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फसल बीमा हेतु जरुरी सुचना: किसानों के लिए फसलों का बीमा कराने की 31 जुलाई अंतिम तारीख, आवेदन के लिए लगेंगे ये जरूरी दस्तावेज
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (खरीफ 2024): प्रधानमंत्री फसल बीमा (Fasal Bima Yojana) के लिए कृषि विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को पंजीयन कराना जरूरी है। हनुमानगढ़ ज़िले के किसानों के लिए अंतिम तिथि 31 जुलाई 2024 निर्धारित की गई है। किसान मुख्य फसल नरमा, मूंग, मूंगफली, ग्वार, मोठ, बाजरा, धान व तिल आदि फसलों का बीमा (crop insurance) करा सकते हैं। गौरतलब है कि…
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Crop Rotation In Agriculture:खरीफ मौसम में उन्नत फसल चक्र क्यों महत्वपूर्ण है, जानिए
खरीफ़ सीज़न और फ़सल चक्र (Crop Rotation)
अभी खरीफ़ सीज़न चल रहा है, और इसको ध्यान में रखते हुए हम आपको बताएंगे कि कैसे फ़सल चक्र को समझते हुए अपनी खेती में सुधार कर सकते हैं और पैदावार को बढ़ा सकते हैं। पहले के समय में, जब खेतों में रासायनिक उर्वरकों का अधिक उपयोग नहीं होता था, किसान फ़सल चक्र (Crop rotation) का उपयोग करते थे। यह तरीका खासकर बरसात के मौसम में बोई जाने वाली फ़सलों के लिए बहुत उपयोगी था।
खरीफ़ की फ़सलों में चावल, मक्का, और बाजरा शामिल हैं, जो बरसात शुरू होते ही बोई जाती हैं और सर्दी आने से पहले काट ली जाती हैं। इस दौरान फ़सल चक्र अपनाकर किसान अपने खेत को कई तरह की समस्याओं से बचाते हैं, जैसे कि मिट्टी का कटाव, खरपतवार की वृद्धि, और कीटों का हमला। आजकल भले ही यह तरीका कम इस्तेमाल होता है, लेकिन खरीफ़ की फ़सलों के लिए इसके कई लाभ हैं। यह तकनीक खेत और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी है।
फ़सल चक्र का महत्व
फ़सल चक्र का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखता है। एक ही प्रकार की फ़सल को बार-बार उगाने से मिट्टी में विशिष्ट पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इसके विपरीत, फ़सल चक्र अपनाने से विभिन्न फ़सलें विभिन्न पोषक तत्वों का उपयोग करती हैं और मिट्टी को विविध पोषक तत्व मिलते रहते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और फसलों की पैदावार भी बेहतर होती है।
दूसरा बड़ा लाभ यह है कि फ़सल चक्र से कीट और रोगों का प्रकोप कम होता है। एक ही प्रकार की फ़सल को लगातार उगाने से विशेष कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ सकता है, जो उस फ़सल को प्रभावित करते हैं। फ़सल चक्र अपनाने से कीट और रोगों का जीवन चक्र टूटता है और उनके प्रकोप में कमी आती है।
फ़सल चक्र का पर्यावरण पर प्रभाव
फ़सल चक्र का एक और बड़ा लाभ यह है कि यह पर्यावरण को भी संरक्षित करता है। जब किसान फ़सल चक्र अपनाते हैं, तो उन्हें कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम करना पड़ता है। इससे मिट्टी, जल, और वायु प्रदूषण में कमी आती है। इसके अलावा, विभिन्न फसलों की जड़ों का प्रभाव मिट्टी की संरचना और जलधारण क्षमता को सुधारता है।
फ़सल चक्र की योजना
फ़सल चक्र की योजना बनाते समय किसान को कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले, उसे अपने क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु, और वातावरणीय परिस्थितियों का अध्ययन करना चाहिए। इसके बाद, उसे यह तय करना चाहिए कि कौन-कौन सी फ़सलें उसकी मिट्टी और जलवायु के लिए उपयुक्त हैं। एक समझदार और अनुभवी किसान अपने खेत के लिए सही फ़सल चक्र को चुनकर अच्छी पैदावार और अधिक लाभ उठा सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी है, तो किसान दलहन फ़सलें (जैसे कि मूंग, उड़द, चना आदि) उगा सकता है, जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं। इसके बाद वह गेहूं या धान जैसी फ़सलें उगा सकता है, जो नाइट्रोजन का उपयोग करती हैं। इस तरह से फ़सल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और फसलों की पैदावार भी बढ़ती है।
फ़सल चक्र का आर्थिक लाभ
फ़सल चक्र अपनाने से किसान की आमदनी में भी वृद्धि होती है। विभिन्न फ़सलें उगाने से किसान को अलग-अलग समय पर अलग-अलग फसलों का उत्पादन मिलता है। इससे उसकी आय स्थिर रहती है और उसे किसी एक फ़सल पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। इसके अलावा, फ़सल चक्र अपनाने से किसान को फसलों की गुणवत्ता भी बेहतर मिलती है, जिससे वह अपने उत्पादों को बेहतर कीमत पर बेच सकता है।
नवीनतम तकनीक और फ़सल चक्र
अच्छी बात यह है कि आजकल वैज्ञानिक और किसान मिलकर इस तरीके को और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। नई-नई डिवाइस की मदद से अब यह पता लगाना आसान हो गया है कि बरसात के मौसम में कौन सी फ़सल कब और कैसे बोनी चाहिए। इससे दुनियाभर के किसानों को कृषि में फ़सल चक्र अपनाने में मदद मिल रही है।
सारांश
कुल मिलाकर, फ़सल चक्र एक महत्वपूर्ण कृषि तकनीक है, जो किसान को अच्छी पैदावार, बेहतर आमदनी, और पर्यावरण संरक्षण के लाभ प्रदान करती है। इसे अपनाने से न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है, बल्कि कीट और रोगों का प्रकोप भी कम होता है। साथ ही, यह पर्यावरण को भी संरक्षित करता है। इसलिए, सभी किसानों को अपने खेतों में फ़सल चक्र अपनाना चाहिए और इस��े होने वाले लाभों का पूरा फायदा उठाना चाहिए।
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छोटी/कम जमीन में अधिक पैदावार तथा कमाई वाली फसलें - DeHaat गाइड
भारतीय कृषि (Indian Agriculture) की बात करें तो छोटी जमीन पर खेती करना एक आम चुनौती है। लेकिन, इस चुनौती को अवसर में बदलने की क्षमता भी हमारे पास है। ‘DeHaat: Seeds to Market’ आपको इस दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए सदैव तत्पर है। हम आपको अपनी कम जमीन के माध्यम से अच्छी पैदावार वाली फसलों की पूरी जानकारी प्रदान कर रहे हैं। यदि आप भी एक किसान हैं और अपनी खेती की आय को बढ़ने के इच्छुक हैं तो यह ब्लॉग आपके लिए ��ाफी लाभदायक हो सकता है।
