#बिहारी प्रवासी श्रमिक
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मिलिए बिहारी प्रवासी महिला से, जो परफेक्ट 100 स्कोर करती है, मलयालम साक्षरता परीक्षा में टॉपर के रूप में उभरती है मिलिए बिहारी प्रवासी महिला से, जो परफेक्ट 100 स्कोर करती है, मलयालम साक्षरता परीक्षा में टॉपर के रूप में उभरती है
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सोनू सूद की मदद से मुंबई से दरभंगा पहुंची गर्भवती महिला, बच्चा हुआ तो नाम रखा- सोनू सूत। सोनू सूद अभिनेता के बाद नवजात बेटे नाम की मुंबई की महिलाओं से घर पहुंचने के लिए बिहार प्रवासी श्रमिकों की मदद करते हैं | बॉलीवुड - समाचार हिंदी में
सोनू सूद की मदद से मुंबई से दरभंगा पहुंची गर्भवती महिला, बच्चा हुआ तो नाम रखा- सोनू सूत। सोनू सूद अभिनेता के बाद नवजात बेटे नाम की मुंबई की महिलाओं से घर पहुंचने के लिए बिहार प्रवासी श्रमिकों की मदद करते हैं | बॉलीवुड – समाचार हिंदी में
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सोनू सूद लॉकडाउन में लगातार प्रवासी मजदूरों की मदद कर रहे हैं (फोटो साभार: सोशल मीडिया) सोनू सूद (सोनू सूद) ने बिहार (बिहार) की एक गर्भवती महिला प्रवासी श्रमिक (प्रवासी कामगार) को मुंबई (मुंबई) घर पहुंचाया…
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लुधियाना /सत्यम बिहारी अध्यक्ष मित्र एकता सामाजिक संगठन की ओर से नोडल ऑफिसर एएन मिश्रा को किया गया सम्मानित मित्र एकता समाजिक संगठन की ओर से कुशवाहा कंप्यूटर सेंटर में संगठन के सदस्यों द्वारा कोरोना महामारी मे लगातार लोगो की मदद करने वाले नोडल ऑफिसर एएन मिश्रा और डॉक्टर संजय कुमार को सम्मनित किया गया। इस मौके पर नोडल ऑफिसर एएन मिश्रा ने बताया कि कोरोना महामारी मे सभी संगठन द्वारा मिलकर लोगो की सेवा की गई जो एक मिसाल बना है। जरूरतमंद की मदद करना वो भी इस महामारी के समय मे कई तीर्थों के दर्शन के बराबर है। नोडल ऑफिसर ए एन मिश्रा ने मित्र एकता समाजिक संगठन के अध्यक्ष सत्यम विहारी को संगठन बनाने के लिए शुभकामनाएं दी और सम्मानित करने के लिए धन्यवाद दिया। मित्र एकता समाजिक संगठन के सदस्यों ने बताया कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन के समय में लगातार एएन मिश्रा जी द्वारा जरूरतमंद प्रवासी मजदूरों की सहायता की गई। हजारों जरूरतमंदों मे रोज राशन बांटा गया। पंजाब सरकार के द्वारा प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाया गया जिसमें लगातार एएन मिश्रा जी द्वारा लुधियाना के गुरुनानक स्टेडियम में प्रवासी मजदूरों को उनके गांव तक पहुंचाने के लिए कार्य किया गया के लिए आज हमारे संगठन द्वारा नोडल ऑफिसर एएन मिश्रा जी को और डॉ.
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घर वापसी की बेचैनी पर भारी पड़ा रोजगार | बिहार के 222 मजदूर काम के लिए रवाना हुए तेलंगाना ! पटना - लॉक डाउन 3 में मिली ढील के बाद दूसरे राज्यों में फंसे बिहारी मजदूर स्पेशल ट्रेनों से वापस आ रहे हैं | बिहार सरकार ने राज्य में आने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार दिलाने की घोषणा तो की थी लेकिन अभी तक इस घोषणा के ��नुसार काम मिला शुरू ��हीं हो सका है | ऐसे में इन मजदूरों के सामने रोजी रोटी की चिंता सता रही है | रोजगार की तलाश में बिहार के श्रमिक का दूसरे राज्यों में जाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है |
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कोरोना संकट के बीच शाह की बिहार रैली ‘राजनीतिक फायदा’ लेने की कोशिश : तेजस्वी
उन्होंने कहा कि इस साल हो��े वाले विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा होगा. एक साक्षात्कार में यादव ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि गरीबों की हितैषी तथा संविधान को सर्वोच्च मानने वाली समान विचाराधारा की पार्टियां एक साथ आएंगी और राज्य में ‘‘15 साल की विभाजनकारी और नाकाम सरकार” के खिलाफ लड़ेंगी. उन्होंने विपक्षी खेमे में फूट की खबरों को भी खारिज करते हुए कहा कि अलग दृष्टिकोण रखना किसी भी लोकतंत्र के लिए लाभकारी है.
