#पाथेर पांचाली
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द जर्नी ऑफ लाइफ: ए मार्मिक टेल ऑफ लव, लॉस एंड रेजिलिएंस इन रूरल इंडिया - Movie Nurture
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अपराजितो फर्स्ट लुक: जीतू कमल की सत्यजीत रे से मिलती-जुलती तस्वीर देखकर हैरान फैन्स
अपराजितो फर्स्ट लुक: जीतू कमल की सत्यजीत रे से मिलती-जुलती तस्वीर देखकर हैरान फैन्स
कुछ ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें, जो कि महान फिल्म निर्माता सत्यजीत रे की मानी जाती हैं, इंटरनेट पर चर्चा कर रही हैं। और जबकि बंगाली फिल्म प्रेमी बस अपनी उत्तेजना को रोक नहीं सकते हैं, वायरल तस्वीरों में दिख रहे व्यक्ति सत्यजीत रे नहीं बल्कि अभिनेता जीतू कमल हैं। इंटरनेट पर वायरल हो रही तस्वीरों में फिल्म अपराजितो के लिए अभिनेता का पहला लुक है। अभिनेता जीतू कमल निर्देशक अनिक दत्ता की आने वाली फिल्म…
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Nawazuddin Siddiqui on the power & magic of Satyajit Ray : Bollywood News - Bollywood Hungama
Nawazuddin Siddiqui on the power & magic of Satyajit Ray : Bollywood News – Bollywood Hungama
नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के एक छात्र के रूप में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को रे की शुरुआत में पेश किया गया था। उन्होंने कहा, हमने लगातार उनकी फिल्में देखीं। यह सिनेमा की ताकत से अवगत होने का हमारा तरीका था। यह कहने के लिए दुख की बात है कि वैश्विक मंच पर किसी अन्य भारतीय फिल्म निर्माता द्वारा उस शक्ति का एहसास नहीं किया गया ��ै। ” नवाज के मेंटर अनुराग कश्यप भी नहीं? नवाज इसे एक सोच देते हैं। “हाँ, अनुराग…
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Satyajit Ray Birthday Special Pather Panchali Feluda Filmaker | जन्मदिन विशेष: सत्यजीत रे तो एक खुशबू का नाम है
Satyajit Ray Birthday Special Pather Panchali Feluda Filmaker | जन्मदिन विशेष: सत्यजीत रे तो एक खुशबू का नाम है
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आते जाते ट्रैफिक में बड़ी बेचैनी से कुछ ढूंढ रही थीं एंतोनियो की परेशान नजरें. साथ चल रहा नन्हा ब्रूनो भी पापा पर अचानक टूटी आफत से उदास हो गया था. दोनों मिलकर जल्दी से जल्दी अपनी उस प्यारी साइकिल ढूंढ लेना चाहते थे. वो साइकिल जिसे खरीदने के लिए मारिया ने जरूरत की चीजों के साथ घर की…
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सत्यजीत रे: भातर के वो डायरेक्टर जिनकी फिल्मों की नकल करते हैं एशियाई वाले | satyajit-ray-birthday-सालगिरह-ए-भारतीय-निर्देशक-जो-प्रेरणा-हॉलीवुड-उद्योग | बॉलीवुड - समाचार हिंदी में
सत्यजीत रे: भातर के वो डायरेक्टर जिनकी फिल्मों की नकल करते हैं एशियाई वाले | satyajit-ray-birthday-सालगिरह-ए-भारतीय-निर्देशक-जो-प्रेरणा-हॉलीवुड-उद्योग | बॉलीवुड – समाचार हिंदी में
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सत्यजीत रे की फिल्म का एक दृश्य। इटली के निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन (क्रिस्टोफर नोलन) ने जब सत्यजीत रे (सत्यजीत रे) की एक फिल्म देखी तो उनके दिमाग में भारतीय सिनेमा के बारे में और ज्यादा जानने की इच्छा जगी।
