#पश्चिम मुखी घर
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mypanditastrologer · 8 months ago
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astro-mahesh · 3 years ago
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घर में मन्दिर कहां होना चाहिए ♨
किसी घर में मन्दिर के लिए सबसे आदर्श स्थान ईशान कोण को माना गया है। इसके अलावा उत्तर और पूर्व दिशा भी घर के लिए छोटे मन्दिर का निर्माण किया जा सकता है। मैं यहां अपने प्रिय पाठकों के लिए मन्दिर के संदर्भ में कुछ बातें शेयर करूंगा।
जहां तक संभव हो घर में जो मंदिर हो उसे हमेशा उत्तर-पूर्व के मध्य में बनाएं।
हालांकि इसके अलावा उत्तर और पूर्व दिशा में कहीं भी मंदिर का निर्माण किया जा सकता है। तथापि वायव्य और अग्नि कोण में मंदिर निर्माण से बचने का प्रयास करना चाहिए।
सार्वजनिक मंदिरों में जो प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, वे सभी प्राण प्रतिष्ठित होती हैं। इसके विपरीत घर में जो प्रतिमाएं हैं, वे सब सांकेतिक होती हैं इसलिए इन प्रतिमाओं के आकार-प्रकार को कोई महत्त्व नहीं है। प्रतिमाएं या तस्वीर छोटी या बड़ी किसी भी आकार की हो सकती है। इसमें कोई दोष नहीं है।
मंदिर कभी भी कवर्ड एरिया के बाहर नहीं होना चाहिए। कवर्ड एरिया के बाहर बने मंदिरों में मैंने बहुत से दोष देखें हैं।
मंदिर का दरवाजा किसी भी दिशा में हो सकता है लेकिन भगवान की प्रतिमाओं या तस्वीरों को हमेशा पूर्व या पश्चिम मुखी ही रखना चाहिए।
सीढ़ियो के नीचे मंदिर नहीं होना चाहिए।
टाॅयलेट से सट कर घर का मंदिर नहीं होना चाहिए। यानि टाॅयलेट और मंदिर की एक ही दीवार नहीं होनी चाहिए।
घर का मंदिर हमेशा छोटे-से आकार का होना चाहिए। ध्यान रखें कि मंदिर का सामान्य आकार अधिकतम 16 वर्ग फीट से ज्यादा न हो।
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divinehealingcare · 4 years ago
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Vastu problems ..... ? here is divine healing care
वास्तु समस्या.... डिवाइन हीलिंग केयर है ना इसमें कोई शक नहीं है कि उस घर में सुख, शांति एवं सम्पन्नता तीनों आती है जो घर वास्तु-सम्मत बना हो। वहीं दूसरी ओर हम देखते हैं कि संबंधित बिल्डर अथवा व्यक्ति ज्ञान के अभाव में या फिर थोडे पैसे बचाने के चक्कर में वास्तु नियमों की पालना ना करते हुए घर अथवा कार्यालय बना लेते हैं। लेकिन जब वे संबंधित स्थान में निवास अथवा व्यापार करते हैं, तो उन्हें दिक्कतों का सामना करना पडता है। 
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कुछ उदाहरण बताना चाहेंगे। एक सज्जन ने बिल्डर से फ्लेट खरीदकर वहाॅं निवास शुरू किया। उस फ्लेट में दरअसल ईशान कोण में टाॅयलेट बना था। उल्लेखनीय है कि वास्तु के हिसाब से ईशान कोण शिवजी का पवित्र स्थान माना जाता है। वास्तु के अनुसार ईशान कोण पूजास्थान बनाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। उपरोक्त वास्तुदोष के कारण कुछ महीने में ही संबंधित सज्जन को मान-सम्मान, धन एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्या आने लगी।
दूूसरा उदाहरण ऐसी दुकान का बताना चाहेंगे जो उस शहर की सबसे ज्यादा चलने वाली दुकान थी। मगर एक समय ऐसा भी आया कि उस दुकान में पूरे महीने भर दस ग्राहक से ज्यादा नहीं आते थे। यह स्थिति उनके साथ एक साल से अधिक हो गई। उन्होंने हमें एप्रोच किया। हमने उनकी ग्रहों की महादशा के अलावा वास्तु का बारीकि से अध्ययन किया। कुछ सवाल उनसे पूछे। फिर हमने वहां पर परंपरागत वास्तु के अलावा आधुनिक वास्तु के भी कुछ प्रयोग करवाए। हमने पहले ही दिन उन्हें क्लियर कर दिया था कि जैसा कि लोग बोलते हैं रातो-रात चमत्कार हो जाएगा, ऐसा कुछ नहीं होगा। आपको उपाय के साथ कुछ महीने इंतजार करना होगा और उन्होंने ठीक ऐसा ही किया। जहां उनकी ग्राहकी दस ग्राहक प्रतिदिन पर आ गई थी, वह धीरे-धीरे तीन हुई, फिर पचास हुई और समय के साथ बढती चली गई।
तीसरा उदाहरण, ऐसे से घर का बातना चाहेंगे जिनके घर का नैरित्य कोण जो कमरा बना था, वह एक फिट नीचे को था। वास्तु में यह कोण राहू का क्षेत्र कहलाता है। उपरोक्त कोण समतल ना होने के कारण संबंधित घर के सदस्यों में अकारण तनाव की स्थिति बनी रहती थी तथा पैसे का बडा भाग दवाईयों पर खर्च होता था। हमारी सलाह से उन्होंने उपरोक्त क्षेत्र को समतल किया था तथा एक अन्य उपाय किया, जिससे उनकी सभी मुख्य समस्याएं ठीक हो गईं। अतः आदर्श स्थिति यह ��ै कि व्यक्ति घर अथवा कार्यालय बनाने से पूर्व ही वास्तु सलाह लेकर निर्माण करवाये। अगर घर, दुकान अथवा कार्यालय बन भी चुका है, तो एडवांस वास्तु के नियमों के आधार पर बिना कोई तोडफोड किए आसान उपायों से भी वास्तुुदोष दूर किया जा सकता है। डिवाइन हीलिंग केयर के प्लेटफार्म पर वास्तु एक्सपर्ट प्रीतिबाला पटेल (+91 9316258163) ने कई प्राॅपर्टीज में अपने अनुभव एवं विभिन्न प्रयागों के आधार पर बेहतर रिजल्ट दिए हैं, संबंधित प्राॅपर्टीज का वास्तुदोष दूरा किया है। 
कई बार व्यक्ति अपना फ्लेट अथवा शॉप बेचना चाहता है, मगर काफी प्रयासों के बाद भी उसे सफलता नहीं मिलती। ऐसे कई केसों में भी वास्तुएक्सपर्ट प्रीतिबाला ने वास्तुसुधार एवं हीलिंग के माध्यम से लोगों को लाभ दिलवाया है।
वास्तु के तहत वैसे तो कई प्रकार की चीजें देखी जाती हैं। मगर उनमें से आपकी जानकारी के लिए कुछ चीजें यहां बताई जा रही है |
भूखंड का प्रकार- सबसे पहले वास्तु एक्सपर्ट की आवश्यकता घर अथवा कार्यालय बनाने के लिए आप लेने जा रहे हैं, उस समय होती है क्योंकि यह देखना परम आवश्यक होता है कि संबंधित भूखंड किस प्रकार का है तथा वह आपके लिए शुभ होगा कि नहीं। क्योंकि गलत भूखंड के चयन के उपरांत आप उस पर जो निर्माण करवाएंगे, उसमें मुख्य दोष भूखंड का ही बन जाएगा। भूखंड कई प्रकार के होते हैं जैसे- वर्गाकार, आयताकार, वृत्ताकार भूखंड, सूपाकार, धनुषाकार, बाल्टीनुमार, मृदंगाकार, काकमुखी इत्यादि। प्रत्येक आकार के भूखंड का फल अलग-अलग हो सकता है। भूखंड के आकार के अलावा भी कई अन्य चीजें भी संबधित प्लाॅट की देखी जाती हैं जैसे कि वहां की मिटटी। इन सब चीजें का भी प्रभाव पडता है।
पानी का स्थान- वास्तुषास्त्र के अनुसार पानी लक्ष्मी को आकर्षित करता है अतः पानी का स्थान बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। चाहे वह आपका घर में बनने वाला अंडरग्राउंड वाटर टेंक हो अथवा खेत या फिर घर में बनने वाला बोरवेल, पानी की टंकी अथवा फिश एक्वेरियम। सही जगह पर यदि बनाते अथवा लगाते हैं तो यह धन को आकर्षित करेगा। गलत जगह पर पानी का स्थान बनाने से, पानी से संबंधित कोई प्रोडक्ट रखने पर धन में गिरावट की स्थिति बन सकती है। हमने अक्सर घर एवं कार्यालय में देखा है कि लोग मछलीघर (फिश एक्वेरियम) को गलत दिशा में रख देते हैं और फिर कुछ माह बाद उन्हें धन की समस्या आने लगती है।
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वास्तु का रंगों से कनेक्षन- जब हम घर का व्हाइट वाश करवाते हैं, तो जो रंग हमें पसंद आता है अमूमन उसी रंग का प्रयोग घर की अलग-अलग दीवारों पर करते हैं। आपको आश्चर्य होगा कि यदि हम वास्तु के अनुरूप रंग का प्रयोग घर अथवा कार्यालय की दीवालों पर करे एवं उचित रंग के पर्दों का चयन करें, तो इससे भी हमें अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। घर में यह प्रयोग करने पर शांति का वातावरण निर्मित हो सकता है तथा स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति हो सकती है। वहीं कार्यालय में ऐसा करने पर ग्राहकी अच्छी हो सकती है।
मुख्य द्वार- वास्तु एक्सपर्ट प्रीतिबाला के अनुसार घर का मुख्य द्वार बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि एनर्जी अर्थात ऊर्जा यहीं से घर में प्रवेश करती है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह होती है कि यह किस दिशा में खुलता है क्योंकि मुख्य द्वार ही तय करता है कि आपका घर पूर्वमुखी है, उत्तरमुखी, दक्षिणमुखी अथवा पश्चिम मुखी। इसके बाद बारी आती है कि आपने मुख्य द्वार में किस रंग, आकृति इत्यादि का प्रयोग किया है क्योंकि इन सब का प्रभाव घर के सभी सदस्यों तथा  विशेष रूप से घर के मुखिया पर पडता है।
व्यवसाय और वास्तु- प्रीतिबाला बताती हैं कि प्रत्येक व्यवसाय में वास्तु के नियम अलग अलग हो सकते हैं। व्यवसाय क्षेत्र में जो मुख्य बातें वास्तु के अनुसार देखी जाती है वह यह हैं- मालिक का केबिन किस दिशा में हैं, गल्ला जिसे कैश काउंटर कहते हैं वह कहां स्थापित है, संबंधित जगह पर कौन से रंग का प्रयोग किया गया है इत्यादि। उदाहरण के तौर पर किसी व्यक्ति का कार्यक्षेत्र ज्योतिष है, तो उसे कार्यस्थल की दीवारों पर संबंधित ग्रह का रंग करवाने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
बिना तोडफोड वास्तुदोष निवारण- मान लीजिए आपने ऐसा घर अथवा कार्यालय खरीद लिया है जहां वास्तुदोष है। तो ऐसी स्थिति में एडवांस वास्तु के तहत हम कुछेक प्रोडक्ट का प्रयोग करके, घर की एनर्जी में बैलेंस करेंगे। क्योंकि जब भी संबंधित जगह पर वास्तु समस्या है, तो वहां की एनर्जी जरूर प्रभावित हो जाती है। प्रीतिबाला बताती हैं ऐसे में वे आवश्यकता के अनुसार मुख्य ��ूप से आईना, क्रिसटल, तेज रौशनी के बल्ब, वृक्ष, फिश एक्वेरिअम, मूर्ति, श्वेतार्क  गणेश, बांसुरी, आंतरिक साजसज्जा तथा रंग, यंत्र इत्यादि के इस्तेमाल करवाकर वास्तुदोष दूर करवाती हैं। आपको बताना चाहेंगे कि डिवाइन हीलिंग केयर की डायरेक्टर प्रीतिबाला पटेल ने एडवांस वास्तु के तहत उपरोक्त एवं अन्य उपायों से कम समय में बेहतर परिणाम दिए हैं।
स्टडीरूम एवं वास्तु- आपको जानकर आश्चर्य होगा डिवाइन हीलिंग केयर नेे करीब पांच सौ से अधिक केसों में सफलता पाई हैं जिन घर में बच्चों का मन पढाई में नहीं लगता था और वास्तु के उपायों को अपनाकर उनके बच्चों ने अच्छे मार्कस लिए। बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि बच्चों का कमरा किस जगह बनाया गया है, उस कमरे में क्या सामान रखा गया है, बच्चों का स्टडी टेबल किस रंग का है, स्टडी टेबल किस दिशा में लगाया गया है, स्टडी रूम में किन रंगों का प्रयोग किया गया है इत्यादि। यदि उपरोक्त बिंदुओं में से एक भी सही नहीं है, तो बच्चों में एकाग्रता की कमी निष्चित रूप से देखने को मिलेगी।
मनमाना वास्तु- आज के समय में यह भी देखने को मिलता है कि लोग यूटयूब में देखकर अथवा प्रचलित बिंदुओं के आधार पर अपने घर एवं व्यापार स्थल का निर्माण  कर देते हैं। और फिर संबंधित व्यक्ति को कुछ समय बाद नुकसान उठाना पडता है। अतः हमारी आपको सलाह रहेगी कि प्रोफेशनल वास्तु एक्सपर्ट की सलाह आपको इसके लिए लेनी चाहिए। वास्तु से संबंधित कोई भी प्रयोग किताब में पढकर, दोस्तों की बातों में आकर, सोशल साइट देखकर नहीं करना चाहिए। क्योंकि आपको समझना होगा कि ना तो एक जैसे भूखंड सबसे है और ना एक जैसा नक्शा लोगों के घर अथवा कार्यालय के होते हैं अतः वास्तु का उपाय सभी लोगो के लिए कामन एवं उपयोगी होगा, यह जरूरी नहीं।
कार्यालय वास्तु- कई बार जहां पर हम नौकरी करने जाते हैं, तो वहां पर यदि हमें नकारात्मकता लगे तथा हमारे खिलाफ राजनीति होती है, अथवा आप प्रमोशन के पात्र हैं तभी भी आपको प्रमोशन नहीं मिल पाता, तो ऐसे में आप आसान उपायों के द्वारा उपरोक्त स्थितियों को कम कर सकते हैं, संबंधित जगह की वास्तुसमस्या ठीक कर सकते हैं। क्योंकि हो सकता है आप गलत दिषा में मुंह करके बैठते हों अथवा सीढियों अथवा पिल्लर के पास आपके बैठने का स्थान हो इत्यादि। क्योंकि उपरोक्त बिंदु बहुत प्रभाव डालते हैं, ऐसी स्थितियों में आपके दिन-रात काम करने के बाद भी सफलता मिल पाना कठिन हो जाता है।
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आज अध्ययन कक्ष के लिए कुछ विशेष वास्तु सुझाव- • पढ़ाई के लिए ईशान कोण यानी घर का उत्तरपूर्वी कोना शुभ रहता है। • पढ़ाई पूर्व मुखी बैठ कर करनी चाहिए। • पूर्व दिशा के अलावा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके भी पढ़ाई की जा सकती है। • ध्यान रखें कि दक्षिण दिशा कि ओर मुंह करके पढ़ाई न करें, वरना पढ़ा हुआ याद नहीं रहता है। • स्थानाभाव में पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके पढ़ाई की जा सकती है। • सुबह-सुबह पढ़ाई करना है ज्यादा फायदेमंद है। इस समय में मन शांत रहता है और एकाग्रता बनी रहती है। शांत मन से की गई पढ़ा गया लंबे तक याद रहता है। • अध्ययन कक्ष सदा साफ सुथरा और सुव्यवस्थित रहे। • पढ़ाई की मेज पर फालतू सामान रखने से बचें। आप अपने घर में इन बातों का ध्यान रखेंगे तो बच्चों को पढ़ाई का अधिक लाभ मिल सकता है। http://shashwatatripti.wordpress.com #vastulokesh #study https://www.instagram.com/p/CEaxUO-ndbK/?igshid=1jfly81u31jy1