यादव का बयान ऐसे वक्त आया है जब राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने सात मई को अमित शाह की रैली के जवाब में ‘गरीब अधिकार दिवस’ मनाने का फैसला किया है. शाह वीडियो कॉन्फ्रेंस और फेसबुक लाइव के जरिए राज्य के लोगों को संबोधित करेंगे. केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता शाह की डिजिटल रैली के जरिए भाजपा बिहार में चुनावी बिगुल बजा रही है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि पार्टी ने रैली के जरिए बिहार में 243 विधानसभा क्षेत्रों में कम से कम एक लाख लोगों को जोड़ने का लक्ष्य तय किया है. इसके अलावा सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी लोग भाषण सुन पाएंगे.
राजद के ‘गरीब अधिकार दिवस’ के आयोजन को लेकर यादव ने ट्वीट कर कहा था कि भाजपा और जद (यू) सिर्फ अपनी सत्ता की भूख मिटाना चाहती है लेकिन हम गरीबों-मजदूरों के पेट की भूख मिटाना चाहते है. सात जून को सभी बिहारवासी अपने-अपने घरों में थाली, कटोरा और गिलास बजाएंगे. बाहर से लौटे सभी श्रमिक भाई भी थाली-कटोरा बजा चैन की नींद सो रही बिहार सरकार को जगायेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन कोरोना योद्धाओं के सम्मान में लोगों से थाली, ताली बजाने को कहा था. राजद भी अपने अभियान से इसकी याद दिलाएगी.
यादव ने कहा, ‘‘देश में स्वास्थ्य की आधारभूत संरचना को तहस-नहस करने वाले संकट और राज्य में सामुदायिक स्तर पर संक्रमण के फैलने के बीच (भाजपा की) डिजिटल चुनावी रैली भाजपा की प्राथमिकताओं को दिखाती है.” पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘इस समय चुनाव अभियान चलाना राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश जैसा है. गरीबों, जरूरतमंद और प्रवासी श्रमिकों की मदद करने के बजाए वे जान की कीमत पर चुनाव जीतना चाहते हैं.” उन्होंने आरोप लगाया क�� केंद्र और बिहार में राजग सरकार ने लोगों के कल्याण का विचार त्याग दिया है. यादव ने कहा कि सरकार बनाने के बजाए लोगों की जान बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है. क्या चुनाव अभियान के दौरान बिहार के प्रवासी मजदूरों की बदहाली के मुद्दे को उठाया जाएगा, इस पर यादव ने कहा कि नीतीश कुमार सरकार ने प्रवासी श्रमिकों को नजरअंदाज किया है.
राजद नेता ने कहा, ‘‘29 मई को बिहार सरकार ने जिला पुलिस अधीक्षकों को एक पत्र जारी कर कहा है कि प्रवासी मजदूरों के लौटने के कारण लूटपाट, डकैती और अपराध की घटनाएं बढेंगी क्योंकि सरकार उनको रोजगार देने में सक्षम नहीं है.” यादव ने कहा, ‘‘एक तरह से सरकार ने कहा है कि प्रवासी श्रमिक अपराधी है. बिहारी स्वाभिमानी हैं और नीतीश सरकार द्वारा की जा रही उपेक्षा और अपमान, निश्चित तौर पर चुनावी मुद्दा बनेगा.” उन्होंने कहा कि सरकार अपना फर्ज निभाने में नाकाम रही है.
यादव ने दावा किया कि ‘इतिहास में पहली बार’ किसी राज्य सरकार ने अपने ही लोगों को आने से रोक दिया. विपक्ष के नेता ने कहा, ‘‘केवल बिहार के मुख्यमंत्री ने ही अपने प्रवासी श्रमिकों को आने की इजाजत नहीं दी, फंसे हुए लोगों को खाना नहीं दिया और ट्रेन का किराया भी देने से इनकार कर दिया, जबकि, झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली हमारी सरकार ने फंसे हुए लोगों को विमान से लाने का इंतजाम किया.”
उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड-19 के संकट ने ‘‘कुमार के लापरवाह और अमानवीय रुख को उजागर कर दिया. ऐसे लोग जो उनकी राजनीति का अनुसरण करते हैं, उन्हें पता है कि वह (नीतीश) गरीब विरोधी, मजदूर विरोधी, किसान विरोधी, युवा और आम आदमी के विरोधी हैं और हमेशा उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया है. ” कोरोना वायरस महामारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए अक्टूबर-नवंबर में होने वाला व���धानसभा चुनाव क्या समय पर हो पाएगा, इस पर यादव ने कहा कि इस पर निर्वाचन आयोग को फैसला करना है.
यादव ने कहा, ‘‘यह चुनाव आयोग का विशेषाधिकार है कि वह संवैधानिक बाध्यताओं और प्रक्रियागत कानूनों को ध्यान में रखते हुए कब चुनाव कराना चाहता है . लेकिन, एक चीज मैं जरूर कहना चाहूंगा कि बिहार के लोग सरकार बदलने के लिए जितना व्यग्र हैं , उतना पहले कभी नहीं थे.” राज्य में भाजपा, जदयू और लोजपा का गठबंधन है. राजद, कांग्रेस और अन्य दलों का गठबंधन सत्ताधारी राजग को विधानसभा चुनाव में चुनौती देगा. वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में राजग को राजद-जद(यू)-कांग्रेस के महागठबंधन से हार मिली थी लेकिन कुमार ने 2017 में अपनी राह अलग कर ली और चार साल के अंतराल के बाद फिर से भगवा ��ार्टी से हाथ मिला लिया था.
बिहार में एडीजी के पत्र को लेकर राजनीतिक विवाद
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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तमिलनाडु के कोयम्बटूर में फंसे बिहारी कामगारों को स्पेशल ट्रेन द्वारा लाया जा रहा है। बुधवार को कोयम्बटूर से श्रमिक स्पेशल ट्रेन रवाना हुई जो शुक्रवार को करीब 10.45 बजे बिहारशरीफ स्टेशन पहुंचेगी। 24 बोगी के इस स्पेशल ट्रेन में करीब 1400 श्रमिक हैं। सभी बोगी में सैनिटाइजर सहित सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी है। स्टेशन पर नाश्ता, पानी आदि उपलब्ध कराया जायेगा।
स्टेशन पर बैरेकेडिंग कर जांच काउंटर बनाया गया है। डीएम योगेंद्र सिंह ने बताया कि स्टेशन परिसर के आस पास के स्थलों पर मजिस्ट्रेट के साथ पुलिस की तैनाती की गई है। उन्होने बताया कि ट्रेन से उतरने वाले कामगारों और उनकी फैमिली को लाइन में स्क्रीनिंग की प्रक्रिया पूरी करते हुए बाहर निकाला जाएगा। जहां से बस के माध्यम से प्रवासी कामगारों को कारगिल बस स्टैंड लाकर पूर्व में संबंधित प्रखंडों के लिए आवंटित वाहन के माध्यम से प्रखण्ड मुख्यालय में भेजा जाएगा। गया होते आएगी ट्रेन: बिहारशरीफ़ स्टेशन प्रबन्धक वीरेंद्र कुमार पासवान ने बताया कि श्रमिक स्पेशल ट्रेन गया-तिलैया और राजगीर होते हुए बिहारशरीफ़ आएगी। स्टेशन परिसर में आवश्यक तैयारी पूरी कर ली गई है। विशेष बस से पहुंचाये जायेंगे प्रखंड एसडीओ जनार्दन प्रसाद अग्रवाल ने गुरुवार को स्टेशन परिसर में तैयारियों का जायजा लिया। उन्होने बताया कि कामगार जिस जिस प्रखंड के होंगे उन्हें बस से प्रखंड पहुंचाया जायेगा। डीएम ने बताया कि कुल 45 बसें हैं। 14 दिन होम क्वारेंटाइन अनिवार्यडीएम ने बताया कि मेडिकल स्क्रीनिंग के दौरान बिना लक्षण वाले कामगारों को अनिवार्य रूप से 14 दिन के लिए प्रखण्ड मुख्यालय स्थित क्वारेंटाइन सेंटर में रखा जाएगा। उसके बाद 7 दिन होम क्वारेंटाइन में रहना पड़ेगा। उन्होने कहा कि जो कामगार अनुशासित ढंग से क्वारेंटाइन सेंटर में रहेंगे,उन्हें ही रेल भाड़े की प्रतिपूर्ति एवं अन्य अनुमान्य राशि का भुगतान किया जाएगा। स्क्रीनिंग के लिए 25 टीम सीएस डॉ. राम सिंह ने बताया कि शुक्रवार को ट्रेन से आने वाले प्रवासी को स्क्रीनिंग के लिए 25 टीम बनाई गई है। 