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Satyajit Ray की Pather Panchali बनी भारत की अब तक सर्वश्रेष्ठ फि��्म, गुरु दत्त की 'प्यासा' भी है लिस्ट में शामिल
Satyajit Ray की Pather Panchali बनी भारत की अब तक सर्वश्रेष्ठ फिल्म, गुरु दत्त की ‘प्यासा’ भी है लिस्ट में शामिल
Image Source : TWITTER_FILMHISTORY Satyajit Ray’s Pather Panchali Highlights सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ 1955 में हुई थी रिलीज दो बहनों की है कहानी Satyajit Ray Pather Panchali became India best film: जब भी भारतीय सिनेमा की शुरुआत से लेकर अब तक के सफर की बात की जाती है एक नाम जरूर सामने आता है, वह नाम है सत्यजीत रे का। जिन्होंने आज से तकरीबन 70-80 साल पहले ऐसी फिल्मों का निर्माण…
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गायत्री शक्तिपीठ में यूट्यूब लाइव के माध्यम से हुआ परिष्कार सत्र का आयोजन Divya Sandesh
#Divyasandesh
गायत्री शक्तिपीठ में यूट्यूब लाइव के माध्यम से हुआ परिष्कार सत्र का आयोजन
सहरसा। गायत्री शक्तिपीठ में यूट्यूब लाइव प्रसारण के माध्यम से रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का आयोजन किया गया। सत्र को संबोधित करते हुए डाॅ अरूण कुमार जायसवाल ने कहा कि समस्त समस्याओं,विसंगतियों,पीड़ाओं और कराह का एक हीं समाधान है वह है ईश्वर शरणागत। आवश्यकता है हम कितना समर्पित भाव रखते हैं।इसलिए अंतर्मन से प्रार्थना करें,ध्यान करें।
प्रार्थना और ध्यान हमारे अंदर के जीवनी शक्ति को बढ़ाता है।उन्होंने ज्ञान की कक्षा में एक बंगला साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की व्यक्तित्व पर आधारित एक पुस्तक “आवारा मसीहा” लेखक विष्णु प्रभाकर के संबंध में कहा शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय एक विलक्षण चरित्र केआदमी थे। वे कलकत्ता के सोनागाछी वेश्या के मोहल्ला में कोठा पर रहकर अपनी साहित्यिक रचना करते थे। वे चरित्रहीन नहीं थे। साफ-सुथरा इन्सान थे। उनका अधिकांश समय कोठे पर बीतता था।उनका सारा कागज-पेपर वहीं रहता था।वेश्याएं उन्हें अपना आदर्श मानती थी और शरतचंद्र उससे राखी बंधवाते थे।वेश्याएं कहती-लोग आपको अच्छी निगाह से नहीं देखते।आप अच्छे जगह पर जाकर रहिए न।इसपर शरतचंद्र जी कहा करते थे लोग हमें गलत समझते हैं वह हमें अच्छा लगता है।ये दुनियां उल्टी है रे।इसमें सम्मान पाना अपमान पाने से ज्यादे बदतर है। वे कहते थे-कभी फूल को देखा है।
दुनियां उसको तोड़ती है,डाल से निकालती है,सूंघती है मसलती है और पैरों के नीचे फेंककर कुचलकर निकल जाती है।यह होती है ��ूल की खुशबू, सुगंध, और रंगत का फल।
यह खबर भी पढ़ें: 8 दशक से शोरूम में कैद है ये खूबसूरत दुल्हन, सच्चाई जानकर नहीं होगा यकीन, देखें तस्वीरें
उन्होंने कहा दुनियां फूलों को बड़ा सम्मान देती है।जो माला बनाई जाती है,बनाने से पहले फूल की गट्टे में सूई डाली जाती है।फूल का पूरा अस्तित्व सूई से बनता है।यानी हर फूल को सूली पर चढ़ना पड़ता है।
वे कहते थे। इस दुनियां में जितना कम सम्मान मिले,जितना कम लोग जाने और अपने अन्तर में प्रकाशित रहे उतना ही अच्छा होता है।
