#प्रेगनेंसी के बाद वजन कैसे कम करें
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प्रेगनेंसी शॉपिंग
'सावी, ओ सावी' सासुजी बुला रही थी| कूरियर से बड़ा पार्सल आया था दरवाजे पर| वो देखकर उनकी चिड़चिड़ाहट शुरू हो गयी| सावी की प्रेगनेंसी टेस्ट का रिपोर्ट पिछले हफ्ते ही पॉजिटिव मिला था| उसने प्रेगनेंसी से सम्बंधित चीजोंका शॉपिंग बड़े धड़ल्ले से शुरू कर दिया था| कई चीजे घरमे आ गयी थी| मजे की बात तो ये थी की सावी खुद नहीं जानती थी की उनमे से कई चीजोंका उपयोग क्या है अथवा कैसे किया जाता है?
सावी जैसी कई लडकियां देखनेमें आती हैं| उन सबके लिए आजका ये लेख|
आप सभी जानते हो, की प्रेगनेंसी के कई स्टेजेस होते हैं| और हर चीज का अपना समय होता है| इसी तरह, प्रेगनेंसी शॉपिंग का भी अपना समय होता है|
पहली शॉपिंग तब करना, जब गर्भके हार्ट बीट्स सोनोग्राफी में सुनाई दें| इससे ये मालूम हो जाता है की गर्भ जीवित है (इसे LIVE PREGNANCY कहते हैं|
इस स्टेज पर कौनसी चीजें खरीदनी चाहिए?
१. सूती और आरामदेह कपडे- प्रेगनेंसी ये एक HYPERMETABOLIC अवस्था है| इसका मतलब प्रेगनेंसी में चयापचय क्रिया की गति बढ़ जाती है| जिसकी वजह से गर्माहट महसूस होना और अधिक पसीना आना स्वाभाविक है| इसीलिए गर्भावस्था में पहनावा सूती और आरामदेह हो इसका खास ख्याल रखें| जैसे जैसे पेट का आकार बढ़ता है, उसके साथ साथ कपडोंका साइज भी बदलना चाहिए|
२. ब्रा- गर्भावस्था में शुरू से ही स्तनोंका आकार और वजन बढ़ता जाता है| इसलिए स्तनोंको ठीक से सपोर्ट करे ऐसी ब्रा इस्तेमाल करना जरुरी है| वरना प्रसूति पश्चात् स्तन का आकार बिगड़ सकता है (SAGGING OF BREAST) | ऐसी SUPPORTIVE ब्रा खरीदें|
३ पैंटी- योग्य साइज की हों और दिन में कमसे कम दो बार चेंज करें| जैसे पेट बढ़ता है, तो प्रेगनेंसी की स्पेशल पैंटी मिलती है जो TUMMY को सपोर्ट करती हैं उन्हें इस्तेमाल करें|
४. सपाट चप्पल (FLAT FOOTWEAR) गर्भावस्था में सारा समय सपाट चप्पल ही इस्तेमाल करें| हिल वाले चप्पल प्रेगनेंसी में अत्यंत धोकादायक होते हैं| उनकी वजह से पीठ में दर्द, बैलेंस खोकर गिर जाना ऐसी परेशानियां हो सकती हैं| इसी लिए गर्भावस्था में और बच्चेको गोद में लेकर चलते समय सपाट चप्पल ही इस्तेमाल करें| इन्हे शुरुवाती लिस्ट में ही ले आये|
५. बॉडी पिलो - सोते वक़्त शरीर को आधार मिले और निद्रा आरामदेह हो इस लिए ये बहुत उपयोगी हैं|
६. डेओडोरैंट्स- जैसा हमने पहले देखा है, प्रेगनेंसी में पसीना ज्यादा निकलता है| इस लिए दुर्गंधी से बचने के लिए डेओडोरैंट्स योग्य मात्रा में अवश्य इस्तेमाल करें|
७. पानी की बोतल- प्रेगनेंसी में बाहरका पानी न पियें| एक बड़ी बोतल ख़रीदे और उसे घरके पानी से भर कर हमेशा साथ रखें| उसीका इस्तेमाल करें|
८. सूखे मेवे- ये हमेशा पर्स में अपने साथ रखें| अच्छे क्वालिटी का खरीदें और इसे दिनभर जब भी मन करें, खाते रहिये|
९. संगीत- गर्भावस्था में मन प्रसन्न और रिलैक्स्ड रहने के लिए संगीत बहुत मददगार होता है| मन को शांत रखनेवाला, खुश रखनेवाला संगीत अवश्य सुनें|
१०. ऑफिस पिलो- ऑफिस में यदि सारा समय बैठ कर काम करना होता है तो पीठ और लोअर बैक को सपोर्ट करने वाली पिलो खरीदें| जब भी आप कुर्सीपर बैठी हों, उसे इस्तेमाल करें| ऐसीही पिलो कार में सफर के वक़्त भी साथ ले सकते हैं|
ये सभी चीजें गर्भावस्था के प्रथम चरण में (FIRST STAGE) आवश्यक हैं|
अब अगले चरण की सोचते हैं
दूसरा चरण शुरू होता है २० हफ़्तोंके बाद, अर्थात ५वे महीने की सोनोग्राफी के बाद| क्योंकि इस सोनोग्राफी में गर्भ के अव्यंग और निरोगी होने की पुष्टि हो जाती है| इस लिए शिशु के लिए और डिलीवरी के लिए लगने वाली आवश्यक चीजें अब खरीद सकते हैं|
अपने समाज में आज भी बड़े बुजुर्ग यही मानते है की बच्चेके लिए खरीदारी उस के जन्म के बाद की जाए| परन्तु अपने समाज की परिस्थिति भी पाश्चात्य देशोंकी तरह होती जा रही है| हर बार कोई बुजुर्ग साथ में होंगे ये मुश्किल होता जा रहा है| इस लिए कई लोग आजकल ये खरीदारी भी पहले ही कर लेते हैं|
शिशु के लिए आवश्यक वस्तु
१. शिशु के सारे आवश्यक कपडे, लंगोट, तेल, साबुन, पाउडर तथा चद्दर| कॉटन की साडी और दुपट्टेसे शिशु के लिए बहुत अच्छी आरामदेह चादर बन सकती है| ये बहुत मुलायम होने से शिशु की नाजुक त्वचा भी सुरक्षित रहती है| बाजारू चादर की तुलना में इस चादर में अपनेपन का गंध होता है| आजकल ऐसी चादर पुरानी साडियोंसे सिलकर मिलती हैं|
२. शिशु के नहाने के लिए टब- ये अत्यंत उपयोगी और आवश्यक वस्तु है| नवजात शिशु को भी सुरक्षित रूप से नहलाने के लिए विशेष अटैचमेंट मिलती हैं|
३. CARRY COT - इसमें नन्हा शिशु बड़े आरामसे सो सकता है और आप उसे उठाकर कहीं भी ले जा सकते हो|
४. PRAM अथवा STOLLER -शिशु को घर से बाहर ले जाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है| बच्चे दो साल की उम्र तक इसमें बैठ सकते हैं और एन्जॉय भी करते हैं| जैसे जैसे शिशु का वजन बढ़ता है, उसे गोद में लेकर घूमना मुश्किल हो जाता है| इसलिए स्टॉलर की आदत पहलेसे ही डालें| सुबह की कच्ची धुप में जब शिशु को ले जाते हैं, तभी से आप स्टॉलर इस्तेमाल कर सकते हो|
५. पालना और उस पर टंगनेवाला गोल घूमता खिलौना- पालने में शिशु सुरक्षित रहता है| आप को यदि काम करना हो तो बच्चेको पालने में रखकर निश्चिन्त होकर काम कर सकते हो| पालने की आदत भी डालनी पड़ती है| पालने पर बांधनेके लिए एक गोल गोल घूमने वाला खिलौना मिलता है| इसका बहुत उपयोगी रोल है पहले कुछ महीनोमे| शिशुकी आँखें साधारणत: दूसरे महीनेसे फोकस होने लगती हैं| इस खिलोनेसे दृष्टी स्थिर होने में मदत होती है| बच्चा भी आँखें घुमाकर उस खिलोनेको आंखोंसे फॉलो करना सीखता है| ये एक महत्वपूर्ण स्टेप है|
���. डायपर- ये आजकल बहुत ही जरुरी हो गए हैं| अच्छे कंपनी के और सॉफ्ट तथा हलके डायपर इस्तेमाल करें| SKIN RASH पर हमेशा ध्यान दें|
अब इस स्टेज पर माँ के लिए क्या खरीदना है ये देखते हैं| डिलीवरी के बाद माँ का एक प्रमुख काम है शिशु को स्तनपान कराना| ये आसान हो इसलिए -
१. फीडिंग गाउन, फीडिंग टीशर्ट , फीडिंग ब्रा आदि चीजें ख़रीदना आवश्यक हैं|
२. फीडिंग पिलो- इस ख़ास पिलो पर शिशु को रखकर स्तनपान कराना आसान हो जाता है| माँ को झुकना नहीं पड़ता और फिर पीठ दर्द आदिकी परेशानी नहीं उठानी पड़ती|
३. सेनेटरी नैपकिन्स- डिलीवरी के बाद हॉस्पिटल में जो नैपकिन्स देते हैं, वो कई बार कम्फर्टेबल नहीं लगते| इसलिए आप हमेशा जो नैपकिन्स इस्तेमाल करते हो, उन्हीको बड़ी संख्यामे लाकर रखें|
जैसा पहले कहा है, कपडे, चप्पल आदि आरामदेह ही होने चाहिए|
यहाँ पर आपने एक बात नोटिस करी होगी की पहले स्टेज में माँ की खरीदारी ज्यादा है और दूसरी स्टेज में शिशु की| यही प्रकृति की खासियत है| नवनिर्माण की तैयारी भी जोरशोर से होती है और स्वागत भी बड़े आनंद के साथ किया जाता है|
इस लेख का मुख्य मक़सद यही है की नए नवेले माता-पिता ठीकसे प्लानिंग कर सके, उन्हें ऐन वक़्त पर भागदौड़ ना करनी पड़े| साथ ही, रिश्तेदार और मित्र परिवार भी ये तय कर सकते हैं की उपहार में क्या दें और क्या ना दें| मैंने लोगोंको नामकरण में या फिर पहले जन्मदिन पर तीन पहिया साइकिल देते हुए देखा है, जो फिर तीन साल तक वैसीही पड़ी रहती है| 'तीन पहिया तीसरे साल' ये तो बहुत आसान है याद रखने को, है ना?
आपके प्रतिसाद की अपेक्षा है|
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जानिये ! आईवीएफ से पहले आपको किन बातो का ध्यान रखने की आवश्यकता है?
आईवीएफ (IVF) प्रक्रिया के लिए खुद को तैयार करना किसी भी दंपत्ति के लिए एक बहुत ही बड़ा निर्णय होता है। यह जानते हुए कि हमारा समाज इस प्रक्रिया को ले कर कितना पिछड़ा हुआ है (सबसे पहले आईवीएफ इलाज होने के 40 साल बाद भी), यह एक बहुत बड़ी बात है कि आप इस सब से आगे बड़ कर सही इलाज लेने का कदम उठा रहें हैं।
पूरा इंटरनेट आईवीएफ की जानकारी से भरा हुआ है परंतु बहुत कम स्त्रोत हैं जो सही तरह से बताते हैं कि आईवीएफ के लिए कैसे तैयारी की जाती है। किसी भी दंपत्ति के लिए बहुत ही मुश्किल होता है कई ऐसे लेख पढ़ना जो आईवीएफ के बारे में बड़ी बड़ी बातें लिखते हैं लेकिन आपको इस बात का उत्तर नहीं देते कि इस प्रक्रिया के लिए तैयार कैसे होते हैं।
हम आशा करते हैं कि इस लेख से आपको सभी सवालों जैसे – मैं अपने शरीर को आईवीएफ के लिए कैसे तैयार करूं? मानसिक रूप से आईवीएफ के लिए कैसे तैयारी करते हैं? और आईवीएफ प्रिक्रिया के दौरान क्या क्या सवाल पूछने चाहिए? आदि के जवाब मिलेंगे। ये सभी सवाल बहुत महत्वपूर्ण हैं और हम आशा करते हैं कि आपको इन सभी के बारे में पता लग जाएगा, तो आईये जानते हैं हमे आईवीएफ से पहले आपको किन चीजें का ध्यान रखने की आवश्यकता है?
आईवीएफ के लिए खुद को कैसे तैयार करें?
अगर आप पहले ही समझ गए हैं की आईवीएफ हर शरण पर कैसे काम करता है, तो आप जानते होंगे कि आईवीएफ प्रक्रिया में कई शरण होते हैं जिसमें डॉक्टर से परामर्श, खून जांचें, अंडों की उत्तेजना (ovarian stimulation), अंडों को शरीर से निकालना (Transvaginal Oocyte Retrieval), अंडों और स्पर्म को तैयार करना (Egg and Sperm Preparation), अंडों और स्पर्म को मिलाना (Egg Fertilizations), और इस मेल से बनने वाले एंब्रियो को महिला के गर्भ में रखना (Embryo transfer), आदि शामिल हैं। यह सब होने के दो हफ्ते बाद महिला का प्रेगनेंसी टेस्ट किया जाता है। यह सारे चरण सुनने में बहुत लम्बे और डरावने लग सकते हैं परंतु आप निश्चिंत रहिए कि आपके डॉक्टर के लिए यह सभी प्रक्रियाँ उनकी विशेषता हैं और उन्होंने इनमें महारत पाने के लिए कई साल मेहनत की है।
आईवीएफ में बहुत से चारण होते हैं, इसलिए इसके लिए शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक रूप से तैयार होना बहुत जरूरी है। इसके लिए बेहतर है कि आप एक ऐसे प्रदाता चुने जो आपको हर चरण में मदद करे और आपके ऊपर से यह बोझ हटा दे। आईवीएफ जंक्शन यह समझता है की यह प्रक्रिया आपके लिए कितनी डरावनी और मुश्किल हो सकती है और आपको पूरी प्रक्रिया के दौरान मदद करता है। हम आपको बहुत से रूप में मदद करते हैं जैसे – मानसिक तनाव को संभालना, आपके खान पान का ध्यान रखना, आर्थिक रूप में मदद करना और आपको हर चरण पर सही राय देना। इस सबसे आपको इस प्रक्रिया से गुजरने में बहुत सहायता मिलती है।
पूरी प्रक्रिया होने में कुछ हफ्तों से कुछ महीनें भी लग सकते हैं और इसलिए यह जरूरी है कि आप एक सही आईवीएफ क्लिनिक चुने। इसके साथ साथ यह जानना कि इस प्रक्रिया से आपको क्या उम्मीद करनी चाहिए आपको इसके लिए भी तैयार बनाता है।
· आईवीएफ के लिए शारीरिक तैयारी
· आईवीएफ के लिए आर्थिक तैयारी
· आईवीएफ के लिए मानसिक तैयारी
· टेक आवे
आईवीएफ के लिए शारीरिक तैयारी
आईवीएफ की प्रक्रिया के लिए जाने से पहले आप और आपके साथी को कुछ जांचें करवानी पड़ेंगी। यह सब जांचें सुनिश्चित करती हैं कि आपके डॉक्टर आपके लिए सही इलाज ढूंढ सके। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि डॉक्टर आपके बच्चा ना होने के कारण को ढूंढ कर ठीक कर पाए। इनसे यह भी पता चलता है कि आपका खुद का बच्चा हो सकता है या फिर आपको एक डोनर की आवश्यकता है।
अंडों की संख्या की जांच (ovarian reserve testing)
आम भाषा में बोलें तो ओवेरियन रिजर्व टेस्टिंग से यह पता चलता है कि महिला के शरीर में कितने अंडे हैं जो एक कामयाब प्रेगनेंसी में बदल सकते हैं। सभी महिलाएं अंडों की एक संख्या ले कर पैदा ह��ती हैं और इन अंडों को संख्या ��र क्वालिटी बढ़ती उम्र के साथ कम होती जाती है। ओवेरियन रिजर्व टेस्टिंग आपके डॉक्टर को आपका सही इलाज करने में मदद करती है।
ओवेरियन रिजर्व टेस्टिंग में फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (Follicle Stimulating Hormone), एंटी मुलेरियन हॉर्मोन (Anti Mullerian Hormone), इनहिबिन बी (Inhibin B), बेसल एस्ट्राडियोल (Basal estradiol) और एंट्रल फॉलिकल काउंट ( Antral follicle count) का टेस्ट किया जाता है। इन जांचों से पता चलता है की क्या आपके अंडे प्रेग्नेंसी में बदल सकते हैं या नही।
संक्रामक रोगों की जांच
आपके (और अगर कोई डोनर हो तो) खून की जांच की जाती है ताकि किसी संक्रामक बीमारी का पता चल सके।
गर्भ का परीक्षण
अगर आपके डॉक्टर को लगता है की आपके बांझपन का कारण गर्भ से संबंधित हो सकता है तो वो गर्भ का परीक्षण करने के लिए कुछ जांच कर सकते हैं जैसे –
· ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड
· हिस्टेरोस्कोपी
· सेलाइन हिस्टेरोसोनोग्राफी
· और हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राफी
यह सारी जांचें कई बीमारियों का पता लगा सकती हैं जैसे – पॉलीप्स (polyps), अंतर्गर्भाशयी आसंजन, एंडोमेट्रियल हाइपरप्लासिया (endometrial hyperplasia), गर्भाशय सेप्टा (septate uterus) और सबम्यूकोसल फाइब्रॉएड (submucosal fibroids)।
स्पर्म का परीक्षण
इस जांच में पुरुष के शुक्राणु का परीक्षण किया जाता है। इस टेस्ट में स्पर्म की संख्या, आकार, गतिशीलता, आदि का परीक्षण किया जाता है। एक आदर्श सीमिन सैंपल में 15 मिलियन शुक्राणु एक मिली लीटर सैंपल में होते हैं और इनमें से 50 प्रतिशत शुक्राणु की गतिशीलता अच्छी होनी चाहिए और कम से कम 4 प्रतिशत शुक्राणु का आकार सही होना चाहिए। इसके अलावा और कई चीजों की जांच की जाती है जिससे आपके डॉक्टर को पता चलता है की क्या यह स्पर्म प्रेगनेंसी को जन्म दे सकते हैं या नहीं।
इन सभी जांचों के बाद आपके डॉक्टर को यह पता चल जाता है की आपके अंडे और स्पर्म से एक प्रेगनेंसी बन सकती है या नहीं, या आपको एक डोनर की जरूरत है।
इसके अलावा जरूरी है की आप एक सामान्य डॉक्टर और एक स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श कर लें ताकि अगर बांझपन का कोई और कारण है तो वों भी सामने आ जाएं। पीसीओएस ( PCOS) जैसे कई बीमारियां हैं जिससे महिला को बांझपन हो सकता है। 30 प्रतिशत दंपत्ति में बच्चे नहीं होने का कारण पीसीओएस हो सकता है इसलिए यह बहुत जरूरी है की यह सारी जांचें की जाएं।
आईवीएफ जंक्शन आपको सर्वश्रेष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञों, भारत के सबसे अच्छे आईवीएफ डॉक्टरों, आईसीएमआर अनुमोदित केंद्रों, आईवीएफ उपचार परामर्श और उपचार सहायता से विशेषज्ञ परामर्श प्रदान करता है। हम ऐसे केंद्रों के साथ साझेदारी करत�� हैं जिन्होंने सफलता दर स्थापित की है और सर्वोत्तम विशेषज्ञता, विशेष प्रयोगशालाएं, नैतिक अभ्यास और रोगी-केंद्रित हितों की पेशकश करते हैं।
हमारा फर्टिलिटी लाइफस्टाइल मैनेजमेंट प्रोग्राम आईवीएफ जंक्शन द्वारा विशेष रूप से डिजाइन किया गया एक प्रोग्राम है जो आपको आईवीएफ इलाज शुरू करने से पहले अपनी जीवन शैली को बदलने करने में मदद करता है।
सबसे पहले एक स्वस्थ जीवन शैली का पालन करना शुरू करें –
· धूम्रपान और शराब का सेवन करना बंद कर दें।
· रात को एक अच्छी और पर्याप्त नींद लें।
· रोजाना कसरत करें।
· स्वस्थ भोजन ही खाएं।
· खूब सारा पानी पीएं।
· अपनी सभी दवाएं ठीक से लें।
· अपने वजन का ध्यान रखें।
· ऐसे पदार्थों से दूर रहें जो आपके हॉरमोन के स्तर को बिगड़ सकते हैं।
धूम्रपान और शराब का सेवन करना बंद कर दें।
धूम्रपान और शराब का सेवन आईवीएफ प्रक्रिया शुरू करने से पहले बंद कर देना चाहिए। यह आदतें आपके स्वास्थ्य के लिए बुरी होने के साथ साथ आपके अंडों या स्पर्म पर भी बुरा असर करती हैं। अगर आप बहुत समय से धूम्रपान करते हैं तो यह आदत छोड़ने का सही समय अभी है। आपके डॉक्टर धूम्रपान छोड़ने में आपकी मदद करेंगे।
रात को एक अच्छी और पर्याप्त नींद लें।
नींद की कमी आपके शरीर में बहुत तरह के असंतुलन पैदा कर सकती है जैसे शरीर के सोने जागने की प्रकिया, हार्मोन्स का संतुलन, आपका मन, और आपके शरीर के नॉर्मल काम करने की क्षमता। रोज रात को अच्छी नींद लेना हार्मोन्स का स्तर ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक है।
रोजाना कसरत करें।
आपको कुछ हल्की फुल्की कसरत जैसे टहलना, रोज करना चाहिए अगर आपके डॉक्टर आपको अनुमति देते हैं तो। आप ऐसी कसरत से शुरू कर सकते हैं जो आपको सक्रिय और प्रेरित रखें। कसरत करना आपके मूड को अच्छा रखता है और मानसिक तनाव को कम करता है। ताज़ी हवा सेहत के लिए अच्छी होती है और थोड़ा टहलना भी आपके मूड को अच्छा कर सकता हैं। लेकिन याद रखें कि अपने डॉक्टर से पूछे बिना कोई नई कसरत न शुरू करें।
स्वस्थ भोजन ही खाएं।