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devendrasinghworld · 4 years ago
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वास्तु शास्त्र में आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए भवन बनाते समय उसके शुभाशुभ विचारों की। वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भी भवन को बनाते समय उसके शुभ-अशुभ परिणामों की तरफ विचार जरूर करना चाहिए और सुनियोजित योजना भी बनानी चाहिए। भवन के लिये भूखण्ड खरीदते समय या बनाते समय कई बार कुछ महत्वपूर्ण चीजों पर गौर करना छूट जाता है। इसलिए ��हले से ही उसकी एक सही तरीके से योजना बना लेनी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक विचारों पर काम किया जा सके। 
दिशाओं के अनुसार भवन बनाने के लिये आठ स्थितियां बनती हैं। पहली स्थिति में पूर्वमुखी भवन आता है, जिसमें भवन का द्वार पूर्व दिशा में होता है दूसरी स्थिति में पश्चिम मुखी भवन आता है, जिसमें द्वार पश्चिम दिशा की ओर होता है। अगली स्थिति में उत्तर मुखी भवन होता है, जिसमें भवन का द्वार उत्तर दिशा की ओर होता है। इसके अलावा दक्षिण मुखी भवन, जिसमें दक्षिण दिशा की तरफ भवन का द्वार होता है।
ईशान मुखी भवन, जिसमें भवन का द्वार उत्तर-पूर्व दिशा की ओर होता है। आग्नेय मुखी भवन, जिसमें भवन का द्वार दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर होता है। नैर्ऋत्य मुखी भवन, जिसमें भवन का द्वार दक्षिण-पश्चिम दिशा की तरफ होता है और आखिरी स्थिति वायव्य मुखी भवन, जिसमें भवन का द्वार उत्तर-पश्चिम दिशा की तरफ होता है। ये तो थी एक भवन की विभिन्न दिशाओं में द्वार अनुसार संभावित स्थितियां।
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gyanyognet-blog · 6 years ago
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kaal bhairav batuk bhairav shabar mantra sadhna
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kaal bhairav batuk bhairav shabar mantra sadhna
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ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र
ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त ऋषिः ऋषयः, मातृका छंदः, श्री बटुक भैरव देव…
ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र
ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त ऋषिः ऋषयः, मातृका छंदः, श्री बटुक भैरव देवता, ममेप्सित कामना सिध्यर्थे विनियोगः. ॐ काल भैरु बटुक भैरु ! भूत भैरु ! महा भैरव महा भी विनाशनम देवता सर्व सिद्दिर्भवेत . शोक दुःख क्षय करं निरंजनम, निराकरम नारायणं, भक्ति पूर्णं त्वं महेशं. सर्व कामना सिद्दिर्भवेत. काल भैरव, भूषण वाहनं काल हन्ता रूपम च, भैरव गुनी. महात्मनः योगिनाम महा देव स्वरूपं. सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं ��ोगं, त्वं तत्त्वं, त्वं बीजम, महात्मानम, त्वं शक्तिः, शक्ति धारणं त्वं महा देव स्वरूपं. सर्व सिद्धिर्भवेत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ कालभैरव ! त्वं नागेश्वरम नाग हारम च त्वं वन्दे परमेश्वरम, ब्रह्म ज्ञानं, ब्रह्म ध्यानं, ब्रह्म योगं, ब्रह्म तत्त्वं, ब्रह्म बीजम महात्मनः, ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. त्रिशूल चक्र, गदा पानी पिनाक धृक ! ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ काल भैरव ! त्वं विना गन्धं, विना धूपम, विना दीपं, सर्व शत्रु विनाशनम सर्व सिद्दिर्भवेत विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय कारकम, महाभैवे नमः. सर्व दुष्ट विनाशनम सेवकम सर्व सिद्धि कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ काल भैरव ! त्वं महा-ज्ञानी , त्वं महा- ध्यानी, महा-योगी, महा-बलि, तपेश्वर ! देही में सर्व सिद्धि . त्वं भैरवं भीम नादम च नादनम. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ! अमुकम मारय मारय, उच्चचाटय उच्चचाटय, मोहय मोहय, वशं कुरु कुरु. सर्वार्थ्कस्य सिद्धि रूपम, त्वं महा कालम ! काल भक्षणं, महा देव स्वरूपं त्वं. सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ काल भैरव ! त्वं गोविन्दं गोकुलानंदम ! गोपालं गो वर्धनम धारणं त्वं! वन्दे परमेश्वरम. नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम शिव रूपं च. साधकं सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ काल भैरव ! त्वं राम लक्ष्मणं, त्वं श्रीपतिम सुन्दरम, त्वं गरुड़ वाहनं, त्वं शत्रु हन्ता च, त्वं यमस्य रूपं, सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ काल भैरव ! त्वं ब्रह्म विष्णु महेश्वरम, त्वं जगत कारणं, सृस्ती स्तिथि संहार कारकम रक्त बीज महा सेन्यम, महा विद्या, महा भय विनाशनम . ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ काल भैरव ! त्वं आहार मध्य, मांसं च, सर्व दुष्ट विनाशनम, साधकं सर्व सिद्धि प्रदा. ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर अघोर, महा अघोर, सर्व अघोर, भैरव काल ! ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं, ॐ आं क्लीं क्लीं क्लीं, ॐ आं क्रीं क्रीं क्रीं, ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, रूं रूं रूं, क्रूम क्रूम क्रूम, मोहन ! सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अमुकम उच्चचाटय उच्चचाटय, मारय मारय, प्रूम् प्रूम्, प्रें प्रें , खं खं, दुष्टें, हन हन अमुकम फट स्वाहा, ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत. ॐ बटुक बटुक योगं च बटुक नाथ महेश्वरः. बटुके वट वृक्षे वटुकअं प्रत्यक्ष सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत. ॐ कालभैरव, शमशान भैरव, काल रूप कालभैरव ! मेरो वैरी तेरो आहार रे ! काडी कलेजा चखन करो कट कट. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत. ॐ नमो हँकारी वीर ज्वाला मुखी ! तू दुष्टें बंध करो बिना अपराध जो मोही सतावे, तेकर करेजा चिधि परे, मुख वाट लोहू आवे. को जाने? चन्द्र सूर्य जाने की आदि पुरुष जाने. काम रूप कामाक्षा देवी. त्रिवाचा सत्य फुर��, ईश्वरो वाचा . ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत. ॐ कालभैरव त्वं डाकिनी शाकिनी भूत पिसाचा सर्व दुष्ट निवारनम कुरु कुरु साधका- नाम रक्ष रक्ष. देही में ह्रदये सर्व सिद्धिम. त्वं भैरव भैरवीभयो, त्वं महा भय विनाशनम कुरु . ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत. ॐ आं ह्रीं. पश्चिम दिशा में सोने का मठ, सोने का किवार, सोने का ताला, सोने की कुंजी, सोने का घंटा, सोने की संकुली. पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो. दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो. तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो, चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो, पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो, जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई, जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू, तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे, श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर. त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत. ॐ आं ह्रीं. उत्तर दिशा में रूपे का मठ, रूपे का किवार, रूपे का ताला,रूपे की कुंजी, रूपे का घंटा, रूपे की संकुली. पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो. दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो. तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो, चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो, पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो, जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई, जहाँ जहाँ ��ाई,जेहि बाँधी मंगावू, तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे, श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर. त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत. ॐ आं ह्रीं. पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे का किवार, तामे का ताला,तामे की कुंजी, तामे का घंटा, तामे की संकुली. पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो. दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो. तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो, चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो, पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो, जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई, जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू, तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे, श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर. त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत. ॐ आं ह्रीं. दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ, तामे का किवार, अस्थि का ताला,अस्थि की कुंजी, अस्थि का घंटा, अस्थि की संकुली. पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो. दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो. तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो, चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो, पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो, जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई, जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू, तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे, श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर. त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत. ॐ काल भैरव ! त्वं आकाशं, त्वं पातालं, त्वं मृत्युलोकं, चतुर भुजम, चतुर मुखं, चतुर बाहुम, शत्रु हन्ता त्वं भैरव ! भक्ति पूर्ण कलेवरम. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् . ॐ काल भैरव ! तुम जहाँ जहाँ जाहू, जहाँ दुश्मन बेठो होए, तो बैठे को मारो, चालत होए तो चलते को मारो, सोवत होए तो सोते को मरो, पूजा करत होए तो पूजा में मारो, जहाँ होए तहां मरो वयाग्रह ले भैरव दुष्ट को भक्शो. सर्प ले भैरव दुष्ट को दसो. खडग ले भैरव दुष्ट को शिर गिरेवान से मारो. दुष्तन करेजा फटे. त्रिशूल ले भैरव शत्रु चिधि परे. मुख वाट लोहू आवे. को जाने? चन्द्र सूरज जाने की आदि पुरुष जाने. कामरूप कामाक्षा देवी. त्रिवाचा सत्य फुरे मंत्र ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् . ॐ काल भैरव ! त्वं. वाचा चुके उमा सूखे, दुश्मन मरे अपने घर में. दुहाई भैरव की. जो मूर वचन झूठा होए तो ब्रह्म का कपाल टूटे, शिवजी के तीनो नेत्र फूटें. मेरे भक्ति, गुरु की शक्ति फुरे मंत्र ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् . ॐ काल भैरव ! त्वं.भूतस्य भूत नाथासचा,भूतात्म ा भूत भावनः, त्वं भैरव सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् . ॐ काल भैरव ! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी, त्वं योगी, त्वं जंगम स्थावरम त्वं सेवित सर्व काम सिद्धिर भवेत्. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् . ॐ काल भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरम, ब्रह्म रूपम, प्रसन्नो भव. गुनी महात्मानं महादेव स्वरूपं सर्व सिद्दिर भवेत्.
प्रयोग : १. सायंकाल दक्षिणाभिमुख होकर पीपल की डाल वाम हस्त म���ं लेकर, नित्य २१ बार पाठ करने से शत्रु क्षय होता है. २. रात्रि में पश्चिमाभिमुख होकर उपरोक्त क्रिया सिर्फ पीपल की डाल दक्षिण हस्त में लेकर पुष्टि कर्मों की सिद्धि प्राप्त होती है, २१ बार जपें. ३. ब्रह्म महूर्त में पश्चिमाभिमुख तथा दक्षिण हस्त में कुश की पवित्री लेकर ७ पाठ करने से समस्त उपद्रवों की शांति होती है.
ॐ परम अवधूताय नमः.