छोटी जमीन पर खेती की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
Challenges and Opportunities in Farming on Small Land: -
छोटी जमीन पर खेती करते समय किसानों को अक्सर उत्पादन (Production) में सीमितता का सामना करना पड़ता है। लेकिन, उचित योजना और तकनीकों के उपयोग से इस सीमित जगह को भी अधिकतम उत्पादकता का स्थान बनाया जा सकता है। वर्टिकल फार्मिंग (Vertical Farming), मल्टी-लेयर फार्मिंग (Multi-layer Farming), और प्रिसिजन एग्रीकल्चर (Precision Agriculture) जैसी नवीन तकनीकें इसमें सहायक हो सकती हैं।
अधिक पैदावार और आय के लिए नवीन तकनीकों का महत्व
Importance of Innovative Techniques for Higher Yield and Income:-
आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके किसान न केवल अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि कर सकते हैं। ड्रिप इरिगेशन (Drip Irrigation), हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics), और एक्वापोनिक्स (Aquaponics) जैसी तकनीकें जल संरक्षण के साथ-साथ फसलों की गुणवत्ता और मात्रा में भी सुधार लाती हैं। इन तकनीकों को अपनाकर किसान बाजार (Farmer Market) में बेहतर स्थान प्राप्त कर सकते हैं और अपने उत्पादों को उचित मूल्य (Fair Price Sale) पर बेच सकते हैं।
इस ब्लॉग के माध्यम से, हम आपको छोटी जमीन पर अधिक पैदावार और आय (Higher production and income on small land) प्राप्त करने के लिए आवश्यक जानकारी और तकनीकों से परिचित कराएंगे। पढ़ें, DeHaat’ का यह ब्लॉग पूरा और अपने खेती के सपनों को साकार बनायें।
उन्नत बुआई तकनीकें और फसल चयन
कृषि क्षेत्र में नवाचार और प्रगति के साथ, उन्नत बुआई तकनीकें (Advanced Sowing Techniques) और सही फसल चयन (Crop Selection) का महत्व बढ़ गया है। आइए जानते हैं कि कैसे ये तकनीकें और चयन आपकी खेती को लाभकारी बना सकते हैं।
विभिन्न प्रकार की फसलें जो कम जमीन में अधिक लाभ देती हैं।
छोटी जमीन पर अधिकतम उत्पादन (Maximizing Production) और लाभ (Profit) प्राप्त करने के लिए, फसलों का सही चयन अत्यंत आवश्यक है। ऐसी फसलें जो कम जगह में उगाई जा सकती हैं और अच्छी आय देती हैं, उनमें शामिल हैं:
मूली (Radish): यह तेजी से उगने वाली फसल है जो कम समय में तैयार होती है और बाजार में इसकी अच्छी मांग होती है।
बैंगन (Eggplant): यह फसल विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उग सकती है और इसे वर्ष भर बोया जा सकता है।
मिर्च (Chili): यह उच्च मूल्य वाली फसल है जो छोटे क्षेत्र में भी अच्छी आय दे सकती है।
धनिया (Coriander): यह फसल जल्दी उगती है और इसकी पत्तियों का उपयोग मसाले के रूप में होता है।
केला (Banana): यह फसल लंबे समय तक फल देती है और इसकी खेती से नियमित आय हो सकती है।
पपीता (Papaya): यह फसल कम समय में उगती है और इसके फलों की बाजार में अच्छी मांग होती है।
मौसम और मिट्टी के अनुसार फसलों का चयन।
फसलों का चयन करते समय मौसम (Weather) और मिट्टी के प्रकार (Soil Type) का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए:
रेतीली मिट्टी (Sandy Soil) में बाजरा और मूंगफली अच्छी उपज देती हैं।
दोमट मिट्टी (Loamy Soil) में गेहूं और चना जैसी फसलें बेहतर उपज देती हैं।
बीजों की गुणवत्ता और उनका प्रबंधन।
बीजों की गुणवत्ता (Seed Quality) और उनके प्रबंधन (Management) से फसलों की उपज में काफी अंतर आता है। उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना और उन्हें सही तरीके से भंडारित (Storage) करना फसल की सफलता के लिए अनिवार्य है।
इन तकनीकों और चयनों का उपयोग करके आप अपनी कम जमीन से भी अधिकतम उत्पादन (Maximum production from less land) और लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आशा है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। खेती की और अधिक उन्नत तकनीकों और फसलों के चयन के बारे में जानने के लिए, हमारे इस ब्लॉग को पूरा जरूर पढ़ें।
सिंचाई और जल प्रबंधन
जमीन चाहे छोटी हो या बड़ी, अच्छी फसल के लिए सिंचाई और जल प्रबंधन (irrigation and water management) बेहद अहम है। पारंपरिक सिंचाई विधियों में 50% से भी ज्यादा पानी बर्बाद हो जाता है! आइए देखें कैसे हम जल संरक्षण की तकनीकों (water conservation techniques) और आधुनिक सिंचाई पद्धतियों (modern irrigation methods) को अपनाकर कम पानी में भी अच्छी पैदावार (high yield) ले सकते हैं।
जल संरक्षण
फलों और सब्जियों को उनकी ज़रूरत के हिसाब से पानी देना ही समझदारी है। हर फसल को अलग मात्रा में पानी चाहिए।
जल संरक्षण की तकनीकें:
फसल जरूरत के अनुसार सिंचाई (मिट्टी जांच उपकरण) (crop water requirement, soil moisture meter)
मल्चिंग (सूखी घास/पुआल) - 30% तक पानी की बचत (mulching)
जल निकास - जमीन की सेहत के लिए जरूरी (drainage)
वर्षा जल संचयन (खेत के आसपास गड्ढे/तालाब) (rainwater harvesting)
आधुनिक सिंचाई पद्धतियाँ
पानी बचाना ही पैसा बचाना है! आधुनिक सिंचाई पद्धतियां कम पानी में ज़्यादा फसल उगाने में मदद करती हैं।
सिंचाई पद्धति (Irrigation method)
विवरण (Description)
लाभ (Benefits)
ड्रिप सिंचाई (Drip irrigation)
पौधों की जड़ों के पास पानी की बूंदें टपकती रहें
50% तक पानी की बचत, कम खरपतवार (water saving, weeds)
स्प्रिंकलर सिंचाई (Sprinkler irrigation)
पानी को हवा में छिड़का जाता है
पारंपरिक सिंचाई से कम पानी बर्बादी (water waste)
फरो सिंचाई (Furrow irrigation)
खेत में छोटी-छोटी नालियां बनाकर पानी बहे
कम लागत (low cost)
दिलचस्प बात ये है कि दुनिया में उपयोग होने वाले मीठे पानी का 70% सिंचाई में ही खर्च हो जाता है। इसलिए जल संरक्षण और आधुनिक सिंचाई अपनाना बहुत ज़रूरी है।
फसलों की देखभाल और बाजार तक पहुँच
फल लगने से लेकर बाजार तक पहुंचाने तक फसल की देखभाल अहम है। कीटों और रोगों से बचाव (pest and disease management), जैविक खेती (organic farming) अपनाना और सही बाजार का चुनाव अधिक पैदावार (high yield) और कमाई (income) सुनिश्चित करता है।
कीट और रोग प्रबंधन