अपने डॉक्टर द्वारा बताया गया अच्छा भोजन ही खाएं। कुछ खाद्य पदार्थ आपका स्वस्थ बनाते हैं और आपको सभी जरूरतमंद पोषण देते हैं। आपके शरीर को कभी भी आवश्यक पोषक तत्वों जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट्स, विटामिंस, मिनरल्स और फाइबर की कमी नहीं होनी चाहिए। नियमित रूप से स्वस्थ खाद्य पदार्थ खाना यह निश्चित करेगा की आपको कभी भी किसी पोषक तत्व की कमी न हो। बाहर के पैकेज्ड खाने को कम ही खाएं क्युकी ऐसे खाद्य पदार्थों में ट्रांस – फैट्स की मात्रा ज्यादा होती है। एक नियमित आहार लेना, एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए बहुत आवश्यक है।
खूब सारा पानी पीएं।
आप जानते हो होंगे की हमारे शरीर का लगभग 60 प्रतिशत भाग पानी से बना हुआ है। नियमित रूप से पानी पीना हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है ताकि शरीर में पानी की कमी न हो। आपको कोशिश करनी चाहिए की आप केफीन (caffeine) से भरी हुई चीज से दूर रहें और ज्यादा स्वस्थ चीजों को चुने।
अपनी सभी दवाएं ठीक से लें।
आपके डॉक्टर आपको कुछ सप्लीमेंट्स दे सकते हैं अगर उनको लगता है कि आपको उनसे फायदा होगा। और यह बहुत जरूरी है कि आप उन्हें सही तरह से लेते रहें। दवाएं जैसे जिंक, फोलिक एसिड, कैल्शियम, और मैग्नीशियम आपको दी जा सकती हैं। इस बात का ध्यान रखें की यह बहुत जरूरी है कि आप यह दवाएं बिलकुल वैसे ही लें जैसे आपके डॉक्टर ने बताया है। सप्लीमेंट ओवरडोज (supplement overdose) एक ऐसी स्तिथि है जिसमे इन दवाओं की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है और यह बहुत हानिकारक हो सकती है। अपने डॉक्टर के मुताबिक दवाओं को लेना आपको इस स्तिथि से सुरक्षित रखेगा।
अपने वजन का ध्यान रखें।
सही वजन में रहना बहुत जरूरी हैं। अपने डॉक्टर से बात करिए कि आपके लिए सही वजन कितना है और उसी स्तर में रहने की कोशिश करें। आपके डॉक्टर आपको वजन बढ़ाने या घटाने में मदद कर सकते हैं।
ऐसे पदार्थों से दूर रहें जो आपके हॉरमोन के स्तर को बिगाड़ सकते हैं।
कुछ पदार्थ जैसे बीपीए (BPAs) और थेलेट्स (phthalates) शरीर में हार्मोन्स के स्तर को अंसांतुलित करते हैं। जरूरी है की आप इन पदार्थों के बारे में जाने और इनसे दूर रहें।
आईवीएफ जंक्शन में नेटवर्क पार्टनर हैं जो आहार प्रबंधन प्रदान करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि आपको पता है कि आपके स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए वास्तव में क्या खाना चाहिए। आईवीएफ जंक्शन के आहार प्रबंधन भागीदार सुनिश्चित करते हैं कि आपके आहार संबंधी लक्ष्य आपकी आईवीएफ यात्रा के अनुरूप हों।
आईवीएफ के लिए आर्थिक तैयारी
· आईवीएफ एक महंगी प्रक्रिया है और अकसर इस प्रक्रिया के आर्थिक पहलू के बारे में कोई बात नही करता। अगर आप पहले से इस आर्थिक पहलू के बारे में सोचे तो जब तक आपका बच्चा इस दुनिया में आएगा तब तक आपकी आर्थिक स्तिथि ठीक होगी।
· आईवीएफ का खर्चा भारत और बाहर के देशों में कुछ चीजों पर निर्भर करता है।
· आईवीएफ एक बहुत ही विशेषज्ञ प्रक्रिया है और इसमें बहुत सारे विशेषज्ञों की जरूरत होती है, जैसे – सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ विशेषज्ञ, प्रजनन एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, नर्स, भ्रूणविज्ञानी और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक टीम। यह सारे बहुत साल बिता देते हैं इन सब में महारत पाने में ताकि वो आईवीएफ कर सकें।
· एंड्रोलॉजी लैब को चलाने में बहुत सारे पैसे लगते हैं और इसलिए इनके द्वारा दी जाने वाली प्रक्रियां भी महंगी होती है।
· आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान कई सारे टेस्ट्स, जैसे – खून की जांच, सोनोग्राफी, स्पर्म का परीक्षण, हिस्टेरोस्कोपी, आदि किए जाते हैं ताकि बच्चा होने की संभावना बढ़ जाए।
· आईवीएफ प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के खर्चे के बारे में भी सोचना होगा। इस भाग में खर्चा कम करना सही नहीं होगा।
· जब आप आईवीएफ प्रक्रिया के आर्थिक स्तिथि के बारे में सोचे, तो ��ह सवाल खुद से जरूर करें कि क्या पैसे कम करने से मेरे स्वास्थ्य को कोई नुकसान तो नही पहुंचेगा? खर्चा कम करने के चक्कर में आपको कभी भी अपने स्वास्थ्य के साथ समझौता नहीं करना चाहिए और हमेशा अच्छे और समर्थ विशेषज्ञों को ही चुनना चाहिए। कोई भी कीमत आपके स्वास्थ्य से ज्यादा नहीं है।
· आईवीएफ जंक्शन ने एक लागत कैलकुलेटर प्रदान किया है जो आपको शामिल वित्त का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है।
· हांलांकि पैसे के बारे में सोचना जरूरी है, कुछ रास्ते हैं जिससे आप इसका हिसाब लगा सकते हैं। आप कुछ विकल्पों के बारे में सोच सकते हैं जैसे ईएमआई (EMI) और लोन। आईवीएफ जंक्शन फर्टिलिटी प्रोग्राम और अनुभवी काउंसलर की मदद से आपकी सामर्थ्य के अनुसार ईएमआई योजना का लाभ उठाने में आपकी मदद कर सकता है।
आईवीएफ के लिए मानसिक तैयारी
जब आईवीएफ प्रक्रिया की बात आती है तो सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले दो सवाल हैं कि मैं खुद को आईवीएफ के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से कैसे तैयार करूं? ज्यादातर लोगों ने आईवीएफ चुनने से पहले सभी घरेलू नुस्खे अपना लिए होते हैं। इसके साथ साथ यह प्रक्रिया बहुत लंबी और कठिन होती है, इसलिए यह आवश्यक है कि आप अपने मानसिकता का भी ध्यान रखें।
· इसके लिए आपको खुद से कुछ सवाल करने चाहिए, जैसे –
· क्या मैं मानसिक रूप में आईवीएफ के लिए तैयार हूं?
· क्या हम इस प्रक्रिया को पर्याप्त वक्त देने के लिए तैयार हैं?
· अगर आईवीएफ के दौरान हम अंडे या स्पर्म डोनर की जरूरत पड़ती है तो क्या उस स्तिथि से सहमत हैं?
· आईवीएफ प्रक्रिया के कई चरणों, जैसे पेग्नेंसी टेस्ट करते समय, के दौरान घबराहट हो सकती हैं क्या हम उसके लिए तैयार हैं?
· हमें सरोगेट की जरूरत भी पढ़ सकती है। क्या हम इस बात से सहमत हैं?
· आईवीएफ में कई बार एक से ज्यादा प्रेगनेंसी भी हो सकती है। क्या हम ऐसी स्तिथि के लिए तैयार हैं?
· क्या मेरे पास अपने तनाव को कम करने के लिए कुछ उपाय हैं?
· आईवीएफ प्रक्रिया में अकसर बहुत समय लग सकता है। क्या हम इतने लंबे समय तक उपचार लेने के लिए तैयार हैं?
इन सब सवालों के जवाब देते वक्त यह बहुत जरूरी है की आप अपने आप से बिलकुल सच बोलें। साथ साथ यह भी ध्यान रहें की इस प्रक्रिया के दौरान आपके डॉक्टर हमेशा आपके साथ हैं। आईवीएफ की सफलता उन पर भी निर्भर करती है और वो हर चरण में आपके साथ होंगें। आईवीएफ डॉक्टरों ने हजारों दंपत्ति को अपना बच्चा पाने में मदद की है और वो समझते हैं की आईवीएफ मानसिक स्तर को कैसे प्रभावित करता है। इसलिए आपकी मदद के लिए कई सारी मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। इसके साथ साथ आप ऐसे समूह में शामिल हो सकते हैं जिसमे और दंपत्ति हो जो आईवीएफ इलाज ले रहे हो। ऐसे दंपत्तियों से आपको बहुत मदद और टिप्पणी मिल सकती है।
आईवीएफ जंक्शन में नेटवर्क पार्टनर हैं जो तनाव प्रबंधन में मदद करते हैं। आईवीएफ जंक्शन का फर्टिलिटी ग्रुप आपको अपने आईवीएफ प्रश्नों को साझा करने के लिए एक जगह प्रदान करता है, जिसका जवाब विशेषज्ञों द्वारा दिया जाता है।
निष्कर्ष
हम आशा करते हैं की इस लेख से आपको अपने इस प्रश्न का उत्तर मिल गया हो की – आईवीएफ के लिए कैसे तैयारी करते हैं? आईवीएफ एक ऐसी प्रक्रिया है जो आपको शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक तरीके से चुनौती देती है। इसलिए बहुत जरूरी होता है की आप अपने डॉक्टर और इस प्रक्रिया पर भरोसा रखें।
आप अपनी और मदद करने के लिए इस विषय में किताबें पढ़ सकते हैं। अपने आप को हर चरण पर याद दिलाएं की इतना लंबा और कठिन प्रक्रिया होने के बावजूद उसने सांकड़ों दंपत्ति को मां बाप बनने में मदद की है और विज्ञान में तरक्की की वजह से यह प्रक्रिया और बेहतर भी हुई है।
इसके अलावा अपने डॉक्टर की सलाह को हमेशा माने। उन्होंने अपने जीवन के कई साल लगाने के बाद इस में महारत हासिल की है। अच्छे से जान बूझ कर ही अपने लिए एक आईवीएफ डॉक्टर को चुने। साथ साथ अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखें।
जब आप विश्वास की यह छलांग लगाते हैं, तो हम भारत में उच्च योग्य आईवीएफ विशेषज्ञों की एक टीम के साथ इस प्रक्रिया में आपकी मदद करने के लिए मौजूद हैं।
Source: https://ivfjunction.com/blog/how-to-prepare-for-ivf-in-hindi/
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प्रेगनेंसी क्या है और शुरुआती लक्षण क्या है, प्रेगनेंसी कैसे रोक सकते हैं
महिलाओं को कई बार अपने प्रेग्नेंट होने का पता नहीं चलता है। महिलाएं अपने आने वाले पीरियड के समय पर नहीं होने के कारण कई बार चिंता में पड़ जाती है। हालांकि महिला द्वारा किसी भी तरह का सेक्स नहीं करने पर भी महिलाओं के पीरियड्स में बदलाव हो सकते हैं। यदि किसी महिला या पुरुष पुरा सेक्स करने के बाद महिला को लगता है कि वह प्रेग्नेंट है या हो सकती है तो उसके कुछ शुरुआती लक्षण महिला को दिख जाते हैं। जिससे महिला पता कर सकती है कि वह प्रेग्नेंट है या नहीं। pregnant hai ki nahin
महिला का समय पर पीरियड्स नहीं होना हारमोंस की कमी के कारण भी हो सकता है परंतु यदि महिला के सेक्स करने के बाद पुरुष का स्पर्म महिला की योनि में रह जाता है तो महिला को प्रेग्नेंट होने का डर रहता है इसके लिए हमने नीचे सभी जानकारियां दी है ताकि महिला को पता चल सके कि प्रेग्नेंट किस समय होता है तथा प्रेगनेंसी होने के क्या क्या लक्षण हो सकते हैं।
घरेलू तरीकों से जानें प्रेग्नेंट हैं या नहीं
प्रेगनेंसी क्या है? (Pregnancy Kya Hota Hai)
प्रेगनेंसी एक प्रक्रिया है जिसमें पुरुष और स्त्री के सेक्स के बाद आदमी के द्वारा महिला की योनि में अपने शुक्राणु डालना है शुक्राणु स्त्री के अंडाणु को प्रभावित। यह प्रभावित करने की प्रक्रिया के बाद स्त्री के गर्भ में शुक्राणु जगह बना लेता है और एक निश्चित समय के बाद बच्चे का जन्म होना शुरू हो जाता है आमतौर पर इसे 40 हफ्तों की प्रक्रिया मर जाता है।
प्रेगनेंसी को आमतौर पर तीन भागों में बांटा गया है पहला 12 सप्ताह से दूसरा तेरा सप्ताह से 28 सप्ताह तीसरा 28 सप्ताह से अधिक समय यह समय महिला को बहुत सावधानी से रहना होता है।
प्रेगनेंसी कब होती है? (Pregnancy Kab Hoti Hai in Hindi)
अगर महिला प्रेगनेंसी का प्रयास करते हैं तो उन्हें पता होना चाहिए कि प्रेगनेंसी कब होती है कहीं बाहर महिलाओं पुरुष को पता नहीं होने के कारण सेक्स के दौरान पता ही नहीं चलता कि कब महिला प्रेग्नेंट हुई या नहीं। यदि ��हिला को प्रेगनेंसी से बचना है तो उसे पता होना चाहिए कि प्रेगनेंसी कब होती है चलिए जानते हैं।
महिला के पीरियड्स चार-पांच दिन तक ही रहता है अगले छे दिन बाद बिल्डिंग होना बंद हो जाती है। परंतु ब्लीडिंग बंद होने का कारण यह नहीं है कि महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती हैं। महिला के पीरियड्स खत्म होने के बाद 11 दिन तक संभोग यानी कि सेक्स नहीं करना होगा 11 दिन के दौरान महिला का प्रेग्नेंट होना हो सकता है।
नेक्स्ट महीने के पीरियड आने से पहले 14 दिन पहले ओवुलेशन की प्रक्रिया होती है ओवुलेशन के दिन और पीरियड्स के 5 दिन का समय जो होता है वह महिला के प्रजनन क्षमता को तेज कर देता है जो प्रेग्नेंट होने का खतरा हो सकता है तो इन दिनों में सेक्स करने से बच सकता है।
भ्रूण का विकास कैसे होता है।
महिला की प्रेग्नेंट होने पर उसकी भ्रूण में विकास होना शुरू हो जाता है। महिला के भ्रूण में 10 सप्ताह की प्रेगनेंसी के समय यह होता है इसके बाद में गर्भपात का खतरा खत्म हो जाता है इस दौरान भ्रूण की लंबाई 30 मी मी होती है।
इसके लिए अल्ट्रासाउंड से दिल की धड़कन एवं अन्य गतिविधियों को महसूस कर सकते हैं भ्रूण चरण के दौरान संरचना का जल्द ही बदलाव होता है शरीर प्रणाली में विकास होता है। भ्रूण का विकास दोनों वजह में और वजन और लंबाई में गति हो सकते हैं। महिला पर पहले और पांचवें और 36 सप्ताह के बीच दिमाग पर n11 दिमाग की गतिविधियों पर असर पड़ता है।
प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण क्या है? (Pregnancy ke suruati lakshan kya hote hai)
किसी भी महिला के प्रेग्नेंट होने के बाद उसकी प्रेग्नेंट होने का निश्चित परिणाम कुछ उसके यार में बदलाव से पता चल जाता है। महीना के प्रेग्नेंट होने पर उसमें आमतौर से कुछ लक्षण दिखाई देना संभव है। यह लक्षण महिला के प्रेगनेंसी का पता लगाते हैं। चलिये जानते है की प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण क्या क्या हो सकते है।
व्यवहार में बदलाव
प्रेगनेंसी के लक्षण में यह होना आम बात है यदि कोई महिला प्रेग्नेंट है तो उसके व्यवहार में बदलाव जरूर आते हैं। प्रेग्नेंसी के समय खून में एस्ट्रोजन और progesterone की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण शरीर के हारमोंस तेजी से बढ़ने लगते हैं। हारमोंस के तेजी से बढ़ने के कारण महिला के व्यवहार पर भी असर पड़ता है।
प्रेग्नेंसी के समय महिला अच्छे और बुरे दोनों तरह की भावना को महसूस करता है। वह सामान्य तौर पर उदास परेशान दिखाई देती है। प्रेग्नेंट महिला को यदि इस तरह की परेशानी हो या कुछ बुरा भला करने का मन करे तो इसके लिए वह अपने डॉक्टर से बात कर ले ताकि आप कोई गलत कदम ना उठा सके।
थकान महसूस होना
प्रेग्नेंसी के लक्षण में महिला को थकान महसूस होने का आभास होता है। इसके होने का कारण बच्चे को सहारा देने के लिए खुद को पूर्ण रूप से तैयार करने से होता है। इस समय आपको थकान महसूस हो सकती है। प्रेगनेंसी के इस लक्षण में महिला को खासतौर से अधिक बैठना और सोना पसंद आता है। वह बार-बार लेटना और बैठना पसंद करती है।
महिला के शरीर में प्रेगनेंसी के हारमोंस उसके लिए जिम्मे��ार होता है यह हार्मोन आपको बार-बार थकान परेशान और भावुक कर सकता है। थकान का होना एक निश्चय लक्षण नहीं हो सकता है या आमतौर पर भी आ सकता है। प्रेगनेंसी में यह लक्षण आम है परंतु पहली और तीसरी तिमाही में सबसे ज्यादा थकान होने से आप बहुत प्रभावित होंगी।
स्तन का सूजन
Pregnancy के समय महिला के स्तन में बदलाव हो सकते हैं यानी कि महिला के स्तन बड़े सूजे हुए और बड़े लग सकते हैं। स्तन की त्वचा पर मेरी नशा देखी जा सकती है यह परेशानी खासतौर से पहले तिमाही में ही सबसे आम है जैसे-जैसे प्रेगनेंसी का समय बढ़ता जाता है यह होना बंद हो जाता है।
इसकी होने का कारण प्रेगनेंसी के दौरान हार्मोन स्तनों में रक्त आपूर्ति तेजी से बढ़ा देता है। इस दौरान आपके निप्पल के आसपास सनसनाहट सी महसूस होने लगती है। स्तन में सूजन होना प्रेगनेंसी का पहले लक्���ण में से एक हो सकता है यह आपको पहले दिखाई दे जाएगा। कभी-कभी आपको स्तनों में बदलाव 1 सप्ताह के अंदर ही बिक जाता है जिससे आपको प्रेगनेंसी का पता चल जाता है। जैसे-जैसे शरीर में हारमोंस बढ़ता जाता है आपको इसका आभास होना कम हो जाता है। आपको प्रेगनेंसी में पहुंचा पर कुछ बदलाव भी देखने को मिल सकती है।
उल्टी आना और जी मचलना
प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षणों में महिला का जी मचल सकता है यह प्रेगनेंसी का एक आम लक्षण है। यह ज्यादातर प्रेगनेंसी महिला को 6 सप्ताह के अंदर शुरू हो जाता है कभी-कभी 4 सप्ताह से पहले ही शुरू हो सकता है। जी मचलने के साथ-साथ महिला को प्रेगनेंसी के दौरान उल्टी भी हो सकते हैं जिससे पता चलता है कि आप प्रेग्नेंट है। यह आपको सुबह दिन-रात किसी भी वक्त आ सकती है जब आपका जी मचलना शुरू होगा तो आपको उल्टी हो सकती है।
महावारी नहीं आना
प्रेगनेंसी के शुरुआती समय में महावारी नहीं आती है जिससे पता चलता है कि महिला प्रेग्नेंट है। यदि महिला को लगता है वह प्रेग्नेंट है और महावारी का समय निश्चित नहीं हो पा रहा तो महिला प्रेगनेंसी टेस्ट कर सकती है। महावारी का समय चूकना प्रेगनेंसी का संकेत है।
जब महिला को महावरी का समय फिक्स नहीं होता या आने वाली माहवारी का समय पता नहीं होता तो आपको महावारी देर से आने का एहसास नहीं होगा। इस समय महिला को बेचैनी स्तन में बदलाव बार-बार पेशाब आना होने के लक्षण दिखाई देंगे जो महिला के प्रेग्नेंट के शुरुआती लक्षण में से आम है।
महावारी के समय खून में हल्के धब्बे भी आ सकते हैं। महिला को पेशाब करते समय हल्के गुलाबी या भूरे रंग के धब्बे देखने को मिल जाता है इसके अलावा कई बार हल्का सा परेशानी महसूस होती है।
विशेषज्ञ के अनुसार प्रेगनेंसी के शुरुआती में खून में धब्बे आते हैं इसका कारण गर्भाशय में डिंब को प्रभावित होना या महावारी को नियंत्रण करने वाले हार्मोन में हलचल होने के कारण हो सकती है। ऐसा होना अपरा की वजह से हो सकता है। यदि इस परेशानी का सामना महिला करती है तो उसे रक्तस्राव के बाद अपने डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए।
शरीर में उच्च बेसन तापमान का बढ़ना