2….उपरी हवा अथवा नकारात्मक ऊर्जा के निराकरण का उपाय घर के सदस्य या घर पर किसी उपरी हवा का असर महसूस हो तो निम्न उपाय से राहत मिलती है |उपरी हवा के निम्न लिखित संकेत हैं — घर में भोजन के समय क्लेश होना |घर के छोटे सदस्यों द्वारा बड़ों का अपमान होना | अचानक आग लगना अचानक चोरी होना अचानक छत का गिरना या छत में दरार आना घर में दीमक लग्न ,घर में सीलन आना |घर में मकड़ी के जाले लगना घर के सदस्यों में वैचारिक मतभेद रहना घर की स्त्रियों का मासिक धर्म अनियमित होना लगातार घर की रसोई में रोटियां जल जाना ,सब्जियां जल जाना लगातार घर की रसोई में दूध का फटना या बहना घर में कहीं भी खून के छींटे मिलना |घर के सदस्यों के कपडे फटना ,या जलना या काटना घर की छत पर पत्थर गिरना घर में रखे हुए पैसे गायब होना इस तरह के संकेतों से अंदाजा लगाया जा सकता है की घर पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव है |जब ऐसा लगे की ऐसी कोई समस्या दिख रही है तो निम्न उपाय [उतारे] से लाभ हो सकता है |इस उतारे के लिए निम्न सामग्रियां लें – तीन पीले नीम्बू बिना दाग के |तीन पीले बूंदी के लड्डू |तीन फूलदार लौंग |तीन गेंदा के पीले फूल |एक काली काजल की डिबिया |एक लाल लिपस्टिक |एक केले का पत्ता या धाक की पत्तल |एक निकिली कील | सर्व प्रथम केले का पत्ता या पत्तल लें और उसे किसी चौकी पर बिछाकर एक पीले नीम्बू को पत्ते पर रखें |अब दूसरा निम्बू लें और उसको लिपस्टिक से लाल करले |अब तीसरे नीम्बू को काजल से काला कर लें औए केले के पत्ते पर रख दें |सभी निम्बुओं को लाइन से कर दें | अब पहले पीले निम्बू पर फिर लाल निम्बू पर फिर तीसरे काले निम्बू पर निकिली चीज से एक एक छिद्र कर लें और उनमे एक एक फूल वाली लौंग गाड़ दें |अब एक एक गेंदे के पीले फूल निम्बुओं पर चढ़ाएं |एक एक पीला बूंदी का लड्डू भी तीनो निम्बुओं पर चढ़ाएं |फिर सब चीजों को केले के पत्ते में लपेट लें |अब उतारे का सामान तैयार है |इसे लेकर घर के मुख्य द्वार पर पर जाकर इसे हाथ में लेकर मुख्या द्वार पर से ३१ बार उल्टा अर्थात एंटी क्लाक वाईज इसे उतारें और बोले- सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी एकमेव त्वया कार्यंम मस्मद्वैरी विनाशनम मंत्र की शुद्धता के लिए दुर्गा सप्तशती में से देख लें |दुर्गा मंत्र का ३१ बार पाठ करें और उलटे क्रम से उतारा करते रहें |उतारा करने के बाद सभी उतारे की सामग्रियों को बहती हुई नदी या नाहर के किनारे रख आयें घर से निकलते हुए समय से लेकर घर वापस आने तक मौन धारण रखे |घर वापस आने पर हाथ पैर मुंह धो लें और घर में घूनी करें | सावधानी -क्रिया शुरू करने से पहले शरीर शुद्धि ,एवं शरीर बंधन अवश्य कर लें |या अपने गुरु का नाम लेकर कलाई पर धागा या रुमाल बाँध लें |केवल गुरुमुखी ही प्रयोग का इस्तेमाल करें |जो गुरु दीक्षित नहीं हैं इस प्रयोग को न करें |.
3……भूत-प्रेत ,वायव्य बाधाएं और तांत्रिक अभिचार भूत-प्रेतों ,वायव्य बाधाओं और तांत्रिक अभिचार पर बहुत लोगों को विश्वास होता है बहुतों को नहीं ,जब तक व्यक्ति का अनहोनियों से सामना नहीं होता ,जब तक अनचाही-असामान्य घटनाएं नहीं होती ,अदृश्य शक्ति का अहसास नहीं होता व्यक्ति मानता नहीं की ऐसा कुछ होता है ,,समय अच्छा रहते ,सामान्य स्थिति में तार्किक बुद्धि विश्वास नहीं करती ,पर परेशान होता है तब ज्योतिषियों-तांत्रिको-पंडितों-साधकों-मंदिरों-मस्जिदों -मजारों पर दौड़ने लगता है ,,कभी हल मिलता है कभी नहीं ,इसके बहुत से कारण होते हैं . भूत-प्रेत तब बनते हैं जब किसी व्यक्ति की असामान्य मृत्यु हो जाए और उसका शरीर अचानक काम करना बंद कर दे ,ऐसी स्थिति में उसकी कोशिका���ं की संरक्षित ऊर्जा से सम्बंधित विद्युत् ऊर्जा जो सूक्ष्म शरीर से जुडी होती है ,क्षरित नहीं हो पाती और सूक्ष्म शरीर के माध्यम से आत्मा को जोड़े रखती है ,आत्मा मुक्त नहीं हो पाती ,,व्यक्ति की ईच्छाएं ,आकांक्षाएं उसके मन में जीवित रहती हैं किन्तु उन्हें पूरा करने के लिए शरीर नहीं होता ,,ऐसी स्थिति में वे अपनी अतृप्त आकांक्षाएं पूरी करने के लिए अन्य व्यक्ति के शरीर को माध्यम बनाते हैं ,कभी यह सीधे किसी व्यक्ति के शरीर पर अधिकार कर लेते है ,कभी उन्हें डराकर उनमे प्रवेश कर जाते हैं ,,कभी-कभी ये सदैव साथ न रहकर अपनी आवश्यकतानुसार व्यक्ति के शरीर को प्रभावित करते हैं ,यह सब इनके शक्ति पर निर्भर करता है ,आवश्यक नहीं की कमजोर ही इनके शिकार हों किन्तु अक्सर बच्चे-महिलायें-नव विवाहिताएं-गर्भावस्था वाली महिलायें-सुन्दर कन्याएं-कमजोर मनोबल वाले पुरुष-ठंडी प्रकृति के व्यक्ति इनके आसान शिकार होते हैं ,यद्यपि यह किसी को भी प्रभावित कर सकते है अगर शक्तिशाली हैं तो ,चाहे परोक्ष करें या अपरोक्ष ,, इनकी कई श्रेणियां होती है ,जो इनके शक्ति के अनुसार होती है ,,भूत-चुड़ैल कम शक्ति रखते हैं ,प्रेत उनसे अधिक शक्ति रखते हैं ,बीर-शहीद आदि प्रेतों से भी शक्तिशाली होते हैं ,जिन्न-ब्रह्म राक्षस इनसे भी अधिक शक्तिशाली होते हैं, डाकिनी-शाकिनी-पिशाच-भैरव आदि और शक्तिशाली नकारात्मक शक्तियां हैं , ,, जिन स्थानों पर पहले कभी बहुत मारकाट हुई हो ,युद्ध हुए हों वहां इनकी संख्या अधिक होती है ,अपने मरने के स्थान से भी इनका लगाव होता है यद्यपि ये कहीं भी आ जा सकते हैं ,श्मशानों -कब्रिस्तानों आदि अंत्येष्टि के स्थानों पर ये अधिकता में पाए जाते है ,,ऐसी जगहों जहां अन्धेरा रहता हो ,नकारात्मक ऊर्जा हो ,गन्दगी हो ,सीलन हो ,प्रकाश की पहुँच न हो वहां और कुछ वृक्षों -वनस्पतियों के पास इन्हें शांति मिलती है और इन्हें अच्छा लगता है अतः ये वहां रहना पसंद करते है ,यद्यपि कुछ शक्तिशाली आत्माएं मंदिरों -मजारों-मस्जिदों तक में जा सकती है ,राजधानियों में ,खँडहर महलों में,पहले के युद्ध मैदानों के आसपास ,सडकों के आसपास के वृक्षों पर ,चौराहों आदि पर जहां अधिक दुर्घटनाएं हुई हों ये अधिकता में पाए जाते हैं | इनकी शक्ति रात्री में बढ़ जाती है क्योकि इन्हें वातावरण की रिनात्मक ऊर्जा से सहारा मिलता है और इनके नकारात्मकता की क्षति नहीं होती ,अँधेरी रातों में ,गर्मी की दोपहर में यह अधिक क्रियाशील होते हैं ,यद्यपि यह चांदनी रातों में और दिन में भी क्रियाशील हो सकते हैं ,कुछ शक्तिया पूर्णिमा के चन्द्रमा का सहारा लेकर भी कुछ लोगों को अधिक परेशान करती है ,क्योकि पूर्णिमा -अमावस्या को कुछ लोगों को मानसिक तनाव -डिप्रेसन की परेशानी होती है ,ऐसे में यह उन्हें अधिक परेशां करते हैं | कुछ लोग दुर्भावनावश अथवा दुश्मनी में कुछ लोगों पर तांत्रिक टोटके कर देते हैं या तांत्रिक की सहायता से अभिचार करवा देते हैं ,कभी कभी तांत्रिक इन अभिचारों के साथ आत्माएं भी संयुक्त कर भेज देते हैं ,यद्यपि यह प्रक्रिया सामान्य भूत-प्रेतों के प्रभाव से भिन्न होती है किन्तु यह अधिक परेशान करती है ,और इसका इलाज तांत्रिक ही कर सकता है ,इलाज में भी परस्पर शक्ति संतुलन प्रभावी होता है ,,टोटकों और अभिचारों का उर्जा विज्ञान भिन्न होता है जो वस्तुगत ऊर्जा और अभिचार करने वाले के मानसिक बल पर निर्भर करता है ,इनमे दिन-समय-मुहूर्त-स्थान-वस्तु -सामग्री-पद्धति का विशिष्ट संयोग और शक्ति होता है |यह क्रिया किसी भी रूप में व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है ,मानसिक तनाव ,उन्नति में अवरोध,व्यापार में नुक्सान ,दूकान बंधना ,कार्य क्षेत्र में तनाव ,मन न लगना ,दुर्घटनाएं,मानसिक विचलन-डिप्रेसन,अशुभ शकुन,अनिद्रा ,पतन ,दुर्व्यसन,निर्णय में गलतियां ,कलह,मारपीट आपस में ,मतभिन्नता आदि इसके कारण से उत्पन्न हो सकते हैं .|
4……भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय भूत-प्रेत-चुड़ैल जैसी समस्याओं से व्यक्ति अथवा परिवार के सहयोग से मुक्ति पायी जा सकती है ,किन्तु उच्च स्तर की शक्तियां सक्षम व्यक्ति ही हटा सकता है ,कुछ शक्तियां ऐसी होती हैं की अच्छे अच्छे साधक के छक्के छुडा देती हैं और उनके तक के लिए जान के खतरे बन जाती है ,ऐसे में केवल श्मशान साधक अथवा बेहद उच्च स्तर का साधक ही उन्हें हटा या मना सकता है ,किन्तु यहाँ समस्या यह आती है की इस स्तर का साधक सब जगह मिलता नहीं ,उसे सांसारिक लोगों से मतलब नहीं होता या सांसारिक कार्यों में रूचि नहीं होती ,पैसे आदि का उसके लिए महत्व नहीं होता या यदि वह सात्विक है तो इन आत्माओं के चक्कर में पना नहीं चाहता ,क्योकि इसमें उसकी उस शक्ति का खर्च होता है जो वह अपनी मुक्ति के लिए अर्जन कर रहा होता है . भूत-प्रेत चुड़ैल जैसी समस्याओं को कौवा तंत्र के प्रयोग से हटाया जा सकता है किन्तु यह जानकार साधक ही कर सकता है ,प्रेत अथवा पिशाच-पिशाचिनी साधक भी इन्हें हटा सकता है ,अच्छा तांत्रिक भी इन्हें हटा सकता है ,देवी साधक,हनुमान-भैरव साधक इन्हें हटा सकता है ,किन्तु उच्च शक्तिया केवल उच्च साधक ही हटा सकता है,इन्हें देवी[दुर्गा-काली-बगला आदि महाविद्या ]साधक ,भैरव-हनुमान साधक ,श्मशान साधक ,अघोर साधक ,रूद्र साधक हटा सकता है , . कुछ क्रियाएं इन समस्याओं पर अंकुश लगाती हैं ,पर यहाँ भी योग्य का मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,फिर भी प्रसंगवश कुछ क्रियाएं निम्न हैं [१]भूत-प्रेत ग्रस्त व्यक्ति को हरसिंगार की जड़ के साथ घोड़े की नाल धारण कराने से लाभ होता है .[२]भूत ग्रस्त व्यक्ति के सामने उल्लू का मांस जलाने से उसे राहत मिलती है .[३]नागदमन के पत्ते के साथ सियार के बाल को टोना टोटका ग्रस्त व्यक्ति के ऊपर से उतार कर अग्नि में डालने से उसे लाभ होता है .[४]नागदमन और अपामार्ग की जड़ को धारण करने से बाधा में लाभ होता है .