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केंद्र ने कीमतें कम करने के लिए खाद्य तेलों, तिलहनों पर मार्च तक स्टॉक की सीमा लगाई
केंद्र ने कीमतें कम करने के लिए खाद्य तेलों, तिलहनों पर मार्च तक स्टॉक की सीमा लगाई
खाना पकाने के तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि के साथ, केंद्र ने अगले साल मार्च के अंत तक खाद्य तेलों और तिलहनों पर स्टॉक की सीमा लगा दी है। रविवार को एक बयान में, केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने कहा: “विभाग … ने एक ऐतिहासिक निर्णय में खाद्य तेलों और तिलहनों पर 31 मार्च, 2022 तक की अवधि के लिए स्टॉक सीमा लगाई है।” केंद्र के ��ैसले से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की…
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तुलसी की खेती करने के फायदे
दोस्तों आज हम बात करेंगे तुलसी की खेती की। जिस प्रकार विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे दाल, गन्ना, गेहूं, जौ, बाजरा आदि पारंपरिक फसलें मानी जाती है, उसी प्रकार औषधि के रूप में तुलसी की खेती की जाती है। तुलसी की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।
तुलसी की खेती:
वैसे तो किसान गेहूं, गन्ना, धान आदि की फसल की खेती करते हैं और यह खेती वे लम्बे समय से करते आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में किसान इन खेतीयों को पारंपरिक तौर पर करते हैं। परंतु प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार, हरदोई के एक किसान ने इन परंपराओं से हटकर, तुलसी की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया है, तुलसी की फसल की खेती से काफी मुनाफा कमाया है।
जिले के इस किसान ने पारंपरिक फसलों की बुवाई से हटकर अलग कार्य कर दि��ाया है, जिसके लिए लोग उसकी काफी प्रशंसा करते हैं। ऐसे में आप इस किसान के नाम को जानने के लिए जरूर इच्छुक होंगे।
हरदोई के इस किसान का नाम अभिमन्यु है, ये हरदोई के नीर गांव में निवास करते हैं। अभिमन्यु तुलसी की खेती लगभग 1 हेक्टेयर की भूमि पर कर रहे हैं, जहां उन्हें अन्य फसलों से ज्यादा मुनाफा मिल रहा है। ये खेती कर 90 से 100 दिनों के भीतर अच्छी कमाई कर लेते हैं।ये भी पढ़ें:तुलसी के पौधों का मानव जीवन में है विशेष महत्व
तुलसी के तेल की बढ़ती मांग:
मार्केट दुकानों आदि जगहों पर तुलसी के तेल की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। क्योंकि तुलसी स्वास्थ्य तथा औषधी कई प्रकार से काम में लिया जाता है तथा विभिन्न विभिन्न प्रकार की औषधि बनाने के लिए तुलसी के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं दूसरी ओर यदि हम बात करें, त्वचा को आकर्षित व कुदरती निखार देने की, तो भी तुलसी के तेल का ही चुनाव किया जाता है। ऐसी स्थिति में मार्केट तथा अन्य स्थानों पर तुलसी की मांग तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में किसान तुलसी की खेती कर अच्छी कमाई की प्राप्ति कर सकते हैं।
तुलसी के तेल की कीमत:
तुलसी के तेल की कीमत लगभग 1800 से 2000 प्रति लीटर है। करोना जैसी भयानक महामारी के समय लोग ज्यादा से ज्यादा तुलसी के तेल का इस्तेमाल कर रहे थे। तुलसी के तेल का इस्तेमाल देखते हुए इसकी कीमत दिन प्रतिदिन और बढ़ती गई। बाजार और मार्केट में अभी भी इनकी कीमत उच्च कोटि पर है।
तुलसी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चयन:
किसानों के अनुसार कम उपजाऊ वाली जमीनों पर तुलसी की खेती बहुत ज्यादा मात्रा में होती है। जिन भूमियों में जल निकास की व्यवस्था सही ढंग से की गई हो उन भूमि पर उत्पादन ज्यादा होता है। बलुई दोमट मिट्टी तुलसी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।ये भी पढ़ें:रोज़मेरी – सुगंधित पौधे की खेती (Rosemary Aromatic Plant Cultivation Info in Hindi)
उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु तुलसी की खेती के लिए उपय��गी है।
तुलसी की खेती करने के लिए भूमि को तैयार करना:
तुलसी की खेती करने से पहले भूमि को हल या किसी अन्य उपकरण द्वारा अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए। एक अच्छी गहरी जुताई प्राप्त करने के बाद ही बीज रोपण का कार्य शुरू करना चाहिए। सभी प्रकार की भूमि तुलसी की खेती करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
तुलसी के पौधों की बुवाई तथा रोपाई करने के तरीके:
तुलसी के बीज सीधे खेतों में नहीं लगाए जाते हैं, इससे फसल पर बुरा असर पड़ता है। तुलसी की फसल की बुवाई करने से पहले, कुछ दिनों तक इन्हें नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने के बाद ही खेतों में इसकी रोपाई का कार्य करना चाहिए। सीधे बीज को खेतों में लगाना फसल को खराब कर सकता है। किसान तुलसी की खेती करने से पहले तुलसी के बीजों को नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने की सलाह देते हैं।ये भी पढ़ें:पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी से मरु प्रदेश में बढ़ी किसानों की आय, रुका भूमि क्षरण
तुलसी के पौधे को तैयार करने के तरीके:
तुलसी के पौधों को बोने से पहले किसान खरपतवार को पूरे खेत से भली प्रकार से साफ करते हैं। उसके बाद लगभग 18 से 20 सेंटीमीटर गहरी जुताई करते हैं। तुलसी की खेती के लिए लगभग 15 टन सड़ी हुई गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी के पौधे के लिए क्यारियों की दुरी : पौधे से पौधे की दूरी ३० -४० सेंटीमीटर व लाइन से लाइन की दूरी ३८ -४६ सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खाद के रूप में 20 किलोग्राम फास्फोरस और पोटाश का भी इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के 15 से 20 दिन के बाद खेतों में नत्राजन डालना फसल के लिए उपयोगी होता है। तुलसी के पौधे छह ,सात हफ्तों में रोपाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो।
तुलसी के पौधों की रोपाई का उचित समय
तुलसी के पौधों की रोपाई का सही समय दोपहर के बाद का होता है। तुलसी के पौधों की रोपाई सदैव सूखे मौसम में करना फसल के लिए उपयोगी होता है। रोपाई करने के बाद जल्द ही सिंचाई की व्यवस्था बनाए रखना चाहिए। मौसम बारिश का लगे तब आप रोपाई का कार्य शुरू कर दे। इससे फसल की अच्छी सिंचाई हो जाती है।
दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा या आर्टिकल तुलसी की खेती करने के फायदे पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में तुलसी की फसल जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी मौजूद है। जो आप के बहुत काम आ सकती हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ तथा अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर शेयर करें।
Source तुलसी की खेती करने के फायदे
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गांव-देहात में शुरू किए जाने वाले 5 बेहतरीन Business Options
अक्सर लोगों की यही सोच होती है कि बिज़नेस तो केवल शहर के लोग ही कर सकते हैं। इसी सोच के कारण बहुत से लोग अपना घर-बार छोड़ कर शहर की ओर रूख कर लेते हैं और यहां कोई भी छोटी-मोटी नौकरी करने लग जाते हैं। इस बीच उनका खुद का बिज़नेस करने का सपना कहीं दब कर रह जाता है। अधिकतर लोग यही सोचते हैं कि गांव में कोई भी काम नहीं किया जा सकता है। लेकिन आज स्थितियां बदल चुकी हैं। आज शहर हो या गांव हर जगह बिज़नेस करने के लिए बहुत से आइडियाज मौजूद है। आप किसी भी छोटे गांव में भी कोई भी बिज़नेस शुरू कर सकते हैं। इसके लि�� बस आपको कुछ पैसों की जरूरत हैं। अगर आपके पास पर्याप्त चीजें हैं तो आप कहीं से कोई भी बिज़नेस शुरू कर सकते हैं। आज के समय में इतने सारे बिज़नेस आइडियाज आ चुके हैं जिन्हें आप गांव में रहते हुए ही शुरू कर सकते हैं। इसके लिए आपको शहर की ओर रूख नहीं करना पड़ेगा। आपको बस इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि गांव में भी अगर सूझ बुझ और समझदारी से बिज़नेस शुरू करें तो हम अपने गांव में भी लाखों रुपए का बिज़नेस कर सकते हैं । इसलिए आज के इस लेख में हम आपको कुछ बेहतरीन बिज़नेस ऑपशन बताएंगे जिनकी मदद से आप गांव में ही अच्छा बिज़नेस (Business) शुरू कर सकते हैं।
1. फूल की खेती का बिज़नेस