प्रेगनेंसी के दौरान महिला को अपने शरीर में तापमान में परिवर्तन दिखाई देंगे तो महिला को समझ आ जाएगा कि वह प्रेग्नेंट है। प्रेगनेंसी के 18 दिन तक लगातार शरीर में बेसिल का तापमान बढ़ता रहेगा। यह तापमान प्रेगनेंसी के दौरान पूरे समय तक बड़ा हुए ही रहेगा।
बार-बार पेशाब आना
प्रेगनेंसी क�� सूरत लक्षणों में आपको बार-बार पेशाब आने का लक्षण दिखाई देगा यह सामान्य तौर से अधिक बार होगा। यह इस कारण होता है क्योंकि शरीर में बहुत से हार्मोन के मिश्रण आपके शरीर में खून को अधिक मात्रा में बढ़ा देते हैं और गुर्दे के ज्यादा मेहनत करने के कारण होता है।
यदि महिला को पेशाब करते हुए जलन या दर्द होता है तो लिंग संक्रमण यानी कि यूटीआई हो सकता है इसके लिए महिला को तुरंत अपने डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
खाने का मन नहीं करना
प्रेगनेंसी के शुरुआती दिनों में महिला को किसी तरह की चीज खाना अच्छा नहीं लगता जिससे उन्हें किसी भी चीज इस्माइल पसंद नहीं आती। महिला खाने को देखकर या उसकी स्माइल सूंघने से बदबू आने लगती है जिससे उसे उल्टी या जी मचल। कहीं बाहर महिला को सूरत इलेक्शन के दौरान खट्टा खाने का मन ज्यादा करता है।
प्रेगनेंसी कैसे रोक सकते हैं। (Pregnancy Ko Kaise Rok Sakte Hain)
महिला अपनी pregnancy को रोक सकती है यदि सेक्स के दौरान कुछ चीजों का ध्यान रख जाए तो महिला प्रेग्नेंट बता सकती है। साथ साथ कुछ उपाय भी बताए गए हैं जिनका ध्यान रखना होगा ताकि महिला प्रेग्नेंट ना हो।
कंडोम का इस्तेमाल
प्रेगनेंसी रोकने के लिए सबसे अच्छा तरीका है व्यक्ति कंडोम का इस्तेमाल करें। कंडोम का इस्तेमाल सबसे सुरक्षित तरीका है सफल और सुविधाजनक भी है इससे व्यक्ति सेक्स का आनंद भी ले सकता है और प्रेग्नेंसी से भी बच सकता है। यदि व्यक्ति के सेक्स करने की इच्छा हो और महिला मां नहीं बनना चाहती तो उसे कंडोम का इस्तेमाल करते होना चाहिए।
वीर्य पात रोक कर
यदि महिलाओं को सेक्स के दौरान प्रेग्नेंट होने से बचना है तो पुरुष को sperm को महिला की योनि में जाने से रोकना होगा। जिसके लिए पुरुष को सेक्स के दौरान जैसे ही वीर्य के आने का एहसास होता है तो उसे अपने लिंग को योनि से बाहर निकाल लेना चाहिए ताकि योनि में वीर्य ना जा सके और महिला प्रेग्नेंट होने से बच सकें। हालांकि कभी-कभी यह करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि पुरुष इतना जोश में होता है कि वीर्य अंदर ही निकाल देता है जिसे प्रेग्नेंट होने का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भनिरोधक उपाय से
गर्भनिरोधक यानी की प्रेग्नेंसी रोकने के लिए डॉक्टर एक माचिस के तीली की तरह छोटी सी रोड आपकी हाथ में डालता है जिससे आप 4 साल तक प्रेग्नेंट होने से बच सकते हैं। यह रोड शरीर में ऐसा आदमी पैदा करती है जिससे महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती यदि महिला का इन 4 साल में प्रेग्नेंट या बच्चा पैदा करने की इच्छा होती है तो डॉक्टर की मदद से इस रोड को हाथ से निकलवा सकती है।
गर्भनिरोधक गोलियां
महिला अपने प्रेगनेंसी को रोकने के लिए कुछ गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कर सकती है ताकि प्रेग्नेंट हो सके हालांकि यह दवाइयां हानिकारक हो सकती है परंतु यह एक असरदार उपाय है। महिला को गर्भ निरोधक गोली लेने से पहले एक बार रोग विशेषज्ञ को को दिखा देना चाहिए या उनके सलाह ले लेनी चाहिए।
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weight lost tips after pregnancy experts told these 7 ways - प्रेगनेंसी के बाद कैसे करें Weight Loss, एक्सपर्ट्स ने बताए ये 7 तरीके
weight lost tips after pregnancy experts told these 7 ways – प्रेगनेंसी के बाद कैसे करें Weight Loss, एक्सपर��ट्स ने बताए ये 7 तरीके
प्रेगनेंसी के बाद आमतौर पर महिलाओं का वजन बढ़ जाता है। डॉ. अनीता गुप्ता के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का औसत वजन 9 से 12 किलोग्राम बढ़ जाता है। प्रसव के बाद लगभग तुरंत बाद 3-5 किलोग्राम वजन खोने की संभावना रहती है। इसके बाद भी वजन संतुलित नहीं हो पाता है। ऐसे में एक महिला को अच्छी लाइफस्टाइल का सहारा लेना चाहिए, जिससे कि बढ़ा हुआ वजन कम हो सके। आइए जानते हैं प्रेगनेंसी के बाद वजन कम करने…
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हरे सेब के फायदे और नुकसान – Green Apple Benefits and Side Effects in Hindi
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हरे सेब के फायदे और नुकसान – Green Apple Benefits and Side Effects in Hindi
आहार में सेब को शामिल करने के फायदे आपने जरूर सुने होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाल सेब की तरह ही हरे सेब भी सेहत के लिए लाभकारी होते हैं। माना जाता है कि हरे सेब का सेवन आंतरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ त्वचा पर भी सकारात्मक प्रभाव दिखा सकता है। आप सोच रहे होंगे कि इन लाभ के लिए हरे सेब काम कैसे करते हैं? इस सवाल का जवाब आपको स्टाइलक्रेज के इस लेख में मिलेगा। इस लेख को पढ़कर आपको हरे सेब के फायदे और इसके उपयोग संबंधी जानकारी मिलेगी। साथ ही लेख के अंत में हरे सेब के नुकसान भी बताए गए हैं। लेख में आगे बढ़ने से पहले, पाठक इस बात पर जरूर ध्यान दें कि हरा सेब लेख में बताई गई किसी भी समस्या का इलाज नहीं है, लेकिन यह इनके प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में एक सहायक भूमिका जरूर निभा सकता है।
लेख में आगे बढ़ने से पहले आइये जानते हैं कि शरीर के लिए हरे सेब के फायदे क्या हैं।
विषय सूची
हरे सेब के फायदे – Benefits of Green Apple in Hindi
सेब के विभिन्न प्रकार माने गए हैं। बेशक, ये रंग और रूप में अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन हमें स्वस्थ रखने में ये सभी लगभग समान रूप से काम करते हैं। हालांकि, इनमें मौजूद पोषक तत्व लगभग एक जैसे ही होते हैं, लेकिन उनकी मात्रा में थोड़ा फर्क हो सकता है। सेब का ऐसा ही एक प्रकार है “ग्रैनी स्मिथ एप्पल (Granny Smith apples)”, जिसे आम भाषा में हरा सेब कहा जाता है। आइए, विस्तार से जानते हैं सेहत के लिए हरे सेब के फायदे।
1. लिवर के लिए हरे सेब के फायदे
सेब में कई प्रकार के फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं और इन्हीं में से एक है क्वेरसेटिन (Quercetin)। यह एक प्रभावी एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो लिवर को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाने और स्वस्थ रखने में लाभदायक हो सकता है। इसके साथ ही, सेब के छिलकों में पाए जाने वाले खास एंटीऑक्सीडेंट गुण लिवर को कैंसर के खतरे से बचाने में भी लाभदायक हो सकते हैं (1)। लिवर के लिए हरे सेब के फायदे उठाने के लिए रोज सुबह एक सेब खाय�� जा सकता है (2)।
2. फेफड़ों के लिए हरे सेब के फायदे
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन (NCBI) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध में पाया गया है कि फल और सब्जियों का सेवन महिलाओं में लंग्स कैंसर के खतरे को 21 प्रतिशत तक कम कर सकता है। लंग्स कैंसर के इस खतरे को कम करने में हरे सेब में मौजूद फ्लावोनोइड प्रभावी पाया गया है। वहीं, शोध में शामिल 10,000 पुरुषों और महिलाओं पर किए गए परीक्षण में फ्लेवोनॉयड के सेवन और फेफड़ों के कैंसर के मध्य विपरीत संबंध देखा गया है। फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए प्रतिदिन एक ग्रीन एप्पल का सेवन किया जा सकता है (1)। ध्यान रहे कि कैंसर जैसी स्थितियों में घरेलू उपाय की जगह डॉक्टरी इलाज करवाएं।
3. हड्डियों के लिए हरे सेब के फायदे
हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए कई तरह के पोषक तत्वों की आवश्यकता होता है, जैसे कैल्शियम, प्रोटीन, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम। इनके साथ ही कुछ अन्य खनिज जैसे कॉपर, आयरन, जिंक, विटामिन-ए और विटामिन-के भी हड्डियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। ये पोषक तत्व बोन मास बढ़ाने के साथ-साथ हड्डियों को मजबूत रखने में सहायक माने जाते हैं (3) यहां हरे सेब के लाभ देखे जा सकते हैं, क्योंकि यह उपरोक्त बताए गए सभी पोषक तत्वों से समृद्ध होता है (4)। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हरे सेब के उपयोग से हड्डियों को स्वस्थ रखने में मदद मिल सकती है।
4. वजन कम करने में सहायक
सेब का सेवन वजन कम करने के उपाय के रूप में किया जा सकता है। सेब की इस कार्यप्रणाली के पीछे इसमें मौजूद पॉलीफेनोल्स काम करते हैं। ये पॉलीफेनोल्स एंटी-ओबेसिटी गुण को प्रदर्शित करते हैं और शरीर से फ्री रेडिकल्स और फैट टिश्यू को कम करके वजन को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। फिलहाल, वजन नियंत्रण में हरे सेब के बेहतर प्रभाव जानने के लिए अभी और शोध की आवश्यकता है (5)।
5. त्वचा के लिए हरे सेब के फायदे
कच्चे हरे सेब के उपयोग की बात करें तो इसके फल का सिर्फ गूदा ही नहीं, बल्कि छिलका भी त्वचा के लिए फायदेमंद हो सकता है। दरअसल, इसमें मौजूद टैनिन एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट तो होता ही है, साथ ही यह त्वचा के लिए ��क प्रभावी एसट्रिनजेंट की तरह भी काम करता है। एसट्रिनजेंट, त्वचा के रोमछिद्रों को छोटा करने में मदद करते हैं। इसके साथ ही, हरे सेब के छिलके का उपयोग त्वचा से सीबम के स्राव को नियंत्रित करने में मददगार हो सकता है (6)। त्वचा को स्वस्थ रखने के उपाय के रूप में हरे सेब का उपयोग नीचे बताए गए तरीकों से किया जा सकता है –
सामग्री :
दो से तीन हरे सेब के छिलके
छाछ (आवश्यकतानुसार)
विधि :
सेब के छिलकों को धूप में सूखा लें।
जब वे अच्छी तरह सूख जाएं तो उन्हें पीस कर पाउडर बना लें।
अब एक बाउल में इस पाउडर को लें और उसमें जरूरत अनुसार छाछ मिलाकर पेस्ट बना लें।
इस पेस्ट को ब्रश या उंगलियों की मदद से चेहरे पर लगाएं।
लगभग 15 से 20 मिनट के बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें।
इसके अलावा, त्वचा के लिए हरे सेब के गुदे का भी उपयोग किया जा सकता है।
सामग्री :
आधा हरा सेब (कटा हुआ)
आधा चम्मच शहद
एक चम्मच दही
विधि :
हरे सेब को ब्लेंडर में डाल कर पेस्ट बना लें।
अब इस पेस्ट को एक बाउल में निकाल लें और बची हुई दोनों सामग्री डालकर अच्छी तरह मिला लें।
इसके बाद, इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं और लगभग 20 मिनट के लिए छोड़ दें।
20 मिनट के बाद चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें।
अंत में तौलिये से थपथपा पर चेहरा पोंछें और मॉइस्चराइजर लगाएं।
लेख के अगले भाग में जानिए हरे सेब में मौजूद पोषक तत्वों के बारे में।
हरे सेब के पौष्टिक तत्व – Green Apple Nutritional Value in Hindi
नीचे दिए गए टेबल की मदद से जानिए हरे सेब में मौजूद पोषक तत्वों के बारे में (4)।
पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 ग्राम पानी 85.46 ग्राम ऊर्जा 58 kcal प्रोटीन 0.44 ग्राम फैट 0.19 ग्राम कार्बोहाइड्रेट 13.61 ग्राम फाइबर 2.8 ग्राम शुगर 9.59 ग्राम मिनरल कैल्शियम 5 मिलीग्राम आयरन 0.15 मिलीग्राम मैग्नीशियम 5 मिलीग्राम फास्फोरस 12 मिलीग्राम पोटेशियम 120 मिलीग्राम सोडियम 1 मिलीग्राम जिंक 0.04 मिलीग्राम कॉपर 0.031 मिलीग्राम सिलेनियम 0.1 माइक्रोग्राम मैंगनीज 0.044 मिलीग्राम विटामिन थियामिन 0.019 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन 0.025 मिलीग्राम नियासिन 0.126 मिलीग्राम पैंटोथैनिक एसिड 0.056 मिलीग्राम विटामिन-बी 6 0.037 मिलीग्राम फोलेट, टोटल 3 माइक्रोग्राम कोलीन 3.4 मिलीग्राम विटामिन-ए RAE 5 माइक्रोग्राम विटामिन-ए, आईयू 100 आईयू विटामिन-ई 0.18 मिलीग्राम विटामिन-के 3.2 माइक्रोग्राम
लेख के अगले भाग में जानिए हरे सेब के उपयोग के बारे में।
हरे सेब का उपयोग – How to Use Green Apple in Hindi
कैसे करें उपयोग :
रोज सुबह एक साबुत हरे सेब का सेवन किया जा सकता है।
सेब का जूस निकालकर भी पी सकते हैं।
ओटमील और ड्राई फ्रूट्स के साथ हरे सेब के छोटे छोटे टुकड़े मिलाकर ��ाए सकते हैं।
दूध में पपीता, संतरा और हरा सेब डालकर स्मूदी बनाई जा सकती है।
एक बाउल में ग्रेपफ्रूट, हरा सेब और ड्राई फ्रूट्स (अखरोट और बादाम) मिलाकर खा सकते हैं।
कब और कितना करें उपयोग :
सुबह नाश्ते में एक हरे सेब का सेवन किया जा सकता है (7)।
इस लेख के आखिरी भाग में जानिए कि क्या हरे सेब के नुकसान भी हो सकते हैं?
हरे सेब के नुकसान – Side Effects of Green Apple in Hindi
कुछ मामलों में हरे सेब के उपयोग से निम्नलिखित दुष्प्रभाव सामने आ सकते हैं (8) (9) –
ओरल एलर्जी सिंड्रोम (होठों, जुबान और गले में सूजन व खुजली)
हे फीवर (एक तरह की एलर्जी, जिसमें आंखों और नाक में खुजली होती है और पानी आता है)
इसके साथ ही, गर्भावस्था में सेवन करने से हरे सेब के नुकसान हो सकते या नहीं, इस पर ज्यादा शोध उपलब्ध नहीं है। इसलिए, इस दौरान हरे सेब के उपयोग से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य कर लें।
इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद आप हरे सेब के फायदे से अच्छी तरह परिचित हो गए होंगे। फायदों के साथ, अब आपको हरे सेब के उपयोग से जुड़ी जानकारी भी मिल चुकी होगी और आप समझ गए होंगे कि इसका इस्तेमाल कितनी मात्रा में किया जा सकता है। अनियंत्रित रूप से उपयोग करने के कारण हरे सेब के नुकसान भी हो सकते हैं, जिसके बारे में भी हमने इस लेख में बताया है। तो अब देर किस बात की, आज ही से अपने आहार में इसे शामिल करें और इसके लाभ उठाएं।
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सौम्या व्यास ने माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, भोपाल से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बीएससी किया है और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ जर्नलिज्म एंड न्यू मीडिया, बेंगलुरु से टेलीविजन मीडिया में पीजी किया है। सौम्या एक प्रशिक्षित डांसर हैं। साथ ही इन्हें कविताएं लिखने का भी शौक है। इनके सबसे पसंदीदा कवि फैज़ अहमद फैज़, गुलज़ार और रूमी हैं। साथ ही ये हैरी पॉटर की भी बड़ी प्रशंसक हैं। अपने खाली समय में सौम्या पढ़ना और फिल्मे देखना पसंद करती हैं।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/hare-seb-ke-fayde-aur-nuksan-in-hindi/
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सिर्फ जंक फूड छोड़कर फातिमा ने किए 28 किलो कम
जिन लोगों का वजन बहुत अधिक होता है उन्हें पता होता है कि वजन बढ़ने में ज्यादा समय नहीं लगता, लेकिन उसे घटाने में सबसे अधिक मेहनत और लगन की जरूरत होती है। प्रेग्नेंसी के बाद वजन को कम कर पाना बेहद मुश्किल हो जाता है, क्योंकि गर्भावस्था के बाद लाइफ बहुत व्यस्त हो जाती है और साथ में वर्कआउट करना आसान नहीं होता। कुछ ऐसा ही फातिमा के साथ था, प्रेगनेंसी के बाद फातिमा का वजन बहुत बढ़ गया था। अधिक वजन की वजह से उन्हें थायराइड की भी समस्या शुरू हो गयी थी।
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मेरा नाश्ता – मुझे म्यूसली दूध में डालकर खाना बेहद अच्छा लगता था और इसमें मैं कई फलों को भी शामिल करती थी। कुछ दिनों तक, मैं पोहा, उपमा और वर्मिसिली (vermicelli) बनाकर खाती रही, जो की बेहद स्वस्थ होते हैं और जिन्हें पचाना आसान होता है।
मेरा दोपहर का खाना – मेरे लिए हैल्थी लंच बेहद जरूरी है। मैं दोपहर में ब्राउन राइस और मल्टीग्रेन आटे से बनी चीजें खाने लगी थी। मैं रोजाना एक कटोरी दाल खाती थी और अपनी सब्जियां नारियल तेल में बनाती थी। पाचन क्रिया को सही रखने के लिए, मैं तिल या अलसी के बीज से बना रायता खाती थी। (और पढ़ें - पाचन शक्ति बढ़ाने के उपाय)
मेरा रात का खाना – रात का खाना आमतौर पर हल्का होता था, मैं रात में रोटी कम खाती थी। रात में आमतौर पर मैं उबले अंडे या ग्रिल फिश के साथ सलाद खाती थी।
चीट डेस के समय – जब मैं डाइट पर नहीं होती थी, मैं भरवां पराठा या कोई भी मांसाहारी सब्जी खाया करती थी।
(और पढ़ें - वजन कम करने के लिए क्या खाएं)
क्या आप वर्कआउट करती थीं?
मैं रोजाना योग, कार्डियो और वेट ट्रेनिंग किया करती थी। इससे मेरा वजन तेजी से कम होता था और साथ ही इसकी वजह से मैं स्वस्थ भी रहती थी।
(और पढ़ें - खाने में कितनी कैलोरी होती हैं)
आप इस दौरान कैसे प्रेरित रहीं?
जब भी मेरा आत्म-विश्वास डगमगाता था, मैं शीशे में खुद को देखती थी। अपने में आए बदलाव देखने के बाद खुद से यही बोलती थी कि मैं अपने लक्ष्य के इतना पास आ चुकी हूं। अब मुझे हार नहीं माननी है। इस तरह में खुद को प्रेरित करती थी।
(और पढ़ें - मोटापा कम करने के लिए डाइट चार्ट)
आपने ये कैसे सुनिश्चित किया कि आप कभी अपने लक्ष्य से भटकेंगी नहीं?