[५]रविपुष्य में निकली और अभिमंत्रित श्वेतार्क की जड़ धारण करने से भूत-प्रेत बाधा दूर होती है .[६]भूत-प्रेत ग्रस्त व्यक्ति के सामने गुडमार के सूखे पत्तों की धूनी जलाने से उसे लाभ होता है .[७]कटहल की ज धारण करने से टोन से बचाव होता है .[८]महानिम्ब की जड़ धारण करने से भूत-प्रेत से सुरक्षा होती है .[९]गरुड़ वृक्ष के ९ इंच के बराबर की लकड़ी को ९ बराबर हिस्सों में काटकर ९ सूअर के अंत के साथ अलग अलग घर के चारो और जमीन में ठोंक देने से घर में भूतों का उपद्रव शांत हो जाता है .[१०]मंत्र सिद्ध सूअर दांत को व्यक्ति के पुराने कपडे में लपेटकर बहते पानी में छोड़ देने से भूत-प्रेत की पीड़ा शांत होती है .[११]भालू के बालों की धूनी देने से भूत-प्रेत दूर होते हैं .[१२]टिटहरी के पंख को बढ़ा ग्रस्त व्यक्ति पर से उतारकर जलाने से भूत-प्रेत से राहत मिलती है .[१३]दक्षिणमुखी हनुमान जी के दाहिने पैर पर लगे सिन्दूर के तिलक से भूत-प्रेत बाधा में राहत मिलती है .[१४]तुलसी-कालीमिर्च-सहदेई की जड़ धारण करने से भूत बाधा में राहत मिलती है .[१५]सफ़ेद घुंघुची की जड़ या काले धतूरे की जड़ धारण कराने से ऐसी पीड़ा दूर होती है .,,उपरोक्त प्रयोगों के अतिरिक्त अन्य कई प्रकार के प्रयोग और उतारे होते हैं जिनसे ऐसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है ,साधक मंत्र और तंत्र प्रयोग से ऐसे समस्याओं से मुक्ति दिलाते है . बजरंग बाण का पाठ ,सुदर्शन कवच ,दुर्गा कवच,काली सहस्त्रनाम ,बगला सहस्त्रनाम ,काली कवच, बगला कवच, आदि के पाठ से इनके प्रभाव पर अंकुश लगता है ,उग्र शक्तियों की आराधना इनके प्रभाव को रोकती है ,बगला अनुष्ठान ,शतचंडी यज्ञ ,काली अनुष्ठान ,बगला प्रत्यंगिरा ,काली प्रत्यंगिरा,गायत्री हवन ,महामृत्युंजय हवन से इनसे मुक्ति पा��ी जा सकती है ,सिद्ध साधक द्वारा बनाई यन्त्र -ताबीज आदि से इनके प्रभाव को रोका भी जा सकता है और मुक्ति भी पायी जा सकती है ,यद्यपि अनेक प्रकार के टोटके इन शक्तियों पर उपयोग किये जाते हैं पर यह कम शक्तिशाली प्रभावों पर ही अधिक प्रभावी होते हैं ,उच्च शक्तियों पर इनका बहुत प्रभाव नहीं पड़ता कुछ अंकुश अवश्य हो सकता है ,कभी-कभी कुछ छोटे टोटके जिनका इन पर बहुत प्रभाव न पड़े इन्हें और अधिक उग्र भी कर देते है अतः सावधानी और उपयुक्त मार्गदर्शन आवश्यक होता है , सबसे बेहतर तो यही होता है की यदि इस प्रकार की कोई समस्या हो तो किसी अच्छे जानकार व्यक्ति को दिखाया जाए ,किन्तु यदि कोई बेहतर जानकार न मिले या आसपास न हो अथवा आसपास के कम जानकारों से न लाभ मिल पा रहा हो तो ,किसी उच्च स्तर के साधक से संपर्क करना चाहिए ,यदि वह पीड़ित तक न जाए तो पीड़ित को वहां ले जाएँ ,यह भी न हो सके तो साधक से यन्त्र- ताबीज बनवाकर पीड़ित को धारण करवाए ,,यदि पीड़ित करने वाली शक्ति कम शक्तिशाली होगी तो तुरंत हट जायेगी नहीं तो उसके प्रभाव में कमी तो आ ही जायेगी ,उसे व्यक्ति को प्रभावित करने में तो दिक्कत आएगी ही ,,यंत्रो-ताबीजो से निकलने वाली तरंगे और सकारात्मक ऊर्जा से उस नकारात्मक शक्ति को कष्ट होता है ,कभी कभी यह ताबीज उतारने या हटवाने का भी प्रयास करते हैं ,,उः क्रिया उसी प्रकार की है की जैसे किसी व्यक्ति का भोजन बंद कर दिया जाए तो वह कितने दिन तक जीवित रहेगा ,उसी प्रकार अतृप्त आत्मा या अभिचार जिस उद्देश्य से आया है यदि उसमे रुकावट उत्पन्न कर दिया जाए तो वह कब तक रुका रहेगा ,इस प्रकार धीरे-धीरे व्यक्ति को राहत मिल जाती है ,साथ में अगर जानकार के बताये टोटके भी किये जाए और उपाय अपनाए जाए तो जल्दी राहत मिल सकती है ,इस प्रकार उच्च शक्तियों को भी रोका जा सकता है ,हां यन्त्र की शक्ति भी उसी अनुपात में होनी चाहिए की वह उसके प्रभाव को रोक सके ,,बगलामुखी यन्त्र ,काली यन्त्र ,छिन्नमस्ता यन्त्र ,धूमावती यन्त्र ,तारा यन्त्र ,हनुमान यन्त्र ,भैरव यन्त्र ,दुर्गा यन्त्र आदि इस श्रेणी में आते हैं की किसी भी शक्ति के प्रभाव को रोक सकते हैं बशर्ते की यह उनके सिद्ध साधक द्वारा निर्मित हों
5……आप पर या घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हो सकता है प्रकृति में सकारात्मक ऊर्जा या शक्ति हमारे लिए लाभदायक और नकारात्मक उर्जा या शक्तिया नुक्सान करने वाली या परेशानी उत्पन्न करने वाली ��ोती है ,,,यह समस्त प्रकृति दो प्रकार की शक्तियों या उर्जाओं से बनता है ,धनात्मक और रिनात्मक ,सूर्य और अपनी ऊर्जा से प्रकाशित ग्रह -नक्षत्रों से उत्पन्न होने वाली या प्राप्त होने वाली ऊर्जा धनात्मक मानी जाती है ,जबकि पृथ्वी और ग्रहों से उत्पन्न ऊर्जा या शक्ति प्रकृति के परिप्रेक्ष्य में रिनात्मक होती है ,,यह दोनों ही उर्जाये हमारे लिए सकारात्मक ही होती हैं ,इन दोनों के संतुलन और प्राप्ति से ही समस्त प्राणी और जीव -वनस्पतियों की उत्पत्ति और स्थिति होती है ,,,इन प्राकृतिक शक्तियों के अतिरिक्त दो अन्य पारलौकिक शक्तिया व्यक्तियों को प्रभावित करती है ,सकारात्मक और नकारात्मक ,,सकारात्मक वह है जिनकी शक्ति आपके लिए लाभदायक है जैसे आपके ईष्ट ,आपके कुल देवता ,महाविद्यायें,देवी-देवता आदि और नकारात्मक वह है जो आपके लिए समस्या ही उत्पन्न करते है जैसे भूत-प्रेत-पिशाच-ब्रह्म राक्षस-जिन्न-शाकिनी-डाकिनी आदि , आज के समय में नकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का प्रभाव सामान्यतया घरों परिवारों पर बहुत दिखने लगा है ,जबकि उन्हें पता ही नहीं होता की वे इनसे प्रभावित है ,उनके द्वारा बताये जाने वालो लक्षणों से प्रथम दृष्टया अकसर इनकी समस्या घरों में मिलती है ,इनके कारण वास्तु दोष ,घरों में सूर्य के प्रकाश की कमी ,गलत जगह गलत हिस्सों का बना होना ,पित्र दोष ,कुल देवता का दोष ,ईष्ट प्रबलता की कमी ,रहन-सहन की स्थिति ,विजातीयता ,धार्मिक श्रद्धा की कमी ,खुद की गलतियाँ ,प्रतिद्वंदिता ,अभिचार आदि हो सकते हैं , यदि घर से बाहर से घर पहुचने पर सर भारी हो जाए ,घर में अशांति का वातावरण हो ,कलह होता हो,पति-पत्नी में अनावश्यक अत्यधिक कलह हो ,पूजा-पाठ में मन न लगे ,पूजा पाठ से सदैव मन भागे ,पूजा पाठ करते समय सर भारी हो,लगे कोई आसपास है ,जम्हाई अधिक आये ,पूजा पाठ करने से दुर्घटनाएं या परेशानियां बढ़ जाएँ ,पूजा पाठ आदि धार्मिक क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न हो ,बीमारियाँ अधिक होती हों ,आय-व्यय का संतुलन बिगड़ा हो ,आकस्मिक दुर्घटनाएं अधिक होती हों ,रोग हो किन्तु कारण पता न चले ,सदस्यों में मतभेद रहते हों ,मन हमेशा अशांत रहता हो ,खुशहाली न दिखे ,प्रगति रुकी लगे अथवा अवनति होने लगे ,संताने विरुद्ध जाने लगें ,संतान बिगड़ने लगे ,उनके भविष्य असुरक्षित होने लगे ,संतान हीनता की स्थिति हो ,अधिक त्वचा रोग आदि हों ,अपने ही घर में भय लगे ,लगे कोई और है आसपास ,अपशकुन हो ,अनावश्यक आग आदि लगे ,मांगलिक कार्यों में अवरोध उत्पन्न हो तो समझना चाहिए की घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश है, इस स्थिति में इनका पता लगाने का प्रयास करके इन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए | जब आपके कुल देवता /देवी को ठीक से पूजा न मिले तो वे नाराज हो सकते हैं अथवा निर्लिप्त हो सकते हैं ,कमजोर भी हो सकते हैं ,ऐसे में नकारात्मक ऊर्जा को रोकने वाली मुख्य शक्ति हट जाती है और वह परिवार पर प्रभावी हो सकती है,कभी कभी कुलदेवता की नाराज���ी या निर्लिप्तता से या नकारात्मक ऊर्जा अधिक प्रबल होने से वह कुलदेवता या ईष्ट को दी जाने वाली पूजा खुद लेने लगती है जिससे उसकी शक्ति बढने लगती है और कुलदेवता/देवी कमजोर या रुष्ट होते जाते हैं और ईष्ट को भी पूजा नहीं मिलती है ,आपके ईष्ट कमजोर हों या कोई ईष्ट ही न हों या आप पूजा पाठ ठीक से न करते हों तो भी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव घर में हो सकता है ,,किसी से दुश्मनी हो तो वह भी आभिचारिक क्रिया करके किसी नकारात्मक ऊर्जा को आप पर भेज सकता है ,,आपके घर में पित्र दोष है तो पितरों के साथ अन्य शक्तियां भी जुड़ जाती हैं जिन्हें आपके परिवार से कोई लगाव नहीं होता है ,पित्र भले नुक्सान कभी कभी न करें किन्तु साथ जुडी शक्तिया अवश्य अपनी अतृप्त इच्छाएं आपके परिवार या आप से पूर्ण करने का प्रयास करती हैं ,,ऐसी स्थिति में प्रत्यक्ष तो लगता है की ४ लोग घर में हैं किन्तु खर्च १० लोगों के बराबर होता है और कोई न कोई समस्या उत्पन्न होती ही रहती है ,कभी कभी कोई नकारात्मक शक्ति किसी पर आधिपत्य करके अपने को देवी या देवता बताती है और पूजा प्राप्त करने लगती है जिससे उसकी शक्ति तो बढती ही है उसके निकाले जाने की भी संभावना कम हो जाती है ,,घर में अन्धेरा हो तो भी नकारात्मक शक्तिया घर में स्थान बना लेती हैं क्योकि ऐसी जगहों पर उन्हें अच्छा लगता है रहना ,फलतः वे वहां रहने वालों के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं ,,कभी कभी कोई नकारात्मक ऊर्जा आशक्तिवश भी किसी के पीछे लग जाती है और उससे अपनी अतृप्त वासनाएं पूर्ण करने का प्रयास करती है ,,कभी कभी किसी जमीन में नकारात्मक उर्जाओं का स्रोत होता है और उस पर मकान बना लेने पर वह वहां रहने वालों को परेशान करती है ,,कभी कभी बहुत अधिक दुर्घटनाएं अथवा हत्याएं भी किसी घर को इनका डेरा बना देते हैं , यदि व्यक्ति को लगे की उसके घर में या उस पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव है तो उसे किसी योग्य जानकार व्यक्ति ,सिद्ध व्यक्ति या उच्च स्तर के तांत्रिक से मिलना चाहिए ,,इनसे मुक्ति का उपाय करना चाहिए ,पित्र दोष ,कुल देवत/देवी दोष ,ईष्ट दोष ,गृह दोष का उपचार करना चाहिए ..