आज हर कोई ताज़े फूलों की डिमांड करता है। गांव हो या शहर, किसी भी पार्टी फंक्शन में फूलों की मांग हमेशा ही रहती है। आप किसी भी पार्टी फंक्शन में जाते हैं तो आपको ताज़े फूल दिखाई देते हैं । यह फूल असली होते हैं जिन्हें काफी मात्रा में खेत में उगाए जाते है। गांव की मिटटी बहुत अच्छी होती है और बहुत ज्यादा उपजाऊ होती है। मंदिर में, पूजा में, शादियों में फूलों का इस्तेमाल ��हुत ज्यादा होता है। कई बार फूलों की डिमांड पूरी नहीं होने के कारण इसकी कीमत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इसलिए ऐसे में आप अपने गांव में यह बिज़नेस बहुत कम लागत में शुरू कर सकते हैं। फूलों की खेती करने के लिए आपको एक बगीचे की जरूरत होगी | मौसम को देखते हुए और मार्किट को देखते हुए आप फूल का बीज या पौधा कृषि संसाधन या फिर बाजार से खरीद सकते हैं और उनकी खेती शुरू कर सकते हैं। यह एक बेहतरीन बिज़नेस आइडिया हो सकता है जिसके जरिए आप तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं।
2. टेंट हाउस का बिज़नेस
आपने देखा होगा कि आजकल पार्टी या किसी भी फंक्शन में डेकोरेशन औऱ टेंट की कितनी डिमांड रहती है। टेंट की आवश्यकता किसी को कभी भी पड़ सकती है। शादी समारोह, सालगिरह, जन्मदिन पार्टी बहुत सारे सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम, इन सभी चीजों में टेंट हाउस की आवश्यकता जरूर होती है। ऐसे में यह बिज़नेस बहुत ही बेहतरीन साबित हो सकता है। इसके लिए आपको केवल शादी के सीज़न का ही इंतजार नहीं करना पड़ेगा बल्कि आप अन्य अवसरों पर भी अपनी टेंट और डेकोरेशन की सेवाएं दे सकते हैं। किसी भी बिज़नेस में अच्छी ग्रोथ के लिए आप बिज़नेस कोच (Business Coach) की मदद ले सकते हैं। इस बिज़नेस को शुरू करने के लिए आपको अच्छे टेंट, पर्दे, कुछ वर्कर इत्यादि की ज़रूरत पड़ेगी।
3. छोटे तेल मिल का बिज़नेस
छोटे तेल मिल का बिज़नेस बहुत ही अच्छा आइडिया है। आप सरसों, तिलहन, मूंगफली इत्यादि का तेल निकालने का बिज़नेस शुरू कर सकते हैं। इसे गांव में शुरू करना बहुत ही आसान हो सकता है और इसके जरिए आपको बहुत ही अच्छा लाभ भी मिल सकता है। तेल निकालने के बाद जो कूड़ा बचता है, उसे खल कहा जाता है और यह बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इसे पशुओं को चारे के साथ खिलाया जाता है इसीलिए यह भी बिक जाता है तो इससे आपको डबल फायदा हो जाता है। इस बिज़नेस को शुरू करने के लिए आपको तेल निकालने की मशीन, कनस्तर, तेल पैक करने के डिब्बे और जरूरी बर्तन इत्यादि सामान खरीदने की आवश्यकता होती है। तेल के मिल का बिज़नेस काफी बड़ा है इसको सही से मैनेज करने के लिए लीडरशिप ट्रेनर (Leadership Trainer In India) की मदद ले सकते हैं। इस बिज़नेस में तगड़ा मुनाफा कमाने की संभावनाएं हैं।
4. हर्बल खेती का बिज़नेस
यह एक ऐसा बिज़नेस है, जिसे कम लागत में आप शुरू कर सकते हैं। इसमें लागत तो कम लगती ही है, परंतु मुनाफा बहुत भी अच्छा मिलता है। हर्बल खेती में जड़ी बूटी और ऐसे औषधि पौधे आते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार की दवाई बनाने में किया जाता है। इन्हें बेचने के लिए आप अपने आसपास के बाजार में पतंजलि जैसी किसी मेडिसिन वाली कंपनी से भी डील कर सकते हैं। आप इन्हें अच्छे दामों पर बेच सकते हैं और अच्छा प्रोफिट कमा सकते हैं।
5. किराना स्टोर का बिज़नेस
किराना स्टोर का बिज़नेस गांव में 12 महीने चलने वाला बिज़नेस है। आप इसे कभी भी शुरू कर सकते हैं। इसमें आपको ज्यादा पैसे लगाने की भी ज़रूरत नहीं है। आप अपने मुनाफे के अनुसार सामान बड़ा और घटा सकते हैं। अक्सर देखा जाता है कि गांव में दुकानें दूर-दराज के इलाकों में होती है। छोटी से छोटी चीज़ के लिए भी कई किलोमीटर दूर बाजार की ओर रुख करना पड़ता है। ऐसे में यदि आप कोई छोटा स स्टोर खोल लें जैसे जनरल स्टोर या किराना स्टोर तब भी आप इस बिज़नेस से अच्छी कमाई कर सकते हैं । इसमें आपको ये फायदा होगा की आप थोक सामान सस्ते में लाएंगे और उन्हें उचित मूल्य पर बेचेंगे जिससे आपको अच्छा दाम मिल जाएगा। इस बिज़नेस में आप सालभर अच्छी कमाई कर सकते हैं।
लेकिन गांव में भी बिज़नेस शुरू करने से पहले आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे गांव में किसी भी प्रकार के बिज़नेस को शुरू करने से पहले आप उसकी डिमांड को जरूर समझे | मतलब वह बिज़नेस गांव में चल सकता है या नहीं इस बात को समझना बेहद जरूरी हैं। आप जिस बिज़नेस को गांव में शुरू करना चाहते हो उसी से संबंधित आपको किस किस प्रकार के लाइसेंस और पंजीकरण की जरूरत होगी इसके बारे में जानकारी हासिल करें। बिज़नेस शुरू करने के लिए आपको थोड़ा बहुत इन्वेस्टमेंट भी करना होगा इसके लिए आपके पास बजट होना बेहद जरूरी है।
लेख के बारे में आप अपनी टिप्पणी को कमेंट सेक्शन में कमेंट करके दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा आप अगर एक व्यापारी हैं और अपने व्यापार में कठिन और मुश्किल परेशानियों का सामना कर रहे हैं और चाहते हैं कि स्टार्टअप बिज़नेस को आगे बढ़ाने में आपको एक पर्सनल बिज़नेस कोच का अच्छा मार्गदर्शन मिले तो आपको Business Coaching का चुनाव जरूर करना चाहिए जिससे आप अपने बिज़नेस में एक अच्छी हैंडहोल्डिंग पा सकते हैं और अपने बिज़नेस को चार गुना बढ़ा सकते हैं ।
Source:
https://hindi.badabusiness.com/business-motivation/5-best-business-options-to-be-started-in-the-countryside-10758.html
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चंदन की खेती : Sandalwood Farming
चंदन एक सदाबहार पेड़ है| इसकी खुशबू और औषधीय गुणों की वजह से इसकी काफी मांग होती है| चंदन की खेती कर आप मालामाल हो सकते हैं|
केवल सरकार ही कर सकती है चंदन का एक्सपोर्ट
चंदन की खरीद और बिक्री पर सरकार ने रोक लगा रखी है| 2017 में बने नियम के अनुसार, चंदन की खेती कोई भी कर सकता है, लेकिन चंदन का एक्सपोर्ट सिर्फ सरकार ही कर सकती है|
चन्दन के पौधे या बीज कहाँ से प्राप्त करें
चन्दन की खेती करने के लिए बीज या पौधे क��सी का भी रोपण किया जा सकता है| इसके लिए आप दोनों में किसी भी चीज को खरीद सकते हैं| इसके बीज या पौधे खरीदने के लिए आपको केंद्र सरकार के लकड़ी विज्ञान एवं तकनिकी संसथान ( Institute of Wood Science and Technology (IWST) ) जोकि बंगलौर में स्थित से वहाँ से सम्पर्क करना होगा|
इसके अलावा भारत के उत्तरप्रदेश में भी इसकी एक नर्सरी है जहाँ आपको इसकी जानकारी एवं पौधे दोनों मिल जायेंगे| इसके लिए आपको मशहूर एल्ब्सन एग्रोफ्रेस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड (Albsan Agroforestry Private Limited, Kanpur, Uttar Pradesh ) से सम्पर्क करने की आवश्यकता होगी|
चन्दन की प्रजातियाँ
चन्दन की पूरे विश्व में कुल मिलाकर 16 प्रजातियाँ हैं, जिनमें सेंत्लम एल्बम बहुत ही अच्छी सुगंध वाली होती हैं| इसी में सबसे अधिक औषधीय गुण भी पाए जाते हैं| चंदन की 16 प्रजातियों में सफेद चन्दन, सेंडल, अबेयाद, श्रीखंड, सुखद सेंडल आदि प्रजाति की चंदन पाई जाती है।
सफेद चंदन को बढ़ने के लिए किसी सहायक पौधे की जरूरत होती है| सफेद चंदन के लिए सहायक पौधा अरहर है, जो कि पौधा के विकास में सहायक होता है| अरहर की फसल से चंदन को नाइट्रोजन तो मिलता ही है साथ ही इसके तने और जड़ों की लकड़ी में सुगंधित तेल का अंश बढ़ता जाता है|
सफेद चंदन इन कामों में होता है इस्तेमाल
सफेद चंदन इस्तेमाल औषधीय बनाने, साबुन, अगरबती, कंठी माला, फर्नीचर, लकड़ी के खिलौने, परफ्यूम, हवन सामग्री में होता है|
ये भी पढ़ें: घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)
चन्दन की खेती करने का तरीका
एक एकड़ जमीन में ज्यादा से ज्यादा 375 सफ़ेद चन्दन के पौधे लगा सकते हैं|
चन्दन के पौधों में ज्यादा पानी सिंचित नहीं करना होता हैं इसलिए इसके चन्दन के खेत में मेड़ बनाकर पौधे का रोपण किया जाता है| ये मेड़ कम से कम 10 फुट की दूरी पर बनाये जाते हैं|
मेड़ के ऊपर चन्दन के जो पौधे लगाये जाते हैं उसी एक दूसरे से दूरी 12 फुट से कम नहीं होनी चाहिये|
एक बात जो सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली है वह यह कि चन्दन के पौध�� अकेले कभी नहीं लगाये जाते हैं वरना ये सूख जाते हैं| क्योकि चन्दन अर्धपरजीवी पौधा होता है|
चन्दन की खेती जिस क्षेत्र में की जाती हैं वहां पर कुछ साथी पौधों को भी लगाना आवश्यक होता है| क्योकि ये चन्दन के विकास में सहायक होते हैं| इसलिए 375 सफेद चन्दन के आसपास 125 अन्य साथी पौधे भी लगाना आवश्यक है|
ये साथी पौधे लाल चन्दन, कैजुराइना, देसी नीम, मीठी नीम एवंसहजन के पौधे आदि हो सकते हैं|
चन्दन की खेती करने के लिए बीज या पौधे किसी का भी रोपण किया जा सकता है| इसके लिए आप दोनों में किसी भी चीज को खरीद सकते हैं|
व्यवसायिक रूप से देखा जाये तो चन्दन की खेती किसान कुछ विशेष सावधानी के साथ आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि जैसे किसी भी राज्य में कर सकते हैं| इसलिए यह किसानों के लिए पैसे कमाने का सुनहरा अवसर है|
चंदन का पेड़ कितने साल में तैयार होता है?