उन्होंने कहा शरतचंद्र चट्टोपाध्याय कहते थे।कुछ अपनों के साथ रहने में जो सुख है वह गैरों से सम्मानित होने में नहीं है।इसी लक्षणॊं के कारण वे तवायफ के यहाँ पड़े रहते थे।कोठे पर रहना,घूमना, मस्त रहकर दारू पीना,मगन रहना। इसलिए लगता है कि विष्णु प्रभाकर ने उन्हें “आवारा मसीहा कहा”। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय बंकिमचंद चट्टोपाध्याय की तरह बंगाल के उच्चकोटि के साहित्यकार थे। उनकी एक रचना “पाथेर पांचाली” पर सत्यजीत रे ने फिल्म भी बनाए।
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उन्होंने कहा उनकी अच्छी अच्छी रचनाएँ है,अगर हम उसकी रचनाएँ पढ़ें तो जीवन को सही सही समझ पायेंगे। उक्त कार्यक्रम की जानकारी गायत्री शक्तिपीठ के सदस्य श्यामानंद लाल दास ने दी।
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जब एक इंग्लैंड दौरे से बदल गया सत्यजीत रे का जीवन, इस फिल्म ने किया प्रभावित
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जब एक इंग्लैंड दौरे से बदल गया सत्यजीत रे का जीवन, इस फिल्म ने किया प्रभावित
सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े डायरेक्टर माने जाते हैं. शायद वही एक ऐसे डायरेक्टर हैं जिन्हें विदेश में सबसे ज्यादा पहचान मिली. सत्यजीत रे ना सिर्फ एक डायरेक्टर थे बल्कि वे एक स्क्रिप्ट राइटर और एक म्यूजीशियन भी थे. सत्यजीत रे अपने आप में ही एक युनिवर्सिटी थे जिससे सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व प्रभावित हुआ. 2 मई, 1921 को कोलकाता में जन्में सत्यजीत रे के जीवन में आखिर वो कौन सा ऐसा मोड़ आया जब फिल्में बनाने के प्रति उनका रुझान बढ़ने लगा.
दरअसल बात अप्रैल 1950 की है जब सत्यजीत रे अपनी पत्नी के साथ इग्लैंड गए हुए थे. वे उस दौरान एक विदेशी विज्ञापन कंपनी में क���म किया करते थे. उन्हें कंपनी ने छह महीने के लिए हेड ऑफिस भेज�� था. कंपनी प्रबंधन को ऐसा लगा कि जब रे वापस आएंगे तो चाय और बिस्कुट के विज्ञापन बनाने के लिए पूरी तरह से निपुण हो चुके होंगे. मगर ये कोई मामुली यात्रा नहीं थी. इंग्लैंड यात्रा ने रे के जीवन में बड़ा ट्विस्ट ला दिया.
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लंदन पहुंचने के तीन दिन के अंदर उन्होंने पॉपुलर फिल्म बाइसाइकिल थीव्ज देखी. ऐड एजेंसी में नौकरी करते हुए पाथेर पांचाली बनाने का खयाल उनके मन में तो काफी समय से चल रहा था. लेकिन बाइसिकल थीव्ज देखने के बाद वे जान चुके थे कि जब भी वे फिल्म बनाएंगे तो उसकी ऐसी ही लोकेशन्स होगी. लंदन प्रवास के दौरान उन्होंने 100 के करीब फिल्में देख डालीं. इस दौरान नॉन रिएलिस्टिक सिनेमा से भी वे काफी ज्यादा प्रभावित हुए. जब वे भारत लौट रहे थे तो रास्ते में ही उन्होंने पाथेर पांचाली का पहला ट्रीटमेंट लिख डाला था.
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कई प्रभावशाली फिल्मों का किया निर्देशन
सत्यजीत रे ने अपने करियर में पाथेर पांचाली, द वर्ल्ड ऑफ अप्पू, अपराजितो, चारुलता, नायक, सोनार केला, जलसाघर और शतरंज के खिलाड़ी जैसी फिल्में बनाई. शतरंज के खिलाड़ी उनके जीवन की पहली और एकमात्र हिंदी फिल्म थी. फिल्म में संजीव कुमार और सईद जाफरी लीड रोल में थे. एक दफा सत्यजीत रे ने बताया था कि हिंदी सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह और नाना पाटेकर उनके सबसे पसंदीदा अभिनेता हैं.