6……कैसे हटाये नकारात्मक उर्जा घर-परिवार-व्यक्ति पर ��े आपके घर में ,आप पर ,परिवार पर नकारात्मक उर्जा अर्थात नुक्सान और क्षति देने वाली ऊर्जा का प्रभाव हो तो उन्हें अपने अन्दर ,परिवार में ,घर में सकारात्मक ऊर्जा बढाकर हटाया जा सकता है ,,नकारात्मक ऊर्जा घर के अँधेरे हिस्सों में हो सकती है,व्यक्ति पर हो सकती है ,परिवार पर हो सकती है ,पित्रदोष ,कुलदेवता/देवी दोष ,स्थान दोष [भूमि में दबी,श्मशानिक क्षेत्र ,बड़े वृक्षीय क्षेत्र ],क्षेत्र दोष ,वास्तुदोष ,अभिचार कर्म ,हत्या आदि के कारन हो सकती है ,खुद आकर्षित होकर आई हो सकती है ,अक्सर इनका पता नहीं चलता ,पर इनके प्रभाव से उन्नति रूकती है ,तनाव-क्लेश होता है ,आया-व्यय की असमानता उत्पन्न होती है ,बचत संभव नहीं होता क्योकि ये किसी न किसी प्रकार असंतुलन उत्पन्न करते रहते हैं और अपना हिस्सा लेते रहते हैं ,रोग-व्याधि बढाते हैं ,दुर्घटनाये देते हैं,मांगलिक कार्यों ,पूजा पाठ में अवरोध आता है ,कोई काम ठीक से सफल नहीं होता ,परिवार में मतभेद -उत्पात रहता है ,संताने बिगड़ने लगती हैं ,भाग्य कुछ और कहता है और होता कुछ और है ,अक्सर यह इतनी धीमी तरीके से अथवा इस प्रकार से होता है की व्यक्ति को कारण समझ में नहीं आता और वह भाग्य का दोष समझता रहता है ,वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा देखता रहता है ,,किन्तु जब इनका प्रभाव समाप्त होता है तेजी से उन्नति-खुशहाली आती है तब उसे समझ में आता है की काश पहले ही हम यह सब कर देते |नकारात्मक ऊर्जा हटाने के लिए और सकारात्मक ऊर्जा वृद्धि के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए | [१] नकारात्मक ऊर्जा हटाने के लिए सर्वप्रथम वास्तुदोष पर ध्यान देकर उसके उपचार का उपाय कर घर में धनात्मक ऊर्जा बढ़ानी चाहिए ,इससे किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को घर में दिक्कत होने लगती है और उसका बल कम होता है ,,आपके घर के आसपास या ऊपर किसी बड़े वृक्ष की छाया से भी नकारात्मक ऊर्जा की वृद्दि हो सकती है ,इस प्रकार की शक्तियों को कुछ वृक्षों के पास शांति मिलती है अतः ये वहां रहना पसंद करती है और मनुष्यों को वहां से हटाने का प्रयास कर सकती है ,वास्तु दोष आदि के लिए वास्तु पूजा ,कुछ अभिमंत्रित वस्तुओ को दबाना ,फेंगसुई की वस्तुओं का प्रयोग ,भारतीय वास्तु निदान प्रयोग लाभप्रद होते है ,कभी कभी विशिष्ट समयों पर हवन आदि करते रहने से सकारात्मकता बढती है |मकान आदि से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए सूर्य का सुबह का प्रकास कमरों में पहुचना लाभदायक होता है ,ऐसी व्यवस्था की जाए की हर कमरे में प्रकाश की प्राकृतिक व्यवस्था हो और हवा आदि आ जा सके तो नकारात्मक ऊर्जा अपने आप कम हो जाती है | [२] कुलदेवता /देवी की पूजा यथोचित विधि से और यथोचित समय पर हो रही है की नहीं यह देखना चाहिए ,उनका पता न हो तो पता लगाने का प्रयास करना चाहिए ,,न पता लगे तो घर में शिव परिवार की पूजा में वृद्धि कर देनी चाहिए ,क्योकि ९९ %कुलदेवी/कुलदेवता किसी न किसी रूप से शिव परिवार से जुड़े होते हैं या इनके रूप होते है ,शिव परिवार से सम्बंधित देवी-देवता पृथ्वी और प्रकृति की मूल ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते है और उत्पत्ति-संहार -सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होते हैं ,अतः इनकी आराधना सभी कुलदेवता/देवी की अपूर्णता पूर्ण कर देती है ,,इस हेतु विशिष्ट सिद्ध साधक से अभिमंत्रित यन्त्र ,मूर्ति अथवा शिवलिंग आदि ले कर स्थापित किये जा सकते है ,अथवा धारण किये जा सकते हैं ..काली -महाविद्या-दुर्गा-गणेश-शिव की विशिष्ट पूजा सभी प्रकार से सुरक्षा प्रदान करती है | [३] तीसरे बिंदु पर ध्यान देना चाहिए की घर में पित्र दोष तो नहीं है ,पित्र दोष होने पर अपने कुछ पित्र जो अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए हों वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति भी परिवार से चाहते हैं ,सामान्य मृत्यु वाले भी परिवार के प्रति दृष्टि रखते हैं और उन्हें उचित सम्मान न मिलने ,उन्हें याद न करने ,संस्कारों के विरुद्ध कार्य करने से वे भी बाधाएं उत्पन्न करते हैं ,,सबसे बड़ी समस्या इनके साथ जुड़ने वाली दूसरी शक्तियां उत्पन्न करती हैं ,जिन्हें इस परिवार से कोई लगाव नहीं होता क्योकि ये दुसरे परिवारों से सम्बंधित होती हैं और मित्रता वश इस परिवार के पितरों से जुडी होती हैं ,क्योकि इन्हें इस परिवार से लगाव नहीं होता अतः अपनी सभी अतृप्त इच्छाएं ये इस परिवार से पूर्ण करने का प्रयास करते हैं ,और सीधे ��रिवार और घर को प्रभावित करते हैं ,चुकी इस परिवार के पित्र खुद असंतुष्ट होते हैं अतः उन्हें ये नहीं रोकते ,,अतः पित्र दोष न रहे यह सदैव ध्यान रखना चाहिए | [४] .नकारात्मक ऊर्जा आपके साथ कभी आपकी गलती से भी लग सकती है ,राह चलते किसी का उतारा हुआ है और आप प्रथमतः उसे लांघ देते हैं तो यह आपके साथ लग सकती है ,ऐसे उतारे या विशिष्ट स्थान-चौराहे आदि पर राखी गयी पूजन सामग्री ,फूल-माला-सिन्दूर-नीबू-अंडा-पिन आदि को छेड़ देने पर भी प्रभावित रहने की सम्भावना रहती है ,कभी भूलवश किसी मजार-कब्र ,समाधि ,चौरा ,पीठ आदि पर थूक देने या मूत्र त्याद आदि आसपास कर देने पर भी उससे सम्बंधित शक्ति रुष्ट हो आपके साथ लग सकती है और परेशान कर सकती है |अतः ऐसे स्थानों पर सावधानी बरतनी चाहिए और ऐसी समस्या के लिए अच्छे जानकार से सलाह लेनी चाहिए और निराकरण का उपाय करना चाहिए |इनसे बचने के लिए उग्र शक्ति की ताबीज-यन्त्र बहुत मददगार होता है जिसके प्रभाव से सामान्यरूप से ऐसी शक्तिया प्रभावित नहीं कर पाती .. [५] कभी नकारात्मक ऊर्जा किसी की सुन्दरता ,बलिष्ठता से भी आकृष्ट हो सकती है ,अथवा अपनी अतृप्त ईच्चायें पूर्ति के लिए भी व्यक्ति को निशाना बना सकती हैं ,अक्सर ऐसे मामलों में कुवारी अथवा नवविवाहिता महिलायें,बच्चे शिकार होते हैं ,यह नकारात्मक शक्तियां अधिकतर आत्माएं होती है जो अपनी अतृप्त इच्छाएं पूर्ण करने हेतु इन्हें शिकार बनाती हैं,कभी कभी यह बेहद शक्तिशाली भी होते हैं ,इसके उपचार के लिए अच्छे तांत्रिक की आवश्यकता होती है ,उग्र देवियों /शक्तियों के यन्त्र-ताबीज-पूजा से इन्हें हटाया जा सकता है |इन्हें गले-कमर-बाह में काले धागे,जड़े,ताबीज आदि धारण करने से इनसे बचाव होता है | [६] दुश्मन अथवा विरोधी भी तांत्रिकों आदि की सहायता से या स्वयं आभिचारिक टोटके और तंत्र क्रिया से अपने विरोधी पक्ष को परेशांन करते है और काफी क्षति कर सकते है ,यह आभिचारिक क्रियाएं वातावरण की अदृश्य नकारात्मक ऊर्जा को व्यक्ति पर प्रक्षेपित कर देती है ,इनमे कभी कभी आत्माओं को भी भेजा जाता है ,यद्यपि यह जरुरी नहीं होता ,पर यदि आत्मा ऐसी क्रिया से जुडी होती है तो मामला बेहद गंभीर हो जाता है क्योकि यह आत्मा बंधी होती है और खुद नहीं जा सकती जब तक की सम्बंधित तांत्रिक न चाहे ,यहाँ बेहद उच्च स्तर का साधक ही विरोधी तांत्रिक की क्रिया को काट कर यह समाप्त कर सकता है |सामान्य तांत्रिक अभिचार को घर में अभिमंत्रित जल छिडकने ,कवच आदि का पाठ करने ,गायत्री -काली -दुर्गा आदि के हवंन से रोका अथवा हटाया जा सकता है ,हवन-जल छिडकाव से सकारात्मक उर्जा प्रवाह बढ़ता है और इनका प्रभाव कम होता है | [७] कभी कभी किसी जमीन में हड्डी-राख-कब्र-समाधि आदि दबी होती है और जानकारी के अभाव में व्यक्ति वहां मकान बनवा लेता है ,तब भी उस घर में नकारात्मक ऊर्जा की समस्या आ सक��ी है ,कभी के नदी-तालाब-कुआ-श्मशान के हिस्सा रहे भूमि में भी कुछ भी दबा हो सकता है जो घर में रहने वालो को प्रभावित करता है और रोग-शोक-विवाद-कलह-उत्पात-अशांति-उन्नति में अवरोध -दुर्घटनाओं के लिए उत्तरदाई हो सकता है ,ऐसे में जमीन लेने पर उसकी जांच करनी चाहिए ,बाद में समस्या लगने पर अच्छे जानकार की मदद लेनी चाहिए ,तंत्र में इसके इलाज हैं ,उस मकान में ५ लाख महामृत्युंजय अथवा शतचंडी अथवा बगलामुखी अनुष्ठान करवाकर इन्हें रोका और मकान को शुद्ध किया जा सकता है ,जमीन में अभिमंत्रित पलास की कीले ,मकान में अभिमंत्रित कीले ठोककर सुरक्षित किया जा सकता है और सकारात्मक ऊर्जा बढाई जा सकती है |कोसिस करनी चाहिए की ऐसे मकानों में अन्धेरा हिस्सा न रहे ,दिन का प्रकाश हर हिस्से तक पहुचे . उपरोक्त तथ्यों पर ध्यान देते हुए व्यवस्था करने पर नकारात्मक ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सकता है फिर भी यदि इनका प्रभाव आ ही जाए तो घर-परिवार -व्यक्ति पर से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हटाने के लिए सकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ाना चाहिए, अच्छे जानकार की मदद लेनी चाहिए ,कोई भी दैवीय शक्ति जो मांगलिक हो उसका प्रभाव बढ़ाने से इन नकारात्मक शक्तियों की ऊर्जा का क्षरण होता है और इन्हें कष्ट होता है अतः ये पलायन करने लगते हैं ,उग्र और मांगलिक दैवीय शक्तियां यहाँ अधिक लाभदायक होते हैं यथा दुर्गा-काली-बगलामुखी-हनुमान आदि ,इनके पूजा-अनुष्ठान-यन्त्र प्रयोग-हवन आदि से नकारात्मक शक्तिया शीघ्र हटती हैं ..
7…..तंत्र दोधारी तलवार होता है जो चूक होने पर खुद का भी नुक्सान कर सकता है ,इसीतरह हर प्रक्रिया के सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों होते हैं ,जैसे वशीकरण से किसी बिगड़े को वश में कर अपने अनुकूल कर पारिवारिक शांति भी लाइ जा सकती है और किसी दुसरे को वश में कर गलत कार्य भी किया जा सकता है ,,इसीतरह उच्चाटन से किसी को किसी से दूर कर घर में शांति भी लाइ जा सकती है ,गलत होने से रोका भी जा सकता है ,ग्रह बाधा -रोग-वायव्य बाधा दूर भी किया जा सकता है और किसी का घर भी तोड़ा जा सकता है ,कहीं से हटाया भी जा सकता है ,,विद्वेषण से दुश्मनों में फूट भी डाली जा सकती है और किन्ही एक ही परिवार में दुश्मनी भी करवाई जा सकती है ,,इस प्रकार तंत्र के दुरुपयोग भी हो सकते है, इस लिए भी जब तक साधक या जानकार संपर्क करने वाले व्यक्ति को जान समझ नहीं लेता सही प्रक्रिया ,मंत्र आदि नहीं बताता ,न खुद करता है ,यद्यपि यहाँ अपवाद भी कुछ तांत्रिक होते हैं जो कुछ पैसों के लालच में किसी का बिना सोचे समझे अहित भी कर देते हैं ,,,कभी कभी ऐसी भी स्थितियां आती हैं की कोई आकर झूठ बोलता है की किसी के द्वारा उसे परेशानी है और जानकार उसे सही मान प्रक्रिया बता देता है और वह व्यक्ति उसका दुरुपयोग कर देता है ,,,पर सामान्यतया जानकार सोच समझकर ही निर्णय करता है और बिना जाने पूर्ण प्रक्रिया से अवगत नहीं कराता किसी को ,, किसी को कोई समस्या अगर हो तो उसे कहीं से देखकर कोई उपाय करने की बजाय किसी योग्य जानकार से संपर्क करना चाहिए और व्यक्तिगत रूप से अपनी समस्या व्यक्त कर उपाय पूछना चाहिए या करवाना चाहिए ,क्योकि अक्सर यहाँ वहां लिखे उपाय अधूरे हो सकते हैं ,मंत्र गलत हो सकते हैं ,सामग्री अशुद्ध हो सकती है ,प्रक्रिया ऊपर नीचे हो सकती है ,अधूरी अथवा अशुद्ध लिखी किसी पुस्तक का अंश लिखा हो सकता है ,जिससे लाभ की बजाय हानि भी हो सकती है ,,, यही हाल साधना का हो सकता है ,आई हुई ऊर्जा न सँभलने के कारण अनियंत्रित हो नुकसान भी पंहुचा सकती है ,फेसबुक जैसे माध्यमों पर तंत्र-ज्योतिष-गुप्त विद्याओं-अध्यात्म-योग आदि के पोस्टों की बाढ़ आई हुई है जिनमे से अधिकतर पुस्तकों से लेकर लिखी गयी होती हैं ,इनमे कितने अनुभूत है नहीं कहा जा सकता ,कितनी प्रक्रिया ,मंत्र आदि सही हैं नहीं कहा जा सकता है ,अतः हर स्तर पर सावधानी आवश्यक होती है ,,, सामान्यतया समझदार और योग्य साधक जिसने खुद क्रियाएं की हों वह सम्पूर्ण प्रक्रिया नहीं देता वह उनके सिद्धांत -कार्यप्रणाली -वैज्ञानिकता आदि व्यक्त कर देता है पर मूल क्रिया व्यक्त नहीं करता ,क्योकि वह उनके महत्व को समझता है ,अतः जब भी समस्या हो तो खूब सोच समझकर ,विचार विमर्श करके ,जानकार व्यक्ति के परामर्श से ही कोई क्रिया करनी अथवा करवानी चाहिए ,,तंत्र में सभी समस्याओं के समाधान हैं ,इसकी शक्ति अद्वितीय -अलौकिक है क्योकि इसकी शक्तिया ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्तियां हैं ,पर यह हर कदम पर सावधानी भी मांगता है ,अधिक लाभदायक का उल्टा अधिक नुकसानदायक भी होता है ,,,यह ऊर्जा उत्पन्न कर उसे नियंत्रित कर लाभ हेतु उपयोग करने का मार्ग है ,नियंत्रित करना नहीं आया और उर्जा उत्पन्न कर लिया तो क्षति भी संभव है ,नियंत्रित करके दिशा दे दी तो निर्माण भी संभव है ,हर क्रिया की प्रतिक्रया भी होती है अतः क्रिया के पहले प्रतिक्रया पर भी ध्यान होना चाहिए ,,,किसी द्वारा कोई क्रिया करवाई या खुद की जाए तो यह भी हमेशा ध्यान होना चाहिए की यदि यह क्रिया वापस लौट आई तो क्या हम उसे संभाल पायेंगे ,,कभी ऐसा भी होता है की कोई क्रिया आपने की या करवाई किसी तांत्रिक से वह क्रिया वहां से वापस लौटा दी गयी जहाँ के लिए क्रिया की गयी थी ,उस समय वापस आई क्रिया की शक्ति दोगुनी होती है ,ऐसे में अगर क्रिया करने वाले तांत्रिक के पास शक्ति है तो वह तो नुक्सान नहीं उठाएगा ,किन्तु आपका नुक्सान हो सकता है ,अतः जब भी कुछ करें बनाने के लिए, शांति -संमृद्धि के लिए करें ,किसी को परेशां करने के लिए नहीं ,और खुद कुछ करने की अपेक्षा योग्य जानकार की मदद ले ,यदि आप तंत्र को ठीक से नहीं जानते हैं तो …….