22 टीम कार्यरत रहेगी और 3 टीम को रिजर्व रखा गया है। ताकि जरूरत पड़ने पर कहीं भेजा जा सके। सभी टीम को पीपीई किट, सैनिटाइजर �� अन्य आवश्यक सामाग्री उपलब्ध करा दिया गया है। निगम ने भी की पूरी तैयारी नगर आयुक्त अंशुल अग्रवाल ने बताया कि करीब 100 अधिकारी व कर्मी लगाए गए हैं। प्रत्येक बोगी पर दो दो कर्मी को प्रतिनियुक्त किया गया है। इसके अलावे सभी वार्ड जमादार को सैनिटाइज करने का निर्देश दिया गया है। सैनिटाइज के लिए 10 स्प्रे मशीन उपलब्ध कराया गया है।
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Workers will arrive in a special train of 24 bogies today after traveling 41 hours from Coimbatore in Tamil Nadu
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प्रधानमन्त्री का 'राष्ट्र' के नाम नया सम्बोधन : झूठ, जुमलेबाज़ी और अर्थहीन तुकबन्दी की आड़ में पूँजीपति वर्ग की सेवा और जनता से धोखाधड़ी की एक और मिसाल
प्रधानमन्त्री मोदी न�� कोरोना महामारी के बीच 12 मई को अपना छठा भाषण दिया। हर बार की तरह इस बार के भाषण में भी जनता के लिए कुछ भी ठोस और प्रभावी नहीं था। ताली-थाली, दीया-बाती, फूल-पत्तों के बाद इस बार 'आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था' पर पूरी लन्तरानी हाँकी गयी है। अनियोजित लॉकडाउन ने देश के करोड़ों मेहनतकशों को भुखमरी और लाचारी में धकेल दिया है और व्यापक पैमाने पर टेस्टिंग, क्वारंटाइनिंग व ट्रीटमेण्ट के अभाव ने इस आबादी को कोरोना संक्रमण के समक्ष भी मरने के लिए छोड़ दिया है। कुलमिलाकर लॉकडाउन का पूरा उद्देश्य ही पराजित हो चुका है और कोई लाभ होने की बजाय उससे हानि हुई। लेकिन इस मेहनतकश आबादी को मोदी के भाषण से सिवाय जुमलों के कुछ भी नसीब नहीं हुआ।
लाखों प्रवासी श्रमिक इस समय अपनी जान जोखिम में डालकर पैदल ही सड़कों को नाप रहे हैं लेकिन मोदी जी अपने पूरे भाषण में 'आत्मनिर्भरता' की जलेबी ही पारते रहे। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि लॉकडाउन के पूरे लक्ष्य को भाजपा सरकार ने मिट्टी में मिला दिया है। भारत में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को आया था किन्तु यहाँ इसे फैलने के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए सरकार ने जनता पर योजनाविहीन लॉकडाउन थोपने के अलावा और कोई ठोस कदम नहीं उठाया। कोरोना लॉकडाउन में मोदी सरकार की स्थिति प्याज भी खाये, जूते भी खाये और पैसे भी दिये वाली हो गयी है।
लॉकडाउन खोलने के लिए इस वक़्त मोदी सरकार पर पूरे पूँजीपति वर्ग का दबाव है। नया मूल्य श्रम से पैदा होता है और यदि श्रम प्रक्रिया व उत्पाद�� ही थम जायेगा तो न तो नया मूल्य पैदा हो सकता है, न बेशी मूल्य और न मुनाफा। पूँजीपति वर्ग की खुली दलाली, नाकारेपन व जनद्रोही चरित्र के चलते मोदी सरकार शेखचिल्ली की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहकर लॉकडाउन के भरोसे ही कोरोना को काबू करने के चक्कर में थी! जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन, दुनिया के तमाम वैज्ञानिकों, एपिडेमियॉलजिस्ट, अतीत के अनुभवों और दुनिया भर के अन्य देशों के वर्तमान अनुभवों ने यह साफ बता दिया था कि लॉकडाउन अपने आप में कोई समाधान नहीं है, बशर्ते कि इसे पूरी तैयारी और योजना के लागू किया जाय और इस दौरान मास स्केल पर टेस्टिंग व ट्रीटमेंट की व्यवस्था की जाय। सिवाय जाँच, क्वारण्टाइन व उपचार के लिए थोड़ी मोहलत के और स्वास्थ्य