चंदन के पौधों को पेड़ बनने में करीब 12 से 15 साल का समय लगता है| 12 साल में इसका वजन 15 किलो आता है, जबकि 15 साल होते तक इसका वजन 20 किलो हो जाता है|
चंदन की लकड़ी की कीमत क्या है?
बीज भी 300 रुपए किलो बिकते हैं। जानकारी के अनुसार चंदन की लकड़ी का औसत बाजार मूल्य 5 से 6 हजार रुपए प्रतिकिलो है।
चंदन पाउडर स्वास्थ्य के लिए लाभ
चंदन पाउडर का इस्तेमाल न केवल चेहरे को सॉफ्ट और ग्लोइंग बनाता है बल्कि इसके इस्तेमाल से त्वचा से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान भी हो जाता है। पित्त के कारण होने वाली पेट की गड़बड़ी में भी चंदन का फायदा मिल सकता है। आप चंदन का इस्तेमाल बुखार को ठीक करने के लिए भी कर सकते हैं।
चंदन की खेती में खाद प्रबंधन
चंदन की खेती (sandalwood Farming) में जैविक खादकी अधिक आवश्यकता नहीं होती है। शुरू में फसल की वृद्धि के समय खाद की जरुरत पड़ती है। लाल मिट्टी के 2 भाग, खाद के 1 भाग और बालू के 1 भाग को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। गाद भी पौधों को बहुत अच्छा पोषण प्रदान करता है।
ये भी पढ़ें: रोज़मेरी – सुगंधित पौधे की खेती (Rosemary Aromatic Plant Cultivation Info in Hindi)
Q: क्या भारत में चन्दन के पौधे लगाना कानूनी रूप से सही है?
Ans: हाँ, लेकिन इसका गैर कानूनी तरीके से उपयोग नहीं किया जाना चाहिए|
Q: चन्दन की लकड़ी की प्रति किलोग्राम कीमत कितनी है?
Ans: 6 से 12 हजार रूपये
Q: भारत में चदन के पौधे कहाँ सबसे ज्यादा विकसित हैं?
Ans: पश्चिम बंगाल
Q: चन्दन की खेती कैसे करें?
Ans: बेहतर मिट्टी, जगह और वातावरण के साथ ही बीज या पौधों की व्यवस्था करके|
Q: चन्दन की लकड़ी इतनी महंगी क्यों होती है?
Ans: क्योकि विश्व भर में इसका उत्पादन बहुत कम होता है और मांग बहुत अधिक होती है|
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पश्चिम बंगाल में किसानों के लिए मददगार होंगे नए केन्द्रीय कृषि कानून : कृषि विशेषज्ञ Divya Sandesh
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पश्चिम बंगाल में किसानों के लिए मददगार होंगे नए केन्द्रीय कृषि कानून : कृषि विशेषज्ञ
कोलकाता। केंद्रीय कृषि कानून को लेकर देशभर में मचे विवाद के बीच पश्चिम बंगाल के कृषि विशेषज्ञ विद्युत कुमार बसु ने कहा है कि केंद्रीय कृषि कानून बंगाल के किसानों के लिए काफी मददगार साबित होने वाले हैं। रविवार को “हिन्दुस्थान समा��ार” से विशेष बातचीत के दौरान कृषि विशेषज्ञ बसु ने केंद्रीय कृषि कानून के कई सकारात्मक पहलुओं का जिक्र किया है। कृषि विशेषज्ञ बसु ग्रामीण और कृषि अर्थशास्त्र के प्रशिक्षक और राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के पूर्व अधिकारी हैं। इस विशेष साक्षात्कार के दौरान कई प्रमुख मुख्य बिंदुओं पर बेवाक राय रखी। साक्षात्कार के प्रमुख सारांश।
प्रश्न: सामान्यतः कृषि एक आयामी विषय प्रतीत होता है लेकिन कृषि विभिन्न विषयों का एक संयोजन है। इस पर आप क्या कहते हैं? उत्तर: कृषि केंद्रित अर्थव्यवस्था से मेरा तात्पर्य केवल कृषि उत्पादन, संरक्षण और विपणन से नहीं है, बल्कि कृषि से किसान की आय और उनकी वित्तीय स्थिति से भी है। किसान को अपनी उपज बचाने, या सही कीमत पाने का मौका नहीं मिलता। कृषि की लागत भी काफी अधिक होती है। इसकी स्टोरेज या मार्केटिंग सिस्टम भी सही नहीं है। किसान को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिलता। साथ ही कृषि प्रशिक्षण का भी अभाव है। समय पर ऋण की उचित राशि, प्रमाणित बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई का पानी, कृषि यंत्र, कृषि बीमा, कृषि भूमि कानून, कृषि मजदूरों की भूमि सीमा या काम करने की स्थिति, कृषि अनुसंधान के लाभ आदि। कृषि अर्थशास्त्र मूल रूप से इन मुद्दों का एक संयोजन है।
प्रश्न: क्या इस राज्य की कृषि विकास दर संबंधित क्षेत्रों में औसत राष्ट्रीय विकास दर से बेहतर है? उत्तर: धान, जूट और सब्जियों के उत्पादन में पश्चिम बंगाल प्रथम है। इसके अलावा फल और चाय उत्पादन में दूसरे और फूल उत्पादन में बंगाल तीसरे स्थान पर है। दूसरे राज्यों से सिर्फ दालें, खाद्य तेल और प्याज का आयात करना पड़ता है।
प्रश्न: कृषि विकास के लिए अन्य बुनियादी ढांचे की स्थिति क्या है? उत्तर : बंगाल में कृषि का बुनियादी ढांचा काफी कमजोर है। आलू कोल्ड स्टोरेज या चावल का गोदाम पर्याप्त नहीं है। इसलिए यहां की सब्जियां और फूल दूसरे राज्यों के जरिए विदेशों में निर्यात किए जाते हैं। विपणन केंद्र की भारी कमी है। किसान मंडियां ठीक से काम नहीं करतीं।
प्रश्न: इस राज्य में कृषि के लिए संस्थागत समर्थन की क्या भूमिका है? उत्तर : फार्मा निर्माता संगठन भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन, उर्वरकों की आपूर्ति, कृषि मशीनरी और बीज, और यहां तक कि विस्तार के लिए मददगार हो सकता है। नाबार्ड और कई स्वयंसेवी संगठनों की प्रारंभिक सफलता के बाद केंद्र सरकार ने पिछले साल जुलाई में एक बड़े पैमाने पर केंद्रीय परियोजना की घोषणा की। पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों ने तदनुसार क��र्रवाई की है।
प्रशिक्षण और अनुसंधान: राज्य में तीन कृषि विश्वविद्यालय, कई कृषि विज्ञान केंद्र और एक केंद्रीय अनुसंधान संस्थान हैं। उर्वरक और बीज आपूर्ति अपर्याप्त है। बीज के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। रासायनिक खाद बाहर से आती है। कीमत ज्यादा है। वाणिज्यिक बैंक, ग्रामीण बैंक और सहकारी समितियां कृषि ऋण के मुख्य आपूर्तिकर्ता हैं। लेकिन सही समय पर काम नहीं होता। सभी किसानों को कृषि बीमा के तहत लाया जाना चाहिए।
प्रश्न: अन्य राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में कृषि अर्थव्यवस्था की स्थिति क्या है? उत्तर: भारत में कृषि के क्षेत्र में वास्तव में एक क्रांति हुई है। हर चीज का उत्पादन बहुत बढ़ गया है। उत्पादन के मामले में पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल बेहतर है। लेकिन मुनाफे को देखते हुए, केरल, गोवा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य वाणिज्य खेती में काफी सफल हैं।
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प्रश्न: पश्चिम बंगाल में किसानों की दुर्दशा क्यों है, भले ही उनका उत्पादन में उच्च स्थान है? उत्तर : सबसे पहले, पारंपरिक फसलें जैसे धान का उत्पादन सबसे अधिक होता है और कीमत कम मिलती है। सब्जियां, फूल, फल लाभदायक हैं लेकिन बेहतर संरक्षण और विपणन प्रणाली की जरूरत है। जहां ये सुविधाएं हैं, वहां किसान अच्छी आय कर रहे हैं।
मुख्य बाधा भूमि की मात्रा, प्रति परिवार 0.6 हेक्टेयर है जबकि भारत में औसत 1.06 हेक्टेयर है। पश्चिम बंगाल के 98 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, इतनी छोटी भूमि पर खेती की लागत भी नहीं आती है।
प्रश्न: आय बढ़ाने का उपाय क्या है? उत्तर : अधिक कीमत पर बिकने वाले अनाज की खेती शुरू करनी होगी। उत्तर बंगाल में तटीय इलाकों में काली मिर्च, सुपारी, बादाम बोया जा सकता है। धान की जगह केले की खेती हो रही है। जंगल में चंदन के पेड़ लगाने पर विचार किया जा रहा है। संरक्षण और विपणन में सुधार। जापान के कावासाकी का सिंगुर में एक मॉडल की टेस्टिंग की जा रही है।
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प्रश्नः वामपंथी और तृणमूल नए कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं। कोई वजह? उत्तर: पश्चिम बंगाल में बांकुड़ा, बर्दवान और हावड़ा के कुछ स्थानों पर ठेके पर खेती हो रही है। चिप्स के लिए आलू का उपयुक्त उत्पादन हो रहा है। राज्य में कहीं भी किसानों ने इसके खिलाफ आंदोलन नहीं किया है। यदि समझौते को संय��क्त रूप से संस्थागत रूप दिया जाता है, तो आशंकाएं निराधार हैं। जैसे एफपी�� या सहकारी समितियों के माध्यम से किसान और निजी कंपनियों के बीच समझौते हो तो बेहतर तालमेल होगा। केंद्र का नया कृषि कानून किसानों के लिए हर तरह से मददगार है। अगर मौसम की वजह से फसलों को नुकसान भी पहुंचता है तो इस बात का जिक्र भी समझौते के पत्र में पहले ही किया जा सकता है ताकि किसानों को बहुत अधिक नुकसान नहीं उठाना पड़े। यह महसूस करते हुए कि नया कानून पश्चिम बंगाल में किसानों की मदद करेगा, कानून को आंशिक रूप से बदल दिया गया है।