पुरानी फोटो को देखकर मुझे आगे बढ़ते रहने में मदद मिलती थी। साथ ही मेरा 15 महीने का एक बच्चा है जो मुझे सारा दिन यहां से वहां भगाता रहता है। इस कारण भी मैं फिट रह पाती हूं।
(और पढ़ें - मोटापा कम करने के उपाय)
अधिक वजन की वजह से आपके लिए कौन सा हिस्सा सबसे मुश्किल भरा था?
अत्यधिक वजन के कारण मैं बहुत आलसी हो गयी थी और मेरे लिए चलना-फिरना भी मुश्किल हो रहा था। थोड़ा सा पैदल चलकर हांफने लगाती थी। इस कारणवश मैं अपने बच्चे के साथ खेल भी नहीं पाती थी। ऐसे में मुझे बेहद बुरा महसूस होता था।
(और पढ़ें - मोटापा कम करने के लिए योग)
आप खुद को कुछ सालों में किस आकार में देखना चाहती हैं?
अब तो मुझे आराम करना जरा भी पसंद नहीं है। मैं अपने बच्चे की खातिर हमेशा स्वस्थ और फिट रहना चाहती हूं।
(और पढ़ें - वजन कम करने के लिए क्या खाना चाहिए)
जीवनशैली में बदलाव लाने के लिए आपने क्या क्या किया?
अपनी दिनचर्या में मैंने नियमित व्यायाम को शामिल किया। साथ ही, मैंने जंक फूड और बाहर का खाना बिल्कुल छोड़ दिया था। मैं केवल घर का बना स्वस्थ खाना ही खाती थी।
(और पढ़ें - वजन कम करने के लिए डांस)
आपके लिए सबसे निराशाजनक बात क्या थी?
थयरॉइड मेरा बहुत ज्यादा बढ़ चूका था, जिसकी वजह से मैं तनाव में रहने लगी थी और मोटापे की वजह से मेरी पर्सनालिटी भी खराब हो रही थी।
(और पढ़ें - मोटापा कम करने के लिए योगासन)
वजन घटाने के बाद आपने क्या सीखा?
वेट लॉस से अब मेरा आत्म-विश्वास पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ा है। अब मैं जीवन में अपने लक्ष्यों के प्रति अधिक समर्पित और केंद्रित हुई हूं।
(और पढ़ें - हिप्स कम करने के टिप्स)
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आशा करते हैं कि आपको फातिमा के बारे में पढ़ कर प्रेरणा मिली होगी। अब आप अपना वजन घटाने का सफर ज़रूर शुरू करें।
अगर आपके पास भी अपनी या अपने किसी मित्र, परिवार के सदस्य या परिचित की कोई ऐसी ही प्रेरणा देने वाली कहानी है, तो हमसे ज़रूर शेयर करें। आप अपनी कहानी हमें [email protected] पर ईमेल कर सकते हैं।
from myUpchar.com के स्वास्थ्य संबंधी लेख via https://www.myupchar.com/weightloss/fatima-quit-junk-and-lost-26-kilos
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प्रेगनेंसी के दौरान कब्ज़ के घरेलू उपचार
प्रेगनेंसी के समय महिला को कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दौरान महिला के शरीर में कई परिवर्तन आते हैं और पाचन तंत्र भी गड़बड़ा जाता है इसलिए बहुत सी महिलाओं को कब्ज़ की शिकायत हो जाती है। कब्ज़ बढ़ने पर बवासीर और गुदा विदर जैसी समस्या भी हो सकती है इसलिए जल्द ही उपचार कर लेना बेहतर होता है।
इस समय में कब्ज़ की समस्य��� होने के बहुत से कारण होते हैं जैसे खाना कम खाने से और पानी कम पीने से ये समस्या उत्पन्न होती है इसके अलावा इस समय में हार्मोन में बदलाव भी होते रहते हैं ये भी एक वजह है और आयरन की दवाइयां जो इस दौरान दी जाती हैं उनसे भी कभी कभी कब्ज़ की शिकायत हो जाती है। प्रेगनेंसी के लास्ट टाइम में गर्भ का वजन बढ़ जाता है जिससे मलाशय में दबाव पड़ता है और कब्ज़ की समस्या उत्पन्न होती है।
प्रेगनेंसी के दौरान कब्ज़ के घरेलू उपचार | pregnancy ke doran kabj ke gharelu upchar
प्रेगनेंसी में कब्ज़ के लिए कई दवाइयां भी आती हैं लेकिन बहुत ज्यादा दवाइयां खाने से बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है इसलिए घरेलू उपचार करना ही ठीक रहता है। अतः आज हम आपको प्रेगनेंसी में कब्ज़ के लिए कुछ घरेलू सटीक नुस्खे बताने जा रहे हैं जिनसे बहुत राहत मिलती है।
अधिक पानी और फ्रूट जूस लें।
प्रेगनेंसी में शरीर में पानी की कमी ना हो इसका खास ध्यान रखना चाहिए इसलिए ज्यादा पानी पिएं। रोजाना 8-10 गिलास पानी अवश्य पिएं। पानी ज्यादा पीने से पाचन तंत्र भी ठीक रहता है और आपको पेट की कई समस्याओं से निजात मिल जाता है।
पानी की कमी को पूरा करने के लिए आप फ्रूट जूस भी रोजाना नियम से लें जिससे आपकी बॉडी को विटामिन्स भी मिलेंगे और पानी की कमी भी पूरी होगी।
विटामिन सी वाले फल
विटामिन सी कब्ज़ की समस्या में बहुत राहत दिलाता है अतः खटाई वाले फल जैसे संतरा, आलूबुखारा, मौसमी आदि खाएं।
नींबू का रस
प्रेगनेंसी में अक्सर जी मचलना और मुंह का स्वाद खराब होने से खाना पीना कई बार अच्छा नहीं लगता है और कम खाने से कब्ज़ हो जाती है इसलिए आप रोजाना एक ग्लास गुनगुने पानी में नींबू का रस डालकर पिएं, जिससे आपके मुंह का स्वाद और जी मचलना भी ठीक होगा और साथ ही कब्ज़ से भी छुटकारा मिलेगा, क्योंकि नींबू से शरीर में जमे अवांछित विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
ईसबगोल की भूसी
प्रेगनेंसी में अगर कब्ज़ हो जाए तो ईसबगोल की भूसी को पानी के साथ लेना चाहिए, इससे बहुत फायदा मिलता है। इसमें फाइबर होता है और उसके साथ म्यूसिलगिनस भी पाया जाता है, जो एक प्रकार का गोंद होता है। यह काफी पुराना और विश्वसनीय उपचार है।
इससे पाचन सुधरता है और कब्ज़ समाप्त हो जाता है। ये ध्यान रहे कि इसबगोल लिक्विड पदार्थों को अवशोषित करता है इसलिए इसे लेने के बाद दिन में 10 गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए। जिन महिलाओं को कोई हृदय रोग या रक्तचाप है, उन्हें ये नहीं लेना चाहिए।
अलसी के बीज लें।
अलसी के बीज फाइबर से भरपूर होते हैं इसमें ओमेगा-3 एस भी पाया जाता है, इसलिए इनका सेवन जरूर करें। अलसी का तेल भी खाया जा सकता है। इसमें उपस्थित फाइबर आपके शरीर से जमी गंदगी का बाहर कर देगा। आप एक चम्मच अलसी के बीजों को एक गिलास पानी में मिलाकर पिएं।
आप अलसी को पीसकर फिर रोटी या पराठे में मिलाकर भी खा सकते हैं इसके अलावा अलसी को भूनकर इसका पाउडर बनाकर सलाद पर डालकर खाएं या भूनकर ऐसे ही खाएं।
हल्का व्यायाम करें।
प्रेगनेंसी के दौरान भी आपको साधारण और हलके व्यायाम करने चाहिए, इससे पेट की कई परेशानियां दूर हो जाएंगी। आप वॉक करें, स्थिर साईकिल को चलाएं और योगा करें, जो बहुत अच्छा है।
व्यायाम करने से मांसपेशियों में खिंचाव आता है, भोजन आसानी से पचता है और कब्ज़ से भी राहत मिलती है। बहुत अधिक थकावट वाले व्यायाम करने से बचें।
ताज़ा गुलकंद खाएं।
ताज़े गुलाब के फूलों से बना गुलकंद भी इस समस्या में बहुत फायदा पहुंचाता है। गुलकंद से आपका मेटाबॉलिजम अच्छा होता है जिससे कब्ज़ की शिकायत नहीं रहती।
अगर आप गुलकंद घर में बनाएं तो यह और अधिक अच्छा रहेगा क्योंकि घर में बने गुलकंद में आप शहद का उपयोग करेंगे जिससे कब्ज़ भी ठीक होगी और आपको शक्ति भी मिलेगी।
सेंधा नमक
खाने में सेंधा नमक का उपयोग करना भी कब्ज़ से राहत दिलाता है। आप फलों में थोड़ा सा सेंध नमक लगाकर भी खा सकते हैं इससे आपके मुंह का स्वाद भी अच्छा होगा।
आप नहाते समय पानी में से सेंधा नमक डालकर नहाएं, इससे भी फायदा मिलेगा। सेंधा नमक में रेचक के गुण पाए जाते हैं इसलिए कब्ज़ में फायदा होता है। इसे पानी में घोलकर पीने से भी लाभ मिलेगा।
कीवी खाएं।
अगर प्रेगनेंट महिला को कब्ज़ हो जाती है तो उसे रोजाना कीवी खाना चाहिए, क्योंकि इसमें बहुत सारा फाइबर होता है।
हर रोज एक कीवी खाने से ये समस्या ख़तम हो जाएगी। 100 ग्राम कीवी में 2-3 ग्राम फाइबर होता है, जिससे कब्ज़ में राहत होती है और ये प्रेगनेंट महिला के लिए सुरक्षित भी होता है।
दही का उपयोग
हर रोज दही का सेवन जरूर करें। दही ��ेट के लिए बहुत अच्छा रहता है और इसमें प्रोबायोटिक भी होता है इसलिए रोज दही जरूर खाएं।
हमारे शरीर में आंतों में बहुत से अच्छे ��ैक्टीरिया होते हैं जो पाचन में मदद करते हैं, इन बैक्टीरिया को बढ़ाने से पाचन अच्छा होता है और कब्ज़ ठीक होता है, इसीलिए प्रोबायोटिक्स को बढ़ाया जाता है जिसके लिए दही बहुत काम का है। एक दिन में 300 ग्राम दही का सेवन करें, आप छाछ भी पी सकते हैं।
तेल से मालिश करें।
कब्ज़ में पेट पर थोड़ा तेल लगाकर हल्की हल्की मालिश करें। मालिश सर्कुलर मोशन में करें, परन्तु जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी में जटिलता या कोई अन्य समस्या है वे मालिश ना करें और जब प्रेगनेंसी का लास्ट टाइम चल रहा हो तब भी मालिश ना करें।
रेचक (लैग्जेटिव)
कब्ज़ होने पर रेचक लिया जाता है, डॉक्टर भी ये लिख कर देते हैं। बहुत पुरानी कब्ज़ में ये लिया जाता है।
इसे लेने से आंतों में मरोड़ महसूस हो सकती है। आप घर में प्राकृतिक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले जुलाब जैसे त्रिफला चूर्ण और अरंडी का तेल भी ले सकते हैं, परन्तु ये सुरक्षित नहीं रहते हैं अतः डॉक्टर की सलाह से लें।
फाइबर युक्त आहार लें।
प्रेगनेंसी में कब्ज़ होने पर फाइबर युक्त आहार लेना बहुत अच्छा होता है। फाइबर आपके शरीर से जमा पदार्थों को नरम बना देता है और उनको बाहर निकालता है।
प्रेगनेंसी में 20 से 30 ग्राम फाइबर लेना अच्छा रहता है। अमरूद, बीन्स, गाजर, मसूर, मटर और फूलगोभी में काफी फाइबर होता है। आप साबुत अनाज की ब्रेड खाएं इसमें भी फाइबर होता है और अधिक फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ भोजन में शामिल करें। केले, स्ट्रॉबेरी, अंजीर, रसभरी आदि भी खाएं।
यदि आप कम फाइबर से युक्त खाना खाती हैं तो एक साथ इन चीज़ों को ना खाएं बल्कि धीरे धीरे इनकी मात्रा रोजाना आहार में बढ़ाएं। कब्ज़ होने पर मैदा और नूडल्स आदि बिल्कुल ना खाएं।
लिक्विड चीजें लें।
अधिक तरल पदार्थों का सेवन करें, जिससे कब्ज़ में काफ़ी राहत मिलेगी। आपको फाइबरयुक्त भोजन के साथ तो लिक्विड चीजें लेना आवश्यक हो जाता है वरना कब्ज़ की परेशानी ज्यादा बढ़ सकती है। फ्रूट जूस, लेमन जूस, वेजिटेबल सूप इत्यादि पौष्टिक तरल पदार्थ लें।
थोड़े थोड़े समय पर आहार लें।
प्रेगनेंसी के दौरान बार बार भूख लगती है लेकिन आप एक साथ खाने की बजाय थोड़े थोड़े समय में आहार लें, जिससे आपका भोजन अच्छे से पचेगा।
दिन में तीन बार पेट भर खाने से अच्छा आप 6 बार थोड़ा थोड़ा करके खाएं और हल्के पदार्थ भोजन में लें, गरिष्ठ भोजन करने से बचें।
चिया के बीज लें।
चिया के बीज कब्ज़ में खाने से बहुत लाभ मिलता है। इन्हे 1-2 घंटे के लिए पानी में भिगो दीजिए फिर ज्यूस, फ्रूट्स, दूध, मिल्क शेक आदि के साथ यूज करें।
चिया के बीजों में फाइबर होता है और जब इसे पानी में भिगोया जाता है तो ये एक जेल जैसा बन जाता है जिसे पीकर कब्ज़ से राहत मिलती है।
ग्रीन टी पिएं।
ग्रीन टी पीने से भी कब्ज़ की समस्या में फायदा मिलेगा क्योंकि ग्रीन टी में कैटेचिन नामक तत्व होता है जिससे कब्ज़ ठीक होती है और पाचन संबंधी अन्य तकलीफें भी दूर होती हैं।
1 कप पानी लीजिए और उसमें ग्रीन टी या फिर टी बैग डाल दीजिए। फिर 5 मिनट के पश्चात् इसे छानकर पिएं या फिर टी बैग निकाल कर पी लीजिए।
आपको शहद का स्वाद पसंद हो तो इसमें मिला सकते हैं। ये खास ध्यान रखना है की प्रेगनेंट महिला जो इसका सेवन कर रही है उसे अधिक मात्रा में इसे नहीं पीना है वरना मेटाबॉलिजम से जुड़ी दूसरी परेशानियां हो सकती हैं।
आलूबुखारे का ज्यूस
प्रेगनेंसी में कब्ज़ की समस्या होने पर आलूबुखारे का ज्यूस पीना चाहिए। यह बहुत प्रभावी इलाज है। आलूबुखारे का ज्यूस मल को नरम बना देता है और उसे शरीर से बाहर निकालता है।
एक दिन में करीब 5 बार तक ये ज्यूस पिया जा सकता है। इसे गाढ़ा या पतला अपनी पसंद के अनुसार किया का सकता है। इसमें थोड़ा नींबू का रस मिलाने से स्वाद और भी बढ़ जाता है।
पढ़े गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक भोजन
रिफ्लेक्सोलॉजी द्वारा कब्ज़ का उपचार
रिफ्लेक्सोलॉजी से कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में मदद मिलती है और ये सुरक्षित भी है। इसमें शरीर में अलग अलग अंगो पर प्रेशर डालते हैं।
इसमें पाचन तंत्र को ठीक करना हो तो पैरों में तलवों की ऊपर की ओर धीरे धीरे से मालिश करवाएं, इसके लिए आप किसी फैमिली मेंबर की मदद ले सकते हैं। यदि आप अकेले हैं तो हाथों में रिफ्लेक्सोलॉजी जोन में मालिश करें।
इसके लिए क्लॉकवाइज मोशन में हथेली के किनारों के पास धीरे धीरे से मालिश करें। एक ओर तरीका ये है की अपने पैरों के नीचे एक एक बोतल रख लीजिए और फिर उसे जमीन पर आगे पीछे कीजिए, इससे भी काफी आराम मिलेगा।
एक्यूप्रेशर द्वारा उपचार
एक्यूप्रेशर चिकित्सा काफी समय से चलती आ रही है और इससे बहुत लाभ भी मिलता है। प्रेगनेंसी में कब्ज़ होने पर भी एक्यूप्रेशर चिकित्सा ले सकते हैं।
इसमें डॉक्टर मानते हैं कि कब्ज़ शरीर में ऊर्जा रुकने से होता है, इसलिए इस रुकावट को खत्म करने के लिए पेट में सही प्वाइंट खोजना होता है और सही दबाव प्वाइंट नाभि से करीब 5 सेन्टीमीटर नीचे होता है।
इससे इलाज के लिए आपको धीरे धीरे इस प्वाइंट को दबाना होता है। हर रोज दिन में 30 बार ऐसा करना होता है, जिससे कब्ज़ में काफ़ी आराम मिलता है। प्रेगनेंसी के अंतिम दिनों में ऐसा नहीं करना चाहिए।
हमें उम्मीद है कि ये प्रेगनेंसी के दौरान कब्ज़ के घरेलू उपचार आपके लिए काफी फायदेमंद रहेगा और आपको पसंद भी आया होगा। अतः इसे लाइक और शेयर जरूर करें।
पढ़े प्रेगनेंसी टेस्ट कैसे चेक करें
Reference: https://www.ghareluayurvedicupay.com/pregnancy-ke-doran-kabj-ke-gharelu-upchar/
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ओवुलेशन के लक्षण
शादी के कुछ सालों बाद हर महिला मां बनना चाहती है। मां बनना प्रकृति की अनुपम सौगात है, जो स्त्री को पूर्णता की ओर ले जाती हैं। किसी कारणवश महिला मां नहीं बन पाती तो कई प्रकार की उलझनें घर करने लगती हैं। ऐसी स्थिति में अपने ओवुलेशन पीरियड पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी तभी सफलता भी मिल पाएगी।
ओवुलेशन क्या है | Ovulation Kya Hai
किसी भी महिला के जीवन में महत्वपूर्ण प्रक्रिया मासिक चक्र की होती है। मासिक चक्र की प्रक्रिया के तहत ही एक महिला मां बनने में सक्षम होती है। मां बनने के लिए ओवुलेशन को समझना भी अनिवार्य है।
ओवुलेशन को मासिक धर्म का हिस्सा भी समझा जा सकता है। हर मासिक धर्म के समय ओवरी में एग रिलीज होते हैं और वही समय ओवुलेशन होता है। यदि एग ओवरी में आ जाए तो वह स्पर्म से मिल ही जाते हैं और किसी स्थिति में वह मिलने से बच भी जाते हैं। इस दौरान महिला का एग किसी गर्भाशय में आकर वृद्धि करने लगे तो प्रेगनेंसी शुरू हो जाती है लेकिन यह जरूरी नहीं होता कि हर बार ऐसा हो जब कभी एग फर्टिलाइज ना हो सके तो एक टूट भी सकते हैं।
ओवुलेशन की शुरुआत
महिलाओं का मासिक चक्र 28 से 30 दिनों का होता है। विषम परिस्थिति में यह चक्र का समय कम या ज्यादा भी हो सकता है। जब भी मासिक चक्र की शुरुआत हो तो मध्य के 4 दिन पहले और बाद में ओवुलेशन शुरू हो जाता है। जब शरीर में एसएचएच हार्मोन रिलीज होता है। यह प्रक्रिया मासिक चक्र के 6 से 14 दिन के बीच होते हैं जो एलएच की उपस्थिति के कारण होते हैं। जैसे ही शरीर में एलएच का स्तर बढ़ने लगता है तो 28 से 36 घंटे के बाद ओवुलेशन शुरू हो जाता है।
ओवुलेशन नियमित होना है जरूरी
ओवुलेशन पीरियड मासिक धर्म के दौरान ही आते हैं और उनका नियमित होना भी जरूरी है। इसके वजह से कहीं ना कहीं प्रेग्नेंसी के चांस बढ़ जाते हैं। अगर किसी कारणवश नियमित रूप से पीरियड ना आ रहे हैं ऐसे में ओवुलेशन अनियमित हो सकता है और प्रेगनेंसी मे देर हो सकती है। ऐसे में आप चिकित्सक से सलाह लेना ना भूलें।
ओवुलेशन के लक्षण | Ovulation Ke Lakshan in Hindi
अगर आप सही से आपने ओवुलेशन के लक्षण समझ सके तो यह आपके लिए बहुत ही फायदेमंद हो जाएगा।
1) शरीर का तापमान परिवर्तित होना
शरीर के तापमान के बढ़ने पर बुखार के लक्षण ही माना जाता है लेकिन अगर पिछले कुछ दिनों से शरीर का तापमान में परिवर्तन देखा गया है तो अब ओवुलेशन का लक्षण हो सकता है जो कि प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के कारण होता है। यह हार्मोन अंडाशय से मुक्त होने पर स्थित होते हैं और अपनी मुख्य भूमिका निभाते हैं।
2) पेट में दर्द होना
कभी-कभी पेट के निचले हिस्से में अजीब सा दर्द होता है, जो कुछ समय में ही खत्म हो जाता है। लेकिन महिलाएं अपने काम के कारण इस दर्द को ध्यान नहीं दे पाती। यह दर्द भी ओवुलेशन का लक्षण हो सकता है।
3) सिर दर्द होना
कुछ महिलाओं में ओवुलेशन के समय सिर दर्द भी देखा गया है। यह सेक्स हार्मोन के अत्यधिक बढ़ जाने के कारण होता है।
4) होने वाले स्त्राव में परिवर्तन
मासिक धर्म के समाप्त होने के बाद एक अलग स्त्राव होता है जिसमें परिवर्तन ही देखा जा सकता है। योनि में मिलने वाला म्यूकस पतला और चिपचिपा हो जाता है।
5) स्तन संवेदनशील होना
ओवुलेशन का यह लक्षण महिलाओं को कम ही समझ आता है पर स्तनों का संवेदनशील होना ओवुलेशन को दर्शाता है। ओवुलेशन के समय सारी कोशिकाएं सक्रिय होकर संवेदनशील हो जाती है और ओवुलेशन की पुष्टि होती है।
ओवुलेशन टेस्ट कैसे करें | Ovulation Test Kaise Kare
अगर आपको ओवुलेशन के लक्षण समझ आ गए हो,तो इसके टेस्ट को घर में भी किया जा सकता है। जो आसान भी है साथ ही साथ यह भी समझा जा सकता है कि वह ओवुलेशन सही से हो रहा है या नहीं।
1) बेसल बाडी ��ेंपरेचर
इसके माध्यम से सही ओवुलेशन पता लगाया जा सकता है। मासिक चक्र के दौरान थर्मामीटर में तापमान लिया जाता है। ऐसा देखा जा सकता है कि शरीर का तापमान तीन-चार दिनों तक ज्यादा रहे तो इस बात की पुष्टि होती है कि ओवुलेशन हुआ है।
