेशन को समझना भी अनिवार्य है।
ओवुलेशन को मासिक धर्म का हिस्सा भी समझा जा सकता है। हर मासिक धर्म के समय ओवरी में एग रिलीज होते हैं और वही समय ओवुलेशन होता है। यदि एग ओवरी में आ जाए तो वह स्पर्म से मिल ही जाते हैं और किसी स्थिति में वह मिलने से बच भी जाते हैं। इस दौरान महिला का एग किसी गर्भाशय में आकर वृद्धि करने लगे तो प्रेगनेंसी शुरू हो जाती है लेकिन यह जरूरी नहीं होता कि हर बार ऐसा हो जब कभी एग फर्टिलाइज ना हो सके तो एक टूट भी सकते हैं।
ओवुलेशन की शुरुआत
महिलाओं का मासिक चक्र 28 से 30 दिनों का होता है। विषम परिस्थिति में यह चक्र का समय कम या ज्यादा भी हो सकता है। जब भी मासिक चक्र की शुरुआत हो तो मध्य के 4 दिन पहले और बाद में ओवुलेशन शुरू हो जाता है। जब शरीर में एसएचएच हार्मोन रिलीज होता है। यह प्रक्रिया मासिक चक्र के 6 से 14 दिन के बीच होते हैं जो एलएच की उपस्थिति के कारण होते हैं। जैसे ही शरीर में एलएच का स्तर बढ़ने लगता है तो 28 से 36 घंटे के बाद ओवुलेशन शुरू हो जाता है।
ओवुलेशन नियमित होना है जरूरी
ओवुलेशन पीरियड मासिक धर्म के दौरान ही आते हैं और उनका नियमित होना भी जरूरी है। इसके वजह से कहीं ना कहीं प्रेग्नेंसी के चांस बढ़ जाते हैं। अगर किसी कारणवश नियमित रूप से पीरियड ना आ रहे हैं ऐसे में ओवुलेशन अनियमित हो सकता है और प्रेगनेंसी मे देर हो सकती है। ऐसे में आप चिकित्सक से सलाह लेना ना भूलें।
ओवुलेशन के लक्षण | Ovulation Ke Lakshan in Hindi
अगर आप सही से आपने ओवुलेशन के लक्षण समझ सके तो यह आपके लिए बहुत ही फायदेमंद हो जाएगा।
1) शरीर का तापमान परिवर्तित होना
शरीर के तापमान के बढ़ने पर बुखार के लक्षण ही माना जाता है लेकिन अगर पिछले कुछ दिनों से शरीर का तापमान में परिवर्तन देखा गया है तो अब ओवुलेशन का लक्षण हो सकता है जो कि प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के कारण होता है। यह हार्मोन अंडाशय से मुक्त होने पर स्थित होते हैं और अपनी मुख्य भूमिका निभाते हैं।
2) पेट में दर्द होना
कभी-कभी पेट के निचले हिस्से में अजीब सा दर्द होता है, जो कुछ समय में ही खत्म हो जाता है। लेकिन महिलाएं अपने काम के कारण इस दर्द को ध्यान नहीं दे पाती। यह दर्द भी ओवुलेशन का लक्षण हो सकता है।
3) सिर दर्द होना
कुछ महिलाओं में ओवुलेशन के समय सिर दर्द भी देखा गया है। यह सेक्स हार्मोन के अत्यधिक बढ़ जाने के कारण होता है।
4) होने वाले स्त्राव में परिवर्तन
मासिक धर्म के समाप्त होने के बाद एक अलग स्त्राव होता है जिसमें परिवर्तन ही देखा जा सकता है। योनि में मिलने वाला म्यूकस पतला और चिपचिपा हो जाता है।
5) स्तन संवेदनशील होना
ओवुलेशन का यह लक्षण महिलाओं को कम ही समझ आता है पर स्तनों का संवेदनशील होना ओवुलेशन को दर्शाता है। ओवुलेशन के समय सारी कोशिकाएं सक्रिय होकर संवेदनशील हो जाती है और ओवुलेशन की पुष्टि होती है।
ओवुलेशन टेस्ट कैसे करें | Ovulation Test Kaise Kare
अगर आपको ओवुलेशन के लक्षण समझ आ गए हो,तो इसके टेस्ट को घर में भी किया जा सकता है। जो आसान भी है साथ ही साथ यह भी समझा जा सकता है कि वह ओवुलेशन सही से हो रहा है या नहीं।
1) बेसल बाडी टेंपरेचर
इसके माध्यम से सही ओवुलेशन पता लगाया जा सकता है। मासिक चक्र के दौरान थर्मामीटर में तापमान लिया जाता है। ऐसा देखा जा सकता है कि शरीर का तापमान तीन-चार दिनों तक ज्यादा रहे तो इस बात की पुष्टि होती है कि ओवुलेशन हुआ है।
2) ओवुलेशन किट | Ovulation Kit
इस किट के माध्यम से सुबह के मूत्र से आज की उपस्थिति के द्वारा पता लगाया जा सकता है जो ओवुलेशन की सही जानकारी भी देगा।
Ovulation के बारे में जाननें के तरीके
ओवुलेशन दर्द क्या है | Ovulation Dard Kya Hai