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सूरजमुखी की फसल किस प्रकार लाभदायक है इसका महत्व एवं उपयोग लिखिए? सूरजमुखी विश्व की एक वानस्पतिक तेल वाली महत्वपूर्ण फसल है ।
सूरजमुखी के फूल सूरजमुखी के फूल सूरजमुखी के बीज की कीमत सूरजमुखी कौन सी फसल है सूरजमुखी में कौन सा पुष्पक्रम पाया जाता है सूरजमुखी का फूल का चित्र सूरजमुखी का महत्व सूरजमुखी का पौधा कैसा होता है सूरजमुखी का कुल सूरजमुखी का उत्पादन सूरजमुखी की खेती कहां होती है सूरजमुखी का बीज सूरजमुखी के आर्थिक महत्व
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किसान विरोधी बिल पर मायावती ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना
नई दिल्ली : सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी `ने लोकसभा में भारी विरोध के बावजूद कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन बिलों को लोकसभा में पेश कराने के बाद पारित भी करा लिया। तीनों बिलों में लोकसभा में जबरदस्त संग्राम मचा। विपक्ष के साथ ही एनडीए की सहयोगी अकाली दल ने भी इस पर आपत्ति जताई। हालात इतने बिगड़े कि मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा ही दे दिया।
वहीं, बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी किसा���ों से जुड़े बिल पास होने पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि संसद में किसानों से जुड़े दो बिल, उनकी सभी शंकाओं को दूर किये बिना ही, कल पास कर दिये गये हैं। उससे बी.एस.पी. कतई भी सहमत नहीं है। पूरे देश का किसान क्या चाहता है? इस ओर केन्द्र सरकार जरूर ध्यान दे तो यह बेहतर होगा।
ये हैं वो तीन बिल…��.
कृषक उपज व्यापार व वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल, २०२०
किसान अपनी उपज के दाम खुद ही तय करने के लिए स्वतंत्र
किसान की फसल सरकारी मंडियों में बेचने की बाध्यता खत्म
किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी को भी बेच पाएंगे
लेन-देन की लागत घटाने को मंडी से बाहर टैक्स नहीं वसूला जाएगा
खरीदार फसल खरीदते ही किसान को देगा देय राशि सहित डिलीवरी रसीद
खरीदार को तीन दिन के अंदर करना होगा किसान के बकाये का पूरा भुगतान
व्यापारिक प्लेटफार्म यानी फसल की ऑनलाइन खरीद फरोख्त भी संभव
एक देश और एक बाजार सिस्टम की तरफ बढने के होंगे उपाय
अन्य वैकल्पिक व्यापार चैनलों के माध्यम से भी फसल बेच पाएंगे किसान
व्यापारिक विवाद का 30 दिन के अंदर किया जाएगा निपटारा
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार बिल-2020 के प्रावधान
फसल बोने से पहले ही किसान तय कीमत पर बेचने का कर पाएगा अनुबंध
कृषि करारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क तैयार किए जाने का किया गया है प्रावधान
कृषि फर्मों, प्रोसेसर्स, एग्रीगेटर्स, थोक विक्रेताओं व निर्यातकों से किसानों को जोड़ेगा
उच्च प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, पूंजी निवेश के लिए भी निजी क्षेत्र से अनुबंध का मौका
कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी से रिसर्च एंड डेवलपमेंट को बढ़ाएगा
अनुबंधित किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करेगा
फसल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा व फसल बीमा की सुविधा भी दिलाएगा
अनुबंधित किसान को नियमित और समय पर भुगतान होने का करेगा संरक्षण
सही लॉजिस्टिक सिस्टम और वैश्विक विपणन मानकों पर फसल तैयार करने में मदद
आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) बिल-2020 के प्रावधान
अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू आवश्यक वस्तुओं की सूची से होंगे बाहर
कृषि या एग्रो प्रोसेसिंग के क्षेत्र में निजी निवेशकों को व्यापारिक परिचालन में नियामक हस्तक्षेप से मिलेगा छुटकारा
किसानों को अपने उत्पाद, उत्पाद जमा सीमा, आवाजाही, वितरण और आपूर्ति की छूट मिलेगी
किसान क्षेत्रीय मंडियों के बजाय दूसरे प्रदेशों में ले जाकर फसल बेचेंगे तो मंडी कर नहीं देने पर बढ़ेगा मुनाफ���
निजी कंपनियों को सीधे किसानों से खरीद की दी जाएगी छूट, कृषि उत्पादों की जमा सीमा पर नहीं होगी रोक
कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की राह खुलने से आधुनिक खेती का आएगा दौर
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नयी दिल्ली। विदेशी बाजारों में मंदी के रुख के बीच ऊंचे भाव पर खाद्य तेलों की मांग कमजोर पड़ने से दिल्ली तेल तिलहन बाजार में बृहस्पतिवार को सरसों, सोयाबीन, पामोलीन सहित विभिन्न खाद्य तेलों में नरमी का रुख रहा और तेल तिलहन कीमतें हानि दर्शाती बंद हुई।बाजार सूत्रों ने बताया कि विदेशी बाजारों में तेल कीमतों में मंदी का रुख है और बाजार से लिवाल गायब हैं।
वायदा कारोबार में सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से लगभग 15 प्रतिशत नीचे बिक रहा है। बाजार सूत्रों ने कहा कि इसके अलावा अफ्रीका से शून्य शुल्क पर सोयाबीन बीज का आयात हो रहा है जिससे स्थानीय किसान प्रभावित हो रहे हैं। इसे बंद किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि सरकार को सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क में 10 प्रतिशत की वृद्धि करनी चाहिये और पाम तेल पर जीएसटी 28 प्रतिशत लगा देनी चाहिये ताकि किसान के हितों की रक्षा हो।
उन्होंने कहा कि तेल मिलें पामोलीन तेल के लिए 88 रुपये लीटर की कीमत बोल रही हैं और लिवाल नहीं होने से यह बाजार में 81 रुपये लीटर के भाव बेचा जा रहा है। इससे स्थानीय तेल तिलहनों के भाव प्रभावित हो रहे हैं। सरसों दाना की कीमत बृहस्पतिवार को 30 रुपये टूटकर 4,280-4,310 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई। सरसों दादरी का भाव 50 रुपये टूटकर 8,700 रुपये प्रति क्विन्टल रह गया जबकि सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी की कीमतें भी पांच- पांच रुपये की हानि के साथ क्रमश: 1,370-1,520 रुपये और 1,390-1,540 रुपये प्रति टिन रह गई।
वनस्पति घी का भाव 10 रुपये टूटकर 975-1,310 रुपये प्रति टिन रह गया। मूंगफली दाना और तेल मूंगफली मिल डिलिवरी गुजरात की कीमतें 10 रुपये और 50 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,455-4,480 रुपये और 10,950 रुपये प्रति क्विन्टल पर बोली गईं। सोयाबीन मिल डिलिवरी दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम के भाव क्रमश: 30 रुपये, 20 रुपये और 40 रुपये टूटकर क्रमश: 9,150 रुपये, 8,880 रुपये और 8,210 रुपये प्रति क्विन्टल रह गये।
सीपीओ एक्स कांडला और बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा) के भाव 50-50 रुपये की हानि के साथ क्रमश: 7,450 रुपये और 7,800 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। जबकि पामोलीन आरबीडी दिल्ली और पामोलीन कांडला तेल के भाव 100 रुपये और 90 रुपये टूटकर क्रमश: 8,900 रुपये और 8,150 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। बृहस्पतिवार ���ो भाव इस प्रकार रहे- (भाव रुपये प्रति क्विंटल)
सरसों दाना – 4,280 – 4,310 रुपये। मूंगफली दाना – 4,455 – 4,480 रुपये। वनस्पति घी- 975 – 1,310 रुपये प्रति टिन। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात)- 10,950 रुपये। मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल 1,810 – 1,855 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 8,700 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 1,370 – 1,520 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 1,390 – 1,540 रुपये प्रति टिन।
तिल मिल डिलिवरी- 10,000 – 15,500 रुपये। सोयाबीन मिल डिलिवरी दिल्ली- 9,150 रुपये। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 8,880 रुपये। सोयाबीन डीगम- 8,210 रुपये। सीपीओ एक्स-कांडला- 7,450 रुपये। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 7,800 रुपये। पामोलीन आरबीडी दिल्ली- 8,900 रुपये। पामोलीन कांडला- 8,150 रुपये (बिना जीएसटी के)। नारियल तेल- 2,560- 2,610 रुपये। सोयाबीन तिलहन डिलिवरी भाव 4,250- 4,300, लूज में 4,000-4,100 रुपये। मक्का खल- 3,600 रुपये।