2) ओवुलेशन किट | Ovulation Kit
इस किट के माध्यम से सुबह के मूत्र से आज की उपस्थिति के द्वारा पता लगाया जा सकता है जो ओवुलेशन की सही जानकारी भी देगा।
Ovulation के बारे में जाननें के तरीके
ओवुलेशन दर्द क्या है | Ovulation Dard Kya Hai
ओवुलेशन का होना सामान्य सी बात है लेकिन कई बार महिलाओं को इस ओवुलेशन के समय दर्द का अनुभव होता है। शुरू में तो वे इस बारे में समझ नहीं पाती पर धीरे-धीरे दर्द की वजह समझ आती है। कभी-कभी तो यह दर्द ज्यादा हो जाता है ,तो थोड़ा आराम कर लेने पर ठीक भी हो जाता है। हर महिला में ओवुलेशन अलग-अलग प्रकार का होता है। कई बार यह दर्द एक जगह भी नहीं टिकता जगह-जगह बदलता रहता है।
क्या हो सकते हैं ओवुलेशन दर्द के कारणओवुलेशन दर्द के कई प्रकार के कारण हो सकते हैं
1) जब भी कभी ओवुलेशन के समय अचानक एग बाहर निकले तो ऐसे में दर्द का होना लाजमी है। 2) जब भी कभी ओवुलेशन होने लगता है, तो उसके बाद फेलोपियन ट्यूब एग के लिए सिकुडती है और इस वजह से भी दर्द का अनुभव होता है। 3) कई बार ओवुलेशन के समय आसपास की मांसपेशियों में खिंचाव होने पर भी दर्द की स्थिति बन सकती है। 4) कभी-कभी ओवुलेशन के दोनों ओर फॉलिकल्स के प्रभावी और परिपक्व होने पर भी दर्द का अनुभव होता है।
ओवुलेशन दर्द का इलाज | Ovulation Dard Ka Ilaj In Hindi
अगर ओवुलेशन के समय दर्द हो तो इसका इलाज भी संभव है।
1) अगर ज्यादा तकलीफ हो रही है, तो चिकित्सक से जरूर सलाह ले। 2) इसके लिए एंटी इन्फ्लेमेटरी का उपयोग किया जा सकता है। 3) अपने चिकित्सक से बात कर हारमोंस गर्भनिरोधक गोली भी लिया जा सकता है। 4) आप थोड़ा आराम करें और किसी काम से दूर ही रहे। 5) अगर आप गुनगुने पानी में अजवाइन डालकर पिए तो भी फायदा होगा।
ओवुलेशन ना होने का क्या है कारण | Ovulation Na Hone Ka Kya Hai Karan In Hindi
अगर आप पिछले कुछ दिनों से प्रेग्नेंट होना चाहती हैं पर हो नहीं पा रही है तो इसके पीछे भी कारण ओवुलेशन का ना होना ही पाया गया है। ओवुलेशन ना होने पर बच्चे के जन्म में देर हो सकती है।
ओवुलेशन होने की स्थिति में एग सही तरीके से विकसित नहीं हो पाते हैं ऐसा उस समय भी देखा जाता है जब अंडाशय के द्वारा एग नहीं बन पाता। जब ओवुलेशन की प्रक्रिया बंद हो जाए वह अनओवुलेशन कहलाता है। कभी-कभी पीरियड नियमित ना हो पाए ऐसी स्थिति में भी ओवुलेशन नहीं हो पाता है।
1) एस्ट्रोजन का कम होना
ओवरी पर्याप्त मात्रा में एस्ट्रोजन पैदा करती है अगर सीमित मात्रा से कम एस्ट्रोजन उत्पन्न करें तो भी ओवुलेशन में समस्या आने लगती है।
2) मेल हार्मोन बढ़ना
यदि किसी भी कारणवश आपके शरीर में मेल हार्मोन टेस्टोस्टेरोन स्वता ही बढ़ गया हो तो इससे भी ओवुलेशन नहीं हो पाता है।
3) सही खानपान जरूरी
प्रेगनेंसी के लिए बहुत सी सावधानियां रखन�� होती है जिनमें सही खान-पान भी आवश्यक है। अगर आपने ऐसा कुछ खा लिया हो जो आप के ओवुलेशन के लिए सही नहीं हो, तो उसे तुरंत छोड़ दें। इस कड़ी में जंक फूड का नाम आता है अगर आप जल्द ही प्रेग्नेंट होना चाहती हैं, तो जंक फूड से से दूरी बना ले।
4) तनाव ना करें
किसी भी प्रकार का तनाव आपको नहीं लेना है। ज्यादा तनाव लेने से पीरियड भी नियमित नहीं रहते और ओवुलेशन में भी दिक्कत आ जाती है।
5) पीसीओडी की समस्या
कई सारी महिलाओं को पीसीओडी की समस्या होती है। इस समस्या के कारण प्रेगनेंसी में समस्या उत्पन्न होती है और ओवुलेशन में दिक्कत आती है अतः पहले अपनी पीसीओडी की समस्या को दूर करने की कोशिश करें।
6) प्रोलेक्टिन का बढ़ना
प्रोलैक्टिन हार्मोन का ज्यादा बढ़ जाना भी ओवुलेशन में दिक्कत लाता है। जो भी हार्मोन ओवुलेशन सहायक है वे प्रोलैक्टिन के बढ़ने में कम होने लगते हैं इसलिए बेहतर होगा यदि प्रोलेक्टिन ना बढ़ने पाए।
ओवुलेशन को नियमित करने के प्राकृतिक तरीके
ओवुलेशन की दिक्कत होने पर कई प्रकार के मनोभाव मन में आने लगते हैं, जो कि स्वभाविक भी है। आप अगर नियमित रूप से प्राकृतिक तरीके अपनाएं तो निश्चित रूप से आराम प्राप्त होगा।
1) एक्सरसाइज करें
अगर आप प्रतिदिन सुबह कम से कम आधा घंटा एक्सरसाइज करें तो इससे आपको फायदा होगा। एक्सरसाइज से ओवुलेशन को सही किया जा सकता है और आप चाहे तो विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं।
2) तनाव से बचें
तनाव ऐसी समस्या है जिससे शरीर बहुत ज्यादा प्रभावित होता है। स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल हार्मोन को रोकता है और यह वजह भी हो सकती है कि जब ओवुलेशन में दिक्कत आती है अतः किसी प्रकार के तनाव से बचे।
3) धूम्रपान से बचें
अगर आप खुद में ओवुलेशन की समस्या नहीं चाहती हो, तो धूम्रपान से दूर ही रहे। धूम्रपान कहीं ना कहीं ये ओवुलेशन में बाधक है। जल्दी प्रेग्नेंट होने के लिए भी धूम्रपान से दूर होना ही बेहतर है।
4) भरपूर नींद लें
रात रात भर जाग कर कोई काम नहीं करें। भरपूर नींद लेने से सभी हार्मोन सही तरीके से कार्य कर पाते हैं और ओवुलेशन में दिक्कत नहीं आ पाती है।
5) अपना वजन बढ़ाएं
ओवुलेशन को नियमित करने के लिए अपना वजन बढ़ाएं इसके लिए आप ज्यादा कैलोरी युक्त भोजन ले।
धैर्य रखें
ऐसा देखा जाता है कि जब प्रेगनेंसी ना हो, तो महिलाएं अपना धैर्य खोने लगती हैं। उनके मन में बेचैनी व डर हो जाता है ऐसे में धैर्य बनाए रखें और सही समय का इंतजार करें। अपना खानपान और सही जीवन शैली से आप अपनी ओवुलेशन संबंधित समस्या को भी दूर कर सकेंगी बस हौसला रखें और खुश रहिए।
निष्कर्ष
एक प्यारे से बच्चे का जीवन में आगमन होना हर्ष और उल्लास का विषय है। इस लेख में हमने ओवुलेशन संबं��ी दिक्कतों को दूर करने का प्रयत्न किया है उम्मीद है आपके काम आएंगे। जीवन में उलझनों को कम करना हमारे हाथ में है जरूरत है तो हिम्मत ना हार���े की। खुश रहिए और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े।
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प्रेगनेंसी के बाद वजन कम करने के उपाय
हमारा जीवन कठिनाइयों भरा होता है, जहां कोई ना कोई परेशानी लगी ही रहती है। अगर बात महिलाओं की जाए तो भी सजग रहते हुए भी समस्या आ ही जाती है। ऐसा देखा जाता है कि महिलाओं के प्रेग्नेंट होने पर उनका वजन अचानक बढ़ जाता है जिससे बाद में महिलाओं को वजन कम करने में बड़ी दिक्कतें होने लगती हैं।
ऐसे में हम आपकी मदद करेंगे ताकि आप प्रेगनेंसी के बाद अपना वजन आसानी से कम कर सके।
डिलीवरी के बाद क्यों बढ़ जाता है वजन?
कई बार ऐसा देखा जाता है कि प्रेग्नेंसी के समय वजन बढ़ता ही जाता है जिससे महिलाएं चिंतित ��ोने लगती हैं। एक्सपर्ट की मानें तो ऐसे समय में हार्मोन का संतुलन बदलता रहता है।
जब भी महिलाएं प्रेग्नेंट होती है, तो बच्चे एवं खुद के पोषण को ध्यान रखते हुए खानपान की मात्रा बढ़ा दी जाती है। ऐसे में वजन बढ़ना लाजिमी हो जाता है। कई बार महिलाओं को प्रेगनेंसी में भी थायराइड की समस्या होती है और वजन बढ़ने का कारण बनती है। कई बार प्रेगनेंसी में बेहतर सेहत के लिए कई प्रकार की दवाइयां दी जाती है और यह भी वजन बढ़ने में बड़ा कारण बनती है।
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प्रेगनेंसी के बाद वजन कम करने के कारगर उपाय
प्रेगनेंसी के बाद महिलाएं चिंतित होने लगती हैं क्योंकि कुछ दिनों में उनका वजन बढ़ जाता है। ऐसे में हैरान परेशान नहीं बल्कि कुछ कारगर उपाय कर आप फायदा ले सकती हैं।
1) खानपान सही हो – महिलाएं वजन को लेकर इतना परेशान हो जाती है कि खाना भी सही तरीके से नहीं खाती हैं। ऐसा करने से आपकी परेशानी और भी बढ़ सकती है। ऐसे समय में आपको ऐसा खानपान लेना होगा जो आपको पूरा पोषण दे सके।
2) बेल्ट का उपयोग – आपने देखा होगा कि मोटापा कम करने के लिए लोग बेल्ट का उपयोग करते हैं ऐसे में आप भी इस बेल्ट का सहारा ले सकती हैं, जो पूर्ण रूप से सुरक्षित है और आसानी से मिल भी जाती है।
3) ज्यादा कैलोरी ना लेना – ऐसे समय में ऐसा खानपान ले, जो ज्यादा कैलोरी का ना हो। इसमें आप प्रोटीन, ओमेगा 3 फैटी एसिड, कैल्शियम, फाइबर युक्त भोजन ले। यह सभी वजन कम करने में फायदेमंद है।
4) सही सामान की खरीदारी करें – कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि मार्केट जाते ही हम कई प्रकार के खाने का सामान देखकर खरीदारी कर लेते हैं। जो आपके लिए सही नहीं है। ऐसे में चॉकलेट, कुकीज ,कुकीज़, से दूर ही रहे तो बेहतर होगा।
5) खाना हो सही समय पर — इस बात का खास ख्याल रखें कि खाना सही समय पर खाएं। बहुत ज्यादा देर ना करें। सोने के 2 घंटे पहले खाना खाना ही बेहतर है।
6) तनाव से दूरी — कई बार ऐसा भी देखा गया है कि तनाव के कारण वजन बढ़ सकता है, ऐसे में किसी भी तनाव से बचें। ऐसा देखा गया है कि यह कहना आसान है लेकिन अगर आप चाहे तो एक बार कोशिश की जा सकती है।
7) स्नैक्स ले — अगर आपको ऐसा लगे कि भूख लग रही है तो थोड़ा-थोड़ा करके खाएं। आप चाहे तो स्नैक्स के रूप में ओट्स, सूखे मेवे का सेवन कर सकते हैं।
8) ज्यादा पानी पिए — अगर आप ज्यादा पानी पिए तो फायदेमंद होगा। रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पी कर खुद को स्वस्थ भी रख सकते हैं।
9) चाय, कॉफी से दूरी — प्रेगनेंसी में वजन कम करने के लिए चाय, कॉफी से दूरी बना लेना ही फायदेमंद है। इनमें कैफीन होती है, जो वजन कम करने में बाधक है। अगर आप चाय, कॉफी पीने के शौकीन हैं तो ग्रीन टी पी सकते हैं।
डिलीवरी के बाद वजन कम करने के घरेलू उपाय
pregnancy ke baad vajan kam kaise kare | delivery ke baad vajan kam karne ka gharelu upay
अगर आप चाहे तो घरेलू उपाय से ही वजन कम किया जा सकता है जो सुरक्षित भी है और घर में रखी सामग्री से आप अपना काम कर सकते हैं।
1) नींबू और शहद – अगर आप खाली पेट नींबू का पानी गर्म करके और उसमें ��हद डालकर पिए हैं, तो यह बहुत ही फायदेमंद हो जाएगा।
2) टमाटर – अगर टमाटर का सेवन किया जाए तो यह बेहतर होगा। टमाटर में लाइकोपीन और बीटा कैरोटीन होता है, जो वजन कम करता है। इसमे प्राकृतिक शुगर पाई जाती है, जो किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं करती है।
3) लहसुन – अगर आप रोज सुबह खाली पेट कच्चे लहसुन की चार पांच कलियों को खाएं तो निश्चित रूप से वजन कम किया जा सकता है। शुरू में इसका स्वाद अजीब लगेगा पर बाद में ठीक हो जाता है।
4). ग्रीन टी – अगर आप ग्रीन टी का उपयोग करें तो बहुत ही फायदा करेगा और कुछ ही दिनों में आपका वजन कम हो जाएगा।
5) अजवाइन का पानी – अगर आप एक चम्मच अजवायन को पानी में डालकर गर्म कर लें और रोजाना पिए तो इससे भी बहुत ज्यादा फायदा होने वाला है।
प्रेगनेंसी के बाद वजन कम करने के कुछ मुख्य व्यायाम
प्रेगनेंसी के होने पर व्यायाम की सलाह दी जाती है लेकिन आप डिलीवरी के बाद भी व्यायाम करके आप वजन को नियंत्रित कर सकते हैं।
1) वॉकिंग – वजन कम करने का सबसे आसान उपाय वाकिंग है। अगर आपको समय मिले तो सुबह ताजी हवा में कम से कम आधे घंटे तक वॉकिंग करें इससे आपको फायदा होगा वजन कम करने में।
2) सिटअप्स – अगर आप नियमित रूप से सिटअप्स करते हैं, तो निश्चित रूप से आपका वजन कम होगा। इसके लिए जमीन पर लेट जाए। इसके बाद अपने दोनों हाथों को गर्दन के पीछे ले जाएं और धीरे-धीरे सिर को ऊपर की ओर उठाने की कोशिश करें।अगर आप बार-बार दोहराती है, तो अतिरिक्त वसा बढ़ नहीं पाती है।
3) स्विमिंग – अगर आप वजन कम करने की इच्छुक हैं, तो प्रेगनेंसी के बाद स्विमिंग आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकत�� है। इसके लिए आप अपने समयानुसार स्विमिंग कर आनंद ले सकती हैं।
4) स्टेचिंग – वजन कम करने के लिए इसे भी कारगर माना गया है। इसमें आप पीठ के बल लेट जाएं । उसके बाद अपने घुटनों को धीरे धीरे मोड़े। ऐसा करते समय पीठ एकदम सीधी होनी चाहिए। शुरुआत में इसे बहुत ज्यादा देर तक नहीं करें तो बेहतर होगा।
5) बेली बीथिंग – इसे करना बहुत ही आसान है। इसमें आपको पीठ के बल लेटना होगा और अपने हाथों को पेट में रखे। जैसे सांस ले तो आप देखेंगे पेट बाहर आएगा और सांस होने पर पेट को अंदर खींच ले। फिर से सांस रोकते हुए या व्यायाम करें यह भी आपके लिए फायदेमंद है।
अच्छा होगा यदि शुरुआत में आप किसी विशेषज्ञ से सलाह ले ले।
वजन कम करने हेतु क्या नहीं करना चाहिए
कई बार महिलाएं वजन कम करने की होड़ में कुछ गलतियां कर बैठती हैं, तो आपको इन गलतियों से बचना होगा।
1) कई बार महिलाएं अपना खाना पीना छोड़ने लगती हैं। यह तो बिल्कुल गलत है जब तक आपका पोषण सही नहीं होगा, तब तक बच्चे का पोषण सही से नहीं हो पाएगा। इससे बच्चे की सेहत पर बुरा असर होगा।
2) कुछ महिलाएं ऐसा सोचती है कि उपवास करने से वजन कम हो जाएगा लेकिन यदि आपकी कुछ दिनों पहले ही डिलीवरी हुई हो, तो उपवास बिल्कुल ना करें इससे बच्चे की सेहत पर असर पड़ेगा सबसे ज्यादा जरूरी बच्चे की सेहत ��ै, उस पर ध्यान दें।
3) ऐसे समय में आपके बच्चे को आपके दूध की परम आवश्यकता है। ऐसे में बच्चे को दूध नियमित रूप से दें किसी भी प्रकार की कोताही ना बरतें।
4) आपने अखबार पत्र व विज्ञापनों में वजन कम करने के लिए कई प्रकार की दवाइयों की जानकारी देखी होगी तो इस प्रकार के विज्ञापनों से दूर ही रहे और सही निर्णय लें।
डिलीवरी के बाद वजन कम करना क्यों है जरूरी
डिलीवरी के बाद कई महिलाओं का वजन बढ़ जाता है और उसे कम करने की जद्दोजहद शुरू होती है लेकिन यह भी देखा गया है कि डिलीवरी के बाद वजन कम करना जरूरी है क्योंकि बाद में कई प्रकार की समस्याएं घिर सकती हैं, जो बच्चे के लिए भी घातक हो सकता है ऐसे में पूरा ध्यान बच्चे पर दें।
वजन कम करना है एक चुनौती
वजन कम करना एक हमेशा से ही चुनौती होती है और अगर प्रेगनेंसी के बाद वजन कम करना हो, तो यह और भी मुश्किल काम नजर आता है। बच्चे के साथ वजन कम करना थका देने वाला काम है। ऐसे में अगर सही पोषण पर ध्यान दिया जाए तो निश्चित रूप से यह आपके और बच्चे के लिए फायदेमंद होने वाला है। ऐसे में अगर आप किसी भरोसेमंद व्यक्ति या अपने पार्टनर से मदद लें तो भी फायदेमंद होगा। ऐसे में खुश रहे और धीरे-धीरे वजन कम करने की कोशिश करें ज्यादा परेशान ना ही रहे।
प्रेगनेंसी में इम्यूनिटी पावर कैसे बढ़ाए
सिजेरियन के बाद कैसे करें वजन कम
सिजेरियन डिलीवरी होने से कई प्रकार की समस्याएं देखी जा सकती हैं उनमें से एक वजन की भी समस्या है। इस समय आप एकदम से वजन कम करने के बारे में न सोचे। कुछ दिनों बाद ही वजन कम करना सही होगा। इस समय आपको खुद का ध्यान देने की आवश्यकता है। कुछ आसान उपाय करके इस समय आप अपना वजन कम कर सकती हैं
1) स्तनपान – स्तनपान. किसी भी मां के लिए सबसे अच्छा तरीका है। अपना वजन कम करने का स्तनपान कराने से बच्चे को भी सही पोषण मिल जाता है। जब भी स्तनपान कराया जाता है तो उसमें लगभग 500 कैलोरी खर्च होती है और इससे पेट की चर्बी को भी कम किया जा सकता है। इसे करना आसान भी है।
2) खूब पानी पिए – रोजाना ज्यादा से ज्यादा पानी पिए जो शरीर के लिए फायदेमंद है। यह अतिरिक्त वसा को दूर करने का भी काम करता है।
3) हमेशा कैलोरी पर ध्यान दें – वजन कम करने की जद्दोजहद में कैलोरी पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। सही तरीके से नाश्ता, खाना, मेवे, दही ही लिया जाए तो सही रहेगा। कोशिश करना चाहिए कि ऐसे समय में कैलोरी बहुत ज्यादा भी कम ना हो सके नहीं तो ऐसे में दिक्कत हो जाएगी।
निष्कर्ष
इसमें से हमने देखा कि प्रेगनेंसी के बाद वजन कम करना थोड़ा मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं। इस बात का विशेष ध्यान रखें और बच्चे का भी ध्यान रखें। बहुत जरूरी है कि ऐसे समय में खुश रहे तभी बच्चा सही विकास कर पाएगा।
आपके आने वाले भविष्य के लिए शुभकामनाएं एवं हमारा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।
Source : https://www.ghareluayurvedicupay.com/pregnancy-ke-baad-vajan-kam-karne-ke-upay/
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करेले के फायदे, उपयोग और नुकसान – Bitter Gourd (Karela) Benefits and Side Effects in Hindi
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करेले के फायदे, उपयोग और नुकसान – Bitter Gourd (Karela) Benefits and Side Effects in Hindi
करेले के फायदे, उपयोग और नुकसान – Bitter Gourd (Karela) Benefits and Side Effects in Hindi Arpita Biswas Hyderabd040-395603080 January 27, 2020
करेला, चुनिंदा स्वास्थ्यवर्धक सब्जियों में गिना जाता है। स्वाद में कड़वा होने के कारण कई लोग इसे खाना पसंद नहीं करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि करेला कई बीमारियों के प्रभाव व उनके लक्षणों को कम करने की क्षमता रखता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम शरीर के लिए करेले के फायदे बताने जा रहे हैं। यहां आपको करेला खाने के फायदे से लेकर करेला का उपयोग कैसे किया जा सकता है, इस संबंध में जरूरी जानकारी मिलेगी। लेख को पढ़ते समय पाठक इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि करेला यहां बताई गई किसी भी बीमारी का इलाज नहीं है, लेकिन यह इनके इलाज में एक सहायक भूमिका जरूर निभा सकता है।
आइये सबसे पहले हम करेले के बारे में कुछ सामान्य जानकारी हासिल कर लेते हैं।
विषय सूची
करेला क्या है ?