ढांचे को चरमरा जाने से कुछ समय के लिए रोकने के, लॉकडाउन और कुछ नहीं दे सकता है। दुनिया के अनुभव ने पहले ही बता दिया था कि यदि लॉकडाउन के समय व्यापक स्तर पर टेस्टिंग, क्वारण्टाइनिंग और ट्रीटमेण्ट नहीं किया जाता है तो इससे कोरोना संक्रमण के फ़ैलने की दर में कोई खास फ़र्क़ नहीं पड़ना है, बस वह कुछ विलम्बित हो सकती है। घोषित आँकड़ों के हिसाब से ही भारत में इस समय कोरोना के 74,281 मामले सामने आ चुके हैं और 2,415 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। असल संख्या का किसी को कोई अनुमान नहीं है। जो सैंकड़ों लोग अनियोजित लॉकडाउन के कारण दुर्घटनाओं और भुखमरी से मारे जा चुके हैं, वह संख्या अलग है। अब जब लॉकडाउन के क़रीब 50 दिन बीत चुके हैं तो मोदी सरकार के हाथ पाँव फूले हुए हैं। पूँजीपति वर्ग मुनाफ़े के लिए बिलबिला रहा है। ऐसे में पूँजीपति वर्ग के मुनाफे को ध्यान में रखते हुए बिना व्यापक टेस्टिंग व ट्रीटमेण्ट के उतनी ही योजनाविहीनता के साथ लॉकडाउन से निकलने का माहौल बनाना ही 12 मई के 'राष्ट्र के नाम सम्बोधन' का मक़सद था। अगर 'वायरस के साथ ही जीना सीखना' था, तो फ़िर लॉकडाउन किसलिए था? फिर अनियोजित लॉकडाउन के कारण पैदा हुई आफतें मेहनतकश जनता पर क्यों थोपी गयी जब अन्तत: व्यापक परीक्षण के बिना उन्हें संक्रमण के लिए अरक्षित ही छोड़ना था?
इस अनियोजित लॉडाउन के कारण पहले से जारी आर्थिक संकट और भी गहरा गया है। वैश्विक एजेंसियाँ भारत की आर्थिक वृद्धि दर के शून्य तक जाने की सम्भावना जता रही हैं। आर्थिक वृद्धि दर बेशक़ मुनाफ़े की दर का सटीक प्रतिबिम्बन नहीं करती है लेकिन यह मुनाफ़े की दर का एक प्रतिबिम्बन तो होती ही है। पिछले एक दशक से दुनिया भर में मुनाफ़े की गिरती दर का संकट पूँजीपति वर्ग को लगातार सता रहा था और भारत समेत दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएँ आर्थिक मन्दी में हिचकोले खा रही थी। कोविड- 19 संकट ने आर्थिक संकट को महासंकट में तब्दील कर दिया है।
यही वजह है कि पूरी दुनिया का पूँजीपति वर्ग किसी भी कीमत पर अपने-अपने देशों की सरकारों पर उत्पादन के रूप में मुनाफ़े की मशीनरी को चालू करने के लिए दबाव बना रहा है। और यही काम भारत का शोषक-शासक वर्ग भी कर रहा है। इसी के लिए सारे श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं, ऑर्डिनेन्स लाकर असंवैधानिक तरीके से श्रमिकों के श्रम अधिकारों पर ही नहीं बल्कि मानवाधिकारों पर हमले हो रहे हैं और उनके हक़ों पर डाके डाले जा रहे हैं। यह सब इसीलिए हो रहा है ताकि उत्पादन चालू होते ही मुनाफ़े की दरों को तेजी से बढ़ाया जा सके। इस संकट के समय पूँजीपति वर्ग मज़दूर वर्ग के श्रमिक अधिकार ही नहीं बल्कि सभी नागरिक अधिकार और मानवाधिकार भी छीन रहा है। पूँजीवादी व्यवस्था का एक नियम होता है कि कानूनी व औपचारिक तौर पर इसमें कोई भी मज़दूर किसी भी मालिक के हाथों अपनी "श्रम शक्ति बेचने के लिए स्वतन्त्र" होता है, क्योंकि, जैसा कि मार्क्स ने बताया था, पूँजी व श्रम का कमोबेश मुक्त प्रवाह पूँजीवादी व्यवस्था के लिए अनिवार्य होता है, कम-से-कम कानूनी और औपचारिक तौर पर इन पर कोई रोक नहीं होती है। लेकिन इस समय मज़दूर वर्ग से उसका यह "अधिकार" भी छीना जा रहा है और श्रम की आवाजाही में डण्डे के दम पर रोड़े अटकाये जा रहे हैं। फासीवाद पूँजीपति वर्ग की तानाशाही का एक विशिष्ट रूप (एक्सेप्शनल फॉर्म) होता है और मज़दूरों के हकों पर असंवैधानिक तौर पर किये जा रहे मौजूदा हमले इसी तथ्य को दिखला रहे हैं।
