#पर्यावरण अनुकूल खेती
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ऊर्ध्वाधर कृषि: शहरी खेती के लिए एक समाधान
ऊर्ध्वाधर कृषि (Vertical Farming) एक आधुनिक और टिकाऊ कृषि तकनीक है, जो पारंपरिक खेती की तुलना में कम जगह, पानी और संसाधनों में अधिक उत्पाद��ता प्रदान करती है। यह तकनीक खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रही है, जहां खेती के लिए जमीन कम उपलब्ध है। इसमें फसलों को ऊर्ध्व (वर्टिकल) दिशा में, यानी भवनों, टावरों या विशेष रूप से डिजाइन किए गए ढांचे में विभिन्न स्तरों पर उगाया जाता है। मुख्य…
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त्रिपुरा में 64 परिवारों ने पर्यावरण-अनुकूल खेती का उपयोग करके भारत का पहला जैव-ग्राम बनाया
विशेष छवि स्रोत: फ़्लिकर (केवल प्रतिनिधित्वात्मक उद्देश्यों के लिए) त्रिपुरा के सेपाहिजला जिले में, सिर्फ 64 परिवारों का एक छोटा सा गाँव इस बात का एक चमकदार उदाहरण बन गया है कि कैसे एक छोटा समुदाय आत्मनिर्भर, पर्यावरण-अनुकूल और आर्थिक रूप से बनने की जिम्मेदारी ले सकता है। सशक्त. भारत के पहले आत्मनिर्भर जैव-ग्राम के रूप में जाना जाता है, दासपारा का परिवर्तन राज्य सरकार की 'बायो विलेज 2.0' अवधारणा…
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Smart Agriculture: Aapake Liye Rojagaar ke Dwar
परिचय भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का विशेष स्थान है। यहां की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। बदलते समय के साथ खेती में भी तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं और इसे अब "स्मार्ट एग्रीकल्चर" के रूप में देखा जा रहा है। यह न केवल खेती के तरीकों में क्रांति ला रहा है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी प्रदान कर रहा है। स्मार्ट एग्रीकल्चर से तात्पर्य है ऐसी तकनीकें और प्रणालियां जो पारंपरिक कृषि को अधिक प्रभावी, उत्पादक और पर्यावरण के अनुकूल बनाती हैं। इस आधुनिक कृषि प्रणाली ने रोजगार के कई नए द्वार खोले हैं, विशेष रूप से उन युवाओं के लिए जो आधुनिक तकनीक और नवाचार में रुचि रखते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर क्या है? स्मार्ट एग्रीकल्चर या स्मार्ट खेती आधुनिक प्रौद्योगिकी और कृषि के सम्मिलन का एक ऐसा मॉडल है जिसमें सटीक उपकरणों, सेंसर, ड्रोन्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत किसानों को जमीन की उपजाऊता, मौसम की जानकारी, फसल की स्थिति और बाजार के रुझानों के बारे में सटीक जानकारी मिलती है। इससे कृषि के सभी पहलुओं को सही ढंग से मॉनिटर कर बेहतर परिणाम प्राप्त किए जाते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत आधुनिक यंत्रों और नई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है जिससे किसानों को अपने खेतों की बेहतर देखभाल करने में मदद मिलती है। इससे न केवल उत्पादकता में वृद्धि होती है बल्कि पानी, खाद, बीज और अन्य संसाधनों का सही उपयोग भी सुनिश्चित होता है।
खेती में रोजगार के अवसर स्मार्ट एग्रीकल्चर के बढ़ते प्रसार के साथ खेती में रोजगार के अवसरों में भी व्यापक विस्तार हुआ है। पहले जहां कृषि में मुख्य रूप से शारीरिक श्रम का महत्व था, अब तकनीकी ज्ञान रखने वाले युवाओं के लिए भी यहां संभावनाएं खुल रही हैं। नीचे कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा की जा रही है, जहां स्मार्ट एग्रीकल्चर के माध्यम से रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं:
प्रौद्योगिकी आधारित कृषि उपकरणों का निर्माण और वितरण
स्मार्ट एग्रीकल्चर में विभिन्न प्रकार के सेंसर, ड्रोन्स, और स्वचालित उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। इन उपकरणों के निर्माण, वितरण और मरम्मत के क्षेत्र में रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। युवा उद्यमी इस क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं या बड़े उद्योगों से जुड़ सकते हैं जो ऐसे उपकरणों का निर्माण और विपणन करते हैं।
कृषि सलाहकार सेवाएं
कृषि सलाहकार सेवाएं एक और प्रमुख क्षेत्र है, जहां तकनीकी ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों के लिए रोजगार के नए अवसर हैं। स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य, बीज के चयन, जल प्रबंधन, फसल की देखभाल और बाजार की जानकारी देने वाले कृषि सलाहकारों की मांग बढ़ी है। यदि किसी व्यक्ति के पास कृषि और तकनीक का ज्ञान है, तो वे इस क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं।
डेटा एनालिसिस और कृषि सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट
स्मार्ट एग्रीकल्चर में सेंसर और अन्य उपकरणों से लगातार डेटा उत्पन्न होता है। इस डेटा का सही ढंग से विश्लेषण करना और इसके आधार पर निर्णय लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। डेटा एनालिसिस के क्षेत्र में कृषि तकनीशियनों की मांग तेजी से बढ़ी है। साथ ही, ऐसे सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की भी आवश्यकता है जो किसानों के लिए अनुकूल ऐप्स और सॉफ्टवेयर विकसित कर सकें। ये ऐप्स किसानों को मौसम की जानकारी, फसल की स्थिति, बाजार के दाम आदि की सटीक जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे उनकी खेती को और बेहतर बनाया जा सके।
कृषि में ड्रोन और रोबोटिक्स तकनीक
ड्रोन्स का इस्तेमाल कृषि में तेजी से बढ़ रहा है। फसलों की निगरानी, कीटनाशक का छिड़काव, और अन्य गतिविधियों के लिए ड्रोन तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। ड्रोन ऑपरेटर्स, मेनटेनेंस इंजीनियर और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए यहां रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। इसके अलावा, रोबोटिक्स तकनीक का इस्तेमाल भी कृषि में बढ़ रहा है, जिससे फसलों की देखभाल और उत्पादन की प्रक्रिया को स्वचालित किया जा रहा है।
सस्टेनेबल एग्रीकल्चर और ग्रीन जॉब्स
आज के समय में पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता पर जोर दिया जा रहा है। सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के अंतर्गत प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए कृषि की तकनीकों का विकास किया जाता है। इसके अंतर्गत जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में सस्टेनेबिलिटी एक्सपर्ट्स, पर्यावरण वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों की आवश्यकता बढ़ी है। ग्रीन जॉब्स के रूप में इसे देखा जा सकता है।
कृषि उत्पादों का प्रोसेसिंग और मार्केटिंग
स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत बेहतर उत्पादन प्राप्त होने पर उसे प्रोसेस कर बाजार में बेचना भी महत्वपूर्ण है। कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्तियों के लिए यहां अपार संभावनाएं हैं। स्मार्ट मार्केटिंग तकनीकों का उपयोग करके किसान अपने उत्पादों को सही कीमत पर बेच सकते हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में उद्यमिता को भी बढ़ावा मिल रहा है, जिससे नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