नियमित जांच से शुरुआत करें ताकि शुरुआती अवस्था में ही कीटों और रोगों का पता लगाया जा सके। रासायनिक दवाओं (chemical pesticides) के अत्यधिक प्रयोग से बचें। जैविक कीटनाशकों (organic pesticides) का इस्तेमाल करें, लाभकारी कीटों (beneficial insects) को बढ़ावा दें और फसल चक्र (crop rotation) अपनाकर रोगों को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करें।
गौर करें (Fact): भारत में फसल नुकसान का 30-40% हिस्सा कीटों और रोगों के कारण होता है। प्रभावी प्रबंधन से इस नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
जैविक खेती
पर्यावरण के अनुकूल खेती, स्वस्थ भोजन का उत्पादन, उर्वर भूमि (fertile soil) का निर्माण और बेहतर मुनाफा - ये हैं जैविक खेती के कुछ लाभ। साथ ही मिट्टी के जैविक पदार्थों (organic matter) में वृद्धि से जलधारण क्षमता (water holding capacity) बढ़ती है, जिससे कम सिंचाई की आवश्यकता होती है।
जानें (Did You Know?): जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है और पारंपरिक उत्पादों की तुलना में 20-30% अधिक कीमत मिलती है। जैविक खेती अपनाकर आप न सिर्फ पर्यावरण बचाते हैं बल्कि अच्छी कमाई भी करते हैं।
"किसानों की सफलता ही देश की सफलता है" - देहात (DeHaat)
अपनी फसल बेचने के लिए सही बाजार का चुनाव फायदेमंद है। आइए देखें कैसे बाजार अनुसंधान (market research) और सही चैनल चुनकर मुनाफा बढ़ाया जा सकता है
निष्कर्ष
छोटी जमीन में भी अधिक पैदावार और कमाई संभव है! सही फसल चयन, उन्नत खेती विधियों को अपनाने और फसल को उचित बाजार तक पहुँचाने से आप अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। देहात (DeHaat) हर कदम पर आपका साथी है। हम आपको बीजों से लेकर बाजार तक हर जरूरी जानकारी और सह���यता प्रदान करते हैं।
DeHaat - Seeds to Market Imp Links:
देहात की वेबसाइट (URL HERE) पर जाएं और अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त फसलों की जानकारी प्राप्त करें।
देहात विशेषज्ञों से जुड़ें (Connect with DeHaat experts) - हमारे हेल्पलाइन नंबर HELPLINEHERE पर कॉल करें या हमारी वेबसाइट पर चैट करें।
देहात ऐप डाउनलोड करें (Download the DeHaat app) - URL HERE
आप सफल किसान बन सकते हैं! देहात के साथ जुड़ें और अपनी खेती को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं।
“अस्वीकरण (Disclaimer): इस ब्लॉग में दी गई जानकारी केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। किसी भी निर्णय लेने से पहले हमेशा किसी कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें।
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सोयाबीन की नई किस्में: ये किस्में किसानों को देंगी ज़्यादा पैदावार और अच्छा मुनाफ़ा
कम समय में पकने वाली, जलवायु अनुकूल और प्रतिरोधक क्षमता में उन्नत
इन नई किस्मों में से एक किस्म ऐसी है जो किसान एक साल में अलग-अलग दो फसलें के साथ लगा सकते हैं। उन किसानों के लिए ये सोयाबीन की नई किस्में पहली पसंद हो सकती है। इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान के भारतीय संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक संजय गुप्ता ने इस किस्म को विकसित किया है।
सोयाबीन की नई किस्में (New Soybean Varieties): देश के किसानों की हालत में सुधार, उनकी आय में वृद्धि के उद्देश्य से कृषि वैज्ञानिक आधुनिक तकनीक और फसलों की उन्नत किस्में लगातार विकसित करते रहे हैं। अभी हाल ही में अलग-अलग फसलों की 35 नई किस्मों की सौगात किसानों को दी गई। ये नई किस्में जलवायु अनुकूल और कुपोषण मुक्त भारत के अभियान को रफ़्तार देने में मददगार होंगी।
देश के अलग-अलग कृषि संस्थानों द्वारा ईज़ाद की गई इन किस्मों में सूखा प्रभावित क्षेत्र के लिए चने की नई किस्म, कम समय में तैयार होने वाली अरह��, जलवायु अनुकूल और रोग प्रतिरोधी धान की किस्में, पोषक तत्वों से भरपूर गेहूं, बाजरा, मक्का की किस्में शामिल हैं। इसके अलावा किनोवो, कुट्टू, विंग्डबीन और बाकला की उन्नत किस्में और उच्च गुणवत्ता वाले सरसों और सोयाबीन की प्रमुख किस्में की वैरायटी भी किसानों को समर्पित की गईं। इस लेख में आगे आप सोयाबीन की नई किस्मों की खासियत और उत्पादन क्षमता के बारे में जानेंगे।
सोयाबीन की जो नई किस्में आईं हैं, वो कई मायनों में ज़्यादा उन्नत हैं, जो इसकी खेती करने वाले किसानों को अच्छे उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता भी देंगी। सोयाबीन प्रोटीन की मात्रा से भरपूर होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा लगभग 40 से 50 फ़ीसदी पाई जाती है। इसके नियमित सेवन से प्रोटीन की कमी से होने वाली बीमारियों से बचाव होता है। सोयाबीन के इन गुणों को देखते हुए ही लोगों के बीच इसकी अच्छी मांग रहती है। इस वजह से किसान अगर उन्नत किस्मों की खेती करेंगे तो उन्हें लाभ की संभावना ज़्यादा रहेगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- सोयाबीन अनुसंधान के भारतीय संस्थान इंदौर (ICAR-IISR) ने सोयाबीन की नई किस्मों को लेकर विस्तार से जानकारी दी है। आइए जानते हैं इन सोयाबीन की नई किस्मों के बारे में।
सोयाबीन किस्म एन. आर. सी. 128
सोयाबीन की एन. आर. सी. 128 किस्म (Soybean Varieties nrc 128) की खासियत है कि ज़्यादा पानी गिरने और जलभराव वाली स्थिति में भी इस किस्म को नुकसान नहीं पहुंचता। इस किस्म में रोए होते हैं जिस कारण कीड़ों का प्रकोप कम होता है। ये किस्म बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के किसानों के लिए अच्छी है। साथ ही उत्तर मैदानी क्षेत्र पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के लिए भी ये किस्म उपयुक्त है। पूर्वी क्षेत्र और उत्तर मैदानी क्षेत्र के किसानों को इस किस्म की खेती से फ़ायदा होगा। इस किस्म को विकसित करने का श्रेय डॉ. एम. शिवकुमार को जाता है।
सोयाबीन किस्म एन. आर. सी. 127
सोयाबीन की किस्म एन. आर. सी. 127 खाद्य प्रो��क्ट बनाने के लिए बेहद उपयुक्त है। अन्य किस्मों को जहां इस्तेमाल से पहले उबालना पड़ता है। ये किस्म कड़वा मुक्त होने के कारण इसे खाया जा सकता है। ये किस्म 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। ये किस्म मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त है।