करेला एक हरी सब्जी है और यह स्क्वैश परिवार का सदस्य है। करेले का वैज्ञानिक नाम मोमोर्डिका चरैन्टिया (Momordica Charantia) है। इसे अंग्रेजी में बिटर मेलन और बिटर गॉर्ड के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा, इसे बंगाली में कॉरोला, कन्नड़ में हगालाकायी और हिंदी में करेला कहा जाता है। यह अफ्रीका, कैरिबियन, भारत और मध्य पूर्वी देशों में बहुत लोकप्रिय है। भले ही यह खाने में कड़वा हो, लेकिन यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है (1)। स्वास्थ्य के लिए यह किस प्रकार लाभदायक है, यह जानकारी नीचे दी गई है।
अब जानते हैं यह कड़वी सब्जी स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार लाभदायक हो सकती है।
करेले के फायदे – Karela Benefits in Hindi
नीचे जानिए स्वास्थ्य के लिए करेला खाने के फायदे।
1. मधुमेह के लिए करेला खाने के फायदे
मधुमेह से बचाव के लिए करेले का सेवन किया जा सकता है। दरअसल, एनसीबीआई (NCBI – National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध में करेले के एंटीडायबिटिक गुण साबित होते हैं। अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि करेला हाइपोग्लाइसेमिक (Hypoglycemic – ब्लड शुगर को कम करना) प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है (2)।
वहीं जानवरों पर किए गए एक शोध में भी करेले के हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव का असर देखा गया है (3)। इंसानों पर इसका प्रभाव कितना कारगर होगा, इस विषय पर अभी और शोध की आवश्यकता है। मधुमेह के घरेलू उपाय के तौर पर इसका सेवन संतुलित मात्रा में डॉक्टरी परामर्श पर किया जा सकता है।
2. वजन घटाने के लिए करेला के फायदे
वजन घटाने के घरेलू उपाय के तौर पर भी करेला एक कारगर भूमिका निभा सकता है। दरअसल, एक वैज्ञानिक शोध में बढ़ते वजन के लिए करेले के फायदे देखे गए हैं। अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि उच्च वसा का सेवन करने वाले चूहों में करेले का एंटीओबेसिटी (मोटापा कम करने वाला गुण) प्रभाव पाया गया, जिससे बढ़ते वजन में रुकावट देखी गई। इसके साथ ही लिपिड मेटाबोलिज्म में बढ़ोतरी पायी गई (4)। फिलहाल, मनुष्यों पर इसके प्रभाव के लिए अभी और शोध की आवश्यकता है।
3. कैंसर से बचाव के लिए करेला के औषधीय गुण
करेले के औषधीय गुणों की बात की जाए तो यह कैंसर के जोखिम को भी कम करने में मदद कर सकता है। करेले से जुड़े अध्ययन में यह बात सामने आई है कि करेले में कैंसर के जोखिम को कम करने के गुण मौजूद होते है। शोध में आयुर्वेद की बात भी कही गई है। आयुर्वेद के अनुसार करेले का उपयोग कैंसर जैसी बीमारी के उपचार में भी किया जा सकता है।
शोध में कहा गया कि करेला का उपयोग कैंसर कोशिकाओं के निर्माण में बाधा डालने का काम कर कैंसर के जोखिम को कम कर सकता है। यह प्रोस्टेट कैंसर और पेट के कैंसर से बचाव में मदद कर सकता है (5)। हालांकि, पाठक इस बात का ध्यान रखें कि कैंसर एक गंभीर बीमारी है, इसलिए सिर्फ करेले का सेवन इस बीमारी को ठीक करने में असमर्थ है। बेहतर है कि कैंसर के लिए व्यक्ति डॉक्टरी इलाज को पहली प्राथमिकता दें और डॉक्टर की सलाह के बाद ही करेले का सेवन करें।
4. लिवर के लिए करेला खाने के फायदे
करेला लिवर के लिए लाभकारी हो सकता है। दरअसल, चूहों पर किए गए एक शोध में इसके हेपेटोप्रोटेक्टिव (Hepatoprotective – लिवर को सुरक्षित रखने का गुण) प्रभाव के बारे में पता चला है। साथ ही फैटी लिवर जैसी बीमारी में भी इसके लाभ देखे जा सकते हैं। फैटी लिवर वह समस्या होती है, जिसमें लिवर में फैट जमा होने लगता है। देखा गया है कि अत्यधिक शराब का सेवन भी इस समस्या का कारण बन सकता है (6)। यहां करेले के फायदे देखे जा सकते हैं। नेशनल ताइवान यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार, करेले का अर्क ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन को कम करके अल्कोहलिक फैटी लिवर की बीमारी पर सकारात्मक प्रभाव दिखा सकता है (7) एक अन्य शोध के मुताबिक करेला, फैटी लिवर की बीमारी बढ़ने के दौरान फैट के जमाव को रोकने में मदद कर सकता है (8)।
5. कोलेस्ट्रॉल के लिए करेले के फायदे
कोलेस्ट्रॉल हृदय संबंधी रोग और दिल के दौरे का जोखिम बढ़ सकता है (9)। ऐसे में उन खाद्य पदार्थों का सेवन जरूरी हो जाता है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को संतुलित या कम करने में मदद कर सकें। यहां करेला लाभाकारी साबित हो सकता है। इस विषय पर आधारित एक शोध के अनुसार, कोलेस्ट्रॉल युक्त आहार का सेवन करने वाले चूहों को करेले के अर्क का सप्लीमेंट दिया गया। इससे उनके कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड (Triglycerides- रक्त में मौजूद एक प्रकार का फैट) में कमी पाई गई। इस अध्ययन से यह माना जाता है कि हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया (hypercholesterolemia- बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल की स्थिति) के लिए खाद्य उत्पादों में करेले के अर्क को सप्लीमेंट की तरह दिया जा सकता है। फिलहाल, मनुष्यों पर इसके प्रभाव के लिए और शोध किए जाने की आवश्यकता है (10)।
6. कब्ज और बवासीर के लिए करेला के फायदे
करेला कब्ज और बवासीर जैसी परेशानी में भी लाभकारी हो सकता है। दरअसल, करेले में भोजन पचाने के गुण पाए जाते हैं, जो मल त्याग को आसान बनाने में मदद कर सकता है। ��ाथ ही यह बवासीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ सकता है। बवासीर के मरीजों पर किए गए एक शोध में देखा गया कि करेले के पत्तों का अर्क मल त्याग को आसान बनाकर कब्ज से निजात दिलाने में मदद कर सकता है। बवासीर का एक कारण कब्ज भी है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि करेले का जूस कब्ज के साथ-साथ बवासीर में भी मददगार साबित हो सकता है। कब्ज और बवासीर के लिए करेले के पत्तों का जूस डॉक्टरी परामर्श पर लिया जा सकता है (11) (12)। फिलहाल, इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है।
7. आंखों के लिए करेले के फायदे
करेला आंखों के लिए भी लाभकारी हो सकता है। दरअसल, यह बात कर्नाटक के मुदिगेरे कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर (College of Horticulture) के एक रिसर्च में सामने आई है। शोध में कहा गया कि इसमें मौजूद बीटा कैरोटीन आंखों की बीमारियों के जोखिम से बचाव कर सकता है। इतना ही नहीं यह आंखों की रोशनी बढ़ाने में भी मदद कर सकता है (13)।
8. सूजन के लिए करेला के फायदे
करेले में एंटी-इन्फ्लामेटरी गुण भी मौजूद होते हैं। ऐसे में इसका सेवन सूजन के जोखिम से बचाव करने में मददगार साबित हो सकता है (14)। यह सूजन के कारण होने वाली समस्याओं में कितना लाभकारी हो सकता है, इस पर और शोध की आवश्यकता है।
9. त्वचा के लिए करेले के फायदे
सिर्फ सेहत के लिए ही नहीं, बल्कि त्वचा के लिए भी करेला लाभकारी हो सकता है। दरअसल, एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित खरगोशों पर किए गए एक शोध के अनुसार, करेले का अर्क युक्त स्किन क्रीम घावों के लिए असरदार साबित हो सकती है। अध्ययन में जिन खरगोशों पर इस क्रीम का इस्तेमाल किया गया, उनके घावों में तेजी से सुध���र होता देखा गया (15)। यह शोध जानवरों पर किया गया है, मनुष्य पर इसके प्रभाव के लिए अभी और अध्ययन की आवश्यकता है।
करेले के फायदे जानने के बाद आगे जानिए इसमें कौन-कौन से पोषक तत्व मौजूद होते हैं।
करेले का पौष्टिक तत्व – Bitter Gourd Nutritional Value in Hindi
नीचे हम करेले में मौजूद पौष्टिक तत्वों की एक सूची साझा कर रहे हैं (16)।
पोषक तत्व प्रति 100 ग्राम पानी 94.03 ग्राम एनर्जी 17 केसीएल प्रोटीन 1 ग्राम टोटल लिपिड (फैट) 0.17 ग्राम कार्बोहाइड्रेट 3.7 ग्राम फाइबर, टोटल डाइटरी 2.8 ग्राम कैल्शियम 19 मिलीग्राम आयरन 0.43 मिलीग्राम मैग्नीशियम 17 मिलीग्राम फास्फोरस 31 मिलीग्राम पोटेशियम 296 मिलीग्राम सोडियम 5 मिलीग्राम जिंक 0.8 मिलीग्राम कॉपर 0.034 मिलीग्राम मैंगनीज 0.089 मिलीग्राम सेलेनियम 0.2 माइक्रोग्राम विटामिन सी 84 मिलीग्राम थियामिन 0.04 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन 0.04 मिलीग्राम नियासिन 0.4 मिलीग्राम पैंटोथैनिक एसिड 0.212 मिलीग्राम विटामिन बी-6 0.043 मिलीग्राम फोलेट, टोटल 72 माइक्रोग्राम विटामिन ए, आरएई 24 माइक्रोग्राम कैरोटीन, बीटा 190 माइक्रोग्राम कैरोटीन, अल्फा 185 माइक्रोग्राम विटामिन ए, आईयू 471 आईयू लुटिन + जियाजैंथिन 170 माइक्रोग्राम
लेख के इस भाग में हम करेले के उपयोग करने के कुछ आसान तरीके बता रहे हैं –
करेले का उपयोग – How to Use Bitter Gourd in Hindi
नीचे जानिए करेले के उपयोग के आसान तरीके।
करेले की सब्जी बनाई जा सकती है।
करेले का अचार बनाया जा सकता है।
करेले का जूस पी सकते हैं।
करेले का रस बालों में लगाया जा सकता है।
करेला के फायदे कई हैं, लेकिन इसका उपयोग अगर जरूरत से ज्यादा किया जाए तो इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। इसलिए, नीचे हम करेले के कुछ नुकसानों की जानकारी दे रहे हैं।
करेले के नुकसान – Side Effects of Bitter Gourd in Hindi
करेले के फायदे के साथ-साथ करेले के नुकसान भी कई हैं, जिन्हें नीचे बताया गया है – (17) (18) (19)।
गर्भावस्था में करेले का सेवन न करें। करेले में कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो गर्भपात का कारण बन सकते हैं। हालांकि, यह परिणाम जानवरों पर शोध के दौरान निकल कर आया है और इंसानों पर इसके प्रभाव जानने के लिए अभी और शोध की आवश्यकता है। बेहतर है कि प्रेगनेंसी में करेला खाने के नुकसान से बचने के लिए इसका सेवन न करें।
सिर्फ गर्भावस्था में ही नहीं, बल्कि स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी करेले के सेवन से बचना चाहिए। दरअसल, करेले में कुछ विषाक्त तत्व भी मौजूद होते हैं, जो स्तनपान कराने वाली मां से उनके शिशु में जा सकते हैं।
जो मधुमेह के रोगी डायबिटीज की दवा का सेवन कर रहे हैं, वे करेले का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। करेला ब्लड शुगर की मात्रा को कम कर सकता है। ऐसे में डायबिटीज की दवा के साथ करेले का सेवन नुकसानदायक हो सकता है।
कुछ व्यक्तियों को करेले का सेवन दस्त, पेट में ऐंठन और सिरदर्द का कारण बन सकता है।
करेला खाने के फायदे पढ़ने के बाद कई लोग इसकी कड़वाहट भूलकर इसे अपने आहार में शामिल करना चाह रहे होंगे। पाठक इस बात का ध्यान रखें कि भले ही करेला के औषधीय गुण कई हैं, पर यह सिर्फ स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षण और उनके जोखिम से बचाव कर सकता है। अगर कोई गंभीर बीमारी से जूझ रहा है, तो उसके लिए डॉक्टरी इलाज ही पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके साथ ही करेले से संबंधित अधिकांश अध्ययन जानवरों पर किए गए हैं। ऐसे में बेहतर है कि व्यक्ति करेला का उपयोग संतुलित मात्रा में या डॉक्टर की सलाह अनुसार करें। इसके अलावा, अगर आपके पास करेला के फायदे से जुड़े कोई सवाल या सुझाव हैं, तो नीचे कमेंट बॉक्स के जरिए हमारे साथ जरूर साझा करें।
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Arpita Biswas
अर्पिता ने पटना विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन में स्नातक किया है। इन्होंने 2014 से अपने लेखन करियर की शुरुआत की थी। इनके अभी तक 1000 से भी ज्यादा आर्टिकल पब्लिश हो चुके हैं। अर्पिता को विभिन्न विषयों पर लिखना पसंद है, लेकिन उनकी विशेष रूचि हेल्थ और घरेलू उपचारों पर लिखना है। उन्हें अपने काम के साथ एक्सपेरिमेंट करना और मल्टी-टास्किंग काम करना पसंद है। इन्हें लेखन के अलावा डांसिंग का भी शौक है। इन्हें खाली समय में मूवी व कार्टून देखना और गाने सुनना पसंद है।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/karela-ke-fayde-upyog-aur-nuksan-in-hindi/
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गर्भावस्था में शतावरी खाना सुरक्षित है या नहीं – Is Shatavari Good for Pregnancy in Hindi
गर्भावस्था में शतावरी खाना सुरक्षित है या नहीं – Is Shatavari Good for Pregnancy in Hindi vinita pangeni Hyderabd040-395603080 January 20, 2020
गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं को कम करने के लिए महिलाएं कई तरह के उपाय अपनाती हैं। इसी में शामिल है शतावरी का उपयोग। सदियों से इसे जड़ी-बूटी के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा रहा है। यह आयुर्वेदिक औषधि गर्भावस्था में कितनी सुरक्षित है और कितनी नहीं, इसको लेकर कई संशय हैं। यही वजह है कि स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम गर्भावस्था में शतावरी सुरक्षित है या नहीं इसके बारे में बताएंगे। इसके बाद प्रेगनेंसी में शतावरी के फायदे हो सकते हैं या नहीं इस पर भी चर्चा करेंगे। इसके अलावा, गर्भावस्था में शतावरी के नुकसान के बारे में भी बताएंगे। शतावरी से जुड़ी ये सभी जानकारियां जानने के लिए आखिरी तक पढ़ते रहें यह लेख।
चलिए, सबसे पहले यह जानते हैं कि प्रेगनेंसी में शतावरी खाना सुरक्षित है या नहीं।
विषय सूची
क्या गर्भावस्था में शतावरी खाना सुरक्षित है?
प्रेगनेंसी में शतावरी का सेवन सुरक्षित है या नहीं, यह प्रत्येक महिला की गर्भावस्था पर निर्भर करता है। गर्भास्था में फोलेट से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करने की सलाह दी जाती है, जिसमें शतावरी भी शामिल है। इसे इंग्लिश में एस्पेरेगस रेसिमोसस (Asparagus racemosus) भी कहा जाता है। यही वजह है कि प्रेगनेंसी में शतावरी का सेवन लाभदायक माना जाता है (1)। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक, शतावरी का सेवन उन महिलाओं को करने की सलाह दी जाती है, जिन्हें गर्भपात होने का खतरा होता है (2)। दरअसल, इसमें एंटीएबोर्टिफिशिएंट (Anti Abortifacient) गुण होते हैं (3)।
शतावरी के संबंध में मौजूद विभिन्न शोध के मुताबिक इसका उपयोग गर्भावस्था में किया तो जा सकता है, लेकिन साथ में सावधानी बरतना जरूरी है (4)। इसे खाने से पहले इसकी मात्रा पर खास ध्यान देना चाहिए, क्योंकि अधिक मात्रा में किसी भी चीज का सेवन मां और गर्भस्थ शिशु के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए, गर्भावस्था में अगर किसी भी तरह की जटिलता हो, तो शतावरी को आहार में शामिल करने से पहले डॉक्टर से जरूर पूछना चाहिए। नीचे हम प्रेगनेंसी में शतावरी खाने का सही समय भी बता रहे हैं। ध्यान रहे कि इसे वक्त से पहले और ज्यादा सेवन करने से कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
चलिए, नीचे जानते गर्भावस्था में शतावरी के फायदे के बारे में।
प्रेगनेंसी में शतावरी खाने के फायदे – Benefits of Eating Shatavari in Pregnancy In Hindi
1. बर्थ डिफेक्ट से बचाए
प्राचीन काल से शतावरी का इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान किया जा रहा है। खासकर, बर्थ डिफेक्ट से बचाव के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। बर्थ डिफेक्ट यानी जन्म दोष जो शिशु के शरीर के लगभग किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। एनसीबीआई ने भी इस संबंध में एक रिसर्च पेपर पब्लिश किया है। उस शोध में भी साफ तौर पर कहा गया है कि शतावरी यानी एस्पेरेगस में पाए जाने वाला फोलेट गर्भ में पल रहे भ्रूण को जन्म दोष से बचाने में मदद कर सकता है (5)।
2. इम्यूनिटी बढ़ाए
शतावरी का सेवन करने से इम्यूनिटी को बेहतर करने में मदद मिल सकती है। यह मां और भ्रूण दोनों की प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर करने में लाभदायक माना जाता है। गर्भावस्था के साथ ही प्रसव के बाद भी यह मां की इम्यूनिटी के लिए अच्छा माना जाता है। दरअसल, इसमें इम्युनोमॉड्यूलेटर एजेंट होते हैं, जिसकी वजह से शरीर की जरूरत के हिसाब से प्रतिरक्षा काम करती है और बीमारियों से बचाती है (6)।
3. दूध के उत्पादन को बढ़ाए
गर्भावस्था के आखिरी समय और प्रसव के बाद शतावारी का सेवन करने से मां के दूध की गुणवत्ता बढ़ सकती है। साथ ही इसका उत्पादन भी बढ़ सकता है (7)। दरअसल, इसमें गैलेक्टगॉग हार्मोन (दूध बढ़ाने वाला) का प्रभाव स्टेरॉइडल सैपोनिन कंपाउंड की वजह से होता है। यह हार्मोन प्रोलैक्टिन के स्तर को बढ़ाता है, जिससे दूध के उत्पादन में वृद्धि होती है। इसी के संबंध में एनसीबीआई में एक रिसर्च मौजूद है। इसमें कहा गया है कि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान गर्भवतियों को शतावरी के जड़ से बना पाउडर दिया गया। इसके उपयोग से उनमें प्रोलैक्टिन हार्मोन की मात्रा सामान्य की तुलना में 3 गुना अधिक पाई गई। यह हार्मोन दूध को बढ़ाने का काम करता है (8)।
प्रेगनेंसी में शतावरी के फायदे जानने के बाद आगे हम बता रहे हैं कि गर्भावस्था में शतावरी को आहार में कैसे शामिल किया जा सकता है।
गर्भावस्था के आहार में शतावरी को कैसे शामिल करें?