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केवल भाषणों में किसानों की हितैषी होने का दिखावा करना ही इसकी नीयत है-अनिल दुबे लखनऊ 27 नवम्बर। राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा कि प्रदेष सरकार लगातार किसानों की अनदेखी कर रही है केवल अपने भाषणों में किसानों की हितैषी होने का दिखावा करना ही इसकी नीयत है। सभी जनपदों में रबी की बुवाई युद्वस्तर पर चल रही है परन्तु किसानों की खाद और बीज की उपलब्धता आसानी से नहीं हो रही है। सहकारी समितियिों के गोदामों पर ताले पडे़ हैं जबकि प्रदेष सरकार पूरे प्रदेष में भरपूर स्टाॅक होने का दावा कर रही है। किसान केवल सरकार की घपले और घोटालेबाजी की मार झेल रहा है। श्री दुबे ने कहा कि प्रदेष सरकार ने किसानों का बिजली का बिल बेतहाषा बढाकर सिचाई की कीमत तीन गुना कर दी है। खाद और बीज भी मंहगे दामों पर उपलब्ध हो रहे हैं यूरिया मंहगी हो गयी है तथा यूरिया की बोरी का वजन भी 50 किलो से घटाकर 45 किलो कर दिया गया है और सरकार केवल किसानों की आमदनी दुगुना करने की बात अपने भाषणों तक सीमित रखे हुये है। गन्ना किसानों का भी वर्तमान सत्र प्रारम्भ हो चुका है। जबकि पिछले सत्र का ही हजारों करोडों रूपया बकाया है जो 14 दिन के अन्दर भुगतान होना चाहिए। गन्ने की फसल काटकर चीनी मिलों तक पहुंचाना किसान की मजबूरी होती है क्योंकि उसे रबी की बुवाई के लिए खेत खाली करना है और सरकार उनके गन्ने का मूल्य बकाया रखकर मिल मालिकों को संरक्षण देकर ऐष और आराम करने के लिए छोड देते है। राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा कि दरअसल यह सरकार किसानों के साथ साथ सभी मोर्चो पर फेल साबित हो चुकी है। सरकार न तो किसानों को लागत का डेढ गुना मुल्य दे पायी, न तो किसानों के खाते में 15 लाख रूपये आये और न ही युवाओं को रोजगार दे पायी। बल्कि मंहगाई, भ्रष्टाचार बढा है और कानून व्यवस्था दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है। अन्र्तराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम होने के बावजूद पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं और सरकार अपनी इन विफताओं को छिपाने के लिए मंन्दिर मस्जिद के मुददे उछालकर पुनः सत्ता में आना चाहती है। उन्होंने कहा कि जनता के बीच भाजपा की सरकार बेनकाब हो चुकी है और आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबक सिखायेगी।
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इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत
नई वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से तिलहनी फसल मूंगफली की खेती देगी अच्छा मुनाफा
पिछले कुछ समय से टेक्नोलॉजी में काफी सुधार की वजह से कृषि की तरफ रुझान देखने को मिला है और बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों को छोड़कर आने वाले युवा भी, अब धीरे-धीरे नई वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से भारतीय कृषि को एक बदलाव की तरफ ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।
जो खेत काफी समय से बिना बुवाई के परती पड़े हुए थे, अब उन्हीं खेतों में अच्छी तकनीक के इस्तेमाल और सही समय पर अच्छा मैनेजमेंट करने की वजह से आज बहुत ही उत्तम श्रेणी की फसल लहलहा रही है।
इन्हीं तकनीकों से कुछ युवाओं ने पिछले 1 से 2 वर्ष में तिलहन फसलों के क्षेत्र में आये हुए नए विकास के पीछे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
तिलहन फसलों में मूंगफली को बहुत ही कम समय में अच्छी कमाई वाली फसल माना जाता है।
पिछले कुछ समय से बाजार में आई हुई हाइब्रिड मूंगफली का अच्छा दाम तो मिलता ही है, साथ ही इसे उगाने में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो गए हैं। केवल दस बीस हजार रुपये की लागत में तैयार हुई इस हाइब्रिड मूंगफली को बेचकर अस्सी हजार रुपये से एक लाख रुपए तक कमाए जा सकते हैं।
ये भी पढ़ें: मूंगफली की बुवाई
इस कमाई के पीछे की वैज्ञानिक विधि को चक्रीय खेती या चक्रीय-कृषि के नाम से जाना जाता है, जिसमें अगेती फसलों को उगाया जाता है।
अगेती फसल मुख्यतया उस फसल को बोला जाता है जो हमारे खेतों में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसल जैसे कि गेहूं और चावल के कुछ समय पहले ही बोई जाती है, और जब तक अगली खाद्यान्न फसल की बुवाई का समय होता है तब तक इसकी कटाई भी पूरी की जा सकती है।
इस विधि के तहत आप एक हेक्टर में ही करीब 500 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन कर सकते हैं और यह केवल 60 से 70 दिन में तैयार की जा सकती है।
ये भी पढ़ें: मूंगफली (Peanut) के कीट एवं रोग (Pests and Diseases)
मूंगफली को मंडी में बेचने के अलावा इसके तेल की भी अच्छी कीमत मिलती है और हाल ही में हाइब्रिड बीज आ जाने के बाद तो मूंगफली के दाने बहुत ही बड़े आकार के बनने लगे हैं और उनका आकार बड़ा होने की वजह से उनसे तेल भी अधिक मिलता है।
चक्रीय खेती के तहत बहुत ही कम समय में एक तिलहन फसल को उगाया जाता है और उसके तुरंत बाद खाद्यान्न की किसी फसल को उगाया जाता है।
जैसे कि हम अपने खेतों में समय-समय पर खाद्यान्न की फसलें उगाते हैं, लेकिन एक फसल की कटाई हो जाने के बाद में बीच में बचे हुए समय में खेत को परती ही छोड़ दिया जाता है, लेकिन यदि इसी बचे हुए समय का इस्तेमाल करते हुए हम तिलहन फसलों का उत्पादन करें, जिनमें मूंगफली सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है।
ये भी पढ़ें: इस फसल को बंजर खेत में बोएं: मुनाफा उगाएं – काला तिल (Black Sesame)
भारत में मानसून मौसम की शुरुआत होने से ठीक पहले मार्च में मूंगफली की खेती शुरू की जाती है। अगेती फसलों का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इन्हें तैयार होने में बहुत ही कम समय लगता है, साथ ही इनकी अधिक मांग होने की वजह से मूल्य भी अच्छा खासा मिलता है।
इससे हमारा उत्पादन तो बढ़ेगा ही पर साथ ही हमारे खेत की मिट्टी की उर्वरता में भी काफी सुधार होता है।
इसके पीछे का कारण यह है, कि भारत की मिट्टि में आमतौर पर नाइट्रोजन की काफी कमी देखी जाती है और मूंगफली जैसी फसलों की जड़ें नाइट्रोजन यौगिकीकरण या आम भाषा में नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen Fixation), यानी कि नाइट्रोजन केंद्रीकरण का काम करती है और मिट्टी को अन्य खाद्यान्न फसलों के लिए भी उपजाऊ बनाती है।
इसके लिए आप समय-समय पर कृषि विभाग से सॉइल हेल्थ कार्ड के जरिए अपनी मिट्टी में उपलब्ध उर्वरकों की जांच भी करवा सकते हैं।
ये भी पढ़ें: अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार
मूंगफली के द्वारा किए गए नाइट्रोजन के केंद्रीकरण की वजह से हमें यूरिया का छिड़काव भी काफी सीमित मात्रा में करना पड़ता है, जिससे कि फर्टिलाइजर में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो सकते हैं। इसी बचे हुए पैसे का इस्तेमाल हम अपने खेत की यील्ड को बढ़ाने में भी कर सकते हैं।
यदि आपके पास इस प्रकार की हाइब्रिड मूंगफली के अच्छे बीज उपलब्ध नहीं है तो उद्यान विभाग और दिल्ली में स्थित पूसा इंस्टीट्यूट के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर एडवाइजरी जारी की जाती है जिसमें बताया जाता है कि आपको किस कम्पनी की हाइब्रिड मूंगफली का इस्तेमाल करना चाहिए।
समय-समय पर होने वाले किसान चौपाल और ट्रेनिंग सेंटरों के स��थ ही दूरदर्शन के द्वारा संचालित डीडी किसान चैनल का इस्तेमाल कर, युवा लोग मूंगफली उत्पादन के साथ ही अपनी स्वयं की आर्थिक स्थिति तो सुधार ही रहें हैं, पर इसके अलावा भारत के कृषि क्षेत्र को उन्नत बनाने में अपना भरपूर सहयोग दे रहे हैं।
आशा करते हैं कि मूंगफली की इस चक्रीय खेती विधि की बारे में Merikheti.com कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आप भी भारत में तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के अलावा अपनी आर्थिक स्थिति में भी सुधार करने में सफल होंगे।
source इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत
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रूसी राष्ट्रपति पुतिन को 'हत्यारा' बता जो बाइडन ने बो दिया दुनिया में युद्ध का बीज? Divya Sandesh
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रूसी राष्ट्रपति पुतिन को 'हत्यारा' बता जो बाइडन ने बो दिया दुनिया में युद्ध का बीज?