स्मार्ट इरिगेशन और जल प्रबंधन
कृषि में पानी का सही उपयोग करना हमेशा से एक चुनौती रहा है। स्मार्ट इरिगेशन और जल प्रबंधन तकनीकों के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में सटीक सिंचाई प्रणाली ��र जल प्रबंधन सेवाओं की मांग बढ़ी है। इसके लिए तकनीकी ��िशेषज्ञों और इरिगेशन इंजीनियरों की आवश्यकता होती है, जो इस क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर में रोजगार के अवसरों की संभावनाएं स्मार्ट एग्रीकल्चर में न केवल तकनीकी विशेषज्ञों के लिए बल्कि ग्रामीण युवाओं के लिए भी रोजगार के अवसर हैं। वे जो अपने खेतों में नई तकनीकों को अपनाकर उत्पादन में वृद्धि करना चाहते हैं, वे भी इस क्रांति के हिस्सेदार बन सकते हैं। साथ ही, इस क्षेत्र में वित्तीय सेवाओं, बीमा, और कृषि से जुड़ी कानूनी सेवाओं में भी रोजगार की संभावनाएं हैं। सरकार और निजी क्षेत्र की ओर से भी इस क्षेत्र में निवेश किया जा रहा है, जिससे रोजगार के अवसर और भी बढ़ेंगे।
निष्कर्ष स्मार्ट एग्रीकल्चर न केवल कृषि के तरीके को बदल रहा है, बल्कि यह एक नया रोजगार क्षेत्र भी बना रहा है। "खेती में रोजगार के अवसर" अब केवल पारंपरिक श्रमिकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि तकनीकी विशेषज्ञों, उद्यमियों और नवाचारकर्ताओं के लिए भी इसमें असीमित संभावनाएं हैं। भारत जैसे देश में, जहां कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, स्मार्ट एग्रीकल्चर रोजगार के नए द्वार खोलकर युवाओं को बेहतर भविष्य की दिशा में ले जा रहा है।
यह स्पष्ट है कि भविष्य की खेती तकनीकी नवाचारों पर आधारित होगी, और इसके साथ ही रोजगार के नए रूप सामने आएंगे। स्मार्ट एग्रीकल्चर एक ऐसी ही दिशा है, जो रोजगार के साथ-साथ समृद्धि की ओर भी ले जा रही है।
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टिकाऊ खेती के लिए प्रभावी फसल प्रबंधन: फसल संरक्षण और खेती के तरीकों में संतुलन
फसल प्रबंधन खेती की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें मिट्टी के दीर्घकालिक स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए फसल उत्पादकता को अनुकूलित करने के लिए लक्षित कई तरीकों और रणनीतियों का एक जानबूझकर संयोजन शामिल है। फसल संरक्षण का सफल प्रबंधन, जो समकालीन कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इस संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है। यहां, हम कृषि में फसल सुरक्षा की प्रासंगिकता पर गौर करेंगे और इसे पर्यावरण के अनुकूल फसल प्रबंधन प्रणाली में कैसे एकीकृत किया जा सकता है।
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जानिए, क्यों अनुपम है बायोचार (Biochar) यानी मिट्टी को उपजाऊ बनाने की घरेलू और वैज्ञानिक विधि?
मिट्टी की सेहत सँवारने वाला, सबसे सस्ता और आसानी से बनने वाला टॉनिक है बायोचार
बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।
हरित क्रान्ति में भले ही रासायनिक खाद और कीटनाशकों की अहम भूमिका रही हो, लेकिन ये निर्विवाद है कि इससे भूमि की उर्वरा शक्ति का पतन और पर्यावरण प्रदूषित हुआ। इसीलिए विकसित देशों में रासायनिक उपायों को अपनाकर उपजायी गयी फसलों से सख़्त परहेज़ करना शुरू कर दिया। दरअसल, रासायनिक उपायों ने मिट्टी की उत्पादकता को टिकाऊ नहीं बनाया। तभी तो इसकी ज़रूरत हमेशा पड़ने लगी।
रसायनों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए जहाँ एक ओर परम्परागत, प्राकृतिक या जैविक खेती की ओर लौटने पर ज़ोर दिया जाने लगा, वहीं ऐसे प्राकृतिक उपायों को पहचानने की ज़रूरत थी जो किसान और पर्यावरण, सभी के अनुकूल हो।
इन्हीं उद्देश्यों की तलाश में वैज्ञानिकों ने बीती सदी के सातवें दशक में ये साबित किया कि मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता से ही उसकी उर्वरा शक्ति क़ायम रह सकती है, क्योंकि इन्हीं कार्बनिक पदार्थों से मिट्टी में उसे उपजाऊ बनाने वाले उन सूक्ष्म जीवों की मात्रा बढ़ती है जो अन्ततः फसल को पोषक तत्व मुहैया करवाते हैं। इन्हीं चुनौतियों से उबरने के लिए वैज्ञानिकों ने ‘बायोचार’ विकसित किया जो सही मायने में ‘हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा होय’ जैसा उपाय है।
बायोचार बनाने से धरती पर मौजूद अथाह बायोमास का भी बेहतरीन इस्तेमाल हो जाता है और पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है। क्योंकि बायोमास के अपघटन या सड़ने से भारी मात्रा में जहरीली ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में घुलती हैं और ‘ग्लोबल वार्मिंग’ का सबब बनती हैं।
क्या है बायोचार?
बायोचार यानी ‘जैविक चारकोल’ का नाता ‘बायो फ़र्टिलाइज़र’ और ‘चारकोल’ से है। बायोचार, एक बेहद सस्ती, घरेलू और वैज्ञानिक तकनीक है जिससे किसी भी तरह की मिट्टी के उपजाऊपन को दशकों और यहाँ तक कि सदियों के लिए बढ़ाया जा सकता है। दरअसल, मिट्टी प्राकृतिक रूप से लगातार पोषक तत्व प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवों को ‘बायोफ़र्टिलाइज़र’ कहते हैं और कार्बन की अत्यधिक मात्रा वाले पदार्थ या लकड़ी के कोयले को ‘चारकोल’ कहते हैं। दोनों शब्दों के शुरुआती अक्षरों ‘बायो’ और ‘चार’ को जोड़ने से ‘बायोचार’ (बायो+चार) शब्द बना है।
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कृषि उत्पादों का गुणवत्ता युक्त होना आवश्यक: प्रो. चंद्र कुमार
कृषि मंत्री प्रो. चंद्र कुमार ने केरल राज्य के तिरूवंतपुरम में ‘कृषि में आय अर्जन के लिए मूल्यवर्धन’ (वैगा-2023) विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मूल्यवर्धन विभिन्न गतिविधियों की एक श्रृंखला है जो एक उत्पाद को खेत से उपभोक्ता तक लाने में शामिल होती है। इस��ें उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन और वितरण जैसी गतिविधियां शामिल हैं। उन्होंने कहा कि एक मूल्य श्रृंखला विकसित करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि किसानों को उनके उत्पादों के उचित दाम मिलें और उपभोक्ताओं की उच्च गुणवत्ता वाले, स्थानीय रूप से उगाए खाद्य पदार्थों तक पहुंच सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने कृषि क्षेत्र में मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने के लिए खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना, विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों और उद्यमियों को वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करके ग्रेडिंग और पैकिंग सुविधाएं प्रदान करने के लिए कई पहल की हैं। कृषि मंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश अनुकूल जलवायु, समृद्ध मृदा और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। प्रदेश