कब खाएं : शतावरी की जड़ को प्रेगनेंसी के आखिरी तिमाही में सेवन करने की सलाह दी जाती है। प्रेगनेंसी के साथ ही प्रसव के बाद अगले तीन महीने तक इसका सेवन किया जा सकता है। ध्यान रहे कि गर्भावस्था में शतावरी का सेवन सावधानी के साथ करने पर जोर दिया गया है। साथ ही इसका सेवन पहली तिमाही में बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए (6) (9)। इसकी अनदेखी से प्रेगनेंसी में शता���री के फायदे की जगह नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
कितना खाएं : शतावरी का सेवन एक कप करने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि एक कप शतावरी का सेवन करने से गर्भवतियों को जरूरी पोषक तत्व मिल सकते हैं (11)। यहां एक कप मात्रा सब्जी के रूप में बताई गई है। वहीं, चूर्ण व पाउडर के रूप में इसका सेवन करते समय कितनी मात्रा ली जानी चाहिए यह स्पष्ट नहीं है। इतना जरूर साफ है कि अधिक मात्रा में इसका सेवन करने से गर्भपात जैसे गंभीर परिणाम का सामना करना पड़ सकता है (9)। वैसे करीब 10 g तक शतावरी के पाउडर का सेवन अन्य हर्बल दवाओं के साथ किया जा सकता है (13), लेकिन इसका इस्तेमाल करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
कैसे खाएं : शतावरी का उपयोग करना बहुत आसान है। इसे सब्जी से लेकर सलाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। आइए, शतावरी के उपयोग के बारे में जानते हैं-
शतावरी का सेवन ताजे जूस के रूप में कर सकते हैं।
शतावरी को उबाल कर उपयोग में लाया जा सकता है।
हरी सलाद के रूप में भी शतावरी का सेवन किया जा सकता है।
शतावरी की जड़ से बने चूर्ण व शतावरी पाउडर को सूप में मिलाकर उपयोग में लाया जा सकता है।
शतावरी की जड़ से बने पाउडर को दूध में मिलाकर भी पी सकते हैं।
अब हम प्रेगनेंसी में शतावरी के नुकसान के बारे में बता रहे हैं।
गर्भावस्था में शतावरी के नुकसान – Side Effects of Shatavari in Pregnancy in Hindi
गर्भावस्था में शतावरी के फायदे के बारे में तो हम बता ही चुके हैं, लेकिन ध्यान रखें कि इसका अधिक मात्रा में सेवन कई समस्याओं का कारण भी बन सकता है। जी हां, गर्भावस्था में शतावरी के नुकसान भी हो सकते हैं। यही वजह है कि गर्भावस्था में इसका सेवन सावधानी के साथ करने की सलाह दी जाती है (14) (2)।
इसका सेवन करने से होने वाले गर्भस्थ शिशु को क्षति पहुंचा सकती है।
शिशु के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
बच्चे के वजन और लंबाई पर असर पड़ सकता है।
पैरों में सूजन आ सकती है।
यह तो अब आप जान ही गए हैं कि गर्भावस्था में शतावरी के फायदे के साथ ही कई नुकसान भी हैं। ऐसे में पहले ��स लेख में बताए गए प्रेगनेंसी में शतावरी के नुकसान और फायदे दोनों को अच्छे से समझकर ही सूझबूझ के साथ इसे अपने आहार में शामिल करें। जैसा कि आप जान ही गए हैं कि गर्भावस्था में शतावरी के नुकसान से बचने के लिए कम से कम मात्रा में इसका सेवन किया जाना चाहिए। ऐसे में गर्भावस्था में शतावरी का सेवन करके इसका लाभ लेने के लिए एक बार डॉक्टर से भी परामर्श ले सकते हैं। यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं। साथ ही प्रेगनेंसी में शतावरी के सेवन से संबंधित कोई सवाल आपके जहन में हों, तो उसे आप कमेंट बॉक्स के माध्यम से हम तक पहुंचा सकते हैं।
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vinita pangeni
विनिता पंगेनी ने एनएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन में बीए ऑनर्स और एमए किया है। टेलीविजन और डिजिटल मीडिया में काम करते हुए इन्हें करीब चार साल हो गए हैं। इन्हें उत्तराखंड के कई पॉलिटिकल लीडर और लोकल कलाकारों के इंटरव्यू लेना और लेखन का अनुभव है। विशेष कर इन्हें आम लोगों से जुड़ी रिपोर्ट्स करना और उस पर लेख लिखना पसंद है। इसके अलावा, इन्हें बाइक चलाना, नई जगह घूमना और नए लोगों से मिलकर उनके जीवन के अनुभव जानना अच्छा लगता है।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/pregnancy-me-shatavari-khana-chahiye-ya-nahi-in-hindi/
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क्या गर्भावस्था में पपीता खाना सुरक्षित है? – Papaya for Pregnancy in Hindi
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क्या गर्भावस्था में पपीता खाना सुरक्षित है? – Papaya for Pregnancy in Hindi
क्या गर्भावस्था में पपीता खाना सुरक्षित है? – Papaya for Pregnancy in Hindi Saral Jain Hyderabd040-395603080 January 8, 2020
गर्भावस्था का समय महिला के साथ-साथ गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिए नाजुक होता है। इस स्थिति में दोनों को पर्याप्त देखभाल के साथ ही अच्छे पोषण की भी जरूरत होती है। अच्छे पोषण के लिए फल व सब्जियों पर खास ध्यान दिया जाता है, लेकिन क्या गर्भावस्था में सभी फल व सब्जियां सुरक्षित होती हैं? कुछ ऐसा ही संदेह पपीते को लेकर है। कई लोगों के अनुसार पपीते को गर्भावस्था के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है, यह जानने के लिए स्टाइलक्रेज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि क्या प्रेगनेंसी में पपीता खाना चाहिए? अगर हां, तो कैसे? साथ ही यह भी जानेंगे कि गर्भावस्था के दौरान पपीता खाने से किस-किस प्रकार के प्रभाव नजर आ सकते हैं। साथ ही यह जानना भी जरूरी है कि सभी की गर्भावस्था अलग-अलग होती है। इसलिए, पपीता हर किसी को सूट करे संभव नहीं है।
आर्टिकल में सबसे पहले हम यह जानते हैं कि प्रेगनेंसी में पपीता खाना सुरक्षित है या नहीं।
क्या गर्भावस्था में पपीता खाना सुरक्षित है?
अभी तक सभी की यही मान्यता रही है कि गर्भावस्था के दाैरान पपीते या पपीते के पत्ते का सेवन करने से गर्भपात हो सकता है या फिर भ्रूण को नुकसान हो सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या प्रेगनेंसी में पपीता खाना चाहिए? एनीसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफार्मेशन) ने गर्भावस्था में पपीता खाने के संबंध में एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है। यह शोध चूहों पर किया गया था। रिसर्च के दौरान पाया गया कि पका हुआ पपीता खाने से किसी प्रकार का दुष्प्रभाव नजर नहीं आए। इसलिए, इस आधार पर कहा जा सकता है कि गर्भावस्था में पपीता खाना सुरक्षित हो सकता है। साथ ही शोध में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि प्रेगनेंसी में कच्चा पपीता नहीं खाना चाहिए, क्योंकि उसके हानिकारक परिणाम देखने मिल सकते हैं (1)। इस वैज्ञानिक प्रमाण के बावजूद हम यही कहेंगे कि पके हुए पपीते का सेवन डॉक्टर से पूछकर ही करना चाहिए।
यह तो स्पष्ट हो गया कि प्रेगनेंसी में पपीता खा सकते हैं। आगे हम प्रेगनेंसी में पपीता खाने के फायदे बता रहे हैं।
प्रेगनेंसी में पपीता खाने के फायदे- Benefits of Eating Papaya in Pregnancy In Hindi
प्रेगनेंसी में पपीता खा सकते हैं, यह जानने के बाद मन में तमाम तरह के सवाल उठना लाजमी है कि प्रेगनेंसी में पपीता खाने के लाभ क्या-क्या हो सकते हैं। यहां हम कुछ ऐसे ही प्रमुख फायदों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
1. रोग प्रतिरोध क्षमता को बेहतर करे
गर्भावस्था में पपीता खाना प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर करने का सुरक्षित तरीका हो सकता है। जर्नल ऑफ मेडिसिनल प्लांट्स स्टडी के शोध के अनुसार, पपीते में एंटीऑक्सीडेंट के साथ ही विटामिन-ए और विटामिन-सी भी पाया जाता है। पपीते में पाए जाने वाले ये पाेषक तत्व खांसी और जुकाम जैसी कई बीमारियों से लड़ने और उनके प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं (2)।
2. मधुमेह में पपीते के फायदे
कुछ गर्भवती महिलाओं को मधुमेह होने की समस्या रहती है। इससे निपटने के लिए पपीते का सेवन किया जा सकता है। एक शोध के अनुसार, पपीता विटामिन, प्रोटीन, पॉलीसेकेराइड, लेक्टिन, सैपोनिन और फ्लेवोनोइड से भरपूर होता है और ये सभी कंपाउंड मधुमेह से बचाने में मदद कर सकते हैं (3)। एक अन्य शोध में पाया गया कि पपीते में फाइबर पाया जाता है। इसे ग्लाइसेमिक इंडेक्स (रक्त में मौजूद शुगर के स्तर को मापने की इकाई) में मध्यम स्तर पर रखा गया है। इसका मतलब यह है कि पपीता शुगर के स्तर को बढ़ने से रोकने और इसे नियंत्रित करने में मददगार हो सकता है (4)।
3. मार्निंग ��िकनेस की अवस्था में लाभदायक
प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान मतली और उल्टी की समस्या एक आम बात है। इसे मेडिकल भाषा में मॉर्निंग सिकनेस कहा जाता है, क्योंकि ऐसा अक्सर सुबह होते है, लेकिन कुछ गर्भवती महिलाओं को यह समस्या दिनभर रह सकती है (5)। डिपार्टमेंट ऑफ फूड साइंस एंड न्यूट्रीशियन द्वारा किए गए शोध में पाया गया कि भोजन के बाद पपीते के सेवन से पाचन में सुधार हो सकता है। पपीते के सेवन से इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व और गुणों के कारण गर्भवती महिलाओं में मतली, उल्टी और मॉर्निंग सिकनेस को रोकने में मदद मिल सकती है (6)। हालांकि, अभी यह शोध का विषय है कि ये समस्याएं पपीते में पाए जाने वाले किन गुणों के कारण दूर हो सकती हैं।
4. फोलिक एसिड से भरपूर
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान फोलेट (फोलिक एसिड) की जरूरत होती है। यह शिशुओं को न्यूरल ट्यूब दोष (मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी के जन्म दोष) और गर्भवती महिला को एनीमिया से बचाने में मदद कर सकता है। इस समस्या को दूर करने और फोलिक की अच्छी मात्रा प्राप्त करने के लिए पपीते का सेवन लाभदायक हो सकता है। मैक्सिको में किये गये शोध के अनुसार, पपीता में फोलेट पाया जाता है। इसके सेवन से गर्भवती महिलाएं फाेलेट को आसानी से प्राप्त कर सकती हैं (7)। एक मध्यम आकार के पपीते में लगभग 116 मिलीग्राम फोलिक एसिड की मात्रा पाई जाती है (8)।
गर्भावस्था में पके पपीते से होने वाले लाभ जानने के बाद अब हम कच्चे पपीते से होने वाले नुकसान के बारे में बात करते हैं।
गर्भावस्था में कच्चा पपीता खाने के जोखिम कारक
जहां एक ओर गर्भावस्था में पपीता फायदेमंद हो सकता है, तो वहीं कच्चे पपीते का सेवन कई प्रकार के जोखिमों का कारण बन सकता है। यहां हम कच्चे पपीते से होने वाले जोखिम कारकों के बारे में ही बता रहे हैं।
एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित चूहों पर किए गए एक शोध के अनुसार, कच्चे पपीते में लेटेक्स (latex) नामक कंपाउंड पाया जाता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों को संकुचित करने का कारण बन सकता है, जिसे गर्भावस्था में असुरक्षित माना जाता है (1)।
कच्चे पपीते में एंटीफर्टिलिटी गुण पाए जाते हैं, जिस कारण यह गर्भधारण करने में बाधा उत्पन्न करने के साथ ही गर्भपात की समस्या का कारण बन सकता है (9)।
एक वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार पपीता एक दूधिया लेटेक्स सैप का उत्पादन करता है, जिसमें पपाइन और काइमोपैन शामिल हैं। ये यौगिक त्वचा संबंधी कई परेशानी का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा, जिनकी त्वचा संवेदनशील होती है या फिर जिन्हें लेटेक्स एलर्जी की समस्या है उन्हें कच्चे पपीते के कारण एलर्जी होने की आशंका रहती है (10)।
कच्चे पपीते के दुष्प्रभाव जानने के बाद आर्टिकल में आगे हम गर्भावस्था में पपीता खाने से होने वाले नुकसान के बारे में बता रहे हैं।
गर्भावस्था में पपीता खाने के दुष्प्रभाव
कुछ शोधों के अनुसार गर्भावस्था में पपीता खाने के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स के शोधकर्ताओं ने शोध में पाया कि तीन दिन तक लगातार पपीते का सेवन गर्भपात का कारण बन सकता है (11)।
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स के शोधकर्ताओं ने शोध में यह भी पाया कि पीपते में पपाइन (Papain) नामक रसायन पाया जाता है, जो भ्रूण के विकास को रोक सकता है (11)। साथ ही पपाइन भ्रूण के लिए टॉक्सिक यानी जहर का काम भी कर सकता है (12)।
भोजन से पहले और बाद में पपीता का सेवन रक्त शर्करा के स्तर को कम कर सकता है। इसलिए्, अगर कोई गर्भवती महिला मधुमेह की दवा ले रही है, तो उसे डॉक्टर की सलाह पर ही पपीते का सेवन करना चाहिए (12)।
दोस्तों, आपने इस आर्टिकल में जाना कि अगर गर्भावस्था में पपीता लिया जाता है, तो उसके क्या-क्या परिणाम हो सकते हैं। साथ ही क्या गर्भावस्था में पपीता खाना चाहिए, इसका जवाब आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मिल ही गया होगा। यह तो स्पष्ट हो गया है कि जहां पपीता गर्भवती महिला और भ्रूण के लिए फायदेमंद है, वहीं दूसरी ओर इसके अधिक सेवन से कई नुकसान भी जुड़े हैं। अगर आप गर्भावस्था में पपीता खाना चाहती हैं या फिर इसे अपनी डाइट में शामिल करना चाहती हैं, तो बेहतर होगा कि पहले डॉक्टर से सलाह ली जाए। अगर आपके मन में अभी भी पपीते को लेकर कोई सवाल है, तो उसे नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हमारे साथ साझा करें। हम उस संबंध में विशेषज्ञों की राय आपके साथ शेयर करेंगे।
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Saral Jain
सरल जैन ने श्री रामानन्दाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, राजस्थान से संस्कृत और जैन दर्शन में बीए और डॉ. सी. वी. रमन विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ से पत्रकारिता में बीए किया है। सरल को इलेक्ट्रानिक मीडिया का लगभग 8 वर्षों का एवं प्रिंट मीडिया का एक साल का अनुभव है। इन्होंने 3 साल तक टीवी चैनल के कई कार्यक्रमों में एंकर की भूमिका भी निभाई है। इन्हें फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, एडवंचर व वाइल्ड लाइफ शूट, कैंपिंग व घूमना पसंद है। सरल जैन संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी व कन्नड़ भाषाओं के जानकार हैं।
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सीताफल के 10 फायदे और नुकसान – Custard Apple (Sitafal) Benefits and Side Effects in Hindi
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सीताफल के 10 फायदे और नुकसान – Custard Apple (Sitafal) Benefits and Side Effects in Hindi
सीताफल के 10 फायदे और न���कसान – Custard Apple (Sitafal) Benefits and Side Effects in Hindi Somendra Singh Hyderabd040-395603080 November 15, 2019
हमारे आसपास कई प्रकार के फल पाए जाते हैं, जिनमें से सीताफल भी प्रमुख है। सीताफल का सेवन व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य में होने वाली कई खामियों में कुछ हद तक सुधार कर सकता है, लेकिन यह लेख में बताई जा रही स्वास्थ्य समस्याओं का सटीक उपचार नहीं है। हां, यह आपको बीमार होने से बचा जरूर सकता है। स्टाइलक्रेज का यह लेख, सीताफल से होने वाले संभावित स्वास्थ्य लाभ के बारे में है। सीताफल खाने के फायदे के अलावा इसके कुछ नुकसान भी हैं। इस लेख में सीताफल खाने के फायदे के साथ आपको सीताफल खाने के नुकसान के बारे में भी जानकारी दी जाएगी।
आइए सबसे पहले जानते हैं कि सीताफल ��्या है।
विषय सूची
सीताफल क्या है? – What is Custard Apple in Hindi
सीताफल एक स्वादिष्ट फल है, जो आसानी से फलों की दुकान में मिल जाएगा। इसकी बाहरी त्वचा हरे रंग की होती है, जो एक आवरण की तरह फल के अंदर मौजूद गूदे को ढककर रखती है। सीताफल को शुगर एप्पल और शरीफा के नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम एनोना स्क्वैमोसा (Annona squamosa) है। यह फल जब पक जाता है, तब इसे खाने के इस्तेमाल किया जाता है। सीताफल खाने के फायदे नीचे बताए जा रहा हैं। आप यहां दी गई जानकारी को ध्यानपूर्वक पढ़ें।
सीताफल के फायदे – Benefits of Custard Apple (Sitafal) in Hindi
स्वास्थ्य के लिए सीताफल के फायदे कुछ इस प्रकार हैं।
1. स्वस्थ वजन के लिए
अगर कोई अपने वजन से परेशान है, तो इस स्थिति में सीताफल मदद कर सकता है। दरअसल, कम वजन होने का एक कारण यह भी है कि शरीर को जितनी ऊर्जा प्राप्त होती है, उससे कहीं ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है। वहीं, सीताफल को एक बेहतर ऊर्जा स्रोत वाले फल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जो वजन बढ़ाने में मदद कर सकता है (1), (2)। ध्यान रहे कि सीताफल के साथ-साथ अन्य डाइट व नियमित व्यायाम पर ध्यान देना भी जरूरी है।
2. अस्थमा के लिए
अस्थमा ऐसी मेडिकल कंडीशन है, जो इन्फ्लेमेशन (फेफड़ों के रास्ते में सूजन) के कारण होती है (3)। यहां सीताफल के प्रयोग से कुछ हद तक राहत मिल सकती है। यह एक बेहतरीन एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण वाला फल है (4)। एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, एंटी-इंफ्लेमेटरी क्रिया अस्थमा के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती है (5)। इसके लिए सीताफल के अर्क का सेवन किया जा सकता है।
3. हार्ट अटैक के खतरे को रोकने के लिए
हार्ट अटैक के खतरे को कम करने के लिए भी सीताफल का उपयोग किया जा सकता है। दरअसल, सीताफल में विटामिन-बी6 की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है (6)। एक डॉक्टरी रिसर्च के अनुसार, विटामिन-बी6 का सेवन, हृदय रोग के खतरे को कम कर सकता है (7)। इसमें हार्ट अटैक भी शामिल है।
4. पाचन स्वास्थ्य के लिए
अगर कोई पाचन प्रक्रिया को बेहतर रखना चाहता है, तो इस स्थिति में भी सीताफल काम आ सकता है। सीताफल खाने के फायदे में फाइबर की पूर्ति भी शामिल है (1)। वहीं, फाइबर की पूर्ति शरीर की पाचन क्रिया में भी सुधार करती है और साथ ही यह कब्ज की समस्या से भी लोगों को छुटकारा दिलाती है (8)।
5. डायबिटीज के उपचार में