वॉशिंगटन/मास्को जो बाइडेन के सत्ता संभालने के साथ ही अमेरिका का उसके चिर प्रतिद्वंदी रूस के साथ तनाव बहुत बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को ‘हत्यारे’ की संज्ञा दी है और चेतावनी दी है कि उन्हें इसकी ‘कीमत चुकानी पड़ेगी।’ उधर, इस चेतावनी के बाद रूस ने अपने राजदूत को वापस बुला लिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले साल दुनिया के लिए काफी चुनौतिपूर्ण होने जा रहे हैं और जंग या शीत युद्ध का खतरा बेहद वास्तविक नजर आ रहा है।
विदेशी मामलों के जानकार डॉक्टर रहीस सिंह एनबीटी ऑनलाइन से कहते हैं कि ओबामा के समय में भी रूस को अमेरिका क्रीमिया कांड के बाद एक ध्रुव के रूप में देखने लगा था। डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद उन्होंने चीन को घेरना शुरू कर दिया था। अब बाइडेन फिर से ओबामा के दौर में लौट रहे हैं। डॉक्टर सिंह कहते हैं कि अब पुराना कोल्ड वार नहीं होने जा रहा है। अब 3 पोल हैं जिसमें अमेरिका को उस तरह से महाशक्ति के रूप में लोग नहीं मान रहे हैं जिस तरह से उसे सब प्राइम संकट से पहले माना जाता था। चीन और रूस दो अन्य पोल हैं। अब अगर कोल्ड वार शुरू होता है तो उसका रूप पहले से अलग होगा।
‘दुनिया में अब बहुत जल्द ही छोटे युद्ध तलाशे जाएंगे’ डॉक्टर सिंह ने कहा कि यह अपने आप में एक शुरुआत है जिसमें मास्को-वॉशिंगटन के बीच अगर टकराव बढ़ा तो मास्को और पेइचिंग के बीच दोस्ती बढ़ेगी। यह न केवल अमेरिका बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र और पूरे विश्व के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होगा। यह बाइडेन की बहुत बड़ी गलती होगी। उन्होंने कहा कि अगर रूस और चीन के बीच दोस्ती बढ़ती है तो वे पहले हमला अमेरिका पर नहीं करेंगे बल्कि जापान, ऑस्ट्रेलिया और इजरायल जैसे देशों पर करेंगे। कोरोना काल के बीच बाइडेन को इस तरह की पहल नहीं करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि नए कोल्ड वार का स्वरूप बदल सकता है लेकिन तनाव बढ़ेगा। इसमें कोरोना के बाद आने वाले संकट शामिल हैं। मुझे लगता है कि अब बहुत जल्द ही छोटे युद्ध तलाशे जाएंगे जिसमें किसी तीसरे देश को निशाना बनाया जाएगा जो इनमें से किसी एक का दोस्त होगा। इतिहास में पहले भी ऐसा हो चुका है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा कहते हैं, ‘अमेरिका और यूरोप का धीरे-धीरे पतन हो रहा है। अमेरिका पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहा था और उसने कई ट्रिल्यन डॉलर कर्ज ले रखा है। दोनों की अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर है। अब कोरोना ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका दिया है और इसकी चपेट में पश्चिमी देश भी हैं। हमने देखा है कि जब आर्थिक संकट आया है तो पश्चिमी देश या बड़े देश अपने संकट को दूसरों को ट्रांसफर कर देते हैं। इसी वजह से पहला और दूसरा विश्वयुद्ध हो चुका है।’
‘बाइडेन पर रिपब्लिकन पार्टी का बहुत दबाव’ आगा ने कहा कि जब अमेरिका में रिपब्लिकन आते हैं तो वे चीन को घेरते हैं और जब डेमक्रेट अमेरिका में सत्ता में आते हैं तो वे रूस को घेरते हैं। ओबामा ने चीन को साधा था कि ताकि रूस को घेरा जा सके। अब बाइडेन भी ओबामा की राह पर हैं। बाइडेन पर रिपब्लिकन पार्टी का बहुत दबाव है। रिपब्लिकन पार्टी कहती है कि बाइडेन ट्रंप के मुकाबले कमजोर हैं और अमेरिका को संभाल नहीं सकते हैं। इसी वजह से आने वाले समय में बाइडेन और ज्यादा सख्त रुख अपना सकते हैं। वह यह दिखाने की कोशिश करेंगे, सख्त फैसले ले सकते हैं। इससे युद्ध का खतरा काफी बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा कि पहले तकनीक के ऊपर पहले पश्चिमी देशों का बहुत नियंत्रण था लेकिन अब भारत, चीन और रूस बहुत आगे निकल चुके हैं। इसके अलावा तेल की सप्लाइ पहले पश्चिमी देशों को ज्यादा होती थी लेकिन अब भारत और चीन जैसे खरीदार आ गए हैं। इससे सऊदी जैसे देश अब भारत जैसे देश में निवेश कर रहे हैं। कमर आगा ने बताया कि कोरोना काल के बाद एक नई विश्व व्यवस्था बनने जा रही है। पश्चिमी देश चाहते हैं कि इस नई आर्थिक या राजनीतिक व्यवस्था में भी उनकी बादशाहत बनी रहे लेकिन भारत चाहेगा कि यह बहुध्रुवीय हो। भारत आर्थिक व्यवस्था में बड़ी भागीदारी हो।
‘विश्व व्यस्था में चीन मजबूत तो होगा लेकिन नंबर वन नहीं’ आगा ने कहा कि जब व्यवस्था में बदलाव होता है तो तनाव बड़ी ताकतों के बीच में बढ़ जाते हैं। यह 20वीं सदी में हुआ था और आगे भी इसकी संभावना है। हालांकि बाइडेन अभी रूस को कितना रोक पाएंगे यह कहा नहीं जा सकता है। रूसी तकनीक यूरोप के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। उन्होंने कहा कि कोविड के बाद की विश्व व्यस्था में चीन मजबूत तो होगा लेकिन नंबर वन नहीं हो सकता है। इसकी वजह यह है क�� उसके दोस्त कम हैं और वह इतना कर्ज बांट चुका है कि खुद ही संकट में है।
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ऐसे करें सूरजमुखी की उन्नत खेती (surajmukhi ki kheti) होगा दोगुना लाभ भारतवर्ष में मूंगफली एवं सरसों के बाद सूरजमुखी की खेती (surajmukhi ki kheti) का तिलहनी फसलों में तीसरा स्थान है ।
सूरजमुखी की खेती कैसे की जाती है? सूरजमुखी के बीज का फैलाव कैसे होता है? सूरजमुखी की खेती कब होती है? सूरजमुखी की खेती कब की जाती है? सूरजमुखी की खेती कैसे करें? सूरजमुखी की खेती कहां होती है? सूरजमुखी की खेती के बारे में? सूरजमुखी की खेती का वर्णन कीजिए? सूरजमुखी की खेती इन हिंदी? सूरजमुखी की खेती कब करें? सूरजमुखी मंडी भाव सूरजमुखी के बीज की कीमत सूरजमुखी का तेल price सूरजमुखी का बीज सूरजमुखी का भाव 2020 सूरजमुखी कौन सी फसल है सूरजमुखी का उत्पादन सूरजमुखी का पेड़ सूरजमुखी की खेती कहां होती है सूरजमुखी का फोटो सूरजमुखी के बीज online सूरजमुखी का आर्थिक महत्व
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आयात शुल्क मूल्य बढ़ने, वैश्विक स्टॉक की कमी से बीते सप्ताह तेल-तिलहन कीमतों में सुधार Divya Sandesh
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आयात शुल्क मूल्य बढ़ने, वैश्विक स्टॉक की कमी से बीते सप्ताह तेल-तिलहन कीमतों में सुधार