में अनाज, बेमौसमी सब्जियां, फल, दालें, बाजरा और विदेशी सब्जियों सहित विभिन्न प्रकार की फसलों के उत्पादन के लिए एक उपयुक्त परिवेश विद्यमान है। राज्य देश में सेब और अन्य समशीतोष्ण फलों जैसे खुमानी, चेरी, आड़ू, नाशपाती के प्रमुख उत्पादकों में से एक है और इन समशीतोष्ण फलों विशेष रूप से सेब और अन्य बेमौसमी सब्जियों, टमाटर, लहसुन और अदरक के उत्पादन के कारण राष्ट्रीय बाजार में एक विशेष स्थान रखता है। हिमाचल प्रदेश मशरूम के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। कृषि मंत्री ने कहा कि प्रदेश, कांगड़ा घाटी में उगाई जाने वाली ‘कांगड़ा चाय’ के लिए भी प्रसिद्ध है। कांगड़ा चाय अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों और बेहतरीन स्वाद के लिए दुनिया भर में लोकप्रिय है। यह वर्ष 2005 से भौगोलिक संकेतकों की प्रतिष्ठित सूची में भी शामिल है। प्रदेश में मक्का की खेती व्यापक रूप से की जाती है। हिमाचल प्रदेश बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। यहां विशेष रूप से टमाटर, लहसुन, अदरक, बाजरा, दालें, मिर्च, शिमला मिर्च, बीन्स, खीरे और लगभग सभी प्रकार की सब्जियां भी उगाई जाती हैं। राज्य में लगभग 18.50 लाख मीट्रिक टन सब्जियों का उत्पादन होता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने लागत कम करने, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार, पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और उपभोक्ताओं के लिए रसायन मुक्त स्वस्थ खाद्यान्नों का उत्पादन करने के लिए वर्ष 2018 से प्राकृतिक खेती की पहल की। वर्तमान में 9.97 लाख किसानों में से लगभग 1.5 लाख किसानों ने लगभग 16684 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती शुरू कर दी है और इसके उत्साहजनक परिणाम मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम जैविक खेती को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार, राज्य में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए राज्य को ग्रेडिंग, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, आदर्श भंडारण और कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाओं के माध्यम से इन फसलों की गुणवत्ता स्वाद और पोषण म��ल्य को बढ़ाकर मूल्यवर्धन पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। उन्होंने कहा कि शीघ्र खराब होने वाली उपज के लिए प्रशीतित वैन, आपूर्ति श्रृंखला और विपणन को मजबूत करने पर भी बल दिया जा रहा है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, सिक्किम के कृषि मंत्री लोक नाथ शर्मा, अरुणाचल प्रदेश के कृषि मंत्री तागे ताकी और देश के विभिन्न राज्यों के नेताओं ने भी कार्यक्रम में अपने विचार साझा किए। Read the full article
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जीएम सरसों पर प्रतिबंध से भारतीय किसानों को नुकसान सुप्रीम कोर्ट को विचारधारा के ऊपर विज्ञान को चुनना चाहिए | Indian farmers suffer from the GM mustard ban. The Supreme Court must favour science over dogma;
Source: theleaflet.in
पिछले दो दशकों से जीएम तकनीक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने जीएम सरसों की रिहाई की मांग वाली अर्जी को स्वीकार करते हुए किसान संघ शेतकरी संगठन से पूछा, 'आप इतने साल कहां थे?'
जैसा कि सुप्रीम कोर्ट एक ऐसे मामले पर विचार-विमर्श कर रहा है जो भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों के भाग्य का निर्धारण कर सकता है, एक किसान निकाय भारत की शीर्ष अदालत में अपनी आवाज सुनने का प्रयास कर रहा है।
महाराष्ट्र स्थित किसान संघ, शेतकरी संगठन, सामाजिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स द्वारा दायर याचिका का विरोध कर रहा है। बीटी कपास के साथ अपने अनुभव के आधार पर, किसानों का तर्क है कि जीएम सरसों में खाद्य उत्पादन बढ़ाने और उनकी आजीविका में सुधार करने की क्षमता है।
भले ही उनके आवेदन को 17 नवंबर 2022 को रिकॉर्ड में ले लिया गया, लेकिन यह निराशाजनक है कि जिन किसानों की खेल में सबसे अधिक चमड़ी है, उन्ह��ं अब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा नहीं सुना गया है।
जीएम सरसों की रिहाई की वकालत करने वाले आवेदन को स्वीकार करते हुए पीठ ने पूछा, 'आप इतने सालों में कहां थे?' यह सवाल जीएम की रिहाई के लिए और उसके खिलाफ लड़ने वालों के बीच संसाधनों और शक्ति में असमानता को ध्यान में रखने में विफल रहता है। सरसों।
कार्यकर्ता, अदालत का दरवाजा खटखटाने और अपना मामला बनाने के साधनों के साथ, पिछले दो दशकों से जीएम तकनीक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर जोर दे रहे हैं। इस बीच, जिन किसानों को बहुत अधिक लाभ होने वाला है, वे रोजी-रोटी कमाने के दैनिक संघर्ष में व्यस्त हैं। क्या प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से एक बेहतर जीवन चुनने का किसान का अधिकार संसाधनों की कमी और कानूनी रास्ते तक पहुंच से बाधित होना चाहिए?
जीएम फसलों पर प्रतिबंध
पिछले 18 वर्षों से जीएम फसलों का व्यावसायिक उपयोग अधर में लटका हुआ है। 2002 में व्यावसायिक खेती के लिए पहली बार पेश किए जाने के बाद से ही ये फसलें भारत में बहस का एक विवादास्पद विषय रही हैं। अरुणा रोड्रिग्स और अन्य के साथ एक गैर सरकारी संगठन जीन कैंपेन ने 2004 में जीएम जीवों के उपयोग को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की थी। जीएम सरसों इनका ताजा शिकार है।
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित, जीएम सरसों में कृषि में क्रांति लाने और किसानों की आजीविका में सुधार करने की क्षमता है। हालांकि, कार्यकर्ताओं ने दावा किया है कि यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है। दूसरी ओर, किसानों का तर्क है कि प्रतिबंध कृषिविदों के लिए एक बड़ा झटका है और उन्हें अन्य देशों के किसानों की तुलना में नुकसान में डाल देगा जो पहले से ही जीएम तकनीक का उपयोग कर रहे हैं।
आजीविका में सुधार के अलावा, किसानों का मानना है कि जीएम तकनीक उन्हें बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल बनाने, टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में मदद कर सकती है। संगठन ने अपने आवेदन में शीर्ष अदालत से किसानों और कृषि उद्योग के लिए जीएम सरसों के लाभों पर विचार करने का आग्रह किया है। इस तरह की तकनीकों पर प्रतिबंध किसानों को और नुकसान पहुंचाएगा, खासकर भारत के शुष्क क्षेत्रों में, जहां पारंपरिक खेती के तरीके अपर्याप्त साबित हुए हैं। संगठन ने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ताओं के अप्रमाणित और अंधविश्वासी विश्वासों के कारण किसानों को प्रौद्योगिकी का उपयोग करने से नहीं रोका जाना चाहिए। जीएम फसलें पैदावार बढ़ा सकती हैं और उत्पादन लागत कम कर सकती हैं, जिससे अधिक मुनाफा हो सकता है।......