सोयाबीन किस्म एन. आर. सी. 130
एन. आर. सी. 130 बहुत ही कम समय में पकने वाली किस्म है। ��ो किसान एक साल में अलग-अलग तीन फसलें लगाना चाहते हैं, उन किसानों के लिए ये किस्म पहली पसंद हो सकती है। इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान के भारतीय संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक संजय गुप्ता ने इस किस्म को विकसित किया है।
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#icar#indian institute of soybean research indore#new variety of soybean#soybean farming#soybean variety#सोयाबीन#सोयाबीन किस्म#सोयाबीन की नई किस्म
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अशोक में बाजरा-आधारित नाश्ता बुफे एक जरूरी प्रयास है
अशोक में बाजरा-आधारित नाश्ता बुफे एक जरूरी प्रयास है
बाजरा न केवल गेहूं के विकल्प के रूप में पहचाना जा रहा है, बल्कि अपने आप में एक सुपरफूड के रूप में भी पहचाना जा रहा है। लस मुक्त होने के अलावा, विनम्र अनाज में इसका सेवन करने वालों के लिए बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ हैं। यह सस्ता, आसानी से उपलब्ध और आवश्यक फाइबर और विटामिन से भरपूर है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी जब केंद्रीय बजट में 2022-23 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया गया था। होटल और…
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#अशोक होटल#बाजरा#बाजरा का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष 2023#बाजरा लाभ#बाजरा स्वास्थ्य लाभ#स्वास्थ्य के लिए बाजरा
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Millets cut risk of heart disease: Study
Millets cut risk of heart disease: Study
द्वारा एक्सप्रेस समाचार सेवा हैदराबाद: ICRISAT (इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स) के एक नए अध्ययन से पता चला है कि ��ृदय रोगों के जोखिम को कम करने के लिए बाजरा एक आदर्श, चमत्कारिक भोजन है। अध्ययन, जो पांच संगठनों के एक समूह द्वारा आयोजित किया गया था और आईसीआरआईएसएटी के नेतृत्व में 900 लोगों के साथ किए गए 19 अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया था। इसके अच्छे परिणाम…
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पीडीएस के लिए एमएसपी पर 1.60 लाख मीट्रिक टन बाजरा की खरीद करेगी सरकार
पीडीएस के लिए एमएसपी पर 1.60 लाख मीट्रिक टन बाजरा की खरीद करेगी सरकार
रकबे को देखते हुए बाजरा की बाकी उपज के लिए हरियाणा के किसानों को भावांतर भरपाई योजना का दिया जाएगा लाभ. उधर, बाजरा के सबसे बड़े उत्पादक राजस्थान में कई साल से एमएसपी पर नहीं हो रही है इसकी खरीद. बाजरा खरीद को लेकर हरियाणा सरकार का एलान. Image Credit source: File Photo हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि हरियाणा में खरीफ सीजन की फसलों की खरीद पहली अक्टूबर से आरंभ होगी. सार्वजनिक…
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अब हरे चारे की खेती करने पर मिलेंगे 10 हजार रुपये प्रति एकड़, ऐसे करें आवेदन
हरा चारा (green fodder) पशुओं के लिए महत्वपूर्ण आहार है, जिससे पशुओं के शरीर में पोषक तत्वों की कमी दूर होती है। इसके अलावा पशु ताकतवर भी होते हैं और इसका प्रभाव दुग्ध उत्पादन में भी पड़ता है। जो किसान अपने पशुओं को हरा चारा खिलाते हैं, उनके पशु स्वस्थ्य रहते हैं तथा उन पशुओं के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है। हरे चारे की खेती करके किसान भाई अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि इन दिनों गौशालाओं में हरे चारे की जबरदस्त डिमांड है, जहां किसान भाई हरे चारे को सप्प्लाई करके अपने लिए कुछ अतिरिक्त आमदनी का प्रबंध कर सकते हैं।
इन दिनों गावों में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन एक व्यवसाय का रूप ले रहा है। ज्यादातर किसान इसमें हाथ आजमा रहे हैं, लेकिन किसानों द्वारा पशुओं के आहार पर पर्याप्त ध्यान न देने के कारण पशुओं की दूध देने की क्षमता में कमी देखी जा रही है। इसलिए पशुओं के आहार के लिए हरा चारा बेहद मत्वपूर्ण हो जाता है, जिससे पशु सम्पूर्ण पोषण प्राप्त करते हैं और इससे दुग्ध उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होती है।ये भी पढ़े:दुग्ध प्रसंस्करण एवं चारा संयंत्रों को बड़ी छूट देगी सरकार
हरे चारे की खेती ज्यादातर राज्यों में उचित मात्रा में होती है जो वहां के किसानों के पशुओं के लिए पर्याप्त है। लेकिन हरियाणा में हरे चारे की कमी महसूस की जा रही है, जिसके बाद राज्य सरकार ने हरे चारे की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए ‘चारा-बिजाई योजना’ की शुरुआत की है। इस योजना के तहत किसानों को हरे चारे की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान हरे चारे की खेती करना प्रारम्भ करें। इस योजना के अंतर्गत सरकार हरे चारे की खेती करने पर किसानों को 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी प्रदान करेगी। यह राशि एक किसान के लिए अधिकतम एक लाख रुपये तक दी जा सकती है। यह सब्सिडी उन्हीं किसानों को मिलेगी जो अपनी जमीन में हरे चारे की खेती करके उत्पादित चारे को गौशालाओं को बेंचेंगे। इस योजना को लेकर हरियाणा सरकार के ऑफिसियल ट्विटर अकाउंट MyGovHaryana से ट्वीट करके जानकारी भी साझा की गई है।
हरियाणा सरकार ने बताया है कि यह सब्सिडी की स्कीम का फायदा सिर्फ उन्हीं किसानों को मिलेगा जो ये 3 अहर्ताएं पास करते हों :
सब्सिडी का लाभ लेने वाले किसान को हरियाणा का मूल निवासी होना चाहिए।
किसान को अपने खेत में हरे चारे के साथ सूखे चारे की भी खेती करनी होगी, इसके लिए उसको फॉर्म में अपनी सहमति देनी होगी।
उगाया गया चारा नियमित रूप से गौशालाओं को बेंचना होगा।
जो भी किसान इन तीनों अहर्ताओं को पूर्ण करता है वो सब्सिडी पाने का पात्र होगा।
कौन-कौन से हरे चारे का उत्पादन कर सकता है किसान ?