नयी दिल्ली, 28 फरवरी (भाषा) आगामी त्योहारी मांग के अलावा खाद्य तेलों के वैश्विक स्टॉक की पाइपलाइन खाली होने तथा देश में आयात शुल्क मूल्य में बढ़ोतरी किये जाने की वजह से बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में खाद्य तेल कीमतों में सुधार का रुख रहा और भाव पर्याप्त लाभ दर्शाते बंद हुए। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि मंडियों में पुराने सरसों की मांग है और व्यापारियों एवं तेल मिलों के पास इसका कोई स्टॉक नहीं बचा है। पिछले साल का भी कोई स्टॉक शेष नहीं है और पाइपलाइन खाली है। मंडियों में सरसों की नई फसल की आवक बढ़ रही है, लेकिन इसमें अभी हरापन है जिसे परिपक्व होने में अभी 15-20 दिन का समय लगेगा। उधर, मध्य प्रदेश में पिछले साल के मुकाबले सरसों दाने से तीन-चार प्रतिशत कम तेल की प्राप्ति हो रही है। इन परिस्थितियों में समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान सरसों तेल-तिलहनों के भाव साधारण लाभ दर्शाते बंद हुए। दूसरी ओर निर्यात की मांग के साथ-साथ स्थानीय खपत की मांग होने से मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में भी पर्याप्त सुधार दर्ज हुआ। उन्होंने कहा कि होली और नवरात्र जैसे त्योहारों की वजह से हलवाइयों और कारोबारियों की मांग बढ़ने के अलावा गर्मी के मौसम की मांग बढ़ने से सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में पर्याप्त सुधार आया है। पिछले सप्ताह जिस सीपीओ का भाव 1,030-40 डॉलर प्रति टन था वह अब बढ़कर 1,100 डॉलर प्रति टन हो गया है। पिछले सप्ताह मलेशिया एक्सचेंज की मजबूती की वजह से भी इन तेल कीमतों में सुधार का रुख रहा। इसके अलावा सूरजमुखी तेल का भाव वैश्विक स्तर पर अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई को छू गया है, जिससे बाकी तेलों के भाव में भी ते��ी आई है। दिल्ली में सारे शुल्क जोड़ने के बाद ग्राहकों को सूरजमुखी तेल का भाव 180 रुपये किलो बैठता है। सूरजमुखी तेल क��� इस रिकॉर्ड तेजी की वजह से पामोलीन और सोयाबीन रिफाइंड की मांग काफी बढ़ गई है, जिससे इन तेलों सहित बाकी तेलों के भाव में भी सुधार आया। सूत्रों ने कहा कि बाजार में सोयाबीन के बेहतर दाने का स्टॉक नहीं के बराबर है और पिछले साल के मुकाबले सोयाबीन की उपज लगभग आधी है और इसमें भी बरसात की वजह से फसल को हुए नुकसान के कारण 20 प्रतिशत फसल दागी हैं। अगली फसल के लिए सोयाबीन बीज की भारी कमी है तथा बीज के लिए महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसान सोयाबीन के बेहतर दाने की खरीद लगभग 6,100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव कर रहे हैं। इसके अलावा मुर्गी दाने के लिए डीओसी (तेल रहित खल) की भारी निर्यात मांग (करीब चार लाख टन) है। सोयाबीन की अगली फसल में लगभग आठ महीने की देर होने और अक्टूबर तक 30-35 लाख टन सोयाबीन ख्ली की स्थानीय मांग को देखते हुए सरकार को सोयाबीन के निर्यात पर अंकुश लगाने के बारे में विचार करना पड़ सकता है। देश की पै��ावार का लगभग 50 प्रतिशत भाग जापान को निर्यात किया जाता था, जो इस बार उपज प्रभावित होने के कारण बहुत कम हो गया है। इस परिस्थिति में सोयाबीन तेल-तिलहन कीमतों के भाव समीक्षाधीन सप्ताहांत में लाभ दर्शाते बंद हुए। सूत्रों ने बताया कि इस बार सोयाबीन के लिए अच्छे दाम मिलने के बाद अगले वर्ष इसकी उपज दोगुनी हो सकती है और बिजाई के लिए सरकार को सोयाबीन के अच्छे दानों का इंतजाम पहले से करके रखना होगा। सूत्रों ने कहा कि मौजूदा समय में सोयाबीन की जो स्थिति है वह ऑफ- सीजन के दौरान भी देखने में नहीं आती। सोयाबीन की बड़ियां बनाने वाली कंपनियां सोयाबीन के बेहतर दाने की खरीद 6,125 रुपये क्विन्टल के रिकॉर्ड भाव पर कर रही हैं। सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन दाना और लूज के भाव पिछले सप्ताहांत के मुकाबले क्रमश: 160 रुपये और 150 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 5,250-5,300 रुपये और 5,100-5,150 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और डीगम तेल के भाव क्रमश: 430 रुपये, 550 रुपये और 450 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 12,980 रुपये, 12,820 रुपये और 11,660 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। बाजार में तेजी के आम रुख के अनुरूप गत सप्ताहांत सरसों दाना पांच रुपये के मामूली सुधार के साथ 6,400-6,450 रुपये क्विन्टल और सरसों दादरी तेल 50 रुपये सुधरकर 13,350 रुपये क्विन्टल तथा सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल की कीमतें क्रमश: 15-15 रुपये सुधरकर क्रमश: 2,010-2,160 रुपये और 2,140 -2,255 रुपये प्रति टिन पर बंद हुईं। दूसरी ओर निर्यात गतिविधियों में आई तेजी के बीच मूंगफली दाना सप्ताहांत में 310 रुपये के सुधार के साथ 6,070-6,135 रुपये क्विन्टल और मूंगफली गुजरात तेल 610 रुपये के सुधार के साथ 15,010 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। मूंगफली सॉल्वेंट रिफाइंड की कीमत भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में 105 रुपये सुधरकर 2,400-2,460 रुपये प्रति टिन बंद हुई। समीक्षाधीन सप्ताहांत में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 500 रुपये सुधरकर 10,950 रुपये प्रति क्विंटल हो गये। जबकि पामोलीन दिल्ली और पामोलीन कांडला तेल के भाव क्रमश: 570 रुपये और 360 रुपये सुधरकर क्रमश: 12,820 रुपये और 11,660 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। समीक्षाधीन सप्ताहांत में तिल मिल डिलिवरी तेल 1,250 रुपये सुधरकर 13,500-16,500 रुपये क्विन्टल, बिनौला तेल 700 रुपये (बिना जीएसटी के) सुधारकर 12,000 रुपये और मक्का खल पांच रुपये सुधरकर 3,530 रुपये क्विंटल हो गया।
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सरसों छोड़कर बीते सप्ताह बाकी तेल तिलहन कीमतों में सुधार Divya Sandesh
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सरसों छोड़कर बीते सप्ताह बाकी तेल तिलहन कीमतों में सुधार
नयी दिल्ली, 21 फरवरी (भाषा) आगामी त्यौहारी मांग और बाजार में कारोबारी गतिविधियों के बढ़ने से बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में खाद्य तेल कीमतों में सुधार दर्ज हुआ। मंडियों में सरसों की नई फसल की आवक बढ़ने के बीच सरसों तेल तिलहन कीमतों में गिरावट को छोड़कर सभी तेल तिलहन कीमतें लाभ दर्शाती बंद हुई। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि मंडियों में पुराने सरसों की मांग है और व्यापारियों एवं तेल मिलों के पास इसका कोई स्टॉक नहीं बचा है। पिछले साल का भी कोई स्टॉक शेष नहीं है और पाइपलाईन खाली है। मंडियों में सरसों की नई फसल की आवक बढ़ रही है, लेकिन इसमें अभी हरापन है। सरसों की नई फसल की आवक बढ़ने से सरसों के भाव पिछले सप्ताहांत के मुकाबले साधारण हानि दर्शाते बंद हुए। उन्होंने कहा कि होली और नवरात्र जैसे त्यौहारों की वजह से हलवाइयों और कारोबारियों की मांग बढ़ने से विशेषकर पामोलीन और सोयाबीन रिफाइंड तेलों में पर्याप्त सुधार आया है। इसके अलावा सूरजमुखी तेल का भाव वैश्विक स्तर पर अपने रिकॉर्ड ऊंचाई को छू गया है, जिससे बाकी तेलों के भाव में भी तेजी आई है। सूरजमुखी तेल जो 6-8 महीने पहले 950 डॉलर प्रति टन था, वह मौजूदा समय में बढ़कर 1,455 डॉलर प्रति टन हो गया है। पहले इसकी कीमत सोयाबीन के आसपास थी, लेकिन अभी यह सोयाबीन रिफाइंड के मुकाबले लगभग 325 डॉलर ��धिक हो गया है। सूरजमुखी तेल की इस रिकॉर्ड तेजी की वजह से पामोलीन और सोयाबीन रिफाइंड की मांग काफी बढ़ गई है, जिससे इन तेलों सहित बाकी तेलों के भाव में भी तेजी आई। सूत्रों ने कहा कि निर्यात मांग के अलावा स्थानीय मांग होने के कारण मूंगफली तेल तिलहन कीमतों में भी पर्याप्त सुधार आया। उन्होंने कहा कि बाजार में सोयाबीन के बेहतर दाने का