डायबिटीज की स्थिति में सीताफल के लाभ उपयोग में लिए जा सकते हैं। दरअसल, सीताफल में एंटी-डायबिटिक गुण पाया जाता है। यह ब्लड ग्लूकोज के स्तर में सुधार करता है और डायबिटीज के लिए जिम्मेदार विभिन्न जोखिम को भी रोकने में प्रभावी रूप से कार्य कर सकता है (9)। इसके लिए सीताफल के गूदे की स्मूदी का सेवन किया जा सकता है। डायबिटीज में सीताफल लक्षणों को कम कर सकता है, उपचार नहीं कर सकता। बेहतर उपचार के लिए डॉक्टर की सलाह जरूरी है।
6. ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए
ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाए रखने के लिए भी सीताफल का उपयोग किया जा सकता है। सीताफल में कुछ मात्रा मैग्नीशियम की होती है (1)। अगर किसी को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, तो सीताफल में मौजूद मैग्नीशियम के सेवन के जरिए उसे कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है। यह हाई ब्लड प्रेशर के कारण हृदय रोग और स्ट्रोक के खतरे को भी कम कर सकता है (10)।
7. कोलेस्ट्रोल को कम करने में
अगर कोलेस्ट्रोल के स्तर में अनावश्यक रूप से बढ़ोत्तरी हो जाए, तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। कोलेस्ट्रोल के स्तर को संतुलित बनाए रखने के लिए सीताफल को इस्तेमाल में ला सकते हैं। दरअसल, इसमें नियासिन विटामिन की मात्रा पाई जाती है (1)। नियासिन विटामिन का सेवन कोलेस्ट्रोल स्तर को संतुलित करके हृदय रोग, स्ट्रोक और हार्ट अटैक से बचाए रखने में लोगों की मदद कर सकता है (11)। ध्यान रहे कि आप कोलेस्ट्रोल की समस्या से पीड़ित हैं, तो घरेलू उपचार के साथ डॉक्टरी उपचार जरूर करवाएं।
8. एनीमिया को ठीक करने में
एनीमिया से बचने के लिए भी सीताफल खाने के लाभ देखे जा सकते हैं। एनीमिया एक मेडिकल कंडीशन है, जिसमें शरीर में रेड ब्लड सेल्स की कमी हो जाती है। ऐसे में व्यक्ति के शरीर के सभी हिस्सों में खून के साथ ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा पहुंचने में परेशानी होती है। वहीं, सीताफल में आयरन व फोलेट की भी पर्याप्त मात्रा पाई जाती है और एनीमिया में आयरन व फोलेट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है (1), (12)। इस प्रकार सीताफल के प्रयोग से एनीमिया के कुछ लक्षणों को कम किया जा सकता है। वहीं, अगर आप स्वस्थ हैं, तो एनीमिया से बचे रहे सकते हैं।
9. प्रेगनेंसी में सीताफल का सेवन
प्रेगनेंसी की स्थिति में भी सीताफल में मौजूद पोषक तत्व के फायदे देखे जा सकते हैं। दरअसल, सीताफल में आयरन व फोलेट की मात्रा पाई जाती है (1)। ये पोषक तत्व गर्भावस्था में एनीमिया को रोकने और न्यूरल ट्यूब दोष (Neural tube defect – बच्चों की रीढ़ और मस्तिष्क में जन्म के समय होने वाला दोष) से मां को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं (12), (13)। हालांकि, गर्भावस्था में सीताफल का सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह अवश्य लें, क्योंकि गर्भावस्था में इसके सेवन को लेकर अभी पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।
10. स्वस्थ त्वचा और बालों के लिए
त्वचा को निखार देने के लिए भी सीताफल का सेवन काम आ सकता है। सीताफल में विटामिन-सी की मात्रा पाई जाती है (1)। विटामिन-सी त्वचा को सूर्य की हानिकारक पैराबैंगनी किरणों से बचाने में मदद कर सकता है (14)। साथ ही सीताफल में जिंक, आयरन, कैल्शियम व मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो बालों के लिए लाभदायक हो सकते हैं (15)। बेहतर होगा कि आप त्वचा विशेषज्ञ की सलाह पर ही इसका प्रयोग करें।
सीताफल के फायदे जानने के बाद अब लेख के अगले भाग में जानते हैं कि सीताफल में कौन-कौन से पोषक तत्व मौजूद होते हैं।
सीताफल के पौष्टिक तत्व – Custard Apple Nutritional Value in Hindi
सीताफल में निम्नलिखित पोषक तत्व पाए जाते हैं (1)।
पौष्टिक तत्व मात्रा प्रति 100 ग्राम जल 73.23g ऊर्जा 94kcal ऊर्जा 393kJ प्रोटीन 2.06g टोटल लिपिड 0.29g ऐश (Ash) 0.78g कार्बोहाइड्रेट 23.64g फाइबर, कुल डाइटरी 4.4g मिनरल कैल्शियम 24mg आयरन 0.6mg मैग्नीशियम 21mg फास्फोरस 32mg पोटैशियम 247mg सोडियम 9mg जिंक 0.1mg कॉपर 0.086mg सेलेनियम 0.6μg विटामिन विटामिन सी, कुल एस्कॉर्बिक एसिड 36.3mg थायमिन 0.11mg राइबोफ्लेविन 0.113mg नियासिन 0.883mg पैंटोथैनिक एसिड 0.226mg विटामिन बी-6 0.2mg फोलेट (कुल,डीएफई,फूड) 14μg विटामिन ए, आईयू 6IU लिपिड फैटी एसिड टोटल, सैचुरेटेड 0.048g फैटी एसिड, टोटल मोनोअनसैचुरेटेड 0.114g फैटी एसिड, टोटल पॉलीअनसैचुरेटेड 0.04g ट्रिपटोफन 0.01g लाईसीन 0.005g मेथियोनीन 0.007g
लेख के अगले भाग में जानते हैं कि सीताफल को कैसे उपयोग किया जा सकता है।
सीताफल का उपयोग – How to Use Custard Apple (Sugar Apple) in Hindi
सीताफल को निम्न प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है-
सीताफल के अर्क का सेवन किया जा सकता है।
सीताफल के गूदे से बीज को निकालकर, इसकी स्मूदी बनाई जा सकती है।
सीताफल की सब्जी बनाकर खाई जा सकती है।
मिल्क शेक के जरिए भी सीताफल का सेवन कर सकते हैं(16)।
सीताफल खाने के कुछ नुकसान भी हो सकते हैं, जिसके बारे में लेख के अगले भाग में जानकारी दी जा रही है।
सीताफल के नुकसान – Side Effects of Custard Apple (Sitafal) in Hindi
सीताफल के कुछ खास दुष्प्रभाव नहीं हैं और इस संबंध में अभी रिसर्च भी कम हुई है। अभी तक की उपलब्ध जानकारी के अनुसार अधिक मात्रा में सीताफल खाने से निम्न प्रकार के नुकसान हो सकते हैं:
सीताफल में मैग्नीशियम की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है, जिसका अधिक सेवन मतली और पेट दर्द का कारण बन सकती है(1), (10)।
सीताफल खाते समय इसके बीज को निकाल लें, नहीं तो यह गले में फंस सकता है, जिससे दम भी घुट सकता है।
सीताफल का सेवन करने से पहले यह देख लें कि यह किसी भी प्रकार से चिड़ियां या किसी कीट से संक्रमित न हो। सीताफल का सेवन ऊपर बताई गई स्वास्थ्य समस्या का पुख्ता इलाज नहीं है, बल्कि यह उसे ठीक करने में और उसके खतरे को कम करने में मदद कर सकता है। सीताफल को अपनी डाइट में शामिल करने के लिए लोग ऊपर बताई गई विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं। सीताफल के लाभ या सेवन से जुड़ा अगर कोई सवाल आप हमसे पूछना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के जरिए हम तक अपनी बात अवश्य पहुंचाएं। साथ ही अगर कोई गंभीर बीमारी का उपचार करा रहा है, तो उस स्थिति में इसका सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
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Somendra Singh
सोमेंद्र ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 2019 में बी.वोक इन मीडिया स्टडीज की है। पढ़ाई के दौरान ही इन्होंने पढ़ाई से अतिरिक्त समय बचाकर काम करना शुरू कर दिया था। इस दौरान सोमेंद्र ने 5 वेबसाइट पर समाचार लेखन से लेकर इन्हें पब्लिश करने का काम भी किया। यह मुख्य रूप से राजनीति, मनोरंजन और लाइफस्टइल पर लिखना पसंद करते हैं। सोमेंद्र को फोटोग्राफी का भी शौक है और इन्होंने इस क्षेत्र में कई पुरस्कार भी जीते हैं। सोमेंद्र को वीडियो एडिटिंग की भी अच्छी जानकारी है। इन्हें एक्शन और डिटेक्टिव टाइप की फिल्में देखना और घूमना पसंद है।
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चीज़ खाने के फायदे और नुकसान – Cheese Benefits and Side Effects in Hindi
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चीज़ खाने के फायदे और नुकसान – Cheese Benefits and Side Effects in Hindi
Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 September 30, 2019
पनीर और मक्खन के साथ-साथ अब चीज़ का चलन भी बढ़ गया है। बाजार में ऐसी कई डिश मिलती हैं, जिसमें चीज़ इस्तेमाल किया जाता है। कुछ लोग तो एक्स्ट्रा चीज़ के दीवाने हैं। वहीं, घर में बनने वाले खाने-पीने के सामान में भी चीज़ का इस्तेमाल अधिक होने लगा है। संभव है कि आप भी चीज़ खाने वाले शौकिनों की लिस्ट में शामिल हो, लेकिन क्या आप इस चीज़ के फायदों से परिचित हैं? अगर आपको ऐसा लगता है कि चीज़ का काम सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाना है, तो आप आधा सच जानते हैं, जबकि पूरा सच यह है कि स्वास्थ्य के लिए चीज़ काम की चीज है। स्टाइलक्रेज के इस आर्टिकल में हम इसी बारे में बात करेंगे। हम चीज़ का उपयोग और चीज़ खाने के फायदे के बारे में जानकारी देंगे।
विषय सूची
चीज़ क्या है? – What is Cheese in Hindi
अगर चीज़ को पनीर का आधुनिक रूप कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। पनीर की तरह यह भी एक तरह का डेयरी पदार्थ है, जिसे दूध से बनाया जाता है। जहां पनीर को बनाने के लिए दूध में खटास का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, चीज़ के निर्माण के लिए दूध में बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाता है। चीज़ दो तरह के होते है, सॉफ्ट और हार्ड चीज़। यह दिखने में पनीर की तरह होता है, लेकिन स्वाद में पनीर से बिल्कुल अलग और मीठा होता है। यह कई तरह के पोषक तत्व से भरपूर होता है, जो कि आपके लिए लाभदायक हो सकता है। इसके पोषक तत्वों के बारे में हम आगे लेख में जिक्र करेंगे।
चलिए अब चीज़ खाने के फायदे के बारे में जानते हैं।
चीज़ के फायदे – Benefits of Cheese in Hindi
चीज़ से कई तरह के फायदे हो सकते हैं, जिसकी जानकारी इस लेख में दी जा रही है।
1. कैविटी
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कैविटी के कारण दांतों के खराब होने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में चीज़ के सेवन से दांतों में कैविटी होने के जोखिम को कम किया जा सकता है। चीज़ में कैरोस्टेटिक गुण पाए जाते हैं, जो कैविटी को कम करने का काम कर सकते हैं। साथ ही यह कैल्शियम का अच्छा स्रोत होता है, जो आपके दांत को लाभ पहुंचाने में फायदेमंद हो सकता है (1)।
2. कैंसर
एक शोध के अनुसार, चीज़ का सेवन करने से कोलोरेक्टल व ब्रैस्ट कैंसर आदि से बचा जा सकता है। चीज़ में कैल्शियम व विटामिन-डी जैसे गुण पाए जाते हैं, जो कैंसर से हमारी रक्षा करते हैं (2) (3) (4) ।
3. वजन बढ़ाने के लिए
अगर आप दुबले-पतले हैं, तो आपके वजन को बढ़ाने में चीज़ अहम भूमिका निभा सकता है। चीज़ में प्रोटीन, कैलोरी और वसा भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो आपके वजन को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं (5)।
4. हड्डियों की मजबूती के लिए
चीज़ के लाभ हड्डियों के लिए भी हो सकते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, चीज़ में भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है, जो हड्डियों को मजबूत करने का काम करता है। इसके कारण ऑस्टियोपोरोसिस जैसे हड्डियों से संबंधित रोगों को दूर रखने में भी मदद मिल सकती है (6)। ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां कमजोर हो जाती है और उनके टूटने की आशंका ��नी रहती है।
6. उच्च रक्तचाप के लिए
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रक्तचाप बढ़ने से हृदय संबंधी विकार उत्पन्न हो सकते हैं। ऐसे में चीज़ का उपयोग इस समस्या को कम करने में सहायक हो सकता है। चीज़ को रक्तचाप को कम करने वाली डैश (DASH) डाइट में भी शामिल किया जाता है। दरअसल, चीज़ में सोडियम और प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है, जो रक्तचाप को नियंत्रण करने का काम कर सकते हैं (7)। इसलिए, चीज़ के लाभ उच्च रक्तचाप के लिए भी माने जा सकते हैं।
7. प्रेगनेंसी में लाभदायक
गर्भावस्था के दौरान चीज़ खाने को लेकर भी आपके मन में कुछ संशय जरूर होगा। अगर ऐसा है, तो यहां आपको इसका जवाब मिल जाएगा। गर्भावस्था के दौरान सॉफ्ट चीज़ के जगह हार्ड चीज़ का सेवन करना ज्यादा सुरक्षित हो सकता है (8)। चीज़ में कैल्शियम, विटामिन और मिनरल भरपूर मात्रा में होते हैं, जो भ्रूण की हड्डियों की संरचना में मदद कर सकते हैं (2) (9)। साथ ही जन्म दोष (रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क से संबंधित) की समस्या से भी छुटकार दिलाने का काम कर सकते हैं।
8. प्री मेंस्ट्रुएशन सिंड्रोम
लगभग हर युवती को प्री मेंस्ट्रुएशन सिंड्रोम से गुजरना पड़ता है। पीरियड्स से हफ्ते भर पहले होने वाले शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलाव को प्री मेंस्ट्रुएशन सिंड्रोम कहा जाता है। इस अवस्था में युवती को चिड़चिड़ापन, पेट में दर्द व सिरदर्द हो सकता है। एक वैज्ञानिक रिसर्च के अनुसार, चीज़ के सेवन से प्री मेंस्ट्रुएशन सिंड्रोम के समय होने वाली थकान, अवसाद और खाने की लालसा को कम किया जा सकता है। यह चीज़ में पाई जाने वाली कैल्शियम की मात्रा के कारण संभव हो पाता है (10)।
9. माइग्रेन
एक शोध के अनुसार, माइग्रेन की समस्या को कम करने के लिए कुछ खाद्य पदार्थों का खासतौर पर जिक्र किया गया है। इसमें चीज़ को भी शामिल किया गया है। चीज़ में राइबोफ्लेविन पाए जाते हैं, जो माइग्रेन और माइग्रेन से होने वाले दर्द से राहत दिलाने का काम कर सकते हैं (2) (11)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि चीज़ के फायदे माइग्रेन के लिए भी हो सकते हैं।
10. प्रतिरक्षा प्रणाली
चीज़ के उपयोग से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है। मिनस फ्रैस्कल नामक चीज़ प्रोबायोटिक से भरपूर होता है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर करने में मदद कर सकता है। साथ ही यह इन्फेक्शन की समस्या से भी निजात दिलाने का काम कर सकता है। यह मुख्य रूप से एथलीटों के लिए लाभदायक हो सकता है (12)।
11. नींद में मदद
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अगर आपको अनिद्रा की समस्या है, तो चीज़ का सेवन आपके लिए लाभदायक हो सकता है। चीज़ में मेलाटोनिन पाया जाता है। यह एक प्रकार का हार्मोन होता है, जो नींद के लिए मददगार साबित हो सकता है। इसलिए, अनिद्रा की समस्या से राहत पाने के लिए चीज़ का उपयोग किया जा सकता है (13)।
12. चमकती त्वचा के लिए
त्वचा की रंगत को निखारने के लिए चीज़ उपयोग किया जा सकता है। एक शोध में पाया गया है कि विटामिन-बी त्वचा के रंग को निखारने का काम कर सकता है (14)। वहीं, अन्य शोध के अनुसार, चीज़ में विटामिन-बी की मात्रा पाई जाती है (2)। इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि चीज़ के लाभ त्वचा के लिए भी हो सकते हैं।
13. बाल स्वास्थ्य
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बालों के स्वास्थ्य के लिए चीज़ का उपयोग लाभदायक हो सकता है। चीज़ में विटामिन बी, जिंक, आयरन, मैग्नीशियम और कैल्शियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है (2), जो बालों को झड़ने से रोकने में मदद कर सकते हैं (15)।
चीज़ में मौजूद पौष्टिक तत्वों के बारे में जानने के लिए लेख के अगले भाग को पढ़ें।
चीज़ के पौष्टिक तत्व – Cheese Nutritional Value in Hindi
चीज़ में कई तरह के पौष्टिक तत्व होते हैं, जिस कारण यह आपके लिए फायदेमंद होता है। इन पौष्टिक तत्वों को हम एक चार्ट के जरिए समझा रहे हैं (2) :
पोषक कुल मात्रा पानी 36.75 g ऊर्जा 403kcal प्रोटीन 22.87g टोटल लिपिड (फैट) 33.31 g कार्बोहाइड्रेट 3.37 g शुगर, टोटल 0.48g
मिनरल
कैल्शियम Ca 710 mg आयरन, Fe 0.14mg मैग्नीशियम, mg 27mg फास्फोरस, P 455 mg पोटैशियम, K 76mg सोडियम, Na 653 mg जिंक, Zn 3.64 mg
विटामिन
थियामिन 0.029mg राइबोफ्लेविन 0.428 mg नियासिन 0.059mg विटामिन बी-6 0.066mg फोलेट, DFE 27 µg विटामिन बी -12 1.10 µg विटामिन ए, RAE 337µg विटामिन ए,।U 1242।U विटामिन ई (अल्फा-टोकोफेरोल) 0.71mg विटामिन डी (डी 2 +डी 3) 0.6 µg विटामिन डी 24 ।U विटामिन के 2.4 µg लिपिड फैटी एसिड, टोटल सैचुरेटेड 18.867 g फैटी एसिड, टोटल मोनोअनसैचुरेटेड 9.391 g फैटी एसिड, टोटल पॉलीसैचुरेटेड 0.942 g कोलेस्ट्रोल 99 mg
आइए, अब जानते हैं कि चीज़ को किस प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है।
चीज़ का उपयोग – How to Eat Cheese in Hindi
अगर आप सोच रहे है कि चीज़ कैसे खाएं, तो यह लेख आपके लिए सहायक हो सकता है। यहां हम बता रहे हैं कि चीज़ को किस-किस प्रकार से इस्तेमाल में लाया जा सकता है।
कैसे करें सेवन :
चीज़ को कई तरह से खाने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
चीज़ पिज्जा
चीज़ सैंडविच
चीज़ बॉल
चीज़ डोसा
चीज़ पराठा
चीज़ मैक्रोनी पास्ता
चीज़ गार्लिक ब्रेड
चीज़ ब्रेड पकौड़ा
कब खाए़ं :
सुबह नाश्ते के रूप में खा सकते हैं।
इसे शाम को स्नैक्स के तौर पर भी ले सकते हैं।
सुबह या दोपहर को पराठे पर लगाकर खाया जा सकता है।
कितना खाएं :
वैसे तो चीज़ खाने के लिए कोई निर्धारित मात्रा नहीं है। यह व्यक्ति के आहार क्षमता पर निर्भर करता है।
आइए, लेख के आगे भाग में चीज़ खाने के नुकसान के बारे में जानते हैं।
चीज़ के नुकसान – Side Effects of Cheese in Hindi
जैसा कि आपने ऊपर चीज़ के फायदे जाने हैं, उसी तरह चीज़ खाने के कुछ नुकसान भी हैं, जो इस प्रकार हैं :
चीज़ के सेवन से एलर्जी होने का जोखिम बढ़ सकता है (16)।
चीज़ में फैट की मात्रा ज्यादा होती है, जिस कारण इसे मधुमेह की समस्या में लेने से माना किया जाता है। इसे अधिक मात्रा में खाने से मधुमेह की समस्या उत्पन्न हो सकती है (17)।
अगर आप वजन कम करना चाहते हैं, तो चीज़ का सेवन न करें, क्योंकि इससे वजन बढ़ सकता है (5)।
संभव है कि आपके मन में चीज़ को लेकर जितने भी सवाल थे, उस सभी के जवाब मिल गए होंगे। साथ ही यह भी पता चल गया होगा कि चीज़ कासेवन करने से किन-किन समस्याओं से निकलने में मदद मिल सकती है। इस लेख को पढ़ने के बाद आप यह भी समझ गए हों कि चीज़ को किस-किस तरह से खाने के लिए उपयोग कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि हमारा यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। अगर आप इस विषय से जुड़ी किसी अन्य प्रकार की जानकारी चाहते हैं, तो आप कमेंट बॉक्स के माध्यम से हम तक पहुंचा सकते हैं।
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