ओवुलेशन का होना सामान्य सी बात है लेकिन कई बार महिलाओं को इस ओवुलेशन के समय दर्द का अनुभव होता है। शुरू में तो वे इस बारे में समझ नहीं पाती पर धीरे-धीरे दर्द की वजह समझ आती है। कभी-कभी तो यह दर्द ज्यादा हो जाता है ,तो थोड़ा आराम कर लेने पर ठीक भी हो जाता है। हर महिला में ओवुलेशन अलग-अलग प्रकार का होता है। कई बार यह दर्द एक जगह भी नहीं टिकता जगह-जगह बदलता रहता है।
क्या हो सकते हैं ओवुलेशन दर्द के कारणओवुलेशन दर्द के कई प्रकार के कारण हो सकते हैं
1) जब भी कभी ओवुलेशन के समय अचानक एग बाहर निकले तो ऐसे में दर्द का होना लाजमी है। 2) जब भी कभी ओवुलेशन होने लगता है, तो उसके बाद फेलोपियन ट्यूब एग के लिए सिकुडती है और इस वजह से भी ��र्द का अनुभव होता है। 3) कई बार ओवुलेशन के समय आसपास की मांसपेशियों में खिंचाव होने पर भी दर्द की स्थिति ब�� सकती है। 4) कभी-कभी ओवुलेशन के दोनों ओर फॉलिकल्स के प्रभावी और परिपक्व होने पर भी दर्द का अनुभव होता है।
ओवुलेशन दर्द का इलाज | Ovulation Dard Ka Ilaj In Hindi
अगर ओवुलेशन के समय दर्द हो तो इसका इलाज भी संभव है।
1) अगर ज्यादा तकलीफ हो रही है, तो चिकित्सक से जरूर सलाह ले। 2) इसके लिए एंटी इन्फ्लेमेटरी का उपयोग किया जा सकता है। 3) अपने चिकित्सक से बात कर हारमोंस गर्भनिरोधक गोली भी लिया जा सकता है। 4) आप थोड़ा आराम करें और किसी काम से दूर ही रहे। 5) अगर आप गुनगुने पानी में अजवाइन डालकर पिए तो भी फायदा होगा।
ओवुलेशन ना होने का क्या है कारण | Ovulation Na Hone Ka Kya Hai Karan In Hindi
अगर आप पिछले कुछ दिनों से प्रेग्नेंट होना चाहती हैं पर हो नहीं पा रही है तो इसके पीछे भी कारण ओवुलेशन का ना होना ही पाया गया है। ओवुलेशन ना होने पर बच्चे के जन्म में देर हो सकती है।
ओवुलेशन होने की स्थिति में एग सही तरीके से विकसित नहीं हो पाते हैं ऐसा उस समय भी देखा जाता है जब अंडाशय के द्वारा एग नहीं बन पाता। जब ओवुलेशन की प्रक्रिया बंद हो जाए वह अनओवुलेशन कहलाता है। कभी-कभी पीरियड नियमित ना हो पाए ऐसी स्थिति में भी ओवुलेशन नहीं हो पाता है।
1) एस्ट्रोजन का कम होना
ओवरी पर्याप्त मात्रा में एस्ट्रोजन पैदा करती है अगर सीमित मात्रा से कम एस्ट्रोजन उत्पन्न करें तो भी ओवुलेशन में समस्या आने लगती है।
2) मेल हार्मोन बढ़ना
यदि किसी भी कारणवश आपके शरीर में मेल हार्मोन टेस्टोस्टेरोन स्वता ही बढ़ गया हो तो इससे भी ओवुलेशन नहीं हो पाता है।
3) सही खानपान जरूरी
प्रेगनेंसी के लिए बहुत सी सावधानियां रखनी होती है जिनमें सही खान-पान भी आवश्यक है। अगर आपने ऐसा कुछ खा लिया हो जो आप के ओवुलेशन के लिए सही नहीं हो, तो उसे तुरंत छोड़ दें। इस कड़ी में जंक फूड का नाम आता है अगर आप जल्द ही प्रेग्नेंट होना चाहती हैं, तो जंक फूड से से दूरी बना ले।
4) तनाव ना करें
किसी भी प्रकार का तनाव आपको नहीं लेना है। ज्यादा तनाव लेने से पीरियड भी नियमित नहीं रहते और ओवुलेशन में भी दिक्कत आ जाती है।
5) पीसीओडी की समस्या
कई सारी महिलाओं को पीसीओडी की समस्या होती है। इस समस्या के कारण प्रेगनेंसी में समस्या उत्पन्न होती है और ओवुलेशन में दिक्कत आती है अतः पहले अपनी पीसीओडी की समस्या को दूर करने की कोशिश करें।
6) प्रोलेक्टिन का बढ़ना
प्रोलैक्टिन हार्मोन का ज्यादा बढ़ जाना भी ओवुलेशन में दिक्कत लाता है। जो भी हार्मोन ओवुलेशन सहायक है वे प्रोलैक्टिन के बढ़ने में कम होने लगते हैं इसलिए बेहतर होगा यदि प्रोलेक्टिन ना बढ़ने पाए।
ओवुलेशन को नियमित करने के प्राकृतिक तरीके
ओवुलेशन की दिक्कत होने पर कई प्रकार के मनोभाव मन में आने लगते हैं, जो कि स्वभाविक भी है। आप अगर नियमित रूप से प्राकृतिक तरीके अपनाएं तो निश्चित रूप से आराम प्राप्त होगा।
1) एक्सरसाइज करें