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नो-टिल खेती अध्ययन मध्य-पश्चिमी भूमि मूल्यों को लाभ दिखाता है
नो-टिल खेती अध्ययन मध्य-पश्चिमी भूमि मूल्यों को लाभ दिखाता है
नो-टिल खेती, जिसे एक अधिक पर्यावरण के अनुकूल कृषि अभ्यास माना जाता है, जो पारंपरिक प्रथाओं की तुलना में मिट्टी की गड़��ड़ी को कम करता है, मिट्टी के कटाव और पोषक तत्वों के अपवाह को कम करने के अलावा एक महत्वपूर्ण लाभ प्रतीत होता है। नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन में, यूएस मिडवेस्ट में 12 राज्यों के काउंटी-स्तरीय डेटा को कैप्चर करते हुए, यह दर्शाता है कि नो-टिल खेती कृषि भूमि के…
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IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये
दुनिया को समझ आया बाजरा की वज्र शक्ति का माजरा, 2023 क्यों है IYoM
पोषक अनाज को भोजन में फिर सम्मान मिले – तोमर
भारत की अगुवाई में मनेगा IYoM-2023
पाक महोत्सव में मध्य प्रदेश ने मारी बाजी
वो कहते हैं न कि, जब तक योग विदेश जाकर योगा की पहचान न हासिल कर ले, भारत इंडिया के तौर पर न पुकारा जाने लगे, तब तक देश में बेशकीमती चीजों की कद्र नहीं होती। कमोबेश कुछ ऐसी ही कहानी है देसी अनाज बाजरा की।
IYoM 2023
गरीब का भोजन बताकर भारतीयों द्वारा लगभग त्याज्य दिये गए इस पोषक अनाज की महत्ता विश्व स्तर पर साबित होने के बाद अब इस अनाज बाजरा (Pearl Millet) के सम्मान में वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM) के रूप में राष्ट्रों ने समर्पित किया है।इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
मिलेट्स (MILLETS) मतलब बाजरा के मामले में भारत की स्थिति, लौट के बुद्धू घर को आए वाली कही जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है।
पीआईबी (PIB) की जानकारी के अनुसार केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जुलाई मासांत में आयोजित किया गया पाक महोत्सव भारत की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 लक्ष्य की दिशा में सकारात्मक कदम है। पोषक-अनाज पाक महोत्सव में कुकरी शो के जरिए मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा, अथवा मोटे अनाज पर आधारित एवं मिश्रित व्यंजनों की विविधता एवं उनकी खासियत से लोग परिचित हुए।
आपको बता दें, मिलेट (MILLET) शब्द का ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज संबंधी कुछ संदर्भों में भी उपयोग किया जाता है। ऐसे में मिलेट के तहत बाजरा, जुवार, कोदू, कुटकी जैसी फसलें भी शामिल हो जाती हैं।
पीआईबी द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार महोत्सव में शामिल केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मिलेट्स (MILLETS) की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।
ये भी पढ़ें: ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का
अपने संबोधन में मंत्री तोमर ने कहा है कि, “पोषक-अनाज को हमारे भोजन की थाली में फिर से सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए।”
उन्होंने जानकारी में बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। यह आयोजन भारत की अगु़वाई में होगा। इस गौरवशाली जिम्मेदारी के तहत पोषक अनाज को बढ़ावा देने के लिए पीएम ने मंत्रियों के समूह को जिम्मा सौंपा है।
केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने दिल्ली हाट में पोषक-अनाज पाक महोत्सव में (IYoM)- 2023 की भूमिका एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि, अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रमों के आयोजन की विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई है।
बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की वज्र शक्ति का राज
ऐसा क्या खास है मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा या मोटे अनाज में कि, इसके सम्मान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरा एक साल समर्पित कर दिया गया।
तो इसका जवाब है मिलेट्स की वज्र शक्ति। यह वह शक्ति है जो इस अनाज के जमीन पर फलने फूलने से लेकर मानव एवं प्राकृतिक स्वास्थ्य की रक्षा शक्ति तक में निहित है।
जी हां, कम से कम पानी की खपत, कम कार्बन फुटप्रिंट वाली बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की उपज सूखे की स्थिति में भी संभव है। मूल तौर पर यह जलवायु अनुकूल फसलें हैं।
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शाकाहार की ओर उन्मुख पीढ़ी के बीच शाकाहारी खाद्य पदार्थों की मांग में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हो रही है। ऐसे में मिलेट पॉवरफुल सुपर फूड की हैसियत अख्तियार करता जा रहा है।
खास बात यह है कि, मिलेट्स (MILLETS) संतुलित आहार के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा में भी असीम योगदान देता है। मिलेट (MILLET) या फिर बाजरा या मोटा अनाज बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन और खनिजों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भंडार है।
त्याज्य नहीं म��त्वपूर्ण हैं मिलेट्स – तोमर
आईसीएआर-आईआईएमआर, आईएचएम (पूसा) और आईएफसीए के सहयोग से आयोजित मिलेट पाक महोत्सव के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर थे।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि, “मिलेट गरीबों का भोजन है, यह कहकर इसे त्याज्य नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे भारत द्वारा पूरे विश्व में विस्तृत किए गए योग और आयुर्वेद के महत्व की तरह प्रचारित एवं प्रसारित किया जाना चाहिए।”
“भारत मिलेट की फसलों और उनके उत्पादों का अग्रणी उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र है। मिलेट के सेवन और इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता प्रसार के लिए मैं इस प्रकार के अन्य अनेक आयोजनों की अपेक्षा करता हूं।”
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मिलेट और खाद्य सुरक्षा जागरूकता
मिलेट और खाद्य सुरक्षा संबंधी जागरूकता के लिए होटल प्रबंधन केटरिंग तथा पोषाहार संस्थान, पूसा के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया।
मुख्य अतिथि तोमर ने मिलेट्स आधारित विभिन्न व्यंजनों का स्टालों पर निरीक्षण कर टीम से चर्चा की। महोत्सव में बतौर प्रतिभागी शामिल टीमों को कार्यक्रम में पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया।
मध्य प्रदेश ने मारी बाजी
मिलेट से बने ��र्वश्रेष्ठ पाक व्यंजन की प्रतियोगिता में 26 टीमों में से पांच टीमों को श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर चुना गया था। इनमें से आईएचएम इंदौर, चितकारा विश्वविद्यालय और आईसीआई नोएडा ने प्रथम तीन क्रम पर स्थान बनाया जबकि आईएचएम भोपाल और आईएचएम मुंबई की टीम ने भी अंतिम दौर में सहभागिता की।
इनकी रही उपस्थिति
कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री कैलाश चौधरी, कृषि सचिव मनोज आहूजा, अतिरिक्त सचिव लिखी, ICAR के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र और IIMR, हैदराबाद की निदेशक रत्नावती सहित अन्य अधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे।
इस दौरान उपस्थित गणमान्य नागरिकों की सुपर फूड से जुड़ी जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया।
महोत्सव के माध्यम से मिलेट से बनने वाले भोजन के स्वास्थ्य एवं औषधीय महत्व संबंधी गुणों के बारे में लोगों को जागरूक कर इनके उपयोग के लिए प्रेरित किया गया। दिल्ली हाट में इस महोत्सव के दौरान पोषण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गईं।
इस विशिष्ट कार्यक्रम में अनेक स्टार्टअप ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं। ‘छोटे पैमाने के उद्योगों व उद्यमियों के लिए व्यावसायिक संभावनाएं’ विषय पर आधारित चर्चा से भी मिलेट संबंधी जानकारी का प्रसार हुआ। अंतर राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत नुक्कड़ नाटक तथा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं जैसे कार्यक्रमों के तहत कृषि मंत्रालय ने मिलेट के गुणों का प्रसार करने की व्यापक रूपरेखा बनाई है।
वसुधैव कुटुंबकम जैसे ध्येय वाक्य के धनी भारत में विदेशी अंधानुकरण के कारण शिक्षा, संस्कृति, कृषि कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 जैसी पहल भारत की पारंपरिक किसानी के मूल से जुड़ने की अच्छी कोशिश कही जा सकती है।
Source IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये
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जल संरक्षण से खेतों तक पहुंचा पानी, खुशहाल हुए किसान, आरा-केरम गांव में आयी समृद्धि
जल संरक्षण से खेतों तक पहुंचा पानी, खुशहाल हुए किसान, आरा-केरम गांव में आयी समृद्धि
आरा केरम गांव में धान के खेत (फाइल फोटो) Image Credit source: TV9 Digital Sustainable Farming:कृषि और पर्यावरण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. क्योंकि पर्यावरण का प्रभाव कृषि पर पड़ता है इसलिए बेहतर खेती के लिए अनुकूल पर्यावरण जरूरी होता है. पानी का सही इस्तेमाल, जैविक, प्राकृतिक या गोबर खाद का इस्तेमाल का इस्तेमाल करके हम पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं. झारखंड का एक गांव इस दिशा में आगे…
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नौवीं कक्षा के छात्र कुशाग्र और जयंत ने केला के थम्ब से तैयार किया बिजली, जलाया बल्ब
बेगूसराय। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि और बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की कर्मभूमि बेगूसराय के बच्चों ने एक नया अविष्कार कर बड़ों-बड़ों को सोचने को मजबूर कर दिया। यहां के नौवीं कक्षा के छात्रों ने केला के थम्ब (तना) से बिजली तैयार कर पर्यावरण अनुकूलता की दिशा में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। सरकार अगर इनके बनाए गए प्रोजेक्ट पर गंभीरतापूर्वक काम करे तो बहुत ही कम लागत में पर्यावरण अनुकूल बिजली बनाई जा सकती है।
माउंट लिट्रा पब्लिक स्कूल उलाव के नौवीं कक्षा के छात्र कुशाग्र कुमार और जयंत कुमार ने केला के तना से बिजली बनाने का मॉडल तैयार किया और न���म दिया है ‘बनाना बायो बैटरी’।
कुशाग्र एवं जयंत ने बताया कि हम ना केवल कित��बी ज्ञान प्राप्त करते हैं, बल्कि किताब ज्ञान के साथ-साथ हमेशा कुछ अलग करने की दिशा में सोचते हैं। इसी दौरान जिला स्तरीय गणित, विज्ञान और पर्यावरण प्रदर्शनी की तैयारी शुरू की गई तो इसके मुख्य विषयों में से एक पर्यावरण अनुकूल सामग्री विषय पर हमने अध्ययन करना शुरू किया। अध्ययन की कड़ी में जब परियोजना के लिए विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण किया शुरू किया तो बहुतायत संख्या में केला की खेती देखकर इसी पर हमने रिसर्च किया। केला के तना से मामूली खर्च पर बिजली बनाई जा सकती है। हमने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर काम शुरू किया तो सफलता मिली।
कुशाग्र एवं जयंत ने बताया कि पहले हम लोगों ने केले के तने को चार समान टुकड़ों में काटा और उस पर पानी डालकर सात दिन तक सड़ने के लिए छोड़ दिया। उसके बाद इसमें कॉपर और जिंक का दो इलेक्ट्रोड लगाया। लकड़ी का चार खाने का बॉक्स बनाया और एक-एक खाने में केले के कटे हुए तने को रख दिया और उसे श्रृंखलाबद्ध आपस में जोड़कर स्विच और बल्ब से जोड़ दिया। जब हम लोगों ने मल्टीमीटर से चेक किया तो प्रत्येक तने से 1.2 वोल्ट विद्युत उत्पन्न हो रहा था। जिसका मुख्य कारण है कि केले के तने में सिट्रिक अम्ल रहता है। जैसे-जैसे तना सड़ता जाएगा, उसमें सिट्रिक अम्ल की मात्रा बढ़ती जाएगी। इस तरह इसके प्रयोग से बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। खासकर वैसे किसान जो केले की खेती बहुतायत मात्रा और क्षेत्र में करते हैं, वह चाहें तो इस परियोजना को लघु व्यवसाय का रूप दे सकते हैं, जिसमें उनकी लागत मूल्य नहीं के बराबर होगी।
बच्चों ने कहा कि हमारा प्रयोग शत-प्रतिशत सफल रहा। सरकार, वैज्ञानिक और रिसर्च करने वाले अगर इस पर ध्यान दें तो केला के खेती के सहारे जहां फसल से किसान आत्मनिर्भर बनेंगे। वहीं, उसके बेकार तना के सहारे हमारा देश ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। केला का फल कट जाने के बाद तना बेकार हो जाता है। लेकिन हमारे इस परियोजना में उसका भी उपयोग होगा और बेकार होने वाली चीजों से पूरी तरह से पर्यावरण अनुकूल बिजली उत्पादन होगा। इस संबंध में विद्यालय के निदेशक डॉ. मनीष देवा और प्राचार्य शीतल देवा ने बताया कि कुशाग्र एवं जयंत ने मिलकर केले के तने से बिजली उत्पन्न कर वर्किंग मॉडल तैयार किया है। दोनों ने पर्यावरण अनुकूल प्रोजेक्ट से वैज्ञानिक प्रतिभा का अनमोल परिचय दिया है। बिहार के बेगूसराय, भागलपुर, हाजीपुर आदि जिलों में सैकड़ों हजारों एकड़ में केला की खेती होती है, यहां इस परियोजना पर काम हो तो एक नई क्रांति हो सकती है।
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मौसम के अनुसार खेती के दायरे में अब पूरा बिहार आ गया। सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 30 जिलों में कृषि के इस नए तरीके की शुरुआत की; जिन 8 जिलों में यह पहले से चल रही थी, वहां इसका दूसरा चरण शुरू किया। मुख्यमंत्री ने जलवायु परिवर्तन का व्यापक हवाला देते हुए कृषि के मोर्चे पर मौसम के अनुसार खेती को, वक्त की सबसे बड़ी दरकार बताया।
फसल अवशेष (पराली) के सदुपयोग को आमदनी बढ़ाने वाला तथा इसे जलाने को, पर्यावरण के लिए बेहद घातक कहा। इसको रोकने के वास्ते एरियल सर्वे भी कराया जाएगा। फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रों की खरीद पर सामान्य किसानों को 75 तथा एससी-एसटी व अति पिछड़े किसानों को 80% अनुदान दिया जा रहा है।
इसलिए पड़ी जरूरत ?