स्टॉक नहीं के बराबर है क्योंकि किसान इसे पहले ही मंडियों में बेच चुके हैं। अगली फसल के लिए सोयाबीन बीज की भारी कमी है तथा बीज के लिए महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसान सोयाबीन के बेहतर दाने की खरीद 5,400-5,500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव कर रहे हैं। सोयाबीन की नई फसल के बाजार में आने में अभी करीब आठ महीने का वक्त है। इसके अलावा मुर्गी दाने के लिए डीओसी (तेल रहित खल) की भारी निर्यात मांग है और निर्यात के आर्डर पूरा करने में मुश्किल आ रही है क्योंकि मंडियों में ज्यादातर फसल बारिश की वजह से दागी (खराब) हैं, जिनका निर्यात नहीं होता। इसके अलावा सोयाबीन की बड़ियां बनाने वाली कंपनियों की भी मांग ज्यादा है। इस परिस्थिति में सोयाबीन तेल तिलहन कीमतों के भाव समीक्षाधीन सप्ताहांत में लाभ दर्शाते बंद हुए। सूत्रों ने बताया कि मिठाई निर्माताओं और नमकीन बनाने वाली कंपनियों की भारी त्यौहारी मांग से सीपीओ, विशेष तौर पर पामोलीन तेल की मांग काफी बढ़ी है, जिस कारण सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में सुधार दिखा। सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन दाना और लूज के भाव पिछले सप्ताहांत के मुकाबले क्रमश: 190 रुपये और 155 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 5,110-5,140 रुपये और 4,950-5,000 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और डीगम तेल के भाव क्रमश: 230 रुपये, 380 रुपये और 280 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 12,550 रुपये, 12,250 रुपये और 11,250 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। मंडियों में नयी फसल की आवक बढ़ने के बीच गत सप्ताहांत सरसों दाना 80 रुपये की हानि के साथ 6,395-6,445 रुपये क्विन्टल और सरसों दादरी तेल 100 रुपये घटकर 13,300 रुपये क्विन्टल तथा सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल की कीमतें 20-20 रुपये की हानि के साथ क्रमश: 1,995-2,145 रुपये और 2,125-2,240 रुपये प्रति टिन पर बंद हुईं। दूसरी ओर निर्यात गतिविधियों में आई तेजी के बीच मूंगफली दाना सप्ताहांत में 60 रुपये के सुधार के साथ 5,760-5,825 रुपये क्विन्टल और मूंगफली गुजरात तेल 50 रुपये के सुधार के साथ 14,400 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। मूंगफली सॉल्वेंट रिफाइंड की कीमत भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में 15 रुपये सुधरकर 2,295-2,355 रुपये प्रति टिन बंद हुई। समीक्षाधीन सप्ताहांत में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 250 रुपये सुधरकर 10,450 रुपये पर बंद हुआ। रिफाइंड पामोलिन दिल्ली और कांडला (बिना जीएसटी) के भाव क्रमश: 400 रुपये और 350 रुपये सुधरकर क्रमश: 12,250 रुपये और 11,300 रुपये प्रति क्विंटल हो गये। समीक्षाधीन सप्ताहांत में बिनौला तेल भी 500 रुपये (बिना जीएसटी के) का सुधार दर्शाता 11,300 रुपये क्विंटल हो गया।
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तोरिया एवं सरसों की खेती कैसे करें? | sarso ki kheti kaise kare? भारतवर्ष में मूंगफली के बाद तेल प्राप्ति हेतु तोरिया एवं सरसों की खेती (sarso ki kheti) का दूसरा स्थान माना जाता है । सरसों कितने दिन में होती है? सरसों में पानी कब लगाना चाहिए? सरसों में कौन सी खाद डालें? राई सरसों की खेती कैसे करें? सरसों की बुवाई कब होती है? पीली सरसों कब बोई जाती है? पीला सरसों का क्या रेट है? सरसों की कीमत कितनी है? सरसों की उन्नत किस्म कौन सी है? सरसों बोने का सही समय क्या है? उच्च पैदावार वाली किस्में बीज एचआईवी क्या होते हैं? सरसों का बॉटनिकल नेम क्या है? सरसों में कौन सी जड़ पाई जाती है? सरसों की प्रजाति सरसों की प्रजाति सरसों की खेती से कमाई श्री विधि से सरसों की खेती सरसों की कटाई का समय राई सरसों की खेती पीली सरसों की खेती काली सरसों की बुवाई का समय सरसों की पछेती किस्म अग्रणी सरसों 45S46 राई की खेती सरसों की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है उत्तर प्रदेश में सरसों की खेती तोरिया सरसों की खेती
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नयी दिल्ली। विदेशी बाजारों में तेजी के रुख के बावजूद ऊंचे भाव पर खाद्य तेलों की मांग कमजोर पड़ने से दिल्ली तेल तिलहन बाजार में बुधवार को सरसों, सोयाबीन सहित विभिन्न खाद्य तेलों में नरमी का रुख रहा और तेल तिलहन कीमतें हानि दर्शाती बंद हुई।बाजार सूत्रों ने बताया कि विदेशी बाजारों में तेल कीमतों में तेजी के रुख के बावजूद बाजार से लिवाल गायब हैं। वायदा कारोबार में सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से लगभग 12 प्रतिशत नीचे यानी लगभग 500 रुपये क्विन्टल नीचे चल रहा है।
इसके अलावा अफ्रीका से सोयाबीन बीज का आयात हो रहा है जिससे स्थानीय किसान प्रभावित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को सोयाबीन बीज के सस्ते आयात पर अंकुश लगाने के लिए नीतिगत उपाय करने चाहिये ताकि डम्पिंग पर अंकुश लगे और स्थानीय किसान हितों की रक्षा हो। सरसों की कीमत बुधवार को 10 रुपये टूटकर 4,310-4,340 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई। सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी की कीमतें भी पांच- पांच रुपये की हानि के साथ क्रमश: 1,375-1,525 रुपये और 1,395-1,545 रुपये प्रति टिन रह गई।
दूसरी ओर साधारण मांग के चलते मूंगफली दाना और तेल मूंगफली मिल डिलीवरी गुजरात की कीमतें 10 रुपये और 250 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 4,465-4,490 रुपये और 11,000 रुपये प्रति क्विन्टल पर बोली गईं। सोयाबीन मिल डिलीवरी दिल्ली का भाव 20 रुपये टूटकर 9,180 रुपये प्रति क्विन्टल रह गया। जबकि पामोलीन कांडला का भाव 10 रुपये टूटकर 8,240 रुपये प्रति क्विन्टल रह गया। भाव इस प्रकार रहे- (भाव रुपये प्रति क्विंटल)
सरसों दाना – 4,310 – 4,340 रुपये मूंगफली दाना – 4,465 – 4,490 रुपये वनस्पति घी- 985 – 1,320 रुपये प्रति टिन मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात)- 11,000 रुपये मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल 1,815 – 1,860 रुपये प्रति टिन सरसों तेल दादरी- 8,750 रुपये प्रति क्विंटल सरसों पक्की घानी- 1,375 – 1,525 रुपये प्रति टिन सरसों कच्ची घानी- 1,395 – 1,545 रुपये प्रति टिन।
तिल मिल डिलिवरी- 10,000 – 15,500 रुपये सोयाबीन मिल डिल���वरी दिल्ली- 9,180 रुपये सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 8,900 रुपये सोयाबीन डीगम- 8,250 रुपये सीपीओ एक्स-कांडला- 7,500 रुपये बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 7,850 रुपये पामोलीन आरबीडी दिल्ली- 9,000 रुपये पामोलीन कांडला- 8,240 रुपये (बिना जीएसटी के) नारियल तेल- 2,560- 2,610 रुपये सोयाबीन तिलहन डिलिवरी भाव 4,250- 4,300, लूज में 4,000-4,100 रुपये मक्का खल- 3,600 रुपये।
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