यह बात अब साफ़ है कि मोदी सरकार की पूँजीपति वर्ग की दलाली, जनद्रोही चरित्र, नाकारेपन और निकम्मेपन के कारण लॉकडाउन का असल मक़सद ही धूल-धूसरित हो चुका है। एक तो यह योजनाविहीन व तानाशाहाना तरीके से थोपा गया लॉकडाउन था जिसकी भारी कीमत देश की गरीब मेहनतकश जनता ने चुकायी और कोरोना महामारी पर नियंत्रण के लिए इस लॉकडाउन के दौरान भी जो-जो क़दम उठाये जाने थे वो नहीं उठाये गये, जिससे कि लॉकडाउन का मूल उद्देश्य ही बेकार हो गया। यानी मोदी ने हमेशा कि तरह 'खाया-पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आना' के अपने मंत्र पर अमल किया, और यह हरजाना भी हमेशा की तरह आम जनता से भरवाया जा रहा है। करोड़ों प्रवासी श्रमिकों के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं थी, करोड़ों गरीबों को भुखमरी की दलदल में धकेल दिया गया (वैसे मोदी शाह की फ़ासीवादी सरकार से जनवादी तरीके से लॉकडाउन की उम्मीद ही बेकार है)।
अब जब मोदी सरकार ने लॉकडाउन के मक़सद पर पानी फ़ेर दिया है तो अपने निक्कमेपन और नकारेपन को छिपाने के लिए मोदी ने अपने भाषण में 20 लाख करोड़ के ��ाहत पैकेज की घोषणा की है। पिछले तमाम पैकेजों की तरह इस बार के पैकेज का लाभ भी पूँजीपति वर्ग के ही विभिन्न संस्तरों को मिलने वाला है, क्योंकि मोदी ने साफ शब्दों में बताया कि इससे आम जनता के साथ-साथ कारपोरेट घरानों, मंझोले पूँजीपति वर्ग, व्यापारी वर्ग सभी के लिए राहत का इन्तज़ाम किया जायेगा। मोदी सरकार के अभी तक के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए दावे से कहा जा सकता है कि इस 20 लाख करोड़ का 90 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा देश का खाया-पिया-अघाया पूँजीपति वर्ग डकार जान��� वाला है और आम जनता के नसीब केवल जूठन लगने वाली है। दूसरी बात, देश की जनता को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से खाद्य राशनिंग की सुविधा, सभी मूलभूत वस्तुओं और सेवाओं की सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा आपूर्ति और सार्वभौमिक स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध कराये बिना किसी भी राहत पैकेज की बाँसुरी बजाना केवल हवा-हवाई है। 20 लाख करोड़ का भी ज्यादातर हिस्सा भी पूँजीपतियों के टैक्स माफ़ करने, उन्हें नगण्य कीमत पर ऋण उपलब्ध कराने और अन्य छूटें देने में ही ख़र्च होना है।
आत्मनिर्भरता के नाम पर जुमलेबाजी ही हुई है इस बात को हम पुराने अनुभवों से भी पुष्ट कर सकते हैं। पांच साल के 'मेक इन इण्डिया' के दौरान क्या देश आत्मनिर्भर नहीं बना!? और नहीं बना तो उसमें हुआ क्या? एक समय आरएसएस और उसका पालतू स्वदेशी जागरण मंच "स्वदेशी" का झुनझुना बजाया करते थे। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार ने देश के इतिहास में पहली बार विनिवेश मन्त्रालय खोल दिया! 2014 से पहले मोदी सरकार भी एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के ख़िलाफ़ दमगजे भरती नहीं थकती थी, सरकार बनते ही इसने भी विदेशी पूँजी के सामने पलक पाँवड़े बिछा दिये और भारतीय पूँजी के वैश्विक अर्थव्यवस्था में समेकन के काम को अभूतपूर्व तरीके से आगे बढ़ाया और साम्राज्यवाद के 'जूनियर पार्टनर' के रूप में अपनी भूमिका को और रेखांकित किया। अब इस आत्मनिर्भरता की नौटंकी के पीछे की असल हकीकत भी चार दिन बाद सामने आ ही जानी है। कथनी और करनी में फर्क करना भाजपा की पुरानी फ़ितरत है।