मौसम के बहुत ज्यादा अनियमित होने, यानी बारिश में कड़ी धूप, इसमें देरी या जरूरत के अनुसार कम या ज्यादा बारिश के नहीं होने से फसल और इसका निर्धारित चक्र बिल्कुल गड़बड़ा गया। इससे उत्पादन व उत्पादकता सीधे प्रभावित हुई। घाटा, भारी नुकसान।
योजना के ये होंगे फायदे
1 साल में 3 फसल। 8 जिलों के 40 गांव, जहां पहले से यह तरीका लागू है, इसका गवाह है। मसलन-पहले धान, फिर मूंग, तब गेहूं या चना की खेती। इस नए तरीके का बेसिक है-जो मौसम जिस फसल के अनुरूप है, उस दौरान उसी की खेती की जाए।
जलवायु के अनुकूल क्रॉप साइकिल का चयन
फसल कैलेंडर के अनुसार समय पर बुआई {जलवायु के अनुकूल फसल प्रभेद व उत्तम गुणवत्ता का बीज
उत्तम बुआई तकनीक जैसे जीरो टिलेज, हैप्पी सीडर, रैज बेड, ड्रम सीडर, पंक्ति में बुआई का उपयोग
मिट्टी व जलवायु के परिस्थितियों के अनुरूप फसल विविधीकरण
हैप्पी सीडर, सुपर सीडर
तेजी से हो रही धान की खरीद
मुख्यमंत्री ने कहा-धान की खरीद का काम तेजी से किया जा रहा है। अबकी खरीद का न्यूनतम लक्ष्य 45 लाख मीट्रिक टन है।
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प्रदेश में डेयरी सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघों को पूरा प्रोत्साहन देगी। कृषि एवं पशुपालन ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका का मुख्य आधार है। युवाओं को रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध हों, इसके लिए डेयरी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए हरसंभव कदम उठाए जाएंगे।
निवास से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए भीलवाड़ा जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ के करीब 75 करोड़ रूपए की लागत से बनाए जाने वाले आधुनिक तकनीकी युक्त दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र के शिलान्यास समारोह को संबोधित किया। अगस्त 2022 तक तैयार होने वाले इस संयंत्र की क्षमता 5 लाख लीटर प्रतिदिन होगी।
किसानों को उनकी फसलों का लाभकारी मूल्य दिलवाने तथा आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए राज्य सरकार खाद्य प्रसंस्करण पर विशेष जोर दे रही है। प्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण की इकाई स्थापित करने पर अब किसानों को 10 हैक्टेयर तक जमीन के भू-रूपांतरण की आवश्यकता नहीं है। प्रदेश में डेयरी क्षेत्र के विस्तार की भरपूर संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास होगा कि दुग्ध उत्पादन, संकलन एवं विपणन का काम और तेजी से हो। सरस डेयरी देश में एक बड़ा मुकाम हासिल करे।
देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरू का बड़ा योगदान रहा है। उनकी दूरदर्शिता का परिणाम है कि दूसरे मुल्कों पर निर्भर हमारा देश आत्मनिर्भर होने की दिशा में आगे बढ़ सका। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के प्रयासों से देश में हरित क्रांति और श्वेत क्रांति जैसे महत्वपूर्ण नवाचार हुए, जिनसे देश खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सका और डेयरी के क्षेत्र में अविश्वसनीय प्रगति हुई। डेयरी क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए स्व. वर्गीस कुरियन का योगदान भी महत्वपूर्ण है।
कृषि मंत्री श्री लालचंद कटारिया ने कहा कि कोरोना के इस समय में किसान एवं पशुपालक देश-प्रदेश की अर्थव्यवस्था को संबल दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि खेती एवं पशुपालन के परम्परागत क्षेत्र में युवाओं की बढ़ती रूचि अच्छा संकेत है।
गोपालन मंत्री श्री प्रमोद भाया ने कहा कि कोविड-19 के कारण आए आर्थिक संकट के बावजूद मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत किसानों एवं पशुपालकों के हित में लगातार कल्याणकारी फैसले ले रहे हैं।
सहकारिता मंत्री श्री उदयलाल आंजना ने कहा कि राजस्थान में करीब 33 हजार सहकारी संस्थाएं हैं, जिनमें से करीब 15 हजार डेयरी क्षेत्र से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि डेयरी क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी भी काफी बढ़ी है।
नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड के अध्यक्ष श्री दिलीप रथ ने कहा कि राजस्थान में डेयरी विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम हो रहा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना के तहत पशुपालकों को 2 रूपए प्रति लीटर अनुदान दिया जाना स्वागत योग्य निर्णय है। उन्होंने कहा कि राजस्थान के डेयरी विकास में एनडीडीबी पूरा सहयोग करेगा। भीलवाड़ा दुग्ध संघ ने दुग्ध संकलन और इसके विपणन में जो प्रगति की है, वह प्रशंसनीय है। इसके लिए इस संघ को एक्सीलेंस अवार्ड भी मिल चुका है।
एनडीडीबी के कार्यकारी निदेशक श्री अरूण रस्ते ने प्रस्तुतीकरण देते हुए बताया कि राजस्थान में विगत 10 वर्षों में दुग्ध संकलन 5.6 प्रतिशत वार्षिक बढ़ा है। उन्होंने कहा कि नए संयंत्र से 18 हजार 500 नए लघु एवं सीमांत दुग्ध उत्पादक सदस्यों को आजीविका प्राप्त होगी।
भीलवाड़ा दुग्ध उत्पादक संघ के चेयरमैन एवं विधायक श्री रामलाल जाट ने कहा कि एनडीडीबी के सहयोग से स्थापित किए जा रहे इस नए संयंत्र से भीलवाड़ा डेयरी को और मजबूती मिलेगी। पर्यावरण के प्रति अनुकूल, बिजली की बचत तथा अवशीतन में कम लागत आने के कारण इस संयंत्र से दुग्ध उत्पादकों को दूध का बेहतर मूल्य देने में मदद मिल सकेगी। कृषि एवं पशुपालन राज्यमंत्री श्री भजनलाल जाटव ने आभार व्यक्त किया।
राजस्थान कॉपरेटिव डेयरी फैडरेशन के प्रबंध निदेशक श्री केएल स्वामी ने स्वागत उद्बोधन दिया। विभिन्न जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघों के अध्यक्ष एवं पदाधिकारी, विधायकगण, अन्य जनप्रतिनिधि, अधिकारी एवं डेयरी क्षेत्र से जुडे़ प्रतिनिधि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कार्यक्रम से जुडे़।
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एमएस धोनी का ब्रैंड प्रचार से इनकार, जैविक खेती में हैं व्यस्त, जल्द लॉन्च करेंगे अपना ब्रेंड
एमएस धोनी का ब्रैंड प्रचार से इनकार, जैविक खेती में हैं व्यस्त, जल्द लॉन्च करेंगे अपना ब्रेंड