अगर आप प्रतिदिन सुबह कम से कम आधा घंटा एक्सरसाइज करें तो इससे आपको फायदा होगा। एक्सरसाइज से ओवुलेशन को सही किया जा सकता है और आप चाहे तो विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं।
2) तनाव से बचें
तनाव ऐसी समस्या है जिससे शरीर बहुत ज्यादा प्रभावित होता है। स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल हार्मोन को रोकता है और यह वजह भी हो सकती है कि जब ओवुलेशन में दिक्कत आती है अतः किसी प्रकार के तनाव से बचे।
3) धूम्रपान से बचें
अगर आप खुद में ओवुलेशन की समस्या नहीं चाहती हो, तो धूम्रपान से दूर ही रहे। धूम्रपान कहीं ना कहीं ये ओवुलेशन में बाधक है। जल्दी प्रेग्नेंट होने के लिए भी धूम्रपान से दूर होना ही बेहतर है।
4) भरपूर नींद लें
रात रात भर जाग कर कोई काम नहीं करें। भरपूर नींद लेने से सभी हार्मोन सही तरीके से कार्य कर पाते हैं और ओवुलेशन में दिक्कत नहीं आ पाती है।
5) अपना वजन बढ़ाएं
ओवुलेशन को नियमित करने के लिए अपना वजन बढ़ाएं इसके लिए आप ज्यादा कैलोरी युक्त भोजन ले।
धैर्य रखें
ऐसा देखा जाता है कि जब प्रेगनेंसी ना हो, तो महिलाएं अपना धैर्य खोने लगती हैं। उनके मन में बेचैनी व डर हो जाता है ऐसे में धैर्य बनाए रखें और सही समय का इंतजार करें। अपना खानपान और सही जीवन शैली से आप अपनी ओवुलेशन संबंधित समस्या को भी दूर कर सकेंगी बस हौसला रखें और खुश रहिए।
निष्कर्ष
एक प्यारे से बच्चे का जीवन में आगमन होना हर्ष और उल्लास का विषय है। इस लेख में हमने ओवुलेशन संबंधी दिक्कतों को दूर करने का प्रयत्न किया है उम्मीद है आपके काम आएंगे। जीवन में उलझनों को कम करना हमारे हाथ में है जरूरत है तो हिम्मत ना हारने की। खुश रहिए और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े।
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लखनऊ 01 मई, 2022 - हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में Post COVID-19 Complication & Care के अंतर्गत "निःशुल्क होम्योपैथिक परामर्श, निदान एवं दवा वितरण शिविर" का आयोजन, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के इंदिरा नगर सेक्टर - 25 स्थित कार्यालय में हुआ l शिविर का शुभारम्भ अपर जिलाधिकारी, राजस्व श्री विपिन मिश्रा, ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल तथा शिविर के परामर्शदाता चिकित्सक डॉ० संजय कुमार राणा ने दीपप्रज्वलन करके किया l
अपर जिलाधिकारी, राजस्व, श्री विपिन मिश्रा ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित निःशुल्क होम्योपैथिक परामर्श, निदान एवं दवा वितरण शिविर की प्रशंसा की और कहा कि, इस प्रकार के शिविरों का जनहित में आयोजन होना वर्तमान समय में बहुत जरुरी है l जनहित में सामाजिक संगठनों के योगदान की महत्वपूर्ण भूमिका है l निराश्रित व समाज के पायदान पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए, सामाजिक संगठनों को सरकार के साथ बढ़चढ़कर अपना योगदान देना चाहिए l श्री मिश्रा ने कहा कि, होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति अन्य चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले काफी कारगर है और होम्योपैथिक इलाज कम खर्चीला भी है, यदि प्रारंभिक समय पर कराया जाए l होम्योपैथिक दवा रोग को जड़ से समाप्त करती है और इसका कोई बहुत साइड इफेक्ट भी नहीं होता है l
इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, होम्योपैथी का मूल सिद्धांत है “सम: समम् शमयति” जिसका अर्थ है समान की समान से चिकित्सा अर्थात एक तत्व जिस रोग को पैदा करता है, वही उस रोग को दूर करने की क्षमता भी रखता है तथा होम्योपैथी इसी सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सीय प्रणाली है l होम्योपैथी दवाइयां रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है l होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली भारत में लगभग दो सौ साल पहले आरंभ की गयी थी l आज होम्योपैथी भारत की बहुलवादी स���वास्थ्य देखभाल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है l भारत सरकार ने होम्योपैथी और आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा और सोवा रिग्पा, जिसे सामूहिक रूप से ‘आयुष’ के नाम से जाना जाता है, जैसे अन्य पारंपरिक प्रणालियों के विकास एवं प्रगति के लिए निरंतर प्रयास किए हैं l भारत सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण, आज केन्द्र और सभी राज्यों में होम्योपैथी का एक संस्थागत ढांचा स्थापित हुआ है l वर्तमान में होम्योपैथी को 80 से अधिक देशों में प्रयोग किया जाता है l इसे 42 देशों में अलग औषध-प्रणाली के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त है और 28 देशों में पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में मान्यता दी गयी l विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) होम्योपैथी को, पारंपरिक और पूरक औषधि के सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाली पद्धतियों में से एक पद्धति के रूप में मानता है । होम्योपैथी के साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं l कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी को बुखार की दवाई दी गई और उस व्यक्ति को लूज मोशन, उल्टी या स्किन पर ऐलर्जी हो जाए l दरअसल, ये परेशानी साइड इफेक्ट की वजह से नहीं है l ये होम्योपैथी के इलाज का हिस्सा है, लेकिन लोग इसे साइड इफेक्ट समझ लेते हैं l इस प्रक्रिया को 'हीलिंग काइसिस' कहते हैं जिसके द्वारा शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं l
परामर्शदाता चिकित्सक डॉ० संजय कुमार राणा ने कहा कि, होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली हानि रहित होने के साथ-साथ रोगों को समूलता से खत्म करती है l होम्योपैथिक दवाओं से किसी भी प्रकार की ऐसेडिटी नहीं होती है l होम्योपैथी दवाईयां बच्चों को भी जबरदस्ती खिलानी नहीं पड़ती, वह स्वयं मांगकर खाते हैं l होम्योपैथिक दवाएं बार-बार होने वाली बीमारी जैसे फीशर, फिस्चुला, पाईल्स, पथरी, पीलिया, टाइफाईड, साईनुसाइटिस, टांसिलाइटिस इत्यादि से छुटकारा दिला सकती है l असाध्य बीमारियों जैसे प्रोस्टेट, गठिया, सोरियासिस, मोटापा, थायराईड, कैंसर, डायबिटीज आदि को भी होम्योपैथिक दवाएं साध्य बनाती है l होम्योपैथिक दवाईयां रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को बढ़ाती हैं l होम्योपैथिक दवाईयों के सेवन से बढ़ती उम्र की बीमारियों को काफी हद तक रोका जा सकता है l
होम्योपैथी शिविर में विभिन्न बीमारियों जैसे कि, सीने में दर्द होना, भूख न लगना, सांस फूलना, ह्रदय व गुर्दे की बीमारी, मधुमेह (Diabetes / Sugar), रक्तचाप (Blood Pressure), उलझन या घबराहट होना, पेट में दर्द होना, गले में दर्द होना, थकावट होना, पीलिया (Jaundice), थाइरोइड (Thyroid), बालों का झड़ना (Hair Fall) आदि से पीड़ित 66 रोगियों के वजन, रक्तचाप (Blood Pressure) तथा मधुमेह (Sugar-Random) की जांच की गयी l डॉ० संजय कुमार राणा ने परामर्श प्रदान किया तथा निःशुल्क होम्योपैथी दवा प्रदान की l महिलाएं, पुरुष, बुजुर्गों तथा बच्चों सभी उम्र के लोगों ने होम्योपैथी परामर्श लिया l ज्यादातर मरीज त्वचा रोग और जोड़ों के दर्द की बीमारी से ग्रसित पाए गए l
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट के स्वयंसेवकों तथा डॉ० संजय कुमार राणा की टीम के सदस्य दिनकर दुबे, विष्णु, रोमनसन तथा राहुल राणा की उपस्थिति रही l
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