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Lesser-known Facts About Godfather of Indian Cinema
Lesser-known Facts About Godfather of Indian Cinema
सत्यजीत रे का जन्म 2 मई, 1921 को कोलकाता में हुआ था। विपुल फिल्मकार कला का अध्ययन करने के लिए शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर के विश्वविद्यालय गए। रे ने 1955 में पाथेर पांचाली के साथ निर्देशन में शुरुआत की। रे के बेहतरीन कामों में से एक था एपु ट्रिलॉजी और भारतीय सिनेमा को वैश्विक परिदृश्य मे�� ले जाने में सहायता प्रदान करना। एक महान निर्देशक होने के अलावा, रे एक उत्कृष्ट लेखक, इलस्ट्रेटर, ग्राफिक…
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oscar montaz: ऑस्कर मोंटाज में दिखाई गई सत्यजीत रे की 'पाथेर पांचाली' और रहमान का गाना 'जय हो' - satyajit ray film pather panchali and a r rahman song jai ho shown in oscar montaz
oscar montaz: ऑस्कर मोंटाज में दिखाई गई सत्यजीत रे की ‘पाथेर पांचाली’ और रहमान का गाना ‘जय हो’ – satyajit ray film pather panchali and a r rahman song jai ho shown in oscar montaz
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बता दें, सत्यजीत रे को 1991 में 64वें ऑस्कर समारोह में मानद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रे की फिल्म को भारत में बनाई गई सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है।
एजेंसियां | Updated: 10 Feb 2020, 07:17:00 PM IST
ए आर रहमान
प्रतिष्ठित ऑस्कर्स फिल्म अवॉर्ड्स की रेस में भले ही भारतीय फिल्में न रही हों लेकिन इसके बावजूद समारोह में भारत के लिए बड़ा क्षण आया। ऑस्कर समारोह जिस पर…
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ऑस्कर से लेकर दादा साहेब फाल्के अवार्ड तक जीतने वाले सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी, मतलब चांद-सूरज नहीं देखे
चैतन्य भारत न्यूज सिनेमा के हर बड़े अवार्ड्स अपने नाम करने वाले सत्यजीत रे की आज ज��ंती है। उनका जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था। सत्यजीत रे ने अपनी मेहनत के दम पर आर्ट सिनेमा को जिस अंदाज में उजागर किया कि देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने उनकी प्रतिभा का लोहा माना। उनके जन्मदिन पर आइए जानते हैं सत्यजीत से जुड़ी कुछ खास बातें-
जब सत्यजीत तीन साल के ही थे जब उनके पिता सुकमार रे का निधन हो गया। मां सुप्रभा रे ने इसके बाद बहुत मुश्किलों से उन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया। प्रेसीडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र पढ़ने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रे शांति निकेतन गए और अगले पांच साल वहीं रहे। 1943 में वह कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई मशहूर किताबों के आवरण यानी कवर डिजाइन किए जिनमें जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ शामिल है। उस समय कौन जानता था कि किताबों के आवरण बनाने वाला लड़का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला पहला भारतीय फिल्मकार बन जाएगा।
रे न केवल एक बेहतरीन लेखक बल्कि अलहदा दृष्टिकोण के फिल्मकार थे। उनकी पहली फिल्म पाथेर पांचाली ने अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिसमें कान फिल्म फेस्टिवल का 'श्रेष्ठ मानवीय दस्तावेज' का सम्मान भी शामिल है। 'पाथेर पांचाली' को बनाने के लिए रे को काफी संघर्ष करना पड़ा। इस फिल्म के लिए उन्हें अपनी पत्नी के जेवर भी गिरवी रखने पड़े थे और फिर आखिरकार फिल्म की सफलता ने उनके सारे कष्ट दूर कर दिए। इस फिल्म ने समीक्षकों और दर्शकों, दोनों का दिल खुश कर दिया। कोलकाता में कई हफ्ते हाउसफुल चली इस फिल्म को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इनमें फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में मिला विशेष पुरस्कार बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट भी शामिल है।
इसके बाद तीन दशक से भी लंबे समय के दौरान सत्यजीत रे ने करीब तीन दर्जन फिल्मों का निर्देशन किया। इनमें पारस पत्थर, कंचनजंघा, महापुरुष, अपूर संसार, महानगर, चारूलता, अपराजितो, गूपी गायन-बाघा बायन शामिल हैं। 1977 में उनकी एकमात्र फिल्म शतरंज के खिलाड़ी आई। 1991 में प्रदर्शित आंगतुक सत्यजीत रे के सिने करियर की आखिरी फिल्म थी।