दुधारू पशुओं के लिए बहुत से चारों की खेती भारत में की जाती है। इसमें से कुछ चारे सिर्फ कुछ महीनों के लिए ही उपलब्ध हो पाते हैं। जैसे कि ज्वार, लोबिया, मक्का और बाजरा वगैरह फसलों के चारे साल में 4-5 महीनों से ज्यादा नहीं टिकते। इसलिए ��स समस्या से निपटने के लिए ऐसे चारा की खेती की जरुरत है जो साल में हर समय उपलब्ध हो, ताकि पशुओं के लिए चारे के प्रबंध में कोई दिक्कत न आये। भारत में किसान भाई बरसीम, नेपियर घास और रिजका वगैरह लगाकर अपने पशुओं के लिए 10 से 12 महीने तक चारे का प्रबंध कर सकते हैं।ये भी पढ़े:गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा
बरसीम (Berseem (Trifolium alexandrinum)) एक बेहतरीन चारा है जो सर्दियों से लेकर गर्मी शुरू होने तक किसान के खेत में उपलब्ध हो सकता है। यह चारा दुधारू पशुओं के लिए ख़ास महत्व रखता है क्योंकि इस चारे में लगभग 22 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा यह चारा बेहद पाचनशील होता है जिसके कारण पशुओं के दुग्ध उत्पादन में साफ़ फर्क देखा जा सकता है। इस चारे को पशुओं को देने से उन्हें अतिरिक्त पोषण की जरुरत नहीं होती।
बरसीम के साथ ही अब भारत में नेपियर घास (Napier grass also known as Pennisetum purpureum (पेन्नीसेटम परप्यूरियम), elephant grass or Uganda grass) या हाथी ���ास आ चुकी है। यह किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यह मात्र 50 दिनों में तैयार हो जाती है। जिसके बाद इसे पशुओं को खिलाया जा सकता है। यह एक ऐसी घास है जो एक बार लगाने पर किसानों को 5 साल तक हरा चारा उपलब्ध करवाती रहती है, जिससे किसानों को बार-बार चारे की खेती करने की जरुरत नहीं पड़ती और न ही इसमें सिंचाई की जरुरत पड़ती है। नेपियर घास की यह विशेषता होती है कि इसकी एक बार कटाई करने के बाद, घास के पेड़ में फिर से शाखाएं निकलने लगती हैं। घास की एक बार कटाई के लगभग 40 दिनों बाद घास फिर से कटाई के लिए उपलब्ध हो जाती है। यह घास पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है।
रिजका (rijka also called Lucerne or alfalfa (Medicago sativa) or purple medic) एक अलग तरह की घास है जिसमें बेहद कम सिंचाई की जरुरत होती है। यह घास किसानों को नवंबर माह से लेकर जून माह तक हरा चारा उपलब्ध करवा सकती है। इस घास को भी पशुओं को देने से उनके पोषण की जरुरत पूरी होती है और दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।
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सब्सिडी प्राप्त करने के लिए आवेदन कहां करें
जो भी किसान भाई अपने खेत में हरा चारा उगाने के इच्छुक हैं उन्हें सरकार की ओर से 10 हजार रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इस योजना के अंतर्गत अप्प्लाई करने के लिए हरियाणा सरकार की ऑफिसयल वेबसाइट ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा‘ पर जाएं और वहां पर ऑनलाइन माध्यम से आवेदन भरें। आवेदन भरते समय किसान अपने साथ आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, बैंक खाता डिटेल, आधार से लिंक मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज का फोटो जरूर रखें। ये चीजों किसानों को फॉर्म के साथ अपलोड करनी होंगी, जिसके बाद अपने खेतों में हरे चारे की खेती करने वाले किसानों को सब्सिडी प्रदान कर दी जाएगी। सब्सिडी प्राप्त करने के बाद किसानों को अपने खेतों में उत्पादित चारा गौशालाओं को सप्प्लाई करना अनिवार्य होगा।
Source अब हरे चारे की खेती करने पर मिलेंगे 10 हजार रुपये प्रति एकड़, ऐसे करें आवेदन
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मंगलवार शाम मुख्यमंत्री निवास पर राजस्थान राज्य कृषि बजट की समीक्षा बैठक को संबोधित किया। राज्य सरकार प्रदेश में किसानों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रतिबद्धता की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए हमने पहली बार अलग से कृषि बजट प्रस्तुत किया। हमारी पूरी कोशिश है कि कृषि बजट में की गई घोषणाओं की क्रियान्विति सुनिश्चित कर इन्हें धरातल पर उतारा जाए।
राज्य में ऐसे कृषि प्रावधान किए जाने चाहिए जिससे कृषि संबंधित योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ लघु और सीमांत किसानों को मिल सके। योजनाओं का प्रदेश में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार किया जाकर प्रक्रियात्मक पारदर्शिता में वृद्धि करने के भी निर्देश दिए।
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि ड्रिप इरिगेशन से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। राजस्थान जैसे मरूस्थलीय प्रदेश में ड्रिप इरिगेशन ही सिंचाई हेतु एक दीर्घकालिक समाधान है। किसानों का इस तरफ रूझान बढ़ा है। सरकार इसके उपयोग के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार द्वारा बजट में 4 लाख किसानों को ड्रिप इरिगेशन से लाभांवित करने के लिए 1705 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ड्रिप इरिगेशन के लिए राजस्थान सूक्ष्म सिंचाई मिशन के अंतर्गत 1.60 लाख कृषकों को सिंचाई संयंत्र उपलब्ध कराने के लिए स्वीकृति जारी कर दी गई है। इसी क्रम में बजट में घोषित 825 करोड़ की सब्सिडी के अंतर्गत अब तक 9,738 फार्मपौण्ड व 1,892 डिग्गियों के निर्माण हेतु स्वीकृति जारी की जा चुकी है। वहीं, किसानों को सोलर पंप की स्थापना के लिए 22,807 कार्य आदेश जारी किए जा चुके हैं। इन सोलर पंपों पर सरकार द्वारा 61.58 करोड़ का अनुदान किया जा रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई में पानी की बचत वाली स्कीमों पर लगभग 75 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। इन योजनाओं के प्रति किसानों में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न माध्यमों से प्रचार-प्रसार व प्रगतिशील किसानों का प्रशिक्षण करवाया जाएगा।