प्रधानमन्त्री मोदी के पूरे भाषण से आप समझ सकते हैं कि पूँजीपति वर्ग के दबाव के फलस्वरूप सरकार उत्पादन चालू कर मुनाफ़े की मशीनरी को गतिमान करने के लिए बेचैन है। योजनाविहीन और बिना किसी तैयारी के किये गये लॉकडाउन की पूरी कीमत जनता से वसूल की गयी है और उसके द्वारा कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के मक़सद को व्यापक पैमाने पर ��ाँच, क्वारण्टाइनिंग और उपचार न करके पहले ही पलीता लगाया जा चुका है। करोड़ों श्रमिकों का जीवन संकट में डालने के बाद अब सरकार के पास सिवाए जुमलों के कुछ भी नहीं रह गया है। नौटंकी, झूठ, लफ्फाजी, बड़बोलेपन और जुमलेबाजी के मामले में भारत का प्रधानमन्त्री भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के इतिहास में अद्वितीय है। यह नयी जुमलेबाजी भी उतनी ही खोखली सिद्ध होगी जितनी खोखली तमाम पिछली जुमलेबाजियाँ सिद्ध हुई थी। गोदी मीडिया और बीजेपी आईटीसेल झूठों के सहारे मोदी के प्रभामण्डल को जितना भी चमका लें किन्तु देश के असल हालात इसके पीछे छुप नहीं सकते।
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अतिरिक्त समर्थन के बिना लॉकडाउन विस्तार से गंभीर संकट पैदा होगा, गरीबों के बीच आंदोलन होगा
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मोहम्मद हाकिम मंगलवार की सुबह बिहार के कटिहार जिले में अपने ही गाँव में बैठे हुए खुश थे, क्योंकि उन्होंने प्रधान मंत्री के भाषण को अपने मोबाइल फोन पर लॉकडाउन में देखा था। कम से कम 40 साथी बिहारी प्रवासी श्रमिक, बेरोजगार और भूखे, अभी भी दक्षिण दिल्ली के जल विहार बस्ती में फंसे हुए थे हिन्दू उनसे 31 मार्च को मुलाकात की।
“मैं छह दिन पहले कुछ दोस्तों के साथ निकला था, क्योंकि मैं वहाँ भूखा…
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#कोरोनावाइरस#कोविड 19#नरेंद्र मोदी#प्रवासी कामगार#प्रवासी मजदूर#फंसे हुए कर्मचारी एक्शन नेटवर्क#भाषण। लॉकडाउन एक्सटेंशन#लॉकडाउन#स्वैन
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कोटा और अरुणाचल से दो श्रमिक ट्रेन का आएगी दरभंगा ! दरभंगा- प्रवासी बिहारी को मजदुर को लेकर कल पहुचेगी दो स्पेशल ट्रेन दरभंगा, तैयारी का जायजा करने स्टेशन पहुचे दरभंगा के एसएसपी और डीएम, दुल्हन की तरह सजाया जा रहा दरभंगा स्टेशन,
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कोरोना संकट के बीच शाह की बिहार रैली ‘राजनीतिक फायदा’ लेने की कोशिश : तेजस्वी
उन्होंने कहा कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा होगा. एक साक्षात्कार में यादव ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि गरीबों की हितैषी तथा संविधान को सर्वोच्च मानने वाली समान विचाराधारा की पार्टियां एक साथ आएंगी और राज्य में ‘‘15 साल की विभाजनकारी और नाकाम सरकार” के खिलाफ लड़ेंगी. उन्होंने विपक्षी खेमे में फूट की खबरों को भी खारिज करते हुए कहा कि अलग दृष्टिकोण रखना किसी भी लोकतंत्र के लिए लाभकारी है.
यादव का बयान ऐसे वक्त आया है जब राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने सात मई को अमित शाह की रैली के जवाब में ‘गरीब अधिकार दिवस’ मनाने का फैसला किया है. शाह वीडियो कॉन्फ्रेंस और फेसबुक लाइव के जरिए राज्य के लोगों को संबोधित करेंगे. केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता शाह की डिजिटल रैली के जरिए भाजपा बिहार में चुनावी बिगुल बजा रही है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि पार्टी ने रैली के जरिए बिहार में 243 विधानसभा क्षेत्रों में कम से कम एक लाख लोगों को जोड़ने का लक्ष्य तय किया है. इसके अलावा सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी लोग भाषण सुन पाएंगे.