8……आप पर या घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हो सकता है प्रकृति में सकारात्मक ऊर्जा या शक्ति हमारे लिए लाभदायक और नकारात्मक उर्जा या शक्तिया नुक्सान करने वाली या परेशानी उत्पन्न करने वाली होती है ,,,यह समस्त प्रकृति दो प्रकार की शक्तियों या उर्जाओं से बनता है ,धनात्मक और रिनात्मक ,सूर्य और अपनी ऊर्जा से प्रकाशित ग्रह -नक्षत्रों से उत्पन्न होने वाली या प्राप्त होने वाली ऊर्जा धनात्मक मानी जाती है ,जबकि पृथ्वी और ग्रहों से उत्पन्न ऊर्जा या शक्ति प्रकृति के परिप्रेक्ष्य में रिनात्मक होती है ,,यह दोनों ही उर्जाये हमारे लिए सकारात्मक ही होती हैं ,इन दोनों के संतुलन और प्राप्ति से ही समस्त प्राणी और जीव -वनस्पतियों की उत्पत्ति और स्थिति होती है ,,,इन प्राकृतिक शक्तियों के अतिरिक्त दो अन्य पारलौकिक शक्तिया व्यक्तियों को प्रभावित करती है ,सकारात्मक और नकारात्मक ,,सकारात्मक वह है जिनकी शक्ति आपके लिए लाभदायक है जैसे आपके ईष्ट ,आपके कुल देवता ,महाविद्यायें,देवी-देवता आदि और नकारात्मक वह है जो आपके लिए समस्या ही उत्पन्न करते है जैसे भूत-प्रेत-पिशाच-ब्रह्म राक्षस-जिन्न-शाकिनी-डाकिनी आदि , आज के समय में नकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का प्रभाव सामान्यतया घरों परिवारों पर बहुत दिखने लगा है ,जबकि उन्हें पता ही नहीं होता की वे इनसे प्रभावित है ,उनके द्वारा बताये जाने वालो लक्षणों से प्रथम दृष्टया अकसर इनकी समस्या घरों में मिलती है ,इनके कारण वास्तु दोष ,घरों में सूर्य के प्रकाश की कमी ,गलत जगह गलत हिस्सों का बना होना ,पित्र दोष ,कुल देवता का दोष ,ईष्ट प्रबलता की कमी ,रहन-सहन की स्थिति ,विजातीयता ,धार्मिक श्रद्धा की कमी ,खुद की गलतियाँ ,प्रतिद्वंदिता ,अभिचार आदि हो सकते हैं , यदि घर से बाहर से घर पहुचने पर सर भारी हो जाए ,घर में अशांति का वातावरण हो ,कलह होता हो,पति-पत्नी में अनावश्यक अत्यधिक कलह हो ,पूजा-पाठ में मन न लगे ,पूजा पाठ से सदैव मन भागे ,पूजा पाठ करते समय सर भारी हो,लगे कोई आसपास है ,जम्हाई अधिक आये ,पूजा पाठ करने से दुर्घटनाएं या परेशानियां बढ़ जाएँ ,पूजा पाठ आदि धार्मिक क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न हो ,बीमारियाँ अधिक होती हों ,आय-व्यय का संतुलन बिगड़ा हो ,आकस्मिक दुर्घटनाएं अधिक होती हों ,रोग हो किन्तु कारण पता न चले ,सदस्यों में मतभेद रहते हों ,मन हमेशा अशांत रहता हो ,खुशहाली न दिखे ,प्रगति रुकी लगे अथवा अवनति होने लगे ,संताने विरुद्ध जाने लगें ,संतान बिगड़ने लगे ,उनके भविष्य असुरक्षित होने लगे ,संतान हीनता की स्थिति हो ,अधिक त्वचा रोग आदि हों ,अपने ही घर में भय लगे ,लगे कोई और है आसपास ,अपशकुन हो ,अनावश्यक आग आदि लगे ,मांगलिक कार्यों में अवरोध उत्पन्न हो तो समझना चाहिए की घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश है, इस स्थिति में इनका पता लगाने का प्रयास करके इन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए | जब आपके कुल देवता /देवी को ठीक से पूजा न मिले तो वे नाराज हो सकते हैं अथवा निर्लिप्त हो सकते हैं ,कमजोर भी हो सकते हैं ,ऐसे में नकारात्मक ऊर्जा को रोकने वाली मुख्य शक्ति हट जाती है और वह परिवार पर प्रभावी हो सकती है,कभी कभी कुलदेवता की नाराजगी या निर्लिप्तता से या नकारात्मक ऊर्जा अधिक प्रबल होने से वह कुलदेवता या ईष्ट को दी जाने वाली पूजा खुद लेने लगती है जिससे उसकी शक्ति बढने लगती है और कुलदेवता/देवी कमजोर या रुष्ट होते जाते हैं और ईष्ट को भी पूजा नहीं मिलती है ,आपके ईष्ट कमजोर हों या कोई ईष्ट ही न हों या आप पूजा पाठ ठीक से न करते हों तो भी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव घर में हो सकता है ,,किसी से दुश्मनी हो तो वह भी आभिचारिक क्रिया करके किसी नकारात्मक ऊर्जा को आप पर भेज सकता है ,,आपके घर में पित्र दोष है तो पितरों के साथ अन्य शक्तियां भी जुड़ जाती हैं जिन्हें आपके परिवार से कोई लगाव नहीं होता है ,पित्र भले नुक्सान कभी कभी न करें किन्तु साथ जुडी शक्तिया अवश्य अपनी अतृप्त इच्छाएं आपके परिवार या आप से पूर्ण करने का प्रयास करती हैं ,,ऐसी स्थिति में प्रत्यक्ष तो लगता है की ४ लोग घर में हैं किन्तु खर्च १० लोगों के बराबर होता है और कोई न कोई समस्या उत्पन्न होती ही रहती है ,कभी कभी कोई नकारात्मक शक्ति किसी पर आधिपत्य करके अपने को देवी या देवता बताती है और पूजा प्राप्त करने लगती है जिससे उसकी शक्ति तो बढती ही है उसके निकाले जाने की भी संभावना कम हो जाती है ,,घर में अन्धेरा हो तो भी नकारात्मक शक्तिया घर में स्थान बना लेती हैं क्योकि ऐसी जगहों पर उन्हें अच्छा लगता है रहना ,फलतः वे वहां रहने वालों के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं ,,कभी कभी कोई नकारात्मक ऊर्जा आशक्तिवश भी किसी के पीछे लग जाती है और उससे अपनी अतृप्त वासनाएं पूर्ण करने का प्रयास करती है ,,कभी कभी किसी जमीन में नकारात्मक उर्जाओं का स्रोत होता है और उस पर मकान बना लेने पर वह वहां रहने वालों को परेशान करती है ,,कभी कभी बहुत अधिक दुर्घटनाएं अथवा हत्याएं भी किसी घर को इनका डेरा बना देते हैं , यदि व्यक्ति को लगे की उसके घर में या उस पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव है तो उसे किसी योग्य जानकार व्यक्ति ,सिद्ध व्यक्ति या उच्च स्तर के तांत्रिक से मिलना चाहिए ,,इनसे मुक्ति का उपाय करना चाहिए ,पित्र दोष ,कुल देवत/देवी दोष ,ईष्ट दोष ,गृह दोष का उपचार करना चाहिए ..
9….वायव्य बाधा [भूत-प्रेत-ब्रह्म की समस्या ] तो नहीं सामान्यतया त्वचा रोग संक्रमण ,ग्रह स्थितियों आदि के कारण होते है ,जब ग्रहों की दशा-अंतर्दशा रोग कारक ग्रहों की आती है तब ��ह रोग हो सकते है ,अथवा संक्रमण से भी यह होते है ,कारण और भी हो सकते है |शायद इससे बहुत से लोग असहमत होगे की ये रोग वायव्य बाधाओं यथा ब्रह्मराक्षस ,प्रेत आदि के प्रकोप से अथवा तांत्रिक अभिचारो के कारण भी हो सकते है |बहुत से लोग इन वायव्य बाधाओं और तांत्रिक अभिचारो का अस्तित्वा से ही असहमत होगे |किन्तु कभी -कभी त्वचा रोग इनके कारण भी उत्पन्न हो सकते है ,तांत्रिक उपचारों द्वारा इनका ठीक होना भी पाया गया है| ऐसा माना जाता है की वायाव्य् बाधा [ब्रह्म राक्षस ]के कारण श्वेत कुष्ठ और जली हुई त्वचा जैसा रोग उत्पन्न होता है ,त्वचा पर अपने आप फफोले पड़ना ,जलन ,सिकुडन ,चकत्ते ,घाव आदि होना इसके कारण हो सकते है |इनके साथ सर भारी होना ,दृष्टि वक्र होना ,दौरे जैसे लक्षण ,शारीर गर्म रहना ,शारीर से तीब्र दुर्गन्ध आदि भी उत्पन्न हो सकते है |चेचक जैसे त्वचा रोग को सदियों से दैवी या माता का प्रकोप माना जाता रहा है और पैसा उतारना तथा घरेलु उपचारों से ठीक होते भी देखा गया है | .ऐसे में त्वचा रोग होने पर ज्योतिषीय योगो के अध्ययन के बाद ,इसे भी दृष्टि में रखा जाए तो सफलता शीघ्र मिलाने की उम्मीद की जा सकती है ,,,,ज्योतिष योग न हो और समस्या हो तो उपाय कारगर हो सकते है |ऐसी समस्या लगने पर बगलामुखी यंत्र धारण करना ,पूजा करना ,बागला प्रत्यंगिरा कवच का पाठ लाभकारी हो सकता है ,,,भैरव उपासना ,महामृत्युंजय जप ,गणपति उपासना भी लाभकारी हो सकती है ,,,,यद्यपि यह सारे उपाय जानकार व्यक्ति अपने ज्ञान और क्षमता के अनुसार करता है या बताता है ,,इस हेतु भिन्न व्यक्ति भिन्न तरीके अपनाते है ,,किन्तु इन उपायों से लाभ होते पाया जाता है यदि बाधा है ..