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Edited By Nityanand Pathak | भाषा | Updated: 07 Jul 2020, 09:10:00 PM IST
हाइलाइट्स
एमएस धोनी कोरोना वायरस महामारी के बीच कोई व्यावसायिक विज्ञापन नहीं करेंगे
वह फिलहाल जैविक खेती में व्यस्त हैं और जल्द ही पर्यावरण के अनुकूल उर्वरक का अपना ब्रैंड लांच करने की तैयारी कर रहे हैं
धोनी के मैनेजर और बचपन के मित्र मिहिर दिवाकर ने रांची में इस स्टार क्रिकेटर के जीवन की झलक पेश की
कोलकाता पूर्…
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#aarka sports#amid pandemic#covid-19 pandemic#dhoni organic farming#dhoni says no to brand endorsements#mihir diwakar#ms dhoni#MS Dhoni Cricket Academy#world cup
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किसान कम वर्षा में भी करें फसलो का उचित प्रबंधन
देश में देरी से आने वाली मानसूनी वर्षा की स्थिति में आकस्मिकता फसल/नियोजन के लिए इनमें से फली वाली सब्जियों की सिफारिश की जा सकती है। दवाब को समाप्त किये जाने के पश्चात स्थिति से निपटने के लिए अच्छी जड़ प्रणाली और क्षमता वाली किस्मों के चयन किये जाने की जरूरत है। स्थिति के अनुसार अल्पकालिक किस्मों का उपयोग किये जाने की सिफारिश की जाती है।
पौधा उत्पादन की उन्नत पद्धति नर्सरी चरण पर कोकोपीट, नायलोन, जाल संरक्षण एवं जैव उर्वरकों/जैव कीटनाशक उपचार का उपयोग करके प्रोट्रे में पौध उत्पादन की उन्नत पद्धति में मजबूत,एक-समान तथा स्वस्थ्य पौधा प्राप्त करने की अच्छी संभावना है। इन पौधों को जब मुख्य खेत में रोपित किया जाता है तो इससे विशेषकर जल दवाब स्थितियों के दौरान जैविक और अजैविक दवाबों से उभरने में मदद मिलेगी तथा जड़ को होने वाली क्षति कम होगी ।
संरक्षण तकनीक को अपनाना कंटूर खेती, कंटूर पट्टी फसलन, मिश्रित फसल, टिलेज, मल्चिंग, जीरो टिलेज ऐसे कुछ कृषि संबंधी उपाय हैं जो इन सिटू मृदा आद्र्रता संरक्षण में सहायक होते हैं। शुष्क भूमि में प्रभावी मृदा एवं आद्र्रता संरक्षण के लिए कंटूर बंडिंग, बैंच टैरेसिंग, वर्टिकल मल्चिंग आदि को भी अपनाए जाने की जरुरत है। जल के कुशल उपयोग के लिए दूसरी प्रौद्योगिकी जल संचयन रिसाईकिलिंग है।
वर्षा जल संचयन में अप्रवाह जल को खोदे गये पोखरों या छोटे गड्ढों, तालाबों, नालों में इकट्ïठा किया जाना तथा भूमि के बांधों अथवा चिनी हुई संरचनाओं में एकत्रित किया जा��ा शामिल है। कम अर्थात 500 से 800 एमएम वर्षा जल संचयन संभव है। वर्षा तथा मृदा विशिष्टताओं पर निर्भर रहते हुए, अप्रवाह का 10-50 प्रतिशत भाग फार्म तालाब में एकत्रित किया जा सकता है। इस तरह से अप्रवाह को फार्म तालाब में एकत्रित किये गये जल का उपयोग लम्बी अवधि के सूखे के दौरान अथवा लघु सिंचाई तकनीकों के माध्यम से संरक्षित सिंचाई मुहैया कराए जाने में किया जा सकता है।
मृदा कार्बनिक पदार्थ में वृद्धि करना मृदा आर्गेनिक कार्बन में सुधार किये जाने के लिए निरंतर प्रयास किये जाने चाहिए। मिट्ïटी में फसल अवशिष्टों तथा फार्म यार्ड खाद मिलाने से कार्बनिक पदार्थ की स्थिति में सुधार होता है, मृदा संरचना और मृदा आद्र्रता भंडारण समक्षता में सुधार होता है। खूड फसलन, हरी खाद देकर, फसल चक्र तथा कृषि वानिकी को अपनाकर भी मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ में सुधार किया जा सकता है।
सब्जियां कम अवधि और तेजी से बढऩे वाली फसल होने के कारण उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ में उचित रूप से कम्पोस्ट खाद मिलाये जाने की जरूरत है। मिट्टी में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ के शीघ्र उपयोग के लिए तथा मृदा आद्र्रता संरक्षण क्षमता में सुधार किये जाने के लिए वर्मी कम्पोस्टिंग को भी अपनाया जा सकता है ।
पर्ण-पोषण का अनुप्रयोग जल दवाब की स्थितियों के दौरान पोषक तत्वों का पर्ण-अनुप्रयोग पोषक तत्वों के शीघ्र अवशोषण के द्वारा बेहतर वृद्धि में मदद करता है। पोटाश एवं कैल्शियम का छिड़काव सब्जी फसलोंं में सूखा सहिष्णुता प्रदान करता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों और गौण पोषक तत्वों के छिड़काव से फसल पैदावार और गुणवत्ता में सुधार होता है।
ड्रिप-सिंचाई का प्रयोग बागवानी फसलों में जड़ के भागो में सही और सीधे प्रयोग के कारण ड्रिप-सिंचाई की अन्य परम्परागत प्रणालियों के ऊपर अपनी श्रेष्ठता को प्रमाणित किया है। ड्रिप-सिंचाई में जो अलग से लाभ प्राप्त होते हैं, वे हैं जल में महत्वपूर्ण बचत, फलों एवं सब्जियों की पैदावार में वृद्धि तथा खरपतवारों का नियंत्रण एवं श्रम में बचत।
ड्रिप-सिंची को फल फसलोंं तथा साथ ही कम अंतर वाली फसलोंं जैसे प्याज और फली सहित अन्य सभी सब्जी फसलोंं में भी अपनाया जा सकता है। जल में फसल और मौसम के आधार पर 30-50 प्रतिशत की तर्ज पर बचत होती है। आमतौर पर सब्जी फसलोंं के लिए 2 एलपीएच की उत्सर्जन दर पर 30 सें.मी. दूरी के उत्सर्जन बिंदु स्थान वाले इन लाइन ड्रिप लेटरल्स का चयन किया जाता है। मिर्च, बैंगन, फूलगोभी तथा भिण्डी जैसी फसलोंं में जोड़ा पंक्ति पौधा रोपण की प्रणाली अपनाई जाती है तथा दो फसल पंक्तियों के लिए एक ड्रिप लेटरल का उपयोग किया जाता है।
सूक्ष्म स्प्रिंकलर सिंचाई का प्रयोग स्थिति तथा जल की उपलब्धता पर निर्भर रहते हुए, इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग फल एवं सब्जी फसलों के लिए किया जा सकता है। प्रारम्भिक संस्थापन की लगत ड्रिप प्रणाली की तुलना में कम है। आगे ग्रीष्मकाल में जल का छिड़काव सूक्ष्म जलवायु तापमान को कम करने में तथा आद्र्रता में वृद्धि किए जाने में मदद करता है, इससे फसल की वृद्धि व पैदावार में सुधार होता है । बचाया गया जल 20 से 30 प्रतिशत तक होता है।
जल बचत सिंचाई प्रणाली सीमित जल स्थितियों में, वैकल्पिक फरो सिंचाई अथवा बड़े अन्तराल की फरो सिंचाई और डरियो सिंचाई प्रणालियां अपनाई जा सकती हैं । पहाड़ी मिर्च, टमाटर, भिण्डी तथा फूल गोभी में सिंचाई प्रणालियों पर किए गए अध्ययनों ने दर्शाया है कि वैकल्पिक फरो सिंचाई तथा बड़े अन्तराल की खुड सिंचाई को अपनाए जाने से पैदावार को बिना प्रतिकूल रूप से प्रभावित किए 35 से 40 प्रतिशत तक सिंचाई जल बचाया गया ।