अपनी फिल्मों के लिए सत्यजीत रे को कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले। ��ाल 1978 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की संचालक समिति ने उन्हें विश्व के तीन सर्वकालिक निर्देशकों में से एक के रूप में सम्मानित किया। फिर भारत सरकार द्वारा फिल्म निर्माण के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए उन्हें 32 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। सत्यजीत रे दूसरे फिल्मकार थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। साल 1985 में सत्यजीत रे को हिंदी फिल्म उद्योग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1992 में उन्हें भारत रत्न भी मिला और ऑस्कर (ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट) भी। हालांकि काफी बीमार होने की वजह से वे इसे लेने खुद नहीं जा सके थे। इसके करीब एक महीने के भीतर ही 23 अप्रैल 1992 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया। Read the full article
#aboutsatyajitray#happybirthdaysatyajitray#satyajitray#satyajitrayawards#satyajitraybirthday#satyajitrayfilms#satyajitrayinstitute#satyajitraynews#सत्यजीतरे#सत्यजीतरेजन्मदिन#सत्यजीतरेदूकरियर#सत्यजीतरेफ़िल्में
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ऑस्कर से लेकर दादा साहेब फाल्के अवार्ड तक जीतने वाले सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी, मतलब चांद-सूरज नहीं देखे
चैतन्य भारत न्यूज सिनेमा के हर बड़े अवार्ड्स अपने नाम करने वाले सत्यजीत रे की आज जयंती है। उनका जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था। सत्यजीत रे ने अपनी मेहनत के दम पर आर्ट सिनेमा को जिस अंदाज में उजागर किया कि देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने उनकी प्रतिभा का लोहा माना। उनके जन्मदिन पर आइए जानते हैं सत्यजीत से जुड़ी कुछ खास बातें-
जब सत्यजीत तीन साल के ही थे जब उनके पिता सुकमार रे का निधन हो गया। मां सुप्रभा रे ने इसके बाद बहुत मुश्किलों से उन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया। प्रेसीडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र पढ़ने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रे शांति निकेतन गए और अगले पांच साल वहीं रहे। 1943 में वह कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई मशहूर किताबों के आवरण यानी कवर डिजाइन किए जिनमें जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ शामिल है। उस समय कौन जानता था कि किताबों के आवरण बनाने वाला लड़का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला पहला भारतीय फिल्मकार बन जाएगा।
रे न केवल एक बेहतरीन लेखक बल्कि अलहदा दृष्टिकोण के फिल्मकार थे। उनकी पहली फिल्म पाथेर पांचाली ने अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिसमें कान फिल्म फेस्टिवल का 'श्रेष्ठ मानवीय दस्तावेज' का सम्मान भी शामिल है। 'पाथेर पांचाली' को बनाने के लिए रे को काफी संघर्ष करना पड़ा। इस फिल्म के लिए उन्हें अपनी पत्नी के जेवर भी गिरवी रखने पड़े थे और फिर आखिरकार फिल्म की सफलता ने उनके सारे कष्ट दूर कर दिए। इस फिल्म ने समीक्षकों और दर्शकों, दोनों का दिल खुश कर दिया। कोलकाता में कई हफ्ते हाउसफुल चली इस फिल्म को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इनमें फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में मिला विशेष पुरस्कार बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट भी शामिल है।
इसके बाद तीन दशक से भी लंबे समय के दौरान सत्यजीत रे ने करीब तीन दर्जन फिल्मों का निर्देशन किया। इनमें पारस पत्थर, कंचनजंघा, महापुरुष, अपूर संसार, महानगर, चारूलता, अपराजितो, गूपी गायन-बाघा बायन शामिल हैं। 1977 में उनकी एकमात्र फिल्म शतरंज के खिलाड़ी आई। 1991 में प्रदर्शित आंगतुक सत्यजीत रे के सिने करियर की आखिरी फिल्म थी।