बैठक में बताया गया कि 40 करोड़ की लागत से 1000 ड्रोन ग्राम सेवा सहकारी समितियों तथा कृषक उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को उपलब्ध करवाए जाने का कार्य किया जा रहा है। इससे किसान प्रभावी एवं सुरक्षित तरीके से कम समय में कीटनाशकों का छि���काव कर सकेंगे, जिससे फसल की रक्षा हो सकेगी एवं कम लागत से उनकी आय में भी बढ़ोतरी होगी।
राज्य में खरीफ की फसल के लिए खाद-बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तथा इन्हें किसानों को उपलब्ध कराए जाने के लिए सरकार प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री बीज स्वाबलंबन योजना के अंतर्गत खरीफ फसलों के बीजों का वितरण बड़े स्तर पर किया गया है। लघु एवं सीमांत किसानों को 10 लाख बाजरा मिनीकिट्स एवं 2 लाख सूक्ष्मतत्व व जैव कीटनाशक किट का वितरण शुरू किया जा चुका है। राज्य में 0.49 लाख मीट्रिक टन यूरिया एवं 0.37 लाख मीट्रिक टन डीएपी उर्वरक भंडारित किया जा चुका है। इस वर्ष अभी तक मानसून सामान्य रहने से 11 जिलों में सामान्य वर्षा एवं 22 जिलों में सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई है तथा राज्य में 76 प्रतिशत बुवाई का कार्य किया जा चुका है।
बैठक में बताया गया कि प्रदेश में 29 कृषि महाविद्यालय हेतु अस्थायी भवन की व्यवस्था एवं भूमि आवंटन की कार्यवाही जारी है। ये कृषि महाविद्यालय उच्च शिक्षा विभाग के अधीन संचालित होंगे। वहीं देवली, टोंक में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है।
उत्पादकता व किसानों की आय बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि किसानों को उन्नत किस्मों के बीज सस्ती दर पर उपलब्ध कराए जाएं। कृषि में नवाचार कर रहे किसानों को सरकार द्वारा सम्मानित किया जाए। उन्नत खेती तकनीकों का डेमों शहरों के प्रमुख स्थानों पर करवाकर किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। बैठक में बताया गया कि सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए राजस्थान संरक्षित खेती मिशन के तहत ग्रीन हाउस, शेडनेट, लॉटनल, प्लास्टिक मल्चिंग आदि तकनीकों के उपयोग के लिए किसानों को सब्सिडी दी जा रही है। 12,500 किसान इस योजना से लाभांवित हो चुके हैं। जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण हेतु सभी संभागों में 15 करोड़ की लागत से लैब बनाने के लिए डीपीआर करवाई जा रही है। वहीं ऑर्गेनिक कमोडिटी बोर्ड की स्थापना का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। सभी संभाग मुख्यालयों पर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर माइक्रो इरिगेशन की स्थापना हेतु कार्य प्रगति पर है।
लघु व सीमांत किसानों का हित सरकार की प्रत्येक कृषि योजना के केन्द्र में है। राजस्थान बीज उत्पादन एवं वितरण मिशन के अंतर्गत 12 लाख लघु व सीमांत किसानों को 78 करोड़ की लागत से बीज मिनीकिट्स के वितरण का कार्य किया जा रहा है। राजस्थान कृषि बीज स्वाम्बलन योजना से राजस्थान कृषि तकनीक मिशन के अंतर्गत महंगे यंत्रों और उपकरणों की खरीद पर 108.80 करोड़ रूपए अनुदान दिया जा रहा है। वर्तमान में संचालित 371 कस्टम हायरिंग केन्द्रों से सस्ती दरों पर किसानों को ट्रेक्टर, थ्रेशर, रोटोवेटर आदि कृषि यंत्र व उपकरण उपलब्ध करवाए जा रहे है। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि, आदान लागत में कमी तथा कम समय में अधिक कार्य करने के साथ-साथ ��िसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। प्याज भंडारण केन्द्रों कर किसानों को प्याज, लहसुन आदि फसलों के लिए निःशुल्क भंडारण सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, ताकि उन्हें अपनी उपज कम दाम पर ना बेचनी पड़े। राजस्थान फसल सुरक्षा योजना के अंतर्गत तारबंदी के लिए किसानों को 125 करोड़ रूपए के अनुदान दिया जा रहा है। योजना से लाभांवितों में आवश्यक रूप से 30 प्रतिशत लघु व सीमांत किसान होने का प्रावधान किया गया है। सभी योजनाओं में लघु व सीमांत किसानों का अतिरिक्त अनुदान दिया जा रहा है।
राजस्थान उद्यानिकी विकास मिशन के तहत फलों व मसालों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 15000 हेक्टेयर क्षेत्र में फलों की खेती व 1500 हेक्टेयर क्षेत्र में मसालों की खेती का लक्ष्य निर्धारण कर कार्य किया जा रहा है। फल बगीचोें की स्थापना के लिए अनुदान सीमा 50 से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दी गई है। योजना अंतर्गत आवेदन प्राप्त कर स्वीकृति प्रदान करने का कार्य जारी है। साथ ही खजूर की खेती को प्रोत्साहन देने केे लिए सरकार द्वारा खजूर बगीचा स्थापित करने तथा टिश्यू कल्चर पौध आपूर्ति हेतु अनुदान दिया जा रहा है।
कृषि मंत्री श्री लालचंद कटारिया ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में प्रदेश में किसानों के हित में एक से बढ़कर एक फैसले लिए जा रहे हैं। इनमें किसानों की ऋणमाफी, किसान ऊर्जा मित्र योजना के तहत बिजली बिल में छूट, तारबंदी के लिए अनुदान, मशीनरी खरीद के लिए अनुदान सहित कई अहम निर्णय शामिल हैं। उन्होंने कहा कि पहली बार प्रस्तुत कृषि बजट की घोषणाओं को पूरा करने के लिए सभी विभागीय अधिकारी पूरी मेहनत एवं एकजुटता के साथ कार्य करें।
बैठक में मुख्य सचिव श्रीमती उषा शर्मा, प्रमुख सचिव वित्त श्री अखिल अरोड़ा, प्रमुख सचिव कृषि श्री दिनेश कुमार, उद्यानिकी आयुक्त श्री चेतन राम देवड़ा एवं कृषि आयुक्त श्री काना राम सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।
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क्या आप स्वस्थ खा रहे हैं लेकिन फिर भी वजन बढ़ा रहे हैं ??🤔🤔
मेरे बहुत से ग्राहक और जिन लोगों से मैं मिलता हूं, वे अक्सर मुझे यह विशेष पंक्ति बताते हैं और यह मेरी पसंदीदा . है
"मैं स्वस्थ घर का बना खाना ही खाता हूँ लेकिन फिर भी वजन बढ़ ��हा है !!"