10….टोने-टोटके भी प्रारब्ध बदल सकते हैं लोग कहते हैं की टोन-टोटकों से कुछ नहीं होता ,जो होना है वह होकर रहेगा |जो भाग्य में लिखा है ,जो पूर्व कर्मो के अनुसार प्रारब्ध बना है वह होगा ही चाहे कुछ भी किया जाए |यह गलत धरना है ,यह पूर्ण भाग्यवादियों की भाषा है |ऐसी विचारधाराओं के लोग अच्छा होने पर खुद को श्रेय और गलत होने पर भाग्य को श्रेय देते रहते हैं |हम सभी प्रकृति के अंग हैं ,यहाँ प्रत्येक क्रिया की एक निश्चित प्रतिक्रिया होती है |जिस प्रकार पूर्वकृत कर्मो की प्रतिक्रिया स्वरुप आज का प्रारब्ध बना है ,उसी प्रकार कुछ क्रियाएं यदि विपरीत दिशा में की जाए जो तात्कालिक प्रभाव रखती हों तो इन प्रारब्धों में भी कमी की जा सकती है अथवा प्रारब्ध की दिशा में क्रिया करके उसकी गति बढ़ा दी जाए तो प्रारब्धों की भी गति और समय बढ़ सकता है |प्रारब्ध जानने की कई विधिया जैसे ज्योतिष आदि प्रचलित है |इनके अनुसार किये गए टोन टोटके इनको प्रभावित करते हैं |टोना किसी भी अनुष्ठानिक और विधिपूर्वक की गयी क्रिया को कहते हैं ,जिनमे सामान्यतया प्रकृति की उच्च ��्तर की शक्तियों का सहयोग लिया जाता है जबकि टोटका छोटे सामान्य उपाय हैं जो समय समय पर किये जाते हैं | यह समस्त ब्रह्माण्ड एक शक्ति से संचालित है |ब्रह्माण्ड की शक्ति से ही ग्रहों पर प्रकृति की शक्ति नियंत्रण करती है |प्रकृति [ब्रह्माण्ड] की शक्ति प्रत्येक कण ,जीव ,वनस्पति ,जल ,वायु में व्याप्त है |यही शक्ति या उर्जा इन टोन -टोटकों में भी कार्य करती है |मानसिक शक्ति की उर्जा ,वस्तु की ऊर्जा ,विशेष गृह स्थितियों से उत्पन्न विशेष उर्जा ,वातावरणीय शक्तियों की उर्जा ,ध्वनि की ऊर्जा आदि का ही संयोजन इन टोन-टोटकों में भी होता है ,जिसे एकीकृत करके लक्ष्य पर प्रक्षेपित किया जाता है | प्रत्येक जीव ,वनस्पति के शरीर में प्रकृति की उर्जा संरचना के अनुरूप ही उर्जा परिपथ निर्मित होता है |मनुष्य का शरीर इस ऊर्जा परिपथ से ही संचालित होता है |इसका उर्जा चक्र निर्धारित और निश्चित है |यह प्रकृति की देंन है |इसी उर्जा चक्र के अनुसार ही उसे सभी कर्म करने होते है |उर्जा चक्र की इस व्यवस्था में संघर्षशील कर्म द्वारा या तकनिकी द्वारा उर्जा व्यवस्था में परिवर्तन किया जा सकता है |क्योकि यह भी प्रकृति की एक ऊर्जा व्यवस्था ही है ,और इसमें अगर दूसरी ऊर्जा को प्रक्षेपित कर दिया जाए तो इस व्यवस्था में परिवर्तन हो सकता है |जब उर्जा चक्र में परिवर्तन होगा तो प्रारब्ध भी प्रभावित होगा ही ,क्योकि यह भी ऊर्जा व्यवस्था से ही संचालित होता है | निश्चित समय ,स्थान ,दिशा ,सामग्री ,देवता ,भाव ,उद्देश्य के साथ प्रबल मानसिक शक्ति से जब कोई क्रिया की जाती है तो उससे एक विशिष्ट और अति तीब्र उर्जा या शक्ति उत्पन्न होती है ,जिसमे उपरोक्त सभी की शक्तियों का संग्रह होता है ,,इसे जब किसी लक्ष्य पर प्रक्षेपित किया जाता है तो यह उस लक्ष्य के उर्जा परिपथ को प्रभावित करता है और उससे जुड़ जाता है |इसकी प्रकृति सकारात्मक है तो यह सम्बंधित परिपथ को सबल बना उसे नई गति और ऊर्जा दे देता है ,और अगर नकारात्मक है तो उः उस परिपथ को बाधित-रुग्न कर देता है }परिणाम स्वरुप सम्बंधित व्यक्ति के कर्म-सोच-क्षमता-विचार-व्यवहार-शारीरिक स्थिति प्रभावित हो जाती है |इसके फल स्वरुप उपयुक्त अथवा अनुपयुक्त कर्मो के अनुसार कल मिलने वाले परिणाम आज मिल सकते है अथवा नहीं मिल सकते हैं |मिलने वाले परिणामो की मात्र भी प्रभावित हो जाती है | टोन-टोटके में भी वाही उर्जा विज्ञान काम करता है जो प्रकृति का उर्जा विज्ञान है |क्योकि जीव धारियों-वनस्पतियों में भी वाही ऊर्जा विज्ञान कार्यरत है अतः इन टोन-टोटकों से वह प्रभावित हो जाते हैं |टोन टोटकों से उत्पन्न ऊर्जा लक्ष्य को प्रभावित कर वहां की प्रकृति बदल देती है |वाहन चला रहे एक व्यक्ति द्वारा किसी निर्णय में एक सेकेण्ड का विलम्ब उसे मौत के मुह में पंहुचा सकता है |किसी व्यवसायी द्वारा लिया गया एक सही निर्णय लाखों-करोड़ों का लाभ दे सकता है |किसी के मुह से निकला एक गलत शब्द उसकी नौकरी ले भी सकता है और नौकरी दिला भी सकता है |यह सब ऊर्जा प्रणाली से उत्पन्न मानसिक स्थिति के उदाहरण मात्र हैं | टोन-टोटकों का उपयोग अच्छे और बुरे दोनों रूपों ��ें होता है |इन सब के पीछे प्रकृति अर्थात तंत्र का ऊर्जा विज्ञान होता है |टोना अर्थात पूजा-अनुष्ठान-साधना में तो बड़ी ऊर्जा शक्तियां कार्य करती हैं जो भाग्य में भी परिवर्तन कर सकती है |किन्तु टोटकों में भी प्रकृति के आसान किन्तु प्रभावी विकल्पों का ही चयन किया जाता है ,जो क्षण-प्रतिक्षण की क्रिया को प्रभावित करती हैं |चुकी यह उर्जा विज्ञान है और हर जगह ऊर्जा विज्ञान ही कार्य करता है अतः परिवर्तन होता है |यदि ऐसा न होता तो चिकित्सा,औसधी,उपाय ,उपचार का कोई महत्व ही नहीं होता और यह प्रकृति में किसी के मष्तिष्क से उत्पन्न ही नहीं होते और इनकी अवधारणा ही विक्सित न होती |क्योकि जब सब कुछ निश्चित ही होता तो सब खुद नियत चलता ,प्रकृति ऐसी उर्जा उत्पन्न ही न होने देती जिससे इनकी अवधारणा विक्सित हो सके ,,ऋषि-महर्षियों-देवताओं द्वारा इसीलिए पूजा-उपचार-उपाय-तंत्र का विकास किया गया क्योकि प्रकृति में उर्जा विज्ञान ही कार्यरत है और इसमें ऊर्जा द्वारा ही परिवर्तन संभव है |.
11….विद्या लाभ तथा स्मरणशक्ति के लिए [१] जो विद्यार्थी पढ़ाई में कमजोर हों ,हमेशा असफल होता हो तो सियार के बाल को चांदी या सोने की ताबीज में धारण कराने से लाभ होता है | [2] यदि कोई विद्यार्थी मंगलवार व् शनिवार को सुन्दरकाण्ड का पाठ व् शिव की पूजा करता है तो वह विद्यावान बनता है | [३] प्रत्येक रविवार सुर्यपूजन व् बिना नमक का भोजन कर लाल वस्तु का दान करने से सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है | [४] बच्चे की स्मरणशक्ति बढाने के लिए शनिवार से शनिवार तक नित्य रात्री बारह बजे उसकी शिखा मूल के दो या चार केश काटकर एकत्र कर लें ,,फिर रविवार को इन सबको एकत्र करके दरवाजे की चौखट पर जलाकर पैर की एड़ी से मसल दें | [५] शुक्रवार को रात्री में कौवे के सात पंखों को धोकर श्वत धागे से बांधकर रखें |फिर दुसरे दिन रात्रि में उन पंखों को धुप दीप दिखाकर धागा हटा दें |हटाये हुए धागे को दायें हाथ में धारण करें तथा पंखों को अपने पास रखें तो स्मरण शक्ति बढती है [६] शनिवार को कौवे की पीठ के सात पंखों को दिन में धोकर सुखा लें तथा रात्री में धुप-दीप दिखाकर सिरहाने के नीचे रख दें |दुसरे दिन पंखों का चूरा बनाकर किसी भी रंगीन कागज़ में पुडिया बनाकर ताम्र या रजत यन्त्र में डालकर धारण करने से से स्मरण शक्ति बढती है |धारण करने के बाद यन्त्र को उतारें नहीं विद्या बुद्धि एवं सफलता प्राप्ति हेतु रुद्राक्ष धारण विद्या,ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति के लिए तीन मुखी व छ: मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसे धारण करने से तीब्र बुद्धि होती है व अद्भुत स्मरण शक्ति प्राप्त होती है, जो पढाई में कमजोर हों वे इसे अवश्य धारण करें,बहुत ��्यादा लाभ मिलेगा, तीन मुखी या छ: मुखी रुद्राक्ष धारण, करने से रचनात्मक कार्यों ��ें भी बहुत लाभ मिलता है, जैसे यदि आप फैशन डिजाइनर हो, सौन्दर्य जगत से जुड़े हो, लेखक या सम्पादक हों, चित्रकार या अनुसंधानकर्ता हों तो ये रुद्राक्ष आपको बहुत लाभ प्रदान करेंगे,|……
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aajkarashifal · 7 years ago
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स्वास्थ्य की जागरूकता का महापर्व है धनतेरस
सदगुरु स्वामी आनन्द जौहरी पहला सुख निरोगी काया। दूसरा सुख घर में माया। अच्छी सेहत स��से बड़ा धन है। यदि स्वस्थ देह ही न हो, तो माया किस काम की। शायद इसी विचार को हमारे मनीषियों ने युगों पहले ही भांप लिया था। उत्तम स्वास्थ्य और स्थूल समृद्धि के बीच की जागृति का पर्व है धनतेरस, जो प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। आध्यात्मिक मान्यताओं में दीपावली की महानिशा से दो दिन पहले जुंबिश देने वाला यह काल धन ही नहीं, चिकित्सा जगत की समृद्ध विरासत का प्रतीक है या काल यक्ष यक्षिणीयों के जागरण दिवस के रूप में भी प्रख्यात है। यक्ष-यक्षिणी स्थूल जगत के उन चमकीले तत्वों के नियंता कहे जाते हैं, जिन्हें जगत दौलत मानता है। लक्ष्मी और कुबेर यक्षिणी और यक्ष माने जाते हैं। यक्ष-यक्षिणी ऊर्जा का वह पद कहा जाता है, जो हमारे जीने का सलीक़ा नियंत्रित करता हैं। सनद रहे कि धन और वैभव का भोग बिना बेहतर सेहत के सम्भव नहीं है, लिहाज़ा ऐश्वर्य के भोग के लिये कालांतर में धन्वन्तरि की अवधारणा सहज रूप से प्रकट हुई, जो नितांत वैज्ञानिक प्रतीत होती है। आम धारणा दीपावली को भी धन का ही पर्व मानती है, जो सही नहीं है। दिवाली तो आंतरिक जागरण की बेला है। यह सिर्फ़ धन ही नहीं हर बल्कि हर प्रयास के सिद्धि की घड़ी है। धन का पर्व तो धनतेरस को ही माना जाता है। यह पर्व औषधि और स्वास्थ्य के स्वामी धन्वंतरि का भी दिन है। इसके नाम में धन और तेरस शब्दों के बारे में मान्यता है कि इस दिन खरीदे गए धन (स्वर्ण, रजत) में 13 गुना अभिवृद्धि हो जाती है। प्राचीन काल से ही इस दिन चांदी खरीदने की परंपरा रही है। चांदी चंद्रमा का प्रतीक है और चंद्रमा धन व मन दोनों का स्वामी है। चंद्रमा शीतलता का प्रतीक भी है और संतुष्टि का भी। शायद इसके पीछे की सोच यह है कि संतुष्टि का अनुभव ही सबसे बड़ा धन है। जो संतुष्ट है, वही धनी भी है और सुखी भी। धन का भोग करने के लिए लक्ष्मी की कृपा के साथ ही उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की भी जरूरत होती है। यही अवधारणा धन्वन्तरि के वजूद की बुनियाद बनती है। भगवान धन्वंतरि को हिंदू धर्म में देव वैद्य का पद हासिल है। कुछ ग्रंथों में उन्हें विष्णु का अवतार भी कहा गया है। धन का वर्तमान भौतिक स्वरूप और धन्वंतरि, दोनों के ही सूत्र समुद्र मंथन में गुंथे हैं। पवित्र कथाएं कहती हैं कि कार्तिक कृष्ण द्वादशी को कामधेनु, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को महाकाली और अमावस्या को महालक्ष्मी का प्राकट्य हुआ। प्राकट्य के समय चतुर्भुजी धन्वंतरि के चार हाथों में अमृत कलश, औषधि, शंख और चक्र ��िद्यमान हैं। प्रकट होते ही उन्होंने आयुर्वेद का परिचय कराया। आयुर्वेद के संबंध में कहा जाता है कि सर्वप्रथम ब्रह्मा ने एक सहस्त्र अध्याय तथा एक लाख श्लोक वाले आयुर्वेद की रचना की जिसे अश्विनी कुमारों ने सीखा और इंद्र को सिखाया। इंद्र ने इसे धनवंतरी को कुशल बनाया। धनवंतरी से पहले आयुर्वेद गुप्त था। उनसे इस विद्या को विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने सीखा। सुक्षुत विश्व के पहले सर्जन यानि शल्य चिकित्सक थे। धनवंतरी के वंशज श्री दिवोदास ने जब काशी में विश्व का प्रथम शल्य चिकित्सा का विद्यालय स्थापित किया तो सुश्रुत को इसका प्रधानाचार्य बनाया गया। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से प्रकट होने के बाद जब धनवंतरी ने विष्णु से अपना पद और विभाग मांगा तो विष्णु ने कहा कि तुम्हें आने में थोड़ा विलंब हो गया। देवों को पहले ही पूजित किया जा चुका है और समस्त विभागों का बंटवारा भी हो चुका है। इसलिए तुम्हें तत्काल देवपद नहीं दिया जा सकता। पर तुम द्वितीय द्वापर में पृथ्वी पर राजकुल में जन्म लोगे और तीनों लोक में तुम प्रसिद्घ और पूजित होगे। तुम्हें देवतुल्य माना जाएगा। तुम आयुर्वेद का अष्टांग विभाजन करोगे। इस वर के कारण ही द्वितीय द्वापर युग में वर्तमान काशी में संस्थापक (मूल काशी के संस्थापक भगवान शिव कहे जाते हैं) काशी नरेश राजा काश के पुत्र धन्व की संतान के रूप में भगवान धनवंतरी ने पुनः जन्म लिया। जन्म लेने के बाद भारद्वाज से उन्होंने आयुर्वेद को पुनः ग्रहण करके उसे आठ अंगों में बांटा। धनवंतरी को समस्त रोगों के चिकित्सा की पद्धति ज्ञात थी। कहते हैं कि शिव के हलाहल ग्रहण करने के बाद धनवंतरी ने ही उन्हें अमृत प्रदान किया और तब उसकी कुछ बूंदें काशी नगरी में भी छलकी। इस प्रकार काशी कभी न नष्ट होने वाली कालजयी नगरी बन गई। धनत्रयोदशी में धन शब्द को धन-संपत्ति और धन्वंतरि दोनों से ही जोड़कर देखा जाता है। धन्वंतरि के चांदी के कलश व शंख के साथ प्रकट होने के कारण इस दिन शंख के साथ पूजन सामग्री, लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा के साथ चांदी के पात्र या बर्तन खरीदने की परंपरा आरंभ हुई। कहीं-कहीं इस कलश को पीतल का भी बताया जाता है। कालांतर में चांदी या पीतल के बर्तनों की जगह कीमत और सुगमता के कारण स्टील का प्रचलन शुरू हो गया। हालांकि पारंपरिक रूप से स्वर्ण और चांदी को ही श्रेष्ठ माना जाता है। तंत्र शास्त्र में इस दिन लक्ष्मी, गणपति, विष्णु व धन्वंतरि के साथ कुबेर की साधना की जाती है। इस रात्रि में कुबेर यंत्र, कनकधारा यंत्र, श्री यंत्र व लक्ष्मी स्वरूप श्री दक्षिणावर्ती शंख के पूजन को सुख समृद्धि व धन प्राप्ति के लिए अचूक माना गया है। ��स दिन अपने मस्तिष्क को स्वर्ण समझ कर ध्यानस्थ होने से धन अर्जित करने की आन्तरिक क्षमता सक्रिय होती है, जो सही मायने में समृद्धि का कारक बनती है। धनतेरस की रात्रि में उत्तराभिमुख धन्वन्तरि के मंत्र 'ॐ धन्वंतरये नमः' के जाप से उत्तम आरोग्य प्राप्त होता है, ऐसा मान्यतायें कहती हैं। परम्पराओं के अनुसार इस रात्रि से भाई दूज तक नित्य दक्षिण मुख करके कुबेर के मंत्र का जाप और पश्चिम मुखी होकर महालक्ष्मी के मंत्रो का उपांशु जाप अपार समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। कुबेर मंत्र- मंत्र- ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:।। या ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा। लक्ष्मी मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥ या ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मिभ्यो नमः॥ या ॐ श्रीं श्रिये नमः।। सदगुरु स्वामी आनन्द जी मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट। http://dlvr.it/Pw2vjm