अपनी फिल्मों के लिए सत्यजीत रे को कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले। साल 1978 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की संचालक समिति ने उन्हें विश्व के तीन सर्वकालिक निर्देशकों में से एक के रूप में सम्मानित किया। फिर भारत सरकार द्वारा फिल्म निर्माण के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए उन्हें 32 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। सत्यजीत रे दूसरे फिल्मकार थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। साल 1985 में सत्यजीत रे को हिंदी फिल्म उद्योग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1992 में उन्हें भारत रत्न भी मिला और ऑस्कर (ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट) भी। हालांकि काफी बीमार होने की वजह से वे इसे लेने खुद नहीं जा सके थे। इसके करीब एक महीने के भीतर ही 23 अप्रैल 1992 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया। Read the full article
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ऑस्कर से लेकर दादा साहेब फाल्के अवार्ड तक जीतने वाले सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी, मतलब चांद-सूरज नहीं देखे
चैतन्य भारत न्यूज सिनेमा के हर बड़े अवार्ड्स अपने नाम करने वाले सत्यजीत रे की आज जयंती है। उनका जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था। सत्यजीत रे ने अपनी मेहनत के दम पर आर्ट सिनेमा को जिस अंदाज में उजागर किया कि देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने उनकी प्रतिभा का लोहा माना। उनके जन्मदिन पर आइए जानते हैं सत्यजीत से जुड़ी कुछ खास बातें-
जब सत्यजीत तीन साल के ही थे जब उनके पिता सुकमार रे का निधन हो गया। मां सुप्रभा रे ने इसके बाद बहुत मुश्किलों से उन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया। प्रेसीडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र पढ़ने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रे शांति निकेतन गए और अगले पांच साल वहीं रहे। 1943 में वह कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई मशहूर किताबों के आवरण यानी कवर डिजाइन किए जिनमें जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ शामिल है। उस समय कौन जानता था कि किताबों के आवरण बनाने वाला लड़का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला पहला भारतीय फिल्मकार बन जाएगा।
रे न केवल एक बेहतरीन लेखक बल्कि अलहदा दृष्टिकोण के फिल्मकार थे। उनकी पहली फिल्म पाथेर पांचाली ने अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिसमें कान फिल्म फेस्टिवल का 'श्रेष्ठ मानवीय दस्तावेज' का सम्मान भी शामिल है। 'पाथेर पांचाली' को बनाने के लिए रे को काफी संघर्ष करना पड़ा। इस फिल्म के लिए उन्हें अपनी पत्नी के जेवर भी गिरवी रखने पड़े थे और फिर आखिरकार फिल्म की सफलता ने उनके सारे कष्ट दूर कर दिए। इस फिल्म ने समीक्षकों और दर्शकों, दोनों का दिल खुश कर दिया। कोलकाता में कई हफ्ते हाउसफुल चली इस फिल्म को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इनमें फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में मिला विशेष पुरस्कार बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट भी शामिल है।
इसके बाद तीन दशक से भी लंबे समय के दौरान सत्यजीत रे ने करीब तीन दर्जन फिल्मों का निर्देशन किया। इनमें पारस पत्थर, कंचनजंघा, महापुरुष, अपूर संसार, महानगर, चारूलता, अपराजितो, गूपी गायन-बाघा बायन शामिल हैं। 1977 में उनकी एकमात्र फिल्म शतरंज के खिलाड़ी आई। 1991 में प्रदर्शित आंगतुक सत्यजीत रे के सिने करियर की आखिरी फिल्म थी।
अपनी फिल्मों के लिए सत्यजीत रे को कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले। साल 1978 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की संचालक समिति ने उन्हें विश्व के तीन सर्वकालिक निर्देशकों में से एक के रूप में सम्मानित किया। फिर भारत सरकार द्वारा फिल्म निर्माण के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए उन्हें 32 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। सत्यजीत रे दूसरे फिल्मकार थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। साल 1985 में सत्यजीत रे को हिंदी फिल्म उद्योग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1992 में उन्हें भारत रत्न भी मिला और ऑस्कर (ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट) भी। हालांकि काफी बीमार होने की वजह से वे इसे लेने खुद नहीं जा सके थे। इसके करीब एक महीने के भीतर ही 23 अप्रैल 1992 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया। Read the full article