अब यहाँ सौदा है
स्वस्थ खाने और वजन कम करने के बीच के अंतर को समझें
एक स्वस्थ आहार खाने का मतलब सख्त सीमाओं के बारे में नहीं है, अवास्तविक रूप से पतला रहना, या अपने पसंदीदा खाद्य पदार्थों से खुद को वंचित करना। इसके बजाय, यह बहुत अच्छा महसूस करने, अधिक ऊर्जा रखने, आपके स्वास्थ्य में सुधार करने और आपके मूड को बेहतर बनाने के बारे में है।
यह कैलोरी पर अत्यधिक हो सकता है या
यहां तक कि बहुत कम और यह सब निर्भर करता है।
मैं
जबकि वजन कम करते समय कैलोरी की कमी होना नितांत आवश्यक है, निश्चित रूप से आहार को बनाए रखने के लिए स्वस्थ होना चाहिए लेकिन यह कोई आदेश नहीं है। यहां पोषण से ज्यादा कैलोरी पर ध्यान दिया जाता है।
मैं
तो यहां बताया गया है कि घर पर स्वस्थ खाने के दौरान आप कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं
1) आप बहुत अधिक मल्टीग्रेन (ज्वार/बाजरा) की ब्रेड/रोटी जैसे जटिल कार्ब्स पर लोड करके अत्यधिक कैलोरी का सेवन कर रहे हैं।
2) आप सलाद खाते हैं लेकिन भारी ड्रेसिंग से भरे हुए हैं, जैसे सबवे से।
3) आप अपने भोजन को फलों से बदल देते हैं लेकिन मात्रा के साथ अधिक करते हैं, क्योंकि यह फल है और यह भूल जाता है कि फलों में भी कैलोरी होती है।
4) आप मूंगफली और बादाम जैसे कैलोरी से भरपूर नट बटर की कई मदद सिर्फ इसलिए लेते हैं क्योंकि वे स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं😏
5) आप अपने बिस्कुट को सूखे मेवे और बीजों से बदल देते हैं, लेकिन अंत में मुट्ठी भर खाने के बजाय एक बड़े कटोरे के साथ समाप्त हो जाते हैं, फिर भी आप कैलोरी के बारे में भूल जाते हैं।
संक्षेप में, हाँ, आप स्वस्थ भोजन कर रहे होंगे लेकिन वजन घटाने/वजन संतुलन के लिए परिकलित घाटे में नहीं
इसलिए वजन वही रहता है या आप बस गेन करते हैं।
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अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार
भारत में कृषि प्रगति का श्रेय किसान एवं वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत के अलावा उन्नत किस्म उर्वरकों एवं सिंचित क्षेत्र को जाता है. इसमें अकेले उर्वरकों का खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के लिए 50 परसेंट योगदान माना जाता है. उल्लेखनीय है कि फसलों द्वारा उपयोग की जाने वाली पोषक तत्वों की मात्रा और आपूर्ति में बहुत बड़ा अंतर है. फसलें कम उर्वरक लेती हैंं, किसान ज्यादा डालते हैं जिसका दुष्प्रभाव जमीन की उर्वर�� शक्ति पर लगातार पड़ रहा है. देश के किसान उर्वरकों के उपयोग में न तो वैज्ञानिकों की संस्तुति का ध्यान रखते हैं ना अपने ज्ञान विशेष का। असंतुलित उर्वरकों के उपयोग से उन्नत व पौधों को हर तत्व की पूरी मात्रा मिल पाती है और ना ही उत्पादन ठीक होता है। इसके अलावा किसानों की लागत और बढ़ जाती है। जरूरत इस बात की है कि किसान संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें ताकि उत्पादन अच्छा और गुणवत्ता युक्त हो एवं मृदा स्वास्थ्य ठीक रहे।
उपज में इजाफा ना होने के कारण
# मृदा में मौजूद पोषक तत्वों की सही जानकारी का अभाव रहता है।
# किस फसल के लिए कौन सा पोषक तत्व जरूरी है इसका ज्ञान ना होना।
# मुख्य एवं क्षमा सूक्ष्म पोषक तत्वों के विषय में जानकारी ना होना।
# उर्वरकों के उपयोग की विधि एवं समय कर सही निर्धारण न होना।
# सिंचाई जल का प्रबंधन ठीक ना होना।
# फसलों में कीट एवं खरपतवार प्रबंधन समय से ना होना।
# लगातार एक ही फसल चक्र अपनाना।
# कार्बनिक खाद का उपयोग न करने से रासायनिक खादों से भी उपज में ठीक वृद्धि ना होना।
मृदा परीक्षण क्यों जरूरी है
यदि फसल उगाने की तकनीक के साथ उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाए तो दोहरा लाभ होता है। किसानों को गैर जरूरी उर्वरकों पर होने वाला खर्च नहीं करना होता इसके अलावा संतुलित उर्वरक फसल को मिलने के कारण उत्पादन अच्छा और गुणवत्ता युक्त होता है। संतुलित उर्वरक प्रयोग से मिट्टी की भौतिक दशा यानी सेहत ठीक रहती है।
फसलों के लिए उर्वरकों की वैज्ञानिक संस्तुति
इस विधि को विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा दशकों पहले देश के विभिन्न भागों और राज्यों एवं मिट्टी की विभिन्न दशाओं में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश उर्वरक की अलग-अलग मात्रा तथा उनके संयोजन के साथ विभिन्न फसलों पर प्रयोग किए गए। इन प्रयोगों के फसलों की उपज पर होने वाले प्रभावों व आर्थिक पहलुओं का मूल्यांकन करने के बाद विभिन्न फसलों के लिए सामान्य संस्तुति यां विकसित की गईं। कुछ प्रमुख फसलों की सामान्य संस्तुतियां प्रस्तुत हैं।
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फसलें/उर्वरक तत्वों की मात्रा किलोग्राम प्रति हेक्टेयरनाइट्रोजन/ फास्फोरस/पोटाश
धान1206040
गेहूं 1206040
मक्का 1206040
बाजरा 804040
सरसों 804080
अरहर 2560×
चना 2550×
मूग 2550×
उर्द 2550×
वैज्ञानिक सुझाव भी कारगर नहीं
इस विधि का मुख्य जोश लि��ा है की इसमें मिट्टी की उर्वरा शक्ति का ध्यान नहीं रखा जाता। खेतों की उर्वरा शक्ति अलग-अलग होती है लेकिन बिना जांच के हमें एक समान ही खाद लगाना पड़ता है। किसी खेत में किसी एक तत्व की मात्रा पहले से ही मौजूद होती है लेकिन बगैर जांच के हम उसे और डाल देते हैं। उपज पर इसका अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
पोषक तत्वों की कमी के लक्षण
१. नाइट्रोजन- पुरानी पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। अधिक कमी होने पर पत्तियां बोरी होकर सूख जाती हैैं।
२.फास्फोरस-पत्तियों एवं तनाव पर लाल लिया बैगनी रंग आ जाता ह��। जड़ों के फैलाव में कमी हो जाती है।
३.पोटेशियम- पुरानी पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते हैं। पत्तियां बाद में भंवरी झुलसी हुई लगने लगती हैं।
४.सल्फर- नई पत्तियों का रंग हल्का हरा एवं पीला पड़ने लगता है दलहनी फसलों में गांठें कब बनती हैं।
५. कैल्शियम-नई पत्तियां पीली अथवा गहरी हो जाती हैं। पत्तियों का आकार सिकुड़ जाता है।
६-मैग्नीशियम पुरानी पत्तियों की नसें हरी रहती हैं लेकिन उनके बीच का स्थान पीला पड़ जाता है। पत्तियां छोटी और सख्त हो जाते हैं।
७-जिंक-पुरानी पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे देखने लगते हैं। शिरा के दोनों और रंगहीन पट्टी जिंक की कमी के लक्षण है।