राजद के ‘गरीब अधिकार दिवस’ के आयोजन को लेकर यादव ने ट्वीट कर कहा था कि भाजपा और जद (यू) सिर्फ अपनी सत्ता की भूख मिटाना चाहती है लेकिन हम गरीबों-मजदूरों के पेट की भूख मिटाना चाहते है. सात जून को सभी बिहारवासी अपने-अपने घरों में थाली, कटोरा और गिलास बजाएंगे. बाहर से लौटे सभी श्रमिक भाई भी थाली-कटोरा बजा चैन की नींद सो रही बिहार सरकार को जगायेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन कोरोना योद्धाओं के सम्मान में लोगों से थाली, ताली बजाने को कहा था. राजद भी अपने अभियान से इसकी याद दिलाएगी.
यादव ने कहा, ‘‘देश में स्वास्थ्य की आधारभूत संरचना को तहस-नहस करने वाले संकट और राज्य में सामुदायिक स्तर पर संक्रमण के फैलने के बीच (भाजपा की) डिजिटल चुनावी रैली भाजपा की प्राथमिकताओं को दिखाती है.” पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘इस समय चुनाव अभियान चलाना राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश जैसा है. गरीबों, जरूरतमंद और प्रवासी श्रमिकों की मदद करने के बजाए वे जान की कीमत पर चुनाव जीतना चाहते हैं.” उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र और बिहार में राजग सरकार ने लोगों के कल्याण का विचार त्याग दिया है. यादव ने कहा कि सरकार बनाने के बजाए लोगों की जान बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है. क्या चुनाव अभियान के दौरान बिहार के प्रवासी मजदूरों की बदहाली के मुद्दे को उठाया जाएगा, इस पर यादव ने कहा कि नीतीश कुमार सरकार ने प्रवासी श्रमिकों को नजरअंदाज किया है.
राजद नेता ने कहा, ‘‘29 मई को बिहार सरकार ने जिला पुलिस अधीक्षकों को एक पत्र जारी कर कहा है कि प्रवासी मजदूरों के लौटने के कारण लूटपाट, डकैती और अपराध की घटनाएं बढेंगी क्योंकि सरकार उनको रोजगार देने में सक्षम नहीं है.” यादव ने कहा, ‘‘एक तरह से सरकार ने कहा है कि प्रवासी श्रमिक अपराधी है. बिहारी स्वाभिमानी हैं और नीतीश सरकार द्वारा की जा रही उपेक्षा और अपमान, निश्चित तौर पर चुनावी मुद्दा बनेगा.” उन्होंने कहा कि सरकार अपना फर्ज निभाने में नाकाम रही है.
यादव ने दावा किया कि ‘इतिहास में पहली बार’ किसी राज्य सरकार ने अपने ही लोगों को आने से रोक दिया. विपक्ष के नेता ने कहा, ‘‘केवल बिहार के मुख्यमंत्री ने ही अपने प्रवासी श्रमिकों को आने की इजाजत नहीं दी, फंसे हुए लोगों को खाना नहीं दिया और ट्रेन का किराया भी देने से इनकार कर दिया, जबकि, झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली हमारी सरकार ने फंसे हुए लोगों को विमान से लाने का इंतजाम किया.”
उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड-19 के संकट ने ‘‘कुमार के लापरवाह और अमानवीय रुख को उजागर कर दिया. ऐसे लोग जो उनकी राजनीति का अनुसरण करते हैं, उन्हें पता है कि वह (नीतीश) गरीब विरोधी, मजदूर विरोधी, किसान विरोधी, युवा और आम आदमी के विरोधी हैं और हमेशा उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया है. ” कोरोना वायरस महामारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए अक्टूबर-नवंबर में होने वाला विधानसभा चुनाव क्या समय पर हो पाएगा, इस पर यादव ने कहा कि इस पर निर्वाचन आयोग को फैसला करना है.
यादव ने कहा, ‘‘यह चुनाव आयोग का विशेषाधिकार है कि वह संवैधानिक बाध्यताओं और प्रक्रियागत कानूनों को ध्यान में रखते हुए कब चुनाव कराना चाहता है . लेकिन, एक चीज मैं जरूर कहना चाहूंगा कि बिहार के लोग सरकार बदलने के लिए जितना व्यग्र हैं , उतना पहले कभी नहीं थे.” राज्य में भाजपा, जदयू और लोज���ा का गठबंधन है. राजद, कांग्रेस और अन्य दलों का गठबंधन सत्ताधारी राजग को विधानसभा चुनाव में चुनौती देगा. वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में राजग को राजद-जद(यू)-कांग्रेस के महागठबंधन से हार मिली थी लेकिन कुमार ने 2017 में अपनी राह अलग कर ली और चार साल के अंतराल के बाद फिर से भगवा पार्टी से हाथ मिला लिया था.
बिहार में एडीजी के पत्र को लेकर राजनीतिक विवाद
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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