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ऑस्कर से लेकर दादा साहेब फाल्के अवार्ड तक जीतने वाले सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी, मतलब चांद-सूरज नहीं देखे
चैतन्य भारत न्यूज सिनेमा के हर बड़े अवार्ड्स अपने नाम करने वाले सत्यजीत रे की आज जयंती है। उनका जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था। सत्यजीत रे ने अपनी मेहनत के दम पर आर्ट सिनेमा को जिस अंदाज में उजागर किया कि देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने उनकी प्रतिभा का लोहा माना। उनके जन्मदिन पर आइए जानते हैं सत्यजीत से जुड़ी कुछ खास बातें-
जब सत्यजीत तीन साल के ही थे जब उनके पिता सुकमार रे का निधन हो गया। मां सुप्रभा रे ने इसके बाद बहुत मुश्किलों से उन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया। प्रेसीडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र पढ़ने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रे शांति निकेतन गए और अगले पांच साल वहीं रहे। 1943 में वह कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई मशहूर किताबों के आवरण यानी कवर डिजाइन किए जिनमें जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ शामिल है। उस समय कौन जानता था कि किताबों के आवरण बनाने वाला लड़का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला पहला भारतीय फिल्मकार बन जाएगा।
रे न केवल एक बेहतरीन लेखक बल्कि अलहदा दृष्टिकोण के फिल्मकार थे। उनकी पहली फिल्म पाथेर पांचाली ने अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिसमें कान फिल्म फेस्टिवल का 'श्रेष्ठ मानवीय दस्तावेज' का सम्मान भी शामिल है। 'पाथेर पांचाली' को बनाने के लिए रे को काफी संघर्ष करना पड़ा। इस फिल्म के लिए उन्हें अपनी पत्नी के जेवर भी गिरवी रखने पड़े थे और फिर आखिरकार फिल्म की सफलता ने उनके सारे कष्ट दूर कर दिए। इस फिल्म ने समीक्षकों और दर्शकों, दोनों का दिल खुश कर दिया। कोलकाता में कई हफ्ते हाउसफुल चली इस फिल्म को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इनमें फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में मिला विशेष पुरस्कार बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट भी शामिल है।
इसके बाद तीन दशक से भी लंबे समय के दौरान सत्यजीत रे ने करीब तीन दर्जन फिल्मों का निर्देशन किया। इनमें पारस पत्थर, कंचनजंघा, महापुरुष, अपूर संसार, महानगर, चारूलता, अपराजितो, गूपी गायन-बाघा बायन शामिल हैं। 1977 में उनकी एकमात्र फिल्म शतरंज के खिलाड़ी आई। 1991 में प्रदर्शित आंगतुक सत्यजीत रे के सिने करियर की आखिरी फिल्म थी।
अपनी फिल्मों के लिए सत्यजीत रे को कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले। साल 1978 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की संचालक समिति ने उन्हें विश्व के तीन सर्वकालिक निर्देशकों में से एक के रूप में सम्मानित किया। फिर भारत सरकार द्वारा फिल्म निर्माण के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए उन्हें 32 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। सत्यजीत रे दूसरे फिल्मकार थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। साल 1985 में सत्यजीत रे को हिंदी फिल्म उद्योग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1992 में उन्हें भारत रत्न भी मिला और ऑस्कर (ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट) भी। हालांकि काफी बीमार होने की वजह से वे इसे लेने खुद नहीं जा सके थे। इसके करीब एक महीने के भीतर ही 23 अप्रैल 1992 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया। Read the full article
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