८-आयरन-नई पत्तियों की शिराओं के बीच का भाग पीला हो जाता है। अधिक कमी पर पत्तियां हल्की सफ़ेद हो जाती हैैं। ंं
९-कॉपर-पत्तियों के शिराओं की चोटी-छोटी एवं मुड़ी हुई हल्की हरी पीली हो जाती है।
१०-मैग्नीज-की कमी होने पर नई पत्तियों की शिराएं भूरे रंग की तथा पत्तियां पीली से भूरे रंग में बदल जाती हैं।
११-बोरान-नई पत्तियां गुच्छों का रूप ले लेती हैं। डंठल, तना एवं फल फटने लगते हैं।
१२-मालिब्डेनम-पत्तियों के किनारे झुलस या मुड जाते हैं या कटोरी का आकार ले सकते हैं।
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क्या है बायो फर्टिलाइजर
बायो फर्टिलाइजर जमीन में मौजूद पढ़े अतिरिक्त खादों को घुलनशील बनाकर पौधों को पहुंचाने में मददगार होता है।
नत्रजन तत्व की पूर्ति के लिए
राइजोबियम कल्चर-इसका उपयोग दलहनी फसलों के लिए किया जाता है । 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 200 ग्राम के 3 पैकेट राइजोबियम लेकर बीज को उपचारित करके बुवाई करें।
एजेक्वेक्टर एवं एजोस्पाइरिलम कल्चर-बिना दाल वाली सभी फसलों के लिए निम्नानुसार प्रयोग करें। रोपाई वाली फसलों के लिए दो पैकेट कल्चर को 10 लीटर पानी के घोल में पौधे की जड़ों को 15 मिनट तक ठोकर रखने के बाद रोपाई करें।
फास्फोरस तत्व की पूर्ति के लिए
पीएसबी कल्चर-रासायनिक उर्वरकों द्वारा दिए गए फास्फोरस का बहुत बड़ा भाग जमीन में घुलनशील होकर फसलों को नहीं मिल पाता । पीएसबी कल्चर फास्फोरस को घुलनशील बनाकर फसलों को उपलब्ध कराता है । बीजोपचार उपरोक्तानुसार करें या 2 किलो कल्चर को 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर खेत में मिला दे।
वैम कल्चर-यह कल्चर फास्फोरस के साथ-साथ दूसरे सभी तत्वों की उपलब्धता बढ़ा देता है । उपरोक्त अनुसार बीज उपचार करें।
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वजन घटाने: वजन घटाने के लिए बाजरा कैसे उपयोगी है? इससे जुड़े अन्य स्वास्थ्य लाभ क्या हैं? | द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया
वजन घटाने: वजन घटाने के लिए बाजरा कैसे उपयोगी है? इससे जुड़े अन्य स्वास्थ्य लाभ क्या हैं? | द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया
रागी या बाजरा को देश के कई हिस्सों में नाचनी के नाम से भी जाना जाता है। 100 ग्राम रागी में 354 किलो कैलोरी होता है। रागी में अमीनो एसिड ट्रिप्टोफैन होता है जो भूख को कम करता है और व्यक्ति को भरा हुआ रखता है। रागी को तृप्त रखने के अलावा, रागी आंत प्रणाली को अच्छी मात्रा में फाइबर भी प्रदान करता है। इसकी कम वसा सामग्री भी इसे वजन घटाने के लिए आहार में शामिल करने के लिए आदर्श बनाती है। इसके अलावा…
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खरीफ़ फसलों में लगने वाले खरपतवारों की रोकथाम कैसे करें? जानिए कृषि विशेषज्ञ डॉ. संदीप कुमार सिंह से
खरपतवारों की वजह से फसलों को 15 से 70 फ़ीसदी तक नुकसान पहुंचता है
गाजर घास, धतुरा जैसे कुछ ज़हरीले खरपतवार न केवल फसल उत्पादन की गुणवत्ता को कम करते हैं, बल्कि मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा उत्पन्न करते हैं। इसलिए इनके प्रबंधन पर किसानों को विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। खरपतवारों की रोकथाम कैसे करें किसान, इसपर मध्य प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र बुराहनपुर के प्रमुख और एग्रोनॉमी के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार सिंह से खास बातचीत की।
फसलों में लगने वाले खरपतवार कई प्रकार से फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। किसानों को खरपतवारों से होने वाला नुकसान दिखता नहीं, क्योंकि ये प्रत्यक्ष रूप से नुकसान न पहुंचाकर अप्रत्यक्ष रूप से फसलों को हानी पहुंचाते हैं। खरपतवारों की रोकथाम के लिए कई तरह के प्रबंधन ज़रूरी हैं।
इसके अलावा, गाजर घास, धतुरा जैसे कुछ ज़हरीले खरपतवार न केवल फसल उत्पादन की गुणवत्ता को कम करते हैं, बल्कि मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा उत्पन्न करते हैं। इसलिए इनके प्रबंधन पर किसानों को विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। मध्य प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र बुराहनपुर के प्रमुख और एग्रोनॉमी के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार सिंह से किसान ऑफ़ इंडिया ने खरीफ़ फसलों में लगने वाले खरपतवार और उनके प्रबंधन पर खास बातचीत की।
खरपतवारों से फसलों को नुकसान
डॉ. संदीप कुमार सिंह कहते हैं कि खरपतवार वे पौधे होते हैं, जिनकी खेत में ज़रूरत नहीं होती यानी ये किसानों के लिए अनचाहे पौधे होते हैं। ये बिना बोए अपने आप उग जाते हैं। ये खरपतवार फसलों को 15 से लेकर 70 फ़ीसदी तक नुकसान पहुंचाते हैं। इसके साथ-साथ खरपतवार और कीटों को भी आश्रय देकर फसलों को हानी पहुंचाते हैं।
डॉ. संदीप कुमार सिंह ने बताया कि खरपतवारों द्वारा फसल में होने वाला नुकसान, फसल, मौसम तथा खरपतवारों के प्रकार और उनकी संख्या पर निर्भर करती है। वहीं फसलों में किसी भी अवस्था में खरपतवार नियंत्रण करने पर समान रूप से लाभ नहीं मिल पाता है। इसलिए प्रत्येक फसल के लिए खरपतवारों की उपस्थिति के कारण सर्वाधिक हानि होने की अवधि निर्धारित की गई है। इस अवस्था को खरपतवार प्रबंधन के लिहाज से क्रांतिक अवस्था कहते हैं।
खरीफ़ फसलों में लगने वाले खरपतवार
कृषि वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार सिंह ने बताया कि खरीफ़ में उगाई जाने वाली अनाज वाली फसलें धान, बाजरा, ज्वार और मक्का हैं।\
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आम भारतीय ग्लूटेन-मुक्त खाद्य पदार्थ जिन्हें आप अपने आहार में शामिल कर सकते हैं
आम भारतीय ग्लूटेन-मुक्त खाद्य पदार्थ जिन्हें आप अपने आहार में शामिल कर सकते हैं
पाचन हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है। एक खुश और स्वस्थ पेट हमें खुश और उत्पादक बनाए रखने में बहुत मदद करता है। मानसून के दौरान, हमारा पाचन सामान्य रूप से थोड़ा धीमा होता है, इसलिए भोजन करना एक कार्य है, और हमें अपनी ऊर्जा को बनाए रखने के लिए भोजन करना चाहिए। इन दिनों, मेरे बहुत से मरीज़ गैस, सूजन, कब्ज और ऐसी ही अन्य समस्याओं की शिकायत कर रहे हैं। इसका श्रेय मौसमी प्रभाव को…
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