सब्जी उत्पादन में मल्चिंग प्रणालियां मृदा और जल संरक्षण के लिए मृदा को प्राकृतिक फसल अवशेषों या प्लास्टिक फिल्म्स से कवर किए जाने की तकनीक को मल्चिंग कहा जाता है । मल्चिंग का इस्तेमाल फार्म में उपलब्ध फसल अवशेषों और अन्य कार्बनिक सामग्री का प्रयोग करके फलों व सब्जी की फसलोंं में किया जा सकता है। हाल ही में कुशल आद्र्रता संरक्षण, खरपतवार उपशमन तथा मृदा संरचना के अनुरक्षण के निहित लाभों के कारण प्लास्टिक मल्च प्रयोग में आए हैं ।
मल्चेज का प्रयोग करके सब्जियों की कई किस्में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। मृदा एवं जल संरक्षण, उन्नत उपज व गुणवत्ता, खरपतवार वृद्धि को रोकने के अतिरिक्त, मल्चेज प्रयुक्त उवर्रक पोषक तत्वों का प्रयोग कुशलता में सुधार कर सकता है तथा प्रतिबिम्बित मल्चेज के प्रयोग से वायरस रोगों की घटना भी संभवतया न्यूनतम होगी।
सब्जी उत्पादन के लिए आमतौर पर 30 माइक्रोन मोटी और 1-1.2 मि. चौड़ी पोलीथिलीन मल्च फिल्म जा प्रयोग किया जाता है। मल्च फिल्म बिछते समय आमतौर पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली के साथ उथली क्यारी का उपयोग किया जाता है।
बाड़े और अंतफसलन अधिक तापमान तथा गर्म हवाओं से निपटने के लिए फार्म के चारों तरफ लम्बे वृक्ष लगाए जाने की जरुरत है। गर्मी के महीनों में फलोद्यानों के क्षेत्र में सब्जी फसलों की अंतफसलन प्रणाली अपनाई जा सकती है। शुष्क हवाओं के प्रभाव को कम करने के लिए प्लाट के चारों तरफ मक्का/ज्वार उगाई जा सकती है।
सब्जियों की संरक्षण खेती का प्रयोग परि-नगरीय क्षेत्रों, जहां की जलवायु खुले खेत में फसलोंं के वर्ष भर उत्पादन के अनुकूल नहीं होती है, पाली हाउस में संरक्षित पर्यावरण में सब्जी उत्पादन किया जा सकता है । पाली हाउस फसल को जैविक और अजैविक बाधाओं से बचाने के लिए एक सुविधा है। संरक्षित खेती के लिए संरचनाओ में ग्रीन हाउसेज, प्लास्टिक/नेट हाउसेज तथा सुरंगें शामिल हैं।
सामान्य तौर पर संरक्षित संरचनाएं पोलिहाउसेज और नेट या शेड हाउस हैं। रेन-शेल्टर एक साधारण संरचना है जो पोलिथिलिन से ढका होता है और अधिक वर्षा से प्रभावित फसलोंं को उगने में मदद करता है। टमाटर, प्याज और खरबूजे की उत्पादकता,पर्ण रोगों के प्रबंधन, उचित मृदा वातन व निकासी की कमी में कठिनाई के कारण अधिक वर्षा की स्थिति में प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है तथा पर्णसमूह व पुष्प भी गिर सकते हैं।
नेट हाउस खेती तथा शेड़ नेट खेती विशेषकर ग्रीष्मकाल के दौरान अधिक तापमान प्रभाव को न्यूनतम करने तथा सापेक्ष आद्र्रता में सुधार करने के लिए बेहतर सूक्ष्म जलवायु मुहैया कराती है । अधिक तापमान की अवधि के दौरान नेट/ऊपरी शेड़ नेट का उपयोग करके टमाटर, फ्रेंच चीन तथा पहाड़ी मिर्च की उत्पादकता को सुधारा जा सकता है।
वृक्षों में बढ़ोतरी होने से पहले वृक्षों के नीचे तथा वृक्षों की कतारों के बीच खुली जगह को खरपतवार रहित रखना।
प्याज जैसी फसलों में सीधी बुवाई के लिए ड्रम सीडर का प्रयोग करें ।
अनुकूल मृदा आद्र्रता होम तक मुख्य खेत में पौधों के प्रतिरोपण और उर्वरक उपयोग को टाल दें।
आद्र्रता स्थिति अनुकूल होते ही पौधा का रोपण करें ।
मुख्य पोषक तत्वों (जल घुलनशील) के पर्ण अनुप्रयोग करना चाहिए।
आंशिक शेड से नए पौधे का संरक्षण।
फसलोंं के बीच दूरियों में निराई तथा इंटर-कल्चर पद्धतियां अपनाई जाएं।
पौधों की संख्या को कम करने के लिए विरलन किया जाए।
जल की उपलब्धता के आधार पर वैकल्पिक फरो सिंचाई की जाए।
ड्रिप सिंचाई अपनाई जाए। संरक्षी अनुरक्षण के लिए जहां ड्रिप उपलब्ध न हो वहां घड़ा सिंचाई पद्धति अपनाएं।
बेहतर मृदा एवं आद्र्रता संरक्षण तथा खरपतवार नियंत्रण के लिए प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई अपनाई जाए।
सतही और भू- जल का संयुक्त उपयोग और साथ ही गैर-परम्परागत स्रोतों जैसे खारे जल के उपयोग को अपनाना ।
बिना पूर्व उपचार के बेकार जल का उपयोग नहीं किया जाना तथा सुरक्षित जल का पुन: उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
उन उर्वरकों का उपयोग कम करें जो पौधो की वनस्पतिक वृद्धि को बढ़ाते हैं जैसे नाइट्रोजन, पौधों की वृद्धि को बनाए रखने के लिए पर्ण छिड़़काव के रूप में पोटाश और बोरोन का प्रयोग करें ।
जल प्रवाह और वितरण के दौरान जल हानियों को कम करना।
जल अवशोषण और धीमे निर्गमन के लिए सुपर एबजोब्रेट पोलीमर्स जैसे ल्युक्यसोर्ब का उपयोग करें।
फल सब्जियों के लिए क्या करें और क्या न करें ट्रेचिंग, कंटूर/फील्ड बन्डिंग, गुली प्लगिंग, लूज बाउल्डर चेक डेम द्वारा स्व-स्थाने आद्र्रता संरक्षण किया जाए ।
बेसिन में स्व-स्थाने आद्र्रता संरक्षण के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध कार्बनिक मल्चेज का प्रयोग करें। जल के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए ड्रिप/बूंद-बूंद सिंचाई को अपनाएं।
पौधों की बेहतर स्थापना हेतु सुखारोधक जड़ भंडारों पर स्वस्थाने संशोधन। रुपांतरण बागवानी जैसे अंतर फसलें एवं मृदा नमी रूपांतरण कार्य प्रणालियां अपनाएं।
जब तक पर्याप्त मृदा नमी उपलब्ध है उर्वरकों के मृदा अनुप्रयोग पर रोक।
पोषक तत्व अन्तर ग्रहण तथा उपयोग दक्षता वृद्धि करते हुए जल सहय स्थितियों के तहत प्रमुख पोषक तत्वों के पणीय पोषक तत्वों का प्रयोग करना ।
उच्च वाष्पीकृत मांग का कम करने के लिए नए पौधों को मिट्ïटी के पत्रों एवं संरक्षित शेड के माध्यम से संरक्षित सिंचाई प्रदान करना ।
जल सीमित स्थितियों के अंतर्गत फल फसलोंं के उत्पादन के लिए ड्रिप सिंचाई एवं मल्चिंग के अलावा, मविन सिंचाई पद्धतियों जैसे आंशिक रूट जोन ड्राईग (पीआरडी) को अंगूर, आम तथा निम्बू में अपनाया जा सकता है। आंशिक रुट जोन ड्राईंग पद्धति डिपर रुट प्रणाली को विकसित करने में मदद करती है
सभी फल फसलोंं के लिए, स्थानीय उपलब्ध पौधा सामग्रियों के साथ बेसिन मल्चिंग तथा प्लास्टिक मल्च अपनाये जा सकते हैं ।
सभी उपलब्ध पौध अपशिष्ट सामग्रियों को वनस्पतिक खाद में बदलने की कोशिश की जानी चाहिए तथा फल एवं सब्जी फसल के लिए जैविक खाद के रूप में इसका उपयोग करना चाहिए।
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