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manojjainastrologer-blog · 7 years ago
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#नवरात्र में #संपत्ति में ऐसे करें #निवेश अगर आप #संपत्ति में #निवेश करने, #मकान- #दुकान, #आफिस आदि खरीदने का मन बना रहे हैं, तो #नवरात्र इसके लिए उपयुक्त समय है। इन दिनों किया गया छोटा निवेश भी बढ़ी #सफलता दिलाता है। दक्षिण मुखी व पश्चिम मुखी #घर बेहद #शुभ होते है, परंतु इनका चयन कस्टमाईस्ड #वास्तु के अनुसार हो। नया घर बना रहे हैं तो नीवं के लिए सही दिशा से खुदाई शुरू किया जाना नितांत आवश्यक है। ऐसा नहीं किए जाने से निर्माण में तमाम किस्म की #बाधाओं का सामना करना पडता है। ईशान मुखी घर उनके लिए ठीक है जो पैसे के दृष्टिकोण से #जीवन व्यतीत नहीं कर रहे। ऐसी #प्रॉपर्टी न ले जिसका नार्थ ईस्ट और साउथ वेस्ट दोनों कटे हुए हो या इन दोनो दिशाओं में #टॉयलेट हो। साधारणतय: यह मान लिया जाता है कि साउथ ईस्ट यानी अग्नि कोण में #रसोई होना बहुत शुभ है परंतु ऐसा सभी के लिए उचित नहीं है साउथ ईस्ट में बनी रसोई आपको #धनहानि, #रिलेशनशिप में कड़वाहट, क़ानूनी #समस्या इत्यादि दिलवा सकती है। घर के मुखिया की जन्मतिथि में उपस्थित पाँच तत्वों के अनुसार इसको उचित दिशा में बनाना चाहिए। ऐसी प्रोपर्टी जिसके चारों तरफ बहता जल है या आप ��सके चारों तरफ़ भ्रमण कर सकते है तो यह आपकी #आर्थिक #समृद्धि के लिए अति उत्तम है। #जल कृत्रिम भी हो सकता है। उत्तर व पूर्व दिशा में पश्चिम एवं दक्षिण की तुलना में ज्यादा खाली जगह छोडना शुभ है।
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gajanankrishnamaharaj · 7 years ago
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दक्षिण मुखी भवन । दझिण मुखी भवन के बारे यह भ्रांति फैल गई है की दक्षिण मुखी भवन अशुभफलदायक होते है जबकि लोगो की यह विचार धारा सरासर गलत है क्योंकि सभी दिशाये ईश्वर द्वारा प्रकृति के नियमो के आधार पर आधारित है। कोई भी दिशा कभी गलत नही होती ।यदि किसी भी दिशा मे वास्तु के नियमो को ध्यान मे रखकर तथा वास्तु के नियमो के आधार पर निर्माण कार्य कराया जाये तो समस्याये पैदा होने की सम्भावना लगभग शुन्य हो जाती है । आज मकान भवन या भूमी लेते समय लोगो की पहली पसन्द पूर्व फिर उत्तर फिर पश्चिम व अंत मे मजबूर वश दझिण दिशा पसन्द करते है । हम दझिण मुखी भवन या प्लाट की बात कर रहे थे।यदि दझिण मुखी भवन का निर्माण वास्तु के नियमो को ध्यान मे रखकर करवाया जाये तो यह दझिण दिशा अन्य दिशाओ की तुलना मे बहुत ज्यादा यश सम्मान पाता है और यहाँ रहने वालो का जीवन वैभवशाली हो जाता है । इस परिवार के लोग चौतरफा तरक्की कर सुखी और अचछा जीवन जीता है । लोगो के दिमाग मे यह बात गहराई तक समाई हुई है कि दक्षिण मुखी भवन मे निवास करने वाले लोग कभी सुखी जीवन जी नही सकते हमेशा परेशानी मे रहते है जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है बस ध्यान रखना है की दझिण मुखी भवन का निर्माण मै वास्तु के नियमो का पालन किया गया हो। ऐसा भूखंड जिसमे दझिण मे ही सङक हो वह दक्षिण मुखी भूखंड कहलाता है ।दक्षिण मुखी भूखंड होने का सबसे ज्यादा प्रभाव घर की महिलाओ पर पङता है दक्षिण दिशा को सामान्यतः अशुभ माना गया है जबकि ऐसा नही है । दक्षिण दिशा काल पुरुष का बायां सीना किङनी फेफङा आते है ।यदि दक्षिण मुखी भूखंड पर निर्माण मे वास्तु के नियमो का पालन किया जाये तो यह दिशा अन्य दिशाओ मे रहने वाले लोगो से बेहतर परिणाम देती है ।वास्तु अनुसार निर्माण के बाद इस घर मे रहने वाले लोग उन्नतिशील व सुखदायक जीवन जीते है । बिना तोड़-फोड के वैदिक व वैज्ञानिक विधी से वास्तु परामर्श, धर्म-शास्त्रिय शंका- समाधान, कंप्यूटर कृत सटीक जन्मपत्रिका, वर-वधु गुण मिलान,सर्टिफाइड रत्न, विवाह, संतान, नौकरी, व्यवसाय की समस्या, शुद्ध विवाह, सभी प्रकार की व्यक्तिगत समस्या के समाधान, गृह प्रवेश- हवन आदि के मुहूर्त, रत्न परामर्श, कुंडली विश्लेषण,अंक ज्योतिष, (#Numerology), आदि के लिए संपर्क करे- श्रीनाथ ज्योतिष कार्यालय, पं. गजानन कृष्ण महाराज, हैदराबाद , 8985195822 #Gajanansays #Astrology #Vastu #Vaastu #South #Southdirection #Southfacingdirection (at Gajanan Krishna Maharaj)
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वास्तु शास्त्र में पश्चिम दिशा को लक्ष्मी और शनि की दिशा माना जाता है। पश्चिम के देव वरुण हैं, जो जल के स्वामी हैं। पश्चिम मुखी घर बनाते समय वास्तु विज्ञान और सिद्धांतों का पालन अवश्य करना चाहिए, जिससे घर को लक्ष्मी दायक और उत्तम बनाया जा सके। • घर का भार ज्यादा पश्चिम दिशा में होना चाहिए। • इस दिशा में शौचालय व स्नानघर बनाना सही होता है। • किसी भी तरह की भूमिगत टंकी पश्चिम दिशा में न बनाएँ। • पश्चिम में छत की पानी की टंकी बनाएँ। • पश्चिम दिशा की तरफ जल की निकासी नहीं होनी चाहिए। अतः पानी की निकासी उत्तरपश्चिमी कोण से करना सही होता है। • दक्षिणपश्चिम में ऊँची चारदीवारी बना देनी चाहिए। http://shashwatatripti.wordpress.com #vastulokesh #west https://www.instagram.com/p/CDkxnOwnQyL/?igshid=oac8dwucq2d1
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aajkarashifal · 7 years ago
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काम सुख में कमी का वास्तु से कुछ लेना देना है?
सद्गुरु स्वामी आनंदजी (आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषीय चिंतक) टिप्स ऑफ द वीक 1. तिजोरी के अंदर कुमकुम द्वारा श्रीं और हृीं लिखे पिरामिड रखने से धन आकर्षित होता है, ऐसा पिरामिड के शोध से जुड़े सूत्र मानते हैं। 2. उत्तर मुखी होकर अध्ययन करने से विद्यार्जन में विशेष प्रगति होती है ऐसा वास्तु के सिद्धांत कहते हैं। ये भी जानें राहु की महादशा 18 वर्षों की होती है। राहु वैचारिक समृद्धि, मानसिक दृढ़ता और अपार बौद्धिक क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। राहु की महादशा में 3, 6, या 9 वर्षों में शुभ या अशुभ का क्रम चलता है। छठे व आठवें वर्ष कष्टकारी होते हैं। निर्बलों की सेवा और शनिवार को उन्हें दान देने से राहुजनित कष्टों का निराकरण होता है, ऐसा मान्यताएं कहती हैं। प्रश्न: ज्योतिष में गुरु पूर्णिमा का क्या महत्व है? आर्थिक लाभ के लिए इस दिन कौन सी पूजा करनी चाहिए? शिरीष परांजपे उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि गुरु पूर्णिमा ज्योतिषीय नहीं, एक नितांत आध्यात्मिक पर्व है। यह स्वयं को बाहरी नहीं, आंतरिक रूप से सशक्त, समृद्ध और सामर्थ्य प्रदान करने का काल है। अपने गुरु की पूर्णता को स्वयं में अंगीकार करने का यह पर्व सीधे तौर पर तो भौतिकता से पृथक है, पर सनद रहे कि स्थूल और भौतिक लाभ सदैव आंतरिक क्षमता और योग्यता का अनुसरण करते हैं। प्रश्न: कालसर्प का कुयोग कितने सालों में खत्म होता है? प्रतीक त्रिपाठी उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि जन्म के समय राहु और केतु के मध्य समस्त ग्रहों के इकट्ठा होने को कालसर्प योग कहते हैं। योग और दशाओं में अंतर है। दशाएं चलायमान यानि परिवर्तनशील होती हैं और योग स्थिर। यह बदलते नहीं हैं। कालसर्प योग दरअसल मालव्य योग, गजकेशरी, रुचक योग, भद्र योग, बुद्धादित्य योग, हंसयोग या कुल दीपक जैसा एक योग हैं, जो यदि है, तो जीवन भर रहेगा, खत्म नहीं होगा। काल सर्प योग को कुयोग समझना बड़ी भूल है। इस योग ने ही बड़े-बड़े शूरवीरों, उद्यमियों, यु�� पुरुषों, राजनैतिक हस्तियों, अभिनेताओं और उद्योगपतियों को जन्म भी दिया और अर्श पर भी बिठाया है। काल सर्प योग अक्सर मध्य आयु के बाद बड़ी कामयाबी से नवाजता है। यह योग कभी-कभी शुरुआती संघर्ष का कारक बनता है, पर वह आरंभिक असफलता ही भविष्य की बड़ी सफलता का सबब बनती हैं। प्रश्न: घर में कांच की वस्तुएं बार-बार टूट फूट रही हैं। क्या वास्तु इसे अशुभ मानता है? उदय खेमका उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि सामान्य रूप से कही सुनी बातें, नवीन सिद्धांत और मान्यताएं घर में कांच के टूटने या टूटे-चिटके कांच की गृह में मौजूदगी शुभ नहीं मानती। यद्यपि इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। वास्तु के प्राचीन नियम इस विषय पर मौन है क्योंकि उस काल में कांच का प्रचलन शायद नहीं था। पर इसे प्राचीन वास्तु के उस सिद्धांत से भी जोड़कर देखा जा सकता है जो किसी भी प्रकार की फर्श, दीवार और छत की टूटन, दरार और सीलन को शुभ फल प्रदायक नहीं मानते हैं। प्रश्न: मैं जिसको पसंद करता हूं, मुझसे 22 साल छोटी है। क्या उम्र का इतना ज्यादा फासला दांपत्य जीवन पर कोई नकारात्मक प्रभाव डालेगा? जन्मतिथि- 14.08.1971, जन्म समय- 17.30, जन्म स्थान- मुंबई। अनिरुद्ध पाटील उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं आपकी राशि वृष और लग्न मकर है। लग्न में मंगल की उपस्थिति जहां आपको मांगलिक बना रही है, वहीं साथ में राहु की मौजूदगी इस योग को तीव्रता भी प्रदान कर रही है। अष्टमेश सूर्य पत्नी भाव में बैठकर दांपत्य जीवन के लिए चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है, वहीं साथ में उसके कट्टर शत्रु केतु और पंचमेश व कर्मेश शुक्र की मौजूदगी बेमेल प्रेम संबंधों से सतर्क रहने की ताकीद भी कर रहा है। विस्तृत विश्लेषण के लिए वर वधु दोनों की कुंडली की दरकार है। उम्र के फासले का प्रश्न ज्योतिषीय परिधि के बाहर है। यह व्यक्तिगत, मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक रुचि और परिस्थितियों को देखकर ही लिया जा सकता है। प्रश्न: क्या काम सुख में कमी का वास्तु से कुछ लेना देना है? नए घर में शिफ्टिंग के बाद से पति के साथ संबंध प्रभावित हो रहे हैं। प्रमिला वाजपेयी उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि हां! इसके सूत्र आपके घर के वास्तु में गुंथे हो सकते हैं। अपने घर के उत्तर-पश्चिम कोने का सूक्ष्म विश्लेषण करें। घर का ये कोना आपके मन की आकांक्षाओं, आरजुओं और उमंगों के लिए जिम्मेदार है। यहां किसी भी प्रका��� का दोष आपके काम सुख का बंटाधार कर सकता है। यहां दीवार या छत पर दर्पण या कांच की मौजूदगी, गंदगी, बहुत तीव्र प्रकाश आपकी यौन आकांक्षाओं के ��तन का कारक बन सकता है। इसके अलावा दक्षिण-पूर्व कोण का नीचा या दोषपूर्ण होना अथवा वहां कोई गड्ढा होना भी व्यक्तिगत रिश्तों पर चोट पहुंचाता है। यह स्थिति नपुंसक न होकर भी बेमतलब के तनावों को थोप कर नपुंसकता का आभास कराती है। मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट। http://dlvr.it/PTG0MP
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